JTN
New Member
- 50
- 68
- 33
Mast update bhai, dekhte hain ab kon kon milne aega.
Bahut hi shaandar update diya hai HalfbludPrince bhai....#14
वहां पर ताई जी मोजूद थी , मैं उन्हें वहां पर देख कर चौंक गया वो मुझे देख कर चौंक गयी.
“ऐसे क्या देख रही हो तुम्हारा कबीर ही हु मैं ” मैंने ताई को गले से लगाते हुए कहा.
ताई- कबीर,बहुत इंतज़ार करवाया बहुत देर की लौटने में
मैं- लौट आया हूँ अब तुम बताओ कैसी हो और इस वक्त क्या कर रही हो यहाँ
ताई- दिन काट रही हूँ अपने , गाँव के एक आदमी ने बताया की किसी ने खेतो पर ट्रेक्टर चला दिया है तो देखने आ गयी, बारिश शुरू हुई तो रुक गयी इधर ही .
मैं- मैं ही था वो. खेतो की इतनी दुर्दशा देखि नहीं गयी
ताई- सब वक्त का फेर है वक्त रूठा जमीनों से तो फिर कुछ बचा नहीं
मैं- परिवार में क्या कोई ऐसा नहीं जो खेत देख सके
ताई- परिवार बचा ही कहाँ , कुनबे का सुख बरसो पहले ख़तम हो गया.
मैं- ताऊ के बारे में मालूम हुआ मुझे
ताई- फिर भी तू नहीं आया , तू भी बदल गया कबीर गया दुनिया के जैसे
मैं- पुजारी बाबा ने बताया मुझे ताऊ के बारे में. मैं सीधा तुम्हारे पास ही आना चाहता था पर फिर उलझ गया ऊपर से निशा भी आ गयी
ताई- हाँ तो उसको तेरे साथ आना ही था न
मैं- तुझे भी लगता है की मैंने उसके साथ ब्याह कर लिया है
ताई- लगता क्या है, शादी तो कर ही न तुमने
मैं- हाँ ताई.
अब उस से क्या कहता की एक हम ही थे जो साथ न होकर भी साथ थे ज़माने के लिए. बारिश रुकने का आसार तो नहीं था और इधर रुक भी नहीं सकते थे .
मैं- चलते है
ताई- गाँव तक पैदल जायेंगे तो पक्का बीमार ही होना है
मैं- आ तो सही
जल्दी ही हम जीप तक आ गए. ताई जीप को देख कर चौंक गयी.
“ये तो देवर जी की गाडी है , ” बोली वो
मैं- हाँ उनकी ही है.
जल्दी ही हम लोग ताई के घर तक आ पहुचे थे.
“अन्दर आजा ” ताई बोली
मैंने भरपूर नजर ताई के गदराये जिस्म पर डाली बयालीस -पैंतालिस उम्र की ताई अपने ज़माने की बहुत ही गदराई औरत थी ये बात मुझसे बेहतर कौन जानता था . ये मौसम की नजाकत और मादकता से भरी भीगी देह ताई की , पर मुझे और काम था तो मैंने मना कर दिया.
“कल सुबह आऊंगा अभी जरुरी काम है मुझे. ” मैने ताई को घर छोड़ा और गाडी मंजू के घर की तरफ मोड़ दी.
“कहाँ थे तुम अब तक ” निशा ने सवालिया निगाहों से देखा मुझे
नीली साडी में क्या खूब ही लग रही थी वो .दिल ठहर सा गया.
“कितनी बार कहा है ऐसे न देखा करो ” बोली वो
मैं- तुम्हारे सिवा और कुछ है ही नहीं देखने को
मैंने जल्दी से कपडे बदले और चाय का कप लेकर सीढियों पर ही बैठ गया. वो पीठ से पीठ लगा कर बैठ गयी.
मैं- कल तुम्हे चलना है मेरे साथ
निशा- कहाँ
मैं- बस यही कही . बहुत दिन हुए तुम्हारा हाथ पकड़ कर चला नहीं मैं
निशा- ठीक है
मैं- कैसा रहा प्रोग्राम
निशा- तुम्हे पूछने की जरुरत नहीं, चाची को मालूम हो गया है की तुम लौट आये हो
मैं- फिर भी आई नहीं वो
निशा—बात करने से बात बनती है कबीर, तुम अगर कदम आगे बढ़ा दोगे तो छोटे नहीं हो जाओगे.
मैं- बात वो नहीं है सरकार, चाचा की दिक्कत है
निशा- बात करने से मसले अक्सर सुलझ जाते ही है
अब मैं उसे क्या बताता की मसला किस कदर उलझा हुआ है. दिल तो दुखता था की अपने ही घर की शादी में अजनबियों जैसे महसूस हो रहा था पर क्या करे चाचा अपनी जगह सही था मैं उसका कोई दोष नहीं मानता था और मेरे पास कोई जवाब भी नहीं था .हम तीनो ने खाना खाया और फिर मंजू बिस्तर लेकर दुसरे कमरे में चली गयी हालाँकि निशा ऐसा नहीं चाहती थी.
“ऐसे क्या देख रहे हो ” बोली वो
मैं- अभी थोड़ी देर पहले तो बताया न की सिर्फ तुम्हे ही देखता हूँ
निशा- कैसी किस्मत है न हमारी
मैं- फर्क नहीं पड़ता , मेरी किस्मत तू है
निशा- मैं वादा नहीं निभा पाई न
मैं- तूने ही तो कहा था न की इश्क में शर्ते नहीं होती अपने हिस्से का सुख हमें जरुर मिलेगा.
निशा- उम्मीद तो है .
मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया , उसके माथे को चूमा और बोला- ख़ुशी बहुत है तेरी तरक्की देख कर
निशा- क्या फायदा जब उसमे तू नहीं है
मैं- अपने दिल से पूछ कर देख
निशा- मैंने dsp को कहा था , फिर तू रुका क्यों नहीं
मैं- वो सही जगह नहीं थी , छोटी के ब्याह का कार्ड देखा वहां तो रोक न सका खुद को फिर.
निशा- तेरे साथ रह कर मैं भी तेरेजैसी हो गयी हूँ,
मैं- सो तो है , अब सो जा
निशा- थोड़ी देर और बात कर ले
थोड़ी थोडी देर के चक्कर में रात लगभग बीत ही गयी थी जब मेरी आँख लगी.
“कबीर, तेरी पसंद के परांठे बनाये है जल्दी आ ठन्डे हो जायेगे ” माँ की आवाज मेरे मन में गूँज रही थी, सपने में मैं माँ के साथ था की तभी नींद टूट गयी.
“बहुत गलत समय पर जगाया मंजू तूने ” मैंने झल्लाते हुए कहा
मंजू- उठ जा घडी देख जरा
मैंने देखा नौ बज रहे थे .
“निशा कहा है ” मैंने कहा
मंजू- शिवाले पर , कह कर गयी है की जैसे ही तू उठे तुरंत वहां पहुँच जाये
जल्दी से मैं तैयार हुआ, वो गाड़ी छोड़ कर गयी थी मैं तुरंत शिवाले पहुंचा, जल चढ़ाया बाबा संग चाय पी और फिर निशा को अपने साथ बिठा लिया
“बता तो सही किधर जा रहे है ” बोली वो.
