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Romance फ़िर से

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avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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दोस्तों - इस अपडेट सूची को स्टिकी पोस्ट बना रहा हूँ!
लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि केवल पढ़ कर निकल लें। यह केवल आपकी सुविधा के लिए है। चर्चा बंद नहीं होनी चाहिए :)

अपडेट 1; अपडेट 2; अपडेट 3; अपडेट 4; अपडेट 5; अपडेट 6; अपडेट 7; अपडेट 8; अपडेट 9; अपडेट 10; अपडेट 11; अपडेट 12; अपडेट 13; अपडेट 14; अपडेट 15; अपडेट 16; अपडेट 17; अपडेट 18; अपडेट 19; अपडेट 20; अपडेट 21; अपडेट 22; अपडेट 23; अपडेट 24; अपडेट 25; अपडेट 26; अपडेट 27; अपडेट 28; अपडेट 29; अपडेट 30; अपडेट 31; अपडेट 32; अपडेट 33; अपडेट 34; अपडेट 35; अपडेट 36; अपडेट 37; अपडेट 38; अपडेट 39; अपडेट 40; अपडेट 41; अपडेट 42; अपडेट 43; अपडेट 44; अपडेट 45; अपडेट 46; अपडेट 47; अपडेट 48; अपडेट 49; अपडेट 50; अपडेट 51; अपडेट 52; अपडेट 53; अपडेट 54; अपडेट 55; अपडेट 56; अपडेट 57; अपडेट 58; अपडेट 59; अपडेट 60; अपडेट 61; अपडेट 62; अपडेट 63; अपडेट 64; अपडेट 65; अपडेट 66;
 
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Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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वैसे आप भी कोई कमतर नहीं हैं।
आप कुछ क्यों नहीं लिखते? यह तो वैसे भी open forum है।
आप भी कुछ लिखें, अपने विचार हम सभी से शेयर करें!

##

भाई सुबह सुबह हास्य योग करा दिया... अब दोपहर में भी 😅🤣😀😄😆😂

अज्ञ पाठक ही ठीक हुं... हम जैसे लोग मात्र टिका टिप्पणी कर सकते हैं। लिखने के बाद धैर्य नहीं रख सकते, कोई और टिप्पणी कर देता है तो मन उद्विग्न हो कर विद्वैश कि भावना से भर जाता है। अब वह उम्र नहीं रही।

हम तो रमते राम...
जय जय
 
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Arjunsingh287

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आपकी कहानी अच्छी है.

आपकी तरह ही फ्यूचर से पास्ट मे आने की थिंकिंग मेरी भी थी.

मे भी अपने पास्ट मे जा कर के अपने लिए कुछ बदलाव करना चाहता हूं.

लेकिन मे उसे एक कहानी का रूप नहीं दे सकता....
 

avsji

Weaving Words, Weaving Worlds.
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आपकी कहानी अच्छी है.

आपकी तरह ही फ्यूचर से पास्ट मे आने की थिंकिंग मेरी भी थी.

मे भी अपने पास्ट मे जा कर के अपने लिए कुछ बदलाव करना चाहता हूं.

लेकिन मे उसे एक कहानी का रूप नहीं दे सकता....

धन्यवाद भाई 🙏

कहानी का रूप क्यों नहीं दे सकते? जो भी मन में हो, लिख डालिए! सोच कर लिखें, धीरे लिखें, और कहानी के अंत के बारे में सोच लें।

😊🙏
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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अगली सुबह अजय और रूचि दोनों साथ ही रूचि के घर की तरफ़ रवाना हुए। जाने से पहले किरण जी ने जबरदस्ती कर के रूचि के मुँह में आज त्यौहार पर बनने वाले व्यञ्जनों को ठूँस दिया कि बहू को ऐसे थोड़े ही जाने देंगे। ख़ैर!

अजय ने त्यौहार की भावना के अनुकूल एक सजीला सा, लाल रंग का रेशमी कुरता-पायजामा पहना हुआ था।

माया ने उसे देखकर उसकी टाँग खिंचाई भी करी, “बाबू मेरा, आज तो दूल्हे जैसा जँच रहा है! भाभी के मम्मी-पापा को इम्प्रेस करना है क्या?”

“वो तो पहले से ही इम्प्रेस्सड हैं भाभी,” माया की बात पर रूचि हँसने लगी, “... आज अपनी साली को इम्प्रेस करने जा रहा है अज्जू,”

“वो भी अच्छा है,” माया इस खेल में पीछे हटने वाली नहीं थी, “वैसे भाभी, जब पूरी घरवाली पट गई है, तो आधी घरवाली की क्या बिसात?”

“क्या दीदी!”

“ये देखो इसको,” माया अब अजय की टाँग खींचने लगी, “साली के नाम पर मन में लड्डू फूट रहे होंगे... लेकिन ऊपर ऊपर दिखावा कर रहा है!”

