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Adultery तेरे प्यार में .....

Naik

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#१०

धीरे से मंजू ने अपना मुह खोला और मेरी जीभ उसकी जीभ से उलझने लगी. उसके होंठो का रस आज भी ऐसा ही था जैसा पहले चुम्बन पर महसूस किया था. जल्दी ही वो मेरी गोदी में बैठी चुम्बन में खोई हुई थी . उसके होंठो , उसके गालो को बार बार चूमा मैंने. धीरे से हाथ उसकी चुचियो पर सरकाया और भींचा उन्हें.

“कबीर, खाना बना लेने दे मुझे ” बोली वो

मैं- मैं कहाँ तुझे रोक रहा हु

मंजू- मानेगा नहीं न तू

मैंने मंजू के पैरो को फैलाया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. हाथ ने जैसे ही उसकी गर्म चूत को छुआ मंजू के बदन में सरसराहट बढ़ने लगी.

“तेरी चूत बहुत गर्म है मंजू ” मैंने उसके कान को दांतों से काटते हुए कहा .

मंजू- पसंदीदा मर्द के लिए हर औरत की चूत गर्म ही रहती है. तू पहले चोद ले खाना उसके बाद ही बनाउंगी चल बेड पर चल.

मंजू गोदी से उठी और तुरंत ही नंगी हो गयी. उसने निर्वस्त्र देखने का भी अपना ही सुख था. बेड पर आते ही मंजू ने पैरो को चौड़ा कर लिया. काले झांटो से भरी उसकी चूत एक बार फिर से मुझे निमंत्र्ण दे रही थी की आ और समां जा मुझमे.

“बनियान तो उतार ले ” बोली वो

मैं-रहने दे .

मैंने अपने सर को चूत पर झुकाया और चूत के दाने को अपने मुह में भर लिया.

“कमीने , उफ्फ्फ तेरी ये अदा ” मंजू ने अपनी गांड को ऊपर उठाया और सर पर अपने दोनों हाथ टिका लिए. चूत के नमकीन रस को पीते हुए मैं मंजू के बदन की उत्तेजना को चरम पर ले जा रहा था . कभी कभी मैं अपने दांत उसकी जांघो पर गडा देता तो वो सिसक उठती. चूत से आती कामुम सुंगंध मेरे लंड की ऐंठन बढ़ा रही थी तो मैंने भी देर करना मुनासिब नहीं समझा और लंड को चूत पर रगड़ने लगा.

“तडपाने की आदत गयी नहीं तेरी अभी तक. ” मंजू ने मस्ती से भरे स्वर में कहा ठीक तभी मैंने लंड अन्दर को ठेल दिया और जल्दी ही उसकी जांघो पर मेरी जांघे चढ़ चुकी थी. अपनी गांड को ऊपर निचे करते हुए मंजू मेरे बालो में हाथ फेर रही थी मेरे कंधो को चूम रही थी.

“होंठ तो चूस ले जालिम ” शोखी से बोली वो

मुस्कुराते हुए मैंने उसका कहा माना और हमारी चुदाई शुरू हो गयी. कुछ देर बाद वो मेरे ऊपर आ गयी और उछलने लगी. उसकी झांटो के बाल मेरे बदन पर चुभ रहे थे पर उस चुभन का भी अपना ही मजा था . उत्तेजनापूर्ण हरकते करते हुए मंजू ने अपने दोनों हाथ मेरी बनियान में घुसा दिए.मेरी छाती पर हाथ फेर रही थी वो की अचानक उसने मेरी बनियान को फाड़ दिया और उसकी आँखे फैलती चली गयी.

“ये क्या है कबीर ” ज़ख्मो के निशान को देखती हुई बोली वो.

“ये घाव , कैसे है ये घाव. एक मिनट, तो , तो ये है वो वजह जिसकी वजह से तू दूर हुआ. किसने किया ये कबीर ” मंजू मेरे लंड से उतर कर बाजु में बैठ गयी. उसकी सवालिया नजरे मेरे मन में उतर रही थी ..

“बोलता क्यों नहीं ” थोडा गुस्से से बोली वो.

मैं- बस इसी सवाल का जवाब नहीं मालूम मुझे, अगर ये पता चल जाये तो बहुत सी मुश्किल आसान हो जाये.

मंजू- कुछ तो हुआ होगा न

मैं- कुछ हुआ ही तो नहीं था अगर कुछ होता तो बात ही क्या होती.थानेदार भर्ती की दौड़ पास करके वापिस लौट रहा ही था की अचानक से एक शोर सुनाई दिया, और फिर दर्द मेरी हड्डियों में समाता चला गया . होश आया तो मैं हॉस्पिटल में पड़ा था . बहुत समय लग गया पैरो पर खड़ा होने में

मंजू- खबर क्यों नहीं की तूने किसी को

मैं- खबर की थी मैंने , ख़त लिखा था पर उसके जवाब से फिर मन ही नहीं हुआ लौटने का . गाँव में तीन जश्न मनाये गए थे

मंजू- एक मिनट इसका मतलब तुझ पर हमला करने वाले परिवार में से ही कोई है

मैं- जो बह गया वो परिवार का खून था

मंजू- कौन कर सकता है तुझसे इतनी नफरत

मैं- मूझसे नफरत तो सब करते है मंजू, मेरा भाई, चाचा ताऊ कोई एक हो तो बताये

मंजू- तेरा चाचा तो है ही साला गांडू आदमी . आधे गाँव की गांड में बम्बू किया हुआ है उसने.

मैं- कुछ भी नहीं बचा यहाँ पर, लौटने का जरा भी मन नहीं था बहन की शादी की खबर हुई तो रोक नहीं सका खुद को और फिर तू मिल गयी. बस यही है कहानी.

मंजू- वैसे तेरा चाचा क्यों खुन्नस रखता है तुझसे.

मैं- जिसकी लुगाई मुझसे चुद रही वो खुन्नस ही तो रखेगा न

मंजू के चेहरे पर शरारती हंसी आ गयी.

“वैसे सही ही तोड़ी तेरी गांड किसीने, बहनचोद किस किस पर चढ़ गया तू. ” चूत को खुजाते हुए बोली वो.

मैं- चूत के लिए कोई किसी को नहीं मारता पर फिलहाल तेरी चूत जरुर मरेगी . ले मुह में ले ले इसे.

मैंने मंजू का सर लंड पर झुका दिया. उसने मुह खोला और सुपाडे को मुह में भर लिया.

“तेरे होंठ जब जब लंड पर लगते है कसम से वक्त रुक सा जाता है ” मैंने उसके बालो को सहलाते हुए कहा.

