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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

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ARCEUS ETERNITY

"अहिंसा परमो धर्मः, धर्म हिंसा तथैव च।"
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मैग्नार्क द्वार: (

सुयश को आर्यन की याद के साथ आगे का रास्ता पाने में आसान हो गई।

तौकीफ़ के बार बार परेशानी में फ़सने के बावज़ूद वो हर बार जिंदा बच जाता है।
आख़िर ये तौफ़ीक़ मरेगा कब।

नीली जेली ने तो इन्हें बचा लिया और आगे बढ़ने आगा अच्छा रास्ता मिल गया।

ये मैग्नार्क द्वार को पार करने के बाद सुयश और टीम को किन खतरों का सामना करना होगा ये तो आगे देखना होगा।

सफ़र में जो सही समय पर लगेगा गा दिमाग वो रहेगा जिंदा।

जिसने लिया गलत निर्णय वो निश्चित रूप से इस सफर में मरेगा।

कुल मिलाकर अपडेट शानदार|

मैंने सुबह रिव्यू वादा किया था लेकिन अब रिव्यू
आ रही है, थोड़ी सुबह काम में व्यस्त था।

डेर सॉवर मेरा रिव्यू आएगा जरूर।
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Raj_sharma

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सुयश को आर्यन की याद के साथ आगे का रास्ता पाने में आसान हो गई।

तौकीफ़ के बार बार परेशानी में फ़सने के बावज़ूद वो हर बार जिंदा बच जाता है।
आख़िर ये तौफ़ीक़ मरेगा कब।
Taufiq abhi nahi mar sakta dost :D uska man bhi badal gaya hai waise.
नीली जेली ने तो इन्हें बचा लिया और आगे बढ़ने आगा अच्छा रास्ता मिल गया।

ये मैग्नार्क द्वार को पार करने के बाद सुयश और टीम को किन खतरों का सामना करना होगा ये तो आगे देखना होगा।

सफ़र में जो सही समय पर लगेगा गा दिमाग वो रहेगा जिंदा।

जिसने लिया गलत निर्णय वो निश्चित रूप से इस सफर में मरेगा।
Beshak, savdhani hati, durghatna ghati:approve:
कुल मिलाकर अपडेट शानदार|

मैंने सुबह रिव्यू वादा किया था लेकिन अब रिव्यू
आ रही है, थोड़ी सुबह काम में व्यस्त था।

डेर सॉवर मेरा रिव्यू आएगा जरूर।
Koi baat nahi mitra, jab jaago tabhi savera, :D Thank you very much for your valuable review and superb support bhai :thanx:
 
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#119.

गोंजालो से युद्ध:

(13 जनवरी 2002, रविवार, 07:10, सामरा राज्य, अराका द्वीप)

पंचशूल प्राप्त करने के बाद व्योम को उसमें काफी शक्ति का अहसास होने लगा था।

व्योम ने एक नजर फिर उस मूर्ति वाली दिशा की ओर मारी और जंगल में उस दिशा की ओर बढ़ गया।

सुबह का समय था, हवाओं में ठंडक का अहसास था। सामरा घाटी में चारो ओर रंग बिरंगे फूल लगे थे, जो कि उस घाटी की सुंदरता को बहुत ही खूबसूरत बना रहे थे।

रास्ते में लगे पेड़ों से व्योम ने फल खाकर पानी पी लिया था। व्योम को चलते हुए एक घंटा हो गया था।

रास्ते में व्योम को एक साफ पत्थर दिखाई दिया, व्योम कुछ देर के लिये उस पत्थर पर बैठकर इस घाटी के बारे में सोचने लगा।

व्योम को लग रहा था कि इस जंगल में अनेकों खतरों का सामना करना पड़ेगा, पर रास्ते में उसे कोई भी खतरा दिखाई नहीं दिया।

तभी व्योम को सूखे पत्ते के खड़कने की एक आवाज सुनाई दी। उसकी आँखें तुरंत आवाज की दिशा में घूम गईं।

व्योम को दूर से चलकर आता हुआ एक साया दिखाई दिया। ऐसे घने जंगल में किसी को देखकर, व्योम तुरंत एक पेड़ की ओट में छिप गया।

धीरे-धीरे चलता हुआ वह साया व्योम के बगल से गुजरा। वह सामरा राज्य की खूबसूरत राजकुमारी त्रिकाली थी।

त्रिकाली का रंग दूध के समान गोरा और बाल भूरे रंग के थे।

त्रिकाली ने किसी पौराणिक राजकुमारी की तरह पीले रंग की सुंदर सी ड्रेस पहन रखी थी। उसके गले में सोने का हार और हाथों में सोने की चूड़ियां भी पहन रखीं थीं।

त्रिकाली के हाथ में एक सोने की थाली थी, जिसमें कुछ पूजा का सामान रखा था।

त्रिकाली को देखकर व्योम को बहुत आश्चर्य हुआ।

“इतने भयानक जंगल में इतनी सुंदर लड़की अकेले क्यों घूम रही है?” व्योम ने अपने मन में सोचा- “और... इसका पहनावा तो किसी राजकुमारी के जैसा है। इस लड़की के इस प्रकार घूमने में कुछ ना कुछ तो रहस्य अवश्य है?...कहीं यह उन बौनों की राजकुमारी तो नहीं है? मुझे इसका पीछा करके देखना चाहिये।”

यह सोच व्योम दबे कदमों से त्रिकाली के पीछे चल दिया।

त्रिकाली भी उसी दिशा में जा रही थी, जिधर व्योम ने एक ऊंची सी मूर्ति को पहाड़ से देखा था।

कुछ देर तक पीछा करते रहने के बाद व्योम को वह मूर्ति दिखाई देने लगी।

मूर्ति को देख व्योम हैरान रह गया। वह मूर्ति हिं..दू देवी महा…का..ली की थी। मूर्ति में देवी को नरमुंडों की माला पहने और जीभ निकाले दिखाया गया था। देवी ने अपने आठों हाथों में अलग-अलग शस्त्र को धारण कर रखा था।

“देवी की मूर्ति अटलांटिक महासागर के इस रहस्यमय द्वीप के जंगल में कहां से आयी?” व्योम को मूर्ति को देख बिल्कुल भी विश्वास नहीं हो पा रहा था।

त्रिकाली, मूर्ति के पास जाकर रुक गयी। त्रिकाली ने अपने हाथ में पकड़ी पूजा की थाली को वहीं जमीन पर रख दिया और देवी की मूर्ति के सामने हाथ जो ड़कर अपना सिर झुकाया।

अब त्रिकाली पूजा की थाली से सामान निकालकर देवी की पूजा करने लगी। व्योम अभी भी पेड़ के पीछे छिपा हुआ त्रिकाली को देख रहा था।

तभी व्योम की नजर त्रिकाली की ओर बढ़ रहे एक अजीब से जीव पर पड़ी।

वह जीव कई जानवरों का मिला-जुला रुप दिख रहा था।

उस जानवर का शरीर 6 फुट ऊंची एक विशाल बिल्ली की तरह का दिख रहा था, उसके सिर पर कुछ अजीब से पंखों का ताज जैसा लगा दिखाई दे रहा था। उसके शरीर पर मछली के समान गलफड़ बने थे, जिसे देखकर साफ पता चल रहा था कि वह जीव पानी में भी आसानी से साँस ले सकता है।

उस जानवर की पूंछ पीछे से किसी झाड़ू के समान थी। उसने अपने गले में धातु के लॉकेट में एक पीले रंग का रत्न पहन रखा था।

व्योम ने आज तक किताबों में भी कभी ऐसा जीव नहीं देखा था।

वह जीव दबे पाँव त्रिकाली की ओर बढ़ रहा था।

व्योम देखते ही समझ गया कि यह जीव त्रिकाली पर हमला करने जा रहा है। व्योम ने अपनी जेब से चाकू को निकालकर तुरंत अपने हाथ में पकड़ लिया और धीरे-धीरे उस जीव की ओर बढ़ने लगा।

उस विचित्र जीव का पूरा ध्यान त्रिकाली पर था, इसलिये उसने पीछे से आते व्योम को नहीं देखा।

व्योम ने उस जीव के पास पहुंच, जोर से आवाज की।

इससे पहले कि वह जीव कुछ समझ पाता, व्योम छलांग मारकर उसकी पीठ पर चढ़ गया और अपने दोनों हाथों की कुण्डली बना उस जीव का गला पकड़ लिया।

व्योम की आवाज सुन त्रिकाली ने पीछे पलटकर देखा। त्रिकाली की नजर जैसे ही उस जीव पर पड़ी, वह उस जीव को पहचान गयी।

वह जीव जैगन का सेवक गोंजालो था, जिसमें अनेकों विचित्र शक्तियां थीं।

गोंजालो को देख त्रिकाली डर गयी, क्यों कि वह गोंजालो की शक्तियों से भली-भांति परिचित थी।

तभी त्रिकाली की नजर गोंजालो की पीठ पर बैठे व्योम की ओर गयी, जो एक साधारण चाकू से गोंजालो से भिड़ा हुआ था।

व्योम की हिम्मत और उसके बलिष्ठ शरीर की मसल्स देख त्रिकाली व्योम पर मोहित हो गई।

तभी गोंजालो ने अपनी पीठ को नीचे की ओर सिकोड़ा और फिर बहुत तेजी से ऊपर कर दिया।

व्योम को गोंजालो के इस दाँव का कोई अंदाजा नहीं था, इसलिये व्योम गोंजालो की पीठ से उछलकर एक पेड़ से जा टकराया।

वह टक्कर इतनी प्रभावशाली थी कि वह पेड़ ही अपने स्थान से उखड़ गया।

त्रिकाली को लगा कि इतनी भयानक टक्कर के बाद तो व्योम उठ भी नहीं पायेगा, पर त्रिकाली की आशा के विपरीत व्योम उछलकर खड़ा हुआ और फिर से गोंजालो को घूरने लगा।

अब गोंजालो ने अपने सिर को एक झटका दिया। ऐसा करते ही उसके सिर पर लगे पंखों के ताज से कुछ पंख निकलकर तेजी से व्योम की ओर बढ़े। उन पंखों के आगे के सिरे, काँटों जैसे नुकीले थे।

उन पंखों का निशाना व्योम के दोनों पैरों की ओर था। काँटों को अपनी तरफ बढ़ते देख व्योम तेजी से उछला।

पर जैसे ही व्योम उछला, वह 50 फुट ऊपर तक हवा में चला गया।

यह देख गोंजालो और त्रिकाली को छोड़ो, व्योम स्वयं ही आश्चर्य में पड़ गया। व्योम अब हवा में धीरे-धीरे किसी पतंग की मानिंद लहरा रहा था।

“यह मैं हवा में कैसे लहरा रहा हूं? क्या यह उस पंचशूल की किसी शक्ति का असर है?” व्योम ने सोचा।

तभी गोंजालो की पूंछ तेजी से लंबी हुई और व्योम के पैरों में लिपट गई।
इससे पहले कि व्योम कुछ समझ पाता, गोंजालो ने व्योम को अपनी पूंछ में लपेटकर बिजली की तेजी से एक चट्टान पर पटक दिया।

