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Thriller ✧ Double Game ✧(Completed)

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ये तो पुरी कहानी का रूख ही मोड़ दिया आपने शुभम भाई ! रूपा ने अपने पति विशेष और उसके दोस्त निशांत की हत्या कर दी । वो पकड़ी भी गई और अदालत से बाइज्जत रिहा भी हो गई । उसके कातिल होने के सबूत ही नहीं मिले ।

मुझे तो बहुत ही खुशी हुई । विशेष के साथ यही अंजाम होना चाहिए था । बल्कि उसे इंडियन प्रिंसेस मैडम की फेवरेट किरदार " मीरा " के हवाले कर देते तो और भी अच्छा होता । उसके शरीर से रोज एक एक मांस का टुकड़ा काटती और चील कौवे को खिलाती ।

लेकिन पुलिस ने अदालत में थियूरी क्या सुनाई ? जैसे -
विशेष का खून किस हथियार से हुआ था ? चाकू से या रिवाल्वर से ?
निशांत का खून किस औजार से हुआ था ?
हत्या की टाइमिंग क्या थी ?
हत्या हुई कहां थी ?
मर्डर वैपन पर किस की उंगलियों की निशान थी ?
फिंगरप्रिंट रिपोर्ट क्या थी ?
चाकू हर घर में पाया जाता है पर गन नहीं । गन किस की थी ? मतलब किस के नाम रजिस्टर्ड थी ?
गन पर उंगलियों के निशान किस की थी ?

किसी भी कत्ल में तफसीस के लिए मुख्य रूप से देखा जाता है कि कत्ल का उद्देश्य सस्पेक्ट के पास है या नहीं ।
सस्पेक्ट के पास कत्ल करने का मौका था या नहीं ।
जिस चीज से कत्ल किया गया है , उस तक सस्पेक्ट की पहुंच थी या नहीं ।

यहां हम कह सकते हैं कि रूपा के पास गन प्राप्त करने का साधन था या नहीं ।

अदालत में इन सब बातों की चर्चा होनी चाहिए थी ।

खैर जो भी हो , रूपा आजाद है अब । उसकी असल जिंदगी अब से शुरू होती है । और मैं आशा करता हूं कि उसकी राज जिंदगी भर राज बनकर ही रहे । वो कभी पुलिस के हत्थे न पड़े ।
कोई जरूरी नहीं है कि शादी कर देने से लड़कियां सुखी जीवन व्यतीत करने लगती हैं । बिना शादी के भी वो खुश रह सकती हैं । और अगर विशेष जैसा पति मिले तो मैं यही कहूंगा कि वो शादी तो बिल्कुल ही नहीं करें ।
और अगर कर भी लिया तो उसे छोड़ कर अपने जीवन की नई शुरुआत करें । धीरे धीरे समाज की सोच बदल रही है । औरतें अपनी देखभाल खुद कर सकती हैं।

खैर , देखते हैं रूपा क्या बताती है अपनी मां को । क्योंकि एक लड़की का दो मर्दों का कत्ल करना आसान नहीं होता है । इसके अलावा उसने मर्डर के लिए दो हथियार इस्तेमाल किए हैं । उसे कहां से गन मिला और किस औजार से किस की हत्या की , यह भी जानना है ।

आउटस्टैंडिंग एंड सेंसेशनल अपडेट शुभम भाई ।
जगमग जगमग अपडेट ।
 

Chutiyadr

Well-Known Member
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Samaj ke sundarata ko mapne ke tarike aise hai ki log kisi ko sundar aur kisi ko kurup bana dete hai, asliyat isse bahut bhinn hai,asal me na koi sundar hai na koi kurup hai.. bas dekhne ke tarike ki baat hoti hai..
Sahrukh khan ,ajay devgan ,raj kumar raw jaise actors ise bar bar sabit karte aa rahe hai ki samaj ka sundarta mapne ka tarika asali sundarta aur akarshak vyaktitwa ko paribhashit nahi kar sakta..
Najariye bhi badle jaa sakte hai , aur samaj ko bhi is mudde par jagna chahiye kisi ko kurup bolkar uska manobal nahi girana chahiye..
 
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Samaj ke sundarata ko mapne ke tarike aise hai ki log kisi ko sundar aur kisi ko kurup bana dete hai, asliyat isse bahut bhinn hai,asal me na koi sundar hai na koi kurup hai.. bas dekhne ke tarike ki baat hoti hai..
Sahrukh khan ,ajay devgan ,raj kumar raw jaise actors ise bar bar sabit karte aa rahe hai ki samaj ka sundarta mapne ka tarika asali sundarta aur akarshak vyaktitwa ko paribhashit nahi kar sakta..
Najariye bhi badle jaa sakte hai , aur samaj ko bhi is mudde par jagna chahiye kisi ko kurup bolkar uska manobal nahi girana chahiye..
बिल्कुल सही कहा आपने डॉ साहब । सुंदरता मापने के पैमाने अलग अलग होती है । लैला सुंदर नहीं थी जबकि मजनु बहुत ही खूबसूरत था । और देखिए , लैला के लिए उसकी दिवानगी किस हद तक की थी । एक अमर प्रेम गाथा बन गई उनकी ।

श्रीदेवी और जया प्रदा दोनों एक ही दौर की फेमस और खुबसूरत हिरोइन थी । लेकिन किसी को श्रीदेवी पसंद थी तो किसी को जया प्रदा । पसंद अपनी अपनी ।
 

