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Incest काला इश्क़ दूसरा अध्याय: एक बग़ावत

Rockstar_Rocky

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भाग - 11

अब तक आपने पढ़ा:


भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!

अब आगे:

चाय
पीते हुए भैया ने जानबूझ कर बात छेड़ते हुए मुझसे पुछा;

आदि भैया: और कीर्ति? तो आगे क्या सोचा है?

भय का सवाल सुन मैं एकदम सन्न थी, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या जवाब दूँ?



हर बच्चे का एक सपना होता है की उसने बारहवीं पास करने के बाद क्या करना है...क्या बनना है मगर मैंने कभी इतनी दूर की सोची ही नहीं?! मेरी ख्वाइश तो बस दुनिया घूमने-फिरने, सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनने और तरह-तरह का खाना खाने पर खत्म हो जाती थीं|

खैर, भैया के सवाल का जवाब तो देना था इसलिए मैं अपना दिमाग चलाते हुए कुछ सोचने लगी;

मैं: वो...

मैं इसके आगे कुछ सोच पाती और बोलती उससे पहले ही पिताजी मेरी बात काटते हुए बोले;

पिताजी: मेरी बता मानकर ग्यारहवीं में अगर इसने (मैंने) साइंस ली होती तो मैं अपनी बेटी को डॉक्टर बनाता| आँखों का डॉक्टर....फिर धूम-धाम से अपनी कीर्ति की शादी दूसरे डॉक्टर लड़के से करता और फिर ये दोनों शादी के बाद आराम से अपनी प्रैक्टिस करते|

पिताजी ने अपना ख्याली पुलाओ बना कर हमारे सामने परोसा| पिताजी ने अपनी बेटी के लिए बहुत ऊँचा ख्वाब संजोया था मगर उनकी बेटी की मोटी बुद्धि में सइंस का 'स' अक्षर भी नहीं घुसता था| हाँ 'स' से 'सेक्स' शब्द दिमाग में अच्छे से घुस चूका था!

बहरहाल, पिताजी की बात सुन मेरा सर शर्म से झुक गया था क्योंकि मैं अपने पिताजी की ये इच्छा पूरी नहीं कर पाई थी| मुझे शर्मिंदा होने से बचाने के लिए भैया ने बात सँभाली और बोले;

आदि भैया: तेरा ओपन कॉलेज तो शुरू हो जायेगा लेकिन क्लासेज तो तेरी सिर्फ संडे को होंगीं, बाकी के छः दिन क्या करेगी?

मेरे पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं अपने दिमाग को तेज़ दौड़ाने लगी ताकि कोई जवाब दे सकूँ|

वहीं पिताजी को भैया का ये सवाल अटपटा सा लगा इसलिए उन्होंने बात काटते हुए कहा;

पिताजी: क्या करेगी मतलब? घर में अपनी माँ की मदद करेगी, फिर ये बच्चों को पढ़ाती भी तो है|

पिताजी की आवाज़ में थोड़ी खुश्की थी जिसे महसूस कर मैंने डर के मारे चुप्पी साध ली|

आदि भैया: पिताजी, ज़माना बदल गया है| जो बच्चे ओपन से कॉलेज करते हैं वो अपना समय कुछ नया सीखने में लगाते हैं| जैसे आजकल कम्प्यूटर्स का ज़माना है इसलिए हर बच्चा कंप्यूटर कोर्स कर रहा है| ...

भैया ने जैसे ही नए ज़माने का ज्ञान दिया, वैसे ही पिताजी ने भैया की बात काट दी;

पिताजी: कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी ये (मैं)? इसने कौनसा नौकरी करनी है जो तू इसे कंप्यूटर कोर्स करने को कह रहा है?!

पिताजी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोले|



दरअसल पिताजी को शादी से पहले लड़कियों का नौकरी करना पसंद नहीं था| उनका मानना था की शादी से पहले नौकरी करने वाली लड़कियों का दिमाग सातवें आसमान पर होता है| घर की चार दीवारी छोड़ लड़कियाँ बाहर निकल कर बहकने लगती हैं| फैशन परस्त बन पैंट, टॉप, जीन्स और शर्ट जैसे कपडे पहनने लगती हैं| फिर ऐसी लड़कियों का लव मैरिज के चक्कर में पड़ कर खानदान का नाम खराब भी होने का खतरा होता है|

वहीं अगर लड़की शादी के बाद नौकरी करती है तो उस पर उसके परिवार की जिम्मेदारी होती है, उसके पति की जकड़ होती है इसलिए लड़कियाँ किसी गलत रास्ते नहीं भटकतीं| अब इसे मेरे पिताजी की रूढ़िवादी सोच समझिये या फिर एक पिता का अपनी बेटी के लिए चिंता करना, ये आप सब पर है|



खैर, पिताजी के गुस्से को देखते हुए भैया ने अपनी बात का रुख बदला और बड़ी ही चालाकी से अपनी बात आगे रखी;

आदि भैया: पिताजी, मैं नौकरी करने की बात नहीं कह रहा| मैं बस ये कह रहा हूँ की कीर्ति को कंप्यूटर चलाना तक नहीं आता| दसवीं तक इसने (मैंने) जो भी कंप्यूटर सीखा है वो किसी काम का नहीं| न इसे टाइपिंग आती है, न इसे ईमेल करना आता है, न इसे ऑनलाइन बिल भरना आता है, न ऑनलाइन टिकट बुक करना आता है और सिर्फ यही नहीं...ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इसे नहीं आती|

अब कल को इसकी शादी हुई और इसके पति ने इसे कोई काम बोलै तो ये क्या करेगी? मुझे फ़ोन कर के पूछेगी या फिर अपने ससुराल में ताने खायेगी?!

जब बात आती है अपनी बेटी के ससुराल की तो एक पिता बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है, वही कुछ अभी हुआ|

बेमन से ही सही परन्तु अपनी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए पिताजी मान गए|



रात में खाना खाने के बाद माँ-पिताजी अपने कमरे में सोने जा चुके थे| मैं अपने कमरे में बैठी अपने कल्पना के घोड़े दौड़ाने में लगी थी की न्य कॉलेज कैसा होगा? क्या कॉलेज में रैगिंग होगी? कॉलेज में कैसे कपडे पहनते होंगें? कंप्यूटर क्लास में मैं क्या-क्या सीखूँगी?

तभी भैया मेरे कमरे में आये, उन्हें देख मैं फौरन आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| आज हम दोनों भाई-बहन के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान तैर रही थी और ये मनमोहक मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज एक भाई ने अपनी बहन के जीवन को सँवारने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया था, वहीं मेरे चेहरे पर मुस्कान का कारण ये था की मेरी ज़िन्दगी में अब एक नई सुबह उगने वाली थी|



“आजतक तू इस घर रुपी पिंजरे में कैद थी लेकिन कल से तू खुले आसमान में पंख फैला कर अपनी ख़ुशी से उड़ पाएगी| लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखिओ की तू खुले आसमान में उड़ने के चक्कर में पिताजी के बसाये इस घरोंदे को न रोंद दे!” आदि भैया मेरे दोनों गालों पर हाथ रखते हुए बोले|

इस पूरी दुनिया में बस एक मेरे भैया ही तो हैं जो मेरे दिल की हर ख्वाइश समझते थे| बचपन से ले कर अभी तक बस एक वही हैं जो बिना मेरे बोले मेरे मन की बात पढ़ लिया करते थे और फिर कोई न कोई जुगत कर मेरी इच्छा पूरी कर दिया करते हैं| वो जानते थे की मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ और अब मुझे दुनिया देखनी चाहिए, तभी उन्होंने अपनी चालाकी भरी बातों में पिताजी को उलझा कर मेरा घर से अकेले निकलने का इंतज़ाम किया|

भैया की दी हुई ये शिक्षा मैंने अपने पल्ले बाँध ली और कभी ऐसा कोई काम नहीं किया की पिताजी का नाम मिटटी में मिल जाए या मेरे कारण कभी उनका सर शर्म से झुके!



अगली सुबह भैया और मैं सबसे पहले बैंक जाने के लिए निकले| भैया और मैं चढ़े बस में, ये पहलीबार था की मैं पिताजी के अलावा किसी और के साथ बस में चढ़ी हूँ|

जब हम सब पिताजी के साथ कहीं जाते थे तो पिताजी सबसे पहले मुझे और माँ को सीट दिलवाते थे| फिर वो आदि भैया के लिए सीट का इंतज़ाम करते थे और सबसे आखिर में स्वयं के लिए सीट ढूँढ़ते थे| कई बार तो सीट न मिलने पर पिताजी कंडक्टर की बगल में बैठ कर सफर करते थे और एक बार तो पिताजी को जो बस का गियर बॉक्स होता है उस पर बैठ कर भी यात्रा करनी पड़ी थी|



एक पिता का सबसे पहला दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है| वह सबसे पहले अपने परिवार के सुख और आराम के लिए मेहनत करता है तथा अंत में अपने लिए बैठने की कोई छोटी सी जगह तलाशता है|



खैर, भैया के साथ बस की ये यात्रा बहुत मजेदार थी क्योंकि भैया मुझे कौनसी बस कहाँ जाती है, बस में कैसे अकेले चढ़ना-उतरना है, कैसे बस में खुद का ध्यान रखना है आदि जैसी ज्ञान भरी बातें समझा रहे थे|

अंततः हम बैंक पहुँच ही गए| हर सरकारी नौकरशाह की तरह मेरे पिताजी का भी अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में था और इस बैंक को निरंतर काल तक व्यस्त रहने का श्राप मिला है! अब अगर ग्राहक का काम करने की बजाए उसे एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौडाओगे, बारह बजे लंच टाइम कह ग्राहक को भगाओगे तो बैंक में भीड़ बढ़ेगी ही न?! ऊपर से बैंक में आते हैं वो बूढ़े-बुजुर्ग जिनको घर में बस पासबुक प्रिंट कराने के लिए रखा होता है| ऊपर से ये बूढ़े अंकल लोग अपने घर की ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों की भी पासबुक इकठ्ठा कर बैंक लाते हैं!

मैं आज पहलीबार बैंक आई थी और इतने लोगों को लाइन में लगे देख मुझे कुछ समझ ही नहीं आया! "उधर ड्राफ्ट का फॉर्म रखा होगा, उसे भर तब तक मैं लाइन में लगता हूँ|" आदि भैया ने मुझे आदेश दिया और खुद जा कर लाइन में लग गए| टेबल पर से फॉर्म ले कर मैंने सुन्दर-सुन्दर हैंडराइटिंग में फॉर्म भरा और फटाफट भैया को फॉर्म दे दिया| अब हमें करना था इंतज़ार और वो भी 10-5 मिनट नहीं बल्कि पूरे 1 घंटे का इंतज़ार! अब मैंने चेक तो देखा था मगर ड्राफ्ट मैंने पहले कभी नहीं देखा था| मुझे लगा था की ड्राफ्ट कोई बहुत बड़ी चीज़ होगी मगर जब ड्राफ्ट मेरे हतः में आया तो ये लगभग चेक जैसा ही था!



ड्राफ्ट ले कर हम पहुँचे मेरी यूनिवर्सिटी और यहाँ तो बैंक से भी ज्यादा लम्बी लाइन थी! परन्तु एक अंतर् था, जहाँ बैंक में अधिकतर लोग वृद्ध थे, वहीं यूनिवर्सिटी की लाइन में सब मेरी ही उम्र की लड़कियाँ और लड़के थे| इस बार भैया ने मुझे लाइन में लगने को कहा और खुद पीछे आराम से खड़े हो कर दूसरी लड़कियों को देखने लगे! देखा जाए तो ठीक ही था, फॉर्म मेरा...कॉलेज मेरा...तो जमा भी तो मैं ही कराऊँगी न?! बैंक के मुक़ाबले यहाँ काम थोड़ी रफ़्तार से हो रहा था इसलिए लगभग पौने घंटे में मेरा फॉर्म जमा हो गया| जब मैं फॉर्म भर कर आई तो भैया मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले; "लाइन में खड़े हो कर फॉर्म भरने की आदत डाल ले क्योंकि तेरे असाइनमेंट...तेरे एग्जाम फॉर्म सब ऐसे ही लाइन में लग कर जमा होंगें|" मुझे पहले ही अपना फॉर्म खुद भरकर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए मैंने भैया की दी इस नसीहत को अपने पल्ले बाँध लिया|



कॉलेज के बाद अब बारी थी मेरे कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की| मेरे अनुसार तो ये साडी सी कंप्यूटर क्लास होने वाली थी जिसमें मुझे कंप्यूटर चलाना सीखना था मगर आदि भैया ने कुछ और ही सोच रखा था|



हम दोनों पहुँचे एक इंस्टिट्यूट के बाहर जहाँ ढेरों बच्चे अंदर जा और बाहर आ रहे थे| इतने बच्चों को देख जो पहला ख्याल मेरे दिमाग में नाय वो था; 'क्या हमारी स्टेट के सारे बच्चे मेरी तरह निरे बुद्धू हैं जो सारे के सारे यहाँ कंप्यूटर चलाना सीखने आये हैं? अब मेरे घर में तो कंप्यूटर है नहीं तो मेरा कंप्यूटर चलाना तो सीखना तो बनता है मगर इन सबके घर में कंप्यूटर नहीं?' मैं अभी अपने ख्याल में डूबी थी की भैया ने मुझे अंदर चलने को कहा|

