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Fantasy अंधेरे का बोझ : क्षीण शरीर और काला साया

अगर आपकी आत्मा किसी और के शरीर में घुस जाए तो क्या होगा?


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kamdev99008

FoX - Federation of Xossipians
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...लाइक और अपने विचार रखो,इसमें थोड़ा हॉरर ट्राई करने की कोशिश की, जमा की नहीं बता देना।
कहानी जबर्दस्त थ्रिलर बनती जा रही है
आरव (अब शुभम्) ने सही तरीका अपनाया.... बेटे से लड़ने की बजाय सीधे कमिश्नर बाप को ही उठा लिया....
श्रद्धा और उससे भी ज्यादा श्वेता की परेशानी हल हो गयी
अभी विद्या के करीब पहुंचने में समय लगेगा
 

Anatole

⏳CLOCKWORK HEART
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कहानी जबर्दस्त थ्रिलर बनती जा रही है
आरव (अब शुभम्) ने सही तरीका अपनाया.... बेटे से लड़ने की बजाय सीधे कमिश्नर बाप को ही उठा लिया....
श्रद्धा और उससे भी ज्यादा श्वेता की परेशानी हल हो गयी
अभी विद्या के करीब पहुंचने में समय लगेगा

अब आरव को भी अपना काम निकलवाना था। बाकी शुक्रिया ऐसे ही बने रहना।
 

Chutiyadr

Well-Known Member
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259
#७.पिता के लिए

आंसू श्रद्धा के सफेद चेहरे पर बरस रहे थे। उसकी वो नीली आंखे रो रो कर लाल हो चुकी थी। वहीं शुभम की बहन श्वेता उसे समझा रही थी। लेकिन जब उसने सुना कि मैंने उनकी बात सुन ली है वो गुस्से से तिलमिलाते हुए बोली।

श्रध्दा:"तुम यहां कैसे? तुम्हे ये बात सुनने की इजाजत किसने दी।"

मैं:"मैं तो बस मदत करना चाहता हु।"

श्रद्धा ने श्वेता की तरफ गुस्से से इशारा किया।
श्रद्धा:"श्वेता तुम्हे किसने कहा था? इसे यहां लाने के लिए, मुझे नहीं सुननी बात किसिकी भी।"

मैं:"हा, लेकिन मैं ऐसी परिस्थिति से वाकिफ हु।" ये बात मेरे मुंह से निकल गई।

श्वेता घूरते हुए मुझे देखने लगी। श्रद्धा भी थोड़ी चुप हो गई।

श्रद्धा धीरे स्वर में:"तुम्हारा मतलब, की जो अफवा कॉलेज में थी तुम्हारे बारे में वो सही थी।"

मैं समझ गया कि वो क्या कहना चाहती है।लेकिन मेरी कहने का मतलब पूरा अलग था, मैंने पुलिस के तौर पर बहुत सी ऐसी परिस्थिति संभाली है। उनके हिसाब से में शायद गंजेडी था। श्वेता मेरी तरफ धिक्कार और घिन की नजरों से देखने लगी, अब ये सब मैने नहीं शुभम ने किया था ये उन्हें कैसे बताता।

मैंने सर झुकाते हुए कहा:"उस सबके बारे में बाद में बात करेंगे, लेकिन पहले ये बताओ वो लोग कौन है।"

श्रद्धा अचानक चुप हो गई।"वो लड़का था, समर, जिसने मेरे साथ गलत हरकत करने की कोशिश की, उसमें एक पुलिस वाले ने मदत भी की लेकिन उसके बाद कुछ बड़े-बड़े आदमी आए, मुझे शिकायत वापस लेने मजबूर करने। मैं तो करने वाली थी लेकिन श्वेता और मेरे पापा ने मुझे हिम्मत दी।"

उस मासूम से श्रद्धा के चेहरे पर बताते हुए बोझ नजर आ रहा था। मुझे बात सुनकर दिमाग हिलने लगा, उन सब लोगों के लिए जिन्होंने समर की मदर करने की कोशिश की।

मैं:"अच्छा वो समर, वैसे ऐसे कौनसे करोड़पति का बेटा है जिसे बचाया जा रहा है?"

श्रद्धा :"करोड़पति नहीं बल्कि, पुलिस कमिश्नर का बेटा है।"

मैं:"कमिश्नर सिन्हा?"

श्रद्धा:"हा! तुम्हे नाम कैसे पता?"

मैं:"हमारे शहर के है इसीलिए।"
मैने बहुत वक्त सोचने लगा। फिर अचानक उठते हुए बोला।

मैं:"देखो, तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा।"

श्रद्धा मेरी बात सूज मुझे अजीब नजरों से देख रही थी।
श्रद्धा:"क्.."

वो आगे चुप हो गई। उन दोनों की नजरे मुझ पर थी कि जैसे वो चाहती थी कि मैं इन सब में ना पडु या फिर मुझसे कोई अपेक्षा उनके मन में नहीं थी। मैं सोचते सोचते बाहर आया। मेरे मन में दूसरी बात चल रही थी।


______________

विद्या के दृष्टिकोण से।

मैं आराम से दिन भर के हुए विचारों से दूर अंधेरे के बोझ में सो रही थी।मेरी मा-पिता के कमरे से धीमी सी आवाज आई - उनकी धीमी आवाज कानों पर पडी।

कुछ आवाज हुई जिससे मैं थोड़ी हिली, आवाज़ अब तेज थी यह उनकी सामान्य देर रात तक फुसफुसाहट तो नहीं थी। जो वो हमेशा मेरी चिंता में करते रहते थे। आवाज़ें अब करीब थीं, पहले से अलग बल्कि किसी तरह... मेरे कमरे में।

एक धीमी सी सरसराहट, फर्श पर कदमों की हल्के कदम सरकने की आवाज। मेरी खुली आँखें, घबराहट मेरी नींद के किनारे पर चुभ रही थी, ये बिल्ली है या कोई इंसान, मैने ताला लगाया की नहीं ये मैं सोचने लगी। शायद से लगाया था,या नहीं?

मेरी धड़कनों में दहशत समा गई। मैंने ध्यान दिया, अपनि बेचैनी की धड़कन पर काबू पाने की कोशिश करते हुए, क्या हो रहा है समझने की कोशिश की। क्या वह... खरोंच थी?

