Rekha rani
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Awesome update,
Kirti Ki college life ka बेहतरीन विवरण,
Kirti Ki college life ka बेहतरीन विवरण,
हैकिंंग सीखने-समझने की कोशिश कभी फुर्सत होती है तो कर लेता हूँ......... वैसे ये डिपार्टमेंट मेरे बेटे का है, वो टेक्नालजी में रुचि रखता है, जैसे मैं रखता था शुरू मेंसर जी,
जानकार ख़ुशी हुई की आपको मेरी पिछली अपडेट में लिखे एक पिता के जीवन से जुड़े कुछ अंश को पढ़कर अच्छा लगा|
आपने सही कहा की यदि सीखने की इच्छा हो तो इंसान (एकलव्य) पत्थर को भी गुरु (द्रोणाचार्य) मानकर सीख सकता है| अब चूँकि आप प्रोग्रामिंग और इतने सारे कंप्यूटर कोर्सेज में निपूर्ण है तो एक सवाल था आपसे; "क्या आप हैकिंग भी जानते हैं?"![]()
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सही गलत का अंतर आपका मन बहुत अच्छी तरह जानता है......... इसीलिए डर लगता है...... कितना भी अभ्यस्त अपराधी होजब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|
Awesome update
अब तक आपने पढ़ा:
"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
अब आगे:
कहते हैं की अगर ज़िंदगी की ईमारत झूठ की बुनियाद पर तिकी हो तो कभी न कभी ये ईमारत अवश्य ढह जाती है|
शाम के समय पिताजी ने हमसे पूरे दिन का ब्यौरा माँगा तो भैया ने कमान सँभाली और बड़े तरीके से झूठ बोल दिया; "आजका सारा काम मैंने कीर्ति से करवाया है| बैंक में इसने (मैंने) ड्राफ्ट का फॉर्म भरा, फिर
यूनिवर्सिटी की लाइन में लग कर इसने अपना कॉलेज का फॉर्म जमा किया| फिर वहाँ से हम पहुंचे कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और वहाँ मैंने इसका दाखिला करा दिया है| कल सुबह 9 बजे से 11 बजे तक इसकी क्लासेज होंगी| पूरे कंप्यूटर कोर्स की फीस 1,500/- थी तो मैंने 1000/- जमा करा दिए थे| ये रही उसकी रसीद|" भैया ने रसीद पिताजी को दी तो पिताजी ने बड़े गौर से रसीद पढ़ी और फिर अपने बटुए से 500/- निकाल कर माँ को देते हुए बोले; "कल जब तुम कीर्ति को क्लास छोड़ने जाओगी तब ये जमा करा देना और रसीद लेना भूलना मत|"
जैसे ही पिताजी ने माँ को मुझे क्लास छोड़ने जाने की बात कही वैसे ही आदि भैया की हवा टाइट हो गई क्योंकि अब माँ को सारा झूठ पता चलने का खतरा था! वहीं मुझे पता था की मुझे आगे क्या करना है!
दरअसल, मेरी माँ को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था| वो हमेशा भैया को ही आगे करती थीं, लेकिन चूँकि पिताजी ने इसबार उन्हें आगे किया था और भैया ने जाना था ड्यूटी तो मैंने सोच लिया की मैं ही इस काम की जिम्मेदारी ले लूँगी|
अगले दिन माँ मुझे छोड़ने इंस्टिट्यूट पहुँची और इतने सारे बच्चों को देख परेशान हो गईं की वो फीस कहाँ और कैसे जमा कराएँ?! "माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया| मुझे आशीर्वाद देते हुए माँ ने अपने 'स्त्रियों वाले बटुए' की ज़िप खोल कर मोड़ कर रखा हुआ 500/- का नोट निकाला और मुझे दे दिया| "वापस आ कर मैं आपको रसीद दे दूँगी तो आप पिताजी को दे कर कह देना की आपने ही फीस जमा कराई है|" मैंने माँ को मक्खन लगाने के इरादे से कहा तो माँ ने खुश होते हुए कहा की वो मेरे लिए मेरा मन पसंद खाना बना कर तैयार रखेंगी|
भैया ने रात को मुझे चुपके से फीस के बाकी पैसे दे दिए थे, तो मैंने माँ के दिए हुए पैसे उसमें मिलाये और दो रसीद बनवा ली|
चलो भई फीस तो जमा हो गई, लेकिन अब बारी थी क्लास में जाने की| शीशे के एक दरवाजे को खोल कर मैं अंदर पहुँची तो मुझे ठंडी हवा का ऐसा झोंका लगा मानो मैं हिल स्टेशन आ गई हूँ! अब मेरे सामने 4 कमरे थे जिनके दिवार और दरवाजे सब शीशे के थे| चारों कमरों में लगभग 30-40 कंप्यूटर रखे थे और इतने सारे कंप्यूटर देख कर मैं स्तब्ध थी! मेरे स्कूल में बस 10 कंप्यूटर थे और जब हमारा कंप्यूटर का पीरियड होता था तब टीचर एक कंप्यूटर पर 4-5 बच्चों का झुण्ड बैठा देती थीं| यही कारण था की कंप्यूटर कभी मेरे पल्ले पड़ा ही नहीं!
खैर, मुझे नहीं पता था की किस कमरे में जाऊँ इसलिए मैं बाहर खड़ी सोचने लगी| तभी पीछे से एक लड़की आई और उसने मुझे बताया की मुझे कौनसे कमरे में जाना है| मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ 4-5 बच्चों का झुण्ड था| मुझे एक अनजान चेहरे को देख सभी मेरी तरफ देख रहे थे| तभी उस झुण्ड से एक लड़की निकल कर आई और मेरा नाम पुछा|
हम लड़कियों की यही खासियत होती है, हम दूसरी लड़की को देखते ही समझ जाती हैं की उसे हमारी जर्रूरत है और हम बेझिझक उससे दोस्ती करने पहुँच जाती हैं| हमें लड़कों की तरह आइस ब्रेकर (ice breaker) की जरूरत नहीं होती!
इंट्रोडक्शन हुआ तो पता चला की जो लड़की मुझसे बात करने आई थी उसका नाम शशि है तथा उसने भी मेरी ही तरह ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है| संयोग से हम दोनों का कॉलेज एक ही निकला, जिससे वो मेरी अच्छी सहेली बन गई|
कुछ देर बाद टीचर आये और उन्होंने सभी को बेसिक कंप्यूटर पढ़ना शुरू किया| कंप्यूटर के मामले में मैं थी निल-बटे सन्नाटा इसलिए शशि ने मेरी खूब मदद की| कंप्यूटर की इतनी सारी जानकारी पा कर मेरा दिमाग हैंग हो चूका था, उस पर टीचर जी ने हमें टाइपिंग सुधारने के लिए टाइप करने के लिए होमवर्क दे दिया!
घर पहुँच मैंने माँ को बताया की मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखनी है, अब हमारे पास तो कंप्यूटर था नहीं इसलिए हम दोनों माँ-बेटी सोच में लग गए| हम सोच में पड़े थे की तभी अंजलि अपनी मम्मी के साथ मेरे घर पर टपक गई| उसका ये अनअपेक्षित आगमन मेरे लिए बड़ा फलदाई साबित होने वाला था|
तो हुआ कुछ यूँ था की अंजलि की मम्मी को ये समझ नहीं आ रहा था की बारहवीं पास करने के बाद वो अंजलि का क्या करें?! अंजलि के चचेरे भैया ने जो उसपर दिनरात मेहनत की थी उस कारण से अंजलि का बदन अब पूरी तरह से भर गया था! अब एक माँ जानती है की उसकी बेटी के जिस्म में जो बदलाव आ रहे हैं उनका कारण क्या है| आंटी जी ये तो समझ गई थीं की अंजलि के ऊपर कोई तो मेहनत कर रहा है मगर ये मेहनत कर कौन रहा है ये वो नहीं जानती थीं| आंटी जी तो अंजलि की शादी करवाना चाहती थीं ताकि कल को उनकी बेटी की जिस्म की आग के कारण उनका मुँह काला न हो मगर आजकल कौन शहर में पढ़ी बारहवीं पास लड़की को बहु बनाता है? इतनी जल्दी शादी करने वाले माँ-बाप को समाज शक की नज़र से देखता है, सबको लगता है की जर्रूर लड़की का कोई चक्कर चल रहा है तभी उसके माता-पिता जल्दी शादी करवा कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं|
"बहनजी, आपकी बेटी कितनी होनहार है देखो कितने अच्छे नम्बरों से पास हुई| वहीं मेरी ये नालायक लड़की (अंजलि) कितनी मुश्किल से नकल-व्क़्ल मारकर पास हुई है| मैं तो इसकी शादी करवाना चाहती थी मगर इसके पापा कह रहे हैं की लड़की को कम से कम कॉलेज करवा देते हैं| इसलिए मैं सोच रही थी की इस नालायक को कीर्ति बिटिया के साथ ही कॉलेज में डाल दें, कीर्ति के साथ रहेगी तो थोड़ा पढ़ लेगी वरना ये सारा दिन आवारा गर्दी करती रहेगी!" आंटी जी ने जैसे ही मेरा गुणगान किया वैसे ही मेरी माँ का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो गया!
बस फिर क्या था मेरी माँ ने मेरी शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए; "आजकल बारहवीं पास लड़की की शादी होती कहाँ है? ऊपर से दहेज़ इतना माँगते हैं की क्या कहें?! ये सब सोचकर ही कीर्ति के पिताजी ने इसे ओपन कॉलेज में डाला है और थोड़ा बहुत कंप्यूटर सीखने के लिए एक इंस्टिट्यूट में दाखिला भी करवा दिया है| ताकि कल को शादी हो तो कम से कम इसे (मुझे) थोड़ा कंप्यूटर आता हो और ये ससुराल में हमारा नाम न खराब करे|"
अंततः ये निर्णय लिया गया की अंजलि भी मेरे साथ कॉलेज जाएगी पर उसकी मम्मी ने उसे कंप्यूटर कोर्स कराने से ये कह कर मना कर दिया की घर में रखे कंप्यूटर पर तो अंजलि बस फिल्म देखती है तो कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी?!
जैसे ही आंटी जी ने उनके घर में कंप्यूटर का जिक्र किया मैंने अपनी माँ की तरफ देखा और इशारों ही इशारों में उनसे पूछ लिया की क्यों न मैं अंजलि के घर के कंप्यूटर पर ही टाइपिंग सीख लूँ? माँ ने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए फौरन हाँ कर दी|
मैं अंजलि के घर उससे मिलने के बहाने जाने लगी और उसी के कंप्यूटर पर अपनी टाइपिंग की प्रैक्टिस करने लगी|
कुछ दिनों बाद आखिर मेरा कॉलेज खुल गया| रविवार का दिन था और मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी|
मैंने फिल्मों में देखा था की कॉलेज का पहला दिन बड़ा रोमांचकारी होता है| कॉलेज में लड़कियाँ सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनती हैं जैसे की टॉप, जीन्स, स्कर्ट्स आदि| कॉलेज में कुछ मनचले लड़कोण का गैंग होताहै जो लड़कियों को छेड़ते हैं, सीटी बजाते हैं, नए बच्चों की रैगिंग करते हैं| लड़कियों को कैंटीन में रैगिंग के नाम पर नचाते हैं, भोले-भाले लड़कों को रैगिंग के नाम पर दूसरी लड़कियों को प्रोपोज़ करने को कहते हैं|
रैगिंग होगी इससे मैं बहुत डरती थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाई और जैसे 'प्यार किया तो डरना क्या फिल्म' में अरबाज़ खान अपनी बहन की ढाल बन कर कॉलेज के पहले दिन उसके साथ गया था, वैसे ही मैं अपने आदि भैया को अपने साथ कॉलेज छोड़ने के बहाने से ले गई|
बॉलीवुड की फिल्में देख कर ये फितूर मेरे मन में भरा हुआ था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उल्ट!
जब मैं भैया के साथ अपने कॉलेज पहुँची तो वहाँ मेरी उम्र के बच्चे कम और भैया की उम्र के बच्चे...या ये कहूँ की वयस्क ज्यादा थे| एक लड़की तो ऐसी थी जिसने लाल चूड़ा पहना हुआ था, मानो कल ही उसकी शादी हुई हो और वो हनीमून पर न जा कर कॉलेज पढ़ने आई हो| एक पल के लिए तो मन किया की मैं उसके पढ़ाई के प्रति इस कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसे सलाम करूँ मगर बाद में मुझे पता चला की वो भी अंजलि के जैसी थी!
कॉलेज के मैं गेट पर मैंने अपना एनरोलमेंट नंबर लिख कर दस्तखत किया| तभी पीछे से अंजलि आ गई और हमें छोड़ भैया घर वापस चले गए| मैंने जब अंजलि से अपने कॉलेज के सुहाने ख्वाब साझा किये तो वो पेट पकड़ कर हँसने लगी|
अब बारी थी हमारी क्लास ढूँढने की इसलिए हमने दूसरे बच्चों से क्लास के बारे में पुछा| ज्यादातर बच्चे नए थे इसलिए उन्हें भी कुछ नहीं पता था| तभी हमें एक सेकंड ईयर की लड़की यानी की हमारी सीनियर मिली| जब अंजलि ने उससे क्लास के बारे में पुछा तो वो हमें देखकर हँसने लगी! "यहाँ पढ़ाई-वढ़ाई नहीं होती! बस अपने असाइनमेंट पूरे करो और एग्जाम में नकल कर पास हो जाओ|" ये कह कर वो हँसती हुई चली गई|
अपने सीनियर की बात सुन हम दोनों स्तब्ध थीं| हमने फिल्मों में देखा था की कॉलेज में बच्चे क्लास बंक करते हैं मगर यहाँ तो सारे नियम-कानून ही टेढ़े हैं! अंजलि तो कॉलेज बंक करने को कह रही थी मगर मुझे ये सुनिश्चित करना था की वो सीनियर लड़की सच कह रही है वरना पता चला की पहले दिन कॉलेज बंक किया और प्रिंसिपल ने सीधा हमारे घर फ़ोन घुमा दिया!
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमें आखिर एकाउंट्स की क्लास मिल ही गई मगर वहाँ कोई बच्चा था ही नहीं! पूरी क्लास में बस हम दोनों ही थे, अंजलि वापस चलने को कह रही थी मगर मैं ढीठ बनकर क्लास में बैठ ही गई| कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया की सब बच्चे यहाँ सुबह-सुबह गेट पर अपनी अटेंडेंस लगाते हैं और फिर घूमने-फिरने चले जाते हैं| फिर शशि ने हमें अपने दोस्तों से मिलवाया और सभी ने फिल्म देखने जाने का प्लान बना लिया| फिल्म देखने की बात सुन अंजलि ने फ़ट से हाँ कर दी, जबकि मैं पिताजी द्वारा पकड़े जाने के डर से घबराई हुई थी|
जब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|
मैं अपने डर के कारण खामोश थी, तभी मेरे सारे नए दोस्तों ने मुझ फूँक दे कर चने के झाड़ पर चढ़ा दिया और अपने साथ फिल्म दिखाने ले गए| हमारे ग्रुप में 7 लोग थे, जिसमें 6 लड़कियाँ और एक लड़का था| हमारे ग्रुप का नेतृत्व वो लड़का ही कर रहा था| बातों-बातों में अंजलि ने सबसे कह दिया था की मैं बड़ी पढ़ाकू हूँ और आज अपनी ज़िंदगी में पहली बार क्लास बंक कर रही हूँ इसलिए मैं थोड़ी डरी हुई हूँ| "कोई नहीं, दो हफ्ते हमारे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी!" शशि मुझे बिगाड़ने का बीड़ा उठाते हुए बोली|
शशि का मेरे जीवन पर प्रभाव कुछ अधिक ही पड़ा, उसकी सौबत में मैं झूठ बोलना, चालाकी करना और थोड़ा बहुत फैशन सेंस सीख गई थी|
हम सातों पहुँचे बस स्टैंड, चूँकि मैं इस ग्रुप की सबसे नाज़ुक लड़की थी जिसने ऐसा कोई एडवेंचर पहले नहीं किया था इसलिए वो लड़का मेरा कुछ अधिक ही ध्यान रख रहा था| बस आई और बस में उसने सबसे पहले मुझे चढ़ने दिया| फिर उसने अपना रुआब दिखाते हुए हम सभी लड़कियों को सीट दिलवाई| एक दो लड़कों को तो उसने सीट पर से उठा कर सीट दिलवाई| वो लड़के उम्र में छोटे थे इसलिए कुछ कह न पाए और चुपचाप खड़े हो गए|
जब कंडक्टर टिकट देने के लिए आया तो वो लड़का अकड़ कर उस कंडक्टर से बोला; "स्टाफ है!" ये सुनकर कंडक्टर ने भोयें सिकोड़ कर उस लड़के को देखा और अकड़ते हुए पुछा; "काहे का स्टाफ?"
