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Incest चाची - भतीजे के गुलछर्रे

Napster

Well-Known Member
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चाची भी अब वासना से हांफ रही थी और अपने हाथों से उसके पूरे नंगे बदन को सहला रही थी. उन सेब जैसे उरोजों को चाची ने प्यार से रगड़ा और फ़िर खींच कर मुन्नी की पेन्टी उतार दी. "मेरी रानी बिटिया, जरा अपना खजाना तो दिखा अपनी इस प्यासी मौसी को." मुन्नी थोड़ी शरमाई पर उसने अपना गुप्तांग छुपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

बिलकुल चिकनी बचकानी चूत थी उसकी. एकदम गोरी चिट्टी और मैदे के गोले सी फ़ूली फ़ूली. बाल भी नहीं के बराबर थे, बस कुछ रेशमी काले रोएँ भर थे. चाची तो उस पर टूट पड़ी और उसे चूमने लगी. अपनी टाँगे आपस में रगड़ती हुई मुन्नी को बोली "छोटी, अब तो नहीं रहा जाता री, मेरी चूत में तो आग लगी है आग, तेरी यह कमसिन जवानी देख कर."

मुन्नी उठ कर चाची के पास बैठ गयी. अपने एक हाथ से चाची की जांघें सहलाते हुई दूसरा हाथ उसने उनके बीच डाल दिया. थोड़ा शरमा कर बोली "मौसी, जरा चूत खोलो, मैं मुठ्ठ मार देती हूँ." चाची टाँगे फ़ैलाती हुई हंस कर बोली. "देख बित्ते भर की बच्ची अपनी मौसी को मुठ्ठ मारने चली है. मारी है क्या कभी किसी की मुठ्ठ तूने?" मुन्नी ने अपनी दो उँगलियाँ चाची की बुर में डालते हुए कहा. "हाँ मौसी, मुझे अपनी सहेली आशा के साथ कर कर के आदत हो गई है."

लगता है कि छोकरी को काफ़ी अनुभव था क्योंकी दो ही मिनिट में चाची सिसकने लगी. मुझ पर झल्ला कर बोली. "तू क्यों चुपचाप पड़ा है रे मूरख, मार मेरी गांड" मैं अब तक यह सब चुपचाप देख रहा था, चाची के गुदा में आधा घुसा हुआ लंड भी कस कर खड़ा हो गया था. मैंने तुरंत उसे फ़िर पूरा अंदर डाला और करवट पर लेटे लेटे पीछे से उनकी गांड मारने लगा.

पाँच मिनिट में चाची ने एक हल्की सी हुंकार भरी और झड़ गई. "मुन्नी रानी, तू तो माहिर है री इस कला में, तेरी फ़्रेम्ड आशा ने खूब सिखाया है तुझे." मुन्नी अपनी उँगलियाँ चाटने लगी. "मौसी, तुम्हारी चूत चुसूँ? बहुत अच्छा लगता है मुझे चूत चूसना. पर अब तक सिर्फ़ आशा की चूसी है. किसी बड़ी जवान औरत की नहीं चूसी. यहाँ आई ही इसलिये हूँ कि तुम्हारी चूत चाटने का मौका मिले." बड़ी सहजता से उसने कहा जैसे मिठाई खाने की बात चल रही हो.

"अरी तो चूस ना, इतनी बह रही है, आधा कटोरी पानी तो आराम से पा जायेगी." चाची ने टाँगे फ़ैला कर कहा. मुन्नी पास आकर अपनी मौसी की गांड में अंदर बाहर होता मेरा लंड देखती हुई बोली. "दो मिनिट मौसी, जरा तेरी गांड मराई तो ठीक से देखूँ." वह बड़ी बड़ी आँखें कर के चाची के गुदा में घुसता निकलता मेरी सूजा हुआ मोटा ताजा लंड देख रही थी. "हाय कितना बड़ा है अनुराग भैया का लंड! दर्द नहीं होता मौसी?"

"अरी होता है पर मजा भी आ रहा है. तू चल यहाँ आ और मेरी बुर में मुंह डाल. कल देख लेना लंड के कारनामे, वे तो दिन भर होते रहते है हमारे यहाँ." कहकर ताव में आयी माया चाची ने अपनी भांजी को पकड कर उसका सिर अपनी जांघों में दबा लिया और उसके मुंह पर अपनी चूत रगड़ने लगी. चाटने और चूमने की आवाज़ें आने लगी और मैं समझ गया कि वह कन्या अपनी मौसी की बुर का प्रसाद पा रही है. मेरा गांड मारना और तीव्र हो गया.

चाची फ़िर झड़ीं और ढीली हो गई. मुन्नी ने चाट चाट कर उनकी बुर साफ़ की और मुंह पोंछती हुई उठ कर बैठ गयी. "बहुत गाढ़ा रस है मौसी, चिपचिपा भी है, आशा का तो पतला है." "अरे जवान होगी तो तुम लोगों का भी शहद हो जायेगा." चाची उसके मम्मे सहलाती हुई बोली. मुन्नी अब काफ़ी जोश में थी. उसकी सांसें जोर से चल रही थी और खुद की ही बुर में वह उंगली कर रही थी.

"अरे मेरी रानी, मुठ्ठ क्यों मारती है. आ मैं चूस दूँ, आखिर मैं भी तो देखूँ मेरी लाडली का स्वाद." चाची बोली. अब तक मैं पागल सा हो गया था. कसमसा कर बोला. "चाची, प्लीज़, अब जरा ठीक से चढ कर गांड मारने दीजिये ना, बहुत मजा आ रहा है."

मुझे पुचकार कर वे बोली. "ठीक है लल्ला, बहुत मेहनत की है, ले मजा कर. मुन्नी बेटी, चल मेरे सामने आकर बैठ और टाँगे फ़ैला." मुन्नी की गोरी टाँगे खोलकर चाची ने उसे अपने सामने तकिये पर बैठा लिया. फ़िर उसके सामने पट लेटकर वह उस गुड़िया की कुंवारी चूत चूसने लगी. मुन्नी तो खुशी से करीब करीब रो पड़ी. "मौसी ऽ ई, कितना अच्छा चूसती हो तुम, हाय, मैं मर गयी."

उधर मैं झट से चाची पर चढ गया और उनका शरीर अपनी बाँहों में भरकर उनके उरोज दबाता हुआ हचक हचक कर गांड मारने लगा. मुन्नी ठीक मेरे सामने थी. उसका चुंबन लेने की बहुत इच्छा हो रही थी. चाची समझ गई. "अरे सामने माल है बेटे, मुंह मार ले, चुंबन ले उसका. पर आज और कुछ नहीं करना उसके साथ." मैंने तुरंत झुक कर उसके होंठों पर होंठ रख दिये. क्या मीठा रसीला चुंबन था, एकदम अनछुआ. मुन्नी ने भी मेरे चुंबन का जवाब दिया. हम बेतहाशा चूमा चाटी करने लगे.