मंजू- बचपन में सेक्सी फिल्म देख कर इसे चुसना ही सीखा है जिन्दगी में

उसने कहा और दुबारा से चूसने लगी. कुछ देर बाद मैंने उसे बेड की साइड में झुकाया और चोदने लगा. एक सुखद चुदाई के बाद अब किसे भूख थी मंजू को बाँहों में लिए मैंने आँखे मूँद ली, मंजू की बातो ने एक बार मेरे मन में ये विचार ला दिया था की हमला आखिर किया किसने था. सुबह एक बार फिर से मैं हवेली में मोजूद था पिताजी के कमरे में .


“सबसे बड़ा धन तुम्हारा मन है बेटे मन का संगम तुम्हे वहां ले जायेगा जहाँ तुम उसे पाओगे जो होकर भी नहीं है पाया तो सब पाया छोड़ा तो जग छोड़ा ” पिताजी के अंतिम शब्द मेरे कानो में गूँज रहे थे.
Manju ke Saath mast pyar Bharat pal gujara
Ab poori pariwar hi nafrat karta h tow koyi bhi ho Sakta h hamla Karne Wala
Dekhte h aage kabhi pata chalega kia ki kisne kaia tha
 

Naik

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#11

मेरे पिता कहने को तो वन दरोगा थे पर उनकी रूचिया हमेशा से किताबो में ही रही .मैंने हमेशा उनके हाथो में किताबे देखी थी, ड्यूटी पर भी घर पर भी. धर्म कर्म में भी वो हमेशा आगे ही रहते हमारे घर से कभी कोई भूखा नहीं लौटा. पर जैसा की अक्सर होता है सिक्के के दो पहलु होते है और सिक्के का दूसरा पहलु थी मेरी चाची या मौसी जो भी कहे..ये सब कभी शुरू ही नहीं होता अगर उस शाम मैंने पशुओ के चारे वाले कमरे में वो मंजर नहीं देखा होता जहाँ चाची मेरे पिता को बाँहों में थी. जीजा-साली का रिश्ता जैसा भी था मैंने जो देखा वो थोडा बढ़ कर ही था.असल जिदंगी में पहली बार चुदाई देखी थी वो भी घर में ही. साइकिल के स्टैंड को पकडे झुकी चाची और पीछे मेरे पिता. ये वो घटना थी जिसने मेरे कानो को गर्म कर दिया था मुझे लड़के से आदमी बनने को प्रेरित कर दिया था.

बाहर से आई आवाज ने मुझे यादो के झरोखे से वर्तमान में ला पटका. दरवाजा खुला था तो कुत्ता घुस आया था . पिताजी की बड़ी सी तस्वीर को देखते हुए मैं बहुत कुछ सोच रहा था . सब कुछ तो था हमारे पास एक जिन्दगी जीने के लिए फिर कैसे ये सब बिखर गया. पहले चाचा का अलग होना फिर ताऊ का रह गए थे हम लोग . वक्त का फेर ना जाने कैसे बैठा की फिर ये घर, घर ना रहा .करने को कुछ ख़ास नहीं था बस ऐसे ही पुराने सामान में हाथ मार रहा था . पिताजी की अलमारी में ढेरो किताबे थी बेशक धुल जमी हुई थी पर सलीके से बहुत थी. मैंने एक कपडा लिया और धुल साफ करने लगा तभी नजर एक किताब पर पड़ी. सैकड़ो किताबो में ये किताब अलग सी थी, क्योंकि सिर्फ ये ही एक किताब थी जिसे उल्टा लगाया गया था बाकी सब कतार में थी.

पता नहीं क्यों मैंने उस किताब को बाहर निकाल लिया ,किस्मत साली बहुत कुत्ती चीज होती है गुनाहों का देवता नाम उस किताब का पहले पन्ने पर ही गुलाब की सूखी हुई पंखुड़िया अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही थी. किताब को बस यूँ ही पलटना शुरू किया बीच में कुछ पन्ने गायब थे और उनकी जगह हाथ से लिखी गयी कुछ बाते थी.

“कोई और होता तो नहीं मानता पर मैं तो नकार कैसे दू, किस्से कहानियो में बहुत सुना था पर हकीकत में सामने देख कर कहने को कुछ बचा नहीं है ,चाहे तो सात पीढियों को उबार दे चाहे तो सबका नाश कर दे. इसका प्रारंभ न जाने क्या है पर अंत दुःख दाई हो सकता है, मुझे छुपाकर ही रखना होगा सामने आये तो परेशानी होगी. ” इतना लिखने के बाद निचे एक छोटा सा चित्र बनाया गया था .

मैंने अगला पन्ना पलटा –“छोड़ने का मोह नहीं त्याग पा रहा हूं बार बार मेरे कदम तुम्हारे पास आते है . ये जानते हुए भी की तुम्हारा मेरा साथ नहीं है , न जाने किसकी अमानत है मन का चोर कहता है की तुझे मिला तेरा हुआ. दिमाग का साहूकार कहता है ये पतन का कारण बन जायेगा. समझ नहीं आ रहा की किस और चलू ” फिर से एक छोटा चित्र बना था .

लिखाई तो पिताजी की थी पर ये पन्ने इस किताब के बीच क्यों रखे गए थे कुछ तो छिपाया गया था जो समझ नहीं आ रहा था बहुत देर तक माथापच्ची करने के बाद बी कुछ समझ नहीं आया तो मैं बाहर की तरफ आ गया. पुजारी बाबा के पास जा ही रहा था की बाजे की आवाज सुनाई दी. चाचा के नए घर से आ रही थी विवाह की रस्मे शुरू हो गयी थी , दिल में ख़ुशी होना लाज़मी था अपने घर के आयोजन में भला कौन खुश नहीं होगा .पर अगले ही पल मन बुझ सा गया.



सामने से मैंने गाडी में चाचा को आते देखा, देखा तो उसने भी मुझे क्योंकि नजरे मिलते ही उसने अपने चश्मे को उतार लिया था एक पल को गाडी धीरे हुई मुझे लगा की शायद वो बात करेगा पर फिर वो आगे बढ़ गया. शाम तक मैं शिवाले में बाबा के पास रहा बहुत सी बाते की . रात घिरने लगी थी ना मैं मंजू के घर जाना चाहता था ना मैं हवेली जाना चाहता था . तलब मुझे शराब की थी तो गाँव के बाहर की तरफ बने ठेके पर पहुँच गया. बोतल खरीदी और वही मुह से लगा ली. उफ़, कलेजा जब तक जलन महसूस ना करे तब तक साला लगता ही नहीं की पी है .

“हट न भोसड़ी के , उधर जाके मर ले रस्ते में ही पीनी जरुरी है क्या ” किसी ने मुझे धक्का देकर परे धकेला.

