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Adultery ☆ प्यार का सबूत ☆ (Completed)

What should be Vaibhav's role in this story..???

  • His role should be the same as before...

    Votes: 19 9.9%
  • Must be of a responsible and humble nature...

    Votes: 22 11.5%
  • One should be as strong as Dada Thakur...

    Votes: 75 39.1%
  • One who gives importance to love over lust...

    Votes: 44 22.9%
  • A person who has fear in everyone's heart...

    Votes: 32 16.7%

  • Total voters
    192
  • Poll closed .

Sanju@

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अध्याय - 67
━━━━━━༻♥༺━━━━━━



अब तक....

"और फिर जब सुबह हुई।" जगन के चुप होते ही मैंने कहा____"तो तुम अपने गांव के लोगों को ले कर मेरे झोपड़े में आ गए। मकसद था सबके सामने मुझे अपने भाई का हत्यारा साबित करना। मेरे चरित्र के बारे में सभी जानते थे इस लिए हर कोई इस बात को मान ही लेता कि अपने आपको बचाने के लिए मैंने ही मुरारी काका की हत्या की है।"

जगन ने मेरी बात सुन कर सिर झुका लिया। बैठक में एक बार फिर से ख़ामोशी छा गई थी। सभी के चेहरों पर कई तरह के भावों का आवा गमन चालू था।


अब आगे....


"उसके बाद तुमने क्या किया?" पिता जी ने ख़ामोशी को चीरते हुए जगन से पूछा____"हमारा मतलब है कि अपने भाई की हत्या करने के बाद उस सफ़ेदपोश के कहने पर और क्या क्या किया तुमने?"

"मैं तो यही समझता था कि अपने भाई की हत्या कर के और छोटे ठाकुर को उसकी हत्या में फंसा कर मैं इस सबसे मुक्त हो गया हूं।" जगन ने गहरी सांस लेने के बाद कहा____"और ये भी कि कुछ समय बाद अपने भाई की ज़मीनों को ज़बरदस्ती हथिया कर अपने परिवार के साथ आराम से जीवन गुज़ारने लगूंगा लेकिन ये मेरी ग़लतफहमी थी क्योंकि ऐसा हुआ ही नहीं।"

"क्या मतलब?" अर्जुन सिंह के माथे पर सिलवटें उभर आईं।

"मतलब ये कि ये सब होने के बाद एक दिन शाम को काले कपड़ों में लिपटा एक दूसरा रहस्यमय व्यक्ति मेरे पास आया।" जगन ने कहा____"उसने मुझसे कहा कि उसका मालिक यानि कि वो सफ़ेदपोश मुझसे मिलना चाहता है। काले कपड़े वाले उस आदमी की ये बात सुन कर मैं सोच में पड़ गया था लेकिन ये भी समझता था कि मुझे उससे मिलना ही पड़ेगा, अन्यथा वो कुछ भी मेरे या मेरे परिवार के साथ कर सकता है। ख़ैर दूसरे दिन शाम को मैं आपके आमों वाले बाग़ में उस सफ़ेदपोश व्यक्ति से मिला तो उसने मुझसे कहा कि मुझे उसके कहने पर कुछ और भी काम करने होंगे जिसके लिए वो मुझे मोटी रकम भी देगा। मैं अपने भाई की हत्या भले ही कर चुका था लेकिन अब किसी और की हत्या नहीं करना चाहता था। मैंने जब उससे ये कहा तो उसने पहली बार मुझसे सख़्त लहजे में बात की और कहा कि अगर मैंने उसका कहना नहीं माना तो इसके लिए मुझे मेरी सोच से कहीं ज़्यादा कीमत चुकानी पड़ सकती है। एक बार फिर से मेरे हालत मरता क्या न करता वाले हो ग‌ए थे। इस लिए मैंने उसका कहना मान लिया। उसने मुझे काम दिया कि मैं गुप्त रूप से हवेली की गतिविधियों पर नज़र रखूं। मतलब ये कि आप, मझले ठाकुर, बड़े कुंवर और छोटे कुंवर आदि लोग कहां जाते हैं, किससे मिलते हैं और क्या क्या करते हैं ये सब देखूं और फिर उस सफ़ेदपोश आदमी को बताऊं। इतना तो मैं शुरू में ही समझ गया था कि वो सफ़ेदपोश हवेली वालों से बैर रखता है। ख़ैर ये क्योंकि ऐसा काम नहीं था जिसमें मुझे किसी की हत्या करनी पड़ती इस लिए मैंने मन ही मन राहत की सांस ली और उसके काम पर लग गया। कुछ समय ऐसे ही गुज़रा और फिर एक दिन उसने मुझे फिर से किसी की हत्या करने को कहा तो मेरे होश ही उड़ गए।"

