- 207
- 915
- 94

Chapter
Last edited:
कहानी जबर्दस्त थ्रिलर बनती जा रही है...लाइक और अपने विचार रखो,इसमें थोड़ा हॉरर ट्राई करने की कोशिश की, जमा की नहीं बता देना।
कहानी जबर्दस्त थ्रिलर बनती जा रही है
आरव (अब शुभम्) ने सही तरीका अपनाया.... बेटे से लड़ने की बजाय सीधे कमिश्नर बाप को ही उठा लिया....
श्रद्धा और उससे भी ज्यादा श्वेता की परेशानी हल हो गयी
अभी विद्या के करीब पहुंचने में समय लगेगा
Badiya :#७.पिता के लिए
आंसू श्रद्धा के सफेद चेहरे पर बरस रहे थे। उसकी वो नीली आंखे रो रो कर लाल हो चुकी थी। वहीं शुभम की बहन श्वेता उसे समझा रही थी। लेकिन जब उसने सुना कि मैंने उनकी बात सुन ली है वो गुस्से से तिलमिलाते हुए बोली।
श्रध्दा:"तुम यहां कैसे? तुम्हे ये बात सुनने की इजाजत किसने दी।"
मैं:"मैं तो बस मदत करना चाहता हु।"
श्रद्धा ने श्वेता की तरफ गुस्से से इशारा किया।
श्रद्धा:"श्वेता तुम्हे किसने कहा था? इसे यहां लाने के लिए, मुझे नहीं सुननी बात किसिकी भी।"
मैं:"हा, लेकिन मैं ऐसी परिस्थिति से वाकिफ हु।" ये बात मेरे मुंह से निकल गई।
श्वेता घूरते हुए मुझे देखने लगी। श्रद्धा भी थोड़ी चुप हो गई।
श्रद्धा धीरे स्वर में:"तुम्हारा मतलब, की जो अफवा कॉलेज में थी तुम्हारे बारे में वो सही थी।"
मैं समझ गया कि वो क्या कहना चाहती है।लेकिन मेरी कहने का मतलब पूरा अलग था, मैंने पुलिस के तौर पर बहुत सी ऐसी परिस्थिति संभाली है। उनके हिसाब से में शायद गंजेडी था। श्वेता मेरी तरफ धिक्कार और घिन की नजरों से देखने लगी, अब ये सब मैने नहीं शुभम ने किया था ये उन्हें कैसे बताता।
मैंने सर झुकाते हुए कहा:"उस सबके बारे में बाद में बात करेंगे, लेकिन पहले ये बताओ वो लोग कौन है।"
श्रद्धा अचानक चुप हो गई।"वो लड़का था, समर, जिसने मेरे साथ गलत हरकत करने की कोशिश की, उसमें एक पुलिस वाले ने मदत भी की लेकिन उसके बाद कुछ बड़े-बड़े आदमी आए, मुझे शिकायत वापस लेने मजबूर करने। मैं तो करने वाली थी लेकिन श्वेता और मेरे पापा ने मुझे हिम्मत दी।"
उस मासूम से श्रद्धा के चेहरे पर बताते हुए बोझ नजर आ रहा था। मुझे बात सुनकर दिमाग हिलने लगा, उन सब लोगों के लिए जिन्होंने समर की मदर करने की कोशिश की।
मैं:"अच्छा वो समर, वैसे ऐसे कौनसे करोड़पति का बेटा है जिसे बचाया जा रहा है?"
श्रद्धा :"करोड़पति नहीं बल्कि, पुलिस कमिश्नर का बेटा है।"
मैं:"कमिश्नर सिन्हा?"
श्रद्धा:"हा! तुम्हे नाम कैसे पता?"
मैं:"हमारे शहर के है इसीलिए।"
मैने बहुत वक्त सोचने लगा। फिर अचानक उठते हुए बोला।
मैं:"देखो, तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा।"
श्रद्धा मेरी बात सूज मुझे अजीब नजरों से देख रही थी।
श्रद्धा:"क्.."
वो आगे चुप हो गई। उन दोनों की नजरे मुझ पर थी कि जैसे वो चाहती थी कि मैं इन सब में ना पडु या फिर मुझसे कोई अपेक्षा उनके मन में नहीं थी। मैं सोचते सोचते बाहर आया। मेरे मन में दूसरी बात चल रही थी।
______________
विद्या के दृष्टिकोण से।
मैं आराम से दिन भर के हुए विचारों से दूर अंधेरे के बोझ में सो रही थी।मेरी मा-पिता के कमरे से धीमी सी आवाज आई - उनकी धीमी आवाज कानों पर पडी।
कुछ आवाज हुई जिससे मैं थोड़ी हिली, आवाज़ अब तेज थी यह उनकी सामान्य देर रात तक फुसफुसाहट तो नहीं थी। जो वो हमेशा मेरी चिंता में करते रहते थे। आवाज़ें अब करीब थीं, पहले से अलग बल्कि किसी तरह... मेरे कमरे में।
एक धीमी सी सरसराहट, फर्श पर कदमों की हल्के कदम सरकने की आवाज। मेरी खुली आँखें, घबराहट मेरी नींद के किनारे पर चुभ रही थी, ये बिल्ली है या कोई इंसान, मैने ताला लगाया की नहीं ये मैं सोचने लगी। शायद से लगाया था,या नहीं?
