Neha tyagi
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Nice update bhai#29
“दुनिया में कही भी चले जाना पर लौट कर आना यही पर, घर से बड़ा कुछ नहीं कोई धाम नहीं . सुख सिर्फ इसी चौखट पर है ” माँ की कही बात मेरे कानो को बेध रही थी . मेरे मन में बहुत कुछ था कहने को , मैं चीखना चाहता था . मैं चाहता था की कोई मुझे सीने से लगा ले बस. आदमी चाहे कुछ भी बन जाये , कितना भी बड़ा बन जाये पर उसके सर पर माँ-बाप का हाथ नहीं है तो उस उसे गरीब, उस से असाहय कोई नहीं. मेरी माँ अगर आज होती तो मुझे अपने आँचल की छाया में ले लेती, मेरा बाप आज जिन्दा होता तो किसी की मजाल नहीं थी मुझे यूँ बेइज्जत कर करने की. इस टूटी दिवार का एक एक एक पत्थर हमारी उन खुशियों का साक्षी था जो अब कही खो गयी थी . आदमी दुनिया से जीत सकता है पर जब लड़ाई अपने ही घर वालो से हो तो वो कुछ नहीं कर सकता .मैंने लोगो को कहते सुना था की पुरुष कभी रोते नहीं, पर कौन थे वो लोग जिनको ये नहीं मालूम की पुरुष का रुदन आत्मा से आता है पुरुष की कठोर छवि के भीतर ने कोमल मन होता है जिसमे भरे होते है तमाम अहसास जिन्हें वो छिपाए रखता है. मन का बोझ कुछ कम हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल आया.
“क्या लिखा है बाबा तूने मेरे भाग में . इतनी भी परीक्षा मत ले मेरी की मैं नास्तिक हो जाऊ . तेरे दिए हर सुख को भी भाग समझा तेरे दिए हर दुःख को भी परसाद समझा पर बाबा अब हिम्मत नहीं है . मैं खुश था यहाँ से दूर , जिस जहाँ को मैं भूल गया था तू वापिस ले आया तो है मुझे फिर से पर बाबा हारे हुए को और मत हरा . मैं जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की चाहत तो बहुत है पर मांगने की हिम्मत नहीं है ” मैंने बाबा की चोखट पर सर रखा और आँखे मूँद ली .
“ कबीर उठ जरा ” मामी ने मुझे झिंझोड़ा.
“हाँ क्या हुआ मामी ” मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा .
“रात हो गयी है कब तक सोया रहेगा ” मामी ने कहा
मैंने आँखे मलते हुए इधर उधर देखा . बल्ब टिमटिमाने लगे थे .
“आ मेरे साथ ” बोली वो
मैं- कहाँ
मामी- आ तो सही .
मैंने थोडा सा पानी चेहरे पर मारा कुछ घूँट पिए और मामी के साथ चल दिया.थोड़ी देर बाद हम लोग ताईजी के घर पर थे, मंजू भी वही पर थी . झट से वो मेरे सीने से लग गयी.
“कबीर, मेरी वजह से हुआ ये सब , मेरी फूटी किस्मत का असर तुझ पर भी पड़ने लगा है ” सुबकते हुए बोली वो .
मैं- नहीं रे पगली, ऐसी कोई बात नहीं है . सुख दुःख तो जीवन में आयेंगे जायेंगे पर हम नहीं बदलेंगे ,सुख में जब तेरे साथ जिया तो दुःख में तू अकेली कैसे रहेगी. ये दुनिया चाहे जो भी कहे, जो भी समझे, तेरे मेरे नाते को या तो हम दोनों जाने या अपने महादेव जाने
मंजू- मेरी वजह से अगर चार लोग तुझ पर ऊँगली उठाये ये भी तो गलत है न कबीर.
मैं- चार लोग, चालीस बाते, चार सौ अफवाहे पर हमें क्या फरक पड़ता है. ये दुनिया ऐसी ही है .
“बड़ा समझदार हो गया तू तो कबीर ” मामी ने मेरे सर पर हाथ फेरा
“भाभी ने अपना अहंकार कर लिया ,पर वो भूल गयी की ईंट-पत्थरों की इमारतों को घर वहां रहने वाले लोग बनाते है रखे वो अपनी हवेली को , मैं अपना आशियाँ कही और बना लूँगा ” मैंने कहा
ताई- ऐसा सोच भी मत, जो कुछ भी है सब तेरा ही है कबीर. मैंने तुझसे वादा तो किया की कुछ ही दिनों में हवेली की मरम्मत हो जाएगी.