“तेरे बाप का ठेका है क्या ” मैंने पलटते हुए कहा .पर जब हमारी नजरे मिली तो मिल कर ही रह गयी , फिर न वो कुछ बोल पाया ना मैं कुछ कह सका.

“कबीर, भैया ” बस इतना ही बोल सका वो और सीधा मेरे सीने से लग गया.

“यकीन नहीं होता आप ऐसे मिल जायेंगे , सोर्री भैया वो गलती से गाली निकल गयी ” मुझे आगोश में भरते हुए बोला वो.

मैं- कैसा है तू, ठीक तो है न

“मैं ठीक हूँ भैया, दीदी कैसी है , क्या आपके साथ आई है वो. ” बोला वो

मैं-मुझे क्या मालूम ये तो तुझे पता होना चाहिए न

“ये आप क्या कह रहे है , दीदी तो आपके साथ है न . आपके साथ ही तो गयी थी वो .” उसने कहा.

मैं- तुझसे किस ने कहा ये

“आप मजाक कर रहे है न सबको मालूम है की आप दोनों ने शादी कर ली है . बताओ न दीदी आई है क्या बहुत साल हो गए उनको देखे .मैं पिताजी से नहीं कहूँगा, किसी से नहीं कहूँगा बस एक बार दीदी से मिलवा दो ” निशा का भाई बहुत भावुक हो गया. मैं उसे कैसे बताता की वो मेरे साथ नहीं थी शादी करने का ही तो रोला था .


“वो जल्दी ही आने वाली है , मैं आ गया हूँ वो भी आ जाएगी. ” मैंने उसका दिल रखने को कह तो दिया था पर क्या जानता था की कभी कभी मुह से निकली बात यूँ ही सच हो जाती है. आधी रात तक वो मेरे पास रहा बहुत बाते करता रहा. निशा से मिलने को बहुत आतुर था वो होता भी क्यों नहीं रक्षा बंधन भी जो आ रहा था और बहने तो अनमोल होती है भाइयो के लिए. नशे में धुत्त अपने विचारो में खोये हुए मैं ये ही सोच रहा था की ज़माने में ये खबर फैली हुई थी की हम दोनों ने भाग कर ब्याह रचा लिया था. ब्याह तो करना था उस से , न जाने कब मैं इश्क के उन दिनों में खो गया सब सब बहुत अच्छा अच्छा था . उसके खयालो में इतना खो गया था की पीछे से आती हॉर्न की आवाज तक को महसूस नहीं किया मैंने.
Wah Bhai pita ji tow saali me Lage huwe the sahi h ab saali h tow it a haq tow banta hi tha
Tow Nisha ke Bhai or uske pariwar wale yeh samjh rehe h ki dono ne bhaag kar Karli
Chachi ki tow aisa muh fer chale gaye jaise samne koyi tha ho nahi
Baherhal ab yeh gaadi Wala Kon h Jo horn Baja Raha h
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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#12



“ज्यादा जल्दी है तो ऊपर से ले जा ना ” मैंने कहा और आगे बढ़ गया. नशे में मालूम ही नही था की मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ, गाडी ने दुबारा से हॉर्न दिया.

“बहुँत दिनों बाद यादे आई थी तुमको भी बर्दाश्त नहीं है तो जाओ यार ” कहते हुए मैं पलटा ही था की दो बाते एक साथ हो गयी. एक बरसात और दूजा सनम का दीदार. गाड़ी में वो शक्श था जो कभी अपना हुआ करता था . धीमे से गाड़ी से बाहर आई वो . भीगा मौसम , भीगी धड़कन , और भीगी ये मुलाकात . कभी सोचा नहीं था की हालातो के आगे इतना मजबूर हो जायेगे, मेरा जहाँ मेरे सामने खड़ा था और हिम्मत नहीं हो रही थी उसे सीने से लगाने की.

“कबीर ” बहुत मुश्किल से बोल पायी वो . हाथ से बोतल छुट कर गिर गयी.

“मेरी सरकार ” बस इतना ही कह सका मैं क्योंकि अगले ही छाती से आ लगी थी वो . डूबती रात मे बरसते मेह में अपनी जान को आगोश में लिए बहुत देर तक रोता रहा मैं न बोली कुछ वो ना मैंने कुछ कहा. बस दिल था जो दिल से बात कर गया.

“तू मेरा कबीर नहीं है, तू वो कबीर नहीं है जिसकी बनी थी मैं ” अचानक से उसने मुझे धक्का दे दिया.

मैं- पहले जैसा तो अब कुछ भी नहीं रहा न सरकार.

निशा- तू बोल रहा है या ये नशा बोल रहा है , अरे अपनी नहीं तो अपनों का सोचा होता ,वो कबीर जो सबके लिए था वो कबीर जो सबका था वो नशे में कैसे डूब गया . किस बात का गम है तुझे जो शराब को साथी बना लिया.

“वो पूछ ले हमसे की किस बात का गम है , तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ ले हमसे ” मैंने कहा.

निशा- गम, दुनिया के मेले में झमेले बहुत, तू एक अकेला तो नहीं नजर उठा कर तो देख जग में अकेले बहुत है.

मैं- सही कहाँ तुमने मेरी जान, मैं अकेला था नहीं अकेला हो गया हूँ

निशा- मेरे इश्क में शर्ते तो नहीं थी , सुख की कामना तेरे साथ की थी तो वनवास तू अकेला भोगेगा कैसे सोच लिया. कितने बरस बीत गए. कोई हिचकी नहीं आई जो अहसास करा सके की कोई है जिसके साथ जीने का सपना देखा था मैंने , खुदगर्जी की बात करता है. अकेले तूने ही विष नहीं पिया कबीर .

बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी .

“मुझे याद नहीं आई तेरी, मुझे. मेरी प्रतीक्षा इतनी की सदिया तेरा इंतज़ार कर सकू, मेरी व्याकुलता इतनी की एक पल तेरे बिना न जी सकू ” मैंने कहा .

“”



“चल मेरे साथ अभी दिमाग ख़राब है कुछ कर बैठूंगी , दिल तो करता है की बहुत मारू तुझे ” उसने बस इतना कहा और फिर गाड़ी सीधा मंजू के घर जाकर रुकी.

“आँखे तरस गयी थी तुम्हे साथ देखने को . ” मंजू ने हमें देखते हुए कहा .

निशा- भूख लगी है बहुत, थकी हुई हु. इसे बाद में देखूंगी.

निशा ने अपना बैग लिया और अन्दर चली गयी. .

मंजू- क्या कहा तूने उसे

मैं- कुछ नहीं.

हम तीनो ने खाना खाया .

मंजू- मैं दुसरे कमरे में हु तुम यही रहो.

निशा- जरुरत नहीं है. मैं बस सोना चाहती हु. अगर जागी तो कोई शिकार हो जायेगा मेरे गुस्से का.

