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Romance पर्वतपुर का पंडित

sunoanuj

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Thank you avsji for your response
Please let me know what you think about the story and it's direction
 
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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
Supreme
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राजकुमारी शुभदा ना अचेत थी और ना ही विलाप में मग्न। उन्हें पिता की मृत्यु का शोक था परंतु प्राथमिकता थी नगर और राज्य की सुरक्षा। अपने पति के साथ बिताई एक रात्रि के घर में वह सूर्यास्त के पश्चात लौट आई थी।


सोचते हुए एक प्रहर बीत गया जब किसी ने गृह के दरवाजे की घंटी बजाई। अंगद के होते हुए आज की रात यह साहस केवल एक व्यक्ति कर सकती थी,
“दीप…”



राजकुमारी शुभदा ने शांत मुद्रा कर प्रवेश करने का आदेश दिया और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री हाथ जोड़ कर अंदर आ गए।


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आप हमारे विश्वस्त हो। हमें कोई मार्ग बताएं।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजनंदनी, इस परिस्थिति में युद्ध संभव नहीं है। मैंने यही सलाह राजा खड़गराज को भी दी थी।”


राजकुमारी शुभदा, “उनका प्रस्ताव याद है? वह मुझे किसी वैश्या से भी निम्न स्तर की बनाकर रखेंगे। यदि मैं उन चार महीनों में मर गई तो भाग्यशाली रहूंगी क्योंकि उन चार महीनों के बाद आत्मघात के अलावा मेरे पास कोई पर्याय नहीं होगा।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजकुमारी शुभदा, मेरे पास एक योजना है। खतरनाक है पर केवल एक ही योजना है। आप राजा उग्रवीर ने भेजा प्रस्ताव स्वीकार करें पर इस शर्त पर कि आप अपने पिता और पति की अंतिम क्रिया करने के बाद स्वयं को उनके आधीन करेंगी। इस से हमें समय मिलता है। मैं अपनी नृत्यशाला समेत कल सुबह नगर से पलायन करने का आभास निर्माण कर अपनी योजना कार्यान्वित करूंगा।”


राजकुमारी शुभदा टूट कर रोने लगी और उसने किसी को भी सोचने तक का अवसर दिए बगैर पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को आलिंगन दिया और अपना सारा दुख अश्रु मार्ग से बाहर निकाल दिया। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अपनी मजबूत बाहों में पकड़कर दबाया और राजकुमारी शुभदा को आराम मिला। राजकुमारी शुभदा ने अनजाने में पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की पीठ पर हाथ घुमाया और उसे वहां नाखूनों के भरते घाव महसूस हुए।


राजकुमारी शुभदा स्तब्ध हो कर, “दीप…?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री गलती से, “हां, शुभा?”


दोनों स्तब्ध हो कर वैसेही रुक गए मानो समय रुक गया हो।


राजकुमारी शुभदा पीछे होकर चिल्लाई, “अंगद!!… अंगद!!… अंगद!!…”


अंगद तीन सैनिकों समेत अंदर आ गया।


राजकुमारी शुभदा गुस्से से, “इस विश्वासघाती को बंदी बना लो! इसे कल सुबह तक नगर की द्वार पर लटकाकर मेरे लाल चाबुक से फटकारते रहो। सुबह की पहली किरण के साथ इसका मुंह काला कर इसे गधे पर उल्टा बिठाकर इसकी दो कौड़ी की नृत्यशाला के साथ नगर से निष्कासित कर दो!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री राजकुमारी शुभदा के पैरों में गिर कर, “क्षमा राजनंदिनी!! क्षमा!! इतना कठोर दंड ना दें!! कुछ तो छूट दें!! जो हुआ उस पर मेरा भी नियंत्रण नहीं था!!”


राजकुमारी राजा की तरह गंभीर खड़ी होते हुए, “छूट? ऐसी उद्दंडता के बाद छूट मांगते हो? यदि तुमने किए हुए पाप को धोने लायक कुछ कार्य करो तो ही मुझे अपना मुख दिखाना वरना आत्मघात कर लो, यह मेरी राज आज्ञा है!!”


नगर मार्ग में से पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को घसीटते हुए ले जाया गया जब अर्धरात्रि को भी पूरे नगर ने इसे देखा। चाबुक की गूंज और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की चीखों ने पूर्ण रात्रि नगर को जगाए रखा। प्रातः जब पंडित ज्ञानदीप शास्त्री स्नान के लिए जाते तब सबके सामने उनके मुंह पर गोबर और कालिक पोत दी गई। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को राख से नहलाया गया और गधे पर उल्टा बिठाकर नगर से घुमाया गया। नृत्यशाला के लोगों को वाद्य बजाते हुए इस विभत्स शोभा यात्रा का भाग बनकर निष्कासित होना पड़ा।


सुबह की पहली किरण के साथ जब यह शोभा यात्रा नगर के बाहर गई तब एक बुझा बुझा संदेशवाहक राज सभा की ओर बढ़ा।



संदेशवाहक संजय सर झुकाकर राज सभा में पहुंचा तो वहां राजा उग्रवीर के दूत को खड़ा देख कांप उठा।


