- 79,846
- 117,881
- 354
Chapter - 02
[ Reality & Punishment ]
____________________________
Update - 13
____________________
[ Reality & Punishment ]
____________________________
Update - 13
____________________
निशांत सोलंकी के पेट में दो बार चाक़ू मारा था मेरे पति ने जिसकी वजह से अब तक वो अपने ही खून में नहा चुका था। कमरे में जो टेबल रखा था उसी में वो पीठ टिका कर और अपने पैरों को लम्बा कर के बैठा हुआ था। मेरी तरफ देखते हुए वो अपना एक हाथ उठा कर बार बार कुछ कहने की कोशिश कर रहा था लेकिन मुझे ठीक से कुछ समझ में नहीं आ रहा था। मैं उस सबकी वजह से डर तो रही थी लेकिन मैं जानना चाहती थी कि आख़िर वो कह क्या रहा है? इस लिए हिम्मत कर के थोड़ा और उसकी तरफ बढ़ी।
"ये...सब...क्या था?" निशांत ने अटकते हुए और दर्द से कराहते हुए मुझसे कहा____"कौन हो तुम और विशेष को क्यों मारा तुमने?"
मैं समझ गई थी कि वो उस सबके बारे में मुझसे पूछ रहा था। शायद वो इसके पहले समझने की कोशिश कर रहा था कि अचानक से वो सब क्यों हो गया था? उसके पूछने पर मैंने उसे बताया कि विशेष मेरा पति था और मैंने उसको इस लिए मारा क्योंकि वो उसकी हत्या के इल्ज़ाम में मुझे फंसा देना चाहता था। कहने का मतलब ये कि संक्षेप में मैंने निशांत को सारी बातें बता दी थी। मेरी बातें सुनने के बाद निशांत आश्चर्य से मेरी तरफ देखने लगा था। उसकी साँसें उखड़ रहीं थी। ज़ाहिर था कि उसके जीवन का आख़िरी वक़्त आ चुका था। उसने बड़ी मुश्किल से अटकते हुए मुझसे कहा कि उसने अपने जीवन में अपने फ़ायदे के लिए जाने कितनी ही लड़कियों और औरतों के साथ बुरा किया है, इस लिए अब वो अपने आख़िरी वक़्त में एक अच्छा काम करना चाहता है।
मुझे निशांत की बात समझ नहीं आई थी लेकिन जब उसने मुझसे पिस्तौल मांगते हुए कहा कि मैं उसके फ्लैट से अपने सारे सबूत मिटा कर चली जाऊं तो मैं बुरी तरह चौंक पड़ी थी। एक अंजान ब्यक्ति मुझसे ऐसा कैसे कह सकता था? भला वो ये क्यों चाहता था कि मैं उसके फ़्लैट से अपने सारे सबूत मिटा कर चली जाऊं? जब कुछ देर तक मैं उसकी तरफ हैरानी से देखती ही रही तो उसने अटकते हुए फिर से मुझसे वही सब कहा। मैंने अपने दिलो दिमाग़ को बड़ी मुश्किल से शांत किया और उसे पिस्तौल देने का सोचा ही था कि सहसा मेरे ज़हन में ख़याल आया कि कहीं वो मुझसे पिस्तौल ले कर मुझे गोली ही न मार दे? अपनी इस शंका को जब मैंने उससे ज़ाहिर किया तो उसके होठों पर बड़ी ही फीकी मुस्कान उभरी थी। उसने कहा कि अब ऐसे वक़्त में मुझे गोली मार देने से भला उसे क्या हासिल हो जाएगा? सच तो ये है कि जिसने गुनाह किया था उसे सज़ा मिल चुकी है और जिसने अपने जीवन में सिर्फ और सिर्फ दुःख ही सहे हैं उसे क्यों किसी की हत्या के लिए जेल जाना पड़े?
