𝕯𝖊𝖛𝖎𝖑 𝖐𝖎𝖓𝖌👑
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बहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया"तो चाची, प्लीज़ चोदने दीजिये ना, मैं पागल हो जाऊंगा नहीं तो." वे इतरा कर अपने उरोज मेरे गालों पर रगड़ती हुई बोली. "इतनी जल्दी क्या है राजा, और मजा नहीं करोगे? बहुत उतावले हो लल्ला तुम, सब्र करना सीखो. तभी स्वर्ग का आनंद पाओगे" कहते हुए उन्हों ने अपना दूसरा स्तन मेरे मुंह में दे दिया. मैं उनका निप्पल चूसने में जुट गया. हमारी सूखी चुदाई फ़िर शुरू हो गयी. मैं नीचे से और वे ऊपर से ऐसे धक्के लगा रहे थी जैसे रति कर रही हों पर बीच में अभी भी कपड़े थे. दस बीस मिनिट मस्ती में गुजर गये. उन्हें भोगने को अब मैं बेताब था.
आखिर मेरी उत्तेजना देखकर उन्हों ने मेरे कान में फ़ुसफ़ुसा कर कहा. "अनुराग बेटे, मेरे साथ उनसठ का खेल खेलोगे?" मैं पहले समझा नहीं फ़िर एकदम दिमाग में बात आ गयी कि चाची सिक्सटी नाइन की बात कर रही हैं. मेरा रोम रोम सिहर उठा. मानों उन्हों ने मेरे मन की बात कह दी थी. किताबों में पढ़ा और चित्र देखे थे पर अब यह मतवाली रसीली चाची खुद ही यह करने को मुझे कह रही थी.
असल में कल से जब से मुझे उनकी गोरी गोरी बुर के दर्शन हुए थे, उस मुलायम बुर को चोदने को तो मैं आतुर था ही, पर उसके भी पहले मेरे मन में यही बात आयी थी कि अगर इस रसीली चूत में मुंह मारने मिले तो क्या बात है. चाची के मुंह से मेरे मन की बात सुन कर मैं चहक उठा. मेरे लंड में आये अचानक उछाल से वे समझ गई कि उनका भतीजा भी उनके रस का प्यासा है.
मेरे मुंह से अपना निप्पल खींच कर वे उलटी तरफ़ से मेरे सामने लेट गई. "तो सिक्सटी नाइन करेगा मेरे साथ मेरा राजा. मैं तो समझती थी कि तुझे शायद अच्छा न लगे." मैंने उत्सुक स्वर में कहा "क्या बात करती हो चाचीजी. मैं तो मरा जा रहा हूँ इस अमृत के लिये. शाम से मुंह में पानी भरा है."
अपनी साड़ी ऊपर कर के खिलखिलाते हुए उन्हों ने अपनी एक टांग उठायी और मेरे सिर को अपनी जांघों में खींचते हुए बोली. "तो आ जाओ लल्ला, इतना रस पिलाऊँगी कि तृप्त हो जाओगे" उनकी साड़ी अब कमर के ऊपर थी और मोटी मांसल जांघें एकदम नंगी थी. उनकी निचली जांघ को मैं तकिया बनाकर लेट गया और उंगलियों से उनकी रेशमी झांटें बाजू में कर के उस खजाने को देखने लगा.
धुंधली चाँदनी में बहुत साफ़ तो नहीं दिख रहा था पर फ़िर भी उस लाल चूत की झलक से मैं ऐसा मस्त हुआ कि सीधा उस निचले मुंह का चुंबन ले लिया. पास से उसकी मादक खुशबू ने मुझे पागल सा कर दिया. जीभ निकालकर मैं चाची की बुर चाटने लगा. वह बिलकुल गीली थी. गाढ़ा चिपचिपा शहद जैसा रस उसमें से टपक रहा था. उस कसैले खटमिठ्ठे स्वाद से विभोर होकर मै बेतहाशा चाची की चूत चाटने और चूसने लगा.
चाची सांस रोककर देख रही थी कि मैं क्या करता हूँ. मेरे इस अधीरता से चूत चाटना शुरू करने पर वे मस्ती से कराह उठीं. "हाय लल्ला, तू तो जादूगर है, जरा भी सिखाना नहीं पड़ा. बस ऐसा कर कि बीच बीच में जीभ भी डाल दिया कर अंदर." और फ़िर उन्हों ने मेरे लंड पर ताव मारना शुरू कर दिया. पहले उसे खूब चूमा, चाटा और फ़िर मुंह में लेकर चूसने लगी.
आधे घंटे तक हम एक दूसरे के गुप्तांग को चूसने का मजा लेते रहे. चाची तो पाँच मिनिट में ही झड़ गयी थी. उनकी झड़ती चूत ने मुझे खूब पानी चखाया. बाद में वे दो बार और स्खलित हुई. बीच में मैंने उनके कहने पर उनकी मखमली चूत में जीभ भी डाल दी और अंदर बाहर कर के उसे जीभ से ही चोदा. चाची ने मुझे खूब देर टँगाया आखिर असहनीय कामना से जब मैं धक्के लगाकर उनके मुंह को चोदने लगा तभी उन्हों ने जोर से चूसकर मुझे स्खलित किया.
हम दोनों बिलकुल तृप्त हो गये थे पर फ़िर भी नींद से कोसों दूर थे. पेशाब लगी थी इसलिये हमने उठ कर वहीं छत पर बाजू में बनी नाली में मूता. चाची ने भी बेझिझक मेरे सामने ही बैठकर पेशाब की. उनकी बुर से निकलती मूत्र की तेज रुपहली धार देखकर मेरे मन में एक अजीब रोमांच हो उठा.
वापस बिस्तर पर आकर हम एक दूसरे से चिपट गये और चूमा चाटी करते रहे. चाची मुझसे अब गंदी गंदी बातें करने लगी. मुझे उत्तेजित करने का यह तरीका था. मैंने भी उनसे पूछा कि उनके जैसी गरमागरम नारी ने अपने ऊपर इतने साल कैसे संयम रखा. वे हंसने लगी. "कौन कहता है मैंने संयम रखा? खूब मजा लिया मैंने."
