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Incest आह..तनी धीरे से.....दुखाता.

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Lovely Anand

Love is life
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159
आह ....तनी धीरे से ...दुखाता
(Exclysively for Xforum)
यह उपन्यास एक ग्रामीण युवती सुगना के जीवन के बारे में है जोअपने परिवार में पनप रहे कामुक संबंधों को रोकना तो दूर उसमें शामिल होती गई। नियति के रचे इस खेल में सुगना अपने परिवार में ही कामुक और अनुचित संबंधों को बढ़ावा देती रही, उसकी क्या मजबूरी थी? क्या उसके कदम अनुचित थे? क्या वह गलत थी? यह प्रश्न पाठक उपन्यास को पढ़कर ही बता सकते हैं। उपन्यास की शुरुआत में तत्कालीन पाठकों की रुचि को ध्यान में रखते हुए सेक्स को प्रधानता दी गई है जो समय के साथ न्यायोचित तरीके से कथानक की मांग के अनुसार दर्शाया गया है।

इस उपन्यास में इंसेस्ट एक संयोग है।
अनुक्रमणिका
भाग 126 (मध्यांतर)
भाग 127 भाग 128 भाग 129 भाग 130 भाग 131 भाग 132
भाग 133 भाग 134 भाग 135 भाग 136 भाग 137 भाग 138
भाग 139 भाग 140 भाग141 भाग 142 भाग 143
 
Last edited:

prkin

Well-Known Member
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189
2 सोनी का अद्भुत मसाज
 

Sanju@

Well-Known Member
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भाग 133


सोनू सुगना के बगल में लेट कर सुगना के शरीर पर पड़े अपने वीर्य से उसके कोमल बदन की मालिश करने लगा.. चूचियां वीर्य से सन चुकीं थी । सोनू ने सुगना के चेहरे पर पड़ी नाइटी आहिस्ता से हटा दी। वह सुगना को लगातार चुमें जा रहा था.. जैसे वह सुगना के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रहा हो सुगना भी उसकी बाहों में सिमटी जा रही थी..


नियति सोनू और सुगना के मिलन से संतुष्ट थी। सोनू को दहेज में सुगना ने अपनी बुर ही क्या वह स्वयं को सोनू के लिए समर्पित कर दिया था।


अब आगे…


नग्न सुगना को अपनी बाहों में लिए सोनू सुगना के चेहरे को रह रह कर चूम रहा था और सुगना भी पूरे जोश से सोनू से चिपकी हुई थी। वैसे भी वह सोनू के लिंग में दोबारा उत्तेजना जागृत होने का इंतजार कर रही थी। उसकी पनियाई बुर चैतन्य होकर सोनू के लंड का इंतजार कर रही थी।


सुगना के होठों को चूमते हुए सोनू ने कहा


“अच्छा दीदी एक बात बताव लाली दीदी के साथ ब्याह कईला ला के बाद….”


“अब ओकरा के की दीदी मत बोला कर कितना बार कहले बानी”..


सुगना ने सोनू के गाल पर एक मीठी चपत लगाई और उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोली…


सोनू मुस्कुराने लगा…उसने सुगना के नग्न कूल्हों को अपनी हथेलियां के दबाव से अपनी तरफ खींचा और उसका लंड सुगना की जांघों से सट गया…सोनू ने सुगना के कानों को चूमते हुए धीरे से फुसफुसाते हुए बोला..


“तब त तू हमार साली लगबु अब तहरो के दीदी ना बोलब..”


सुगना की जांघों ने महसूस किया कि सोनू का लंड अपना आकर धीरे-धीरे बढ़ा चुका था।


सुगना एक बार फिर खिलखिलाकर हंस पड़ी.. हंसती खिलखिलाती सुगना किसी भी मर्द में उत्तेजना भरने में सक्षम थी सोनू एक बार फिर अपनी मजबूत लंड के साथ..अपनी साली सुगना की सेवा करने को तैयार था…


सुगना स्वयं इस नए रिश्ते को समझने का प्रयास कर रही थी.. इसी बीच सोनू सुगना की खुद के वीर्य से सनी चूचियां अपने मुंह में ले चुका था…


सुगना सोनू की वासना को जागृत होते हुए देख रही थी।


सुगना और सोनू पूरी तरह से एक हो चुके थे। उनके बीच जो आगे हुआ वो पाठक अपनी अपनी कल्पनाओं के अनुसार सोच सकते हैं और समझ सकते हैं।


सोनू और सुगना के रिश्ते बदल रहे थे।


सोनू और सुगना के बीच एकांत में अब उतना ही पर्दा था जितना पति-पत्नी के बीच होता है। परंतु किसी अन्य की उपस्थिति में सुगना और सोनू का रिश्ता ठीक वैसे ही था जैसे एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच होता है। हां इतना अंतर अवश्य आया था कि अब दोनों एक दूसरे से खुलकर बात करते थे उन दोनों के बीच झिझक धीरे-धीरे कम होती जा रही थी परंतु मर्यादा उसी प्रकार कायम थी जैसी होनी चाहिए।


सोनू और सुगना के मिलन ने एक बार फिर सोनू के दाग को उभार दिया था। शायद नियति सोनू और सुगना के मिलन पर अब भी अपना प्रश्न चिन्ह लगाए हुए थी और नियति के अनुसार उन्हें लगातार संभोग करने की अनुमति न थी।


सोनू को यह प्रतिबंध स्वीकार था परंतु सुगना से दूर रहना कतई नहीं। सोनू अपने गर्दन का दाग कम होते ही वापस बनारस सुगना की प्रेम गंगा में स्नान और सुगना से मिलन की उम्मीद लिए आता पर अधिकतर सुगना उसे बहन का प्यार तो देती उसके लिए उसके पसंद के पकवान खिलाती पर अपनी जांघों के बीच छुपाए मालपुवे को उसकी नजरों से बचाते हुए सुरक्षित दूरी बनाए रखती। उसे सोनू से मिलन तो प्यारा था पर वह सोनू के दाग को बढ़ाना कतई नहीं चाहती थी।


परंतु जब उसकी निगोडी बुर स्वयं बेचैन हो जाती तो कभी कभी उसका और अपने भाई सोनू का मन रखने के लिए उसके आगोश में आ जाती.. और सोनू को कई दिनों के लिए तरोताजा कर जाती…परंतु इस ताजगी के एवज में न चाहते हुए भी उसकी गर्दन पर दाग छोड़ जाती…


सोनू को सुगना से मिलन इस दाग से ज्यादा प्यारा था। सुगना से अलग होने के बाद जब जब वह अपनी गर्दन के दाग को देखता उसे सुगना के साथ बिताए पल याद आने लगते और दाग खत्म होते होते सोनू के मन में दोबारा मिलने की उमंगे दौड़ने लगती।


सुगना का जादू सोनू पर पूरी तरह छाया हुआ था। सुगना द्वारा जागृत उत्तेजना लाली और सोनू के संबंधों को और प्रगाढ़ कर रही थी..


सुगना, सोनू और लाली के बीच प्रेम संबंधों में कैटालिस्ट की तरह थी…परंतु सोनू यह बात नोटिस कर रहा था की कामुक संबंधों के दौरान लाली अब सुगना के बारे में बात नहीं करती थी…। सोनू को यह बात रास न आतीं थी परंतु सोनू को भी अपनी मर्यादा में रहना आवश्यक था।


सोनी के विवाह को अब 3 महीने ही रह गए थे। विकास वापस आने वाला था । सोनी अपने विवाह की तैयारी में लगी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से सुगना यह महसूस कर रही थी कि पोस्टमैन अक्सर घर पर आता और सोनी को कुछ लिफाफे पकड़ा जाता। सोनी चुपचाप उसे अपने कमरे में लिए जाती और अगले कुछ दिनों में सोनी अपने लिए तरह-तरह के वस्त्र खरीदती कभी उपहार स्वरूप बच्चों के लिए भी कपड़े ले आती।


एक दिन सुगना से रहा न गया और उसने पूछ ही लिया “ई तोहरा के के पैसा भेजेला ”


सोनी ने अपनी नज़रें झुकाई और शरमाते हुए बोला


“ वही भेज रहे हैं जिनके पल्ले आपने मुझे बांध दिया है”


सोनी के मुख से खड़ी हिंदी सुनकर लाली और सुगना आश्चर्यचकित थे। निश्चित ही यह पैसे विकास भेज रहा था। लाली और सुगना ने सोनी से अनुरोध किया..


“थोड़ा बहुत हमनी के भी हिंदी सिखा दे पढ़ल लिखल लागब जा”


सोनी ने एक टीचर की भांति कहा


“ओके कल से तैयार रहिएगा…पर दीदी गुरु दक्षिणा में क्या मिलेगा?”


लाली ने तपाक से बोला..


“विकास के खुश करे के और अपना पीछे पीछे घुमावे के तरीका….”


लाली ने जिस कामुक अंदाज में यह बात की थी सोनी और सुगना दोनों उसका आशय समझ गए थे। लाली अब उसकी भाभी बनने वाली थी…और वो ननद।


ननद और भाभी के बीच यह मजाक बदलते रिश्तों को बखूबी दिखा रहा था।


सोनी लाली से मुस्कुराते हुए बोली…


“ वैसे तोहर तरीका में जरूर कुछ दम बा “


काहे? लाली ने प्रश्न किया..


सुगना बगल में ही खड़ी थी। सोनी लाली के पास गई और उसके कान में बोली..


“तोहार तरीका जरूर कुछ खास बा तभी तू सोनू भैया के फांस लेलू “


लाली को सोनी कि यह बात रास ना आई. उसने प्रतिरोध करते हुए कहा..


“हम तहरा भैया के नइखे फसवले…. आईहें त उनके से पूछ लीहा..”