“वापस आते टाइम जीजू को लेता आऊँगा,” अजय ने अब माया को वापस देना शुरू किया, “तब तक तुम अपने मन में लड्डू फोड़ती रहो,”

“अले मेला बाबू,” माया हार मानने वाली नहीं थी, “गुच्चा हो गया...!”

“अरे बस कर,” किरण जी को अंततः शामिल होना ही पड़ा, “देर हो रही है,”

फिर अजय और रूचि की तरफ़ मुखातिब होते हुए, “जाओ बेटे, और जल्दी वापस आना! काम है बहुत से,”

“जी माँ,”

रूचि ने जाते हुए तीनों लोगों - अशोक जी, किरण जी, और माया - के पैर छू कर आशीर्वाद लिया।

सभी ने उसको दीर्घायु, यश, स्वास्थ्य और प्रसन्नता के आशीर्वाद दिए।

जाते जाते किरण जी ने अजय को हिदायद दी कि रूचि के घर के लिए कुछ मिठाइयाँ, मेवे इत्यादि लेता हुआ जाए - खाली हाथ न जाए। जाते जाते माया ने फिर से अजय की खिंचाई करी,

“जा, मेरे वीरन, लेकिन ध्यान रखना, रूचि की मौसी से थोड़ा सम्हल कर बात करना। ये मासियाँ बड़ी चालाक होती हैं!” उसने अजय को छेड़ते हुए कहा, “कहीं भाभी की जगह वो अपनी ही लड़की न बैठा दे... बच के रहना!”

"चिंता न करो भाभी! अगर ऐसा कुछ हुआ, तो मैं उस कलमुँही को ब्लीच कर दूँगी," रूचि ने चुहल करते हुए कहा।

अजय हँस पड़ा और रूचि के साथ घर से बाहर निकल गया।

रूचि का घर दूर था - नॉएडा में! ऊपर से समय ले कर चलने, मिठाईयाँ इत्यादि ख़रीदने, और त्यौहार के दिन की ख़रीददारी की गहमागहमी के कारण वहाँ पहुँचने में समय लग गया। रास्ते भर हर तरफ़ दीपावली की रौनक बिखरी हुई थी। घरों के बाहर रंगोली, दरवाजों पर तोरण और अन्य सजावटें, और बच्चों के पटाखों से खेलने की आवाज़ ने माहौल को रौनक वाला बना रखा था।

रूचि के पिता चूँकि जनरल मैनेजर थे, इसलिए उनको उनके पद के अनुरूप चार कमरों का घर आवंटित था। रूचि की माता जी स्वयं एक सरकारी बैंक में जनरल मैनेजर थीं। लिहाज़ा, उनका रहन सहन उच्च मध्यमवर्गीय परिवार के अनुरूप ही था। रूचि के घर पहुँचते ही उसकी माँ ने बड़े प्यार से उसका स्वागत किया,

“आओ बेटे, आओ! तुम्हारा ही इंतज़ार हो रहा था!”

अजय ने उनके पैर छू कर आशीर्वाद लिया।

“आयुष्मान भव,” उन्होंने आशीर्वाद दिया, “यशश्वी भव,”

रूचि के पिता भी पीछे पीछे आ गए, तो अजय ने उनके भी पैर छुए।

उन्होंने अजय को गले से लगाते हुए कहा, “जीते रहो बेटे! सुखी रहो! भई, अब तुम इस घर के भी बेटे हो... ये सभी फॉर्मलिटीज़ छोड़ दो।”

उन्होंने कहा और उसका हाथ पकड़ कर मेहमानखाने में ला कर उसको सोफ़े पर बैठाया।

उन्होंने कुछ देर तक उसका और उसके मम्मी पापा और माया का कुशल-क्षेम पूछा, इधर उधर की बातें करीं। इस बीच रूचि और उसकी माँ दोनों ही अंदर चले गए - दामाद की आवभगत करने के लिए रसोई में!

कोई पंद्रह मिनट के बाद मेहमानखाने में महिलाओं और लड़कियों का पूरा लाव-लश्कर प्रविष्ट हुआ - सबसे पहले रूचि की माँ, और उनके पीछे,

‘... सासू माँ!’

अजय के दिमाग में एक भयंकर विस्फ़ोट हुआ।

‘ये कैसे हो सकता है?’

रूचि की माँ के पीछे जो महिला चली आ रही थीं, उनको देख कर अजय को अपनी आँखों पर विश्वास नहीं हुआ,

‘ये तो... ये तो,’ उसके मन में विचार आया, और उसका सर बुरी तरह घूमने लगा।

“बेटे इनसे मिलो,” रूचि की माँ कह रही थीं, “ये हैं...”