मैं- बस यही तक
जल्दी ही गाड़ी गाँव को पार कर गयी थी, कच्चे सेर के रस्ते पर जैसे ही गाड़ी मुड़ी, निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया. “नहीं कबीर ” उसने मुझसे कहा .
“मैं हु न ” मैंने कहा
निशा- इसी बात का तो डर है मुझे
मैं- चुपचाप बैठी रह फिर
निशा ने नजर खिड़की की तरफ कर ली और मेरी बाजु पकड़ ली. करीब दस मिनट बाद मैंने गाड़ी उस जगह रोक दी जो कभी निशा का घर होता था .
“उतर ” मैंने कहा
निशा – मुझसे नहीं होगा
मैं- आ तो सही मेरी सरकार.
कांपते कदमो से निशा उतरी, भीगी पलकों से उसने घर को देखा . आगे बढ़ कर मैंने दरवाजा खोला निशा के भाई ने जैसे ही उसे देखा दौड़ कर लिपट गया वो अपनी बहन से . जोर से रोने लगा वो. मैंने नजरे दूसरी तरफ कर ली.................
#12
“ज्यादा जल्दी है तो ऊपर से ले जा ना ” मैंने कहा और आगे बढ़ गया. नशे में मालूम ही नही था की मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ, गाडी ने दुबारा से हॉर्न दिया.
“बहुँत दिनों बाद यादे आई थी तुमको भी बर्दाश्त नहीं है तो जाओ यार ” कहते हुए मैं पलटा ही था की दो बाते एक साथ हो गयी. एक बरसात और दूजा सनम का दीदार. गाड़ी में वो शक्श था जो कभी अपना हुआ करता था . धीमे से गाड़ी से बाहर आई वो . भीगा मौसम , भीगी धड़कन , और भीगी ये मुलाकात . कभी सोचा नहीं था की हालातो के आगे इतना मजबूर हो जायेगे, मेरा जहाँ मेरे सामने खड़ा था और हिम्मत नहीं हो रही थी उसे सीने से लगाने की.
“कबीर ” बहुत मुश्किल से बोल पायी वो . हाथ से बोतल छुट कर गिर गयी.
“मेरी सरकार ” बस इतना ही कह सका मैं क्योंकि अगले ही छाती से आ लगी थी वो . डूबती रात मे बरसते मेह में अपनी जान को आगोश में लिए बहुत देर तक रोता रहा मैं न बोली कुछ वो ना मैंने कुछ कहा. बस दिल था जो दिल से बात कर गया.
“तू मेरा कबीर नहीं है, तू वो कबीर नहीं है जिसकी बनी थी मैं ” अचानक से उसने मुझे धक्का दे दिया.
मैं- पहले जैसा तो अब कुछ भी नहीं रहा न सरकार.
निशा- तू बोल रहा है या ये नशा बोल रहा है , अरे अपनी नहीं तो अपनों का सोचा होता ,वो कबीर जो सबके लिए था वो कबीर जो सबका था वो नशे में कैसे डूब गया . किस बात का गम है तुझे जो शराब को साथी बना लिया.
“वो पूछ ले हमसे की किस बात का गम है , तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ ले हमसे ” मैंने कहा.
निशा- गम, दुनिया के मेले में झमेले बहुत, तू एक अकेला तो नहीं नजर उठा कर तो देख जग में अकेले बहुत है.
मैं- सही कहाँ तुमने मेरी जान, मैं अकेला था नहीं अकेला हो गया हूँ
निशा- मेरे इश्क में शर्ते तो नहीं थी , सुख की कामना तेरे साथ की थी तो वनवास तू अकेला भोगेगा कैसे सोच लिया. कितने बरस बीत गए. कोई हिचकी नहीं आई जो अहसास करा सके की कोई है जिसके साथ जीने का सपना देखा था मैंने , खुदगर्जी की बात करता है. अकेले तूने ही विष नहीं पिया कबीर .
बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी .
“मुझे याद नहीं आई तेरी, मुझे. मेरी प्रतीक्षा इतनी की सदिया तेरा इंतज़ार कर सकू, मेरी व्याकुलता इतनी की एक पल तेरे बिना न जी सकू ” मैंने कहा .
“”
“चल मेरे साथ अभी दिमाग ख़राब है कुछ कर बैठूंगी , दिल तो करता है की बहुत मारू तुझे ” उसने बस इतना कहा और फिर गाड़ी सीधा मंजू के घर जाकर रुकी.
“आँखे तरस गयी थी तुम्हे साथ देखने को . ” मंजू ने हमें देखते हुए कहा .
निशा- भूख लगी है बहुत, थकी हुई हु. इसे बाद में देखूंगी.
निशा ने अपना बैग लिया और अन्दर चली गयी. .
मंजू- क्या कहा तूने उसे
मैं- कुछ नहीं.
हम तीनो ने खाना खाया .
मंजू- मैं दुसरे कमरे में हु तुम यही रहो.
निशा- जरुरत नहीं है. मैं बस सोना चाहती हु. अगर जागी तो कोई शिकार हो जायेगा मेरे गुस्से का.
मंजू मुस्कुरा दी. वैसे भी रात थोड़ी ही बची थी . सुबह जागा तो निशा मुझे ही देख रही थी.
“नशा उतर गया ” थोड़ी तेज आवाज में बोली वो.
मैं कुछ नहीं बोला.
निशा- बोलता क्यों नहीं
मैं- कुछ भी नहीं मेरे पास कहने को तेरा दीदार हुआ अब कोई और चाहत नहीं
निशा- फ़िल्मी बाते मत कर कुत्ते, ऐसी मार मारूंगी की सारा जूनून मूत बन के बह जायेगा
मैं- एक बार सीने से लगा ले सरकार, बहुत थका हूँ दो घडी तेरी गोद में सर रखने दे मुझे . मेरे हिस्से का थोडा सकून तो दे मुझे , ये नाराजगी सारी कागजी मेरी . इस चाँद से चेहरे को देखने दे मुझे
फिर उसने कुछ नहीं कहा मुझे , वो आँखे थी जो कह गयी निशा मेरी पीठ से अपनी पीठ जोड़ कर बैठ गयी.
“शहर में काण्ड नहीं करना था तुझे जोर बहुत लग गया तेरे फैलाये रायते को समेटने में ” बोली वो
मैं- छोटी सी बात थी हाँ और ना की बस बात बढ़ गयी.
निशा- इस दुनिया के कुछ नियम -कायदे है
मैं- तू जाने ये सब . कायदे देखता तो उस लड़की का नाश हो जाता ,इन खोखले कायदों को न कबीर ने माना है ना मानेगा
निशा- तेरी जिद कबीर, सब कुछ बर्बाद करके भी तू ये बात कहता है . इसी स्वाभाव इसी जिद के कारण देख तू क्या हो गया
मैं- जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती
निशा- उस आग का धुआं अपनी मोहब्बत का ही तो उठता कबीर.बद्दुआ लेकर अगर घर बसा भी लेती तो सुख नहीं मिलता .