सुगना ने बातचीत का क्रम बिगड़ते हुए देखकर सोनी को टोका


“सोनी ढेर बकबक मत कर…. सिखावे के बाद सिखाव न ता जो अपन काम कर”


“दीदी कल से रोज शाम को एक घंटा..और हां गुरुदक्षिणा बाद में” सोनी ने सुगना के कंधों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और उसे एक फ्लाइंग किस देते हुए कहा…


सुगना सोनी में आए बदलाव को कई रूपों में देख रही थी। उसका बर्ताव अब एक आदर्श छोटी बहन से इतरा एक सहेली के रूप में हो रहा था। परिवर्तन प्रकृति का नियम है सुगना यह बात तो बखूबी जानती थी उसने इसे नजरअंदाज किया और अपने काम में लग गई।


पर लाली को सोनी की बातें कुछ असहज कर गयीं …सोनू से विवाह का प्रस्ताव उसने तो नहीं रखा था…. यहां तक की अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए सोनू स्वयं उसके पास आया था…फिर सोनी ने उसे ऐसा क्यों कहा? क्या वैवाहिक स्त्रियों के प्रेम संबंधों में हमेशा स्त्रियां ही दोषी होती है?


रसोई में काम कर रही सुगना ने लाली के चेहरे पर आई उदासी को पढ़ लिया सुगना ने सोनू के बचपन और हॉस्टल की बातें कर कुछ ही देर में उसका मूड खुश कर दिया। सोनी को भी वह दिन याद आने लगे जब सोनू धीरे-धीरे उसके संपर्क में आ रहा था। सुगना अनोखी थी और शायद इसीलिए हरदिल अजीज थी।


दिन बीत रहे थे


सुगना ने सोनी से हिंदी बोलने की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया। वो अपनी भोजपुरी भाषा का सम्मान जरूर करती थी परंतु हिंदी भाषा का ज्ञान होना भी जरूरी था। घर से बाहर निकलने पर अधिकतर लोग इसी भाषा में बात करते थे। परंतु सुगना की जबान से हमेशा भोजपुरी में ही बात निकलती थी। लाली का भी यही हाल था।


यहां तक कि घर के बच्चे भी अधिकतर भोजपुरी में ही बात करते थे। सुगना और लाली ने बच्चों में भी हिंदी बोलने की आदत डालने का निश्चय किया। वक्त के साथ चलना और बदलना भी जरूरी था।


इस बीच सुगना के घर में एक और परिवर्तन आ रहा था। घर में पैसे की आवक बढ़ चुकी थी। उधर विकास सोनी को लगातार पैसे भेज रहा था जिससे वह तरह-तरह के कपड़े खरीदती। उधर जब से लाली और सोनू का विवाह लगभग तय हो गया था लाली में भी आमूल चूल बदलाव आ रहा था अब वह अपने ऊपर और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी। पेंशन के पैसे थे ही उसने भी अपने कपड़े और पहनावे में परिवर्तन लाया। पर लाली एक बात का विशेष ध्यान रखती थी कि जब भी वह अपने लिए नए वस्त्र लाती वैसा ही एक सुगना के लिए जरूर लाती चाहे वह पहने चाहे नहीं।


कपड़ों में यह बदलाव आधुनिकता की देन थी कभी सलवार सूट कभी अनारकली कभी हल्के-फुल्के वेस्टर्न ड्रेस सुगना लाली के जीवन में ए आ रहे बदलाव को देख रही थी लाली खुश थी और सुगना भी।


लाली अपने नए वस्त्रों को पहन कर सुगना को दिखाती और जब उसकी प्रशंसा मिल जाती वह सोनू के घर आने के दिन इस कपड़े में सोनू का इंतजार करती।


लाली की देखा देखी सोनू भी कभी-कभी सोनू भी अपनी पसंद के कपड़े अपनी सुगना दीदी के लिए ले आता और लाली के लिए भी पर आज भी उसकी पहली पसंद सुगना ही थी। सुगना कभी-कभी उसे प्यार से डांटती..और फिर प्यार भी करती।


परंतु भरे पूरे घर में सुगना के साथ एकांत ढूंढना और सुगना को अपनी प्रेमिका के रूप में पाना बेहद कठिन था।


सुगना का घर विवाह का घर हो चुका था जहां आए दिन भीड़ भाड़ रहती थी। पदमा सरयू सिंह और कजरी का आना जाना भी अब लगातार रहता था। सुगना और सोनू के मिलन में बाधाएं लगातार बढ़ रही थी और वैसे ही सोनू की कसक भी। परंतु चतुर और सबका ध्यान रखने वाली सुगना सोनू का ढाढस बांधे रखती थी। वह उसकी सारी इच्छाएं पूरी कर पाने में असमर्थ रहती पर कभी-कभी मौका मिलते ही छोटा-मोटा दाग लगा ही देती थी।


“जब भूख ज्यादा लगी हो तो अल्पाहार जठराग्नि को और भड़का देता है”


सुगना को लेकर सोनू ने इतनी कल्पनाएं कर रखी थी कि उसे पूरा करते-करते न जाने कितने दिन और साल लगते और सोनू की गर्दन का दाग न जाने क्या रूप ले लेता..


नियति सोनू की भावनाओं को बखूबी समझती थी और सुगना भी। उसकी काम इच्छाओ को शांत करने के लिए सुगना को अपने कदम धीरे-धीरे ही बढ़ाने थे और वही वह कर रही थी।


सोनी के विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं थीं। सरयू सिंह परिवार के मुखिया थे वह स्वयं सोनी के विवाह के लिए सभी व्यवस्थाएं कर रहे थे। नियति सरयू सिंह के मनःस्थिति के बारे में सोच रहीं थी।


जब-जब वह सोनी को देखते उनके मन में एक कसक सी उठती थी। आखिर कैसे कोई युवती विवाह से पहले अपने आशिक से संभोग कर सकती है। सोनी अभी उन्हें चरित्रहींन हीं लगती थी और शायद यही कारण था की सरयू सिंह की वासना ने सोनी को अपने आगोश में ले लिया था अन्यथा सुगना के साथ किए गए संभोग की आत्म ग्लानि अब भी उन्हें सताती थी।


अपनी कोठरी में सोनी को विकास के साथ संभोग सुख लेते सरयू सिंह ने अपनी आंखों से देखा था और तब से उसके मादक कूल्हों की तस्वीर सरयू सिंह की निगाहों में छप सी गई थी।


सोनी जब-जब सरयू सिंह के समक्ष आती दोनों असहज हो जाते। जब सोनी सरयू सिंह के चरण छूने के लिए झुकती वह उससे पहले अपने वस्त्रों को ठीक करती शायद उसे यह एहसास हो चुका था की सरयू सिंह की निगाहें उसके कूल्हों और चूचियों पर घूमती रहती हैं।


परंतु जब से सोनी ने सरयू सिंह के लंड को देखा था और उसे अपनी कामुक कल्पना में स्थान दिया था सोनी को यह असहजता अब अच्छी लगने लगी थी।


कुछ दिनों बाद विकास अमेरिका से वापस आ गया और विकास एवं सोनी का विवाह पूरी धूमधाम से संपन्न हो गया। सोनू ने भी मौका देखकर विकास को अपने और लाली के विषय में सब कुछ बता दिया। सोनू विकास की नजरों में महान हो गया था। लाली को अपनाने की जो हिम्मत सोनू ने दिखाई थी वो काबिलेतारिफ थी।


शादी के जोड़े में सजी-धजी सोनी को देखकर कभी-कभी सरयू सिंह उसकी गलती माफ कर देते और उसे हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देते परंतु एकांत में वह उसे याद करने का सुख कतई नहीं खोना चाहते थे। अब वही उनकी कामुकता को जीवंत रखने की किसी एकमात्र सहारा थी।


आखिरकार सरयू सिंह की अप्सरा विकास के साथ अमेरिका जाने वाली थी। सुगना के घर का एक अहम सदस्य घर से विदा हो रहा था पूरे परिवार की आंखें नम थी।


सोनी ने लाली से विदा होते वक्त कहा..


“मैं तो आपकी शादी में नहीं आऊंगी पर भाभी आप सोनू भैया का ख्याल रखिएगा”


सोनी को इस बात का इल्म था की सोनू और लाली का विवाह कोर्ट मैरिज के रूप में होगा और घर में शायद कोई बड़ा फंक्शन नहीं होगा। उसने अपने संबोधन में लाली को भाभी बोलकर उसे मन ही मन स्वीकार कर लिया था।


आखिरकार सोनी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुकी थी। सुगना की दोनों बहने सुगना से दूर जा चुकी थी।


उधर मोनी विद्यानंद के आश्रम में नित्य नए-नए अनुभव कर रही थी। वयस्क होने की उम्र में होने के बावजूद मोनी का मन एक किशोरी जैसा था। वह एक वह शांत स्वभाव की थी और मन से पूरी तरह धार्मिक थी। सुगना की बहन सोनी जितने आधुनिक ख्याल वाली थी.. मोनी ठीक उसके उलट उतनी ही सीधी-साधी ,धर्म परायण और घरेलू थी।


और इस कहानी की नायिका अपनी दोनों बहनों के गुणों और अवगुणों का मिश्रण थी।


(जिन पाठकों को मोनी का किरदार ध्यान है उन्हें शायद मोनी को समझने में आसानी होगी अन्यथा चरित्र चित्रण पर मेरा ज्यादा समय व्यर्थ होगा उम्मीद करता हूं की कहानी को ध्यान से पढ़ने वाले पाठक जरूरत पड़ने पर पुराने एपिसोड रेफर कर सकते हैं)


उधर विद्यानंद के आश्रम में कुंवारी पर वयस्क कन्याओं के साथ मोनी नित नए-नए अनुभव ले रही थी। यद्यपि उसके साथ जो हो रहा था वह उसकी अपेक्षा और सोच से परे था परंतु वह जिस प्रकार से आयोजित किया जा रहा था मोनी उसे बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर ले रही थी।


कुछ कार्यक्रम इतने भाव और शालीन तरीके से किए जाते हैं कि उसमें हो उचित अनुचित कृत्य पर सवाल उठाना बेहद कठिन होता है। विद्यानंद के आश्रम में कई अनूठी गतिविधियां होती थी जो सामान्य तौर पर देखने पर अटपटी लगती थी परंतु उन पर प्रश्न उठाने की ना तो किसी में हिम्मत थी और शायद जरूरत भी नहीं थी। जब उसके प्रतिभागी उसे स्वयं स्वीकार कर रहे थे तो भला किसी और को क्यों आपत्ति होती।


मोनी की टोली में उसके समकक्ष और हमउम्र कई कुंवारी लड़कियां थी जो माधवी के नेतृत्व में तरह-तरह के प्रयोग करती और शाम को अपने-अपने कमरे में लौट जाती।