Mahi Maurya

Dil Se Dil Tak
Supreme
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66,127
304
दूसरे अध्याय का पहला भाग
बहुत ही बेहतरीन महोदय।।
रूपा को अदालत ने विशेष की हत्या के आरोप से बरी कर दिया। रूपा में पापा चक्रधर ने रूपा कक जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और उसे अपने घर ले आए।। एक विधवा का जीवन बहुत ही दुःखदायी होता है खासकर तब जब औरत ने खुद अपने हाथों से अपने वैधव्य को चुना हो।। रूपा ने खुद अपने हाथों से विशेष की हत्या की थी, तो मतलब मेरा शक बिल्कुल सही था। विशेष की चाल रूपा के समझ में आ गयी थी, इसलिए निशांत की हत्या करने के बाद जब विशेष रूपा को फंसाने ले लिए उसकी उंगलियों के निशान लेने के चक्कर में पड़ा होगा तभी रूपा ने विशेष का काम तमाम कर दिया होगा।बहुत अच्छा किया रूपा ने विशेष को मारकर। बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा होता है जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है वो खुद उस गड्ढे में गिरता है।।
रूपा की मां को ये सुनकर धक्का लगता है कि उनकी फूल सी बेटी ने अपने पति को मार डाला। रूपा ने सही कहा कि उसके कुरूप होने में उसकी कोई गलती नहीं है। ये सब तो ईश्वर का दिया हुआ वरदान होता है सभी जीवों के लिए। सपने हर लड़की देखती है वो चाहे गोरी हो या काली हो। रूपा को दुख होता था अपने पापा को अपनी शादी के लिए लड़कों की तलाश करते और फिर हताश होकर वापस लौटता देखकर।।
 

TheBlackBlood

Keep calm and carry on...
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ये तो पुरी कहानी का रूख ही मोड़ दिया आपने शुभम भाई ! रूपा ने अपने पति विशेष और उसके दोस्त निशांत की हत्या कर दी । वो पकड़ी भी गई और अदालत से बाइज्जत रिहा भी हो गई । उसके कातिल होने के सबूत ही नहीं मिले ।

मुझे तो बहुत ही खुशी हुई । विशेष के साथ यही अंजाम होना चाहिए था । बल्कि उसे इंडियन प्रिंसेस मैडम की फेवरेट किरदार " मीरा " के हवाले कर देते तो और भी अच्छा होता । उसके शरीर से रोज एक एक मांस का टुकड़ा काटती और चील कौवे को खिलाती ।
Hahaha aap Meera ke hawale karne ki baat kahte hain, jabki mera khayaal hai ki vishesh ko khud IP madam ke hawale kar dena chahiye tha. Wo BDSM queen hain, jab hunter se vishesh ki chhilaayi hoti to uske zahen se saare khayaal hi mit jaate,,,:lol1:
लेकिन पुलिस ने अदालत में थियूरी क्या सुनाई ? जैसे -
विशेष का खून किस हथियार से हुआ था ? चाकू से या रिवाल्वर से ?
निशांत का खून किस औजार से हुआ था ?
हत्या की टाइमिंग क्या थी ?
हत्या हुई कहां थी ?
मर्डर वैपन पर किस की उंगलियों की निशान थी ?
फिंगरप्रिंट रिपोर्ट क्या थी ?
चाकू हर घर में पाया जाता है पर गन नहीं । गन किस की थी ? मतलब किस के नाम रजिस्टर्ड थी ?
गन पर उंगलियों के निशान किस की थी ?

किसी भी कत्ल में तफसीस के लिए मुख्य रूप से देखा जाता है कि कत्ल का उद्देश्य सस्पेक्ट के पास है या नहीं ।
सस्पेक्ट के पास कत्ल करने का मौका था या नहीं ।
जिस चीज से कत्ल किया गया है , उस तक सस्पेक्ट की पहुंच थी या नहीं ।

यहां हम कह सकते हैं कि रूपा के पास गन प्राप्त करने का साधन था या नहीं ।

अदालत में इन सब बातों की चर्चा होनी चाहिए थी ।
Reality kya hai aur ye sab kaise hua, ye rupa ke dwara aage pata chalega,,,,:declare:
खैर जो भी हो , रूपा आजाद है अब । उसकी असल जिंदगी अब से शुरू होती है । और मैं आशा करता हूं कि उसकी राज जिंदगी भर राज बनकर ही रहे । वो कभी पुलिस के हत्थे न पड़े ।
कोई जरूरी नहीं है कि शादी कर देने से लड़कियां सुखी जीवन व्यतीत करने लगती हैं । बिना शादी के भी वो खुश रह सकती हैं । और अगर विशेष जैसा पति मिले तो मैं यही कहूंगा कि वो शादी तो बिल्कुल ही नहीं करें ।
और अगर कर भी लिया तो उसे छोड़ कर अपने जीवन की नई शुरुआत करें । धीरे धीरे समाज की सोच बदल रही है । औरतें अपनी देखभाल खुद कर सकती हैं।
Sahi kaha aapne. Pahle ka daur chala gaya jab akeli aurat ka jeewan jeena bada hi mushkil tha. Ab to situation kaafi badal gayi hai. Khair jo bhi ho sach ye hai ki rupa ke saamne jo halaat ban gaye hain usse use kisi na kisi tarah apna jeewan byateet karna hi padega,,,,:dazed:
खैर , देखते हैं रूपा क्या बताती है अपनी मां को । क्योंकि एक लड़की का दो मर्दों का कत्ल करना आसान नहीं होता है । इसके अलावा उसने मर्डर के लिए दो हथियार इस्तेमाल किए हैं । उसे कहां से गन मिला और किस औजार से किस की हत्या की , यह भी जानना है ।
Ji bilkul, saara kissa wo detail me hi batayegi,,,,:approve:
आउटस्टैंडिंग एंड सेंसेशनल अपडेट शुभम भाई ।
जगमग जगमग अपडेट ।
Shukriya bhaiya ji is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
 