निशांत की बातें सुन कर मुझे एहसास हुआ कि वो यकीनन सच कह रहा है। यानि वो मुझे सच में चले जाने को कह रहा था और चाहता था कि दो दो लोगों की हत्या का इल्ज़ाम मेरे सिर पर न आए। उसने मुझसे कहा कि मैं अपने दुपट्टे से पिस्तौल पर से अपने निशान मिटाऊं और फिर दुपट्टे से ही पकड़ कर उस पिस्तौल को उसके पास रख दूं। उसके बाद मैं उसके फ्लैट में जहां जहां गई थी और जिस जिस चीज़ को मैंने छुआ था उन सब पर से अपने निशान उसी दुपट्टे से मिटा दूं। यहाँ तक कि अपने निशान मिटाते मिटाते ही मैं उसके फ्लैट से बाहर चली जाऊं।
अपने जीवन में मैंने पहली बार इतना संगीन और इतना ख़तरनाक काम किया था। जीने की चाह तो नहीं थी लेकिन निशांत के कहने पर मज़बूरी में मुझे वो सब करना ही पड़ा। मैंने दुपट्टे से साफ़ कर के पिस्तौल को निशांत के पास रख दिया था जिसे उसने हाथ बढ़ा कर उठा लिया था। पिस्तौल ले कर उसने मेरी तरफ देखा और फिर दरवाज़े के पास पेट के बल मृत पड़े मेरे पति को। कुछ पलों तक मैं उसे देखती रही और जब वो मेरे पति की तरफ अपलक देखता ही रह गया तो मैं समझ गई कि अब उसके अंदर से उसके प्राण निकल चुके हैं।
उसके बाद मैंने हर जगह से अपने निशान मिटाने शुरू कर दिए थे। मैं याद करती जा रही थी कि कहां कहां मैं गई थी और किन किन चीज़ों को मैंने छुआ था? मैंने उस टेबल और उसके सभी खन्धों से भी अपने निशान मिटाए। हालांकि उसी टेबल में निशांत पीठ के बल टिका हुआ था, इस लिए उस पर से अपने निशान मिटाने में मुझे बड़ी सावधानी से काम लेना पड़ा था। उसके बाद मैं दुपट्टे से ही अपने पैरों के निशान मिटाते हुए गैलरी में आई और गैलरी से निशान मिटाते हुए बाहर आ गई। सीढ़ियों के पास पहुंच कर मैं ठहर गई। मैंने इस बात को अच्छी तरह याद रखा था कि मेरे निशान कहीं पर छूटने न पाएं। हालांकि निशान मिटाने के चक्कर में संभव था कि विशेष के निशान भी गैलरी और सीढ़ियों पर से मिट गए होंगे लेकिन निशांत के फ्लैट में बाकी जगहों पर तो उसके निशाने मौजूद ही रहने थे।
निशांत के फ्लैट से मैं पैदल ही अपने घर तक आई थी। अपने घर आ कर मैं सीधा बाथरूम में घुस गई थी। बाथरूम में जा कर नहाई और अपने कपड़ों को धो कर फैला दिया। उसके बाद मैं कमरे में आ कर चुप चाप बेड पर लेट गई थी। बेड पर लेटी तो पीठ पर मुझे कुछ चुभा, मैंने उठ कर देखा। वो मेरा मोबाइल था जो बेड पर ही पड़ा हुआ था। मोबाइल को देख कर मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि अच्छा हुआ कि मैं अपना मोबाइल घर में ही भूल गई थी, वरना अगर वो मेरे साथ ही रहता तो पुलिस को उसकी लोकेशन से पता चल जाता कि मैं निशांत के फ्लैट पर उस वक़्त थी जब निशांत और मेरे पति की हत्या हुई थी। मैंने मन ही मन इसके लिए ऊपर वाले का धन्यवाद दिया। कभी कभी किसी चीज़ की ग़लती या भूल भी हमारे लिए फायदेमंद ही साबित होती है और इसका सबसे बड़ा सबूत मेरा अपना मोबाइल था। अपने पति के साथ जाते वक़्त जल्दी जल्दी में मैं अपना मोबाइल ले जाना भूल गई थी। उसकी डायरी ने मुझे इतना ज्ञान तो दे ही दिया था कि ऐसे मामलों में मोबाइल की क्या अहमियत होती है।