अब मैं झड़ने को आ गया था. आव देखा न ताव, झुककर उस किशोरी के कच्चे स्तन चूम लिये और फ़िर एक किसमिस के दाने जैसा निप्पल मुंह मे लेकर चूसने लगा. मुन्नी सिहर उठी और मेरा मुंह कस कर अपनी छाती पर दबा लिया. अब मैंने पूरे जोर से चाची की गांड मारना शुरू कर दिया. खाट ऐसे चरमराने लगी जैसे टूट ही जायेगी. चाची ने भी नीचे से ही मुन्नी की चूत चूसते हुए अस्पष्ट शब्दों में कहा. "अरे जरा धीरे, खटिया तोड़ेगा क्या."

पर मैं पूरे जोर से लंड पेलता रहा. तभी मुन्नी एक चीख के साथ अपनी मौसी के मुंह में झड़ गयी. मैंने भी उसका निप्पल हल्के से काट खाया और जोर से स्खलित हो गया. उधर शायद चाची भी अपनी चूत में खुद ही उंगली कर के मुठ्ठ मार रही थी. वह भी उसी समय झड़ीं. यह सामूहिक स्खलन ऐसा था कि किसी को उसके बाद होश न रहा. सब लस्त पड़े उस स्वर्गिक आनंद का उपभोग लेने लगे.

मैं तो इतना थक गया था कि लुढक कर लंड चाची के गुदा में से खींचा और ढेर हो गया. कब सो गया पता ही नहीं चला. हाँ शायद वे दो चुदैलें उसके बाद भी संभोग करती रही क्योंकी रात को आधी नींद में भी मुझे हंसने खिलखिलने और चूमा चाटी की आवाज़ें आती रही.

दूसरे दिन हम तीनों नहा धो कर बस दोपहर की राह देख रहे थे कि कब नौकरानी घर जाये और कब हम हमारे खेल शुरू करें. मुन्नी बार बार चाची से चिपटने का बहाना देख रही थी. मेरी ओर भी कनखियों से देख रही थी और मुस्करा रही थी. आज वह बला की खूबसूरत लग रही थी. जान बूझकर एक छोटा स्कर्ट और एकदम तंग ब्लाउज़ पहन कर घूम रही थी जिसमें से उसकी टाँगे और मम्मे साफ़ दिख रहे थे. चाची ने कई बार आँखें दिखा कर हमें डाम्टा पर वे भी मंद मंद मुस्कुरा रही थी. अब तो उनके भी वारे न्यारे थे. दो एकदम किशोर चाहने वाले, एक लड़का यानि मैं और एक लड़की यानि मुन्नी उनके आगे पीछे घूम रहे थे. खट्टे और मीठे दोनों स्वादों का इंतेज़ाम था उनके लिये.

आखिर नौकरानी घर गयी और हमने दौड कर चाची के कमरे में घुस कर दरवाजा लगा लिया. मुन्नी तो जाकर चाची की बाँहों में समा गयी और दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगी. चाची उसे कस कर पकड़े हुए सोफ़े पर बैठ गयी और मुझे भी अपने पास बैठा लिया. अब वे कभी मुन्नी के चुंबन लेती कभी मेरे. आखिर पूरा गरम होने के बाद वे उठीं और कपड़े उतारने लगी. हमें भी उन्हों ने नंगे होने का आदेश दिया.

मैं तो तुरंत नंगा हो गया. तन कर खड़े और उछलते मेरे लंड को देखकर मुन्नी होंठों पर जीभ फ़ेरने लगी. वह थोड़ी शरमा रही थी इसलिये धीरे धीरे कपड़े उतार रही थी. चाची अब तक साड़ी चोली उतार कर अर्धनग्न हो गयी थी. उनके ब्रा और पेन्टी में लिपटे मांसल बदन को देखकर मुन्नी पथरा सी गयी. उनकी ओर घूरती हुई अनजाने में अपने हाथ से अपनी चूत स्कर्ट पर से ही रगड़ने लगी.

चाची उसके पास गई और प्यार से धीरे धीरे उसका स्कर्ट और टॉप निकाला. अंदर मुन्नी एक बड़ी प्यारी सी कॉटन की सिम्पल सफ़ेद ब्रा और चड्डी पहने थी. अधखिले उरोज ब्रा में से झांक रहे थे. उस कच्ची कली के छरहरे गोरे बदन को देखकर हम दोनों ऐसे गरम हुए कि समझ में नहीं आ रहा था कि कौन किसे पहले भोगे. हम दोनों उस बच्ची से लिपट गये और उसके बदन को हाथों से सहलाते हुए और दबाते हुए उसे चूमने लगे. कभी मैं उसके लाल होंठ चूसता तो कभी चाची. झुक कर कभी उसका पेट चूम लेते तो कभी गोरी पतली जांघें.

चाची ने आखिर पहल की और अपनी ब्रा और पेन्टी उतार फेंकी. बोली. "मुन्नी बिटिया, तू नयी है इसलिये यहाँ बैठकर हमारा खेल देख. अपने आप समझ जायेगी कि कैसे क्या करना है." मुन्नी को एक कुर्सी में बिठा कर वे मेरे पास आई और हमारी रति लीला आरम्भ हो गयी.

हमने सब कुछ किया. मैंने पहले कई तरह से चाची की बुर चूसी और फ़िर उन्हें तरह तरह से चोदा. यह देख देख कर मुन्नी सिसकियाँ भरती हुई अपनी ही छातियाँ दबाने लगी और पेन्टी पर से चूत को रगड़ने लगी. आखिर उससे नहीं रहा गया और उसने भी अपने अंतर्वस्त्र उतार दिये. पूर्ण नग्न कमसिन गोरा शरीर ऐसा फ़ब रहा था जैसे रसीली कच्ची गुलाब की कली. लगातार वह अपनी गोरी बुर रगड़ती हुई टाँगे हिला हिला कर हस्तमैथुन करने लगी.

पीछे से जब मैं चाची को चोद रहा था तो इस आसन को देख कर तो मुन्नी ऐसी तुनकी कि उठकर हमारे पास आ गयी और चाची की लटकती चूचियाँ दबाती हुई उन्हें जोर जोर से चूमने लगी. बड़ी मुश्किल से चाची ने उसे वापस भेजा नहीं तो भांजी मौसी के उस चुंबन को देखकर मैं जरूर झड़ जाता.

जब मैं झड़ने के करीब आ गया तब चाची ने खेल रोका. वे कई बार स्खलित हो चुकी थी. मुझे कुर्सी में बिठाकर मेरे चूत रस से गीले लंड को हाथ में लेकर चाटती हुई बोली. "अब आ जा बिटिया, तुझे लंड चखाऊँ, बड़ा रसीला प्यारा लंड है मेरे भतीजे का."