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Sahrukh khan ,ajay devgan ,raj kumar raw jaise actors ise bar bar sabit karte aa rahe hai ki samaj ka sundarta mapne ka tarika asali sundarta aur akarshak vyaktitwa ko paribhashit nahi kar sakta..
Najariye bhi badle jaa sakte hai , aur samaj ko bhi is mudde par jagna chahiye kisi ko kurup bolkar uska manobal nahi girana chahiye..
Is sansaar ki haqeeqat ke bare me bade bade gyaani jane kab se batate aa rahe hain. Aaj ka insaan bhi kahi na kahi yathaarth ko samajhta hai lekin baat jab khud par aati hai to saari samajh aur saare nazariye badal jate hain. Aisa shayad hi kabhi ho sakega ki log jin cheezo ka gyaan dusro ko dete hain um cheezo par wo khud bhi amal karne lage. Khair insaan to ek aisa praani hai jo mukh me kuch aur man me kuch aur le kar jeewan jeeta hai,,,,:dazed:
 

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दूसरे अध्याय का पहला भाग

बहुत ही बेहतरीन महोदय।।

रूपा को अदालत ने विशेष की हत्या के आरोप से बरी कर दिया। रूपा में पापा चक्रधर ने रूपा कक जिम्मेदारी अपने ऊपर ली और उसे अपने घर ले आए।। एक विधवा का जीवन बहुत ही दुःखदायी होता है खासकर तब जब औरत ने खुद अपने हाथों से अपने वैधव्य को चुना हो।। रूपा ने खुद अपने हाथों से विशेष की हत्या की थी, तो मतलब मेरा शक बिल्कुल सही था। विशेष की चाल रूपा के समझ में आ गयी थी, इसलिए निशांत की हत्या करने के बाद जब विशेष रूपा को फंसाने ले लिए उसकी उंगलियों के निशान लेने के चक्कर में पड़ा होगा तभी रूपा ने विशेष का काम तमाम कर दिया होगा।बहुत अच्छा किया रूपा ने विशेष को मारकर। बुरे काम का नतीजा हमेशा बुरा होता है जो दूसरों के लिए गड्ढा खोदता है वो खुद उस गड्ढे में गिरता है।।

रूपा की मां को ये सुनकर धक्का लगता है कि उनकी फूल सी बेटी ने अपने पति को मार डाला। रूपा ने सही कहा कि उसके कुरूप होने में उसकी कोई गलती नहीं है। ये सब तो ईश्वर का दिया हुआ वरदान होता है सभी जीवों के लिए। सपने हर लड़की देखती है वो चाहे गोरी हो या काली हो। रूपा को दुख होता था अपने पापा को अपनी शादी के लिए लड़कों की तलाश करते और फिर हताश होकर वापस लौटता देखकर।।

Shukriya mahi madam is khubsurat sameeksha ke liye,,,,:hug:
 
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Chapter - 02
[ Reality & Punishment ]
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Update - 08
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उस दिन एक तरफ मैं इस बात से खुश थी कि आज मेरा ब्याह होने वाला है तो वहीं दूसरी तरफ अब ये सोच सोच कर मुझे घबराहट सी होने लगी थी कि उस वक़्त क्या होगा जब सुहागरात को मेरा पति मेरा चेहरा देखेगा? अगर मुझे ये पता चल जाता कि दुनियां के किसी कोने में कोई ऐसा प्राणी मौजूद है जो एक पल में किसी को भी सुन्दर बना सकता है तो मैं एक पल की भी देरी किए बिना उस प्राणी के पास पहुंच जाने के लिए दौड़ लगा देती लेकिन, ये तो ऐसी बात थी जिसके बारे में सिर्फ कल्पना ही की जा सकती थी। सच तो ये है कि कुदरत एक बार जिसको जैसा बना के धरती पर भेज देती है वो मरते दम तक वैसा ही रहता है। हालांकि उम्र के साथ उसका जिस्म बूढ़ा होने लगता है लेकिन उसके रंग रूप में कोई बदलाव नहीं आता।

मैंने अक्सर सुना था कि जब किसी का ब्याह होता है तो लड़का लड़की के घर वाले एक दूसरे के घर जा कर लड़का या लड़की को देखते हैं और ये भी सुना था कि आज कल लड़का लड़की खुद भी एक दूसरे को ब्यक्तिगत तौर पर देखते हैं। ये बातें मेरे लिए डर जैसी बन चुकीं थी। हालांकि मेरे बाबू जी ने जहां मेरा रिश्ता तय किया था उन्होंने लड़की देखने या लड़का दिखाने से मना कर दिया था। विशेष के पिता जी को हर तरह से रिश्ता मंजूर था। मैं नहीं जानती थी कि उनका और मेरे बाबू जी के बीच क्या क़रार हुआ था और ना ही मैं ये जानती थी कि विशेष को इस ब्याह के बारे में पहले से उनके पिता जी ने नहीं बताया था। ख़ैर ब्याह हुआ और बड़े ही धूम धाम से हुआ। दुनियां में जो मुझे सबसे ज़्यादा प्यार और स्नेह करते थे उनसे विदा लेते वक़्त मैं दहाड़ें मार मार कर रोई थी। शायद इस एहसास ने मुझे और भी ज़्यादा रुलाया था कि अब शायद कोई भी मुझे मेरे माता पिता और भाई जितना प्यार नहीं देगा। कुदरत ने अगर मुझे सुन्दर रंग रूप से नवाजा होता तो संभव था कि आने वाले समय में मेरा पति मुझे इतना प्यार भी देता कि वो मुझे अपनी पलकों पर बैठा कर रख लेता लेकिन इस रंग रूप का उस पर कैसा असर होगा इसका मुझे बखूबी अंदाज़ा था।