सुबह-सुबह अपनी साधना के समय जब मोनी अपनी सहेलियों के साथ पूरी तरह नग्न होती वह बेहद ही असहज महसूस करती परंतु अपनी बाकी सहेलियों और अपनी गुरु माधवी को भी पूरी तरह नग्न देखकर वह इस प्रथा को धीरे-धीरे स्वीकार कर चुकी थी।


उनकी गुरु माधवी जो एक अंग्रेज महिला थी वो तन से और चेहरे से बेहद खूबसूरत थी।


नियति नग्न लड़कियों के झुंड और उनकी गुरु माधवी को जब-जब बगीचे में घूमते खेलते देखती उसे एक पल को लगता जैसे वह वह जन्नत में आ गई हो.. हरी हरी दूब की घास रंग-बिरंगे फूलों और छायादार वृक्षों से घिरे उपवन में क्रीडा करती युवतियों को देखकर नियति उनके बीच एक अदद पुरुष की आवश्यकता महसूस कर रही थी.. यदि वह पुरुष गलती से इस उपवन में आ जाता तो निश्चित ही उसे यह आभास होता कि वह स्वर्ग लोक में आ गया है और यह लड़कियां उसे अप्सराओं जैसी प्रतीत होती। परंतु अफसोस विद्यानंद के आश्रम के नियमों के अनुसार आश्रम के उसे हिस्से में पुरुषों का जाना सख्त मना था।


इन लड़कियों का चयन माधवी ने ही किया था। चयन के लिए जो मुख्य योग्यता थी कौमार्य सुरक्षित होना, खूबसूरत चेहरा और खूबसूरत बदन…। विद्यानंद ने माधवी को जन्नत की हूरें या स्वर्ग की अप्सराएं तैयार करने के लिए लगाया था और माधवी ने यह काम बखूबी किया भी था।


माधवी को ट्रेनिंग अब भी जारी थी…वह लड़कियों को तरह तरह के योगाभ्यास कराती जिससे उनका बदन और भी सुडौल बने। उन्हें एक दूसरे की चूचियों को मालिश कर उन्हें और भी उन्नत और कामुक बनाने की कोशिश करती.. लड़कियों के जांघों के बीच उग आए कल और सुनहरे बालों को हटाने के लिए ना तो कभी माधवी ने जिद किया और नहीं कभी लड़कियों ने उसकी मांग की। कुदरत द्वारा प्रदत्त एकमात्र वही बाल उनका सहारा थे अपने गुप्तांगों को छुपाने के लिए यद्यपि छुपाने की आवश्यकता ना थी क्योंकि जब वह इस तरह नग्न अवस्था में रहती सभी की सभी लड़कियों की स्थिति एक ही होती।


मूलत माधवी का उद्देश्य यही था कि इन चुनी हुई लड़कियों के बदन को तराश कर उन्हें अप्सराओं की भांति तैयार करना था। विद्यानंद का उद्देश्य माधवी को भली भांति ज्ञात था। माधवी इस बात का पूरा ख्याल रखती की कोई भी लड़की अपनी योनि को हाथ न लगाएं और यदि इसकी आवश्यकता हो तो भी उसे अपना कौमार्य बचाए रखने की सख्त हिदायत थी।


नग्नता पैसे भी वासना को जन्म देती है यद्यपि आश्रम में आई लड़कियां निश्चित ही कामवासना से विमुख होकर यहां आई थी परंतु फिर भी वासना स्त्री का एक अभिन्न गुण होता है।


मोनी का तन बदन धीरे-धीरे और निखरता जा रहा था चूचियों की मालिश और योगाभ्यास ने उसकी चूचियों को पर्वत की भांति उठा दिया था। गोरी गोरी जांघों के बीच झुरमुट की तरह काले बाल उसकी बुर को छुपाए रखते.. पर उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा देते।


कुछ महीने के अथक प्रयासों के पश्चात मोनी और अन्य लड़कियां पूरी तरह तैयार थी।


और एक दिन..


विशालकाय भवन में सभी लड़कियां अपने बदन पर एकमात्र झीना वस्त्र डालें (राम तेरी गंगा मैली की मंदाकिनी जैसी ) नीचे बैठी हुई विद्यानंद का इंतजार कर रही थी। कुछ ही देर बाद विद्यानंद अपनी पूरी गरिमा और माधवी के साथ कक्ष में उपस्थित हुए।


सभी लड़कियों ने उठकर उनका अभिवादन किया। विद्यानंद ने हाथ उठाकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और लड़कियों को बैठने का निर्देश दिया परंतु इसी दौरान उन्होंने माधवी की पसंद और उसकी मेहनत का जायजा ले लिया। ऐसा लग रहा था जैसे परीलोक से उतरकर कई अप्सराय आश्रम में आ गई हों..


विद्यानंद ने अपनी गंभीर आवाज में बोला..


देवियों आप सब आश्रम का अभिन्न अंग हो चुकी है… यह आश्रम मानवता की सेवा करने के लिए बना हुआ है…आप सब जिस समाज से उठकर आई है वहां सुख और दुख दोनों ही हर परिवार में होते हैं …. पति-पत्नी के संबंधों मैं सामंजस्य नहीं होना समाज में कई समस्याएं उत्पन्न करता है. ..कई विवाह सफल होते हैं कई असफल इन सब के मूल में कहीं ना कहीं स्त्री और पुरुष की कामवासना की तृप्ति नहीं हो पाना होता है।


जहां तक मैंने इस जीवन को देखा है मैं यही बात समझी है कि यदि पति और पत्नी के बीच अंतरंग संबंध बखूबी बनते हैं और दोनों ही उसका आनंद लेते हैं तो वह विवाह निश्चित ही सफल होता है अन्यथा समाज में पति और पत्नी दोनों घुट घुट कर रहते हैं


आप सब ने भी शायद यह बात अपने आसपास या अपने परिवार में जरूर देखी होगी। क्या आपको पता है इसका मूल कारण क्या है? कई युवा पुरुष स्त्री शरीर से पूरी तरह अनभिज्ञ होते हैं । स्त्रियों के कोमल मन को जानना और स्त्री शरीर को समझना इतना आसान नहीं होता। और जब इसे पुरुष विवाह के बंधन में बंधते हैं तो कुछ ही दिनों में अपनी पत्नी की मन की बात जाने बिना और उसके शरीर को समझे बिना वह ऐसे ऐसे कृत्य करते हैं जिससे वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी की नजर में एक कामुक और आनंदी व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान छोड़ देते हैं।


इस अवस्था में पत्नी का प्रेम पाना तो दूर वह स्त्री उनसे ऐसी दूरी बना लेती हैं जो उनके मन में हमेशा कष्ट का कारण बनी रहती है।


मेरे कई अनुयाई अपने बच्चों की यही समस्या लेकर अक्सर मुझसे बातें करते। पूरी वस्तु स्थिति समझने के बाद मैंने इस समस्या के निदान के लिए एक नया आश्रम बनाया है जिसमें एक विशेष कक्ष है। आप सब इस धरती की सर्वोत्तम सुंदर महिलाओं में से एक है । और अब तक आप लोगों ने अपना कौमार्य बचा कर रखा है इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि आप सब कामुकता और वासना से दूर हैं।


मैं यह समझता हूं कि आश्रम से जुड़ते समय निश्चित ही आपने अपनी कामवासना पर विजय प्राप्त कर ली थी तब ही आप लोग ने इस आश्रम का रुख किया।


मैं आप सबको इस समाज से विकृतियों हटाने में आपकी सहायता सहायता चाहता हूं।


उधर रतन दरवाजे के उसी सभागार के कक्ष पर विद्याधर से मिलने के लिए इंतजार कर रहा था..


दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…


रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..


मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..


शेष अगले भाग में...


आपके कमेंट के इंतजार में
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है सोनू ने शादी से पहले ही सुगना से दहेज ले लिया
सोनी शादी करके विदा हो गई जाते जाते उसने लाली को अपनी भाभी मान लिया है बेचारे सरयुसिंह के अरमानों पर पानी फिर गया
 

Sanju@

Well-Known Member
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20,088
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भाग 133


सोनू सुगना के बगल में लेट कर सुगना के शरीर पर पड़े अपने वीर्य से उसके कोमल बदन की मालिश करने लगा.. चूचियां वीर्य से सन चुकीं थी । सोनू ने सुगना के चेहरे पर पड़ी नाइटी आहिस्ता से हटा दी। वह सुगना को लगातार चुमें जा रहा था.. जैसे वह सुगना के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रहा हो सुगना भी उसकी बाहों में सिमटी जा रही थी..


नियति सोनू और सुगना के मिलन से संतुष्ट थी। सोनू को दहेज में सुगना ने अपनी बुर ही क्या वह स्वयं को सोनू के लिए समर्पित कर दिया था।


अब आगे…


नग्न सुगना को अपनी बाहों में लिए सोनू सुगना के चेहरे को रह रह कर चूम रहा था और सुगना भी पूरे जोश से सोनू से चिपकी हुई थी। वैसे भी वह सोनू के लिंग में दोबारा उत्तेजना जागृत होने का इंतजार कर रही थी। उसकी पनियाई बुर चैतन्य होकर सोनू के लंड का इंतजार कर रही थी।


सुगना के होठों को चूमते हुए सोनू ने कहा


“अच्छा दीदी एक बात बताव लाली दीदी के साथ ब्याह कईला ला के बाद….”


“अब ओकरा के की दीदी मत बोला कर कितना बार कहले बानी”..


सुगना ने सोनू के गाल पर एक मीठी चपत लगाई और उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोली…


सोनू मुस्कुराने लगा…उसने सुगना के नग्न कूल्हों को अपनी हथेलियां के दबाव से अपनी तरफ खींचा और उसका लंड सुगना की जांघों से सट गया…सोनू ने सुगना के कानों को चूमते हुए धीरे से फुसफुसाते हुए बोला..


“तब त तू हमार साली लगबु अब तहरो के दीदी ना बोलब..”


