"चाची, अब आप भी नंगी हो जाओ ना प्लीज़." वे मुस्कराकर खड़ी हो गई और साड़ी उतारने लगी. "एक शर्त पर लल्ला. चुपचाप बैठना और मैं कहूँ वैसा करना. और अपने लंड को बिलकुल हाथ नहीं लगाना. नहीं तो मुठ्ठ मारने लगोगे मेरा माल देखकर."
साड़ी और पेटीकोट निकलते ही मेरा और तन्नाने लगा. क्यों की अब उनकी गोरी कदलीस्तंभ जैसी मोटी जांघें नंगी थी. बस एक काली पेन्टी उनके गुप्तांग को छिपाये थी. चोली निकालकर जब उन्हों ने फेंकी तो मैंने बड़ी मुश्किल से अपना हाथ लंड पर जाने से रोका. सिर्फ़ ब्रेसियर और पेन्टी में लिपटी अर्धनग्न चाची तो गजब ढा रही थी. उनका शरीर बड़ा मांसल था, थोड़ा और माँस होता तो मोटापा कहलाता पर अभी तो वह जवानी का माल था.
थोड़ी देर माया चाची ने मुझे तंग किया. इधर उधर घूमी, कमरे में चली, सामान बटोरा और टाइम पास किया; सिर्फ़ मुझे अपने अर्धनंगे रूप से और उत्तेजित करने को. आखिर मैं उठकर उनके सामने घुटने टेक कर बैठ गया और उनकी पेन्टी में मुंह छुपा दिया. उस मादक खुशबू को लेते हुए मैंने उनसे मुझे और तंग न करने की मिन्नत की. मेरी हालत देखकर हंसते हुए उन्हों ने इजाजत दे दी. "ठीक है लल्ला, लो तुम ही उतारो बाकी के कपड़े."
मैंने खड़े होकर काँपते हाथों से चाची की ब्रा के हुक खोले और उसे उतारकर नीचे डाल दिया. ब्रेसियर से छूटते ही उनके भारी मांसल स्तन स्तन थोड़े लटक कर डोलने लगे. मैंने उन्हें हाथों में लेकर झुक कर बारी बारी से चूमना शुरू कर दिया. "थोड़े लटक गये हैं राजा, दस साल पहले देखते तो कडक सेब थे." "मेरे लिये तो ये स्वर्ग के रसीले फ़ल हैं चाची. काश इनमें दूध होता तो मैं पी डालता."
"दूध भी आ जायेगा बेटे, बस तू ऐसा ही मेरी सेवा करता रह." सुनकर उनकी बात के पीछे का मतलब समझ कर मुझे रोमांच हुआ पर मैं चुप रहा. गोरे उरोजों के बीच लटका काला मंगल सूत्र बड़ा प्यारा लग रहा था. किसी शादीशुदा औरत की वह निशानी हमारे उस कामसंबंध को और नाजायज और मसालेदार बना रही थी. मेरी नजर देख कर चाची ने पूछा. "उतार दूँ बेटे मंगल सूत्र?" मैंने कहा. "नहीं चाची, बहुत प्यारा लगता है तुम्हारे स्तनों के बीच."
फ़िर मैंने जल्दी से चाची की चड्डी उतारी. उनकी फ़ूली बुर और गोल मटोल गोरे नितंब मेरे सामने थे. मैं झट से नीचे बैठ गया और पीछे से अपना चेहरा चाची के नितंबों में छुपा दिया. फ़िर उन्हें चूमने लगा. हाथ चाची के कूल्हों के इर्द गिर्द लपेट कर उनकी बुर सहलायी और बुर की लकीर में उंगली चलाई. बुर चू रही थी.
मेरे नितंब चूमने की क्रिया पर चाची ने मीठा ताना मारा. "लगता है चूतड़ों का पुजारी है तू लल्ला, संभल कर रहना पड़ेगा मुझे." मैं कुछ न बोला पर उन गोरे गुदाज चूतड़ों ने मुझे पागल कर दिया था. बस यही आशा थी कि अगले कुछ दिनों में शायद चाची मेहरबान हो जाएँ और मुझे अपने नितंबों का भोग लेने दें तो क्या बात है.
फ़िलहाल उन्हों ने मेरे बाल पकडकर मेरा सिर उठाया और घूम कर मेरे सामने खड़ी हो गई. मेरे सिर को फ़िर अपने पेट पर दबाते हुई बोली. "प्यार करना हो तो आगे से करो लल्ला, रस मिलेगा. पीछे क्या रखा है?" मैंने उनकी रेशमी झांटों में मुंह छुपाया और रगड़ने लगा. उन्हों ने सिसकी ली और जांघें फ़ैलाकर टाँगे पसारकर वे खड़ी हो गई.