182112600-450

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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अब मुन्नी भी चुदेगी अपने मौसी के साथ
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Ek number

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20,609
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चाची भी अब वासना से हांफ रही थी और अपने हाथों से उसके पूरे नंगे बदन को सहला रही थी. उन सेब जैसे उरोजों को चाची ने प्यार से रगड़ा और फ़िर खींच कर मुन्नी की पेन्टी उतार दी. "मेरी रानी बिटिया, जरा अपना खजाना तो दिखा अपनी इस प्यासी मौसी को." मुन्नी थोड़ी शरमाई पर उसने अपना गुप्तांग छुपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

बिलकुल चिकनी बचकानी चूत थी उसकी. एकदम गोरी चिट्टी और मैदे के गोले सी फ़ूली फ़ूली. बाल भी नहीं के बराबर थे, बस कुछ रेशमी काले रोएँ भर थे. चाची तो उस पर टूट पड़ी और उसे चूमने लगी. अपनी टाँगे आपस में रगड़ती हुई मुन्नी को बोली "छोटी, अब तो नहीं रहा जाता री, मेरी चूत में तो आग लगी है आग, तेरी यह कमसिन जवानी देख कर."

मुन्नी उठ कर चाची के पास बैठ गयी. अपने एक हाथ से चाची की जांघें सहलाते हुई दूसरा हाथ उसने उनके बीच डाल दिया. थोड़ा शरमा कर बोली "मौसी, जरा चूत खोलो, मैं मुठ्ठ मार देती हूँ." चाची टाँगे फ़ैलाती हुई हंस कर बोली. "देख बित्ते भर की बच्ची अपनी मौसी को मुठ्ठ मारने चली है. मारी है क्या कभी किसी की मुठ्ठ तूने?" मुन्नी ने अपनी दो उँगलियाँ चाची की बुर में डालते हुए कहा. "हाँ मौसी, मुझे अपनी सहेली आशा के साथ कर कर के आदत हो गई है."

लगता है कि छोकरी को काफ़ी अनुभव था क्योंकी दो ही मिनिट में चाची सिसकने लगी. मुझ पर झल्ला कर बोली. "तू क्यों चुपचाप पड़ा है रे मूरख, मार मेरी गांड" मैं अब तक यह सब चुपचाप देख रहा था, चाची के गुदा में आधा घुसा हुआ लंड भी कस कर खड़ा हो गया था. मैंने तुरंत उसे फ़िर पूरा अंदर डाला और करवट पर लेटे लेटे पीछे से उनकी गांड मारने लगा.

पाँच मिनिट में चाची ने एक हल्की सी हुंकार भरी और झड़ गई. "मुन्नी रानी, तू तो माहिर है री इस कला में, तेरी फ़्रेम्ड आशा ने खूब सिखाया है तुझे." मुन्नी अपनी उँगलियाँ चाटने लगी. "मौसी, तुम्हारी चूत चुसूँ? बहुत अच्छा लगता है मुझे चूत चूसना. पर अब तक सिर्फ़ आशा की चूसी है. किसी बड़ी जवान औरत की नहीं चूसी. यहाँ आई ही इसलिये हूँ कि तुम्हारी चूत चाटने का मौका मिले." बड़ी सहजता से उसने कहा जैसे मिठाई खाने की बात चल रही हो.

"अरी तो चूस ना, इतनी बह रही है, आधा कटोरी पानी तो आराम से पा जायेगी." चाची ने टाँगे फ़ैला कर कहा. मुन्नी पास आकर अपनी मौसी की गांड में अंदर बाहर होता मेरा लंड देखती हुई बोली. "दो मिनिट मौसी, जरा तेरी गांड मराई तो ठीक से देखूँ." वह बड़ी बड़ी आँखें कर के चाची के गुदा में घुसता निकलता मेरी सूजा हुआ मोटा ताजा लंड देख रही थी. "हाय कितना बड़ा है अनुराग भैया का लंड! दर्द नहीं होता मौसी?"

"अरी होता है पर मजा भी आ रहा है. तू चल यहाँ आ और मेरी बुर में मुंह डाल. कल देख लेना लंड के कारनामे, वे तो दिन भर होते रहते है हमारे यहाँ." कहकर ताव में आयी माया चाची ने अपनी भांजी को पकड कर उसका सिर अपनी जांघों में दबा लिया और उसके मुंह पर अपनी चूत रगड़ने लगी. चाटने और चूमने की आवाज़ें आने लगी और मैं समझ गया कि वह कन्या अपनी मौसी की बुर का प्रसाद पा रही है. मेरा गांड मारना और तीव्र हो गया.

चाची फ़िर झड़ीं और ढीली हो गई. मुन्नी ने चाट चाट कर उनकी बुर साफ़ की और मुंह पोंछती हुई उठ कर बैठ गयी. "बहुत गाढ़ा रस है मौसी, चिपचिपा भी है, आशा का तो पतला है." "अरे जवान होगी तो तुम लोगों का भी शहद हो जायेगा." चाची उसके मम्मे सहलाती हुई बोली. मुन्नी अब काफ़ी जोश में थी. उसकी सांसें जोर से चल रही थी और खुद की ही बुर में वह उंगली कर रही थी.

"अरे मेरी रानी, मुठ्ठ क्यों मारती है. आ मैं चूस दूँ, आखिर मैं भी तो देखूँ मेरी लाडली का स्वाद." चाची बोली. अब तक मैं पागल सा हो गया था. कसमसा कर बोला. "चाची, प्लीज़, अब जरा ठीक से चढ कर गांड मारने दीजिये ना, बहुत मजा आ रहा है."

मुझे पुचकार कर वे बोली. "ठीक है लल्ला, बहुत मेहनत की है, ले मजा कर. मुन्नी बेटी, चल मेरे सामने आकर बैठ और टाँगे फ़ैला." मुन्नी की गोरी टाँगे खोलकर चाची ने उसे अपने सामने तकिये पर बैठा लिया. फ़िर उसके सामने पट लेटकर वह उस गुड़िया की कुंवारी चूत चूसने लगी. मुन्नी तो खुशी से करीब करीब रो पड़ी. "मौसी ऽ ई, कितना अच्छा चूसती हो तुम, हाय, मैं मर गयी."

उधर मैं झट से चाची पर चढ गया और उनका शरीर अपनी बाँहों में भरकर उनके उरोज दबाता हुआ हचक हचक कर गांड मारने लगा. मुन्नी ठीक मेरे सामने थी. उसका चुंबन लेने की बहुत इच्छा हो रही थी. चाची समझ गई. "अरे सामने माल है बेटे, मुंह मार ले, चुंबन ले उसका. पर आज और कुछ नहीं करना उसके साथ." मैंने तुरंत झुक कर उसके होंठों पर होंठ रख दिये. क्या मीठा रसीला चुंबन था, एकदम अनछुआ. मुन्नी ने भी मेरे चुंबन का जवाब दिया. हम बेतहाशा चूमा चाटी करने लगे.