उस रात मैं उसी सब के बारे में सोचती रही थी। मेरी आँखों में नींद का नामो निशान तक नहीं था। इतना कुछ होने के बाद भला मुझे नींद भी कैसे आ सकती थी? दुनियां जहान की बातें मेरे मन में चल रहीं थी। दिल को एक सुकून सा था, हालांकि वो सुकून भी उस दुःख दर्द के आगे बहुत ही छोटा था लेकिन कहीं न कहीं इस बात का एहसास कर के मैं खुद को तसल्ली दे रही थी कि गुनहगार को अपने हाथों से सज़ा दे कर मैंने कोई पाप नहीं किया है। निशांत के कहने पर मैंने भले ही अपने सारे सबूत मिटा दिए थे लेकिन अगर इसके बावजूद पुलिस या कानून मुझे उस सबके लिए दोषी मान कर सज़ा दे देता तो मुझे उसका कोई ग़म नहीं होता।
अब दिल में जीने की कोई हसरत नहीं रह गई थी। रह रह कर आँखों से आंसू बहने लगते और फिर माँ बाबू जी का चेहरा मेरी आँखों के सामने उजागर हो जाता। दिल में एक हूक सी उठती और मेरी अंतरात्मा तक को हिला देती।
रात में जाने कौन से पहर मेरी आँख लग गई थी। दुबारा जब आँखें खुलीं तो दिन चढ़ गया था। पिछली रात की सारी बातों का ख़याल आते ही मैं एकदम से गुमसुम सी हो गई। कुछ देर तक उसी सब के बारे में सोचती रही उसके बाद मैंने सोचा कि पुलिस को देर सवेर उन दोनों की हत्या की ख़बर मिल ही जाएगी और वो किसी न किसी तरह मेरे घर भी पहुंच जाएगी, इस लिए मुझे उसके लिए ख़ुद को तैयार रखना होगा।
सुबह के दस बज रहे थे। मैंने अपने बाबू जी को फ़ोन लगाया और उन्हें बताया कि उनके दामाद पता नहीं कहां चले गए हैं। मैंने उस वक़्त बाबू जी को सच बताना सही नहीं समझा था। मेरे ज़हन में बार बार निशांत की बातें उभर आतीं थी। वो मुझे उन हत्याओं से बचाना चाहता था। मैंने सोचा अगर ऐसा संभव है तो चलो ये भी देख लेती हूं। इतना तो मैं भी समझती थी कि मेरे पति की डायरी अपने आप में ही इस बात का सबसे बड़ा सबूत है कि वो सब क्यों और किसने किया होगा?
जैसा कि मुझे उम्मीद थी, एक घंटे बाद पुलिस मेरे घर आ धमकी थी। उसने मुझे विशेष और निशांत की हत्या के जुर्म में गिरफ़्तार कर लिया था। पुलिस थाने में उनके पूछने पर मैंने बार बार यही कहा कि मैंने किसी की हत्या नहीं की है बल्कि मुझे तो ख़ुद ही उनके द्वारा इस सबका पता चला है।
पता नहीं कौन सा भूत सवार हो गया था मुझ पर कि मैं भी अब वैसा ही करना चाहती थी जैसा मेरा पति मेरे साथ कर रहा था। मुझसे महिला पुलिस ने बड़ी शख़्ती से बार बार पूछा था लेकिन मैंने जुर्म कबूल नहीं किया। यहाँ तक कि मैंने पुलिस को अपने पति की डायरी के बारे में भी नहीं बताया था। असल में मैं चाहती थी कि पुलिस उस डायरी तक ख़ुद ही पहुंचे। पुलिस को लगना चाहिए था कि अगर मुझे किसी चीज़ का पता होता या मेरे मन में ऐसी वैसी कोई बात होती तो मैं ख़ुद ही उनसे उस डायरी का ज़िक्र करती।
