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Fantasy अंधेरे का बोझ : क्षीण शरीर और काला साया

अगर आपकी आत्मा किसी और के शरीर में घुस जाए तो क्या होगा?


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Anatole

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बहुत ही बढ़िया अपडेट दिया है ! अब आयेगा एक्शन फिर से कहानी में बहुत ही अच्छा लिख रहे है आप …. 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
🙏🏼 Thanks
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
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#६.तुम्हे ये अधिकार किसने दिया?

श्याम का वक्त था, हर दिन की तरह आज भी मैं बाहर था।
मुझे थोड़ा डर लग रहा था। मैं पुलिस वाला था। तब वो लोगों की रक्षा के लिए जो किया वो मेरा कर्तव्य था। कर्तव्य आत्मा का होता है ऐसा सुना था , लेकिन मैं अभी भी उन सब से भाग सकता था। विमल क्या करेगा? उसका मुझे कुछ पता नहीं था। उसे मुझपर शक तो होगा ही। और क्योंकि मैं उसे सच नहीं बता सकता, अगर कोई मुझे भी ये बात बताता तब भी मैं ये ना मानता। लेकिन मानने ना मानने से क्या होगा सच नहीं बदलेगा। पर ये तो सब कहने की बात है, विमल के सामने मुझे झूठ ही बोलना पड़ेगा जो कि सच जैसा लगे।


विमल के घर आया, एक छोटा सा कमरा था, जिसमें ना कोई सामान था नाही ज्यादा कुछ बस कुछ कुर्सियां थी। यहां में पहली बार नहीं आया था। लेकिन कौन भला अपने घर में ऐसे कमरे बनवाता है। विमल ने अपने पास रखी कुर्सी पर मुझे बैठने को कहा।

विमल : "तुम आरव को कैसे जानते थे?"

मैं:"दरअसल मैने आरव की जान बचाई थी एक बार, और ये बात लगभग 2 साल पहले की है, जब किसी चंपक नाम के गुंडे ने माल पर हमला किया था तब।"

विमल:"हा याद आया,जहां पर आरव अकेला फंस चुका था, शायद मैं उस वक्त छुट्टी पर था।"

मैं:"उस वक्त मैं आरव के साथ ही था, और उसके बाद मैने ही आरव को अस्पताल ले जाने में मदत की।"

विमल :"हा लेकिन मैं जब आरव से मिलने आया तो वहां तो कोई नहीं था।"

मैं:"दअरसल मेरे घर वाले बहुत चिंता करते है मेरी और तब मैं अठारह साल का भी नहीं था। और मैं डर भी गया था, पर उसके बाद आरव खुद मिलने आया था।"

विमल:"सर कहो, तुम किसके बारे में बात कर रहे हो याद रखो।"

मैं:"सॉरी, वो.. माफ करना। हा इस तरह मेरी उनसे पहचान हुई, और फिर उनकी मौत की खबर आई।"

विमल:"समझ गया, आरव तुम्हारे लिए प्रेरणा है, इसीलिए तुम ये सब करना चाहते हो।"

मैं:"नहीं मेरे लिए आरव ... सर प्रेरणा नहीं है, उन्होंने भी बहुत गलतियां की है।"

विमल:"उसने कुर्बानी दी है। वो इन गुनहगारों के विरुद्ध मशाल है।"

मैं:"हा ये जानता हु,उनकी कुर्बानी मेरे लिए मायने रखती है। और इसीलिए अच्छे बुरे से ज्यादा वो किस लिए लड़ा है ये जरूरी है।"

विमल मेरी और देखता रह गया। शायद में कुछ ज्यादा ही बोल गया था।

विमल:"वैसे क्या नाम बताया? ..शुभम, अपनी उमर के हिसाब से बेहद होशियार लगते हो। और हा, तुम पर ‘आरव‘ की वजह से, भरोसा कर रहा हु ये ध्यान रखना। "

मैने सर हिलाकर हा कहा।

विमल:"अब ये बताओ तुम उस गोडाउन क्या करने गए थे।"

मैं:"मुझे आरव की मौत के बाद भरोसा नहीं हो रहा था,इसीलिए खुद जहां उसने आखिरी दम तोड़े वहां देखने गया। लेकिन मुझे वहां बहुत से गुंडे हथियार लिए दिखे। वहां पर कुछ लोगों के हाथों में पुड़िया दिखाई दी मैं समझ गया कि। मांजरा क्या है।"

विमल:"वैसे गोडाउन होना तो उस संस्थान के पास ही चाहिए, लेकिन तुम्हारे कहे अनुसार नहीं है। इसीलिए तुमने विद्या को परेशान किया, पुलिस के पास आने से पहले।"

मैं:"मेरा सताने का उद्देश्य बिल्कुल नहीं था। लेकिन मैं किसी भरोसेमंद पुलिस अफसर को जानता भी नहीं हु। और विद्या जी वही पर काम करती है।"

विमल ने मेरी तरफ घूरते हुए कहा:"अच्छा ज्यादा होशियार बन रहे हो, हमे भी पता है कि तुम कितने दूध के धूले हुए हो, इतने देर से पागल बना रहे हो नहीं।

मैं:"क्या?"