मैं- अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर . वैसे ज़माने में खबर तो ये ही है की निशा ने भाग कर कबीर संग शादी कर ली
निशा- मालूम है ,पर फिर दिल इस ख्याल से बहला लिया की चलो ख्यालो में ही सही हम साथ तो है पर तू गायब क्यों था इतने दिन . कोशिश क्यों नहीं की तूने
मैंने निशा को तमाम बात बताई की उस रात क्या हुआ था .
निशा- आखिर क्या वजह हो सकती है
मैं- पता चल जायेगा वो जो भी है उसे ये मालूम हो ही गया होगा की मैं वापिस आ गया हूँ तो उम्मीद है की वो फिर कोशिश करेगा.
निशा- मुझे चाचा के घर जाना है, आज संगीत का प्रोग्राम है
मैं- मत जा , तुझे जी भर कर देखने दे
निशा- जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए
मैंने निशा के माथे को चूमा की तभी मंजू आ गयी फिर वो दोनों चाचा के घर चली गयी . मैं हवेली चला गया एक बार फिर से पिताजी की यादो को तलाशने .................
#13
गहनता से जांच करते हुए मुझे बहुत सी ऐसी चीजे मिली जो बताती थी की एक शांत आदमी के मन में समुन्दर हो सकता है. एक समय के बाद पिताजी से मेरा रिश्ता वैसा तो हरगिज नहीं था जैसा आमतौर पर होता है और उसका कारण थी चाची , जब से मुझे उन दोनों के अवैध संबंधो का मालूम हुआ था मैंने अलग दिशा में सोचना शुरू कर दिया था . घर की आर्थिक स्तिथि ठीक थी दो तनख्वाह आती थी , चाचा व्यापारी था अन्न खेतो से आ जाता था .घी-दूध घर का था ही. पुराने बक्से में मुझे गहने मिले जो शायद माँ के हो . एक हार था शुद्ध सोने का , कुछ चूडिया और चांदी के कड़े तथा पायजेब. मन के संगम वाली बात मेरे दिमाग में गूँज रही थी आखिर क्या था ऐसा जिसको लेकर पिताजी परेशान थे, रूपये पैसे की कोई समस्या होनी नहीं चाहिए थी मेरे हिसाब से तो फिर क्या बात थी . एक बार फिर से मैंने उन चित्रों को समझने का प्रयास किया . डायरी के वो पन्ने रह रह कर जंगल की तरफ इशारा कर रहे थे . गाँव का जंगल बहुत बड़ा था मैंने विचार किया की कोशिश करने में क्या ही हर्ज है . मैं बस एक कड़ी चाहता जो मुझे रास्ता दिखा सके.
आसमान में घटाए छाने लगी थी , करने को कुछ खास था नहीं तो मैं एक बार फिर से खेतो पर पहुँच गया. अपनी जमीन की ऐसी दुर्गति देख कर मेरा मन रोता था , क्या घर में ऐसा कोई नहीं बचा था जो खेतो को संभाल सके,अपनी माँ को तो खो दिया था इस माँ की देखभाल तो कर ही सकता था , जिस जगह हमारे खेत थे बहुत ही शानदार जगह थी वो सावन के मौसम में तो क्या ही कहने थे , एक तरफ नहर फिर हमारे खेत और फिर जंगल इस से जायदा सुन्दरता और क्या ही हो. एक मिनट, खेत और फिर जंगल. क्या इनका आपस में कोई सम्बन्ध था , ऐसे ही कोई क्यों जमीनों को लावारिस छोड़ देगा जबकि फसलो से आमदनी बढ़िया होती थी.
टीनो के निचे खड़े ट्रेक्टर को थोड़ी मशक्कत के बाद मैंने चालु कर दिया और दौड़ा दिया जमीन पर छोटे मोटे पौधे, घास उसके निचे दबने लगे. पीछे लगी गोडी अपना कमाल दिखाने लगी. जहाँ तक बस चला मैं ट्रेक्टर चलाता रहा कुछ बड़े पेड़ थे उनके लिए कोई और योजना चाहिए थी. करीब बीस एकड़ की जमीन थी हमारी. आसमान किसी भी समय बरस सकता था पर परवाह किसे थी. शाम होते होते लगभग एक तिहाई हिस्से पर मैंने गोडी मार दी थी. घूमते घूमते मेरी नजर एक जगह रुक गयी, जानवर खेतो में ना घुस सके इसलिए बाड लगाई गयी थी पर जहाँ मैं देख रहा था बाड कटी हुई थी . ज्यादा तो नहीं पर एक इन्सान आराम से जंगल में जा सकता था . उत्सुकता वश मैं भी उधर ही चल पड़ा. जंगल का ये हिस्सा थोडा सा पथरीला था,चलते चलते मैं एक ऐसी जगह पर पहुंचा जो बहुत साफ़ थी , शांत थी. पास में एक हैण्ड पम्प था . आगे अच्छा खासा रास्ता था जीप तक जा सकती थी थोडा पानी पीकर मैं आगे बढ़ा. टप टप बूंदे गिरने लगी थी हवा पत्तो से टकरा रही थी जंगल जैसे झूम सा रहा था .
छोटे मोटे जानवर देखते हुए मैं आगे चला जा रहा था जंगल गहरा होते जा रहा था ऐसा नहीं था की मैं पहले जंगल में आया नहीं था पर इतना गहरा नहीं , हम तो जंगल में या तो लकडिया काटने जाते थे या मंजू की चूत मारने . थोडा आगे एक तालाब आया जो बारिश में फुल मस्ती में था. आसपस जानवरों के पैरो के निशाँ थे. बारिश रफ़्तार पकड़ने लगी थी . पर मैं आगे बढ़ रहा था . कुछ दूर एक बरगद का पेड़ था सोचा उसके निचे आश्रय ले लेता हु. पेड़ की तरफ दौड़ तो पड़ा था पर जा नहीं सका क्योंकि कुछ और देख लिया था . इतने घने जंगल में एक झोपडी थी , सरकंडो से बनी हुई झोपडी जिसके चारो तरफ पत्ते इस प्रकार लगाये गए थे की एक बार नजर चूक ही जाये.
“ये बढ़िया है ” मैंने भीगे हाथो से झोपडी के पल्ले को खोला. अन्दर एक लालटेन थी, रौशनी हुई तो आराम सा मिला. झोपडी में एक पलंग था जिस पर बिस्तर था .चाय बनाने का सामान था . हालत देख कर मैं अंदाजा नहीं लगा सकता था की कोई इधर आता था या नहीं , लालटेन पर धुल थी जबकि बिस्तर फर्स्ट क्लास था . खेतो में ऐसी झोपडिया बनाना सामान्य था पर जंगल के इतने घने हिस्से में समझ नही आ रहा था . खैर, पेट में गुडगुड होने लगी थी तो मैंने बाहर जाना मुनासिब समझा
उत्सुकता बड़ी कुत्ती चीज होती है , हो सकता था की बारिश थमने के बाद मैं वहां से चला जाता पर कहते है न की कभी कभी किस्मत गधो पर भी मेहरबान होती है और आज वो गधा मैं था, टट्टी करने के लिए संयोग से मैं जिन झाड़ियो में गया वहां पर कुछ ऐसा था जिसे मैं बंद आँखों से भी पहचान सकता था , मौसम की मार खाती वो जीप हमारी थी मेरे पिता की थी. जीप को छूते हुए मेरे हाथ कांप रहे थे .जीप के बोनट पर मेरा नाम लिखा था . शीशे के ऊपर चिपकाया सन्नी देओल की फोटो जो अब नाम की ही बची थी.
