आज की रात सफ़ल रही थी. मैंने पहले अपना पुरस्कार वसूल किया. मैंने मस्ती से चाची की चूत चूसी. आज उसमें गजब का रस था. उन्हों ने भी बड़े प्यार से चुसवाई. "मेरे लाडले, मेरे लल्ला, तूने तो आज निहाल कर दिया अपनी चाची को." मैंने उनकी बुर चूसते हुए कहा. "अभी तो कुछ नहीं हुआ चाची, कल जब चाचाजी तुम्हें चोदेंगे, तब कहना."
फ़िर मैं चाची पर चढ कर उन्हें चोदने लगा. चाचाजी बड़े चाव से मेरा यह कारनामा देख रहे थे; आखिर कल उन्हें भी करना था. बीच में चुदते चुदते चाची ने मेरे कान में हल्के से पूछा. "लल्ला, ये मेरी बुर कब चूसेंगे? मैं मरी जा रही हूँ अपना पानी इन्हें पिलाने को." चाची के कान में फ़ुसफ़ुसा कर मैंने जवाब दिया."आज ही शुरुआत किये देता हूँ चाची, तुम देखती जाओ, एक बार तुम्हारे माल का स्वाद लग जाए इनके मुंह में, कल से खुद ही गिड़गिड़ाएंगे तुम्हारे सामने."
झड़ने के बाद जब मैंने लंड चाची की चूत से बाहर निकाला तो उसमें मेरे वीर्य और चाची के शहद का मिश्रण लिपटा हुआ था. चाचाजी कुछ देर देखते ही रह गए.
मैंने उनके बाल प्यार से बिखेर कर कहा. "चाचाजी, ऐसा माल चाची जी की चुत में बहुत सारा है, यहाँ देखिये" कह कर मैंने चाची की बुर की ओर इशारा किया. उसमें से मेरा वीर्य और उनका रस बह रहा था. चाचाजी झट से अपनी पत्नी की टांगों के बीच घुस कर चाची की चूत से बहता मेरा वीर्य चाटने लगे.
चाची सुख से सिहर उठीं. अपने पति का सिर पकडकर अपनी जांघों में जकड लिया और मुंह बुर पर दबा लिया. "अब नहीं छोड़ूँगी प्राणनाथ, पूरा रस पिलाकर ही रहूँगी." और वे धक्के दे देकर चाचाजी का मुंह चोदने लगी. चाचाजी भी उसे चाटने में जो जुटे तो चाची की बुर में से जीभ डाल कर आखिरी कतरा तक चूस डाला.
तब तक चाची तीन चार बार झड़ा चुकी थी. वह सब रस भी उनके पतिदेव के मुंह में गया. लगता है नारी की योनि का रस पसंद आया क्योंकी चाचाजी के चेहरे पर कोई हिचक नहीं थी. आखिर में तो प्यार से वे काफ़ी देर अपनी पत्नी की चूत चाटते रहे.
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चाचाजी और मैं फ़िर मूतने के लिये छत पर चले गये. ’तू भी मूत ले रानी, फ़िर आगे का काम शुरू करते हैं." चाचाजी प्यार से बोले.
"मैं अलग से कर लूँगी. तुम हो आओ." वे मुस्कराकर बोली.
“आ जा अनुराग, तेरा शरबत तैयार है." माया चाची ने कहा
चाचाजी ने उनसे पूछा "कौन सा शरबत है जो प्यार से बिस्तर में पिलाती हो? जरा मैं भी तो देखूँ!" चाची खिलखिलाकर बोली. "जल्दी आ अनुराग, नहीं तो छलक जायेगा. अब नहीं रहा जाता मुझसे."
चाची बिस्तर पर घुटने टेक कर तैयार थी. मैं झट से उनकी टांगों के बीच घुस कर लेट गया. अपनी झांटें बाजू में करके चाची ने अपनी बुर मेरे मुंह पर जमायी और मूतने लगी. मैं चटखारे लेकर उनका मूत पीने लगा. चाचाजी के चेहरे पर आश्चर्य और कामवासना के भाव उमड आये. "अरे तू तो मूत रही है अनुराग के मुंह में?"