"उसने तुम्हें तांत्रिक की हत्या करने को कहा था ना?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए पूछा।

"हां।" जगन ने बेबसी से सिर झुका कर कहा____"मुझे भी पता चल गया था कि बड़े कुंवर पर किसी तंत्र मंत्र का प्रभाव डाला गया था जिससे उनके प्राण संकट में थे। उस सफ़ेदपोश को जब मैंने ये बताया कि आप लोग उस तांत्रिक के पास गए थे तो उसने मुझे फ़ौरन ही उस तांत्रिक को मार डालने का आदेश दे दिया। मेरे पास ऐसा करने के अलावा कोई चारा नहीं था। मुझे इस बात का भी ख़ौफ था कि मैं तांत्रिक की हत्या कर भी पाऊंगा या नहीं? आख़िर मुझे ये काम करना ही पड़ा। ये तो मेरी किस्मत ही अच्छी थी कि मैं तांत्रिक को मार डालने में सफल हो गया था अन्यथा मेरे अपने प्राण ही संकट में पड़ सकते थे।"

"अच्छा एक बात बताओ।" पिता जी ने कुछ सोचते हुए कहा____"जैसा कि उस सफ़ेदपोश का मक़सद तुम्हारे द्वारा की गई मुरारी की हत्या में वैभव को फंसाना था तो जब ऐसा नहीं हुआ तो क्या इस बारे में तुम्हारे या उस सफ़ेदपोश के ज़हन में कोई सवाल अथवा विचार नहीं पैदा हुआ? हमारा मतलब है कि जब सफ़ेदपोश के द्वारा इतना कुछ करने के बाद भी वैभव मुरारी का हत्यारा साबित नहीं हो पाया तो क्या उसने तुमसे दुबारा इसे फंसाने को नहीं कहा?"

"नहीं, बिल्कुल नहीं।" जगन ने कहा___"हलाकि मैं ज़रूर ये सोचने पर मजबूर हो गया था कि जिस मकसद से उसने मेरे द्वारा मेरे भाई की हत्या करवा कर छोटे ठाकुर को हत्या के इल्ज़ाम में फंसाना चाहा था वैसा कुछ तो हुआ नहीं तो फिर उसने फिर से छोटे ठाकुर को किसी दूसरे तरीके से फंसाने को मुझसे क्यों नहीं कहा? वैसे ये तो सिर्फ़ मेरा सोचना था, संभव है उसने खुद ही ऐसा कुछ किया रहा हो लेकिन ये सच है कि उसने मुझसे दुबारा ऐसा कुछ करने के लिए नहीं कहा था।"

"सुनील और चेतन से क्या करवाता था वो सफ़ेदपोश?" मैंने जगन की तरफ देखते हुए पूछा तो उसने कुछ पल सोचने के बाद कहा____"मुझे ज़्यादा तो नहीं पता लेकिन एक बार मैंने ये ज़रूर सुना था कि वो उन दोनों को आपकी गतिविधियों पर नज़र रखने को कह रहा था और साथ ही ये भी कि इस गांव में आपके किस किस से ऐसे संबंध हैं जो आपके एक इशारे पर कुछ भी करने को तैयार हो जाएं?"