मेरी धड़कनों में दहशत समा गई। मैंने ध्यान दिया, अपनि बेचैनी की धड़कन पर काबू पाने की कोशिश करते हुए, क्या हो रहा है समझने की कोशिश की। क्या वह... खरोंच थी?
मेरे कंबल पर नाजुक छूने की आहट हुई,लेकिन हल्की सी खरोच की कंबल पर हुई अब वो तेज थी। डर में मेरा गला दब गया था। मैने एक साँस में कंबल को फेंक दिया, कमरे के काले अँधेरे में एक आकृति दिखाई दी। एक आदमी, बड़ी डरावनी सी मुस्कान लिए खड़ा था। दहशत में मुझसे कुछ ना सुझा, मैं क्या करु चिल्लाऊं की नहीं, या कुछ करु भी, जल्दबाज़ी में अपने बिस्तर के पास रखा फोन गिर गया।
फिर अचानक मुझे खामोशी महसूस हुई। मैं बैठी हुई थी। कम्बल मेरे शरीर से लिपटा हुआ था। कमरे में अभी भी अंधेरा था लेकिन वो शख्स गायब था। नीचे बालों की पिन गिरी हुई थी। मैं भागते हुए दरवाजे पर गई, वो बंद था।।डरते हुए धीरे धीरे बाहर आई, बाहर के दरवाजे पर ताला लगा था। सांस लेकर में कमरे में आई। सुबह के 3बजे थे, धड़कने अभी भी बढ़ रही थी। डर अभी अभी मन में था।
मुझसे ये सहना कठिन हो रहा था। अचानक मेरी आंखों से आंसू निकल गए।
"आरव,क्यों छोड़ के गए मुझे?" मुंह से शब्द निकालर रोने लगी। आरव अगर होता तो उसे डरने की कभी जरूरत नहीं थी। लेकिन उसी की वजह से वो ऐसे नहीं जी सकती थी।
उसने तभी अपने माँ-पिता जिस कमरे में थे वो खटखटाया। उसे बुरा लग रहा की उसे उसकी बूढ़े माँ-बाप को जगाना पड़ रहा है। लेकिन उसकी बहन भी उसके शहर चली गई थी। वो अकेली थी, उसकी नींद डरवाने सपने ने खत्म कर दी थी।
अगली सुबह।
मैं सुबह कॉलेज गया, श्वेता को श्रद्धा के यह छोड़ कर। पूरे वक्त कॉलेज में वहां से निकलने की सोचने लगा। जैसे ही क्लास खत्म हुए, मुझे विमल का फोन आया।
विमल:"क्या कर रहा था तू?.."
वो आगे कुछ बोलता तब तक
मैं:"मैं कॉलेज में था।"
विमल:"अच्छा, आगे से मेरा फोन काटने की जुर्रत मत करना।"
मैंने हा कह दिया।
विमल:"तुम जल्दी यहां आ जाओ, आरव के घर पर।"
उसके कहते ही मैं निकल गया। मुझे थोड़ा डर था कि क्या हो गया?कही फिरसे घर पर कोई आया था? विद्या को तो कुछ नहीं हुआ?
विद्या के ठीक सामने विमल बैठा हुआ था। उसके पीछे विद्या के माता पिता थे। विद्या ने उन्हें इशारा करके अंदर जाने को कहा। विमल और विद्या दोनों अकेले हॉल में बैठे थे।
विमल:"विद्या, तुम्हे क्या लगता है? वो शुभम की बात में सच है, की वो आरव को जानता होगा।"
विद्या:"अगर आरव इतना करीब होता, तो मुझे आरव जरूर बताता।"
विमल:"हा, या फिर उसके अपने कोई कारण रहे होंगे तुम्हे ना बताने के। वैसे उसकी कहीं बात सच निकली, उस अड्डे पर अभी भी ड्रग्स वगैर चालू है। मुझे कानूनी तौर पर तो अभी भी इजाजत नहीं मिली, लेकिन ये तो तय है कि उस दिन जो कुछ भी हुआ, वो एक धोखा था, साजिश थी हमारे खिलाफ। शायद हम दोनों को कोई मारना चाहता था।"
विमल की बात करते वक्त विद्या ने अपना चेहरा दूसरी और मोड लिया। फिर कुछ देर शांत रहकर बोली।
विद्या:"अब आरव नहीं रहा। और तुम क्या कर सकते हो। पूरा डिपार्टमेंट कुछ करने के काबिल नहीं है। और मैं क्या कर सकती हु? मैं तो खुद को बचाने के काबिल भी नहीं हु।"
विमल:"इसीलिए तो मैं चाहता हु, की तुम्हे पुलिस सुरक्षा मिले। और बाकी बात तुम्हारी सच है, शायद आरव होता तो मैं कुछ कर पाता लेकिन मैं कोशिश तो कर सकता हु सिर्फ आरव के लिए।"
विद्या:"ठीक है, मैं देखती हु,अन्वी संस्थान के अंदर से की क्या बात है। वैसे संस्थान बहुत से काम करती है, लेकिन हा ये जानकारी के बारे में चेतन सर को जरूर पता होगा, निर्देशक को अपनी संस्था के बारे में पता ना होना मुश्किल होता है।"
विमल:"चेतन ही ये करवा रहा होगा,क्या पता?"