चाची हंस कर बोली. "यही तो शरबत है मेरे लाडले का. दिन भर और रात को भी पिलाती हूँ. इसने तो पानी पीना ही छोड. दिया है. और तुम्हारी कसम, दो हफ़्ते से मैंने बाथरूम में मूतना ही छोड. दिया है. यही है अब मेरा प्यारा मस्त चलता फ़िरता जिन्दा बाथरूम."
चाची का मूतना खतम होते होते मेरा तन कर खड़ा हो गया. इस मतवाली क्रिया को देखकर दो मिनिट में चाचाजी का भी लोडा तन्ना गया. चाची ने मौका देखकर तुरंत उनका लंड मुंह में ले लिया और चूसने लगी. पति की मलाई खाने का इससे अच्छा मौका नहीं था. उधर चाचाजी गरमा कर चाची जी के मम्मे मसलने लगे. मैंने देखा तो चाची अपनी टाँगे खोल कर अपनी बुर मे उंगली करते हुए मुझे इशारे कर रही थी. मैं समझ गया और किसी तरह सरक कर उनकी टांगों में सिर डालकर उनकी बुर चूसने लगा.
यह मादक त्रिकोण सबकी प्यास बुझा कर ही टूटा. चाची तीन बार मेरे मुंह में झड़ीं. चाचाजी ने चाची का सिर पकडकर खूब धक्के लगाये और उनके मुंह में झड़ कर उन्हें अपनी मलाई खिलाई.
उस रात का संभोग यहीं खतम हुआ और हम सो गये. दूसरे दिन दोपहर में आगे कहानी शुरू हुई. मेरे मुंह में चाची के मूतने से कार्यक्रम शुरू हुआ. इससे हम तीनों मस्त गरम हो गये थे. पति पत्नी बातें करने लगे कि आज क्या किया जाए. जवाब सहज था, चाची की चूत चोदना बाकी था .
उसम्मे चाचाजी अब भी थोड़ा हिचक रहे थे. आखिर पक्के गांड मारू जो थे! हमने एक बार कोशिश की पर चाची की चूत में घुसते घुसते उनका बैठ गया. चाचाजी भी परेशान थे क्योंकी वे सच में अपनी पत्नी को चोदना चाहते थे.
आखिर मैंने राह निकाली. मैंने अपने कपड़े उतारे और मेरे नंगे चिकने बदन को देखकर चाचा जी के लंड में फिर से जान आई।
वे खुश हो गये.
चाची अब हस्तमैथुन करने में जुट गयी थी. उन्हों ने मुझे अपने पास खींचा और जोर जोर से मेरा लंड चूस कर गीला किया और फ़िर बोली. "बेटा, अगर तेरे चाचाजी से ना हो पाएं तो तू पेल देना क्योंकी मेरा तवा अब गरम हो चुका है"
चाची अब तक बिलकुल तैयार थी. नीचे बिस्तर पर एक तकिये पर अपने नितंब टिका कर और पैर फ़ैला कर चूत खोले बाँहें फ़ैलाये अपने पति का इंतज़ार कर रही थी. चाचाजी उठे और उनके पैरों के बीच झुक कर बैठ गये. उनका लंड अब पूरा जोर से खड़ा था. चाचीने खुद उनके सुपाड़े को अपनी बुर के द्वार पर रखा और एक झटके में अंदर डाल दिया। अब चाचाजी मस्त पेलने लगे.
इंच इंच करके वह सोंटे जैसा लंड चाची की चूत में घुसने लगा. चाची आनंद से सिहर उठीं. "हाऽय मेरे प्राणनाथ, आज तो प्रसाद चढ़ाऊँगी! मेरी बुर कब से आपका इंतज़ार कर रही थी. मर गई रे!." वे दर्द से चिल्लाई जब जड तक नौ इंची शिश्न उनकी जांघों के बीच में धंस गया.
चाचाजी भी अब मजा ले रहे थे. "मेरी रानी, दुखा क्या? कितनी मखमली है तेरी चूत, और कितनी गीली! अरे मुझे पता होता कि चोदने में इतना मजा आता है तो क्यों इतना समय मैं गँवाता." में उन्हे आनंद करता देख मुठियाने लगा। चाचाजी सिसक कर चाची पर लेट गये और उन्हें चोदने लगे. चाची भी अब तक अपना दर्द भूल कर चुदने में मशरूफ़ हो गयी थी.