अवश्य ही झोपडी का हमारे परिवार से ही लेनादेना था . पर क्या ये सोचते हुए मैंने जीप का अवलोकन करना शुरू किया अजीब सी बदबू थी उसमे . अच्छी बात ये की चाबी छोड़ रखी थी, थोड़े प्रयास के बाद चालु हो गयी वो. हालत खस्ता थी पर चल रही थी अपने आप में बात थी. अगर जीप यहाँ तक आई तो सड़क भी होगी, सोचते हुए मैंने जीप को विपरीत दिशा में मोड़ दिया. और अंदाजा बिलकुल सरल था क्योंकि थोडा ही आगे रास्ता बढ़िया था, अँधेरा घिरने लगा था. थोडा आगे जाने पर मैंने पत्थरों की खान थी जो बंद पड़ी थी, पेड़ के निचे एक बड़ा सा मार्बल का टुकड़ा पड़ा था जो शान से बता रहा था की खान में क्या था . खैर वो रास्ता अपने आप में अनोखा था कोई तीन किलोमीटर के अंदाजे के बाद अचानक से ही वो रास्ता उधर आ मिला जहाँ वो चबूतरा था जिसके पास से मेरे खेतो का रास्ता शुरू होता था . यानि की एक गोल चक्कर था . कहते है दुनिया गोल है और जो भी था इसी गोलाई में था बस उसे तलाशना बाकी था.
मंजू के घर जाने से पहले मैं अपना कोट लेना चाहता था जो टीनो के निचे छोड़ दिया था और जब मैं वहां पहुंचा तो मैं अकेला नहीं था वहां पर..........................
#14
वहां पर ताई जी मोजूद थी , मैं उन्हें वहां पर देख कर चौंक गया वो मुझे देख कर चौंक गयी.
“ऐसे क्या देख रही हो तुम्हारा कबीर ही हु मैं ” मैंने ताई को गले से लगाते हुए कहा.
ताई- कबीर,बहुत इंतज़ार करवाया बहुत देर की लौटने में
मैं- लौट आया हूँ अब तुम बताओ कैसी हो और इस वक्त क्या कर रही हो यहाँ
ताई- दिन काट रही हूँ अपने , गाँव के एक आदमी ने बताया की किसी ने खेतो पर ट्रेक्टर चला दिया है तो देखने आ गयी, बारिश शुरू हुई तो रुक गयी इधर ही .
मैं- मैं ही था वो. खेतो की इतनी दुर्दशा देखि नहीं गयी
ताई- सब वक्त का फेर है वक्त रूठा जमीनों से तो फिर कुछ बचा नहीं
मैं- परिवार में क्या कोई ऐसा नहीं जो खेत देख सके
ताई- परिवार बचा ही कहाँ , कुनबे का सुख बरसो पहले ख़तम हो गया.
मैं- ताऊ के बारे में मालूम हुआ मुझे
ताई- फिर भी तू नहीं आया , तू भी बदल गया कबीर गया दुनिया के जैसे
मैं- पुजारी बाबा ने बताया मुझे ताऊ के बारे में. मैं सीधा तुम्हारे पास ही आना चाहता था पर फिर उलझ गया ऊपर से निशा भी आ गयी
ताई- हाँ तो उसको तेरे साथ आना ही था न
मैं- तुझे भी लगता है की मैंने उसके साथ ब्याह कर लिया है
ताई- लगता क्या है, शादी तो कर ही न तुमने
मैं- हाँ ताई.
अब उस से क्या कहता की एक हम ही थे जो साथ न होकर भी साथ थे ज़माने के लिए. बारिश रुकने का आसार तो नहीं था और इधर रुक भी नहीं सकते थे .
मैं- चलते है
ताई- गाँव तक पैदल जायेंगे तो पक्का बीमार ही होना है
मैं- आ तो सही
जल्दी ही हम जीप तक आ गए. ताई जीप को देख कर चौंक गयी.
“ये तो देवर जी की गाडी है , ” बोली वो
मैं- हाँ उनकी ही है.
जल्दी ही हम लोग ताई के घर तक आ पहुचे थे.
“अन्दर आजा ” ताई बोली
मैंने भरपूर नजर ताई के गदराये जिस्म पर डाली बयालीस -पैंतालिस उम्र की ताई अपने ज़माने की बहुत ही गदराई औरत थी ये बात मुझसे बेहतर कौन जानता था . ये मौसम की नजाकत और मादकता से भरी भीगी देह ताई की , पर मुझे और काम था तो मैंने मना कर दिया.
“कल सुबह आऊंगा अभी जरुरी काम है मुझे. ” मैने ताई को घर छोड़ा और गाडी मंजू के घर की तरफ मोड़ दी.
“कहाँ थे तुम अब तक ” निशा ने सवालिया निगाहों से देखा मुझे
नीली साडी में क्या खूब ही लग रही थी वो .दिल ठहर सा गया.
“कितनी बार कहा है ऐसे न देखा करो ” बोली वो
मैं- तुम्हारे सिवा और कुछ है ही नहीं देखने को
मैंने जल्दी से कपडे बदले और चाय का कप लेकर सीढियों पर ही बैठ गया. वो पीठ से पीठ लगा कर बैठ गयी.
मैं- कल तुम्हे चलना है मेरे साथ
निशा- कहाँ
मैं- बस यही कही . बहुत दिन हुए तुम्हारा हाथ पकड़ कर चला नहीं मैं
निशा- ठीक है
मैं- कैसा रहा प्रोग्राम
निशा- तुम्हे पूछने की जरुरत नहीं, चाची को मालूम हो गया है की तुम लौट आये हो
मैं- फिर भी आई नहीं वो
निशा—बात करने से बात बनती है कबीर, तुम अगर कदम आगे बढ़ा दोगे तो छोटे नहीं हो जाओगे.
मैं- बात वो नहीं है सरकार, चाचा की दिक्कत है
निशा- बात करने से मसले अक्सर सुलझ जाते ही है
अब मैं उसे क्या बताता की मसला किस कदर उलझा हुआ है. दिल तो दुखता था की अपने ही घर की शादी में अजनबियों जैसे महसूस हो रहा था पर क्या करे चाचा अपनी जगह सही था मैं उसका कोई दोष नहीं मानता था और मेरे पास कोई जवाब भी नहीं था .हम तीनो ने खाना खाया और फिर मंजू बिस्तर लेकर दुसरे कमरे में चली गयी हालाँकि निशा ऐसा नहीं चाहती थी.