अब मैं झड़ने को आ गया था. आव देखा न ताव, झुककर उस किशोरी के कच्चे स्तन चूम लिये और फ़िर एक किसमिस के दाने जैसा निप्पल मुंह मे लेकर चूसने लगा. मुन्नी सिहर उठी और मेरा मुंह कस कर अपनी छाती पर दबा लिया. अब मैंने पूरे जोर से चाची की गांड मारना शुरू कर दिया. खाट ऐसे चरमराने लगी जैसे टूट ही जायेगी. चाची ने भी नीचे से ही मुन्नी की चूत चूसते हुए अस्पष्ट शब्दों में कहा. "अरे जरा धीरे, खटिया तोड़ेगा क्या."

पर मैं पूरे जोर से लंड पेलता रहा. तभी मुन्नी एक चीख के साथ अपनी मौसी के मुंह में झड़ गयी. मैंने भी उसका निप्पल हल्के से काट खाया और जोर से स्खलित हो गया. उधर शायद चाची भी अपनी चूत में खुद ही उंगली कर के मुठ्ठ मार रही थी. वह भी उसी समय झड़ीं. यह सामूहिक स्खलन ऐसा था कि किसी को उसके बाद होश न रहा. सब लस्त पड़े उस स्वर्गिक आनंद का उपभोग लेने लगे.

मैं तो इतना थक गया था कि लुढक कर लंड चाची के गुदा में से खींचा और ढेर हो गया. कब सो गया पता ही नहीं चला. हाँ शायद वे दो चुदैलें उसके बाद भी संभोग करती रही क्योंकी रात को आधी नींद में भी मुझे हंसने खिलखिलने और चूमा चाटी की आवाज़ें आती रही.

दूसरे दिन हम तीनों नहा धो कर बस दोपहर की राह देख रहे थे कि कब नौकरानी घर जाये और कब हम हमारे खेल शुरू करें. मुन्नी बार बार चाची से चिपटने का बहाना देख रही थी. मेरी ओर भी कनखियों से देख रही थी और मुस्करा रही थी. आज वह बला की खूबसूरत लग रही थी. जान बूझकर एक छोटा स्कर्ट और एकदम तंग ब्लाउज़ पहन कर घूम रही थी जिसमें से उसकी टाँगे और मम्मे साफ़ दिख रहे थे. चाची ने कई बार आँखें दिखा कर हमें डाम्टा पर वे भी मंद मंद मुस्कुरा रही थी. अब तो उनके भी वारे न्यारे थे. दो एकदम किशोर चाहने वाले, एक लड़का यानि मैं और एक लड़की यानि मुन्नी उनके आगे पीछे घूम रहे थे. खट्टे और मीठे दोनों स्वादों का इंतेज़ाम था उनके लिये.

आखिर नौकरानी घर गयी और हमने दौड कर चाची के कमरे में घुस कर दरवाजा लगा लिया. मुन्नी तो जाकर चाची की बाँहों में समा गयी और दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगी. चाची उसे कस कर पकड़े हुए सोफ़े पर बैठ गयी और मुझे भी अपने पास बैठा लिया. अब वे कभी मुन्नी के चुंबन लेती कभी मेरे. आखिर पूरा गरम होने के बाद वे उठीं और कपड़े उतारने लगी. हमें भी उन्हों ने नंगे होने का आदेश दिया.

मैं तो तुरंत नंगा हो गया. तन कर खड़े और उछलते मेरे लंड को देखकर मुन्नी होंठों पर जीभ फ़ेरने लगी. वह थोड़ी शरमा रही थी इसलिये धीरे धीरे कपड़े उतार रही थी. चाची अब तक साड़ी चोली उतार कर अर्धनग्न हो गयी थी. उनके ब्रा और पेन्टी में लिपटे मांसल बदन को देखकर मुन्नी पथरा सी गयी. उनकी ओर घूरती हुई अनजाने में अपने हाथ से अपनी चूत स्कर्ट पर से ही रगड़ने लगी.

चाची उसके पास गई और प्यार से धीरे धीरे उसका स्कर्ट और टॉप निकाला. अंदर मुन्नी एक बड़ी प्यारी सी कॉटन की सिम्पल सफ़ेद ब्रा और चड्डी पहने थी. अधखिले उरोज ब्रा में से झांक रहे थे. उस कच्ची कली के छरहरे गोरे बदन को देखकर हम दोनों ऐसे गरम हुए कि समझ में नहीं आ रहा था कि कौन किसे पहले भोगे. हम दोनों उस बच्ची से लिपट गये और उसके बदन को हाथों से सहलाते हुए और दबाते हुए उसे चूमने लगे. कभी मैं उसके लाल होंठ चूसता तो कभी चाची. झुक कर कभी उसका पेट चूम लेते तो कभी गोरी पतली जांघें.

चाची ने आखिर पहल की और अपनी ब्रा और पेन्टी उतार फेंकी. बोली. "मुन्नी बिटिया, तू नयी है इसलिये यहाँ बैठकर हमारा खेल देख. अपने आप समझ जायेगी कि कैसे क्या करना है." मुन्नी को एक कुर्सी में बिठा कर वे मेरे पास आई और हमारी रति लीला आरम्भ हो गयी.

हमने सब कुछ किया. मैंने पहले कई तरह से चाची की बुर चूसी और फ़िर उन्हें तरह तरह से चोदा. यह देख देख कर मुन्नी सिसकियाँ भरती हुई अपनी ही छातियाँ दबाने लगी और पेन्टी पर से चूत को रगड़ने लगी. आखिर उससे नहीं रहा गया और उसने भी अपने अंतर्वस्त्र उतार दिये. पूर्ण नग्न कमसिन गोरा शरीर ऐसा फ़ब रहा था जैसे रसीली कच्ची गुलाब की कली. लगातार वह अपनी गोरी बुर रगड़ती हुई टाँगे हिला हिला कर हस्तमैथुन करने लगी.

पीछे से जब मैं चाची को चोद रहा था तो इस आसन को देख कर तो मुन्नी ऐसी तुनकी कि उठकर हमारे पास आ गयी और चाची की लटकती चूचियाँ दबाती हुई उन्हें जोर जोर से चूमने लगी. बड़ी मुश्किल से चाची ने उसे वापस भेजा नहीं तो भांजी मौसी के उस चुंबन को देखकर मैं जरूर झड़ जाता.

जब मैं झड़ने के करीब आ गया तब चाची ने खेल रोका. वे कई बार स्खलित हो चुकी थी. मुझे कुर्सी में बिठाकर मेरे चूत रस से गीले लंड को हाथ में लेकर चाटती हुई बोली. "अब आ जा बिटिया, तुझे लंड चखाऊँ, बड़ा रसीला प्यारा लंड है मेरे भतीजे का."