अंदर पहुँच भैया ने रिसेप्शन पर बैठी एक सुन्दर सी लड़की से बात की और उस लड़की ने भैया को एक फॉर्म भरने को दे दिया| भैया वो फॉर्म मेरे पास ले आये और मुझे भरने को कहा| उस फॉर्म में मुझे अपने दसवीं तथा बारहवीं के नंबर भरने थे| फॉर्म भरते हुए मैंने देख उसमे कुछ courses लिखे हैं जैसे; 'C++, Java, Tally, Microsoft office आदि|' मैंने उन courses को पढ़ा तो सही मगर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा| अभी हमने फॉर्म भरा ही था की हमारे लिए एक लड़का पानी ले आया| मैं अपनी इस आवभगत को देख बड़ी खुश थी, ऐसा लगता था मानो मैं कोई मुख्य अतिथि हूँ| हमें पानी पिला कर वो लड़का मेरा फॉर्म अपने साथ ले गया| 5 मिनट बाद हमें एक केबिन में बुलाया गया, इस केबिन में एक सुन्दर सी लड़की बैठी थी| उसने हमें बैठने को कहा तथा भैया से बात करने लगी|



"हम ऑफिस असिस्टेंट के कोर्स के बारे में जानना चाहते हैं|" भैया ने बायत शुरू करते हुए कहा| उस लड़की ने हमें उस कोर्स के बारे में सब बताया पर जब उसने कहा की इस कोर्स की फीस पाँच हज़ार है तो मेरे पॉँव तले ज़मीन खिसक गई! वहीं भैया ने हार न मानते हुए उस लड़की से फीस कम करवाने में लग गए| करीब 10 मिनट की बातचीत के बाद वो लड़की पाँच सौ रुपये कम करने को मान गई| भैया ने उसी वाट उस लड़की को हज़ार रुपये एडवांस दे दिए तथा एक शर्त रख दी; "आप कोर्स की फीस पंद्रह सौ की रसीद बनाइयेगा| बाकी की फीस की रसीद अलग बना दीजियेगा|" मैं समझ गई की भैया ये पंद्रह सौ वाली रसीद पिताजी को दिखायेंगे और बाकी के पैसे वो खुद अपनी जेब से भरेंगे|



उस इंस्टिट्यूट से जैसे ही हम बाहर निकले और दो कदम चल कर बाहर सड़क की ओर बढे की 3-4 लड़कों का एक झुण्ड दौड़ता हुआ हमारी तरफ आया| इतने सारे लड़कों को अपनी ओर यूँ दौड़ कर आते देख मैं एकदम से घबरा गई और भैया के पीछे छुप गई| वहीं दूसरी तरफ भैया एकदम सतर्क हो गए थे और अकर्मक मुद्रा में थे| लेकिन बात कुछ और ही निकली!



ये सब लड़के अलग-अलग इंस्टिट्यूट के थे और हमें अपने-अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने को कह रहे थे ताकि मेरी दी हुई फीस से उनकी थोड़ी कमिशन बन जाए!

भैया ने उन्हें समझा दिया की हमने दाखिला ले लिया है| ये सुनकर वो सारे लड़के अपना दूसरा ग्राहक ढूँढने दूसरी ओर दौड़ गए! इस प्रकरण ने मुझे सिखाया की इस दुनिया में लोग दो रोटी कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते हैं|



खैर, मेरा कॉलेज का फॉर्म भरा जा चूका था, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में भी दाखिला हो चूका था| अब बारी थी इस ख़ुशी को मनाने की इसलिए भैया और मैं पहुँचे एक अच्छे रेस्टोरेंट में| भैया ने सीधा पिज़्ज़ा आर्डर किया और जबतक पिज़्ज़ा आता भैया मुझे समझाने लगे; "तू अब बड़ी हो गई है और अब समय है की तू पिताजी की छत्र छाया से निकल खुद अपनी जिम्मेदारियाँ उठाये| पिताजी की नज़र में तू आज भी एक छोटी बच्ची है...उनकी प्यारी सी नन्ही चिड़िया इसीलिये वो अपनी इस प्यारी चिड़िया को दुनिया में बेस चील-कौओं की नज़र से बचाने में लगे रहते हैं| उनके लिए एक बार तेरा घर बीएस जाए तो वो चिंता मुक्त हो जाएंगे|

लेकिन मैं जानता हूँ की तू अब बच्ची नहीं रही, तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अपने जीवन को सही रास्ते की ओर ले जा सके| जब तूने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था न, मैं तभी समझ गया था की तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अब खुद को अच्छे से सँभाल सके| देख मैं जानता हूँ की तुझे मेरे और पिताजी पर निर्भर नहीं रहना, तुझे अपना अलग रास्ता बनाना है...अपना जीवन अपने अनुसार जीना है और इस सब के लये चाहिए होता है पैसा! अब ये पैसा तुझे पिताजी से तो मिल नहीं सकता इसलिए तुझे खुद पैसे कमाने होंगें ताकि जबतक तेरी शादी न हो तू दुनिया अपने नज़रिये से देख सके...जी सके|



तुझे याद है जब पहलीबार तुझे बच्चों को पढ़ाने की फीस मिली थी? उस दिन तू कितनी खुश थी...इतनी खुस की तेरी आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भीग गई थीं| जानती है वो ख़ुशी...वो तेरी नम आँखें किस बात की सूचक थीं? वो ख़ुशी थी तेरी मेहनत से कमाए पैसों को हाथ में लेने की ख़ुशी| उस वक़्त मैंने महसूस कर लिया था की तुझे घर पर बँध कर नहीं रहना, तुझे नौकरी करनी है...पैसे कमाने हैं|

बस उसी वक़्त मैंने सोच लिया था की मेरी बहन अपनी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीएगी और अपने उसी फैसले पर अम्ल करते हुए मैं पिताजी के साथ छल कर रहा हूँ|



तेरी एकाउंटेंसी अच्छी है इसलिए मैंने तेरे लिए ऑफिस असिस्टेंट का कोर्स सेलेक्ट किया| इस कोर्स में तुझे एकाउंटेंसी कंप्यूटर में कैसे की जाती है ये सिखाया जायेगा| जब तू ये कोर्स पूरा कर लेगी तब मैं तेरी कहीं छोटी-मोटी जॉब लगवा दूँगा, जिससे तुझे एक्सपीरियंस मिलेगा| जब तेरा कॉलेज पूरा हो जायेगा न तब इसी एक्सपीरियंस के बलबूते पर तुझे अच्छी जॉब मिलेगी| लेकिन तबतक ये सब तुझे पिताजी से छुपाना होगा, उनकी नज़र में तू बस बेसिक कंप्यूटर सीख रही है| अगर तूने उन्हें सब सच बता दिया तो पिताजी बहुत गुस्सा होंगें और हम दोनों पर कभी भरोसा नहीं करेंगे|” सारा सच जानकार मेरे मन में भैया के लिए प्यार उमड़ आया| मैं एकदम से भावुक हो कर खड़ी हुई और भैया के गले लग सिसकने लगी| "थ...थैंक...यू...भैया....! आ..आपने मेरे लिए..." इससे ज्यादा मैं कुछ न कह पाई और मेरा रोना तेज़ हो गया|

"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|

जारी रहेगा अगले भाग में!
 

Rockstar_Rocky

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दोस्तों इस अपडेट के अलावा एक और हास्यास्पद बात है जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ मगर आज नहीं कल|
 

Rekha rani

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अति सुंदर अपडेट,
प्यार और सुरक्षा जोकि हर बहन का सपना होता है अपने भाई के लिए इस अपडेट में पढ़ने को मिला,
एक एक अक्षर से कीर्ति की आने वाली जीवन की झलक देखने को मिली,
आदि ने अपने बड़े भाई होने का फर्ज बखूबी निभाया, अपने पिता से अधूरा सच बोल कर अपनी बहन को वक्त के हिसाब से शिक्षा दिलाने का प्रयास किया है, लेकिन कीर्ति की अभी की जो मानसिकता है एस से सेक्स क्या वो अपने भाई की सिखाई गई सब बातो पर अमल कर पाएगी।
 

Mohdsirajali

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भाग - 11

अब तक आपने पढ़ा:


भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!

अब आगे:

चाय
पीते हुए भैया ने जानबूझ कर बात छेड़ते हुए मुझसे पुछा;

आदि भैया: और कीर्ति? तो आगे क्या सोचा है?

भय का सवाल सुन मैं एकदम सन्न थी, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या जवाब दूँ?



हर बच्चे का एक सपना होता है की उसने बारहवीं पास करने के बाद क्या करना है...क्या बनना है मगर मैंने कभी इतनी दूर की सोची ही नहीं?! मेरी ख्वाइश तो बस दुनिया घूमने-फिरने, सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनने और तरह-तरह का खाना खाने पर खत्म हो जाती थीं|

खैर, भैया के सवाल का जवाब तो देना था इसलिए मैं अपना दिमाग चलाते हुए कुछ सोचने लगी;

मैं: वो...

मैं इसके आगे कुछ सोच पाती और बोलती उससे पहले ही पिताजी मेरी बात काटते हुए बोले;

पिताजी: मेरी बता मानकर ग्यारहवीं में अगर इसने (मैंने) साइंस ली होती तो मैं अपनी बेटी को डॉक्टर बनाता| आँखों का डॉक्टर....फिर धूम-धाम से अपनी कीर्ति की शादी दूसरे डॉक्टर लड़के से करता और फिर ये दोनों शादी के बाद आराम से अपनी प्रैक्टिस करते|

पिताजी ने अपना ख्याली पुलाओ बना कर हमारे सामने परोसा| पिताजी ने अपनी बेटी के लिए बहुत ऊँचा ख्वाब संजोया था मगर उनकी बेटी की मोटी बुद्धि में सइंस का 'स' अक्षर भी नहीं घुसता था| हाँ 'स' से 'सेक्स' शब्द दिमाग में अच्छे से घुस चूका था!

बहरहाल, पिताजी की बात सुन मेरा सर शर्म से झुक गया था क्योंकि मैं अपने पिताजी की ये इच्छा पूरी नहीं कर पाई थी| मुझे शर्मिंदा होने से बचाने के लिए भैया ने बात सँभाली और बोले;

आदि भैया: तेरा ओपन कॉलेज तो शुरू हो जायेगा लेकिन क्लासेज तो तेरी सिर्फ संडे को होंगीं, बाकी के छः दिन क्या करेगी?

मेरे पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं अपने दिमाग को तेज़ दौड़ाने लगी ताकि कोई जवाब दे सकूँ|

वहीं पिताजी को भैया का ये सवाल अटपटा सा लगा इसलिए उन्होंने बात काटते हुए कहा;

पिताजी: क्या करेगी मतलब? घर में अपनी माँ की मदद करेगी, फिर ये बच्चों को पढ़ाती भी तो है|

पिताजी की आवाज़ में थोड़ी खुश्की थी जिसे महसूस कर मैंने डर के मारे चुप्पी साध ली|

आदि भैया: पिताजी, ज़माना बदल गया है| जो बच्चे ओपन से कॉलेज करते हैं वो अपना समय कुछ नया सीखने में लगाते हैं| जैसे आजकल कम्प्यूटर्स का ज़माना है इसलिए हर बच्चा कंप्यूटर कोर्स कर रहा है| ...

भैया ने जैसे ही नए ज़माने का ज्ञान दिया, वैसे ही पिताजी ने भैया की बात काट दी;

पिताजी: कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी ये (मैं)? इसने कौनसा नौकरी करनी है जो तू इसे कंप्यूटर कोर्स करने को कह रहा है?!

पिताजी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोले|



दरअसल पिताजी को शादी से पहले लड़कियों का नौकरी करना पसंद नहीं था| उनका मानना था की शादी से पहले नौकरी करने वाली लड़कियों का दिमाग सातवें आसमान पर होता है| घर की चार दीवारी छोड़ लड़कियाँ बाहर निकल कर बहकने लगती हैं| फैशन परस्त बन पैंट, टॉप, जीन्स और शर्ट जैसे कपडे पहनने लगती हैं| फिर ऐसी लड़कियों का लव मैरिज के चक्कर में पड़ कर खानदान का नाम खराब भी होने का खतरा होता है|

वहीं अगर लड़की शादी के बाद नौकरी करती है तो उस पर उसके परिवार की जिम्मेदारी होती है, उसके पति की जकड़ होती है इसलिए लड़कियाँ किसी गलत रास्ते नहीं भटकतीं| अब इसे मेरे पिताजी की रूढ़िवादी सोच समझिये या फिर एक पिता का अपनी बेटी के लिए चिंता करना, ये आप सब पर है|



खैर, पिताजी के गुस्से को देखते हुए भैया ने अपनी बात का रुख बदला और बड़ी ही चालाकी से अपनी बात आगे रखी;

आदि भैया: पिताजी, मैं नौकरी करने की बात नहीं कह रहा| मैं बस ये कह रहा हूँ की कीर्ति को कंप्यूटर चलाना तक नहीं आता| दसवीं तक इसने (मैंने) जो भी कंप्यूटर सीखा है वो किसी काम का नहीं| न इसे टाइपिंग आती है, न इसे ईमेल करना आता है, न इसे ऑनलाइन बिल भरना आता है, न ऑनलाइन टिकट बुक करना आता है और सिर्फ यही नहीं...ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इसे नहीं आती|

अब कल को इसकी शादी हुई और इसके पति ने इसे कोई काम बोलै तो ये क्या करेगी? मुझे फ़ोन कर के पूछेगी या फिर अपने ससुराल में ताने खायेगी?!