अपने दिलो दिमाग़ में ख़ुशी से ज़्यादा डर घबराहट और दुविधा जैसे भावों को लिए मैं अपने ससुराल आ गई थी। हर पल ऊपर वाले से बस यही दुआ कर रही थी कि वो मुझे ऐसा पल न दिखाए जो मुझे और मेरी ज़िन्दगी को उस एक पल में ही बद से बदतर बना दे। बड़ी मुश्किल से दिन गुज़रा और फिर रात हुई। आने वाला हर एक पल जैसे मुझे डर और घबराहट को एक नए रूप में पेश करने का आभास करा रहा था। एक लड़की के दिलो दिमाग़ में उस वक़्त जो खुशियां, जो उमंग और जो सपने होते हैं वो न जाने कहां गायब हो गए थे? बल्कि उन सबकी जगह पर सिर्फ एक ही चीज़ ने अपना कब्ज़ा सा जमा लिया था और वो एक चीज़ थी____'डर और घबराहट।'

कमरे में सुहाग सेज पर अपने पति के इंतज़ार में बैठी मैं मन ही मन ऊपर वाले को याद कर रही थी। उस वक़्त डर और घबराहट की वजह से मुझे ये तक ख़याल आ गया था कि मैं उस जगह से भाग कर अपने माता पिता के पास पहुंच जाऊं। क्योंकि मैं नहीं चाहती थी कि आने वाला वक़्त मुझे एक ऐसा दुःख दे दे जो उस वक़्त मेरे लिए असहनीय हो जाए। अब तक इतना कुछ मैंने सह लिया था कि उस हालत में अगर ऐसा वैसा कुछ हो जाता तो मैं बस एक ही ख़्वाहिश रखती कि ये धरती फट जाए और मैं उसमे समां जाऊं। मैं सोचने समझने की हालत में ही नहीं रह गई थी। अगर उस हालत में होती तो मैं ये ज़रूर सोच कर खुद को तसल्ली देती कि दुनियां में अच्छे इंसान भी पाए जाते हैं रूपा जो किसी के रंग रूप से नहीं बल्कि उसकी आत्मा की सुंदरता से प्यार करते हैं और तुझे तो पूरा यकीन है कि तेरी आत्मा बहुत सुन्दर है और तेरे अंदर कोई भी बुराई नहीं है।

उस रात जब विशेष जी कमरे में आए और जब मैंने उनके आने की आहट सुनी तो मेरा समूचा वजूद कांप गया। दिल की धड़कनें ये सोच कर बुरी तरह से धाड़ धाड़ कर के कनपटियों पर बजने लगीं कि अब क्या होगा? अगर उन्होंने मेरा चेहरा देख कर मुझे कुछ उल्टा सीधा कह दिया तो कैसे सहन कर पाऊंगी मैं? औरत लाख कुरूप सही लेकिन किसी के द्वारा अपने ही सामने वो अपनी बुराई या अपना अपमान सहन नहीं कर सकती। ख़ास कर उस वक़्त तो बिल्कुल भी नहीं जिस वक़्त उसकी और उसकी ज़िन्दगी की अहमियत बदल जानी वाली हो। मेरी जगह अगर कोई सुन्दर लड़की होती तो उस वक़्त उसका चेहरा ख़ुशी और उमंगों से भरा हुआ होता और उसके होठों पर शर्मो हया की मुस्कान खिली हुई होती लेकिन मेरे साथ ऐसा कुछ नहीं था। मैं तो अपने बनाने वाले से बस यही फ़रियाद कर रही थी कि चाहे कुछ भी कर लेना लेकिन मेरी आत्मा को दुखी मत होने देना।

सुहाग सेज पर आँखें बंद किए मैं ऊपर वाले को याद करते हुए उससे फ़रियाद कर रही थी। मेरा घूंघट मेरे सीने तक ढलका हुआ था लेकिन सुर्ख और झीनी साड़ी से मेरा चेहरा साफ़ झलक रहा था। मैं बेड के बीचो बीच एकदम से सिकुड़ी हुई सी बैठी थी। मेरे अंदर की हालत ऐसी हो गई थी कि अगर कोई काटता तो मेरे जिस्म से ज़रा सा भी खून न निकलता।

एक ऐसी घड़ी आ गई थी जिसका हर लड़की को बड़ी शिद्दत से इंतज़ार होता है लेकिन मुझे नहीं था, बल्कि मैं तो यही चाहती थी कि ये घड़ी मेरी किस्मत की लकीरों से ही मिट जाए। ऐसा इस लिए क्योंकि मैं उस घड़ी के बाद उस हालत में खुद को नहीं पहुंचा देना चाहती थी जिस हालत में मुझे दुनियां का ऐसा दुःख प्राप्त हो जाए जो मेरी अंतरात्मा तक को झकझोर डाले।