मैंने कहा. "चाची आप तो कह रही थी कि किसी से आपने संबंध नहीं रखे" मेरे लंड को मुठ्ठी में लेकर दबाती हुई वे बोली. "अरे संबंध नहीं रखे तो और भी रास्ते हैं. तू खुद को ही देख . आज तक तूने किसी स्त्री से संबंध नहीं किया ना? पर मजा लेता है कि नहीं?" मैं समझ गया कि हस्तमैथुन की बात हो रही है. मेरी उत्तेजना महसूस करके चाची हंसने लगी. "चल, तुझे भी कभी दिखाऊँगी औरतें क्या करती हैं खुद के साथ. हमेशा याद रखेगा. अरे गाँव की लड़कियां तो माहिर होती हैं इस कला में."
मुझे चाची के स्तन दबाने का बहुत मन हो रहा था. जब उनसे कहा तो वे मेरी ओर पीठ करके लेट गई. पीछे से उनसे चिपट कर मैंने उनके मम्मे दबाने शुरू कर दिये. बड़ा मजा आया. खास कर उनके कड़े निप्पल मेरे हथेलियों में चुभते तो बड़ा अच्छा लगता. स्तन मर्दन करते हुए मैं पीछे से उनके नितंबों के बीच के गहरी लकीर में लंड जमा कर रगड़ने लगा. उन मांसल चूतड़ों के घर्षण से जल्द ही मेरा फ़िर से तन्ना कर खड़ा हो गया.
"अब तो चोदने दो चाची" मैं मचल उठा. वे इतरा कर बोली. "ठीक है लल्ला, आ जाओ मैदान में, पर देख, मैं कहे देती हूँ, इतने दिनों बाद चुदवाने का मौका मिला है. मन भर कर चुदवाऊँगी. घंटे भर तक मेहनत करना पड़ेगी बिना झड़ें. नहीं तो कट्टी. बोलो है मंजूर?" मैंने मान लिया, जबकि मन में लग रहा था कि ऐसी मादक नारी को बिना झड़ें चोदना तो असंभव है.
चाची साड़ी ऊपर करके चित लेट गई. मेरा तकिया उन्हों ने अपने चूतड़ों के नीचे रख कर अपनी कमर ऊंची कर ली और टाँगे फ़ैला कर तैयार हो गई. उस खुली रिसती बुर को देखकर मुझे नहीं रहा गया और फ़िर मैं झुक कर उसे चूसने लगा. चाची ने मना नहीं किया बल्कि प्यार से चुसवाती रही. "मेरे प्यारे लल्ला, लगता है अपनी चाची की चूत बहुत भा गयी है तुझे. चूस बेटे चूस, मन भर कर चूस, तेरे ही लिये है मेरा सब रस."
एक बार उन्हें झड़ा कर मैने फ़िर रस चाटा और आखिर वासना सहन न होने से उठ बैठा. उनकी टांगों के बीच बैठकर अपना सुपाड़ा उनके योनिद्वार पर रखा और जोर से पेल दिया. चाची की बुर काफ़ी टाइट थी फ़िर भी इतनी गीली थी कि एक ही बार में पूरा लंड जड तक चाची की चूत में उतर गया. चाची सुख से सिसक उठीं. "शाबाश मेरे शेर, अब आया मजा. चोद अब मन लगा कर, चढ जा मुझपर, ढीली कर दे मेरी कमर धक्के मार मार कर, तुझे मेरी कसम लल्ला."
मैं सपासप चाची को चोदने लगा. इतना सुख कभी नहीं मिला था. अपनी पहली चुदाई और वह भी ऐसी मस्त औरत के साथ, मैं तो निहाल हो गया.
उस रात मैंने सच में एक घंटा नहीं तो फ़िर भी चालीस-एक मिनिट माया चाची को चोदा. एक तो दो बार झड़ने से अब मेरे लंड का संयम बढ गया था, दूसरे माया चाची ने भी बार बार दुहाई देकर और धमका कर मुझे झड़ने नहीं दिया. जब भी उन्हें लगता कि मैं स्खलित होने वाला हूँ, वे कस कर अपनी टांगों में मेरी कमर पकड कर और मुझे बाँहों में भर कर स्थिर कर देती. लंड का मचलना कम होने पर ही छोड़तीं.
चोदते हुए मैंने उन्हें खूब चूमा. कई बार जोर से धक्के लगाता हुआ मैं उनके रसीले होंठों को अपने दांतों में दबाकर चूसता रहता, यहाँ तक कि उनकी सांस रुक सी जाती. बीच बीच में झुक कर उनके निप्पल मुंह में लेकर चूसता हुआ उन्हें हचक हचक कर चोदता, यह सब कलाएं मैंने ब्लू फ़िल्मो में देखी थी इसलिये काम आई. चाची ने बीच में झड़ कर तृप्ति से हांफते हुए कहा भी कि लगता नहीं कि यह मेरी पहली चुदाई है पर मैंने उनकी कसम देकर उनको विश्वास दिलाया.
आखिर जब मैं थक कर चूर हो गया तो चाची से गिड़गिड़ा कर स्खलित होने की इजाजत मांगी. तीन चार बार झड़ कर भी उनकी चुदासी पूरी मिटी नहीं थी पर मेरी दशा देखकर तरस खा कर बोली. "ठीक है लल्ला, आज छोड. देती हूँ, पर कल देख तेरा क्या हाल करती हूँ."
वह आखिरी पाँच मिनिट की चुदाई बहुत जोरदार थी. चाची ने भी मुझे खूब उकसाया. "चोद राजा चोद अपनी चाची को, तोड. दे मेरी कमर, फ़ाड दे मेरी चूत, और चोद लल्ला, मार धक्का, हचक के मार." मेरे शक्तिशाली धक्कों से खाट भी चरमराने लगी. लगता था कि टूट न जाये, आस पास वाले सुन न लें पर अब तो मुझ पर भूत सवार था. उधर चाची भी मेरा साथ देते हुए नीचे से चूतड उछाल उछाल कर चुदवा रही थी. उनकी चूड़ियाँ हमारे धक्कों से हिल डुलकर बड़े मीठे अंदाज में खनक रही थी. उस आवाज से मैं पूरा मदहोश हो गया था. इसलिये मैं ऐसा झड़ा कि मेरे मुंह से चीख निकल जाती अगर चाची ने मेरा मुंह अपने होंठों में पहले ही दबा कर न रखा होता.