मैं उनके सामने ऐसा घुटने टेक कर बैठा था जैसे देवी मां के आगे पुजारी. प्रसाद पाने का मौका अच्छा था इसलिये मैं आगे सरककर मुंह उनकी जांघों के बीच डालकर चूत चूसने लगा. ऐसा रस बह रहा था जैसे नल टपक रहा हो. मैंने ऊपर से नीचे तक बुर चाट चाट कर और योनिद्वार चूस कर चाची की ऐसी सेवा की कि वे निहाल होकर कुछ ही देर में स्खलित हो गई. दो चार चम्मच और चिपचिपा पानी मेरे मुंह में उनकी चूत ने फेंका.
"चलो अब पलंग पर चलो लल्ला, वहाँ ठीक से चूसो. तेरी जीभ तो जादू कर देती है मुझ पर" कहकर चाची मुझे उठाकर खींचती हुई पलंग पर पहुंची और टाँगे फ़ैलाकर लेट गई. इस बार चाची ने मुझे सिखाया कि चुत को ज्यादा से ज्यादा सुख कैसे दिया जाता है.
"लल्ला, मेरी बुर को ठीक से देखो, क्या दिखता है." उन्हों ने मेरे बालों में उँगलियाँ फ़ेरते हुए कहा. मैंने जवाब दिया. "चाची, दो मोटे मुलायम होंठ जैसे हैं, और उनके बीच में गीला लाल छेद है. खुल बंद हो रहा है और रस टपक रहा है." "हाँ बेटे, वे होंठ यानि भगोष्ठ हैं, मेरे निचले मुंह के होंठ, और बोल क्या दिखता है." मैंने आगे कहा. "ऊपर भगोष्ठ जहाँ जुड़े हैं वहाँ एक बड़ा लाल अनार का दाना जैसा है और उसके नीचे एक जरा सा छेद."
"अब आया असली बात पर तू लल्ला. वह छेद मेरा मूतने का है. और वह दाना मेरा क्लिटोरिस है, मदन मणि, वही तो सारे फ़साद की जड है. इतना मीठा कसकता है, चुदासी वहीं से पैदा होती है. उसे चाटो लल्ला, चूमो, प्यार करो, मैं निहाल हो जाऊँगी."
मैंने अपनी जीभ को उस दाने पर फ़ेरा तो वह थिरकने लगा. जरा और रगड़ा तो चाची ने चिहुक कर मेरा सिर कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और धक्के मारने लगी. मैंने खेल खेल में उसके मूतने के छेद पर जीभ लगायी तो वह मानों पागल सी हो गई. क्लिट को मैने थोड़ा और रगड़ा और चाची सिसक कर झड़ गई. अगले आधे घंटे तक मैंने उनकी खूब चूत चूसी और मदन मणि को चाट चाट कर के चाची को दो बार और झड़ाया.
थोड़ा शांत होने पर उनका ध्यान मेरे उफ़नते लंड पर गया. उसे हाथ में लेकर वे बेलन जैसे बेलने लगी तो मेरे मुंह से उफ़ निकल गयी. ऐसा लगता था कि झड़ जाऊंगा. "अरे राजा, जरा सब्र करना सीखो. ऐसे झड़ोगे तो दिन भर रास लीला कैसे होगी? चलो, अभी चूस देती हूँ, पर फ़िर दो तीन घंटे सब्र करना. मैं नहीं चाहती कि तू दिन में तीन चार बार से ज्यादा झड़ें"
"चाची, चोदने दो ना! चूस शाम को लेना" मैंने व्याकुल होकर कहा. "नहीं राजा, तू ही सोच, अगर अभी चोद लिया तो फ़िर बाद में मेरी चूत चूस पायेगा? अब तो तू चूत चूसने में माहिर हो गया है. मुझे भी घंटों तुझसे अपनी बुर रानी की सेवा करानी है." उन्हों ने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा. मैं निरुत्तर हो गया क्योंकी बात सच थी. चाची की बुर में झड़ने के बाद उसे चूसने में क्या मजा आता? सारा स्वाद बदल जाता.