विमल:"ज्यादा होशियार मत बनो, तुम्हे क्या लगता है, लाशे बिछाकर तुम आराम से पुलिस के सामने खड़े होंगे और पुलिस कुछ कर नहीं पाएगी। तुम्हे ये अधिकार किसने दिया? जो तुम कुछ भी करोगे और हम चुपचाप देखते रहेंगे?"

मैंने अपने भावों को काबू करने की कोशिश की।

मैं:"सर आप ये कैसी पागलों जैसी बाते कर रहे हो, लाशे बिछाई है क्या बोल रहे है?"

विमल:"अरे खुद 30 लोगो की जान ली और एक तो लगभग मरने की कगार पर है और तुम कह रहे हो कि मैं पागलों जैसी बाते कर रहा हु।"

मैं:"30 लाशे, आप ये पहले बेहूदी बाते बंद करो? मुझे पता था कि पुलिस नकारी है, लेकिन इतनी कभी नहीं सोचा था की, 30 लोगो के कत्ल का इल्जाम किसी भी 18 साल के लड़के पर डाल दे। क्योंकि उनसे अपना काम ढंग से नहीं होता।"

विमल :"मैने कहा ना, कि तुम उमर के हिसाब से ज्यादा होशियार हो। लेकिन हमारी जानकारी के अनुसार तो खूनी 18 साल का है, और तुम्हारे पास कारण भी है।"

मैं:"मैं किसी का खून क्यों करूंगा? मैने अब तक किसी से झगड़ा तक नहीं किया खून तो दूर की बात? "

विमल:"अच्छा, अब ये भी बोल दो कि तुमने अब तक नहीं सुना कि किसी एक इंसान ने 30 लोगो मारा है।"

मैं आगे कुछ नहीं बोला।

विमल:"बोल दो, मैने भी तुमसे बड़े बड़े देखे है, और मैं आंखों देख पहचान लेता हु कि उसके इरादे कितने बड़े है, आरव को तो जानते ही होंगे और उसी से ये सब सिखा होगा। उसका तरीका भी पूरी तरह ऐसा ही था, और तुम्हारी बातों के तरीके से ये कह सकता हु कि तुम शायद आरव को मुझसे जानते थे, क्योंकि उसने तो मुझे तुम्हारे बारे में नहीं बताया।"

मैं:"मतलब आप सिर्फ में आरव को जानता हु, उस बिनाह पर मुझे दोषी ठहरा रहे है। शायद विद्याजी ने आप पर भरोसा कर, गलती कर दी।"

विमल:"देखो शुभम, तुम भी जानते हो मैं भी। तो इसीलिए वो बाते छोड़ो और सीधे मुद्दे की बात करता हु, मैं तुम्हे दोषी नहीं ठहरा रहा, बल्कि एक मौका दे रहा हु, तुम मेरे साथ काम करो। जैसा कि तुम कर रहे हो बस मेरे लिए कानून के लिए।"

मैंने चिढ़ते हुए कहा:"आप जो सोच रहे है वो मैं नहीं हु?"

विमल:"और कोण हो सकता है, रंग रूप और उमर भी जैसी बताई वैसी ही है।उसने बताया तो भरोसा नहीं हुआ कि एक पतला सा 18 साल का लड़का ये सब कर सकता है, लेकिन सबूत है और तुम कहो तो हम अस्पताल चलके दूध का दूध और पानी का पानी कर लेते है। और मुझपर भरोसा रखो, मैं तुम्हे गुनहगार नहीं मानता। बल्कि तुम तो एक योद्धा जिसे कानून के साथ लड़ना चाहिए, ना कि उनके लिए बोझ बढ़ाना चाहिए।"

मैं आगे कुछ नहीं बोला। मुझे विमल की पूरी बाते चौंकाने वालीं थी। उसे थोड़ा तो भरोसा था न्याय व्यवस्था पर लेकिन वो अब कम होता दिख रहा था। और मैं ये इतना भी पागल नहीं था कि जान ना पाऊं कि विमल मेरे साथ खेल खेल रहा है।

मैं:"हा मैं ही था।"

विमल हल्का सा हंसा।

विमल:"मुझे इंसानों की परख है।और ये याद रखना तुम मेरे लिए काम कर रहे हो। खुदको कोई होशियारी मत करना, तुम्हारा परिवार,घर और हरकते सब जानता हु मैं।"

मैने चुपचाप उसकी बाते सुनता गया। थोड़ा डर था कि शायद इसे शुभम के ड्रग से के बारे के पता होगा। और ऊपर से विमल थोड़ा होशियार तो था लेकिन बहुत गलत लोगों पर भरोसा कर देता था। और ये जानकारी ये किसी को ना बता दे बस इसी बात का डर था।

मैं:"सर मेरी गुजारिश है कि कुछ वक्त के लिए आप ये बाते अपने तक ही रखिए।"

