भाग 133
सोनू सुगना के बगल में लेट कर सुगना के शरीर पर पड़े अपने वीर्य से उसके कोमल बदन की मालिश करने लगा.. चूचियां वीर्य से सन चुकीं थी । सोनू ने सुगना के चेहरे पर पड़ी नाइटी आहिस्ता से हटा दी। वह सुगना को लगातार चुमें जा रहा था.. जैसे वह सुगना के प्रति अपनी कृतज्ञता जाहिर कर रहा हो सुगना भी उसकी बाहों में सिमटी जा रही थी..
नियति सोनू और सुगना के मिलन से संतुष्ट थी। सोनू को दहेज में सुगना ने अपनी बुर ही क्या वह स्वयं को सोनू के लिए समर्पित कर दिया था।
अब आगे…
नग्न सुगना को अपनी बाहों में लिए सोनू सुगना के चेहरे को रह रह कर चूम रहा था और सुगना भी पूरे जोश से सोनू से चिपकी हुई थी। वैसे भी वह सोनू के लिंग में दोबारा उत्तेजना जागृत होने का इंतजार कर रही थी। उसकी पनियाई बुर चैतन्य होकर सोनू के लंड का इंतजार कर रही थी।
सुगना के होठों को चूमते हुए सोनू ने कहा
“अच्छा दीदी एक बात बताव लाली दीदी के साथ ब्याह कईला ला के बाद….”
“अब ओकरा के की दीदी मत बोला कर कितना बार कहले बानी”..
सुगना ने सोनू के गाल पर एक मीठी चपत लगाई और उसकी बात बीच में ही काटते हुए बोली…
सोनू मुस्कुराने लगा…उसने सुगना के नग्न कूल्हों को अपनी हथेलियां के दबाव से अपनी तरफ खींचा और उसका लंड सुगना की जांघों से सट गया…सोनू ने सुगना के कानों को चूमते हुए धीरे से फुसफुसाते हुए बोला..
“तब त तू हमार साली लगबु अब तहरो के दीदी ना बोलब..”
सुगना की जांघों ने महसूस किया कि सोनू का लंड अपना आकर धीरे-धीरे बढ़ा चुका था।
सुगना एक बार फिर खिलखिलाकर हंस पड़ी.. हंसती खिलखिलाती सुगना किसी भी मर्द में उत्तेजना भरने में सक्षम थी सोनू एक बार फिर अपनी मजबूत लंड के साथ..अपनी साली सुगना की सेवा करने को तैयार था…
सुगना स्वयं इस नए रिश्ते को समझने का प्रयास कर रही थी.. इसी बीच सोनू सुगना की खुद के वीर्य से सनी चूचियां अपने मुंह में ले चुका था…
सुगना सोनू की वासना को जागृत होते हुए देख रही थी।
सुगना और सोनू पूरी तरह से एक हो चुके थे। उनके बीच जो आगे हुआ वो पाठक अपनी अपनी कल्पनाओं के अनुसार सोच सकते हैं और समझ सकते हैं।
सोनू और सुगना के रिश्ते बदल रहे थे।
सोनू और सुगना के बीच एकांत में अब उतना ही पर्दा था जितना पति-पत्नी के बीच होता है। परंतु किसी अन्य की उपस्थिति में सुगना और सोनू का रिश्ता ठीक वैसे ही था जैसे एक बड़ी बहन और छोटे भाई के बीच होता है। हां इतना अंतर अवश्य आया था कि अब दोनों एक दूसरे से खुलकर बात करते थे उन दोनों के बीच झिझक धीरे-धीरे कम होती जा रही थी परंतु मर्यादा उसी प्रकार कायम थी जैसी होनी चाहिए।
सोनू और सुगना के मिलन ने एक बार फिर सोनू के दाग को उभार दिया था। शायद नियति सोनू और सुगना के मिलन पर अब भी अपना प्रश्न चिन्ह लगाए हुए थी और नियति के अनुसार उन्हें लगातार संभोग करने की अनुमति न थी।