सुगना की जांघों ने महसूस किया कि सोनू का लंड अपना आकर धीरे-धीरे बढ़ा चुका था।


सुगना एक बार फिर खिलखिलाकर हंस पड़ी.. हंसती खिलखिलाती सुगना किसी भी मर्द में उत्तेजना भरने में सक्षम थी सोनू एक बार फिर अपनी मजबूत लंड के साथ..अपनी साली सुगना की सेवा करने को तैयार था…


सुगना स्वयं इस नए रिश्ते को समझने का प्रयास कर रही थी.. इसी बीच सोनू सुगना की खुद के वीर्य से सनी चूचियां अपने मुंह में ले चुका था…


सुगना सोनू की वासना को जागृत होते हुए देख रही थी।


सुगना और सोनू पूरी तरह से एक हो चुके थे। उनके बीच जो आगे हुआ वो पाठक अपनी अपनी कल्पनाओं के अनुसार सोच सकते हैं और समझ सकते हैं।


सोनू और सुगना के रिश्ते बदल रहे थे।


सोनू और सुगना के बीच एकांत में अब उतना ही पर्दा था जितना पति-पत्नी के बीच होता है। परंतु किसी अन्य की उपस्थिति में सुगना और सोनू का रिश्ता ठीक वैसे ही था जैसे एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच होता है। हां इतना अंतर अवश्य आया था कि अब दोनों एक दूसरे से खुलकर बात करते थे उन दोनों के बीच झिझक धीरे-धीरे कम होती जा रही थी परंतु मर्यादा उसी प्रकार कायम थी जैसी होनी चाहिए।


सोनू और सुगना के मिलन ने एक बार फिर सोनू के दाग को उभार दिया था। शायद नियति सोनू और सुगना के मिलन पर अब भी अपना प्रश्न चिन्ह लगाए हुए थी और नियति के अनुसार उन्हें लगातार संभोग करने की अनुमति न थी।


सोनू को यह प्रतिबंध स्वीकार था परंतु सुगना से दूर रहना कतई नहीं। सोनू अपने गर्दन का दाग कम होते ही वापस बनारस सुगना की प्रेम गंगा में स्नान और सुगना से मिलन की उम्मीद लिए आता पर अधिकतर सुगना उसे बहन का प्यार तो देती उसके लिए उसके पसंद के पकवान खिलाती पर अपनी जांघों के बीच छुपाए मालपुवे को उसकी नजरों से बचाते हुए सुरक्षित दूरी बनाए रखती। उसे सोनू से मिलन तो प्यारा था पर वह सोनू के दाग को बढ़ाना कतई नहीं चाहती थी।


परंतु जब उसकी निगोडी बुर स्वयं बेचैन हो जाती तो कभी कभी उसका और अपने भाई सोनू का मन रखने के लिए उसके आगोश में आ जाती.. और सोनू को कई दिनों के लिए तरोताजा कर जाती…परंतु इस ताजगी के एवज में न चाहते हुए भी उसकी गर्दन पर दाग छोड़ जाती…


सोनू को सुगना से मिलन इस दाग से ज्यादा प्यारा था। सुगना से अलग होने के बाद जब जब वह अपनी गर्दन के दाग को देखता उसे सुगना के साथ बिताए पल याद आने लगते और दाग खत्म होते होते सोनू के मन में दोबारा मिलने की उमंगे दौड़ने लगती।


सुगना का जादू सोनू पर पूरी तरह छाया हुआ था। सुगना द्वारा जागृत उत्तेजना लाली और सोनू के संबंधों को और प्रगाढ़ कर रही थी..


सुगना, सोनू और लाली के बीच प्रेम संबंधों में कैटालिस्ट की तरह थी…परंतु सोनू यह बात नोटिस कर रहा था की कामुक संबंधों के दौरान लाली अब सुगना के बारे में बात नहीं करती थी…। सोनू को यह बात रास न आतीं थी परंतु सोनू को भी अपनी मर्यादा में रहना आवश्यक था।


सोनी के विवाह को अब 3 महीने ही रह गए थे। विकास वापस आने वाला था । सोनी अपने विवाह की तैयारी में लगी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से सुगना यह महसूस कर रही थी कि पोस्टमैन अक्सर घर पर आता और सोनी को कुछ लिफाफे पकड़ा जाता। सोनी चुपचाप उसे अपने कमरे में लिए जाती और अगले कुछ दिनों में सोनी अपने लिए तरह-तरह के वस्त्र खरीदती कभी उपहार स्वरूप बच्चों के लिए भी कपड़े ले आती।


एक दिन सुगना से रहा न गया और उसने पूछ ही लिया “ई तोहरा के के पैसा भेजेला ”


सोनी ने अपनी नज़रें झुकाई और शरमाते हुए बोला


“ वही भेज रहे हैं जिनके पल्ले आपने मुझे बांध दिया है”


सोनी के मुख से खड़ी हिंदी सुनकर लाली और सुगना आश्चर्यचकित थे। निश्चित ही यह पैसे विकास भेज रहा था। लाली और सुगना ने सोनी से अनुरोध किया..


“थोड़ा बहुत हमनी के भी हिंदी सिखा दे पढ़ल लिखल लागब जा”


सोनी ने एक टीचर की भांति कहा


“ओके कल से तैयार रहिएगा…पर दीदी गुरु दक्षिणा में क्या मिलेगा?”


लाली ने तपाक से बोला..


“विकास के खुश करे के और अपना पीछे पीछे घुमावे के तरीका….”


लाली ने जिस कामुक अंदाज में यह बात की थी सोनी और सुगना दोनों उसका आशय समझ गए थे। लाली अब उसकी भाभी बनने वाली थी…और वो ननद।


ननद और भाभी के बीच यह मजाक बदलते रिश्तों को बखूबी दिखा रहा था।


सोनी लाली से मुस्कुराते हुए बोली…


“ वैसे तोहर तरीका में जरूर कुछ दम बा “


काहे? लाली ने प्रश्न किया..


सुगना बगल में ही खड़ी थी। सोनी लाली के पास गई और उसके कान में बोली..


“तोहार तरीका जरूर कुछ खास बा तभी तू सोनू भैया के फांस लेलू “


लाली को सोनी कि यह बात रास ना आई. उसने प्रतिरोध करते हुए कहा..


“हम तहरा भैया के नइखे फसवले…. आईहें त उनके से पूछ लीहा..”


सुगना ने बातचीत का क्रम बिगड़ते हुए देखकर सोनी को टोका


“सोनी ढेर बकबक मत कर…. सिखावे के बाद सिखाव न ता जो अपन काम कर”


“दीदी कल से रोज शाम को एक घंटा..और हां गुरुदक्षिणा बाद में” सोनी ने सुगना के कंधों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और उसे एक फ्लाइंग किस देते हुए कहा…


सुगना सोनी में आए बदलाव को कई रूपों में देख रही थी। उसका बर्ताव अब एक आदर्श छोटी बहन से इतरा एक सहेली के रूप में हो रहा था। परिवर्तन प्रकृति का नियम है सुगना यह बात तो बखूबी जानती थी उसने इसे नजरअंदाज किया और अपने काम में लग गई।


पर लाली को सोनी की बातें कुछ असहज कर गयीं …सोनू से विवाह का प्रस्ताव उसने तो नहीं रखा था…. यहां तक की अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए सोनू स्वयं उसके पास आया था…फिर सोनी ने उसे ऐसा क्यों कहा? क्या वैवाहिक स्त्रियों के प्रेम संबंधों में हमेशा स्त्रियां ही दोषी होती है?


रसोई में काम कर रही सुगना ने लाली के चेहरे पर आई उदासी को पढ़ लिया सुगना ने सोनू के बचपन और हॉस्टल की बातें कर कुछ ही देर में उसका मूड खुश कर दिया। सोनी को भी वह दिन याद आने लगे जब सोनू धीरे-धीरे उसके संपर्क में आ रहा था। सुगना अनोखी थी और शायद इसीलिए हरदिल अजीज थी।


दिन बीत रहे थे


सुगना ने सोनी से हिंदी बोलने की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया। वो अपनी भोजपुरी भाषा का सम्मान जरूर करती थी परंतु हिंदी भाषा का ज्ञान होना भी जरूरी था। घर से बाहर निकलने पर अधिकतर लोग इसी भाषा में बात करते थे। परंतु सुगना की जबान से हमेशा भोजपुरी में ही बात निकलती थी। लाली का भी यही हाल था।


यहां तक कि घर के बच्चे भी अधिकतर भोजपुरी में ही बात करते थे। सुगना और लाली ने बच्चों में भी हिंदी बोलने की आदत डालने का निश्चय किया। वक्त के साथ चलना और बदलना भी जरूरी था।


इस बीच सुगना के घर में एक और परिवर्तन आ रहा था। घर में पैसे की आवक बढ़ चुकी थी। उधर विकास सोनी को लगातार पैसे भेज रहा था जिससे वह तरह-तरह के कपड़े खरीदती। उधर जब से लाली और सोनू का विवाह लगभग तय हो गया था लाली में भी आमूल चूल बदलाव आ रहा था अब वह अपने ऊपर और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी। पेंशन के पैसे थे ही उसने भी अपने कपड़े और पहनावे में परिवर्तन लाया। पर लाली एक बात का विशेष ध्यान रखती थी कि जब भी वह अपने लिए नए वस्त्र लाती वैसा ही एक सुगना के लिए जरूर लाती चाहे वह पहने चाहे नहीं।


कपड़ों में यह बदलाव आधुनिकता की देन थी कभी सलवार सूट कभी अनारकली कभी हल्के-फुल्के वेस्टर्न ड्रेस सुगना लाली के जीवन में ए आ रहे बदलाव को देख रही थी लाली खुश थी और सुगना भी।


लाली अपने नए वस्त्रों को पहन कर सुगना को दिखाती और जब उसकी प्रशंसा मिल जाती वह सोनू के घर आने के दिन इस कपड़े में सोनू का इंतजार करती।


लाली की देखा देखी सोनू भी कभी-कभी सोनू भी अपनी पसंद के कपड़े अपनी सुगना दीदी के लिए ले आता और लाली के लिए भी पर आज भी उसकी पहली पसंद सुगना ही थी। सुगना कभी-कभी उसे प्यार से डांटती..और फिर प्यार भी करती।


परंतु भरे पूरे घर में सुगना के साथ एकांत ढूंढना और सुगना को अपनी प्रेमिका के रूप में पाना बेहद कठिन था।


सुगना का घर विवाह का घर हो चुका था जहां आए दिन भीड़ भाड़ रहती थी। पदमा सरयू सिंह और कजरी का आना जाना भी अब लगातार रहता था। सुगना और सोनू के मिलन में बाधाएं लगातार बढ़ रही थी और वैसे ही सोनू की कसक भी। परंतु चतुर और सबका ध्यान रखने वाली सुगना सोनू का ढाढस बांधे रखती थी। वह उसकी सारी इच्छाएं पूरी कर पाने में असमर्थ रहती पर कभी-कभी मौका मिलते ही छोटा-मोटा दाग लगा ही देती थी।


“जब भूख ज्यादा लगी हो तो अल्पाहार जठराग्नि को और भड़का देता है”


सुगना को लेकर सोनू ने इतनी कल्पनाएं कर रखी थी कि उसे पूरा करते-करते न जाने कितने दिन और साल लगते और सोनू की गर्दन का दाग न जाने क्या रूप ले लेता..