पुलिस ने मुझसे नंबर ले कर मेरे बाबू जी को भी फ़ोन कर के इस सबके बारे में सूचित कर दिया था। मेरे बाबू जी मेरे भाई को ले कर दूसरे दिन ही पुलिस थाने पहुंच गए थे। मुझे सलाखों में बंद देख कर मेरे बाबू जी और मेरा छोटा भाई बेहद दुखी हो गए थे। वो बार बार पुलिस वालों से कह रहे थे कि उनकी बेटी ने कुछ नहीं किया है। ख़ैर लम्बी पूछतांछ के बाद मुझे तीसरे दिन अदालत में पेश किया गया। अदालत में दोनों पक्षों के वकील जज के सामने अपनी अपनी तरफ से दलीले देने लगे थे। पब्लिक प्रासीक्यूटर अपनी दलील में यही कह रहा था कि मेरा निशांत के साथ नाजायज़ सम्बन्ध था और जब उसने मुझे ब्लैकमेल करना शुरू किया तो मैंने उसकी ये सोच कर हत्या कर दी कि ऐसे संबंधों की वजह से कहीं मेरी ज़िन्दगी बर्बाद न हो जाए। दूसरी दलील में उसका कहना था कि मैंने अपने पति की हत्या इस लिए की क्योंकि मेरे पति को मेरे और निशांत के सम्बन्धों का पता चल गया था, और जब मुझे उस सबकी वजह से कुछ और ना सूझा तो मैंने अपने पति को भी जान से मार डाला। जबकि मेरा वकील ये कह रहा था कि एक औरत भला दो हट्टे कट्टे मर्द की हत्या एक साथ अलग अलग हथियारों से कैसे कर सकती है? अदालत में फॉरेंसिक रिपोर्ट पेश कर दी गई थी और उस रिपोर्ट में साफ़ लिखा था कि दोनों ब्यक्तियों के जिस्म पर कुछ ही मिनटों के अंतर में घाव हुए थे। विशेष को क्योंकि गोली लगी थी इस लिए वो जल्दी ही मर गया था जबकि निशांत चाक़ू लगने के बावजूद कुछ देर तक ज़िंदा रहा था लेकिन दोनों पर जब वार किया गया था तो उसमें बस कुछ ही समय का अंतर था। चाक़ू पर विशेष के और पिस्तौल पर निशांत की उंगलियों के निशान पाए गए थे। कहने का मतलब ये कि फॉरेंसिक रिपोर्ट के अनुसार भी मुझ पर कोई इल्ज़ाम नहीं लग रहा था।
पुलिस को निशांत के फ्लैट में कहीं पर भी मेरे निशान नहीं मिले थे इस लिए मेरे वकील का पक्ष मजबूत था। सिर्फ शक के आधार पर फ़ैसला नहीं सुनाया जा सकता था। लंच के बाद जब अदालत दुबारा शुरू हुई तो पुलिस ने अदालत के सामने एक ऐसा सबूत पेश किया जिसका मुझे बड़ी शिद्दत से इंतज़ार था और वो सबूत मेरे पति की डायरी थी। जज साहब की अनुमति से मेरे वकील ने उस डायरी को खोला और उसमें जो कुछ लिखा था उसे ऊँची आवाज़ में सबको सुनाना शुरू कर दिया। जब तक वकील उस डायरी को पढ़ता रहा तब तक अदालत में पैना सन्नाटा छाया रहा। यहाँ तक कि मेरा वकील जब उस डायरी को पढ़ कर चुप हुआ तब भी कुछ देर तक सन्नाटा ही छाया रहा। हर कोई डायरी में लिखी इबारत को सुन कर आश्चर्य चकित था।
मेरे पति की डायरी ने अदालत के सामने सब कुछ साफ़ कर दिया था। हालांकि डायरी में लिखी बातों के बाद पब्लिक प्रासीक्यूटर ने फिर से दलील दी कि मुझे किसी तरह अपने पति की डायरी से पता चल गया था कि मेरा पति असल में मेरे साथ क्या करने वाला था इस लिए मैंने उसी के प्लान पर अपना गेम खेल कर उन दोनों की हत्या कर दी। पब्लिक प्रासीक्यूटर अदालत में बस हवा में ही तीर चला रहा था। अपनी बात को साबित करने के लिए उसके पास ना तो कोई गवाह था और ना ही कोई सबूत। पुलिस