"स्टूडेंट!!!" वो लड़का और चौड़ा होते हुए बोला| उस बस में काफी स्टूटडेंट थे, कहीं सारे स्टूडेंट मिलकर कंडक्टर को पीट न दें इस कर के कंडक्टर आगे बढ़ गया| अब मैंने आजतक पिताजी के साथ जब भी सफर किया है, टिकट ले कर सफर किया है इसलिए मैंने अपनी किताब से पैसे निकालकर कंडक्टर को दिए और टिकट ले ली| जैसे ही मैंने कंडक्टर को पैसे दिए वैसे ही उस लड़के समेत बाकी 6 लड़कियों ने अपना माथा पीट लिया!
जब कंडक्टर चला गया तो सभी रासन-पानी ले कर मुझ पर चढ़ गए; "तुझे क्या जर्रूरत थी अपनी टिकट लेने की? रवि ने सब सेट कर तो दिया था?!" शशि मुझे डाँटते हुए बोली| ओह...मैं तो आपको बताना ही भूल गई की उस लड़के का नाम रवि था|
"ये राजा हरीश चंद्र की पोती है!" अंजलि मुझे ताना मारते हुए बोली|
"तुम सब के लिए ये छोटी सी बात है मगर मेरे लिए नहीं! मस्ती मज़ा करना अलग बात है मगर मुफ्तखोरी मुझे पसंद नहीं| अगर हमारे पास टिकट के पैसे नहीं होते तब ये अकड़ना चलता मगर जब हम पैसे दे सकते हैं तो क्यों उस कंडक्टर का नुक्सान करना? वो बेचारा भी तो नौकरी करता है, उसे भी आगे जवाब देना होता है|
और कल को अगले स्टॉप पर टिकट चेकर चढ़ जाता तो? हम सब को इस टिकट का दस गुना जुरमाना भरना पड़ता! नहीं भरते तो सीधा घर फ़ोन जाता और फिर अगलीबार घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता!" मैंने बड़े सख्त लहजे में अपनी बात रखी| मेरी बात सुन अभी के मुँह बंद हो गए थे, वहीं रवि मेरी बातों से बहुत हैरान था|
जब हमारा स्टॉप आया तो हम सब चुपचाप उतर गए| मुझे लगा की मेरी तीखी बातें सुन अब इन सबको मुझसे दोस्ती नहीं करनी होगी इसलिए मैं अकेली पैदल पारपथ की ओर चलने लगी ताकि दूसरी तरफ पहुँच कर घर के लिए बस पकड़ूँ| लेकिन मुझे अकेले जाते देख रवि बोला; "आप कहाँ जा रहे हो कीर्ति मैडम? मॉल इस तरफ है?"
रवि के टोकने से मैं थोड़ी हैरान थी इसलिए मैं मुड़ कर उसे देखने लगी| तभी शशि मेरे पास आई और मेरा हतः पकड़ कर अपने दोस्तों की तरफ खींच लाई| "ये जो रवि है न इसके परिवार के रूलिंग पार्टी से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं इसलिए ये हर जगह अपनी धौंस दिखाता है| कोई भी काम हो, हर जगह इसकी रंगबाजी चलती है| लेकिन आज से ये सब बंद! आज से हम सब वही कहेंगे जो तू कहेगी!" शशि ने मुझे...एक नई लड़की को अपने ग्रुप की कमान दे दी थी| फिर उसने अपने सभी दोस्ती की तरफ देखा और सभी को चेताते हुए बोली; "और तुम सब भी सुन लो, आज से कोई भी ऐसी लफंडारगिरी नहीं करेगा! आज से बीएस में बिना टिकट लिए ट्रेवल करना बंद!" शशि का आदेश सभी ने राज़ी-ख़ुशी माना और मुझे ग्रुप लीडर की उपाधि दे दी|
उस दिन से 'मेरे दोस्तों' ने कभी बिना टिकट के बस यात्रा नहीं की| ग्रुप में घूमने-घामने के प्लान हम सब आपसी सहमति से बनाते थे मगर मस्तीबाज़ किस हद्द तक करनी है ये बस मैं डिसाइड करती थी!
यूँ घर में बिना बताये दोस्तों के साथ घूमने का ये पहला अनुभव मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था| जहाँ एक तरफ पिताजी द्वारा पकड़े जाने का डर था, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की ख़ुशी भी शामिल थी| इन चंद घंटों के लिए मैं एक आजाद परिंदा थी, जो अपने घर से निकल खुली हवा में साँस ले रहा था|
खैर, मॉल में घुमते हुए हम पहुँचे फिल्म देखने| रवि सबकी टिकट लेने अकेला लाइन में लगा था और बाकी की सभी लड़कियाँ झुण्ड बनाकर गप्पें लगाने में लगी थीं| जब रवि टिकट ले कर आया तो मैंने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ाये|
बजाए पैसे लेने के वो थोड़ा नाराज़ हो गया और बोला; "देख कीर्ति, जैसे बस में 5 रुपये की टिकट के लिए चिन्दीपना तुझे पसंद नहीं उसी तरह ये खाने-पीने और मौज-मस्ती के लिए पैसे लेना मुझे पसंद नहीं! जब मैं पैसे लाना भूल जाऊँ या फिर हम कोई बड़ी पार्टी करेंगे तब सब की तरह तू भी कॉन्ट्री कर दियो| लेकिन जब तक मैं पैसे न माँगूँ तब तक मुझे पैसे ऑफर मत करियो|" रवि ने थोड़ी सख्ती से अपनी बात रखी थी और उसकी ये सख्ती देख कर मैं थोड़ी डर गई थी|
दरअसल, मैं जिस घर के भीतर पली-बढ़ी थी वहाँ हम किसी के पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं करवाते| पिताजी की दिए हुए ये संस्कार मैंने अपने पल्ले बाँधे थे इसीलिए मैं रवि को पैसे दे रही थी|
"ये राजा हरिश्चंद्र स्कूल से ही खुद्दार है!" अंजलि मेरी टाँग खींचते हुए बोली और सभी ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|
"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|
मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|
जारी रहेगा अगले भाग में!
Fantastic update bro anjali fir aa gyi kirti ke sath jrur kush kaand hoga ab
अब तक आपने पढ़ा:
"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
अब आगे:
कहते हैं की अगर ज़िंदगी की ईमारत झूठ की बुनियाद पर तिकी हो तो कभी न कभी ये ईमारत अवश्य ढह जाती है|
शाम के समय पिताजी ने हमसे पूरे दिन का ब्यौरा माँगा तो भैया ने कमान सँभाली और बड़े तरीके से झूठ बोल दिया; "आजका सारा काम मैंने कीर्ति से करवाया है| बैंक में इसने (मैंने) ड्राफ्ट का फॉर्म भरा, फिर
यूनिवर्सिटी की लाइन में लग कर इसने अपना कॉलेज का फॉर्म जमा किया| फिर वहाँ से हम पहुंचे कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और वहाँ मैंने इसका दाखिला करा दिया है| कल सुबह 9 बजे से 11 बजे तक इसकी क्लासेज होंगी| पूरे कंप्यूटर कोर्स की फीस 1,500/- थी तो मैंने 1000/- जमा करा दिए थे| ये रही उसकी रसीद|" भैया ने रसीद पिताजी को दी तो पिताजी ने बड़े गौर से रसीद पढ़ी और फिर अपने बटुए से 500/- निकाल कर माँ को देते हुए बोले; "कल जब तुम कीर्ति को क्लास छोड़ने जाओगी तब ये जमा करा देना और रसीद लेना भूलना मत|"
जैसे ही पिताजी ने माँ को मुझे क्लास छोड़ने जाने की बात कही वैसे ही आदि भैया की हवा टाइट हो गई क्योंकि अब माँ को सारा झूठ पता चलने का खतरा था! वहीं मुझे पता था की मुझे आगे क्या करना है!
दरअसल, मेरी माँ को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था| वो हमेशा भैया को ही आगे करती थीं, लेकिन चूँकि पिताजी ने इसबार उन्हें आगे किया था और भैया ने जाना था ड्यूटी तो मैंने सोच लिया की मैं ही इस काम की जिम्मेदारी ले लूँगी|
अगले दिन माँ मुझे छोड़ने इंस्टिट्यूट पहुँची और इतने सारे बच्चों को देख परेशान हो गईं की वो फीस कहाँ और कैसे जमा कराएँ?! "माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया| मुझे आशीर्वाद देते हुए माँ ने अपने 'स्त्रियों वाले बटुए' की ज़िप खोल कर मोड़ कर रखा हुआ 500/- का नोट निकाला और मुझे दे दिया| "वापस आ कर मैं आपको रसीद दे दूँगी तो आप पिताजी को दे कर कह देना की आपने ही फीस जमा कराई है|" मैंने माँ को मक्खन लगाने के इरादे से कहा तो माँ ने खुश होते हुए कहा की वो मेरे लिए मेरा मन पसंद खाना बना कर तैयार रखेंगी|
भैया ने रात को मुझे चुपके से फीस के बाकी पैसे दे दिए थे, तो मैंने माँ के दिए हुए पैसे उसमें मिलाये और दो रसीद बनवा ली|
चलो भई फीस तो जमा हो गई, लेकिन अब बारी थी क्लास में जाने की| शीशे के एक दरवाजे को खोल कर मैं अंदर पहुँची तो मुझे ठंडी हवा का ऐसा झोंका लगा मानो मैं हिल स्टेशन आ गई हूँ! अब मेरे सामने 4 कमरे थे जिनके दिवार और दरवाजे सब शीशे के थे| चारों कमरों में लगभग 30-40 कंप्यूटर रखे थे और इतने सारे कंप्यूटर देख कर मैं स्तब्ध थी! मेरे स्कूल में बस 10 कंप्यूटर थे और जब हमारा कंप्यूटर का पीरियड होता था तब टीचर एक कंप्यूटर पर 4-5 बच्चों का झुण्ड बैठा देती थीं| यही कारण था की कंप्यूटर कभी मेरे पल्ले पड़ा ही नहीं!
खैर, मुझे नहीं पता था की किस कमरे में जाऊँ इसलिए मैं बाहर खड़ी सोचने लगी| तभी पीछे से एक लड़की आई और उसने मुझे बताया की मुझे कौनसे कमरे में जाना है| मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ 4-5 बच्चों का झुण्ड था| मुझे एक अनजान चेहरे को देख सभी मेरी तरफ देख रहे थे| तभी उस झुण्ड से एक लड़की निकल कर आई और मेरा नाम पुछा|
हम लड़कियों की यही खासियत होती है, हम दूसरी लड़की को देखते ही समझ जाती हैं की उसे हमारी जर्रूरत है और हम बेझिझक उससे दोस्ती करने पहुँच जाती हैं| हमें लड़कों की तरह आइस ब्रेकर (ice breaker) की जरूरत नहीं होती!
इंट्रोडक्शन हुआ तो पता चला की जो लड़की मुझसे बात करने आई थी उसका नाम शशि है तथा उसने भी मेरी ही तरह ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है| संयोग से हम दोनों का कॉलेज एक ही निकला, जिससे वो मेरी अच्छी सहेली बन गई|
कुछ देर बाद टीचर आये और उन्होंने सभी को बेसिक कंप्यूटर पढ़ना शुरू किया| कंप्यूटर के मामले में मैं थी निल-बटे सन्नाटा इसलिए शशि ने मेरी खूब मदद की| कंप्यूटर की इतनी सारी जानकारी पा कर मेरा दिमाग हैंग हो चूका था, उस पर टीचर जी ने हमें टाइपिंग सुधारने के लिए टाइप करने के लिए होमवर्क दे दिया!
घर पहुँच मैंने माँ को बताया की मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखनी है, अब हमारे पास तो कंप्यूटर था नहीं इसलिए हम दोनों माँ-बेटी सोच में लग गए| हम सोच में पड़े थे की तभी अंजलि अपनी मम्मी के साथ मेरे घर पर टपक गई| उसका ये अनअपेक्षित आगमन मेरे लिए बड़ा फलदाई साबित होने वाला था|
तो हुआ कुछ यूँ था की अंजलि की मम्मी को ये समझ नहीं आ रहा था की बारहवीं पास करने के बाद वो अंजलि का क्या करें?! अंजलि के चचेरे भैया ने जो उसपर दिनरात मेहनत की थी उस कारण से अंजलि का बदन अब पूरी तरह से भर गया था! अब एक माँ जानती है की उसकी बेटी के जिस्म में जो बदलाव आ रहे हैं उनका कारण क्या है| आंटी जी ये तो समझ गई थीं की अंजलि के ऊपर कोई तो मेहनत कर रहा है मगर ये मेहनत कर कौन रहा है ये वो नहीं जानती थीं| आंटी जी तो अंजलि की शादी करवाना चाहती थीं ताकि कल को उनकी बेटी की जिस्म की आग के कारण उनका मुँह काला न हो मगर आजकल कौन शहर में पढ़ी बारहवीं पास लड़की को बहु बनाता है? इतनी जल्दी शादी करने वाले माँ-बाप को समाज शक की नज़र से देखता है, सबको लगता है की जर्रूर लड़की का कोई चक्कर चल रहा है तभी उसके माता-पिता जल्दी शादी करवा कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं|
"बहनजी, आपकी बेटी कितनी होनहार है देखो कितने अच्छे नम्बरों से पास हुई| वहीं मेरी ये नालायक लड़की (अंजलि) कितनी मुश्किल से नकल-व्क़्ल मारकर पास हुई है| मैं तो इसकी शादी करवाना चाहती थी मगर इसके पापा कह रहे हैं की लड़की को कम से कम कॉलेज करवा देते हैं| इसलिए मैं सोच रही थी की इस नालायक को कीर्ति बिटिया के साथ ही कॉलेज में डाल दें, कीर्ति के साथ रहेगी तो थोड़ा पढ़ लेगी वरना ये सारा दिन आवारा गर्दी करती रहेगी!" आंटी जी ने जैसे ही मेरा गुणगान किया वैसे ही मेरी माँ का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो गया!
बस फिर क्या था मेरी माँ ने मेरी शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए; "आजकल बारहवीं पास लड़की की शादी होती कहाँ है? ऊपर से दहेज़ इतना माँगते हैं की क्या कहें?! ये सब सोचकर ही कीर्ति के पिताजी ने इसे ओपन कॉलेज में डाला है और थोड़ा बहुत कंप्यूटर सीखने के लिए एक इंस्टिट्यूट में दाखिला भी करवा दिया है| ताकि कल को शादी हो तो कम से कम इसे (मुझे) थोड़ा कंप्यूटर आता हो और ये ससुराल में हमारा नाम न खराब करे|"
अंततः ये निर्णय लिया गया की अंजलि भी मेरे साथ कॉलेज जाएगी पर उसकी मम्मी ने उसे कंप्यूटर कोर्स कराने से ये कह कर मना कर दिया की घर में रखे कंप्यूटर पर तो अंजलि बस फिल्म देखती है तो कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी?!
जैसे ही आंटी जी ने उनके घर में कंप्यूटर का जिक्र किया मैंने अपनी माँ की तरफ देखा और इशारों ही इशारों में उनसे पूछ लिया की क्यों न मैं अंजलि के घर के कंप्यूटर पर ही टाइपिंग सीख लूँ? माँ ने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए फौरन हाँ कर दी|
मैं अंजलि के घर उससे मिलने के बहाने जाने लगी और उसी के कंप्यूटर पर अपनी टाइपिंग की प्रैक्टिस करने लगी|
कुछ दिनों बाद आखिर मेरा कॉलेज खुल गया| रविवार का दिन था और मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी|
मैंने फिल्मों में देखा था की कॉलेज का पहला दिन बड़ा रोमांचकारी होता है| कॉलेज में लड़कियाँ सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनती हैं जैसे की टॉप, जीन्स, स्कर्ट्स आदि| कॉलेज में कुछ मनचले लड़कोण का गैंग होताहै जो लड़कियों को छेड़ते हैं, सीटी बजाते हैं, नए बच्चों की रैगिंग करते हैं| लड़कियों को कैंटीन में रैगिंग के नाम पर नचाते हैं, भोले-भाले लड़कों को रैगिंग के नाम पर दूसरी लड़कियों को प्रोपोज़ करने को कहते हैं|
रैगिंग होगी इससे मैं बहुत डरती थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाई और जैसे 'प्यार किया तो डरना क्या फिल्म' में अरबाज़ खान अपनी बहन की ढाल बन कर कॉलेज के पहले दिन उसके साथ गया था, वैसे ही मैं अपने आदि भैया को अपने साथ कॉलेज छोड़ने के बहाने से ले गई|
बॉलीवुड की फिल्में देख कर ये फितूर मेरे मन में भरा हुआ था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उल्ट!