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चाची भी अब वासना से हांफ रही थी और अपने हाथों से उसके पूरे नंगे बदन को सहला रही थी. उन सेब जैसे उरोजों को चाची ने प्यार से रगड़ा और फ़िर खींच कर मुन्नी की पेन्टी उतार दी. "मेरी रानी बिटिया, जरा अपना खजाना तो दिखा अपनी इस प्यासी मौसी को." मुन्नी थोड़ी शरमाई पर उसने अपना गुप्तांग छुपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

बिलकुल चिकनी बचकानी चूत थी उसकी. एकदम गोरी चिट्टी और मैदे के गोले सी फ़ूली फ़ूली. बाल भी नहीं के बराबर थे, बस कुछ रेशमी काले रोएँ भर थे. चाची तो उस पर टूट पड़ी और उसे चूमने लगी. अपनी टाँगे आपस में रगड़ती हुई मुन्नी को बोली "छोटी, अब तो नहीं रहा जाता री, मेरी चूत में तो आग लगी है आग, तेरी यह कमसिन जवानी देख कर."

मुन्नी उठ कर चाची के पास बैठ गयी. अपने एक हाथ से चाची की जांघें सहलाते हुई दूसरा हाथ उसने उनके बीच डाल दिया. थोड़ा शरमा कर बोली "मौसी, जरा चूत खोलो, मैं मुठ्ठ मार देती हूँ." चाची टाँगे फ़ैलाती हुई हंस कर बोली. "देख बित्ते भर की बच्ची अपनी मौसी को मुठ्ठ मारने चली है. मारी है क्या कभी किसी की मुठ्ठ तूने?" मुन्नी ने अपनी दो उँगलियाँ चाची की बुर में डालते हुए कहा. "हाँ मौसी, मुझे अपनी सहेली आशा के साथ कर कर के आदत हो गई है."

लगता है कि छोकरी को काफ़ी अनुभव था क्योंकी दो ही मिनिट में चाची सिसकने लगी. मुझ पर झल्ला कर बोली. "तू क्यों चुपचाप पड़ा है रे मूरख, मार मेरी गांड" मैं अब तक यह सब चुपचाप देख रहा था, चाची के गुदा में आधा घुसा हुआ लंड भी कस कर खड़ा हो गया था. मैंने तुरंत उसे फ़िर पूरा अंदर डाला और करवट पर लेटे लेटे पीछे से उनकी गांड मारने लगा.

पाँच मिनिट में चाची ने एक हल्की सी हुंकार भरी और झड़ गई. "मुन्नी रानी, तू तो माहिर है री इस कला में, तेरी फ़्रेम्ड आशा ने खूब सिखाया है तुझे." मुन्नी अपनी उँगलियाँ चाटने लगी. "मौसी, तुम्हारी चूत चुसूँ? बहुत अच्छा लगता है मुझे चूत चूसना. पर अब तक सिर्फ़ आशा की चूसी है. किसी बड़ी जवान औरत की नहीं चूसी. यहाँ आई ही इसलिये हूँ कि तुम्हारी चूत चाटने का मौका मिले." बड़ी सहजता से उसने कहा जैसे मिठाई खाने की बात चल रही हो.

"अरी तो चूस ना, इतनी बह रही है, आधा कटोरी पानी तो आराम से पा जायेगी." चाची ने टाँगे फ़ैला कर कहा. मुन्नी पास आकर अपनी मौसी की गांड में अंदर बाहर होता मेरा लंड देखती हुई बोली. "दो मिनिट मौसी, जरा तेरी गांड मराई तो ठीक से देखूँ." वह बड़ी बड़ी आँखें कर के चाची के गुदा में घुसता निकलता मेरी सूजा हुआ मोटा ताजा लंड देख रही थी. "हाय कितना बड़ा है अनुराग भैया का लंड! दर्द नहीं होता मौसी?"

"अरी होता है पर मजा भी आ रहा है. तू चल यहाँ आ और मेरी बुर में मुंह डाल. कल देख लेना लंड के कारनामे, वे तो दिन भर होते रहते है हमारे यहाँ." कहकर ताव में आयी माया चाची ने अपनी भांजी को पकड कर उसका सिर अपनी जांघों में दबा लिया और उसके मुंह पर अपनी चूत रगड़ने लगी. चाटने और चूमने की आवाज़ें आने लगी और मैं समझ गया कि वह कन्या अपनी मौसी की बुर का प्रसाद पा रही है. मेरा गांड मारना और तीव्र हो गया.

चाची फ़िर झड़ीं और ढीली हो गई. मुन्नी ने चाट चाट कर उनकी बुर साफ़ की और मुंह पोंछती हुई उठ कर बैठ गयी. "बहुत गाढ़ा रस है मौसी, चिपचिपा भी है, आशा का तो पतला है." "अरे जवान होगी तो तुम लोगों का भी शहद हो जायेगा." चाची उसके मम्मे सहलाती हुई बोली. मुन्नी अब काफ़ी जोश में थी. उसकी सांसें जोर से चल रही थी और खुद की ही बुर में वह उंगली कर रही थी.

"अरे मेरी रानी, मुठ्ठ क्यों मारती है. आ मैं चूस दूँ, आखिर मैं भी तो देखूँ मेरी लाडली का स्वाद." चाची बोली. अब तक मैं पागल सा हो गया था. कसमसा कर बोला. "चाची, प्लीज़, अब जरा ठीक से चढ कर गांड मारने दीजिये ना, बहुत मजा आ रहा है."

मुझे पुचकार कर वे बोली. "ठीक है लल्ला, बहुत मेहनत की है, ले मजा कर. मुन्नी बेटी, चल मेरे सामने आकर बैठ और टाँगे फ़ैला." मुन्नी की गोरी टाँगे खोलकर चाची ने उसे अपने सामने तकिये पर बैठा लिया. फ़िर उसके सामने पट लेटकर वह उस गुड़िया की कुंवारी चूत चूसने लगी. मुन्नी तो खुशी से करीब करीब रो पड़ी. "मौसी ऽ ई, कितना अच्छा चूसती हो तुम, हाय, मैं मर गयी."

उधर मैं झट से चाची पर चढ गया और उनका शरीर अपनी बाँहों में भरकर उनके उरोज दबाता हुआ हचक हचक कर गांड मारने लगा. मुन्नी ठीक मेरे सामने थी. उसका चुंबन लेने की बहुत इच्छा हो रही थी. चाची समझ गई. "अरे सामने माल है बेटे, मुंह मार ले, चुंबन ले उसका. पर आज और कुछ नहीं करना उसके साथ." मैंने तुरंत झुक कर उसके होंठों पर होंठ रख दिये. क्या मीठा रसीला चुंबन था, एकदम अनछुआ. मुन्नी ने भी मेरे चुंबन का जवाब दिया. हम बेतहाशा चूमा चाटी करने लगे.