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उस अपूर्व कामतृप्ति के बाद मैं ऐसा सोया कि सुबह सूरज सिर पर आ जाने पर ही नींद खुली. चाची पहले ही उठ कर नीचे चली गयी थी. जब मुझे जगाने चाय लेकर आई तो नहा भी चुकी थी. शायद मंदिर भी हो आई थी क्यों की सिंदूर में थोड़ा गुलाल लगा था.
सादी नीली साड़ी में लिपटी उस रूपवती नारी को देखकर मैं फ़िर उनसे लिपटकर चुंबन मांगने ही वाला था कि उन्हों ने उंगली मुंह पर लगाकर मना कर दिया. मैं समझ गया कि अब दिन निकल आया है और छत पर ऐसा करना ठीक नहीं. मैं चाय पी रहा था तब चाची ने सामने बैठ कर मुस्कराते हुए पूछा. "तो कैसे कटी रात मेरे प्यारे लल्ला की?"
मैं दबे स्वरों में उनकी आँखों में देखता हुआ कृतज्ञता से बोला. "माया चाची, आपने तो मुझे स्वर्ग पहुंचा दिया. मैं तो आपका गुलाम हो गया, अब आप जो कहेंगी, वही करूंगा." वे प्यार से हंसने लगी. "ठीक है लल्ला, गुलाम ही बना कर रखूंगी तुझे. देख तुझे क्या क्या नजारे दिखाती हूँ. अब नीचे चलो और नहा लो."
मैं नहाकर तैयार हुआ. दोपहर तक बस टाइम पास किया क्यों की घर में काम करने वाली नौकरानी आ गयी थी और वह खाना बनने तक और हमारा खाना होकर बर्तन माँजने तक रुकी थी. आखिर एक बजे वह गयी और चाची ने दरवाजा अंदर से लगा लिया. मैं तो तैयार था ही, बल्कि सुबह से उनके उस मतवाले शरीर के लिये प्यासा था. तुरंत उनसे चिपक गया.
हम वहीं सोफ़े पर बैठ कर एक दूसरे के चुंबन लेने लगे. "लल्ला, ऐसे नहीं, चुंबन का असली मजा लेने को जीभ का प्रयोग जरूरी है." कहते हुए चाची ने अपनी जीभ से मेरे होंठों को खोला और उसे मेरे मुंह के अंदर डाल दिया. मैं उस रसीली जीभ को चूसने लगा और उस मीठे मुखरस का खूब मजा उठाया. जीभ से जीभ भी लड़ाई गयी और मैंने भी अपनी जीभ चाची के मुंह में डाल कर उनके दाँत, मसूड़े, तालू इत्यादि को खूब चाटा.
चूमाचाटी के बाद चाची मुझे ऊपर अपने कमरे में ले गई. अब तक मेरा लोडा तन्ना कर उठ खड़ा हुआ था. चाची ने दरवाजा बंद करके मेरे पास आकर मेरा हाथ पकडकर कहा. "लल्ला, कल तुम मुझे नंगी देखना चाहते थे ना, चलो आज तुम्हें दिखाती हूँ जन्नत का नजारा. पर पहले तुम अपने सब कपड़े उतारो.
मैं तुरंत नग्न हो गया. थोड़ी शरम अब भी लग रही थी पर जब मैंने चाची की नजर की चमक देखी तो शरम पूरी तरह जाती रही. मेरे भरे पूरे नग्न किशोर जवान शरीर को देखकर वे बोली. "बड़ा प्यारा है मेरा गुलाम, ऐसा सबको थोड़े ही मिलता है. भरपूर गुलामी करवाऊँगी तुझसे लल्ला." मेरे तन कर खड़े लंड को देख कर वे चहक पड़ीं. "बहुत मस्त है लल्ला तेरा सोंटा. चल इसे नापते हैं, कितना लम्बा है."
मुझे पलंग पर बिठा कर वे एक स्केल ले आई और मेरा लंड नापा. छह इंच का निकला. "बड़ा मजबूत है राजा, कितना गोरा भी है, और ये सुपाड़ा तो देख, लगता है जैसे लाल टमाटर हो, और ये नसें, हाय लल्ला, मैं वारी जाऊँ तुझ पर. साल भर में अपनी चाची को चोद चोद कर आठ इंच का न हो जाये तो कहना" कहकर वे उससे खेलने लगी.
goodचाचाजी के बार बार आग्रह भरे खत आने से आखिर मैंने यह गर्मी की छुट्टी अपने गाँव वाले घर में बिताने का फ़ैसला किया. मैं जब गाँव पहुंचा तो चाचाजी बहुत खुश हुए. चाची को पुकारते हुए बोले. "लो, अनुराग आ गया तुम्हारा साथ देने को. अनुराग बेटे, अब मैं निश्चिंत मन से दौरे पर जा सकता हूँ नहीं तो महीना भर अकेले रह कर तुम्हारी चाची बोर हो जाती."
माया चाची मुस्कराती हुई मेरी ओर देखकर बोली. "हाँ लल्ला, बहुत अच्छा किया जो आ गये. वैसे मैंने अपनी भांजी को भी चिठ्ठी लिखी है, शायद वो भी आ जाये अगले हफ़्ते. तेरे आने का पक्का नहीं था ना इसलिये"
चाचाजी सामान अपनी बैग में भरते हुए बोले. "चलो, दो से तीन भले. मैं तो चला. भाग्यवान संभाल कर रहना. वैसे अब अनुराग है तो मुझे कोई चिंता नहीं. अनुराग बेटे चाची का पूरा खयाल रखना, उसकी हर जरूरत पूरी करना, अब महीने भर घर को और चाची को तेरे सहारे ही छोड. कर जा रहा हूँ" चाचाजी ने बैग उठायी और दौरे पर निकल गये.
मेरे राजेशचाचा बड़े हेंडसम आदमी थे. गठीला स्वस्थ बदन और गेंहुआ रंग. मेरे पिताजी के छोटे भाई थे और गाँव के बड़े पुश्तैनी घर में रहते थे. वहीं रहकर एक अच्छी कंपनी के लिये आस पास के शहरों में मार्केटिंग की नौकरी करते थे इसलिये अक्सर बाहर रहते थे. गाँव के घर में चाची के सिवाय और कोई नहीं था. पाँच साल पहले बत्तीस की आयु में शादी की थी, वह भी घर वालों की जिद पर, नहीं तो शादी करने का उनका कभी इरादा नहीं था.