विद्या:"हा या फिर दूसरे निर्देशकोने ये बात उनसे छिपाई हो।"
विमल:"अच्छा लेकिन ऐसी चीजें छुपाना मुश्किल है, लेकिन हमे सभी पर नजर रखनी होगी, तुम चेतन पर रख सकती हो। बाकी कौन है मैं देखता हु।"
तभी मैं वहा आ गया। विमल ने दरवाजा खोला।
अंदर आते ही विमल बोल पड़ा।
विमल:",शुभम, मुझे तुम्हारे मामा पर शक है? तुम्हे मेरे लिए उन पर नजर रखनी होगी, अगर तुमने बचाने की कोशिश की तो तुम्हे कोई नहीं बचाएगा।"
उसका मेरे साथ बात करते वक्त स्वर देख विद्या थोड़ी चौक गई। आगे विमल कुछ बोलता तभी उसे किसीका फोन आया।
विमल:"बाद में.." उसने फिर कुछ सुनकर हमारी तरफ देखा और बाहर बात करने चला गया।
विद्या सोफे पर बैठी थी और मैं खड़ा उसे देख रहा था। तभी वो बोली:"ऐसे क्या घूर रहे हो, बैठो।"
मैं चुपचाप उसके सामने बैठा। हल्के से उसे देखने की कोशिश कर रहा था। मुझे उसे देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं उसके लिए एक दोस्त भी नहीं था।लेकिन मेरे लिए वो जिंदगी थी। ये बात मैं उसे कभी शायद बता भी पाऊंगा कि नहीं ये मैं सोचने लगा। तभी वो बोली।
विद्या:"तुम आरव को कितना जानते थे?"
मैं:" मुझे तो लगता है कि मैं उसे ठीक ठाक जानता हु। बाकी क्या बताए?"
विद्या:"अच्छा।" उसकी आंखों में शायद जलन थी। मैं उसकी जलन तो पहचान सकता था। लेकिन इसमें कौनसी जलने की बात? क्या उसे लगता है कि वो मुझे यानी आरव को नहीं पहचानती? वो ऐसा कैसे सोच सकती है?
में:"वैसे मैं उन्हें आपके इतना तो नहीं जानता ?"
विद्या ने मेरी बात पर झूठी मुस्कान दे दी।
विद्या:"अच्छा, लगता है तुम बहुत अच्छे दोस्त थे आरव के।"
मैं:"दोस्ती कहना मुश्किल है, मुझे उनके बारे सिवाय इस बात के कि वो इस शहर से गुनहगार खत्म करना चाहते थे कुछ ज्यादा नहीं पता।"
विद्या बस हल्की सी आंखे उपर कर मुस्कुराई।
विद्या:"शायद।"
मैं खुदंको विद्या को इस हालत में देख रोक नहीं पाया:"मैंने इन सब में आपको घसीट कर गलती कर दी,आपको मैं इस दलदल में नहीं डालना चाहता था, मैं खुदको शायद इस बात के लिए कभी माफ नहीं करूंगा।"
विद्या मेरी बात समझ नहीं पाई, वो मेरी तरफ देखने लगी।
विद्या:"आरव मेरा पति था, अगर मैं उसके लिए नहीं कुछ करूंगी तो कौन करेगा? और तुम्हे क्या हक है बताने का?"
मैं चुप रह गया, तभी बाहर से विमल आया।विमल चिंता में था,विद्या ने उसे पूछा।
विमल:"मुझे जल्दी पुलिस स्टेशन जाना पडेगा।"
................