अब मैं झड़ने को आ गया था. आव देखा न ताव, झुककर उस किशोरी के कच्चे स्तन चूम लिये और फ़िर एक किसमिस के दाने जैसा निप्पल मुंह मे लेकर चूसने लगा. मुन्नी सिहर उठी और मेरा मुंह कस कर अपनी छाती पर दबा लिया. अब मैंने पूरे जोर से चाची की गांड मारना शुरू कर दिया. खाट ऐसे चरमराने लगी जैसे टूट ही जायेगी. चाची ने भी नीचे से ही मुन्नी की चूत चूसते हुए अस्पष्ट शब्दों में कहा. "अरे जरा धीरे, खटिया तोड़ेगा क्या."

पर मैं पूरे जोर से लंड पेलता रहा. तभी मुन्नी एक चीख के साथ अपनी मौसी के मुंह में झड़ गयी. मैंने भी उसका निप्पल हल्के से काट खाया और जोर से स्खलित हो गया. उधर शायद चाची भी अपनी चूत में खुद ही उंगली कर के मुठ्ठ मार रही थी. वह भी उसी समय झड़ीं. यह सामूहिक स्खलन ऐसा था कि किसी को उसके बाद होश न रहा. सब लस्त पड़े उस स्वर्गिक आनंद का उपभोग लेने लगे.

मैं तो इतना थक गया था कि लुढक कर लंड चाची के गुदा में से खींचा और ढेर हो गया. कब सो गया पता ही नहीं चला. हाँ शायद वे दो चुदैलें उसके बाद भी संभोग करती रही क्योंकी रात को आधी नींद में भी मुझे हंसने खिलखिलने और चूमा चाटी की आवाज़ें आती रही.

दूसरे दिन हम तीनों नहा धो कर बस दोपहर की राह देख रहे थे कि कब नौकरानी घर जाये और कब हम हमारे खेल शुरू करें. मुन्नी बार बार चाची से चिपटने का बहाना देख रही थी. मेरी ओर भी कनखियों से देख रही थी और मुस्करा रही थी. आज वह बला की खूबसूरत लग रही थी. जान बूझकर एक छोटा स्कर्ट और एकदम तंग ब्लाउज़ पहन कर घूम रही थी जिसमें से उसकी टाँगे और मम्मे साफ़ दिख रहे थे. चाची ने कई बार आँखें दिखा कर हमें डाम्टा पर वे भी मंद मंद मुस्कुरा रही थी. अब तो उनके भी वारे न्यारे थे. दो एकदम किशोर चाहने वाले, एक लड़का यानि मैं और एक लड़की यानि मुन्नी उनके आगे पीछे घूम रहे थे. खट्टे और मीठे दोनों स्वादों का इंतेज़ाम था उनके लिये.

आखिर नौकरानी घर गयी और हमने दौड कर चाची के कमरे में घुस कर दरवाजा लगा लिया. मुन्नी तो जाकर चाची की बाँहों में समा गयी और दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगी. चाची उसे कस कर पकड़े हुए सोफ़े पर बैठ गयी और मुझे भी अपने पास बैठा लिया. अब वे कभी मुन्नी के चुंबन लेती कभी मेरे. आखिर पूरा गरम होने के बाद वे उठीं और कपड़े उतारने लगी. हमें भी उन्हों ने नंगे होने का आदेश दिया.

मैं तो तुरंत नंगा हो गया. तन कर खड़े और उछलते मेरे लंड को देखकर मुन्नी होंठों पर जीभ फ़ेरने लगी. वह थोड़ी शरमा रही थी इसलिये धीरे धीरे कपड़े उतार रही थी. चाची अब तक साड़ी चोली उतार कर अर्धनग्न हो गयी थी. उनके ब्रा और पेन्टी में लिपटे मांसल बदन को देखकर मुन्नी पथरा सी गयी. उनकी ओर घूरती हुई अनजाने में अपने हाथ से अपनी चूत स्कर्ट पर से ही रगड़ने लगी.

चाची उसके पास गई और प्यार से धीरे धीरे उसका स्कर्ट और टॉप निकाला. अंदर मुन्नी एक बड़ी प्यारी सी कॉटन की सिम्पल सफ़ेद ब्रा और चड्डी पहने थी. अधखिले उरोज ब्रा में से झांक रहे थे. उस कच्ची कली के छरहरे गोरे बदन को देखकर हम दोनों ऐसे गरम हुए कि समझ में नहीं आ रहा था कि कौन किसे पहले भोगे. हम दोनों उस बच्ची से लिपट गये और उसके बदन को हाथों से सहलाते हुए और दबाते हुए उसे चूमने लगे. कभी मैं उसके लाल होंठ चूसता तो कभी चाची. झुक कर कभी उसका पेट चूम लेते तो कभी गोरी पतली जांघें.

चाची ने आखिर पहल की और अपनी ब्रा और पेन्टी उतार फेंकी. बोली. "मुन्नी बिटिया, तू नयी है इसलिये यहाँ बैठकर हमारा खेल देख. अपने आप समझ जायेगी कि कैसे क्या करना है." मुन्नी को एक कुर्सी में बिठा कर वे मेरे पास आई और हमारी रति लीला आरम्भ हो गयी.

हमने सब कुछ किया. मैंने पहले कई तरह से चाची की बुर चूसी और फ़िर उन्हें तरह तरह से चोदा. यह देख देख कर मुन्नी सिसकियाँ भरती हुई अपनी ही छातियाँ दबाने लगी और पेन्टी पर से चूत को रगड़ने लगी. आखिर उससे नहीं रहा गया और उसने भी अपने अंतर्वस्त्र उतार दिये. पूर्ण नग्न कमसिन गोरा शरीर ऐसा फ़ब रहा था जैसे रसीली कच्ची गुलाब की कली. लगातार वह अपनी गोरी बुर रगड़ती हुई टाँगे हिला हिला कर हस्तमैथुन करने लगी.

पीछे से जब मैं चाची को चोद रहा था तो इस आसन को देख कर तो मुन्नी ऐसी तुनकी कि उठकर हमारे पास आ गयी और चाची की लटकती चूचियाँ दबाती हुई उन्हें जोर जोर से चूमने लगी. बड़ी मुश्किल से चाची ने उसे वापस भेजा नहीं तो भांजी मौसी के उस चुंबन को देखकर मैं जरूर झड़ जाता.

जब मैं झड़ने के करीब आ गया तब चाची ने खेल रोका. वे कई बार स्खलित हो चुकी थी. मुझे कुर्सी में बिठाकर मेरे चूत रस से गीले लंड को हाथ में लेकर चाटती हुई बोली. "अब आ जा बिटिया, तुझे लंड चखाऊँ, बड़ा रसीला प्यारा लंड है मेरे भतीजे का."


