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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143
 
Last edited:

Lovely Anand

Love is life
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Kisi ke pass update 109 aur 120 hai to mujhe send kar do please
Sent dear...

Readers are requested to participate in the story by their comments which is only motivation to continue..
I will get the content to read I will provide you a better story..

Hope you understand..
 

Shubham babu

Member
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सोनू बेहद उत्साहित था। रात भर वह अगले दिन के बारे में सोचता रहा और मन ही मन अपने ईश्वर से प्रार्थना करता रहा की सुगना और उसके मिलन में कोई व्यवधान नहीं आए उसे इतना तो विश्वास हो चला था कि जब सुगना ने ही मिलन का मन बना लिया है तो विधाता उसका मन जरूर रखेंगे..

अगली सुबह सुगना के बच्चों सूरज और मधु को भी यह एहसास हो चला था कि उनकी मां उन्हें कुछ घंटे के लिए छोड़कर सलेमपुर जाने वाली है। वह दोनों सुबह से ही दुखी और मुंह लटकाए हुए थे।

बच्चों का अपना नजरिया होता है सुगना को छोड़ना उन्हें किसी हालत में गवारा नहीं था सोनू ने उन दोनों को खुश करने की भरसक कोशिश की तरह-तरह के खिलौने बक्से से निकाल कर दिए पर फिर भी स्थिति कमोवेश वैसी ही रही।

तभी सरयू सिंह ने बाकी बच्चों को बाहर पार्क चलने के लिए आग्रह किया लाली के बच्चे तुरंत ही तैयार हो गए और अब सूरज और मधु भी अपने साथियों और दोस्तों के साथ पार्क में जाने के लिए राजी हो गए।

सोनू और सुगना दोनों संतुष्ट थे।

सोनू ने गाड़ी स्टार्ट की और अपनी अप्सरा को अपनी बगल में बैठ कर सलेमपुर के लिए निकल पड़ा।

अपने मोहल्ले से बाहर निकलते ही सोनू ने सुगना की तरफ देखा जो कनखियों से सोनू को ही देख रही थी

आंखें चार होते ही सोनू ने मुस्कुराते हुए पूछा

“दीदी का देखत बाड़े”

सुगना ने अपनी नज़रें झुकाए हुए कहा.

“तोर गर्दन के दाग देखत रहनि हा”

“अब तो दाग बिल्कुल नईखे..” सोनू ने उत्साहित होते हुए कहा।

“हमरा से दूर रहबे त दाग ना लागी” सुगना ने संजीदा होते हुए कहा उसे इस बात का पूरी तरह इल्म हो चुका था कि सोनू के गर्दन का दाग निश्चित ही उनके कामुक मिलन की वजह से ही उत्पन्न होता था।

“हमारा अब भी की बात पर विश्वास ना होला. सरयू चाचा के भी तो ऐसा ही दाग होते रहे ऊ कौन गलत काम करत रहन” सोनू ने इस जटिल प्रश्न को पूछ कर सुगना को निरुत्तर कर दिया था। सरयू सिंह सुगना की दुखती रख थे। यह बात वह भली भांति जानती थी कि उनके माथे का दाग भी सुगना से मिलन के कारण ही था परंतु उनके बारे में बात कर वह स्वयं को और अपने रिश्ते को आशाए नहीं करना चाहती थी उसने तुरंत ही बात पलटी और बोला..

“चल ठीक बा …और लाली के साथ मन लगे लगल”

“का भइल सोनी के गइला के बाद हिंदी प्रैक्टिस छूट गईल?” शायद सोनू इस वक्त अपने और लाली के बारे में बात नहीं करना चाहता था उसका पूरा ध्यान सुगना पर केंद्रित था।

“नहीं नहीं मैं अब भी हिंदी बोल सकती हूं” सुगना ने हिंदी में बोलकर सोनू के ऑब्जरवेशन को झूठलाने की कोशिश की।

“अच्छा ठीक है मान लिया…वास्तव में आप साफ-साफ हिंदी बोलने लगी है.. “

अपनी तारीफ सुनकर सुगना खुश हो गई और सोनू की तरफ उसके आगे बोलने का इंतजार करने लगी..

“ दीदी एक बात बता उस दिन जो मैंने सलेमपुर में किया था क्या वह गलत था?”

सुगना को यह उम्मीद नहीं थी उसने प्रश्न टालने की कोशिश की “किस दिन?”