सोनू को यह प्रतिबंध स्वीकार था परंतु सुगना से दूर रहना कतई नहीं। सोनू अपने गर्दन का दाग कम होते ही वापस बनारस सुगना की प्रेम गंगा में स्नान और सुगना से मिलन की उम्मीद लिए आता पर अधिकतर सुगना उसे बहन का प्यार तो देती उसके लिए उसके पसंद के पकवान खिलाती पर अपनी जांघों के बीच छुपाए मालपुवे को उसकी नजरों से बचाते हुए सुरक्षित दूरी बनाए रखती। उसे सोनू से मिलन तो प्यारा था पर वह सोनू के दाग को बढ़ाना कतई नहीं चाहती थी।
परंतु जब उसकी निगोडी बुर स्वयं बेचैन हो जाती तो कभी कभी उसका और अपने भाई सोनू का मन रखने के लिए उसके आगोश में आ जाती.. और सोनू को कई दिनों के लिए तरोताजा कर जाती…परंतु इस ताजगी के एवज में न चाहते हुए भी उसकी गर्दन पर दाग छोड़ जाती…
सोनू को सुगना से मिलन इस दाग से ज्यादा प्यारा था। सुगना से अलग होने के बाद जब जब वह अपनी गर्दन के दाग को देखता उसे सुगना के साथ बिताए पल याद आने लगते और दाग खत्म होते होते सोनू के मन में दोबारा मिलने की उमंगे दौड़ने लगती।
सुगना का जादू सोनू पर पूरी तरह छाया हुआ था। सुगना द्वारा जागृत उत्तेजना लाली और सोनू के संबंधों को और प्रगाढ़ कर रही थी..
सुगना, सोनू और लाली के बीच प्रेम संबंधों में कैटालिस्ट की तरह थी…परंतु सोनू यह बात नोटिस कर रहा था की कामुक संबंधों के दौरान लाली अब सुगना के बारे में बात नहीं करती थी…। सोनू को यह बात रास न आतीं थी परंतु सोनू को भी अपनी मर्यादा में रहना आवश्यक था।
सोनी के विवाह को अब 3 महीने ही रह गए थे। विकास वापस आने वाला था । सोनी अपने विवाह की तैयारी में लगी हुई थी। पिछले कुछ दिनों से सुगना यह महसूस कर रही थी कि पोस्टमैन अक्सर घर पर आता और सोनी को कुछ लिफाफे पकड़ा जाता। सोनी चुपचाप उसे अपने कमरे में लिए जाती और अगले कुछ दिनों में सोनी अपने लिए तरह-तरह के वस्त्र खरीदती कभी उपहार स्वरूप बच्चों के लिए भी कपड़े ले आती।
एक दिन सुगना से रहा न गया और उसने पूछ ही लिया “ई तोहरा के के पैसा भेजेला ”
सोनी ने अपनी नज़रें झुकाई और शरमाते हुए बोला
“ वही भेज रहे हैं जिनके पल्ले आपने मुझे बांध दिया है”
सोनी के मुख से खड़ी हिंदी सुनकर लाली और सुगना आश्चर्यचकित थे। निश्चित ही यह पैसे विकास भेज रहा था। लाली और सुगना ने सोनी से अनुरोध किया..
“थोड़ा बहुत हमनी के भी हिंदी सिखा दे पढ़ल लिखल लागब जा”
सोनी ने एक टीचर की भांति कहा
“ओके कल से तैयार रहिएगा…पर दीदी गुरु दक्षिणा में क्या मिलेगा?”
लाली ने तपाक से बोला..
“विकास के खुश करे के और अपना पीछे पीछे घुमावे के तरीका….”
लाली ने जिस कामुक अंदाज में यह बात की थी सोनी और सुगना दोनों उसका आशय समझ गए थे। लाली अब उसकी भाभी बनने वाली थी…और वो ननद।
ननद और भाभी के बीच यह मजाक बदलते रिश्तों को बखूबी दिखा रहा था।
सोनी लाली से मुस्कुराते हुए बोली…
“ वैसे तोहर तरीका में जरूर कुछ दम बा “
काहे? लाली ने प्रश्न किया..