कल रात एक सुनसान जगह पर, सिगरेट का धुआं चारों और फैला हुआ था। पंधरा बीस लोग वहां जमा थे। बीचोबीच एक जवान लड़का खड़ा सिगरेट पी रहा था। उसके सामने दो लड़किया खड़ी थी जिसे उसने उठाके के लाया था।
वो लड़का बोला:"तो श्रद्धा, ले ली शिकायत वापस, मैने पहले ही कहा था, चुपचाप उस वक्त मेरे पास आ जाती तो ये सब नहीं होता।"
श्रद्धा:"अब तो मेरे पिताजी को छोड़ दो समर।"
समर:"अरे नहीं रे! ये कैसे कर सकता हु? और क्यों ही करूंगा अब तो किसी चीज का डर नहीं। अब तो एक नहीं दो दो लड़किया चखेगा ये समर।"
श्वेता ने उसकी बात सुनते ही अपनी मुट्ठी कस ली लेंकिन बात ये थी कि श्वेता और श्रद्धा अब डर चुकी थी। उनके मुंह से अब कुछ नहीं निकल रहा था। सामने दो मर्दों के पकड़े हुए श्रद्धा के पिता गिड़गिड़ा रहे थे कि उन दोनों को छोड़ दे। समर को बस इस बात का मजा आ रहा था।
समर:"बुड्ढे साले, ये बात पहले सोचनी चाहिए थीं। मैं किसका बेटा हु ये ध्यान में रखना चाहिए। किसी पुलिस अफसर ने हिम्मत की होगी, तुम्हे बचाने की लेकिन वो भी कब तक बचा लेता, मेरा बाप यहां की पुलिस संभालता है, वो मुझे कुछ नहीं होने देंगे।"
श्रद्धा रोते हुए :"प्लीज मेरे पिताजी की छोड़ दो।"
तभी समर को फोन आया। :"हैलो पापा!"
कमिश्नर सिन्हा:"बेटा उन्हें छोड़ दो।" उसकी आवाज दबी दबी आ रही थी।
समर:"आप क्या कह रहे है?"
क. सिन्हा डरी हुई आवाज:"बेटा उन्हें छोड़ दे बेटा।मेरी जान के खातिर उसे छोड़ दे।"
समर एकदम डर गया। बाकी सब इन सब से अनजान समर को एकदम इस तरह देख समझ नहीं पाए।
समर:"क्या हुआ? आप ऐसे क्यों बात कर रहे है।"
फोन पर :"कुत्ते के पिल्ले, अपने बाप को जिंदा चाहता है तो जो भी तेरे पास है उनसे दूर हो जा।"
समर डर गया उन सब से दूर होकर।
समर:"हरामजादे, मेरे पापा को कुछ हुआ तो तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा, तू जानता नहीं है मुझे?"
फोन पर:"अच्छा, कौन है तू? उस कमिश्नर का बेटा, जो कमिश्नर मेरे सामने अपने जान की भीख मांग रहा है।"
समर के मुंह से शब्द निकलने बंद हो गए:"मेरे पापा को तू छोड़ दे, वरना तू..तू याद रख। " वो बस इतना बोलता रहा।
फोन पर:"हराम के पिल्ले अगर उन मासूम लड़कियों को कुछ हुआ ना तो तेरे बाप की लाश तक तुझे नसीब नहीं होगी, इसलिए उन सबको छोड़ दे और बोल तेरे बाप ने बोला है? कुछ तो पुण्य लगने दे इस हरामजादे को?और मेरा काम होने पर तेरा बाप सूत समेत घर वापस आएगा।"
समरने हकलाते हुए कुछ बोलना चाहा लेकिन उसके मुंह से शब्द नहीं निकले। तभी उसके कानो में उसके पिता की चीख सुनाई दी।
फोन पर:"सुना, जल्दी कर उन्हें जल्दी भेज दे।तेरे पिता को शायद ये बात पसन्द ना आए। और उनके बारे में ये अफवा मत फैलाना कि उन्हें किसीने अगवा किया है, बिचारे बुरा मान जायेंगे कि इतने बड़े इंसान के बारे झूठी खबर फैलाई गई है।"
समर जल्दी से श्रद्धा के पास आया।
श्रद्धा जो रो रही थी:"प्लीज मेरे पिता को छोड़ दो।"
समर:"ठीक है।" सभी लोग उसके तरफ देखने लगे। श्वेता और श्रद्धा अब खुदकी जान के लिए डर गई।
समर:"तुम दोनों भी जा सकती हो, जल्दी।"
उसके साथी समर की बात समझ ना पाए। क्या हुआ है उसे।
समर चिल्लाते हुए:"मेरे पिता का कह रहे की तुम दोनों को छोड़ दिया जाए।"
......
