Luckyloda
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Bohot hi emotional update#28
“बहनचोदो , तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये करने की ” हवेली के टूटे दरवाजे को देखते हुए मैं जे सी बी वाले की तरफ लपका . हवेली को बहुत ज्यादा नुकसान कर दिया था इन लोगो ने . मशीन पर चढ़ कर मैंने ड्राईवर का कालर पकड़ कर उसे बाहर खींच लिया.
“घर था ये मेरा, इसे छूने की हिम्मत कैसे हुई तेरी.” मैंने उसकी छाती पर घुटना मारा. दिमाग साला भन्ना गया था. पास पड़ा पत्थर उठा कर मैंने उसे दे मारा. खून से सन गया उसका बदन . पास खड़े ट्रेक्टर वाले कांपने लगे. कुछ मजदुर अपने औजार गिरा कर भागने लगे.
“हमारी कोई गलती नहीं ” एक बुजुर्ग मजदुर ने हाथ जोड़ते हुए कहा.
मैं- तो किसकी गलती है , ऐसे किसी का भी घर तोड़ देगा तू
“हमें काम मिला था , ” उसने गिडगिडाते हुए कहा .
“इस से पहले की मैं उम्र का लिहाज भूल जाऊ चले जाओ यहाँ से ” बहुत मुस्किल से मैं अपने गुस्से को काबू कर रहा था .
तभी अचानक से हवेली के एक हिस्से की दिवार गिर गयी. पीछे से भी मशीन लगी थी तोड़ने के काम में .
किसी भी व्यक्ति के लिए सदमे से कम नहीं होता अपने घर को टूटते हुए देखना. मैंने पास में पड़ी फावली उठाई और दूसरी मशीन की तरफ लपका .
“बस यही नहीं करना था ” मुझे किसी की कोई परवाह नहीं थी ड्राईवर का मुह मैंने शीशे में ही दे दिया.
“ये मजदूरी बहुत महंगी पड़ेगी तुझे ” मैंने फावली उसकी पीठ पर दे मारी.
“कबीर, ये मत करो . किसी को मार नहीं सकते तुम ” दरोगे ने मेरी तरफ लपकते हुए कहा .
“आज नहीं , आज नहीं. आज कोई बीच में नहीं आएगा. मेरे घर की एक ईंट भी तोड़ने की हिम्मत कैसे हुई इन बहन चोदो की ” मैंने गुस्से से कहा
दरोगा- कबीर, मैं हु न . मुझे दो मिनट तो दे. सर फट गया है इसका कही मर मरा न जाये ये
मैं- परवाह नहीं मुझे, मुझे ये बताएगा की किसकी शह से इसकी औकात हुई इतनी की ये मेरे घर को ढाहने को तैयार हो गया.
“इन मजदूरो पर अपना जोर मत दिखा कबीर, इन्हें मैंने कहा था हवेली को तोड़ने के लिए ” भाभी ने मेरी तरफ आते हुए कहा .
“तू इतना गिर जाएगी ये सोचा नहीं था मैंने, इस से पहले की मैं भूल जाऊ की तू कौन है इस से पहले की मैं इस खूबसूरत चेहरे की दशा बिगाड़ दू , तेरी हिम्मत कैसे हुई ये करवाने की भाभी ” मैंने गुस्से से थूका.
भाभी- अपने हक़ से, हवेली की मालकिन होने के नाते मेरा पूरा अधिकार है की मैं अपनी प्रोपर्टी को जैसे चाहू वैसे इस्तेमाल करू.
मैं- कैसे हो गयी तू मालकिन, अरे जब हवेली को जरुरत थी तू छोड़ कर भाग गयी इसे.
भाभी- भागने की बात तू तो कर ही मत कबीर.
मैं- चली जा यहाँ से कहीं ऐसा न हो दुनिया कहे की कबीर ने औरत पर हाथ उठाया.
भाभी- कमजोर समझने की भूल न करियो कबीर, यहाँ से मैं नहीं बल्कि तू जायेगा वो भी अभी के अभी, दरोगा इस हवेली की मालकिन मैं हु , पिताजी ने मरने से पहले हवेली मेरे नाम कर दी थी ये रहे इसके कागज.
दरोगा भाभी के हाथ से लेकर कागज पढने लगा. उसके माथे की त्योरियो को बल खाते हुए मैंने देखा.
“कबीर , ये सही कहती है ” दरोगा ने धीमे से कहा
“कबीर, काजल ये क्या हो रहा है ” ताई जी ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा .
“हवेली तुडवा रही है ये ” मैंने कहा
ताई- काजल, ये क्या हरकत है . तू जानती है न हवेली की क्या अहमियत है हम सब के लिए , फिर क्यों ये तमाशा , गाँव बस्ती को क्यों मौका दे रहे हो तमाशा देखने का.
भाभी- मैं कोई तमाशा नहीं कर रही हूँ बड़ी मम्मी , मैंने कबीर से कहा था कुछ पर इसने मेरी बात नहीं मानी. और हवेली की मालकिन होने के नाते मुझे पूरा हक़ है चाहे मैं इसे रखु या मिटटी में मिला दू.
मैं- जिस कागज के टुकड़े पर तू इतरा रही है न भाभी , उसकी बत्ती बनाने में एक मिनट नहीं लगेगा मुझे.
भाभी- दरोगा इसी वक्त तुम मेरी शिकायत लिखो और इसे यहाँ से बाहर करो.
ताई- दरोगा, हमारे घर के मामले में पड़ने की जरुरत नहीं तुम्हे. अभी हम काबिल है हमारे मसले सुलझाने के लिए. फिलहाल तुम इन मजदूरो को यहाँ से ले जाओ .
दरोगा मेरे पास आया और बोला- कबीर, ऐसा वैसा कुछ मत करना जिससे तुम्हारे लिए परेशानी बढे. उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मजदूरो को लेकर चला गया.