"क्या तुमने कभी ये जानने की कोशिश नहीं की कि वो सफ़ेदपोश कौन है?" पिता जी ने जगन से पूछा____"कभी न कभी तो तुमने भी सोचा ही होगा कि तुम्हें एक ऐसे रहस्यमय व्यक्ति के बारे में जानना ही चाहिए जिसके कहने पर तुम कुछ भी करने के लिए मजबूर हो जाते हो?"

"सच कहूं तो ऐसा मेरे मन में बहुतों बार ख़याल आया था।" जगन ने कहा____"और फिर एक बार मैंने अपने मन का किया भी लेकिन जल्दी ही पकड़ा गया। मुझे नहीं पता कि उसको ये कैसे पता चल गया था कि मैं उसके बारे में जानने के लिए चोरी छुपे उसका पीछा कर रहा हूं? जब मैं पकड़ा गया तो उसने मुझे सख़्त लहजे में यही कहा कि अब अगर फिर कभी मैंने उसका पीछा किया तो मुझे अपने जीवन से हाथ धो लेना पड़ेगा। उसकी इस बात से मैं बहुत ज़्यादा डर गया था। उसके बाद फिर मैंने कभी उसके बारे में जानने की कोशिश नहीं की।"

"माना कि तुम कई तरह की परेशानियों से घिरे हुए थे और साथ ही उस सफ़ेदपोश के द्वारा मजबूर कर दिए गए थे।" पिता जी ने कठोरता से कहा____"लेकिन इसके बावजूद अगर तुम ईमानदारी और नेक नीयती से काम लेते तो आज तुम इतने बड़े अपराधी नहीं बन गए होते। तुमने अपने हित के लिए अपने भाई की हत्या की। उसकी ज़मीन जायदाद हड़पने की कोशिश की और साथ ही उस हत्या में हमारे बेटे को भी फंसाया। अगर तुम ये सब हमें बताते तो आज तुम्हारे हालात कुछ और ही होते और साथ ही मुरारी भी ज़िंदा होता। तुमने बहुत बड़ा अपराध किया है जगन और इसके लिए तुम्हें कतई माफ़ नहीं किया जा सकता। हम कल ही गांव में पंचायत बैठाएंगे और उसमें तुम्हें मौत की सज़ा सुनाएंगे।"

"रहम दादा ठाकुर रहम।" पिता जी के मुख से ये सुनते ही जगन बुरी तरह रोते हुए उनके पैरों में गिर पड़ा____"मुझ पर रहम कीजिए दादा ठाकुर। मुझ पर न सही तो कम से कम मेरे बीवी बच्चों पर रहम कीजिए। वो सब अनाथ और असहाय हो जाएंगे, बेसहारा हो जाएंगे।"

"अगर सच में तुम्हें अपने बीवी बच्चों की फ़िक्र होती तो इतना बड़ा गुनाह नहीं करते।" पिता जी ने गुस्से से कहा____"तुम्हें कम से कम एक बार तो सोचना ही चाहिए था कि बुरे कर्म का फल बुरा ही मिलता है। अब अगर तुम्हें सज़ा न दी गई तो मुरारी की आत्मा को और उसके बीवी बच्चों के साथ इंसाफ़ कैसे हो सकेगा?"