मेरे कंबल पर नाजुक छूने की आहट हुई,लेकिन हल्की सी खरोच की कंबल पर हुई अब वो तेज थी। डर में मेरा गला दब गया था। मैने एक साँस में कंबल को फेंक दिया, कमरे के काले अँधेरे में एक आकृति दिखाई दी। एक आदमी, बड़ी डरावनी सी मुस्कान लिए खड़ा था। दहशत में मुझसे कुछ ना सुझा, मैं क्या करु चिल्लाऊं की नहीं, या कुछ करु भी, जल्दबाज़ी में अपने बिस्तर के पास रखा फोन गिर गया।

फिर अचानक मुझे खामोशी महसूस हुई। मैं बैठी हुई थी। कम्बल मेरे शरीर से लिपटा हुआ था। कमरे में अभी भी अंधेरा था लेकिन वो शख्स गायब था। नीचे बालों की पिन गिरी हुई थी। मैं भागते हुए दरवाजे पर गई, वो बंद था।।डरते हुए धीरे धीरे बाहर आई, बाहर के दरवाजे पर ताला लगा था। सांस लेकर में कमरे में आई। सुबह के 3बजे थे, धड़कने अभी भी बढ़ रही थी। डर अभी अभी मन में था।
मुझसे ये सहना कठिन हो रहा था। अचानक मेरी आंखों से आंसू निकल गए।
"आरव,क्यों छोड़ के गए मुझे?" मुंह से शब्द निकालर रोने लगी। आरव अगर होता तो उसे डरने की कभी जरूरत नहीं थी। लेकिन उसी की वजह से वो ऐसे नहीं जी सकती थी।

उसने तभी अपने माँ-पिता जिस कमरे में थे वो खटखटाया। उसे बुरा लग रहा की उसे उसकी बूढ़े माँ-बाप को जगाना पड़ रहा है। लेकिन उसकी बहन भी उसके शहर चली गई थी। वो अकेली थी, उसकी नींद डरवाने सपने ने खत्म कर दी थी।


अगली सुबह।

मैं सुबह कॉलेज गया, श्वेता को श्रद्धा के यह छोड़ कर। पूरे वक्त कॉलेज में वहां से निकलने की सोचने लगा। जैसे ही क्लास खत्म हुए, मुझे विमल का फोन आया।

विमल:"क्या कर रहा था तू?.."

वो आगे कुछ बोलता तब तक

मैं:"मैं कॉलेज में था।"

विमल:"अच्छा, आगे से मेरा फोन काटने की जुर्रत मत करना।"

मैंने हा कह दिया।

विमल:"तुम जल्दी यहां आ जाओ, आरव के घर पर।"

उसके कहते ही मैं निकल गया। मुझे थोड़ा डर था कि क्या हो गया?कही फिरसे घर पर कोई आया था? विद्या को तो कुछ नहीं हुआ?

विद्या के ठीक सामने विमल बैठा हुआ था। उसके पीछे विद्या के माता पिता थे। विद्या ने उन्हें इशारा करके अंदर जाने को कहा। विमल और विद्या दोनों अकेले हॉल में बैठे थे।

विमल:"विद्या, तुम्हे क्या लगता है? वो शुभम की बात में सच है, की वो आरव को जानता होगा।"

विद्या:"अगर आरव इतना करीब होता, तो मुझे आरव जरूर बताता।"

विमल:"हा, या फिर उसके अपने कोई कारण रहे होंगे तुम्हे ना बताने के। वैसे उसकी कहीं बात सच निकली, उस अड्डे पर अभी भी ड्रग्स वगैर चालू है। मुझे कानूनी तौर पर तो अभी भी इजाजत नहीं मिली, लेकिन ये तो तय है कि उस दिन जो कुछ भी हुआ, वो एक धोखा था, साजिश थी हमारे खिलाफ। शायद हम दोनों को कोई मारना चाहता था।"

विमल की बात करते वक्त विद्या ने अपना चेहरा दूसरी और मोड लिया। फिर कुछ देर शांत रहकर बोली।

विद्या:"अब आरव नहीं रहा। और तुम क्या कर सकते हो। पूरा डिपार्टमेंट कुछ करने के काबिल नहीं है। और मैं क्या कर सकती हु? मैं तो खुद को बचाने के काबिल भी नहीं हु।"

विमल:"इसीलिए तो मैं चाहता हु, की तुम्हे पुलिस सुरक्षा मिले। और बाकी बात तुम्हारी सच है, शायद आरव होता तो मैं कुछ कर पाता लेकिन मैं कोशिश तो कर सकता हु सिर्फ आरव के लिए।"

विद्या:"ठीक है, मैं देखती हु,अन्वी संस्थान के अंदर से की क्या बात है। वैसे संस्थान बहुत से काम करती है, लेकिन हा ये जानकारी के बारे में चेतन सर को जरूर पता होगा, निर्देशक को अपनी संस्था के बारे में पता ना होना मुश्किल होता है।"

विमल:"चेतन ही ये करवा रहा होगा,क्या पता?"

विद्या:"हा या फिर दूसरे निर्देशकोने ये बात उनसे छिपाई हो।"

विमल:"अच्छा लेकिन ऐसी चीजें छुपाना मुश्किल है, लेकिन हमे सभी पर नजर रखनी होगी, तुम चेतन पर रख सकती हो। बाकी कौन है मैं देखता हु।"

तभी मैं वहा आ गया। विमल ने दरवाजा खोला।
अंदर आते ही विमल बोल पड़ा।

विमल:",शुभम, मुझे तुम्हारे मामा पर शक है? तुम्हे मेरे लिए उन पर नजर रखनी होगी, अगर तुमने बचाने की कोशिश की तो तुम्हे कोई नहीं बचाएगा।"

उसका मेरे साथ बात करते वक्त स्वर देख विद्या थोड़ी चौक गई। आगे विमल कुछ बोलता तभी उसे किसीका फोन आया।

विमल:"बाद में.." उसने फिर कुछ सुनकर हमारी तरफ देखा और बाहर बात करने चला गया।

विद्या सोफे पर बैठी थी और मैं खड़ा उसे देख रहा था। तभी वो बोली:"ऐसे क्या घूर रहे हो, बैठो।"

मैं चुपचाप उसके सामने बैठा। हल्के से उसे देखने की कोशिश कर रहा था। मुझे उसे देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं उसके लिए एक दोस्त भी नहीं था।लेकिन मेरे लिए वो जिंदगी थी। ये बात मैं उसे कभी शायद बता भी पाऊंगा कि नहीं ये मैं सोचने लगा। तभी वो बोली।

विद्या:"तुम आरव को कितना जानते थे?"

मैं:" मुझे तो लगता है कि मैं उसे ठीक ठाक जानता हु। बाकी क्या बताए?"

विद्या:"अच्छा।" उसकी आंखों में शायद जलन थी। मैं उसकी जलन तो पहचान सकता था। लेकिन इसमें कौनसी जलने की बात? क्या उसे लगता है कि वो मुझे यानी आरव को नहीं पहचानती? वो ऐसा कैसे सोच सकती है?

में:"वैसे मैं उन्हें आपके इतना तो नहीं जानता ?"

विद्या ने मेरी बात पर झूठी मुस्कान दे दी।

विद्या:"अच्छा, लगता है तुम बहुत अच्छे दोस्त थे आरव के।"

मैं:"दोस्ती कहना मुश्किल है, मुझे उनके बारे सिवाय इस बात के कि वो इस शहर से गुनहगार खत्म करना चाहते थे कुछ ज्यादा नहीं पता।"

विद्या बस हल्की सी आंखे उपर कर मुस्कुराई।

विद्या:"शायद।"

मैं खुदंको विद्या को इस हालत में देख रोक नहीं पाया:"मैंने इन सब में आपको घसीट कर गलती कर दी,आपको मैं इस दलदल में नहीं डालना चाहता था, मैं खुदको शायद इस बात के लिए कभी माफ नहीं करूंगा।"

विद्या मेरी बात समझ नहीं पाई, वो मेरी तरफ देखने लगी।

विद्या:"आरव मेरा पति था, अगर मैं उसके लिए नहीं कुछ करूंगी तो कौन करेगा? और तुम्हे क्या हक है बताने का?"