राजकुमारी शुभदा, “संजय, हमें युद्ध का परिणाम पता है। फिर भी आप अपना कार्य पूर्ण कीजिए।”


संजय बताने लगा कि राज मार्ग से उतरते हुए राजा खड़गराज और सेनापति अचलसेन में अनबन शुरू हो गई क्योंकि सेनापति अचलसेन युद्ध की व्यूह रचना के बारे में सोचने के बजाय पंडित ज्ञानदीप शास्त्री और उनके नजदीक रहती स्त्रियों के बारे में, यानी राजकुमारी शुभदा के चरित्र पर लांछन लगाए जा रहे थे। राजा खड़गराज ने एकांत में सेनापति अचलसेन को पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की योजना पर सोचने को कहा क्योंकि वह योजना बेहतर लग रही थी। पूरी योजना नहीं तो कम से कम कुछ अंश तो उपयोग में लिया जा सकता है।


सेनापति अचलसेन ने अपने ससुर को विश्वास दिलाया कि राजा उग्रवीर की पूर्ण सेना आने से पहले राजा उग्रवीर का शीश राजा खड़गराज के कदमों में होगा। राजा खड़गराज सेनापति अचलसेन से खुले तौर पर विरोध नहीं कर पाए।


पर्वतपुर राज्य का सबसे दूर का गांव उग्रवीर के राज्य से सटा हुआ था। शाम के बाद गांव में पहुंचने से उस खाली गांव में सेनापति अचलसेन की योजना अनुसार किले बनाना शुरू हुआ पर राजा उग्रवीर के पूर्ण सैन्य ने चारों तरफ से हमला किया।


सेनापति अचलसेन राजा उग्रवीर को मारने के लिए इतना आतुर थे कि उसने राजा उग्रवीर की छुपे स्वरूप से बढ़ती सेना को लांघ कर खुद को राजा उग्रवीर के घेराव में लाया था।


राजा उग्रवीर के स्तब्ध सेनानी चुपके से सब देखते रहे और संपूर्ण वार्ता राजा उग्रवीर को बताई। राजा उग्रवीर को खदान के लिए युवा पुरुषों की आवश्यकता थी तो उसने अग्निबाण चलाकर राजा खड़गराज जिस कुटिया में थे उसे जला दिया। राजा खड़गराज पर हमला होता देख सेनापति अचलसेन उनकी रक्षा हेतु तलवार लेकर आगे बढ़ा।
अग्निबाण चलाती सेना पर तलवार लेकर दौड़ जाने से एक ही उत्पन्न होना था। सेनापति अचलसेन आठ अग्निबाण से भेद दिए गए। राजा खड़गराज ने अपने निजी सुरक्षा पथक के साथ बाहर दौड़ लगाने का नारा दिया पर सुरक्षा पथक के बाहर जाते ही जलती कुटीर को अंदर से बंद करते हुए आत्मदाह कर लिया। उनके इस बलिदान से उनके अधिकतर पथक के प्राण बच गए।



संजय, “राजकुमारी शुभदा, राजा खड़गराज और सेनापति अचलसेन समेत हमारे ४७ वीर स्वर्ग सिधार गए हैं। बाकी सैन्य को बंधक बनाकर रखा गया है। उनके प्राणों की रक्षा अब आप के हाथों में है।”


राजकुमारी शुभदा युवराज से, “राजदूत, क्या आप हम से चर्चा कर संधि करने का अधिकार रखते हैं?”


युवराज, “अवश्य श्रीमती शुभदा।”


राजकुमारी शुभदा सिंहासन से उठकर गुस्से से, “राजदूत! आज सुबह आप ने देखा होगा कि उद्दंड व्यक्ति का कैसे उपाय होता है। हम अब भी इस राज्य की राजनंदिनी हैं। जिस दिन आपके राजा उग्रवीर इस राज्य को विलीन कर हमें और हमारे नागरिकोंको दास बना लें तब यह उद्दंडता दिखाना।”


युवराज स्वयं ४२ वर्ष के थे पर राजकुमारी शुभदा की ललकार सुन उसने मन ही मन अपने आप को राजकुमारी शुभदा को लूटते प्रथम पथक और उसके बाद के हर पथक में शामिल कर लिया। वह इस आग को धीरे धीरे बुझते देखना चाहता था।


युवराज, “क्षमा राजनंदिनी शुभदा। राजकुमारी शुभदा मैं राजा उग्रवीर की ओर से कुछ संधि प्रस्ताव को बदलने का अधिकार रखता हूं पर उनके कुछ प्रस्ताव आप को पूर्णतः मान्य करने होंगे।”


राजकुमारी शुभदा ने राजदूत से कई घंटों की चर्चा के बाद संधि प्रस्ताव पर अपनी मोहर लगाई। संधि की एक प्रत लेकर राजदूत लौट गया तो एक प्रत को नगर के नागरिकों को सुनाया गया।


नगर में घोषणा करते व्यक्ति और नागरिकों की आंखों में से आंसू बह रहे थे क्योंकि संधि के अनुसार कल सुबह राजा उग्रवीर अपने सैन्य के बाद साथ पर्वतपुर आएंगे। वह राजकुमारी शुभदा को राजा खड़गराज की अस्थियां और सेनापति अचलसेन का पार्थिव शरीर देकर नगर पर अपना अधिकार स्थापित करेंगें।