एक बहुत जोरदार आवाज हुई और चट्टान के टुकड़े-टुकड़े हो गये, पर व्योम को एक खरोंच भी नहीं आयी।

यह देख त्रिकाली मंत्रमुग्ध हो गई- “वाह! कितना बलशाली पुरुष है, मैं तो इसे साधारण मानव समझ रही थी, पर इसमें तो बहुत सी शक्तियां हैं।”

त्रिकाली को अब इस युद्ध में मजा आने लगा था। वह किसी दर्शक की भांति एक पेड़ के पास खड़ी होकर इस युद्ध का पूर्ण आनन्द उठाने लगी थी।

व्योम भी स्वयं की शक्तियों से आश्चर्य में था।

इस बार व्योम ने गोंजालो की पूंछ को पकड़कर जोर से घुमाया और उसे आसमान में दूर उछाल दिया।

यह व्योम की एक छोटी सी ताकत का नमूना था। गोंजालो आसमान में बहुत ऊंचे तक गया, पर अचानक उसने अपने शरीर को सिकोड़कर अपने वेग को नियंत्रित किया और आसमान से लहराते हुए नीचे की ओर आने लगा।

इस बार गोंजालो के शरीर के मछली वाले भाग से एक बिजली निकलकर कड़कती हुई व्योम की ओर बढ़ी।

वह बिजली व्योम के शरीर से जाकर टकराई।

गोंजालो पूरा निश्चिंत था कि इस बार व्योम के शरीर के चिथड़े उड़ जायेंगे, पर गोंजालो की बिजली का व्योम पर कोई असर नहीं हुआ।

इस बार व्योम ने अपना दाहिना हाथ झटककर गोंजालो की ओर बढ़ाया।
व्योम के दाहिने हाथ में अब पंचशूल नजर आने लगा।

पंचशूल से एक बिजली की लहर निकलकर गोंजालो पर पड़ी और गोंजालो का पूरा जिस्म उस तेज बिजली से झुलस गया।

तभी हवा में एक गोला प्रकट हुआ। गोंजालो उस गोले में समा कर गायब हो गया।

उधर त्रिकाली लगातार व्योम की अद्भुत शक्तियों को देख रही थी। अब उससे रहा ना गया और वह बोल उठी- “तुम कौन हो पराक्रमी? तुम में तो देवताओं जैसी अद्भुत शक्तियां हैं।”

अपना काम करके पंचशूल वापस हवा में विलीन हो गया।

त्रिकाली को अंग्रेजी भाषा में बात करते देख व्योम आश्चर्य से भर उठा।

“मेरा नाम व्योम है, मैं तो एक साधारण इंसान हूं, यह सारी शक्तियां तो मुझे इस रहस्यमय घाटी से प्राप्त हुईं हैं। मैं अभी स्वयं इन्हें समझने की कोशिश कर रहा हूं। पर आप कौन हैं? और इस खतरनाक घाटी में अकेली क्या कर रहीं हैं? और आप इतनी अच्छी अंग्रेजी भाषा कैसे बोल रहीं हैं?”

“मेरा नाम त्रिकाली है। मैं इसी द्वीप की रहने वाली हूं और मुझे अंग्रेजी ही नहीं, और भी कई भाषाएं आती हैं।” त्रिकाली ने कहा- “पर तुम इस द्वीप पर कैसे आ गये? यहां पर तो किसी का भी पहुंचना बिल्कुल
नामुमकिन सा है।”

“इस क्षेत्र में मेरी बोट का एक्सीडेंट हो गया था, जिसके कारण भटककर मैं यहां आ गया।” व्योम ने मुस्कुराते हुए कहा- “वैसे इस द्वीप का नाम क्या है? और यह किस देश के अंतर्गत आता है?”

“इस द्वीप का नाम अराका है और यह एक स्वतंत्र द्वीप है। यह किसी देश की सीमा में नहीं आता और मैं इस द्वीप के राजा कलाट की बेटी हूं। मैं यहां देवी की पूजा के लिये आयी थी। तभी पीछे से उस जीव ने आक्रमण कर दिया था, पर आपने मुझे बचा लिया। इसके लिये आपका बहुत-बहुत धन्यवाद।”

“अच्छा तो आप इस द्वीप की राजकुमारी हैं।” व्योम ने थोड़ा झुककर त्रिकाली को सम्मान देते हुए कहा- “लेकिन आप इतने भयानक जंगल में अकेले यहां क्या कर रहीं हैं? यहां तो हर कदम पर खतरे भरे हुए हैं।”

“मैं पूजा पर हमेशा अकेली ही आती हूं।” त्रिकाली ने कहा- “वैसे मेरे गले में हमेशा रक्षा कवच रहता है, जिसकी वजह से जंगल के कोई भी जानवर मुझ पर आक्रमण नहीं करते हैं, पर आज नहाने के बाद, मैं रक्षा कवच गले में पहनना भूल गई।”

यह कहकर त्रिकाली ने अपने वस्त्रों में छिपा एक काले रंग का मोटा सा धागा निकाला, जिसके नीचे एक लाल रंग का रत्न लगा हुआ था।

“क्या आप यह रक्षा कवच मेरे गले में बांध सकते हैं?” त्रिकाली ने रक्षा कवच को व्योम की आँखों के आगे लहराते हुए कहा।

“जी हां! क्यों नहीं ।” व्योम ने त्रिकाली के हाथों से रक्षा कवच लेकर एक नजर उस पर डाली और फिर उसके पीछे की ओर आ गया।

त्रिकाली ने अपने भूरे बालों को अपने हाथों से आगे की ओर कर लिया। व्योम की नजर त्रिकाली की दूध सी सफेद गोरी गर्दन की ओर गई।

व्योम थोड़ी देर तक त्रिकाली को निहारने लगा, तभी त्रिकाली बोल उठी- “क्या हुआ बंध नहीं रहा है क्या?”

“न...नहीं...नहीं ऐसी कोई बात नहीं है...वो...वो...मैं कुछ सोचने लगा था?” व्योम ने घबरा कर कहा और त्रिकाली के गले में उस धागे को बांध दिया।

जब व्योम, त्रिकाली के गले में रक्षा कवच बांध रहा था, तो त्रिकाली ने देवी का..ली को देखते हुए आँख बंद करके होंठो ही होंठो में कोई मंत्र बुदबुदाया, जो व्योम को दिखाई नहीं दिया।

रक्षा कवच गले में बंधते ही त्रिकाली के होंठो पर एक गहरी मुस्कान छा गई।

“ठीक से तो बांधा है ना?” त्रिकाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “कहीं खुल तो नहीं जायेगा?”

“नहीं ... नहीं …. मेरी बांधी गांठ कभी नहीं खुलती।” यह बोलते हुए व्योम के चेहरे पर भी मुस्कुराहट आ गयी।

तभी त्रिकाली ने अपने वस्त्रों में छिपा एक और रक्षा कवच निकाल लिया। व्योम की नजर अब दूसरे रक्षा कवच पर थी, जैसे वह पूछना चाहता हो कि अब इसका क्या?

त्रिकाली व्योम को इस प्रकार देखते पाकर बोल उठी- “अरे यह तुम्हारे लिये है। यहां कदम-कदम पर खतरे भरे पड़े हैं, इसलिये तुम्हारा बचाव भी जरुरी है।”

व्योम पहले तो हिचकिचाया फिर उसने त्रिकाली से रक्षा कवच अपने गले में बंधवा लिया।

रक्षा कवच बांधने के बाद त्रिकाली व्योम से बिना कुछ कहे अपनी अधूरी पूजा को पूरा करने के लिये दोबारा से देवी की मूर्ति के पास बैठ गई।

व्योम ने बीच में कुछ कहना ठीक ना समझा, इसलिये वह भी अपने जूते उतारकर, त्रिकाली के पास वहीं जमीन पर बैठ गया।

व्योम अब आँख बंद किये, हाथ जोड़े बैठी त्रिकाली को अपलक निहार रहा था।

थोड़ी देर पूजा करने के बाद त्रिकाली ने आँखें खोली और व्योम को बगल में बैठा देख मुस्कुरा उठी। फिर त्रिकाली ने देवी के सामने हाथ जोड़कर सिर झुकाया।

“तुम भी देवी के सामने हाथ जोड़ लो।” त्रिकाली ने व्योम से कहा- “देवी सबकी इच्छाएं पूरी करती हैं।”

व्योम ने कुछ सोचा और फिर उसने भी देवी के सामने सिर झुकाया।

व्योम के सिर झुकाते ही उसके गले में पड़ा रक्षा कवच का लाल रत्न एक बार तेजी से चमका, जिसे चमकते देख त्रिकाली के चेहरे पर एक गहरी मुस्कान आ गयी।

त्रिकाली अब उठकर खड़ी हो गयी और एक दिशा की ओर चल दी।

“अरे-अरे... कहां जा रही हो आप?” त्रिकाली को जाते देख व्योम बोल उठा- “अभी तो मुझे आपसे बहुत सारे प्रश्नों का जवाब चाहिये।”

“अगर जवाब चाहिये तो मेरे साथ चलना पड़ेगा। मैं यहां पर तुम्हारे किसी भी सवाल का जवाब नहीं दे सकती।” त्रिकाली ने कहा।

“ठीक है मैं चलने के लिये तैयार हूं।” व्योम भी त्रिकाली के पीछे-पीछे चल दिया।

जारी रहेगा_______✍️
Ye gonjalo wahi hai na, jo makota ka bhediya jaisa sevak hai??🤔 batao usme bhi itni sakti hai? To makota me kitni hogi? Aur uss shetaan me kitni jisko wo jinda karna chahte hai?🤯
Awesome update and superb story bhai ji 👌🏻👌🏻
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Ye gonjalo wahi hai na, jo makota ka bhediya jaisa sevak hai??🤔 batao usme bhi itni sakti hai? To makota me kitni hogi? Aur uss shetaan me kitni jisko wo jinda karna chahte hai?🤯
Awesome update and superb story bhai ji 👌🏻👌🏻
Avsya hi shaktishali hai wo dono bhi aur is se badhkar hi hai :shhhh:
Thank you very much for your valuable review and support bhai :thanx:
 

Raj_sharma

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#121.