“ऐसे क्या देख रहे हो ” बोली वो
मैं- अभी थोड़ी देर पहले तो बताया न की सिर्फ तुम्हे ही देखता हूँ
निशा- कैसी किस्मत है न हमारी
मैं- फर्क नहीं पड़ता , मेरी किस्मत तू है
निशा- मैं वादा नहीं निभा पाई न
मैं- तूने ही तो कहा था न की इश्क में शर्ते नहीं होती अपने हिस्से का सुख हमें जरुर मिलेगा.
निशा- उम्मीद तो है .
मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया , उसके माथे को चूमा और बोला- ख़ुशी बहुत है तेरी तरक्की देख कर
निशा- क्या फायदा जब उसमे तू नहीं है
मैं- अपने दिल से पूछ कर देख
निशा- मैंने dsp को कहा था , फिर तू रुका क्यों नहीं
मैं- वो सही जगह नहीं थी , छोटी के ब्याह का कार्ड देखा वहां तो रोक न सका खुद को फिर.
निशा- तेरे साथ रह कर मैं भी तेरेजैसी हो गयी हूँ,
मैं- सो तो है , अब सो जा
निशा- थोड़ी देर और बात कर ले
थोड़ी थोडी देर के चक्कर में रात लगभग बीत ही गयी थी जब मेरी आँख लगी.
“कबीर, तेरी पसंद के परांठे बनाये है जल्दी आ ठन्डे हो जायेगे ” माँ की आवाज मेरे मन में गूँज रही थी, सपने में मैं माँ के साथ था की तभी नींद टूट गयी.
“बहुत गलत समय पर जगाया मंजू तूने ” मैंने झल्लाते हुए कहा
मंजू- उठ जा घडी देख जरा
मैंने देखा नौ बज रहे थे .
“निशा कहा है ” मैंने कहा
मंजू- शिवाले पर , कह कर गयी है की जैसे ही तू उठे तुरंत वहां पहुँच जाये
जल्दी से मैं तैयार हुआ, वो गाड़ी छोड़ कर गयी थी मैं तुरंत शिवाले पहुंचा, जल चढ़ाया बाबा संग चाय पी और फिर निशा को अपने साथ बिठा लिया
“बता तो सही किधर जा रहे है ” बोली वो.
मैं- बस यही तक
जल्दी ही गाड़ी गाँव को पार कर गयी थी, कच्चे सेर के रस्ते पर जैसे ही गाड़ी मुड़ी, निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया. “नहीं कबीर ” उसने मुझसे कहा .
“मैं हु न ” मैंने कहा
निशा- इसी बात का तो डर है मुझे
मैं- चुपचाप बैठी रह फिर
निशा ने नजर खिड़की की तरफ कर ली और मेरी बाजु पकड़ ली. करीब दस मिनट बाद मैंने गाड़ी उस जगह रोक दी जो कभी निशा का घर होता था .
“उतर ” मैंने कहा
निशा – मुझसे नहीं होगा
मैं- आ तो सही मेरी सरकार.
कांपते कदमो से निशा उतरी, भीगी पलकों से उसने घर को देखा . आगे बढ़ कर मैंने दरवाजा खोला निशा के भाई ने जैसे ही उसे देखा दौड़ कर लिपट गया वो अपनी बहन से . जोर से रोने लगा वो. मैंने नजरे दूसरी तरफ कर ली.................
Amazing update#13
गहनता से जांच करते हुए मुझे बहुत सी ऐसी चीजे मिली जो बताती थी की एक शांत आदमी के मन में समुन्दर हो सकता है. एक समय के बाद पिताजी से मेरा रिश्ता वैसा तो हरगिज नहीं था जैसा आमतौर पर होता है और उसका कारण थी चाची , जब से मुझे उन दोनों के अवैध संबंधो का मालूम हुआ था मैंने अलग दिशा में सोचना शुरू कर दिया था . घर की आर्थिक स्तिथि ठीक थी दो तनख्वाह आती थी , चाचा व्यापारी था अन्न खेतो से आ जाता था .घी-दूध घर का था ही. पुराने बक्से में मुझे गहने मिले जो शायद माँ के हो . एक हार था शुद्ध सोने का , कुछ चूडिया और चांदी के कड़े तथा पायजेब. मन के संगम वाली बात मेरे दिमाग में गूँज रही थी आखिर क्या था ऐसा जिसको लेकर पिताजी परेशान थे, रूपये पैसे की कोई समस्या होनी नहीं चाहिए थी मेरे हिसाब से तो फिर क्या बात थी . एक बार फिर से मैंने उन चित्रों को समझने का प्रयास किया . डायरी के वो पन्ने रह रह कर जंगल की तरफ इशारा कर रहे थे . गाँव का जंगल बहुत बड़ा था मैंने विचार किया की कोशिश करने में क्या ही हर्ज है . मैं बस एक कड़ी चाहता जो मुझे रास्ता दिखा सके.
आसमान में घटाए छाने लगी थी , करने को कुछ खास था नहीं तो मैं एक बार फिर से खेतो पर पहुँच गया. अपनी जमीन की ऐसी दुर्गति देख कर मेरा मन रोता था , क्या घर में ऐसा कोई नहीं बचा था जो खेतो को संभाल सके,अपनी माँ को तो खो दिया था इस माँ की देखभाल तो कर ही सकता था , जिस जगह हमारे खेत थे बहुत ही शानदार जगह थी वो सावन के मौसम में तो क्या ही कहने थे , एक तरफ नहर फिर हमारे खेत और फिर जंगल इस से जायदा सुन्दरता और क्या ही हो. एक मिनट, खेत और फिर जंगल. क्या इनका आपस में कोई सम्बन्ध था , ऐसे ही कोई क्यों जमीनों को लावारिस छोड़ देगा जबकि फसलो से आमदनी बढ़िया होती थी.
टीनो के निचे खड़े ट्रेक्टर को थोड़ी मशक्कत के बाद मैंने चालु कर दिया और दौड़ा दिया जमीन पर छोटे मोटे पौधे, घास उसके निचे दबने लगे. पीछे लगी गोडी अपना कमाल दिखाने लगी. जहाँ तक बस चला मैं ट्रेक्टर चलाता रहा कुछ बड़े पेड़ थे उनके लिए कोई और योजना चाहिए थी. करीब बीस एकड़ की जमीन थी हमारी. आसमान किसी भी समय बरस सकता था पर परवाह किसे थी. शाम होते होते लगभग एक तिहाई हिस्से पर मैंने गोडी मार दी थी. घूमते घूमते मेरी नजर एक जगह रुक गयी, जानवर खेतो में ना घुस सके इसलिए बाड लगाई गयी थी पर जहाँ मैं देख रहा था बाड कटी हुई थी . ज्यादा तो नहीं पर एक इन्सान आराम से जंगल में जा सकता था . उत्सुकता वश मैं भी उधर ही चल पड़ा. जंगल का ये हिस्सा थोडा सा पथरीला था,चलते चलते मैं एक ऐसी जगह पर पहुंचा जो बहुत साफ़ थी , शांत थी. पास में एक हैण्ड पम्प था . आगे अच्छा खासा रास्ता था जीप तक जा सकती थी थोडा पानी पीकर मैं आगे बढ़ा. टप टप बूंदे गिरने लगी थी हवा पत्तो से टकरा रही थी जंगल जैसे झूम सा रहा था .