ने अदालत में मेरे मोबाइल फ़ोन की लोकेशन और उसके कॉल रिकॉर्ड की सूची भी पेश की थी। उसमें ये ज़रूर दर्ज़ था कि मेरे और निशांत के मोबाइल के द्वारा एक दूसरे को सन्देश भेजे जाते रहे थे लेकिन कॉल पर कभी कोई बात नहीं की गई थी। मेरे मोबाइल की लोकेशन भी यही कहती थी कि मैं कभी भी निशांत के फ़्लैट पर नहीं गई थी। ये सारी चीज़ें मेरी बेगुनाही के सबूत थे और इस बात के भी कि सब कुछ मेरे पति के द्वारा ही किया गया था। इस लिए अदालत ने मुझे बेगुनाह मान कर रिहा कर दिया था।
✧✧✧
रूपा के चुप होते ही कमरे में ख़ामोशी छा गई थी। उसकी माँ अभी भी जैसे अपनी बेटी की कहानी में ही खोई हुई थी। तभी कमरे में रूपा का छोटा भाई अभिलाष दाखिल हुआ। वो रूपा से तीन साल छोटा था। कमरे के दरवाज़े पर खड़ा वो चुप चाप अपनी बहन की बातें सुन रहा था। सारी बातें सुनने के बाद वो भी बुरी तरह अचंभित हुआ था और जब रूपा चुप हो गई तो वो कमरे में दाखिल हो कर उन दोनों के पास आ गया था। अपने भाई को देख कर पहले तो रूपा चौंकी लेकिन फिर सामान्य हो गई थी।
"माफ़ करना दीदी।" अभिलाष ने रूपा के सामने खड़े हो कर कहा____"मैंने छुप कर आपकी सारी बातें सुन ली हैं लेकिन मुझे इस बात की ख़ुशी है कि आपने अपने हाथों से ऐसे घटिया आदमी को सज़ा दी जिसने आपके बारे में कभी ज़रा सा भी नहीं सोचा।"
"सुन तो लिया है तुमने।" रूपा की माँ ने अभिलाष से कहा____"लेकिन ये बातें बाहर किसी को कभी भी मत बताना।"
"मैं बच्चा नहीं हूं माँ जो ऐसी बातें सबको बताता फिरुंगा।" अभिलाष ने कहा____"मुझे भी पता है कि ऐसी बातें किसी को भी नहीं बताई जातीं। यहाँ तक कि ऐसी बातें अपने घर में अपने सामने भी नहीं करनी चाहिए। मेरी दीदी ने जो किया वो सही किया है मां। ऐसे इंसान को ऐसी ही सज़ा मिलनी चाहिए थी। उस समय कितना खुश हुआ था मैं कि मेरी दीदी की ज़िन्दगी से दुःख दर्द के दिन अब हट गए हैं। सच तो आज पता चला कि वो सब उस नीच आदमी का एक घिनौना षड़यंत्र था। अच्छा हुआ कि उसके ग़लत कर्मों की सज़ा दीदी के द्वारा मिल गई उसे।"
"चल अब तू जा यहाँ से।" रूपा की माँ ने उससे कहा____"और अपनी दीदी को आराम करने दे।"
"हां जाता हूं मां।" अभिलाष ने कहा____"लेकिन अपनी दीदी से कुछ पूछना चाहता हूं।"
"मुझसे क्या पूछना चाहता है मेरा भाई?" रूपा ने अभिलाष की तरफ देखते हुए फीकी सी मुस्कान के साथ कहा।
"मैंने पढ़ा है कि पुलिस और फॉरेंसिक वाले ऐसे मामलों में बड़ी बारीकी से जांच पड़ताल करते हैं।" अभिलाष ने कहा____"मेरा मतलब है कि वो लोग हर एंगल से देखते हैं कि गोली चलाने वाले ने किस एंगल से गोली चलाई और जिस पर चलाई उस पर किस तरह की प्रतिक्रिया हुई? आपने बताया कि विशेष को आपने कमरे के बाहर से गोली मारी थी जबकि पुलिस को वो पिस्तौल निशांत के हाथ में मिला था और उसने यही माना कि उसी ने विशेष पर गोली चलाई थी। अब सवाल है कि आख़िर ऐसा कैसे हो सकता है कि पुलिस या फॉरेंसिक को असल एंगल का पता ही न चल पाया हो?"