सुगना बगल में ही खड़ी थी। सोनी लाली के पास गई और उसके कान में बोली..
“तोहार तरीका जरूर कुछ खास बा तभी तू सोनू भैया के फांस लेलू “
लाली को सोनी कि यह बात रास ना आई. उसने प्रतिरोध करते हुए कहा..
“हम तहरा भैया के नइखे फसवले…. आईहें त उनके से पूछ लीहा..”
सुगना ने बातचीत का क्रम बिगड़ते हुए देखकर सोनी को टोका
“सोनी ढेर बकबक मत कर…. सिखावे के बाद सिखाव न ता जो अपन काम कर”
“दीदी कल से रोज शाम को एक घंटा..और हां गुरुदक्षिणा बाद में” सोनी ने सुगना के कंधों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और उसे एक फ्लाइंग किस देते हुए कहा…
सुगना सोनी में आए बदलाव को कई रूपों में देख रही थी। उसका बर्ताव अब एक आदर्श छोटी बहन से इतरा एक सहेली के रूप में हो रहा था। परिवर्तन प्रकृति का नियम है सुगना यह बात तो बखूबी जानती थी उसने इसे नजरअंदाज किया और अपने काम में लग गई।
पर लाली को सोनी की बातें कुछ असहज कर गयीं …सोनू से विवाह का प्रस्ताव उसने तो नहीं रखा था…. यहां तक की अपनी काम पिपासा शांत करने के लिए सोनू स्वयं उसके पास आया था…फिर सोनी ने उसे ऐसा क्यों कहा? क्या वैवाहिक स्त्रियों के प्रेम संबंधों में हमेशा स्त्रियां ही दोषी होती है?
रसोई में काम कर रही सुगना ने लाली के चेहरे पर आई उदासी को पढ़ लिया सुगना ने सोनू के बचपन और हॉस्टल की बातें कर कुछ ही देर में उसका मूड खुश कर दिया। सोनी को भी वह दिन याद आने लगे जब सोनू धीरे-धीरे उसके संपर्क में आ रहा था। सुगना अनोखी थी और शायद इसीलिए हरदिल अजीज थी।
दिन बीत रहे थे
सुगना ने सोनी से हिंदी बोलने की ट्रेनिंग लेना शुरू कर दिया। वो अपनी भोजपुरी भाषा का सम्मान जरूर करती थी परंतु हिंदी भाषा का ज्ञान होना भी जरूरी था। घर से बाहर निकलने पर अधिकतर लोग इसी भाषा में बात करते थे। परंतु सुगना की जबान से हमेशा भोजपुरी में ही बात निकलती थी। लाली का भी यही हाल था।
यहां तक कि घर के बच्चे भी अधिकतर भोजपुरी में ही बात करते थे। सुगना और लाली ने बच्चों में भी हिंदी बोलने की आदत डालने का निश्चय किया। वक्त के साथ चलना और बदलना भी जरूरी था।
इस बीच सुगना के घर में एक और परिवर्तन आ रहा था। घर में पैसे की आवक बढ़ चुकी थी। उधर विकास सोनी को लगातार पैसे भेज रहा था जिससे वह तरह-तरह के कपड़े खरीदती। उधर जब से लाली और सोनू का विवाह लगभग तय हो गया था लाली में भी आमूल चूल बदलाव आ रहा था अब वह अपने ऊपर और भी ज्यादा ध्यान देने लगी थी। पेंशन के पैसे थे ही उसने भी अपने कपड़े और पहनावे में परिवर्तन लाया। पर लाली एक बात का विशेष ध्यान रखती थी कि जब भी वह अपने लिए नए वस्त्र लाती वैसा ही एक सुगना के लिए जरूर लाती चाहे वह पहने चाहे नहीं।
कपड़ों में यह बदलाव आधुनिकता की देन थी कभी सलवार सूट कभी अनारकली कभी हल्के-फुल्के वेस्टर्न ड्रेस सुगना लाली के जीवन में ए आ रहे बदलाव को देख रही थी लाली खुश थी और सुगना भी।
लाली अपने नए वस्त्रों को पहन कर सुगना को दिखाती और जब उसकी प्रशंसा मिल जाती वह सोनू के घर आने के दिन इस कपड़े में सोनू का इंतजार करती।