चैपटर-6
प्रकाश शक्ति:
(14 वर्ष पहले.......... 07 जनवरी 1988, गुरुवार, 17:30, रुपकुण्ड झील, चमोली, भारत)

रुपकुण्ड झील, भारत के कुमाऊं क्षेत्र का एक चर्चित पर्यटन स्थल है, जो कि देवभूमि कहलाने वाले उत्तर भारत का एक हिस्सा है।

रुपकुण्ड झील से कुछ ही दूरी पर, तीन पर्वतों की एक श्रृंखला है, जिसकी नोक त्रिशूल के आकार की होने के कारण उसे त्रिशूल पर्वत कहा जाता है।

त्रिशूल पर्वत से कुछ ही दूरी पर नन्दा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है।

रुपकुण्ड झील के पास शाम के समय एक लड़की हाथों में कैमरा लिये झील के आसपास की फोटोज खींच रही थी। काली जींस, काली जैकेट पहने उस लड़की के काले घने बाल हवा में लहरा रहे थे।

तभी वहां मौजूद एक गार्ड की नजर उस लड़की पर पड़ी।

“ओ मैडम! इस क्षेत्र में शाम होने के बाद टूरिस्ट का आना मना है।” गार्ड ने उस लड़की पर एक नजर मारते हुए कहा।

“हलो ! मेरा नाम कलिका है। मैं दिल्ली की रहने वाली हूं।”यह कहते हुए कलिका ने अपना सीधा हाथ, हाथ मिलाने के अंदाज में गार्ड की ओर बढ़ाया।

कलिका का हाथ आगे बढ़ा देख गार्ड एकदम से सटपटा गया।

शायद आज से पहले किसी भी टूरिस्ट ने उससे हाथ नहीं मिलाया था। गार्ड ने एक क्षण सोचा और फिर कलिका से हाथ मिला लिया।

“ऐक्चुली मैं दिल्ली से छपने वाली एक पत्रिका की एडिटर हूं और मैं रुपकुण्ड झील के बारे में अपनी पत्रिका में एक लेख लिख रही हूं।”

कलिका ने गार्ड से धीरे से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा- “दिन के समय की बहुत सी फोटोज मैंने पहले से ही खींच रखी है, पर अब मैं शाम के समय की कुछ फोटोज खींचना चाहती हूं।”

“अच्छा-अच्छा...तो आप लेख लिखती हैं।” गार्ड ने खुश होते हुए कहा- “ठीक है मैडम। खींच लीजिये आप यहां की फोटोज... पर मेरी भी एक-दो फोटो अपनी पत्रिका में जरुर डालियेगा।”

“हां-हां...क्यों नहीं....आप अगर मुझे यहां के बारे में बताएं तो मैं आपका इंटरव्यू भी अपनी पत्रिका में डाल दूंगी।” कलिका के शब्दों में सीधा-सीधा प्रलोभन था।

“जरुर मैडम...मैं आपको यहां के बारे में जरुर बताऊंगा।” इंटरव्यू के नाम पर तो गार्ड की बांछें खिल गयीं और आज तक उसने जो भी वहां के गाइड से सुन रखा था, वह सारा का सारा बताना शुरु कर दिया-

“वैसे तो यहां का बहुत पुराना इतिहास किसी को भी नहीं पता? यह झील 1942 में सुर्खियों में तब आयी, जब यहां के एक रेंजर एच. के. माधवल को इस झील के किनारे 500 से भी ज्यादा नरकंकाल मिले, जो कि बर्फ के पिघलने की वजह से अस्तित्व में आये थे।

बाद में यूरोपीय और भारतीय वैज्ञानिकों ने इस जगह का दौरा किया और कार्बन डेटिंग के आधार पर इन कंकालों के बारे में पता किया।

“उनके हिसाब से यह कंकाल 12वी से 15वी सदी के बीच के थे। इन सभी कंकालों के सिर पर क्रिकेट की गेंद के बराबर के ओले गिरने के निशान पाये गये, जिससे यह पता चला कि शायद ये किसी बर्फीले तूफान का शिकार हो गये थे? यहां हर साल जब भी गर्मियों में बर्फ पिघलती है तो हर तरफ मानव कंकाल नजर आने लगते हैं।

सर्दी के दिनों में यह जगह पूरी बर्फ से ढक जाती है। बाकी इस झील की गहराई मात्र 2 मीटर है। इसके पश्चिम दिशा में ब्रह्मताल और उत्तर दिशा में त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत है।” इतना कहकर गार्ड चुप हो गया।

“वाह आपको तो बहुत कुछ पता है यहां के बारे में।” कलिका ने मुस्कुराते हुए गार्ड की ओर देखा।

गार्ड अपनी तारीफ सुन कर भाव-विभोर हो गया।

“अच्छा मैडम अब अंधेरा हो गया है, तो आप जब तक यहां की फोटो लीजिये, मैं जरा आगे से टहल कर आता हूं।“ इतना कहकर गार्ड एक दिशा की ओर चल दिया।

गार्ड को दूसरी ओर जाते देख कलिका की आँखें खुशी से चमक उठीं।

कलिका ने झट से अपना कैमरा अपनी पीठ पर लदे बैग में डाला और जैसे ही गार्ड उसकी नजरों से ओझल हुआ, वह रुपकुण्ड झील के
पानी में उतर गयी।

चूंकि कलिका का बैग वाटरप्रूफ था इसलिये उस पर पानी का कोई प्रभाव नहीं पड़ना था।

कलिका ने एक डुबकी ली और झील की तली में इधर-उधर अपनी नजरें दौड़ाने लगी।

पता नहीं कैसे अंधेरे में भी कलिका को बिल्कुल ठीक दिखाई दे रहा था।

तभी कलिका की नजरें झील की तली में मौजूद एक सफेद पत्थर की ओर गयी। वह पत्थर बाकी पत्थरों से थोड़ा अलग दिख रहा था।

सफेद पत्थर के पास पहुंचकर कलिका ने धीरे से उसे धक्का दिया।

आश्चर्यजनक तरीके से वह भारी पत्थर अपनी जगह से हट गया। पत्थर के नीचे कलिका को एक तांबे की धातु का दरवाजा दिखाई दिया, जिस पर एक हैण्डिल लगा हुआ था।

कलिका ने हैण्डिल को खींचकर दरवाजा खोला। दूसरी ओर बिल्कुल अंधकार था।

कलिका उस अंधकारमय रास्ते से दूसरी ओर चली गयी।

उस स्थान पर बिल्कुल भी पानी नहीं था। कलिका ने जैसे दरवाजा बंद किया, सफेद पत्थर स्वतः लुढ़ककर उस दरवाजे के ऊपर आ गया।

उधर बाहर जब गार्ड लौटकर आया तो उसे कलिका कहीं दिखाई नहीं दी।

“लगता है मैडम बिना बताए ही वापस चली गयीं?” गार्ड ने मन ही मन कहा- “एक फोटो भी नहीं ले पाया उनके साथ।” यह सोच गार्ड थोड़ा उदास हो गया।

उधर कलिका ने जैसे ही दरवाजा बंद किया, उसके चारो ओर तेज रोशनी फैल गयी।

ऐसा लगा जैसे धरती के नीचे कोई दूसरा सूर्य उदय हो गया हो।

कलिका ने अपने आसपास नजर दौड़ायी। इस समय वह एक छोटे से पर्वत की चोटी पर खड़ी थी।

चोटी से नीचे उतरने के लिये बहुत सारी पत्थर की सीढ़ियां बनीं थीं।

कलिका वह सीढ़ियां उतरते हुए नीचे आ गयी। अब उसके सामने एक विशाल दीवार दिखाई दी। उस दीवार में 3 द्वार बने थे।

पहले द्वार पर अग्नि का चित्र बना था, दूसरे द्वार पर एक सिंह का और तीसरे द्वार पर मृत्यु के देवता यमराज का चित्र बना था।

यह देख कलिका ठहर गयी।

तभी कलिका को एक जोर की आवाज सुनाई दी- “कौन हो तुम? और यहां क्या करने आयी हो?”

“पहले अपना परिचय दीजिये, फिर मैं आपको अपना परिचय दूंगी।” कलिका ने बिना भयभीत हुए कहा।

“मैं इस यक्षलोक के द्वार का प्रहरी यक्ष हूं, मेरा नाम युवान है। बिना मेरी आज्ञा के इस स्थान से कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता। अब तुम अपना परिचय दो युवती।” युवान की आवाज काफी प्रभावशाली थी।

“मैं हिमालय के पूर्व में स्थित ‘कालीगढ़’ राज्य की रानी कलिका हूं, मैं किसी शुभ उद्देश्य के लिये यक्षलोक, ‘प्रकाश शक्ति’ लेने आयी हूं। अगर मुझसे किसी भी प्रकार की धृष्टता हो गयी हो, तो मुझे क्षमा करें यक्षराज।”

कलिका का एक-एक शब्द नपा तुला था।

कलिका के मनमोहक शब्दों को सुन युवान खुश होता हुआ बोला- “ठीक है कलिका, तुम यहां से आगे जा सकती हो, पर ये ध्यान रखना कि प्रकाश शक्ति पाने के लिये तुम्हें ‘यक्षावली’ से होकर गुजरना पड़ेगा।

‘यक्षावली’ यक्ष के प्रश्नों की प्रश्नावली को कहते हैं। यहां से आगे बढ़ने पर तुम्हें 5 यक्षद्वार मिलेंगे। हर यक्षद्वार पर तुम्हें एक प्रश्न मिलेगा। तुम्हें उन प्रश्नों के सही उत्तर का चुनाव करना होगा, अगर तुम्हारा एक भी चुनाव गलत हुआ तो तुम्हारा कंकाल भी रुपकुण्ड के बाहर मिलेगा।"

“जी यक्षराज, मैं इस बात का ध्यान रखूंगी।” कलिका ने युवान की बात सहर्ष मान ली।

“आगे प्रथम यक्षद्वार है, जिस पर कुछ आकृतियां बनीं हैं, हर द्वार के पीछे वही चीज मौजूद है, जो द्वार पर बनी है। अब तुम्हें पहला चुनाव करना होगा कि तुम किस द्वार से होकर आगे बढ़ना चाहती हो?” इतना कहकर युवान चुप हो गया।

कलिका तीनों द्वार पर बनी आकृतियों को ध्यान से देखने लगी।
एक घंटे से ज्यादा सोचने के बाद कलिका ने अग्नि के द्वार में प्रवेश करने का निश्चय किया।

“मैं अग्निद्वार में प्रवेश करना चाहती हूं यक्षराज।” कलिका ने कहा।

“मैं इसका कारण भी जानना चाहता हूं कि तुमने क्या सोचकर यह निश्चय किया?” युवान की गम्भीर आवाज वातावरण में उभरी।

“यहां पर तीन द्वार हैं।” कलिका ने बारी-बारी से उन तीनों द्वार की ओर देखते हुए कहा- “अगर मैं तीसरे द्वार की बात करुं, तो वहां पर स्वयं यमराज विद्यमान हैं और यमराज मौत के देवता हैं, इसलिये वो तो किसी भी हालत में मुझे आगे जाने नहीं देंगे। अब अगर दूसरे द्वार की बात करुं, तो वहां पर एक सिंह बैठा है। सिंह की प्रवृति ही आक्रामक होती है। अगर उसका पेट भरा भी हो तो भी विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता, कि वह आक्रमण नहीं करेगा। इसलिये उस द्वार में भी जाने पर खतरा हो सकता है। अब अगर मैं पहले द्वार की बात करुं तो वहां पर अग्नि विराजमान हैं, अग्नि की प्रवृति सहायक और आक्रामक दोनों ही होती है।

यानि अग्नि हमारा भोजन भी बनाती है, अग्नि का प्रकाश हमें मार्ग भी दिखलाता है, पर वही अग्नि अपने आक्रामक रुप से हमें भस्म भी कर सकता है। यहां पर कहीं भी नहीं लिखा है कि अग्नि उस द्वार के अंदर
किस रुप में मौ जूद है, तो मैं कैसे मान लूं कि वह आक्रामक रुप में द्वार के अंदर है? ये भी तो हो सकता है कि वह सहायक रुप में हो। इसीलिये मैंने यहां पर मैंने अग्नि का चयन किया है।”