जब बात आती है अपनी बेटी के ससुराल की तो एक पिता बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है, वही कुछ अभी हुआ|

बेमन से ही सही परन्तु अपनी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए पिताजी मान गए|



रात में खाना खाने के बाद माँ-पिताजी अपने कमरे में सोने जा चुके थे| मैं अपने कमरे में बैठी अपने कल्पना के घोड़े दौड़ाने में लगी थी की न्य कॉलेज कैसा होगा? क्या कॉलेज में रैगिंग होगी? कॉलेज में कैसे कपडे पहनते होंगें? कंप्यूटर क्लास में मैं क्या-क्या सीखूँगी?

तभी भैया मेरे कमरे में आये, उन्हें देख मैं फौरन आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| आज हम दोनों भाई-बहन के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान तैर रही थी और ये मनमोहक मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज एक भाई ने अपनी बहन के जीवन को सँवारने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया था, वहीं मेरे चेहरे पर मुस्कान का कारण ये था की मेरी ज़िन्दगी में अब एक नई सुबह उगने वाली थी|



“आजतक तू इस घर रुपी पिंजरे में कैद थी लेकिन कल से तू खुले आसमान में पंख फैला कर अपनी ख़ुशी से उड़ पाएगी| लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखिओ की तू खुले आसमान में उड़ने के चक्कर में पिताजी के बसाये इस घरोंदे को न रोंद दे!” आदि भैया मेरे दोनों गालों पर हाथ रखते हुए बोले|

इस पूरी दुनिया में बस एक मेरे भैया ही तो हैं जो मेरे दिल की हर ख्वाइश समझते थे| बचपन से ले कर अभी तक बस एक वही हैं जो बिना मेरे बोले मेरे मन की बात पढ़ लिया करते थे और फिर कोई न कोई जुगत कर मेरी इच्छा पूरी कर दिया करते हैं| वो जानते थे की मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ और अब मुझे दुनिया देखनी चाहिए, तभी उन्होंने अपनी चालाकी भरी बातों में पिताजी को उलझा कर मेरा घर से अकेले निकलने का इंतज़ाम किया|

भैया की दी हुई ये शिक्षा मैंने अपने पल्ले बाँध ली और कभी ऐसा कोई काम नहीं किया की पिताजी का नाम मिटटी में मिल जाए या मेरे कारण कभी उनका सर शर्म से झुके!



अगली सुबह भैया और मैं सबसे पहले बैंक जाने के लिए निकले| भैया और मैं चढ़े बस में, ये पहलीबार था की मैं पिताजी के अलावा किसी और के साथ बस में चढ़ी हूँ|

जब हम सब पिताजी के साथ कहीं जाते थे तो पिताजी सबसे पहले मुझे और माँ को सीट दिलवाते थे| फिर वो आदि भैया के लिए सीट का इंतज़ाम करते थे और सबसे आखिर में स्वयं के लिए सीट ढूँढ़ते थे| कई बार तो सीट न मिलने पर पिताजी कंडक्टर की बगल में बैठ कर सफर करते थे और एक बार तो पिताजी को जो बस का गियर बॉक्स होता है उस पर बैठ कर भी यात्रा करनी पड़ी थी|



एक पिता का सबसे पहला दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है| वह सबसे पहले अपने परिवार के सुख और आराम के लिए मेहनत करता है तथा अंत में अपने लिए बैठने की कोई छोटी सी जगह तलाशता है|



खैर, भैया के साथ बस की ये यात्रा बहुत मजेदार थी क्योंकि भैया मुझे कौनसी बस कहाँ जाती है, बस में कैसे अकेले चढ़ना-उतरना है, कैसे बस में खुद का ध्यान रखना है आदि जैसी ज्ञान भरी बातें समझा रहे थे|

अंततः हम बैंक पहुँच ही गए| हर सरकारी नौकरशाह की तरह मेरे पिताजी का भी अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में था और इस बैंक को निरंतर काल तक व्यस्त रहने का श्राप मिला है! अब अगर ग्राहक का काम करने की बजाए उसे एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौडाओगे, बारह बजे लंच टाइम कह ग्राहक को भगाओगे तो बैंक में भीड़ बढ़ेगी ही न?! ऊपर से बैंक में आते हैं वो बूढ़े-बुजुर्ग जिनको घर में बस पासबुक प्रिंट कराने के लिए रखा होता है| ऊपर से ये बूढ़े अंकल लोग अपने घर की ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों की भी पासबुक इकठ्ठा कर बैंक लाते हैं!

मैं आज पहलीबार बैंक आई थी और इतने लोगों को लाइन में लगे देख मुझे कुछ समझ ही नहीं आया! "उधर ड्राफ्ट का फॉर्म रखा होगा, उसे भर तब तक मैं लाइन में लगता हूँ|" आदि भैया ने मुझे आदेश दिया और खुद जा कर लाइन में लग गए| टेबल पर से फॉर्म ले कर मैंने सुन्दर-सुन्दर हैंडराइटिंग में फॉर्म भरा और फटाफट भैया को फॉर्म दे दिया| अब हमें करना था इंतज़ार और वो भी 10-5 मिनट नहीं बल्कि पूरे 1 घंटे का इंतज़ार! अब मैंने चेक तो देखा था मगर ड्राफ्ट मैंने पहले कभी नहीं देखा था| मुझे लगा था की ड्राफ्ट कोई बहुत बड़ी चीज़ होगी मगर जब ड्राफ्ट मेरे हतः में आया तो ये लगभग चेक जैसा ही था!



ड्राफ्ट ले कर हम पहुँचे मेरी यूनिवर्सिटी और यहाँ तो बैंक से भी ज्यादा लम्बी लाइन थी! परन्तु एक अंतर् था, जहाँ बैंक में अधिकतर लोग वृद्ध थे, वहीं यूनिवर्सिटी की लाइन में सब मेरी ही उम्र की लड़कियाँ और लड़के थे| इस बार भैया ने मुझे लाइन में लगने को कहा और खुद पीछे आराम से खड़े हो कर दूसरी लड़कियों को देखने लगे! देखा जाए तो ठीक ही था, फॉर्म मेरा...कॉलेज मेरा...तो जमा भी तो मैं ही कराऊँगी न?! बैंक के मुक़ाबले यहाँ काम थोड़ी रफ़्तार से हो रहा था इसलिए लगभग पौने घंटे में मेरा फॉर्म जमा हो गया| जब मैं फॉर्म भर कर आई तो भैया मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले; "लाइन में खड़े हो कर फॉर्म भरने की आदत डाल ले क्योंकि तेरे असाइनमेंट...तेरे एग्जाम फॉर्म सब ऐसे ही लाइन में लग कर जमा होंगें|" मुझे पहले ही अपना फॉर्म खुद भरकर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए मैंने भैया की दी इस नसीहत को अपने पल्ले बाँध लिया|



कॉलेज के बाद अब बारी थी मेरे कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की| मेरे अनुसार तो ये साडी सी कंप्यूटर क्लास होने वाली थी जिसमें मुझे कंप्यूटर चलाना सीखना था मगर आदि भैया ने कुछ और ही सोच रखा था|



हम दोनों पहुँचे एक इंस्टिट्यूट के बाहर जहाँ ढेरों बच्चे अंदर जा और बाहर आ रहे थे| इतने बच्चों को देख जो पहला ख्याल मेरे दिमाग में नाय वो था; 'क्या हमारी स्टेट के सारे बच्चे मेरी तरह निरे बुद्धू हैं जो सारे के सारे यहाँ कंप्यूटर चलाना सीखने आये हैं? अब मेरे घर में तो कंप्यूटर है नहीं तो मेरा कंप्यूटर चलाना तो सीखना तो बनता है मगर इन सबके घर में कंप्यूटर नहीं?' मैं अभी अपने ख्याल में डूबी थी की भैया ने मुझे अंदर चलने को कहा|

अंदर पहुँच भैया ने रिसेप्शन पर बैठी एक सुन्दर सी लड़की से बात की और उस लड़की ने भैया को एक फॉर्म भरने को दे दिया| भैया वो फॉर्म मेरे पास ले आये और मुझे भरने को कहा| उस फॉर्म में मुझे अपने दसवीं तथा बारहवीं के नंबर भरने थे| फॉर्म भरते हुए मैंने देख उसमे कुछ courses लिखे हैं जैसे; 'C++, Java, Tally, Microsoft office आदि|' मैंने उन courses को पढ़ा तो सही मगर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा| अभी हमने फॉर्म भरा ही था की हमारे लिए एक लड़का पानी ले आया| मैं अपनी इस आवभगत को देख बड़ी खुश थी, ऐसा लगता था मानो मैं कोई मुख्य अतिथि हूँ| हमें पानी पिला कर वो लड़का मेरा फॉर्म अपने साथ ले गया| 5 मिनट बाद हमें एक केबिन में बुलाया गया, इस केबिन में एक सुन्दर सी लड़की बैठी थी| उसने हमें बैठने को कहा तथा भैया से बात करने लगी|



"हम ऑफिस असिस्टेंट के कोर्स के बारे में जानना चाहते हैं|" भैया ने बायत शुरू करते हुए कहा| उस लड़की ने हमें उस कोर्स के बारे में सब बताया पर जब उसने कहा की इस कोर्स की फीस पाँच हज़ार है तो मेरे पॉँव तले ज़मीन खिसक गई! वहीं भैया ने हार न मानते हुए उस लड़की से फीस कम करवाने में लग गए| करीब 10 मिनट की बातचीत के बाद वो लड़की पाँच सौ रुपये कम करने को मान गई| भैया ने उसी वाट उस लड़की को हज़ार रुपये एडवांस दे दिए तथा एक शर्त रख दी; "आप कोर्स की फीस पंद्रह सौ की रसीद बनाइयेगा| बाकी की फीस की रसीद अलग बना दीजियेगा|" मैं समझ गई की भैया ये पंद्रह सौ वाली रसीद पिताजी को दिखायेंगे और बाकी के पैसे वो खुद अपनी जेब से भरेंगे|



उस इंस्टिट्यूट से जैसे ही हम बाहर निकले और दो कदम चल कर बाहर सड़क की ओर बढे की 3-4 लड़कों का एक झुण्ड दौड़ता हुआ हमारी तरफ आया| इतने सारे लड़कों को अपनी ओर यूँ दौड़ कर आते देख मैं एकदम से घबरा गई और भैया के पीछे छुप गई| वहीं दूसरी तरफ भैया एकदम सतर्क हो गए थे और अकर्मक मुद्रा में थे| लेकिन बात कुछ और ही निकली!



ये सब लड़के अलग-अलग इंस्टिट्यूट के थे और हमें अपने-अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने को कह रहे थे ताकि मेरी दी हुई फीस से उनकी थोड़ी कमिशन बन जाए!

भैया ने उन्हें समझा दिया की हमने दाखिला ले लिया है| ये सुनकर वो सारे लड़के अपना दूसरा ग्राहक ढूँढने दूसरी ओर दौड़ गए! इस प्रकरण ने मुझे सिखाया की इस दुनिया में लोग दो रोटी कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते हैं|



खैर, मेरा कॉलेज का फॉर्म भरा जा चूका था, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में भी दाखिला हो चूका था| अब बारी थी इस ख़ुशी को मनाने की इसलिए भैया और मैं पहुँचे एक अच्छे रेस्टोरेंट में| भैया ने सीधा पिज़्ज़ा आर्डर किया और जबतक पिज़्ज़ा आता भैया मुझे समझाने लगे; "तू अब बड़ी हो गई है और अब समय है की तू पिताजी की छत्र छाया से निकल खुद अपनी जिम्मेदारियाँ उठाये| पिताजी की नज़र में तू आज भी एक छोटी बच्ची है...उनकी प्यारी सी नन्ही चिड़िया इसीलिये वो अपनी इस प्यारी चिड़िया को दुनिया में बेस चील-कौओं की नज़र से बचाने में लगे रहते हैं| उनके लिए एक बार तेरा घर बीएस जाए तो वो चिंता मुक्त हो जाएंगे|

लेकिन मैं जानता हूँ की तू अब बच्ची नहीं रही, तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अपने जीवन को सही रास्ते की ओर ले जा सके| जब तूने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था न, मैं तभी समझ गया था की तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अब खुद को अच्छे से सँभाल सके| देख मैं जानता हूँ की तुझे मेरे और पिताजी पर निर्भर नहीं रहना, तुझे अपना अलग रास्ता बनाना है...अपना जीवन अपने अनुसार जीना है और इस सब के लये चाहिए होता है पैसा! अब ये पैसा तुझे पिताजी से तो मिल नहीं सकता इसलिए तुझे खुद पैसे कमाने होंगें ताकि जबतक तेरी शादी न हो तू दुनिया अपने नज़रिये से देख सके...जी सके|