मैं- ईमारत की मरम्मत तो हो जाये, पर मन में जो चोट लगी है उसकी दवा कहाँ मिलेगी
ताई- खाना खाकर दवाई ले ले . मन को भी आराम आएगा और तुझे भी .
मेरा मन नही लग रहा था . मैं वहां से निकल कर खेतो की तरफ चल दिया. अक्सर आदमी अपनी तन्हाई में शराब का सहारा लेता है मैंने भी वैसा ही किया. कलेजे को चीरते हुए जब शराब अन्दर जाती है तो वो कसक, जो जलन होती है वो बताती है की अभी जिन्दा तो है तू. और किस्मत वो चीज होती है जिसके होने का अहसास हमें तब होता है जब सब कुछ अँधेरा अँधेरा हो जाये. ऐसे ही अँधेरे में मैं अपने आप से हजार सवाल जवाब करते हुए भटक रहा था .
“रे, बहनचोद क्या है ” मेरे पैर में बहुत जोर से कुछ चुभा था . ऐसा पिछली कई बार हुआ था की मेरी चप्प्ल्लो में कुछ न कुछ पार हुआ था.
“कौन ये कांच इधर बिखरा के अपनी माँ चुदा रहा है ” गुस्से से झल्लाते हुए मैंने चप्पल से वो टुकड़ा निकाल कर फेंकने ही वाला था की मेरे हाथ रुक गये, चांदनी रात में चमकते उस टुकड़े पर मेरी नजर जो ठहरी तो मुझे समझ आया की महज कांच तो नहीं था वो . टीनो के निचे मैंने बलब जलाया तो मेरा यकीन पुख्ता हो गया. वो हीरे का टुकड़ा था ,बेतारिब बेमिसाल हीरे का टुकड़ा. आसपास मैंने गौर किया जिन्हें मैंने कांच समझा था वो हीरे के टुकड़े बिखरे पड़े थे. नशा एक झटके में गायब हो गया. दिमाग जैसे सुन्न हो गया.
“पैसा किसे ही चाहिए था ” भाभी के कहे लफ्ज़ कानो में शोर मचाने लगे थे .
“पैसा नहीं तो तुझे हीरे चाहिए थे भाभी. ” मैंने उस टुकड़े को सहलाते हुए कहा पर अगले ही पल मेरे मन में एक नया प्रशन पूछ लिया .
“हीरे भी तो पैसे ही है , तो फिर किस चीज का मोह था तुम्हे भाभी ” मैंने अपने आप से कहा और आसपास पागलो के जैसे कुछ तलाशने लगा जो मुझे मेरे सवालो का जवाब दे सके................
Thankscongrats for 100k views
आदमी जब जिद पर आ जाए तो क्या कुछ नहीं कर जाए और फिर यहां तो दुश्मनी उस से है जो कभी अपनी थीYe kya kiya kajal ne.............
Haveli par hi JCB chalwa di............mana ki kabir se khunnas he par itna bada kaand karne ki kya jarurat thi..........
Vo to inspector ne thoda mamla sambhal liya varna kabir ke hatho kayi majdur maare jate.............
Ab dekhna kabir kajal se kaise iska hisab chukayega.........
Keep rocking Bro
Bahut hi badhiya update diya hai HalfbludPrince bhai....#29
“दुनिया में कही भी चले जाना पर लौट कर आना यही पर, घर से बड़ा कुछ नहीं कोई धाम नहीं . सुख सिर्फ इसी चौखट पर है ” माँ की कही बात मेरे कानो को बेध रही थी . मेरे मन में बहुत कुछ था कहने को , मैं चीखना चाहता था . मैं चाहता था की कोई मुझे सीने से लगा ले बस. आदमी चाहे कुछ भी बन जाये , कितना भी बड़ा बन जाये पर उसके सर पर माँ-बाप का हाथ नहीं है तो उस उसे गरीब, उस से असाहय कोई नहीं. मेरी माँ अगर आज होती तो मुझे अपने आँचल की छाया में ले लेती, मेरा बाप आज जिन्दा होता तो किसी की मजाल नहीं थी मुझे यूँ बेइज्जत कर करने की. इस टूटी दिवार का एक एक एक पत्थर हमारी उन खुशियों का साक्षी था जो अब कही खो गयी थी . आदमी दुनिया से जीत सकता है पर जब लड़ाई अपने ही घर वालो से हो तो वो कुछ नहीं कर सकता .मैंने लोगो को कहते सुना था की पुरुष कभी रोते नहीं, पर कौन थे वो लोग जिनको ये नहीं मालूम की पुरुष का रुदन आत्मा से आता है पुरुष की कठोर छवि के भीतर ने कोमल मन होता है जिसमे भरे होते है तमाम अहसास जिन्हें वो छिपाए रखता है. मन का बोझ कुछ कम हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल आया.