माया चाची उनसे सात आठ साल छोटी थी. वे शादी में सिर्फ़ पच्चीस छब्बीस साल की होंगी. उन्हें अब तक कोई संतान नहीं हुई थी. घर वालों को इसमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ था क्योंकी चाचाजी को पहले से ही शादी मे दिलचस्पी नहीं थी. मुझे तो लगता है कि उन्हों ने कभी माया चाची का चुंबन भी नहीं लिया होगा, संभोग तो दूर की बात रही.
मैं चाचाजी की शादी में छोटा था. तब शादी के जोड़े में लिपटी वह कमसिन सुंदर चाची मुझे बहुत भा गयी थी. उसके बाद इन पाँच सालों में मैं उन्हें बस एक बार दो दिन के लिये मिला था. गाँव आने का मौका भी नहीं मिला. आज उन्हें फ़िर देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा. सच बात तो यह है कि बहुत संयम बरतने पर भी न मान कर मेरा लंड खड़ा होने लगा.
मुझे बड़ा अटपटा लगा क्योंकी चाचाजी की मैं इज्जत करता था. उनकी जवान पत्नी की ओर मेरे ऐसे विचार मन में आने से मुझे शर्म सी लगी. पर एक तो मेरा अठारह साल का जोश, दूसरे माया चाची का भरपूर जोबन. वे अब तीस इकतीस साल की भरी पूरी परिपक्व जवान महिला थी और घूँघट लिये हुए सादी साड़ी में भी उनका रूप छुपाये नहीं छुप रहा था.
वे बड़ा सा सिंदूर लगायी हुई थी और बिना लिपस्टिक के भी उनके कोमल उभरे होंठ लाल लाल गुलाब की पंखुड़ियों से लग रहे थे. साड़ी उनके बदन में लिपटी हुई थी, फ़िर भी उसमें से भी उनके वक्ष का उभार नहीं छुपता था. हरी चूड़ियाँ पहने उनकी गोरी बाँहें देख कर सहसा मेरे मन में विचार आ गया कि चाची का बदन नग्न कैसा दिखेगा? अपने इस कामुक मन पर मैंने फ़िर अपने आप को कोस डाला.
मेरी नजर शायद उन्हों ने पहचान ली थी क्योंकी मेरी ओर देखकर चाची बड़ी शरारती नजर से देख कर बोली. "कितने जवान हो गये हो लल्ला, इतना सा देखा था तुझे. शादी कर डालो अब, गाँव के हिसाब से तो अब तक तुम्हारी बहू आ जाना चाहिये."
उनके बोलने के और मेरी ओर देखने के अंदाज से मैं एक बात तुरंत समझ गया. माया चाची बड़ी "चालू" चीज़ थी. कम से कम मेरे साथ तो बहुत इतरा रही थी. मैं थोड़ा शरमा कर इधर उधर देखने लगा.
हम अब अकेले थे इसलिये वे घूँघट छोड. कर अपने कपड़े ठीक करते हुए मुझसे गप्पे लगाने लगी. उनके बाल भी बड़े लंबे खूबसूरत थे जिसका उन्हों ने जुड़ा बांध रखा था. "चाय बना कर लाती हूँ लल्ला." कहकर वे चली गई. अब साड़ी उनकी कमर से हट गयी थी और उस गोरी चिकनी कमर को देखकर और उनके नितंब डुलाकर चलने के अंदाज से ही मेरा लंड और कस कर खड़ा हो गया.
वे शायद इस बात को जानती थी क्योंकी जान बूझ कर अंदर से पुकार कर बोली. "यहीं रसोई में आ जाओ लल्ला. हाथ मुंह भी धो लो" मेरा ऐसा कस कर खड़ा था कि मैं उठ कर खड़ा होने का भी साहस नहीं कर सकता था, चल कर उनके सामने जाने की तो दूर रही. "बाद में धो लूँगा चाची, नहा ही लूँगा, चाय आप यहीं ले आइये ना प्लीज़."
वे चाय ले कर आई. मेरी ओर देखने का अंदाज उनका ऐसा था कि जैसे सब जानती थी कि मेरी क्या हालत है. बातें करते हुए बड़ी सहज रीति से उन्हों ने अपना ढला हुआ आँचल ठीक किया. यह दस सेकंड का काम करने में उन्हें पूरे दो मिनिट लगे और उन दो मिनटों में पाँच छह बार नीचे झुककर उन्हों ने अपनी साड़ी की चुन्नटें ठीक की.
इस सारे कार्य का उद्देश्य सिर्फ़ एक था, अपने स्तनों का उभार दिखा कर मेरा काम तमां करना जिसमें माया चाची शत प्रतिशत सफ़ल रही. उस लाल लो-कट की चोली में उनके उरोज समा नहीं पा रहे थे. जब वे झुकी तो उन गोरे मांसल गोलों के बीच की खाई मुझे ऐसी उत्तेजित कर गई कि अपने हाथों को मैंने बड़ी मुश्किल से अपने लंड पर जाने से रोका नहीं तो हस्तमैथुन के लिये मैं मरा जा रहा था.
मेरा हाल देख कर चाची ने मुझ पर तरस खाया और अपना छिछोरापन रोक कर मेरा कमरा ठीक करने को ऊपर चली गई. मुझे अपना लंड बिठाने का समय देकर कुछ देर बाद बातें करती हुई मुझे कमरे में ले गयी. "शाम हो गयी है अनुराग, तुम नहा लो और नीचे आ जाओ. मैं खाने की तैयारी करती हूँ."
"इतनी जल्दी खाना चाची?" मैंने पूछा. वे मेरी पीठ पर हाथ रख कर बोली. "जल्द खाना और जल्द सोना, गाँव में तो यही होता है लल्ला. तुम भी आदत डाल लो." और बड़े अर्थपूर्ण तरीके से मेरी ओर देखकर वे मुस्कुराने लगी.