“उत्तम...अति उत्तम।” युवान की खुशी भरी आवाज उभरी- “तुम्हारा तर्क मुझे बहुत अच्छा लगा कलिका। तुम अग्नि के द्वार में प्रवेश कर सकती हो।”

यह सुनकर कलिका अग्नि द्वार में प्रवेश कर गयी। द्वार के अंदर बहुत अंधकार था, पर कलिका के प्रवेश करते ही उस कमरे में एक दीपक प्रज्वलित हो गया। कलिका उस कमरे से होती हुई आगे की ओर बढ़ गयी।

कुछ आगे जाने पर वह कमरा समाप्त हो गया। परंतु कमरे से निकलने के लिये पुनः तीन दरवाजे बने थे।

उन दरवाजों के बाहर एक खाने की थाली रखी थी।

तभी युवान की आवाज फिर सुनाई दी- “तुम्हारे सामने द्वितीय यक्षद्वार का चयन उपस्थित है कलिका।
पहले द्वार के अंदर एक बालक है, दूसरे द्वार के अंदर एक युवा मनुष्य है तथा तीसरे द्वार के अंदर एक वृद्ध
मनुष्य है। तीनों ही अपने स्थान पर भूखे हैं। यक्षद्वार के बाहर एक थाली में भोजन रखा है। अब तुम्हें यह चुनाव करना है कि यह भोजन की थाली तुम कि से खिलाओगी? अगर तुम्हारा चयन गलत हुआ तो तुम्हें मृत्यु से कोई नहीं बचा सकता।” यह कहकर युवान चुप हो गया।

कलिका ने एक बार फिर से दिमाग लगाना शुरु कर दिया।

काफी देर तक सोचने के बाद कलिका ने कहा - “यक्षराज, मैं यह भोजन की थाली वृद्ध पुरुष को खिलाना चाहती हूं क्यों कि युवा पुरुष तो बालक और वृद्ध के सामने भोजन का अधिकारी नहीं हो सकता। उसे सदैव ही इन दोनों को खिलाने के बाद खाना चाहिये। अब अगर मैं भोजन की थाली की बात करुं, तो इस थाली में अधिक मात्रा में अनाज उपस्थित है और यह कहीं नहीं लिखा है कि बालक कि आयु कितनी है?

तो यह भी हो सकता है कि बालक बहुत छोटा हो और अगर वह माँ का दूध पीने वाला बालक हुआ, तो वह थाली में रखे भोजन को ग्रहण ही नहीं कर पायेगा। इस स्थिति में भोजन ना तो वृद्ध को मिलेगा और ना ही बालक खा पायेगा।

यानि ये पूरा भोजन व्यर्थ हो जायेगा और कोई यक्ष कभी भोजन को व्यर्थ नहीं होने देता, ऐसा मेरा मानना है, इसलिये मैंने इस भोजन को वृद्ध पुरुष को खिलाने का विचार किया।”

“अद्भुत! तुम्हारे विचार तो बिल्कुल अद्भुत हैं कलिका। मैं ईश्वर से प्रार्थना करुंगा कि प्रकाश शक्ति तुम्हें ही मिले।” युवान कलिका के विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गया।

“धन्यवाद यक्षराज!” यह कह कलिका भोजन की थाली उठा कर वृद्ध पुरुष के कमरे में चली गयी।
कमरे में एक जर्जर शरीर वाला व्यक्ति जमीन पर लेटा था।

कलिका ने उस वृद्ध को उठाकर उसे बहुत ही प्रेम से भोजन कराया और अगले द्वार की ओर बढ़ गयी।

अगले यक्षद्वार पर सिर्फ 2 ही दरवाजे बने थे। उस द्वार के बाहर एक स्त्री की प्रतिमा खड़ी थी।
यह देख कलिका थोड़ा प्रसन्न हो गयी।

उसे लगा कि इस बार चुनाव थोड़ा सरल हो जायेगा।

तभी वातावरण में युवान की आवाज पुनः गूंजी- “यह तृतीय यक्षद्वार है कलिका, इस द्वार में प्रवेश का चयन करने के लिये मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं, यह कथा ही अगले प्रश्न का आधार है इसलिये ध्यान से सुनना।”

यह कहकर युवान एक कहानी सुनाने लगा- “एक गाँव में एक स्त्री रहती थी, जो ईश्वर की बहुत पूजा करती थी। एक बार उस स्त्री के पति और भाई जंगल मे लकड़ी लेने गये। जब वह लकड़ी लेकर आ रहे थे, तो उन्हें रास्ते में एक मंदिर दिखाई दिया।

जंगल में मंदिर देखकर दोनो ही व्यक्ति मंदिर में प्रवेश कर गये। तभी कहीं से मंदिर में कुछ डाकू आ गये और उन्होंने दोनों व्यक्तियों के पास कुछ ना पाकर, उनके सिर काट कर उन्हें मार दिया। बाद में वह स्त्री अपने पति और भाई को ढूंढते हुए उस मंदिर तक आ पहुंची।

दोनों के ही कटे सिर देखकर वह ईश्वर के सामने विलाप करने लगी। उसका दुख देखकर ईश्वर प्रकट हुए और दोनों के ही सिर धड़ से जोड़ दिये। पर उनके सिर जोड़ते समय ईश्वर से एक गलती हो गयी। उन्होंने पति के सिर पर भाई का...और भाई के सिर पर पति का सिर जोड़ दिया।

तो बताओ कलिका कि वह स्त्री अब किसका चुनाव करे? अगर तुम्हें लगता है कि भाई का सिर और पति के शरीर का चुनाव उचित है, तो तुम इस स्त्री के साथ प्रथम द्वार में प्रवेश करो और अगर तुम्हें लगता है कि पति का सिर और भाई का शरीर वाला चुनाव उचित है, तो तुम्हें इस स्त्री के साथ दूसरे द्वार में प्रवेश करना होगा।” इतना कहकर युवान चुप हो गया।

पर इस बार कलिका का दिमाग घूम गया। वह कई घंटों तक वहां बैठकर सोचती रही, क्यों कि एक गलत चुनाव का मतलब उसकी मृत्यु थी।

कलिका लगातार सोच रही थी- “अगर मैं भाई का सिर और पति के शरीर का चुनाव करती हूं तो भाई के चेहरे को देखते हुए वह स्त्री पति के प्रति पूर्ण समर्पित नहीं हो सकती। यहां तक कि उसे पति से सम्बन्ध
बनाना भी असहज महसूस होगा। इस प्रकार वह स्त्री एक पत्नि का दायित्व उचित प्रकार से नहीं निभा सकती।

अब अगर मैं पति का सिर और भाई के शरीर का चुनाव करती हूं, तो वह स्त्री उस शरीर के साथ कैसे सम्बन्ध बना सकती है, जो उसके भाई का हो। यानि दोनों ही स्थितियां उस स्त्री के लिये अत्यंत मुश्किल वाली होंगी।" धीरे-धीरे 4 घंटे बीत गये। आखिरकार वह एक निष्कर्ष पर पहुंच ही गयी।

“यक्षराज, मैं पति का सिर और भाई के शरीर वाला चुनाव करुंगी क्यों कि जब मैंने मानव शरीर का गहन अध्ययन किया तो मुझे लगा कि मानव का पूरा शरीर मस्तिष्क नियंत्रित करता है, यानि किसी मानव शरीर में इच्छाओं का नियंत्रण पूर्णरुप से मस्तिष्क के पास होता है, शायद इसीलिये ईश्वर ने हमारी पांचो इंन्द्रियों का नियंत्रण सिर वाले भाग को दे रखा है।

आँख, कान, नाक, जीभ ये सभी सिर वाले भाग की ओर ही होते हैं, अब बची पांचवी इंद्रिय त्वचा, वह भी मस्तिष्क से ही नियंत्रित होती है। यानि मस्तिष्क जिस प्रकार से चाहे, हमारे शरीर को परिवर्तित कर सकता है। अब अगर दूसरे तरीके से देंखे तो मनुष्य का प्रथम आकर्षण चेहरे से ही शुरु होता है। इसलिये मैंने ये चुनाव किया और मैं दूसरे द्वार में प्रवेश करना चाहती हूं।”

“अद्वितीय मस्तिष्क की स्वामिनी हो तुम कलिका। तुम्हारा तर्क बिल्कुल सही है।” युवान ने खुश होते हुए कहा।

युवान के इतना कहते ही उस स्त्री की प्रतिमा सजीव हो गयी।

कलिका उस स्त्री को लेकर दूसरे द्वार में प्रवेश कर गयी। कलिका अब चतुर्थ यक्षद्वार के सामने खड़ी थी।


जारी रहेगा________✍️
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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मोडरेटर साहब , आप लोगों का तो हमे पता नही पर हम जैसे साधारण लोगों के लिए इस फोरम को ओपन करना बहुत मुश्किल हो गया है ।
कभी-कभार तो लगता है यह फोरम भी गाॅसिप की तरह शट डाउन हो जाएगा । फिलहाल यह फोरम ओपन तो हो रहा है , लेकिन हर पन्द्रह मिनट बाद प्रोब्लम भी पैदा हो रही है । नेक्स्ट पेज ओपन करने के लिए कभी पीछे तो कभी आगे के पेज पर जाना पड़ रहा है । कुछ कमेंट करो तो कमेंट पोस्ट करने मे दिक्कतें आ रही है ।
बहरहाल , जैसा कि मैने पहले भी कहा है आप बहुत सुंदर लिख रहे है और वह सुन्दरता हर अपडेट के बाद और भी बढ़ती जा रही है ।
इस अटलांटिस सभ्यता के अराका और समारा द्वीप मे , खासकर अराका द्वीप के मायावन मे एक से बढ़कर एक चमत्कारिक घटनाएं देखने को मिल रही है ।
डायनासोर प्रकरण देखकर ' जुरासिक पार्क ' और ' द लास्ट वर्ल्ड ' की यादें ताजा हो गई ।

जहां तक बात है वेगा की , इसकी हत्या करने की कोशिश निरंतर जारी है लेकिन इसका कारण क्या है ? कौन इसकी हत्या करना चाहता है । अब दो नए किरदार भी इस लिस्ट मे शामिल हो गए जो इन साहबान के जान के पीछे पड़े हैं - धरा और मयूर । यह लोग वेगा के जान के पीछे क्यों पड़े है ?

क्रिस्टी के लख्ते जिगर एलेक्स साहब को जिंदा देखकर बहुत खुशी हुई पर यह खुशी कपूर की माफिक छर्र से उड़ गई । साहब आसमान से गिरकर खजूर पर आ टपके है ।

सम्राट के सिर्फ शायद छ पैसेंजर बचे हैं । देखते हैं एलेक्स साहब अगले शिकार होते है या फिर अंत तक कैप्टन सुयश साहब के साथ कंधे से कंधा मिलाकर मायावन का तिलिस्म तोड़ते है !