"तू सही कह रहा है भाई।" रूपा ने कहा____"सच जानने के बाद हर आदमी इसी तरह से सोचेगा लेकिन अदालत में रिपोर्ट के अनुसार यही साबित हुआ था कि गोली निशांत ने ही चलाई थी। हालांकि उस रिपोर्ट के बारे में जान कर मैं भी ये सोच कर मन ही मन हैरान हुई थी कि ऐसा कैसे हुआ होगा? क्योंकि असल में तो गोली मैंने ही उस कमीने इंसान को मारी थी। अदालत में पब्लिक प्रासीक्यूटर ने जब पुलिस से एंगल और हाइट के बारे में सवाल किया था तो उसने अपनी तहक़ीकात में निकले निष्कर्ष के अनुसार यही बताया था कि विशेष निशान्त को चाक़ू मारने के बाद पलट कर कमरे से जाने लगा था। उसकी समझ में उसने निशांत का काम तमाम कर दिया था लेकिन निशांत उस वक़्त मरा नहीं था, बल्कि जीवित ही था। अपने क़ातिल को इस तरह जाते देख निशांत ने अपने पीछे ही रखे टेबल के खंधे से पिस्तौल निकाला और विशेष पर पीछे से गोली चला दी। विशेष को शायद इस बात का ज़रा भी इल्म नहीं था कि निशांत के पास पिस्तौल भी हो सकती है और वो उस पिस्तौल से उसको गोली मार देगा। ख़ैर दो दो गोली लगते ही विशेष दरवाज़े के पास ही पेट के बल जा गिरा था। अब क्योंकि पुलिस को निशांत के हाथ से ही वो पिस्तौल बरामद हुआ था इस लिए पब्लिक प्रासीक्यूटर ज़्यादा कुछ कह नहीं पाया था, जिसके चलते अदालत ने पुलिस की थ्योरी को ही सच माना। कहीं न कहीं प्रासीक्यूटर भी ये समझता रहा था कि एक अकेली औरत के लिए दो दो हट्टे कट्टे आदमियों का अलग अलग हथियारों से खून करना संभव नहीं हो सकता था। ख़ैर अदालत ने इसी बात को सच मान कर फ़ैसला सुनाया कि विशेष अपनी कुरूप पत्नी को अपनी ज़िन्दगी से दूर करने के लिए निशांत की हत्या करने उसके फ़्लैट पर गया लेकिन किसी वजह से बात बिगड़ गई जिसके चलते दोनों के बीच बात विवाद इतना बढ़ गया कि एक ने दूसरे को चाकू मारा तो दूसरे ने पीछे से पहले वाले को गोली मार दी। निशांत के फ़्लैट पर मेरे होने के कोई सबूत नहीं पाए गए इस लिए मेरा उन दोनों की हत्या में कोई हाथ नहीं था। अब भला किसी को ये कैसे पता हो सकता था कि उस रात असल में वो दोनों खून कैसे हुए थे?"