“वह दीपावली के दिन”

अब कुछ सोचने समझने की संभावना नहीं थी सुगना को उसे काली रात की याद आ गई जब उसके और सोनू के बीच पाप घटित हुआ था।

पर शायद वह पाप ही था जिसने सोनू और सुगना को बेहद करीब ला दिया था इतना करीब कि दोनों दो जिस्म एक जान हो चुके थे।

प्यार सुगना पहले भी सोनू से करती थी परंतु प्यार का यह रूप प्रेम की पराकाष्ठा थी और उसका आनंद सोनू और सुगना बखूबी उठा रहे थे। सोनू के प्रश्न का उत्तर यदि वर्तमान स्थिति में था तो यही था कि हां सोनू तुमने उस दिन जो किया था अच्छा ही किया था पर सुगना यह बात बोल नहीं पाई वह तब भी मर्यादित थी और अब भी।

“बोल ना दीदी चुप काहे बाड़े”

सोनू ने एक बार फिर अपनी मातृभाषा बोलकर सुगना की संवेदनाओं को जागृत किया।

“हां ऊ गलत ही रहे”

“पर क्यों अब तो आप उसको गलत नहीं मानती”

“तब मुझे नहीं पता था की मैं तुम्हारी सगी बहन नहीं हूं”

सुगना ने अपना पक्ष रखने की कोशिश की तभी उसे सोनू की बात याद आने लगी।

अच्छा सोनू यह तो बता “मैं किसकी पुत्री हूं मेरे पिता कौन है?”

“माफ करना दीदी मैं यहां बात बात कर हम दोनों की मां पदमा को शर्मसार नहीं कर सकता हो सकता है उन्होंने कभी भावावेश में आकर किसी पर पुरुष से संबंध बनाए हों पर अब उसे बारे में बात करना उचित नहीं होगा”

सुगना महसूस कर रही थी कि उसके और सोनू के बीच बातचीत संजीदा हो रही थी। उधर सुगना आज स्वयं मिलन का मूड बनाए हुए थी। उसने अपना ध्यान दूसरी तरफ केंद्रित किया और सोनू को उकसाते हुए बोली..

“तोरा अपना बहिनी के संग ही मन लागेला का?”

काहे? सोनू ने उत्सुकता बस पूछा।

“ते पहिले लाली के संग भी सुतत रहले अब हमरो में ओ ही में घासीट लीहले”

आशय

तुम पहले लाली के साथ भी सो रहे थे और बाद में मुझे भी उसमें घसीट लिया।

अब सोनू भी पूरी तरह मूड में आ चुका था उसने कहा..

“तोहर लोग के प्यार अनूठा बा…”

काहे…? सुगना ने सोनू के मनोभाव को समझने की चेष्टा की।

सोनू ने अपना बाया हाथ बढ़ाकर सुगना की जांघों को दबाने का प्रयास किया पर सुगना ने उसकी कलाई पकड़ ली और खुद से दूर करते हुए बोली।

“ठीक से गाड़ी चलाओ ई सब घर पहुंच कर”

सुगना की बात सुनकर सोनू बाग बाग हो गया उसने गाड़ी की रफ्तार तेज कर दी सुगना मुस्कुराने लगी उसने सोनू की जांघों पर हाथ रखकर बोला

“अरे सोनू तनी धीरे चल नाता हमरा के बिस्तर पर ले जाए से पहले अस्पताल पहुंचा देबे” सुगना खिलखिलाकर हंस पड़ी।

हस्ती खिलखिलाती सुगना को यदि कोई मर्द देख ले तो उसकी नपुंसकता कुछ ही पलों में समाप्त हो जाए ऐसी खूबसूरत और चंचल थी सुगना सोनू ने अपनी रफ़्तार कुछ कम की और मन ही मन सुगना को खुश और संतुष्ट करने के लिए प्लानिंग करने लगा।

उधर सुगना भी सोनू को खुश करने के बारे में सोच रही थी। आज वह उसे दीपावली की काली रात में घटित पाप को पूरी सहमति और समर्पण के साथ अपनाने जा रही थी।

आईये अब उधर दक्षिण अफ्रीका में सोनी और विकास का हाल-चाल ले लेते हैं वह भी विकास की जुबानी​


(मैं विकास)

खाना खाने के पश्चात मैं और सोनीटहलते हुए होटल के शॉपिंग एरिया में आ गए थे

मैंने सोनीके लिए कुछ उपहार खरीदे वही पास में एक मसाज सेंटर था। सोनीअपने लिए कुछ छोटे-मोटे सामान खरीद रही थी तब तक मैं उस मसाज सेंटर में चला गया। यह मसाज सेंटर अद्भुत था मैंने रिसेप्शनिस्ट से वहां मिल रही सुविधाओं के बारे में जानना चाहा उसने मुझे ब्राउज़र दे दिया और कहा सर इसमें सभी प्रकार की सुविधाएं हैं आप अपनी इच्छा अनुसार जो सुविधा चाहिए वह पसंद कर सकते हैं। यह सारी बातें उसने धाराप्रवाह अंग्रेजी में समझायीं।