‘ये तो रागिनी की माँ हैं...’

अजय के कानों में जैसे उनकी आवाज़ आनी बंद हो गई। वो महिला भी कुछ कह रही थीं।

लेकिन अजय की आँखें उस समय जिस शख़्स को देख रही थीं, वो उसको अपने जीवन में फिर कभी देखना नहीं चाहता था। उस महिला के पीछे जो लड़की खड़ी थी, उससे अधिक ज़हरीली नागिन से अजय परिचित नहीं था। रेशमी चूड़ीदार शलवार और रेशमी कढ़ाई किया हुआ कुर्ता पहने, वो उन्नीस बीस साल की लड़की, अजय को देख कर मुस्कुरा रही थी।

“नमस्ते जीजू,” उसने मुस्कुराते हुए कहा।

किसी अन्य को उसकी बोली बड़ी मीठी लगती - लेकिन अजय को लगा कि जैसे किसी ने उसके कानों में पिघला हुआ सीसा उड़ेल दिया हो। वही चेहरा, वही आँखें, वही मुस्कान, और वही नागिन, जिसने पिछले समय-काल में अजय की ज़िंदगी को नर्क बना दिया था।

‘रागिनी...’ अजय के दिमाग में पहला शब्द कौंधा, फ़िर दूसरा, ‘महाजन…’

रागिनी, जिसने झूठे दहेज के केस में उसे और किरण जी को जेल भिजवाया था। रागिनी, जिसने उसके पिता अशोक जी का बनवाया घर और सारी बची खुची संपत्ति हड़प ली थी, और उसके जीवन की हर उम्मीद - उसकी अजन्मी संतान - को उसने चूर-चूर कर दिया था।

अजय का चेहरा सफेद पड़ गया। उसकी साँसें तेज हो गईं, और उसका सिर चकराने लगा। वो और कुछ सोच न सका और चक्कर खा कर वहीं ढेर हो गया।


**
इसका अंदेशा था मुझे पहले से ही की रुचि और रागिनी बहने ही होंगी।

बस आशा है कि रुचि के सर के दर्द से कहानी कुछ और रुख न ले। वैसे विधि में अगर जो रागिनी और अजय का मिलन है तो....
 

avsji

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इसका अंदेशा था मुझे पहले से ही की रुचि और रागिनी बहने ही होंगी।

बस आशा है कि रुचि के सर के दर्द से कहानी कुछ और रुख न ले। वैसे विधि में अगर जो रागिनी और अजय का मिलन है तो....

रिकी भाई, आप मेरी कहानियों के रहस्य चुटकियों में सॉल्व कर देते हैं। मैं डिटेक्टिव / तिलिस्मी कहानी कैसे लिखूं! 🤣
 

Sushil@10

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“एक सेकंड,” रागिनी ने कहा।

“क्या हुआ दीदी?”

रागिनी रूचि के पीछे आ कर उसकी ब्रा का हुक खोल देती है और उसको उसके स्तनों से अलग कर देती है।

“दीदी,” रूचि ने अपने स्तनों को ढँकते हुए अपना विरोध प्रदर्शित किया।

“अरे यार... मुझे देखने तो दे,” कह कर रागिनी ने उसकी हथेलिओं को उसके स्तनों से हटा दिया।

रूचि क्या करती! बस शर्म से रागिनी के सामने लगभग नग्न खड़ी रही।

“मस्त है तू बहना,” रागिनी ने रूचि के फिगर का मूल्याँकन करते हुए कहा, “ये निप्पल्स और ब्रेस्ट्स पर न कम से कम कोल्ड क्रीम लगा लिया कर... देख कैसे इन पर हल्की हल्की दरारें पड़ रही हैं! मॉइश्चर बना रहना चाहिए इनका,”

फिर रूचि की चड्ढी की इलास्टिक पकड़ कर नीचे करते हुए वो बोली, “तेरी पूची भी देख लूँ,”

रूचि के मन में अजीब अजीब से ख़याल आ रहे थे। जब से अजय ने रागिनी के साथ अपने रहस्य के बारे में उसको बताया था, तब से उसके मन में रागिनी को देखने का नज़रिया बदल गया था। लेकिन अजय की बात भी सच थी - उसके दो संस्करण थे, और दोनों में रागिनी और रूचि की भूमिका और स्थान अलग अलग थे। फिर भी रागिनी को ले कर रूचि के मन में सौतिया विचार आ तो गए ही थे। तिस पर रागिनी की ईर्ष्या और अब ये सब! रूचि समझ नहीं रही थी कि वो क्या करे! रागिनी ने अभी तक उसके साथ कुछ गलत नहीं किया था - करती भी क्यों? ये अलग ही टाइम-लाइन थी न!