"लगता है, संस्कारों के साथ साथ उसे दिमाग भी नहीं है।" सिन्हा
नीचे बंधा हुआ था, और उसके सामने अंधेरे में चेहरा ढककर मैं खड़ा था।
सिन्हा:"कौन हो तुम? ये सब क्यों कर रहे हो।"
मैं:"साहब, यहां सवाल सिर्फ मैं करूंगा। और आपको सिर्फ जवाब देने का हक है।"
.....लाइक और अपने विचार रखो,इसमें थोड़ा हॉरर ट्राई करने की कोशिश की, जमा की नहीं बता देना।
Dhanyavad bhaiLovely aarav ko Vidya ki security Deni chahiye aur un dono ke bich dosti honi chahiye fir pyar![]()
#७.पिता के लिए
आंसू श्रद्धा के सफेद चेहरे पर बरस रहे थे। उसकी वो नीली आंखे रो रो कर लाल हो चुकी थी। वहीं शुभम की बहन श्वेता उसे समझा रही थी। लेकिन जब उसने सुना कि मैंने उनकी बात सुन ली है वो गुस्से से तिलमिलाते हुए बोली।
श्रध्दा:"तुम यहां कैसे? तुम्हे ये बात सुनने की इजाजत किसने दी।"
मैं:"मैं तो बस मदत करना चाहता हु।"
श्रद्धा ने श्वेता की तरफ गुस्से से इशारा किया।
श्रद्धा:"श्वेता तुम्हे किसने कहा था? इसे यहां लाने के लिए, मुझे नहीं सुननी बात किसिकी भी।"
मैं:"हा, लेकिन मैं ऐसी परिस्थिति से वाकिफ हु।" ये बात मेरे मुंह से निकल गई।
श्वेता घूरते हुए मुझे देखने लगी। श्रद्धा भी थोड़ी चुप हो गई।
श्रद्धा धीरे स्वर में:"तुम्हारा मतलब, की जो अफवा कॉलेज में थी तुम्हारे बारे में वो सही थी।"
मैं समझ गया कि वो क्या कहना चाहती है।लेकिन मेरी कहने का मतलब पूरा अलग था, मैंने पुलिस के तौर पर बहुत सी ऐसी परिस्थिति संभाली है। उनके हिसाब से में शायद गंजेडी था। श्वेता मेरी तरफ धिक्कार और घिन की नजरों से देखने लगी, अब ये सब मैने नहीं शुभम ने किया था ये उन्हें कैसे बताता।
मैंने सर झुकाते हुए कहा:"उस सबके बारे में बाद में बात करेंगे, लेकिन पहले ये बताओ वो लोग कौन है।"
श्रद्धा अचानक चुप हो गई।"वो लड़का था, समर, जिसने मेरे साथ गलत हरकत करने की कोशिश की, उसमें एक पुलिस वाले ने मदत भी की लेकिन उसके बाद कुछ बड़े-बड़े आदमी आए, मुझे शिकायत वापस लेने मजबूर करने। मैं तो करने वाली थी लेकिन श्वेता और मेरे पापा ने मुझे हिम्मत दी।"
उस मासूम से श्रद्धा के चेहरे पर बताते हुए बोझ नजर आ रहा था। मुझे बात सुनकर दिमाग हिलने लगा, उन सब लोगों के लिए जिन्होंने समर की मदर करने की कोशिश की।
मैं:"अच्छा वो समर, वैसे ऐसे कौनसे करोड़पति का बेटा है जिसे बचाया जा रहा है?"
श्रद्धा :"करोड़पति नहीं बल्कि, पुलिस कमिश्नर का बेटा है।"
मैं:"कमिश्नर सिन्हा?"
श्रद्धा:"हा! तुम्हे नाम कैसे पता?"
मैं:"हमारे शहर के है इसीलिए।"
मैने बहुत वक्त सोचने लगा। फिर अचानक उठते हुए बोला।
मैं:"देखो, तुम चिंता मत करो सब ठीक हो जाएगा।"
श्रद्धा मेरी बात सूज मुझे अजीब नजरों से देख रही थी।
श्रद्धा:"क्.."
वो आगे चुप हो गई। उन दोनों की नजरे मुझ पर थी कि जैसे वो चाहती थी कि मैं इन सब में ना पडु या फिर मुझसे कोई अपेक्षा उनके मन में नहीं थी। मैं सोचते सोचते बाहर आया। मेरे मन में दूसरी बात चल रही थी।
______________
विद्या के दृष्टिकोण से।
मैं आराम से दिन भर के हुए विचारों से दूर अंधेरे के बोझ में सो रही थी।मेरी मा-पिता के कमरे से धीमी सी आवाज आई - उनकी धीमी आवाज कानों पर पडी।
कुछ आवाज हुई जिससे मैं थोड़ी हिली, आवाज़ अब तेज थी यह उनकी सामान्य देर रात तक फुसफुसाहट तो नहीं थी। जो वो हमेशा मेरी चिंता में करते रहते थे। आवाज़ें अब करीब थीं, पहले से अलग बल्कि किसी तरह... मेरे कमरे में।
एक धीमी सी सरसराहट, फर्श पर कदमों की हल्के कदम सरकने की आवाज। मेरी खुली आँखें, घबराहट मेरी नींद के किनारे पर चुभ रही थी, ये बिल्ली है या कोई इंसान, मैने ताला लगाया की नहीं ये मैं सोचने लगी। शायद से लगाया था,या नहीं?
मेरी धड़कनों में दहशत समा गई। मैंने ध्यान दिया, अपनि बेचैनी की धड़कन पर काबू पाने की कोशिश करते हुए, क्या हो रहा है समझने की कोशिश की। क्या वह... खरोंच थी?
