मुन्नी जब आई तो उसे देख कर मैं और परेशान हो गया. बात यह थी कि वह बड़ी चंचल शोख सुंदर लड़की थी. जब आयी तो सलवार कुर्ती पहने थी. इस कच्ची उमर में भी उसकी तंग कुरती में से उसके कमसिन उरोज साफ़ उभर कर दिख रहे थे. सामान रखकर वह प्यार से अपनी मौसी यानि माया चाची से लिपट गई. "मौसी, कितनी सुंदर लग रही हो? बहुत खुश भी लगती हो, चलो अभी मां को लिख देती हूँ, वह बिचारी बेकार चिंता में है कि तुम खुश हो या नहीं."
चाची ने भी उसे गले लगा लिया. "कितनी बड़ी हो गई है मुन्नी, दो साल पहले बच्ची लगती थी, अब देख कैसी जवान खूबसूरत हो गयी है मेरी बेटी." मुन्नी थोड़ा शरमायी पर उससे लिपटी रही. चाची ने मेरी भी पहचान उससे करा दी. मेरी ओर वह बार बार कनखियों से देखती. पर उसका सारा ध्यान अपनी मौसी की ही ओर था.
वह सीधा अपना सामान चाची के कमरे में ले गयी. मेरा दिल बैठ गया. चाची ने भी हंसते हुए मेरी ओर मुंह करके मुझे चिढ़ाया कि ले, अब तू क्या करेगा. हुआ भी यही. पूरे दिन मेरा कुछ जुगाड न लगा. मन मार कर अपने लंड को किसी तरह दबा कर बैठा रहा. मुन्नी भी शुरू की झिझक भूल कर मुझसे सहज बातें करने लगी.
जब वह नहाने गयी थी तब मौका देख हमने जल्दी से सिक्सटी नाइन कर लिया. पर उस दस मिनिट के संभोग से मुझे कहाँ संतोष होने वाला था. चाची ने मेरी अवस्था देखी तो मौका देख कर कान में बोली. "अनुराग बेटे, निराश न हो, रात को कुछ मौका निकाल लेंगे."
रात को बिस्तर बिछाने के पहले जब मुन्नी नीचे बाथरूम गयी थी तब चाची ने मेरा लंड चूस दिया. मुझे बड़ा दिलासा मिला कि चलो नींद तो आयेगी. सोते समय चाची ने कहा कि दो खाटें मिलकर काफ़ी जगह है इसलिये सब साथ ही सो जाएंगे. मुन्नी थकी हुई थी इसलिये जल्द ही सो गयी. वह खाट पर एक तरफ़ लेटी थी. बीच में चाची थी और उनके पीछे मैं सोया हुआ था. मुन्नी बड़े प्यार से चाची के गले में बाहें डालकर सोयी थी.
पर मेरा लंड कहाँ मानने वाला था. पीछे से चाची की खुली चिकनी पीठ और साड़ी में से दिखते नितंबों के उभार से फ़िर मेरा खड़ा हो गया. आगे सरककर मैंने अपने लंड को चाची के चूतड़ों पर रगड़ना शुरू कर दिया. वे भी उत्तेजित थी पर मुन्नी के सोये बिना कुछ नहीं हो सकता था. इसलिये वे अपनी भांजी के सोने का इंतज़ार करती हुई चुपचाप पड़ी रही.
मुन्नी को सोया जान कर जब उन्हों ने मेरी ओर मुड़ने की कोशिश की तो मुन्नी की नींद खुली. वह आधी नींद में कुछ बुदबुदायी और फ़िर से उससे चिपट गयी. "मौसी, पलटो नहीं ना, ऐसे ही मेरी ओर मुंह करके सोयी रहो." जब वह फ़िर सो गयी तो मौसी ने मुझसे फ़ुसफ़ुसा कर कहा. "लल्ला, जा तेल ले आ, आज तुझे खुश कर देती हूँ नहीं तो तू बेचारा भूखा ही रह जायेगा."
मैं उठा और चुपचाप नारियल के तेल की बोतल ले आया. मेरे लेटने पर मौसी ने अपनी साड़ी चुपचाप पीछे से ऊपर की और धीमे स्वर मे मुझे बोली. "ले लल्ला, आज पीछे से ही कर ले. इसका हिसाब मैं तुझसे फ़िर कर लूँगी. पर तेल लगा ले पहले नहीं तो मुझे दुखेगा."
चाची के गोरे नितंब अब नग्न थे. जब मैं समझा कि वे मुझसे अपनी गांड मारने को कह रही हैं तो मेरी खुशी का पारावार न रहा. अंधा चाहे एक आँख और मिल जाएँ दो! मैने चुपचाप तेल उंगली पर लेकर उनके गुदा पर लगाना शुरू किया. "अंदर उंगली डाल कर ठीक से लगा बेटे. और अपने लंड पर भी लगा ले." चाची के नरम नरम गुदा के छेद में उंगली डाल कर तेल लगाते हुए मुझे वह मजा आया कि कल्पना भी नहीं की थी.