“मस्त है यार,” रागिनी ने बढ़ाई करते हुए कहा, “वर्जिन पूची! और कितने सॉफ्ट सॉफ्ट बाल हैं तेरे,”

“तुम्हारे नहीं हैं?” न जाने रूचि कैसे पूछ पाई।

“न रे! चौदह पंद्रह में ही हार्ड हो गए थे मेरे,” उसने बताया, “इसीलिए मैं हेयर रिमूवल क्रीम लगाती रहती हूँ,”

उधर रूचि शर्म से पानी पानी हो रही थी।

“शरमा मत मेरी बहना! तू खज़ाना है खज़ाना!” रागिनी ने समझाया, “जब तक मैं हूँ, मैं तेरी ग्रूमिंग में हेल्प कर दूँगी। लेकिन उसके बाद मेरी सिखाई बातें भूल न जाना... बस अडिशनल थर्टी टू फोर्टी मिनट काफ़ी है अपनी स्किन की बढ़िया केयर रखने के लिए! और केयर ही सब कुछ है... समझी?”

“समझ गई दीदी,”

“गुड,” फिर खुद को नीली साड़ी में प्रदर्शित करती हुई बोली, “मैं कैसी लग रही हूँ?”

“बहुत सुन्दर,” यह अतिशयोक्ति नहीं थी - रागिनी थी भी बड़ी सुन्दर! कोई भी रंग उस पर फ़बता था।

वो मुस्कुराई, “बहना... तू न, मेरी वो रस्ट कलर वाली साड़ी रख ले,”

“क्यों दीदी?”

“क्यों क्या? मेरी चीज़ है और मैं तुझे देना चाहती हूँ, बस! रख ले!” वो बोली, “अच्छा, दूसरी शादी में क्या पहनेगी?”

“इनमें से कौन सी ट्राई करूँ? तुम्ही बता दो?”

रागिनी ने हर साड़ी पर निगाह डाली, “इन सबसे तो मेरी रस्ट कलर वाली साड़ी ही बेहतर है,” कह कर उसने अपने सूटकेस में से वो साड़ी निकाली। रागिनी वो साड़ी इसलिए लाई थी कि दिवाली पर पहनेगी। लेकिन दिवाली मनाई ही नहीं गई।

“लास्ट ईयर सिलवाया था इसका ब्लाउज़... अभी टाइट आता है मुझे... लेकिन तुझे सही आना चाहिए। पहन न?”

रूचि ब्रा पहनने लगी तो रागिनी ने उसको रोक दिया, “इसमें ब्रा नहीं पहनना होता... सॉफ्ट पैड्स हैं सामने!”

ब्लाउज़ बढ़िया फिटिंग की थी - रूचि का वक्ष-विदरण भी दिखाई दे रहा था। और साड़ी बहुत ही सेक्सी अंदाज़ में रूचि के शरीर से चिपकी हुई थी।

“सेक्सी,” रागिनी ने अनुमोदन किया, “इसको भैया की शादी में पहनना,”

“ओके,”

“और क्या क्या है?”

“अरे हो तो गया! दो इवेंट्स... दो ड्रेस,”

“पागल है क्या?” रागिनी हँसने लगी, “दो और चाहिए! दोनों इवेंट्स के लिए कम से कम एक एक और,”

“ये कैसा रहेगा?” रूचि ने एक रेशमी शलवार कुर्ता दिखाया।

“हाँ, ठीक है... लेकिन दीदी की शादी है, तो इससे बेहतर भी अगर हो सकता है, तो वो पहनो,”

“अब जो है, यही है!”

“हम्म... एक काम करते हैं, कल शॉपिंग कर लेते हैं! दो दिन बाद मैं चली जाऊँगी... और तेरी कपड़ों की चॉइस देख कर मज़ा नहीं आ रहा!”

रूचि ने थोड़ी देर न नुकुर किया फिर मान गई।

“और सुन,” रागिनी ने कहा, “शॉपिंग के सारे पैसे मैं दूँगी! बहुत माल है मेरे पास,”

जब सारे कपड़े इत्यादि वापस अपनी अलमारी में रख कर रूचि वापस बिस्तर पर आई, तो रागिनी ने कोई लोशन अपने हाथों में उड़ेंल कर चुपड़ते हुए कहा, “आ जा,”

“क्या दीदी?”