तुझे याद है जब पहलीबार तुझे बच्चों को पढ़ाने की फीस मिली थी? उस दिन तू कितनी खुश थी...इतनी खुस की तेरी आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भीग गई थीं| जानती है वो ख़ुशी...वो तेरी नम आँखें किस बात की सूचक थीं? वो ख़ुशी थी तेरी मेहनत से कमाए पैसों को हाथ में लेने की ख़ुशी| उस वक़्त मैंने महसूस कर लिया था की तुझे घर पर बँध कर नहीं रहना, तुझे नौकरी करनी है...पैसे कमाने हैं|

बस उसी वक़्त मैंने सोच लिया था की मेरी बहन अपनी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीएगी और अपने उसी फैसले पर अम्ल करते हुए मैं पिताजी के साथ छल कर रहा हूँ|



तेरी एकाउंटेंसी अच्छी है इसलिए मैंने तेरे लिए ऑफिस असिस्टेंट का कोर्स सेलेक्ट किया| इस कोर्स में तुझे एकाउंटेंसी कंप्यूटर में कैसे की जाती है ये सिखाया जायेगा| जब तू ये कोर्स पूरा कर लेगी तब मैं तेरी कहीं छोटी-मोटी जॉब लगवा दूँगा, जिससे तुझे एक्सपीरियंस मिलेगा| जब तेरा कॉलेज पूरा हो जायेगा न तब इसी एक्सपीरियंस के बलबूते पर तुझे अच्छी जॉब मिलेगी| लेकिन तबतक ये सब तुझे पिताजी से छुपाना होगा, उनकी नज़र में तू बस बेसिक कंप्यूटर सीख रही है| अगर तूने उन्हें सब सच बता दिया तो पिताजी बहुत गुस्सा होंगें और हम दोनों पर कभी भरोसा नहीं करेंगे|” सारा सच जानकार मेरे मन में भैया के लिए प्यार उमड़ आया| मैं एकदम से भावुक हो कर खड़ी हुई और भैया के गले लग सिसकने लगी| "थ...थैंक...यू...भैया....! आ..आपने मेरे लिए..." इससे ज्यादा मैं कुछ न कह पाई और मेरा रोना तेज़ हो गया|


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
जारी रहेगा अगले भाग में!
Rockstar bhai....jo baaten maa ko samjhaani chahye wo aadi samjha raha hai..aadi ek maa aur ek bhai dono ka farz nibha raha hai.....ab hai kirti ke udaan bharne ka samay ...dekhte hai wo kitna uncha udti hai....behteen ucch quality khubsurat jasndaar shaandaar .update. .main jitne bhi shabd istemaal karu shayad kam pad jaaye ..aise hi likhte rahiyye humko bhi aapse kuch seekhne ka mauka milega....dhannywaad
 
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kamdev99008

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कुछ अंश जिनहोने मुझे आकर्षित किया
जब हम सब पिताजी के साथ कहीं जाते थे तो पिताजी सबसे पहले मुझे और माँ को सीट दिलवाते थे| फिर वो आदि भैया के लिए सीट का इंतज़ाम करते थे और सबसे आखिर में स्वयं के लिए सीट ढूँढ़ते थे| कई बार तो सीट न मिलने पर पिताजी कंडक्टर की बगल में बैठ कर सफर करते थे और एक बार तो पिताजी को जो बस का गियर बॉक्स होता है उस पर बैठ कर भी यात्रा करनी पड़ी थी|



एक पिता का सबसे पहला दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है| वह सबसे पहले अपने परिवार के सुख और आराम के लिए मेहनत करता है तथा अंत में अपने लिए बैठने की कोई छोटी सी जगह तलाशता है|

अंततः हम बैंक पहुँच ही गए| हर सरकारी नौकरशाह की तरह मेरे पिताजी का भी अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में था और इस बैंक को निरंतर काल तक व्यस्त रहने का श्राप मिला है! अब अगर ग्राहक का काम करने की बजाए उसे एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौडाओगे, बारह बजे लंच टाइम कह ग्राहक को भगाओगे तो बैंक में भीड़ बढ़ेगी ही न?! ऊपर से बैंक में आते हैं वो बूढ़े-बुजुर्ग जिनको घर में बस पासबुक प्रिंट कराने के लिए रखा होता है| ऊपर से ये बूढ़े अंकल लोग अपने घर की ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों की भी पासबुक इकठ्ठा कर बैंक लाते हैं!

इस प्रकरण ने मुझे सिखाया की इस दुनिया में लोग दो रोटी कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते हैं|
क्योंकि ये सब मेरा भी व्यक्तिगत अनुभव रहा है

अब आप अपनी बात कल कहेंगे

दोस्तों इस अपडेट के अलावा एक और हास्यास्पद बात है जो मैं आपके साथ शेयर करना चाहता हूँ मगर आज नहीं कल|
मैं अभी कहना चाहूँगा
"मैंने कभी किसी इंस्टीट्यूट से एक दिन का भी कम्प्युटर कोर्स नहीं किया, मेरे पिता की आर्थिक क्षमता ऐसी नहीं थी..... लेकिन 2000 में पिताजी की मृत्यु के बाद मैंने अपने दोनों भाई बहन को नोएडा के जाने-माने कम्प्युटर इंजीनियर जो मेरे घनिष्ठ मित्र थे, उनके इंस्टीट्यूट में एड्मिशन करा दिया। आज मुझे ग्राफिक डिज़ाइनिंग, वेब डिज़ाइनिंग, डिजिटल मार्केटिंग से लेकर प्रोग्रामिंग तक बहुत कुछ आता है लेकिन मेरे भाई बहन आज भी सिर्फ मूवी देखना या गाने सुनना ही जानते हैं.............
यही हाल मेरे बच्चों और पत्नी का भी है, पत्नी दिल्ली की रहने वाली पढ़ी लिखी स्त्री हैं...... 20 वर्ष पहले जब विवाह हुआ तब भी मेरे घर में इंटरनेट, कम्प्युटर, मोबाइल होते थे....... मेरी पत्नी ढंग से स्मार्ट फोन भी इस्तेमाल नहीं कर पाती, कम्प्युटर तो भूल ही जाओ..... जबकि बेटा गेमिंग, AI, सॉफ्टवेर प्रोग्राममिंग करता है, बेटी ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग (दोनों बिना किसी कोमुटर कोर्स के सिर्फ इंटरनेट पर सीख रहे हैं, गाँव में रहकर खेती-गऊपालन करते हुये :D)
उससे भी बड़ी बात ये है की मेरे छोटे भाई की पत्नी बिलकुल अनपढ़ कभी किसी स्कूल में एक दिन भी नहीं पढ़ी शादी के बाद हमारे यहाँ आकर मेरे बेटे-बेटी से इंटरनेट, कम्प्युटर, स्मार्ट फोन, सोश्ल मीडिया, डिजिटल मार्केटिंग और ई-कॉमर्स में बहुत कुछ सीख गयी...... इंस्टीट्यूट में पढे अपने पति से ज्यादा जानती है वो

ज्ञान के लिए धन नहीं सीखने की इच्छा और बुद्धि चाहिए
 
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यह अध्याय कीर्ति के हायर एजुकेशन और टेक्निकल एजुकेशन पर आधारित रहा। आदित्य ने फ्यूचर को ध्यान मे रखकर बहुत ही बेहतरीन फैसला लिया। वह खुद शिक्षित है , आज के दौर की हालात की परख है , लड़कियों के पढ़ाई का इम्पोरटेंस समझता है इसलिए उसका यह डिसिजन मुझे बहुत ही बढ़िया लगा।

उसके पिताजी की सोच खासकर लड़कियों के एजुकेशन के लिए रूढ़िवादी मानी जाएगी। आज के दौर मे लड़कियों की उच्च शिक्षा उतनी ही जरूरी है जितना लड़कों की।
पिताजी का फैमिली के औरतों के साथ बस - ट्रेन मे जर्नी के दौरान औरतों पर विशेष ध्यान रखना एक सुलझे एवं अच्छे इंसान का आचरण था तो वहीं गवर्नमेंट बैंक पर अधिक विश्वास करना उस दौर के प्रायः लोगों की मानसिकता। प्राइवेट बैंको पर भरोसा नही होता था उन्हे।
जहां तक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की बात है , पुराने जमाने के स्टाफ अपने कस्टमर के साथ बहुत ही फ्रैंडली और को - ओपरेटिव होते थे । लेकिन अब या तो वो रईस कस्टमर पर अपनी नजरे - इनायत बनाए रखते है या मात्र जाॅब की औपचारिकता पुरी करते है।

खैर जब एजुकेशन की बात चल ही रही है तो इस विषय पर मै भी कुछ कहना चाहता हूं।
एक वक्त था जब हमारी एजुकेशन सिस्टम दुनिया मे सबसे श्रेष्ठ थी । देश विदेश से स्टूडेंट्स भारत पढ़ने आते थे। नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया के सभी विश्वविद्यालयों से श्रेष्ठ था।
लेकिन बख्तियार खिलजी की वजह से यह विश्वविद्यालय तबाह हो गया । यहां के आयुर्वेद एवं वैद्य ज्ञान देखकर वह कुंठित हो गया और 9 मंजिला इमारत जहां करोड़ो की तादाद मे पुस्तके थी , उस लाइब्ररी को जला कर राख कर दिया। पुस्तकों की संख्य कितनी थी यह आप इस बात से अंदाजा लगा सकते है कि पुरे तीन महीने तक लाइब्ररी जलती रही।
और हमारा दुर्भाग्य देखिए , इसी बख्तियार खिलजी के नाम पर बिहार के एक रेलवे स्टेशन का नाम है - बख्तियारपुर।

दूसरी त्रासदी एजुकेशन सिस्टम पर तब आई जब लार्ड विलियम बैंटिक ने मैकाले को अपना कानुनी सलाहकार बनाया। और फिर यह शख्स हमारी एजुकेशन सिस्टम को पुरी तरह बदल कर रख दिया। मैकाले ने ब्रिटिश संसद मे बयान दिया था कि भारतीय एजुकेशन सिस्टम हमारे इंग्लिश एजुकेशन सिस्टम से मीलों मील आगे है और अगर इसे नही बदला गया तो एक वक्त ऐसा आएगा जब ये भारतीय पुरे विश्व पर राज करेंगे। और तब से अर्थात 1835 से मैकाले शैक्षिक नीति ही हमारे भारत की शैक्षिक नीति बनी हुई है। हमारी मानसिकता ऐसी हो गई है कि इस एजुकेशन सिस्टम को छोड़ ही नही पाते।

मेरा मानना है , बच्चों के उम्र के हिसाब से चार पार्ट मे एजुकेशन को बांट देना चाहिए । शुरुआत के पांच साल तक बच्चों को सिर्फ वेद , रामायण , गीता , संस्कृत , योग , प्राणायाम , अनुशासन वगैरह का ज्ञान देना चाहिए । उसके बाद के सात साल अर्थात बच्चों को बारह वर्ष के उम्र तक इंग्लिश , अपनी मातृ भाषा , हिन्दी , इतिहास , भूगोल , गणित और विज्ञान की शिक्षा दी जाए । उसके बाद के चार साल तक उनके रूचि अनुसार आर्ट , कॉमर्स और साइंस की शिक्षा दी जाए और उसके बाद वो कोई टेक्निकल कोर्स कर सकते है।
शुरुआत की शिक्षा बच्चों का संस्कार डेवलप करेगी। उनके चरित्र का नींव खड़ा करेगी। एक भारत एक एजुकेशन सिस्टम होना चाहिए और तब ही हम एक समृद्ध और शिक्षित भारत का निर्माण कर सकते है। ( यह मेरा पर्सनल विचार है )

अपडेट बहुत ही खूबसूरत था मानु भाई।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग।
 

Ishaan

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भाग - 11

अब तक आपने पढ़ा:


भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!

अब आगे:

चाय
पीते हुए भैया ने जानबूझ कर बात छेड़ते हुए मुझसे पुछा;

आदि भैया: और कीर्ति? तो आगे क्या सोचा है?

भय का सवाल सुन मैं एकदम सन्न थी, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या जवाब दूँ?



हर बच्चे का एक सपना होता है की उसने बारहवीं पास करने के बाद क्या करना है...क्या बनना है मगर मैंने कभी इतनी दूर की सोची ही नहीं?! मेरी ख्वाइश तो बस दुनिया घूमने-फिरने, सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनने और तरह-तरह का खाना खाने पर खत्म हो जाती थीं|

खैर, भैया के सवाल का जवाब तो देना था इसलिए मैं अपना दिमाग चलाते हुए कुछ सोचने लगी;

मैं: वो...

मैं इसके आगे कुछ सोच पाती और बोलती उससे पहले ही पिताजी मेरी बात काटते हुए बोले;

पिताजी: मेरी बता मानकर ग्यारहवीं में अगर इसने (मैंने) साइंस ली होती तो मैं अपनी बेटी को डॉक्टर बनाता| आँखों का डॉक्टर....फिर धूम-धाम से अपनी कीर्ति की शादी दूसरे डॉक्टर लड़के से करता और फिर ये दोनों शादी के बाद आराम से अपनी प्रैक्टिस करते|

पिताजी ने अपना ख्याली पुलाओ बना कर हमारे सामने परोसा| पिताजी ने अपनी बेटी के लिए बहुत ऊँचा ख्वाब संजोया था मगर उनकी बेटी की मोटी बुद्धि में सइंस का 'स' अक्षर भी नहीं घुसता था| हाँ 'स' से 'सेक्स' शब्द दिमाग में अच्छे से घुस चूका था!