चाची ने आगे कहा. "इसलिये दिन भर मुझे चोदना नहीं. रात को सोते समय चोदा कर. जब थोड़ा संभल जायेगा तो दिन में बिना झड़ें चोद लिया कर. जब न रहा जाये तो मैं चूस दिया करूंगी." कहते हुए चाची ने मुझे पलंग पर बिठाया. खुद नीचे उतर कर मेरे सामने जमीन पर पलथी मारकर बैठ गयी और मेरी गोद में सिर झुकाकर मेरा लंड चूसने लगी. बहुत देर बड़े प्यार से सता सता कर, मीठी छुरी से हलाल कर उन्हों ने मेरा चूसा और आखिर मुझे झड़ाकर अपना इनाम मेरे वीर्य के रूप में वसूल कर लिया.
अगली कामक्रीडा के पहले हम सुस्ता रहे थे तब माया चाची फ़िर खेल खेल में मेरा मुरझाया लंड स्केल से नापने लगी. "बस ढाई इंच है अभी, कितना प्यारा लगता है ऐसे में भी, बच्चे जैसा." मैंने चाची से कहा. "माया चाची, मेरा लंड तो नाप रही हैं, अपनी चूत भी तो नाप कर दिखाइये."
मेरी चुनौती को स्वीकर करके चाची उठकर दराज से एक मोमबत्ती निकाल लाई. करीब एक इंच मोटी और फ़ुट भर लम्बी उस मोमबत्ती को हाथ में लेकर वे पलंग पर टाँगे ऊपर करके बैठ गई और मेरी ओर देखते हुए मुस्कराकर मोमबत्ती अपनी चूत में घुसेड दी. आधी से ज्यादा मोमबत्ती अंदर समा गयी. जब मोमबत्ती का अंदर जाना रुक गया तो उंगली से उसे वहाँ पकडकर उन्हों ने बाहर खींच लिया और बोली. "ले नाप लल्ला"
मैंने नापा तो नौ इंच थी. "देखा लल्ला, कितनी गहरी है, अरे मैं तो तुझे अंदर ले लूँ, तेरे लंड की क्या बात है." शैतानी से वे बोली. मैंने कहा. "चाचीजी, लगता है रोज नापती हो तभी तो पलंग के पास दराज में रखी है." वे हंस कर बोली. "हाँ नापती भी हूँ और मुठ्ठ भी मारती हूँ. है जरा पतली है पर मस्त कड़ी और चिकनी है. बहुत मजा आता है. देखेगा?"
और मेरे जवाब की प्रतीक्षा न करके उन्हों ने फ़िर मोमबत्ती अंदर घुसेड ली और उसका सिरा पकडकर अंदर बाहर करने लगी. "लल्ला देख ठीक से मेरे अंगूठे को." वे बोली. मैंने देखा कि मोमबत्ती अंदर बाहर करते हुए वे अंगूठा अपने क्लिटोरिस पर जमा कर उसे दबा और रगड रही हैं. लगता था बहुत प्रैक्टिस थी क्योंकी पाँच ही मिनिट में उनका शरीर तन सा गया और आँखें चमकने लगी. उनका शरीर थोड़ा सिहरा और वे झड़ गई. हांफते हुए कुछ देर मजा लेने के बाद उन्हों ने सावधानी से खींच कर मोमबत्ती बाहर निकाली. बोली. "तुझे दिखा रही थी इसलिये जल्दी की, नहीं तो आधा आधा घंटा आराम से मजा लेती हूँ."
मोमबत्ती पर चिपचिपा पानी लगा था. मुझसे न रहा गया और उनके हाथ से लेकर मैंने उसे चाट लिया. प्यार से चाची हंसने लगी. मोमबत्ती वापस दराज में रखकर बोली. "चूत रस के बड़े शौकीन हो लल्ला. मैं तो यही मानती हूँ कि सचमुच के मतवाले मर्द की यह पहचान है. आ जाओ मेरे पास, तुझे और रस पिलाऊँ."
अपनी जांघों में मेरा मुंह लेकर वे लेट गई और प्यार से अपनी चूत चुसवायी. मैंने मन लगाकर प्यार से बहुत देर उनकी बुर के पानी का स्वाद लिया. इस बार मैंने उनके क्लिट पर खूब ध्यान दिया और उसे बार बार जीभ से रगड़ा. कई बार मुंह में लेकर अंगूर के दाने जैसा दांतों से हल्के काटा और चूसा. उनकी उत्तेजना का यह हाल था कि बार बार हल्के स्वर में चीख देती थी. आखिर दो चार बार झड़कर वे भी तृप्त हो गई.