“क्या लिखा है बाबा तूने मेरे भाग में . इतनी भी परीक्षा मत ले मेरी की मैं नास्तिक हो जाऊ . तेरे दिए हर सुख को भी भाग समझा तेरे दिए हर दुःख को भी परसाद समझा पर बाबा अब हिम्मत नहीं है . मैं खुश था यहाँ से दूर , जिस जहाँ को मैं भूल गया था तू वापिस ले आया तो है मुझे फिर से पर बाबा हारे हुए को और मत हरा . मैं जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की चाहत तो बहुत है पर मांगने की हिम्मत नहीं है ” मैंने बाबा की चोखट पर सर रखा और आँखे मूँद ली .
“ कबीर उठ जरा ” मामी ने मुझे झिंझोड़ा.
“हाँ क्या हुआ मामी ” मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा .
“रात हो गयी है कब तक सोया रहेगा ” मामी ने कहा
मैंने आँखे मलते हुए इधर उधर देखा . बल्ब टिमटिमाने लगे थे .
“आ मेरे साथ ” बोली वो
मैं- कहाँ
मामी- आ तो सही .
मैंने थोडा सा पानी चेहरे पर मारा कुछ घूँट पिए और मामी के साथ चल दिया.थोड़ी देर बाद हम लोग ताईजी के घर पर थे, मंजू भी वही पर थी . झट से वो मेरे सीने से लग गयी.
“कबीर, मेरी वजह से हुआ ये सब , मेरी फूटी किस्मत का असर तुझ पर भी पड़ने लगा है ” सुबकते हुए बोली वो .
मैं- नहीं रे पगली, ऐसी कोई बात नहीं है . सुख दुःख तो जीवन में आयेंगे जायेंगे पर हम नहीं बदलेंगे ,सुख में जब तेरे साथ जिया तो दुःख में तू अकेली कैसे रहेगी. ये दुनिया चाहे जो भी कहे, जो भी समझे, तेरे मेरे नाते को या तो हम दोनों जाने या अपने महादेव जाने
मंजू- मेरी वजह से अगर चार लोग तुझ पर ऊँगली उठाये ये भी तो गलत है न कबीर.
मैं- चार लोग, चालीस बाते, चार सौ अफवाहे पर हमें क्या फरक पड़ता है. ये दुनिया ऐसी ही है .
“बड़ा समझदार हो गया तू तो कबीर ” मामी ने मेरे सर पर हाथ फेरा
“भाभी ने अपना अहंकार कर लिया ,पर वो भूल गयी की ईंट-पत्थरों की इमारतों को घर वहां रहने वाले लोग बनाते है रखे वो अपनी हवेली को , मैं अपना आशियाँ कही और बना लूँगा ” मैंने कहा
ताई- ऐसा सोच भी मत, जो कुछ भी है सब तेरा ही है कबीर. मैंने तुझसे वादा तो किया की कुछ ही दिनों में हवेली की मरम्मत हो जाएगी.
मैं- ईमारत की मरम्मत तो हो जाये, पर मन में जो चोट लगी है उसकी दवा कहाँ मिलेगी
ताई- खाना खाकर दवाई ले ले . मन को भी आराम आएगा और तुझे भी .
मेरा मन नही लग रहा था . मैं वहां से निकल कर खेतो की तरफ चल दिया. अक्सर आदमी अपनी तन्हाई में शराब का सहारा लेता है मैंने भी वैसा ही किया. कलेजे को चीरते हुए जब शराब अन्दर जाती है तो वो कसक, जो जलन होती है वो बताती है की अभी जिन्दा तो है तू. और किस्मत वो चीज होती है जिसके होने का अहसास हमें तब होता है जब सब कुछ अँधेरा अँधेरा हो जाये. ऐसे ही अँधेरे में मैं अपने आप से हजार सवाल जवाब करते हुए भटक रहा था .
“रे, बहनचोद क्या है ” मेरे पैर में बहुत जोर से कुछ चुभा था . ऐसा पिछली कई बार हुआ था की मेरी चप्प्ल्लो में कुछ न कुछ पार हुआ था.