मेरे कंबल पर नाजुक छूने की आहट हुई,लेकिन हल्की सी खरोच की कंबल पर हुई अब वो तेज थी। डर में मेरा गला दब गया था। मैने एक साँस में कंबल को फेंक दिया, कमरे के काले अँधेरे में एक आकृति दिखाई दी। एक आदमी, बड़ी डरावनी सी मुस्कान लिए खड़ा था। दहशत में मुझसे कुछ ना सुझा, मैं क्या करु चिल्लाऊं की नहीं, या कुछ करु भी, जल्दबाज़ी में अपने बिस्तर के पास रखा फोन गिर गया।
फिर अचानक मुझे खामोशी महसूस हुई। मैं बैठी हुई थी। कम्बल मेरे शरीर से लिपटा हुआ था। कमरे में अभी भी अंधेरा था लेकिन वो शख्स गायब था। नीचे बालों की पिन गिरी हुई थी। मैं भागते हुए दरवाजे पर गई, वो बंद था।।डरते हुए धीरे धीरे बाहर आई, बाहर के दरवाजे पर ताला लगा था। सांस लेकर में कमरे में आई। सुबह के 3बजे थे, धड़कने अभी भी बढ़ रही थी। डर अभी अभी मन में था।
मुझसे ये सहना कठिन हो रहा था। अचानक मेरी आंखों से आंसू निकल गए।
"आरव,क्यों छोड़ के गए मुझे?" मुंह से शब्द निकालर रोने लगी। आरव अगर होता तो उसे डरने की कभी जरूरत नहीं थी। लेकिन उसी की वजह से वो ऐसे नहीं जी सकती थी।
उसने तभी अपने माँ-पिता जिस कमरे में थे वो खटखटाया। उसे बुरा लग रहा की उसे उसकी बूढ़े माँ-बाप को जगाना पड़ रहा है। लेकिन उसकी बहन भी उसके शहर चली गई थी। वो अकेली थी, उसकी नींद डरवाने सपने ने खत्म कर दी थी।
अगली सुबह।
मैं सुबह कॉलेज गया, श्वेता को श्रद्धा के यह छोड़ कर। पूरे वक्त कॉलेज में वहां से निकलने की सोचने लगा। जैसे ही क्लास खत्म हुए, मुझे विमल का फोन आया।
विमल:"क्या कर रहा था तू?.."
वो आगे कुछ बोलता तब तक
मैं:"मैं कॉलेज में था।"
विमल:"अच्छा, आगे से मेरा फोन काटने की जुर्रत मत करना।"
मैंने हा कह दिया।
विमल:"तुम जल्दी यहां आ जाओ, आरव के घर पर।"
उसके कहते ही मैं निकल गया। मुझे थोड़ा डर था कि क्या हो गया?कही फिरसे घर पर कोई आया था? विद्या को तो कुछ नहीं हुआ?
विद्या के ठीक सामने विमल बैठा हुआ था। उसके पीछे विद्या के माता पिता थे। विद्या ने उन्हें इशारा करके अंदर जाने को कहा। विमल और विद्या दोनों अकेले हॉल में बैठे थे।
विमल:"विद्या, तुम्हे क्या लगता है? वो शुभम की बात में सच है, की वो आरव को जानता होगा।"
विद्या:"अगर आरव इतना करीब होता, तो मुझे आरव जरूर बताता।"
विमल:"हा, या फिर उसके अपने कोई कारण रहे होंगे तुम्हे ना बताने के। वैसे उसकी कहीं बात सच निकली, उस अड्डे पर अभी भी ड्रग्स वगैर चालू है। मुझे कानूनी तौर पर तो अभी भी इजाजत नहीं मिली, लेकिन ये तो तय है कि उस दिन जो कुछ भी हुआ, वो एक धोखा था, साजिश थी हमारे खिलाफ। शायद हम दोनों को कोई मारना चाहता था।"
विमल की बात करते वक्त विद्या ने अपना चेहरा दूसरी और मोड लिया। फिर कुछ देर शांत रहकर बोली।
विद्या:"अब आरव नहीं रहा। और तुम क्या कर सकते हो। पूरा डिपार्टमेंट कुछ करने के काबिल नहीं है। और मैं क्या कर सकती हु? मैं तो खुद को बचाने के काबिल भी नहीं हु।"
विमल:"इसीलिए तो मैं चाहता हु, की तुम्हे पुलिस सुरक्षा मिले। और बाकी बात तुम्हारी सच है, शायद आरव होता तो मैं कुछ कर पाता लेकिन मैं कोशिश तो कर सकता हु सिर्फ आरव के लिए।"
विद्या:"ठीक है, मैं देखती हु,अन्वी संस्थान के अंदर से की क्या बात है। वैसे संस्थान बहुत से काम करती है, लेकिन हा ये जानकारी के बारे में चेतन सर को जरूर पता होगा, निर्देशक को अपनी संस्था के बारे में पता ना होना मुश्किल होता है।"
विमल:"चेतन ही ये करवा रहा होगा,क्या पता?"
