हल्की चाँदनी थी इसलिये काफ़ी साफ़ सब दिख रहा था. लंड के तंबू को छुपाने के लिये मैं करवट बदल कर पीठ चाची की ओर करके लेट गया तो हंस कर उन्हों ने मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे फ़िर अपनी ओर मोड़ा. "शरमाओ मत लल्ला, क्या बात है, ऐसे क्यों बिचक रहे हो?"
मुझे अपनी ओर खींचते हुए उनका हाथ मेरे लंड को लगा और वे हंसने लगी. "यह बात है, सचमुच बड़ा हो गया है मेरा प्यारा भतीजा. पर यह क्यों हुआ रे, किसी गर्लफ्रेंड की याद आ रही है?" कह कर उन्हों ने सीधा पाजामे के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड लिया और सहलाने लगी.
अब तो मेरा और रुकना मुश्किल था. मैं सरक कर उनकी ओर खिसका और उनके शरीर पर अपनी बांह डालकर चिपट गया जैसे बच्चा मां से चिपटता है. उनके सीने में मुंह छुपाकर मैं बोला. "चाची क्यों तरसाती हैं मुझे? आप को मालूम है कि आपके रूप को देखकर शाम से मेरा क्या हाल है."
चाची ने मेरा मुंह ऊपर किया और जोर से मुझे चूम लिया. "तो मेरा भी हाल कुछ अच्छा नहीं है लल्ला. तेरे इस प्यारे जवान शरीर को देखकर मेरा क्या हाल है, मैं ही जानती हूँ."
कुछ भी बातें करने का अब कोई मतलब नहीं था. हम दोनों ही बुरी तरह से कामातुर थे. एक दूसरे को लिपट कर जोर जोर से एक दूसरे के होंठ चूमने लगे. चाची के उन रसीले होंठों के चुंबन ने कुछ ही देर में मुझे चरम सुख की कगार पर लाकर रख दिया. उनका आँचल अब ढल गया था और चोली में से उबल कर बाहर निकल रहे वे उरोज मेरी छाती से भिड़ें हुए थे. मेरा उत्तेजित शिश्न कपड़ों के ऊपर से ही उनकी जांघों को धक्के मार रहा था.
मेरे मुंह से एक सिसकारी निकली और चाची ने चुंबन तोड. कर मेरे लंड को टटोला और फ़िर मुझे चित लिटा दिया. "लल्ला अब तुम्हारी खैर नहीं, मुझे ही कुछ उपाय करना होगा." कहकर वे मेरे बाजू में बैठ गई और पाजामे के बटन खोल कर मेरे जांघिये की स्लिट में से उन्हों ने मेरा उछलता लंड बाहर निकाल लिया.
चाँदनी में मेरा तन्नाया लंड और उसका सूजा लाल सुपाड़ा देख कर उनके मुंह से भी एक सिसकारी निकल गयी. उसे हाथ में लेकर पुचकारते हुए वे बोली. "हाय कितना प्यारा है, मैं तो निहाल हो गयी मेरे राजा."
और झुक कर उन्हों ने मेरा सुपाड़ा मुंह में ले लिया और चूसने लगी. उनकी जीभ के स्पर्श से मैं ऐसा तड़पा जैसे बिजली छू गयी हो. झुकी हुई चाची की चोली में से उनके मम्मे लटक कर रसीले फलों जैसे मुझे लुभा रहे थे. इतने में चाची ने आवेश में आकर अपना मुंह और खोला और मेरा पूरा लंड जड तक निगल लिया जैसे गन्ना हो.
"चाची, यह क्या कर रही हैं? मैं झड़ जाऊंगा आप के मुंह में" कहकर मैंने उनका मुंह हटाने की कोशिश की तो उन्हों ने हल्के से अपने दांतों से मेरे लंड को काट कर मुझे सावधान किया और आँख मार दी. उनकी नजर में गजब की वासना थी. फ़िर मुंह से मेरे लंड को जकड़कर उसपर जीभ फ़िराती हुई वे जोर जोर से मेरा लोडा चूसने लगी.
दो ही मिनिट में मैंने मचल कर उनके सिर को पकड लिया और कसमसा कर झड़ गया. मुझे लग रहा था कि वे अब मुंह में से लंड निकाल लेंगी पर वे तो ऐसे चूसने लगी जैसे गन्ने का रस निकाल रही हों. पूरा वीर्य निगल कर ही उन्हों ने मुझे छोड़ा.