विमल गुस्से से:"अच्छा अब तुम मुझे पागल समझते हो, मैं जो तुम्हे काम दूंगा वो तुम करोगे, और तुम्हारा सबसे जरूरी काम, विद्या जी रक्षा करना। भलेही वो मन से मजबूत औरत है लेकिन अपना पति और बाद में बच्चा खोने के बाद इंसान कुछ चीजें अच्छे से सोच नहीं पाता ।" ये शब्द सुनते ही मैं कुछ पल के लिए कुछ सुन नहीं पाया। कुछ समझ नहीं पा रहा था। ये क्या हुआ। मेरी ये बात अब तक ध्यान क्यों नहीं आई, ये सब मेरी गलती थी। मेरी वजह से आज मेरा बच्चा जिंदा नहीं है। और कैसा बाप हु मैं।
विमल: " इसीलिए तुम उनके आसपास रहोगे तो उन्हें शायद ज्यादा आपत्ति ना होगी जितनी पुलिस से होती है।"

घर आतें ही चेतन(शुभम के मामा),सुचिता(मां) और श्वेता मेरे कमरे के बाहर हॉल में बैठे हुए मिले।
चेतन:"कहा गए थे? कबसे तुम्हे फोन लगाया उठाया क्यों नहीं।" मैने उनकी बात का जवाब नहीं दिया और वहा से सीधे कमरे में चला गया।

वहां बैठी सुचित्रा मेरे पीछे आई।
"बेटा क्या हुआ?, ऐसा अपने मामा के साथ कोई व्यवहार करता है क्या?"

मैं अपनी लाल आंखे जो आंसू बाहर आने को उतावली हो रही थी, उसे अपने सीने में दबाते हुए बोला।:"मुझे नहीं पता।"

सुचित्रा:"जबान लड़ाता है?" एक करारा थप्पड़ मेरे मुंह पे पड़ा।"कोई परिवार से ऐसा बर्ताव करता है?"
मैने चिल्लाते हुए कहा,"नहीं पता मुझे कुछ।" जिसके साथ आंखों से आंसू बहने लगे।"मुझे नहीं है समझ किसी चीज की।"

मुझे इस तरह रोते और चिल्लाते देख श्वेता और चेतन दोनो खड़े हुए।
चेतन:"बेटे क्या हुआ?किसीने कुछ कहा क्या?"

मैंने लंबी लंबी सांस लेते ना में सर हिलाया।

सुचित्रा:"तो फिर हुआ क्या बेटा?" इतना कहते हुए सुचित्रा ने अपना हाथ मेरे चेहरे पर घुमाया।

मेरा मुंह थरथरा रहा था। सभी को मेरे लिए इतनी चिंता देख मुझे मेरे इस तरह चिल्लाने पर पछतावा हुआ।
मैं हल्की सांसों के साथ आंसू पहुंचते हुए:"कुछ नहीं, मुझे इस तरह चिल्लाना नहीं चाहिए था। प्लीज मुझे माफ कर देना।"

सुचित्रा:"हा वो तो ठीक है। लेकिन तुझे हुआ क्या बेटा इस तरह रोने के लिए। कुछ हुआ क्या?"

नीचे झुके सर के साथ ना में इशारा किया।

"क्या हुआ?क्यों चिल्ला रहे थे इतने जोर से?" शुभम के पिता ने दरवाजे पर खड़े हो कर कहा।

शू. पिता:"आवाज ऊपर के कमरे तक आ रही थी।"

सुचित्रा:"कुछ नहीं जी, वो बस जोर से बाते कर कर रहे थे।"

शू.पिता:"तो फिर ये साहब क्यों रो रहे है? और इतनी जोर से चिल्ला क्यों रहे थे। तुम्हे किसने अधिकार दिया अपनी मां पर चिल्लाने का?"

चेतन:"प्लीज,जीजाजी रहने दीजिए ?"

शू.पिता:"क्यों रहने दु? जब उसका मन करे तब आयेगा। किसी पर भी चिल्लाएगा, जैसे मां बाप नहीं नौकर है उसके, और आज भी क्यों आया?
रो तो ऐसे रहा था जैसे कोई मर गया हो।"

बस इतना कहना था मैने वही से कमरे में घुसकर दरवाजा बंद कर दिया। बाहर शू.पिता के चिल्लाने के आवाज आ रही थी। उन्हें क्या पता किसी पता मुझ पर क्या बीत रही है? मेरा बहुत मन हो रहा था विद्या से मिलने का वहीं थी जो मेरा हम जानती थी। वो ये लिए जी रही थी और मैं इन लोगों के साथ परिवार परिवार खेलने के व्यस्थ था। विद्या की इसमें कोई गलती नहीं थी। मुझे ही हीरो बनने का बड़ा शौक था। शायद वो मेरी जिंदगी में ना आई होती, बिचारी खुश तो रहती। मैं बहुत वक्त तक रोता रहा। शायद इतना कभी रोया नहीं था।

तभी दरवाजे पर खटखटाहट हुई।
श्वेता:"शुभम"

दो तीन बार खटखटाते हुए , आवाज दिया।
मैने दरवाजा खोला।

श्वेता ने मेरी तरफ देखा।
श्वेता:"लगता है अब मूड थोड़ा ठीक है।"

मैंने उसकी बात को अनसुना कर:"बोलो क्या बात है?"