"इसका मतलब।" अभिलाष ने कहा_____"ये संयोग ही हुआ कि जब आपने विशेष पर गोली चलाई थी तो वो उस वक़्त निशांत की तरफ देखते हुए ही दरवाज़े की तरफ उल्टे पैर खिसकता जा रहा था। उसे ख़्वाब में भी उम्मीद नहीं थी कि आप उसके पीछे हो सकती हैं और उसको इस तरह से गोली मार सकती हैं? ख़ैर, गोली क्योंकि उसकी पीठ पर लगी थी और वो पिस्तौल निशांत के हाथ में था इस लिए पुलिस ने यही अंदाज़ा लगाया कि विशेष पर गोली चलाने वाली आप नहीं बल्कि निशांत था। रही सही कसर उस दोगले इंसान की उस डायरी ने पूरी कर दी। उसके बाद तो कोई कुछ और सोच ही नहीं सकता था।"
"हां अब तो मुझे भी यही लग रहा है।" रूपा ने सोचने वाले अंदाज़ से कहा____"तू सही कह रहा है मेरे भाई। ये संयोग ही था कि वो कमीना गोली लगने के बाद मेरी तरफ पलटा था और फिर उसी हालत में लड़खड़ा कर गिर गया था।"
"वो आपकी तरफ शायद इस लिए पलटा था ताकि देख सके कि अचानक से उस पर गोली किसने चला दी?" अभिलाष ने कहा____"उसकी समझ में तो उसके साथ ऐसा कुछ भी नहीं होने वाला था बल्कि निशांत की हत्या करने के बाद उसकी हत्या के जुर्म में किसी तरह आपको फंसा देना था। ये तो उसका दुर्भाग्य था जो उसकी उम्मीदों के विपरीत ऐसा हो गया। ऊपर वाला भी ऐसे वक़्त में आपके साथ था जिसने कुछ ऐसा किया कि आप पर कोई बात ही न आए। वैसे एक बात और भी है दीदी, और वो ये कि विशेष ने अपनी डायरी में लिखा था कि वो आपको निशांत के फ़्लैट पर ये कह कर लें जाएगा कि उसने आप दोनों को अपने यहां डिनर पर बुलाया है, जबकि उन दोनों की हत्या के बाद वहां पर पुलिस को आपके होने का कोई सबूत नहीं मिला। अब सवाल ये है कि क्या अदालत में प्रासीक्यूटर ने इस बारे में कोई सवाल नहीं उठाया?"
"हां ये सवाल भी उठाया था उसने।" रूपा ने कहा____"लेकिन मेरे पक्ष वाले वकील ने ये तर्क़ दिया था कि हो सकता है कि विशेष ने आख़िरी समय में अपने प्लान पर कोई बदलाव किया रहा हो। अगर ऐसा न होता तो वो मुझे अपने साथ निशांत के फ़्लैट पर ज़रूर ले जाता और वहां पर मेरे होने के पुलिस को सबूत भी मिलते। अब जबकि पुलिस को निशांत के फ़्लैट पर मेरे होने के कोई सबूत ही नहीं मिले थे तो ज़ाहिर है कि मैं वहां गई ही नहीं थी। इससे ये भी साबित हो जाता है कि मेरा उन दोनों की हत्या में कोई हाथ नहीं था, बल्कि सच यही हो सकता है कि विशेष ने यक़ीनन आख़िरी समय में अपने प्लान में कोई बदलाव किया था।"
"अगर ये मान लें कि उसने सचमुच अपने प्लान में कोई बदलाव किया था।" अभिलाष ने कहा____"तो सोचने वाली बात है कि फिर वो निशांत की हत्या के जुर्म में आपको फंसाता कैसे?"