ताई- काजल, बेशक तुम मालकिन हो हवेली की . पर हक़ ऐसे नहीं मिलते. हवेली ही क्या हमारे पास जो भी है सब कुछ तुम्हारा ही है न . फिर ये हरकत क्यों . तुम वही काजल हो न घंटो इस सूनी हवेली में बैठा करती थी ,ये इतना गुस्सा क्यों की अपने ही घर को तोड़ने पर आतुर हो गयी तुम
भाभी- जिद नहीं है बड़ी मम्मी मेरी. मैंने कबीर से स्पष्ट शब्दों में कहा था की मंजू को हवेली में ना रहने दे. पर इसकी तो जिद है
ताई- कबीर बस उसकी सुरक्षा चाहता था , ये मसला मेरे संज्ञान में भी था और मैंने कबीर को समझा भी दिया था की मंजू मेरे घर रहेगी.
मैं- मंजू से तो हमेशा ही खुन्नस रखी है भाभी ने
भाभी- उसका कारण भी तुम ही हो, मैं खोदना नहीं चाहती गड़े मुर्दों को
मैं- जब इतना सब कर लिया है तो वो भी कर लो.
“चुप हो जाओ तुम लोग, मैं तुम सबकी माँ हूँ , और हर माँ को पता होता है की उसकी औलादे कैसी है . काजल फ़िलहाल तुम जाओ यहाँ से मैं बाद में मिलूंगी तुमसे और कबीर तुम शांत हो जाओ, क्लेश अच्छा नहीं वो जब घर में मौत हुई पड़ी हो. रिश्तेदार लोग है, परिवार की रही सही इज्जत पर बट्टा मत लगाओ. कबीर हवेली से तुमको कोई नहीं निकाल सकता हवेली तुम्हारी ही है . जो भी नुकसान हुआ है छोटे के दिनों के बाद मरम्मत करवा लेंगे. ” ताई ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा.
मैं बस उसके सीने से लग कर रो पड़ा. बहुत देर तक मैं रोता रहा .
“तू क्यों खड़ी है दूर इधर आ ” ताई ने भाभी को भी गले से लगा लिया. बहनचोद कैसा पारिवारिक प्यार था जिसमे एक दुसरे से नफरत भी थी और लगाव भी था.
“कब तक नीम के निचे ही बैठा रहेगा ” ताई ने कहा
मैं- कुछ नहीं रहा इस गाँव में मेरा , लौटना ही नहीं चाहता था मैं पर मेरी किस्मत न जाने क्या चाहती है मुझे ले आई यहाँ
ताई- अपने घर तो परिंदे भी लौट आते है फिर तू क्यों नहीं आयेगा.
“कुछ देर अकेला छोड़ दो मुझे. ” मैंने कहा
ताई- अकेला छोड़ दूंगी पर अकेला होने नहीं दूंगी. मेरे घर चल अभी के अभी
मैं- आप चलो, मैं आता हु थोड़ी देर में
“नहीं आयेगा फिर तू ” बोली वो
मैं- आ जाऊंगा , थोड़ी देर अकेले रहना चाहता हु.
टूटे कदमो से मैं हवेली के अन्दर गया. धुल मिटटी से सनी चारपाई को सीधा किया. मटके को मुह से लगा कर पानी पिया . माँ की तस्वीर खूँटी पर लटक गयी थी मिअने उसे सीने से लगाया और आंसुओ को बस बहने दिया....................
Nice and superb update....#28
“बहनचोदो , तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई ये करने की ” हवेली के टूटे दरवाजे को देखते हुए मैं जे सी बी वाले की तरफ लपका . हवेली को बहुत ज्यादा नुकसान कर दिया था इन लोगो ने . मशीन पर चढ़ कर मैंने ड्राईवर का कालर पकड़ कर उसे बाहर खींच लिया.
“घर था ये मेरा, इसे छूने की हिम्मत कैसे हुई तेरी.” मैंने उसकी छाती पर घुटना मारा. दिमाग साला भन्ना गया था. पास पड़ा पत्थर उठा कर मैंने उसे दे मारा. खून से सन गया उसका बदन . पास खड़े ट्रेक्टर वाले कांपने लगे. कुछ मजदुर अपने औजार गिरा कर भागने लगे.
“हमारी कोई गलती नहीं ” एक बुजुर्ग मजदुर ने हाथ जोड़ते हुए कहा.
मैं- तो किसकी गलती है , ऐसे किसी का भी घर तोड़ देगा तू
“हमें काम मिला था , ” उसने गिडगिडाते हुए कहा .
“इस से पहले की मैं उम्र का लिहाज भूल जाऊ चले जाओ यहाँ से ” बहुत मुस्किल से मैं अपने गुस्से को काबू कर रहा था .
तभी अचानक से हवेली के एक हिस्से की दिवार गिर गयी. पीछे से भी मशीन लगी थी तोड़ने के काम में .
किसी भी व्यक्ति के लिए सदमे से कम नहीं होता अपने घर को टूटते हुए देखना. मैंने पास में पड़ी फावली उठाई और दूसरी मशीन की तरफ लपका .
“बस यही नहीं करना था ” मुझे किसी की कोई परवाह नहीं थी ड्राईवर का मुह मैंने शीशे में ही दे दिया.
“ये मजदूरी बहुत महंगी पड़ेगी तुझे ” मैंने फावली उसकी पीठ पर दे मारी.
“कबीर, ये मत करो . किसी को मार नहीं सकते तुम ” दरोगे ने मेरी तरफ लपकते हुए कहा .
“आज नहीं , आज नहीं. आज कोई बीच में नहीं आएगा. मेरे घर की एक ईंट भी तोड़ने की हिम्मत कैसे हुई इन बहन चोदो की ” मैंने गुस्से से कहा
दरोगा- कबीर, मैं हु न . मुझे दो मिनट तो दे. सर फट गया है इसका कही मर मरा न जाये ये
मैं- परवाह नहीं मुझे, मुझे ये बताएगा की किसकी शह से इसकी औकात हुई इतनी की ये मेरे घर को ढाहने को तैयार हो गया.