छोटे मोटे जानवर देखते हुए मैं आगे चला जा रहा था जंगल गहरा होते जा रहा था ऐसा नहीं था की मैं पहले जंगल में आया नहीं था पर इतना गहरा नहीं , हम तो जंगल में या तो लकडिया काटने जाते थे या मंजू की चूत मारने . थोडा आगे एक तालाब आया जो बारिश में फुल मस्ती में था. आसपस जानवरों के पैरो के निशाँ थे. बारिश रफ़्तार पकड़ने लगी थी . पर मैं आगे बढ़ रहा था . कुछ दूर एक बरगद का पेड़ था सोचा उसके निचे आश्रय ले लेता हु. पेड़ की तरफ दौड़ तो पड़ा था पर जा नहीं सका क्योंकि कुछ और देख लिया था . इतने घने जंगल में एक झोपडी थी , सरकंडो से बनी हुई झोपडी जिसके चारो तरफ पत्ते इस प्रकार लगाये गए थे की एक बार नजर चूक ही जाये.
“ये बढ़िया है ” मैंने भीगे हाथो से झोपडी के पल्ले को खोला. अन्दर एक लालटेन थी, रौशनी हुई तो आराम सा मिला. झोपडी में एक पलंग था जिस पर बिस्तर था .चाय बनाने का सामान था . हालत देख कर मैं अंदाजा नहीं लगा सकता था की कोई इधर आता था या नहीं , लालटेन पर धुल थी जबकि बिस्तर फर्स्ट क्लास था . खेतो में ऐसी झोपडिया बनाना सामान्य था पर जंगल के इतने घने हिस्से में समझ नही आ रहा था . खैर, पेट में गुडगुड होने लगी थी तो मैंने बाहर जाना मुनासिब समझा
उत्सुकता बड़ी कुत्ती चीज होती है , हो सकता था की बारिश थमने के बाद मैं वहां से चला जाता पर कहते है न की कभी कभी किस्मत गधो पर भी मेहरबान होती है और आज वो गधा मैं था, टट्टी करने के लिए संयोग से मैं जिन झाड़ियो में गया वहां पर कुछ ऐसा था जिसे मैं बंद आँखों से भी पहचान सकता था , मौसम की मार खाती वो जीप हमारी थी मेरे पिता की थी. जीप को छूते हुए मेरे हाथ कांप रहे थे .जीप के बोनट पर मेरा नाम लिखा था . शीशे के ऊपर चिपकाया सन्नी देओल की फोटो जो अब नाम की ही बची थी.
अवश्य ही झोपडी का हमारे परिवार से ही लेनादेना था . पर क्या ये सोचते हुए मैंने जीप का अवलोकन करना शुरू किया अजीब सी बदबू थी उसमे . अच्छी बात ये की चाबी छोड़ रखी थी, थोड़े प्रयास के बाद चालु हो गयी वो. हालत खस्ता थी पर चल रही थी अपने आप में बात थी. अगर जीप यहाँ तक आई तो सड़क भी होगी, सोचते हुए मैंने जीप को विपरीत दिशा में मोड़ दिया. और अंदाजा बिलकुल सरल था क्योंकि थोडा ही आगे रास्ता बढ़िया था, अँधेरा घिरने लगा था. थोडा आगे जाने पर मैंने पत्थरों की खान थी जो बंद पड़ी थी, पेड़ के निचे एक बड़ा सा मार्बल का टुकड़ा पड़ा था जो शान से बता रहा था की खान में क्या था . खैर वो रास्ता अपने आप में अनोखा था कोई तीन किलोमीटर के अंदाजे के बाद अचानक से ही वो रास्ता उधर आ मिला जहाँ वो चबूतरा था जिसके पास से मेरे खेतो का रास्ता शुरू होता था . यानि की एक गोल चक्कर था . कहते है दुनिया गोल है और जो भी था इसी गोलाई में था बस उसे तलाशना बाकी था.
मंजू के घर जाने से पहले मैं अपना कोट लेना चाहता था जो टीनो के निचे छोड़ दिया था और जब मैं वहां पहुंचा तो मैं अकेला नहीं था वहां पर..........................
Awesome update#14
वहां पर ताई जी मोजूद थी , मैं उन्हें वहां पर देख कर चौंक गया वो मुझे देख कर चौंक गयी.
“ऐसे क्या देख रही हो तुम्हारा कबीर ही हु मैं ” मैंने ताई को गले से लगाते हुए कहा.
ताई- कबीर,बहुत इंतज़ार करवाया बहुत देर की लौटने में
मैं- लौट आया हूँ अब तुम बताओ कैसी हो और इस वक्त क्या कर रही हो यहाँ
ताई- दिन काट रही हूँ अपने , गाँव के एक आदमी ने बताया की किसी ने खेतो पर ट्रेक्टर चला दिया है तो देखने आ गयी, बारिश शुरू हुई तो रुक गयी इधर ही .
मैं- मैं ही था वो. खेतो की इतनी दुर्दशा देखि नहीं गयी
ताई- सब वक्त का फेर है वक्त रूठा जमीनों से तो फिर कुछ बचा नहीं
मैं- परिवार में क्या कोई ऐसा नहीं जो खेत देख सके
ताई- परिवार बचा ही कहाँ , कुनबे का सुख बरसो पहले ख़तम हो गया.
मैं- ताऊ के बारे में मालूम हुआ मुझे
ताई- फिर भी तू नहीं आया , तू भी बदल गया कबीर गया दुनिया के जैसे
मैं- पुजारी बाबा ने बताया मुझे ताऊ के बारे में. मैं सीधा तुम्हारे पास ही आना चाहता था पर फिर उलझ गया ऊपर से निशा भी आ गयी
ताई- हाँ तो उसको तेरे साथ आना ही था न
मैं- तुझे भी लगता है की मैंने उसके साथ ब्याह कर लिया है
ताई- लगता क्या है, शादी तो कर ही न तुमने
मैं- हाँ ताई.
अब उस से क्या कहता की एक हम ही थे जो साथ न होकर भी साथ थे ज़माने के लिए. बारिश रुकने का आसार तो नहीं था और इधर रुक भी नहीं सकते थे .
मैं- चलते है
ताई- गाँव तक पैदल जायेंगे तो पक्का बीमार ही होना है
मैं- आ तो सही
जल्दी ही हम जीप तक आ गए. ताई जीप को देख कर चौंक गयी.
“ये तो देवर जी की गाडी है , ” बोली वो
मैं- हाँ उनकी ही है.
जल्दी ही हम लोग ताई के घर तक आ पहुचे थे.