जब मैं भैया के साथ अपने कॉलेज पहुँची तो वहाँ मेरी उम्र के बच्चे कम और भैया की उम्र के बच्चे...या ये कहूँ की वयस्क ज्यादा थे| एक लड़की तो ऐसी थी जिसने लाल चूड़ा पहना हुआ था, मानो कल ही उसकी शादी हुई हो और वो हनीमून पर न जा कर कॉलेज पढ़ने आई हो| एक पल के लिए तो मन किया की मैं उसके पढ़ाई के प्रति इस कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसे सलाम करूँ मगर बाद में मुझे पता चला की वो भी अंजलि के जैसी थी!
कॉलेज के मैं गेट पर मैंने अपना एनरोलमेंट नंबर लिख कर दस्तखत किया| तभी पीछे से अंजलि आ गई और हमें छोड़ भैया घर वापस चले गए| मैंने जब अंजलि से अपने कॉलेज के सुहाने ख्वाब साझा किये तो वो पेट पकड़ कर हँसने लगी|
अब बारी थी हमारी क्लास ढूँढने की इसलिए हमने दूसरे बच्चों से क्लास के बारे में पुछा| ज्यादातर बच्चे नए थे इसलिए उन्हें भी कुछ नहीं पता था| तभी हमें एक सेकंड ईयर की लड़की यानी की हमारी सीनियर मिली| जब अंजलि ने उससे क्लास के बारे में पुछा तो वो हमें देखकर हँसने लगी! "यहाँ पढ़ाई-वढ़ाई नहीं होती! बस अपने असाइनमेंट पूरे करो और एग्जाम में नकल कर पास हो जाओ|" ये कह कर वो हँसती हुई चली गई|
अपने सीनियर की बात सुन हम दोनों स्तब्ध थीं| हमने फिल्मों में देखा था की कॉलेज में बच्चे क्लास बंक करते हैं मगर यहाँ तो सारे नियम-कानून ही टेढ़े हैं! अंजलि तो कॉलेज बंक करने को कह रही थी मगर मुझे ये सुनिश्चित करना था की वो सीनियर लड़की सच कह रही है वरना पता चला की पहले दिन कॉलेज बंक किया और प्रिंसिपल ने सीधा हमारे घर फ़ोन घुमा दिया!
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमें आखिर एकाउंट्स की क्लास मिल ही गई मगर वहाँ कोई बच्चा था ही नहीं! पूरी क्लास में बस हम दोनों ही थे, अंजलि वापस चलने को कह रही थी मगर मैं ढीठ बनकर क्लास में बैठ ही गई| कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया की सब बच्चे यहाँ सुबह-सुबह गेट पर अपनी अटेंडेंस लगाते हैं और फिर घूमने-फिरने चले जाते हैं| फिर शशि ने हमें अपने दोस्तों से मिलवाया और सभी ने फिल्म देखने जाने का प्लान बना लिया| फिल्म देखने की बात सुन अंजलि ने फ़ट से हाँ कर दी, जबकि मैं पिताजी द्वारा पकड़े जाने के डर से घबराई हुई थी|
जब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|
मैं अपने डर के कारण खामोश थी, तभी मेरे सारे नए दोस्तों ने मुझ फूँक दे कर चने के झाड़ पर चढ़ा दिया और अपने साथ फिल्म दिखाने ले गए| हमारे ग्रुप में 7 लोग थे, जिसमें 6 लड़कियाँ और एक लड़का था| हमारे ग्रुप का नेतृत्व वो लड़का ही कर रहा था| बातों-बातों में अंजलि ने सबसे कह दिया था की मैं बड़ी पढ़ाकू हूँ और आज अपनी ज़िंदगी में पहली बार क्लास बंक कर रही हूँ इसलिए मैं थोड़ी डरी हुई हूँ| "कोई नहीं, दो हफ्ते हमारे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी!" शशि मुझे बिगाड़ने का बीड़ा उठाते हुए बोली|
शशि का मेरे जीवन पर प्रभाव कुछ अधिक ही पड़ा, उसकी सौबत में मैं झूठ बोलना, चालाकी करना और थोड़ा बहुत फैशन सेंस सीख गई थी|
हम सातों पहुँचे बस स्टैंड, चूँकि मैं इस ग्रुप की सबसे नाज़ुक लड़की थी जिसने ऐसा कोई एडवेंचर पहले नहीं किया था इसलिए वो लड़का मेरा कुछ अधिक ही ध्यान रख रहा था| बस आई और बस में उसने सबसे पहले मुझे चढ़ने दिया| फिर उसने अपना रुआब दिखाते हुए हम सभी लड़कियों को सीट दिलवाई| एक दो लड़कों को तो उसने सीट पर से उठा कर सीट दिलवाई| वो लड़के उम्र में छोटे थे इसलिए कुछ कह न पाए और चुपचाप खड़े हो गए|
जब कंडक्टर टिकट देने के लिए आया तो वो लड़का अकड़ कर उस कंडक्टर से बोला; "स्टाफ है!" ये सुनकर कंडक्टर ने भोयें सिकोड़ कर उस लड़के को देखा और अकड़ते हुए पुछा; "काहे का स्टाफ?"
"स्टूडेंट!!!" वो लड़का और चौड़ा होते हुए बोला| उस बस में काफी स्टूटडेंट थे, कहीं सारे स्टूडेंट मिलकर कंडक्टर को पीट न दें इस कर के कंडक्टर आगे बढ़ गया| अब मैंने आजतक पिताजी के साथ जब भी सफर किया है, टिकट ले कर सफर किया है इसलिए मैंने अपनी किताब से पैसे निकालकर कंडक्टर को दिए और टिकट ले ली| जैसे ही मैंने कंडक्टर को पैसे दिए वैसे ही उस लड़के समेत बाकी 6 लड़कियों ने अपना माथा पीट लिया!
जब कंडक्टर चला गया तो सभी रासन-पानी ले कर मुझ पर चढ़ गए; "तुझे क्या जर्रूरत थी अपनी टिकट लेने की? रवि ने सब सेट कर तो दिया था?!" शशि मुझे डाँटते हुए बोली| ओह...मैं तो आपको बताना ही भूल गई की उस लड़के का नाम रवि था|
"ये राजा हरीश चंद्र की पोती है!" अंजलि मुझे ताना मारते हुए बोली|
"तुम सब के लिए ये छोटी सी बात है मगर मेरे लिए नहीं! मस्ती मज़ा करना अलग बात है मगर मुफ्तखोरी मुझे पसंद नहीं| अगर हमारे पास टिकट के पैसे नहीं होते तब ये अकड़ना चलता मगर जब हम पैसे दे सकते हैं तो क्यों उस कंडक्टर का नुक्सान करना? वो बेचारा भी तो नौकरी करता है, उसे भी आगे जवाब देना होता है|
और कल को अगले स्टॉप पर टिकट चेकर चढ़ जाता तो? हम सब को इस टिकट का दस गुना जुरमाना भरना पड़ता! नहीं भरते तो सीधा घर फ़ोन जाता और फिर अगलीबार घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता!" मैंने बड़े सख्त लहजे में अपनी बात रखी| मेरी बात सुन अभी के मुँह बंद हो गए थे, वहीं रवि मेरी बातों से बहुत हैरान था|
जब हमारा स्टॉप आया तो हम सब चुपचाप उतर गए| मुझे लगा की मेरी तीखी बातें सुन अब इन सबको मुझसे दोस्ती नहीं करनी होगी इसलिए मैं अकेली पैदल पारपथ की ओर चलने लगी ताकि दूसरी तरफ पहुँच कर घर के लिए बस पकड़ूँ| लेकिन मुझे अकेले जाते देख रवि बोला; "आप कहाँ जा रहे हो कीर्ति मैडम? मॉल इस तरफ है?"
रवि के टोकने से मैं थोड़ी हैरान थी इसलिए मैं मुड़ कर उसे देखने लगी| तभी शशि मेरे पास आई और मेरा हतः पकड़ कर अपने दोस्तों की तरफ खींच लाई| "ये जो रवि है न इसके परिवार के रूलिंग पार्टी से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं इसलिए ये हर जगह अपनी धौंस दिखाता है| कोई भी काम हो, हर जगह इसकी रंगबाजी चलती है| लेकिन आज से ये सब बंद! आज से हम सब वही कहेंगे जो तू कहेगी!" शशि ने मुझे...एक नई लड़की को अपने ग्रुप की कमान दे दी थी| फिर उसने अपने सभी दोस्ती की तरफ देखा और सभी को चेताते हुए बोली; "और तुम सब भी सुन लो, आज से कोई भी ऐसी लफंडारगिरी नहीं करेगा! आज से बीएस में बिना टिकट लिए ट्रेवल करना बंद!" शशि का आदेश सभी ने राज़ी-ख़ुशी माना और मुझे ग्रुप लीडर की उपाधि दे दी|
उस दिन से 'मेरे दोस्तों' ने कभी बिना टिकट के बस यात्रा नहीं की| ग्रुप में घूमने-घामने के प्लान हम सब आपसी सहमति से बनाते थे मगर मस्तीबाज़ किस हद्द तक करनी है ये बस मैं डिसाइड करती थी!
यूँ घर में बिना बताये दोस्तों के साथ घूमने का ये पहला अनुभव मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था| जहाँ एक तरफ पिताजी द्वारा पकड़े जाने का डर था, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की ख़ुशी भी शामिल थी| इन चंद घंटों के लिए मैं एक आजाद परिंदा थी, जो अपने घर से निकल खुली हवा में साँस ले रहा था|
खैर, मॉल में घुमते हुए हम पहुँचे फिल्म देखने| रवि सबकी टिकट लेने अकेला लाइन में लगा था और बाकी की सभी लड़कियाँ झुण्ड बनाकर गप्पें लगाने में लगी थीं| जब रवि टिकट ले कर आया तो मैंने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ाये|
बजाए पैसे लेने के वो थोड़ा नाराज़ हो गया और बोला; "देख कीर्ति, जैसे बस में 5 रुपये की टिकट के लिए चिन्दीपना तुझे पसंद नहीं उसी तरह ये खाने-पीने और मौज-मस्ती के लिए पैसे लेना मुझे पसंद नहीं! जब मैं पैसे लाना भूल जाऊँ या फिर हम कोई बड़ी पार्टी करेंगे तब सब की तरह तू भी कॉन्ट्री कर दियो| लेकिन जब तक मैं पैसे न माँगूँ तब तक मुझे पैसे ऑफर मत करियो|" रवि ने थोड़ी सख्ती से अपनी बात रखी थी और उसकी ये सख्ती देख कर मैं थोड़ी डर गई थी|
दरअसल, मैं जिस घर के भीतर पली-बढ़ी थी वहाँ हम किसी के पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं करवाते| पिताजी की दिए हुए ये संस्कार मैंने अपने पल्ले बाँधे थे इसीलिए मैं रवि को पैसे दे रही थी|
"ये राजा हरिश्चंद्र स्कूल से ही खुद्दार है!" अंजलि मेरी टाँग खींचते हुए बोली और सभी ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|
"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|
मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|
जारी रहेगा अगले भाग में!
kirti acche bure ka farq bahot acche se samajhti hai..isiliye usne bus me conductor ko apni ticket ke paise de diye..kyunki wo bhi ek gareeb aadmi tha..paise na dene se uska nuksaan ho jata...kirti ke college ke pehle din ka varnan aapne bahot shaandar dhang se kiya hai...Rockstar bhai...aapki lekhan shaili ka jawaab nahi har shabd lajawab hai...behteen update
अब तक आपने पढ़ा:
"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
अब आगे:
कहते हैं की अगर ज़िंदगी की ईमारत झूठ की बुनियाद पर तिकी हो तो कभी न कभी ये ईमारत अवश्य ढह जाती है|
शाम के समय पिताजी ने हमसे पूरे दिन का ब्यौरा माँगा तो भैया ने कमान सँभाली और बड़े तरीके से झूठ बोल दिया; "आजका सारा काम मैंने कीर्ति से करवाया है| बैंक में इसने (मैंने) ड्राफ्ट का फॉर्म भरा, फिर
यूनिवर्सिटी की लाइन में लग कर इसने अपना कॉलेज का फॉर्म जमा किया| फिर वहाँ से हम पहुंचे कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और वहाँ मैंने इसका दाखिला करा दिया है| कल सुबह 9 बजे से 11 बजे तक इसकी क्लासेज होंगी| पूरे कंप्यूटर कोर्स की फीस 1,500/- थी तो मैंने 1000/- जमा करा दिए थे| ये रही उसकी रसीद|" भैया ने रसीद पिताजी को दी तो पिताजी ने बड़े गौर से रसीद पढ़ी और फिर अपने बटुए से 500/- निकाल कर माँ को देते हुए बोले; "कल जब तुम कीर्ति को क्लास छोड़ने जाओगी तब ये जमा करा देना और रसीद लेना भूलना मत|"
जैसे ही पिताजी ने माँ को मुझे क्लास छोड़ने जाने की बात कही वैसे ही आदि भैया की हवा टाइट हो गई क्योंकि अब माँ को सारा झूठ पता चलने का खतरा था! वहीं मुझे पता था की मुझे आगे क्या करना है!
दरअसल, मेरी माँ को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था| वो हमेशा भैया को ही आगे करती थीं, लेकिन चूँकि पिताजी ने इसबार उन्हें आगे किया था और भैया ने जाना था ड्यूटी तो मैंने सोच लिया की मैं ही इस काम की जिम्मेदारी ले लूँगी|
अगले दिन माँ मुझे छोड़ने इंस्टिट्यूट पहुँची और इतने सारे बच्चों को देख परेशान हो गईं की वो फीस कहाँ और कैसे जमा कराएँ?! "माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया| मुझे आशीर्वाद देते हुए माँ ने अपने 'स्त्रियों वाले बटुए' की ज़िप खोल कर मोड़ कर रखा हुआ 500/- का नोट निकाला और मुझे दे दिया| "वापस आ कर मैं आपको रसीद दे दूँगी तो आप पिताजी को दे कर कह देना की आपने ही फीस जमा कराई है|" मैंने माँ को मक्खन लगाने के इरादे से कहा तो माँ ने खुश होते हुए कहा की वो मेरे लिए मेरा मन पसंद खाना बना कर तैयार रखेंगी|
भैया ने रात को मुझे चुपके से फीस के बाकी पैसे दे दिए थे, तो मैंने माँ के दिए हुए पैसे उसमें मिलाये और दो रसीद बनवा ली|
चलो भई फीस तो जमा हो गई, लेकिन अब बारी थी क्लास में जाने की| शीशे के एक दरवाजे को खोल कर मैं अंदर पहुँची तो मुझे ठंडी हवा का ऐसा झोंका लगा मानो मैं हिल स्टेशन आ गई हूँ! अब मेरे सामने 4 कमरे थे जिनके दिवार और दरवाजे सब शीशे के थे| चारों कमरों में लगभग 30-40 कंप्यूटर रखे थे और इतने सारे कंप्यूटर देख कर मैं स्तब्ध थी! मेरे स्कूल में बस 10 कंप्यूटर थे और जब हमारा कंप्यूटर का पीरियड होता था तब टीचर एक कंप्यूटर पर 4-5 बच्चों का झुण्ड बैठा देती थीं| यही कारण था की कंप्यूटर कभी मेरे पल्ले पड़ा ही नहीं!
खैर, मुझे नहीं पता था की किस कमरे में जाऊँ इसलिए मैं बाहर खड़ी सोचने लगी| तभी पीछे से एक लड़की आई और उसने मुझे बताया की मुझे कौनसे कमरे में जाना है| मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ 4-5 बच्चों का झुण्ड था| मुझे एक अनजान चेहरे को देख सभी मेरी तरफ देख रहे थे| तभी उस झुण्ड से एक लड़की निकल कर आई और मेरा नाम पुछा|
हम लड़कियों की यही खासियत होती है, हम दूसरी लड़की को देखते ही समझ जाती हैं की उसे हमारी जर्रूरत है और हम बेझिझक उससे दोस्ती करने पहुँच जाती हैं| हमें लड़कों की तरह आइस ब्रेकर (ice breaker) की जरूरत नहीं होती!