बहरहाल, पिताजी की बात सुन मेरा सर शर्म से झुक गया था क्योंकि मैं अपने पिताजी की ये इच्छा पूरी नहीं कर पाई थी| मुझे शर्मिंदा होने से बचाने के लिए भैया ने बात सँभाली और बोले;

आदि भैया: तेरा ओपन कॉलेज तो शुरू हो जायेगा लेकिन क्लासेज तो तेरी सिर्फ संडे को होंगीं, बाकी के छः दिन क्या करेगी?

मेरे पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं अपने दिमाग को तेज़ दौड़ाने लगी ताकि कोई जवाब दे सकूँ|

वहीं पिताजी को भैया का ये सवाल अटपटा सा लगा इसलिए उन्होंने बात काटते हुए कहा;

पिताजी: क्या करेगी मतलब? घर में अपनी माँ की मदद करेगी, फिर ये बच्चों को पढ़ाती भी तो है|

पिताजी की आवाज़ में थोड़ी खुश्की थी जिसे महसूस कर मैंने डर के मारे चुप्पी साध ली|

आदि भैया: पिताजी, ज़माना बदल गया है| जो बच्चे ओपन से कॉलेज करते हैं वो अपना समय कुछ नया सीखने में लगाते हैं| जैसे आजकल कम्प्यूटर्स का ज़माना है इसलिए हर बच्चा कंप्यूटर कोर्स कर रहा है| ...

भैया ने जैसे ही नए ज़माने का ज्ञान दिया, वैसे ही पिताजी ने भैया की बात काट दी;

पिताजी: कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी ये (मैं)? इसने कौनसा नौकरी करनी है जो तू इसे कंप्यूटर कोर्स करने को कह रहा है?!

पिताजी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोले|



दरअसल पिताजी को शादी से पहले लड़कियों का नौकरी करना पसंद नहीं था| उनका मानना था की शादी से पहले नौकरी करने वाली लड़कियों का दिमाग सातवें आसमान पर होता है| घर की चार दीवारी छोड़ लड़कियाँ बाहर निकल कर बहकने लगती हैं| फैशन परस्त बन पैंट, टॉप, जीन्स और शर्ट जैसे कपडे पहनने लगती हैं| फिर ऐसी लड़कियों का लव मैरिज के चक्कर में पड़ कर खानदान का नाम खराब भी होने का खतरा होता है|

वहीं अगर लड़की शादी के बाद नौकरी करती है तो उस पर उसके परिवार की जिम्मेदारी होती है, उसके पति की जकड़ होती है इसलिए लड़कियाँ किसी गलत रास्ते नहीं भटकतीं| अब इसे मेरे पिताजी की रूढ़िवादी सोच समझिये या फिर एक पिता का अपनी बेटी के लिए चिंता करना, ये आप सब पर है|



खैर, पिताजी के गुस्से को देखते हुए भैया ने अपनी बात का रुख बदला और बड़ी ही चालाकी से अपनी बात आगे रखी;

आदि भैया: पिताजी, मैं नौकरी करने की बात नहीं कह रहा| मैं बस ये कह रहा हूँ की कीर्ति को कंप्यूटर चलाना तक नहीं आता| दसवीं तक इसने (मैंने) जो भी कंप्यूटर सीखा है वो किसी काम का नहीं| न इसे टाइपिंग आती है, न इसे ईमेल करना आता है, न इसे ऑनलाइन बिल भरना आता है, न ऑनलाइन टिकट बुक करना आता है और सिर्फ यही नहीं...ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इसे नहीं आती|

अब कल को इसकी शादी हुई और इसके पति ने इसे कोई काम बोलै तो ये क्या करेगी? मुझे फ़ोन कर के पूछेगी या फिर अपने ससुराल में ताने खायेगी?!

जब बात आती है अपनी बेटी के ससुराल की तो एक पिता बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है, वही कुछ अभी हुआ|

बेमन से ही सही परन्तु अपनी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए पिताजी मान गए|



रात में खाना खाने के बाद माँ-पिताजी अपने कमरे में सोने जा चुके थे| मैं अपने कमरे में बैठी अपने कल्पना के घोड़े दौड़ाने में लगी थी की न्य कॉलेज कैसा होगा? क्या कॉलेज में रैगिंग होगी? कॉलेज में कैसे कपडे पहनते होंगें? कंप्यूटर क्लास में मैं क्या-क्या सीखूँगी?

तभी भैया मेरे कमरे में आये, उन्हें देख मैं फौरन आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| आज हम दोनों भाई-बहन के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान तैर रही थी और ये मनमोहक मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज एक भाई ने अपनी बहन के जीवन को सँवारने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया था, वहीं मेरे चेहरे पर मुस्कान का कारण ये था की मेरी ज़िन्दगी में अब एक नई सुबह उगने वाली थी|



“आजतक तू इस घर रुपी पिंजरे में कैद थी लेकिन कल से तू खुले आसमान में पंख फैला कर अपनी ख़ुशी से उड़ पाएगी| लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखिओ की तू खुले आसमान में उड़ने के चक्कर में पिताजी के बसाये इस घरोंदे को न रोंद दे!” आदि भैया मेरे दोनों गालों पर हाथ रखते हुए बोले|

इस पूरी दुनिया में बस एक मेरे भैया ही तो हैं जो मेरे दिल की हर ख्वाइश समझते थे| बचपन से ले कर अभी तक बस एक वही हैं जो बिना मेरे बोले मेरे मन की बात पढ़ लिया करते थे और फिर कोई न कोई जुगत कर मेरी इच्छा पूरी कर दिया करते हैं| वो जानते थे की मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ और अब मुझे दुनिया देखनी चाहिए, तभी उन्होंने अपनी चालाकी भरी बातों में पिताजी को उलझा कर मेरा घर से अकेले निकलने का इंतज़ाम किया|

भैया की दी हुई ये शिक्षा मैंने अपने पल्ले बाँध ली और कभी ऐसा कोई काम नहीं किया की पिताजी का नाम मिटटी में मिल जाए या मेरे कारण कभी उनका सर शर्म से झुके!



अगली सुबह भैया और मैं सबसे पहले बैंक जाने के लिए निकले| भैया और मैं चढ़े बस में, ये पहलीबार था की मैं पिताजी के अलावा किसी और के साथ बस में चढ़ी हूँ|

जब हम सब पिताजी के साथ कहीं जाते थे तो पिताजी सबसे पहले मुझे और माँ को सीट दिलवाते थे| फिर वो आदि भैया के लिए सीट का इंतज़ाम करते थे और सबसे आखिर में स्वयं के लिए सीट ढूँढ़ते थे| कई बार तो सीट न मिलने पर पिताजी कंडक्टर की बगल में बैठ कर सफर करते थे और एक बार तो पिताजी को जो बस का गियर बॉक्स होता है उस पर बैठ कर भी यात्रा करनी पड़ी थी|



एक पिता का सबसे पहला दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है| वह सबसे पहले अपने परिवार के सुख और आराम के लिए मेहनत करता है तथा अंत में अपने लिए बैठने की कोई छोटी सी जगह तलाशता है|



खैर, भैया के साथ बस की ये यात्रा बहुत मजेदार थी क्योंकि भैया मुझे कौनसी बस कहाँ जाती है, बस में कैसे अकेले चढ़ना-उतरना है, कैसे बस में खुद का ध्यान रखना है आदि जैसी ज्ञान भरी बातें समझा रहे थे|

अंततः हम बैंक पहुँच ही गए| हर सरकारी नौकरशाह की तरह मेरे पिताजी का भी अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में था और इस बैंक को निरंतर काल तक व्यस्त रहने का श्राप मिला है! अब अगर ग्राहक का काम करने की बजाए उसे एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौडाओगे, बारह बजे लंच टाइम कह ग्राहक को भगाओगे तो बैंक में भीड़ बढ़ेगी ही न?! ऊपर से बैंक में आते हैं वो बूढ़े-बुजुर्ग जिनको घर में बस पासबुक प्रिंट कराने के लिए रखा होता है| ऊपर से ये बूढ़े अंकल लोग अपने घर की ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों की भी पासबुक इकठ्ठा कर बैंक लाते हैं!

मैं आज पहलीबार बैंक आई थी और इतने लोगों को लाइन में लगे देख मुझे कुछ समझ ही नहीं आया! "उधर ड्राफ्ट का फॉर्म रखा होगा, उसे भर तब तक मैं लाइन में लगता हूँ|" आदि भैया ने मुझे आदेश दिया और खुद जा कर लाइन में लग गए| टेबल पर से फॉर्म ले कर मैंने सुन्दर-सुन्दर हैंडराइटिंग में फॉर्म भरा और फटाफट भैया को फॉर्म दे दिया| अब हमें करना था इंतज़ार और वो भी 10-5 मिनट नहीं बल्कि पूरे 1 घंटे का इंतज़ार! अब मैंने चेक तो देखा था मगर ड्राफ्ट मैंने पहले कभी नहीं देखा था| मुझे लगा था की ड्राफ्ट कोई बहुत बड़ी चीज़ होगी मगर जब ड्राफ्ट मेरे हतः में आया तो ये लगभग चेक जैसा ही था!



ड्राफ्ट ले कर हम पहुँचे मेरी यूनिवर्सिटी और यहाँ तो बैंक से भी ज्यादा लम्बी लाइन थी! परन्तु एक अंतर् था, जहाँ बैंक में अधिकतर लोग वृद्ध थे, वहीं यूनिवर्सिटी की लाइन में सब मेरी ही उम्र की लड़कियाँ और लड़के थे| इस बार भैया ने मुझे लाइन में लगने को कहा और खुद पीछे आराम से खड़े हो कर दूसरी लड़कियों को देखने लगे! देखा जाए तो ठीक ही था, फॉर्म मेरा...कॉलेज मेरा...तो जमा भी तो मैं ही कराऊँगी न?! बैंक के मुक़ाबले यहाँ काम थोड़ी रफ़्तार से हो रहा था इसलिए लगभग पौने घंटे में मेरा फॉर्म जमा हो गया| जब मैं फॉर्म भर कर आई तो भैया मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले; "लाइन में खड़े हो कर फॉर्म भरने की आदत डाल ले क्योंकि तेरे असाइनमेंट...तेरे एग्जाम फॉर्म सब ऐसे ही लाइन में लग कर जमा होंगें|" मुझे पहले ही अपना फॉर्म खुद भरकर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए मैंने भैया की दी इस नसीहत को अपने पल्ले बाँध लिया|



कॉलेज के बाद अब बारी थी मेरे कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की| मेरे अनुसार तो ये साडी सी कंप्यूटर क्लास होने वाली थी जिसमें मुझे कंप्यूटर चलाना सीखना था मगर आदि भैया ने कुछ और ही सोच रखा था|



हम दोनों पहुँचे एक इंस्टिट्यूट के बाहर जहाँ ढेरों बच्चे अंदर जा और बाहर आ रहे थे| इतने बच्चों को देख जो पहला ख्याल मेरे दिमाग में नाय वो था; 'क्या हमारी स्टेट के सारे बच्चे मेरी तरह निरे बुद्धू हैं जो सारे के सारे यहाँ कंप्यूटर चलाना सीखने आये हैं? अब मेरे घर में तो कंप्यूटर है नहीं तो मेरा कंप्यूटर चलाना तो सीखना तो बनता है मगर इन सबके घर में कंप्यूटर नहीं?' मैं अभी अपने ख्याल में डूबी थी की भैया ने मुझे अंदर चलने को कहा|

अंदर पहुँच भैया ने रिसेप्शन पर बैठी एक सुन्दर सी लड़की से बात की और उस लड़की ने भैया को एक फॉर्म भरने को दे दिया| भैया वो फॉर्म मेरे पास ले आये और मुझे भरने को कहा| उस फॉर्म में मुझे अपने दसवीं तथा बारहवीं के नंबर भरने थे| फॉर्म भरते हुए मैंने देख उसमे कुछ courses लिखे हैं जैसे; 'C++, Java, Tally, Microsoft office आदि|' मैंने उन courses को पढ़ा तो सही मगर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा| अभी हमने फॉर्म भरा ही था की हमारे लिए एक लड़का पानी ले आया| मैं अपनी इस आवभगत को देख बड़ी खुश थी, ऐसा लगता था मानो मैं कोई मुख्य अतिथि हूँ| हमें पानी पिला कर वो लड़का मेरा फॉर्म अपने साथ ले गया| 5 मिनट बाद हमें एक केबिन में बुलाया गया, इस केबिन में एक सुन्दर सी लड़की बैठी थी| उसने हमें बैठने को कहा तथा भैया से बात करने लगी|



"हम ऑफिस असिस्टेंट के कोर्स के बारे में जानना चाहते हैं|" भैया ने बायत शुरू करते हुए कहा| उस लड़की ने हमें उस कोर्स के बारे में सब बताया पर जब उसने कहा की इस कोर्स की फीस पाँच हज़ार है तो मेरे पॉँव तले ज़मीन खिसक गई! वहीं भैया ने हार न मानते हुए उस लड़की से फीस कम करवाने में लग गए| करीब 10 मिनट की बातचीत के बाद वो लड़की पाँच सौ रुपये कम करने को मान गई| भैया ने उसी वाट उस लड़की को हज़ार रुपये एडवांस दे दिए तथा एक शर्त रख दी; "आप कोर्स की फीस पंद्रह सौ की रसीद बनाइयेगा| बाकी की फीस की रसीद अलग बना दीजियेगा|" मैं समझ गई की भैया ये पंद्रह सौ वाली रसीद पिताजी को दिखायेंगे और बाकी के पैसे वो खुद अपनी जेब से भरेंगे|



उस इंस्टिट्यूट से जैसे ही हम बाहर निकले और दो कदम चल कर बाहर सड़क की ओर बढे की 3-4 लड़कों का एक झुण्ड दौड़ता हुआ हमारी तरफ आया| इतने सारे लड़कों को अपनी ओर यूँ दौड़ कर आते देख मैं एकदम से घबरा गई और भैया के पीछे छुप गई| वहीं दूसरी तरफ भैया एकदम सतर्क हो गए थे और अकर्मक मुद्रा में थे| लेकिन बात कुछ और ही निकली!