“इन मजदूरो पर अपना जोर मत दिखा कबीर, इन्हें मैंने कहा था हवेली को तोड़ने के लिए ” भाभी ने मेरी तरफ आते हुए कहा .
“तू इतना गिर जाएगी ये सोचा नहीं था मैंने, इस से पहले की मैं भूल जाऊ की तू कौन है इस से पहले की मैं इस खूबसूरत चेहरे की दशा बिगाड़ दू , तेरी हिम्मत कैसे हुई ये करवाने की भाभी ” मैंने गुस्से से थूका.
भाभी- अपने हक़ से, हवेली की मालकिन होने के नाते मेरा पूरा अधिकार है की मैं अपनी प्रोपर्टी को जैसे चाहू वैसे इस्तेमाल करू.
मैं- कैसे हो गयी तू मालकिन, अरे जब हवेली को जरुरत थी तू छोड़ कर भाग गयी इसे.
भाभी- भागने की बात तू तो कर ही मत कबीर.
मैं- चली जा यहाँ से कहीं ऐसा न हो दुनिया कहे की कबीर ने औरत पर हाथ उठाया.
भाभी- कमजोर समझने की भूल न करियो कबीर, यहाँ से मैं नहीं बल्कि तू जायेगा वो भी अभी के अभी, दरोगा इस हवेली की मालकिन मैं हु , पिताजी ने मरने से पहले हवेली मेरे नाम कर दी थी ये रहे इसके कागज.
दरोगा भाभी के हाथ से लेकर कागज पढने लगा. उसके माथे की त्योरियो को बल खाते हुए मैंने देखा.
“कबीर , ये सही कहती है ” दरोगा ने धीमे से कहा
“कबीर, काजल ये क्या हो रहा है ” ताई जी ने अपने सीने पर हाथ रखते हुए कहा .
“हवेली तुडवा रही है ये ” मैंने कहा
ताई- काजल, ये क्या हरकत है . तू जानती है न हवेली की क्या अहमियत है हम सब के लिए , फिर क्यों ये तमाशा , गाँव बस्ती को क्यों मौका दे रहे हो तमाशा देखने का.
भाभी- मैं कोई तमाशा नहीं कर रही हूँ बड़ी मम्मी , मैंने कबीर से कहा था कुछ पर इसने मेरी बात नहीं मानी. और हवेली की मालकिन होने के नाते मुझे पूरा हक़ है चाहे मैं इसे रखु या मिटटी में मिला दू.
मैं- जिस कागज के टुकड़े पर तू इतरा रही है न भाभी , उसकी बत्ती बनाने में एक मिनट नहीं लगेगा मुझे.
भाभी- दरोगा इसी वक्त तुम मेरी शिकायत लिखो और इसे यहाँ से बाहर करो.
ताई- दरोगा, हमारे घर के मामले में पड़ने की जरुरत नहीं तुम्हे. अभी हम काबिल है हमारे मसले सुलझाने के लिए. फिलहाल तुम इन मजदूरो को यहाँ से ले जाओ .
दरोगा मेरे पास आया और बोला- कबीर, ऐसा वैसा कुछ मत करना जिससे तुम्हारे लिए परेशानी बढे. उसने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मजदूरो को लेकर चला गया.
ताई- काजल, बेशक तुम मालकिन हो हवेली की . पर हक़ ऐसे नहीं मिलते. हवेली ही क्या हमारे पास जो भी है सब कुछ तुम्हारा ही है न . फिर ये हरकत क्यों . तुम वही काजल हो न घंटो इस सूनी हवेली में बैठा करती थी ,ये इतना गुस्सा क्यों की अपने ही घर को तोड़ने पर आतुर हो गयी तुम
भाभी- जिद नहीं है बड़ी मम्मी मेरी. मैंने कबीर से स्पष्ट शब्दों में कहा था की मंजू को हवेली में ना रहने दे. पर इसकी तो जिद है
ताई- कबीर बस उसकी सुरक्षा चाहता था , ये मसला मेरे संज्ञान में भी था और मैंने कबीर को समझा भी दिया था की मंजू मेरे घर रहेगी.
मैं- मंजू से तो हमेशा ही खुन्नस रखी है भाभी ने
भाभी- उसका कारण भी तुम ही हो, मैं खोदना नहीं चाहती गड़े मुर्दों को
मैं- जब इतना सब कर लिया है तो वो भी कर लो.
“चुप हो जाओ तुम लोग, मैं तुम सबकी माँ हूँ , और हर माँ को पता होता है की उसकी औलादे कैसी है . काजल फ़िलहाल तुम जाओ यहाँ से मैं बाद में मिलूंगी तुमसे और कबीर तुम शांत हो जाओ, क्लेश अच्छा नहीं वो जब घर में मौत हुई पड़ी हो. रिश्तेदार लोग है, परिवार की रही सही इज्जत पर बट्टा मत लगाओ. कबीर हवेली से तुमको कोई नहीं निकाल सकता हवेली तुम्हारी ही है . जो भी नुकसान हुआ है छोटे के दिनों के बाद मरम्मत करवा लेंगे. ” ताई ने मेरा हाथ पकड़ कर कहा.
मैं बस उसके सीने से लग कर रो पड़ा. बहुत देर तक मैं रोता रहा .
“तू क्यों खड़ी है दूर इधर आ ” ताई ने भाभी को भी गले से लगा लिया. बहनचोद कैसा पारिवारिक प्यार था जिसमे एक दुसरे से नफरत भी थी और लगाव भी था.
“कब तक नीम के निचे ही बैठा रहेगा ” ताई ने कहा
मैं- कुछ नहीं रहा इस गाँव में मेरा , लौटना ही नहीं चाहता था मैं पर मेरी किस्मत न जाने क्या चाहती है मुझे ले आई यहाँ
ताई- अपने घर तो परिंदे भी लौट आते है फिर तू क्यों नहीं आयेगा.