"मैं मानता हूं दादा ठाकुर कि मेरा अपराध माफ़ी के लायक नहीं है।" जगन ने कहा____"लेकिन ज़रा सोचिए कि अगर मैं भी मर गया तो मेरे बीवी बच्चों के साथ साथ मेरे भाई के बीवी बच्चे भी बेसहारा हो जाएंगे।"

"उनकी फ़िक्र करने की तुम्हें कोई ज़रूरत नहीं है।" पिता जी ने सख़्त भाव से कहा____"मुरारी के परिवार की ज़िम्मेदारी अब हमारे कंधों पर है। रही तुम्हारे बीवी बच्चों की बात तो उन्हें भी हवेली से यथोचित सहायता मिलती रहेगी। तुम्हारे बुरे कर्मों की वजह से अब उन्हें भी जीवन भर दुख सहना ही पड़ेगा।" कहने के साथ ही पिता जी ने मेरी तरफ देखा और फिर कहा____"संपत से कहो कि इसे यहां से ले जाए और हवेली के बाहर वाले हिस्से में बने किसी कमरे में बंद कर दे। कल पंचायत में ही इसका फ़ैसला करेंगे हम।"

जगन रोता बिलखता और रहम की भीख ही मांगता रह गया जबकि मेरे बुलाने पर संपत उसे घसीटते हुए बैठक से ले गया। मैंने देखा पिता जी के चेहरे पर बेहद ही सख़्त भाव थे। शायद उन्होंने फ़ैसला कर लिया था कि अब किसी भी अपराधी पर कोई भी रहम नहीं करेंगे।


✮✮✮✮

रूपा अपने कमरे में पलंग पर लेटी हुई थी। हवेली में जो कुछ हुआ था उससे उसे बहुत बड़ा झटका लगा था। उसे अच्छी तरह इस बात का एहसास था कि इस सबके बाद हवेली में रहने वालों पर क्या गुज़र रही होगी। हवेली से रिश्ते सुधरने के बाद वो जाने कैसे कैसे सपने सजाने में लग गई थी किंतु जब उस शाम उसने अपने बाग़ में उन लोगों की बातें सुनी थी तो उसके सभी अरमानों पर मानों गाज सी गिर गई थी। अगर बात सिर्फ़ इतनी ही होती तो शायद किसी तरह से कोई संभावना बन भी जाती लेकिन हवेली में इतना बड़ा हादसा होने के बाद तो जैसे उसे यकीन हो गया था कि अब कुछ नहीं हो सकता। वैभव के साथ जीवन जीने के उसने जो भी सपने सजाए थे वो शायद अब पूरी तरह से ख़ाक में मिल चुके थे। ये सब सोचते हुए उसकी आंखें जाने कितनी ही बार आंसू बहा चुकीं थी। उसका जी कर रहा था कि वो सारी लोक लाज को ताक में रख कर अपने घर से भाग जाए और वैभव के सामने जा कर उससे इस सबके लिए माफ़ी मांगे। हालाकि इसमें उसका कोई दोष नहीं था लेकिन वो ये भी जानती थी कि ये सब उसी के ताऊ की वजह से हुआ है।

"कब तक ऐसे पड़ी रहोगी रूपा?" उसके कमरे में आते ही उसकी भाभी कुमुद ने गंभीर भाव से कहा____"सुबह से तुमने कुछ भी नहीं खाया है। ऐसे में तो तुम बीमार हो जाओगी।"

"सब कुछ ख़त्म हो गया भाभी।" रूपा ने कहीं खोए हुए कहा_____"मेरे अपनों ने वैभव के चाचा और उसके बड़े भाई को मार डाला। उसे तो पहले से ही इन लोगों की नीयत पर शक था और देख लो उसका शक यकीन में बदल गया। अब तो उसके अंदर हम सबके लिए सिर्फ़ नफ़रत ही होगी। मुझे पूरा यकीन है कि वो बदला लेने ज़रूर आएगा और हर उस व्यक्ति की जान ले लेगा जिनका थोड़ा सा भी हाथ उसके अपनों की जान लेने में रहा होगा।" कहने के साथ ही सहसा रूपा एक झटके से उठ बैठी और फिर कुमुद की तरफ देखते हुए बोली_____"अब तो वो मुझसे भी नफ़रत करने लगा होगा न भाभी? उसे मुझसे वफ़ा की पूरी उम्मीद थी लेकिन मैंने क्या किया? मैं तो ज़रा भी उसकी उम्मीदों पर खरी न उतर सकी। इसका तो यही मतलब हुआ ना भाभी कि उसके प्रति मेरा प्रेम सिर्फ़ और सिर्फ़ एक दिखावा मात्र ही था। अगर मेरा प्रेम ज़रा भी सच्चा होता तो शायद आज ऐसे हालात न होते।"