“अन्दर आजा ” ताई बोली
मैंने भरपूर नजर ताई के गदराये जिस्म पर डाली बयालीस -पैंतालिस उम्र की ताई अपने ज़माने की बहुत ही गदराई औरत थी ये बात मुझसे बेहतर कौन जानता था . ये मौसम की नजाकत और मादकता से भरी भीगी देह ताई की , पर मुझे और काम था तो मैंने मना कर दिया.
“कल सुबह आऊंगा अभी जरुरी काम है मुझे. ” मैने ताई को घर छोड़ा और गाडी मंजू के घर की तरफ मोड़ दी.
“कहाँ थे तुम अब तक ” निशा ने सवालिया निगाहों से देखा मुझे
नीली साडी में क्या खूब ही लग रही थी वो .दिल ठहर सा गया.
“कितनी बार कहा है ऐसे न देखा करो ” बोली वो
मैं- तुम्हारे सिवा और कुछ है ही नहीं देखने को
मैंने जल्दी से कपडे बदले और चाय का कप लेकर सीढियों पर ही बैठ गया. वो पीठ से पीठ लगा कर बैठ गयी.
मैं- कल तुम्हे चलना है मेरे साथ
निशा- कहाँ
मैं- बस यही कही . बहुत दिन हुए तुम्हारा हाथ पकड़ कर चला नहीं मैं
निशा- ठीक है
मैं- कैसा रहा प्रोग्राम
निशा- तुम्हे पूछने की जरुरत नहीं, चाची को मालूम हो गया है की तुम लौट आये हो
मैं- फिर भी आई नहीं वो
निशा—बात करने से बात बनती है कबीर, तुम अगर कदम आगे बढ़ा दोगे तो छोटे नहीं हो जाओगे.
मैं- बात वो नहीं है सरकार, चाचा की दिक्कत है
निशा- बात करने से मसले अक्सर सुलझ जाते ही है
अब मैं उसे क्या बताता की मसला किस कदर उलझा हुआ है. दिल तो दुखता था की अपने ही घर की शादी में अजनबियों जैसे महसूस हो रहा था पर क्या करे चाचा अपनी जगह सही था मैं उसका कोई दोष नहीं मानता था और मेरे पास कोई जवाब भी नहीं था .हम तीनो ने खाना खाया और फिर मंजू बिस्तर लेकर दुसरे कमरे में चली गयी हालाँकि निशा ऐसा नहीं चाहती थी.
“ऐसे क्या देख रहे हो ” बोली वो
मैं- अभी थोड़ी देर पहले तो बताया न की सिर्फ तुम्हे ही देखता हूँ
निशा- कैसी किस्मत है न हमारी
मैं- फर्क नहीं पड़ता , मेरी किस्मत तू है
निशा- मैं वादा नहीं निभा पाई न
मैं- तूने ही तो कहा था न की इश्क में शर्ते नहीं होती अपने हिस्से का सुख हमें जरुर मिलेगा.
निशा- उम्मीद तो है .
मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया , उसके माथे को चूमा और बोला- ख़ुशी बहुत है तेरी तरक्की देख कर
निशा- क्या फायदा जब उसमे तू नहीं है
मैं- अपने दिल से पूछ कर देख
निशा- मैंने dsp को कहा था , फिर तू रुका क्यों नहीं
मैं- वो सही जगह नहीं थी , छोटी के ब्याह का कार्ड देखा वहां तो रोक न सका खुद को फिर.
निशा- तेरे साथ रह कर मैं भी तेरेजैसी हो गयी हूँ,
मैं- सो तो है , अब सो जा
निशा- थोड़ी देर और बात कर ले
थोड़ी थोडी देर के चक्कर में रात लगभग बीत ही गयी थी जब मेरी आँख लगी.
“कबीर, तेरी पसंद के परांठे बनाये है जल्दी आ ठन्डे हो जायेगे ” माँ की आवाज मेरे मन में गूँज रही थी, सपने में मैं माँ के साथ था की तभी नींद टूट गयी.
“बहुत गलत समय पर जगाया मंजू तूने ” मैंने झल्लाते हुए कहा
मंजू- उठ जा घडी देख जरा
मैंने देखा नौ बज रहे थे .
“निशा कहा है ” मैंने कहा
मंजू- शिवाले पर , कह कर गयी है की जैसे ही तू उठे तुरंत वहां पहुँच जाये
जल्दी से मैं तैयार हुआ, वो गाड़ी छोड़ कर गयी थी मैं तुरंत शिवाले पहुंचा, जल चढ़ाया बाबा संग चाय पी और फिर निशा को अपने साथ बिठा लिया
“बता तो सही किधर जा रहे है ” बोली वो.
मैं- बस यही तक
जल्दी ही गाड़ी गाँव को पार कर गयी थी, कच्चे सेर के रस्ते पर जैसे ही गाड़ी मुड़ी, निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया. “नहीं कबीर ” उसने मुझसे कहा .
“मैं हु न ” मैंने कहा
निशा- इसी बात का तो डर है मुझे
मैं- चुपचाप बैठी रह फिर
निशा ने नजर खिड़की की तरफ कर ली और मेरी बाजु पकड़ ली. करीब दस मिनट बाद मैंने गाड़ी उस जगह रोक दी जो कभी निशा का घर होता था .
“उतर ” मैंने कहा
निशा – मुझसे नहीं होगा
मैं- आ तो सही मेरी सरकार.
कांपते कदमो से निशा उतरी, भीगी पलकों से उसने घर को देखा . आगे बढ़ कर मैंने दरवाजा खोला निशा के भाई ने जैसे ही उसे देखा दौड़ कर लिपट गया वो अपनी बहन से . जोर से रोने लगा वो. मैंने नजरे दूसरी तरफ कर ली.................
Tow tayi thi waha par mujhe Laga tha koyi or Hoga#14
वहां पर ताई जी मोजूद थी , मैं उन्हें वहां पर देख कर चौंक गया वो मुझे देख कर चौंक गयी.
“ऐसे क्या देख रही हो तुम्हारा कबीर ही हु मैं ” मैंने ताई को गले से लगाते हुए कहा.
ताई- कबीर,बहुत इंतज़ार करवाया बहुत देर की लौटने में
मैं- लौट आया हूँ अब तुम बताओ कैसी हो और इस वक्त क्या कर रही हो यहाँ
ताई- दिन काट रही हूँ अपने , गाँव के एक आदमी ने बताया की किसी ने खेतो पर ट्रेक्टर चला दिया है तो देखने आ गयी, बारिश शुरू हुई तो रुक गयी इधर ही .
मैं- मैं ही था वो. खेतो की इतनी दुर्दशा देखि नहीं गयी
ताई- सब वक्त का फेर है वक्त रूठा जमीनों से तो फिर कुछ बचा नहीं
मैं- परिवार में क्या कोई ऐसा नहीं जो खेत देख सके
ताई- परिवार बचा ही कहाँ , कुनबे का सुख बरसो पहले ख़तम हो गया.