श्वेता:"दरअसल, तुम सुबह पूछ रहे थे ना कि, मुझे क्या हुआ है?"

मैं:"तो उसका अभी क्या?"

श्वेता:"मुझे पता है ये वक्त सही नहीं है, लेकिन मुझे बहुत जरूरत है श्रद्धा से मिलने की अभी।"

मैं:"क्यों?"

श्वेता:"मैने पूछा क्या तुम्हे? की तुम क्यों रो रहे थे लड़कियों जैसे?"

मेरे चेहरे पर शायद अपनी बात से निराशा देख कर वो बोली:"देखो, मुझे पता है कि तुम मुझे अपनी कोई बात नहीं बताओगे? जैसा कि आज तक हुआ है, लेकिन मैं मेरी समस्या सच में तुम्हे बता नहीं सकती। तुम बस मेरी मदत करो ये बहुत जरूरी है।"

मैं कुछ नहीं बोला, बस सोचते हुए देखता रहा।

श्वेता:"तुम्हे मैं भी मदत करूंगी अगर कुछ लगे तो।"

वैसे मुझे अब बाहर जाने के लिए मनाई तो नहीं थी। डांट मिलती थी लेकिन उतनी सुन लूंगा, पर क्या पता आगे श्वेता मुझे उसके मां बाप से बचाले।

मैं:"ठीक है। मैं मुंह धोकर आता हु।"

____________

श्रद्धा को देखते ही श्वेता सीधे उसके गले लग गई।
श्वेता:"श्रद्धा,क्या हुआ तुझे ऐसी हालत क्यों बना के रखी?"

श्रद्धा:"उसने मुझे छूने की कोशिश की।"

इतना कहकर श्रद्धा रोने लगी।

श्वेता:"मैंने यहां जल्दी आने की कोशिश की लेकिन मेरे घर पर ..."

वो आगे कुछ बोलती तभी उसकी नजर सामने पड़ी। वैसे ही उसने श्रद्धा की तरफ देखा।

श्वेता का गला अब कांपने लगा:"क्या हुआ था यहां?"
श्रद्धा कुछ नहीं बोली बस रोती रही।

श्वेता:"ये सब कैसे हुआ, क्या वो लोग आए थे?"

श्रद्धा रोते हुए:" मेरे पीता जी को वो उठाके ले गए। कह रहे थे कि अगर मैने पुलिस थाने जाकर अगर शिकायत वापस नहीं ली, तो वो मेरे पिताजी को मार देंगे।"

श्वेता ने पूरे कमरे में देखा, सभी तरफ चीजें गिरी हुई थी। श्रद्धा की हालत रो रो कर खराब हो चुकी थी।

श्रद्धा:"मैं इसीलिए आज कॉलेज नहीं आई, मुझे रात को धमकी भरा फोन आया था, और आज ये।"

श्वेता:"श्रद्धा तू चिंता मत कर हम पुलिस के पास जाएंगे तो वो हमारी मदत जरूर करेंगे।"

श्रद्धा:"कोई मदत नहीं करेगा हमारी, मैं शिकायत वापस ले लेती हु, उसके अलावा मेरे पास कोई रास्ता नहीं है।"

श्वेता:"श्रद्धा तू ठीक से सोच नहीं रही है। अब तो शिकायत के डर से तेरे साथ कुछ नहीं कर रहे अगर किया तो वो जेल चला जाएगा। लेकिन वापस लेने पर उसे कौन रोकेगा।"

श्रद्धा:"मुझे कुछ भी हो? मैं अपने पापा को नहीं खो सकती।"

श्वेता :"क्या तुम्हे लगता है, की शिकायत वापस लेने के बाद तेरे पापा को छोड़ेंगे। लेकिन अगर तू पुलिस के पास जाएगी तो शायद वो हमारी कुछ मदत कर दे।"

श्रद्धा:"नहीं वो नहीं करेगी। उनका जरूर कोई हम पर नजर रखे हुए होगा।"

वो इतना बोल रही थी कि उनके दरवाजे पर खटखटाहट हुई।

"दीदी, मैं हु।"
शुभम की आवाज आते ही श्रद्धा ने कहा:"ये यह क्या कर रहा है?"

श्वेता:"रुक, देखती हु।"

दरवाजा खोलते हुए श्वेता:"क्या हुआ?"
शुभम अन्दर आकर:"कुछ नहीं, वो बस मैने सब सुन लिया।"

.....लाइक और अपनी विचार रखो।
ये अपडेट छोटी लगेगी क्योंकि इसमें ज्यादा भाग विमल और आरव की बाते थी। मैंने वो पार्ट दो दिन पहले ही लिख दिया था। बस वो रोने वाला सीन लिखने में वक्त लगा। थोड़ी writing मिस्टेक्स होगी तो माफ कर देना।

Bahut hi umda update he Anatole Bro,

Shubam aur Vimal ke beech huyi baato se lagta he abhi shubham ko vimal par puri tarah se vishwas nahi he........