इंट्रोडक्शन हुआ तो पता चला की जो लड़की मुझसे बात करने आई थी उसका नाम शशि है तथा उसने भी मेरी ही तरह ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है| संयोग से हम दोनों का कॉलेज एक ही निकला, जिससे वो मेरी अच्छी सहेली बन गई|
कुछ देर बाद टीचर आये और उन्होंने सभी को बेसिक कंप्यूटर पढ़ना शुरू किया| कंप्यूटर के मामले में मैं थी निल-बटे सन्नाटा इसलिए शशि ने मेरी खूब मदद की| कंप्यूटर की इतनी सारी जानकारी पा कर मेरा दिमाग हैंग हो चूका था, उस पर टीचर जी ने हमें टाइपिंग सुधारने के लिए टाइप करने के लिए होमवर्क दे दिया!
घर पहुँच मैंने माँ को बताया की मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखनी है, अब हमारे पास तो कंप्यूटर था नहीं इसलिए हम दोनों माँ-बेटी सोच में लग गए| हम सोच में पड़े थे की तभी अंजलि अपनी मम्मी के साथ मेरे घर पर टपक गई| उसका ये अनअपेक्षित आगमन मेरे लिए बड़ा फलदाई साबित होने वाला था|
तो हुआ कुछ यूँ था की अंजलि की मम्मी को ये समझ नहीं आ रहा था की बारहवीं पास करने के बाद वो अंजलि का क्या करें?! अंजलि के चचेरे भैया ने जो उसपर दिनरात मेहनत की थी उस कारण से अंजलि का बदन अब पूरी तरह से भर गया था! अब एक माँ जानती है की उसकी बेटी के जिस्म में जो बदलाव आ रहे हैं उनका कारण क्या है| आंटी जी ये तो समझ गई थीं की अंजलि के ऊपर कोई तो मेहनत कर रहा है मगर ये मेहनत कर कौन रहा है ये वो नहीं जानती थीं| आंटी जी तो अंजलि की शादी करवाना चाहती थीं ताकि कल को उनकी बेटी की जिस्म की आग के कारण उनका मुँह काला न हो मगर आजकल कौन शहर में पढ़ी बारहवीं पास लड़की को बहु बनाता है? इतनी जल्दी शादी करने वाले माँ-बाप को समाज शक की नज़र से देखता है, सबको लगता है की जर्रूर लड़की का कोई चक्कर चल रहा है तभी उसके माता-पिता जल्दी शादी करवा कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं|
"बहनजी, आपकी बेटी कितनी होनहार है देखो कितने अच्छे नम्बरों से पास हुई| वहीं मेरी ये नालायक लड़की (अंजलि) कितनी मुश्किल से नकल-व्क़्ल मारकर पास हुई है| मैं तो इसकी शादी करवाना चाहती थी मगर इसके पापा कह रहे हैं की लड़की को कम से कम कॉलेज करवा देते हैं| इसलिए मैं सोच रही थी की इस नालायक को कीर्ति बिटिया के साथ ही कॉलेज में डाल दें, कीर्ति के साथ रहेगी तो थोड़ा पढ़ लेगी वरना ये सारा दिन आवारा गर्दी करती रहेगी!" आंटी जी ने जैसे ही मेरा गुणगान किया वैसे ही मेरी माँ का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो गया!
बस फिर क्या था मेरी माँ ने मेरी शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए; "आजकल बारहवीं पास लड़की की शादी होती कहाँ है? ऊपर से दहेज़ इतना माँगते हैं की क्या कहें?! ये सब सोचकर ही कीर्ति के पिताजी ने इसे ओपन कॉलेज में डाला है और थोड़ा बहुत कंप्यूटर सीखने के लिए एक इंस्टिट्यूट में दाखिला भी करवा दिया है| ताकि कल को शादी हो तो कम से कम इसे (मुझे) थोड़ा कंप्यूटर आता हो और ये ससुराल में हमारा नाम न खराब करे|"
अंततः ये निर्णय लिया गया की अंजलि भी मेरे साथ कॉलेज जाएगी पर उसकी मम्मी ने उसे कंप्यूटर कोर्स कराने से ये कह कर मना कर दिया की घर में रखे कंप्यूटर पर तो अंजलि बस फिल्म देखती है तो कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी?!
जैसे ही आंटी जी ने उनके घर में कंप्यूटर का जिक्र किया मैंने अपनी माँ की तरफ देखा और इशारों ही इशारों में उनसे पूछ लिया की क्यों न मैं अंजलि के घर के कंप्यूटर पर ही टाइपिंग सीख लूँ? माँ ने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए फौरन हाँ कर दी|
मैं अंजलि के घर उससे मिलने के बहाने जाने लगी और उसी के कंप्यूटर पर अपनी टाइपिंग की प्रैक्टिस करने लगी|
कुछ दिनों बाद आखिर मेरा कॉलेज खुल गया| रविवार का दिन था और मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी|
मैंने फिल्मों में देखा था की कॉलेज का पहला दिन बड़ा रोमांचकारी होता है| कॉलेज में लड़कियाँ सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनती हैं जैसे की टॉप, जीन्स, स्कर्ट्स आदि| कॉलेज में कुछ मनचले लड़कोण का गैंग होताहै जो लड़कियों को छेड़ते हैं, सीटी बजाते हैं, नए बच्चों की रैगिंग करते हैं| लड़कियों को कैंटीन में रैगिंग के नाम पर नचाते हैं, भोले-भाले लड़कों को रैगिंग के नाम पर दूसरी लड़कियों को प्रोपोज़ करने को कहते हैं|
रैगिंग होगी इससे मैं बहुत डरती थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाई और जैसे 'प्यार किया तो डरना क्या फिल्म' में अरबाज़ खान अपनी बहन की ढाल बन कर कॉलेज के पहले दिन उसके साथ गया था, वैसे ही मैं अपने आदि भैया को अपने साथ कॉलेज छोड़ने के बहाने से ले गई|
बॉलीवुड की फिल्में देख कर ये फितूर मेरे मन में भरा हुआ था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उल्ट!
जब मैं भैया के साथ अपने कॉलेज पहुँची तो वहाँ मेरी उम्र के बच्चे कम और भैया की उम्र के बच्चे...या ये कहूँ की वयस्क ज्यादा थे| एक लड़की तो ऐसी थी जिसने लाल चूड़ा पहना हुआ था, मानो कल ही उसकी शादी हुई हो और वो हनीमून पर न जा कर कॉलेज पढ़ने आई हो| एक पल के लिए तो मन किया की मैं उसके पढ़ाई के प्रति इस कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसे सलाम करूँ मगर बाद में मुझे पता चला की वो भी अंजलि के जैसी थी!
कॉलेज के मैं गेट पर मैंने अपना एनरोलमेंट नंबर लिख कर दस्तखत किया| तभी पीछे से अंजलि आ गई और हमें छोड़ भैया घर वापस चले गए| मैंने जब अंजलि से अपने कॉलेज के सुहाने ख्वाब साझा किये तो वो पेट पकड़ कर हँसने लगी|
अब बारी थी हमारी क्लास ढूँढने की इसलिए हमने दूसरे बच्चों से क्लास के बारे में पुछा| ज्यादातर बच्चे नए थे इसलिए उन्हें भी कुछ नहीं पता था| तभी हमें एक सेकंड ईयर की लड़की यानी की हमारी सीनियर मिली| जब अंजलि ने उससे क्लास के बारे में पुछा तो वो हमें देखकर हँसने लगी! "यहाँ पढ़ाई-वढ़ाई नहीं होती! बस अपने असाइनमेंट पूरे करो और एग्जाम में नकल कर पास हो जाओ|" ये कह कर वो हँसती हुई चली गई|
अपने सीनियर की बात सुन हम दोनों स्तब्ध थीं| हमने फिल्मों में देखा था की कॉलेज में बच्चे क्लास बंक करते हैं मगर यहाँ तो सारे नियम-कानून ही टेढ़े हैं! अंजलि तो कॉलेज बंक करने को कह रही थी मगर मुझे ये सुनिश्चित करना था की वो सीनियर लड़की सच कह रही है वरना पता चला की पहले दिन कॉलेज बंक किया और प्रिंसिपल ने सीधा हमारे घर फ़ोन घुमा दिया!
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमें आखिर एकाउंट्स की क्लास मिल ही गई मगर वहाँ कोई बच्चा था ही नहीं! पूरी क्लास में बस हम दोनों ही थे, अंजलि वापस चलने को कह रही थी मगर मैं ढीठ बनकर क्लास में बैठ ही गई| कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया की सब बच्चे यहाँ सुबह-सुबह गेट पर अपनी अटेंडेंस लगाते हैं और फिर घूमने-फिरने चले जाते हैं| फिर शशि ने हमें अपने दोस्तों से मिलवाया और सभी ने फिल्म देखने जाने का प्लान बना लिया| फिल्म देखने की बात सुन अंजलि ने फ़ट से हाँ कर दी, जबकि मैं पिताजी द्वारा पकड़े जाने के डर से घबराई हुई थी|
जब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|
मैं अपने डर के कारण खामोश थी, तभी मेरे सारे नए दोस्तों ने मुझ फूँक दे कर चने के झाड़ पर चढ़ा दिया और अपने साथ फिल्म दिखाने ले गए| हमारे ग्रुप में 7 लोग थे, जिसमें 6 लड़कियाँ और एक लड़का था| हमारे ग्रुप का नेतृत्व वो लड़का ही कर रहा था| बातों-बातों में अंजलि ने सबसे कह दिया था की मैं बड़ी पढ़ाकू हूँ और आज अपनी ज़िंदगी में पहली बार क्लास बंक कर रही हूँ इसलिए मैं थोड़ी डरी हुई हूँ| "कोई नहीं, दो हफ्ते हमारे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी!" शशि मुझे बिगाड़ने का बीड़ा उठाते हुए बोली|
शशि का मेरे जीवन पर प्रभाव कुछ अधिक ही पड़ा, उसकी सौबत में मैं झूठ बोलना, चालाकी करना और थोड़ा बहुत फैशन सेंस सीख गई थी|
हम सातों पहुँचे बस स्टैंड, चूँकि मैं इस ग्रुप की सबसे नाज़ुक लड़की थी जिसने ऐसा कोई एडवेंचर पहले नहीं किया था इसलिए वो लड़का मेरा कुछ अधिक ही ध्यान रख रहा था| बस आई और बस में उसने सबसे पहले मुझे चढ़ने दिया| फिर उसने अपना रुआब दिखाते हुए हम सभी लड़कियों को सीट दिलवाई| एक दो लड़कों को तो उसने सीट पर से उठा कर सीट दिलवाई| वो लड़के उम्र में छोटे थे इसलिए कुछ कह न पाए और चुपचाप खड़े हो गए|
जब कंडक्टर टिकट देने के लिए आया तो वो लड़का अकड़ कर उस कंडक्टर से बोला; "स्टाफ है!" ये सुनकर कंडक्टर ने भोयें सिकोड़ कर उस लड़के को देखा और अकड़ते हुए पुछा; "काहे का स्टाफ?"
"स्टूडेंट!!!" वो लड़का और चौड़ा होते हुए बोला| उस बस में काफी स्टूटडेंट थे, कहीं सारे स्टूडेंट मिलकर कंडक्टर को पीट न दें इस कर के कंडक्टर आगे बढ़ गया| अब मैंने आजतक पिताजी के साथ जब भी सफर किया है, टिकट ले कर सफर किया है इसलिए मैंने अपनी किताब से पैसे निकालकर कंडक्टर को दिए और टिकट ले ली| जैसे ही मैंने कंडक्टर को पैसे दिए वैसे ही उस लड़के समेत बाकी 6 लड़कियों ने अपना माथा पीट लिया!
जब कंडक्टर चला गया तो सभी रासन-पानी ले कर मुझ पर चढ़ गए; "तुझे क्या जर्रूरत थी अपनी टिकट लेने की? रवि ने सब सेट कर तो दिया था?!" शशि मुझे डाँटते हुए बोली| ओह...मैं तो आपको बताना ही भूल गई की उस लड़के का नाम रवि था|
"ये राजा हरीश चंद्र की पोती है!" अंजलि मुझे ताना मारते हुए बोली|
"तुम सब के लिए ये छोटी सी बात है मगर मेरे लिए नहीं! मस्ती मज़ा करना अलग बात है मगर मुफ्तखोरी मुझे पसंद नहीं| अगर हमारे पास टिकट के पैसे नहीं होते तब ये अकड़ना चलता मगर जब हम पैसे दे सकते हैं तो क्यों उस कंडक्टर का नुक्सान करना? वो बेचारा भी तो नौकरी करता है, उसे भी आगे जवाब देना होता है|
और कल को अगले स्टॉप पर टिकट चेकर चढ़ जाता तो? हम सब को इस टिकट का दस गुना जुरमाना भरना पड़ता! नहीं भरते तो सीधा घर फ़ोन जाता और फिर अगलीबार घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता!" मैंने बड़े सख्त लहजे में अपनी बात रखी| मेरी बात सुन अभी के मुँह बंद हो गए थे, वहीं रवि मेरी बातों से बहुत हैरान था|
जब हमारा स्टॉप आया तो हम सब चुपचाप उतर गए| मुझे लगा की मेरी तीखी बातें सुन अब इन सबको मुझसे दोस्ती नहीं करनी होगी इसलिए मैं अकेली पैदल पारपथ की ओर चलने लगी ताकि दूसरी तरफ पहुँच कर घर के लिए बस पकड़ूँ| लेकिन मुझे अकेले जाते देख रवि बोला; "आप कहाँ जा रहे हो कीर्ति मैडम? मॉल इस तरफ है?"
रवि के टोकने से मैं थोड़ी हैरान थी इसलिए मैं मुड़ कर उसे देखने लगी| तभी शशि मेरे पास आई और मेरा हतः पकड़ कर अपने दोस्तों की तरफ खींच लाई| "ये जो रवि है न इसके परिवार के रूलिंग पार्टी से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं इसलिए ये हर जगह अपनी धौंस दिखाता है| कोई भी काम हो, हर जगह इसकी रंगबाजी चलती है| लेकिन आज से ये सब बंद! आज से हम सब वही कहेंगे जो तू कहेगी!" शशि ने मुझे...एक नई लड़की को अपने ग्रुप की कमान दे दी थी| फिर उसने अपने सभी दोस्ती की तरफ देखा और सभी को चेताते हुए बोली; "और तुम सब भी सुन लो, आज से कोई भी ऐसी लफंडारगिरी नहीं करेगा! आज से बीएस में बिना टिकट लिए ट्रेवल करना बंद!" शशि का आदेश सभी ने राज़ी-ख़ुशी माना और मुझे ग्रुप लीडर की उपाधि दे दी|
उस दिन से 'मेरे दोस्तों' ने कभी बिना टिकट के बस यात्रा नहीं की| ग्रुप में घूमने-घामने के प्लान हम सब आपसी सहमति से बनाते थे मगर मस्तीबाज़ किस हद्द तक करनी है ये बस मैं डिसाइड करती थी!