“अपनी टी शर्ट और ब्रा उतार,”

“मैं लगा लूँगी न दीदी,”

“बहस मत कर! उतार इनको... जल्दी,”

रूचि ने दो तीन बार और कहा फिर हार मान कर फिर से अपने स्तनों को उघाड़ कर रागिनी के सामने थी।

रागिनी ने उसके दोनों स्तनों पर बारी बारी से अच्छी तरह से लोशन लगाया। रूचि के चूचक इस पूरी प्रक्रिया में उत्तेजना के मारे कड़े हो गए थे। रागिनी ने मज़ाक में उसके दोनों चूचकों को अपनी दोनों तर्जनियों और अंगूठों में पकड़ कर थोड़ा बाहर की तरफ़ खींचते हुए उसको छेड़ा,

“क्यूट है तू,”

फिर उसका पजामा और चड्ढी उतार कर उसने रूचि के पुट्ठों और योनि पर भी लोशन लगा दिया।

“अपने एसेट्स का अच्छी तरह से ख्याल रखा कर बहना,” उसने उसकी योनि पर लोशन लगाते हुए कहा, “ये तुझे और अजय को खूब मज़ा देंगे! और सेक्स से अलग भी तो ये इम्पोर्टेन्ट हैं! तेरे बच्चे यहाँ से निकलेंगे [उसने उसकी योनि को छू कर बताया] और यहाँ से दूध पियेंगे [उसने उसके स्तनों को छुआ]... इसलिए इनकी हेल्थ प्रॉपर होनी चाहिए!”

“जी माता जी,” रूचि अब पूरी तरह से कंफ्यूज हो गई थी।

वो रागिनी को किस रूप में देखे? मौसेरी बहन के, या फिर अपनी सौत के? रागिनी ने रूचि का एक पैसे का नुकसान नहीं किया था। हाँ - उसका अपना जीवन जीने का अंदाज़ था जो रूचि के अंदाज़ से बहुत अलग था। लेकिन वो तब से केवल रूचि के लिए ही सब कर रही थी। उसने सोचा कि रागिनी बुरी नहीं है... उसके हालात अलग रहे होंगे अजय को ले कर! भूतपूर्व अजय को भविष्य की रागिनी के साथ कैसे कैसे अनुभव हुए, उसके आधार पर वो उसके संग अपना व्यव्हार और सम्बन्ध तो नहीं बिगाड़ सकती न? वैसे भी अजय ने भी कहा था कि वो रागिनी से नाराज़ नहीं है, बल्कि खुद से निराश है! शायद रागिनी आगे चल कर इतना बिगड़ी हो कि अपने लाभ के लिए दूसरे का नुकसान कर दे?

रूचि कपड़े पहनने लगी तो रागिनी ने फिर से रोका, “सूखने दो कुछ देर...” और फिर अपने भी कपड़े उतारने लगी।

रूचि उत्सुकतावश उसको देखने लगी।

उसने अपनी ब्रा और चड्ढी उतार दी और अब वो भी रूचि की ही तरह पूरी तरह से नग्न थी।

रूचि ने एक पल के लिए उसकी ओर देखा और फिर हँसते हुए कहा, “अरे दीदी, तुम सच में बहुत बिंदास हो!”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “अरे, तेरी बहन हूँ न। फिर शर्म कैसी?” उसने अपनी बाहें फैलाईं और कहा, “देख बहना, ये है कॉन्फिडेंस। तुझमें भी ऐसा ही कॉन्फिडेंस होना चाहिए।”

रूचि ने हँसते हुए कहा, “हाँ दीदी! वाह दीदी... तुम तो सच में बहुत खूबसूरत हो!”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “तू भी कम नहीं है, रूचि।”

रूचि मुस्कुराई, “वैसे दीदी, तुम्हारे ये... बहुत अच्छे हैं।”

रागिनी ने एक ठहाका लगाया, “ये? मतलब मेरे बूब्स? हाँ यार, ये तो मेरी यू.एस.पी. हैं!”

उसने अपने स्तनों के नीचे अपनी हथेलियों को लगा कर हल्के से उछाला और कहा, “सॉलिड हैं! चेक करेगी?”

रूचि ने एक शरारती मुस्कान दी और कहा, “ठीक है। देखूँ तो सही।”

उसने रागिनी के पास जाकर उसके दाहिने स्तन को हल्के से छुआ और फिर उसे चूम लिया।

रागिनी हल्के से हँसी और कहा, “अरे रूचि, तू तो सच में बिंदास हो रही है!”

रूचि ने रागिनी के स्तन को ध्यान से देखा और फिर कहा, “दीदी, तुम्हारे ब्रेस्ट की गहराई में तो एक लाल तिल है।”

उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा... उसे अजय की बात याद आ गई थी।

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “हाँ... मेरे दोनों बॉयफ्रेंड्स को भी ये बहुत पसंद था।”

रूचि हल्के से मुस्कुराई।

लेकिन मन ही मन वो अजय की बातों को याद कर रही थी। उसे अब यकीन हो गया था कि अजय जो कह रहा था, वो सच था। रागिनी वही लड़की थी, जिसने उसके भविष्य को बर्बाद किया था। लेकिन वो नहीं चाहती थी कि इस बात से उसके और रागिनी के सम्बन्ध पर कोई बुरा असर पड़े। लेकिन वो यह भी चाहती थी कि रागिनी आगे चल कर ‘वैसी’ औरत न बने, जैसी वो अजय के साथ हो गई थी। क्या इस बात का कोई इलाज़ है?