सुयश साहब के लिए एक शेर अर्ज है -
" कैद मे है बुलबुल सैय्यद मुस्कराए ,
कहा भी न जाए , चुप रहा भी न जाए । "
सुयश उर्फ आर्यन साहब की बुलबुल सदियों से कैद मे है । कम से कम कुछ तो ऐसा करें कि साहब के चेहरे पर मुस्कराहट आता दिखे !

सभी अपडेट बेहद ही खूबसूरत थे शर्मा जी ।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट ।

Abhi tak 11 update tak hi pahuchi ju ne bhut update de diye i m too slow btw nice story

Mujhe padhne toh do 🫣

Mst update bro

बहुत ही जबरदस्त शानदार लाजवाब और अद्भुत रमणिय रोमांचक अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा

113 चैपटर-3: स्पाइनो-सोरस
यार डायनासौर तो कोई साढ़े छः सौ करोड़ साल पहले ही विलुप्त हो गए - यह एक पुरातत्व पर आधारित प्रामाणिक तथ्य है। आधुनिक मानव आया कोई डेढ़ लाख साल पहले। उसके बाद चेतना प्राप्त करने के बाद हर स्थान पर अलग अलग मानव ने अपने अपने हिसाब से अपने अपने ईश्वरों की रचना करी।
अब हमारे ही बनाए हुए ईश्वरों ने हमसे इतने पहले विलुप्त हो चुके जीवों की रचना कैसे करी - सोचने वाली बात है!
ख़ैर - अब फ़ूफागिरी छोड़ कर लिखता हूँ।
स्पाइनोसॉरस का अंत कर के ज़ेनिथ ने कमाल कर दिया। हिम्मत चाहिए अपने से बड़े शत्रु का अंत करने के लिए। जैसे डेविड और गोलायथ! कभी कभी शत्रु का विकराल आकार ही उसके अंत का कारण बन जाता है - गोलायथ और स्पाइनोसॉरस दोनों ही अपने आकार के सामने बेबस हो गए।

114 महाशक्ति
बड़े दिनों बाद व्योम साहब के दर्शन हुए।
व्योम भाई को भी फलों के रूप में अद्भुत शक्तियाँ हासिल हो गई हैं। लेकिन उसके शरीर के संग उसके अस्त्र शस्त्र भी कैसे छोटे हो गए, यह सोचने का विषय है। अब उसके पास न केवल गुरुत्व शक्ति है, बल्कि साथ में पंचशूल भी! एक ऐसा पंचशूल अपने अक्वामैन भाई साहब पकड़े हुए दिखाई देते हैं। कभी कभी भगवान शि…व और पोसाइडन को भी पंचशूल पकड़े दिखाया जाता है। अब व्योम भाई के दैवीय शक्तियाँ हैं -- सूक्ष्म रूप धरि... विकट रूप धरि...

शेफ़ाली - सुयश - ज़ेनिथ - और अब व्योम! सात में से चार के पास दैवीय शक्तियाँ हैं।


मैंने अपडेट्स 109 और 110 पढ़ने के बाद सोचा कि 111 नहीं पढ़ा है। लेकिन अग्नि जाल और 112 पढ़ने के बाद समझा कि वो दोनों अपडेट्स भी पढ़ लिए थे, और कमेंट भी लिखे थे। लेकिन समय का वह दौर जब साइट का भुट्टा भून दिया गया था, तब मेरे कमेंट भी गायब हो गए। अभी भी सही नहीं ही साइट की हालत -- तीन बार डिसकनेक्ट हुई है ये। इसलिए अधिक नहीं लिखूँगा - वैसे भी अधिक लिखने को फिलहाल नहीं है मेरे पास कुछ।

बस इतना ही कि गज़ब की कल्पनाशक्ति है भाई आपकी। और बहुत ही बढ़िया लेखनी।

अब यहाँ पर पढ़ने लायक शायद ही कोई ढंग की कहानियाँ शेष हैं। लेकिन ये कहानी सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ है। 👏 👏 👏 👏 👏

nice update

Bhut hi badhiya update Bhai
To vyom ne panchsul ki shaktiyo ki madad se gonjalo ka ache se samna kiya lekin gonjalo vaha se baag gaya
Ab vyom ke gale me pahnaya gaya ye locket raksha kavach hi hai ya kuch or ye to aage hi pata chalega

Nice update and awesome story

Mujhe aisa kyun lag raha hai jaise Tri Kali ne Vyom se vivah kar liya hai.
Tri Kali ne Devi se prarthna mein Vyom ko maanga hai???

Let's see Vyom ko Aaraka island ke bare mein aur kya kya pata chalta hai.

Lovely update brother.

Ji bilkul

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Trikali ko is ajeeb se jiv se vyom ne bacha liya.........

Vyom me ab kitni shaktiya aa gayi he use khud ko nahi pata............

Raksha Kavach ke rup me kaun sa locket trikali ne vyom ke gale me bandha he...........

Gazab Bhai,

Keep rocking

Spam yaha kar sakte kya :?:

Mstt update 👌👌👌
Dekhte hain aage kya kya रहस्य छुपा हुआ है

romanchak update..christi ne koshish ki par kuch hasil nahi hua par baadme wo neele rang ki jelly se suyash ko idea mil gaya tha ..
aaj laga ki taufik bhi sabse bichhad jayega par achcha hua ki suyash ne dimag ka istemal karke usko dusri side le aaya ..
ab is group me jyada log bache nahi hai to koi maara na jaaye yahi sochta hu ..
kuch bhi kaho par kahani me jo suspense hai usko padhke maja aa jata hai 🥰🥰🥰🥰.

Nice update....

Nice update bro

Awe

Awesome update and nice story

nice update

Bhut hi badhiya update Bhai
To sabhi ne apne dimag laga kar is paheli ko bhi paar kar liya or suyash ki samjhdari se taufik bhi vapis jeevit ho gaya
Dhekte hai ab aage kya hota hai

Raj_sharma bhai next update kab tak aayega?

सुयश को आर्यन की याद के साथ आगे का रास्ता पाने में आसान हो गई।

तौकीफ़ के बार बार परेशानी में फ़सने के बावज़ूद वो हर बार जिंदा बच जाता है।
आख़िर ये तौफ़ीक़ मरेगा कब।

नीली जेली ने तो इन्हें बचा लिया और आगे बढ़ने आगा अच्छा रास्ता मिल गया।

ये मैग्नार्क द्वार को पार करने के बाद सुयश और टीम को किन खतरों का सामना करना होगा ये तो आगे देखना होगा।

सफ़र में जो सही समय पर लगेगा गा दिमाग वो रहेगा जिंदा।

जिसने लिया गलत निर्णय वो निश्चित रूप से इस सफर में मरेगा।

कुल मिलाकर अपडेट शानदार|

मैंने सुबह रिव्यू वादा किया था लेकिन अब रिव्यू
आ रही है, थोड़ी सुबह काम में व्यस्त था।

डेर सॉवर मेरा रिव्यू आएगा जरूर।

Ye gonjalo wahi hai na, jo makota ka bhediya jaisa sevak hai??🤔 batao usme bhi itni sakti hai? To makota me kitni hogi? Aur uss shetaan me kitni jisko wo jinda karna chahte hai?🤯
Awesome update and superb story bhai ji 👌🏻👌🏻

Update Posted Friends :declare:
 

parkas

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चैपटर-6
प्रकाश शक्ति:
(14 वर्ष पहले.......... 07 जनवरी 1988, गुरुवार, 17:30, रुपकुण्ड झील, चमोली, भारत)

रुपकुण्ड झील, भारत के कुमाऊं क्षेत्र का एक चर्चित पर्यटन स्थल है, जो कि देवभूमि कहलाने वाले उत्तर भारत का एक हिस्सा है।

रुपकुण्ड झील से कुछ ही दूरी पर, तीन पर्वतों की एक श्रृंखला है, जिसकी नोक त्रिशूल के आकार की होने के कारण उसे त्रिशूल पर्वत कहा जाता है।

त्रिशूल पर्वत से कुछ ही दूरी पर नन्दा देवी का प्रसिद्ध मंदिर है।

रुपकुण्ड झील के पास शाम के समय एक लड़की हाथों में कैमरा लिये झील के आसपास की फोटोज खींच रही थी। काली जींस, काली जैकेट पहने उस लड़की के काले घने बाल हवा में लहरा रहे थे।

तभी वहां मौजूद एक गार्ड की नजर उस लड़की पर पड़ी।

“ओ मैडम! इस क्षेत्र में शाम होने के बाद टूरिस्ट का आना मना है।” गार्ड ने उस लड़की पर एक नजर मारते हुए कहा।

“हलो ! मेरा नाम कलिका है। मैं दिल्ली की रहने वाली हूं।”यह कहते हुए कलिका ने अपना सीधा हाथ, हाथ मिलाने के अंदाज में गार्ड की ओर बढ़ाया।

कलिका का हाथ आगे बढ़ा देख गार्ड एकदम से सटपटा गया।

शायद आज से पहले किसी भी टूरिस्ट ने उससे हाथ नहीं मिलाया था। गार्ड ने एक क्षण सोचा और फिर कलिका से हाथ मिला लिया।

“ऐक्चुली मैं दिल्ली से छपने वाली एक पत्रिका की एडिटर हूं और मैं रुपकुण्ड झील के बारे में अपनी पत्रिका में एक लेख लिख रही हूं।”

कलिका ने गार्ड से धीरे से अपना हाथ छुड़ाते हुए कहा- “दिन के समय की बहुत सी फोटोज मैंने पहले से ही खींच रखी है, पर अब मैं शाम के समय की कुछ फोटोज खींचना चाहती हूं।”

“अच्छा-अच्छा...तो आप लेख लिखती हैं।” गार्ड ने खुश होते हुए कहा- “ठीक है मैडम। खींच लीजिये आप यहां की फोटोज... पर मेरी भी एक-दो फोटो अपनी पत्रिका में जरुर डालियेगा।”

“हां-हां...क्यों नहीं....आप अगर मुझे यहां के बारे में बताएं तो मैं आपका इंटरव्यू भी अपनी पत्रिका में डाल दूंगी।” कलिका के शब्दों में सीधा-सीधा प्रलोभन था।

“जरुर मैडम...मैं आपको यहां के बारे में जरुर बताऊंगा।” इंटरव्यू के नाम पर तो गार्ड की बांछें खिल गयीं और आज तक उसने जो भी वहां के गाइड से सुन रखा था, वह सारा का सारा बताना शुरु कर दिया-

“वैसे तो यहां का बहुत पुराना इतिहास किसी को भी नहीं पता? यह झील 1942 में सुर्खियों में तब आयी, जब यहां के एक रेंजर एच. के. माधवल को इस झील के किनारे 500 से भी ज्यादा नरकंकाल मिले, जो कि बर्फ के पिघलने की वजह से अस्तित्व में आये थे।

बाद में यूरोपीय और भारतीय वैज्ञानिकों ने इस जगह का दौरा किया और कार्बन डेटिंग के आधार पर इन कंकालों के बारे में पता किया।