मेरा लंड उनकी बुर चूस कर फ़िर खड़ा हो गया था. उसकी ओर देखकर बोली. "अगर न झड़ने का वादा करते हो लल्ला तो चोद लो दस मिनिट." मैं तैयार हो गया और उन पर चढ कर उन्हें चोदने लगा.
दस मिनिट बाद जब उन्हों ने देखा कि मैं बराबर अपने स्खलन पर काबू किये हुए हूँ तो वे बोली. "शाबाश बेटे, चल तुझे दूसरा आसान दिखाती हूँ. इसमें तुझे कुछ नहीं करना पड़ेगा." मुझे उन्हों ने नीचे लिटाया और फ़िर मेरे ऊपर चढ कर बैठ गई. मेरा लंड अपनी बुर में घुसेड लिया और मेरी कमर के दोनों ओर घुटने टेक कर मेरे पेट पर बैठकर उचकते हुए मुझे चोदने लगी.
उनके उछलते हुए स्तनों और उनके बीच डोलते मंगलसूत्र ने ऐसा जादू किया कि मेरा बुरी तरह तन्ना कर खड़ा हो गया. उनकी मखमली चूत ने भी मुझे कस कर पकड रखा था इसलिये चाची को भी मजा आ रहा था. मस्ती में वे खुद ही अपने मम्मे दबाने लगी. मैंने इस नजारे का खूब मजा लिया और बाद में उन्हें आराम देने के लिये खुद ही उनके स्तन पकडकर दबाने लगा.
चाची ने दो तीन बार झड़ने तक मुझे खूब चोदा. आखिर में जब मैं छटपटाने लगा तो वे समझ गई. तुरंत उतर कर मेरे ऊपर सिक्सटी नाइन के पोज़ में लेट गई. यहाँ मैं उनकी रिसती गीली बुर को चूसने लगा और वहाँ उन्हों ने पहले मेरे पूरे लंड को चाट चाट कर उसपर लगा अपनी बुर का पानी साफ़ किया और फ़िर लंड मुंह में लेकर चूस डाला. वीर्य निकालकर उसे पी कर ही वे रुकी.
मैंने उन्हें बाँहों में लेकर कहा. "चाची, मुझे तो आपका रस अमृत जैसा लगता है. आप को खुद की चूत का पानी चाटना अटपटा नहीं लगता." वे बोली. "नहीं रे, बहुत अच्छा लगता है, मैं तो अक्सर उंगलियों से मुठ्ठ मारती हूँ और बीच बीच में उन्हें चाट भी लेती हूँ. सच में कभी कभी ऐसा लगता है कि मेरे जैसे ही कोई गरम जवान औरत मिल जाये तो एक दूसरे की चूत चूसने में बड़ा मजा आयेगा."
चाची के इस मादक चुदैल स्वभाव की मैंने मन ही मन दाद दी. यह भी मनाया कि उनकी यह इच्छा जल्दी पूरी हो. दोपहर हो गयी थी और हम दोनों अब सो गये. सीधा शाम को पाँच बजे उठे.
हमारा अब यही क्रम बन गया. दोपहर और रात को मन भर कर मैथुन करते थे. चाची मुझे सिर्फ़ रात को सोने के पहले आखिरी चुदाई में अपनी चूत में झड़ने देती थी. दिन में दो या तीन बार चूस लेती थी. मैंने भी लंड पर कंट्रोल करके बिना झड़ें घंटों चोदना सीख लिया. बड़ा मजा आता था. चुदाई के इतने आसन हमने आजमाये कि कोई गिनती नहीं. खड़े खड़े, गोद में बिठाकर, पीछे से इत्यादि.
उनमें चार आसन हमें बहुत पसंद आते थे. एक तो सीधा सादा मर्द ऊपर औरत नीचे वाली चुदाई का आसन. दूसरा जिसमें मैं नीचे लेटता था और चाची चढ कर मुझे चोदती थी. तीसरा यह कि मैं कुर्सी में बैठ जाता था और चाची मेरी ओर मुंह करके मेरी गोद में अपनी चूत में मेरा लंड लेकर टाँगे फ़ैला कर बैठ जाती थी और फ़िर ऊपर से मुझे हौले हौले मजा लेकर चोदती थी. इस आसन की खास बात यह थी कि चाची की छातियाँ ठीक मेरे सामने रहती थी और उन्हें मैं मन भर कर चूस सकता था. जब भी निप्पल चूसने का मन हो, हम यही आसन करते थे.