नियति सोनू की भावनाओं को बखूबी समझती थी और सुगना भी। उसकी काम इच्छाओ को शांत करने के लिए सुगना को अपने कदम धीरे-धीरे ही बढ़ाने थे और वही वह कर रही थी।


सोनी के विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं थीं। सरयू सिंह परिवार के मुखिया थे वह स्वयं सोनी के विवाह के लिए सभी व्यवस्थाएं कर रहे थे। नियति सरयू सिंह के मनःस्थिति के बारे में सोच रहीं थी।


जब-जब वह सोनी को देखते उनके मन में एक कसक सी उठती थी। आखिर कैसे कोई युवती विवाह से पहले अपने आशिक से संभोग कर सकती है। सोनी अभी उन्हें चरित्रहींन हीं लगती थी और शायद यही कारण था की सरयू सिंह की वासना ने सोनी को अपने आगोश में ले लिया था अन्यथा सुगना के साथ किए गए संभोग की आत्म ग्लानि अब भी उन्हें सताती थी।


अपनी कोठरी में सोनी को विकास के साथ संभोग सुख लेते सरयू सिंह ने अपनी आंखों से देखा था और तब से उसके मादक कूल्हों की तस्वीर सरयू सिंह की निगाहों में छप सी गई थी।


सोनी जब-जब सरयू सिंह के समक्ष आती दोनों असहज हो जाते। जब सोनी सरयू सिंह के चरण छूने के लिए झुकती वह उससे पहले अपने वस्त्रों को ठीक करती शायद उसे यह एहसास हो चुका था की सरयू सिंह की निगाहें उसके कूल्हों और चूचियों पर घूमती रहती हैं।


परंतु जब से सोनी ने सरयू सिंह के लंड को देखा था और उसे अपनी कामुक कल्पना में स्थान दिया था सोनी को यह असहजता अब अच्छी लगने लगी थी।


कुछ दिनों बाद विकास अमेरिका से वापस आ गया और विकास एवं सोनी का विवाह पूरी धूमधाम से संपन्न हो गया। सोनू ने भी मौका देखकर विकास को अपने और लाली के विषय में सब कुछ बता दिया। सोनू विकास की नजरों में महान हो गया था। लाली को अपनाने की जो हिम्मत सोनू ने दिखाई थी वो काबिलेतारिफ थी।


शादी के जोड़े में सजी-धजी सोनी को देखकर कभी-कभी सरयू सिंह उसकी गलती माफ कर देते और उसे हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देते परंतु एकांत में वह उसे याद करने का सुख कतई नहीं खोना चाहते थे। अब वही उनकी कामुकता को जीवंत रखने की किसी एकमात्र सहारा थी।


आखिरकार सरयू सिंह की अप्सरा विकास के साथ अमेरिका जाने वाली थी। सुगना के घर का एक अहम सदस्य घर से विदा हो रहा था पूरे परिवार की आंखें नम थी।


सोनी ने लाली से विदा होते वक्त कहा..


“मैं तो आपकी शादी में नहीं आऊंगी पर भाभी आप सोनू भैया का ख्याल रखिएगा”


सोनी को इस बात का इल्म था की सोनू और लाली का विवाह कोर्ट मैरिज के रूप में होगा और घर में शायद कोई बड़ा फंक्शन नहीं होगा। उसने अपने संबोधन में लाली को भाभी बोलकर उसे मन ही मन स्वीकार कर लिया था।


आखिरकार सोनी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुकी थी। सुगना की दोनों बहने सुगना से दूर जा चुकी थी।


उधर मोनी विद्यानंद के आश्रम में नित्य नए-नए अनुभव कर रही थी। वयस्क होने की उम्र में होने के बावजूद मोनी का मन एक किशोरी जैसा था। वह एक वह शांत स्वभाव की थी और मन से पूरी तरह धार्मिक थी। सुगना की बहन सोनी जितने आधुनिक ख्याल वाली थी.. मोनी ठीक उसके उलट उतनी ही सीधी-साधी ,धर्म परायण और घरेलू थी।


और इस कहानी की नायिका अपनी दोनों बहनों के गुणों और अवगुणों का मिश्रण थी।


(जिन पाठकों को मोनी का किरदार ध्यान है उन्हें शायद मोनी को समझने में आसानी होगी अन्यथा चरित्र चित्रण पर मेरा ज्यादा समय व्यर्थ होगा उम्मीद करता हूं की कहानी को ध्यान से पढ़ने वाले पाठक जरूरत पड़ने पर पुराने एपिसोड रेफर कर सकते हैं)


उधर विद्यानंद के आश्रम में कुंवारी पर वयस्क कन्याओं के साथ मोनी नित नए-नए अनुभव ले रही थी। यद्यपि उसके साथ जो हो रहा था वह उसकी अपेक्षा और सोच से परे था परंतु वह जिस प्रकार से आयोजित किया जा रहा था मोनी उसे बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर ले रही थी।


कुछ कार्यक्रम इतने भाव और शालीन तरीके से किए जाते हैं कि उसमें हो उचित अनुचित कृत्य पर सवाल उठाना बेहद कठिन होता है। विद्यानंद के आश्रम में कई अनूठी गतिविधियां होती थी जो सामान्य तौर पर देखने पर अटपटी लगती थी परंतु उन पर प्रश्न उठाने की ना तो किसी में हिम्मत थी और शायद जरूरत भी नहीं थी। जब उसके प्रतिभागी उसे स्वयं स्वीकार कर रहे थे तो भला किसी और को क्यों आपत्ति होती।


मोनी की टोली में उसके समकक्ष और हमउम्र कई कुंवारी लड़कियां थी जो माधवी के नेतृत्व में तरह-तरह के प्रयोग करती और शाम को अपने-अपने कमरे में लौट जाती।


सुबह-सुबह अपनी साधना के समय जब मोनी अपनी सहेलियों के साथ पूरी तरह नग्न होती वह बेहद ही असहज महसूस करती परंतु अपनी बाकी सहेलियों और अपनी गुरु माधवी को भी पूरी तरह नग्न देखकर वह इस प्रथा को धीरे-धीरे स्वीकार कर चुकी थी।


उनकी गुरु माधवी जो एक अंग्रेज महिला थी वो तन से और चेहरे से बेहद खूबसूरत थी।


नियति नग्न लड़कियों के झुंड और उनकी गुरु माधवी को जब-जब बगीचे में घूमते खेलते देखती उसे एक पल को लगता जैसे वह वह जन्नत में आ गई हो.. हरी हरी दूब की घास रंग-बिरंगे फूलों और छायादार वृक्षों से घिरे उपवन में क्रीडा करती युवतियों को देखकर नियति उनके बीच एक अदद पुरुष की आवश्यकता महसूस कर रही थी.. यदि वह पुरुष गलती से इस उपवन में आ जाता तो निश्चित ही उसे यह आभास होता कि वह स्वर्ग लोक में आ गया है और यह लड़कियां उसे अप्सराओं जैसी प्रतीत होती। परंतु अफसोस विद्यानंद के आश्रम के नियमों के अनुसार आश्रम के उसे हिस्से में पुरुषों का जाना सख्त मना था।


इन लड़कियों का चयन माधवी ने ही किया था। चयन के लिए जो मुख्य योग्यता थी कौमार्य सुरक्षित होना, खूबसूरत चेहरा और खूबसूरत बदन…। विद्यानंद ने माधवी को जन्नत की हूरें या स्वर्ग की अप्सराएं तैयार करने के लिए लगाया था और माधवी ने यह काम बखूबी किया भी था।


माधवी को ट्रेनिंग अब भी जारी थी…वह लड़कियों को तरह तरह के योगाभ्यास कराती जिससे उनका बदन और भी सुडौल बने। उन्हें एक दूसरे की चूचियों को मालिश कर उन्हें और भी उन्नत और कामुक बनाने की कोशिश करती.. लड़कियों के जांघों के बीच उग आए कल और सुनहरे बालों को हटाने के लिए ना तो कभी माधवी ने जिद किया और नहीं कभी लड़कियों ने उसकी मांग की। कुदरत द्वारा प्रदत्त एकमात्र वही बाल उनका सहारा थे अपने गुप्तांगों को छुपाने के लिए यद्यपि छुपाने की आवश्यकता ना थी क्योंकि जब वह इस तरह नग्न अवस्था में रहती सभी की सभी लड़कियों की स्थिति एक ही होती।


मूलत माधवी का उद्देश्य यही था कि इन चुनी हुई लड़कियों के बदन को तराश कर उन्हें अप्सराओं की भांति तैयार करना था। विद्यानंद का उद्देश्य माधवी को भली भांति ज्ञात था। माधवी इस बात का पूरा ख्याल रखती की कोई भी लड़की अपनी योनि को हाथ न लगाएं और यदि इसकी आवश्यकता हो तो भी उसे अपना कौमार्य बचाए रखने की सख्त हिदायत थी।


नग्नता पैसे भी वासना को जन्म देती है यद्यपि आश्रम में आई लड़कियां निश्चित ही कामवासना से विमुख होकर यहां आई थी परंतु फिर भी वासना स्त्री का एक अभिन्न गुण होता है।


मोनी का तन बदन धीरे-धीरे और निखरता जा रहा था चूचियों की मालिश और योगाभ्यास ने उसकी चूचियों को पर्वत की भांति उठा दिया था। गोरी गोरी जांघों के बीच झुरमुट की तरह काले बाल उसकी बुर को छुपाए रखते.. पर उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा देते।


कुछ महीने के अथक प्रयासों के पश्चात मोनी और अन्य लड़कियां पूरी तरह तैयार थी।


और एक दिन..