सेनापति अचलसेन का दाहसंस्कार पूर्ण होते ही अगले दिन राजा उग्रवीर राजकुमारी शुभदा को राज सभा में विवस्त्र कर दासी की तरह उपभोग कर पर्वतपुर पर अपना अधिपत्य सिद्ध करेंगे।
इस लज्जासपद सभा में नगर के सभी नागरिकों को उपस्थिति रहना पड़ेगा। इस सभा के पश्चात ५० सैनिकों का पथक नग्न राजकुमारी शुभदा को नगर के बाहर राजा उग्रवीर के सैन्य शिविर में ले जाएंगे।



राजकुमारी शुभदा के इस त्याग के कारण नागरिकों को अगले सूर्योदय तक नगर और राज्य त्याग देने की सुविधा है। जो नागरिक नगर या राज्य में रहेंगे उन्हें राजा उग्रवीर का दासत्व स्वीकार कर रहना होगा।


दोपहर तक नागरिकों में वार्ता फैलने लगी की अंगद और बाकी सुरक्षा पथक तेल, पुराना कपड़ा और गंधक एकत्र कर राजकुमारी शुभदा के प्रस्थान के बाद आत्मदाह करने वाले हैं। नागरिकों ने अपने प्रियजनों को समेटा और मन ही मन राजकुमारी शुभदा को नमन कर अपने बच्चों को २ दिन बाद राज्य से पलायन करने का आदेश दिया।


शाम को युवराज ने राजा उग्रवीर के साथ पर्वतपुर की ओर कूच किया तब अपने पिता पर अपनी क्रूरता की छाप लगाते हुए,
“पिताश्री, आप चिंतित न हो। एक बार राजकुमारी शुभदा हमारे सैनिकों के नीचे दब जाए तो हम पलायन करते नागरिकोंको भी दास बना लेंगे। पर्वतपुर में अब हमारा विरोध करने की क्षमता किसी में भी नहीं।”

अनिष्ट हो गया - राजा और सेनापति दोनों ही खेत रहे।

लेकिन युवराज और राजा उग्रवीर के मन में राजकुमारी शुभदा का ऐसा निरादर करने का विचार निंदनीय है।
पराजित को इतना नहीं दबाना चाहिए कि उसके पास प्रतिकार करने के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय ही न बचे।

उधर शास्त्री जी को उनके किए गए विश्वासघात का उचित दण्ड मिल तो गया है।
संभव है कि कम से कम अब वो प्रजा / राज्य हित में कुछ कर दिखाएँ!
 
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राजकुमारी शुभदा ने अपने आप को राज सभा के बगल में बने कक्ष में बंद कर रखा था परंतु सूर्यास्त होते ही जैसे किसी ने अग्नि प्रज्वलित कर दी।


राजकुमारी शुभदा वीरांगना की तरह राज सभा से बाहर आई और युद्ध की तैयारी करने लगी। अंगद और बाकी सैनिकों ने नगर की दीवारों में बने गुप्त छिद्र खोले जिनमें से शत्रु पर शर वर्षा की जा सकती थी।

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सूर्यास्त के एक प्रहर बाद दूर से कुछ ध्वनि सुनाई देने लगी। कुछ देर सुनने के बाद पता चला कि यह तो नृत्यशाला के वाद्य और कृत्रिम बिजली की ध्वनि है। नगर की दीवार के सबसे ऊंचे स्थान से दिख रहा था जैसे नृत्यशाला राजा उग्रवीर की सेना के स्वागत में नृत्य वादन और प्रकाश आविष्कार कर उल्हास कर रही थी। राजा उग्रवीर के सैनिक ललकार और चीख कर नृत्यशाला का साथ दे रहे थे।


प्रातः तक शायद राजा उग्रवीर के सैनिक थक कर चुप हो गए पर वाद्य और नृत्य अब भी चल रहा था। संपूर्ण नृत्यशाला नगर द्वार पर नृत्य करते हुए रुक गई। स्वयं पंडित ज्ञानदीप शास्त्री नृत्य करते हुए नगर द्वार तक पहुंचे तो उन्हें देख नगर रक्षक स्तब्ध रह गए।



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पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने ऐसा रूप बनाया था जैसे युद्ध में स्वयं काल भैरव आए हो। अपने दोनों हाथों में रक्तवर्ण लेप लगी तलवारें लिए नाचते हुए वह अपनी कमर हिला रहे थे। कमर पर रक्तवर्ण थैली बंधी हुई थी। पीछे एक विशाल हाथी की अंबारी में बैठे युवराज जोर से पुकारते हुए राजकुमारी शुभदा को द्वार खोलने को कह रहे थे। राजकुमारी शुभदा यह विश्वासघात देख टूट गई।


अंगद, “राजकुमारी शुभदा, केवल हां कहें! उस कपटी पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को अभी बाण से ढेर कर दूंगा!”