मैं चुप रह गया, तभी बाहर से विमल आया।विमल चिंता में था,विद्या ने उसे पूछा।

विमल:"मुझे जल्दी पुलिस स्टेशन जाना पडेगा।"
................

कल रात एक सुनसान जगह पर, सिगरेट का धुआं चारों और फैला हुआ था। पंधरा बीस लोग वहां जमा थे। बीचोबीच एक जवान लड़का खड़ा सिगरेट पी रहा था। उसके सामने दो लड़किया खड़ी थी जिसे उसने उठाके के लाया था।

वो लड़का बोला:"तो श्रद्धा, ले ली शिकायत वापस, मैने पहले ही कहा था, चुपचाप उस वक्त मेरे पास आ जाती तो ये सब नहीं होता।"

श्रद्धा:"अब तो मेरे पिताजी को छोड़ दो समर।"

समर:"अरे नहीं रे! ये कैसे कर सकता हु? और क्यों ही करूंगा अब तो किसी चीज का डर नहीं। अब तो एक नहीं दो दो लड़किया चखेगा ये समर।"

श्वेता ने उसकी बात सुनते ही अपनी मुट्ठी कस ली लेंकिन बात ये थी कि श्वेता और श्रद्धा अब डर चुकी थी। उनके मुंह से अब कुछ नहीं निकल रहा था। सामने दो मर्दों के पकड़े हुए श्रद्धा के पिता गिड़गिड़ा रहे थे कि उन दोनों को छोड़ दे। समर को बस इस बात का मजा आ रहा था।

समर:"बुड्ढे साले, ये बात पहले सोचनी चाहिए थीं। मैं किसका बेटा हु ये ध्यान में रखना चाहिए। किसी पुलिस अफसर ने हिम्मत की होगी, तुम्हे बचाने की लेकिन वो भी कब तक बचा लेता, मेरा बाप यहां की पुलिस संभालता है, वो मुझे कुछ नहीं होने देंगे।"

श्रद्धा रोते हुए :"प्लीज मेरे पिताजी की छोड़ दो।"

तभी समर को फोन आया। :"हैलो पापा!"

कमिश्नर सिन्हा:"बेटा उन्हें छोड़ दो।" उसकी आवाज दबी दबी आ रही थी।

समर:"आप क्या कह रहे है?"

क. सिन्हा डरी हुई आवाज:"बेटा उन्हें छोड़ दे बेटा।मेरी जान के खातिर उसे छोड़ दे।"

समर एकदम डर गया। बाकी सब इन सब से अनजान समर को एकदम इस तरह देख समझ नहीं पाए।

समर:"क्या हुआ? आप ऐसे क्यों बात कर रहे है।"

फोन पर :"कुत्ते के पिल्ले, अपने बाप को जिंदा चाहता है तो जो भी तेरे पास है उनसे दूर हो जा।"

समर डर गया उन सब से दूर होकर।

समर:"हरामजादे, मेरे पापा को कुछ हुआ तो तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा, तू जानता नहीं है मुझे?"

फोन पर:"अच्छा, कौन है तू? उस कमिश्नर का बेटा, जो कमिश्नर मेरे सामने अपने जान की भीख मांग रहा है।"

समर के मुंह से शब्द निकलने बंद हो गए:"मेरे पापा को तू छोड़ दे, वरना तू..तू याद रख। " वो बस इतना बोलता रहा।

फोन पर:"हराम के पिल्ले अगर उन मासूम लड़कियों को कुछ हुआ ना तो तेरे बाप की लाश तक तुझे नसीब नहीं होगी, इसलिए उन सबको छोड़ दे और बोल तेरे बाप ने बोला है? कुछ तो पुण्य लगने दे इस हरामजादे को?और मेरा काम होने पर तेरा बाप सूत समेत घर वापस आएगा।"

समरने हकलाते हुए कुछ बोलना चाहा लेकिन उसके मुंह से शब्द नहीं निकले। तभी उसके कानो में उसके पिता की चीख सुनाई दी।
फोन पर:"सुना, जल्दी कर उन्हें जल्दी भेज दे।तेरे पिता को शायद ये बात पसन्द ना आए। और उनके बारे में ये अफवा मत फैलाना कि उन्हें किसीने अगवा किया है, बिचारे बुरा मान जायेंगे कि इतने बड़े इंसान के बारे झूठी खबर फैलाई गई है।"

समर जल्दी से श्रद्धा के पास आया।

श्रद्धा जो रो रही थी:"प्लीज मेरे पिता को छोड़ दो।"

समर:"ठीक है।" सभी लोग उसके तरफ देखने लगे। श्वेता और श्रद्धा अब खुदकी जान के लिए डर गई।

समर:"तुम दोनों भी जा सकती हो, जल्दी।"

उसके साथी समर की बात समझ ना पाए। क्या हुआ है उसे।

समर चिल्लाते हुए:"मेरे पिता का कह रहे की तुम दोनों को छोड़ दिया जाए।"

......
"लगता है, संस्कारों के साथ साथ उसे दिमाग भी नहीं है।" सिन्हा

नीचे बंधा हुआ था, और उसके सामने अंधेरे में चेहरा ढककर मैं खड़ा था।

सिन्हा:"कौन हो तुम? ये सब क्यों कर रहे हो।"

मैं:"साहब, यहां सवाल सिर्फ मैं करूंगा। और आपको सिर्फ जवाब देने का हक है।"

.....लाइक और अपने विचार रखो,इसमें थोड़ा हॉरर ट्राई करने की कोशिश की, जमा की नहीं बता देना।
Badiya :👍👍
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
3,815
14,786
159
#७.पिता के लिए

आंसू श्रद्धा के सफेद चेहरे पर बरस रहे थे। उसकी वो नीली आंखे रो रो कर लाल हो चुकी थी। वहीं शुभम की बहन श्वेता उसे समझा रही थी। लेकिन जब उसने सुना कि मैंने उनकी बात सुन ली है वो गुस्से से तिलमिलाते हुए बोली।

श्रध्दा:"तुम यहां कैसे? तुम्हे ये बात सुनने की इजाजत किसने दी।"

मैं:"मैं तो बस मदत करना चाहता हु।"

श्रद्धा ने श्वेता की तरफ गुस्से से इशारा किया।
श्रद्धा:"श्वेता तुम्हे किसने कहा था? इसे यहां लाने के लिए, मुझे नहीं सुननी बात किसिकी भी।"

मैं:"हा, लेकिन मैं ऐसी परिस्थिति से वाकिफ हु।" ये बात मेरे मुंह से निकल गई।

श्वेता घूरते हुए मुझे देखने लगी। श्रद्धा भी थोड़ी चुप हो गई।

श्रद्धा धीरे स्वर में:"तुम्हारा मतलब, की जो अफवा कॉलेज में थी तुम्हारे बारे में वो सही थी।"