Shrdha ke pita ko bhi ab shubham hi bacha ke layega.....'

Keep rocking Bro
 
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Bahut hi umda update he Anatole Bro,

Shubam aur Vimal ke beech huyi baato se lagta he abhi shubham ko vimal par puri tarah se vishwas nahi he........

Shrdha ke pita ko bhi ab shubham hi bacha ke layega.....'

Keep rocking Bro
Thanks,
Shubham ko Vimal par bharosa hai lekin use lagta hai ki Vimal us par bharosa nhi karta kyuki vo Shubham hai Aarav nahi.
 

Anatole

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#७.पिता के लिए

आंसू श्रद्धा के सफेद चेहरे पर बरस रहे थे। उसकी वो नीली आंखे रो रो कर लाल हो चुकी थी। वहीं शुभम की बहन श्वेता उसे समझा रही थी। लेकिन जब उसने सुना कि मैंने उनकी बात सुन ली है वो गुस्से से तिलमिलाते हुए बोली।

श्रध्दा:"तुम यहां कैसे? तुम्हे ये बात सुनने की इजाजत किसने दी।"

मैं:"मैं तो बस मदत करना चाहता हु।"

श्रद्धा ने श्वेता की तरफ गुस्से से इशारा किया।
श्रद्धा:"श्वेता तुम्हे किसने कहा था? इसे यहां लाने के लिए, मुझे नहीं सुननी बात किसिकी भी।"

मैं:"हा, लेकिन मैं ऐसी परिस्थिति से वाकिफ हु।" ये बात मेरे मुंह से निकल गई।

श्वेता घूरते हुए मुझे देखने लगी। श्रद्धा भी थोड़ी चुप हो गई।

श्रद्धा धीरे स्वर में:"तुम्हारा मतलब, की जो अफवा कॉलेज में थी तुम्हारे बारे में वो सही थी।"

मैं समझ गया कि वो क्या कहना चाहती है।लेकिन मेरी कहने का मतलब पूरा अलग था, मैंने पुलिस के तौर पर बहुत सी ऐसी परिस्थिति संभाली है। उनके हिसाब से में शायद गंजेडी था। श्वेता मेरी तरफ धिक्कार और घिन की नजरों से देखने लगी, अब ये सब मैने नहीं शुभम ने किया था ये उन्हें कैसे बताता।

मैंने सर झुकाते हुए कहा:"उस सबके बारे में बाद में बात करेंगे, लेकिन पहले ये बताओ वो लोग कौन है।"

श्रद्धा अचानक चुप हो गई।"वो लड़का था, समर, जिसने मेरे साथ गलत हरकत करने की कोशिश की, उसमें एक पुलिस वाले ने मदत भी की लेकिन उसके बाद कुछ बड़े-बड़े आदमी आए, मुझे शिकायत वापस लेने मजबूर करने। मैं तो करने वाली थी लेकिन श्वेता और मेरे पापा ने मुझे हिम्मत दी।"

उस मासूम से श्रद्धा के चेहरे पर बताते हुए बोझ नजर आ रहा था। मुझे बात सुनकर दिमाग हिलने लगा, उन सब लोगों के लिए जिन्होंने समर की मदर करने की कोशिश की।

मैं:"अच्छा वो समर, वैसे ऐसे कौनसे करोड़पति का बेटा है जिसे बचाया जा रहा है?"

श्रद्धा :"करोड़पति नहीं बल्कि, पुलिस कमिश्नर का बेटा है।"

मैं:"कमिश्नर सिन्हा?"

श्रद्धा:"हा! तुम्हे नाम कैसे पता?"

मैं:"हमारे शहर के है इसीलिए।"
मैने बहुत वक्त सोचने लगा। फिर अचानक उठते हुए बोला।

मैं:"देखो, तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा।"

श्रद्धा मेरी बात सूज मुझे अजीब नजरों से देख रही थी।
श्रद्धा:"क्.."

वो आगे चुप हो गई। उन दोनों की नजरे मुझ पर थी कि जैसे वो चाहती थी कि मैं इन सब में ना पडु या फिर मुझसे कोई अपेक्षा उनके मन में नहीं थी। मैं सोचते सोचते बाहर आया। मेरे मन में दूसरी बात चल रही थी।


______________

विद्या के दृष्टिकोण से।

मैं आराम से दिन भर के हुए विचारों से दूर अंधेरे के बोझ में सो रही थी।मेरी मा-पिता के कमरे से धीमी सी आवाज आई - उनकी धीमी आवाज कानों पर पडी।

कुछ आवाज हुई जिससे मैं थोड़ी हिली, आवाज़ अब तेज थी यह उनकी सामान्य देर रात तक फुसफुसाहट तो नहीं थी। जो वो हमेशा मेरी चिंता में करते रहते थे। आवाज़ें अब करीब थीं, पहले से अलग बल्कि किसी तरह... मेरे कमरे में।

एक धीमी सी सरसराहट, फर्श पर कदमों की हल्के कदम सरकने की आवाज। मेरी खुली आँखें, घबराहट मेरी नींद के किनारे पर चुभ रही थी, ये बिल्ली है या कोई इंसान, मैने ताला लगाया की नहीं ये मैं सोचने लगी। शायद से लगाया था,या नहीं?