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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
अब मुन्नी भी चुदेगी अपने मौसी के साथ
अगले रोमांचकारी धमाकेदार और चुदाईदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Ajju Landwalia

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चाची भी अब वासना से हांफ रही थी और अपने हाथों से उसके पूरे नंगे बदन को सहला रही थी. उन सेब जैसे उरोजों को चाची ने प्यार से रगड़ा और फ़िर खींच कर मुन्नी की पेन्टी उतार दी. "मेरी रानी बिटिया, जरा अपना खजाना तो दिखा अपनी इस प्यासी मौसी को." मुन्नी थोड़ी शरमाई पर उसने अपना गुप्तांग छुपाने की जरा भी कोशिश नहीं की.

बिलकुल चिकनी बचकानी चूत थी उसकी. एकदम गोरी चिट्टी और मैदे के गोले सी फ़ूली फ़ूली. बाल भी नहीं के बराबर थे, बस कुछ रेशमी काले रोएँ भर थे. चाची तो उस पर टूट पड़ी और उसे चूमने लगी. अपनी टाँगे आपस में रगड़ती हुई मुन्नी को बोली "छोटी, अब तो नहीं रहा जाता री, मेरी चूत में तो आग लगी है आग, तेरी यह कमसिन जवानी देख कर."

मुन्नी उठ कर चाची के पास बैठ गयी. अपने एक हाथ से चाची की जांघें सहलाते हुई दूसरा हाथ उसने उनके बीच डाल दिया. थोड़ा शरमा कर बोली "मौसी, जरा चूत खोलो, मैं मुठ्ठ मार देती हूँ." चाची टाँगे फ़ैलाती हुई हंस कर बोली. "देख बित्ते भर की बच्ची अपनी मौसी को मुठ्ठ मारने चली है. मारी है क्या कभी किसी की मुठ्ठ तूने?" मुन्नी ने अपनी दो उँगलियाँ चाची की बुर में डालते हुए कहा. "हाँ मौसी, मुझे अपनी सहेली आशा के साथ कर कर के आदत हो गई है."

लगता है कि छोकरी को काफ़ी अनुभव था क्योंकी दो ही मिनिट में चाची सिसकने लगी. मुझ पर झल्ला कर बोली. "तू क्यों चुपचाप पड़ा है रे मूरख, मार मेरी गांड" मैं अब तक यह सब चुपचाप देख रहा था, चाची के गुदा में आधा घुसा हुआ लंड भी कस कर खड़ा हो गया था. मैंने तुरंत उसे फ़िर पूरा अंदर डाला और करवट पर लेटे लेटे पीछे से उनकी गांड मारने लगा.

पाँच मिनिट में चाची ने एक हल्की सी हुंकार भरी और झड़ गई. "मुन्नी रानी, तू तो माहिर है री इस कला में, तेरी फ़्रेम्ड आशा ने खूब सिखाया है तुझे." मुन्नी अपनी उँगलियाँ चाटने लगी. "मौसी, तुम्हारी चूत चुसूँ? बहुत अच्छा लगता है मुझे चूत चूसना. पर अब तक सिर्फ़ आशा की चूसी है. किसी बड़ी जवान औरत की नहीं चूसी. यहाँ आई ही इसलिये हूँ कि तुम्हारी चूत चाटने का मौका मिले." बड़ी सहजता से उसने कहा जैसे मिठाई खाने की बात चल रही हो.

"अरी तो चूस ना, इतनी बह रही है, आधा कटोरी पानी तो आराम से पा जायेगी." चाची ने टाँगे फ़ैला कर कहा. मुन्नी पास आकर अपनी मौसी की गांड में अंदर बाहर होता मेरा लंड देखती हुई बोली. "दो मिनिट मौसी, जरा तेरी गांड मराई तो ठीक से देखूँ." वह बड़ी बड़ी आँखें कर के चाची के गुदा में घुसता निकलता मेरी सूजा हुआ मोटा ताजा लंड देख रही थी. "हाय कितना बड़ा है अनुराग भैया का लंड! दर्द नहीं होता मौसी?"

"अरी होता है पर मजा भी आ रहा है. तू चल यहाँ आ और मेरी बुर में मुंह डाल. कल देख लेना लंड के कारनामे, वे तो दिन भर होते रहते है हमारे यहाँ." कहकर ताव में आयी माया चाची ने अपनी भांजी को पकड कर उसका सिर अपनी जांघों में दबा लिया और उसके मुंह पर अपनी चूत रगड़ने लगी. चाटने और चूमने की आवाज़ें आने लगी और मैं समझ गया कि वह कन्या अपनी मौसी की बुर का प्रसाद पा रही है. मेरा गांड मारना और तीव्र हो गया.

चाची फ़िर झड़ीं और ढीली हो गई. मुन्नी ने चाट चाट कर उनकी बुर साफ़ की और मुंह पोंछती हुई उठ कर बैठ गयी. "बहुत गाढ़ा रस है मौसी, चिपचिपा भी है, आशा का तो पतला है." "अरे जवान होगी तो तुम लोगों का भी शहद हो जायेगा." चाची उसके मम्मे सहलाती हुई बोली. मुन्नी अब काफ़ी जोश में थी. उसकी सांसें जोर से चल रही थी और खुद की ही बुर में वह उंगली कर रही थी.

"अरे मेरी रानी, मुठ्ठ क्यों मारती है. आ मैं चूस दूँ, आखिर मैं भी तो देखूँ मेरी लाडली का स्वाद." चाची बोली. अब तक मैं पागल सा हो गया था. कसमसा कर बोला. "चाची, प्लीज़, अब जरा ठीक से चढ कर गांड मारने दीजिये ना, बहुत मजा आ रहा है."

मुझे पुचकार कर वे बोली. "ठीक है लल्ला, बहुत मेहनत की है, ले मजा कर. मुन्नी बेटी, चल मेरे सामने आकर बैठ और टाँगे फ़ैला." मुन्नी की गोरी टाँगे खोलकर चाची ने उसे अपने सामने तकिये पर बैठा लिया. फ़िर उसके सामने पट लेटकर वह उस गुड़िया की कुंवारी चूत चूसने लगी. मुन्नी तो खुशी से करीब करीब रो पड़ी. "मौसी ऽ ई, कितना अच्छा चूसती हो तुम, हाय, मैं मर गयी."

उधर मैं झट से चाची पर चढ गया और उनका शरीर अपनी बाँहों में भरकर उनके उरोज दबाता हुआ हचक हचक कर गांड मारने लगा. मुन्नी ठीक मेरे सामने थी. उसका चुंबन लेने की बहुत इच्छा हो रही थी. चाची समझ गई. "अरे सामने माल है बेटे, मुंह मार ले, चुंबन ले उसका. पर आज और कुछ नहीं करना उसके साथ." मैंने तुरंत झुक कर उसके होंठों पर होंठ रख दिये. क्या मीठा रसीला चुंबन था, एकदम अनछुआ. मुन्नी ने भी मेरे चुंबन का जवाब दिया. हम बेतहाशा चूमा चाटी करने लगे.