विद्या:"हा या फिर दूसरे निर्देशकोने ये बात उनसे छिपाई हो।"
विमल:"अच्छा लेकिन ऐसी चीजें छुपाना मुश्किल है, लेकिन हमे सभी पर नजर रखनी होगी, तुम चेतन पर रख सकती हो। बाकी कौन है मैं देखता हु।"
तभी मैं वहा आ गया। विमल ने दरवाजा खोला।
अंदर आते ही विमल बोल पड़ा।
विमल:",शुभम, मुझे तुम्हारे मामा पर शक है? तुम्हे मेरे लिए उन पर नजर रखनी होगी, अगर तुमने बचाने की कोशिश की तो तुम्हे कोई नहीं बचाएगा।"
उसका मेरे साथ बात करते वक्त स्वर देख विद्या थोड़ी चौक गई। आगे विमल कुछ बोलता तभी उसे किसीका फोन आया।
विमल:"बाद में.." उसने फिर कुछ सुनकर हमारी तरफ देखा और बाहर बात करने चला गया।
विद्या सोफे पर बैठी थी और मैं खड़ा उसे देख रहा था। तभी वो बोली:"ऐसे क्या घूर रहे हो, बैठो।"
मैं चुपचाप उसके सामने बैठा। हल्के से उसे देखने की कोशिश कर रहा था। मुझे उसे देखने की हिम्मत नहीं हो रही थी। मैं उसके लिए एक दोस्त भी नहीं था।लेकिन मेरे लिए वो जिंदगी थी। ये बात मैं उसे कभी शायद बता भी पाऊंगा कि नहीं ये मैं सोचने लगा। तभी वो बोली।
विद्या:"तुम आरव को कितना जानते थे?"
मैं:" मुझे तो लगता है कि मैं उसे ठीक ठाक जानता हु। बाकी क्या बताए?"
विद्या:"अच्छा।" उसकी आंखों में शायद जलन थी। मैं उसकी जलन तो पहचान सकता था। लेकिन इसमें कौनसी जलने की बात? क्या उसे लगता है कि वो मुझे यानी आरव को नहीं पहचानती? वो ऐसा कैसे सोच सकती है?
में:"वैसे मैं उन्हें आपके इतना तो नहीं जानता ?"
विद्या ने मेरी बात पर झूठी मुस्कान दे दी।
विद्या:"अच्छा, लगता है तुम बहुत अच्छे दोस्त थे आरव के।"
मैं:"दोस्ती कहना मुश्किल है, मुझे उनके बारे सिवाय इस बात के कि वो इस शहर से गुनहगार खत्म करना चाहते थे कुछ ज्यादा नहीं पता।"
विद्या बस हल्की सी आंखे उपर कर मुस्कुराई।
विद्या:"शायद।"
मैं खुदंको विद्या को इस हालत में देख रोक नहीं पाया:"मैंने इन सब में आपको घसीट कर गलती कर दी,आपको मैं इस दलदल में नहीं डालना चाहता था, मैं खुदको शायद इस बात के लिए कभी माफ नहीं करूंगा।"
विद्या मेरी बात समझ नहीं पाई, वो मेरी तरफ देखने लगी।
विद्या:"आरव मेरा पति था, अगर मैं उसके लिए नहीं कुछ करूंगी तो कौन करेगा? और तुम्हे क्या हक है बताने का?"
मैं चुप रह गया, तभी बाहर से विमल आया।विमल चिंता में था,विद्या ने उसे पूछा।
विमल:"मुझे जल्दी पुलिस स्टेशन जाना पडेगा।"
................
कल रात एक सुनसान जगह पर, सिगरेट का धुआं चारों और फैला हुआ था। पंधरा बीस लोग वहां जमा थे। बीचोबीच एक जवान लड़का खड़ा सिगरेट पी रहा था। उसके सामने दो लड़किया खड़ी थी जिसे उसने उठाके के लाया था।
वो लड़का बोला:"तो श्रद्धा, ले ली शिकायत वापस, मैने पहले ही कहा था, चुपचाप उस वक्त मेरे पास आ जाती तो ये सब नहीं होता।"
श्रद्धा:"अब तो मेरे पिताजी को छोड़ दो समर।"
समर:"अरे नहीं रे! ये कैसे कर सकता हु? और क्यों ही करूंगा अब तो किसी चीज का डर नहीं। अब तो एक नहीं दो दो लड़किया चखेगा ये समर।"
श्वेता ने उसकी बात सुनते ही अपनी मुट्ठी कस ली लेंकिन बात ये थी कि श्वेता और श्रद्धा अब डर चुकी थी। उनके मुंह से अब कुछ नहीं निकल रहा था। सामने दो मर्दों के पकड़े हुए श्रद्धा के पिता गिड़गिड़ा रहे थे कि उन दोनों को छोड़ दे। समर को बस इस बात का मजा आ रहा था।
समर:"बुड्ढे साले, ये बात पहले सोचनी चाहिए थीं। मैं किसका बेटा हु ये ध्यान में रखना चाहिए। किसी पुलिस अफसर ने हिम्मत की होगी, तुम्हे बचाने की लेकिन वो भी कब तक बचा लेता, मेरा बाप यहां की पुलिस संभालता है, वो मुझे कुछ नहीं होने देंगे।"
श्रद्धा रोते हुए :"प्लीज मेरे पिताजी की छोड़ दो।"
तभी समर को फोन आया। :"हैलो पापा!"