राजकुमारी शुभदा गहरी सांस लेकर, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को कोई चोट नहीं पहुंचाएगा। मैं चाहती हूं कि जब राजा उग्रवीर अपना राज्य प्रस्थापित करे तब पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अपनी नृत्यशाला की हालत देखे। आज द्वार हम स्वयं खोलेंगे।”


राजकुमारी शुभदा केवल एक सफेद वस्त्र पहने नगर द्वार की ओर बढ़ी। संपूर्ण नगर राजकुमारी शुभदा को प्रणाम कर रस्ते में खड़ा था। अंतिम मोड आया तो अंगद ने एक अंतिम प्रयास किया।


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अंगद, “राजकुमारी, हम लड़ेंगे। किले में खड़े सौ सिपाही बाहर के सहस्त्र के बराबर हैं।”


राजकुमारी शुभदा, “फिर आगे क्या अंगद? राजा उग्रवीर नगर के हर बाल और वृद्ध को मार स्त्रियों के साथ वही करेगा जो मुझ अकेली के साथ होना है! अंगद, तुम वीर हो पर मूर्खता से बचो।”


सूर्योदय के साथ चलते हुए राजकुमारी शुभदा ने नगर द्वार पर जा कर, “द्वार खोलो!!”


नगर द्वार खुला और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने हाथ वस्त्र में लपेटकर कर आगे करते हुए अपने सर को द्वार पर रख दिया।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “हे राज्य की राजकुमारी राजनंदिनी,

हे राज्य के ऐश्वर्या राजलक्ष्मी,
है राज्य की ईश्वरी राजेश्वरी,
तुम ही हो राज्य की राजा राजश्री!
इस पापी को क्षमा करो और वर दो देवी! वर दो देवी!!”


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, क्षमा हेतु आप ने एक दिवस में ऐसा क्या कर लिया है? प्रमाण दें!”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपनी कमर से लटकी थैली को राजकुमारी शुभदा के चरणों में लुढ़का दिया। अंगद ने थैली में रखा समान निकाला और नगर की स्त्रियां चीख पड़ी।


“राजा उग्रवीर का शीश आप को भेंट हो राजश्री”, पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की आवाज ने नगर में फैली शांति को चीर दिया।


राजकुमारी शुभदा की आंखों में राहत और भय मुक्ति के अश्रु भर आए। पर राजकुमारी शुभदा ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को उनके दिए धोखे से नाराजी बनाए रखते हुए पूछा,
“पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आप को इस नगर में जो चाहिए था वह तो आप पहले ही उपभोग चुके हो। तो अब आप को नगर में लौटने की अनुमति चाहिए या अपनी नृत्यशाला समेत भ्रमण करने के लिए पर्याप्त सुवर्ण?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजश्री, मुझे केवल एक दिवस और आपका निजी सुरक्षा पथक चाहिए। जमानत के लिए एक छोटा उपहार छोड़ जाता हूं।”


जख्मी पर गर्व से फूला हुआ छोटा गरुड़वीर एक डोरी से बंधक को ले आया। राजकुमारी शुभदा ने देखा यह वही युवराज था जो नगर द्वार खोलने को कह रहा था।


युवराज की तीव्र पुकार नगर पर जीत की नहीं नृत्यशाला के आतंक की थी।


राजकुमारी शुभदा, “अंगद, पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को जो सहायता चाहिए वह दो और सारे सकुशल नगर लौट आओ!”


राजकुमारी का निजी सुरक्षा पथक नृत्यशाला के लोगों के साथ अश्व पर बैठ एक प्रहर से पहले गायब हो गया। राजकुमारी शुभदा अपनी राज सभा की ओर बढ़ी तो नागरिकों ने आनंद से घोषणाएं की।


“राजकुमारी शुभदा की जय!!”

“पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की जय!!”


राजकुमारी शुभदा को पता था कि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अंगद की लेकर किस प्रयोजन से गया है। राजकुमारी शुभदा ने गरुड़वीर और नागरिकों की सहायता से सेनापति अचलसेन, राजा उग्रवीर, और राजा उग्रवीर के अनेक सैनिकों का दाहसंस्कार पूर्ण किया।


अगले दिन नगर के द्वार के दोनों ओर भीड़ खड़ी थी। सूर्य की पहली किरण के साथ राजा खड़गराज की बंधक हुई सेना लौट आई और लोगों ने दुबारा घोषणाएं दी।


“राजकुमारी शुभदा की जय!!”

“पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की जय!!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का नगर द्वार पर राजकुमारी शुभदा ने विजयी योद्धा समान स्वागत किया और अपने रथ में उन्हें राज सभा में ले आई।


नागरिकों और सभासदों ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को इस कायापलट को समझाने को कहा तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के कहने पर यह जिम्मेदारी राजा उग्रवीर के युवराज को दी गई।


युवराज पूरी तरह टूट कर, “आपको यह जानना है कि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने हमें युद्ध में कैसे हराया? वह युद्ध नहीं था! युद्ध हमें आता है! हमारा नरसंहार हुआ है!”