मेरी धड़कनों में दहशत समा गई। मैंने ध्यान दिया, अपनि बेचैनी की धड़कन पर काबू पाने की कोशिश करते हुए, क्या हो रहा है समझने की कोशिश की। क्या वह... खरोंच थी?

मेरे कंबल पर नाजुक छूने की आहट हुई,लेकिन हल्की सी खरोच की कंबल पर हुई अब वो तेज थी। डर में मेरा गला दब गया था। मैने एक साँस में कंबल को फेंक दिया, कमरे के काले अँधेरे में एक आकृति दिखाई दी। एक आदमी, बड़ी डरावनी सी मुस्कान लिए खड़ा था। दहशत में मुझसे कुछ ना सुझा, मैं क्या करु चिल्लाऊं की नहीं, या कुछ करु भी, जल्दबाज़ी में अपने बिस्तर के पास रखा फोन गिर गया।

फिर अचानक मुझे खामोशी महसूस हुई। मैं बैठी हुई थी। कम्बल मेरे शरीर से लिपटा हुआ था। कमरे में अभी भी अंधेरा था लेकिन वो शख्स गायब था। नीचे बालों की पिन गिरी हुई थी। मैं भागते हुए दरवाजे पर गई, वो बंद था।।डरते हुए धीरे धीरे बाहर आई, बाहर के दरवाजे पर ताला लगा था। सांस लेकर में कमरे में आई। सुबह के 3बजे थे, धड़कने अभी भी बढ़ रही थी। डर अभी अभी मन में था।
मुझसे ये सहना कठिन हो रहा था। अचानक मेरी आंखों से आंसू निकल गए।
"आरव,क्यों छोड़ के गए मुझे?" मुंह से शब्द निकालर रोने लगी। आरव अगर होता तो उसे डरने की कभी जरूरत नहीं थी। लेकिन उसी की वजह से वो ऐसे नहीं जी सकती थी।

उसने तभी अपने माँ-पिता जिस कमरे में थे वो खटखटाया। उसे बुरा लग रहा की उसे उसकी बूढ़े माँ-बाप को जगाना पड़ रहा है। लेकिन उसकी बहन भी उसके शहर चली गई थी। वो अकेली थी, उसकी नींद डरवाने सपने ने खत्म कर दी थी।


अगली सुबह।

मैं सुबह कॉलेज गया, श्वेता को श्रद्धा के यह छोड़ कर। पूरे वक्त कॉलेज में वहां से निकलने की सोचने लगा। जैसे ही क्लास खत्म हुए, मुझे विमल का फोन आया।

विमल:"क्या कर रहा था तू?.."

वो आगे कुछ बोलता तब तक

मैं:"मैं कॉलेज में था।"

विमल:"अच्छा, आगे से मेरा फोन काटने की जुर्रत मत करना।"

मैंने हा कह दिया।

विमल:"तुम जल्दी यहां आ जाओ, आरव के घर पर।"

उसके कहते ही मैं निकल गया। मुझे थोड़ा डर था कि क्या हो गया?कही फिरसे घर पर कोई आया था? विद्या को तो कुछ नहीं हुआ?

विद्या के ठीक सामने विमल बैठा हुआ था। उसके पीछे विद्या के माता पिता थे। विद्या ने उन्हें इशारा करके अंदर जाने को कहा। विमल और विद्या दोनों अकेले हॉल में बैठे थे।

विमल:"विद्या, तुम्हे क्या लगता है? वो शुभम की बात में सच है, की वो आरव को जानता होगा।"

विद्या:"अगर आरव इतना करीब होता, तो मुझे आरव जरूर बताता।"

विमल:"हा, या फिर उसके अपने कोई कारण रहे होंगे तुम्हे ना बताने के। वैसे उसकी कहीं बात सच निकली, उस अड्डे पर अभी भी ड्रग्स वगैर चालू है। मुझे कानूनी तौर पर तो अभी भी इजाजत नहीं मिली, लेकिन ये तो तय है कि उस दिन जो कुछ भी हुआ, वो एक धोखा था, साजिश थी हमारे खिलाफ। शायद हम दोनों को कोई मारना चाहता था।"

विमल की बात करते वक्त विद्या ने अपना चेहरा दूसरी और मोड लिया। फिर कुछ देर शांत रहकर बोली।

विद्या:"अब आरव नहीं रहा। और तुम क्या कर सकते हो। पूरा डिपार्टमेंट कुछ करने के काबिल नहीं है। और मैं क्या कर सकती हु? मैं तो खुद को बचाने के काबिल भी नहीं हु।"

विमल:"इसीलिए तो मैं चाहता हु, की तुम्हे पुलिस सुरक्षा मिले। और बाकी बात तुम्हारी सच है, शायद आरव होता तो मैं कुछ कर पाता लेकिन मैं कोशिश तो कर सकता हु सिर्फ आरव के लिए।"

विद्या:"ठीक है, मैं देखती हु,अन्वी संस्थान के अंदर से की क्या बात है। वैसे संस्थान बहुत से काम करती है, लेकिन हा ये जानकारी के बारे में चेतन सर को जरूर पता होगा, निर्देशक को अपनी संस्था के बारे में पता ना होना मुश्किल होता है।"

विमल:"चेतन ही ये करवा रहा होगा,क्या पता?"

