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Incest काला इश्क़ दूसरा अध्याय: एक बग़ावत

Mohdsirajali

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किस्सा दाढ़ी-मूँछ का!


सोमवार का दिन था और स्तुति को स्कूल भेज मैं चाय पी रहा था| मैंने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा तो लगा की दाढ़ी बहुत बढ़ गई है| अब स्तुति का जन्मदिन आ रहा था अगले महीने, तो मैंने सोचा की क्यों न अभी दाढ़ी ट्रिम कर लेता हूँ ताकि स्तुति के जन्मदिन तक बढ़िया दाढ़ी उग जाएगी| यही सोचकर मैंने अपना ट्रिम्मर उठाया और ट्रिम्मर को 6 नंबर पर सेट कर अपनी सारी दाढ़ी बराबर कर ली|

दाढ़ी ट्रिम करने के बाद मैंने अपना ट्रिम्मर वापस से जीरो पर कर तेल डालकर रख दिया| १० मिनट बाद अपनी मूँछ पर ऊँगली फेरते हुए मुझे एहसास हुआ की बाईं तरफ मूँछ के बाल थोड़े लम्बे हैं इसलिए मैंने सोचा की इन्हें भी ट्रिम कर बराबर कर लेता हूँ| ये सोचकर मैं खड़ा हुआ और ट्रिम्मर उठा कर सीधा अपनी मूछों की बाईं तरफ रख कर चला दिया!!!



अब ट्रिम्मर पहले से ही जीरो पर सेट था और मैं उसे 6 नंबर पर सेट करना भूल गया जिस कारन मेरी लगभग आधी मूँछ साफ़ हो गई!!! आईने में अपनी ऐसी शक्ल देख पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर मेरी हँसी छूट गई! माँ ने जब मुझे हँसते हुए सुना तो उन्होंने मेरी हँसी का कारण पुछा| जब मैं माँ के पास उसी हालत में आया तो माँ की भी हँसी छूट गई!

खैर अब लगभग आधी मूँछ कट चुकी थी इसलिए मेरे पास अब दो ही विकल्प थे! अब या तो बाकी की काट कर हिटलर बन जाऊँ या फिर पूरी दाढ़ी साफ़ कर ली जाए! मैं पूरी दाढ़ी साफ़ करना नहीं चाहता था क्योंकि तब मैं छोटा सा बछका लगता इसलिए मैंने अपना दिमाग लगाया और जीरो नंबर पर ट्रिम्मर को सेट किये हुए सारी दाढ़ी छोल दी! परन्तु इससे मेरी समस्या हल नहीं हुई, बल्कि इससे एक और समस्या खड़ी हो गई! कहीं-कहीं पर तो ट्रिम्मर ने दाढ़ी को एकदम साफ़ कर दिया था और कहीं-कहीं छोड़ दिया था! अब अगर दाढ़ी ऐसे ही छोड़ देता तो जहाँ बाल नहीं थे वहां बाल आने में समय लगता जिससे मुझे डर था की कहीं मेरी दाढ़ी uneven आई तो?

अब मेरे पास अंतिम रास्ता था की मैं सारी दाढ़ी जड़ से छोल दूँ...यानी clean shaven हो जाऊँ!



मैं हूँ गोल-मटोल तो ज़ाहिर है की मेरा चेहरा भी गोलू-मोलू है| बिना दाढ़ी के मैं एकदम से छोटा बच्चा लगता हूँ|

नाई (barber) ने जब मेरी सारी दाढ़ी छोलि तो अपनी शक्ल देख कर मेरी हँसी छूट गई! स्तुति के जन्म के बाद, संगीता की ख़ुशी के लिए मैंने एक बार मैंने अपनी दाढ़ी पूरी साफ़ की थी...उसके बाद आज जा के जब मैंने अपनी सारी दाढ़ी छोलवाई तो मुझे बहुत हँसी आई|

जब मैं दाढ़ी बनवा कर घर आया तो मेरी शक्ल देख मेरी माँ का हँसना शुरू हो गया! "आप ही तो कहते थे की तू दाढ़ी मत रखा कर और आज जब मैंने दाढ़ी नहीं साफ़ कर दी तो आप हँस रहे हो?!" मैंने माँ से प्यारभरी शिकायत की तो माँ बोलीं की अगर मैं शुरू से दाढ़ी नहीं रखता तो उन्हें हँसी न आती| अब इतने सालों बाद बिना दाढ़ी के मुझे देख उनसे उनकी हँसी कण्ट्रोल नहीं हो रही!



खैर, हम माँ-बेटे के लिए तो ये हँसी की बात थी मगर स्तुति...मेरी बिटिया के लिए तो बहुत बड़ा शौक था!



दोपहर को जब स्तुति स्कूल से लौटी तो दरवाजा मैंने खोला| स्तुति की आदत थी की वो स्कूल से आते ही मेरी गोदी में चढ़ जाती है और मुझे अपनी स्कूल से लौटने वाली पप्पी देती है| स्कूल जाते टाइम मुझसे जो पप्पी ले कर जाती है ये उसका ब्याज होता है!

जैसे ही मैंने दरवाजा खोला और स्तुति ने मेरा ये बालक वाला चेहरा देखा तो वो अपने दोनों हाथ अपने मुँह पर रख चिल्लाई; "hawwwwwww!!! पापा जी...ये आपको क्या हुई???" मेरी ऐसी शक्ल देख स्तुति को बड़ा ही जबरदस्त धक्का लगा था| मैंने स्तुति को गोदी लिया और दरवाजा बंद करते हुए उसे सारी कहानी सुनाई| सारी कहानी सुनते-सुनते मेरी बिटिया भावुक हो गई और मेरे गले लग सिसकने लगी| "औ ले ले... रोना नहीं बेटा…ये दाढ़ी फिर से उग आएगी और मैं वादा करता हूँ की मैं आगे से ऐसी कोई लापरवाही नहीं करूँगा|" मैं स्तुति को प्यार से बहलाने लगा ताकि स्तुति न रोये|

उधर स्तुति को सिसकते हुए सुन माँ ने अपनी शुगी को अपने सामने बिठाया और उसके सर पर हाथ फेरते हुए स्तुति को चुप करा दिया|"सुन ले लड़के! आज के बाद तूने बिना मेरी शुगी को पूछे दाढ़ी का एक बाल भी काटा न तो मैं तुझे बाथरूम में बंद कर दूँगी!" माँ ने मुझे प्यार से हड़काया| अपनी दादी जी की ये खोखली धमकी सुन स्तुति हँस पड़ी और मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ पँख के समान खोल दिए|



मैंने फिर से स्तुति को गोदी लिया और उसे उसके बचपन के बारे में बताने लगा, जब स्तुति 4 महीनों की थी और मैंने क्लीन शेव किया था| उस दिन की बातें जान स्तुति के चेहरे पर बड़ी प्यारी मुस्कान दौड़ गई| दरअसल, स्तुति को अपने बालपन की बातें सुनने में बहुत मज़ा आता है|

दोपहर को खाना खा कर जब मैं स्तुति को सुला रहा था तब स्तुति मेरे दोनों गालों पर हतः फेरते हुए बोली; पापा जी, आपके गाल तो मेरे गलों से भी सॉफ्ट हैं!" ये कहते हुए स्तुति ने मेरे दोनों मुलायम गालों की पप्पी ली और बोली; "पापा जी, बिना दाढ़ी के आप बहुत क्यूट लगते हो! लेकिन आजके बाद फिर कभी शेव नहीं करना वरना सब आपको मेरा छोटा भाई कहेंगे!"

मेरी माँ भी पलंग पर लेटी हुई थीं, उन्होंने जैसे ही स्तुति की अंतिम बात सुनी माँ ने ज़ोरदार ठहाका लगाया! वहीं मैं भी स्तुति की बात सुन ठहाका लगाकर हँसने लगे! स्तुति को भी अपनी बात पर हँसी ा रही थी इसलिए वो भी हम माँ-बेटों के साथ खिखिलकर हँसने लगी|



बहरहाल, मुझे स्तुति को चिढ़ाने का एक हथियार मिल गया था इसलिए मैंने शाम से ही स्तुति को "दीदी' कह कर बुलाना शुरू किया| मेरे मुख से अपने लिए 'दीदी' शब्द सुन स्तुति को आता प्यारब हरा गुस्सा और वो सीधा अपनी दादी जी की पास मेरी शिकायत ले कर पहुँच गई| "दाई, देखो पापा जी मुझे दीदी कह रहे हैं!" अपनी पोती की शिकायत सुन माँ बहुत ज़ोर से हँसी, फिर अपनी पोती की ख़ुशी के लिए मुझे चुप झूठ-मूठ का डाँट दिया|



स्तुति ने मेरी दाढ़ी साफ़ करने की बात अपने आयुष भैया को बताई तो आयुष भी ज़ोर से हँसने लगा| फिर स्तुति ने अपनी दिद्दा को फ़ोन खनकाया और सारी बात बताई| मैं स्तुति को 'दीदी' कह कर चिढ़ा रहा हूँ ये सुनकर नेहा को बहुत हँसी आई और उसने भी स्तुति को 'पीड़ा' की जगह 'दीदी' कह कर चिढ़ाना शुरू कर दिया!!!



तो ये थी वो हास्यास्पद बात|



आशा करता हूँ की आप सभी को ये प्रसंग सुनकर मज़ा आया होगा!
kya baat hai bhai..aapne to gazbe kar diya..hi hi hi hi
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बढ़िया अपडेट मानू भाई।

आदित्य एक जिम्मेदार भाई है जो अपनी बहन को हमेशा सही राह बताता है, साथ ही साथ नए जमाने से कदमताल मिला कर चलने में भी मदद कर रहा है वो भी बिना पिताजी की अवेलहना किए हुए।
 

kamdev99008

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किस्सा दाढ़ी-मूँछ का!