मैं ब्राउज़र लेकर वापस आ गया। सोनीबहुत खुश थी मैं उसे एक लिंगरी शॉप में ले गया मैंने सोनीके लिए कई सारे लिंगरी सेट खरीदें। वहां मिलने वाली ब्रा और पेंटी बहुत ही खूबसूरत थी। और उनमें एक अलग किस्म की कामुकता थी। सोनीउसे देखकर शरमा रही थी। पता नहीं सोनीमें ऐसी कौन सी खासियत थी कि ऐसे अद्भुत कामुक कार्य करने के बाद भी वह उसी सादगी और सौम्यता से मेरी प्यारी बन जाती और छोटी-छोटी बातों पर उसका चेहरा शर्म से लाल हो जाता सुगना की कुछ खूबियां सोनी में भी आ गईं थीं

हम सब कुछ देर बाद होटल वापस आ चुके थे।

रात में मैं और सोनीअल्बर्ट के बारे में बातें कर रहे थे सोनीअल्बर्ट के लिंग के बारे में मुझसे खुलकर बात कर रही वह अपनी कोहनी से हाथ की कलाई को दिखाते हुए बोली विकास उसका लिंग इतना बड़ा और एकदम काला था।

मैं उसकी बात सुनकर हंस रहा था सोनीके कोमल हाथों मैं मैं उसके लिंग की कल्पना से ही अत्यंत उत्तेजित हो उठा। सोनीमेरे ऊपर आ चुकी थी और अपनी कमर को धीरे धीरे हिला रही मैं उसके स्तनों को अपने सीने में सटाए हुए उसे चूम रहा था।

उसके कोमल नितंबों पर हाथ फेरते हुए मुझे अद्भुत आनंद की प्राप्ति हो रही थी। आज सोनीने जो किया था वह शाबाशी की हकदार थी मैं उसके नितंबों पर हल्के हाथों से थपथपा कर उसके अदम्य साहस की तारीफ कर रहा था और वह मेरी तरफ देख कर कामुकता भरी निगाहों से मुस्कुरा रही थी।

अचानक मैंने उससे कहा

"सोनीयदि अल्बर्ट का काला लिंग तुम्हारी बुरमें होता तो?"

वह मुस्कुराई और बोली

"यह बुर तब आपके किसी काम की नहीं रहती"

मैंने उसे फिर छेड़ा अरे यह सोनी जिम्नास्ट की बुरहै… उंगली और अंगूठे को एक जैसा ही पकड़ती है।.

मेरी इन उत्तेजक बातों से सोनीकी कमर तेजी से हिलने लगी थी ऐसा लग रहा था जैसे वह भी इस कल्पना से ही उत्तेजित हो रही थी। मैंने उससे फिर कहा

" एक बार कल्पना करो कि यह अल्बर्ट का काला लिंग है" वह शरमा गई उसमें मेरे गालों पर चिकोटी काटी उसकी कमर अभी भी तेजी से चल रही थी। उसने आंखें बंद कर ली अचानक मैंने उसकी कमर में अद्भुत तेजी दिखी चेहरा तमतमाता हुआ लाल हो चुका था।

मेरी सोनी स्खलित हो रही थी मैने भी अपना योगदान देकर उसके स्खलन को और उत्तेजना प्रदान की और स्वयं भी स्खलित हो गया। मैंने उसके चेहरे पर ऐसी उत्तेजना आज के पहले कभी नहीं देखी थी उसकी बुर ने आज जी भर कर प्रेम रस छोड़ा था मैं उसकी उत्तेजना से स्वयं विस्मित था। मेरे हाथ उसके नितंबों को सहला रहे थे और वह निढाल होकर मेरे सीने पर गिर चुकी थी।

मैंने मन ही मन सोच लिया था हो ना हो यह अल्बर्ट के लिंग की कल्पना मात्र का परिणाम था। हम दोनों संभोग के पश्चात मेरे द्वारा लाए गए मसाज पार्लर का ब्राउज़र पड़ने लगी मैंने सोनीकी तरफ एक बार फिर देखा और बोला चलो ना कल ट्राई करते हैं फिर यह मौका कहां मिलेगा वह शर्मा रही थी पर अंत में उसने मुझसे चिपकते हुए बोला ठीक है पर आप वही रहेंगे तभी और जरूरत पड़ने पर मेरी मदद करेंगे। मैं यह रिस्क अकेले नहीं ले पाऊंगी मैंने भी इस अद्भुत मिलन के लिए अपनी सहमति दे दी। मैं भी मन ही मन इस उत्तेजक संभोग को देखना चाहता था।

ऐसा अद्भुत दृश्य मैंने सिर्फ फिल्मों में ही देखा था और कल यह मेरी आंखों के सामने घटित होने वाला था। सोनीभी एक अद्भुत आनंद में डूबने वाली थी वह उसके लिए आनंद होता या कष्ट यह समय की बात थी। पर मेरी वहां उपस्थिति ही काफी थी मेरी सोनीको कोई कष्ट पहुंचाया यह असंभव था।

अगले एपिसोड में आप क्या पढ़ना चाहेंगे
1 सोनू और सुगना का मिलन
Ya
2 सोनी का अद्भुत मसाज
आप सभी पाठकों के कॉमेंट्स का इंतजार रहेगा
1 सोनू और सुगना का मिलन phle
 
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