“उनके हिसाब से यह कंकाल 12वी से 15वी सदी के बीच के थे। इन सभी कंकालों के सिर पर क्रिकेट की गेंद के बराबर के ओले गिरने के निशान पाये गये, जिससे यह पता चला कि शायद ये किसी बर्फीले तूफान का शिकार हो गये थे? यहां हर साल जब भी गर्मियों में बर्फ पिघलती है तो हर तरफ मानव कंकाल नजर आने लगते हैं।

सर्दी के दिनों में यह जगह पूरी बर्फ से ढक जाती है। बाकी इस झील की गहराई मात्र 2 मीटर है। इसके पश्चिम दिशा में ब्रह्मताल और उत्तर दिशा में त्रिशूल और नंदा देवी पर्वत है।” इतना कहकर गार्ड चुप हो गया।

“वाह आपको तो बहुत कुछ पता है यहां के बारे में।” कलिका ने मुस्कुराते हुए गार्ड की ओर देखा।

गार्ड अपनी तारीफ सुन कर भाव-विभोर हो गया।

“अच्छा मैडम अब अंधेरा हो गया है, तो आप जब तक यहां की फोटो लीजिये, मैं जरा आगे से टहल कर आता हूं।“ इतना कहकर गार्ड एक दिशा की ओर चल दिया।

गार्ड को दूसरी ओर जाते देख कलिका की आँखें खुशी से चमक उठीं।

कलिका ने झट से अपना कैमरा अपनी पीठ पर लदे बैग में डाला और जैसे ही गार्ड उसकी नजरों से ओझल हुआ, वह रुपकुण्ड झील के
पानी में उतर गयी।

चूंकि कलिका का बैग वाटरप्रूफ था इसलिये उस पर पानी का कोई प्रभाव नहीं पड़ना था।

कलिका ने एक डुबकी ली और झील की तली में इधर-उधर अपनी नजरें दौड़ाने लगी।

पता नहीं कैसे अंधेरे में भी कलिका को बिल्कुल ठीक दिखाई दे रहा था।

तभी कलिका की नजरें झील की तली में मौजूद एक सफेद पत्थर की ओर गयी। वह पत्थर बाकी पत्थरों से थोड़ा अलग दिख रहा था।

सफेद पत्थर के पास पहुंचकर कलिका ने धीरे से उसे धक्का दिया।

आश्चर्यजनक तरीके से वह भारी पत्थर अपनी जगह से हट गया। पत्थर के नीचे कलिका को एक तांबे की धातु का दरवाजा दिखाई दिया, जिस पर एक हैण्डिल लगा हुआ था।

कलिका ने हैण्डिल को खींचकर दरवाजा खोला। दूसरी ओर बिल्कुल अंधकार था।

कलिका उस अंधकारमय रास्ते से दूसरी ओर चली गयी।

उस स्थान पर बिल्कुल भी पानी नहीं था। कलिका ने जैसे दरवाजा बंद किया, सफेद पत्थर स्वतः लुढ़ककर उस दरवाजे के ऊपर आ गया।

उधर बाहर जब गार्ड लौटकर आया तो उसे कलिका कहीं दिखाई नहीं दी।

“लगता है मैडम बिना बताए ही वापस चली गयीं?” गार्ड ने मन ही मन कहा- “एक फोटो भी नहीं ले पाया उनके साथ।” यह सोच गार्ड थोड़ा उदास हो गया।

उधर कलिका ने जैसे ही दरवाजा बंद किया, उसके चारो ओर तेज रोशनी फैल गयी।

ऐसा लगा जैसे धरती के नीचे कोई दूसरा सूर्य उदय हो गया हो।

कलिका ने अपने आसपास नजर दौड़ायी। इस समय वह एक छोटे से पर्वत की चोटी पर खड़ी थी।

चोटी से नीचे उतरने के लिये बहुत सारी पत्थर की सीढ़ियां बनीं थीं।

कलिका वह सीढ़ियां उतरते हुए नीचे आ गयी। अब उसके सामने एक विशाल दीवार दिखाई दी। उस दीवार में 3 द्वार बने थे।

पहले द्वार पर अग्नि का चित्र बना था, दूसरे द्वार पर एक सिंह का और तीसरे द्वार पर मृत्यु के देवता यमराज का चित्र बना था।

यह देख कलिका ठहर गयी।

तभी कलिका को एक जोर की आवाज सुनाई दी- “कौन हो तुम? और यहां क्या करने आयी हो?”

“पहले अपना परिचय दीजिये, फिर मैं आपको अपना परिचय दूंगी।” कलिका ने बिना भयभीत हुए कहा।

“मैं इस यक्षलोक के द्वार का प्रहरी यक्ष हूं, मेरा नाम युवान है। बिना मेरी आज्ञा के इस स्थान से कोई भी आगे नहीं बढ़ सकता। अब तुम अपना परिचय दो युवती।” युवान की आवाज काफी प्रभावशाली थी।

“मैं हिमालय के पूर्व में स्थित ‘कालीगढ़’ राज्य की रानी कलिका हूं, मैं किसी शुभ उद्देश्य के लिये यक्षलोक, ‘प्रकाश शक्ति’ लेने आयी हूं। अगर मुझसे किसी भी प्रकार की धृष्टता हो गयी हो, तो मुझे क्षमा करें यक्षराज।”

कलिका का एक-एक शब्द नपा तुला था।

कलिका के मनमोहक शब्दों को सुन युवान खुश होता हुआ बोला- “ठीक है कलिका, तुम यहां से आगे जा सकती हो, पर ये ध्यान रखना कि प्रकाश शक्ति पाने के लिये तुम्हें ‘यक्षावली’ से होकर गुजरना पड़ेगा।

‘यक्षावली’ यक्ष के प्रश्नों की प्रश्नावली को कहते हैं। यहां से आगे बढ़ने पर तुम्हें 5 यक्षद्वार मिलेंगे। हर यक्षद्वार पर तुम्हें एक प्रश्न मिलेगा। तुम्हें उन प्रश्नों के सही उत्तर का चुनाव करना होगा, अगर तुम्हारा एक भी चुनाव गलत हुआ तो तुम्हारा कंकाल भी रुपकुण्ड के बाहर मिलेगा।"

“जी यक्षराज, मैं इस बात का ध्यान रखूंगी।” कलिका ने युवान की बात सहर्ष मान ली।

“आगे प्रथम यक्षद्वार है, जिस पर कुछ आकृतियां बनीं हैं, हर द्वार के पीछे वही चीज मौजूद है, जो द्वार पर बनी है। अब तुम्हें पहला चुनाव करना होगा कि तुम किस द्वार से होकर आगे बढ़ना चाहती हो?” इतना कहकर युवान चुप हो गया।

कलिका तीनों द्वार पर बनी आकृतियों को ध्यान से देखने लगी।
एक घंटे से ज्यादा सोचने के बाद कलिका ने अग्नि के द्वार में प्रवेश करने का निश्चय किया।

“मैं अग्निद्वार में प्रवेश करना चाहती हूं यक्षराज।” कलिका ने कहा।

“मैं इसका कारण भी जानना चाहता हूं कि तुमने क्या सोचकर यह निश्चय किया?” युवान की गम्भीर आवाज वातावरण में उभरी।

“यहां पर तीन द्वार हैं।” कलिका ने बारी-बारी से उन तीनों द्वार की ओर देखते हुए कहा- “अगर मैं तीसरे द्वार की बात करुं, तो वहां पर स्वयं यमराज विद्यमान हैं और यमराज मौत के देवता हैं, इसलिये वो तो किसी भी हालत में मुझे आगे जाने नहीं देंगे। अब अगर दूसरे द्वार की बात करुं, तो वहां पर एक सिंह बैठा है। सिंह की प्रवृति ही आक्रामक होती है। अगर उसका पेट भरा भी हो तो भी विश्वास के साथ नहीं कहा जा सकता, कि वह आक्रमण नहीं करेगा। इसलिये उस द्वार में भी जाने पर खतरा हो सकता है। अब अगर मैं पहले द्वार की बात करुं तो वहां पर अग्नि विराजमान हैं, अग्नि की प्रवृति सहायक और आक्रामक दोनों ही होती है।

यानि अग्नि हमारा भोजन भी बनाती है, अग्नि का प्रकाश हमें मार्ग भी दिखलाता है, पर वही अग्नि अपने आक्रामक रुप से हमें भस्म भी कर सकता है। यहां पर कहीं भी नहीं लिखा है कि अग्नि उस द्वार के अंदर
किस रुप में मौ जूद है, तो मैं कैसे मान लूं कि वह आक्रामक रुप में द्वार के अंदर है? ये भी तो हो सकता है कि वह सहायक रुप में हो। इसीलिये मैंने यहां पर मैंने अग्नि का चयन किया है।”

“उत्तम...अति उत्तम।” युवान की खुशी भरी आवाज उभरी- “तुम्हारा तर्क मुझे बहुत अच्छा लगा कलिका। तुम अग्नि के द्वार में प्रवेश कर सकती हो।”

यह सुनकर कलिका अग्नि द्वार में प्रवेश कर गयी। द्वार के अंदर बहुत अंधकार था, पर कलिका के प्रवेश करते ही उस कमरे में एक दीपक प्रज्वलित हो गया। कलिका उस कमरे से होती हुई आगे की ओर बढ़ गयी।

कुछ आगे जाने पर वह कमरा समाप्त हो गया। परंतु कमरे से निकलने के लिये पुनः तीन दरवाजे बने थे।

उन दरवाजों के बाहर एक खाने की थाली रखी थी।

तभी युवान की आवाज फिर सुनाई दी- “तुम्हारे सामने द्वितीय यक्षद्वार का चयन उपस्थित है कलिका।
पहले द्वार के अंदर एक बालक है, दूसरे द्वार के अंदर एक युवा मनुष्य है तथा तीसरे द्वार के अंदर एक वृद्ध
मनुष्य है। तीनों ही अपने स्थान पर भूखे हैं। यक्षद्वार के बाहर एक थाली में भोजन रखा है। अब तुम्हें यह चुनाव करना है कि यह भोजन की थाली तुम कि से खिलाओगी? अगर तुम्हारा चयन गलत हुआ तो तुम्हें मृत्यु से कोई नहीं बचा सकता।” यह कहकर युवान चुप हो गया।

कलिका ने एक बार फिर से दिमाग लगाना शुरु कर दिया।

काफी देर तक सोचने के बाद कलिका ने कहा - “यक्षराज, मैं यह भोजन की थाली वृद्ध पुरुष को खिलाना चाहती हूं क्यों कि युवा पुरुष तो बालक और वृद्ध के सामने भोजन का अधिकारी नहीं हो सकता। उसे सदैव ही इन दोनों को खिलाने के बाद खाना चाहिये। अब अगर मैं भोजन की थाली की बात करुं, तो इस थाली में अधिक मात्रा में अनाज उपस्थित है और यह कहीं नहीं लिखा है कि बालक कि आयु कितनी है?