युवराज ने अपनी बेड़ियों को सहारे की तरह सीने से लगा कर किसी घोर आतंक का ब्यौरा देना शुरू किया।

राजा उग्रवीर और उनकी विजयी सेना सरल मार्ग से पर्वतपुर की ओर बढ़ने लगे तो उन्हें वाद्य के बोल सुनाई दिए। मार्ग की एक ओर से पंडित ज्ञानदीप शास्त्री नृत्य करते हुए मार्ग के बीच आए और राजा उग्रवीर को प्रणाम कर नृत्य करने लगे।


राजा उग्रवीर, “नगर से निष्कासित होने से अब यह हमारे लिए नृत्य कर रहा है। इसे सभा में तब नृत्य करने के लिए कहो जब राजकुमारी शुभदा को हमारे सेना शिविर में ले जाया जाएगा।”


नृत्य देखने सारे सैनिक आगे बढ़े पर जैसे ही पूर्ण सेना सरल मार्ग पर आ गई भगदड़ मच गई। सरल मार्ग के नीचे से और पास के पर्वतों के गर्भ से बिजली चमक उठी। भूमि में से तीव्र गति कंकड़ सेना के कवच को ऐसे भेद गए जैसे सेना नग्न हो। ऊपर पर्वतों से बड़े बड़े पत्थर वर्षा जैसे बरसने लगे। कुछ क्षणों में सहस्त्र योद्धा गतप्राण हो गए। इस से पहले की कुछ समझ आता मार्ग के दोनों ओर से अग्नि के कुंभ की वर्षा होने लगी। जो सैनिक कंकड़ और पत्थरों से मरे नहीं थे वह जलने लगे। हमारा हाथी नियंत्रण खो बैठा और राजा उग्रवीर का निजी पथक राजा उग्रवीर के हाथी से मारा गया।


युवराज रोते हुए, “पांच सहस्त्र योद्धा एक शत्रु को देखे बगैर मारे गए। जब केवल एक मुट्ठी भर सैनिक बचे तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री दो तलवारों को लहराते हुए नृत्य करता बाहर आया। राजा उग्रवीर ने बाकी योद्धा के साथ उस अकेले नर्तक पर धावा बोला पर वह नर्तक नहीं था। वह स्वयं काल भैरव था!!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की ओर आतंक से देखते हुए युवराज, “उसने अपना नृत्य तब भी चालू रखा जब उसने राजा उग्रवीर का शीश उनके धड़ से विभक्त कर नृत्य के समान की तरह अपनी कमर में बांध लिया। मुझे क्या सिर्फ नगर द्वार पर खड़े होकर राजकुमारी शुभदा को पुकारने के लिए जीवित रखा था?”


शोक के सफेद वस्त्र पहने राजकुमारी शुभदा ने राज सभा से, “यह उद्दंड हमें आज सर्वसमक्ष… क्या करने आया था यह हमें संधि पत्र से पता है। तो सभासद इसका क्या किया जाए?”


सभी सभासदों में होड लग गई की युवराज को सबसे अपमानासपद मृत्यु की योजना बनाने में। पर अंत में पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अभिवादन कर युवराज को आदरपूर्वक अपने राज्य वापस भेज देने की मांग की।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की मांग से युवराज भी स्तब्ध रह गए पर राजकुमारी शुभदा ने विचार कर हां में सर हिलाया।


राजकुमारी शुभदा, “युवराज, युद्ध आप ने पर्वतपुर पर थोपा पर युद्ध के बाद पर्वतपुर प्रतिशोध जैसी निम्न भावना नहीं रखता। सेना अधिकारी गरुड़वीर युवराज को एक अश्व और उनके बाकी सैनिकों के साथ पर्वतपुर के क्षेत्र से आदरपूर्वक बाहर छोड़ आओ।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के नेत्र राजकुमारी शुभदा से मिले और उन्होंने राजकुमारी शुभदा को प्रशंसा का संदेश दिया। सभासद मात्र इस निर्णय के विरुद्ध थे इस लिए पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को सभी को समझाना पड़ा।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजा उग्रवीर ने उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की ताकि उनका उत्तराधिकारी उनके विरुद्ध युद्ध न कर पाए पर अब अगला राजा बनने के लिए उनके राज्य में गृहयुद्ध होगा। युवराज कुछ सेना के साथ हार कर लौटना नहीं चाहेंगे तो वह अपने ही नगर में अपने ही भाइयों से युद्ध कर हमारे लिए अपने राज्य को और अस्थिर बनाएंगे।”


सभी सभासदों ने राजकुमारी शुभदा की प्रशंसा की जब राजकुमारी शुभदा के एक वाक्य न सभी का दिल दहला दिया।


राजकुमारी शुभदा, “युद्ध में पर्वतपुर विजयी हो गया है तो अब हम निश्चिंत हो कर सती जाएंगी।”


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पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, राजकुमारी शुभदा, और सेनापति अचलसेन -- यह अभी तक तो त्रिकोण ही है, लेकिन बहुत अधिक संभव है कि पड़ोसी राजा उग्रवीर के साथ सम्मुख युद्ध के बाद यह कथा सीधी रेखा में चलने लगे।

अचलसेन को शुभदा से कोई प्रेम नहीं है - वो उसके लिए केवल एक ट्रॉफ़ी है। राजकुमारी होने के कारण उसकी राजा बनने की महत्वाकांक्षा का मार्ग भी! उसके दिल में शुभदा के लिए न आदर है और न ही प्रेम! सच में - वेश्या के लिए भी कोई ऐसे शब्दों का प्रयोग नहीं करता, जैसा अचलसेन ने अपनी ब्याहता के लिए किया है। वहीं जन्म से सूतपुत्र और कर्म से शास्त्री ज्ञानदीप को शुभदा से प्रेम है। बहुत संभव है कि विवाह के बाद उन दोनों ने ही रमण किया हो - और मूर्ख अचलसेन केवल मूर्ख बना हो।