"तुम पागल हो गई हो रूपा।" कुमुद ने झपट कर उसे अपने सीने से लगा लिया। उसे रूपा की ऐसी हालत देख कर बहुत दुख हो रहा था, बोली____"जाने क्या क्या सोचे जा रही हो तुम, जबकि ऐसा कुछ भी नहीं है। तुम्हारा प्रेम हमेशा से सच्चा रहा है। वो सच्चा प्रेम ही तो था जिसके चलते तुम अपने वैभव की जान बचाने के लिए मुझे ले कर उस रात हवेली चली गई थी। मैं अच्छी तरह जानती हूं कि तुमसे जो हो सकता था वो तुमने किया है और यही तुम्हारा सच्चा प्रेम है। मुझे पूरा यकीन है कि वैभव के दिल में तुम्हारे लिए ज़रा सी भी नफ़रत नहीं होगी।"

"मुझे छोटी बच्ची समझ कर मत बहलाओ भाभी।" रूपा की आंखें फिर से छलक पड़ीं____"सच तो ये है कि अब सब कुछ ख़त्म हो चुका है। मेरे अपनों ने जो किया है उससे हर रास्ता और हर उम्मीद ख़त्म हो चुकी है। कोई इतना ज़ालिम कैसे हो सकता है भाभी? जब से होश सम्हाला है तब से देखती आई हूं कि दादा ठाकुर ने या हवेली के किसी भी व्यक्ति ने हमारे साथ कभी कुछ ग़लत नहीं किया है फिर क्यों मेरे अपने उनके साथ इतना बड़ा छल और इतना बड़ा घात कर गए?"

"मैं क्या बताऊं रूपा? मुझे तो ख़ुद इस बारे में कुछ पता नहीं है।" कुमुद ने मानों अपनी बेबसी ज़ाहिर करते हुए कहा____"काश! मुझे पता होता कि आख़िर ऐसी कौन सी बात है जिसके चलते हमारे बड़े बुजुर्ग हवेली में रहने वालों से इस हद तक नफ़रत करते हैं कि उनकी जान लेने से भी नहीं चूके। वैसे कहीं न कहीं मैं भी इस बात को मानती हूं कि कोई तो बात ज़रूर है रूपा, और शायद बहुत ही बड़ी बात है वरना ये लोग इतना बड़ा क़दम न उठाते।"

कुमुद की बात सुन कर रूपा कुछ न बोली। उसकी तो ऐसी हालत थी जैसे उसका सब कुछ लुट गया हो और अब वो खुद को सबसे ज़्यादा बेबस, लाचार और असहाय समझती हो। वैभव के साथ अपने जीवन के जाने कितने ही हसीन सपने सजा लिए थे उसने, पर किस्मत को तो जैसे उसके हर सपने को चकनाचूर कर देना ही मंज़ूर था।

"मुझे तो अब भी यकीन नहीं हो रहा कि इन लोगों ने वैभव के चाचा और भाई की हत्या की होगी।" रूपा को चुप देख कुमुद ने ही जाने क्या सोचते हुए कहा____"इतना तो ये लोग भी समझते ही रहे होंगे कि दादा ठाकुर से हमारे रिश्ते भले ही सुधर गए थे लेकिन उनके अंदर हमारे प्रति पूरी तरह विश्वास नहीं रहा होगा। यानि अंदर से वो तब भी यही यकीन किए रहे होंगे कि हम लोगों ने भले ही उनसे संबंध सुधार लिए हैं लेकिन इसके बावजूद हम उनके प्रति नफ़रत के भाव ही रखे होंगे। तो सवाल ये है कि अगर हमारे अपने ये समझते रहे होंगे तो क्या इसके बावजूद वो दादा ठाकुर के परिवार में से किसी की हत्या करने का सोच सकते हैं? क्या उन्हें इस बात का ज़रा भी एहसास नहीं रहा होगा कि ऐसे में दादा ठाकुर ही नहीं बल्कि गांव के लोग भी हमें ही हत्यारा समझेंगे और फिर बदले में वो हमारे साथ भी वैसा ही सुलूक कर सकते हैं?"