मैं हड़बड़ा गया. किसी तरह अपने आप को संभाल कर नहाने जाने लगा तो पीछे से चाची बोली. "जल्दी नहाना अच्छे बच्चों जैसे, कोई शरारत नहीं करना अकेले में" और खिलखिलाती हुई वे सीढ़ियाँ उतर कर रसोई में चली गई. मैं थोड़ा शरमा गया क्योंकी मुझे लगा कि उनका इशारा इस तरफ़ था कि नहाते हुए मैं हस्तमैथुन न करूँ.
चाची के इस खेल से मेरे मन में एक बड़ी हसीन आशा जाग उठी. और वह आशा विश्वास में बदल गयी जब मैं नहा कर रसोई में पहुंचा. अब मैं पूरी तैयारी से आया था. मन मार कर किसी तरह मैंने अपने आप को हस्तमैथुन करने से रोका था. बाद में लंड को खड़ा पेट से सटाकर और जाँघिया पहनकर ऊपर से उसी पर मैंने पाजामे की नाड़ी बांध ली थी और ऊपर से कुर्ता पहन लिया था. अब मैं चाहे जितना मजा ले सकता था, लंड खड़ा भी होता तो किसी को दिखता नहीं.
चाची रसोई की तैयारी कर रही थी. मैं वहीं कुर्सी पर बैठ कर उनसे बातें करने लगा. चाची ने कुछ बैंगन उठाये और हंसिया लेकर उन्हें काटने मेरे सामने जमीन पर बैठ गई. अपनी साड़ी घुटनों के ऊपर कर के एक टांग उन्हों ने नीचे रखी और दूसरी मोड कर हँसिये के पाट पर अपना पाँव रखा. फ़िर वे बैंगन काटने लगी.
उनकी गोरी चिकनी पिंडलियों और खूबसूरत पैरों को मैं देखता हुआ मजा लेने लगा. वे बड़े सहज भाव से सब्जी काट रही थी. अचानक मुझे जैसे शॉक लगा और मेरा लंड ऐसे उछला जैसे झड़ जायेगा. हुआ यह कि चाची ने आराम से बैठने को थोड़ा हिल डुलकर अपनी टाँगे और फैलाई. इस से उनकी गोरी नग्न जांघें तो मुझे दिखी ही, उनके बीच काले घने बालों से आच्छादित उनके गुप्तांग का भी दर्शन हुआ. माया चाची ने साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहना था.
मैं शरमा गया और बहुत उत्तेजना भी हुई. पहले मैने यह समझा कि उन्हें पता नहीं है कि उनका सब खजाना मुझे दिख रहा है इसलिये झेंप कर नजर फ़िरा कर दूसरी ओर देखकर मैं उनसे बातें करने लगा. पर वे कहाँ मुझे छोड़ने वाली थी. दो ही मिनिट में शरारत भरे अंदाज में वे बोली. "चाची क्या इतनी बुरी है लल्ला कि बात करते समय उसकी ओर देखना भी नहीं चाहते?"
मैंने मुड कर उनकी ओर देखा और कहा. "नहीं चाची, आप तो बहुत सुंदर हैं, अप्सरा जैसी, मुझे तो लगता है आप को लगातार देखता रहूँ पर आप बुरा न मान जाएँ इसलिये घूरना नहीं चाहता था."
"तो देखो ना लल्ला. ठीक से देखो. मुझे भी अच्छा लगता है कि तेरे जैसा कोई प्यारा जवान लड़का प्यार से मुझे देखे. और फ़िर तो तू मेरा भतीजा है, घर का ही लड़का है, तेरे तकने को मैं बुरा नहीं मानती" कहकर उस मतवाली नारी ने अपनी टाँगे बड़ी सहजता से और फ़ैला दी और बैंगन काटती रही.
अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. चाची मुझे रिझा रही थी. मैं भी शरम छोड. कर नजर जड़ा कर उनके उस मादक रूप का आनंद लेने लगा. गोरी फ़ूली बुर पर खूब रेशमी काले बाल थे और मोटी बुर के बीच की गहरी लकीर थोड़ी खुल कर उसमें से लाल लाल योनिमुख की भी हल्की झलक दिख रही थी.
पाँच मिनिट के उस काम में चाची ने पंद्रह मिनिट लगाये और मुझसे जान बूझ कर उकसाने वाली बातें की. मेरी गर्लफ़्रेन्ड्स हैं या नहीं, क्यों नहीं हैं, आज के लड़के लड़कियां तो बड़े चालू होते हैं, मेरे जैसा सुंदर जवान लड़का अब तक इतना दबा हुआ क्यों है इत्यादि इत्यादि. मैं समझ गया कि चाची जरूर मुझ पर मेहरबान होंगी, शायद उसी रात मैं खुश भी हुआ और चाचाजी का सोच कर थोड़ी अपराधीपन की भावना भी मन में हुई.
आखिर चाची उठीं और खाना बनाने लगी. मैं बाहर के कमरे में जाकर किताब पढ़ने लगा. अपनी उबलती वासना शांत करने का मुठ्ठ मारने के सिवाय कोई चारा नहीं था इसलिये मन लगाकर जो सामने दिखा, पढ़ता रहा. कुछ समय बाद चाची ने खाने पर बुलाया और हम दोनों ने मिल कर बिलकुल यारों जैसी गप्पें मारते हुए खाना खाया.
खाना समाप्त करके मैं अपने कमरे में जाकर सामान अनपैक करने लगा. सोच रहा था कि चाची कहाँ सोती हैं और आज रात कैसे कटेगी. तभी वे ऊपर आई और मुझे छत पर बुलाया. "अनुराग, यहाँ आ और बिस्तर लगाने में मेरे मदद कर."
मैं छत पर गया. मेरा दिल डूबा जा रहा था. गरमी के दिन थे. साफ़ था कि सब लोग बाहर खुले में सोते थे. ऐसी हालत में क्या बात बननी थी चाची के साथ. छत पर दो खाटें थी. हमने उनपर गद्दियाँ बिछाई. "गरमी में बाहर सोने का मजा ही और है लल्ला" कह कर मुझे चिढ़ाती हुई वे मच्छरदानियाँ लेने चली गई.