मैं- ताऊ के बारे में मालूम हुआ मुझे
ताई- फिर भी तू नहीं आया , तू भी बदल गया कबीर गया दुनिया के जैसे
मैं- पुजारी बाबा ने बताया मुझे ताऊ के बारे में. मैं सीधा तुम्हारे पास ही आना चाहता था पर फिर उलझ गया ऊपर से निशा भी आ गयी
ताई- हाँ तो उसको तेरे साथ आना ही था न
मैं- तुझे भी लगता है की मैंने उसके साथ ब्याह कर लिया है
ताई- लगता क्या है, शादी तो कर ही न तुमने
मैं- हाँ ताई.
अब उस से क्या कहता की एक हम ही थे जो साथ न होकर भी साथ थे ज़माने के लिए. बारिश रुकने का आसार तो नहीं था और इधर रुक भी नहीं सकते थे .
मैं- चलते है
ताई- गाँव तक पैदल जायेंगे तो पक्का बीमार ही होना है
मैं- आ तो सही
जल्दी ही हम जीप तक आ गए. ताई जीप को देख कर चौंक गयी.
“ये तो देवर जी की गाडी है , ” बोली वो
मैं- हाँ उनकी ही है.
जल्दी ही हम लोग ताई के घर तक आ पहुचे थे.
“अन्दर आजा ” ताई बोली
मैंने भरपूर नजर ताई के गदराये जिस्म पर डाली बयालीस -पैंतालिस उम्र की ताई अपने ज़माने की बहुत ही गदराई औरत थी ये बात मुझसे बेहतर कौन जानता था . ये मौसम की नजाकत और मादकता से भरी भीगी देह ताई की , पर मुझे और काम था तो मैंने मना कर दिया.
“कल सुबह आऊंगा अभी जरुरी काम है मुझे. ” मैने ताई को घर छोड़ा और गाडी मंजू के घर की तरफ मोड़ दी.
“कहाँ थे तुम अब तक ” निशा ने सवालिया निगाहों से देखा मुझे
नीली साडी में क्या खूब ही लग रही थी वो .दिल ठहर सा गया.
“कितनी बार कहा है ऐसे न देखा करो ” बोली वो
मैं- तुम्हारे सिवा और कुछ है ही नहीं देखने को
मैंने जल्दी से कपडे बदले और चाय का कप लेकर सीढियों पर ही बैठ गया. वो पीठ से पीठ लगा कर बैठ गयी.
मैं- कल तुम्हे चलना है मेरे साथ
निशा- कहाँ
मैं- बस यही कही . बहुत दिन हुए तुम्हारा हाथ पकड़ कर चला नहीं मैं
निशा- ठीक है
मैं- कैसा रहा प्रोग्राम
निशा- तुम्हे पूछने की जरुरत नहीं, चाची को मालूम हो गया है की तुम लौट आये हो
मैं- फिर भी आई नहीं वो
निशा—बात करने से बात बनती है कबीर, तुम अगर कदम आगे बढ़ा दोगे तो छोटे नहीं हो जाओगे.
मैं- बात वो नहीं है सरकार, चाचा की दिक्कत है
निशा- बात करने से मसले अक्सर सुलझ जाते ही है
अब मैं उसे क्या बताता की मसला किस कदर उलझा हुआ है. दिल तो दुखता था की अपने ही घर की शादी में अजनबियों जैसे महसूस हो रहा था पर क्या करे चाचा अपनी जगह सही था मैं उसका कोई दोष नहीं मानता था और मेरे पास कोई जवाब भी नहीं था .हम तीनो ने खाना खाया और फिर मंजू बिस्तर लेकर दुसरे कमरे में चली गयी हालाँकि निशा ऐसा नहीं चाहती थी.
“ऐसे क्या देख रहे हो ” बोली वो
मैं- अभी थोड़ी देर पहले तो बताया न की सिर्फ तुम्हे ही देखता हूँ
निशा- कैसी किस्मत है न हमारी
मैं- फर्क नहीं पड़ता , मेरी किस्मत तू है
निशा- मैं वादा नहीं निभा पाई न
मैं- तूने ही तो कहा था न की इश्क में शर्ते नहीं होती अपने हिस्से का सुख हमें जरुर मिलेगा.
निशा- उम्मीद तो है .
मैंने उसे अपनी बाँहों में भर लिया , उसके माथे को चूमा और बोला- ख़ुशी बहुत है तेरी तरक्की देख कर
निशा- क्या फायदा जब उसमे तू नहीं है
मैं- अपने दिल से पूछ कर देख
निशा- मैंने dsp को कहा था , फिर तू रुका क्यों नहीं
मैं- वो सही जगह नहीं थी , छोटी के ब्याह का कार्ड देखा वहां तो रोक न सका खुद को फिर.
निशा- तेरे साथ रह कर मैं भी तेरेजैसी हो गयी हूँ,
मैं- सो तो है , अब सो जा
निशा- थोड़ी देर और बात कर ले
थोड़ी थोडी देर के चक्कर में रात लगभग बीत ही गयी थी जब मेरी आँख लगी.
“कबीर, तेरी पसंद के परांठे बनाये है जल्दी आ ठन्डे हो जायेगे ” माँ की आवाज मेरे मन में गूँज रही थी, सपने में मैं माँ के साथ था की तभी नींद टूट गयी.
“बहुत गलत समय पर जगाया मंजू तूने ” मैंने झल्लाते हुए कहा
मंजू- उठ जा घडी देख जरा
मैंने देखा नौ बज रहे थे .
“निशा कहा है ” मैंने कहा
मंजू- शिवाले पर , कह कर गयी है की जैसे ही तू उठे तुरंत वहां पहुँच जाये
जल्दी से मैं तैयार हुआ, वो गाड़ी छोड़ कर गयी थी मैं तुरंत शिवाले पहुंचा, जल चढ़ाया बाबा संग चाय पी और फिर निशा को अपने साथ बिठा लिया
“बता तो सही किधर जा रहे है ” बोली वो.
मैं- बस यही तक
जल्दी ही गाड़ी गाँव को पार कर गयी थी, कच्चे सेर के रस्ते पर जैसे ही गाड़ी मुड़ी, निशा ने मेरा हाथ पकड़ लिया. “नहीं कबीर ” उसने मुझसे कहा .
“मैं हु न ” मैंने कहा
निशा- इसी बात का तो डर है मुझे
मैं- चुपचाप बैठी रह फिर
निशा ने नजर खिड़की की तरफ कर ली और मेरी बाजु पकड़ ली. करीब दस मिनट बाद मैंने गाड़ी उस जगह रोक दी जो कभी निशा का घर होता था .
“उतर ” मैंने कहा
निशा – मुझसे नहीं होगा
मैं- आ तो सही मेरी सरकार.
कांपते कदमो से निशा उतरी, भीगी पलकों से उसने घर को देखा . आगे बढ़ कर मैंने दरवाजा खोला निशा के भाई ने जैसे ही उसे देखा दौड़ कर लिपट गया वो अपनी बहन से . जोर से रोने लगा वो. मैंने नजरे दूसरी तरफ कर ली.................
Bahut hi shaandar update diya hai HalfbludPrince bhai....
Nice and lovely update....
Romanchak update
Thanksबहुत ही शानदार अपडेट भाई निशा तो आखिर निशा है और मंजु आये हाये
Thanksbehatreen update