"उस रात बाग़ में मैंने स्पष्ट रूप से ताऊ जी की आवाज़ सुनी थी भाभी।" रूपा ने कहा____"और मैंने अच्छी तरह सुना था कि वो बाकी लोगों से वैभव को चंदनपुर जा कर जान से मारने को कह रहे थे। अगर ऐसा होता कि मैंने सिर्फ़ एक ही बार उनकी आवाज़ सुनी थी तो मैं भी ये सोचती कि शायद मुझे सुनने में धोखा हुआ होगा लेकिन मैंने तो एक बार नहीं बल्कि कई बार उनके मुख से कई सारी बातें सुनी थी। अब आप ही बताइए क्या ये सब झूठ हो सकता है? क्या मैंने जो सुना वो सब मेरा भ्रम हो सकता है? नहीं भाभी, ना तो ये सब झूठ है और ना ही ये मेरा कोई भ्रम है बल्कि ये तो एक ऐसी सच्चाई है जिसे दिल भले ही नहीं मान रहा मगर दिमाग़ उसे झुठलाने से साफ़ इंकार कर रह है। इन लोगों ने ही साज़िश रची और पूरी तैयारी के साथ वैभव के चाचा तथा उसके बड़े भाई की हत्या की या फिर करवाई।"

"मुझे तो कुछ समझ में ही नहीं आ रहा रूपा।" कुमुद ने गहरी सांस ले कर कहा___"पर इतना जानती हूं कि ये जो कुछ हुआ है बहुत ही बुरा हुआ है और इसके परिणाम बहुत ही भयानक होंगे। शायद परिणामों की कल्पना कर के ही हमारे घर के सारे मर्द लोग कहीं चले गए हैं और अब इस घर में सिर्फ हम औरतें और लड़कियां ही हैं। हैरत की बात है कि ऐसे हाल में वो लोग हमें यहां अकेला और बेसहारा छोड़ कर कैसे कहीं जा सके हैं?"

"शायद वो ये सोच कर हमें यहां अकेला छोड़ गए हैं कि उनके किए की सज़ा दादा ठाकुर हम औरतों को नहीं दे सकते।" रूपा ने कहा____"अगर सच यही है भाभी तो मैं यही कहूंगी कि बहुत ही गिरी हुई सोच है इन लोगों की। अपनी जान बचाने के चक्कर में उन्होंने अपने घर की बहू बेटियों को यहां बेसहारा छोड़ दिया है।"

"तुम सही कह रही हो रूपा।" कुमुद ने कहा____"पर हम कर ही क्या सकते हैं? अगर सच में बदले के रूप में दादा ठाकुर का क़हर हम पर टूटा तो क्या कर लेंगे हम? वो सब तो कायरों की तरह अपनी जान बचा कर चले ही गए हैं। ख़ैर छोड़ो ये सब, जो होगा देखा जाएगा। तुम बैठो, मैं तुम्हारे लिए यहीं पर खाना ले आती हूं। भूखे रहने से सब कुछ ठीक थोड़ी ना हो जाएगा।"

कहने के साथ ही कुमुद उठी और कमरे से बाहर निकल गई। इधर रूपा एक बार फिर से जाने किन सोचो में खो गई। कुछ ही देर में कुमुद खाने की थाली ले कर आई और पलंग पर रूपा के सामने रख दिया। कुमुद के ज़ोर देने पर आख़िर रूपा को खाना ही पड़ा।