विशेष जी कमरे में आए और फिर पलट कर उन्होंने दरवाज़ा बंद कर के अंदर से उसकी कुण्डी लगा दी। उनके आने की आहट को सुन कर ही मेरी हालत बिगड़ने लगी थी। उधर वो अपने होठों पर मुस्कान सजाए और मेरी तरफ देखते हुए बेड की तरफ बढ़ रहे थे। कुछ ही देर में वो बेड के क़रीब आ गए और बेड के किनारे पर ही बैठ ग‌ए। वो मेरे बेहद क़रीब बैठ गए थे लेकिन अपनी पलकें उठा कर उन्हें देख लेने की मुझ में ज़रा भी हिम्मत नहीं हुई थी। बल्कि ये सोच कर मेरे अंदर डर और घबराहट में और भी ज़्यादा इज़ाफ़ा हो गया था कि अब बस कुछ ही पलों में मुझे ऐसा झटका लगेगा जिसे मैं सहन नहीं कर पाऊंगी। मन ही मन एक बार फिर से अपने बनाने वाले को याद किया मैंने और उससे कहा कि मेरी विनती मेरी फ़रियाद को ठुकरा न देना। बस ये समझ लीजिए कि मेरी ज़िन्दगी और मौत आपके ही हाथों में है।

मैं ऊपर वाले को याद करते हुए उनसे ये सब कह ही रही थी कि तभी विशेष जी ने अपने हाथों को बढ़ा कर मेरा घूंघट पकड़ा और उसे बहुत ही आहिस्ता से उठाते हुए कुछ ही पलों में मेरा चेहरा बेपर्दा कर दिया। जैसे ही मेरा चेहरा बेपर्दा हुआ तो मुझे ऐसा लगा जैसे संसार की हर चीज़ अपनी जगह पर रुक गई हो। मुझे एकदम से महसूस हुआ जैसे मेरे दिल की धड़कनों ने धड़कना ही बंद कर दिया हो। मेरा चेहरा झुका हुआ था और मेरी आँखें बंद थीं। मेरे अंदर उस वक़्त अगर कुछ चल रहा था तो वो सिर्फ अपने बनाने वाले को याद करना और उनसे इस पल के लिए ऐसी दुआ करना जो मेरे आत्मा को छलनी छलनी होने से बचा ले।

मैं उस वक़्त एकदम से चौंकी जब मेरा घूंघट वापस अपनी जगह पर पहुंच गया और विशेष जी एक झटके में बेड से उठ कर खड़े हो ग‌ए। मेरी जान जैसे मेरे हलक में ही आ कर फंस गई थी। मैंने बहुत हिम्मत कर के अपना सिर उठाया और बड़ी मुश्किल से अपनी पलकों को खोल कर उनकी तरफ देखा। उनके चेहरे पर उभरे हुए भावों को देख कर मुझे समझने में ज़रा भी देरी नहीं हुई कि मुझे बनाने वाले ने मेरी फ़रियादों को ठुकरा दिया है। मुझे समझते देर नहीं लगी कि उसने मुझ पर ज़रा भी रहम नहीं किया और फिर अगले कुछ ही पलों में जैसे मेरे ऊपर ही नहीं बल्कि मेरी अन्तरात्मा में भी आसमानी बिजलियां गिरती चली गईं।

"नहीं नहीं, ये नहीं हो सकता।" चेहरे पर नफ़रत और घृणा के भाव लिए विशेष जी अजीब सी आवाज़ में कह उठे____"तुम मेरी बीवी नहीं हो सकती। ऐसे रंग रूप की औरत मेरी बीवी हो ही नहीं सकती। मेरे साथ इतना बड़ा धोखा नहीं हो सकता और ना ही मुझसे जुड़ी हुई कोई चीज़ ऐसी हो सकती है।"

कहने के साथ ही विशेष जी एक झटके से पलट कर कमरे के दरवाज़े की तरफ जाने ही लगे थे कि मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें रुक जाने के लिए जैसे विनती सी की और वो रुक भी गए लेकिन_____"अगर तुम मुझे किसी तरह की सफाई देने वाली हो या ये समझती हो कि मैं तुम्हें अपनी बीवी मान कर तुम्हारे साथ सुहागरात मनाऊंगा तो भूल जाओ। मैं अपने जीवन में तुम जैसी रंग रूप वाली बीवी को कुबूल ही नहीं कर सकता, तुम्हारे साथ जीवन में आगे बढ़ने की तो बात ही दूर है। मेरी एक बात कान खोल कर सुन लो। तुम इस घर की बहू तो हो सकती हो लेकिन मेरी बीवी कभी नहीं हो सकती।"

आख़िर वही हो गया था जिसके बारे में सोच सोच कर मैं इतने समय से डरती आ रही थी। जिसकी मैंने इतनी इबादत की थी और जिस बनाने वाले से मैंने इतनी मिन्नतें की थी उसने मेरी इबादत और मेरी फ़रियाद का ये सिला दिया था। उस वक़्त मेरे अंदर दुःख तक़लीफ और गुस्से का ऐसा ज्वालामुखी फट पड़ा था कि मन किया कि सारी दुनियां को आग लगा दूं और फिर खुद भी उसी आग में कूद कर खुद ख़ुशी कर लूं। विशेष जी ने जो कुछ कहा था उन बातों का इतना दुःख नहीं हुआ था जितना अपने बनाने वाले के द्वारा अपनी फ़रियाद ठुकरा देने का हुआ था। लोगों ने तो बचपन से ले कर अब तक मुझे अपनी बातों से न जाने कितने ही दुःख दिए थे। इतना तो मैं भी समझ चुकी थी कि इंसान कभी भी दूसरे इंसान के बारे में अच्छा नहीं सोचता लेकिन बनाने वाला??? उसने मेरे बारे में अच्छा क्यों नहीं सोचा? उस वक़्त से मेरे लिए जैसे मेरा बनाने वाला मर गया।