सोमवार का दिन था और स्तुति को स्कूल भेज मैं चाय पी रहा था| मैंने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा तो लगा की दाढ़ी बहुत बढ़ गई है| अब स्तुति का जन्मदिन आ रहा था अगले महीने, तो मैंने सोचा की क्यों न अभी दाढ़ी ट्रिम कर लेता हूँ ताकि स्तुति के जन्मदिन तक बढ़िया दाढ़ी उग जाएगी| यही सोचकर मैंने अपना ट्रिम्मर उठाया और ट्रिम्मर को 6 नंबर पर सेट कर अपनी सारी दाढ़ी बराबर कर ली|

दाढ़ी ट्रिम करने के बाद मैंने अपना ट्रिम्मर वापस से जीरो पर कर तेल डालकर रख दिया| १० मिनट बाद अपनी मूँछ पर ऊँगली फेरते हुए मुझे एहसास हुआ की बाईं तरफ मूँछ के बाल थोड़े लम्बे हैं इसलिए मैंने सोचा की इन्हें भी ट्रिम कर बराबर कर लेता हूँ| ये सोचकर मैं खड़ा हुआ और ट्रिम्मर उठा कर सीधा अपनी मूछों की बाईं तरफ रख कर चला दिया!!!



अब ट्रिम्मर पहले से ही जीरो पर सेट था और मैं उसे 6 नंबर पर सेट करना भूल गया जिस कारन मेरी लगभग आधी मूँछ साफ़ हो गई!!! आईने में अपनी ऐसी शक्ल देख पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर मेरी हँसी छूट गई! माँ ने जब मुझे हँसते हुए सुना तो उन्होंने मेरी हँसी का कारण पुछा| जब मैं माँ के पास उसी हालत में आया तो माँ की भी हँसी छूट गई!

खैर अब लगभग आधी मूँछ कट चुकी थी इसलिए मेरे पास अब दो ही विकल्प थे! अब या तो बाकी की काट कर हिटलर बन जाऊँ या फिर पूरी दाढ़ी साफ़ कर ली जाए! मैं पूरी दाढ़ी साफ़ करना नहीं चाहता था क्योंकि तब मैं छोटा सा बछका लगता इसलिए मैंने अपना दिमाग लगाया और जीरो नंबर पर ट्रिम्मर को सेट किये हुए सारी दाढ़ी छोल दी! परन्तु इससे मेरी समस्या हल नहीं हुई, बल्कि इससे एक और समस्या खड़ी हो गई! कहीं-कहीं पर तो ट्रिम्मर ने दाढ़ी को एकदम साफ़ कर दिया था और कहीं-कहीं छोड़ दिया था! अब अगर दाढ़ी ऐसे ही छोड़ देता तो जहाँ बाल नहीं थे वहां बाल आने में समय लगता जिससे मुझे डर था की कहीं मेरी दाढ़ी uneven आई तो?

अब मेरे पास अंतिम रास्ता था की मैं सारी दाढ़ी जड़ से छोल दूँ...यानी clean shaven हो जाऊँ!



मैं हूँ गोल-मटोल तो ज़ाहिर है की मेरा चेहरा भी गोलू-मोलू है| बिना दाढ़ी के मैं एकदम से छोटा बच्चा लगता हूँ|

नाई (barber) ने जब मेरी सारी दाढ़ी छोलि तो अपनी शक्ल देख कर मेरी हँसी छूट गई! स्तुति के जन्म के बाद, संगीता की ख़ुशी के लिए मैंने एक बार मैंने अपनी दाढ़ी पूरी साफ़ की थी...उसके बाद आज जा के जब मैंने अपनी सारी दाढ़ी छोलवाई तो मुझे बहुत हँसी आई|

जब मैं दाढ़ी बनवा कर घर आया तो मेरी शक्ल देख मेरी माँ का हँसना शुरू हो गया! "आप ही तो कहते थे की तू दाढ़ी मत रखा कर और आज जब मैंने दाढ़ी नहीं साफ़ कर दी तो आप हँस रहे हो?!" मैंने माँ से प्यारभरी शिकायत की तो माँ बोलीं की अगर मैं शुरू से दाढ़ी नहीं रखता तो उन्हें हँसी न आती| अब इतने सालों बाद बिना दाढ़ी के मुझे देख उनसे उनकी हँसी कण्ट्रोल नहीं हो रही!



खैर, हम माँ-बेटे के लिए तो ये हँसी की बात थी मगर स्तुति...मेरी बिटिया के लिए तो बहुत बड़ा शौक था!



दोपहर को जब स्तुति स्कूल से लौटी तो दरवाजा मैंने खोला| स्तुति की आदत थी की वो स्कूल से आते ही मेरी गोदी में चढ़ जाती है और मुझे अपनी स्कूल से लौटने वाली पप्पी देती है| स्कूल जाते टाइम मुझसे जो पप्पी ले कर जाती है ये उसका ब्याज होता है!

जैसे ही मैंने दरवाजा खोला और स्तुति ने मेरा ये बालक वाला चेहरा देखा तो वो अपने दोनों हाथ अपने मुँह पर रख चिल्लाई; "hawwwwwww!!! पापा जी...ये आपको क्या हुई???" मेरी ऐसी शक्ल देख स्तुति को बड़ा ही जबरदस्त धक्का लगा था| मैंने स्तुति को गोदी लिया और दरवाजा बंद करते हुए उसे सारी कहानी सुनाई| सारी कहानी सुनते-सुनते मेरी बिटिया भावुक हो गई और मेरे गले लग सिसकने लगी| "औ ले ले... रोना नहीं बेटा…ये दाढ़ी फिर से उग आएगी और मैं वादा करता हूँ की मैं आगे से ऐसी कोई लापरवाही नहीं करूँगा|" मैं स्तुति को प्यार से बहलाने लगा ताकि स्तुति न रोये|

उधर स्तुति को सिसकते हुए सुन माँ ने अपनी शुगी को अपने सामने बिठाया और उसके सर पर हाथ फेरते हुए स्तुति को चुप करा दिया|"सुन ले लड़के! आज के बाद तूने बिना मेरी शुगी को पूछे दाढ़ी का एक बाल भी काटा न तो मैं तुझे बाथरूम में बंद कर दूँगी!" माँ ने मुझे प्यार से हड़काया| अपनी दादी जी की ये खोखली धमकी सुन स्तुति हँस पड़ी और मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ पँख के समान खोल दिए|



मैंने फिर से स्तुति को गोदी लिया और उसे उसके बचपन के बारे में बताने लगा, जब स्तुति 4 महीनों की थी और मैंने क्लीन शेव किया था| उस दिन की बातें जान स्तुति के चेहरे पर बड़ी प्यारी मुस्कान दौड़ गई| दरअसल, स्तुति को अपने बालपन की बातें सुनने में बहुत मज़ा आता है|

दोपहर को खाना खा कर जब मैं स्तुति को सुला रहा था तब स्तुति मेरे दोनों गालों पर हतः फेरते हुए बोली; पापा जी, आपके गाल तो मेरे गलों से भी सॉफ्ट हैं!" ये कहते हुए स्तुति ने मेरे दोनों मुलायम गालों की पप्पी ली और बोली; "पापा जी, बिना दाढ़ी के आप बहुत क्यूट लगते हो! लेकिन आजके बाद फिर कभी शेव नहीं करना वरना सब आपको मेरा छोटा भाई कहेंगे!"

मेरी माँ भी पलंग पर लेटी हुई थीं, उन्होंने जैसे ही स्तुति की अंतिम बात सुनी माँ ने ज़ोरदार ठहाका लगाया! वहीं मैं भी स्तुति की बात सुन ठहाका लगाकर हँसने लगे! स्तुति को भी अपनी बात पर हँसी ा रही थी इसलिए वो भी हम माँ-बेटों के साथ खिखिलकर हँसने लगी|



बहरहाल, मुझे स्तुति को चिढ़ाने का एक हथियार मिल गया था इसलिए मैंने शाम से ही स्तुति को "दीदी' कह कर बुलाना शुरू किया| मेरे मुख से अपने लिए 'दीदी' शब्द सुन स्तुति को आता प्यारब हरा गुस्सा और वो सीधा अपनी दादी जी की पास मेरी शिकायत ले कर पहुँच गई| "दाई, देखो पापा जी मुझे दीदी कह रहे हैं!" अपनी पोती की शिकायत सुन माँ बहुत ज़ोर से हँसी, फिर अपनी पोती की ख़ुशी के लिए मुझे चुप झूठ-मूठ का डाँट दिया|



स्तुति ने मेरी दाढ़ी साफ़ करने की बात अपने आयुष भैया को बताई तो आयुष भी ज़ोर से हँसने लगा| फिर स्तुति ने अपनी दिद्दा को फ़ोन खनकाया और सारी बात बताई| मैं स्तुति को 'दीदी' कह कर चिढ़ा रहा हूँ ये सुनकर नेहा को बहुत हँसी आई और उसने भी स्तुति को 'पीड़ा' की जगह 'दीदी' कह कर चिढ़ाना शुरू कर दिया!!!