✮✮✮✮

हवेली में एक बार फिर से उस वक्त रोना धोना शुरू हो गया जब शाम के क़रीब साढ़े आठ बजे मेरी ननिहाल वाले तथा मेनका चाची के मायके वाले आ गए। जहां एक तरफ मेरी मां अपने पिता से लिपटी रो रहीं थी वहीं मेनका चाची भी अपने पिता और भाईयों से लिपटी रो रहीं थी। कुसुम और भाभी का भी बुरा हाल था। आख़िर बहुत समझाने बुझाने के बाद कुछ देर में रोना धोना बंद हुआ। उसके बाद औरतें अंदर ही रहीं जबकि मेरे दोनों ननिहाल वाले लोग बाहर बैठक में आ गए जहां पहले से ही पिता जी के साथ भैया के चाचा ससुर और अर्जुन सिंह बैठे हुए थे।

वैसे तो कहानी में ना तो मेरे ननिहाल वालों का कोई रोल है और ना ही मेनका चाची के मायके वालों का फिर भी दोनों जगह के किरदारों की जानकारी देना बेहतर समझता हूं इस लिए प्रस्तुत है।

मेरे ननिहाल वालों का संक्षिप्त पात्र परिचय:-

✮ बलवीर सिंह राणा (नाना जी)
वैदेही सिंह राणा (नानी जी)
मेरे नाना नानी को कुल चार संतानें हैं जो इस प्रकार हैं।
(01) संगवीर सिंह राणा (बड़े मामा जी)
सुलोचना सिंह राणा (बड़ी मामी)
मेरे मामा मामी को तीन संतानें हैं, जिनमें से दो बेटियां हैं और एक बेटा। तीनों का ब्याह हो चुका है।
(02) सुगंधा देवी (ठकुराईन यानि मेरी मां)
(03) अवधेश सिंह राणा (मझले मामा जी)
शालिनी सिंह राणा (मझली मामी)
मझले मामा मामी को दो संतानें हैं जिनमें से एक बेटा है और दूसरी बेटी। इन दोनों का भी ब्याह हो चुका है।
(04) अमर सिंह राणा (छोटे मामा जी)
रोहिणी सिंह राणा ( छोटी मामी)
छोटे मामा मामी को तीन संतानें हैं जिनमें से दो बेटियां हैं और एक बेटा। ये तीनों अभी अविवाहित हैं।

माधवगढ़ नाम के गांव में मेरा ननिहाल है जहां के जमींदार मेरे नाना जी के पिता जी और उनके पूर्वज हुआ करते थे। अब जमींदारी जैसी बात रही नहीं फिर भी उनका रुतबा और मान सम्मान वैसा का वैसा ही बना हुआ है। ज़ाहिर है ये सब मेरे नाना जी और उनके बच्चों के अच्छे आचरण और ब्यौहार की वजह से ही है। ख़ैर बलवीर सिंह राणा यानि मेरे नाना जी की इकलौती बेटी सुगंधा काफी सुंदर और सुशील थीं। बड़े दादा ठाकुर किसी काम से माधवगढ़ गए हुए थे जहां पर वो मेरे नाना जी के आग्रह पर उनके यहां ठहरे थे। वहीं उन्होंने मेरी मां सुगंधा देवी को देखा था। बड़े दादा ठाकुर को वो बेहद पसंद आईं तो उन्होंने फ़ौरन ही नाना जी से रिश्ते की बात कह दी। नाना जी बड़े दादा ठाकुर को भला कैसे इंकार कर सकते थे? इतने बड़े घर से और इतने बड़े व्यक्ति ने खुद ही उनकी बेटी का हाथ मांगा था। इसे वो अपना सौभाग्य ही समझे थे। बस फिर क्या था, जल्दी ही मेरी मां हवेली में बड़ी बहू बन कर आ गईं।