कमिश्नर सिन्हा:"बेटा उन्हें छोड़ दो।" उसकी आवाज दबी दबी आ रही थी।
समर:"आप क्या कह रहे है?"
क. सिन्हा डरी हुई आवाज:"बेटा उन्हें छोड़ दे बेटा।मेरी जान के खातिर उसे छोड़ दे।"
समर एकदम डर गया। बाकी सब इन सब से अनजान समर को एकदम इस तरह देख समझ नहीं पाए।
समर:"क्या हुआ? आप ऐसे क्यों बात कर रहे है।"
फोन पर :"कुत्ते के पिल्ले, अपने बाप को जिंदा चाहता है तो जो भी तेरे पास है उनसे दूर हो जा।"
समर डर गया उन सब से दूर होकर।
समर:"हरामजादे, मेरे पापा को कुछ हुआ तो तुझे जिंदा नहीं छोडूंगा, तू जानता नहीं है मुझे?"
फोन पर:"अच्छा, कौन है तू? उस कमिश्नर का बेटा, जो कमिश्नर मेरे सामने अपने जान की भीख मांग रहा है।"
समर के मुंह से शब्द निकलने बंद हो गए:"मेरे पापा को तू छोड़ दे, वरना तू..तू याद रख। " वो बस इतना बोलता रहा।
फोन पर:"हराम के पिल्ले अगर उन मासूम लड़कियों को कुछ हुआ ना तो तेरे बाप की लाश तक तुझे नसीब नहीं होगी, इसलिए उन सबको छोड़ दे और बोल तेरे बाप ने बोला है? कुछ तो पुण्य लगने दे इस हरामजादे को?और मेरा काम होने पर तेरा बाप सूत समेत घर वापस आएगा।"
समरने हकलाते हुए कुछ बोलना चाहा लेकिन उसके मुंह से शब्द नहीं निकले। तभी उसके कानो में उसके पिता की चीख सुनाई दी।
फोन पर:"सुना, जल्दी कर उन्हें जल्दी भेज दे।तेरे पिता को शायद ये बात पसन्द ना आए। और उनके बारे में ये अफवा मत फैलाना कि उन्हें किसीने अगवा किया है, बिचारे बुरा मान जायेंगे कि इतने बड़े इंसान के बारे झूठी खबर फैलाई गई है।"
समर जल्दी से श्रद्धा के पास आया।
श्रद्धा जो रो रही थी:"प्लीज मेरे पिता को छोड़ दो।"
समर:"ठीक है।" सभी लोग उसके तरफ देखने लगे। श्वेता और श्रद्धा अब खुदकी जान के लिए डर गई।
समर:"तुम दोनों भी जा सकती हो, जल्दी।"
उसके साथी समर की बात समझ ना पाए। क्या हुआ है उसे।
समर चिल्लाते हुए:"मेरे पिता का कह रहे की तुम दोनों को छोड़ दिया जाए।"
......
"लगता है, संस्कारों के साथ साथ उसे दिमाग भी नहीं है।" सिन्हा
नीचे बंधा हुआ था, और उसके सामने अंधेरे में चेहरा ढककर मैं खड़ा था।
सिन्हा:"कौन हो तुम? ये सब क्यों कर रहे हो।"
मैं:"साहब, यहां सवाल सिर्फ मैं करूंगा। और आपको सिर्फ जवाब देने का हक है।"
.....लाइक और अपने विचार रखो,इसमें थोड़ा हॉरर ट्राई करने की कोशिश की, जमा की नहीं बता देना।
Thank you Bhai,Bahut hi shandar update he Anatole Bro,
Aarav ne sidha commissioner ko hi utha liya.................
Thriller badhta hi ja raha he..........
Keep rocking Bro
कहानी जबर्दस्त थ्रिलर बनती जा रही है
आरव (अब शुभम्) ने सही तरीका अपनाया.... बेटे से लड़ने की बजाय सीधे कमिश्नर बाप को ही उठा लिया....
श्रद्धा और उससे भी ज्यादा श्वेता की परेशानी हल हो गयी
अभी विद्या के करीब पहुंचने में समय लगेगा
Badiya :![]()
Lovely aarav ko Vidya ki security Deni chahiye aur un dono ke bich dosti honi chahiye fir pyar![]()
नया भाग आ गया है।Bahut hi shandar update he Anatole Bro,
Aarav ne sidha commissioner ko hi utha liya.................
Thriller badhta hi ja raha he..........
Keep rocking Bro