तो ये थी वो हास्यास्पद बात|



आशा करता हूँ की आप सभी को ये प्रसंग सुनकर मज़ा आया होगा!
मेरे भी घर में एक छोटी बच्ची है मेरी........
मेरे छोटे भाई ने पिछली साल अपने ही नर्सिंग होम में पैदा हुई नवजात बच्ची उसी समय गोद ले ली......... उसके माता-पिता उदासीन थे क्योंकि उनकी इससे पहले भी तीन बेटियाँ ही थीं.......
अब वो बच्ची होली से पहले 1 मार्च को मेरे पास गाँव आ गयी और तबसे यहीं है, हम पति-पत्नी को ही माँ-पापा बोलने लगी है मेरे बच्चों की देखा-देखी
बीच में एक-दो बार मेंने शेव कर लिया (सिर्फ दाढ़ी, मूंछ तो सिर्फ दो बार अपने पिता और एक चाचा के दाह संस्कार करने के बाद ही बनाई थी) तो वो भी नासमझ होने पर भी ऐसी ही प्रतिक्रिया दे रही थी ..... मेरी आवाज सुनती लेकिन दाढ़ी वाले चेहरे को ढूंढती, ना मिलने पर रोने लगती

अब चूंकि मैं कभी भी सावन में दाढ़ी-बाल कुछ भी नहीं बनवाता, तो उसे मेरा एक नया रूप देखने को मिल रहा है तो फिर नया ड्रामा होने की उम्मीद है 2 महीने बाद :D
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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मेरे भी घर में एक छोटी बच्ची है मेरी........
मेरे छोटे भाई ने पिछली साल अपने ही नर्सिंग होम में पैदा हुई नवजात बच्ची उसी समय गोद ले ली......... उसके माता-पिता उदासीन थे क्योंकि उनकी इससे पहले भी तीन बेटियाँ ही थीं.......
अब वो बच्ची होली से पहले 1 मार्च को मेरे पास गाँव आ गयी और तबसे यहीं है, हम पति-पत्नी को ही माँ-पापा बोलने लगी है मेरे बच्चों की देखा-देखी
बीच में एक-दो बार मेंने शेव कर लिया (सिर्फ दाढ़ी, मूंछ तो सिर्फ दो बार अपने पिता और एक चाचा के दाह संस्कार करने के बाद ही बनाई थी) तो वो भी नासमझ होने पर भी ऐसी ही प्रतिक्रिया दे रही थी ..... मेरी आवाज सुनती लेकिन दाढ़ी वाले चेहरे को ढूंढती, ना मिलने पर रोने लगती

अब चूंकि मैं कभी भी सावन में दाढ़ी-बाल कुछ भी नहीं बनवाता, तो उसे मेरा एक नया रूप देखने को मिल रहा है तो फिर नया ड्रामा होने की उम्मीद है 2 महीने बाद :D
ऐसा ही कुछ मेरे साथ भी हुआ था, मेरे बेटे को २ घंटे बाद समझ आया कि ये मैं ही हूं।
 

manu@84

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" A" Cerificiate वाली फिल्म एकदम से एक फैमिली सोलो ड्रामा फिल्म बन जाये तो मुझ जैसे ठरकी दर्शक जो अपने कंधे पर ठरकपन लेकर सिनेमा हाल में गए थे उनके दिल पर क्या गुजरती है उस दर्द से अभीभुत करता हुआ ये upadate था 🤣😂🤐

इस update के लिए मेरे पास खास टिप्पड़ी नही है क्योकि क्योकि बहुत सारे रीडर ने बहुत सारा, बहुत कुछ लिख कर update को चार चाँद लगा दिये है। कुछ ने अपने गरीबी और कुछ ने struggle के दिनों के बारे में अपने निजी अनुभव लिखे।

मेरे पास ऐसा कोई निजी अनुभव नही है, क्योकि बचपन से लेकर जवानी का पूरा जीवन अमीरी और अय्याशियो में बीता है, हमारे पुरखो की दौलत, जमीं जायदाद और पापा के आशीर्वाद से कभी भी किसी चीज की कमी नही रही जो मांगता भी नही वो भी इतना मिल जाता था कि अपने यार दोस्तों में लुटाता था, पार्टी किसी के भी नाम
हो, लेकिन बिल मै हमेशा अपने नाम से ही कटवाता रहा हूँ। आज भी मेरे दोस्त और उनके फैमिली वाले कभी कभी कहते है कि उन्होंने गुटखा, cigrete, और क्वाटर (पऊआ) खाना पीना मैंने सिखाया है, मैंने ही उन्हे बिगाड़ा था क्योकि ना मै उन्हें फ्री में ऐश कराता वो ना ही ये सब शौक पूरे कर पाते। वो भी क्या दिन थे......😍

जॉब मुझे तो शादी करने के चक्कर में करनी पड़ी थी, क्योकि आज कल की लड़की बेरोजगार से शादी नही करना चाहती। भले वो कितना भी खानदानी रहीस, शुद्ध अमीर क्यों ना हो। वर्तमान में भी काम सिर्फ नाम के लिए ही कर लेता हूँ वो भी कभी कभी... मुझसे कोई काम, मेहनत, गांड गुलामी, 10-6 की नौकरी, नही होती इसका कोई सॉल्यूशन हो तो बताओ मेरे दोस्त..... 🙏🙏

खैर update पर भी अपनी प्रतिक्रिया लिखकर मेरे हमनाम दोस्त को अपने शब्दों से मोहब्बत देकर अपना पाठक होने का फर्ज निभाना लाजमी है..... इसलिए बस कीर्ति और कीर्ति जैसी सारी लड़कियों को आधुनिक शिक्षा पढ़ने की दिशा में जो अपने कदम रख रही है उसके लिए दो संदेश जनहित में दे रहा हूँ.....

""" जब तक लड़कियाँ I Love you का जबाब I Love You Too मे देना नही सीख जाती, तब तक नारी शिक्षा में सुधार की आवश्यकता है "" 😂🤣😍😜🙏
और दूसरा "" जिस लड़की ने कॉलेज में वाद - विवाद प्रतियोगिता जीती हो भूल से उससे शादी ना करे... 😜🤣😂🤐🙏

अब आता हू आपके हास्य भरे वाक्या पर, वाकई हसी तो आई थी और आपको चिकना लोंडा वाले चेहरे को देखने की इच्छा भी हुयी। भाईजान मैं शुरु से ही क्लीन shave रहा हूँ। जिसकी वजह हसी भरी है, पहले चिकना लोंडा बनकर लड़की को पटाने के लिए, फिर अपनी जॉब के कारण, और एक बार दाढ़ी मूंछ हल्की रखी थी लेकिन एक रात अपनी वाइफ के साथ fourplay करते समय (आप समझ तो गये होंगे ) उसने दाढ़ी मूंछ की चुभन की वजह से main game शुरु करने से पहले ही end कर दिया। तब से clean shave ही रहता हू।

Update बेहतरीन था लिखते रहिये ✍️✍️ धन्यवाद.....
 

Sanju@

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भाग - 11

अब तक आपने पढ़ा:


भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!

अब आगे:

चाय
पीते हुए भैया ने जानबूझ कर बात छेड़ते हुए मुझसे पुछा;

आदि भैया: और कीर्ति? तो आगे क्या सोचा है?

भय का सवाल सुन मैं एकदम सन्न थी, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या जवाब दूँ?



हर बच्चे का एक सपना होता है की उसने बारहवीं पास करने के बाद क्या करना है...क्या बनना है मगर मैंने कभी इतनी दूर की सोची ही नहीं?! मेरी ख्वाइश तो बस दुनिया घूमने-फिरने, सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनने और तरह-तरह का खाना खाने पर खत्म हो जाती थीं|

खैर, भैया के सवाल का जवाब तो देना था इसलिए मैं अपना दिमाग चलाते हुए कुछ सोचने लगी;

मैं: वो...

मैं इसके आगे कुछ सोच पाती और बोलती उससे पहले ही पिताजी मेरी बात काटते हुए बोले;

पिताजी: मेरी बता मानकर ग्यारहवीं में अगर इसने (मैंने) साइंस ली होती तो मैं अपनी बेटी को डॉक्टर बनाता| आँखों का डॉक्टर....फिर धूम-धाम से अपनी कीर्ति की शादी दूसरे डॉक्टर लड़के से करता और फिर ये दोनों शादी के बाद आराम से अपनी प्रैक्टिस करते|

पिताजी ने अपना ख्याली पुलाओ बना कर हमारे सामने परोसा| पिताजी ने अपनी बेटी के लिए बहुत ऊँचा ख्वाब संजोया था मगर उनकी बेटी की मोटी बुद्धि में सइंस का 'स' अक्षर भी नहीं घुसता था| हाँ 'स' से 'सेक्स' शब्द दिमाग में अच्छे से घुस चूका था!

बहरहाल, पिताजी की बात सुन मेरा सर शर्म से झुक गया था क्योंकि मैं अपने पिताजी की ये इच्छा पूरी नहीं कर पाई थी| मुझे शर्मिंदा होने से बचाने के लिए भैया ने बात सँभाली और बोले;

आदि भैया: तेरा ओपन कॉलेज तो शुरू हो जायेगा लेकिन क्लासेज तो तेरी सिर्फ संडे को होंगीं, बाकी के छः दिन क्या करेगी?

मेरे पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं अपने दिमाग को तेज़ दौड़ाने लगी ताकि कोई जवाब दे सकूँ|

वहीं पिताजी को भैया का ये सवाल अटपटा सा लगा इसलिए उन्होंने बात काटते हुए कहा;

पिताजी: क्या करेगी मतलब? घर में अपनी माँ की मदद करेगी, फिर ये बच्चों को पढ़ाती भी तो है|

पिताजी की आवाज़ में थोड़ी खुश्की थी जिसे महसूस कर मैंने डर के मारे चुप्पी साध ली|

आदि भैया: पिताजी, ज़माना बदल गया है| जो बच्चे ओपन से कॉलेज करते हैं वो अपना समय कुछ नया सीखने में लगाते हैं| जैसे आजकल कम्प्यूटर्स का ज़माना है इसलिए हर बच्चा कंप्यूटर कोर्स कर रहा है| ...

भैया ने जैसे ही नए ज़माने का ज्ञान दिया, वैसे ही पिताजी ने भैया की बात काट दी;

पिताजी: कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी ये (मैं)? इसने कौनसा नौकरी करनी है जो तू इसे कंप्यूटर कोर्स करने को कह रहा है?!