वैसे अचलसेन मूर्ख ही है - ज्ञानदीप के आविष्कारों, जैसे trebuchet (so called पुष्पवर्षक) से आक्रांताओं पर अग्निवर्षा की जा सकती थी। कृत्रिम बिजली से उन के दिलों में भय का ऐसा माहौल बनाया जा सकता था कि वो अपनी जान बचा कर वापस लौट जाते।

सुन्दर लेखनी है आपकी मित्र! ऐसे ही लिखते रहें।
हम आपका उत्साहवर्द्धन करते रहेंगे!
आप ने सही कहा था। पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के यंत्र ऐसा ही कार्य करते थे जब की कृत्रिम बिजली को चीन से यूरोप में पहुंचने पर उसे नया नाम मिला, GUNPOWDER
अनिष्ट हो गया - राजा और सेनापति दोनों ही खेत रहे।

लेकिन युवराज और राजा उग्रवीर के मन में राजकुमारी शुभदा का ऐसा निरादर करने का विचार निंदनीय है।
पराजित को इतना नहीं दबाना चाहिए कि उसके पास प्रतिकार करने के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय ही न बचे।

उधर शास्त्री जी को उनके किए गए विश्वासघात का उचित दण्ड मिल तो गया है।
संभव है कि कम से कम अब वो प्रजा / राज्य हित में कुछ कर दिखाएँ!
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने एक युवती का उपभोग किया और उसे भ्रमित कर चला गया। युवती का रूष्ट होना स्वाभाविक है। अब युवती राजकुमारी शुभदा हो तो…
 
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Try and fail. But never give up trying
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राजकुमारी शुभदा ने अपने आप को राज सभा के बगल में बने कक्ष में बंद कर रखा था परंतु सूर्यास्त होते ही जैसे किसी ने अग्नि प्रज्वलित कर दी।


राजकुमारी शुभदा वीरांगना की तरह राज सभा से बाहर आई और युद्ध की तैयारी करने लगी। अंगद और बाकी सैनिकों ने नगर की दीवारों में बने गुप्त छिद्र खोले जिनमें से शत्रु पर शर वर्षा की जा सकती थी।

200707-Fort-La-Latte-38

सूर्यास्त के एक प्रहर बाद दूर से कुछ ध्वनि सुनाई देने लगी। कुछ देर सुनने के बाद पता चला कि यह तो नृत्यशाला के वाद्य और कृत्रिम बिजली की ध्वनि है। नगर की दीवार के सबसे ऊंचे स्थान से दिख रहा था जैसे नृत्यशाला राजा उग्रवीर की सेना के स्वागत में नृत्य वादन और प्रकाश आविष्कार कर उल्हास कर रही थी। राजा उग्रवीर के सैनिक ललकार और चीख कर नृत्यशाला का साथ दे रहे थे।


प्रातः तक शायद राजा उग्रवीर के सैनिक थक कर चुप हो गए पर वाद्य और नृत्य अब भी चल रहा था। संपूर्ण नृत्यशाला नगर द्वार पर नृत्य करते हुए रुक गई। स्वयं पंडित ज्ञानदीप शास्त्री नृत्य करते हुए नगर द्वार तक पहुंचे तो उन्हें देख नगर रक्षक स्तब्ध रह गए।



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पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने ऐसा रूप बनाया था जैसे युद्ध में स्वयं काल भैरव आए हो। अपने दोनों हाथों में रक्तवर्ण लेप लगी तलवारें लिए नाचते हुए वह अपनी कमर हिला रहे थे। कमर पर रक्तवर्ण थैली बंधी हुई थी। पीछे एक विशाल हाथी की अंबारी में बैठे युवराज जोर से पुकारते हुए राजकुमारी शुभदा को द्वार खोलने को कह रहे थे। राजकुमारी शुभदा यह विश्वासघात देख टूट गई।


अंगद, “राजकुमारी शुभदा, केवल हां कहें! उस कपटी पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को अभी बाण से ढेर कर दूंगा!”


राजकुमारी शुभदा गहरी सांस लेकर, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने को कोई चोट नहीं पहुंचाएगा। मैं चाहती हूं कि जब राजा उग्रवीर अपना राज्य प्रस्थापित करे तब पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अपनी नृत्यशाला की हालत देखे। आज द्वार हम स्वयं खोलेंगे।”


राजकुमारी शुभदा केवल एक सफेद वस्त्र पहने नगर द्वार की ओर बढ़ी। संपूर्ण नगर राजकुमारी शुभदा को प्रणाम कर रस्ते में खड़ा था। अंतिम मोड आया तो अंगद ने एक अंतिम प्रयास किया।


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अंगद, “राजकुमारी, हम लड़ेंगे। किले में खड़े सौ सिपाही बाहर के सहस्त्र के बराबर हैं।”


राजकुमारी शुभदा, “फिर आगे क्या अंगद? राजा उग्रवीर नगर के हर बाल और वृद्ध को मार स्त्रियों के साथ वही करेगा जो मुझ अकेली के साथ होना है! अंगद, तुम वीर हो पर मूर्खता से बचो।”
सूर्योदय के साथ चलते हुए राजकुमारी शुभदा ने नगर द्वार पर जा कर, “द्वार खोलो!!”