मैं समझ गया कि वो क्या कहना चाहती है।लेकिन मेरी कहने का मतलब पूरा अलग था, मैंने पुलिस के तौर पर बहुत सी ऐसी परिस्थिति संभाली है। उनके हिसाब से में शायद गंजेडी था। श्वेता मेरी तरफ धिक्कार और घिन की नजरों से देखने लगी, अब ये सब मैने नहीं शुभम ने किया था ये उन्हें कैसे बताता।

मैंने सर झुकाते हुए कहा:"उस सबके बारे में बाद में बात करेंगे, लेकिन पहले ये बताओ वो लोग कौन है।"

श्रद्धा अचानक चुप हो गई।"वो लड़का था, समर, जिसने मेरे साथ गलत हरकत करने की कोशिश की, उसमें एक पुलिस वाले ने मदत भी की लेकिन उसके बाद कुछ बड़े-बड़े आदमी आए, मुझे शिकायत वापस लेने मजबूर करने। मैं तो करने वाली थी लेकिन श्वेता और मेरे पापा ने मुझे हिम्मत दी।"

उस मासूम से श्रद्धा के चेहरे पर बताते हुए बोझ नजर आ रहा था। मुझे बात सुनकर दिमाग हिलने लगा, उन सब लोगों के लिए जिन्होंने समर की मदर करने की कोशिश की।

मैं:"अच्छा वो समर, वैसे ऐसे कौनसे करोड़पति का बेटा है जिसे बचाया जा रहा है?"

श्रद्धा :"करोड़पति नहीं बल्कि, पुलिस कमिश्नर का बेटा है।"

मैं:"कमिश्नर सिन्हा?"

श्रद्धा:"हा! तुम्हे नाम कैसे पता?"

मैं:"हमारे शहर के है इसीलिए।"
मैने बहुत वक्त सोचने लगा। फिर अचानक उठते हुए बोला।

मैं:"देखो, तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा।"

श्रद्धा मेरी बात सूज मुझे अजीब नजरों से देख रही थी।
श्रद्धा:"क्.."

वो आगे चुप हो गई। उन दोनों की नजरे मुझ पर थी कि जैसे वो चाहती थी कि मैं इन सब में ना पडु या फिर मुझसे कोई अपेक्षा उनके मन में नहीं थी। मैं सोचते सोचते बाहर आया। मेरे मन में दूसरी बात चल रही थी।


______________

विद्या के दृष्टिकोण से।

मैं आराम से दिन भर के हुए विचारों से दूर अंधेरे के बोझ में सो रही थी।मेरी मा-पिता के कमरे से धीमी सी आवाज आई - उनकी धीमी आवाज कानों पर पडी।

कुछ आवाज हुई जिससे मैं थोड़ी हिली, आवाज़ अब तेज थी यह उनकी सामान्य देर रात तक फुसफुसाहट तो नहीं थी। जो वो हमेशा मेरी चिंता में करते रहते थे। आवाज़ें अब करीब थीं, पहले से अलग बल्कि किसी तरह... मेरे कमरे में।

एक धीमी सी सरसराहट, फर्श पर कदमों की हल्के कदम सरकने की आवाज। मेरी खुली आँखें, घबराहट मेरी नींद के किनारे पर चुभ रही थी, ये बिल्ली है या कोई इंसान, मैने ताला लगाया की नहीं ये मैं सोचने लगी। शायद से लगाया था,या नहीं?

मेरी धड़कनों में दहशत समा गई। मैंने ध्यान दिया, अपनि बेचैनी की धड़कन पर काबू पाने की कोशिश करते हुए, क्या हो रहा है समझने की कोशिश की। क्या वह... खरोंच थी?

मेरे कंबल पर नाजुक छूने की आहट हुई,लेकिन हल्की सी खरोच की कंबल पर हुई अब वो तेज थी। डर में मेरा गला दब गया था। मैने एक साँस में कंबल को फेंक दिया, कमरे के काले अँधेरे में एक आकृति दिखाई दी। एक आदमी, बड़ी डरावनी सी मुस्कान लिए खड़ा था। दहशत में मुझसे कुछ ना सुझा, मैं क्या करु चिल्लाऊं की नहीं, या कुछ करु भी, जल्दबाज़ी में अपने बिस्तर के पास रखा फोन गिर गया।

फिर अचानक मुझे खामोशी महसूस हुई। मैं बैठी हुई थी। कम्बल मेरे शरीर से लिपटा हुआ था। कमरे में अभी भी अंधेरा था लेकिन वो शख्स गायब था। नीचे बालों की पिन गिरी हुई थी। मैं भागते हुए दरवाजे पर गई, वो बंद था।।डरते हुए धीरे धीरे बाहर आई, बाहर के दरवाजे पर ताला लगा था। सांस लेकर में कमरे में आई। सुबह के 3बजे थे, धड़कने अभी भी बढ़ रही थी। डर अभी अभी मन में था।
मुझसे ये सहना कठिन हो रहा था। अचानक मेरी आंखों से आंसू निकल गए।
"आरव,क्यों छोड़ के गए मुझे?" मुंह से शब्द निकालर रोने लगी। आरव अगर होता तो उसे डरने की कभी जरूरत नहीं थी। लेकिन उसी की वजह से वो ऐसे नहीं जी सकती थी।

उसने तभी अपने माँ-पिता जिस कमरे में थे वो खटखटाया। उसे बुरा लग रहा की उसे उसकी बूढ़े माँ-बाप को जगाना पड़ रहा है। लेकिन उसकी बहन भी उसके शहर चली गई थी। वो अकेली थी, उसकी नींद डरवाने सपने ने खत्म कर दी थी।


अगली सुबह।

मैं सुबह कॉलेज गया, श्वेता को श्रद्धा के यह छोड़ कर। पूरे वक्त कॉलेज में वहां से निकलने की सोचने लगा। जैसे ही क्लास खत्म हुए, मुझे विमल का फोन आया।

विमल:"क्या कर रहा था तू?.."

वो आगे कुछ बोलता तब तक

मैं:"मैं कॉलेज में था।"

विमल:"अच्छा, आगे से मेरा फोन काटने की जुर्रत मत करना।"

मैंने हा कह दिया।

विमल:"तुम जल्दी यहां आ जाओ, आरव के घर पर।"

उसके कहते ही मैं निकल गया। मुझे थोड़ा डर था कि क्या हो गया?कही फिरसे घर पर कोई आया था? विद्या को तो कुछ नहीं हुआ?