पिताजी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोले|



दरअसल पिताजी को शादी से पहले लड़कियों का नौकरी करना पसंद नहीं था| उनका मानना था की शादी से पहले नौकरी करने वाली लड़कियों का दिमाग सातवें आसमान पर होता है| घर की चार दीवारी छोड़ लड़कियाँ बाहर निकल कर बहकने लगती हैं| फैशन परस्त बन पैंट, टॉप, जीन्स और शर्ट जैसे कपडे पहनने लगती हैं| फिर ऐसी लड़कियों का लव मैरिज के चक्कर में पड़ कर खानदान का नाम खराब भी होने का खतरा होता है|

वहीं अगर लड़की शादी के बाद नौकरी करती है तो उस पर उसके परिवार की जिम्मेदारी होती है, उसके पति की जकड़ होती है इसलिए लड़कियाँ किसी गलत रास्ते नहीं भटकतीं| अब इसे मेरे पिताजी की रूढ़िवादी सोच समझिये या फिर एक पिता का अपनी बेटी के लिए चिंता करना, ये आप सब पर है|



खैर, पिताजी के गुस्से को देखते हुए भैया ने अपनी बात का रुख बदला और बड़ी ही चालाकी से अपनी बात आगे रखी;

आदि भैया: पिताजी, मैं नौकरी करने की बात नहीं कह रहा| मैं बस ये कह रहा हूँ की कीर्ति को कंप्यूटर चलाना तक नहीं आता| दसवीं तक इसने (मैंने) जो भी कंप्यूटर सीखा है वो किसी काम का नहीं| न इसे टाइपिंग आती है, न इसे ईमेल करना आता है, न इसे ऑनलाइन बिल भरना आता है, न ऑनलाइन टिकट बुक करना आता है और सिर्फ यही नहीं...ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इसे नहीं आती|

अब कल को इसकी शादी हुई और इसके पति ने इसे कोई काम बोलै तो ये क्या करेगी? मुझे फ़ोन कर के पूछेगी या फिर अपने ससुराल में ताने खायेगी?!

जब बात आती है अपनी बेटी के ससुराल की तो एक पिता बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है, वही कुछ अभी हुआ|

बेमन से ही सही परन्तु अपनी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए पिताजी मान गए|



रात में खाना खाने के बाद माँ-पिताजी अपने कमरे में सोने जा चुके थे| मैं अपने कमरे में बैठी अपने कल्पना के घोड़े दौड़ाने में लगी थी की न्य कॉलेज कैसा होगा? क्या कॉलेज में रैगिंग होगी? कॉलेज में कैसे कपडे पहनते होंगें? कंप्यूटर क्लास में मैं क्या-क्या सीखूँगी?

तभी भैया मेरे कमरे में आये, उन्हें देख मैं फौरन आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| आज हम दोनों भाई-बहन के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान तैर रही थी और ये मनमोहक मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज एक भाई ने अपनी बहन के जीवन को सँवारने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया था, वहीं मेरे चेहरे पर मुस्कान का कारण ये था की मेरी ज़िन्दगी में अब एक नई सुबह उगने वाली थी|



“आजतक तू इस घर रुपी पिंजरे में कैद थी लेकिन कल से तू खुले आसमान में पंख फैला कर अपनी ख़ुशी से उड़ पाएगी| लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखिओ की तू खुले आसमान में उड़ने के चक्कर में पिताजी के बसाये इस घरोंदे को न रोंद दे!” आदि भैया मेरे दोनों गालों पर हाथ रखते हुए बोले|

इस पूरी दुनिया में बस एक मेरे भैया ही तो हैं जो मेरे दिल की हर ख्वाइश समझते थे| बचपन से ले कर अभी तक बस एक वही हैं जो बिना मेरे बोले मेरे मन की बात पढ़ लिया करते थे और फिर कोई न कोई जुगत कर मेरी इच्छा पूरी कर दिया करते हैं| वो जानते थे की मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ और अब मुझे दुनिया देखनी चाहिए, तभी उन्होंने अपनी चालाकी भरी बातों में पिताजी को उलझा कर मेरा घर से अकेले निकलने का इंतज़ाम किया|

भैया की दी हुई ये शिक्षा मैंने अपने पल्ले बाँध ली और कभी ऐसा कोई काम नहीं किया की पिताजी का नाम मिटटी में मिल जाए या मेरे कारण कभी उनका सर शर्म से झुके!



अगली सुबह भैया और मैं सबसे पहले बैंक जाने के लिए निकले| भैया और मैं चढ़े बस में, ये पहलीबार था की मैं पिताजी के अलावा किसी और के साथ बस में चढ़ी हूँ|

जब हम सब पिताजी के साथ कहीं जाते थे तो पिताजी सबसे पहले मुझे और माँ को सीट दिलवाते थे| फिर वो आदि भैया के लिए सीट का इंतज़ाम करते थे और सबसे आखिर में स्वयं के लिए सीट ढूँढ़ते थे| कई बार तो सीट न मिलने पर पिताजी कंडक्टर की बगल में बैठ कर सफर करते थे और एक बार तो पिताजी को जो बस का गियर बॉक्स होता है उस पर बैठ कर भी यात्रा करनी पड़ी थी|



एक पिता का सबसे पहला दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है| वह सबसे पहले अपने परिवार के सुख और आराम के लिए मेहनत करता है तथा अंत में अपने लिए बैठने की कोई छोटी सी जगह तलाशता है|



खैर, भैया के साथ बस की ये यात्रा बहुत मजेदार थी क्योंकि भैया मुझे कौनसी बस कहाँ जाती है, बस में कैसे अकेले चढ़ना-उतरना है, कैसे बस में खुद का ध्यान रखना है आदि जैसी ज्ञान भरी बातें समझा रहे थे|

अंततः हम बैंक पहुँच ही गए| हर सरकारी नौकरशाह की तरह मेरे पिताजी का भी अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में था और इस बैंक को निरंतर काल तक व्यस्त रहने का श्राप मिला है! अब अगर ग्राहक का काम करने की बजाए उसे एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौडाओगे, बारह बजे लंच टाइम कह ग्राहक को भगाओगे तो बैंक में भीड़ बढ़ेगी ही न?! ऊपर से बैंक में आते हैं वो बूढ़े-बुजुर्ग जिनको घर में बस पासबुक प्रिंट कराने के लिए रखा होता है| ऊपर से ये बूढ़े अंकल लोग अपने घर की ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों की भी पासबुक इकठ्ठा कर बैंक लाते हैं!

मैं आज पहलीबार बैंक आई थी और इतने लोगों को लाइन में लगे देख मुझे कुछ समझ ही नहीं आया! "उधर ड्राफ्ट का फॉर्म रखा होगा, उसे भर तब तक मैं लाइन में लगता हूँ|" आदि भैया ने मुझे आदेश दिया और खुद जा कर लाइन में लग गए| टेबल पर से फॉर्म ले कर मैंने सुन्दर-सुन्दर हैंडराइटिंग में फॉर्म भरा और फटाफट भैया को फॉर्म दे दिया| अब हमें करना था इंतज़ार और वो भी 10-5 मिनट नहीं बल्कि पूरे 1 घंटे का इंतज़ार! अब मैंने चेक तो देखा था मगर ड्राफ्ट मैंने पहले कभी नहीं देखा था| मुझे लगा था की ड्राफ्ट कोई बहुत बड़ी चीज़ होगी मगर जब ड्राफ्ट मेरे हतः में आया तो ये लगभग चेक जैसा ही था!



ड्राफ्ट ले कर हम पहुँचे मेरी यूनिवर्सिटी और यहाँ तो बैंक से भी ज्यादा लम्बी लाइन थी! परन्तु एक अंतर् था, जहाँ बैंक में अधिकतर लोग वृद्ध थे, वहीं यूनिवर्सिटी की लाइन में सब मेरी ही उम्र की लड़कियाँ और लड़के थे| इस बार भैया ने मुझे लाइन में लगने को कहा और खुद पीछे आराम से खड़े हो कर दूसरी लड़कियों को देखने लगे! देखा जाए तो ठीक ही था, फॉर्म मेरा...कॉलेज मेरा...तो जमा भी तो मैं ही कराऊँगी न?! बैंक के मुक़ाबले यहाँ काम थोड़ी रफ़्तार से हो रहा था इसलिए लगभग पौने घंटे में मेरा फॉर्म जमा हो गया| जब मैं फॉर्म भर कर आई तो भैया मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले; "लाइन में खड़े हो कर फॉर्म भरने की आदत डाल ले क्योंकि तेरे असाइनमेंट...तेरे एग्जाम फॉर्म सब ऐसे ही लाइन में लग कर जमा होंगें|" मुझे पहले ही अपना फॉर्म खुद भरकर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए मैंने भैया की दी इस नसीहत को अपने पल्ले बाँध लिया|



कॉलेज के बाद अब बारी थी मेरे कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की| मेरे अनुसार तो ये साडी सी कंप्यूटर क्लास होने वाली थी जिसमें मुझे कंप्यूटर चलाना सीखना था मगर आदि भैया ने कुछ और ही सोच रखा था|



हम दोनों पहुँचे एक इंस्टिट्यूट के बाहर जहाँ ढेरों बच्चे अंदर जा और बाहर आ रहे थे| इतने बच्चों को देख जो पहला ख्याल मेरे दिमाग में नाय वो था; 'क्या हमारी स्टेट के सारे बच्चे मेरी तरह निरे बुद्धू हैं जो सारे के सारे यहाँ कंप्यूटर चलाना सीखने आये हैं? अब मेरे घर में तो कंप्यूटर है नहीं तो मेरा कंप्यूटर चलाना तो सीखना तो बनता है मगर इन सबके घर में कंप्यूटर नहीं?' मैं अभी अपने ख्याल में डूबी थी की भैया ने मुझे अंदर चलने को कहा|

अंदर पहुँच भैया ने रिसेप्शन पर बैठी एक सुन्दर सी लड़की से बात की और उस लड़की ने भैया को एक फॉर्म भरने को दे दिया| भैया वो फॉर्म मेरे पास ले आये और मुझे भरने को कहा| उस फॉर्म में मुझे अपने दसवीं तथा बारहवीं के नंबर भरने थे| फॉर्म भरते हुए मैंने देख उसमे कुछ courses लिखे हैं जैसे; 'C++, Java, Tally, Microsoft office आदि|' मैंने उन courses को पढ़ा तो सही मगर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा| अभी हमने फॉर्म भरा ही था की हमारे लिए एक लड़का पानी ले आया| मैं अपनी इस आवभगत को देख बड़ी खुश थी, ऐसा लगता था मानो मैं कोई मुख्य अतिथि हूँ| हमें पानी पिला कर वो लड़का मेरा फॉर्म अपने साथ ले गया| 5 मिनट बाद हमें एक केबिन में बुलाया गया, इस केबिन में एक सुन्दर सी लड़की बैठी थी| उसने हमें बैठने को कहा तथा भैया से बात करने लगी|