जब चाची ने हाथ पीछे करके मेरा लंड टटोल कर देखा तो वासना से सिहर गई. "हाय, तू तो आज फ़ाड देगा रे मेरी. दो बार झड़ कर भी इतना तन्नाया है! और तेल लगा, और देख धीरे धीरे डालना." असल में मेरा रोज जितना मोटा नहीं था पर चाची को उसे अपनी गांड में लेने का डर था इसलिये उन्हें वह ज्यादा बड़ा लग रहा था. मैंने भी उनकी सांत्वना की. उनके कान में धीरे से कहा. "चाची, आज तो जरा सा है, आपकी कसम, आपने शाम को चूसा नहीं होता तो मजा आता फ़िर!"
ठीक से तेल चुपडकर मैंने उनकी साड़ी से हाथ पोंछे और सुपाड़ा उनके गुदा पर जमा कर तैयार हो गया. उन्हों ने अपनी उंगलियों से अपना गुदा का छेद खींच कर चौड़ा किया और फ़ुसफ़ुसा कर बोली. "चल डाल अब."
मैंने लंड पेलना शुरू किया. इतना टाइट छेद था कि बड़े धीरे धीरे अंदर गया. मैं सांस रोक कर सूत सूत लोडा पेलता रहा. अचानक पक्क की आवाज से सुपाड़ा उनके गुदा में समा गया. उनका शरीर एकदम कठोर हो गया और न चाहते हुए भी उनके मुंह से दर्द की एक सिसकी निकल गयी.
मुन्नी की नींद खुल गयी. "क्या हुआ मौसी?" चाची ने उसे थपथपा कर सुला दिया. "कुछ नहीं छोटी, जरा कमर में दर्द हुआ. तू सो जा." मैं सांस रोककर बिना हिले डुले पड़ा रहा. चाची की कसी गांड में मेरा सुपाड़ा फंसा हुआ था और इतना मजा आ रहा था कि लगता था कि अभी झड़ जाऊंगा. पर अपने आप पर काबू करके मैं लेटा रहा.
पाँच मिनिट बाद जब मुन्नी फ़िर गहरी नींद में सो गयी तब चाची हल्के से बोली. "अब डाल पूरा अंदर लल्ला. दर्द हो रहा है पर हाय बहुत अच्छा भी लग रहा है." उनका दर्द भी अब कम हो गया था. मैंने लंड फ़िर पेलना शुरू कर दिया और दो मिनिट में जड तक उनके चूतड़ों के बीच उतार दिया. उनकी गांड मेरे लोडे को ऐसे कस के पकड़े थी जैसे किसी ने अपने हाथ से दबोच लिया हो. "अब मार लल्ला मेरी गांड . हौले हौले मारना, आवाज न हो."
मैं सरक कर पीछे से माया चाची से चिपट गया और धीरे धीरे उनकी गांड मारने लगा. बड़ा मजा आ रहा था. लगता था कि घचाघच जोर जोर से उस टाइट गांड को चोदूँ पर मुन्नी के जग जाने का खतरा था. इसलिये सधी हुई लय से हौले हौले मारता रहा. गांड का छेद टाइट तो बहुत था पर तेल लगा होने से लोडा मस्त फ़िसल रहा था. चाची भी मजा ले लेकर गांड चुदवाने लगी.
अपना एक हाथ उन्हों ने धीरे से अपनी जांघों के बीच डाल दिया और अपनी चूत को उंगली से चोदती हुई इस गुदा मैथुन का मजा लेने लगी. "झड़ना नहीं लल्ला अभी, पहले मुझे पानी छोड़ने दे." उनके कहने पर मैंने अपना एक हाथ उनके शरीर पर डाल दिया और मम्मे मसलता हुआ गांड मारता रहा.
थोड़ी ही देर में एक गहरी सांस लेकर चाची झड़ गई. चूत को रगड रगड कर पानी निकाल कर हाथ पीछे करके उन्हों ने अपनी उँगलियाँ मेरे मुंह में दे दी. चूत के रस का स्वाद आते ही मैं अपना धीरज खो बैठा और उन्हें चिपट कर उनके बालों में मुंह छुपाकर उनकी गर्दन को चूमता हुआ कस के गांड मारने लगा. खाट चरमराने लगी.
चाची कहती रही "अरे धीरे लल्ला, छोकरी जाग जायेगी." पर मैं अब तैश में था और कस के दो चार बार धक्के लगाकर झड़ गया. पहली बार मेरे लंड ने अपना वीर्य चाची की गांड की गहरायी में उगला. हम दोनों पड़े पड़े इस कामसुख का आनंद उठा रहे थे तभी मुन्नी अचानक उठ कर बैठ गयी. "क्या चल रहा है मौसी? मैं मां को बता दूँगी." उसकी आवाज में गजब की शैतानी भरी थी.