यूँ घर में बिना बताये दोस्तों के साथ घूमने का ये पहला अनुभव मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था| जहाँ एक तरफ पिताजी द्वारा पकड़े जाने का डर था, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की ख़ुशी भी शामिल थी| इन चंद घंटों के लिए मैं एक आजाद परिंदा थी, जो अपने घर से निकल खुली हवा में साँस ले रहा था|
खैर, मॉल में घुमते हुए हम पहुँचे फिल्म देखने| रवि सबकी टिकट लेने अकेला लाइन में लगा था और बाकी की सभी लड़कियाँ झुण्ड बनाकर गप्पें लगाने में लगी थीं| जब रवि टिकट ले कर आया तो मैंने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ाये|
बजाए पैसे लेने के वो थोड़ा नाराज़ हो गया और बोला; "देख कीर्ति, जैसे बस में 5 रुपये की टिकट के लिए चिन्दीपना तुझे पसंद नहीं उसी तरह ये खाने-पीने और मौज-मस्ती के लिए पैसे लेना मुझे पसंद नहीं! जब मैं पैसे लाना भूल जाऊँ या फिर हम कोई बड़ी पार्टी करेंगे तब सब की तरह तू भी कॉन्ट्री कर दियो| लेकिन जब तक मैं पैसे न माँगूँ तब तक मुझे पैसे ऑफर मत करियो|" रवि ने थोड़ी सख्ती से अपनी बात रखी थी और उसकी ये सख्ती देख कर मैं थोड़ी डर गई थी|
दरअसल, मैं जिस घर के भीतर पली-बढ़ी थी वहाँ हम किसी के पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं करवाते| पिताजी की दिए हुए ये संस्कार मैंने अपने पल्ले बाँधे थे इसीलिए मैं रवि को पैसे दे रही थी|
"ये राजा हरिश्चंद्र स्कूल से ही खुद्दार है!" अंजलि मेरी टाँग खींचते हुए बोली और सभी ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|
"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|
मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|
जारी रहेगा अगले भाग में!
kirti acche bure ka farq bahot acche se samajhti hai..isiliye usne bus me conductor ko apni ticket ke paise de diye..kyunki wo bhi ek gareeb aadmi tha..paise na dene se uska nuksaan ho jata...kirti ke college ke pehle din ka varnan aapne bahot shaandar dhang se kiya hai...Rockstar bhai...aapki lekhan shaili ka jawaab nahi har shabd lajawab hai...behteen update
अब तक आपने पढ़ा:
"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
अब आगे:
कहते हैं की अगर ज़िंदगी की ईमारत झूठ की बुनियाद पर तिकी हो तो कभी न कभी ये ईमारत अवश्य ढह जाती है|
शाम के समय पिताजी ने हमसे पूरे दिन का ब्यौरा माँगा तो भैया ने कमान सँभाली और बड़े तरीके से झूठ बोल दिया; "आजका सारा काम मैंने कीर्ति से करवाया है| बैंक में इसने (मैंने) ड्राफ्ट का फॉर्म भरा, फिर
यूनिवर्सिटी की लाइन में लग कर इसने अपना कॉलेज का फॉर्म जमा किया| फिर वहाँ से हम पहुंचे कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और वहाँ मैंने इसका दाखिला करा दिया है| कल सुबह 9 बजे से 11 बजे तक इसकी क्लासेज होंगी| पूरे कंप्यूटर कोर्स की फीस 1,500/- थी तो मैंने 1000/- जमा करा दिए थे| ये रही उसकी रसीद|" भैया ने रसीद पिताजी को दी तो पिताजी ने बड़े गौर से रसीद पढ़ी और फिर अपने बटुए से 500/- निकाल कर माँ को देते हुए बोले; "कल जब तुम कीर्ति को क्लास छोड़ने जाओगी तब ये जमा करा देना और रसीद लेना भूलना मत|"
जैसे ही पिताजी ने माँ को मुझे क्लास छोड़ने जाने की बात कही वैसे ही आदि भैया की हवा टाइट हो गई क्योंकि अब माँ को सारा झूठ पता चलने का खतरा था! वहीं मुझे पता था की मुझे आगे क्या करना है!
दरअसल, मेरी माँ को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था| वो हमेशा भैया को ही आगे करती थीं, लेकिन चूँकि पिताजी ने इसबार उन्हें आगे किया था और भैया ने जाना था ड्यूटी तो मैंने सोच लिया की मैं ही इस काम की जिम्मेदारी ले लूँगी|
अगले दिन माँ मुझे छोड़ने इंस्टिट्यूट पहुँची और इतने सारे बच्चों को देख परेशान हो गईं की वो फीस कहाँ और कैसे जमा कराएँ?! "माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया| मुझे आशीर्वाद देते हुए माँ ने अपने 'स्त्रियों वाले बटुए' की ज़िप खोल कर मोड़ कर रखा हुआ 500/- का नोट निकाला और मुझे दे दिया| "वापस आ कर मैं आपको रसीद दे दूँगी तो आप पिताजी को दे कर कह देना की आपने ही फीस जमा कराई है|" मैंने माँ को मक्खन लगाने के इरादे से कहा तो माँ ने खुश होते हुए कहा की वो मेरे लिए मेरा मन पसंद खाना बना कर तैयार रखेंगी|
भैया ने रात को मुझे चुपके से फीस के बाकी पैसे दे दिए थे, तो मैंने माँ के दिए हुए पैसे उसमें मिलाये और दो रसीद बनवा ली|
चलो भई फीस तो जमा हो गई, लेकिन अब बारी थी क्लास में जाने की| शीशे के एक दरवाजे को खोल कर मैं अंदर पहुँची तो मुझे ठंडी हवा का ऐसा झोंका लगा मानो मैं हिल स्टेशन आ गई हूँ! अब मेरे सामने 4 कमरे थे जिनके दिवार और दरवाजे सब शीशे के थे| चारों कमरों में लगभग 30-40 कंप्यूटर रखे थे और इतने सारे कंप्यूटर देख कर मैं स्तब्ध थी! मेरे स्कूल में बस 10 कंप्यूटर थे और जब हमारा कंप्यूटर का पीरियड होता था तब टीचर एक कंप्यूटर पर 4-5 बच्चों का झुण्ड बैठा देती थीं| यही कारण था की कंप्यूटर कभी मेरे पल्ले पड़ा ही नहीं!
खैर, मुझे नहीं पता था की किस कमरे में जाऊँ इसलिए मैं बाहर खड़ी सोचने लगी| तभी पीछे से एक लड़की आई और उसने मुझे बताया की मुझे कौनसे कमरे में जाना है| मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ 4-5 बच्चों का झुण्ड था| मुझे एक अनजान चेहरे को देख सभी मेरी तरफ देख रहे थे| तभी उस झुण्ड से एक लड़की निकल कर आई और मेरा नाम पुछा|
हम लड़कियों की यही खासियत होती है, हम दूसरी लड़की को देखते ही समझ जाती हैं की उसे हमारी जर्रूरत है और हम बेझिझक उससे दोस्ती करने पहुँच जाती हैं| हमें लड़कों की तरह आइस ब्रेकर (ice breaker) की जरूरत नहीं होती!
इंट्रोडक्शन हुआ तो पता चला की जो लड़की मुझसे बात करने आई थी उसका नाम शशि है तथा उसने भी मेरी ही तरह ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है| संयोग से हम दोनों का कॉलेज एक ही निकला, जिससे वो मेरी अच्छी सहेली बन गई|
कुछ देर बाद टीचर आये और उन्होंने सभी को बेसिक कंप्यूटर पढ़ना शुरू किया| कंप्यूटर के मामले में मैं थी निल-बटे सन्नाटा इसलिए शशि ने मेरी खूब मदद की| कंप्यूटर की इतनी सारी जानकारी पा कर मेरा दिमाग हैंग हो चूका था, उस पर टीचर जी ने हमें टाइपिंग सुधारने के लिए टाइप करने के लिए होमवर्क दे दिया!
घर पहुँच मैंने माँ को बताया की मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखनी है, अब हमारे पास तो कंप्यूटर था नहीं इसलिए हम दोनों माँ-बेटी सोच में लग गए| हम सोच में पड़े थे की तभी अंजलि अपनी मम्मी के साथ मेरे घर पर टपक गई| उसका ये अनअपेक्षित आगमन मेरे लिए बड़ा फलदाई साबित होने वाला था|
तो हुआ कुछ यूँ था की अंजलि की मम्मी को ये समझ नहीं आ रहा था की बारहवीं पास करने के बाद वो अंजलि का क्या करें?! अंजलि के चचेरे भैया ने जो उसपर दिनरात मेहनत की थी उस कारण से अंजलि का बदन अब पूरी तरह से भर गया था! अब एक माँ जानती है की उसकी बेटी के जिस्म में जो बदलाव आ रहे हैं उनका कारण क्या है| आंटी जी ये तो समझ गई थीं की अंजलि के ऊपर कोई तो मेहनत कर रहा है मगर ये मेहनत कर कौन रहा है ये वो नहीं जानती थीं| आंटी जी तो अंजलि की शादी करवाना चाहती थीं ताकि कल को उनकी बेटी की जिस्म की आग के कारण उनका मुँह काला न हो मगर आजकल कौन शहर में पढ़ी बारहवीं पास लड़की को बहु बनाता है? इतनी जल्दी शादी करने वाले माँ-बाप को समाज शक की नज़र से देखता है, सबको लगता है की जर्रूर लड़की का कोई चक्कर चल रहा है तभी उसके माता-पिता जल्दी शादी करवा कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं|
"बहनजी, आपकी बेटी कितनी होनहार है देखो कितने अच्छे नम्बरों से पास हुई| वहीं मेरी ये नालायक लड़की (अंजलि) कितनी मुश्किल से नकल-व्क़्ल मारकर पास हुई है| मैं तो इसकी शादी करवाना चाहती थी मगर इसके पापा कह रहे हैं की लड़की को कम से कम कॉलेज करवा देते हैं| इसलिए मैं सोच रही थी की इस नालायक को कीर्ति बिटिया के साथ ही कॉलेज में डाल दें, कीर्ति के साथ रहेगी तो थोड़ा पढ़ लेगी वरना ये सारा दिन आवारा गर्दी करती रहेगी!" आंटी जी ने जैसे ही मेरा गुणगान किया वैसे ही मेरी माँ का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो गया!
बस फिर क्या था मेरी माँ ने मेरी शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए; "आजकल बारहवीं पास लड़की की शादी होती कहाँ है? ऊपर से दहेज़ इतना माँगते हैं की क्या कहें?! ये सब सोचकर ही कीर्ति के पिताजी ने इसे ओपन कॉलेज में डाला है और थोड़ा बहुत कंप्यूटर सीखने के लिए एक इंस्टिट्यूट में दाखिला भी करवा दिया है| ताकि कल को शादी हो तो कम से कम इसे (मुझे) थोड़ा कंप्यूटर आता हो और ये ससुराल में हमारा नाम न खराब करे|"
अंततः ये निर्णय लिया गया की अंजलि भी मेरे साथ कॉलेज जाएगी पर उसकी मम्मी ने उसे कंप्यूटर कोर्स कराने से ये कह कर मना कर दिया की घर में रखे कंप्यूटर पर तो अंजलि बस फिल्म देखती है तो कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी?!
जैसे ही आंटी जी ने उनके घर में कंप्यूटर का जिक्र किया मैंने अपनी माँ की तरफ देखा और इशारों ही इशारों में उनसे पूछ लिया की क्यों न मैं अंजलि के घर के कंप्यूटर पर ही टाइपिंग सीख लूँ? माँ ने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए फौरन हाँ कर दी|
मैं अंजलि के घर उससे मिलने के बहाने जाने लगी और उसी के कंप्यूटर पर अपनी टाइपिंग की प्रैक्टिस करने लगी|
कुछ दिनों बाद आखिर मेरा कॉलेज खुल गया| रविवार का दिन था और मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी|
मैंने फिल्मों में देखा था की कॉलेज का पहला दिन बड़ा रोमांचकारी होता है| कॉलेज में लड़कियाँ सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनती हैं जैसे की टॉप, जीन्स, स्कर्ट्स आदि| कॉलेज में कुछ मनचले लड़कोण का गैंग होताहै जो लड़कियों को छेड़ते हैं, सीटी बजाते हैं, नए बच्चों की रैगिंग करते हैं| लड़कियों को कैंटीन में रैगिंग के नाम पर नचाते हैं, भोले-भाले लड़कों को रैगिंग के नाम पर दूसरी लड़कियों को प्रोपोज़ करने को कहते हैं|
रैगिंग होगी इससे मैं बहुत डरती थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाई और जैसे 'प्यार किया तो डरना क्या फिल्म' में अरबाज़ खान अपनी बहन की ढाल बन कर कॉलेज के पहले दिन उसके साथ गया था, वैसे ही मैं अपने आदि भैया को अपने साथ कॉलेज छोड़ने के बहाने से ले गई|
बॉलीवुड की फिल्में देख कर ये फितूर मेरे मन में भरा हुआ था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उल्ट!
जब मैं भैया के साथ अपने कॉलेज पहुँची तो वहाँ मेरी उम्र के बच्चे कम और भैया की उम्र के बच्चे...या ये कहूँ की वयस्क ज्यादा थे| एक लड़की तो ऐसी थी जिसने लाल चूड़ा पहना हुआ था, मानो कल ही उसकी शादी हुई हो और वो हनीमून पर न जा कर कॉलेज पढ़ने आई हो| एक पल के लिए तो मन किया की मैं उसके पढ़ाई के प्रति इस कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसे सलाम करूँ मगर बाद में मुझे पता चला की वो भी अंजलि के जैसी थी!
कॉलेज के मैं गेट पर मैंने अपना एनरोलमेंट नंबर लिख कर दस्तखत किया| तभी पीछे से अंजलि आ गई और हमें छोड़ भैया घर वापस चले गए| मैंने जब अंजलि से अपने कॉलेज के सुहाने ख्वाब साझा किये तो वो पेट पकड़ कर हँसने लगी|
अब बारी थी हमारी क्लास ढूँढने की इसलिए हमने दूसरे बच्चों से क्लास के बारे में पुछा| ज्यादातर बच्चे नए थे इसलिए उन्हें भी कुछ नहीं पता था| तभी हमें एक सेकंड ईयर की लड़की यानी की हमारी सीनियर मिली| जब अंजलि ने उससे क्लास के बारे में पुछा तो वो हमें देखकर हँसने लगी! "यहाँ पढ़ाई-वढ़ाई नहीं होती! बस अपने असाइनमेंट पूरे करो और एग्जाम में नकल कर पास हो जाओ|" ये कह कर वो हँसती हुई चली गई|
अपने सीनियर की बात सुन हम दोनों स्तब्ध थीं| हमने फिल्मों में देखा था की कॉलेज में बच्चे क्लास बंक करते हैं मगर यहाँ तो सारे नियम-कानून ही टेढ़े हैं! अंजलि तो कॉलेज बंक करने को कह रही थी मगर मुझे ये सुनिश्चित करना था की वो सीनियर लड़की सच कह रही है वरना पता चला की पहले दिन कॉलेज बंक किया और प्रिंसिपल ने सीधा हमारे घर फ़ोन घुमा दिया!
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमें आखिर एकाउंट्स की क्लास मिल ही गई मगर वहाँ कोई बच्चा था ही नहीं! पूरी क्लास में बस हम दोनों ही थे, अंजलि वापस चलने को कह रही थी मगर मैं ढीठ बनकर क्लास में बैठ ही गई| कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया की सब बच्चे यहाँ सुबह-सुबह गेट पर अपनी अटेंडेंस लगाते हैं और फिर घूमने-फिरने चले जाते हैं| फिर शशि ने हमें अपने दोस्तों से मिलवाया और सभी ने फिल्म देखने जाने का प्लान बना लिया| फिल्म देखने की बात सुन अंजलि ने फ़ट से हाँ कर दी, जबकि मैं पिताजी द्वारा पकड़े जाने के डर से घबराई हुई थी|
जब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|
मैं अपने डर के कारण खामोश थी, तभी मेरे सारे नए दोस्तों ने मुझ फूँक दे कर चने के झाड़ पर चढ़ा दिया और अपने साथ फिल्म दिखाने ले गए| हमारे ग्रुप में 7 लोग थे, जिसमें 6 लड़कियाँ और एक लड़का था| हमारे ग्रुप का नेतृत्व वो लड़का ही कर रहा था| बातों-बातों में अंजलि ने सबसे कह दिया था की मैं बड़ी पढ़ाकू हूँ और आज अपनी ज़िंदगी में पहली बार क्लास बंक कर रही हूँ इसलिए मैं थोड़ी डरी हुई हूँ| "कोई नहीं, दो हफ्ते हमारे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी!" शशि मुझे बिगाड़ने का बीड़ा उठाते हुए बोली|
शशि का मेरे जीवन पर प्रभाव कुछ अधिक ही पड़ा, उसकी सौबत में मैं झूठ बोलना, चालाकी करना और थोड़ा बहुत फैशन सेंस सीख गई थी|
हम सातों पहुँचे बस स्टैंड, चूँकि मैं इस ग्रुप की सबसे नाज़ुक लड़की थी जिसने ऐसा कोई एडवेंचर पहले नहीं किया था इसलिए वो लड़का मेरा कुछ अधिक ही ध्यान रख रहा था| बस आई और बस में उसने सबसे पहले मुझे चढ़ने दिया| फिर उसने अपना रुआब दिखाते हुए हम सभी लड़कियों को सीट दिलवाई| एक दो लड़कों को तो उसने सीट पर से उठा कर सीट दिलवाई| वो लड़के उम्र में छोटे थे इसलिए कुछ कह न पाए और चुपचाप खड़े हो गए|
जब कंडक्टर टिकट देने के लिए आया तो वो लड़का अकड़ कर उस कंडक्टर से बोला; "स्टाफ है!" ये सुनकर कंडक्टर ने भोयें सिकोड़ कर उस लड़के को देखा और अकड़ते हुए पुछा; "काहे का स्टाफ?"
"स्टूडेंट!!!" वो लड़का और चौड़ा होते हुए बोला| उस बस में काफी स्टूटडेंट थे, कहीं सारे स्टूडेंट मिलकर कंडक्टर को पीट न दें इस कर के कंडक्टर आगे बढ़ गया| अब मैंने आजतक पिताजी के साथ जब भी सफर किया है, टिकट ले कर सफर किया है इसलिए मैंने अपनी किताब से पैसे निकालकर कंडक्टर को दिए और टिकट ले ली| जैसे ही मैंने कंडक्टर को पैसे दिए वैसे ही उस लड़के समेत बाकी 6 लड़कियों ने अपना माथा पीट लिया!