अगर अजय का जीवन बदल सकता है, उसमें सकारात्मक सुधार आ सकते हैं, तो रागिनी का जीवन भी तो बदल सकता है न? रूचि ने सोचा कि रागिनी के बेहतर भविष्य के लिए जो संभव होगा, वो करेगी।

उसने हँसते हुए कहा, “दीदी अब कपड़े पहन लेते हैं। सभी इंतज़ार कर रहे होंगे।”

रागिनी ने हँसते हुए कहा, “हाँ, ठीक है।”

रूचि ने हल्के से मुस्कुराते हुए कहा, “और दीदी, तुम भी किसी अच्छे लड़के को ढूंढ कर शादी कर लो!”

रागिनी ने एक गहरी साँस ली और कहा, “हाँ यार... देखते हैं। तेरा कोई और दोस्त है क्या? अगर अजय जैसा कोई हो, तो बता दे मुझे! मैं तो तुरंत हाँ कर दूँगी।”

दोनों ने अपने कपड़े पहने और बाहर मेहमानखाने में चली गईं।

रूचि के मन में एक अजीब-सी उथल-पुथल थी। उसने मन ही मन फैसला किया कि वो अजय से रागिनी के बारे में और जानने समझने की कोशिश करेगी - जिससे उसका और उसके होने वाले परिवार का जीवन बर्बाद न हो।

*
Awesome update and nice story
 
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उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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रिकी भाई, आप मेरी कहानियों के रहस्य चुटकियों में सॉल्व कर देते हैं। मैं डिटेक्टिव / तिलिस्मी कहानी कैसे लिखूं! 🤣
अभी तो बाद में बताया 😌
 
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उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बढ़िया लगा कि रुचि भी बदले या जलन की न सोच रागिनी की जिंदगी सही करने के बारे में सोच रही है।

उम्दा अपडेट भाई जी :applause:
 
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“बाबू,” अजय को माया की आवाज़ आई।

“हाँ दीदी,” उसने अखबार में आँखें गड़ाए हुए कहा।

रूचि के जाने के बाद अजय बैठक में ही पाँव पसार कर बैठा हुआ दो दिन पुराना फाइनेंसियल अखबार पढ़ रहा था। उसने अखबार को अलग रखा तो देखा कि माया दीदी अपने हाथों में पूजा की थाली लिए उसके सामने खड़ी थीं।

“हाँ दीदी?” उसने पूछा।

“आज भाई दूज है...”

“ओह,” अचानक से उसको भी याद आ गया, और वो बड़ी तमीज से अपना पाँव समेट कर माया के सामने थोड़ा अटेंशन में बैठ गया।

“इस सारी अगड़म बगड़म में त्यौहार का भी ध्यान नहीं रहा!” माया ने मुस्कुराने की कोशिश करी।

अजय ने देखा कि कैसे दो ही दिनों में माया दीदी का चेहरा मुरझा गया था। कल जब वो वापस आया था, तब उनके चेहरे पर उसने मुस्कान देखी थी - लेकिन वो राहत भरी मुस्कान अधिक थी। अपने लिए सभी के प्रेम को महसूस कर के उसका दिल भर आया। मनुष्य धन से ही नहीं, बल्कि प्रेम से भी धनी बन सकता है। कैसी बढ़िया क़िस्मत है उसकी!

अजय मुस्कुराया, “लव यू, दीदी!”

माया ने मुस्कुराते हुए अजय की आरती उतारी, उसके माथे पर तिलक लगाया और ईश्वर से उसकी लम्बी आयु और अच्छे स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करी। जब उन्होंने आँखें खोलीं, तो अजय ने उनके पैर छू कर उनका आशीर्वाद लिया।

“मेरा बेटा... मेरा बाबू... भगवान तुम्हे खूब स्वस्थ रखें! तुम्हे दीर्घायु करें, और सारे कौशल और यश दें,” कहते कहते माया की आँखों से आँसू आ गए।

अजय ने माया दीदी के हाथों से पूजा की थाली ले कर अपने हाथ में पकड़ ली और उनको अपने आलिंगन में भर लिया।

“थैंक यू दीदी! थैंक यू सो मच!”

फिर उनके गालों को चूम कर बोला, “तुम्हारा ये भाई कभी भी तुमको कोई दुःख नहीं होने देगा...”

“पता है मुझको मेरे वीरन... तुमने तो बिना मेरे माँगे मुझको इतना कुछ दे दिया है कि मैं क्या कहूँ! तुम्हारे जैसा भाई बहुत भाग्य से मिलता है... सबसे भाग्यशाली बहन हूँ मैं दुनिया की!”