नगर द्वार खुला और पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने हाथ वस्त्र में लपेटकर कर आगे करते हुए अपने सर को द्वार पर रख दिया।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “हे राज्य की राजकुमारी राजनंदिनी,

हे राज्य के ऐश्वर्या राजलक्ष्मी,
है राज्य की ईश्वरी राजेश्वरी,
तुम ही हो राज्य की राजा राजश्री!
इस पापी को क्षमा करो और वर दो देवी! वर दो देवी!!”


राजकुमारी शुभदा, “पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, क्षमा हेतु आप ने एक दिवस में ऐसा क्या कर लिया है? प्रमाण दें!”
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने अपनी कमर से लटकी थैली को राजकुमारी शुभदा के चरणों में लुढ़का दिया। अंगद ने थैली में रखा समान निकाला और नगर की स्त्रियां चीख पड़ी।


“राजा उग्रवीर का शीश आप को भेंट हो राजश्री”, पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की आवाज ने नगर में फैली शांति को चीर दिया।


राजकुमारी शुभदा की आंखों में राहत और भय मुक्ति के अश्रु भर आए। पर राजकुमारी शुभदा ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को उनके दिए धोखे से नाराजी बनाए रखते हुए पूछा,
“पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, आप को इस नगर में जो चाहिए था वह तो आप पहले ही उपभोग चुके हो। तो अब आप को नगर में लौटने की अनुमति चाहिए या अपनी नृत्यशाला समेत भ्रमण करने के लिए पर्याप्त सुवर्ण?”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजश्री, मुझे केवल एक दिवस और आपका निजी सुरक्षा पथक चाहिए। जमानत के लिए एक छोटा उपहार छोड़ जाता हूं।”


जख्मी पर गर्व से फूला हुआ छोटा गरुड़वीर एक डोरी से बंधक को ले आया। राजकुमारी शुभदा ने देखा यह वही युवराज था जो नगर द्वार खोलने को कह रहा था।


युवराज की तीव्र पुकार नगर पर जीत की नहीं नृत्यशाला के आतंक की थी।


राजकुमारी शुभदा, “अंगद, पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को जो सहायता चाहिए वह दो और सारे सकुशल नगर लौट आओ!”


राजकुमारी का निजी सुरक्षा पथक नृत्यशाला के लोगों के साथ अश्व पर बैठ एक प्रहर से पहले गायब हो गया। राजकुमारी शुभदा अपनी राज सभा की ओर बढ़ी तो नागरिकों ने आनंद से घोषणाएं की।


“राजकुमारी शुभदा की जय!!”

“पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की जय!!”


राजकुमारी शुभदा को पता था कि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री अंगद की लेकर किस प्रयोजन से गया है। राजकुमारी शुभदा ने गरुड़वीर और नागरिकों की सहायता से सेनापति अचलसेन, राजा उग्रवीर, और राजा उग्रवीर के अनेक सैनिकों का दाहसंस्कार पूर्ण किया।


अगले दिन नगर के द्वार के दोनों ओर भीड़ खड़ी थी। सूर्य की पहली किरण के साथ राजा खड़गराज की बंधक हुई सेना लौट आई और लोगों ने दुबारा घोषणाएं दी।


“राजकुमारी शुभदा की जय!!”

“पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की जय!!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री का नगर द्वार पर राजकुमारी शुभदा ने विजयी योद्धा समान स्वागत किया और अपने रथ में उन्हें राज सभा में ले आई।


नागरिकों और सभासदों ने पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को इस कायापलट को समझाने को कहा तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के कहने पर यह जिम्मेदारी राजा उग्रवीर के युवराज को दी गई।


युवराज पूरी तरह टूट कर, “आपको यह जानना है कि पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने हमें युद्ध में कैसे हराया? वह युद्ध नहीं था! युद्ध हमें आता है! हमारा नरसंहार हुआ है!”


युवराज ने अपनी बेड़ियों को सहारे की तरह सीने से लगा कर किसी घोर आतंक का ब्यौरा देना शुरू किया।

राजा उग्रवीर और उनकी विजयी सेना सरल मार्ग से पर्वतपुर की ओर बढ़ने लगे तो उन्हें वाद्य के बोल सुनाई दिए। मार्ग की एक ओर से पंडित ज्ञानदीप शास्त्री नृत्य करते हुए मार्ग के बीच आए और राजा उग्रवीर को प्रणाम कर नृत्य करने लगे।


राजा उग्रवीर, “नगर से निष्कासित होने से अब यह हमारे लिए नृत्य कर रहा है। इसे सभा में तब नृत्य करने के लिए कहो जब राजकुमारी शुभदा को हमारे सेना शिविर में ले जाया जाएगा।”