मंजू मुस्कुरा दी. वैसे भी रात थोड़ी ही बची थी . सुबह जागा तो निशा मुझे ही देख रही थी.

“नशा उतर गया ” थोड़ी तेज आवाज में बोली वो.

मैं कुछ नहीं बोला.

निशा- बोलता क्यों नहीं

मैं- कुछ भी नहीं मेरे पास कहने को तेरा दीदार हुआ अब कोई और चाहत नहीं

निशा- फ़िल्मी बाते मत कर कुत्ते, ऐसी मार मारूंगी की सारा जूनून मूत बन के बह जायेगा

मैं- एक बार सीने से लगा ले सरकार, बहुत थका हूँ दो घडी तेरी गोद में सर रखने दे मुझे . मेरे हिस्से का थोडा सकून तो दे मुझे , ये नाराजगी सारी कागजी मेरी . इस चाँद से चेहरे को देखने दे मुझे

फिर उसने कुछ नहीं कहा मुझे , वो आँखे थी जो कह गयी निशा मेरी पीठ से अपनी पीठ जोड़ कर बैठ गयी.

“शहर में काण्ड नहीं करना था तुझे जोर बहुत लग गया तेरे फैलाये रायते को समेटने में ” बोली वो

मैं- छोटी सी बात थी हाँ और ना की बस बात बढ़ गयी.

निशा- इस दुनिया के कुछ नियम -कायदे है

मैं- तू जाने ये सब . कायदे देखता तो उस लड़की का नाश हो जाता ,इन खोखले कायदों को न कबीर ने माना है ना मानेगा

निशा- तेरी जिद कबीर, सब कुछ बर्बाद करके भी तू ये बात कहता है . इसी स्वाभाव इसी जिद के कारण देख तू क्या हो गया

मैं- जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती

निशा- उस आग का धुआं अपनी मोहब्बत का ही तो उठता कबीर.बद्दुआ लेकर अगर घर बसा भी लेती तो सुख नहीं मिलता .

मैं- अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर . वैसे ज़माने में खबर तो ये ही है की निशा ने भाग कर कबीर संग शादी कर ली

निशा- मालूम है ,पर फिर दिल इस ख्याल से बहला लिया की चलो ख्यालो में ही सही हम साथ तो है पर तू गायब क्यों था इतने दिन . कोशिश क्यों नहीं की तूने

मैंने निशा को तमाम बात बताई की उस रात क्या हुआ था .

निशा- आखिर क्या वजह हो सकती है

मैं- पता चल जायेगा वो जो भी है उसे ये मालूम हो ही गया होगा की मैं वापिस आ गया हूँ तो उम्मीद है की वो फिर कोशिश करेगा.

निशा- मुझे चाचा के घर जाना है, आज संगीत का प्रोग्राम है

मैं- मत जा , तुझे जी भर कर देखने दे

निशा- जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए

मैंने निशा के माथे को चूमा की तभी मंजू आ गयी फिर वो दोनों चाचा के घर चली गयी . मैं हवेली चला गया एक बार फिर से पिताजी की यादो को तलाशने .................
 

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“ज्यादा जल्दी है तो ऊपर से ले जा ना ” मैंने कहा और आगे बढ़ गया. नशे में मालूम ही नही था की मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ, गाडी ने दुबारा से हॉर्न दिया.

“बहुँत दिनों बाद यादे आई थी तुमको भी बर्दाश्त नहीं है तो जाओ यार ” कहते हुए मैं पलटा ही था की दो बाते एक साथ हो गयी. एक बरसात और दूजा सनम का दीदार. गाड़ी में वो शक्श था जो कभी अपना हुआ करता था . धीमे से गाड़ी से बाहर आई वो . भीगा मौसम , भीगी धड़कन , और भीगी ये मुलाकात . कभी सोचा नहीं था की हालातो के आगे इतना मजबूर हो जायेगे, मेरा जहाँ मेरे सामने खड़ा था और हिम्मत नहीं हो रही थी उसे सीने से लगाने की.

“कबीर ” बहुत मुश्किल से बोल पायी वो . हाथ से बोतल छुट कर गिर गयी.

“मेरी सरकार ” बस इतना ही कह सका मैं क्योंकि अगले ही छाती से आ लगी थी वो . डूबती रात मे बरसते मेह में अपनी जान को आगोश में लिए बहुत देर तक रोता रहा मैं न बोली कुछ वो ना मैंने कुछ कहा. बस दिल था जो दिल से बात कर गया.

“तू मेरा कबीर नहीं है, तू वो कबीर नहीं है जिसकी बनी थी मैं ” अचानक से उसने मुझे धक्का दे दिया.

मैं- पहले जैसा तो अब कुछ भी नहीं रहा न सरकार.

निशा- तू बोल रहा है या ये नशा बोल रहा है , अरे अपनी नहीं तो अपनों का सोचा होता ,वो कबीर जो सबके लिए था वो कबीर जो सबका था वो नशे में कैसे डूब गया . किस बात का गम है तुझे जो शराब को साथी बना लिया.

“वो पूछ ले हमसे की किस बात का गम है , तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ ले हमसे ” मैंने कहा.

निशा- गम, दुनिया के मेले में झमेले बहुत, तू एक अकेला तो नहीं नजर उठा कर तो देख जग में अकेले बहुत है.

मैं- सही कहाँ तुमने मेरी जान, मैं अकेला था नहीं अकेला हो गया हूँ

निशा- मेरे इश्क में शर्ते तो नहीं थी , सुख की कामना तेरे साथ की थी तो वनवास तू अकेला भोगेगा कैसे सोच लिया. कितने बरस बीत गए. कोई हिचकी नहीं आई जो अहसास करा सके की कोई है जिसके साथ जीने का सपना देखा था मैंने , खुदगर्जी की बात करता है. अकेले तूने ही विष नहीं पिया कबीर .

बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी .

“मुझे याद नहीं आई तेरी, मुझे. मेरी प्रतीक्षा इतनी की सदिया तेरा इंतज़ार कर सकू, मेरी व्याकुलता इतनी की एक पल तेरे बिना न जी सकू ” मैंने कहा .

“”



“चल मेरे साथ अभी दिमाग ख़राब है कुछ कर बैठूंगी , दिल तो करता है की बहुत मारू तुझे ” उसने बस इतना कहा और फिर गाड़ी सीधा मंजू के घर जाकर रुकी.

“आँखे तरस गयी थी तुम्हे साथ देखने को . ” मंजू ने हमें देखते हुए कहा .

निशा- भूख लगी है बहुत, थकी हुई हु. इसे बाद में देखूंगी.

निशा ने अपना बैग लिया और अन्दर चली गयी. .