“कुछ देर अकेला छोड़ दो मुझे. ” मैंने कहा
ताई- अकेला छोड़ दूंगी पर अकेला होने नहीं दूंगी. मेरे घर चल अभी के अभी
मैं- आप चलो, मैं आता हु थोड़ी देर में
“नहीं आयेगा फिर तू ” बोली वो
मैं- आ जाऊंगा , थोड़ी देर अकेले रहना चाहता हु.
टूटे कदमो से मैं हवेली के अन्दर गया. धुल मिटटी से सनी चारपाई को सीधा किया. मटके को मुह से लगा कर पानी पिया . माँ की तस्वीर खूँटी पर लटक गयी थी मिअने उसे सीने से लगाया और आंसुओ को बस बहने दिया....................
घर से बड़ा सच में कोई धाम नहीं है.... सब यही मिल जाए अगर घर में शांति रहती हैं तो#29
“दुनिया में कही भी चले जाना पर लौट कर आना यही पर, घर से बड़ा कुछ नहीं कोई धाम नहीं . सुख सिर्फ इसी चौखट पर है ” माँ की कही बात मेरे कानो को बेध रही थी . मेरे मन में बहुत कुछ था कहने को , मैं चीखना चाहता था . मैं चाहता था की कोई मुझे सीने से लगा ले बस. आदमी चाहे कुछ भी बन जाये , कितना भी बड़ा बन जाये पर उसके सर पर माँ-बाप का हाथ नहीं है तो उस उसे गरीब, उस से असाहय कोई नहीं. मेरी माँ अगर आज होती तो मुझे अपने आँचल की छाया में ले लेती, मेरा बाप आज जिन्दा होता तो किसी की मजाल नहीं थी मुझे यूँ बेइज्जत कर करने की. इस टूटी दिवार का एक एक एक पत्थर हमारी उन खुशियों का साक्षी था जो अब कही खो गयी थी . आदमी दुनिया से जीत सकता है पर जब लड़ाई अपने ही घर वालो से हो तो वो कुछ नहीं कर सकता .मैंने लोगो को कहते सुना था की पुरुष कभी रोते नहीं, पर कौन थे वो लोग जिनको ये नहीं मालूम की पुरुष का रुदन आत्मा से आता है पुरुष की कठोर छवि के भीतर ने कोमल मन होता है जिसमे भरे होते है तमाम अहसास जिन्हें वो छिपाए रखता है. मन का बोझ कुछ कम हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल आया.
“क्या लिखा है बाबा तूने मेरे भाग में . इतनी भी परीक्षा मत ले मेरी की मैं नास्तिक हो जाऊ . तेरे दिए हर सुख को भी भाग समझा तेरे दिए हर दुःख को भी परसाद समझा पर बाबा अब हिम्मत नहीं है . मैं खुश था यहाँ से दूर , जिस जहाँ को मैं भूल गया था तू वापिस ले आया तो है मुझे फिर से पर बाबा हारे हुए को और मत हरा . मैं जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की चाहत तो बहुत है पर मांगने की हिम्मत नहीं है ” मैंने बाबा की चोखट पर सर रखा और आँखे मूँद ली .
“ कबीर उठ जरा ” मामी ने मुझे झिंझोड़ा.
“हाँ क्या हुआ मामी ” मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा .
“रात हो गयी है कब तक सोया रहेगा ” मामी ने कहा
मैंने आँखे मलते हुए इधर उधर देखा . बल्ब टिमटिमाने लगे थे .
“आ मेरे साथ ” बोली वो
मैं- कहाँ
मामी- आ तो सही .
मैंने थोडा सा पानी चेहरे पर मारा कुछ घूँट पिए और मामी के साथ चल दिया.थोड़ी देर बाद हम लोग ताईजी के घर पर थे, मंजू भी वही पर थी . झट से वो मेरे सीने से लग गयी.
“कबीर, मेरी वजह से हुआ ये सब , मेरी फूटी किस्मत का असर तुझ पर भी पड़ने लगा है ” सुबकते हुए बोली वो .
मैं- नहीं रे पगली, ऐसी कोई बात नहीं है . सुख दुःख तो जीवन में आयेंगे जायेंगे पर हम नहीं बदलेंगे ,सुख में जब तेरे साथ जिया तो दुःख में तू अकेली कैसे रहेगी. ये दुनिया चाहे जो भी कहे, जो भी समझे, तेरे मेरे नाते को या तो हम दोनों जाने या अपने महादेव जाने
मंजू- मेरी वजह से अगर चार लोग तुझ पर ऊँगली उठाये ये भी तो गलत है न कबीर.
मैं- चार लोग, चालीस बाते, चार सौ अफवाहे पर हमें क्या फरक पड़ता है. ये दुनिया ऐसी ही है .
“बड़ा समझदार हो गया तू तो कबीर ” मामी ने मेरे सर पर हाथ फेरा
“भाभी ने अपना अहंकार कर लिया ,पर वो भूल गयी की ईंट-पत्थरों की इमारतों को घर वहां रहने वाले लोग बनाते है रखे वो अपनी हवेली को , मैं अपना आशियाँ कही और बना लूँगा ” मैंने कहा
ताई- ऐसा सोच भी मत, जो कुछ भी है सब तेरा ही है कबीर. मैंने तुझसे वादा तो किया की कुछ ही दिनों में हवेली की मरम्मत हो जाएगी.
मैं- ईमारत की मरम्मत तो हो जाये, पर मन में जो चोट लगी है उसकी दवा कहाँ मिलेगी
ताई- खाना खाकर दवाई ले ले . मन को भी आराम आएगा और तुझे भी .