जब कंडक्टर चला गया तो सभी रासन-पानी ले कर मुझ पर चढ़ गए; "तुझे क्या जर्रूरत थी अपनी टिकट लेने की? रवि ने सब सेट कर तो दिया था?!" शशि मुझे डाँटते हुए बोली| ओह...मैं तो आपको बताना ही भूल गई की उस लड़के का नाम रवि था|
"ये राजा हरीश चंद्र की पोती है!" अंजलि मुझे ताना मारते हुए बोली|
"तुम सब के लिए ये छोटी सी बात है मगर मेरे लिए नहीं! मस्ती मज़ा करना अलग बात है मगर मुफ्तखोरी मुझे पसंद नहीं| अगर हमारे पास टिकट के पैसे नहीं होते तब ये अकड़ना चलता मगर जब हम पैसे दे सकते हैं तो क्यों उस कंडक्टर का नुक्सान करना? वो बेचारा भी तो नौकरी करता है, उसे भी आगे जवाब देना होता है|
और कल को अगले स्टॉप पर टिकट चेकर चढ़ जाता तो? हम सब को इस टिकट का दस गुना जुरमाना भरना पड़ता! नहीं भरते तो सीधा घर फ़ोन जाता और फिर अगलीबार घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता!" मैंने बड़े सख्त लहजे में अपनी बात रखी| मेरी बात सुन अभी के मुँह बंद हो गए थे, वहीं रवि मेरी बातों से बहुत हैरान था|
जब हमारा स्टॉप आया तो हम सब चुपचाप उतर गए| मुझे लगा की मेरी तीखी बातें सुन अब इन सबको मुझसे दोस्ती नहीं करनी होगी इसलिए मैं अकेली पैदल पारपथ की ओर चलने लगी ताकि दूसरी तरफ पहुँच कर घर के लिए बस पकड़ूँ| लेकिन मुझे अकेले जाते देख रवि बोला; "आप कहाँ जा रहे हो कीर्ति मैडम? मॉल इस तरफ है?"
रवि के टोकने से मैं थोड़ी हैरान थी इसलिए मैं मुड़ कर उसे देखने लगी| तभी शशि मेरे पास आई और मेरा हतः पकड़ कर अपने दोस्तों की तरफ खींच लाई| "ये जो रवि है न इसके परिवार के रूलिंग पार्टी से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं इसलिए ये हर जगह अपनी धौंस दिखाता है| कोई भी काम हो, हर जगह इसकी रंगबाजी चलती है| लेकिन आज से ये सब बंद! आज से हम सब वही कहेंगे जो तू कहेगी!" शशि ने मुझे...एक नई लड़की को अपने ग्रुप की कमान दे दी थी| फिर उसने अपने सभी दोस्ती की तरफ देखा और सभी को चेताते हुए बोली; "और तुम सब भी सुन लो, आज से कोई भी ऐसी लफंडारगिरी नहीं करेगा! आज से बीएस में बिना टिकट लिए ट्रेवल करना बंद!" शशि का आदेश सभी ने राज़ी-ख़ुशी माना और मुझे ग्रुप लीडर की उपाधि दे दी|
उस दिन से 'मेरे दोस्तों' ने कभी बिना टिकट के बस यात्रा नहीं की| ग्रुप में घूमने-घामने के प्लान हम सब आपसी सहमति से बनाते थे मगर मस्तीबाज़ किस हद्द तक करनी है ये बस मैं डिसाइड करती थी!
यूँ घर में बिना बताये दोस्तों के साथ घूमने का ये पहला अनुभव मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था| जहाँ एक तरफ पिताजी द्वारा पकड़े जाने का डर था, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की ख़ुशी भी शामिल थी| इन चंद घंटों के लिए मैं एक आजाद परिंदा थी, जो अपने घर से निकल खुली हवा में साँस ले रहा था|
खैर, मॉल में घुमते हुए हम पहुँचे फिल्म देखने| रवि सबकी टिकट लेने अकेला लाइन में लगा था और बाकी की सभी लड़कियाँ झुण्ड बनाकर गप्पें लगाने में लगी थीं| जब रवि टिकट ले कर आया तो मैंने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ाये|
बजाए पैसे लेने के वो थोड़ा नाराज़ हो गया और बोला; "देख कीर्ति, जैसे बस में 5 रुपये की टिकट के लिए चिन्दीपना तुझे पसंद नहीं उसी तरह ये खाने-पीने और मौज-मस्ती के लिए पैसे लेना मुझे पसंद नहीं! जब मैं पैसे लाना भूल जाऊँ या फिर हम कोई बड़ी पार्टी करेंगे तब सब की तरह तू भी कॉन्ट्री कर दियो| लेकिन जब तक मैं पैसे न माँगूँ तब तक मुझे पैसे ऑफर मत करियो|" रवि ने थोड़ी सख्ती से अपनी बात रखी थी और उसकी ये सख्ती देख कर मैं थोड़ी डर गई थी|
दरअसल, मैं जिस घर के भीतर पली-बढ़ी थी वहाँ हम किसी के पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं करवाते| पिताजी की दिए हुए ये संस्कार मैंने अपने पल्ले बाँधे थे इसीलिए मैं रवि को पैसे दे रही थी|
"ये राजा हरिश्चंद्र स्कूल से ही खुद्दार है!" अंजलि मेरी टाँग खींचते हुए बोली और सभी ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|
"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|
मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|
जारी रहेगा अगले भाग में!
अब तक आपने पढ़ा:
"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
अब आगे:
कहते हैं की अगर ज़िंदगी की ईमारत झूठ की बुनियाद पर तिकी हो तो कभी न कभी ये ईमारत अवश्य ढह जाती है|
शाम के समय पिताजी ने हमसे पूरे दिन का ब्यौरा माँगा तो भैया ने कमान सँभाली और बड़े तरीके से झूठ बोल दिया; "आजका सारा काम मैंने कीर्ति से करवाया है| बैंक में इसने (मैंने) ड्राफ्ट का फॉर्म भरा, फिर
यूनिवर्सिटी की लाइन में लग कर इसने अपना कॉलेज का फॉर्म जमा किया| फिर वहाँ से हम पहुंचे कंप्यूटर इंस्टिट्यूट और वहाँ मैंने इसका दाखिला करा दिया है| कल सुबह 9 बजे से 11 बजे तक इसकी क्लासेज होंगी| पूरे कंप्यूटर कोर्स की फीस 1,500/- थी तो मैंने 1000/- जमा करा दिए थे| ये रही उसकी रसीद|" भैया ने रसीद पिताजी को दी तो पिताजी ने बड़े गौर से रसीद पढ़ी और फिर अपने बटुए से 500/- निकाल कर माँ को देते हुए बोले; "कल जब तुम कीर्ति को क्लास छोड़ने जाओगी तब ये जमा करा देना और रसीद लेना भूलना मत|"
जैसे ही पिताजी ने माँ को मुझे क्लास छोड़ने जाने की बात कही वैसे ही आदि भैया की हवा टाइट हो गई क्योंकि अब माँ को सारा झूठ पता चलने का खतरा था! वहीं मुझे पता था की मुझे आगे क्या करना है!
दरअसल, मेरी माँ को इस तरह के काम करने का कोई अनुभव नहीं था| वो हमेशा भैया को ही आगे करती थीं, लेकिन चूँकि पिताजी ने इसबार उन्हें आगे किया था और भैया ने जाना था ड्यूटी तो मैंने सोच लिया की मैं ही इस काम की जिम्मेदारी ले लूँगी|
अगले दिन माँ मुझे छोड़ने इंस्टिट्यूट पहुँची और इतने सारे बच्चों को देख परेशान हो गईं की वो फीस कहाँ और कैसे जमा कराएँ?! "माँ, आप घर जाओ मैं फीस जमा करा दूँगी|" जैसे ही माँ ने ये सुना मेरी माँ का चेहरा एकदम से खिल गया| मुझे आशीर्वाद देते हुए माँ ने अपने 'स्त्रियों वाले बटुए' की ज़िप खोल कर मोड़ कर रखा हुआ 500/- का नोट निकाला और मुझे दे दिया| "वापस आ कर मैं आपको रसीद दे दूँगी तो आप पिताजी को दे कर कह देना की आपने ही फीस जमा कराई है|" मैंने माँ को मक्खन लगाने के इरादे से कहा तो माँ ने खुश होते हुए कहा की वो मेरे लिए मेरा मन पसंद खाना बना कर तैयार रखेंगी|
भैया ने रात को मुझे चुपके से फीस के बाकी पैसे दे दिए थे, तो मैंने माँ के दिए हुए पैसे उसमें मिलाये और दो रसीद बनवा ली|
चलो भई फीस तो जमा हो गई, लेकिन अब बारी थी क्लास में जाने की| शीशे के एक दरवाजे को खोल कर मैं अंदर पहुँची तो मुझे ठंडी हवा का ऐसा झोंका लगा मानो मैं हिल स्टेशन आ गई हूँ! अब मेरे सामने 4 कमरे थे जिनके दिवार और दरवाजे सब शीशे के थे| चारों कमरों में लगभग 30-40 कंप्यूटर रखे थे और इतने सारे कंप्यूटर देख कर मैं स्तब्ध थी! मेरे स्कूल में बस 10 कंप्यूटर थे और जब हमारा कंप्यूटर का पीरियड होता था तब टीचर एक कंप्यूटर पर 4-5 बच्चों का झुण्ड बैठा देती थीं| यही कारण था की कंप्यूटर कभी मेरे पल्ले पड़ा ही नहीं!
खैर, मुझे नहीं पता था की किस कमरे में जाऊँ इसलिए मैं बाहर खड़ी सोचने लगी| तभी पीछे से एक लड़की आई और उसने मुझे बताया की मुझे कौनसे कमरे में जाना है| मैं कमरे में दाखिल हुई तो वहाँ 4-5 बच्चों का झुण्ड था| मुझे एक अनजान चेहरे को देख सभी मेरी तरफ देख रहे थे| तभी उस झुण्ड से एक लड़की निकल कर आई और मेरा नाम पुछा|
हम लड़कियों की यही खासियत होती है, हम दूसरी लड़की को देखते ही समझ जाती हैं की उसे हमारी जर्रूरत है और हम बेझिझक उससे दोस्ती करने पहुँच जाती हैं| हमें लड़कों की तरह आइस ब्रेकर (ice breaker) की जरूरत नहीं होती!
इंट्रोडक्शन हुआ तो पता चला की जो लड़की मुझसे बात करने आई थी उसका नाम शशि है तथा उसने भी मेरी ही तरह ओपन यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया है| संयोग से हम दोनों का कॉलेज एक ही निकला, जिससे वो मेरी अच्छी सहेली बन गई|
कुछ देर बाद टीचर आये और उन्होंने सभी को बेसिक कंप्यूटर पढ़ना शुरू किया| कंप्यूटर के मामले में मैं थी निल-बटे सन्नाटा इसलिए शशि ने मेरी खूब मदद की| कंप्यूटर की इतनी सारी जानकारी पा कर मेरा दिमाग हैंग हो चूका था, उस पर टीचर जी ने हमें टाइपिंग सुधारने के लिए टाइप करने के लिए होमवर्क दे दिया!
घर पहुँच मैंने माँ को बताया की मुझे कंप्यूटर पर टाइपिंग सीखनी है, अब हमारे पास तो कंप्यूटर था नहीं इसलिए हम दोनों माँ-बेटी सोच में लग गए| हम सोच में पड़े थे की तभी अंजलि अपनी मम्मी के साथ मेरे घर पर टपक गई| उसका ये अनअपेक्षित आगमन मेरे लिए बड़ा फलदाई साबित होने वाला था|
तो हुआ कुछ यूँ था की अंजलि की मम्मी को ये समझ नहीं आ रहा था की बारहवीं पास करने के बाद वो अंजलि का क्या करें?! अंजलि के चचेरे भैया ने जो उसपर दिनरात मेहनत की थी उस कारण से अंजलि का बदन अब पूरी तरह से भर गया था! अब एक माँ जानती है की उसकी बेटी के जिस्म में जो बदलाव आ रहे हैं उनका कारण क्या है| आंटी जी ये तो समझ गई थीं की अंजलि के ऊपर कोई तो मेहनत कर रहा है मगर ये मेहनत कर कौन रहा है ये वो नहीं जानती थीं| आंटी जी तो अंजलि की शादी करवाना चाहती थीं ताकि कल को उनकी बेटी की जिस्म की आग के कारण उनका मुँह काला न हो मगर आजकल कौन शहर में पढ़ी बारहवीं पास लड़की को बहु बनाता है? इतनी जल्दी शादी करने वाले माँ-बाप को समाज शक की नज़र से देखता है, सबको लगता है की जर्रूर लड़की का कोई चक्कर चल रहा है तभी उसके माता-पिता जल्दी शादी करवा कर अपना पिंड छुड़वा रहे हैं|
"बहनजी, आपकी बेटी कितनी होनहार है देखो कितने अच्छे नम्बरों से पास हुई| वहीं मेरी ये नालायक लड़की (अंजलि) कितनी मुश्किल से नकल-व्क़्ल मारकर पास हुई है| मैं तो इसकी शादी करवाना चाहती थी मगर इसके पापा कह रहे हैं की लड़की को कम से कम कॉलेज करवा देते हैं| इसलिए मैं सोच रही थी की इस नालायक को कीर्ति बिटिया के साथ ही कॉलेज में डाल दें, कीर्ति के साथ रहेगी तो थोड़ा पढ़ लेगी वरना ये सारा दिन आवारा गर्दी करती रहेगी!" आंटी जी ने जैसे ही मेरा गुणगान किया वैसे ही मेरी माँ का सीना गर्व से फूल कर कुप्पा हो गया!
बस फिर क्या था मेरी माँ ने मेरी शान में कसीदे पढ़ने शुरू कर दिए; "आजकल बारहवीं पास लड़की की शादी होती कहाँ है? ऊपर से दहेज़ इतना माँगते हैं की क्या कहें?! ये सब सोचकर ही कीर्ति के पिताजी ने इसे ओपन कॉलेज में डाला है और थोड़ा बहुत कंप्यूटर सीखने के लिए एक इंस्टिट्यूट में दाखिला भी करवा दिया है| ताकि कल को शादी हो तो कम से कम इसे (मुझे) थोड़ा कंप्यूटर आता हो और ये ससुराल में हमारा नाम न खराब करे|"
अंततः ये निर्णय लिया गया की अंजलि भी मेरे साथ कॉलेज जाएगी पर उसकी मम्मी ने उसे कंप्यूटर कोर्स कराने से ये कह कर मना कर दिया की घर में रखे कंप्यूटर पर तो अंजलि बस फिल्म देखती है तो कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी?!
जैसे ही आंटी जी ने उनके घर में कंप्यूटर का जिक्र किया मैंने अपनी माँ की तरफ देखा और इशारों ही इशारों में उनसे पूछ लिया की क्यों न मैं अंजलि के घर के कंप्यूटर पर ही टाइपिंग सीख लूँ? माँ ने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए फौरन हाँ कर दी|
मैं अंजलि के घर उससे मिलने के बहाने जाने लगी और उसी के कंप्यूटर पर अपनी टाइपिंग की प्रैक्टिस करने लगी|
कुछ दिनों बाद आखिर मेरा कॉलेज खुल गया| रविवार का दिन था और मैं कॉलेज जाने के लिए बहुत उत्साहित थी|
मैंने फिल्मों में देखा था की कॉलेज का पहला दिन बड़ा रोमांचकारी होता है| कॉलेज में लड़कियाँ सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनती हैं जैसे की टॉप, जीन्स, स्कर्ट्स आदि| कॉलेज में कुछ मनचले लड़कोण का गैंग होताहै जो लड़कियों को छेड़ते हैं, सीटी बजाते हैं, नए बच्चों की रैगिंग करते हैं| लड़कियों को कैंटीन में रैगिंग के नाम पर नचाते हैं, भोले-भाले लड़कों को रैगिंग के नाम पर दूसरी लड़कियों को प्रोपोज़ करने को कहते हैं|
रैगिंग होगी इससे मैं बहुत डरती थी इसलिए मैंने अपनी चतुराई दिखाई और जैसे 'प्यार किया तो डरना क्या फिल्म' में अरबाज़ खान अपनी बहन की ढाल बन कर कॉलेज के पहले दिन उसके साथ गया था, वैसे ही मैं अपने आदि भैया को अपने साथ कॉलेज छोड़ने के बहाने से ले गई|
बॉलीवुड की फिल्में देख कर ये फितूर मेरे मन में भरा हुआ था लेकिन हुआ इसके बिलकुल उल्ट!