मंजू- क्या कहा तूने उसे

मैं- कुछ नहीं.

हम तीनो ने खाना खाया .

मंजू- मैं दुसरे कमरे में हु तुम यही रहो.

निशा- जरुरत नहीं है. मैं बस सोना चाहती हु. अगर जागी तो कोई शिकार हो जायेगा मेरे गुस्से का.

मंजू मुस्कुरा दी. वैसे भी रात थोड़ी ही बची थी . सुबह जागा तो निशा मुझे ही देख रही थी.

“नशा उतर गया ” थोड़ी तेज आवाज में बोली वो.

मैं कुछ नहीं बोला.

निशा- बोलता क्यों नहीं

मैं- कुछ भी नहीं मेरे पास कहने को तेरा दीदार हुआ अब कोई और चाहत नहीं

निशा- फ़िल्मी बाते मत कर कुत्ते, ऐसी मार मारूंगी की सारा जूनून मूत बन के बह जायेगा

मैं- एक बार सीने से लगा ले सरकार, बहुत थका हूँ दो घडी तेरी गोद में सर रखने दे मुझे . मेरे हिस्से का थोडा सकून तो दे मुझे , ये नाराजगी सारी कागजी मेरी . इस चाँद से चेहरे को देखने दे मुझे

फिर उसने कुछ नहीं कहा मुझे , वो आँखे थी जो कह गयी निशा मेरी पीठ से अपनी पीठ जोड़ कर बैठ गयी.

“शहर में काण्ड नहीं करना था तुझे जोर बहुत लग गया तेरे फैलाये रायते को समेटने में ” बोली वो

मैं- छोटी सी बात थी हाँ और ना की बस बात बढ़ गयी.

निशा- इस दुनिया के कुछ नियम -कायदे है

मैं- तू जाने ये सब . कायदे देखता तो उस लड़की का नाश हो जाता ,इन खोखले कायदों को न कबीर ने माना है ना मानेगा

निशा- तेरी जिद कबीर, सब कुछ बर्बाद करके भी तू ये बात कहता है . इसी स्वाभाव इसी जिद के कारण देख तू क्या हो गया

मैं- जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती

निशा- उस आग का धुआं अपनी मोहब्बत का ही तो उठता कबीर.बद्दुआ लेकर अगर घर बसा भी लेती तो सुख नहीं मिलता .

मैं- अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर . वैसे ज़माने में खबर तो ये ही है की निशा ने भाग कर कबीर संग शादी कर ली

निशा- मालूम है ,पर फिर दिल इस ख्याल से बहला लिया की चलो ख्यालो में ही सही हम साथ तो है पर तू गायब क्यों था इतने दिन . कोशिश क्यों नहीं की तूने

मैंने निशा को तमाम बात बताई की उस रात क्या हुआ था .

निशा- आखिर क्या वजह हो सकती है

मैं- पता चल जायेगा वो जो भी है उसे ये मालूम हो ही गया होगा की मैं वापिस आ गया हूँ तो उम्मीद है की वो फिर कोशिश करेगा.

निशा- मुझे चाचा के घर जाना है, आज संगीत का प्रोग्राम है

मैं- मत जा , तुझे जी भर कर देखने दे

निशा- जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए

मैंने निशा के माथे को चूमा की तभी मंजू आ गयी फिर वो दोनों चाचा के घर चली गयी . मैं हवेली चला गया एक बार फिर से पिताजी की यादो को तलाशने .................
बहुत ही सुंदर लाजवाब और एक भावनात्मक आवाहन से भरा अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Himanshu630

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“ज्यादा जल्दी है तो ऊपर से ले जा ना ” मैंने कहा और आगे बढ़ गया. नशे में मालूम ही नही था की मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ, गाडी ने दुबारा से हॉर्न दिया.

“बहुँत दिनों बाद यादे आई थी तुमको भी बर्दाश्त नहीं है तो जाओ यार ” कहते हुए मैं पलटा ही था की दो बाते एक साथ हो गयी. एक बरसात और दूजा सनम का दीदार. गाड़ी में वो शक्श था जो कभी अपना हुआ करता था . धीमे से गाड़ी से बाहर आई वो . भीगा मौसम , भीगी धड़कन , और भीगी ये मुलाकात . कभी सोचा नहीं था की हालातो के आगे इतना मजबूर हो जायेगे, मेरा जहाँ मेरे सामने खड़ा था और हिम्मत नहीं हो रही थी उसे सीने से लगाने की.

“कबीर ” बहुत मुश्किल से बोल पायी वो . हाथ से बोतल छुट कर गिर गयी.

“मेरी सरकार ” बस इतना ही कह सका मैं क्योंकि अगले ही छाती से आ लगी थी वो . डूबती रात मे बरसते मेह में अपनी जान को आगोश में लिए बहुत देर तक रोता रहा मैं न बोली कुछ वो ना मैंने कुछ कहा. बस दिल था जो दिल से बात कर गया.

“तू मेरा कबीर नहीं है, तू वो कबीर नहीं है जिसकी बनी थी मैं ” अचानक से उसने मुझे धक्का दे दिया.

मैं- पहले जैसा तो अब कुछ भी नहीं रहा न सरकार.

निशा- तू बोल रहा है या ये नशा बोल रहा है , अरे अपनी नहीं तो अपनों का सोचा होता ,वो कबीर जो सबके लिए था वो कबीर जो सबका था वो नशे में कैसे डूब गया . किस बात का गम है तुझे जो शराब को साथी बना लिया.

“वो पूछ ले हमसे की किस बात का गम है , तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ ले हमसे ” मैंने कहा.

निशा- गम, दुनिया के मेले में झमेले बहुत, तू एक अकेला तो नहीं नजर उठा कर तो देख जग में अकेले बहुत है.

मैं- सही कहाँ तुमने मेरी जान, मैं अकेला था नहीं अकेला हो गया हूँ

निशा- मेरे इश्क में शर्ते तो नहीं थी , सुख की कामना तेरे साथ की थी तो वनवास तू अकेला भोगेगा कैसे सोच लिया. कितने बरस बीत गए. कोई हिचकी नहीं आई जो अहसास करा सके की कोई है जिसके साथ जीने का सपना देखा था मैंने , खुदगर्जी की बात करता है. अकेले तूने ही विष नहीं पिया कबीर .

बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी .

“मुझे याद नहीं आई तेरी, मुझे. मेरी प्रतीक्षा इतनी की सदिया तेरा इंतज़ार कर सकू, मेरी व्याकुलता इतनी की एक पल तेरे बिना न जी सकू ” मैंने कहा .

“”



“चल मेरे साथ अभी दिमाग ख़राब है कुछ कर बैठूंगी , दिल तो करता है की बहुत मारू तुझे ” उसने बस इतना कहा और फिर गाड़ी सीधा मंजू के घर जाकर रुकी.