चाचाजी अब पूरे जोर से चाची को चोदने लगे. चाची भी उनका फौलादी लंड आराम से सह रही थी क्योंकी इतने मोटे लंड से चुदाने में उन्हें स्वर्ग का आनंद आ रहा था. "चोदो जी, और जोर से चोदो, अपनी बीवी की चूत फ़ाड डालो, तुम्हें हक है मेरे नाथ." ऐसा चिल्लाते हुए चाची चूतड उचका कर चुदवा रही थी.
चाचाजी भी सुख के शिखर पर थे. उनका शिश्न एक तपती गीली मखमली म्यान का मजा ले रहा था. "मज़ा आ गया रानी... इतना गरम और मुलायम लग रहा है... और तेरा छेद तो अंदर गुनगुना पानी छोड़े ही जा रहा है"
में हस्तमैथुन करते हुए चाची के कोमल बड़े स्तनों को दबाने लगा.
में मुठियाते हुए बेहद उत्तेजित हो गया और बस झड़ने ही वाला था पर चाची समझ गई, बोली "बेटे, झड़ना नहीं, तुझे मेरी कसम, इन्हें घंटे भर मुझे चोदने दे, जब ये झड़ें फ़िर ही तू झड़ना." मैंने किसी तरह अपने आप को रोका और हांफता हुआ पड़ा रहा.
मेरे इस संयम पर खुश होकर चाची ने मुझे चूम लिया. उनके मीठे चुंबन से मेरा हौसला बढ़ा और मैं उनकी निप्पल चूसने लगा. चाचाजी ने भी चाची की जांघों को और चौड़ा किया और चुत के अंदर तक बच्चेदानी पर वार करने लगे."
मैंने अपने होंठ चाची के होंठों पर रख दिये और पास से उनकी वासना भरी आँखों में एक प्रेमी की तरह झांकता हुआ उनका मुंह चूसने लगा. चाचाजी चहक उठे. "दबा तेरी चाची की छातियाँ, मां कसम, मैं भी आज तेरी चाची को चोद चोद कर फ़ुकला कर देता हूँ, हमेशा याद रखेगी."
घंटे भर तो नहीं पर आधा घंटे हम तीनों की यह चुदाई चलती रही. अंत में चाची झड़ झड़ कर इतनी थक गयी थी कि चाचाजी से उन्हें छोड देने की गुहार करने लगी. चाचाजी तैश में थे, और जोर से चोदने लगे. आखिर जब चाची लस्त होकर बेहोश सी हो गई तब जाकर वे झड़ें. उनके झड़ते ही मैंने भी कस के मुठ्ठी लगाई और चाचीजी की निप्पल चूसते हुए झड़ गया. चाचीजी की चुत ने चाचाजी के लंड को मानों दुहते हुए पूरा वीर्य निचोड लिया.
आखिर झड़ा लंड हाथ में लिए मैं पलंग पर पड़ा सुस्ताने लगा. अब पति पत्नी पड़े पडे प्यार से चूमा चाटी कर रहे थे. मुझे देख कर बड़ा अच्छा लगा. आखिर मेरी भी मेहनत थी. साथ साथ अब मुन्नी को मन चाहे भोगने मिलेगा यह मस्त एहसास था.
आखिर जब चाचाजी ने अपना लंड चाची की चूत से निकाला तो मैं तैयार था. चाची ने तुरंत अपनी टाँगे हवा में उठा लीं ताकि चूत मे भरा वीर्य टपक न जाये. में आखिर उस खजाने की ओर मुड़ा जो चाची की बुर में जमा था. चूत से मुंह लगा कर जीभ घुसेड कर मैं उस मिश्रण का पान करने लगा. मुझे मानों अमृत मिल गया था.
मैं चाची की बुर चूस रहा था तब मैंने मुंह उठाकर चाची से पूछा “अब तो मुन्नी को मुझे चोदने देंगी ना!!”
चाची मेरे सिर को अपनी बुर पर कस कर दबा चूत चुसवाती हुई बोली. "बस नरसो करा दूँगी. अब दो दिन मुझे तेरे चाचा से रात दिन चुदवाने दे फिर तेरा भी काम होगा, तू फ़िकर न कर."
मैं उठ कर बैठ गया. चाची चाचाजी से बोली. "लल्ला को अब तीन दिन छुट्टी देते हैं ताकि यह पूरा ताजा तवाना हो जाये. तुम दो दिन मुझे खूब भोगो, मुझे खुश कर दो."