"हम ऑफिस असिस्टेंट के कोर्स के बारे में जानना चाहते हैं|" भैया ने बायत शुरू करते हुए कहा| उस लड़की ने हमें उस कोर्स के बारे में सब बताया पर जब उसने कहा की इस कोर्स की फीस पाँच हज़ार है तो मेरे पॉँव तले ज़मीन खिसक गई! वहीं भैया ने हार न मानते हुए उस लड़की से फीस कम करवाने में लग गए| करीब 10 मिनट की बातचीत के बाद वो लड़की पाँच सौ रुपये कम करने को मान गई| भैया ने उसी वाट उस लड़की को हज़ार रुपये एडवांस दे दिए तथा एक शर्त रख दी; "आप कोर्स की फीस पंद्रह सौ की रसीद बनाइयेगा| बाकी की फीस की रसीद अलग बना दीजियेगा|" मैं समझ गई की भैया ये पंद्रह सौ वाली रसीद पिताजी को दिखायेंगे और बाकी के पैसे वो खुद अपनी जेब से भरेंगे|



उस इंस्टिट्यूट से जैसे ही हम बाहर निकले और दो कदम चल कर बाहर सड़क की ओर बढे की 3-4 लड़कों का एक झुण्ड दौड़ता हुआ हमारी तरफ आया| इतने सारे लड़कों को अपनी ओर यूँ दौड़ कर आते देख मैं एकदम से घबरा गई और भैया के पीछे छुप गई| वहीं दूसरी तरफ भैया एकदम सतर्क हो गए थे और अकर्मक मुद्रा में थे| लेकिन बात कुछ और ही निकली!



ये सब लड़के अलग-अलग इंस्टिट्यूट के थे और हमें अपने-अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने को कह रहे थे ताकि मेरी दी हुई फीस से उनकी थोड़ी कमिशन बन जाए!

भैया ने उन्हें समझा दिया की हमने दाखिला ले लिया है| ये सुनकर वो सारे लड़के अपना दूसरा ग्राहक ढूँढने दूसरी ओर दौड़ गए! इस प्रकरण ने मुझे सिखाया की इस दुनिया में लोग दो रोटी कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते हैं|



खैर, मेरा कॉलेज का फॉर्म भरा जा चूका था, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में भी दाखिला हो चूका था| अब बारी थी इस ख़ुशी को मनाने की इसलिए भैया और मैं पहुँचे एक अच्छे रेस्टोरेंट में| भैया ने सीधा पिज़्ज़ा आर्डर किया और जबतक पिज़्ज़ा आता भैया मुझे समझाने लगे; "तू अब बड़ी हो गई है और अब समय है की तू पिताजी की छत्र छाया से निकल खुद अपनी जिम्मेदारियाँ उठाये| पिताजी की नज़र में तू आज भी एक छोटी बच्ची है...उनकी प्यारी सी नन्ही चिड़िया इसीलिये वो अपनी इस प्यारी चिड़िया को दुनिया में बेस चील-कौओं की नज़र से बचाने में लगे रहते हैं| उनके लिए एक बार तेरा घर बीएस जाए तो वो चिंता मुक्त हो जाएंगे|

लेकिन मैं जानता हूँ की तू अब बच्ची नहीं रही, तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अपने जीवन को सही रास्ते की ओर ले जा सके| जब तूने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था न, मैं तभी समझ गया था की तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अब खुद को अच्छे से सँभाल सके| देख मैं जानता हूँ की तुझे मेरे और पिताजी पर निर्भर नहीं रहना, तुझे अपना अलग रास्ता बनाना है...अपना जीवन अपने अनुसार जीना है और इस सब के लये चाहिए होता है पैसा! अब ये पैसा तुझे पिताजी से तो मिल नहीं सकता इसलिए तुझे खुद पैसे कमाने होंगें ताकि जबतक तेरी शादी न हो तू दुनिया अपने नज़रिये से देख सके...जी सके|



तुझे याद है जब पहलीबार तुझे बच्चों को पढ़ाने की फीस मिली थी? उस दिन तू कितनी खुश थी...इतनी खुस की तेरी आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भीग गई थीं| जानती है वो ख़ुशी...वो तेरी नम आँखें किस बात की सूचक थीं? वो ख़ुशी थी तेरी मेहनत से कमाए पैसों को हाथ में लेने की ख़ुशी| उस वक़्त मैंने महसूस कर लिया था की तुझे घर पर बँध कर नहीं रहना, तुझे नौकरी करनी है...पैसे कमाने हैं|

बस उसी वक़्त मैंने सोच लिया था की मेरी बहन अपनी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीएगी और अपने उसी फैसले पर अम्ल करते हुए मैं पिताजी के साथ छल कर रहा हूँ|



तेरी एकाउंटेंसी अच्छी है इसलिए मैंने तेरे लिए ऑफिस असिस्टेंट का कोर्स सेलेक्ट किया| इस कोर्स में तुझे एकाउंटेंसी कंप्यूटर में कैसे की जाती है ये सिखाया जायेगा| जब तू ये कोर्स पूरा कर लेगी तब मैं तेरी कहीं छोटी-मोटी जॉब लगवा दूँगा, जिससे तुझे एक्सपीरियंस मिलेगा| जब तेरा कॉलेज पूरा हो जायेगा न तब इसी एक्सपीरियंस के बलबूते पर तुझे अच्छी जॉब मिलेगी| लेकिन तबतक ये सब तुझे पिताजी से छुपाना होगा, उनकी नज़र में तू बस बेसिक कंप्यूटर सीख रही है| अगर तूने उन्हें सब सच बता दिया तो पिताजी बहुत गुस्सा होंगें और हम दोनों पर कभी भरोसा नहीं करेंगे|” सारा सच जानकार मेरे मन में भैया के लिए प्यार उमड़ आया| मैं एकदम से भावुक हो कर खड़ी हुई और भैया के गले लग सिसकने लगी| "थ...थैंक...यू...भैया....! आ..आपने मेरे लिए..." इससे ज्यादा मैं कुछ न कह पाई और मेरा रोना तेज़ हो गया|


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
जारी रहेगा अगले भाग में!
बहुत ही सुंदर और लाज़वाब अपडेट है आदि ने कीर्ति के लिए जो फैसला लिया है वह बहुत ही अच्छा फैसला है वह खुद शिक्षित है और लड़कियों के लिए पढ़ाई कितनी जरूरी है ये भी जानता है उसने कीर्ति के लिए अपने घरवालों से झूठ बोलकर उसके अच्छे भविष्य के लिए बहुत बड़ा कदम उठा कर एक भाई का फर्ज पूरा किया है साथ ही आदि ने कीर्ति को बताया कि उसे पिताजी की मान मर्यादा का ख्याल रखना है अब देखते हैं आदि की दी गई सीख पर अमल करती हैं या नही
पिताजी का बस या ट्रेन में औरतों का अच्छे से ध्यान रखना एक इंसान के अच्छे आचरण को दर्शाता है
 

Abhi32

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भाग - 11

अब तक आपने पढ़ा:


भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!

अब आगे:

चाय
पीते हुए भैया ने जानबूझ कर बात छेड़ते हुए मुझसे पुछा;

आदि भैया: और कीर्ति? तो आगे क्या सोचा है?

भय का सवाल सुन मैं एकदम सन्न थी, मुझे कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की मैं क्या जवाब दूँ?



हर बच्चे का एक सपना होता है की उसने बारहवीं पास करने के बाद क्या करना है...क्या बनना है मगर मैंने कभी इतनी दूर की सोची ही नहीं?! मेरी ख्वाइश तो बस दुनिया घूमने-फिरने, सुन्दर-सुन्दर कपड़े पहनने और तरह-तरह का खाना खाने पर खत्म हो जाती थीं|

खैर, भैया के सवाल का जवाब तो देना था इसलिए मैं अपना दिमाग चलाते हुए कुछ सोचने लगी;

मैं: वो...

मैं इसके आगे कुछ सोच पाती और बोलती उससे पहले ही पिताजी मेरी बात काटते हुए बोले;

पिताजी: मेरी बता मानकर ग्यारहवीं में अगर इसने (मैंने) साइंस ली होती तो मैं अपनी बेटी को डॉक्टर बनाता| आँखों का डॉक्टर....फिर धूम-धाम से अपनी कीर्ति की शादी दूसरे डॉक्टर लड़के से करता और फिर ये दोनों शादी के बाद आराम से अपनी प्रैक्टिस करते|

पिताजी ने अपना ख्याली पुलाओ बना कर हमारे सामने परोसा| पिताजी ने अपनी बेटी के लिए बहुत ऊँचा ख्वाब संजोया था मगर उनकी बेटी की मोटी बुद्धि में सइंस का 'स' अक्षर भी नहीं घुसता था| हाँ 'स' से 'सेक्स' शब्द दिमाग में अच्छे से घुस चूका था!

बहरहाल, पिताजी की बात सुन मेरा सर शर्म से झुक गया था क्योंकि मैं अपने पिताजी की ये इच्छा पूरी नहीं कर पाई थी| मुझे शर्मिंदा होने से बचाने के लिए भैया ने बात सँभाली और बोले;

आदि भैया: तेरा ओपन कॉलेज तो शुरू हो जायेगा लेकिन क्लासेज तो तेरी सिर्फ संडे को होंगीं, बाकी के छः दिन क्या करेगी?

मेरे पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं था इसलिए मैं अपने दिमाग को तेज़ दौड़ाने लगी ताकि कोई जवाब दे सकूँ|

वहीं पिताजी को भैया का ये सवाल अटपटा सा लगा इसलिए उन्होंने बात काटते हुए कहा;

पिताजी: क्या करेगी मतलब? घर में अपनी माँ की मदद करेगी, फिर ये बच्चों को पढ़ाती भी तो है|

पिताजी की आवाज़ में थोड़ी खुश्की थी जिसे महसूस कर मैंने डर के मारे चुप्पी साध ली|

आदि भैया: पिताजी, ज़माना बदल गया है| जो बच्चे ओपन से कॉलेज करते हैं वो अपना समय कुछ नया सीखने में लगाते हैं| जैसे आजकल कम्प्यूटर्स का ज़माना है इसलिए हर बच्चा कंप्यूटर कोर्स कर रहा है| ...