विद्या के ठीक सामने विमल बैठा हुआ था। उसके पीछे विद्या के माता पिता थे। विद्या ने उन्हें इशारा करके अंदर जाने को कहा। विमल और विद्या दोनों अकेले हॉल में बैठे थे।

विमल:"विद्या, तुम्हे क्या लगता है? वो शुभम की बात में सच है, की वो आरव को जानता होगा।"

विद्या:"अगर आरव इतना करीब होता, तो मुझे आरव जरूर बताता।"

विमल:"हा, या फिर उसके अपने कोई कारण रहे होंगे तुम्हे ना बताने के। वैसे उसकी कहीं बात सच निकली, उस अड्डे पर अभी भी ड्रग्स वगैर चालू है। मुझे कानूनी तौर पर तो अभी भी इजाजत नहीं मिली, लेकिन ये तो तय है कि उस दिन जो कुछ भी हुआ, वो एक धोखा था, साजिश थी हमारे खिलाफ। शायद हम दोनों को कोई मारना चाहता था।"

विमल की बात करते वक्त विद्या ने अपना चेहरा दूसरी और मोड लिया। फिर कुछ देर शांत रहकर बोली।

विद्या:"अब आरव नहीं रहा। और तुम क्या कर सकते हो। पूरा डिपार्टमेंट कुछ करने के काबिल नहीं है। और मैं क्या कर सकती हु? मैं तो खुद को बचाने के काबिल भी नहीं हु।"

विमल:"इसीलिए तो मैं चाहता हु, की तुम्हे पुलिस सुरक्षा मिले। और बाकी बात तुम्हारी सच है, शायद आरव होता तो मैं कुछ कर पाता लेकिन मैं कोशिश तो कर सकता हु सिर्फ आरव के लिए।"

विद्या:"ठीक है, मैं देखती हु,अन्वी संस्थान के अंदर से की क्या बात है। वैसे संस्थान बहुत से काम करती है, लेकिन हा ये जानकारी के बारे में चेतन सर को जरूर पता होगा, निर्देशक को अपनी संस्था के बारे में पता ना होना मुश्किल होता है।"

विमल:"चेतन ही ये करवा रहा होगा,क्या पता?"

विद्या:"हा या फिर दूसरे निर्देशकोने ये बात उनसे छिपाई हो।"

विमल:"अच्छा लेकिन ऐसी चीजें छुपाना मुश्किल है, लेकिन हमे सभी पर नजर रखनी होगी, तुम चेतन पर रख सकती हो। बाकी कौन है मैं देखता हु।"

तभी मैं वहा आ गया। विमल ने दरवाजा खोला।
अंदर आते ही विमल बोल पड़ा।

विमल:",शुभम, मुझे तुम्हारे मामा पर शक है? तुम्हे मेरे लिए उन पर नजर रखनी होगी, अगर तुमने बचाने की कोशिश की तो तुम्हे कोई नहीं बचाएगा।"

उसका मेरे साथ बात करते वक्त स्वर देख विद्या थोड़ी चौक गई। आगे विमल कुछ बोलता तभी उसे किसीका फोन आया।

विमल:"बाद में.." उसने फिर कुछ सुनकर हमारी तरफ देखा और बाहर बात करने चला गया।

विद्या सोफे पर बैठी थी और मैं खड़ा उसे देख रहा था। तभी वो बोली:"ऐसे क्या घूर रहे हो, बैठो।"

मैं चुपचाप उसके सामने बैठा। हल्के से उसे देखने की कोशिश कर रहा था। मुझे उसे देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं उसके लिए एक दोस्त भी नहीं था।लेकिन मेरे लिए वो जिंदगी थी। ये बात मैं उसे कभी शायद बता भी पाऊंगा कि नहीं ये मैं सोचने लगा। तभी वो बोली।

विद्या:"तुम आरव को कितना जानते थे?"

मैं:" मुझे तो लगता है कि मैं उसे ठीक ठाक जानता हु। बाकी क्या बताए?"

विद्या:"अच्छा।" उसकी आंखों में शायद जलन थी। मैं उसकी जलन तो पहचान सकता था। लेकिन इसमें कौनसी जलने की बात? क्या उसे लगता है कि वो मुझे यानी आरव को नहीं पहचानती? वो ऐसा कैसे सोच सकती है?

में:"वैसे मैं उन्हें आपके इतना तो नहीं जानता ?"

विद्या ने मेरी बात पर झूठी मुस्कान दे दी।

विद्या:"अच्छा, लगता है तुम बहुत अच्छे दोस्त थे आरव के।"

मैं:"दोस्ती कहना मुश्किल है, मुझे उनके बारे सिवाय इस बात के कि वो इस शहर से गुनहगार खत्म करना चाहते थे कुछ ज्यादा नहीं पता।"

विद्या बस हल्की सी आंखे उपर कर मुस्कुराई।

विद्या:"शायद।"

मैं खुदंको विद्या को इस हालत में देख रोक नहीं पाया:"मैंने इन सब में आपको घसीट कर गलती कर दी,आपको मैं इस दलदल में नहीं डालना चाहता था, मैं खुदको शायद इस बात के लिए कभी माफ नहीं करूंगा।"

विद्या मेरी बात समझ नहीं पाई, वो मेरी तरफ देखने लगी।

विद्या:"आरव मेरा पति था, अगर मैं उसके लिए नहीं कुछ करूंगी तो कौन करेगा? और तुम्हे क्या हक है बताने का?"

मैं चुप रह गया, तभी बाहर से विमल आया।विमल चिंता में था,विद्या ने उसे पूछा।

विमल:"मुझे जल्दी पुलिस स्टेशन जाना पडेगा।"
................

कल रात एक सुनसान जगह पर, सिगरेट का धुआं चारों और फैला हुआ था। पंधरा बीस लोग वहां जमा थे। बीचोबीच एक जवान लड़का खड़ा सिगरेट पी रहा था। उसके सामने दो लड़किया खड़ी थी जिसे उसने उठाके के लाया था।

वो लड़का बोला:"तो श्रद्धा, ले ली शिकायत वापस, मैने पहले ही कहा था, चुपचाप उस वक्त मेरे पास आ जाती तो ये सब नहीं होता।"

श्रद्धा:"अब तो मेरे पिताजी को छोड़ दो समर।"

समर:"अरे नहीं रे! ये कैसे कर सकता हु? और क्यों ही करूंगा अब तो किसी चीज का डर नहीं। अब तो एक नहीं दो दो लड़किया चखेगा ये समर।"

श्वेता ने उसकी बात सुनते ही अपनी मुट्ठी कस ली लेंकिन बात ये थी कि श्वेता और श्रद्धा अब डर चुकी थी। उनके मुंह से अब कुछ नहीं निकल रहा था। सामने दो मर्दों के पकड़े हुए श्रद्धा के पिता गिड़गिड़ा रहे थे कि उन दोनों को छोड़ दे। समर को बस इस बात का मजा आ रहा था।

समर:"बुड्ढे साले, ये बात पहले सोचनी चाहिए थीं। मैं किसका बेटा हु ये ध्यान में रखना चाहिए। किसी पुलिस अफसर ने हिम्मत की होगी, तुम्हे बचाने की लेकिन वो भी कब तक बचा लेता, मेरा बाप यहां की पुलिस संभालता है, वो मुझे कुछ नहीं होने देंगे।"

श्रद्धा रोते हुए :"प्लीज मेरे पिताजी की छोड़ दो।"

तभी समर को फोन आया। :"हैलो पापा!"

कमिश्नर सिन्हा:"बेटा उन्हें छोड़ दो।" उसकी आवाज दबी दबी आ रही थी।

समर:"आप क्या कह रहे है?"

क. सिन्हा डरी हुई आवाज:"बेटा उन्हें छोड़ दे बेटा।मेरी जान के खातिर उसे छोड़ दे।"

समर एकदम डर गया। बाकी सब इन सब से अनजान समर को एकदम इस तरह देख समझ नहीं पाए।

समर:"क्या हुआ? आप ऐसे क्यों बात कर रहे है।"

फोन पर :"कुत्ते के पिल्ले, अपने बाप को जिंदा चाहता है तो जो भी तेरे पास है उनसे दूर हो जा।"

समर डर गया उन सब से दूर होकर।

समर:"हरामजादे, मेरे पापा को कुछ हुआ तो तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा, तू जानता नहीं है मुझे?"