विशालकाय भवन में सभी लड़कियां अपने बदन पर एकमात्र झीना वस्त्र डालें (राम तेरी गंगा मैली की मंदाकिनी जैसी ) नीचे बैठी हुई विद्यानंद का इंतजार कर रही थी। कुछ ही देर बाद विद्यानंद अपनी पूरी गरिमा और माधवी के साथ कक्ष में उपस्थित हुए।


सभी लड़कियों ने उठकर उनका अभिवादन किया। विद्यानंद ने हाथ उठाकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और लड़कियों को बैठने का निर्देश दिया परंतु इसी दौरान उन्होंने माधवी की पसंद और उसकी मेहनत का जायजा ले लिया। ऐसा लग रहा था जैसे परीलोक से उतरकर कई अप्सराय आश्रम में आ गई हों..


विद्यानंद ने अपनी गंभीर आवाज में बोला..


देवियों आप सब आश्रम का अभिन्न अंग हो चुकी है… यह आश्रम मानवता की सेवा करने के लिए बना हुआ है…आप सब जिस समाज से उठकर आई है वहां सुख और दुख दोनों ही हर परिवार में होते हैं …. पति-पत्नी के संबंधों मैं सामंजस्य नहीं होना समाज में कई समस्याएं उत्पन्न करता है. ..कई विवाह सफल होते हैं कई असफल इन सब के मूल में कहीं ना कहीं स्त्री और पुरुष की कामवासना की तृप्ति नहीं हो पाना होता है।


जहां तक मैंने इस जीवन को देखा है मैं यही बात समझी है कि यदि पति और पत्नी के बीच अंतरंग संबंध बखूबी बनते हैं और दोनों ही उसका आनंद लेते हैं तो वह विवाह निश्चित ही सफल होता है अन्यथा समाज में पति और पत्नी दोनों घुट घुट कर रहते हैं


आप सब ने भी शायद यह बात अपने आसपास या अपने परिवार में जरूर देखी होगी। क्या आपको पता है इसका मूल कारण क्या है? कई युवा पुरुष स्त्री शरीर से पूरी तरह अनभिज्ञ होते हैं । स्त्रियों के कोमल मन को जानना और स्त्री शरीर को समझना इतना आसान नहीं होता। और जब इसे पुरुष विवाह के बंधन में बंधते हैं तो कुछ ही दिनों में अपनी पत्नी की मन की बात जाने बिना और उसके शरीर को समझे बिना वह ऐसे ऐसे कृत्य करते हैं जिससे वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी की नजर में एक कामुक और आनंदी व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान छोड़ देते हैं।


इस अवस्था में पत्नी का प्रेम पाना तो दूर वह स्त्री उनसे ऐसी दूरी बना लेती हैं जो उनके मन में हमेशा कष्ट का कारण बनी रहती है।


मेरे कई अनुयाई अपने बच्चों की यही समस्या लेकर अक्सर मुझसे बातें करते। पूरी वस्तु स्थिति समझने के बाद मैंने इस समस्या के निदान के लिए एक नया आश्रम बनाया है जिसमें एक विशेष कक्ष है। आप सब इस धरती की सर्वोत्तम सुंदर महिलाओं में से एक है । और अब तक आप लोगों ने अपना कौमार्य बचा कर रखा है इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि आप सब कामुकता और वासना से दूर हैं।


मैं यह समझता हूं कि आश्रम से जुड़ते समय निश्चित ही आपने अपनी कामवासना पर विजय प्राप्त कर ली थी तब ही आप लोग ने इस आश्रम का रुख किया।


मैं आप सबको इस समाज से विकृतियों हटाने में आपकी सहायता सहायता चाहता हूं।


उधर रतन दरवाजे के उसी सभागार के कक्ष पर विद्याधर से मिलने के लिए इंतजार कर रहा था..


दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…


रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..


मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..


शेष अगले भाग में...


आपके कमेंट के इंतजार में
बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है सोनू ने शादी से पहले ही सुगना से दहेज ले लिया
सोनी शादी करके विदा हो गई जाते जाते उसने लाली को अपनी भाभी मान लिया है बेचारे सरयुसिंह के अरमानों पर पानी फिर गया
 

Sanju@

Well-Known Member
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भाग 134

दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…



रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..

मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..

अब आगे…

मोनी इस आश्रम में आई जरूर थी परंतु अभी भी वह रिश्तो को बखूबी पहचानती थी उसे अभी वैराग्य शायद पूरी तरह न हुआ था। रतन उसका जीजा था और अपनी इस अवस्था में उसे रतन से शर्म आ रही थी।

विद्यानंद के जाने के बाद माधवी उन युवा लड़कियों को उनकी भूमिका समझा रही थी।

सहेलियों अब हम सबको समाज सेवा में लगना है। हम हम सब रोज प्रातः काल नए आश्रम में चला करेंगे वहां हम सबको एक विशेष कुपे में खड़ा रहना होगा। हमारा सर कंधे और हांथ उस कूपे के बाहर होगा परंतु कंधे के नीचे का भाग ऊपर में कूपे के आवरण के भीतर रहेगा। हम सब पूर्णतया प्राकृतिक अवस्था रहे में रहेंगे मेरा आशय आप सब समझ ही रहे होंगे हमें कोई भी वस्त्र धारण नहीं करना है।

इस कूपे में कोई ना कोई युवा पुरुष जो आश्रम के अनुयायियों में से किसी का पुत्र या रिश्तेदार हो सकता है और जो स्त्री शरीर को समझना चाहता है आश्रम के प्रबंधकों द्वारा अंदर भेज दिया जाएगा।

(पाठकों को शायद याद होगा कि रतन ने जी आश्रम का निर्माण कराया था उसमें कुछ विशेष कूपे बनाए गए थे। जिनका विस्तृत विवरण पूर्व के एपिसोड में दिया गया है)

हम सबको अपने स्थान पर बिना किसी प्रतिक्रिया के खड़े रहना है वह पुरुष हमारे तन बदन को छू सकता है महसूस कर सकता है और यहां तक की हमारी योनि और स्तनों को अपनी उंगलियों और हथेलियों से छूकर महसूस कर सकता है। आपकी योनि के कौमार्य को देखने को कोशिश कर सकता है।

माधवी की यह बात सुनकर सभी लड़कियां असमंजस में थी। आपस में खुसुर फुसुर शुरू हो गई थी।

आप लोग परेशान मत होइए ऐसा वैसा कुछ भी नहीं होगा आप लोगों के हाथ में एक बटन रहेगा यदि वह पुरुष आपके कौमार्य को भंग करने की कोशिश करता है तो आपको बटन को दबाना है जिससे उस कूपे में लाल रोशनी हो जाएगी और उस व्यक्ति को वार्निंग मिल जाएगी और वह अपनी गतिविधियां रोक लेगा। यदि उसने अपनी गतिविधि नहीं रोका तो आप लाल बटन को एक के बाद एक लगातार दो बार दबा दीजिएगा। आपके इस सिग्नल को इमरजेंसी सिग्नल माना जाएगा और तुरंत ही उस व्यक्ति को कूपे से बाहर निकाल कर दंडित किया जाएगा।

कूपे में आने वाले सभी पुरुषों को यह नियम बखूबी समझा कर भेजा जाएगा और आप सब निश्चिंत रहिए आपके साथ कोई भी ज्यादती नहीं होगी। आप सबका सहयोग पुरुषों को स्त्री शरीर को समझने में मदद करेगा जैसा की स्वामी जी के आप सब को बताया था।

हां एक बात और पुरुषों के स्पर्श से स्त्री शरीर में निश्चित ही उत्तेजना उत्पन्न होती है पर आप सबको अपनी उत्तेजना को यथासंभव वश में करना है। यह कामवासना पर विजय प्राप्त करने के लिए एक योग की तरह है। प्रत्येक पुरुष को लगभग 10 मिनट का वक्त दिया जाएगा और इस 10 मिनट तक आपको अपनी संवेदना और वासना पर विजय प्राप्त करनी हैं।

और इसके उपरांत आप सब आधे घंटे का विश्राम ले सकती हैं जिसमें आप सब एक दूसरे से मिल सकती हैं और अपने अनुभव साझा कर सकती हैं।

इतना ध्यान रखिएगा की अकारण ही लाल बटन दबाना कतई उचित नहीं होगा यदि पुरुष स्पर्श से बेचैन या असहज होकर अपने लाल बटन दबाया तो आपको इस इस सेवा से मुक्त कर दिया जाएगा और आश्रम में किसी अन्य कार्य में लगा दिया जाएगा। पर यदि भावावेश में यदि आपने पुरुषों को सही समय पर नहीं रोका तो वह आपका कौमार्य भंग कर सकते हैं। इसलिए खतरा महसूस होते ही लाल बटन को लगातार दो बार अवश्य दबा कर इमरजेंसी का संकेत अवश्य दीजिएगा।

मोनी और उसकी सहेलियां पूरा ध्यान लगाकर माधवी की बातें सुन रही थी अपनी वासना पर विजय प्राप्त करने का निर्णय तो उन्होंने आश्रम में आने से पहले ही ले लिया था अब परीक्षा की घड़ी थी लड़कियों ने मन ही मन ठान लिया की वह इस परीक्षा में भी सफल होकर दिखाएंगी।

सभी लड़कियां माधवी की बात को समझ चुकी थी बाकी सब आश्रम में पहुंचने के बाद स्वतः ही समझ में आ जाना था। क्योंकि इस प्रक्रिया के रिहर्सल के लिए आश्रम के ही ट्रेंड पुरुषों को यह अवसर दिया जाना था।

बड़ा ही अनोखा आश्रम बनाया था विद्यानंद ने और उसकी सोच भी अनोखी थी।

इधर माधवी ने जिस प्रकार से लड़कियों को तैयार किया था वैसे ही दूसरी तरफ रतन ने पुरुषों को तैयार किया था। परंतु शायद आश्रम में ऐसे पुरुषों की उपयोगिता कम ही थी क्योंकि उस दौर में पुरुष शरीर को समझने के लिए स्त्रियों का आगे आना बेहद कठिन था।


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बहरहाल मोनी और उसकी सभी सहेलियां आज आश्रम के उसे विशेष कूपे में जाने वाली थी।

उधर रतन ने जब से मोनी को एक वस्त्र में देखा था उसे मोनी का यह बदला हुआ स्वरूप अविश्वसनीय लग रहा था। गांव में गुमसुम सी रहने वाली मोनी आज एक परिपक्व युवती की तरह प्रतीत हो रही थी और उसका तन-बदन भी सुडौल और कामुक हो चुका था उस झीने से एक वस्त्र के पीछे छुपी हुई मादक काया रतन की नजरे ताड़ गई थीं।

मोनी ने तो अपनी कामुकता पर विजय प्राप्त करने का प्रण लिया हुआ था परंतु रतन के मन में हलचल होने लगी वह मन ही मन अपनी व्यूह रचना करने लगा।

अगली सुबह माधवी ने मोनी और उसकी सहेलियों को एक बार फिर अपने उसी बगीचे में बुलाया जहां वह सब नग्न घूमा करती थी.