भैया ने जैसे ही नए ज़माने का ज्ञान दिया, वैसे ही पिताजी ने भैया की बात काट दी;

पिताजी: कंप्यूटर कोर्स कर के क्या करेगी ये (मैं)? इसने कौनसा नौकरी करनी है जो तू इसे कंप्यूटर कोर्स करने को कह रहा है?!

पिताजी थोड़ा गुस्सा होते हुए बोले|



दरअसल पिताजी को शादी से पहले लड़कियों का नौकरी करना पसंद नहीं था| उनका मानना था की शादी से पहले नौकरी करने वाली लड़कियों का दिमाग सातवें आसमान पर होता है| घर की चार दीवारी छोड़ लड़कियाँ बाहर निकल कर बहकने लगती हैं| फैशन परस्त बन पैंट, टॉप, जीन्स और शर्ट जैसे कपडे पहनने लगती हैं| फिर ऐसी लड़कियों का लव मैरिज के चक्कर में पड़ कर खानदान का नाम खराब भी होने का खतरा होता है|

वहीं अगर लड़की शादी के बाद नौकरी करती है तो उस पर उसके परिवार की जिम्मेदारी होती है, उसके पति की जकड़ होती है इसलिए लड़कियाँ किसी गलत रास्ते नहीं भटकतीं| अब इसे मेरे पिताजी की रूढ़िवादी सोच समझिये या फिर एक पिता का अपनी बेटी के लिए चिंता करना, ये आप सब पर है|



खैर, पिताजी के गुस्से को देखते हुए भैया ने अपनी बात का रुख बदला और बड़ी ही चालाकी से अपनी बात आगे रखी;

आदि भैया: पिताजी, मैं नौकरी करने की बात नहीं कह रहा| मैं बस ये कह रहा हूँ की कीर्ति को कंप्यूटर चलाना तक नहीं आता| दसवीं तक इसने (मैंने) जो भी कंप्यूटर सीखा है वो किसी काम का नहीं| न इसे टाइपिंग आती है, न इसे ईमेल करना आता है, न इसे ऑनलाइन बिल भरना आता है, न ऑनलाइन टिकट बुक करना आता है और सिर्फ यही नहीं...ऐसी बहुत सी चीजें हैं जो इसे नहीं आती|

अब कल को इसकी शादी हुई और इसके पति ने इसे कोई काम बोलै तो ये क्या करेगी? मुझे फ़ोन कर के पूछेगी या फिर अपने ससुराल में ताने खायेगी?!

जब बात आती है अपनी बेटी के ससुराल की तो एक पिता बड़ी से बड़ी कुर्बानी देने को तैयार हो जाता है, वही कुछ अभी हुआ|

बेमन से ही सही परन्तु अपनी बेटी के अच्छे भविष्य के लिए पिताजी मान गए|



रात में खाना खाने के बाद माँ-पिताजी अपने कमरे में सोने जा चुके थे| मैं अपने कमरे में बैठी अपने कल्पना के घोड़े दौड़ाने में लगी थी की न्य कॉलेज कैसा होगा? क्या कॉलेज में रैगिंग होगी? कॉलेज में कैसे कपडे पहनते होंगें? कंप्यूटर क्लास में मैं क्या-क्या सीखूँगी?

तभी भैया मेरे कमरे में आये, उन्हें देख मैं फौरन आलथी-पालथी मारकर बैठ गई| आज हम दोनों भाई-बहन के चेहरे पर मनमोहक मुस्कान तैर रही थी और ये मनमोहक मुस्कान इसलिए थी क्योंकि आज एक भाई ने अपनी बहन के जीवन को सँवारने की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाया था, वहीं मेरे चेहरे पर मुस्कान का कारण ये था की मेरी ज़िन्दगी में अब एक नई सुबह उगने वाली थी|



“आजतक तू इस घर रुपी पिंजरे में कैद थी लेकिन कल से तू खुले आसमान में पंख फैला कर अपनी ख़ुशी से उड़ पाएगी| लेकिन इस बात का हमेशा ध्यान रखिओ की तू खुले आसमान में उड़ने के चक्कर में पिताजी के बसाये इस घरोंदे को न रोंद दे!” आदि भैया मेरे दोनों गालों पर हाथ रखते हुए बोले|

इस पूरी दुनिया में बस एक मेरे भैया ही तो हैं जो मेरे दिल की हर ख्वाइश समझते थे| बचपन से ले कर अभी तक बस एक वही हैं जो बिना मेरे बोले मेरे मन की बात पढ़ लिया करते थे और फिर कोई न कोई जुगत कर मेरी इच्छा पूरी कर दिया करते हैं| वो जानते थे की मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ और अब मुझे दुनिया देखनी चाहिए, तभी उन्होंने अपनी चालाकी भरी बातों में पिताजी को उलझा कर मेरा घर से अकेले निकलने का इंतज़ाम किया|

भैया की दी हुई ये शिक्षा मैंने अपने पल्ले बाँध ली और कभी ऐसा कोई काम नहीं किया की पिताजी का नाम मिटटी में मिल जाए या मेरे कारण कभी उनका सर शर्म से झुके!



अगली सुबह भैया और मैं सबसे पहले बैंक जाने के लिए निकले| भैया और मैं चढ़े बस में, ये पहलीबार था की मैं पिताजी के अलावा किसी और के साथ बस में चढ़ी हूँ|

जब हम सब पिताजी के साथ कहीं जाते थे तो पिताजी सबसे पहले मुझे और माँ को सीट दिलवाते थे| फिर वो आदि भैया के लिए सीट का इंतज़ाम करते थे और सबसे आखिर में स्वयं के लिए सीट ढूँढ़ते थे| कई बार तो सीट न मिलने पर पिताजी कंडक्टर की बगल में बैठ कर सफर करते थे और एक बार तो पिताजी को जो बस का गियर बॉक्स होता है उस पर बैठ कर भी यात्रा करनी पड़ी थी|



एक पिता का सबसे पहला दायित्व अपने परिवार की तरफ होता है| वह सबसे पहले अपने परिवार के सुख और आराम के लिए मेहनत करता है तथा अंत में अपने लिए बैठने की कोई छोटी सी जगह तलाशता है|



खैर, भैया के साथ बस की ये यात्रा बहुत मजेदार थी क्योंकि भैया मुझे कौनसी बस कहाँ जाती है, बस में कैसे अकेले चढ़ना-उतरना है, कैसे बस में खुद का ध्यान रखना है आदि जैसी ज्ञान भरी बातें समझा रहे थे|

अंततः हम बैंक पहुँच ही गए| हर सरकारी नौकरशाह की तरह मेरे पिताजी का भी अकाउंट स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया में था और इस बैंक को निरंतर काल तक व्यस्त रहने का श्राप मिला है! अब अगर ग्राहक का काम करने की बजाए उसे एक काउंटर से दूसरे काउंटर दौडाओगे, बारह बजे लंच टाइम कह ग्राहक को भगाओगे तो बैंक में भीड़ बढ़ेगी ही न?! ऊपर से बैंक में आते हैं वो बूढ़े-बुजुर्ग जिनको घर में बस पासबुक प्रिंट कराने के लिए रखा होता है| ऊपर से ये बूढ़े अंकल लोग अपने घर की ही नहीं, आस-पड़ोस के लोगों की भी पासबुक इकठ्ठा कर बैंक लाते हैं!

मैं आज पहलीबार बैंक आई थी और इतने लोगों को लाइन में लगे देख मुझे कुछ समझ ही नहीं आया! "उधर ड्राफ्ट का फॉर्म रखा होगा, उसे भर तब तक मैं लाइन में लगता हूँ|" आदि भैया ने मुझे आदेश दिया और खुद जा कर लाइन में लग गए| टेबल पर से फॉर्म ले कर मैंने सुन्दर-सुन्दर हैंडराइटिंग में फॉर्म भरा और फटाफट भैया को फॉर्म दे दिया| अब हमें करना था इंतज़ार और वो भी 10-5 मिनट नहीं बल्कि पूरे 1 घंटे का इंतज़ार! अब मैंने चेक तो देखा था मगर ड्राफ्ट मैंने पहले कभी नहीं देखा था| मुझे लगा था की ड्राफ्ट कोई बहुत बड़ी चीज़ होगी मगर जब ड्राफ्ट मेरे हतः में आया तो ये लगभग चेक जैसा ही था!



ड्राफ्ट ले कर हम पहुँचे मेरी यूनिवर्सिटी और यहाँ तो बैंक से भी ज्यादा लम्बी लाइन थी! परन्तु एक अंतर् था, जहाँ बैंक में अधिकतर लोग वृद्ध थे, वहीं यूनिवर्सिटी की लाइन में सब मेरी ही उम्र की लड़कियाँ और लड़के थे| इस बार भैया ने मुझे लाइन में लगने को कहा और खुद पीछे आराम से खड़े हो कर दूसरी लड़कियों को देखने लगे! देखा जाए तो ठीक ही था, फॉर्म मेरा...कॉलेज मेरा...तो जमा भी तो मैं ही कराऊँगी न?! बैंक के मुक़ाबले यहाँ काम थोड़ी रफ़्तार से हो रहा था इसलिए लगभग पौने घंटे में मेरा फॉर्म जमा हो गया| जब मैं फॉर्म भर कर आई तो भैया मेरी पीठ थपथपाते हुए बोले; "लाइन में खड़े हो कर फॉर्म भरने की आदत डाल ले क्योंकि तेरे असाइनमेंट...तेरे एग्जाम फॉर्म सब ऐसे ही लाइन में लग कर जमा होंगें|" मुझे पहले ही अपना फॉर्म खुद भरकर बहुत गर्व हो रहा था इसलिए मैंने भैया की दी इस नसीहत को अपने पल्ले बाँध लिया|



कॉलेज के बाद अब बारी थी मेरे कंप्यूटर क्लास ज्वाइन करने की| मेरे अनुसार तो ये साडी सी कंप्यूटर क्लास होने वाली थी जिसमें मुझे कंप्यूटर चलाना सीखना था मगर आदि भैया ने कुछ और ही सोच रखा था|