ये सब लड़के अलग-अलग इंस्टिट्यूट के थे और हमें अपने-अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने को कह रहे थे ताकि मेरी दी हुई फीस से उनकी थोड़ी कमिशन बन जाए!

भैया ने उन्हें समझा दिया की हमने दाखिला ले लिया है| ये सुनकर वो सारे लड़के अपना दूसरा ग्राहक ढूँढने दूसरी ओर दौड़ गए! इस प्रकरण ने मुझे सिखाया की इस दुनिया में लोग दो रोटी कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते हैं|



खैर, मेरा कॉलेज का फॉर्म भरा जा चूका था, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में भी दाखिला हो चूका था| अब बारी थी इस ख़ुशी को मनाने की इसलिए भैया और मैं पहुँचे एक अच्छे रेस्टोरेंट में| भैया ने सीधा पिज़्ज़ा आर्डर किया और जबतक पिज़्ज़ा आता भैया मुझे समझाने लगे; "तू अब बड़ी हो गई है और अब समय है की तू पिताजी की छत्र छाया से निकल खुद अपनी जिम्मेदारियाँ उठाये| पिताजी की नज़र में तू आज भी एक छोटी बच्ची है...उनकी प्यारी सी नन्ही चिड़िया इसीलिये वो अपनी इस प्यारी चिड़िया को दुनिया में बेस चील-कौओं की नज़र से बचाने में लगे रहते हैं| उनके लिए एक बार तेरा घर बीएस जाए तो वो चिंता मुक्त हो जाएंगे|

लेकिन मैं जानता हूँ की तू अब बच्ची नहीं रही, तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अपने जीवन को सही रास्ते की ओर ले जा सके| जब तूने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था न, मैं तभी समझ गया था की तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अब खुद को अच्छे से सँभाल सके| देख मैं जानता हूँ की तुझे मेरे और पिताजी पर निर्भर नहीं रहना, तुझे अपना अलग रास्ता बनाना है...अपना जीवन अपने अनुसार जीना है और इस सब के लये चाहिए होता है पैसा! अब ये पैसा तुझे पिताजी से तो मिल नहीं सकता इसलिए तुझे खुद पैसे कमाने होंगें ताकि जबतक तेरी शादी न हो तू दुनिया अपने नज़रिये से देख सके...जी सके|



तुझे याद है जब पहलीबार तुझे बच्चों को पढ़ाने की फीस मिली थी? उस दिन तू कितनी खुश थी...इतनी खुस की तेरी आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भीग गई थीं| जानती है वो ख़ुशी...वो तेरी नम आँखें किस बात की सूचक थीं? वो ख़ुशी थी तेरी मेहनत से कमाए पैसों को हाथ में लेने की ख़ुशी| उस वक़्त मैंने महसूस कर लिया था की तुझे घर पर बँध कर नहीं रहना, तुझे नौकरी करनी है...पैसे कमाने हैं|

बस उसी वक़्त मैंने सोच लिया था की मेरी बहन अपनी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीएगी और अपने उसी फैसले पर अम्ल करते हुए मैं पिताजी के साथ छल कर रहा हूँ|



तेरी एकाउंटेंसी अच्छी है इसलिए मैंने तेरे लिए ऑफिस असिस्टेंट का कोर्स सेलेक्ट किया| इस कोर्स में तुझे एकाउंटेंसी कंप्यूटर में कैसे की जाती है ये सिखाया जायेगा| जब तू ये कोर्स पूरा कर लेगी तब मैं तेरी कहीं छोटी-मोटी जॉब लगवा दूँगा, जिससे तुझे एक्सपीरियंस मिलेगा| जब तेरा कॉलेज पूरा हो जायेगा न तब इसी एक्सपीरियंस के बलबूते पर तुझे अच्छी जॉब मिलेगी| लेकिन तबतक ये सब तुझे पिताजी से छुपाना होगा, उनकी नज़र में तू बस बेसिक कंप्यूटर सीख रही है| अगर तूने उन्हें सब सच बता दिया तो पिताजी बहुत गुस्सा होंगें और हम दोनों पर कभी भरोसा नहीं करेंगे|” सारा सच जानकार मेरे मन में भैया के लिए प्यार उमड़ आया| मैं एकदम से भावुक हो कर खड़ी हुई और भैया के गले लग सिसकने लगी| "थ...थैंक...यू...भैया....! आ..आपने मेरे लिए..." इससे ज्यादा मैं कुछ न कह पाई और मेरा रोना तेज़ हो गया|


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
जारी रहेगा अगले भाग में!
Boht hi pyara update Rocky Bhai
Kirti ke jivan ki nayi shuruwat ho rahi hai wo bi pita ji se jhuth bolke bas ab kirti koi gadbad na kar de nahi tohh kirti ke sath aadi ko bi pita ji ki daant padegi
Pehle Maine socha tha ki story complete hogi tab read karuga par update dekh kr sabar nahi huya
Waiting for next update sir :wink2:
 

Ajju Landwalia

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भाग - 11

अब तक आपने पढ़ा:


भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!

अब आगे:

चाय
पीते हुए भैया ने जानबूझ कर बात छेड़ते हुए मुझसे पुछा;

आदि भैया: और कीर्ति? तो आगे क्या सोचा है?

भय का सवाल सुन मैं एकदम सन्न थी, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या जवाब दूँ?



हर बच्चे का एक सपना होता है की उसने बारहवीं पास करने के बाद क्या करना है...क्या बनना है मगर मैंने कभी इतनी दूर की सोची ही नहीं?! मेरी ख्वाइश तो बस दुनिया घूमने-फिरने, सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनने और तरह-तरह का खाना खाने पर खत्म हो जाती थीं|

खैर, भैया के सवाल का जवाब तो देना था इसलिए मैं अपना दिमाग चलाते हुए कुछ सोचने लगी;

मैं: वो...

मैं इसके आगे कुछ सोच पाती और बोलती उससे पहले ही पिताजी मेरी बात काटते हुए बोले;

पिताजी: मेरी बता मानकर ग्यारहवीं में अगर इसने (मैंने) साइंस ली होती तो मैं अपनी बेटी को डॉक्टर बनाता| आँखों का डॉक्टर....फिर धूम-धाम से अपनी कीर्ति की शादी दूसरे डॉक्टर लड़के से करता और फिर ये दोनों शादी के बाद आराम से अपनी प्रैक्टिस करते|

पिताजी ने अपना ख्याली पुलाओ बना कर हमारे सामने परोसा| पिताजी ने अपनी बेटी के लिए बहुत ऊँचा ख्वाब संजोया था मगर उनकी बेटी की मोटी बुद्धि में सइंस का 'स' अक्षर भी नहीं घुसता था| हाँ 'स' से 'सेक्स' शब्द दिमाग में अच्छे से घुस चूका था!

बहरहाल, पिताजी की बात सुन मेरा सर शर्म से झुक गया था क्योंकि मैं अपने पिताजी की ये इच्छा पूरी नहीं कर पाई थी| मुझे शर्मिंदा होने से बचाने के लिए भैया ने बात सँभाली और बोले;

आदि भैया: तेरा ओपन कॉलेज तो शुरू हो जायेगा लेकिन क्लासेज तो तेरी सिर्फ संडे को होंगीं, बाकी के छः दिन क्या करेगी?

मेरे पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं अपने दिमाग को तेज़ दौड़ाने लगी ताकि कोई जवाब दे सकूँ|

वहीं पिताजी को भैया का ये सवाल अटपटा सा लगा इसलिए उन्होंने बात काटते हुए कहा;

पिताजी: क्या करेगी मतलब? घर में अपनी माँ की मदद करेगी, फिर ये बच्चों को पढ़ाती भी तो है|

पिताजी की आवाज़ में थोड़ी खुश्की थी जिसे महसूस कर मैंने डर के मारे चुप्पी साध ली|

आदि भैया: पिताजी, ज़माना बदल गया है| जो बच्चे ओपन से कॉलेज करते हैं वो अपना समय कुछ नया सीखने में लगाते हैं| जैसे आजकल कम्प्यूटर्स का ज़माना है इसलिए हर बच्चा कंप्यूटर कोर्स कर रहा है| ...

भैया ने जैसे ही नए ज़माने का ज्ञान दिया, वैसे ही पिताजी ने भैया की बात काट दी;

पिताजी: कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी ये (मैं)? इसने कौनसा नौकरी करनी है जो तू इसे कंप्यूटर कोर्स करने को कह रहा है?!

पिताजी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोले|



दरअसल पिताजी को शादी से पहले लड़कियों का नौकरी करना पसंद नहीं था| उनका मानना था की शादी से पहले नौकरी करने वाली लड़कियों का दिमाग सातवें आसमान पर होता है| घर की चार दीवारी छोड़ लड़कियाँ बाहर निकल कर बहकने लगती हैं| फैशन परस्त बन पैंट, टॉप, जीन्स और शर्ट जैसे कपडे पहनने लगती हैं| फिर ऐसी लड़कियों का लव मैरिज के चक्कर में पड़ कर खानदान का नाम खराब भी होने का खतरा होता है|

वहीं अगर लड़की शादी के बाद नौकरी करती है तो उस पर उसके परिवार की जिम्मेदारी होती है, उसके पति की जकड़ होती है इसलिए लड़कियाँ किसी गलत रास्ते नहीं भटकतीं| अब इसे मेरे पिताजी की रूढ़िवादी सोच समझिये या फिर एक पिता का अपनी बेटी के लिए चिंता करना, ये आप सब पर है|



खैर, पिताजी के गुस्से को देखते हुए भैया ने अपनी बात का रुख बदला और बड़ी ही चालाकी से अपनी बात आगे रखी;

आदि भैया: पिताजी, मैं नौकरी करने की बात नहीं कह रहा| मैं बस ये कह रहा हूँ की कीर्ति को कंप्यूटर चलाना तक नहीं आता| दसवीं तक इसने (मैंने) जो भी कंप्यूटर सीखा है वो किसी काम का नहीं| न इसे टाइपिंग आती है, न इसे ईमेल करना आता है, न इसे ऑनलाइन बिल भरना आता है, न ऑनलाइन टिकट बुक करना आता है और सिर्फ यही नहीं...ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इसे नहीं आती|

अब कल को इसकी शादी हुई और इसके पति ने इसे कोई काम बोलै तो ये क्या करेगी? मुझे फ़ोन कर के पूछेगी या फिर अपने ससुराल में ताने खायेगी?!

जब बात आती है अपनी बेटी के ससुराल की तो एक पिता बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है, वही कुछ अभी हुआ|

बेमन से ही सही परन्तु अपनी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए पिताजी मान गए|



रात में खाना खाने के बाद माँ-पिताजी अपने कमरे में सोने जा चुके थे| मैं अपने कमरे में बैठी अपने कल्पना के घोड़े दौड़ाने में लगी थी की न्य कॉलेज कैसा होगा? क्या कॉलेज में रैगिंग होगी? कॉलेज में कैसे कपडे पहनते होंगें? कंप्यूटर क्लास में मैं क्या-क्या सीखूँगी?

तभी भैया मेरे कमरे में आये, उन्हें देख मैं फौरन आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| आज हम दोनों भाई-बहन के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान तैर रही थी और ये मनमोहक मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज एक भाई ने अपनी बहन के जीवन को सँवारने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया था, वहीं मेरे चेहरे पर मुस्कान का कारण ये था की मेरी ज़िन्दगी में अब एक नई सुबह उगने वाली थी|



“आजतक तू इस घर रुपी पिंजरे में कैद थी लेकिन कल से तू खुले आसमान में पंख फैला कर अपनी ख़ुशी से उड़ पाएगी| लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखिओ की तू खुले आसमान में उड़ने के चक्कर में पिताजी के बसाये इस घरोंदे को न रोंद दे!” आदि भैया मेरे दोनों गालों पर हाथ रखते हुए बोले|

इस पूरी दुनिया में बस एक मेरे भैया ही तो हैं जो मेरे दिल की हर ख्वाइश समझते थे| बचपन से ले कर अभी तक बस एक वही हैं जो बिना मेरे बोले मेरे मन की बात पढ़ लिया करते थे और फिर कोई न कोई जुगत कर मेरी इच्छा पूरी कर दिया करते हैं| वो जानते थे की मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ और अब मुझे दुनिया देखनी चाहिए, तभी उन्होंने अपनी चालाकी भरी बातों में पिताजी को उलझा कर मेरा घर से अकेले निकलने का इंतज़ाम किया|

भैया की दी हुई ये शिक्षा मैंने अपने पल्ले बाँध ली और कभी ऐसा कोई काम नहीं किया की पिताजी का नाम मिटटी में मिल जाए या मेरे कारण कभी उनका सर शर्म से झुके!