माधवी ने सभी लड़कियों को अपने बाल बांधने के लिए कहा और फिर सभी लड़कियों ने अपने सुंदर बालों को समेट कर जूड़े का आकार दे दिया.

आज वहां एक विशेष कुंड रखा था…जिसमें विशेष द्रव्य भरा हुआ था.. लड़कियां कौतूहल भरी निगाहों से माधवी की तरफ देख रहीं थी।

माधवी ने उन्हें संबोधित करते हुए कहा आप सब मेरे पीछे-पीछे आईये ध्यान रहे की इस कुंड से आपको बेहद सावधानी से निकलना है और कुंड में भरा द्रव्य आपके कंधे के ऊपर किसी भाग से नहीं छूना चाहिए विशेष कर बालों से और चेहरे से…

लड़कियां थोड़ा घबरा सी गई आखिर क्या था उस कुंड में? परंतु कुछ ही पलों में उनका भ्रम दूर हो गया माधवी स्वयं नग्न होकर धीरे-धीरे उस कुंड में उतरी और धीमे-धीमे चलते हुए कुंड से बाहर आ गई।

इसके बाद सभी लड़कियां एक-एक करके माधवी का अनुसरण किया।

कुंड से बाहर आने के कुछ समय पश्चात माधवी ने लड़कियों को अपने बदन को तौलिए से पोछने के लिए कहा..

विद्यानंद के आश्रम की व्यवस्थाएं दिव्य थी जितनी लड़कियां उससे कहीं ज्यादा मुलायम तौलिए माधवी ने पहले से ही सजा कर रखवा दिए थे।

लड़कियों ने अपने गीले बदन को पोछना शुरू किया उनका बदन चमक उठा। हाथ पैरों के रोए पूरी तरह गायब हो चुके थे और त्वचा चमकने लगी थी।

लड़कियों ने जैसे ही अपनी बुर और उसके आसपास के भाग को पोछा .. उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा उनकी बर का आवरण पूरी तरह हट चुका था.. चमकती बुर वह खुद तो नहीं देख पा रही थी परंतु अपनी सहेलियों की जांघों के जोड़ पर नजर पड़ते ही वह मंत्र मुग्ध होकर प्रकृति द्वारा निर्मित उस दिव्य अंग को देख रहीं थीं।

लड़कियों के आश्चर्य का ठिकाना न था वह एक दूसरे की तरफ देखकर मुस्कुराती कभी स्वयं अपनी निगाहें नीचे कर और कंधे को यथा संभव झुककर जांघों के जोड़ के बीच छुपी अपनी बुर को देखने का प्रयास करतीं।


लड़कियां स्वभाबिक रूप से एक दूसरे के अंगों से अपनी तुलना करने लगी थी। माधवी उनके कुतूहल को देखकर मुस्कुरा रही थी। सामने खड़ी मोनी भी इस स्वाभाविक कौतूहल को नहीं रोक पा रही थी। सभी लड़कियों का बदन चमकने लगा था पूरे शरीर पर कोई भी रोवा या बाल न बचा था। सभी लड़कियां बेहद खुश थी उन्हें उन अनचाहे बालों से छुटकारा मिल गया था जिन्हें हटाने के लिए ना तो कभी उन्होंने सोचा था और नहीं उनके हिसाब से शायद यह संभव था।

इस आश्रम में आई हुई यह सभी लड़कियां सामान्य परिवारों से आई हुई थी और आधुनिकता की दौड़ से बेहद दूर थीं जिस दौरान धनाढ्य परिवारों में यह प्रचलन आम हो चुका था परंतु मध्यम वर्ग और गरीब तबके से आई हुई है लड़कियां अभी कामुकता को प्राचीन परंपरा के हिसाब से ही जी रही थीं।वैसे भी यहां आई लड़कियां तो अपनी कामुकता और वासना को छोड़कर ही यहां आई थी।

माधवी ने सभी लड़कियों को संबोधित करते हुए कहा उम्मीद है आज का अनुभव आपको अच्छा लगा होगा और आपका शरीर कुंदन की भांति चमक रहा है आज पहली बार आप अपनी सेवा देने जा रही हैं। आपकी कक्षा में एक विशेष परिधान रखा हुआ है आप उस परिधान को पहन कर ठीक 10:00 बजे सभागार में उपस्थित होइए। वहां से हम सब एक साथ प्रस्थान करेंगे।

मोनी और उसकी सहेलियों ने माधवी के निर्देशानुसार स्नान ध्यान कर एक वस्त्र में तैयार हुई और निर्धारित समय पर हाल में आ गईं । हाल के बाहर एक बस खड़ी थी जिसमें सभी लड़कियां बैठ गई और बस रतन द्वारा बनाए गए आश्रम की तरफ चल पड़ी…


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लड़कियों का यह अनुभव अनोखा होने वाला था…

उधर रतन अपनी व्यूह रचना में लगा हुआ था। वह अपने आश्रम को सजा धजा कर माधवी और उसकी लड़कियों का इंतजार कर रहा था..

रतन द्वारा बनाए गए कूपे की विशेषता यह थी कि उसमें स्त्री या पुरुष जो भी खड़ा होता उसकी पहचान करना कठिन था। क्योंकि कूपे में उसके कंधे के नीचे का भाग ही दिखाई पड़ता था कंधे के ऊपर का भाग उस कूपे से बाहर रहता था।

जब विपरीत लिंग का दूसरा व्यक्ति उस कूपे में आता वह चबूतरे पर खड़े अपने साथी को पूर्णतयः नग्न अवस्था में पाता। परंतु अपने साथी का चेहरा देख पाने की कोई संभावना नहीं थी। और यही बात उस व्यक्ति पर भी लागू होती थी जो कूपे में पहले से आकर खड़ा होता था।

कूपे के चबूतरे की ऊंचाई इस प्रकार रखी गई थी की कुपे के अंदर खड़े व्यक्ति के कंधे कपड़े की सीलिंग से बाहर आ सके। और दूसरा साथी पूरी तरह कूपे के अंदर रह सके।

यह कपड़े की सीलिंग ही दोनों प्रतिभागियों के लिए पर्दा थी। जिस प्रतिभागी का कंधे और हांथ कूपे की सीलिंग से बाहर रहता था उसके हाथ में ही वह विशेष बटन दिया जाता था जिसे दबाने पर कुपे में एक लाल लाइट जलती थी। जिससे कूपे के अंदर के प्रतिभागी को तुरंत ही अपनी कामुक गतिविधियां रोक देनी होती थी इसका स्पष्ट मतलब था कि दूसरे व्यक्ति को यह बेहद असहज लग रहा है।

यदि कोई पुरुष या स्त्री कामुकता के अतिरेक में यदि दूसरे व्यक्ति को जरूर से ज्यादा परेशान करता या स्त्रियों का कौमार्य भंग करने का प्रयास करता तो उन्हें इस बटन को लगातार दो बार दबाना था और इसके बाद जो होता वह निश्चित ही उस पुरुष या स्त्री के लिए कतई ठीक ना होता।

लड़कियों को लेकर आ रही बस नए आश्रम तक पहुंच चुकी थी। रतन और उसके द्वारा तैयार किए गए लड़कों की टोली बस का इंतजार कर रही थी। एक-एक करके स्वर्ग की अप्सराएं नीचे उतर रही थी रतन की टोली के कुछ लड़कों के आनंद की सीमा न थी। लड़कों को आज इन्हें अप्सराओं के साथ उस कूपे में एक अनोखे और नए अनुभव को प्राप्त करना था। लड़कियों को इस बात का तो अंदाज़ की आज उनके साथ कुछ नया होगा परंतु उनके साथ ही यह लड़के होंगे इसका आवास कतई न था।

लड़कियों को एक कक्ष में बैठने के बाद माधवी रतन को लेकर एक बार फिर विशिष्ट कूपे का मुआयना करने गई एक-एक कूपे को और उसमें लगे बटन को स्वयं अपने हाथों से चेक किया और पूरी तसल्ली के बाद हाल में तैनात सुरक्षा कर्मियों से बात की। कुछ प्रश्नों के उत्तर के दौरान उसने सुरक्षा कर्मियों के चेहरे पर झिझक को नोटिस किया।

रतन जी कृपया आई हुई लड़कियों के लिए फल फूल की व्यवस्था करा दें।

रतन वहां से हटना तो नहीं चाहता था परंतु माधवी का आदेश टाल पाने की उसकी हिम्मत न थी। वह वहां से चला गया माधवी ने सभी तैनात सुरक्षा कर्मियों से विस्तार में बात की और और वापस अपनी लड़कियों की टोली में आ गई उसके चेहरे पर मुस्कान थी..