“कौन ये कांच इधर बिखरा के अपनी माँ चुदा रहा है ” गुस्से से झल्लाते हुए मैंने चप्पल से वो टुकड़ा निकाल कर फेंकने ही वाला था की मेरे हाथ रुक गये, चांदनी रात में चमकते उस टुकड़े पर मेरी नजर जो ठहरी तो मुझे समझ आया की महज कांच तो नहीं था वो . टीनो के निचे मैंने बलब जलाया तो मेरा यकीन पुख्ता हो गया. वो हीरे का टुकड़ा था ,बेतारिब बेमिसाल हीरे का टुकड़ा. आसपास मैंने गौर किया जिन्हें मैंने कांच समझा था वो हीरे के टुकड़े बिखरे पड़े थे. नशा एक झटके में गायब हो गया. दिमाग जैसे सुन्न हो गया.
“पैसा किसे ही चाहिए था ” भाभी के कहे लफ्ज़ कानो में शोर मचाने लगे थे .
“पैसा नहीं तो तुझे हीरे चाहिए थे भाभी. ” मैंने उस टुकड़े को सहलाते हुए कहा पर अगले ही पल मेरे मन में एक नया प्रशन पूछ लिया .
“हीरे भी तो पैसे ही है , तो फिर किस चीज का मोह था तुम्हे भाभी ” मैंने अपने आप से कहा और आसपास पागलो के जैसे कुछ तलाशने लगा जो मुझे मेरे सवालो का जवाब दे सके................
हाज़िर हैं साहब !Welcome to story bhai
#29
“दुनिया में कही भी चले जाना पर लौट कर आना यही पर, घर से बड़ा कुछ नहीं कोई धाम नहीं . सुख सिर्फ इसी चौखट पर है ” माँ की कही बात मेरे कानो को बेध रही थी . मेरे मन में बहुत कुछ था कहने को , मैं चीखना चाहता था . मैं चाहता था की कोई मुझे सीने से लगा ले बस. आदमी चाहे कुछ भी बन जाये , कितना भी बड़ा बन जाये पर उसके सर पर माँ-बाप का हाथ नहीं है तो उस उसे गरीब, उस से असाहय कोई नहीं. मेरी माँ अगर आज होती तो मुझे अपने आँचल की छाया में ले लेती, मेरा बाप आज जिन्दा होता तो किसी की मजाल नहीं थी मुझे यूँ बेइज्जत कर करने की. इस टूटी दिवार का एक एक एक पत्थर हमारी उन खुशियों का साक्षी था जो अब कही खो गयी थी . आदमी दुनिया से जीत सकता है पर जब लड़ाई अपने ही घर वालो से हो तो वो कुछ नहीं कर सकता .मैंने लोगो को कहते सुना था की पुरुष कभी रोते नहीं, पर कौन थे वो लोग जिनको ये नहीं मालूम की पुरुष का रुदन आत्मा से आता है पुरुष की कठोर छवि के भीतर ने कोमल मन होता है जिसमे भरे होते है तमाम अहसास जिन्हें वो छिपाए रखता है. मन का बोझ कुछ कम हुआ तो मैं गाँव से बाहर निकल आया.
“क्या लिखा है बाबा तूने मेरे भाग में . इतनी भी परीक्षा मत ले मेरी की मैं नास्तिक हो जाऊ . तेरे दिए हर सुख को भी भाग समझा तेरे दिए हर दुःख को भी परसाद समझा पर बाबा अब हिम्मत नहीं है . मैं खुश था यहाँ से दूर , जिस जहाँ को मैं भूल गया था तू वापिस ले आया तो है मुझे फिर से पर बाबा हारे हुए को और मत हरा . मैं जिन्दगी के उस दौर से गुजर रहा हूँ की चाहत तो बहुत है पर मांगने की हिम्मत नहीं है ” मैंने बाबा की चोखट पर सर रखा और आँखे मूँद ली .
“ कबीर उठ जरा ” मामी ने मुझे झिंझोड़ा.
“हाँ क्या हुआ मामी ” मैंने गहरी साँस लेते हुए कहा .
“रात हो गयी है कब तक सोया रहेगा ” मामी ने कहा
मैंने आँखे मलते हुए इधर उधर देखा . बल्ब टिमटिमाने लगे थे .
“आ मेरे साथ ” बोली वो
मैं- कहाँ
मामी- आ तो सही .