मेरा मन नही लग रहा था . मैं वहां से निकल कर खेतो की तरफ चल दिया. अक्सर आदमी अपनी तन्हाई में शराब का सहारा लेता है मैंने भी वैसा ही किया. कलेजे को चीरते हुए जब शराब अन्दर जाती है तो वो कसक, जो जलन होती है वो बताती है की अभी जिन्दा तो है तू. और किस्मत वो चीज होती है जिसके होने का अहसास हमें तब होता है जब सब कुछ अँधेरा अँधेरा हो जाये. ऐसे ही अँधेरे में मैं अपने आप से हजार सवाल जवाब करते हुए भटक रहा था .
“रे, बहनचोद क्या है ” मेरे पैर में बहुत जोर से कुछ चुभा था . ऐसा पिछली कई बार हुआ था की मेरी चप्प्ल्लो में कुछ न कुछ पार हुआ था.
“कौन ये कांच इधर बिखरा के अपनी माँ चुदा रहा है ” गुस्से से झल्लाते हुए मैंने चप्पल से वो टुकड़ा निकाल कर फेंकने ही वाला था की मेरे हाथ रुक गये, चांदनी रात में चमकते उस टुकड़े पर मेरी नजर जो ठहरी तो मुझे समझ आया की महज कांच तो नहीं था वो . टीनो के निचे मैंने बलब जलाया तो मेरा यकीन पुख्ता हो गया. वो हीरे का टुकड़ा था ,बेतारिब बेमिसाल हीरे का टुकड़ा. आसपास मैंने गौर किया जिन्हें मैंने कांच समझा था वो हीरे के टुकड़े बिखरे पड़े थे. नशा एक झटके में गायब हो गया. दिमाग जैसे सुन्न हो गया.
“पैसा किसे ही चाहिए था ” भाभी के कहे लफ्ज़ कानो में शोर मचाने लगे थे .
“पैसा नहीं तो तुझे हीरे चाहिए थे भाभी. ” मैंने उस टुकड़े को सहलाते हुए कहा पर अगले ही पल मेरे मन में एक नया प्रशन पूछ लिया .
“हीरे भी तो पैसे ही है , तो फिर किस चीज का मोह था तुम्हे भाभी ” मैंने अपने आप से कहा और आसपास पागलो के जैसे कुछ तलाशने लगा जो मुझे मेरे सवालो का जवाब दे सके................
फिर एक बार बहुत ही अप्रतिम सुंदर लाजवाब और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया#29
“दुनिया में कही भी चले जाना पर लौट कर आना यही पर, घर से बड़ा कुछ नहीं कोई धाम नहीं . सुख सिर्फ इसी चौखट पर है ” माँ की कही बात मेरे कानो को बेध रही थी . मेरे मन में बहुत कुछ था कहने को , मैं चीखना चाहता था . मैं चाहता था की कोई मुझे सीने से लगा ले बस. आदमी चाहे कुछ भी बन जाये , कितना भी बड़ा बन जाये पर उसके सर पर माँ-बाप का हाथ नहीं है तो उस उसे गरीब, उस से असाहय कोई नहीं. मेरी माँ अगर आज होती तो मुझे अपने आँचल की छाया में ले लेती, मेरा बाप आज जिन्दा होता तो किसी की मजाल नहीं थी मुझे यूँ बेइज्जत कर करने की. इस टूटी दिवार का एक एक एक पत्थर हमारी उन खुशियों का साक्षी था जो अब कही खो गयी थी . आदमी दुनिया से जीत सकता है पर जब लड़ाई अपने ही घर वालो से हो तो वो कुछ नहीं कर सकता .मैंने लोगो को कहते सुना था की पुरुष कभी रोते नहीं, पर कौन थे वो लोग जिनको ये नहीं मालूम की पुरुष का रुदन आत्मा से आता है पुरुष की कठोर छवि के भीतर ने कोमल मन होता है जिसमे भरे होते है तमाम अहसास जिन्हें वो छिपाए रखता है. मन का बोझ कुछ कम हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल आया.
“क्या लिखा है बाबा तूने मेरे भाग में . इतनी भी परीक्षा मत ले मेरी की मैं नास्तिक हो जाऊ . तेरे दिए हर सुख को भी भाग समझा तेरे दिए हर दुःख को भी परसाद समझा पर बाबा अब हिम्मत नहीं है . मैं खुश था यहाँ से दूर , जिस जहाँ को मैं भूल गया था तू वापिस ले आया तो है मुझे फिर से पर बाबा हारे हुए को और मत हरा . मैं जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की चाहत तो बहुत है पर मांगने की हिम्मत नहीं है ” मैंने बाबा की चोखट पर सर रखा और आँखे मूँद ली .
“ कबीर उठ जरा ” मामी ने मुझे झिंझोड़ा.
“हाँ क्या हुआ मामी ” मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा .
“रात हो गयी है कब तक सोया रहेगा ” मामी ने कहा
मैंने आँखे मलते हुए इधर उधर देखा . बल्ब टिमटिमाने लगे थे .
“आ मेरे साथ ” बोली वो
मैं- कहाँ
मामी- आ तो सही .
मैंने थोडा सा पानी चेहरे पर मारा कुछ घूँट पिए और मामी के साथ चल दिया.थोड़ी देर बाद हम लोग ताईजी के घर पर थे, मंजू भी वही पर थी . झट से वो मेरे सीने से लग गयी.
“कबीर, मेरी वजह से हुआ ये सब , मेरी फूटी किस्मत का असर तुझ पर भी पड़ने लगा है ” सुबकते हुए बोली वो .
मैं- नहीं रे पगली, ऐसी कोई बात नहीं है . सुख दुःख तो जीवन में आयेंगे जायेंगे पर हम नहीं बदलेंगे ,सुख में जब तेरे साथ जिया तो दुःख में तू अकेली कैसे रहेगी. ये दुनिया चाहे जो भी कहे, जो भी समझे, तेरे मेरे नाते को या तो हम दोनों जाने या अपने महादेव जाने
मंजू- मेरी वजह से अगर चार लोग तुझ पर ऊँगली उठाये ये भी तो गलत है न कबीर.