“आँखे तरस गयी थी तुम्हे साथ देखने को . ” मंजू ने हमें देखते हुए कहा .

निशा- भूख लगी है बहुत, थकी हुई हु. इसे बाद में देखूंगी.

निशा ने अपना बैग लिया और अन्दर चली गयी. .

मंजू- क्या कहा तूने उसे

मैं- कुछ नहीं.

हम तीनो ने खाना खाया .

मंजू- मैं दुसरे कमरे में हु तुम यही रहो.

निशा- जरुरत नहीं है. मैं बस सोना चाहती हु. अगर जागी तो कोई शिकार हो जायेगा मेरे गुस्से का.

मंजू मुस्कुरा दी. वैसे भी रात थोड़ी ही बची थी . सुबह जागा तो निशा मुझे ही देख रही थी.

“नशा उतर गया ” थोड़ी तेज आवाज में बोली वो.

मैं कुछ नहीं बोला.

निशा- बोलता क्यों नहीं

मैं- कुछ भी नहीं मेरे पास कहने को तेरा दीदार हुआ अब कोई और चाहत नहीं

निशा- फ़िल्मी बाते मत कर कुत्ते, ऐसी मार मारूंगी की सारा जूनून मूत बन के बह जायेगा

मैं- एक बार सीने से लगा ले सरकार, बहुत थका हूँ दो घडी तेरी गोद में सर रखने दे मुझे . मेरे हिस्से का थोडा सकून तो दे मुझे , ये नाराजगी सारी कागजी मेरी . इस चाँद से चेहरे को देखने दे मुझे

फिर उसने कुछ नहीं कहा मुझे , वो आँखे थी जो कह गयी निशा मेरी पीठ से अपनी पीठ जोड़ कर बैठ गयी.

“शहर में काण्ड नहीं करना था तुझे जोर बहुत लग गया तेरे फैलाये रायते को समेटने में ” बोली वो

मैं- छोटी सी बात थी हाँ और ना की बस बात बढ़ गयी.

निशा- इस दुनिया के कुछ नियम -कायदे है

मैं- तू जाने ये सब . कायदे देखता तो उस लड़की का नाश हो जाता ,इन खोखले कायदों को न कबीर ने माना है ना मानेगा

निशा- तेरी जिद कबीर, सब कुछ बर्बाद करके भी तू ये बात कहता है . इसी स्वाभाव इसी जिद के कारण देख तू क्या हो गया

मैं- जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती

निशा- उस आग का धुआं अपनी मोहब्बत का ही तो उठता कबीर.बद्दुआ लेकर अगर घर बसा भी लेती तो सुख नहीं मिलता .

मैं- अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर . वैसे ज़माने में खबर तो ये ही है की निशा ने भाग कर कबीर संग शादी कर ली

निशा- मालूम है ,पर फिर दिल इस ख्याल से बहला लिया की चलो ख्यालो में ही सही हम साथ तो है पर तू गायब क्यों था इतने दिन . कोशिश क्यों नहीं की तूने

मैंने निशा को तमाम बात बताई की उस रात क्या हुआ था .

निशा- आखिर क्या वजह हो सकती है

मैं- पता चल जायेगा वो जो भी है उसे ये मालूम हो ही गया होगा की मैं वापिस आ गया हूँ तो उम्मीद है की वो फिर कोशिश करेगा.

निशा- मुझे चाचा के घर जाना है, आज संगीत का प्रोग्राम है

मैं- मत जा , तुझे जी भर कर देखने दे

निशा- जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए


मैंने निशा के माथे को चूमा की तभी मंजू आ गयी फिर वो दोनों चाचा के घर चली गयी . मैं हवेली चला गया एक बार फिर से पिताजी की यादो को तलाशने .................
मस्त अपडेट भाई

आखिर वो आ ही गई...
 

VillaNn00

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#12



“ज्यादा जल्दी है तो ऊपर से ले जा ना ” मैंने कहा और आगे बढ़ गया. नशे में मालूम ही नही था की मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ, गाडी ने दुबारा से हॉर्न दिया.

“बहुँत दिनों बाद यादे आई थी तुमको भी बर्दाश्त नहीं है तो जाओ यार ” कहते हुए मैं पलटा ही था की दो बाते एक साथ हो गयी. एक बरसात और दूजा सनम का दीदार. गाड़ी में वो शक्श था जो कभी अपना हुआ करता था . धीमे से गाड़ी से बाहर आई वो . भीगा मौसम , भीगी धड़कन , और भीगी ये मुलाकात . कभी सोचा नहीं था की हालातो के आगे इतना मजबूर हो जायेगे, मेरा जहाँ मेरे सामने खड़ा था और हिम्मत नहीं हो रही थी उसे सीने से लगाने की.

“कबीर ” बहुत मुश्किल से बोल पायी वो . हाथ से बोतल छुट कर गिर गयी.

“मेरी सरकार ” बस इतना ही कह सका मैं क्योंकि अगले ही छाती से आ लगी थी वो . डूबती रात मे बरसते मेह में अपनी जान को आगोश में लिए बहुत देर तक रोता रहा मैं न बोली कुछ वो ना मैंने कुछ कहा. बस दिल था जो दिल से बात कर गया.

“तू मेरा कबीर नहीं है, तू वो कबीर नहीं है जिसकी बनी थी मैं ” अचानक से उसने मुझे धक्का दे दिया.

मैं- पहले जैसा तो अब कुछ भी नहीं रहा न सरकार.

निशा- तू बोल रहा है या ये नशा बोल रहा है , अरे अपनी नहीं तो अपनों का सोचा होता ,वो कबीर जो सबके लिए था वो कबीर जो सबका था वो नशे में कैसे डूब गया . किस बात का गम है तुझे जो शराब को साथी बना लिया.

“वो पूछ ले हमसे की किस बात का गम है , तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ ले हमसे ” मैंने कहा.

निशा- गम, दुनिया के मेले में झमेले बहुत, तू एक अकेला तो नहीं नजर उठा कर तो देख जग में अकेले बहुत है.

मैं- सही कहाँ तुमने मेरी जान, मैं अकेला था नहीं अकेला हो गया हूँ

निशा- मेरे इश्क में शर्ते तो नहीं थी , सुख की कामना तेरे साथ की थी तो वनवास तू अकेला भोगेगा कैसे सोच लिया. कितने बरस बीत गए. कोई हिचकी नहीं आई जो अहसास करा सके की कोई है जिसके साथ जीने का सपना देखा था मैंने , खुदगर्जी की बात करता है. अकेले तूने ही विष नहीं पिया कबीर .

बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी .

“मुझे याद नहीं आई तेरी, मुझे. मेरी प्रतीक्षा इतनी की सदिया तेरा इंतज़ार कर सकू, मेरी व्याकुलता इतनी की एक पल तेरे बिना न जी सकू ” मैंने कहा .

“”



“चल मेरे साथ अभी दिमाग ख़राब है कुछ कर बैठूंगी , दिल तो करता है की बहुत मारू तुझे ” उसने बस इतना कहा और फिर गाड़ी सीधा मंजू के घर जाकर रुकी.

“आँखे तरस गयी थी तुम्हे साथ देखने को . ” मंजू ने हमें देखते हुए कहा .

निशा- भूख लगी है बहुत, थकी हुई हु. इसे बाद में देखूंगी.

निशा ने अपना बैग लिया और अन्दर चली गयी. .

मंजू- क्या कहा तूने उसे

मैं- कुछ नहीं.

हम तीनो ने खाना खाया .

मंजू- मैं दुसरे कमरे में हु तुम यही रहो.

निशा- जरुरत नहीं है. मैं बस सोना चाहती हु. अगर जागी तो कोई शिकार हो जायेगा मेरे गुस्से का.

मंजू मुस्कुरा दी. वैसे भी रात थोड़ी ही बची थी . सुबह जागा तो निशा मुझे ही देख रही थी.

“नशा उतर गया ” थोड़ी तेज आवाज में बोली वो.

मैं कुछ नहीं बोला.

निशा- बोलता क्यों नहीं

मैं- कुछ भी नहीं मेरे पास कहने को तेरा दीदार हुआ अब कोई और चाहत नहीं

निशा- फ़िल्मी बाते मत कर कुत्ते, ऐसी मार मारूंगी की सारा जूनून मूत बन के बह जायेगा

मैं- एक बार सीने से लगा ले सरकार, बहुत थका हूँ दो घडी तेरी गोद में सर रखने दे मुझे . मेरे हिस्से का थोडा सकून तो दे मुझे , ये नाराजगी सारी कागजी मेरी . इस चाँद से चेहरे को देखने दे मुझे

फिर उसने कुछ नहीं कहा मुझे , वो आँखे थी जो कह गयी निशा मेरी पीठ से अपनी पीठ जोड़ कर बैठ गयी.

“शहर में काण्ड नहीं करना था तुझे जोर बहुत लग गया तेरे फैलाये रायते को समेटने में ” बोली वो

मैं- छोटी सी बात थी हाँ और ना की बस बात बढ़ गयी.

निशा- इस दुनिया के कुछ नियम -कायदे है

मैं- तू जाने ये सब . कायदे देखता तो उस लड़की का नाश हो जाता ,इन खोखले कायदों को न कबीर ने माना है ना मानेगा

निशा- तेरी जिद कबीर, सब कुछ बर्बाद करके भी तू ये बात कहता है . इसी स्वाभाव इसी जिद के कारण देख तू क्या हो गया

मैं- जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती

निशा- उस आग का धुआं अपनी मोहब्बत का ही तो उठता कबीर.बद्दुआ लेकर अगर घर बसा भी लेती तो सुख नहीं मिलता .

मैं- अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर . वैसे ज़माने में खबर तो ये ही है की निशा ने भाग कर कबीर संग शादी कर ली

निशा- मालूम है ,पर फिर दिल इस ख्याल से बहला लिया की चलो ख्यालो में ही सही हम साथ तो है पर तू गायब क्यों था इतने दिन . कोशिश क्यों नहीं की तूने

मैंने निशा को तमाम बात बताई की उस रात क्या हुआ था .

निशा- आखिर क्या वजह हो सकती है

मैं- पता चल जायेगा वो जो भी है उसे ये मालूम हो ही गया होगा की मैं वापिस आ गया हूँ तो उम्मीद है की वो फिर कोशिश करेगा.

निशा- मुझे चाचा के घर जाना है, आज संगीत का प्रोग्राम है

मैं- मत जा , तुझे जी भर कर देखने दे

निशा- जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए

मैंने निशा के माथे को चूमा की तभी मंजू आ गयी फिर वो दोनों चाचा के घर चली गयी . मैं हवेली चला गया एक बार फिर से पिताजी की यादो को तलाशने .................
behatreen update
kabir aur nisha ke alag hone ka karan kya ho sakta hai ?
muze nahi lagta kabir par hamla hone ke karan dono alag hue hai

जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती
बहुत खूब लिखा है
 

VillaNn00

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जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए
par dono ki shadi hui nahi fir bahu kaise
kya kabir bhi apne parivaar se nafrat karta hai ya fir sirf uska parivaar hi usse karta hai
 

Kuchnahi24

त्वयि मे'नन्या विश्वरूपा
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“ज्यादा जल्दी है तो ऊपर से ले जा ना ” मैंने कहा और आगे बढ़ गया. नशे में मालूम ही नही था की मैं रोड के बीच में चल रहा हूँ, गाडी ने दुबारा से हॉर्न दिया.

“बहुँत दिनों बाद यादे आई थी तुमको भी बर्दाश्त नहीं है तो जाओ यार ” कहते हुए मैं पलटा ही था की दो बाते एक साथ हो गयी. एक बरसात और दूजा सनम का दीदार. गाड़ी में वो शक्श था जो कभी अपना हुआ करता था . धीमे से गाड़ी से बाहर आई वो . भीगा मौसम , भीगी धड़कन , और भीगी ये मुलाकात . कभी सोचा नहीं था की हालातो के आगे इतना मजबूर हो जायेगे, मेरा जहाँ मेरे सामने खड़ा था और हिम्मत नहीं हो रही थी उसे सीने से लगाने की.

“कबीर ” बहुत मुश्किल से बोल पायी वो . हाथ से बोतल छुट कर गिर गयी.

“मेरी सरकार ” बस इतना ही कह सका मैं क्योंकि अगले ही छाती से आ लगी थी वो . डूबती रात मे बरसते मेह में अपनी जान को आगोश में लिए बहुत देर तक रोता रहा मैं न बोली कुछ वो ना मैंने कुछ कहा. बस दिल था जो दिल से बात कर गया.

“तू मेरा कबीर नहीं है, तू वो कबीर नहीं है जिसकी बनी थी मैं ” अचानक से उसने मुझे धक्का दे दिया.

मैं- पहले जैसा तो अब कुछ भी नहीं रहा न सरकार.

निशा- तू बोल रहा है या ये नशा बोल रहा है , अरे अपनी नहीं तो अपनों का सोचा होता ,वो कबीर जो सबके लिए था वो कबीर जो सबका था वो नशे में कैसे डूब गया . किस बात का गम है तुझे जो शराब को साथी बना लिया.