मैंने थोडा सा पानी चेहरे पर मारा कुछ घूँट पिए और मामी के साथ चल दिया.थोड़ी देर बाद हम लोग ताईजी के घर पर थे, मंजू भी वही पर थी . झट से वो मेरे सीने से लग गयी.
“कबीर, मेरी वजह से हुआ ये सब , मेरी फूटी किस्मत का असर तुझ पर भी पड़ने लगा है ” सुबकते हुए बोली वो .
मैं- नहीं रे पगली, ऐसी कोई बात नहीं है . सुख दुःख तो जीवन में आयेंगे जायेंगे पर हम नहीं बदलेंगे ,सुख में जब तेरे साथ जिया तो दुःख में तू अकेली कैसे रहेगी. ये दुनिया चाहे जो भी कहे, जो भी समझे, तेरे मेरे नाते को या तो हम दोनों जाने या अपने महादेव जाने
मंजू- मेरी वजह से अगर चार लोग तुझ पर ऊँगली उठाये ये भी तो गलत है न कबीर.
मैं- चार लोग, चालीस बाते, चार सौ अफवाहे पर हमें क्या फरक पड़ता है. ये दुनिया ऐसी ही है .
“बड़ा समझदार हो गया तू तो कबीर ” मामी ने मेरे सर पर हाथ फेरा
“भाभी ने अपना अहंकार कर लिया ,पर वो भूल गयी की ईंट-पत्थरों की इमारतों को घर वहां रहने वाले लोग बनाते है रखे वो अपनी हवेली को , मैं अपना आशियाँ कही और बना लूँगा ” मैंने कहा
ताई- ऐसा सोच भी मत, जो कुछ भी है सब तेरा ही है कबीर. मैंने तुझसे वादा तो किया की कुछ ही दिनों में हवेली की मरम्मत हो जाएगी.
मैं- ईमारत की मरम्मत तो हो जाये, पर मन में जो चोट लगी है उसकी दवा कहाँ मिलेगी
ताई- खाना खाकर दवाई ले ले . मन को भी आराम आएगा और तुझे भी .
मेरा मन नही लग रहा था . मैं वहां से निकल कर खेतो की तरफ चल दिया. अक्सर आदमी अपनी तन्हाई में शराब का सहारा लेता है मैंने भी वैसा ही किया. कलेजे को चीरते हुए जब शराब अन्दर जाती है तो वो कसक, जो जलन होती है वो बताती है की अभी जिन्दा तो है तू. और किस्मत वो चीज होती है जिसके होने का अहसास हमें तब होता है जब सब कुछ अँधेरा अँधेरा हो जाये. ऐसे ही अँधेरे में मैं अपने आप से हजार सवाल जवाब करते हुए भटक रहा था .
“रे, बहनचोद क्या है ” मेरे पैर में बहुत जोर से कुछ चुभा था . ऐसा पिछली कई बार हुआ था की मेरी चप्प्ल्लो में कुछ न कुछ पार हुआ था.
“कौन ये कांच इधर बिखरा के अपनी माँ चुदा रहा है ” गुस्से से झल्लाते हुए मैंने चप्पल से वो टुकड़ा निकाल कर फेंकने ही वाला था की मेरे हाथ रुक गये, चांदनी रात में चमकते उस टुकड़े पर मेरी नजर जो ठहरी तो मुझे समझ आया की महज कांच तो नहीं था वो . टीनो के निचे मैंने बलब जलाया तो मेरा यकीन पुख्ता हो गया. वो हीरे का टुकड़ा था ,बेतारिब बेमिसाल हीरे का टुकड़ा. आसपास मैंने गौर किया जिन्हें मैंने कांच समझा था वो हीरे के टुकड़े बिखरे पड़े थे. नशा एक झटके में गायब हो गया. दिमाग जैसे सुन्न हो गया.
“पैसा किसे ही चाहिए था ” भाभी के कहे लफ्ज़ कानो में शोर मचाने लगे थे .
“पैसा नहीं तो तुझे हीरे चाहिए थे भाभी. ” मैंने उस टुकड़े को सहलाते हुए कहा पर अगले ही पल मेरे मन में एक नया प्रशन पूछ लिया .
“हीरे भी तो पैसे ही है , तो फिर किस चीज का मोह था तुम्हे भाभी ” मैंने अपने आप से कहा और आसपास पागलो के जैसे कुछ तलाशने लगा जो मुझे मेरे सवालो का जवाब दे सके................