लाली की देखा देखी सोनू भी कभी-कभी सोनू भी अपनी पसंद के कपड़े अपनी सुगना दीदी के लिए ले आता और लाली के लिए भी पर आज भी उसकी पहली पसंद सुगना ही थी। सुगना कभी-कभी उसे प्यार से डांटती..और फिर प्यार भी करती।
परंतु भरे पूरे घर में सुगना के साथ एकांत ढूंढना और सुगना को अपनी प्रेमिका के रूप में पाना बेहद कठिन था।
सुगना का घर विवाह का घर हो चुका था जहां आए दिन भीड़ भाड़ रहती थी। पदमा सरयू सिंह और कजरी का आना जाना भी अब लगातार रहता था। सुगना और सोनू के मिलन में बाधाएं लगातार बढ़ रही थी और वैसे ही सोनू की कसक भी। परंतु चतुर और सबका ध्यान रखने वाली सुगना सोनू का ढाढस बांधे रखती थी। वह उसकी सारी इच्छाएं पूरी कर पाने में असमर्थ रहती पर कभी-कभी मौका मिलते ही छोटा-मोटा दाग लगा ही देती थी।
“जब भूख ज्यादा लगी हो तो अल्पाहार जठराग्नि को और भड़का देता है”
सुगना को लेकर सोनू ने इतनी कल्पनाएं कर रखी थी कि उसे पूरा करते-करते न जाने कितने दिन और साल लगते और सोनू की गर्दन का दाग न जाने क्या रूप ले लेता..
नियति सोनू की भावनाओं को बखूबी समझती थी और सुगना भी। उसकी काम इच्छाओ को शांत करने के लिए सुगना को अपने कदम धीरे-धीरे ही बढ़ाने थे और वही वह कर रही थी।
सोनी के विवाह की तैयारियां शुरू हो गईं थीं। सरयू सिंह परिवार के मुखिया थे वह स्वयं सोनी के विवाह के लिए सभी व्यवस्थाएं कर रहे थे। नियति सरयू सिंह के मनःस्थिति के बारे में सोच रहीं थी।
जब-जब वह सोनी को देखते उनके मन में एक कसक सी उठती थी। आखिर कैसे कोई युवती विवाह से पहले अपने आशिक से संभोग कर सकती है। सोनी अभी उन्हें चरित्रहींन हीं लगती थी और शायद यही कारण था की सरयू सिंह की वासना ने सोनी को अपने आगोश में ले लिया था अन्यथा सुगना के साथ किए गए संभोग की आत्म ग्लानि अब भी उन्हें सताती थी।
अपनी कोठरी में सोनी को विकास के साथ संभोग सुख लेते सरयू सिंह ने अपनी आंखों से देखा था और तब से उसके मादक कूल्हों की तस्वीर सरयू सिंह की निगाहों में छप सी गई थी।
सोनी जब-जब सरयू सिंह के समक्ष आती दोनों असहज हो जाते। जब सोनी सरयू सिंह के चरण छूने के लिए झुकती वह उससे पहले अपने वस्त्रों को ठीक करती शायद उसे यह एहसास हो चुका था की सरयू सिंह की निगाहें उसके कूल्हों और चूचियों पर घूमती रहती हैं।
परंतु जब से सोनी ने सरयू सिंह के लंड को देखा था और उसे अपनी कामुक कल्पना में स्थान दिया था सोनी को यह असहजता अब अच्छी लगने लगी थी।
कुछ दिनों बाद विकास अमेरिका से वापस आ गया और विकास एवं सोनी का विवाह पूरी धूमधाम से संपन्न हो गया। सोनू ने भी मौका देखकर विकास को अपने और लाली के विषय में सब कुछ बता दिया। सोनू विकास की नजरों में महान हो गया था। लाली को अपनाने की जो हिम्मत सोनू ने दिखाई थी वो काबिलेतारिफ थी।
शादी के जोड़े में सजी-धजी सोनी को देखकर कभी-कभी सरयू सिंह उसकी गलती माफ कर देते और उसे हमेशा खुश रहने का आशीर्वाद देते परंतु एकांत में वह उसे याद करने का सुख कतई नहीं खोना चाहते थे। अब वही उनकी कामुकता को जीवंत रखने की किसी एकमात्र सहारा थी।
आखिरकार सरयू सिंह की अप्सरा विकास के साथ अमेरिका जाने वाली थी। सुगना के घर का एक अहम सदस्य घर से विदा हो रहा था पूरे परिवार की आंखें नम थी।
सोनी ने लाली से विदा होते वक्त कहा..