वापस आई तो दोनों मच्छरदानियाँ फ़टी निकलीं. माया चाची मेरी नजरों में नजर डाल कर बोली. "मच्छर तो बहुत हैं अनुराग, सोने नहीं देंगे. गरमी इतनी है कि नीचे सोया नहीं जायेगा. ऐसा कर, तू खाटें सरकाकर मिला ले, मैं डबल वाली मच्छादानी ले आती हूँ. तू शरमायेगा तो नहीं मेरे साथ सोने में? वैसे मैं तेरी चाची हूँ, मां जैसी ही समझ ले."
मैं शरमा कर कुछ बुदबुदाया. चाची मंद मंद मुस्कराकर डबल मच्छरदानी लेने चले गई. वापस आई तो हम दोनों उसे बांधने लगे. मैंने साहस करके पूछा. "चाची, आजू बाजू वाले देखेंगे तो नहीं." वे हंस पड़ीं. "इसका मतलब है तूने छत ठीक से नहीं देखी." मैंने गौर किया तो समझ गया. आस पास के घरों से हमारा मकान बहुत ऊंचा था. दीवाल भी अच्छी ऊंची थी. बाहर का कोई भी छत पर नहीं देख सकता था.
तभी चाची ने मीठा ताना मारा. "और लोग देखें भी तो क्या हुआ बेटे. तू तो इतना सयाना बच्चा है, तुरंत सो जायेगा सिमट कर." मैंने मन ही मन कहा कि चाची मौका दो तो दिखाता हूँ कि यह बच्चा तुम्हारे मतवाले शरीर का कैसे रस निकालता है.
आखिर चाची नीचे जाकर ताला लगाकर बत्ती बुझाकर ऊपर आई. मैं तब तक मच्छरदानी खोंस कर अपनी खाट पर लेट गया था. चाची भी दूसरी ओर से अंदर आकर दूसरी खाट पर लेट गई.
पास से चाची के बदन की मादक खुशबू ने फ़िर अपना जादू दिखाया और मेरा मस्त खड़ा हो गया. चाची भी गप्पें मारने के मूड में थी और फ़िर वही गर्लफ़्रेन्ड वाली बातें मुझसे करने लगी. मेरा लंड अब तक अपनी लगाम से छूटकर पाजामे में तंबू बना कर खड़ा हो गया था.
Shandaar update"तो चाची, प्लीज़ चोदने दीजिये ना, मैं पागल हो जाऊंगा नहीं तो." वे इतरा कर अपने उरोज मेरे गालों पर रगड़ती हुई बोली. "इतनी जल्दी क्या है राजा, और मजा नहीं करोगे? बहुत उतावले हो लल्ला तुम, सब्र करना सीखो. तभी स्वर्ग का आनंद पाओगे" कहते हुए उन्हों ने अपना दूसरा स्तन मेरे मुंह में दे दिया. मैं उनका निप्पल चूसने में जुट गया. हमारी सूखी चुदाई फ़िर शुरू हो गयी. मैं नीचे से और वे ऊपर से ऐसे धक्के लगा रहे थी जैसे रति कर रही हों पर बीच में अभी भी कपड़े थे. दस बीस मिनिट मस्ती में गुजर गये. उन्हें भोगने को अब मैं बेताब था.
आखिर मेरी उत्तेजना देखकर उन्हों ने मेरे कान में फ़ुसफ़ुसा कर कहा. "अनुराग बेटे, मेरे साथ उनसठ का खेल खेलोगे?" मैं पहले समझा नहीं फ़िर एकदम दिमाग में बात आ गयी कि चाची सिक्सटी नाइन की बात कर रही हैं. मेरा रोम रोम सिहर उठा. मानों उन्हों ने मेरे मन की बात कह दी थी. किताबों में पढ़ा और चित्र देखे थे पर अब यह मतवाली रसीली चाची खुद ही यह करने को मुझे कह रही थी.
असल में कल से जब से मुझे उनकी गोरी गोरी बुर के दर्शन हुए थे, उस मुलायम बुर को चोदने को तो मैं आतुर था ही, पर उसके भी पहले मेरे मन में यही बात आयी थी कि अगर इस रसीली चूत में मुंह मारने मिले तो क्या बात है. चाची के मुंह से मेरे मन की बात सुन कर मैं चहक उठा. मेरे लंड में आये अचानक उछाल से वे समझ गई कि उनका भतीजा भी उनके रस का प्यासा है.
मेरे मुंह से अपना निप्पल खींच कर वे उलटी तरफ़ से मेरे सामने लेट गई. "तो सिक्सटी नाइन करेगा मेरे साथ मेरा राजा. मैं तो समझती थी कि तुझे शायद अच्छा न लगे." मैंने उत्सुक स्वर में कहा "क्या बात करती हो चाचीजी. मैं तो मरा जा रहा हूँ इस अमृत के लिये. शाम से मुंह में पानी भरा है."
अपनी साड़ी ऊपर कर के खिलखिलाते हुए उन्हों ने अपनी एक टांग उठायी और मेरे सिर को अपनी जांघों में खींचते हुए बोली. "तो आ जाओ लल्ला, इतना रस पिलाऊँगी कि तृप्त हो जाओगे" उनकी साड़ी अब कमर के ऊपर थी और मोटी मांसल जांघें एकदम नंगी थी. उनकी निचली जांघ को मैं तकिया बनाकर लेट गया और उंगलियों से उनकी रेशमी झांटें बाजू में कर के उस खजाने को देखने लगा.
धुंधली चाँदनी में बहुत साफ़ तो नहीं दिख रहा था पर फ़िर भी उस लाल चूत की झलक से मैं ऐसा मस्त हुआ कि सीधा उस निचले मुंह का चुंबन ले लिया. पास से उसकी मादक खुशबू ने मुझे पागल सा कर दिया. जीभ निकालकर मैं चाची की बुर चाटने लगा. वह बिलकुल गीली थी. गाढ़ा चिपचिपा शहद जैसा रस उसमें से टपक रहा था. उस कसैले खटमिठ्ठे स्वाद से विभोर होकर मै बेतहाशा चाची की चूत चाटने और चूसने लगा.
चाची सांस रोककर देख रही थी कि मैं क्या करता हूँ. मेरे इस अधीरता से चूत चाटना शुरू करने पर वे मस्ती से कराह उठीं. "हाय लल्ला, तू तो जादूगर है, जरा भी सिखाना नहीं पड़ा. बस ऐसा कर कि बीच बीच में जीभ भी डाल दिया कर अंदर." और फ़िर उन्हों ने मेरे लंड पर ताव मारना शुरू कर दिया. पहले उसे खूब चूमा, चाटा और फ़िर मुंह में लेकर चूसने लगी.