उधर किरण जी और अशोक जी अहाते में बैठे भाई बहन के बीच यह सुन्दर दृश्य देख रहे थे।

“बिटिया के कारण कितनी रौनक रहती है न अशोक,”

“हाँ भाभी,” अशोक जी ने गहरी साँस छोड़ते हुए कहा, “घर खाली खाली हो जाएगा इसके जाने पर,”

“लेकिन अच्छा है... ससुराल मिले तो ऐसी,”

“लेकिन सच में भाभी, अपना अज्जू बहुत समझदार और ज़िम्मेदार हो गया है,”

“हाँ... रूचि बिटिया भी अच्छी है!” किरण जी बोलीं, “अशोक, एक बात कहूँ?”

“हाँ भाभी, बोलिये न,”

“अज्जू और रूचि की भी जल्दी से शादी कर देते हैं न?”

“आपने मेरे मुँह की बात छीन ली भाभी! मैं भी यही सोच रहा था।”

“सच में?”

अशोक जी ने ‘हाँ’ में सर हिलाया, “दो एक दिन में बिटिया के पापा से बात करता हूँ,”

“बहुत अच्छी बात है अशोक!”

कह कर किरण जी वहाँ से उठने लगीं।

उधर माया की बात पर अजय मुस्कुराया, “नहीं दीदी, हम हैं भाग्यशाली कि तुम हमारे साथ हो... तुमको नहीं पता कि तुम कितनी अच्छी हो! इसलिए तुम्हारे लिए सब बेस्ट होना चाहिए,”

माया ने आँसुओं को पोंछते हुए कहा, “मेरे लिए बेस्ट यही है कि तुम... मम्मी, पापा सब हेल्दी और सेफ़ रहो,”

“और जीजू? उनका कुछ नहीं?” अजय ने माया को छेड़ा।

“धत्त,”

“क्यों छेड़ता है बिटिया को?” किरण जी ने अजय को प्यार से झिड़का, “कुछ ही दिनों में राणा खानदान की रौनक बन जाएगी ये... फिर तू मिस करता फिरेगा अपनी दीदी को,”

किरण जी की बात पर अजय ने प्यार से माया को अपने आलिंगन में भर लिया।

“तो क्या हुआ माँ... कौन सा बहुत दूर जा रही है मेरी दीदी? और जिसके पार जा रही है, वो मेरा भाई है... वो बहुत प्यार करेगा तुमको दीदी!”

माया लजा कर मुस्कुराई, लेकिन बात को बदलती हुई बोली, “आगे से हमको ऐसे न डराना... तुमको कुछ हो गया न, तो हम लोग सुख से जी नहीं पाएँगे,”

अजय कुछ कहने को हुआ, लेकिन शब्द कम पड़ गए।

उसने बस भावनाओं में आ कर माया के कंधे पर अपना माथा रख दिया, “आई लव यू दीदी... तुम बेस्ट दीदी हो!”

“अरे एक मिनट, तुमको मिठाई तो खिला दूँ!” माया ने उससे थोड़ा अलग हो कर थाली में से गुलाब जामुन उठा कर उसे मुँह खोलने को कहा, “मुँह खोलो... आ आ...”

और उसके मुँह में पूरा गुलाब जामुन घुसेड़ दिया।

अजय मुँह में बड़ी सी मिठाई ठूँसे हुए कभी खाता तो कभी हँसता, उसी तरह हँसते हँसते वो वापस अपने आसन पर बैठ गया। माया भी अजय के बगल आ कर उससे लिपट कर बैठ गई।

“माँ,” अजय ने किरण जी को कहा, “आईये माँ... मेरे पास बैठिये,”

किरण जी भी अजय के बगल आ कर बैठ गईं।

कुछ देर हँसी मज़ाक, छेड़-छाड़ के बाद किरण जी बोलीं, “बेटे, एक बात कहनी थी,”

“हाँ माँ... कहिए न?”

“तुझे याद है? कुछ महीनों पहले तूने मुझसे कहा था कि कुछ भी हो जाय, हमको वानप्रस्थ हॉस्पिटल नहीं जाना... और अगर जाना भी है, तो डॉक्टर अजिंक्य देशपाण्डे से तो इलाज़ बिल्कुल भी नहीं करवाना।”

“हैं? ऐसा कहा था तुमने बाबू?” माया चौंक कर बोली, “क्यों?”

अजय हँसने लगा, “हाँ माँ, याद है।”

“लेकिन बाबू... तुम्हारा इलाज़ तो उन्होने ही किया।”

“हाँ बेटे... और मुझे कहना होगा कि बढ़िया डॉक्टर हैं वो।” किरण जी बोलीं, “हमको उन्होंने सब कुछ डिटेल में बताया। कुछ भी नहीं छुपाया। ... फिर तूने वैसा क्यों बोला?”