जब मैं भैया के साथ अपने कॉलेज पहुँची तो वहाँ मेरी उम्र के बच्चे कम और भैया की उम्र के बच्चे...या ये कहूँ की वयस्क ज्यादा थे| एक लड़की तो ऐसी थी जिसने लाल चूड़ा पहना हुआ था, मानो कल ही उसकी शादी हुई हो और वो हनीमून पर न जा कर कॉलेज पढ़ने आई हो| एक पल के लिए तो मन किया की मैं उसके पढ़ाई के प्रति इस कर्तव्यनिष्ठ होने पर उसे सलाम करूँ मगर बाद में मुझे पता चला की वो भी अंजलि के जैसी थी!
कॉलेज के मैं गेट पर मैंने अपना एनरोलमेंट नंबर लिख कर दस्तखत किया| तभी पीछे से अंजलि आ गई और हमें छोड़ भैया घर वापस चले गए| मैंने जब अंजलि से अपने कॉलेज के सुहाने ख्वाब साझा किये तो वो पेट पकड़ कर हँसने लगी|
अब बारी थी हमारी क्लास ढूँढने की इसलिए हमने दूसरे बच्चों से क्लास के बारे में पुछा| ज्यादातर बच्चे नए थे इसलिए उन्हें भी कुछ नहीं पता था| तभी हमें एक सेकंड ईयर की लड़की यानी की हमारी सीनियर मिली| जब अंजलि ने उससे क्लास के बारे में पुछा तो वो हमें देखकर हँसने लगी! "यहाँ पढ़ाई-वढ़ाई नहीं होती! बस अपने असाइनमेंट पूरे करो और एग्जाम में नकल कर पास हो जाओ|" ये कह कर वो हँसती हुई चली गई|
अपने सीनियर की बात सुन हम दोनों स्तब्ध थीं| हमने फिल्मों में देखा था की कॉलेज में बच्चे क्लास बंक करते हैं मगर यहाँ तो सारे नियम-कानून ही टेढ़े हैं! अंजलि तो कॉलेज बंक करने को कह रही थी मगर मुझे ये सुनिश्चित करना था की वो सीनियर लड़की सच कह रही है वरना पता चला की पहले दिन कॉलेज बंक किया और प्रिंसिपल ने सीधा हमारे घर फ़ोन घुमा दिया!
ढूँढ़ते-ढूँढ़ते हमें आखिर एकाउंट्स की क्लास मिल ही गई मगर वहाँ कोई बच्चा था ही नहीं! पूरी क्लास में बस हम दोनों ही थे, अंजलि वापस चलने को कह रही थी मगर मैं ढीठ बनकर क्लास में बैठ ही गई| कुछ देर बाद मुझे बाहर से साक्षी गुजरती हुई नज़र आई, मैंने उसे आवाज़ दे कर अंदर बुलाया और उसका तार्रुफ़ अंजलि से करवाया| शशि ने मुझे बताया की सब बच्चे यहाँ सुबह-सुबह गेट पर अपनी अटेंडेंस लगाते हैं और फिर घूमने-फिरने चले जाते हैं| फिर शशि ने हमें अपने दोस्तों से मिलवाया और सभी ने फिल्म देखने जाने का प्लान बना लिया| फिल्म देखने की बात सुन अंजलि ने फ़ट से हाँ कर दी, जबकि मैं पिताजी द्वारा पकड़े जाने के डर से घबराई हुई थी|
जब हम अपने जीवन में कुछ गलत करने जाते हैं तो दिल में डर की एक धुक-धुक होती है जो हमें रोकती है| जो इस धुक-धुक से डर कर कदम पीछे हटा लेता है वो बच जाता है मगर जो इस धुक-धुक से लड़ कर आगे बढ़ जाता है वो फिर आगे कभी नहीं डरता|
मैं अपने डर के कारण खामोश थी, तभी मेरे सारे नए दोस्तों ने मुझ फूँक दे कर चने के झाड़ पर चढ़ा दिया और अपने साथ फिल्म दिखाने ले गए| हमारे ग्रुप में 7 लोग थे, जिसमें 6 लड़कियाँ और एक लड़का था| हमारे ग्रुप का नेतृत्व वो लड़का ही कर रहा था| बातों-बातों में अंजलि ने सबसे कह दिया था की मैं बड़ी पढ़ाकू हूँ और आज अपनी ज़िंदगी में पहली बार क्लास बंक कर रही हूँ इसलिए मैं थोड़ी डरी हुई हूँ| "कोई नहीं, दो हफ्ते हमारे साथ रहेगी तो सब सीख जाएगी!" शशि मुझे बिगाड़ने का बीड़ा उठाते हुए बोली|
शशि का मेरे जीवन पर प्रभाव कुछ अधिक ही पड़ा, उसकी सौबत में मैं झूठ बोलना, चालाकी करना और थोड़ा बहुत फैशन सेंस सीख गई थी|
हम सातों पहुँचे बस स्टैंड, चूँकि मैं इस ग्रुप की सबसे नाज़ुक लड़की थी जिसने ऐसा कोई एडवेंचर पहले नहीं किया था इसलिए वो लड़का मेरा कुछ अधिक ही ध्यान रख रहा था| बस आई और बस में उसने सबसे पहले मुझे चढ़ने दिया| फिर उसने अपना रुआब दिखाते हुए हम सभी लड़कियों को सीट दिलवाई| एक दो लड़कों को तो उसने सीट पर से उठा कर सीट दिलवाई| वो लड़के उम्र में छोटे थे इसलिए कुछ कह न पाए और चुपचाप खड़े हो गए|
जब कंडक्टर टिकट देने के लिए आया तो वो लड़का अकड़ कर उस कंडक्टर से बोला; "स्टाफ है!" ये सुनकर कंडक्टर ने भोयें सिकोड़ कर उस लड़के को देखा और अकड़ते हुए पुछा; "काहे का स्टाफ?"
"स्टूडेंट!!!" वो लड़का और चौड़ा होते हुए बोला| उस बस में काफी स्टूटडेंट थे, कहीं सारे स्टूडेंट मिलकर कंडक्टर को पीट न दें इस कर के कंडक्टर आगे बढ़ गया| अब मैंने आजतक पिताजी के साथ जब भी सफर किया है, टिकट ले कर सफर किया है इसलिए मैंने अपनी किताब से पैसे निकालकर कंडक्टर को दिए और टिकट ले ली| जैसे ही मैंने कंडक्टर को पैसे दिए वैसे ही उस लड़के समेत बाकी 6 लड़कियों ने अपना माथा पीट लिया!
जब कंडक्टर चला गया तो सभी रासन-पानी ले कर मुझ पर चढ़ गए; "तुझे क्या जर्रूरत थी अपनी टिकट लेने की? रवि ने सब सेट कर तो दिया था?!" शशि मुझे डाँटते हुए बोली| ओह...मैं तो आपको बताना ही भूल गई की उस लड़के का नाम रवि था|
"ये राजा हरीश चंद्र की पोती है!" अंजलि मुझे ताना मारते हुए बोली|
"तुम सब के लिए ये छोटी सी बात है मगर मेरे लिए नहीं! मस्ती मज़ा करना अलग बात है मगर मुफ्तखोरी मुझे पसंद नहीं| अगर हमारे पास टिकट के पैसे नहीं होते तब ये अकड़ना चलता मगर जब हम पैसे दे सकते हैं तो क्यों उस कंडक्टर का नुक्सान करना? वो बेचारा भी तो नौकरी करता है, उसे भी आगे जवाब देना होता है|
और कल को अगले स्टॉप पर टिकट चेकर चढ़ जाता तो? हम सब को इस टिकट का दस गुना जुरमाना भरना पड़ता! नहीं भरते तो सीधा घर फ़ोन जाता और फिर अगलीबार घर से बाहर निकलने को नहीं मिलता!" मैंने बड़े सख्त लहजे में अपनी बात रखी| मेरी बात सुन अभी के मुँह बंद हो गए थे, वहीं रवि मेरी बातों से बहुत हैरान था|
जब हमारा स्टॉप आया तो हम सब चुपचाप उतर गए| मुझे लगा की मेरी तीखी बातें सुन अब इन सबको मुझसे दोस्ती नहीं करनी होगी इसलिए मैं अकेली पैदल पारपथ की ओर चलने लगी ताकि दूसरी तरफ पहुँच कर घर के लिए बस पकड़ूँ| लेकिन मुझे अकेले जाते देख रवि बोला; "आप कहाँ जा रहे हो कीर्ति मैडम? मॉल इस तरफ है?"
रवि के टोकने से मैं थोड़ी हैरान थी इसलिए मैं मुड़ कर उसे देखने लगी| तभी शशि मेरे पास आई और मेरा हतः पकड़ कर अपने दोस्तों की तरफ खींच लाई| "ये जो रवि है न इसके परिवार के रूलिंग पार्टी से बहुत अच्छे ताल्लुकात हैं इसलिए ये हर जगह अपनी धौंस दिखाता है| कोई भी काम हो, हर जगह इसकी रंगबाजी चलती है| लेकिन आज से ये सब बंद! आज से हम सब वही कहेंगे जो तू कहेगी!" शशि ने मुझे...एक नई लड़की को अपने ग्रुप की कमान दे दी थी| फिर उसने अपने सभी दोस्ती की तरफ देखा और सभी को चेताते हुए बोली; "और तुम सब भी सुन लो, आज से कोई भी ऐसी लफंडारगिरी नहीं करेगा! आज से बीएस में बिना टिकट लिए ट्रेवल करना बंद!" शशि का आदेश सभी ने राज़ी-ख़ुशी माना और मुझे ग्रुप लीडर की उपाधि दे दी|
उस दिन से 'मेरे दोस्तों' ने कभी बिना टिकट के बस यात्रा नहीं की| ग्रुप में घूमने-घामने के प्लान हम सब आपसी सहमति से बनाते थे मगर मस्तीबाज़ किस हद्द तक करनी है ये बस मैं डिसाइड करती थी!
यूँ घर में बिना बताये दोस्तों के साथ घूमने का ये पहला अनुभव मेरे लिए बड़ा रोमांचकारी था| जहाँ एक तरफ पिताजी द्वारा पकड़े जाने का डर था, तो वहीं दूसरी तरफ थोड़ी देर के लिए ही सही अपनी ज़िंदगी को अपने अनुसार जीने की ख़ुशी भी शामिल थी| इन चंद घंटों के लिए मैं एक आजाद परिंदा थी, जो अपने घर से निकल खुली हवा में साँस ले रहा था|
खैर, मॉल में घुमते हुए हम पहुँचे फिल्म देखने| रवि सबकी टिकट लेने अकेला लाइन में लगा था और बाकी की सभी लड़कियाँ झुण्ड बनाकर गप्पें लगाने में लगी थीं| जब रवि टिकट ले कर आया तो मैंने अपने पर्स से पैसे निकाल कर उसकी ओर बढ़ाये|
बजाए पैसे लेने के वो थोड़ा नाराज़ हो गया और बोला; "देख कीर्ति, जैसे बस में 5 रुपये की टिकट के लिए चिन्दीपना तुझे पसंद नहीं उसी तरह ये खाने-पीने और मौज-मस्ती के लिए पैसे लेना मुझे पसंद नहीं! जब मैं पैसे लाना भूल जाऊँ या फिर हम कोई बड़ी पार्टी करेंगे तब सब की तरह तू भी कॉन्ट्री कर दियो| लेकिन जब तक मैं पैसे न माँगूँ तब तक मुझे पैसे ऑफर मत करियो|" रवि ने थोड़ी सख्ती से अपनी बात रखी थी और उसकी ये सख्ती देख कर मैं थोड़ी डर गई थी|
दरअसल, मैं जिस घर के भीतर पली-बढ़ी थी वहाँ हम किसी के पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं करवाते| पिताजी की दिए हुए ये संस्कार मैंने अपने पल्ले बाँधे थे इसीलिए मैं रवि को पैसे दे रही थी|
"ये राजा हरिश्चंद्र स्कूल से ही खुद्दार है!" अंजलि मेरी टाँग खींचते हुए बोली और सभी ने खिलखिलाना शुरू कर दिया|
"सॉरी!" मैंने सबसे कान पकड़ कर माफ़ी माँगी और सभी ने मुझे माफ़ कर बारी-बारी गला लगा लिया| सारी लड़कियाँ मुझसे गले लगीं परन्तु रवि में हिम्मत नहीं थी की वो मेरे गले लगे इसलिए उसने अपनी शराफत दिखाते हुए मुझसे हाथ मिलाने के लिए अपना हाथ आगे बढ़ाया| मैंने बिना कोई शर्म किये रवि से हाथ मिलाया और उसे एक बार फिर "सॉरी" कहा जिसके जवाब में रवि मुस्कुरा दिया|
मानु के बाद ये दूसरा लड़का था जिसे मैंने स्पर्श किया हो| ये ख्याल मन में आते ही मानु की याद ताज़ा हो गई|
जारी रहेगा अगले भाग में!
Very nice ipdate bhai
भाग - 11
अब तक आपने पढ़ा:
भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|
मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!
अब आगे:
चाय पीते हुए भैया ने जानबूझ कर बात छेड़ते हुए मुझसे पुछा;
आदि भैया: और कीर्ति? तो आगे क्या सोचा है?
भय का सवाल सुन मैं एकदम सन्न थी, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या जवाब दूँ?
हर बच्चे का एक सपना होता है की उसने बारहवीं पास करने के बाद क्या करना है...क्या बनना है मगर मैंने कभी इतनी दूर की सोची ही नहीं?! मेरी ख्वाइश तो बस दुनिया घूमने-फिरने, सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनने और तरह-तरह का खाना खाने पर खत्म हो जाती थीं|
खैर, भैया के सवाल का जवाब तो देना था इसलिए मैं अपना दिमाग चलाते हुए कुछ सोचने लगी;
मैं: वो...
मैं इसके आगे कुछ सोच पाती और बोलती उससे पहले ही पिताजी मेरी बात काटते हुए बोले;
पिताजी: मेरी बता मानकर ग्यारहवीं में अगर इसने (मैंने) साइंस ली होती तो मैं अपनी बेटी को डॉक्टर बनाता| आँखों का डॉक्टर....फिर धूम-धाम से अपनी कीर्ति की शादी दूसरे डॉक्टर लड़के से करता और फिर ये दोनों शादी के बाद आराम से अपनी प्रैक्टिस करते|
पिताजी ने अपना ख्याली पुलाओ बना कर हमारे सामने परोसा| पिताजी ने अपनी बेटी के लिए बहुत ऊँचा ख्वाब संजोया था मगर उनकी बेटी की मोटी बुद्धि में सइंस का 'स' अक्षर भी नहीं घुसता था| हाँ 'स' से 'सेक्स' शब्द दिमाग में अच्छे से घुस चूका था!
बहरहाल, पिताजी की बात सुन मेरा सर शर्म से झुक गया था क्योंकि मैं अपने पिताजी की ये इच्छा पूरी नहीं कर पाई थी| मुझे शर्मिंदा होने से बचाने के लिए भैया ने बात सँभाली और बोले;
आदि भैया: तेरा ओपन कॉलेज तो शुरू हो जायेगा लेकिन क्लासेज तो तेरी सिर्फ संडे को होंगीं, बाकी के छः दिन क्या करेगी?
मेरे पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं अपने दिमाग को तेज़ दौड़ाने लगी ताकि कोई जवाब दे सकूँ|
वहीं पिताजी को भैया का ये सवाल अटपटा सा लगा इसलिए उन्होंने बात काटते हुए कहा;
पिताजी: क्या करेगी मतलब? घर में अपनी माँ की मदद करेगी, फिर ये बच्चों को पढ़ाती भी तो है|
पिताजी की आवाज़ में थोड़ी खुश्की थी जिसे महसूस कर मैंने डर के मारे चुप्पी साध ली|
आदि भैया: पिताजी, ज़माना बदल गया है| जो बच्चे ओपन से कॉलेज करते हैं वो अपना समय कुछ नया सीखने में लगाते हैं| जैसे आजकल कम्प्यूटर्स का ज़माना है इसलिए हर बच्चा कंप्यूटर कोर्स कर रहा है| ...
भैया ने जैसे ही नए ज़माने का ज्ञान दिया, वैसे ही पिताजी ने भैया की बात काट दी;
पिताजी: कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी ये (मैं)? इसने कौनसा नौकरी करनी है जो तू इसे कंप्यूटर कोर्स करने को कह रहा है?!