आधे घंटे तक हम एक दूसरे के गुप्तांग को चूसने का मजा लेते रहे. चाची तो पाँच मिनिट में ही झड़ गयी थी. उनकी झड़ती चूत ने मुझे खूब पानी चखाया. बाद में वे दो बार और स्खलित हुई. बीच में मैंने उनके कहने पर उनकी मखमली चूत में जीभ भी डाल दी और अंदर बाहर कर के उसे जीभ से ही चोदा. चाची ने मुझे खूब देर टँगाया आखिर असहनीय कामना से जब मैं धक्के लगाकर उनके मुंह को चोदने लगा तभी उन्हों ने जोर से चूसकर मुझे स्खलित किया.
हम दोनों बिलकुल तृप्त हो गये थे पर फ़िर भी नींद से कोसों दूर थे. पेशाब लगी थी इसलिये हमने उठ कर वहीं छत पर बाजू में बनी नाली में मूता. चाची ने भी बेझिझक मेरे सामने ही बैठकर पेशाब की. उनकी बुर से निकलती मूत्र की तेज रुपहली धार देखकर मेरे मन में एक अजीब रोमांच हो उठा.
वापस बिस्तर पर आकर हम एक दूसरे से चिपट गये और चूमा चाटी करते रहे. चाची मुझसे अब गंदी गंदी बातें करने लगी. मुझे उत्तेजित करने का यह तरीका था. मैंने भी उनसे पूछा कि उनके जैसी गरमागरम नारी ने अपने ऊपर इतने साल कैसे संयम रखा. वे हंसने लगी. "कौन कहता है मैंने संयम रखा? खूब मजा लिया मैंने."
मैंने कहा. "चाची आप तो कह रही थी कि किसी से आपने संबंध नहीं रखे" मेरे लंड को मुठ्ठी में लेकर दबाती हुई वे बोली. "अरे संबंध नहीं रखे तो और भी रास्ते हैं. तू खुद को ही देख . आज तक तूने किसी स्त्री से संबंध नहीं किया ना? पर मजा लेता है कि नहीं?" मैं समझ गया कि हस्तमैथुन की बात हो रही है. मेरी उत्तेजना महसूस करके चाची हंसने लगी. "चल, तुझे भी कभी दिखाऊँगी औरतें क्या करती हैं खुद के साथ. हमेशा याद रखेगा. अरे गाँव की लड़कियां तो माहिर होती हैं इस कला में."
मुझे चाची के स्तन दबाने का बहुत मन हो रहा था. जब उनसे कहा तो वे मेरी ओर पीठ करके लेट गई. पीछे से उनसे चिपट कर मैंने उनके मम्मे दबाने शुरू कर दिये. बड़ा मजा आया. खास कर उनके कड़े निप्पल मेरे हथेलियों में चुभते तो बड़ा अच्छा लगता. स्तन मर्दन करते हुए मैं पीछे से उनके नितंबों के बीच के गहरी लकीर में लंड जमा कर रगड़ने लगा. उन मांसल चूतड़ों के घर्षण से जल्द ही मेरा फ़िर से तन्ना कर खड़ा हो गया.
"अब तो चोदने दो चाची" मैं मचल उठा. वे इतरा कर बोली. "ठीक है लल्ला, आ जाओ मैदान में, पर देख, मैं कहे देती हूँ, इतने दिनों बाद चुदवाने का मौका मिला है. मन भर कर चुदवाऊँगी. घंटे भर तक मेहनत करना पड़ेगी बिना झड़ें. नहीं तो कट्टी. बोलो है मंजूर?" मैंने मान लिया, जबकि मन में लग रहा था कि ऐसी मादक नारी को बिना झड़ें चोदना तो असंभव है.
चाची साड़ी ऊपर करके चित लेट गई. मेरा तकिया उन्हों ने अपने चूतड़ों के नीचे रख कर अपनी कमर ऊंची कर ली और टाँगे फ़ैला कर तैयार हो गई. उस खुली रिसती बुर को देखकर मुझे नहीं रहा गया और फ़िर मैं झुक कर उसे चूसने लगा. चाची ने मना नहीं किया बल्कि प्यार से चुसवाती रही. "मेरे प्यारे लल्ला, लगता है अपनी चाची की चूत बहुत भा गयी है तुझे. चूस बेटे चूस, मन भर कर चूस, तेरे ही लिये है मेरा सब रस."
एक बार उन्हें झड़ा कर मैने फ़िर रस चाटा और आखिर वासना सहन न होने से उठ बैठा. उनकी टांगों के बीच बैठकर अपना सुपाड़ा उनके योनिद्वार पर रखा और जोर से पेल दिया. चाची की बुर काफ़ी टाइट थी फ़िर भी इतनी गीली थी कि एक ही बार में पूरा लंड जड तक चाची की चूत में उतर गया. चाची सुख से सिसक उठीं. "शाबाश मेरे शेर, अब आया मजा. चोद अब मन लगा कर, चढ जा मुझपर, ढीली कर दे मेरी कमर धक्के मार मार कर, तुझे मेरी कसम लल्ला."
मैं सपासप चाची को चोदने लगा. इतना सुख कभी नहीं मिला था. अपनी पहली चुदाई और वह भी ऐसी मस्त औरत के साथ, मैं तो निहाल हो गया.
उस रात मैंने सच में एक घंटा नहीं तो फ़िर भी चालीस-एक मिनिट माया चाची को चोदा. एक तो दो बार झड़ने से अब मेरे लंड का संयम बढ गया था, दूसरे माया चाची ने भी बार बार दुहाई देकर और धमका कर मुझे झड़ने नहीं दिया. जब भी उन्हें लगता कि मैं स्खलित होने वाला हूँ, वे कस कर अपनी टांगों में मेरी कमर पकड कर और मुझे बाँहों में भर कर स्थिर कर देती. लंड का मचलना कम होने पर ही छोड़तीं.