अगली सुबह भैया और मैं सबसे पहले बैंक जाने के लिए निकले| भैया और मैं चढ़े बस में, ये पहलीबार था की मैं पिताजी के अलावा किसी और के साथ बस में चढ़ी हूँ|

जब हम सब पिताजी के साथ कहीं जाते थे तो पिताजी सबसे पहले मुझे और माँ को सीट दिलवाते थे| फिर वो आदि भैया के लिए सीट का इंतज़ाम करते थे और सबसे आखिर में स्वयं के लिए सीट ढूँढ़ते थे| कई बार तो सीट न मिलने पर पिताजी कंडक्टर की बगल में बैठ कर सफर करते थे और एक बार तो पिताजी को जो बस का गियर बॉक्स होता है उस पर बैठ कर भी यात्रा करनी पड़ी थी|



एक पिता का सबसे पहला दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है| वह सबसे पहले अपने परिवार के सुख और आराम के लिए मेहनत करता है तथा अंत में अपने लिए बैठने की कोई छोटी सी जगह तलाशता है|



खैर, भैया के साथ बस की ये यात्रा बहुत मजेदार थी क्योंकि भैया मुझे कौनसी बस कहाँ जाती है, बस में कैसे अकेले चढ़ना-उतरना है, कैसे बस में खुद का ध्यान रखना है आदि जैसी ज्ञान भरी बातें समझा रहे थे|

अंततः हम बैंक पहुँच ही गए| हर सरकारी नौकरशाह की तरह मेरे पिताजी का भी अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में था और इस बैंक को निरंतर काल तक व्यस्त रहने का श्राप मिला है! अब अगर ग्राहक का काम करने की बजाए उसे एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौडाओगे, बारह बजे लंच टाइम कह ग्राहक को भगाओगे तो बैंक में भीड़ बढ़ेगी ही न?! ऊपर से बैंक में आते हैं वो बूढ़े-बुजुर्ग जिनको घर में बस पासबुक प्रिंट कराने के लिए रखा होता है| ऊपर से ये बूढ़े अंकल लोग अपने घर की ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों की भी पासबुक इकठ्ठा कर बैंक लाते हैं!

मैं आज पहलीबार बैंक आई थी और इतने लोगों को लाइन में लगे देख मुझे कुछ समझ ही नहीं आया! "उधर ड्राफ्ट का फॉर्म रखा होगा, उसे भर तब तक मैं लाइन में लगता हूँ|" आदि भैया ने मुझे आदेश दिया और खुद जा कर लाइन में लग गए| टेबल पर से फॉर्म ले कर मैंने सुन्दर-सुन्दर हैंडराइटिंग में फॉर्म भरा और फटाफट भैया को फॉर्म दे दिया| अब हमें करना था इंतज़ार और वो भी 10-5 मिनट नहीं बल्कि पूरे 1 घंटे का इंतज़ार! अब मैंने चेक तो देखा था मगर ड्राफ्ट मैंने पहले कभी नहीं देखा था| मुझे लगा था की ड्राफ्ट कोई बहुत बड़ी चीज़ होगी मगर जब ड्राफ्ट मेरे हतः में आया तो ये लगभग चेक जैसा ही था!



ड्राफ्ट ले कर हम पहुँचे मेरी यूनिवर्सिटी और यहाँ तो बैंक से भी ज्यादा लम्बी लाइन थी! परन्तु एक अंतर् था, जहाँ बैंक में अधिकतर लोग वृद्ध थे, वहीं यूनिवर्सिटी की लाइन में सब मेरी ही उम्र की लड़कियाँ और लड़के थे| इस बार भैया ने मुझे लाइन में लगने को कहा और खुद पीछे आराम से खड़े हो कर दूसरी लड़कियों को देखने लगे! देखा जाए तो ठीक ही था, फॉर्म मेरा...कॉलेज मेरा...तो जमा भी तो मैं ही कराऊँगी न?! बैंक के मुक़ाबले यहाँ काम थोड़ी रफ़्तार से हो रहा था इसलिए लगभग पौने घंटे में मेरा फॉर्म जमा हो गया| जब मैं फॉर्म भर कर आई तो भैया मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले; "लाइन में खड़े हो कर फॉर्म भरने की आदत डाल ले क्योंकि तेरे असाइनमेंट...तेरे एग्जाम फॉर्म सब ऐसे ही लाइन में लग कर जमा होंगें|" मुझे पहले ही अपना फॉर्म खुद भरकर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए मैंने भैया की दी इस नसीहत को अपने पल्ले बाँध लिया|



कॉलेज के बाद अब बारी थी मेरे कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की| मेरे अनुसार तो ये साडी सी कंप्यूटर क्लास होने वाली थी जिसमें मुझे कंप्यूटर चलाना सीखना था मगर आदि भैया ने कुछ और ही सोच रखा था|



हम दोनों पहुँचे एक इंस्टिट्यूट के बाहर जहाँ ढेरों बच्चे अंदर जा और बाहर आ रहे थे| इतने बच्चों को देख जो पहला ख्याल मेरे दिमाग में नाय वो था; 'क्या हमारी स्टेट के सारे बच्चे मेरी तरह निरे बुद्धू हैं जो सारे के सारे यहाँ कंप्यूटर चलाना सीखने आये हैं? अब मेरे घर में तो कंप्यूटर है नहीं तो मेरा कंप्यूटर चलाना तो सीखना तो बनता है मगर इन सबके घर में कंप्यूटर नहीं?' मैं अभी अपने ख्याल में डूबी थी की भैया ने मुझे अंदर चलने को कहा|

अंदर पहुँच भैया ने रिसेप्शन पर बैठी एक सुन्दर सी लड़की से बात की और उस लड़की ने भैया को एक फॉर्म भरने को दे दिया| भैया वो फॉर्म मेरे पास ले आये और मुझे भरने को कहा| उस फॉर्म में मुझे अपने दसवीं तथा बारहवीं के नंबर भरने थे| फॉर्म भरते हुए मैंने देख उसमे कुछ courses लिखे हैं जैसे; 'C++, Java, Tally, Microsoft office आदि|' मैंने उन courses को पढ़ा तो सही मगर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा| अभी हमने फॉर्म भरा ही था की हमारे लिए एक लड़का पानी ले आया| मैं अपनी इस आवभगत को देख बड़ी खुश थी, ऐसा लगता था मानो मैं कोई मुख्य अतिथि हूँ| हमें पानी पिला कर वो लड़का मेरा फॉर्म अपने साथ ले गया| 5 मिनट बाद हमें एक केबिन में बुलाया गया, इस केबिन में एक सुन्दर सी लड़की बैठी थी| उसने हमें बैठने को कहा तथा भैया से बात करने लगी|



"हम ऑफिस असिस्टेंट के कोर्स के बारे में जानना चाहते हैं|" भैया ने बायत शुरू करते हुए कहा| उस लड़की ने हमें उस कोर्स के बारे में सब बताया पर जब उसने कहा की इस कोर्स की फीस पाँच हज़ार है तो मेरे पॉँव तले ज़मीन खिसक गई! वहीं भैया ने हार न मानते हुए उस लड़की से फीस कम करवाने में लग गए| करीब 10 मिनट की बातचीत के बाद वो लड़की पाँच सौ रुपये कम करने को मान गई| भैया ने उसी वाट उस लड़की को हज़ार रुपये एडवांस दे दिए तथा एक शर्त रख दी; "आप कोर्स की फीस पंद्रह सौ की रसीद बनाइयेगा| बाकी की फीस की रसीद अलग बना दीजियेगा|" मैं समझ गई की भैया ये पंद्रह सौ वाली रसीद पिताजी को दिखायेंगे और बाकी के पैसे वो खुद अपनी जेब से भरेंगे|



उस इंस्टिट्यूट से जैसे ही हम बाहर निकले और दो कदम चल कर बाहर सड़क की ओर बढे की 3-4 लड़कों का एक झुण्ड दौड़ता हुआ हमारी तरफ आया| इतने सारे लड़कों को अपनी ओर यूँ दौड़ कर आते देख मैं एकदम से घबरा गई और भैया के पीछे छुप गई| वहीं दूसरी तरफ भैया एकदम सतर्क हो गए थे और अकर्मक मुद्रा में थे| लेकिन बात कुछ और ही निकली!



ये सब लड़के अलग-अलग इंस्टिट्यूट के थे और हमें अपने-अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने को कह रहे थे ताकि मेरी दी हुई फीस से उनकी थोड़ी कमिशन बन जाए!

भैया ने उन्हें समझा दिया की हमने दाखिला ले लिया है| ये सुनकर वो सारे लड़के अपना दूसरा ग्राहक ढूँढने दूसरी ओर दौड़ गए! इस प्रकरण ने मुझे सिखाया की इस दुनिया में लोग दो रोटी कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते हैं|



खैर, मेरा कॉलेज का फॉर्म भरा जा चूका था, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में भी दाखिला हो चूका था| अब बारी थी इस ख़ुशी को मनाने की इसलिए भैया और मैं पहुँचे एक अच्छे रेस्टोरेंट में| भैया ने सीधा पिज़्ज़ा आर्डर किया और जबतक पिज़्ज़ा आता भैया मुझे समझाने लगे; "तू अब बड़ी हो गई है और अब समय है की तू पिताजी की छत्र छाया से निकल खुद अपनी जिम्मेदारियाँ उठाये| पिताजी की नज़र में तू आज भी एक छोटी बच्ची है...उनकी प्यारी सी नन्ही चिड़िया इसीलिये वो अपनी इस प्यारी चिड़िया को दुनिया में बेस चील-कौओं की नज़र से बचाने में लगे रहते हैं| उनके लिए एक बार तेरा घर बीएस जाए तो वो चिंता मुक्त हो जाएंगे|

लेकिन मैं जानता हूँ की तू अब बच्ची नहीं रही, तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अपने जीवन को सही रास्ते की ओर ले जा सके| जब तूने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था न, मैं तभी समझ गया था की तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अब खुद को अच्छे से सँभाल सके| देख मैं जानता हूँ की तुझे मेरे और पिताजी पर निर्भर नहीं रहना, तुझे अपना अलग रास्ता बनाना है...अपना जीवन अपने अनुसार जीना है और इस सब के लये चाहिए होता है पैसा! अब ये पैसा तुझे पिताजी से तो मिल नहीं सकता इसलिए तुझे खुद पैसे कमाने होंगें ताकि जबतक तेरी शादी न हो तू दुनिया अपने नज़रिये से देख सके...जी सके|



तुझे याद है जब पहलीबार तुझे बच्चों को पढ़ाने की फीस मिली थी? उस दिन तू कितनी खुश थी...इतनी खुस की तेरी आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भीग गई थीं| जानती है वो ख़ुशी...वो तेरी नम आँखें किस बात की सूचक थीं? वो ख़ुशी थी तेरी मेहनत से कमाए पैसों को हाथ में लेने की ख़ुशी| उस वक़्त मैंने महसूस कर लिया था की तुझे घर पर बँध कर नहीं रहना, तुझे नौकरी करनी है...पैसे कमाने हैं|

बस उसी वक़्त मैंने सोच लिया था की मेरी बहन अपनी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीएगी और अपने उसी फैसले पर अम्ल करते हुए मैं पिताजी के साथ छल कर रहा हूँ|



तेरी एकाउंटेंसी अच्छी है इसलिए मैंने तेरे लिए ऑफिस असिस्टेंट का कोर्स सेलेक्ट किया| इस कोर्स में तुझे एकाउंटेंसी कंप्यूटर में कैसे की जाती है ये सिखाया जायेगा| जब तू ये कोर्स पूरा कर लेगी तब मैं तेरी कहीं छोटी-मोटी जॉब लगवा दूँगा, जिससे तुझे एक्सपीरियंस मिलेगा| जब तेरा कॉलेज पूरा हो जायेगा न तब इसी एक्सपीरियंस के बलबूते पर तुझे अच्छी जॉब मिलेगी| लेकिन तबतक ये सब तुझे पिताजी से छुपाना होगा, उनकी नज़र में तू बस बेसिक कंप्यूटर सीख रही है| अगर तूने उन्हें सब सच बता दिया तो पिताजी बहुत गुस्सा होंगें और हम दोनों पर कभी भरोसा नहीं करेंगे|” सारा सच जानकार मेरे मन में भैया के लिए प्यार उमड़ आया| मैं एकदम से भावुक हो कर खड़ी हुई और भैया के गले लग सिसकने लगी| "थ...थैंक...यू...भैया....! आ..आपने मेरे लिए..." इससे ज्यादा मैं कुछ न कह पाई और मेरा रोना तेज़ हो गया|


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
जारी रहेगा अगले भाग में!