हम दोनों पहुँचे एक इंस्टिट्यूट के बाहर जहाँ ढेरों बच्चे अंदर जा और बाहर आ रहे थे| इतने बच्चों को देख जो पहला ख्याल मेरे दिमाग में नाय वो था; 'क्या हमारी स्टेट के सारे बच्चे मेरी तरह निरे बुद्धू हैं जो सारे के सारे यहाँ कंप्यूटर चलाना सीखने आये हैं? अब मेरे घर में तो कंप्यूटर है नहीं तो मेरा कंप्यूटर चलाना तो सीखना तो बनता है मगर इन सबके घर में कंप्यूटर नहीं?' मैं अभी अपने ख्याल में डूबी थी की भैया ने मुझे अंदर चलने को कहा|

अंदर पहुँच भैया ने रिसेप्शन पर बैठी एक सुन्दर सी लड़की से बात की और उस लड़की ने भैया को एक फॉर्म भरने को दे दिया| भैया वो फॉर्म मेरे पास ले आये और मुझे भरने को कहा| उस फॉर्म में मुझे अपने दसवीं तथा बारहवीं के नंबर भरने थे| फॉर्म भरते हुए मैंने देख उसमे कुछ courses लिखे हैं जैसे; 'C++, Java, Tally, Microsoft office आदि|' मैंने उन courses को पढ़ा तो सही मगर मेरे पल्ले कुछ नहीं पड़ा| अभी हमने फॉर्म भरा ही था की हमारे लिए एक लड़का पानी ले आया| मैं अपनी इस आवभगत को देख बड़ी खुश थी, ऐसा लगता था मानो मैं कोई मुख्य अतिथि हूँ| हमें पानी पिला कर वो लड़का मेरा फॉर्म अपने साथ ले गया| 5 मिनट बाद हमें एक केबिन में बुलाया गया, इस केबिन में एक सुन्दर सी लड़की बैठी थी| उसने हमें बैठने को कहा तथा भैया से बात करने लगी|



"हम ऑफिस असिस्टेंट के कोर्स के बारे में जानना चाहते हैं|" भैया ने बायत शुरू करते हुए कहा| उस लड़की ने हमें उस कोर्स के बारे में सब बताया पर जब उसने कहा की इस कोर्स की फीस पाँच हज़ार है तो मेरे पॉँव तले ज़मीन खिसक गई! वहीं भैया ने हार न मानते हुए उस लड़की से फीस कम करवाने में लग गए| करीब 10 मिनट की बातचीत के बाद वो लड़की पाँच सौ रुपये कम करने को मान गई| भैया ने उसी वाट उस लड़की को हज़ार रुपये एडवांस दे दिए तथा एक शर्त रख दी; "आप कोर्स की फीस पंद्रह सौ की रसीद बनाइयेगा| बाकी की फीस की रसीद अलग बना दीजियेगा|" मैं समझ गई की भैया ये पंद्रह सौ वाली रसीद पिताजी को दिखायेंगे और बाकी के पैसे वो खुद अपनी जेब से भरेंगे|



उस इंस्टिट्यूट से जैसे ही हम बाहर निकले और दो कदम चल कर बाहर सड़क की ओर बढे की 3-4 लड़कों का एक झुण्ड दौड़ता हुआ हमारी तरफ आया| इतने सारे लड़कों को अपनी ओर यूँ दौड़ कर आते देख मैं एकदम से घबरा गई और भैया के पीछे छुप गई| वहीं दूसरी तरफ भैया एकदम सतर्क हो गए थे और अकर्मक मुद्रा में थे| लेकिन बात कुछ और ही निकली!



ये सब लड़के अलग-अलग इंस्टिट्यूट के थे और हमें अपने-अपने इंस्टिट्यूट में दाखिला लेने को कह रहे थे ताकि मेरी दी हुई फीस से उनकी थोड़ी कमिशन बन जाए!

भैया ने उन्हें समझा दिया की हमने दाखिला ले लिया है| ये सुनकर वो सारे लड़के अपना दूसरा ग्राहक ढूँढने दूसरी ओर दौड़ गए! इस प्रकरण ने मुझे सिखाया की इस दुनिया में लोग दो रोटी कमाने के लिए कितनी जद्दोजहद करते हैं|



खैर, मेरा कॉलेज का फॉर्म भरा जा चूका था, कंप्यूटर इंस्टिट्यूट में भी दाखिला हो चूका था| अब बारी थी इस ख़ुशी को मनाने की इसलिए भैया और मैं पहुँचे एक अच्छे रेस्टोरेंट में| भैया ने सीधा पिज़्ज़ा आर्डर किया और जबतक पिज़्ज़ा आता भैया मुझे समझाने लगे; "तू अब बड़ी हो गई है और अब समय है की तू पिताजी की छत्र छाया से निकल खुद अपनी जिम्मेदारियाँ उठाये| पिताजी की नज़र में तू आज भी एक छोटी बच्ची है...उनकी प्यारी सी नन्ही चिड़िया इसीलिये वो अपनी इस प्यारी चिड़िया को दुनिया में बेस चील-कौओं की नज़र से बचाने में लगे रहते हैं| उनके लिए एक बार तेरा घर बीएस जाए तो वो चिंता मुक्त हो जाएंगे|

लेकिन मैं जानता हूँ की तू अब बच्ची नहीं रही, तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अपने जीवन को सही रास्ते की ओर ले जा सके| जब तूने घर में बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था न, मैं तभी समझ गया था की तू अब इतनी बड़ी हो गई है की अब खुद को अच्छे से सँभाल सके| देख मैं जानता हूँ की तुझे मेरे और पिताजी पर निर्भर नहीं रहना, तुझे अपना अलग रास्ता बनाना है...अपना जीवन अपने अनुसार जीना है और इस सब के लये चाहिए होता है पैसा! अब ये पैसा तुझे पिताजी से तो मिल नहीं सकता इसलिए तुझे खुद पैसे कमाने होंगें ताकि जबतक तेरी शादी न हो तू दुनिया अपने नज़रिये से देख सके...जी सके|



तुझे याद है जब पहलीबार तुझे बच्चों को पढ़ाने की फीस मिली थी? उस दिन तू कितनी खुश थी...इतनी खुस की तेरी आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भीग गई थीं| जानती है वो ख़ुशी...वो तेरी नम आँखें किस बात की सूचक थीं? वो ख़ुशी थी तेरी मेहनत से कमाए पैसों को हाथ में लेने की ख़ुशी| उस वक़्त मैंने महसूस कर लिया था की तुझे घर पर बँध कर नहीं रहना, तुझे नौकरी करनी है...पैसे कमाने हैं|

बस उसी वक़्त मैंने सोच लिया था की मेरी बहन अपनी ज़िन्दगी अपने अनुसार जीएगी और अपने उसी फैसले पर अम्ल करते हुए मैं पिताजी के साथ छल कर रहा हूँ|



तेरी एकाउंटेंसी अच्छी है इसलिए मैंने तेरे लिए ऑफिस असिस्टेंट का कोर्स सेलेक्ट किया| इस कोर्स में तुझे एकाउंटेंसी कंप्यूटर में कैसे की जाती है ये सिखाया जायेगा| जब तू ये कोर्स पूरा कर लेगी तब मैं तेरी कहीं छोटी-मोटी जॉब लगवा दूँगा, जिससे तुझे एक्सपीरियंस मिलेगा| जब तेरा कॉलेज पूरा हो जायेगा न तब इसी एक्सपीरियंस के बलबूते पर तुझे अच्छी जॉब मिलेगी| लेकिन तबतक ये सब तुझे पिताजी से छुपाना होगा, उनकी नज़र में तू बस बेसिक कंप्यूटर सीख रही है| अगर तूने उन्हें सब सच बता दिया तो पिताजी बहुत गुस्सा होंगें और हम दोनों पर कभी भरोसा नहीं करेंगे|” सारा सच जानकार मेरे मन में भैया के लिए प्यार उमड़ आया| मैं एकदम से भावुक हो कर खड़ी हुई और भैया के गले लग सिसकने लगी| "थ...थैंक...यू...भैया....! आ..आपने मेरे लिए..." इससे ज्यादा मैं कुछ न कह पाई और मेरा रोना तेज़ हो गया|


"पगली....चुप हो जा अब...जब तेरी अच्छी नौकरी लगेगी न तब मेरे लिए अच्छा सा गिफ्ट ला दियो|" आदि भैया मुझे हँसाने के मकसद से बोले और मेरी पीठ थपथपा कर मुझे चुप कराया|
जारी रहेगा अगले भाग में!
Jabardast update diya hai bhai dil khush kar diya .
Ek line apne bahut hi khubsurati se likha hai hai pita pariwar ka wo mukhiya hota hai jo apne sukh ko tyag kar apne pariwar ke sukh chain ke bare me nirantar sochta rehta hai.Aur is like ne ka sabse best example ap ho.
Kirti ki new life start ho gyi iske liye dher sari shubhkamnaye aur dhekhte hai ki nayi zindagi kya kya gul khilati hai.
Thanku
 

Abhi32

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किस्सा दाढ़ी-मूँछ का!


सोमवार का दिन था और स्तुति को स्कूल भेज मैं चाय पी रहा था| मैंने अपनी दाढ़ी पर हाथ फेरा तो लगा की दाढ़ी बहुत बढ़ गई है| अब स्तुति का जन्मदिन आ रहा था अगले महीने, तो मैंने सोचा की क्यों न अभी दाढ़ी ट्रिम कर लेता हूँ ताकि स्तुति के जन्मदिन तक बढ़िया दाढ़ी उग जाएगी| यही सोचकर मैंने अपना ट्रिम्मर उठाया और ट्रिम्मर को 6 नंबर पर सेट कर अपनी सारी दाढ़ी बराबर कर ली|

दाढ़ी ट्रिम करने के बाद मैंने अपना ट्रिम्मर वापस से जीरो पर कर तेल डालकर रख दिया| १० मिनट बाद अपनी मूँछ पर ऊँगली फेरते हुए मुझे एहसास हुआ की बाईं तरफ मूँछ के बाल थोड़े लम्बे हैं इसलिए मैंने सोचा की इन्हें भी ट्रिम कर बराबर कर लेता हूँ| ये सोचकर मैं खड़ा हुआ और ट्रिम्मर उठा कर सीधा अपनी मूछों की बाईं तरफ रख कर चला दिया!!!