मैं- चार लोग, चालीस बाते, चार सौ अफवाहे पर हमें क्या फरक पड़ता है. ये दुनिया ऐसी ही है .
“बड़ा समझदार हो गया तू तो कबीर ” मामी ने मेरे सर पर हाथ फेरा
“भाभी ने अपना अहंकार कर लिया ,पर वो भूल गयी की ईंट-पत्थरों की इमारतों को घर वहां रहने वाले लोग बनाते है रखे वो अपनी हवेली को , मैं अपना आशियाँ कही और बना लूँगा ” मैंने कहा
ताई- ऐसा सोच भी मत, जो कुछ भी है सब तेरा ही है कबीर. मैंने तुझसे वादा तो किया की कुछ ही दिनों में हवेली की मरम्मत हो जाएगी.
मैं- ईमारत की मरम्मत तो हो जाये, पर मन में जो चोट लगी है उसकी दवा कहाँ मिलेगी
ताई- खाना खाकर दवाई ले ले . मन को भी आराम आएगा और तुझे भी .
मेरा मन नही लग रहा था . मैं वहां से निकल कर खेतो की तरफ चल दिया. अक्सर आदमी अपनी तन्हाई में शराब का सहारा लेता है मैंने भी वैसा ही किया. कलेजे को चीरते हुए जब शराब अन्दर जाती है तो वो कसक, जो जलन होती है वो बताती है की अभी जिन्दा तो है तू. और किस्मत वो चीज होती है जिसके होने का अहसास हमें तब होता है जब सब कुछ अँधेरा अँधेरा हो जाये. ऐसे ही अँधेरे में मैं अपने आप से हजार सवाल जवाब करते हुए भटक रहा था .
“रे, बहनचोद क्या है ” मेरे पैर में बहुत जोर से कुछ चुभा था . ऐसा पिछली कई बार हुआ था की मेरी चप्प्ल्लो में कुछ न कुछ पार हुआ था.
“कौन ये कांच इधर बिखरा के अपनी माँ चुदा रहा है ” गुस्से से झल्लाते हुए मैंने चप्पल से वो टुकड़ा निकाल कर फेंकने ही वाला था की मेरे हाथ रुक गये, चांदनी रात में चमकते उस टुकड़े पर मेरी नजर जो ठहरी तो मुझे समझ आया की महज कांच तो नहीं था वो . टीनो के निचे मैंने बलब जलाया तो मेरा यकीन पुख्ता हो गया. वो हीरे का टुकड़ा था ,बेतारिब बेमिसाल हीरे का टुकड़ा. आसपास मैंने गौर किया जिन्हें मैंने कांच समझा था वो हीरे के टुकड़े बिखरे पड़े थे. नशा एक झटके में गायब हो गया. दिमाग जैसे सुन्न हो गया.
“पैसा किसे ही चाहिए था ” भाभी के कहे लफ्ज़ कानो में शोर मचाने लगे थे .
“पैसा नहीं तो तुझे हीरे चाहिए थे भाभी. ” मैंने उस टुकड़े को सहलाते हुए कहा पर अगले ही पल मेरे मन में एक नया प्रशन पूछ लिया .
“हीरे भी तो पैसे ही है , तो फिर किस चीज का मोह था तुम्हे भाभी ” मैंने अपने आप से कहा और आसपास पागलो के जैसे कुछ तलाशने लगा जो मुझे मेरे सवालो का जवाब दे सके................
#29
“दुनिया में कही भी चले जाना पर लौट कर आना यही पर, घर से बड़ा कुछ नहीं कोई धाम नहीं . सुख सिर्फ इसी चौखट पर है ” माँ की कही बात मेरे कानो को बेध रही थी . मेरे मन में बहुत कुछ था कहने को , मैं चीखना चाहता था . मैं चाहता था की कोई मुझे सीने से लगा ले बस. आदमी चाहे कुछ भी बन जाये , कितना भी बड़ा बन जाये पर उसके सर पर माँ-बाप का हाथ नहीं है तो उस उसे गरीब, उस से असाहय कोई नहीं. मेरी माँ अगर आज होती तो मुझे अपने आँचल की छाया में ले लेती, मेरा बाप आज जिन्दा होता तो किसी की मजाल नहीं थी मुझे यूँ बेइज्जत कर करने की. इस टूटी दिवार का एक एक एक पत्थर हमारी उन खुशियों का साक्षी था जो अब कही खो गयी थी . आदमी दुनिया से जीत सकता है पर जब लड़ाई अपने ही घर वालो से हो तो वो कुछ नहीं कर सकता .मैंने लोगो को कहते सुना था की पुरुष कभी रोते नहीं, पर कौन थे वो लोग जिनको ये नहीं मालूम की पुरुष का रुदन आत्मा से आता है पुरुष की कठोर छवि के भीतर ने कोमल मन होता है जिसमे भरे होते है तमाम अहसास जिन्हें वो छिपाए रखता है. मन का बोझ कुछ कम हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल आया.
“क्या लिखा है बाबा तूने मेरे भाग में . इतनी भी परीक्षा मत ले मेरी की मैं नास्तिक हो जाऊ . तेरे दिए हर सुख को भी भाग समझा तेरे दिए हर दुःख को भी परसाद समझा पर बाबा अब हिम्मत नहीं है . मैं खुश था यहाँ से दूर , जिस जहाँ को मैं भूल गया था तू वापिस ले आया तो है मुझे फिर से पर बाबा हारे हुए को और मत हरा . मैं जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की चाहत तो बहुत है पर मांगने की हिम्मत नहीं है ” मैंने बाबा की चोखट पर सर रखा और आँखे मूँद ली .
“ कबीर उठ जरा ” मामी ने मुझे झिंझोड़ा.
“हाँ क्या हुआ मामी ” मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा .
“रात हो गयी है कब तक सोया रहेगा ” मामी ने कहा
मैंने आँखे मलते हुए इधर उधर देखा . बल्ब टिमटिमाने लगे थे .
“आ मेरे साथ ” बोली वो
मैं- कहाँ
मामी- आ तो सही .
मैंने थोडा सा पानी चेहरे पर मारा कुछ घूँट पिए और मामी के साथ चल दिया.थोड़ी देर बाद हम लोग ताईजी के घर पर थे, मंजू भी वही पर थी . झट से वो मेरे सीने से लग गयी.
“कबीर, मेरी वजह से हुआ ये सब , मेरी फूटी किस्मत का असर तुझ पर भी पड़ने लगा है ” सुबकते हुए बोली वो .
मैं- नहीं रे पगली, ऐसी कोई बात नहीं है . सुख दुःख तो जीवन में आयेंगे जायेंगे पर हम नहीं बदलेंगे ,सुख में जब तेरे साथ जिया तो दुःख में तू अकेली कैसे रहेगी. ये दुनिया चाहे जो भी कहे, जो भी समझे, तेरे मेरे नाते को या तो हम दोनों जाने या अपने महादेव जाने
मंजू- मेरी वजह से अगर चार लोग तुझ पर ऊँगली उठाये ये भी तो गलत है न कबीर.
मैं- चार लोग, चालीस बाते, चार सौ अफवाहे पर हमें क्या फरक पड़ता है. ये दुनिया ऐसी ही है .
“बड़ा समझदार हो गया तू तो कबीर ” मामी ने मेरे सर पर हाथ फेरा
“भाभी ने अपना अहंकार कर लिया ,पर वो भूल गयी की ईंट-पत्थरों की इमारतों को घर वहां रहने वाले लोग बनाते है रखे वो अपनी हवेली को , मैं अपना आशियाँ कही और बना लूँगा ” मैंने कहा
ताई- ऐसा सोच भी मत, जो कुछ भी है सब तेरा ही है कबीर. मैंने तुझसे वादा तो किया की कुछ ही दिनों में हवेली की मरम्मत हो जाएगी.
मैं- ईमारत की मरम्मत तो हो जाये, पर मन में जो चोट लगी है उसकी दवा कहाँ मिलेगी
ताई- खाना खाकर दवाई ले ले . मन को भी आराम आएगा और तुझे भी .
मेरा मन नही लग रहा था . मैं वहां से निकल कर खेतो की तरफ चल दिया. अक्सर आदमी अपनी तन्हाई में शराब का सहारा लेता है मैंने भी वैसा ही किया. कलेजे को चीरते हुए जब शराब अन्दर जाती है तो वो कसक, जो जलन होती है वो बताती है की अभी जिन्दा तो है तू. और किस्मत वो चीज होती है जिसके होने का अहसास हमें तब होता है जब सब कुछ अँधेरा अँधेरा हो जाये. ऐसे ही अँधेरे में मैं अपने आप से हजार सवाल जवाब करते हुए भटक रहा था .
“रे, बहनचोद क्या है ” मेरे पैर में बहुत जोर से कुछ चुभा था . ऐसा पिछली कई बार हुआ था की मेरी चप्प्ल्लो में कुछ न कुछ पार हुआ था.
“कौन ये कांच इधर बिखरा के अपनी माँ चुदा रहा है ” गुस्से से झल्लाते हुए मैंने चप्पल से वो टुकड़ा निकाल कर फेंकने ही वाला था की मेरे हाथ रुक गये, चांदनी रात में चमकते उस टुकड़े पर मेरी नजर जो ठहरी तो मुझे समझ आया की महज कांच तो नहीं था वो . टीनो के निचे मैंने बलब जलाया तो मेरा यकीन पुख्ता हो गया. वो हीरे का टुकड़ा था ,बेतारिब बेमिसाल हीरे का टुकड़ा. आसपास मैंने गौर किया जिन्हें मैंने कांच समझा था वो हीरे के टुकड़े बिखरे पड़े थे. नशा एक झटके में गायब हो गया. दिमाग जैसे सुन्न हो गया.
“पैसा किसे ही चाहिए था ” भाभी के कहे लफ्ज़ कानो में शोर मचाने लगे थे .
“पैसा नहीं तो तुझे हीरे चाहिए थे भाभी. ” मैंने उस टुकड़े को सहलाते हुए कहा पर अगले ही पल मेरे मन में एक नया प्रशन पूछ लिया .
“हीरे भी तो पैसे ही है , तो फिर किस चीज का मोह था तुम्हे भाभी ” मैंने अपने आप से कहा और आसपास पागलो के जैसे कुछ तलाशने लगा जो मुझे मेरे सवालो का जवाब दे सके................
Agar bhabhi ko paise ka moh nahi to kis chij ka moh#29
“दुनिया में कही भी चले जाना पर लौट कर आना यही पर, घर से बड़ा कुछ नहीं कोई धाम नहीं . सुख सिर्फ इसी चौखट पर है ” माँ की कही बात मेरे कानो को बेध रही थी . मेरे मन में बहुत कुछ था कहने को , मैं चीखना चाहता था . मैं चाहता था की कोई मुझे सीने से लगा ले बस. आदमी चाहे कुछ भी बन जाये , कितना भी बड़ा बन जाये पर उसके सर पर माँ-बाप का हाथ नहीं है तो उस उसे गरीब, उस से असाहय कोई नहीं. मेरी माँ अगर आज होती तो मुझे अपने आँचल की छाया में ले लेती, मेरा बाप आज जिन्दा होता तो किसी की मजाल नहीं थी मुझे यूँ बेइज्जत कर करने की. इस टूटी दिवार का एक एक एक पत्थर हमारी उन खुशियों का साक्षी था जो अब कही खो गयी थी . आदमी दुनिया से जीत सकता है पर जब लड़ाई अपने ही घर वालो से हो तो वो कुछ नहीं कर सकता .मैंने लोगो को कहते सुना था की पुरुष कभी रोते नहीं, पर कौन थे वो लोग जिनको ये नहीं मालूम की पुरुष का रुदन आत्मा से आता है पुरुष की कठोर छवि के भीतर ने कोमल मन होता है जिसमे भरे होते है तमाम अहसास जिन्हें वो छिपाए रखता है. मन का बोझ कुछ कम हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल आया.