फोन पर:"अच्छा, कौन है तू? उस कमिश्नर का बेटा, जो कमिश्नर मेरे सामने अपने जान की भीख मांग रहा है।"

समर के मुंह से शब्द निकलने बंद हो गए:"मेरे पापा को तू छोड़ दे, वरना तू..तू याद रख। " वो बस इतना बोलता रहा।

फोन पर:"हराम के पिल्ले अगर उन मासूम लड़कियों को कुछ हुआ ना तो तेरे बाप की लाश तक तुझे नसीब नहीं होगी, इसलिए उन सबको छोड़ दे और बोल तेरे बाप ने बोला है? कुछ तो पुण्य लगने दे इस हरामजादे को?और मेरा काम होने पर तेरा बाप सूत समेत घर वापस आएगा।"

समरने हकलाते हुए कुछ बोलना चाहा लेकिन उसके मुंह से शब्द नहीं निकले। तभी उसके कानो में उसके पिता की चीख सुनाई दी।
फोन पर:"सुना, जल्दी कर उन्हें जल्दी भेज दे।तेरे पिता को शायद ये बात पसन्द ना आए। और उनके बारे में ये अफवा मत फैलाना कि उन्हें किसीने अगवा किया है, बिचारे बुरा मान जायेंगे कि इतने बड़े इंसान के बारे झूठी खबर फैलाई गई है।"

समर जल्दी से श्रद्धा के पास आया।

श्रद्धा जो रो रही थी:"प्लीज मेरे पिता को छोड़ दो।"

समर:"ठीक है।" सभी लोग उसके तरफ देखने लगे। श्वेता और श्रद्धा अब खुदकी जान के लिए डर गई।

समर:"तुम दोनों भी जा सकती हो, जल्दी।"

उसके साथी समर की बात समझ ना पाए। क्या हुआ है उसे।

समर चिल्लाते हुए:"मेरे पिता का कह रहे की तुम दोनों को छोड़ दिया जाए।"

......
"लगता है, संस्कारों के साथ साथ उसे दिमाग भी नहीं है।" सिन्हा

नीचे बंधा हुआ था, और उसके सामने अंधेरे में चेहरा ढककर मैं खड़ा था।

सिन्हा:"कौन हो तुम? ये सब क्यों कर रहे हो।"

मैं:"साहब, यहां सवाल सिर्फ मैं करूंगा। और आपको सिर्फ जवाब देने का हक है।"

.....लाइक और अपने विचार रखो,इसमें थोड़ा हॉरर ट्राई करने की कोशिश की, जमा की नहीं बता देना।

Bahut hi shandar update he Anatole Bro,

Aarav ne sidha commissioner ko hi utha liya.................

Thriller badhta hi ja raha he..........

Keep rocking Bro
 

Anatole

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#८.कढ़ाई

अपने कमरे में विद्या उसकी बहन शारदा से फ़ोन पर बात कर रही थी।

विद्या: "सुयोग तो बच्चा है, लेकिन उसकी माँ को भी मेरी याद कहाँ आती है?"

शारदा: "अरे विद्या! मैं घर पर आई और काम ही तो थे मेरे पीछे। मैंने उन्हें भी कहा था कि विद्या को फ़ोन करना होगा, लेकिन वक़्त ही नहीं मिला।"

विद्या (चुप होकर): "अच्छा, ठीक है। माँ से बात करेंगी आप?"

शारदा: "नहीं, माँ से दोपहर में ही बात कर ली। तू बता, कैसा चल रहा है? माँ तुझे सता तो नहीं रही ना?"

विद्या: "हा, लेकिन उसमें मां की की क्या गलती, माँ भी मेरे लिए ही ये सब चाहती है। वह क्या करेगी बिचारी?"

शारदा: "हाँ, वह भी है। लेकिन तू चिंता मत कर, सब ठीक हो जाएगा। माँ-पिताजी तो हैं ही तेरे करीब। मैं भी आती रहूँगी।"

विद्या: "दीदी, आपको मेरी चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं है, मैं संभाल लूँगी।"

शारदा: "विद्या, मुझे पता है तू नाराज़ है कि मैं जल्दी चली गई।"

विद्या: "नहीं दीदी, आपसे कैसी नाराज़गी? आप तो मुझे जानती ही हैं, मुझे बस कुछ वक़्त चाहिए।"

शारदा (सहानुभूति के साथ): "लेकिन कब तक? कब तक ऐसे अकेले रहना पसंद करोगी? ज़िंदगी अकेले तो नहीं काट सकती।"

विद्या: "क्यों नहीं काट सकती? अगर मैं नहीं चाहती कि कोई मेरे साथ हो, तो क्यों नहीं काट सकती?"

शारदा कुछ देर चुप हो गई। विद्या को अपने शब्दों पर पछतावा हो रहा था, लेकिन वह इस बात से इनकार नहीं कर सकती थी क्योंकि वह सब सच था।
विद्या सोचते हुए अपने कमरे में लेती थी। तभी किसीके पैरों की आहट हुई। विद्या को तभी अपने सर पर उसकी मां शीला का हाथ सर पर महसूस हुआ।

शीला:"सो गई थी क्या?"

विद्या:"नहीं बस लेती थी।"

शीला:"क्यों नींद नहीं आ रही?"

विद्या:"नहीं, बस लेटे रहने का मन करता है, बिना सोए।"

शीला हल्की मुस्कुराई:"मैं जानती हु काम और पुलिस के चक्कर में थक जाती होगी।"

विद्या ने हल्के से "हा" कहा।

शीला:"शारदा का फोन आया था। उसे तेरी चिंता हो रही थी।"

विद्या:"कह देना था कि मेरी चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है।"

शीला:"बेटी तू जानती है। भलेही तू मुझसे नाराज हो सकती है अपनी बहन से नहीं।"

विद्या:"मैं नाराज थोड़ी हु। बस मन नहीं कर रहा बात करने का।"

शीला:"क्यों?"

विद्या:"मुझे नहीं पता। शायद मैं उसकी खुशहाल जिंदगी में मेरी मनहूसियत नहीं लाना चाहती।"

शीला:"बेटी तू ये सच में नहीं सोचती?"

विद्या:"क्यों नहीं सोच सकती, आप सब की जिंदगी खुशहाल है, बस मेरी वजह से आप सब अपने सुख दाव पर लगा रहे हो। जिसमें आप की गलती भी नहीं है।"

शीला:"लेकिन बेटा उसे ही तो परिवार कहते है। तेरा दुख हमारा भी है। तू मेरी बच्ची है, कितनी भी बड़ी हो जाए।"

विद्या:" लेकिन फिर भी, मुझे सब को मेरी चिंता करते देख बुरा लगता है।"

___________
शहर से थोड़ा दूर एक सुनसान जगह, सिन्हा कुर्सी से बंधा जोर लगा रहा था, उसके नजरे अचानक मेरी और हुई। आंखे फाड़ कर वो मुझे देखने की कोशिश कर रहा था। लेकिन वो चेहरा नहीं देख पाया।

सिन्हा अपनी शरीर की हर एक पसली के साथ चीखते हुए:"क्या चाहते हो तुम मुझसे? तुम्हे शायद पता नहीं होगा की किसी पुलिस अफसर को बंदी बनाना कितना बड़ा गुनाह है।"

मैं कमिश्नर के फोन को नीचे रखकर पास में रखा बड़ा सा हथौड़ा उठाया।:"मुझे आपसे तो नहीं सुनना की मैं कितना गलत हु।" इतना कहकर हाठोडे की धुल पर फुक मारी।

कमिश्नर कांप रहा था "कौन हो तुम?"