हम दोनों को मानों सांप सूंघ गया. सकपका कर साड़ी ठीक करने का प्रयत्न करते हुए माया चाची बोली. "कुछ नहीं बिटिया, अनुराग जरा मेरी कमर की मालिश कर रहा था, दुख रही थी ना. तू तो सो रही थी. जाग कैसे गयी?" मैं सांस रोके पड़ा रहा. चाची ने साड़ी से हम दोनों के जुड़े शरीर को ढक लिया था.
लड़की बदमाश थी. उठकर सीधे चाची की साड़ी खींची और खिलखिलाते हुए बोली. "यह मालिश चल रही थी!. छुपाओ नहीं मौसी, मैं तो सोई ही नहीं, बहाना कर रही थी. शाम से ही तुम दोनों के हाव भाव से मुझे पता चल गया था कि जरूर कोई बात है." मैं शरमा कर लंड चाची की गांड में से खींचने लगा तो बोली. "रहने दो अनुराग भैया, छुपाओ मत, ऐसे ही पड़े रहो. गांड मार रहे हो मौसी की तो ठीक से एक बार मारो."
उसके इस मुंहफ़ट जवाब पर चाची को हंसी आ गयी. "बड़ी शैतान है, इतनी सी है पर सब जानती है. लगता है काफ़ी खेली है यह खेल."
मुन्नी ने पास से अपनी मौसी के नितंबों के बीच गड़े मेरे लंड को बड़ी उत्सुकता से तकते हुए जवाब दिया. "नहीं मौसी, मेरे इतने भाग्य कहाँ. अम्मा तो मुझ पर कड़ी नजर रखती है. और फ़िर मैं अंटशंट लोगों के साथ कुछ नहीं करना चाहती थी. बस एक खास सहेली से थोड़ी मजा कर लेती थी. सोच रही थी कि यहाँ आकर महीना भर अपनी सुंदर मौसी के साथ कुछ मस्ती करूंगी. यहाँ तो और ही मस्त खेल चल रहे हैं."
उसकी इस बात पर खुश होकर चाची ने उसे खींच कर बाँहों में भरकर चूमते हुए कहा. "सच, मैं तुझे इतनी अच्छी लगती हूँ मुन्नी? पर अब क्या करेगी, मां से तो कुछ नहीं कहेगी ना?" मुन्नी ने जवाब दिया. "नहीं मौसी, पर एक शर्त पर, मुझे भी अपने इस खेल में शामिल करो."
"सोच ले मुन्नी, एक बार हमारे साथ आ गयी तो सब सहना पड़ेगा. बीच में मुकरने की कोशिश की तो ठीक नहीं होगा." चाची ने प्यार से धमकाया. अब तक मुन्नी भी काफ़ी गरम हो चुकी थी. अपनी अर्धनग्न मौसी के मांसल शरीर और मेरे तने आधे गांड में धँसे शिश्न को देखकर उसकी सांसें जोर से चल रही थी. चाची से मिन्नतें करती हुई बोली. "नहीं मौसी, तू जो कहेगी वह करूंगी." और वह भी पटापट चाची का मुंह चूमने लगी.
उस कमसिन कच्ची किशोरी और करीब करीब उसकी मां की उमर की सगी मौसी की यह चूमाचाटी देखकर मेरा फ़िर तन्ना गया. चूमना रोककर चाची ने मुझसे कहा. "लल्ला, लंड निकालना नहीं, पूरा अंदर डाल दो और मजा देखो, ऐसा नजारा तूने कभी देखा नहीं होगा ब्लू फ़िल्म में भी." कहकर चाची ने अपने ब्लाउ के बटन खोले और साड़ी कमर के ऊपर उठा ली.
मौसी के नंगे स्तन और उधड़ी जांघें और उनके बीच की बुर देखकर मुन्नी तैश में आ गयी. "हाय मौसी, कितनी प्यारी है तू, और तेरी चूचियाँ कितनी बड़ी हैं, चुसूँ इन्हें मौसी?" और चाची के जवाब का इंतज़ार न करके उनके उरोज दबाती हुई वह एक निप्पल मुंह में लेकर चूसने लगी.
उसके बाल चूमते हुए चाची ने भी उस छोकरी के बदन को नंगा करना शुरू किया. काफ़ी आसान काम था क्योंकी रात को सोते समय मुन्नी ने सिर्फ़ एक स्कर्ट और चोली पहन रखी थी. चोली तो चाची ने सामने से खोल दी. स्कर्ट उतारने की जरूर नहीं थी. उसे तो बस ऊपर कर लिया. मुन्नी के छोटे छोटे रसीले सेब और उसकी कमसिन दुबली पतली गोरी टाँगे अब नंगी थी. उन्हें देखकर मेरा भी लंड और जमकर खड़ा हो गया. बड़ी प्यारी कन्या थी.