“मैं तो आपकी शादी में नहीं आऊंगी पर भाभी आप सोनू भैया का ख्याल रखिएगा”
सोनी को इस बात का इल्म था की सोनू और लाली का विवाह कोर्ट मैरिज के रूप में होगा और घर में शायद कोई बड़ा फंक्शन नहीं होगा। उसने अपने संबोधन में लाली को भाभी बोलकर उसे मन ही मन स्वीकार कर लिया था।
आखिरकार सोनी अमेरिका के लिए उड़ान भर चुकी थी। सुगना की दोनों बहने सुगना से दूर जा चुकी थी।
उधर मोनी विद्यानंद के आश्रम में नित्य नए-नए अनुभव कर रही थी। वयस्क होने की उम्र में होने के बावजूद मोनी का मन एक किशोरी जैसा था। वह एक वह शांत स्वभाव की थी और मन से पूरी तरह धार्मिक थी। सुगना की बहन सोनी जितने आधुनिक ख्याल वाली थी.. मोनी ठीक उसके उलट उतनी ही सीधी-साधी ,धर्म परायण और घरेलू थी।
और इस कहानी की नायिका अपनी दोनों बहनों के गुणों और अवगुणों का मिश्रण थी।
(जिन पाठकों को मोनी का किरदार ध्यान है उन्हें शायद मोनी को समझने में आसानी होगी अन्यथा चरित्र चित्रण पर मेरा ज्यादा समय व्यर्थ होगा उम्मीद करता हूं की कहानी को ध्यान से पढ़ने वाले पाठक जरूरत पड़ने पर पुराने एपिसोड रेफर कर सकते हैं)
उधर विद्यानंद के आश्रम में कुंवारी पर वयस्क कन्याओं के साथ मोनी नित नए-नए अनुभव ले रही थी। यद्यपि उसके साथ जो हो रहा था वह उसकी अपेक्षा और सोच से परे था परंतु वह जिस प्रकार से आयोजित किया जा रहा था मोनी उसे बिना किसी प्रतिरोध के स्वीकार कर ले रही थी।
कुछ कार्यक्रम इतने भाव और शालीन तरीके से किए जाते हैं कि उसमें हो उचित अनुचित कृत्य पर सवाल उठाना बेहद कठिन होता है। विद्यानंद के आश्रम में कई अनूठी गतिविधियां होती थी जो सामान्य तौर पर देखने पर अटपटी लगती थी परंतु उन पर प्रश्न उठाने की ना तो किसी में हिम्मत थी और शायद जरूरत भी नहीं थी। जब उसके प्रतिभागी उसे स्वयं स्वीकार कर रहे थे तो भला किसी और को क्यों आपत्ति होती।
मोनी की टोली में उसके समकक्ष और हमउम्र कई कुंवारी लड़कियां थी जो माधवी के नेतृत्व में तरह-तरह के प्रयोग करती और शाम को अपने-अपने कमरे में लौट जाती।
सुबह-सुबह अपनी साधना के समय जब मोनी अपनी सहेलियों के साथ पूरी तरह नग्न होती वह बेहद ही असहज महसूस करती परंतु अपनी बाकी सहेलियों और अपनी गुरु माधवी को भी पूरी तरह नग्न देखकर वह इस प्रथा को धीरे-धीरे स्वीकार कर चुकी थी।
उनकी गुरु माधवी जो एक अंग्रेज महिला थी वो तन से और चेहरे से बेहद खूबसूरत थी।
नियति नग्न लड़कियों के झुंड और उनकी गुरु माधवी को जब-जब बगीचे में घूमते खेलते देखती उसे एक पल को लगता जैसे वह वह जन्नत में आ गई हो.. हरी हरी दूब की घास रंग-बिरंगे फूलों और छायादार वृक्षों से घिरे उपवन में क्रीडा करती युवतियों को देखकर नियति उनके बीच एक अदद पुरुष की आवश्यकता महसूस कर रही थी.. यदि वह पुरुष गलती से इस उपवन में आ जाता तो निश्चित ही उसे यह आभास होता कि वह स्वर्ग लोक में आ गया है और यह लड़कियां उसे अप्सराओं जैसी प्रतीत होती। परंतु अफसोस विद्यानंद के आश्रम के नियमों के अनुसार आश्रम के उसे हिस्से में पुरुषों का जाना सख्त मना था।