“क्या लिखा है बाबा तूने मेरे भाग में . इतनी भी परीक्षा मत ले मेरी की मैं नास्तिक हो जाऊ . तेरे दिए हर सुख को भी भाग समझा तेरे दिए हर दुःख को भी परसाद समझा पर बाबा अब हिम्मत नहीं है . मैं खुश था यहाँ से दूर , जिस जहाँ को मैं भूल गया था तू वापिस ले आया तो है मुझे फिर से पर बाबा हारे हुए को और मत हरा . मैं जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की चाहत तो बहुत है पर मांगने की हिम्मत नहीं है ” मैंने बाबा की चोखट पर सर रखा और आँखे मूँद ली .
“ कबीर उठ जरा ” मामी ने मुझे झिंझोड़ा.
“हाँ क्या हुआ मामी ” मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा .
“रात हो गयी है कब तक सोया रहेगा ” मामी ने कहा
मैंने आँखे मलते हुए इधर उधर देखा . बल्ब टिमटिमाने लगे थे .
“आ मेरे साथ ” बोली वो
मैं- कहाँ
मामी- आ तो सही .
मैंने थोडा सा पानी चेहरे पर मारा कुछ घूँट पिए और मामी के साथ चल दिया.थोड़ी देर बाद हम लोग ताईजी के घर पर थे, मंजू भी वही पर थी . झट से वो मेरे सीने से लग गयी.
“कबीर, मेरी वजह से हुआ ये सब , मेरी फूटी किस्मत का असर तुझ पर भी पड़ने लगा है ” सुबकते हुए बोली वो .
मैं- नहीं रे पगली, ऐसी कोई बात नहीं है . सुख दुःख तो जीवन में आयेंगे जायेंगे पर हम नहीं बदलेंगे ,सुख में जब तेरे साथ जिया तो दुःख में तू अकेली कैसे रहेगी. ये दुनिया चाहे जो भी कहे, जो भी समझे, तेरे मेरे नाते को या तो हम दोनों जाने या अपने महादेव जाने
मंजू- मेरी वजह से अगर चार लोग तुझ पर ऊँगली उठाये ये भी तो गलत है न कबीर.
मैं- चार लोग, चालीस बाते, चार सौ अफवाहे पर हमें क्या फरक पड़ता है. ये दुनिया ऐसी ही है .
“बड़ा समझदार हो गया तू तो कबीर ” मामी ने मेरे सर पर हाथ फेरा
“भाभी ने अपना अहंकार कर लिया ,पर वो भूल गयी की ईंट-पत्थरों की इमारतों को घर वहां रहने वाले लोग बनाते है रखे वो अपनी हवेली को , मैं अपना आशियाँ कही और बना लूँगा ” मैंने कहा
ताई- ऐसा सोच भी मत, जो कुछ भी है सब तेरा ही है कबीर. मैंने तुझसे वादा तो किया की कुछ ही दिनों में हवेली की मरम्मत हो जाएगी.
मैं- ईमारत की मरम्मत तो हो जाये, पर मन में जो चोट लगी है उसकी दवा कहाँ मिलेगी
ताई- खाना खाकर दवाई ले ले . मन को भी आराम आएगा और तुझे भी .
मेरा मन नही लग रहा था . मैं वहां से निकल कर खेतो की तरफ चल दिया. अक्सर आदमी अपनी तन्हाई में शराब का सहारा लेता है मैंने भी वैसा ही किया. कलेजे को चीरते हुए जब शराब अन्दर जाती है तो वो कसक, जो जलन होती है वो बताती है की अभी जिन्दा तो है तू. और किस्मत वो चीज होती है जिसके होने का अहसास हमें तब होता है जब सब कुछ अँधेरा अँधेरा हो जाये. ऐसे ही अँधेरे में मैं अपने आप से हजार सवाल जवाब करते हुए भटक रहा था .
“रे, बहनचोद क्या है ” मेरे पैर में बहुत जोर से कुछ चुभा था . ऐसा पिछली कई बार हुआ था की मेरी चप्प्ल्लो में कुछ न कुछ पार हुआ था.
“कौन ये कांच इधर बिखरा के अपनी माँ चुदा रहा है ” गुस्से से झल्लाते हुए मैंने चप्पल से वो टुकड़ा निकाल कर फेंकने ही वाला था की मेरे हाथ रुक गये, चांदनी रात में चमकते उस टुकड़े पर मेरी नजर जो ठहरी तो मुझे समझ आया की महज कांच तो नहीं था वो . टीनो के निचे मैंने बलब जलाया तो मेरा यकीन पुख्ता हो गया. वो हीरे का टुकड़ा था ,बेतारिब बेमिसाल हीरे का टुकड़ा. आसपास मैंने गौर किया जिन्हें मैंने कांच समझा था वो हीरे के टुकड़े बिखरे पड़े थे. नशा एक झटके में गायब हो गया. दिमाग जैसे सुन्न हो गया.
“पैसा किसे ही चाहिए था ” भाभी के कहे लफ्ज़ कानो में शोर मचाने लगे थे .
“पैसा नहीं तो तुझे हीरे चाहिए थे भाभी. ” मैंने उस टुकड़े को सहलाते हुए कहा पर अगले ही पल मेरे मन में एक नया प्रशन पूछ लिया .
“हीरे भी तो पैसे ही है , तो फिर किस चीज का मोह था तुम्हे भाभी ” मैंने अपने आप से कहा और आसपास पागलो के जैसे कुछ तलाशने लगा जो मुझे मेरे सवालो का जवाब दे सके................