आखिरकार वह वक्त आ गया जब लड़कियों को उसे अनोखे कूपे में जाना था। सभी लड़कियां कूपन मे बने चबूतरे पर जाकर खड़ी हो गई और अपने एकमात्र वस्त्र को अपने गर्दन तक उठा लिया अपने दोनों हाथों को फैलाने के बाद उन्होंने कॉपी की कपड़े की सीलिंग को चढ़ा दिया और अब ऊपर के अंदर उनका कंधे से नीचे का भाग पूरी तरह नग्न था। दोनों हाथ भी कूपे के बाहर थे और उनमें से एक हाथ में सभी लड़कियों ने वह बटन पकड़ा हुआ था।

एक लड़की ने कौतूहलवश बटन को एक बार दबाया नीचे उस कूपे के अंदर जल रही श्वेत रोशनी का कलर लाल हो गया जैसे ही उसने बटन छोड़ा रंग वापस श्वेत हो गया।

उस लड़की ने बटन को दो बार दबाने की हिम्मत ना दिखाई शायद उसे चेक करना इतना जरूरी भी नहीं था उसे आश्रम की व्यवस्थाओं पर यकीन हो चला था।

धीरे-धीरे सभी लड़कियां कूपे के नियमों से अवगत हो चुकी थी और माधवी के सिग्नल देने के बाद कूपन में रतन के लड़कों को आने की अनुमति दे दी गई। लड़के भी ठीक उसी प्रकार नग्न थे जिस प्रकार लड़कियां थी कफे के अंदर किस कौन सी अप्सरा प्राप्त होगी इसका कोई विवरण या नियम नहीं था वैसे भी लड़कों के लिए वह सभी लड़कियां अप्सराओं के समान थी। जिन लड़कों में वासना प्रबल थी वह बेहद उत्साह में थे। नग्न लड़कियों के साथ 10 मिनट का वक्त बिताना और उन्हें पूरी आजादी के साथ चुनाव और महसूस करना यह स्वर्गिक सुख सेकाम न था।

सभी लड़के एक-एक कप में प्रवेश कर गए और मौका देखकर और नियमों को ताक पर रख रतन भी एक विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर गया। बड़ी सफाई से उसने मोनी को पहचानने की व्यवस्था कर रखी थी।

सभी कूपों में दिव्य नजारा था।

लड़कियों का खूबसूरती से तराशा हुआ बदन लड़कों के लिए आश्चर्य का विषय था। उनमें से अधिकतर शायद पहली बार लड़की का नग्न शरीर देख रहे थे। माधवी ने लड़कियों के बदन पर कसाव और कटाव लाने के लिए जो उन्हें योगाभ्यास कराया था उसका असर स्पष्ट दिखाई पड़ रहा था।

लड़कों के आनंद की सीमा न थी वह बेहद उत्साह से उन दिव्य लड़कियों के बदन से खेलने लगे कभी-कभी किसी कूपे में लाल लाइट जलती पर तुरंत ही बंद हो जाती।

उधर रतन भी अपने विशिष्ट कूपे में प्रवेश कर चुका था..

अंदर खड़ी मोनी को देखकर रतन हतप्रभ रह गया..। उसने मोनी की जो कल्पना की थी मोनी उससे अलग ही लग रही थी। बदन खूबसूरती से तराशा हुआ अवश्य था पर रंग रतन की उम्मीद से कहीं ज्यादा गोरा था।

रतन ने ऊपर सर उठाकर मोनी का चेहरा देखने की कोशिश की पर कामयाब ना रहा। कूपे की रचना इस प्रकार से ही की गई थी। एक पल के लिए उसे भ्रम हुआ कि कहीं कोई और तो मोनी के लिए निर्धारित कूपे में नहीं आ गया है।


पर रतन को अपनी व्यवस्थाओं पर पूरा भरोसा था। वैसे भी जितने कूपे बनाए गए थे उतनी ही लड़कियां इस आश्रम में लाई गई थी।

रतन ने और समय व्यर्थ करना उचित न समझा और उसकी नज़रों ने समक्ष उपस्थित खूबसूरत शरीर का माप लेना शुरू कर दिया।

मोनी की काया खजुराहो की मूर्ति की भांति प्रतीत हो रही थी। कसे हुए उन्नत उरोज पतला कटिप्रदेश और भरे पूरे नितंब ऐसा लग रहा था जैसे किसी खजुराहो की मूर्ति को जीवंत कर चबूतरे पर खड़ा कर दिया गया हो।

रतन आगे बढ़ा और अपने हाथ बढ़ाकर उसे मोनी की कमर पर रख दिया। रतन ने मोनी के बदन की कपकपाहट महसूस की। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे इस स्पर्श से मोनी असहज हो गई थी। पर शायद यही मोनी की परीक्षा थी।

रतन ने अपने हाथ ऊपर की तरफ बढ़ाए और मोनी की भरी भरी गोल चूचियों को अपनी हथेलियां में लेकर सहलाने लगा। मोनी अब उत्तेजना महसूस कर रही थी और रतन के इस कामुक प्रयास को महसूस करते हुए भी नजर अंदाज कर रही थी।


रतन ने दोनों चूचियों को बारी बारी से सहलाया । अपने अंगूठे और तर्जनी के बीच उसके निप्पलों को लेकर धीरे-धीरे मसालना शुरू कर दिया। उसे बात का इल्म तो अवश्य था था कि मोनी को किसी भी प्रकार का कष्ट नहीं होना चाहिए अन्यथा वह बटन को लगातार दो बार भी दबा सकती है और रतन को शर्मनाक स्थिति में ला सकती है।

रतन बेहद सावधानी से चूचियों को छू रहा था और बेहद प्यार से मसल रहा था। मोनी की तरफ से कोई प्रतिरोध न पाकर रतन ने अपने होंठ मोनी की चूचियों से सटा दिए और हथेलियो से उसके कूल्हों को पकड़कर सहलाने लगा। रतन के होंठ अब कुंवारी चूचियों और उसके निप्पलों पर घूमने लगे। ऊपर चल रही वासनाजन्य गतिविधियों का असर नीचे दिखाई पड़ने लगा।

रतन ने अपना ध्यान चूचियों से हटकर उसके सपाट पेट पर केंद्रित किया और धीरे-धीरे नाभि को चूमते चूमते नीचे उसकी जांघों के बीच झांक रही बुर पर आ गया।

जांघों पर रिस आई बुर की लार स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी। मोनी गर्म हो चुकी थी और स्वयं को पूरी तरह समर्पित कर चुकी थी। रतन को मोनी से यह उम्मीद कतई नहीं थी परंतु जब वासना चरम पर हो मनुष्य का दिमाग काम करना बंद कर देता है।

रतन कोई मौका नहीं छोड़ना चाहता था वह स्वयं मोनी के चबूतरे पर चढ़ गया। और मोनी के बदन से अपने लंड को छुआने का प्रयास करने लगा। यह एहसास अनोखा था। रतन की वासना परवान चढ़ रही थी। ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे मोनी इस कामुक मिलन का इंतजार कर रही थी।


आखिरकार रतन ने अपने एक हाथ से मोनी के एक पैर को सहारा देकर ऊपर उठाया और अपने लंड को मोनी की पनियाई बुर पर रगड़ने लगा। रतन वासना में यह भूल गया था कि यहां आई सारी लड़कियां कुंवारी हैं और उन्हें अपना कौमार्य सुरक्षित रखना है। परंतु रतन अपनी वासना में पूरी तरह घिर चुका था और मोनी की कोमल बुर जैसे उसके लंड के स्वागत के लिए तैयार बैठी थी। उसने अपनी कमर पर थोड़ा जोर लगाया और लंड का सुपड़ा बुर में धंस गया..

कमरे में एक मीठी आह गूंज उठी.. यह आवाज बेहद कामुक थी परंतु इस आह से उस व्यक्ति की पहचान करना कठिन था छोटी-मोटी सिसकियां तो उस कक्ष में मौजूद कई लड़कियां भर रही थी पर यह आवाज कुछ अनूठी थी और इस कूपे में हो रहा कृत्य भी अनूठा था।


रतन का लंड कई दिनों बाद बुर के संपर्क में आकर थिरकने लगा था । किसी योद्धा की भांति वह आगे बढ़ने को आतुर था।

रतन ने मोनी के कमर और कूल्हों को अपने हाथों से सहलाया और फिर पकड़ लिया और जैसे ही अपने लंड का थोड़ा दबाव बढ़ाया लंड गर्भाशय को चूमने में कामयाब हो गया। कुछ पलों के लिए मोनी के बदन में कंपन होने लगे रतन के लंड पर अद्भुत संकुचन हो रहा था।

अब तक मोनी की तरफ से लाल बत्ती नहीं जलाई गई थी इसका स्पष्ट संकेत यह था कि मोनी को यह कृत्य पसंद आ रहा था। रतन ने देर ना की और अपने लंड को आगे पीछे करने लगा।

उत्तेजना के चरम पर पहुंचकर उसने अपने लंड को गर्भाशय के मुख्य तक ठास दिया और चूचियों को चूसता रहा। मोनी से भी और बर्दाश्त ना हुआ और वह रतन के लंड पर प्रेम वर्षा करने लगी और स्खलित होने लगी। 10 मिनट का अलार्म बज चुका था। परंतु रतन और मोनी अब भी अपना स्स्खलन पूर्ण करने में लगे हुए थे।

आखिरकार रतन ने अपना लंड मोनी की बुर से बाहर किया और उसने जो मोनी के अंदर भरा था वह रिसता हुआ उसकी जांघों पर आने लगा।

सभी लड़कियां और लड़के एक-एक कर बाहर आ रही थे .. अंत में रतन भी अब जा चुका था।

बाहर लड़कियां अपनी सहेलियों से आज की घटनाक्रम और अपने अनुभवों को एक दूसरे से साझा कर रही थी …तभी

“अरे मोनी कहीं नहीं दिखाई दे रही है कहां है वो?” एक लड़की ने पूछा..

माधवी भी अब तक उन लड़कियों के पास आ चुकी थी उसने तपाक से जवाब दिया..

क्या
मोनी रजस्वला है और कमरे में आराम कर रही है..

नियति स्वयं आश्चर्यचकित थी..

क्या रतन के खेल को माधवी ने खराब कर दिया था या कोई और खेल रच दिया था?

उधर रतन संतुष्ट था तृप्त था वह अब भी मोनी के अविश्वसनीय गोरे रंग के बारे में सोच रहा था।

शेष अगले भाग में..
बहुत ही कामुक गरमागरम अपडेट है रतन के तो मजे हो गए एक कच्ची कली भोगने को मिल गई क्या सच में मोनी को पीरियड आ गए हैं या फिर माधवी कोई और खेल खेलना चाहती हैं
 
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