तो यह भी हो सकता है कि बालक बहुत छोटा हो और अगर वह माँ का दूध पीने वाला बालक हुआ, तो वह थाली में रखे भोजन को ग्रहण ही नहीं कर पायेगा। इस स्थिति में भोजन ना तो वृद्ध को मिलेगा और ना ही बालक खा पायेगा।

यानि ये पूरा भोजन व्यर्थ हो जायेगा और कोई यक्ष कभी भोजन को व्यर्थ नहीं होने देता, ऐसा मेरा मानना है, इसलिये मैंने इस भोजन को वृद्ध पुरुष को खिलाने का विचार किया।”

“अद्भुत! तुम्हारे विचार तो बिल्कुल अद्भुत हैं कलिका। मैं ईश्वर से प्रार्थना करुंगा कि प्रकाश शक्ति तुम्हें ही मिले।” युवान कलिका के विचारों से बहुत ज्यादा प्रभावित हो गया।

“धन्यवाद यक्षराज!” यह कह कलिका भोजन की थाली उठा कर वृद्ध पुरुष के कमरे में चली गयी।
कमरे में एक जर्जर शरीर वाला व्यक्ति जमीन पर लेटा था।

कलिका ने उस वृद्ध को उठाकर उसे बहुत ही प्रेम से भोजन कराया और अगले द्वार की ओर बढ़ गयी।

अगले यक्षद्वार पर सिर्फ 2 ही दरवाजे बने थे। उस द्वार के बाहर एक स्त्री की प्रतिमा खड़ी थी।
यह देख कलिका थोड़ा प्रसन्न हो गयी।

उसे लगा कि इस बार चुनाव थोड़ा सरल हो जायेगा।

तभी वातावरण में युवान की आवाज पुनः गूंजी- “यह तृतीय यक्षद्वार है कलिका, इस द्वार में प्रवेश का चयन करने के लिये मैं तुम्हें एक कथा सुनाता हूं, यह कथा ही अगले प्रश्न का आधार है इसलिये ध्यान से सुनना।”

यह कहकर युवान एक कहानी सुनाने लगा- “एक गाँव में एक स्त्री रहती थी, जो ईश्वर की बहुत पूजा करती थी। एक बार उस स्त्री के पति और भाई जंगल मे लकड़ी लेने गये। जब वह लकड़ी लेकर आ रहे थे, तो उन्हें रास्ते में एक मंदिर दिखाई दिया।

जंगल में मंदिर देखकर दोनो ही व्यक्ति मंदिर में प्रवेश कर गये। तभी कहीं से मंदिर में कुछ डाकू आ गये और उन्होंने दोनों व्यक्तियों के पास कुछ ना पाकर, उनके सिर काट कर उन्हें मार दिया। बाद में वह स्त्री अपने पति और भाई को ढूंढते हुए उस मंदिर तक आ पहुंची।

दोनों के ही कटे सिर देखकर वह ईश्वर के सामने विलाप करने लगी। उसका दुख देखकर ईश्वर प्रकट हुए और दोनों के ही सिर धड़ से जोड़ दिये। पर उनके सिर जोड़ते समय ईश्वर से एक गलती हो गयी। उन्होंने पति के सिर पर भाई का...और भाई के सिर पर पति का सिर जोड़ दिया।

तो बताओ कलिका कि वह स्त्री अब किसका चुनाव करे? अगर तुम्हें लगता है कि भाई का सिर और पति के शरीर का चुनाव उचित है, तो तुम इस स्त्री के साथ प्रथम द्वार में प्रवेश करो और अगर तुम्हें लगता है कि पति का सिर और भाई का शरीर वाला चुनाव उचित है, तो तुम्हें इस स्त्री के साथ दूसरे द्वार में प्रवेश करना होगा।” इतना कहकर युवान चुप हो गया।

पर इस बार कलिका का दिमाग घूम गया। वह कई घंटों तक वहां बैठकर सोचती रही, क्यों कि एक गलत चुनाव का मतलब उसकी मृत्यु थी।

कलिका लगातार सोच रही थी- “अगर मैं भाई का सिर और पति के शरीर का चुनाव करती हूं तो भाई के चेहरे को देखते हुए वह स्त्री पति के प्रति पूर्ण समर्पित नहीं हो सकती। यहां तक कि उसे पति से सम्बन्ध
बनाना भी असहज महसूस होगा। इस प्रकार वह स्त्री एक पत्नि का दायित्व उचित प्रकार से नहीं निभा सकती।

अब अगर मैं पति का सिर और भाई के शरीर का चुनाव करती हूं, तो वह स्त्री उस शरीर के साथ कैसे सम्बन्ध बना सकती है, जो उसके भाई का हो। यानि दोनों ही स्थितियां उस स्त्री के लिये अत्यंत मुश्किल वाली होंगी।" धीरे-धीरे 4 घंटे बीत गये। आखिरकार वह एक निष्कर्ष पर पहुंच ही गयी।

“यक्षराज, मैं पति का सिर और भाई के शरीर वाला चुनाव करुंगी क्यों कि जब मैंने मानव शरीर का गहन अध्ययन किया तो मुझे लगा कि मानव का पूरा शरीर मस्तिष्क नियंत्रित करता है, यानि किसी मानव शरीर में इच्छाओं का नियंत्रण पूर्णरुप से मस्तिष्क के पास होता है, शायद इसीलिये ईश्वर ने हमारी पांचो इंन्द्रियों का नियंत्रण सिर वाले भाग को दे रखा है।

आँख, कान, नाक, जीभ ये सभी सिर वाले भाग की ओर ही होते हैं, अब बची पांचवी इंद्रिय त्वचा, वह भी मस्तिष्क से ही नियंत्रित होती है। यानि मस्तिष्क जिस प्रकार से चाहे, हमारे शरीर को परिवर्तित कर सकता है। अब अगर दूसरे तरीके से देंखे तो मनुष्य का प्रथम आकर्षण चेहरे से ही शुरु होता है। इसलिये मैंने ये चुनाव किया और मैं दूसरे द्वार में प्रवेश करना चाहती हूं।”

“अद्वितीय मस्तिष्क की स्वामिनी हो तुम कलिका। तुम्हारा तर्क बिल्कुल सही है।” युवान ने खुश होते हुए कहा।

युवान के इतना कहते ही उस स्त्री की प्रतिमा सजीव हो गयी।

कलिका उस स्त्री को लेकर दूसरे द्वार में प्रवेश कर गयी। कलिका अब चतुर्थ यक्षद्वार के सामने खड़ी थी।


जारी रहेगा________✍️
Bahut hi badhiya update diya hai Raj_sharma bhai....
Nice and beautiful update....
 

Ajju Landwalia

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#120.

मैग्नार्क द्वार:
(13 जनवरी 2002, रविवार, 10:20, मायावन, अराका द्वीप)

सभी जंगल में आगे की ओर बढ़ रहे थे।

रेत मानव से सभी को बचाने के बाद क्रिस्टी में एक अंजाना सा विश्वास आ गया था। अब वह थोड़ा खुश सी लग रही थी। शायद अब उसे भी इस रहस्यमय जंगल से निकलने की उम्मीद हो गई थी।

“क्या बात है?” शैफाली ने मुस्कुराते हुए कहा- “आज तो क्रिस्टी दीदी बहुत खुश दिख रही हैं। कुछ खास है क्या?”

शैफाली की बात सुन जेनिथ के चेहरे पर भी एक भीनी सी मुस्कान बिखर गई।

“खुशी की तो बात ही है, इतने खतरनाक रेत मानव और तिलिस्मी मुसीबतों से सबको बचाना कोई आसान बात थोड़ी ही थी।” जेनिथ ने कहा।

“आप सही कह रहीं हैं जेनिथ दीदी।” शैफाली ने जेनिथ से कहा- “कम से कम क्रिस्टी दीदी को अपनी ताकत के बारे में पता तो है। एक हम हैं, पता ही नहीं चलता कि आखिर हमारे पास शक्तियां कौन सी हैं? कभी याद आती हैं, तो एक पल में ही सब चली जाती हैं। मैं तो स्वयं को ही नहीं समझ पा रही हूं।”

सभी बात करते हुए क्रिस्टी के द्वारा उत्पन्न हुई नदी के किनारे-किनारे चल रहे थे।

जैसे-जैसे यह लोग आगे बढ़ रहे थे, पत्थरों का रंग सफेद से नारंगी होता जा रहा था।

तभी सभी को 2 छोटे पहाड़ों के बीच एक बड़ा सा अर्द्धचंद्राकार आर्क दिखाई दिया।

वह नदी इसी आर्क के बीच से होकर आती दिख रही थी। आर्क से निकलकर सूर्य की सुनहरी किरणें नदी के पानी को प्रकाशित कर रहीं थीं।

“वाह! कितना सुंदर दृश्य है।” जेनिथ ने उस दृश्य को अपनी आँखों में भरते हुए कहा- “वह आर्क बिल्कुल किसी प्रकृति के द्वार की तरह प्रतीत हो रहा है।”

सभी मंत्रमुग्ध से कुछ देर तक उस दृश्य को देखते रहे, फिर आगे बढ़कर उस आर्क के पास पहुंच गये।

दूसरी ओर जाने का रास्ता आर्क के बीच से ही होकर जा रहा था।

उस पथरीले आर्क के दोनों ओर 2 जलपरियों की मूर्तियां भी बनीं थीं, जिन्होंने अपने हाथों में ग्लोब पकड़ रखी थी।

उस आर्क के पास जमीन पर एक छोटा सा बोर्ड लगा था, जिसके बीचो बीच में अलग-अलग अंग्रेजी के 7 अक्षर भी चिपके हुए थे।

वह अक्षर थे- “CRANGAM” उन अक्षरों को देखकर सभी के मुंह से एक साथ निकला- “क्रैंगम!”

“लगता है यह भी किसी प्रकार के तिलिस्म का हिस्सा है।” क्रिस्टी ने कहा- “क्यों कि यहां कि सारी चीजें किसी के द्वारा बनाई गयी दिख रहीं हैं।”

“सही कहा क्रिस्टी ने।” सुयश ने भी उस पूरे आर्क को देखते हुए कहा- “मुझे भी यह कोई नयी समस्या दिख रही है, पर इस क्रैंगम का मतलब क्या हुआ?”

पर सुयश के इस सवाल का जवाब उनमें से किसी के भी पास नहीं था।

“सभी लोग ध्यान रखें।”तौफीक ने कहा- “कोई भी किसी भी चीज को, समझे बिना नहीं छुएगा। क्यों कि हमें नहीं पता कि किस चीज में क्या परेशानी छिपी हुई है?”