मैं चित पड़ा हांफता हुआ इस स्वर्गिक स्खलन का मजा ले रहा था. मुंह पोंछती हुई चाची फ़िर मुझ से लिपट गयी और मेरे गालों और होंठों को बेतहाशा चूमने लगी. "लल्ला, तुम तो एकदम कामदेव हो मेरे लिये, मैं तो धन्य हो गयी तेरा प्रसाद पाकर" "आप को गंदा नहीं लगा चाची?" "अरे बेटे तू नहीं समझेगा, यह तो एकदम गाढ़ी मलाई है मेरे लिये. अब तू देखता जा, इन दो महीनों में तेरी कितनी मलाई निकालती हूँ देख."
मुझे बेतहाशा चूमते हुए वे फ़िर बोली. "तुम बड़े पोंगा पंडित निकले लल्ला. शाम से तुझे रिझा रही हूँ पर तू तो शरमा ही रहा था छोकरियों की तरह." मैंने उनके गाल को चूम कर कहा. "नहीं चाची, मैं तो कब का आपका गुलाम हो गया था. बस डर लगता था कि चाचाजी को पता चल गया क्या सोचेंगे."
वे मुझे प्यार से चपत मार कर बोली. "तो इसलिये तू दबा दबा था इतनी देर. मूरख कही का, उन्हें सब मालूम है." मेरे आश्चर्य पर वे हंसने लगी.
"ठीक कह रही हूँ अनुराग. मैं कब से भूखी हूँ. तेरे चाचाजी भले आदमी हैं पर अलग किस्म के हैं. उन्हें जरा भी मेरे शरीर में दिलचस्पी नहीं है. इतने दिन मैंने सब्र किया, ऐसे भले आदमी को मैं धोखा नहीं देना चाहती थी. परपुरुष की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा. पर पिछले महीने मैं इनसे खूब झगड़ी. आखिर जिंदगी ऐसे कैसे कटेगी. वे भी जानते और समझते हैं. बोले, अच्छा जवान लड़का घर में ही है, उसे बुला लिया कर जब मन चाहे. तू उसके साथ कुछ भी कर, मुझे बुरा नहीं लगेगा. इसलिये तो तीन माह से वे तुझे चिठ्ठी लिखकर आने का आग्रह कर रहे हैं. और तू है कि इतने दिनों में आया है."
मेरे मन का बोझ उतर गया. मेरा रास्ता साफ़ था. मैंने चाची से पूछा कि आखिर क्यों राजेशचाचा को उन जैसी सुंदर स्त्री से भी लगाव नहीं हैं. वे हंस कर टाल गई. मुझे चूमते हुए बोली कि बाद में समय आने पर बताएंगी.
और देर न करके मैंने कस कर चाची को बाँहों में भर लिया. उनकी वासना अब तक चौगुनी हो गयी थी. झट से अपने ब्लाउज़ के सामने वाले बटन उन्हों ने खोल दिये और उनके मोटे मोटे स्तन उछल कर बाहर आ गये. स्तनों की निप्पल एकदम तन कर अंगूर जैसी खड़ी थी. उन्हों ने झुक कर एक स्तन मेरे मुंह में दे दिया और मुझ पर चढ कर मेरे ऊपर लेट गई. मुझे बाँहों में भींच कर अपनी टांगों में मेरी कमर जकड़कर वे ऊपर से धक्के लगाने लगी मानों काम क्रीडा कर रही हों.
उनका तना मूंगफली जैसा निप्पल मुंह में पाकर मुझे ऐसी खुशी हुई जैसी एक बच्चे को मां का निप्पल चूसते हुए होती है. मैंने भी अपनी बाँहें उनके इर्द गिर्द भींच लीं और निप्पल चूसता हुआ उनकी चिकनी पीठ और कमर पर हाथ फ़ेरने लगा. फ़िर उनके नितंब साड़ी के ऊपर से ही दबाने लगा. वे ऐसी बिचकी कि जैसे बिच्छू ने डंक मारा हो. मेरे चेहरे को उन्हों ने छाती पर और कसकर भींच लिया और आधा स्तन मेरे मुंह में ठूंस दिया.
उसे चूसता हुआ मैं अब सोचने लगा कि चाची को चोदने मिले तो क्या आनंद आये. दस ही मिनिट में मेरा जवान लंड फ़िर ऐसा खड़ा हो गया था जैसे कभी बैठा ही न हो. किसी तरह निप्पल मुंह में से निकाल कर चाची से बोला. "माया चाची, कपड़े निकाल दीजिये ना, आपका यह बदन देखने को मैं मरा जा रहा हूँ." वे बोली. "नहीं लल्ला, कुछ भी हो, हम छत पर हैं, पूरा नंगा होने में कम से कम आज की रात सावधानी करना ठीक है. कल से देखेंगे और दोपहर को तो घर में हम अकेले हैं ही"