इन लड़कियों का चयन माधवी ने ही किया था। चयन के लिए जो मुख्य योग्यता थी कौमार्य सुरक्षित होना, खूबसूरत चेहरा और खूबसूरत बदन…। विद्यानंद ने माधवी को जन्नत की हूरें या स्वर्ग की अप्सराएं तैयार करने के लिए लगाया था और माधवी ने यह काम बखूबी किया भी था।
माधवी को ट्रेनिंग अब भी जारी थी…वह लड़कियों को तरह तरह के योगाभ्यास कराती जिससे उनका बदन और भी सुडौल बने। उन्हें एक दूसरे की चूचियों को मालिश कर उन्हें और भी उन्नत और कामुक बनाने की कोशिश करती.. लड़कियों के जांघों के बीच उग आए कल और सुनहरे बालों को हटाने के लिए ना तो कभी माधवी ने जिद किया और नहीं कभी लड़कियों ने उसकी मांग की। कुदरत द्वारा प्रदत्त एकमात्र वही बाल उनका सहारा थे अपने गुप्तांगों को छुपाने के लिए यद्यपि छुपाने की आवश्यकता ना थी क्योंकि जब वह इस तरह नग्न अवस्था में रहती सभी की सभी लड़कियों की स्थिति एक ही होती।
मूलत माधवी का उद्देश्य यही था कि इन चुनी हुई लड़कियों के बदन को तराश कर उन्हें अप्सराओं की भांति तैयार करना था। विद्यानंद का उद्देश्य माधवी को भली भांति ज्ञात था। माधवी इस बात का पूरा ख्याल रखती की कोई भी लड़की अपनी योनि को हाथ न लगाएं और यदि इसकी आवश्यकता हो तो भी उसे अपना कौमार्य बचाए रखने की सख्त हिदायत थी।
नग्नता पैसे भी वासना को जन्म देती है यद्यपि आश्रम में आई लड़कियां निश्चित ही कामवासना से विमुख होकर यहां आई थी परंतु फिर भी वासना स्त्री का एक अभिन्न गुण होता है।
मोनी का तन बदन धीरे-धीरे और निखरता जा रहा था चूचियों की मालिश और योगाभ्यास ने उसकी चूचियों को पर्वत की भांति उठा दिया था। गोरी गोरी जांघों के बीच झुरमुट की तरह काले बाल उसकी बुर को छुपाए रखते.. पर उसकी खूबसूरती को और भी बढ़ा देते।
कुछ महीने के अथक प्रयासों के पश्चात मोनी और अन्य लड़कियां पूरी तरह तैयार थी।
और एक दिन..
विशालकाय भवन में सभी लड़कियां अपने बदन पर एकमात्र झीना वस्त्र डालें (राम तेरी गंगा मैली की मंदाकिनी जैसी ) नीचे बैठी हुई विद्यानंद का इंतजार कर रही थी। कुछ ही देर बाद विद्यानंद अपनी पूरी गरिमा और माधवी के साथ कक्ष में उपस्थित हुए।
सभी लड़कियों ने उठकर उनका अभिवादन किया। विद्यानंद ने हाथ उठाकर उनका अभिवादन स्वीकार किया और लड़कियों को बैठने का निर्देश दिया परंतु इसी दौरान उन्होंने माधवी की पसंद और उसकी मेहनत का जायजा ले लिया। ऐसा लग रहा था जैसे परीलोक से उतरकर कई अप्सराय आश्रम में आ गई हों..