मैने कमिश्नर को आंख दिखाकर
*धाड़*
कड्याक की आवाज सुन कोई भी समझ सकता था कि जांघ के पास की हड्डी टूट चुकी है, सिन्हा की चीखे अब बढ़ चुकी थी।

मैंने गहरी सांसों के साथ:"कहां था ना कि कोई सवाल नहीं?मैं जितना पूछूं उतना ही मुझे सुनना पसंद है।"

सिन्हा रोते और चीखते हुए :"ब...ताता हु, क्या चाहिए तुम्हे?"

मैं:"ये बताओ कि उस दिन आरव और बाकी पुलिस अफसर को धोखा क्यों दिया। "

सिन्हा की आंखे अब बड़ी ही चुकी थी।

मैं:"सवाल नहीं, क्योंकि मुझे तुम्हारी चीखो से कोई परेशानी नहीं है।"

सिन्हा लंबी लंबी सांसों के साथ:
"मुझे कुछ नहीं प..."
*धाड़*
एक जोरदार मुक्का उसके चेहरे के बीचोबीच लगा।
*धाड़*
*धाड़*
*कड़ाक*
*धाड़*
उसके चेहरे और छाती पर लगातार दो से तीन मुक्के पड़े। मुंह से खून निकल रहा था। नाक टेढ़ी हो चुकी थी। उसकी धड़कन सिन्हा के अब काबू में नहीं थी। साथ ही मैं मेरी हाथ की पसलियों में अब दर्द हो रहा था। शायद सिन्हा से ज्यादा दर्द मेरे शरीर में हो रहा था। खुदकी सांसे ठीक की और फिर सिन्हा का सर ऊपर किया।

मैं:"मुझे बस कोई चाहिए था मारने के लिए।जल्दी बताओ कि शेरा के साध को मिला हुआ था, वरना मैं शायद तुम्हे ऐसे ही मार दु।"

सिन्हा:"मैने ही शेरा को खबर दी थी, कि विमल सोलंके को बचाने कितने पुलिस अफसर के साथ वहां पर आने वाला है।"

मैं:"क्यों?"

सिन्हा:"क्योंकि मैं भी शेरा का साथीदार था उसके धंधे में। "


मैं:"अब उसके मरने के बाद कौन है? कोई तो होगा जो शेरा के ऊपर था जैसे ही शेरा मर वो आ गए।"

सिन्हा का चेहरा खून से लतपथ था उसकी आँखें चौड़ी थी। शायद उसे आश्चर्य था और संदेह भी कौन हो सकता हु मैं?

सिन्हा:"नहीं, मैं उन सब के बारे में नहीं जानता।"

मैं:"लग तो नहीं रहा मुझे। पैन्सी गैंग आज शेरा का धंधा संभाल रही है। कुछ उसके बारे में बताना चाहोगे।"

सिन्हा:"मैं कुछ नहीं जानता।"

मैने फिरसे हथौड़े को हाथ मैं लिया।

सिन्हा:"नहीं मैं सच में नहीं जानता, तुम्हे मुझे मारकर कुछ नहीं मिलेगा।"

मैं:"नहीं अब नहीं, तुम्हे इतनी कड़ी सुरक्षा से उठा सकता हु तो तुम्हारा बेटा क्या चीज है। उसे तो अच्छे से मारूंगा।"

सिन्हा:"नहीं , हाथ जोड़ता हु, ऐसा मत करना, हा.. हा उनके बारे में थोड़ा सुना है, वो एक बहुत बड़ी गैंग है, कुछ ही वक्त में उन्होंने अपना संपर्क बढ़ाया है, और वो शेरा के पुराने साथियों को खत्म करना चाहते है।"

मुझे सिन्हा की बात सुन गुस्सा आ रहा था:"तो फिर पता होगा कि आरव से उसके परिवार से किसे अब क्या चाहिए?"

सिन्हा रोते हुए:"मैं सच कह रहा हु, मुझे नहीं पता, शायद आरव का कोई संबंध होगा शेरा से।"
*धाड़*
जोरदार मुक्का सिन्हा के मुंह पर मारा।
सिन्हा शायद नहीं जानता था कि उसके सामने आरव ही खड़ा था। वरना उसकी हिम्मत नहीं होती, शेरा का आदमी कहने की। मैने सिन्हा को घूरते हुए अपना सर ना में घुमाया और हथौड़ा फिर से उठानें लगा।

सिन्हा गिड़गिड़ाते हुए:"मैं सच कहा रहा हु। प्यानसी के बारे मे और कुछ नहीं जानता।"

मैं:"लगता है ,तुम्हे जान प्यारी नहीं। ठीक है लेकिन ध्यान रहे मैं तुम्हारे बेटे को इससे भी ज्यादा तड़पाकर मारूंगा। और मुझे उसमें इतना मजा आएगा, कि क्या बताऊं। आखिरी बार पूछ रहा हु!"

मैं उसे बुरी तरीके से मारने लगा।
सिन्हा को शायद अब तक मैं आरव का करीबी हु इतना तो समज आ चुका होगा। इसीलिए मैं इसे जिंदा तो नहीं रख सकता।लेकिन सवालों के जवाब भी मुझे अधूरे ही मिले थे।

मैं:"फिर ये बताओ, प्यांनसी शेरा से क्या दुश्मनी है। और अगर तुम कुछ नहीं जानते तो तुम्हे कैसे पता कि वो शेरा के साथियों को मारना चाहते है।"

सिन्हा:"क्योंकि मुझे मारने की कोशिश हुई है। मुझे तो अब तक लग रहा था कि तुम उनके लिए ही काम करते हो। मेरा बस अंदाजा है, की वो लोग उनके कामों में किसी की दखल अंदाजी नहीं चाहते जो कोई भी उनके लिए धोखा तैयार करे।"

मैं:"तू बहुत ही ज्यादा फेक रहा है। उन्होंने शेरा के पुराने साथी विजू को अपने साथ काम पर रखा है। और उन्हें तुझ जैसे गांड चाटने वाले से क्या दिक्कत होगी?"