विद्या:"हा या फिर दूसरे निर्देशकोने ये बात उनसे छिपाई हो।"

विमल:"अच्छा लेकिन ऐसी चीजें छुपाना मुश्किल है, लेकिन हमे सभी पर नजर रखनी होगी, तुम चेतन पर रख सकती हो। बाकी कौन है मैं देखता हु।"

तभी मैं वहा आ गया। विमल ने दरवाजा खोला।
अंदर आते ही विमल बोल पड़ा।

विमल:",शुभम, मुझे तुम्हारे मामा पर शक है? तुम्हे मेरे लिए उन पर नजर रखनी होगी, अगर तुमने बचाने की कोशिश की तो तुम्हे कोई नहीं बचाएगा।"

उसका मेरे साथ बात करते वक्त स्वर देख विद्या थोड़ी चौक गई। आगे विमल कुछ बोलता तभी उसे किसीका फोन आया।

विमल:"बाद में.." उसने फिर कुछ सुनकर हमारी तरफ देखा और बाहर बात करने चला गया।

विद्या सोफे पर बैठी थी और मैं खड़ा उसे देख रहा था। तभी वो बोली:"ऐसे क्या घूर रहे हो, बैठो।"

मैं चुपचाप उसके सामने बैठा। हल्के से उसे देखने की कोशिश कर रहा था। मुझे उसे देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं उसके लिए एक दोस्त भी नहीं था।लेकिन मेरे लिए वो जिंदगी थी। ये बात मैं उसे कभी शायद बता भी पाऊंगा कि नहीं ये मैं सोचने लगा। तभी वो बोली।

विद्या:"तुम आरव को कितना जानते थे?"

मैं:" मुझे तो लगता है कि मैं उसे ठीक ठाक जानता हु। बाकी क्या बताए?"

विद्या:"अच्छा।" उसकी आंखों में शायद जलन थी। मैं उसकी जलन तो पहचान सकता था। लेकिन इसमें कौनसी जलने की बात? क्या उसे लगता है कि वो मुझे यानी आरव को नहीं पहचानती? वो ऐसा कैसे सोच सकती है?

में:"वैसे मैं उन्हें आपके इतना तो नहीं जानता ?"

विद्या ने मेरी बात पर झूठी मुस्कान दे दी।

विद्या:"अच्छा, लगता है तुम बहुत अच्छे दोस्त थे आरव के।"

मैं:"दोस्ती कहना मुश्किल है, मुझे उनके बारे सिवाय इस बात के कि वो इस शहर से गुनहगार खत्म करना चाहते थे कुछ ज्यादा नहीं पता।"

विद्या बस हल्की सी आंखे उपर कर मुस्कुराई।

विद्या:"शायद।"

मैं खुदंको विद्या को इस हालत में देख रोक नहीं पाया:"मैंने इन सब में आपको घसीट कर गलती कर दी,आपको मैं इस दलदल में नहीं डालना चाहता था, मैं खुदको शायद इस बात के लिए कभी माफ नहीं करूंगा।"

विद्या मेरी बात समझ नहीं पाई, वो मेरी तरफ देखने लगी।

विद्या:"आरव मेरा पति था, अगर मैं उसके लिए नहीं कुछ करूंगी तो कौन करेगा? और तुम्हे क्या हक है बताने का?"

मैं चुप रह गया, तभी बाहर से विमल आया।विमल चिंता में था,विद्या ने उसे पूछा।

विमल:"मुझे जल्दी पुलिस स्टेशन जाना पडेगा।"
................

कल रात एक सुनसान जगह पर, सिगरेट का धुआं चारों और फैला हुआ था। पंधरा बीस लोग वहां जमा थे। बीचोबीच एक जवान लड़का खड़ा सिगरेट पी रहा था। उसके सामने दो लड़किया खड़ी थी जिसे उसने उठाके के लाया था।

वो लड़का बोला:"तो श्रद्धा, ले ली शिकायत वापस, मैने पहले ही कहा था, चुपचाप उस वक्त मेरे पास आ जाती तो ये सब नहीं होता।"

श्रद्धा:"अब तो मेरे पिताजी को छोड़ दो समर।"

समर:"अरे नहीं रे! ये कैसे कर सकता हु? और क्यों ही करूंगा अब तो किसी चीज का डर नहीं। अब तो एक नहीं दो दो लड़किया चखेगा ये समर।"