विशेष जी के जाने के बाद कमरे में मैं अकेली ही रह गई थी। सारी रात रोते कलपते हुए गुज़र ग‌ई। ज़हन में बचपन से ले कर अब तक की सारी बातें, सारे दृश्य गूँज जाते और मैं उनके बारे में सोच कर फिर से बिलख बिलख कर रोने लगती। रह रह कर माँ बाबू जी का चेहरा मेरी आँखों के सामने घूम जाता और फिर मन करता कि भाग कर उनके पास पहुंच जाऊं और उनके सीने से लिपट खूब रोऊं। मेरे दुःख का कोई पारावार नहीं था। रह रह कर बस एक ही ख़याल आता कि फ़ांसी लगा कर खुद ख़ुशी कर लूं लेकिन हाय री मेरी किस्मत कि वो भी नहीं कर सकी। रात ऐसे ही रोते कलपते हुए गुज़र ग‌ई। मेरी ज़िन्दगी का सूरज जैसे हमेशा के लिए ही डूब चुका था, जिसकी न तो कोई सहर थी और ना ही कोई ख़ासियत।

रात पता नहीं कब मेरी आँख लग गई थी लेकिन इतना ज़रूर एहसास हुआ था कि मुझे सोए हुए ज़्यादा समय नहीं हुआ था क्योंकि मेरी आँखों से बहे हुए आंसू ठीक से सूखे नहीं थे। मैं उस वक़्त अचानक से हड़बड़ा कर उठ बैठी थी जब मेरे कानों में बाहर से माँ जी और विशेष जी के चिल्लाने की आवाज़ें पड़ीं थी। मस्तिष्क जैसे ही जागृत हुआ तो मुझे पिछली रात का सब कुछ याद आता चला गया और उस सब को याद करते ही मेरे चेहरे पर जैसे ज़माने भर का दुःख दर्द आ कर ठहर गया। कमरे के बाहर माँ बेटे ऊँची आवाज़ में चिल्ला चिल्ला कर जाने क्या क्या बोलते जा रहे थे। मुझ में ज़रा भी हिम्मत न हुई कि मैं बेड से उतर कर कमरे से बाहर जाऊं। समझ में ही नहीं आ रहा था कि अब कौन सा मुँह ले कर उस इंसान के सामने जाऊं जिसको मेरी कुरूपता को देख कर पलक झपकते ही मुझसे नफ़रत हो गई थी।

कमरे के बाहर हो रही माँ बेटे के बीच की बातों ने मुझे अजीब ही स्थिति में ला दिया था। माँ जी अपने बेटे को डांटते हुए कह रहीं थी कि उन्हें अपने पिता जी पर गुस्सा करने की या उन्हें बातें सुनाने का कोई हक़ नहीं है, क्योंकि उन्होंने अपने बेटे साथ इतना भी ग़लत नहीं कर दिया है। माँ जी कहना था कि शादी ब्याह जीवन मरण सब ऊपर वाले के लिखे अनुसार ही होता है इस लिए जो हो गया है उसको ख़ुशी ख़ुशी अपना कर बहू के साथ अपने जीवन को आगे बढ़ाओ। बहू थोड़ी रंग रूप में सांवली ज़रूर है लेकिन उसमें उससे कहीं ज़्यादा गुण मौजूद हैं। माँ जी की इन बातों पर विशेष जी और भी ज़्यादा गुस्सा हो रहे थे। शायद पिता जी घर पर नहीं थे क्योंकि माँ जी के अनुसार विशेष जी इतना चिल्ला चिल्ला कर उनसे ऐसी बातें नहीं कर सकते थे। ख़ैर कुछ देर बाद शान्ति छा गई।

उस दिन जब पिता जी घर आए थे तो उन्होंने भी विशेष जी से यही कहा और उन्हें समझाया था कि विधि के विधान में यही होना लिखा था इस लिए अब इस पर इतना ज़्यादा नाराज़ होने की ज़रूरत नहीं। पिता जी ने उन्हें धमकी देते हुए ये भी कहा था कि अगर उन्होंने मुझे अपनाने से इंकार किया तो वो उन्हें अपनी हर चीज़ से बेदखल कर देंगे। पिता जी की धमकी और उनके ख़ौफ की वजह से विशेष जी चुप तो हो गए थे लेकिन उन्होंने पिता जी की बात मान कर मुझसे सम्बन्ध रखना हर्गिज़ गवारा नहीं किया था। धीरे धीरे ऐसे ही दिन गुज़रने लगे। विशेष जी मुझसे कोई मतलब नहीं रखते थे और ना ही मेरी तरफ देखना पसंद करते थे। उनके इस रवैए से मैं दुखी तो थी लेकिन अपने मुख से कुछ कहने की मुझ में कोई हिम्मत नहीं होती थी। माँ जी और पिता जी हर रोज़ उन्हें डांटते धमकाते लेकिन वो चुप चाप सुनते और चले जाते थे।

शादी के बाद मैं बीस दिन ससुराल में रही थी उसके बाद मेरे बाबू जी मुझे लिवा ले गए थे। अपने माँ बाबू जी के घर आई तो मेरे अंदर जो इतने दिनों का गुबार भरा हुआ था वो फूट फूट कर आंसुओं के रास्ते निकलने लगा था। अपने माँ बाबू जी से लिपट कर मैं ऐसे रो रही थी कि चुप होने का नाम ही नहीं ले रही थी। पूछने पर मैंने उन्हें सारा हाल सुना दिया था। मेरी बातें सुन कर उन्हें भी बेहद दुःख हुआ लेकिन कदाचित मेरे माँ बाबू जी को पहले से ही ये एहसास था कि ऐसा ही कुछ होगा लेकिन इस पर भला उनका ज़ोर कैसे चल सकता था?