विद्यानंद ने अपनी गंभीर आवाज में बोला..
देवियों आप सब आश्रम का अभिन्न अंग हो चुकी है… यह आश्रम मानवता की सेवा करने के लिए बना हुआ है…आप सब जिस समाज से उठकर आई है वहां सुख और दुख दोनों ही हर परिवार में होते हैं …. पति-पत्नी के संबंधों मैं सामंजस्य नहीं होना समाज में कई समस्याएं उत्पन्न करता है. ..कई विवाह सफल होते हैं कई असफल इन सब के मूल में कहीं ना कहीं स्त्री और पुरुष की कामवासना की तृप्ति नहीं हो पाना होता है।
जहां तक मैंने इस जीवन को देखा है मैं यही बात समझी है कि यदि पति और पत्नी के बीच अंतरंग संबंध बखूबी बनते हैं और दोनों ही उसका आनंद लेते हैं तो वह विवाह निश्चित ही सफल होता है अन्यथा समाज में पति और पत्नी दोनों घुट घुट कर रहते हैं
आप सब ने भी शायद यह बात अपने आसपास या अपने परिवार में जरूर देखी होगी। क्या आपको पता है इसका मूल कारण क्या है? कई युवा पुरुष स्त्री शरीर से पूरी तरह अनभिज्ञ होते हैं । स्त्रियों के कोमल मन को जानना और स्त्री शरीर को समझना इतना आसान नहीं होता। और जब इसे पुरुष विवाह के बंधन में बंधते हैं तो कुछ ही दिनों में अपनी पत्नी की मन की बात जाने बिना और उसके शरीर को समझे बिना वह ऐसे ऐसे कृत्य करते हैं जिससे वह हमेशा के लिए अपनी पत्नी की नजर में एक कामुक और आनंदी व्यक्ति के रूप में अपनी पहचान छोड़ देते हैं।
इस अवस्था में पत्नी का प्रेम पाना तो दूर वह स्त्री उनसे ऐसी दूरी बना लेती हैं जो उनके मन में हमेशा कष्ट का कारण बनी रहती है।
मेरे कई अनुयाई अपने बच्चों की यही समस्या लेकर अक्सर मुझसे बातें करते। पूरी वस्तु स्थिति समझने के बाद मैंने इस समस्या के निदान के लिए एक नया आश्रम बनाया है जिसमें एक विशेष कक्ष है। आप सब इस धरती की सर्वोत्तम सुंदर महिलाओं में से एक है । और अब तक आप लोगों ने अपना कौमार्य बचा कर रखा है इससे यह बात भी स्पष्ट होती है कि आप सब कामुकता और वासना से दूर हैं।
मैं यह समझता हूं कि आश्रम से जुड़ते समय निश्चित ही आपने अपनी कामवासना पर विजय प्राप्त कर ली थी तब ही आप लोग ने इस आश्रम का रुख किया।
मैं आप सबको इस समाज से विकृतियों हटाने में आपकी सहायता सहायता चाहता हूं।
उधर रतन दरवाजे के उसी सभागार के कक्ष पर विद्याधर से मिलने के लिए इंतजार कर रहा था..
दरबान के दरवाजा खोलते ही रतन की नजरे अंदर खड़ी लड़कियों की तरफ चली गई और उसकी आंखें फटी रह गई आगे की लाइन में परियों की तरह खूबसूरत बन चुकी मोनी से उसकी नजरें चार हो गईं…
रतन और मोनी दोनों इस स्थिति के लिए तैयार न थे। परंतु मोनी की मादक काया रतन की निगाहों में छप सी गई..
मोनी ने अपनी स्थिति का आकलन किया और नजरे झुका ली.. शायद वह अपनी नग्नता को लेकर अब सजग हो गई थी..
शेष अगले भाग में...
आपके कमेंट के इंतजार में