“वो पूछ ले हमसे की किस बात का गम है , तो फिर किस बात का गम है अगर वो पूछ ले हमसे ” मैंने कहा.

निशा- गम, दुनिया के मेले में झमेले बहुत, तू एक अकेला तो नहीं नजर उठा कर तो देख जग में अकेले बहुत है.

मैं- सही कहाँ तुमने मेरी जान, मैं अकेला था नहीं अकेला हो गया हूँ

निशा- मेरे इश्क में शर्ते तो नहीं थी , सुख की कामना तेरे साथ की थी तो वनवास तू अकेला भोगेगा कैसे सोच लिया. कितने बरस बीत गए. कोई हिचकी नहीं आई जो अहसास करा सके की कोई है जिसके साथ जीने का सपना देखा था मैंने , खुदगर्जी की बात करता है. अकेले तूने ही विष नहीं पिया कबीर .

बारिश थोड़ी तेज हो गयी थी .

“मुझे याद नहीं आई तेरी, मुझे. मेरी प्रतीक्षा इतनी की सदिया तेरा इंतज़ार कर सकू, मेरी व्याकुलता इतनी की एक पल तेरे बिना न जी सकू ” मैंने कहा .

“”



“चल मेरे साथ अभी दिमाग ख़राब है कुछ कर बैठूंगी , दिल तो करता है की बहुत मारू तुझे ” उसने बस इतना कहा और फिर गाड़ी सीधा मंजू के घर जाकर रुकी.

“आँखे तरस गयी थी तुम्हे साथ देखने को . ” मंजू ने हमें देखते हुए कहा .

निशा- भूख लगी है बहुत, थकी हुई हु. इसे बाद में देखूंगी.

निशा ने अपना बैग लिया और अन्दर चली गयी. .

मंजू- क्या कहा तूने उसे

मैं- कुछ नहीं.

हम तीनो ने खाना खाया .

मंजू- मैं दुसरे कमरे में हु तुम यही रहो.

निशा- जरुरत नहीं है. मैं बस सोना चाहती हु. अगर जागी तो कोई शिकार हो जायेगा मेरे गुस्से का.

मंजू मुस्कुरा दी. वैसे भी रात थोड़ी ही बची थी . सुबह जागा तो निशा मुझे ही देख रही थी.

“नशा उतर गया ” थोड़ी तेज आवाज में बोली वो.

मैं कुछ नहीं बोला.

निशा- बोलता क्यों नहीं

मैं- कुछ भी नहीं मेरे पास कहने को तेरा दीदार हुआ अब कोई और चाहत नहीं

निशा- फ़िल्मी बाते मत कर कुत्ते, ऐसी मार मारूंगी की सारा जूनून मूत बन के बह जायेगा

मैं- एक बार सीने से लगा ले सरकार, बहुत थका हूँ दो घडी तेरी गोद में सर रखने दे मुझे . मेरे हिस्से का थोडा सकून तो दे मुझे , ये नाराजगी सारी कागजी मेरी . इस चाँद से चेहरे को देखने दे मुझे

फिर उसने कुछ नहीं कहा मुझे , वो आँखे थी जो कह गयी निशा मेरी पीठ से अपनी पीठ जोड़ कर बैठ गयी.

“शहर में काण्ड नहीं करना था तुझे जोर बहुत लग गया तेरे फैलाये रायते को समेटने में ” बोली वो

मैं- छोटी सी बात थी हाँ और ना की बस बात बढ़ गयी.

निशा- इस दुनिया के कुछ नियम -कायदे है

मैं- तू जाने ये सब . कायदे देखता तो उस लड़की का नाश हो जाता ,इन खोखले कायदों को न कबीर ने माना है ना मानेगा

निशा- तेरी जिद कबीर, सब कुछ बर्बाद करके भी तू ये बात कहता है . इसी स्वाभाव इसी जिद के कारण देख तू क्या हो गया

मैं- जिद कहाँ है सरकार, जिद होती तो तेरी मांग सुनी ना होती , तेरे हाथो में मेरी चूडिया होती . मेरा आँगन मेरी खुशबु से महक उठता , मोहब्बत थी इसलिए तुझसे दूर हु मोहब्बत की इसलिए आज मैं ऐसा हु. सीने में जो आग लगी है ज़माने में लगाने के देर नहीं लगती

निशा- उस आग का धुआं अपनी मोहब्बत का ही तो उठता कबीर.बद्दुआ लेकर अगर घर बसा भी लेती तो सुख नहीं मिलता .

मैं- अपने हिस्से का सुख मिलेगा जरुर . वैसे ज़माने में खबर तो ये ही है की निशा ने भाग कर कबीर संग शादी कर ली

निशा- मालूम है ,पर फिर दिल इस ख्याल से बहला लिया की चलो ख्यालो में ही सही हम साथ तो है पर तू गायब क्यों था इतने दिन . कोशिश क्यों नहीं की तूने

मैंने निशा को तमाम बात बताई की उस रात क्या हुआ था .

निशा- आखिर क्या वजह हो सकती है

मैं- पता चल जायेगा वो जो भी है उसे ये मालूम हो ही गया होगा की मैं वापिस आ गया हूँ तो उम्मीद है की वो फिर कोशिश करेगा.

निशा- मुझे चाचा के घर जाना है, आज संगीत का प्रोग्राम है

मैं- मत जा , तुझे जी भर कर देखने दे

निशा- जाना पड़ेगा, घर का बेटा गायब हो जायेगा तो बहु को अपने फर्ज निभाने ही पड़ेंगे न. मैं हमेशा रहूंगी परिवार के लिए


मैंने निशा के माथे को चूमा की तभी मंजू आ गयी फिर वो दोनों चाचा के घर चली गयी . मैं हवेली चला गया एक बार फिर से पिताजी की यादो को तलाशने .................
बिन फेरे हम तेरे … गुस्सा और फ़र्ज़ का एहसास कहानी की गहराई बयान कर रहा है ।

मेरी सरकार पढ़ते ही सुकून का एहसास होता हैं ।

परिवार भी साथ नहीं है ये भी एक अलग ही मामला है ।

इस कहानी के कई रंग कई पहलू नजर आ रहे है ।

लगता नहीं लाला वाला मामला सुलट गया होगा ।

आगे देखते है क्या होता है
 

Surajs13

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पता नहीं क्यों मुझे लगता है कि कबीर के पिता जी ने जंगल में पक्का कोई खजाना या अनमोल चीज देखी है, और शायद इसी वजह से कबीर के ऊपर भी हमला किया गया हो।
खैर निशा और कबीर क्यों अलग हुए ये देखने लायक रहेगा।

आशा करता ये कहानी कम से कम अपने अंजाम तक पहुंचेगी, हवेली की तरह अधूरी नहीं रहेगी।
 
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