सभी ने तौफीक की बात पर सहमति जताते हुए अपने सिर हिलाये।

“कैप्टेन अंकल!” शैफाली ने सुयश से कहा- “क्यों ना हम बिना किसी चीज को छुए हुए नदी के बगल में मौजूद छोटे से जमीनी रास्ते से उस पार चलें? क्यों कि हम कितना भी सोचकर किसी भी चीज को हाथ
लगाएं? हम उसमें छिपी परेशानी को पहचान नहीं पायेंगे।”

“शैफाली सही कह रही है।” सुयश ने सभी को देखते हुए कहा- “हमें बहुत धीरे-धीरे बिना किसी चीज को छुए ही इस आर्क को पार करना पड़ेगा।”

सुयश की बात सुन तौफीक ने स्वयं आगे बढ़कर उस आर्क के उस पार जाने की सोची, तभी तौफीक का हाथ किसी अदृश्य दीवार से टकराया।

उस अदृश्य दीवार ने तौफीक को उस पार नहीं जाने दिया।

“कैप्टेन, यहां पर कोई अदृश्य दीवार है, जो मुझे उस पार नहीं जाने दे रही।” तौफीक ने अदृश्य दीवार को हाथ से टटोलते हुए कहा।

तौफीक की बात सुन सभी ने हाथ के स्पर्श से उस दीवार को छूकर देखा।

“अब क्या करें कैप्टेन?” क्रिस्टी ने कहा- “हमारा उस पार जाना भी जरुरी है और यह आर्क की अदृश्य दीवार हमें उस पार जाने भी नहीं दे रही।”

मगर सुयश से पहले ही शैफाली बोल उठी- “नदी.... हो ना हो इस आर्क के उस पार जाने का रास्ता इस नदी से होकर जाता होगा।”

“मैं भी शैफाली की बात से सहमत हूं।” जेनिथ ने कहा- “हममें से किसी को पानी के अंदर उतरकर उस पार जाने की कोशिश करनी होगी।”

“यह कोशिश मैं करती हूं।” क्रिस्टी ने अपना हाथ ऊपर उठाते हुए कहा।

किसी ने भी क्रिस्टी की बात पर ऐतराज नहीं जताया। यह देख क्रिस्टी ने अपनी जींस को थोड़ा फोल्ड करके ऊपर चढ़ाया और अपने जूते उतारकर नदी में कूद गयी।

क्रिस्टी ने अपना सिर पानी की सतह के नीचे करते हुए उस आर्क को पार करने की कोशिश की, पर क्रिस्टी को पानी के अंदर भी वह अदृश्य दीवार महसूस हुई।

यह सोच क्रिस्टी डाइव मारकर नदी की तली की ओर चल पड़ी।

नदी कोई ज्यादा गहरी नहीं थी। थोड़ी ही देर में क्रिस्टी नदी की तली में खड़ी थी।

नदी के तली में बहुत से नीले पौधे लगे हुए थे। तभी क्रिस्टी के निगाह पानी में बने बाकी के आधे आर्क पर पड़ी।

वह आधा आर्क उल्टा बना हुआ था, यानि अगर वह नदी ना होती तो वह आर्क नहीं एक पूरा रिंग दिखाई देता।

पानी के अंदर के आर्क की ओर 2 परियां बनीं थीं, जिन्होंने अपने हाथों में जादुई छड़ी पकड़ रखी थी।

वह दोनों परियां आर्क से जुड़ी उल्टी खड़ीं थीं।

जब क्रिस्टी को पानी के अंदर से आर्क में जाने का कोई रास्ता नहीं दिखाई दिया, तो वह नदी से निकलकर बाहर आ गयी।

क्रिस्टी ने नदी के अंदर का पूरा दृश्य सभी को बता दिया।

“इसका क्या मतलब हुआ?” जेनिथ ने कहा- “अगर हम पानी से भी उस पार नहीं जा सकते और जमीन से भी नहीं तो फिर हम उस पार कैसे जायेंगे?”

“एक मिनट क्रिस्टी दीदी मुझे जरा एक बार फिर से बताना कि नीचे 2 जलपरियां उल्टी खड़ी हैं, आपने सही बताया ना?” शैफाली ने क्रिस्टी से दोबारा से पुष्टि करते हुए कहा।

“हां...बिल्कुल सही।” क्रिस्टी ने अपना सिर हां में हिलाते हुए कहा।

अब शैफाली उस आर्क को देखती हुई कुछ तेजी से सोचने लगी।

तभी जेनिथ की नजर क्रिस्टी के पैरों की ओर गयी और वह बोल उठी- “अरे क्रिस्टी ये तुम्हारे पैरों में यह नीले रंग का जेली जैसा पदार्थ कहां से लग गया?”

जेनिथ की बात सुन क्रिस्टी ने भी अपने पैरों की ओर देखा। उसके पैर में नीले रंग की जेली लगी थी।

“मुझे लगता है, यह जेली मुझे नदी के तली में खड़े होने पर लग गया होगा। क्यों कि वहां पर कुछ नीले पौधे थे।”

यह कहकर क्रिस्टी अपने पैरों से नीली जेली को हटाने लगी।

वह जेली किसी स्किन की तरह पैर से निकल रही थी। जेली के पैर से निकलने के बाद दोनों पैर की जेली किसी रबर के मोजे जैसी लग रही थी।

क्रिस्टी ने उस जेली को वहीं जमीन पर फेंक दिया।

तभी कुछ सोचती हुई शैफाली जोर से बोल उठी- “इस आर्क में ऊपर की ओर 2 जलपरियां बनी हैं और नीचे नदी की ओर 2 परियां। जबकि परियों को हवा में और जलपरियों को पानी में होना चाहिये था। इसका साफ मतलब है कि हमें इस आर्क को घुमाना होगा।”

शैफाली की सोच से सभी प्रभावित हो गये क्यों कि शैफाली का लॉजिक तो बिल्कुल सही था।

यह सुन तौफीक ने आगे बढ़कर उस पत्थर के आर्क को घुमाने की कोशिश की, पर पूरी ताकत लगाने के बाद भी वह आर्क अपनी जगह से हिला तक नहीं।

“लगता है कि इस आर्क में कुछ प्रॉब्लम और भी है।” जेनिथ ने कहा- “कहीं इस बोर्ड पर लिखे क्रैंगम शब्द में तो कोई रहस्य नहीं छिपा?” जेनिथ के शब्द सुन सभी उस क्रैंगम शब्द को ध्यान से देखने लगे।

“कैप्टेन!” तौफीक ने सुयश का ध्यान क्रैंगम शब्द की ओर करते हुए कहा- “ध्यान से देखिये। क्रैंगम शब्द में कुल 7 अक्षर हैं। इसमें ‘N’ अक्षर को छोड़कर बाकी सभी अक्षर लाल रंग से चमक रहे हैं, जबकि ‘N’ हरे
रंग से चमक रहा है। इसका मतलब ‘N’ को छोड़कर सभी अक्षर गलत स्थान पर लगे हैं, यानि कि ये सारे अक्षर ‘रम्बल-जम्बल’ हैं।”

सभी को तौफीक का तर्क बहुत सही लगा। अब सभी उन अक्षरों से किसी उचित शब्द को बनाने में लग गये।

कुछ देर सोचने के बाद इस प्रतियोगिता का समापन शैफाली ने अपने शब्दों से किया-

“यहां पर ‘MAGNARC’ शब्द लिखा है। इसका मतलब हुआ कि मैग्ना के द्वारा बनायी गयी आर्क। यानि कि ये सारे अक्षर उल्टे लिखे थे। शायद इन अक्षरों को सीधा करके सही करने के बाद यह आर्क भी घूमना शुरु हो जाये।”

यह सुनकर तौफीक ने आगे बढकर ‘C’ अक्षर को अपनी जगह से खिसकाने के लिये जैसे ही छुआ, वह तुरंत पत्थर का बन गया। यह देख सभी बहुत ज्यादा डर गये।

जेनिथ को छोड़ सभी की आँखों में दुख के भाव लहराने लगे।

“अब क्या करें कैप्टेन?” क्रिस्टी ने डरते हुए कहा- “हमारा एक और साथी इस जंगल की भेंट चढ़ गया... और अब हमारे पास आगे बढ़ने का कोई रास्ता भी नहीं है।”

“ऐसा नहीं हो सकता, अगर यह तिलिस्म बनाया गया है तो इसका हल भी यहीं कहीं होना चाहिये।” सुयश ने दृढ़ विश्वास दिखाते हुए कहा।

तभी सुयश को वेदालय वाला दृश्य याद आने लगा, जब आर्यन ने अपने दिमाग से धेनुका नामक गाय से स्वर्णदुग्ध प्राप्त किया था।

अचानक से सुयश आर्यन की तरह सोचने लगा। अब उसकी निगाहें तेजी से अपने चारो ओर घूमने लगीं।

तभी उसकी नजर क्रिस्टी के द्वारा फेंके गये नीले रंग की जेली पर पड़ी।

“मिल गया उपाय।” यह कहकर सुयश बिना किसी को कुछ बोले जूते उतारकर नदी में कूद गया।

किसी की समझ नहीं आया कि सुयश क्या करना चाह रहा है।

थोड़ी ही देर में सुयश नदी के पानी से बाहर निकला। उसके दोनों हाथों में अब नीले रंग की जेली लगी थी, जो कि एक रबर के दस्ताने की तरह प्रतीत हो रही थी।

सुयश ने आगे बढ़कर क्रैंगम के अक्षरों को छुआ, पर हाथ में जेली लगे होने के कारण सुयश को कुछ नहीं हुआ।

सुयश ने जैसे ही सभी अक्षरों को सही स्थान पर लगाया, सभी अक्षर हरे रंग से चमकने लगे और आर्क में कहीं एक तेज ‘खटाक’ की आवाज उभरी।

अब सुयश ने आर्क को हिलाकी देखा, सुयश के हिलाते ही आर्क अपनी जगह से घूमने लगी।
कुछ ही देर में जलपरियां पानी के नीचे चलीं गयीं और परियां पानी के ऊपर आ गयीं।

सुयश ने इसके बाद उस आर्क के बीच से निकलने की कोशिश की और वह आर्क के बीच से होता हुआ दूसरी ओर पहुंच गया।

यह देख जेनिथ, क्रिस्टी और शैफाली भी आर्क के दूसरी ओर निकल गये।

क्रिस्टी के एक नजर पत्थर बने तौफीक पर डाली। वह अभी भी पत्थर बना था। तौफीक को देख क्रिस्टी की आँखों में दुख के भाव नजर आये।

तभी सुयश को जाने क्या हुआ, वह दोबारा आर्क के पहली ओर गया और पत्थर बने तौफीक को खींचकर आर्क के दूसरी ओर ले आया।

जैसे ही तौफीक का शरीर आर्क के दूसरी ओर पहुंचा, अचानक दोनों परियां सजीव हो गईं।

परियों ने एक नजर पत्थर बने तौफीक की ओर डाली।

अब उनके हाथ में पकड़ी जादुई छड़ी से सुनहरी किरणें निकलीं और पत्थर बने तौफीक पर पड़ीं।

सुनहरी किरणों के पड़ते ही तौफीक वापस से सजीव हो गया। सभी यह देखकर खुश हो गये।

तभी परियों सहित नदी और आर्क सबकुछ हवा में विलीन हो गया। अब वह एक पथरीले रास्ते पर खड़े थे।

शैफाली ने तौफीक को सारी घटना बता दी। यह सुन तौफीक ने सुयश को गले से लगा लिया।

सभी मुस्कुराते हुए फिर से आगे की ओर बढ़ गये।

जारी रहेगा______✍️

Bahut hi gazab ki update he Raj_sharma Bhai,

Magarc ka tilisam bhi aakhir kar Suyash ke Shaifali ki sujhbujh se tut hi gaya.........

Naya rasta shuru ho gaya he aur sath me nayi mushkile bhi............

Keep rocking Bro
 
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