अब ट्रिम्मर पहले से ही जीरो पर सेट था और मैं उसे 6 नंबर पर सेट करना भूल गया जिस कारन मेरी लगभग आधी मूँछ साफ़ हो गई!!! आईने में अपनी ऐसी शक्ल देख पहले तो मुझे बहुत गुस्सा आया लेकिन फिर मेरी हँसी छूट गई! माँ ने जब मुझे हँसते हुए सुना तो उन्होंने मेरी हँसी का कारण पुछा| जब मैं माँ के पास उसी हालत में आया तो माँ की भी हँसी छूट गई!

खैर अब लगभग आधी मूँछ कट चुकी थी इसलिए मेरे पास अब दो ही विकल्प थे! अब या तो बाकी की काट कर हिटलर बन जाऊँ या फिर पूरी दाढ़ी साफ़ कर ली जाए! मैं पूरी दाढ़ी साफ़ करना नहीं चाहता था क्योंकि तब मैं छोटा सा बछका लगता इसलिए मैंने अपना दिमाग लगाया और जीरो नंबर पर ट्रिम्मर को सेट किये हुए सारी दाढ़ी छोल दी! परन्तु इससे मेरी समस्या हल नहीं हुई, बल्कि इससे एक और समस्या खड़ी हो गई! कहीं-कहीं पर तो ट्रिम्मर ने दाढ़ी को एकदम साफ़ कर दिया था और कहीं-कहीं छोड़ दिया था! अब अगर दाढ़ी ऐसे ही छोड़ देता तो जहाँ बाल नहीं थे वहां बाल आने में समय लगता जिससे मुझे डर था की कहीं मेरी दाढ़ी uneven आई तो?

अब मेरे पास अंतिम रास्ता था की मैं सारी दाढ़ी जड़ से छोल दूँ...यानी clean shaven हो जाऊँ!



मैं हूँ गोल-मटोल तो ज़ाहिर है की मेरा चेहरा भी गोलू-मोलू है| बिना दाढ़ी के मैं एकदम से छोटा बच्चा लगता हूँ|

नाई (barber) ने जब मेरी सारी दाढ़ी छोलि तो अपनी शक्ल देख कर मेरी हँसी छूट गई! स्तुति के जन्म के बाद, संगीता की ख़ुशी के लिए मैंने एक बार मैंने अपनी दाढ़ी पूरी साफ़ की थी...उसके बाद आज जा के जब मैंने अपनी सारी दाढ़ी छोलवाई तो मुझे बहुत हँसी आई|

जब मैं दाढ़ी बनवा कर घर आया तो मेरी शक्ल देख मेरी माँ का हँसना शुरू हो गया! "आप ही तो कहते थे की तू दाढ़ी मत रखा कर और आज जब मैंने दाढ़ी नहीं साफ़ कर दी तो आप हँस रहे हो?!" मैंने माँ से प्यारभरी शिकायत की तो माँ बोलीं की अगर मैं शुरू से दाढ़ी नहीं रखता तो उन्हें हँसी न आती| अब इतने सालों बाद बिना दाढ़ी के मुझे देख उनसे उनकी हँसी कण्ट्रोल नहीं हो रही!



खैर, हम माँ-बेटे के लिए तो ये हँसी की बात थी मगर स्तुति...मेरी बिटिया के लिए तो बहुत बड़ा शौक था!



दोपहर को जब स्तुति स्कूल से लौटी तो दरवाजा मैंने खोला| स्तुति की आदत थी की वो स्कूल से आते ही मेरी गोदी में चढ़ जाती है और मुझे अपनी स्कूल से लौटने वाली पप्पी देती है| स्कूल जाते टाइम मुझसे जो पप्पी ले कर जाती है ये उसका ब्याज होता है!

जैसे ही मैंने दरवाजा खोला और स्तुति ने मेरा ये बालक वाला चेहरा देखा तो वो अपने दोनों हाथ अपने मुँह पर रख चिल्लाई; "hawwwwwww!!! पापा जी...ये आपको क्या हुई???" मेरी ऐसी शक्ल देख स्तुति को बड़ा ही जबरदस्त धक्का लगा था| मैंने स्तुति को गोदी लिया और दरवाजा बंद करते हुए उसे सारी कहानी सुनाई| सारी कहानी सुनते-सुनते मेरी बिटिया भावुक हो गई और मेरे गले लग सिसकने लगी| "औ ले ले... रोना नहीं बेटा…ये दाढ़ी फिर से उग आएगी और मैं वादा करता हूँ की मैं आगे से ऐसी कोई लापरवाही नहीं करूँगा|" मैं स्तुति को प्यार से बहलाने लगा ताकि स्तुति न रोये|

उधर स्तुति को सिसकते हुए सुन माँ ने अपनी शुगी को अपने सामने बिठाया और उसके सर पर हाथ फेरते हुए स्तुति को चुप करा दिया|"सुन ले लड़के! आज के बाद तूने बिना मेरी शुगी को पूछे दाढ़ी का एक बाल भी काटा न तो मैं तुझे बाथरूम में बंद कर दूँगी!" माँ ने मुझे प्यार से हड़काया| अपनी दादी जी की ये खोखली धमकी सुन स्तुति हँस पड़ी और मेरी गोदी में आने के लिए अपने दोनों हाथ पँख के समान खोल दिए|



मैंने फिर से स्तुति को गोदी लिया और उसे उसके बचपन के बारे में बताने लगा, जब स्तुति 4 महीनों की थी और मैंने क्लीन शेव किया था| उस दिन की बातें जान स्तुति के चेहरे पर बड़ी प्यारी मुस्कान दौड़ गई| दरअसल, स्तुति को अपने बालपन की बातें सुनने में बहुत मज़ा आता है|

दोपहर को खाना खा कर जब मैं स्तुति को सुला रहा था तब स्तुति मेरे दोनों गालों पर हतः फेरते हुए बोली; पापा जी, आपके गाल तो मेरे गलों से भी सॉफ्ट हैं!" ये कहते हुए स्तुति ने मेरे दोनों मुलायम गालों की पप्पी ली और बोली; "पापा जी, बिना दाढ़ी के आप बहुत क्यूट लगते हो! लेकिन आजके बाद फिर कभी शेव नहीं करना वरना सब आपको मेरा छोटा भाई कहेंगे!"

मेरी माँ भी पलंग पर लेटी हुई थीं, उन्होंने जैसे ही स्तुति की अंतिम बात सुनी माँ ने ज़ोरदार ठहाका लगाया! वहीं मैं भी स्तुति की बात सुन ठहाका लगाकर हँसने लगे! स्तुति को भी अपनी बात पर हँसी ा रही थी इसलिए वो भी हम माँ-बेटों के साथ खिखिलकर हँसने लगी|



बहरहाल, मुझे स्तुति को चिढ़ाने का एक हथियार मिल गया था इसलिए मैंने शाम से ही स्तुति को "दीदी' कह कर बुलाना शुरू किया| मेरे मुख से अपने लिए 'दीदी' शब्द सुन स्तुति को आता प्यारब हरा गुस्सा और वो सीधा अपनी दादी जी की पास मेरी शिकायत ले कर पहुँच गई| "दाई, देखो पापा जी मुझे दीदी कह रहे हैं!" अपनी पोती की शिकायत सुन माँ बहुत ज़ोर से हँसी, फिर अपनी पोती की ख़ुशी के लिए मुझे चुप झूठ-मूठ का डाँट दिया|



स्तुति ने मेरी दाढ़ी साफ़ करने की बात अपने आयुष भैया को बताई तो आयुष भी ज़ोर से हँसने लगा| फिर स्तुति ने अपनी दिद्दा को फ़ोन खनकाया और सारी बात बताई| मैं स्तुति को 'दीदी' कह कर चिढ़ा रहा हूँ ये सुनकर नेहा को बहुत हँसी आई और उसने भी स्तुति को 'पीड़ा' की जगह 'दीदी' कह कर चिढ़ाना शुरू कर दिया!!!



तो ये थी वो हास्यास्पद बात|



आशा करता हूँ की आप सभी को ये प्रसंग सुनकर मज़ा आया होगा!
Bahut achha lga stuti aur apka pyara sa hasyapad padkhakar . Bhai apse ek request hai aise hi kuch kisse apke aur stuti se related kahani ke beech me dalte rahiyega .kya hai n apki story anokha bandhan se kaafi jyada attached ho gaye .
 

Rockstar_Rocky

Well-Known Member
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अति सुंदर अपडेट,
प्यार और सुरक्षा जोकि हर बहन का सपना होता है अपने भाई के लिए इस अपडेट में पढ़ने को मिला,
एक एक अक्षर से कीर्ति की आने वाली जीवन की झलक देखने को मिली,
आदि ने अपने बड़े भाई होने का फर्ज बखूबी निभाया, अपने पिता से अधूरा सच बोल कर अपनी बहन को वक्त के हिसाब से शिक्षा दिलाने का प्रयास किया है, लेकिन कीर्ति की अभी की जो मानसिकता है एस से सेक्स क्या वो अपने भाई की सिखाई गई सब बातो पर अमल कर पाएगी।

तारीफ के लिए बहुत-बहुत शुक्रिया! :thank_you: :love3:

भाई-बहन के प्रेम को समझने के लिए मैं आपकी प्रशंसा करता हूँ| और एक धन्यवाद भी देता हूँ की आपने सबसे पहले कमेंट किया! 🙏
S for 'SEX' सीखी कीर्ति का कॉलेज का समय उसकी मनोदिशा और उसके चरित्र को दर्शायेगा| क्या पता कीर्ति के कॉलेज के किस्से सुन कर आपको अपने कॉलेज के दिनों की याद आ जाए|
नई अपडेट आज रात तक|
 
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