अब मैं झड़ने को आ गया था. आव देखा न ताव, झुककर उस किशोरी के कच्चे स्तन चूम लिये और फ़िर एक किसमिस के दाने जैसा निप्पल मुंह मे लेकर चूसने लगा. मुन्नी सिहर उठी और मेरा मुंह कस कर अपनी छाती पर दबा लिया. अब मैंने पूरे जोर से चाची की गांड मारना शुरू कर दिया. खाट ऐसे चरमराने लगी जैसे टूट ही जायेगी. चाची ने भी नीचे से ही मुन्नी की चूत चूसते हुए अस्पष्ट शब्दों में कहा. "अरे जरा धीरे, खटिया तोड़ेगा क्या."

पर मैं पूरे जोर से लंड पेलता रहा. तभी मुन्नी एक चीख के साथ अपनी मौसी के मुंह में झड़ गयी. मैंने भी उसका निप्पल हल्के से काट खाया और जोर से स्खलित हो गया. उधर शायद चाची भी अपनी चूत में खुद ही उंगली कर के मुठ्ठ मार रही थी. वह भी उसी समय झड़ीं. यह सामूहिक स्खलन ऐसा था कि किसी को उसके बाद होश न रहा. सब लस्त पड़े उस स्वर्गिक आनंद का उपभोग लेने लगे.

मैं तो इतना थक गया था कि लुढक कर लंड चाची के गुदा में से खींचा और ढेर हो गया. कब सो गया पता ही नहीं चला. हाँ शायद वे दो चुदैलें उसके बाद भी संभोग करती रही क्योंकी रात को आधी नींद में भी मुझे हंसने खिलखिलने और चूमा चाटी की आवाज़ें आती रही.

दूसरे दिन हम तीनों नहा धो कर बस दोपहर की राह देख रहे थे कि कब नौकरानी घर जाये और कब हम हमारे खेल शुरू करें. मुन्नी बार बार चाची से चिपटने का बहाना देख रही थी. मेरी ओर भी कनखियों से देख रही थी और मुस्करा रही थी. आज वह बला की खूबसूरत लग रही थी. जान बूझकर एक छोटा स्कर्ट और एकदम तंग ब्लाउज़ पहन कर घूम रही थी जिसमें से उसकी टाँगे और मम्मे साफ़ दिख रहे थे. चाची ने कई बार आँखें दिखा कर हमें डाम्टा पर वे भी मंद मंद मुस्कुरा रही थी. अब तो उनके भी वारे न्यारे थे. दो एकदम किशोर चाहने वाले, एक लड़का यानि मैं और एक लड़की यानि मुन्नी उनके आगे पीछे घूम रहे थे. खट्टे और मीठे दोनों स्वादों का इंतेज़ाम था उनके लिये.

आखिर नौकरानी घर गयी और हमने दौड कर चाची के कमरे में घुस कर दरवाजा लगा लिया. मुन्नी तो जाकर चाची की बाँहों में समा गयी और दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगी. चाची उसे कस कर पकड़े हुए सोफ़े पर बैठ गयी और मुझे भी अपने पास बैठा लिया. अब वे कभी मुन्नी के चुंबन लेती कभी मेरे. आखिर पूरा गरम होने के बाद वे उठीं और कपड़े उतारने लगी. हमें भी उन्हों ने नंगे होने का आदेश दिया.

मैं तो तुरंत नंगा हो गया. तन कर खड़े और उछलते मेरे लंड को देखकर मुन्नी होंठों पर जीभ फ़ेरने लगी. वह थोड़ी शरमा रही थी इसलिये धीरे धीरे कपड़े उतार रही थी. चाची अब तक साड़ी चोली उतार कर अर्धनग्न हो गयी थी. उनके ब्रा और पेन्टी में लिपटे मांसल बदन को देखकर मुन्नी पथरा सी गयी. उनकी ओर घूरती हुई अनजाने में अपने हाथ से अपनी चूत स्कर्ट पर से ही रगड़ने लगी.

चाची उसके पास गई और प्यार से धीरे धीरे उसका स्कर्ट और टॉप निकाला. अंदर मुन्नी एक बड़ी प्यारी सी कॉटन की सिम्पल सफ़ेद ब्रा और चड्डी पहने थी. अधखिले उरोज ब्रा में से झांक रहे थे. उस कच्ची कली के छरहरे गोरे बदन को देखकर हम दोनों ऐसे गरम हुए कि समझ में नहीं आ रहा था कि कौन किसे पहले भोगे. हम दोनों उस बच्ची से लिपट गये और उसके बदन को हाथों से सहलाते हुए और दबाते हुए उसे चूमने लगे. कभी मैं उसके लाल होंठ चूसता तो कभी चाची. झुक कर कभी उसका पेट चूम लेते तो कभी गोरी पतली जांघें.

चाची ने आखिर पहल की और अपनी ब्रा और पेन्टी उतार फेंकी. बोली. "मुन्नी बिटिया, तू नयी है इसलिये यहाँ बैठकर हमारा खेल देख. अपने आप समझ जायेगी कि कैसे क्या करना है." मुन्नी को एक कुर्सी में बिठा कर वे मेरे पास आई और हमारी रति लीला आरम्भ हो गयी.

हमने सब कुछ किया. मैंने पहले कई तरह से चाची की बुर चूसी और फ़िर उन्हें तरह तरह से चोदा. यह देख देख कर मुन्नी सिसकियाँ भरती हुई अपनी ही छातियाँ दबाने लगी और पेन्टी पर से चूत को रगड़ने लगी. आखिर उससे नहीं रहा गया और उसने भी अपने अंतर्वस्त्र उतार दिये. पूर्ण नग्न कमसिन गोरा शरीर ऐसा फ़ब रहा था जैसे रसीली कच्ची गुलाब की कली. लगातार वह अपनी गोरी बुर रगड़ती हुई टाँगे हिला हिला कर हस्तमैथुन करने लगी.

पीछे से जब मैं चाची को चोद रहा था तो इस आसन को देख कर तो मुन्नी ऐसी तुनकी कि उठकर हमारे पास आ गयी और चाची की लटकती चूचियाँ दबाती हुई उन्हें जोर जोर से चूमने लगी. बड़ी मुश्किल से चाची ने उसे वापस भेजा नहीं तो भांजी मौसी के उस चुंबन को देखकर मैं जरूर झड़ जाता.

जब मैं झड़ने के करीब आ गया तब चाची ने खेल रोका. वे कई बार स्खलित हो चुकी थी. मुझे कुर्सी में बिठाकर मेरे चूत रस से गीले लंड को हाथ में लेकर चाटती हुई बोली. "अब आ जा बिटिया, तुझे लंड चखाऊँ, बड़ा रसीला प्यारा लंड है मेरे भतीजे का."


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Wah vakharia Bhai,

Kya mast update post ki he aapne, uttejna aur kamukta se bharpur............

Ab bahut hi jald munni ka number lagne wala he................Anurag ka daso ungli ghee me aur sar kadhayi me he...............

Keep posting Bhai
 
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