Bahut hi behtareen update he Maanu Bhai

Ek bade bhai ki bhumika behad shandar chitran koya he aapne...............aur zindagi ki sachchayi bhi sikha rahi he ye update

Bas ek kami rah gayi...........SBI ne lunch se pehle draft kaise bana diya.........ye nahi bataya aapne

Agle update ka besabri se intezar rahega Bhai
 

Rockstar_Rocky

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किस्सा दाढ़ी-मूँछ का!


सोमवार का दिन था और स्तुति को स्कूल भेज मैं चाय पी रहा था| मैंने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा तो लगा की दाढ़ी बहुत बढ़ गई है| अब स्तुति का जन्मदिन आ रहा था अगले महीने, तो मैंने सोचा की क्यों न अभी दाढ़ी ट्रिम कर लेता हूँ ताकि स्तुति के जन्मदिन तक बढ़िया दाढ़ी उग जाएगी| यही सोचकर मैंने अपना ट्रिम्मर उठाया और ट्रिम्मर को 6 नंबर पर सेट कर अपनी सारी दाढ़ी बराबर कर ली|

दाढ़ी ट्रिम करने के बाद मैंने अपना ट्रिम्मर वापस से जीरो पर कर तेल डालकर रख दिया| १० मिनट बाद अपनी मूँछ पर ऊँगली फेरते हुए मुझे एहसास हुआ की बाईं तरफ मूँछ के बाल थोड़े लम्बे हैं इसलिए मैंने सोचा की इन्हें भी ट्रिम कर बराबर कर लेता हूँ| ये सोचकर मैं खड़ा हुआ और ट्रिम्मर उठा कर सीधा अपनी मूछों की बाईं तरफ रख कर चला दिया!!!



अब ट्रिम्मर पहले से ही जीरो पर सेट था और मैं उसे 6 नंबर पर सेट करना भूल गया जिस कारन मेरी लगभग आधी मूँछ साफ़ हो गई!!! आईने में अपनी ऐसी शक्ल देख पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर मेरी हँसी छूट गई! माँ ने जब मुझे हँसते हुए सुना तो उन्होंने मेरी हँसी का कारण पुछा| जब मैं माँ के पास उसी हालत में आया तो माँ की भी हँसी छूट गई!

खैर अब लगभग आधी मूँछ कट चुकी थी इसलिए मेरे पास अब दो ही विकल्प थे! अब या तो बाकी की काट कर हिटलर बन जाऊँ या फिर पूरी दाढ़ी साफ़ कर ली जाए! मैं पूरी दाढ़ी साफ़ करना नहीं चाहता था क्योंकि तब मैं छोटा सा बछका लगता इसलिए मैंने अपना दिमाग लगाया और जीरो नंबर पर ट्रिम्मर को सेट किये हुए सारी दाढ़ी छोल दी! परन्तु इससे मेरी समस्या हल नहीं हुई, बल्कि इससे एक और समस्या खड़ी हो गई! कहीं-कहीं पर तो ट्रिम्मर ने दाढ़ी को एकदम साफ़ कर दिया था और कहीं-कहीं छोड़ दिया था! अब अगर दाढ़ी ऐसे ही छोड़ देता तो जहाँ बाल नहीं थे वहां बाल आने में समय लगता जिससे मुझे डर था की कहीं मेरी दाढ़ी uneven आई तो?

अब मेरे पास अंतिम रास्ता था की मैं सारी दाढ़ी जड़ से छोल दूँ...यानी clean shaven हो जाऊँ!



मैं हूँ गोल-मटोल तो ज़ाहिर है की मेरा चेहरा भी गोलू-मोलू है| बिना दाढ़ी के मैं एकदम से छोटा बच्चा लगता हूँ|

नाई (barber) ने जब मेरी सारी दाढ़ी छोलि तो अपनी शक्ल देख कर मेरी हँसी छूट गई! स्तुति के जन्म के बाद, संगीता की ख़ुशी के लिए मैंने एक बार मैंने अपनी दाढ़ी पूरी साफ़ की थी...उसके बाद आज जा के जब मैंने अपनी सारी दाढ़ी छोलवाई तो मुझे बहुत हँसी आई|

जब मैं दाढ़ी बनवा कर घर आया तो मेरी शक्ल देख मेरी माँ का हँसना शुरू हो गया! "आप ही तो कहते थे की तू दाढ़ी मत रखा कर और आज जब मैंने दाढ़ी नहीं साफ़ कर दी तो आप हँस रहे हो?!" मैंने माँ से प्यारभरी शिकायत की तो माँ बोलीं की अगर मैं शुरू से दाढ़ी नहीं रखता तो उन्हें हँसी न आती| अब इतने सालों बाद बिना दाढ़ी के मुझे देख उनसे उनकी हँसी कण्ट्रोल नहीं हो रही!



खैर, हम माँ-बेटे के लिए तो ये हँसी की बात थी मगर स्तुति...मेरी बिटिया के लिए तो बहुत बड़ा शौक था!



दोपहर को जब स्तुति स्कूल से लौटी तो दरवाजा मैंने खोला| स्तुति की आदत थी की वो स्कूल से आते ही मेरी गोदी में चढ़ जाती है और मुझे अपनी स्कूल से लौटने वाली पप्पी देती है| स्कूल जाते टाइम मुझसे जो पप्पी ले कर जाती है ये उसका ब्याज होता है!

जैसे ही मैंने दरवाजा खोला और स्तुति ने मेरा ये बालक वाला चेहरा देखा तो वो अपने दोनों हाथ अपने मुँह पर रख चिल्लाई; "hawwwwwww!!! पापा जी...ये आपको क्या हुई???" मेरी ऐसी शक्ल देख स्तुति को बड़ा ही जबरदस्त धक्का लगा था| मैंने स्तुति को गोदी लिया और दरवाजा बंद करते हुए उसे सारी कहानी सुनाई| सारी कहानी सुनते-सुनते मेरी बिटिया भावुक हो गई और मेरे गले लग सिसकने लगी| "औ ले ले... रोना नहीं बेटा…ये दाढ़ी फिर से उग आएगी और मैं वादा करता हूँ की मैं आगे से ऐसी कोई लापरवाही नहीं करूँगा|" मैं स्तुति को प्यार से बहलाने लगा ताकि स्तुति न रोये|

उधर स्तुति को सिसकते हुए सुन माँ ने अपनी शुगी को अपने सामने बिठाया और उसके सर पर हाथ फेरते हुए स्तुति को चुप करा दिया|"सुन ले लड़के! आज के बाद तूने बिना मेरी शुगी को पूछे दाढ़ी का एक बाल भी काटा न तो मैं तुझे बाथरूम में बंद कर दूँगी!" माँ ने मुझे प्यार से हड़काया| अपनी दादी जी की ये खोखली धमकी सुन स्तुति हँस पड़ी और मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ पँख के समान खोल दिए|



मैंने फिर से स्तुति को गोदी लिया और उसे उसके बचपन के बारे में बताने लगा, जब स्तुति 4 महीनों की थी और मैंने क्लीन शेव किया था| उस दिन की बातें जान स्तुति के चेहरे पर बड़ी प्यारी मुस्कान दौड़ गई| दरअसल, स्तुति को अपने बालपन की बातें सुनने में बहुत मज़ा आता है|

दोपहर को खाना खा कर जब मैं स्तुति को सुला रहा था तब स्तुति मेरे दोनों गालों पर हतः फेरते हुए बोली; पापा जी, आपके गाल तो मेरे गलों से भी सॉफ्ट हैं!" ये कहते हुए स्तुति ने मेरे दोनों मुलायम गालों की पप्पी ली और बोली; "पापा जी, बिना दाढ़ी के आप बहुत क्यूट लगते हो! लेकिन आजके बाद फिर कभी शेव नहीं करना वरना सब आपको मेरा छोटा भाई कहेंगे!"

मेरी माँ भी पलंग पर लेटी हुई थीं, उन्होंने जैसे ही स्तुति की अंतिम बात सुनी माँ ने ज़ोरदार ठहाका लगाया! वहीं मैं भी स्तुति की बात सुन ठहाका लगाकर हँसने लगे! स्तुति को भी अपनी बात पर हँसी ा रही थी इसलिए वो भी हम माँ-बेटों के साथ खिखिलकर हँसने लगी|



बहरहाल, मुझे स्तुति को चिढ़ाने का एक हथियार मिल गया था इसलिए मैंने शाम से ही स्तुति को "दीदी' कह कर बुलाना शुरू किया| मेरे मुख से अपने लिए 'दीदी' शब्द सुन स्तुति को आता प्यारब हरा गुस्सा और वो सीधा अपनी दादी जी की पास मेरी शिकायत ले कर पहुँच गई| "दाई, देखो पापा जी मुझे दीदी कह रहे हैं!" अपनी पोती की शिकायत सुन माँ बहुत ज़ोर से हँसी, फिर अपनी पोती की ख़ुशी के लिए मुझे चुप झूठ-मूठ का डाँट दिया|



स्तुति ने मेरी दाढ़ी साफ़ करने की बात अपने आयुष भैया को बताई तो आयुष भी ज़ोर से हँसने लगा| फिर स्तुति ने अपनी दिद्दा को फ़ोन खनकाया और सारी बात बताई| मैं स्तुति को 'दीदी' कह कर चिढ़ा रहा हूँ ये सुनकर नेहा को बहुत हँसी आई और उसने भी स्तुति को 'पीड़ा' की जगह 'दीदी' कह कर चिढ़ाना शुरू कर दिया!!!



तो ये थी वो हास्यास्पद बात|



आशा करता हूँ की आप सभी को ये प्रसंग सुनकर मज़ा आया होगा!
 

Mohdsirajali

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कुछ अंश जिनहोने मुझे आकर्षित किया





क्योंकि ये सब मेरा भी व्यक्तिगत अनुभव रहा है

अब आप अपनी बात कल कहेंगे

मैं अभी कहना चाहूँगा
"मैंने कभी किसी इंस्टीट्यूट से एक दिन का भी कम्प्युटर कोर्स नहीं किया, मेरे पिता की आर्थिक क्षमता ऐसी नहीं थी..... लेकिन 2000 में पिताजी की मृत्यु के बाद मैंने अपने दोनों भाई बहन को नोएडा के जाने-माने कम्प्युटर इंजीनियर जो मेरे घनिष्ठ मित्र थे, उनके इंस्टीट्यूट में एड्मिशन करा दिया। आज मुझे ग्राफिक डिज़ाइनिंग, वेब डिज़ाइनिंग, डिजिटल मार्केटिंग से लेकर प्रोग्रामिंग तक बहुत कुछ आता है लेकिन मेरे भाई बहन आज भी सिर्फ मूवी देखना या गाने सुनना ही जानते हैं.............
यही हाल मेरे बच्चों और पत्नी का भी है, पत्नी दिल्ली की रहने वाली पढ़ी लिखी स्त्री हैं...... 20 वर्ष पहले जब विवाह हुआ तब भी मेरे घर में इंटरनेट, कम्प्युटर, मोबाइल होते थे....... मेरी पत्नी ढंग से स्मार्ट फोन भी इस्तेमाल नहीं कर पाती, कम्प्युटर तो भूल ही जाओ..... जबकि बेटा गेमिंग, AI, सॉफ्टवेर प्रोग्राममिंग करता है, बेटी ई-कॉमर्स और डिजिटल मार्केटिंग (दोनों बिना किसी कोमुटर कोर्स के सिर्फ इंटरनेट पर सीख रहे हैं, गाँव में रहकर खेती-गऊपालन करते हुये :D)
उससे भी बड़ी बात ये है की मेरे छोटे भाई की पत्नी बिलकुल अनपढ़ कभी किसी स्कूल में एक दिन भी नहीं पढ़ी शादी के बाद हमारे यहाँ आकर मेरे बेटे-बेटी से इंटरनेट, कम्प्युटर, स्मार्ट फोन, सोश्ल मीडिया, डिजिटल मार्केटिंग और ई-कॉमर्स में बहुत कुछ सीख गयी...... इंस्टीट्यूट में पढे अपने पति से ज्यादा जानती है वो

ज्ञान के लिए धन नहीं सीखने की इच्छा और बुद्धि चाहिए
Rockstar bhai...aapne bilkul sahi kaha gyan ke liye dhan ki nahi seekhne ki iccha aur buddhi honi chahye...main bhi kuch share kar leta hoon..meri education bahot kam hai..sirf 10th tak...ghar ke maali halaat acche nahi the pita ji bachpan me hi chhod kar chale gaye..kisi tarah maa ne humko 10th tak padhaya..magar jab maa se jyada kuch na ho saka tab maine padhai chhod di..pehle dusre ka kaam kiya phir apna business start kiya maa har waqt prathna karti rehti thi ki mera baccha kaamyaab ho...main dilo jaan se juta raha aaj main kaamyaab hoon..sab maa ki duwaon ka phal hai jo mujhe mila...16 saal ki age me main kaam karne laga tha aaj 33 saal ka ho gaya hoon..mere ek dost ne mujhe computer chalana sikhaya..mobile to dheere dheere sab samajh jaate hain....
 
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