"इस सवाल के जवाब में।" रूपा ने कहा____"मेरे पक्ष वाले वकील ने बस यही कहा था कि इसका जवाब तो खुद विशेष ही दे सकता था कि वो निशांत की हत्या के जुर्म में मुझे किस तरह फंसाता? कहने का मतलब ये कि एक तरह से ये सवाल बाकी सबके लिए रहस्य ही बन कर रह गया है।"
"हां सही कहा आपने।" अभिलाष के होठों पर हल्की सी मुस्कान उभर आई____"बाकी सबके लिए तो अब ये रहस्य ही बना रहेगा लेकिन एक बात अच्छी हुई कि निशांत ने अपने जीवन के आख़िरी पलों में एक अच्छा काम करके उन संगीन अपराधों की सज़ा मिलने से आपको बचा लिया। अगर उस वक़्त वो वैसा न करता तो यकीनन आपको कोई नहीं बचा सकता था। उसी ने आपको बताया कि वो पिस्तौल उसे दे कर आपको किस तरह उसके फ़्लैट से चले जाना चाहिए था।"
"मुझे अपने अंजाम की कोई परवाह नहीं थी मेरे भाई।" रूपा ने गहरी साँस लेकर कहा____"इतना कुछ होने के बाद सच में जीने की कोई हसरत नहीं रह गई थी। अगर उन दोनों की हत्याओं से अदालत में मुझे फांसी की सज़ा भी सुना दी जाती तो मैं खुशी खुशी फांसी पर झूल जाती।"
"ऐसा मत कहिए दीदी।" अभिलाष ने अधीर होकर रूपा की तरफ देखा____"आप हम सबको छोड़ कर ऐसे कैसे जा सकती थीं? क्या हम सबका प्यार आपके लिए कोई मायने नहीं रखता?"
"नहीं मेरे भाई।" रूपा ने अभिलाष के चेहरे को बड़े स्नेह से सहला कर कहा____"ये तुम सबका प्यार और स्नेह ही तो था जिसकी वजह से मैं वैसा कर ही नहीं पाई।"
"मैं तो ये सोच सोच कर अभी भी हैरान हूं कि वो आदमी मेरी मासूम सी बेटी के साथ कितना बड़ा छल कर रहा था।" रूपा की माँ ने गंभीर भाव से किन्तु कहीं खोए हुए से कहा____"आख़िर किस मिट्टी का बना हुआ था वो जिसके दिल में मेरी बेटी के लिए ज़रा सा भी दया भाव नहीं था? उसने एक बार भी ये नहीं सोचा कि मेरी बेटी ने साढ़े चार सालों में क्या कुछ सहा होगा और किस तरह से उसने अपने दिन रैन गुज़ारे होंगे? आज सच जानने के बाद मैं भी यही कहूंगी कि तूने उसको उसके किए की सज़ा दे कर ठीक ही किया है बेटी। जिसके दिल में किसी के लिए कोई जज़्बात न हों और जो सिर्फ अपने ही बारे में सोचता हो ऐसे इंसान के साथ अपने जीवन के सपने देखना बेकार ही था।"
"मैं अपनी दीदी के लिए कोई ऐसा लड़का खोजूंगा मां।" अभिलाष ने रूपा के गुमसुम से चेहरे की तरफ देखते हुए कहा____"जिसके दिल में सिर्फ और सिर्फ मेरी दीदी के लिए प्यार हो और बिना किसी छल कपट के वो मेरी दीदी को खुशियां दे।"
"नहीं मेरे भाई।" रूपा की आँखों से आंसू छलक पड़े____"अब तेरी इस दीदी को किसी और का प्यार अथवा किसी और से कोई खुशियां नहीं चाहिए। वो तो अब जीवन भर अपने माँ बाबू जी और तेरे जैसे प्यारे से भाई के पास ही रहना चाहती है। तेरी दीदी को तुम लोगों के सिवा दुनियां का कोई भी इंसान प्यार और ख़ुशी नहीं दे सकता मेरे भाई।"
रूपा की बातें सुन कर जहां उसकी माँ की आँखों से आंसू छलक पड़े वहीं अभिलाष ने दुखी हो कर उसे ख़ुद से छुपका लिया था। कमरे के दरवाज़े के बाहर खड़े रूपा के पिता चक्रधर पांडेय अपनी बेटी की बातें सुन कर गमछे से अपनी आँखों में भर आए आंसुओं को पोंछा और फिर पलट कर चुप चाप बाहर निकल गए।
✧✧✧ The End ✧✧✧