पिताजी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोले|
दरअसल पिताजी को शादी से पहले लड़कियों का नौकरी करना पसंद नहीं था| उनका मानना था की शादी से पहले नौकरी करने वाली लड़कियों का दिमाग सातवें आसमान पर होता है| घर की चार दीवारी छोड़ लड़कियाँ बाहर निकल कर बहकने लगती हैं| फैशन परस्त बन पैंट, टॉप, जीन्स और शर्ट जैसे कपडे पहनने लगती हैं| फिर ऐसी लड़कियों का लव मैरिज के चक्कर में पड़ कर खानदान का नाम खराब भी होने का खतरा होता है|
वहीं अगर लड़की शादी के बाद नौकरी करती है तो उस पर उसके परिवार की जिम्मेदारी होती है, उसके पति की जकड़ होती है इसलिए लड़कियाँ किसी गलत रास्ते नहीं भटकतीं| अब इसे मेरे पिताजी की रूढ़िवादी सोच समझिये या फिर एक पिता का अपनी बेटी के लिए चिंता करना, ये आप सब पर है|
खैर, पिताजी के गुस्से को देखते हुए भैया ने अपनी बात का रुख बदला और बड़ी ही चालाकी से अपनी बात आगे रखी;
आदि भैया: पिताजी, मैं नौकरी करने की बात नहीं कह रहा| मैं बस ये कह रहा हूँ की कीर्ति को कंप्यूटर चलाना तक नहीं आता| दसवीं तक इसने (मैंने) जो भी कंप्यूटर सीखा है वो किसी काम का नहीं| न इसे टाइपिंग आती है, न इसे ईमेल करना आता है, न इसे ऑनलाइन बिल भरना आता है, न ऑनलाइन टिकट बुक करना आता है और सिर्फ यही नहीं...ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इसे नहीं आती|
अब कल को इसकी शादी हुई और इसके पति ने इसे कोई काम बोलै तो ये क्या करेगी? मुझे फ़ोन कर के पूछेगी या फिर अपने ससुराल में ताने खायेगी?!
जब बात आती है अपनी बेटी के ससुराल की तो एक पिता बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है, वही कुछ अभी हुआ|
बेमन से ही सही परन्तु अपनी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए पिताजी मान गए|
रात में खाना खाने के बाद माँ-पिताजी अपने कमरे में सोने जा चुके थे| मैं अपने कमरे में बैठी अपने कल्पना के घोड़े दौड़ाने में लगी थी की न्य कॉलेज कैसा होगा? क्या कॉलेज में रैगिंग होगी? कॉलेज में कैसे कपडे पहनते होंगें? कंप्यूटर क्लास में मैं क्या-क्या सीखूँगी?
तभी भैया मेरे कमरे में आये, उन्हें देख मैं फौरन आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| आज हम दोनों भाई-बहन के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान तैर रही थी और ये मनमोहक मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज एक भाई ने अपनी बहन के जीवन को सँवारने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया था, वहीं मेरे चेहरे पर मुस्कान का कारण ये था की मेरी ज़िन्दगी में अब एक नई सुबह उगने वाली थी|
“आजतक तू इस घर रुपी पिंजरे में कैद थी लेकिन कल से तू खुले आसमान में पंख फैला कर अपनी ख़ुशी से उड़ पाएगी| लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखिओ की तू खुले आसमान में उड़ने के चक्कर में पिताजी के बसाये इस घरोंदे को न रोंद दे!” आदि भैया मेरे दोनों गालों पर हाथ रखते हुए बोले|
इस पूरी दुनिया में बस एक मेरे भैया ही तो हैं जो मेरे दिल की हर ख्वाइश समझते थे| बचपन से ले कर अभी तक बस एक वही हैं जो बिना मेरे बोले मेरे मन की बात पढ़ लिया करते थे और फिर कोई न कोई जुगत कर मेरी इच्छा पूरी कर दिया करते हैं| वो जानते थे की मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ और अब मुझे दुनिया देखनी चाहिए, तभी उन्होंने अपनी चालाकी भरी बातों में पिताजी को उलझा कर मेरा घर से अकेले निकलने का इंतज़ाम किया|
भैया की दी हुई ये शिक्षा मैंने अपने पल्ले बाँध ली और कभी ऐसा कोई काम नहीं किया की पिताजी का नाम मिटटी में मिल जाए या मेरे कारण कभी उनका सर शर्म से झुके!
अगली सुबह भैया और मैं सबसे पहले बैंक जाने के लिए निकले| भैया और मैं चढ़े बस में, ये पहलीबार था की मैं पिताजी के अलावा किसी और के साथ बस में चढ़ी हूँ|
जब हम सब पिताजी के साथ कहीं जाते थे तो पिताजी सबसे पहले मुझे और माँ को सीट दिलवाते थे| फिर वो आदि भैया के लिए सीट का इंतज़ाम करते थे और सबसे आखिर में स्वयं के लिए सीट ढूँढ़ते थे| कई बार तो सीट न मिलने पर पिताजी कंडक्टर की बगल में बैठ कर सफर करते थे और एक बार तो पिताजी को जो बस का गियर बॉक्स होता है उस पर बैठ कर भी यात्रा करनी पड़ी थी|
एक पिता का सबसे पहला दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है| वह सबसे पहले अपने परिवार के सुख और आराम के लिए मेहनत करता है तथा अंत में अपने लिए बैठने की कोई छोटी सी जगह तलाशता है|
खैर, भैया के साथ बस की ये यात्रा बहुत मजेदार थी क्योंकि भैया मुझे कौनसी बस कहाँ जाती है, बस में कैसे अकेले चढ़ना-उतरना है, कैसे बस में खुद का ध्यान रखना है आदि जैसी ज्ञान भरी बातें समझा रहे थे|
अंततः हम बैंक पहुँच ही गए| हर सरकारी नौकरशाह की तरह मेरे पिताजी का भी अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में था और इस बैंक को निरंतर काल तक व्यस्त रहने का श्राप मिला है! अब अगर ग्राहक का काम करने की बजाए उसे एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौडाओगे, बारह बजे लंच टाइम कह ग्राहक को भगाओगे तो बैंक में भीड़ बढ़ेगी ही न?! ऊपर से बैंक में आते हैं वो बूढ़े-बुजुर्ग जिनको घर में बस पासबुक प्रिंट कराने के लिए रखा होता है| ऊपर से ये बूढ़े अंकल लोग अपने घर की ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों की भी पासबुक इकठ्ठा कर बैंक लाते हैं!
मैं आज पहलीबार बैंक आई थी और इतने लोगों को लाइन में लगे देख मुझे कुछ समझ ही नहीं आया! "उधर ड्राफ्ट का फॉर्म रखा होगा, उसे भर तब तक मैं लाइन में लगता हूँ|" आदि भैया ने मुझे आदेश दिया और खुद जा कर लाइन में लग गए| टेबल पर से फॉर्म ले कर मैंने सुन्दर-सुन्दर हैंडराइटिंग में फॉर्म भरा और फटाफट भैया को फॉर्म दे दिया| अब हमें करना था इंतज़ार और वो भी 10-5 मिनट नहीं बल्कि पूरे 1 घंटे का इंतज़ार! अब मैंने चेक तो देखा था मगर ड्राफ्ट मैंने पहले कभी नहीं देखा था| मुझे लगा था की ड्राफ्ट कोई बहुत बड़ी चीज़ होगी मगर जब ड्राफ्ट मेरे हतः में आया तो ये लगभग चेक जैसा ही था!
ड्राफ्ट ले कर हम पहुँचे मेरी यूनिवर्सिटी और यहाँ तो बैंक से भी ज्यादा लम्बी लाइन थी! परन्तु एक अंतर् था, जहाँ बैंक में अधिकतर लोग वृद्ध थे, वहीं यूनिवर्सिटी की लाइन में सब मेरी ही उम्र की लड़कियाँ और लड़के थे| इस बार भैया ने मुझे लाइन में लगने को कहा और खुद पीछे आराम से खड़े हो कर दूसरी लड़कियों को देखने लगे! देखा जाए तो ठीक ही था, फॉर्म मेरा...कॉलेज मेरा...तो जमा भी तो मैं ही कराऊँगी न?! बैंक के मुक़ाबले यहाँ काम थोड़ी रफ़्तार से हो रहा था इसलिए लगभग पौने घंटे में मेरा फॉर्म जमा हो गया| जब मैं फॉर्म भर कर आई तो भैया मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले; "लाइन में खड़े हो कर फॉर्म भरने की आदत डाल ले क्योंकि तेरे असाइनमेंट...तेरे एग्जाम फॉर्म सब ऐसे ही लाइन में लग कर जमा होंगें|" मुझे पहले ही अपना फॉर्म खुद भरकर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए मैंने भैया की दी इस नसीहत को अपने पल्ले बाँध लिया|
कॉलेज के बाद अब बारी थी मेरे कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की| मेरे अनुसार तो ये साडी सी कंप्यूटर क्लास होने वाली थी जिसमें मुझे कंप्यूटर चलाना सीखना था मगर आदि भैया ने कुछ और ही सोच रखा था|
हम दोनों पहुँचे एक इंस्टिट्यूट के बाहर जहाँ ढेरों बच्चे अंदर जा और बाहर आ रहे थे| इतने बच्चों को देख जो पहला ख्याल मेरे दिमाग में नाय वो था; 'क्या हमारी स्टेट के सारे बच्चे मेरी तरह निरे बुद्धू हैं जो सारे के सारे यहाँ कंप्यूटर चलाना सीखने आये हैं? अब मेरे घर में तो कंप्यूटर है नहीं तो मेरा कंप्यूटर चलाना तो सीखना तो बनता है मगर इन सबके घर में कंप्यूटर नहीं?' मैं अभी अपने ख्याल में डूबी थी की भैया ने मुझे अंदर चलने को कहा|
अंदर पहुँच भैया ने रिसेप्शन पर बैठी एक सुन्दर सी लड़की से बात की और उस लड़की ने भैया को एक फॉर्म भरने को दे दिया| भैया वो फॉर्म मेरे पास ले आये और मुझे भरने को कहा| उस फॉर्म में मुझे अपने दसवीं तथा बारहवीं के नंबर भरने थे| फॉर्म भरते हुए मैंने देख उसमे कुछ courses लिखे हैं जैसे; 'C++, Java, Tally, Microsoft office आदि|' मैंने उन courses को पढ़ा तो सही मगर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा| अभी हमने फॉर्म भरा ही था की हमारे लिए एक लड़का पानी ले आया| मैं अपनी इस आवभगत को देख बड़ी खुश थी, ऐसा लगता था मानो मैं कोई मुख्य अतिथि हूँ| हमें पानी पिला कर वो लड़का मेरा फॉर्म अपने साथ ले गया| 5 मिनट बाद हमें एक केबिन में बुलाया गया, इस केबिन में एक सुन्दर सी लड़की बैठी थी| उसने हमें बैठने को कहा तथा भैया से बात करने लगी|
"हम ऑफिस असिस्टेंट के कोर्स के बारे में जानना चाहते हैं|" भैया ने बायत शुरू करते हुए कहा| उस लड़की ने हमें उस कोर्स के बारे में सब बताया पर जब उसने कहा की इस कोर्स की फीस पाँच हज़ार है तो मेरे पॉँव तले ज़मीन खिसक गई! वहीं भैया ने हार न मानते हुए उस लड़की से फीस कम करवाने में लग गए| करीब 10 मिनट की बातचीत के बाद वो लड़की पाँच सौ रुपये कम करने को मान गई| भैया ने उसी वाट उस लड़की को हज़ार रुपये एडवांस दे दिए तथा एक शर्त रख दी; "आप कोर्स की फीस पंद्रह सौ की रसीद बनाइयेगा| बाकी की फीस की रसीद अलग बना दीजियेगा|" मैं समझ गई की भैया ये पंद्रह सौ वाली रसीद पिताजी को दिखायेंगे और बाकी के पैसे वो खुद अपनी जेब से भरेंगे|
उस इंस्टिट्यूट से जैसे ही हम बाहर निकले और दो कदम चल कर बाहर सड़क की ओर बढे की 3-4 लड़कों का एक झुण्ड दौड़ता हुआ हमारी तरफ आया| इतने सारे लड़कों को अपनी ओर यूँ दौड़ कर आते देख मैं एकदम से घबरा गई और भैया के पीछे छुप गई| वहीं दूसरी तरफ भैया एकदम सतर्क हो गए थे और अकर्मक मुद्रा में थे| लेकिन बात कुछ और ही निकली!
ये सब लड़के अलग-अलग इंस्टिट्यूट के थे और हमें अपने-अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने को कह रहे थे ताकि मेरी दी हुई फीस से उनकी थोड़ी कमिशन बन जाए!
भैया ने उन्हें समझा दिया की हमने दाखिला ले लिया है| ये सुनकर वो सारे लड़के अपना दूसरा ग्राहक ढूँढने दूसरी ओर दौड़ गए! इस प्रकरण ने मुझे सिखाया की इस दुनिया में लोग दो रोटी कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते हैं|
खैर, मेरा कॉलेज का फॉर्म भरा जा चूका था, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में भी दाखिला हो चूका था| अब बारी थी इस ख़ुशी को मनाने की इसलिए भैया और मैं पहुँचे एक अच्छे रेस्टोरेंट में| भैया ने सीधा पिज़्ज़ा आर्डर किया और जबतक पिज़्ज़ा आता भैया मुझे समझाने लगे; "तू अब बड़ी हो गई है और अब समय है की तू पिताजी की छत्र छाया से निकल खुद अपनी जिम्मेदारियाँ उठाये| पिताजी की नज़र में तू आज भी एक छोटी बच्ची है...उनकी प्यारी सी नन्ही चिड़िया इसीलिये वो अपनी इस प्यारी चिड़िया को दुनिया में बेस चील-कौओं की नज़र से बचाने में लगे रहते हैं| उनके लिए एक बार तेरा घर बीएस जाए तो वो चिंता मुक्त हो जाएंगे|
लेकिन मैं जानता हूँ की तू अब बच्ची नहीं रही, तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अपने जीवन को सही रास्ते की ओर ले जा सके| जब तूने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था न, मैं तभी समझ गया था की तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अब खुद को अच्छे से सँभाल सके| देख मैं जानता हूँ की तुझे मेरे और पिताजी पर निर्भर नहीं रहना, तुझे अपना अलग रास्ता बनाना है...अपना जीवन अपने अनुसार जीना है और इस सब के लये चाहिए होता है पैसा! अब ये पैसा तुझे पिताजी से तो मिल नहीं सकता इसलिए तुझे खुद पैसे कमाने होंगें ताकि जबतक तेरी शादी न हो तू दुनिया अपने नज़रिये से देख सके...जी सके|
तुझे याद है जब पहलीबार तुझे बच्चों को पढ़ाने की फीस मिली थी? उस दिन तू कितनी खुश थी...इतनी खुस की तेरी आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भीग गई थीं| जानती है वो ख़ुशी...वो तेरी नम आँखें किस बात की सूचक थीं? वो ख़ुशी थी तेरी मेहनत से कमाए पैसों को हाथ में लेने की ख़ुशी| उस वक़्त मैंने महसूस कर लिया था की तुझे घर पर बँध कर नहीं रहना, तुझे नौकरी करनी है...पैसे कमाने हैं|
बस उसी वक़्त मैंने सोच लिया था की मेरी बहन अपनी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीएगी और अपने उसी फैसले पर अम्ल करते हुए मैं पिताजी के साथ छल कर रहा हूँ|
तेरी एकाउंटेंसी अच्छी है इसलिए मैंने तेरे लिए ऑफिस असिस्टेंट का कोर्स सेलेक्ट किया| इस कोर्स में तुझे एकाउंटेंसी कंप्यूटर में कैसे की जाती है ये सिखाया जायेगा| जब तू ये कोर्स पूरा कर लेगी तब मैं तेरी कहीं छोटी-मोटी जॉब लगवा दूँगा, जिससे तुझे एक्सपीरियंस मिलेगा| जब तेरा कॉलेज पूरा हो जायेगा न तब इसी एक्सपीरियंस के बलबूते पर तुझे अच्छी जॉब मिलेगी| लेकिन तबतक ये सब तुझे पिताजी से छुपाना होगा, उनकी नज़र में तू बस बेसिक कंप्यूटर सीख रही है| अगर तूने उन्हें सब सच बता दिया तो पिताजी बहुत गुस्सा होंगें और हम दोनों पर कभी भरोसा नहीं करेंगे|” सारा सच जानकार मेरे मन में भैया के लिए प्यार उमड़ आया| मैं एकदम से भावुक हो कर खड़ी हुई और भैया के गले लग सिसकने लगी| "थ...थैंक...यू...भैया....! आ..आपने मेरे लिए..." इससे ज्यादा मैं कुछ न कह पाई और मेरा रोना तेज़ हो गया|
"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
जारी रहेगा अगले भाग में!