नृत्य देखने सारे सैनिक आगे बढ़े पर जैसे ही पूर्ण सेना सरल मार्ग पर आ गई भगदड़ मच गई। सरल मार्ग के नीचे से और पास के पर्वतों के गर्भ से बिजली चमक उठी। भूमि में से तीव्र गति कंकड़ सेना के कवच को ऐसे भेद गए जैसे सेना नग्न हो। ऊपर पर्वतों से बड़े बड़े पत्थर वर्षा जैसे बरसने लगे। कुछ क्षणों में सहस्त्र योद्धा गतप्राण हो गए। इस से पहले की कुछ समझ आता मार्ग के दोनों ओर से अग्नि के कुंभ की वर्षा होने लगी। जो सैनिक कंकड़ और पत्थरों से मरे नहीं थे वह जलने लगे। हमारा हाथी नियंत्रण खो बैठा और राजा उग्रवीर का निजी पथक राजा उग्रवीर के हाथी से मारा गया।


युवराज रोते हुए, “पांच सहस्त्र योद्धा एक शत्रु को देखे बगैर मारे गए। जब केवल एक मुट्ठी भर सैनिक बचे तो पंडित ज्ञानदीप शास्त्री दो तलवारों को लहराते हुए नृत्य करता बाहर आया। राजा उग्रवीर ने बाकी योद्धा के साथ उस अकेले नर्तक पर धावा बोला पर वह नर्तक नहीं था। वह स्वयं काल भैरव था!!”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की ओर आतंक से देखते हुए युवराज, “उसने अपना नृत्य तब भी चालू रखा जब उसने राजा उग्रवीर का शीश उनके धड़ से विभक्त कर नृत्य के समान की तरह अपनी कमर में बांध लिया। मुझे क्या सिर्फ नगर द्वार पर खड़े होकर राजकुमारी शुभदा को पुकारने के लिए जीवित रखा था?”


शोक के सफेद वस्त्र पहने राजकुमारी शुभदा ने राज सभा से, “यह उद्दंड हमें आज सर्वसमक्ष… क्या करने आया था यह हमें संधि पत्र से पता है। तो सभासद इसका क्या किया जाए?”


सभी सभासदों में होड लग गई की युवराज को सबसे अपमानासपद मृत्यु की योजना बनाने में। पर अंत में पंडित ज्ञानदीप शास्त्री ने राजकुमारी शुभदा को अभिवादन कर युवराज को आदरपूर्वक अपने राज्य वापस भेज देने की मांग की।
पंडित ज्ञानदीप शास्त्री की मांग से युवराज भी स्तब्ध रह गए पर राजकुमारी शुभदा ने विचार कर हां में सर हिलाया।


राजकुमारी शुभदा, “युवराज, युद्ध आप ने पर्वतपुर पर थोपा पर युद्ध के बाद पर्वतपुर प्रतिशोध जैसी निम्न भावना नहीं रखता। सेना अधिकारी गरुड़वीर युवराज को एक अश्व और उनके बाकी सैनिकों के साथ पर्वतपुर के क्षेत्र से आदरपूर्वक बाहर छोड़ आओ।”


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री के नेत्र राजकुमारी शुभदा से मिले और उन्होंने राजकुमारी शुभदा को प्रशंसा का संदेश दिया। सभासद मात्र इस निर्णय के विरुद्ध थे इस लिए पंडित ज्ञानदीप शास्त्री को सभी को समझाना पड़ा।


पंडित ज्ञानदीप शास्त्री, “राजा उग्रवीर ने उत्तराधिकारी की घोषणा नहीं की ताकि उनका उत्तराधिकारी उनके विरुद्ध युद्ध न कर पाए पर अब अगला राजा बनने के लिए उनके राज्य में गृहयुद्ध होगा। युवराज कुछ सेना के साथ हार कर लौटना नहीं चाहेंगे तो वह अपने ही नगर में अपने ही भाइयों से युद्ध कर हमारे लिए अपने राज्य को और अस्थिर बनाएंगे।”


सभी सभासदों ने राजकुमारी शुभदा की प्रशंसा की जब राजकुमारी शुभदा के एक वाक्य न सभी का दिल दहला दिया।
राजकुमारी शुभदा, “युद्ध में पर्वतपुर विजयी हो गया है तो अब हम निश्चिंत हो कर सती जाएंगी।”


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बहुत ही खूबसूरत और बेहतरीन अपडेट दिया है आपने ! और पंडित जी ने तो कमाल ही कर दिया अपने नृत्य शाला से पूरी सेना को ख़त्म कर दिया !
लेकिन यह क्या ट्विस्ट है राजकुमारी सती होना चाहती है !

👏🏻👏🏻👏🏻👏🏻
 
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बहुत ही खूबसूरत और बेहतरीन अपडेट दिया है आपने ! और पंडित जी ने तो कमाल ही कर दिया अपने नृत्य शाला से पूरी सेना को ख़त्म कर दिया !
लेकिन यह क्या ट्विस्ट है राजकुमारी सती होना चाहती है !

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बहुत आभारी हूं प्रोत्साहन के लिए

कृपया अपना मत बताएं कि आप के मुताबिक आगे क्या होना चाहिए
 

Lefty69

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Thank you avsji for your response

Please let me know what you think should happen
 
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