सिन्हा:"मैं सच कह रहा हु, उन्होंने मुझे मारने की कोशिश की है।"

मैंने गुस्से मे उसपर हमला किया। अचानक मुझे कुछ आवाज सुनाई दी। मैं समझ गया कि पुलिस आ चुकी है। वो आयेगी मुझे पता ही था क्योंकि मैने कमिश्नर का फोन जो चालू रखा था। लेकिन वो इतनी जल्दी आएगी ये अपेक्षा नहीं थी।

मैं जल्दी काम निपटाकर वहां से निकल गया। मेरी गाड़ी वहा से आधा किलो मीटर दूर थी। गाड़ी लेकर मैं मेरे और विद्या के घर के पास आ गया। मुझे अब डर नहीं था कि कोई मुझे विद्या के घर के पास पकड़ ले। क्योंकि विमल ने बताया था। अगर नहीं बोलता तो भी मैं सिर्फ विद्या को देखने के लिए वहां आ जाता। लेकिन शायद वो अपने कमरे में थी। मैं वहा पर रुका रहा।
__________





_________

मेरी नींद पूरी नहीं हुई थी। आज रविवार था, छत पर सुचित्रा और उसके पति के झगड़ने की आवाज आ रही थी। मैं बाहर आंगन में बैठा दांत घिस रहा था। अपनी ही सोच में था, तभी सामने से श्वेता आई और घूरते हुए ऊपर चली गई।

कुछ देर बाद मुझे किचेन से आवाज आई।किचेन मेरे कमरे और हॉल के पास ही था।
मैं व्यायाम कर रहा था इस वजह भूख भी लगी हुई थी। जाकर देखा तो श्वेता नाश्ता बना रही थी।

मैं(अंदर आते हुए):"क्या हुआ दीदी मां कहा है?"

श्वेता (आंखे दिखाते हुए):"क्यों तेरा मन नहीं भरा उसे तकलीफ दे कर।"

मैं:"क्या बोल रही हो दीदी? मैं तो बस रोज वो नाश्ता बनाती है इसीलिए पूछा।"

कढ़ाई में कुछ भुन रहा था, मिर्च और राय की खुशबू नाकों में चढ़ रही थी। श्वेता ने तभी आंच धीमी की।

श्वेता:"आज मैं बना रही हु। मां के पीछे पहले ही बहुत चिंता है, तेरे वजह आज सुबह 'मां' के साथ 'पापा' ने झगड़ा किया। क्या क्या संभालेगी बिचारी।"

मैं:"क्यों लेकिन?"

श्वेता:"तू कभी घर पर रहता है। कभी भी मुंह उठाके चला आया जैसे भाड़े पे रह रहा है और हमे पैसे देता हो।"

मैं आगे बोल नहीं पाया।

श्वेता:"पहले लगा था, तू अपनी जिंदगी के साथ कुछ भी करे लेकिन मां का तो ख्याल रख ही लेगा। लेकिन नहीं, तूने तो ठेका ले रखा है बच्चों से भी गुजरा बरताव करणे की।"

मेरे पास बोलने को शब्द नहीं थे। वो मुझे जो इंसान समझती है उसी वजह से वो मुझसे यानी शुभम से आशाएं रखते है। जो कि उनके हिसाब से सही है। लेकिन मेरी जिम्मेदारी ये नहीं थी, विद्या थी, मेरी मां थी।

श्वेता गुस्से में:"क्यों पता नहीं, उस एक्सीडेंट में बचकर तूने क्या कर दिया? तभी मर जाता तो ही अच्छा होता।"

उसने पीछे देखा तो शुभम वहां नहीं था। कढ़ाई में भुन रहे मसाले अब जल चुके थे। आंच धीमी थी लेकिन देर भी उसे बहुत हुई थी। जोश में किए गए काम से श्वेता पर भी उसका असर हुआ, हाथ जल चुका था। अब दर्द उसे भी बहुत हो रहा था।

मैं वहा से अपने कमरे में चला गया। कुछ वक्त ऐसे ही बैठने के बाद श्वेता वहां पर आई।

श्वेता:"ये लो नाश्ता कर लो।"

मैने उसके हाथ से प्लेट ले ली। और शांति से खाने लगा।

श्वेता:"ये पहली बार नहीं है, तुमसे कितनी बार मैने कहा है, लेकिन तुम खुदको को बदलते ही नहीं हो।"

मैं:"मैं कोशिश कर रहा हु।" मुझे यही जवाब सही लगा।

श्वेता:"मुझसे झूठ मत बोलो, मैं तुम्हे इस लिए डांटती हु क्योंकि मेरा हक है। तुम भाई हो मेरे, मेरी अपेक्षाएं है तुमसे।"

मैं:"जानता हु।"

श्वेता:"बहुत बड़ी नहीं लेकिन कुछ तो कर पाओ, मां हमेशा तुम्हारे लिए पापा से नहीं लड़ सकती, क्योंकि पापा भी सही है, वो सब तुम्हारी देखभाल जिदंगी भर नहीं करेंगे।"

मैने अपना सर नीचे कर लिए। मेरी नजर श्वेता के जले हाथ पर गई, लेकिन कुछ कहने की क्षमता मुझमें नहीं थी। भलेही मैं वो इंसान नहीं था जिससे श्वेता की अपेक्षा होनी चाहिए लेकिन मेरी भी थोड़ी बहुत गलती थी। काश मैं सभी चीजें अच्छे से संभाल पाता, इन सब में मेरा भी दोष था। मुझ पर अब शुभम की जिम्मेदारी थी। उसका शरीर मुझे एक भेट के रूप में मिला है, तो उसके साथ मुझे उसकी जिम्मेदारी भी लेनी पड़ेगी।

श्वेता:"मैं कुछ नहीं चाहती तुमसे। ये सब तुम्हारे लिए कह रही हु। ये ड्रग्स,शराब और याराना सब बर्बाद कर रहा है तुम्हे।"

मैं:"दीदी, वो सब मैने छोड़ दिया है। मुझे उन सब की जरूरत नहीं है।"

श्वेता:"तू सच बोल रहा है? फिर उस गौतम के साथ क्यों घूम रहा था? और बाहर बाहर क्यों रहता है दिन भर?"

मैं:"मुझे इंस्पेक्टर विमल मदत कर रहे है, उन सब से निकलने के लिए।"

श्वेता:"सच, ये तेरा कोई झूठ तो नहीं?"

मैं:"नहीं बिल्कुल झूठ नहीं कह रहा हु। वो तो बस उनकी मदद कर रहा हु। मैं ये सब नहीं चाहता लेकिन मेरी की गलती को सुधारना तो होगा ही।"

श्वेता के चेहरे पर थोड़ी खुशी तो थी। शायद वो गुस्सा इसलिए थी क्योंकि वो शुभम की चिंता करती थी।

.....लाइक करदो भाइयों, ये अपडेट जल्दी दे दी, क्योंकि फ्री था और कल त्यौहार भी है। बाकी अपने विचार जरूर रखना।
 

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कहानी जबर्दस्त थ्रिलर बनती जा रही है
आरव (अब शुभम्) ने सही तरीका अपनाया.... बेटे से लड़ने की बजाय सीधे कमिश्नर बाप को ही उठा लिया....
श्रद्धा और उससे भी ज्यादा श्वेता की परेशानी हल हो गयी
अभी विद्या के करीब पहुंचने में समय लगेगा


Lovely aarav ko Vidya ki security Deni chahiye aur un dono ke bich dosti honi chahiye fir pyar♥️💖

Bahut hi shandar update he Anatole Bro,

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नया भाग आ गया है।
 
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