अजय से अचानक से कुछ कहते न बना।

तब तक अशोक जी भी अंदर आ गए थे, और बगल के सोफ़े पर आ कर बैठने लगे थे। उनको लगा कि शायद अजय को उनकी सहायता चाहिए इस बात का उत्तर देने में।

“भाभी, कुछ दिन पहले कोई खबर आई थी...”

“हाँ माँ... ग़लतफ़हमी हो गई थी मुझे। वो अच्छे डॉक्टर तो हैं। उस अफ़वाह के चक्कर में... वो सही बात नहीं थी। आई ऍम सॉरी।”

“नहीं रे! इसमें सॉरी वाली क्या बात है!”

“बेटे,” अशोक जी बोले, “डॉक्टर देशपाण्डे कह रहे थे कि वो तुमसे मिलना चाहते हैं... कह रहे थे कि उनको कुछ बातें करनी हैं और कुछ टेस्ट्स भी।”

“जी पापा,”

“ठीक है। कब जाना चाहता है?” किरण जी बोलीं।

“कल? सवेरे सवेरे। उसके बाद तो कॉलेज खुल जाएगा न। दीदी और भैया की शादी के लिए छुट्टियाँ चाहिए मुझको... अभी ले लूँगा, तो आगे नहीं ले पाऊँगा।”

“ठीक है,” अशोक जी ने कहा, “तो कल ऑफिस जाते जाते मैं तुमको वहाँ छोड़ दूँगा,”

“जी, बेहतर...”

“आज का क्या प्लान है?” अशोक जी ने पूछा।

“मेरा तो कुछ भी नहीं है... डॉक्टर ने कहा है थोड़ा आराम कर लूँ!” अजय बोला, “आप लोग ही बताएँ,”

“सरिता (कमल की माता जी) ने बुलाया है,” उन्होंने बताया, “कह रही थीं कि भाई दूज मनाना है,”

“बहुत अच्छी बात है पापा,” अजय बोला, “मुझे आंटी बहुत अच्छी लगती हैं... दीदी को और मुझको इतना प्यार देती हैं,”

माया अजय की बात सुन कर थोड़ा लजा गई।

“... आपको वो अपना बड़ा भाई बनाना चाहती हैं, ये तो और भी अच्छी बात है!”

“अच्छी बात है फिर,”

“कब चलना है?”

“शाम को? राणा भाई साहब कह रहे थे कि माया बिटिया संग रामायण पाठ भी कर लेंगे,”

“बहुत ही अच्छी बात है... हम सभी इस बार पूजा पाठ में शामिल हो जायेंगे,” किरण जी ने खुश होते हुए कहा।

“अभी क्या करें?” माया प्रत्यक्ष में बोली।

वैसे, शाम को अपनी ससुराल जाने की बात सुन कर वो खुश हो गई थी।

“कोई फ़िल्म देखें? बहुत दिन हो गए,” अजय ने सुझाया।

“हाँ ठीक है,”

अजय ने टीवी ऑन कर के चैनल बदलने शुरू कर दिए।

तमाम चैनलों पर बस फूहड़ फ़िल्में चल रही थीं। दीपावली जैसे उत्सव के समय वैसी फूहड़ फ़िल्में देखना घोर पाप है! वैसे भी अब इस घर में भी बड़े सारे परिवर्तन हो चले थे। यहाँ भी समय नष्ट करने वाले काम अब कम हो गए थे, और अच्छी सुन्दर बातें अधिक होतीं। चैनल बदलते बदलते अजय एक तेलुगु चैनल पर रुका, जहाँ ‘मायाबाज़ार’ फिल्म दिखा रहे थे। वो वहीं रुक गया।

इस फ़िल्म के बारे में अजय को पता था - साफ़ सुथरी पारिवारिक फ़िल्म जिसमें भरपूर मनोरंजन था।

“ये कौन सी भाषा है?” अशोक जी ने पूछा।

“तेलुगु पापा,” अजय ने बताया, “दिक्कत कम होगी क्योंकि सब-टाइटल आता रहेगा पापा... नीचे पढ़ कर सब समझ में आ जायेगा! बढ़िया फ़िल्म है,”

“अच्छा,” अशोक जी अनिश्चितता से बोले।

अब वो फ़िल्म देखें, या सब-टाइटल पढ़ें! लेकिन अजय का उत्साह देख कर उन्होंने कुछ कहा नहीं।

यह अच्छी बात थी कि वो स्वस्थ था और खुश था। डॉक्टर ने भी क्लीन-चिट दे दी थी उसको। परिवार के संग बैठ कर फ़िल्म देखना उनको बहुत ही भला विचार लग रहा था।
 
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