श्वेता ने उसकी बात सुनते ही अपनी मुट्ठी कस ली लेंकिन बात ये थी कि श्वेता और श्रद्धा अब डर चुकी थी। उनके मुंह से अब कुछ नहीं निकल रहा था। सामने दो मर्दों के पकड़े हुए श्रद्धा के पिता गिड़गिड़ा रहे थे कि उन दोनों को छोड़ दे। समर को बस इस बात का मजा आ रहा था।

समर:"बुड्ढे साले, ये बात पहले सोचनी चाहिए थीं। मैं किसका बेटा हु ये ध्यान में रखना चाहिए। किसी पुलिस अफसर ने हिम्मत की होगी, तुम्हे बचाने की लेकिन वो भी कब तक बचा लेता, मेरा बाप यहां की पुलिस संभालता है, वो मुझे कुछ नहीं होने देंगे।"

श्रद्धा रोते हुए :"प्लीज मेरे पिताजी की छोड़ दो।"

तभी समर को फोन आया। :"हैलो पापा!"

कमिश्नर सिन्हा:"बेटा उन्हें छोड़ दो।" उसकी आवाज दबी दबी आ रही थी।

समर:"आप क्या कह रहे है?"

क. सिन्हा डरी हुई आवाज:"बेटा उन्हें छोड़ दे बेटा।मेरी जान के खातिर उसे छोड़ दे।"

समर एकदम डर गया। बाकी सब इन सब से अनजान समर को एकदम इस तरह देख समझ नहीं पाए।

समर:"क्या हुआ? आप ऐसे क्यों बात कर रहे है।"

फोन पर :"कुत्ते के पिल्ले, अपने बाप को जिंदा चाहता है तो जो भी तेरे पास है उनसे दूर हो जा।"

समर डर गया उन सब से दूर होकर।

समर:"हरामजादे, मेरे पापा को कुछ हुआ तो तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा, तू जानता नहीं है मुझे?"

फोन पर:"अच्छा, कौन है तू? उस कमिश्नर का बेटा, जो कमिश्नर मेरे सामने अपने जान की भीख मांग रहा है।"

समर के मुंह से शब्द निकलने बंद हो गए:"मेरे पापा को तू छोड़ दे, वरना तू..तू याद रख। " वो बस इतना बोलता रहा।

फोन पर:"हराम के पिल्ले अगर उन मासूम लड़कियों को कुछ हुआ ना तो तेरे बाप की लाश तक तुझे नसीब नहीं होगी, इसलिए उन सबको छोड़ दे और बोल तेरे बाप ने बोला है? कुछ तो पुण्य लगने दे इस हरामजादे को?और मेरा काम होने पर तेरा बाप सूत समेत घर वापस आएगा।"

समरने हकलाते हुए कुछ बोलना चाहा लेकिन उसके मुंह से शब्द नहीं निकले। तभी उसके कानो में उसके पिता की चीख सुनाई दी।
फोन पर:"सुना, जल्दी कर उन्हें जल्दी भेज दे।तेरे पिता को शायद ये बात पसन्द ना आए। और उनके बारे में ये अफवा मत फैलाना कि उन्हें किसीने अगवा किया है, बिचारे बुरा मान जायेंगे कि इतने बड़े इंसान के बारे झूठी खबर फैलाई गई है।"

समर जल्दी से श्रद्धा के पास आया।

श्रद्धा जो रो रही थी:"प्लीज मेरे पिता को छोड़ दो।"

समर:"ठीक है।" सभी लोग उसके तरफ देखने लगे। श्वेता और श्रद्धा अब खुदकी जान के लिए डर गई।

समर:"तुम दोनों भी जा सकती हो, जल्दी।"

उसके साथी समर की बात समझ ना पाए। क्या हुआ है उसे।

समर चिल्लाते हुए:"मेरे पिता का कह रहे की तुम दोनों को छोड़ दिया जाए।"

......
"लगता है, संस्कारों के साथ साथ उसे दिमाग भी नहीं है।" सिन्हा
नीचे बंधा हुआ था, और उसके सामने अंधेरे में चेहरा ढककर मैं खड़ा था।

सिन्हा:"कौन हो तुम? ये सब क्यों कर रहे हो।"

मैं:"साहब, यहां सवाल सिर्फ मैं करूंगा। और आपको सिर्फ जवाब देने का हक है।"

.....लाइक और अपने विचार रखो,इसमें थोड़ा हॉरर ट्राई करने की कोशिश की, जमा की नहीं बता देना।
 

Anatole

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Shaandar jabardast Romanchak Update 👌

कहानी लाजवाब है
अपडेट थोड़े जल्दी दिया करो

अगले अपडेट का इन्तज़ार है

बहुत ही बढ़िया अपडेट दिया है ! अब आयेगा एक्शन फिर से कहानी में बहुत ही अच्छा लिख रहे है आप …. 👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻


Bahut hi umda update he Anatole Bro,

Shubam aur Vimal ke beech huyi baato se lagta he abhi shubham ko vimal par puri tarah se vishwas nahi he........

Shrdha ke pita ko bhi ab shubham hi bacha ke layega.....'

Keep rocking Bro

भाग 7 आ गया है
 
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