जब तक ब्याह नहीं हुआ था तब तक तो ये सोच कर मैं किसी तरह खुद को दिलासा दे लेती थी कि चाहे लाख दुःख था मुझे लेकिन कम से कम अपने उन माँ बाबू जी के पास तो थी जो मुझे बेहद प्यार करते थे लेकिन अब तो ब्याह के बाद उनका साथ और उनका प्यार भी छूट गया था। जिसके साथ मुझे अपना पूरा जीवन गुज़ारना था उसने तो मुझे अपनी पत्नी मानने से ही इंकार कर दिया था, अपने साथ रखने का तो सवाल ही नहीं पैदा होता था। मेरे दुःख दर्द में जैसे एक ये दुःख भी शामिल हो गया था। ज़िन्दगी बोझ सी बन गई थी जिसे मैं ज़बरदस्ती ढो रही थी, सिर्फ अपने माँ बाबू जी और अपने भाई के प्यार को देख कर।

मेरे माँ बाबू जी को अच्छी तरह एहसास था कि जो दुःख दर्द मेरे ज़िन्दगी में शामिल थे उनकी वजह से हो सकता है कि किसी दिन मैं तंग आ कर खुद को ही ना ख़त्म कर लूं इस लिए वो हमेशा मेरे पास ही रहते थे और घंटों मुझे समझाते रहते थे। उनका कहना था कि बेटा हर किसी के जीवन में दुःख दर्द का वक़्त आता है लेकिन ये दुःख दर्द हमेशा के लिए नहीं रहता। एक दिन दुःख दर्द के दिन भी चले जाते हैं और फिर इंसान के जीवन में खुशियों वाला समय आ जाता है। आज भले ही मेरे जीवन में ऐसे दुःख और ऐसी तक़लीफें हैं लेकिन एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब मेरा पति मुझे अपनी पत्नी भी मान लेगा और मुझे अपना भी लेगा।

मां बाबू जी की इन बातों से मेरे अंदर फिर से एक उम्मीद की किरण जाग उठी थी। वक़्त ऐसे ही गुज़रता रहा। कुछ समय बाद मैं फिर से ससुराल आई लेकिन इस बार ससुराल में मुझे विशेष जी नज़र नहीं आए। माँ जी से पता चला कि वो शहर चले गए हैं और वहीं रह कर नौकरी करते हैं। इस बात से मुझे थोड़ी तक़लीफ तो हुई लेकिन क्या कर सकती थी? घर में रहते हुए माँ पिता जी की सेवा करती और एक ऐसी बहू बनने की कोशिश करने लगी थी जिसमें किसी भी तरह का दोष न हो। अक्सर सोचती थी कि शायद बनाने वाला मेरे इस सेवा कर्म से प्रसन्न हो कर मेरे दुखों को समाप्त करने के बारे में सोच ले।

अपने कर्म में मैं इतना खो गई थी कि मुझे खुद ही कभी ये एहसास न हुआ था कि मैं चलती फिरती एक ऐसी मशीन बन गई थी जो बिना कुछ बोले सिर्फ काम ही करती रहती थी। माँ जी और पिता जी जो भी कह देते मैं बिना कुछ कहे और बिना कुछ सोचे वो करने लगती थी। इस बीच न जाने कितनी ही बार मेरे मायके से मेरे बाबू जी और मेरा भाई मुझे लेने आए किन्तु मैं उनसे मिल तो लेती थी लेकिन उनके साथ अपने मायके नहीं जाती थी। मैंने जैसे प्रण कर लिया था कि अब यही मेरा घर है, यही मेरी दुनियां है और यहीं पर मेरा सुख दुःख है जिसे भोगते हुए एक दिन मुझे इस दुनियां से चले जाना है। सुबह पांच बजे से ले कर रात दस बजे तक मैं घर के कामों में लगी रहती और फिर बिस्तर पर एक ज़िंदा लाश की तरह लेट जाती। अगर कभी नींद ने आँखों पर रहम किया तो सो जाती वरना सारी रात ऐसे ही जागती रहती। ज़हन में सारी रात ऐसी ऐसी बातें चलती रहती थीं जिनका ना तो कोई मतलब होता था और ना ही उनसे कोई फ़र्क पड़ता था, किन्तु हां उन सबकी वजह से आंखों से आंसू ज़रूर छलक पड़ते थे। विशेष जी घर से एक बार शहर क्या गए वो तो सालों तक लौट कर घर ही नहीं आए लेकिन मेरे अंदर हमेशा उम्मीद बरक़रार रही।

दो साल ऐसे ही गुज़र गए। माँ जी और पिता जी मुझे अपनी बेटी की तरह चाहते थे। उन्हें भी मेरे दुखों का एहसास था लेकिन अपने बेटे पर उनका कोई ज़ोर नहीं रह गया था और ना ही मेरी किस्मत को बदल देने की उनमें क्षमता थी। इन दो सालों में हालात ऐसे हो गए थे कि अब वो भी मेरे लिए दुखी रहने लगे थे। गांव समाज में लोगों के बीच तरह तरह की बातें होने लगीं थी जिससे हम सबके जीवन में बुरा असर होने लगा था। विशेष जी को तो जैसे इन सब से कोई मतलब ही नहीं था। एक दिन इस सबकी वजह से तंग आ कर बाबू जी ने फ़ैसला किया कि अब वो अपने बेटे को शहर से वापस घर ले कर ही आएंगे और उन्हें इस बात के लिए मजबूर करेंगे कि वो मुझे अपनी पत्नी के रूप में अपना ले। बाबू जी गांव के ही अपने किसी जान पहचान वाले को ले कर शहर चले गए थे। आख़िर बड़ी मुश्किल से पता करते हुए वो विशेष जी के पास पहुंच ही गए और उन्हें ले कर घर आ गए थे।