चोदते हुए मैंने उन्हें खूब चूमा. कई बार जोर से धक्के लगाता हुआ मैं उनके रसीले होंठों को अपने दांतों में दबाकर चूसता रहता, यहाँ तक कि उनकी सांस रुक सी जाती. बीच बीच में झुक कर उनके निप्पल मुंह में लेकर चूसता हुआ उन्हें हचक हचक कर चोदता, यह सब कलाएं मैंने ब्लू फ़िल्मो में देखी थी इसलिये काम आई. चाची ने बीच में झड़ कर तृप्ति से हांफते हुए कहा भी कि लगता नहीं कि यह मेरी पहली चुदाई है पर मैंने उनकी कसम देकर उनको विश्वास दिलाया.
आखिर जब मैं थक कर चूर हो गया तो चाची से गिड़गिड़ा कर स्खलित होने की इजाजत मांगी. तीन चार बार झड़ कर भी उनकी चुदासी पूरी मिटी नहीं थी पर मेरी दशा देखकर तरस खा कर बोली. "ठीक है लल्ला, आज छोड. देती हूँ, पर कल देख तेरा क्या हाल करती हूँ."
वह आखिरी पाँच मिनिट की चुदाई बहुत जोरदार थी. चाची ने भी मुझे खूब उकसाया. "चोद राजा चोद अपनी चाची को, तोड. दे मेरी कमर, फ़ाड दे मेरी चूत, और चोद लल्ला, मार धक्का, हचक के मार." मेरे शक्तिशाली धक्कों से खाट भी चरमराने लगी. लगता था कि टूट न जाये, आस पास वाले सुन न लें पर अब तो मुझ पर भूत सवार था. उधर चाची भी मेरा साथ देते हुए नीचे से चूतड उछाल उछाल कर चुदवा रही थी. उनकी चूड़ियाँ हमारे धक्कों से हिल डुलकर बड़े मीठे अंदाज में खनक रही थी. उस आवाज से मैं पूरा मदहोश हो गया था. इसलिये मैं ऐसा झड़ा कि मेरे मुंह से चीख निकल जाती अगर चाची ने मेरा मुंह अपने होंठों में पहले ही दबा कर न रखा होता.
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उस अपूर्व कामतृप्ति के बाद मैं ऐसा सोया कि सुबह सूरज सिर पर आ जाने पर ही नींद खुली. चाची पहले ही उठ कर नीचे चली गयी थी. जब मुझे जगाने चाय लेकर आई तो नहा भी चुकी थी. शायद मंदिर भी हो आई थी क्यों की सिंदूर में थोड़ा गुलाल लगा था.
सादी नीली साड़ी में लिपटी उस रूपवती नारी को देखकर मैं फ़िर उनसे लिपटकर चुंबन मांगने ही वाला था कि उन्हों ने उंगली मुंह पर लगाकर मना कर दिया. मैं समझ गया कि अब दिन निकल आया है और छत पर ऐसा करना ठीक नहीं. मैं चाय पी रहा था तब चाची ने सामने बैठ कर मुस्कराते हुए पूछा. "तो कैसे कटी रात मेरे प्यारे लल्ला की?"
मैं दबे स्वरों में उनकी आँखों में देखता हुआ कृतज्ञता से बोला. "माया चाची, आपने तो मुझे स्वर्ग पहुंचा दिया. मैं तो आपका गुलाम हो गया, अब आप जो कहेंगी, वही करूंगा." वे प्यार से हंसने लगी. "ठीक है लल्ला, गुलाम ही बना कर रखूंगी तुझे. देख तुझे क्या क्या नजारे दिखाती हूँ. अब नीचे चलो और नहा लो."
मैं नहाकर तैयार हुआ. दोपहर तक बस टाइम पास किया क्यों की घर में काम करने वाली नौकरानी आ गयी थी और वह खाना बनने तक और हमारा खाना होकर बर्तन माँजने तक रुकी थी. आखिर एक बजे वह गयी और चाची ने दरवाजा अंदर से लगा लिया. मैं तो तैयार था ही, बल्कि सुबह से उनके उस मतवाले शरीर के लिये प्यासा था. तुरंत उनसे चिपक गया.
हम वहीं सोफ़े पर बैठ कर एक दूसरे के चुंबन लेने लगे. "लल्ला, ऐसे नहीं, चुंबन का असली मजा लेने को जीभ का प्रयोग जरूरी है." कहते हुए चाची ने अपनी जीभ से मेरे होंठों को खोला और उसे मेरे मुंह के अंदर डाल दिया. मैं उस रसीली जीभ को चूसने लगा और उस मीठे मुखरस का खूब मजा उठाया. जीभ से जीभ भी लड़ाई गयी और मैंने भी अपनी जीभ चाची के मुंह में डाल कर उनके दाँत, मसूड़े, तालू इत्यादि को खूब चाटा.
चूमाचाटी के बाद चाची मुझे ऊपर अपने कमरे में ले गई. अब तक मेरा लोडा तन्ना कर उठ खड़ा हुआ था. चाची ने दरवाजा बंद करके मेरे पास आकर मेरा हाथ पकडकर कहा. "लल्ला, कल तुम मुझे नंगी देखना चाहते थे ना, चलो आज तुम्हें दिखाती हूँ जन्नत का नजारा. पर पहले तुम अपने सब कपड़े उतारो.
मैं तुरंत नग्न हो गया. थोड़ी शरम अब भी लग रही थी पर जब मैंने चाची की नजर की चमक देखी तो शरम पूरी तरह जाती रही. मेरे भरे पूरे नग्न किशोर जवान शरीर को देखकर वे बोली. "बड़ा प्यारा है मेरा गुलाम, ऐसा सबको थोड़े ही मिलता है. भरपूर गुलामी करवाऊँगी तुझसे लल्ला." मेरे तन कर खड़े लंड को देख कर वे चहक पड़ीं. "बहुत मस्त है लल्ला तेरा सोंटा. चल इसे नापते हैं, कितना लम्बा है."
मुझे पलंग पर बिठा कर वे एक स्केल ले आई और मेरा लंड नापा. छह इंच का निकला. "बड़ा मजबूत है राजा, कितना गोरा भी है, और ये सुपाड़ा तो देख, लगता है जैसे लाल टमाटर हो, और ये नसें, हाय लल्ला, मैं वारी जाऊँ तुझ पर. साल भर में अपनी चाची को चोद चोद कर आठ इंच का न हो जाये तो कहना" कहकर वे उससे खेलने लगी.
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