विशेष जी दो साल बाद घर आए थे। उन्हें दूर से और छुप कर देख कर दिल को सुकून तो मिला था लेकिन उनसे कुछ कहने की मुझ में अब भी कोई हिम्मत नहीं थी और वैसे भी मैं खुद उनसे किसी बात की पहल कैसे कर सकती थी जिन्होंने खुद ही मुझे हर तरह से त्याग दिया था? उनके आने से घर में एक बार फिर से शोर शराबा होने लगा था। हर रोज़ पिता जी उनसे मुझे अपना लेने की बातें कहते, यहाँ तक कि उन्होंने ये भी कुबूल किया कि उनसे ये ग़लती हुई थी कि उन्होंने उनसे पूछ कर उनका रिश्ता तय नहीं किया था या धन के लालच में आ कर उन्होंने उनका ब्याह एक ऐसी लड़की से कर दिया था जो दिखने में सुन्दर नहीं थी। पिता जी की बातों से विशेष जी पर कोई असर नहीं पड़ा था। उन्होंने साफ़ कह दिया था कि उनका मुझसे कोई मतलब नहीं है। उनकी ये बातें किसी नस्तर की तरह मेरे दिल को चीर जाती थीं। मेरा रंग रूप जैसे मेरा सबसे बड़ा दुश्मन बना हुआ था जो मुझे एक पल की भी ख़ुशी नहीं दे सकता था।

अकेले में अक्सर सोचती थी कि एक बार विशेष जी से बात करूं और उनसे विनती करूं कि वो अपने जीवन में मेरे लिए थोड़ी सी जगह बना कर मुझे अपना लें लेकिन फिर ये ख़याल आ जाता कि अगर उन्होंने मुझे कुछ उल्टा सीधा कह दिया तो मैं कैसे सहन कर पाऊंगी? इससे अच्छा तो यही है कि मैं घुट घुट के ही इस दर्द रुपी ज़हर को पीते हुए पल पल मरती रहूं। ख़ैर विशेष जी घर में एक हप्ता रुके और फिर वो वापस शहर चले गए।

कभी कभी मेरे मन में ये ख़याल भी आ जाता था कि कहीं ऐसा तो नहीं कि उन्होंने शहर में किसी सुन्दर लड़की से ब्याह कर लिया हो और हम में से किसी को इस बात का पता ही न हो। ये ख़याल मन में आता तो दिल में एक टीस सी उभरती लेकिन इस पर भी तो मेरा कोई ज़ोर नहीं था। मेरी किस्मत में तो जैसे दुःख दर्द में मरना ही लिख गया था।

दर्द और तक़लीफ क्या होती है? किसी के लिए तिल तिल कर मरना क्या होता है? सब कुछ होते हुए भी कुछ भी न होने का एहसास कैसा होता है? ख़ामोशी किसे कहते हैं? जलती हुई ख़्वाहिशें कैसी होती हैं? टूटती हुई उम्मीदें और झुलसते हुए अरमान कैसे होते हैं? जैसे इन सबका एक उदाहरण या ये कहें कि इन सबका जवाब बन गई थी मैं।

मैं चाहती तो एक झटके में विशेष जी को इस सबके लिए कानूनन सज़ा दिलवा सकती थी या उन्हें इस बात के लिए मजबूर कर सकती थी कि वो मुझे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार करें लेकिन इस बारे में मैंने कभी सोचा ही नहीं। वैसे भी कानून का सहारा ले कर मैं अगर उनकी पत्नी बन भी जाती या वो मुझे स्वीकार भी कर लेते तो उससे होता क्या? उस सूरत में भी तो वो मेरे न होते। जिसके दिल में मेरे प्रति नफ़रत के सिवा कोई जज़्बात ही नहीं थे उसको किसी बात से मजबूर करने का मैं सोच भी कैसे सकती थी? मैं अभागन तो इतने पर भी खुश हो जाने को तैयार थी कि एक बार वो सपने में ही मुझे अपनी पत्नी स्वीकार कर लें लेकिन फूटी किस्मत कि ऐसे सपने भी मेरी पलकों को नसीब नहीं थे।

कहने को तो इस सबको चार साल गुज़र गए थे लेकिन इन चार सालों में न जाने कितनी ही बार मर मर कर ज़िंदा हो चुकी थी मैं। मेरे लिए आज भी वक़्त वही था जो पहले था। मेरे दुःख दर्द आज भी वही थे और वैसे ही थे जो हमेशा से ही थे लेकिन हाँ इतना फ़र्क ज़रूर आ गया था कि अब इन तक़लीफों को सहने की मुझमें क्षमता बढ़ गई थी। मैं एक ऐसी मनोदशा में पहुंच गई थी जिसके अंदर भभकता हुआ ग़ुबार किसी भयंकर ज्वालामुखी जैसा रूप ले चुका था और वो ग़ुबार बड़ी ही शिद्दत से फट पड़ने को बेक़रार था।


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