मेनका चाची के मायके वालों का संक्षिप्त परिचय:-

✮ धर्मराज सिंह चौहान (चाची के पिता जी)
सुमित्रा सिंह चौहान (चाची की मां)
चाची के माता पिता को कुल तीन संतानें हैं।

(01) हेमराज सिंह चौहान (चाची के बड़े भाई)
सुजाता सिंह चौहान (चाची की बड़ी भाभी)
इनको दो संतानें हैं जिनमें से एक बेटा है और दूसरी बेटी। दोनों का ही ब्याह हो चुका है।

(02) अवधराज सिंह चौहान ( चाची के छोटे भाई)
अल्का सिंह चौहान (चाची की छोटी भाभी)
इनको तीन संतानें हैं, जिनमें से दो बेटे और एक बेटी है। दोनों बेटों का ब्याह हो चुका है जबकि बेटी पद्मिनी अभी अविवाहित है।

(03) मेनका सिंह (छोटी ठकुराईन यानि मेरी चाची)

कुंदनपुर नाम के गांव में चाची के पिता धर्मराज सिंह चौहान के पूर्वज भी ज़मींदार हुआ करते थे। आज के समय में जमींदारी तो नहीं है किंतु उनके विशाल भू भाग पर आज भी गांव के लोग मजदूरी कर के अपना जीवन यापन करते हैं। कुंदनपुर में एक प्राचीन देवी मंदिर है जहां पर हर साल नवरात्र के महीने में विशाल मेला लगता है। आस पास के गावों में जितने भी संपन्न ज़मींदार थे वो सब बड़े बड़े अवसरों पर बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित करते थे। ऐसे ही एक अवसर पर धर्मराज सिंह चौहान ने बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित किया था। बड़े दादा ठाकुर ने वहीं पर मेनका चाची को देखा था। मेनका चाची अपने नाम की तरह ही बेहद सुंदर थीं। बड़े दादा ठाकुर ने देर न करते हुए फ़ौरन ही धर्मराज से उनकी बेटी का हाथ अपने छोटे बेटे जगताप के लिए मांग लिया था। अब क्योंकि ऊपर वाला भी यही चाहता था इस लिए जल्दी ही मेनका चाची हवेली में छोटी बहू बन कर आ गईं।

तो दोस्तो ये था मेरे दोनों ननिहाल वालों का संक्षिप्त परिचय।


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Bahut hi shandaar update hai
जगन ने अभी तक जो भी बात बताई है उनसे कोई खास निष्कर्ष नहीं निकला है उसने ये सब पैसों के लिए किया था
रूपा ने वैभव की पहले भी जान बचाई है और वह वैभव से प्यार करती है रूपा का सोचना गलत है वैभव को पता है इसलिए वह रूपा से नफरत नही करेगा और वह ये भी जानता है कि साहूकारों की औरत गलत नहीं है वो केवल साहूकारों को बिल से बाहर निकालने के लिए उन पर दवाब बना सकते हैं लेकिन गलत नही करेगे
 

Sanju@

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कहानी का ये अपडेट मैंने लिख लिया था इस लिए पोस्ट कर दिया है मगर अब इस कहानी में कोई अपडेट नहीं आएगा। ये कहानी भी अब ठंडे बस्ते में चली जाएगी और इसका जिम्मेदार लेखक नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ रीडर्स हैं।:declare:

अलविदा :ciao:
भाई स्टोरी बंद मत करो
 

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अध्याय - 68
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अब तक....

कुंदनपुर नाम के गांव में चाची के पिता धर्मराज सिंह चौहान के पूर्वज भी ज़मींदार हुआ करते थे। आज के समय में जमींदारी तो नहीं है किंतु उनके विशाल भू भाग पर आज भी गांव के लोग मजदूरी कर के अपना जीवन यापन करते हैं। कुंदनपुर में एक प्राचीन देवी मंदिर है जहां पर हर साल नवरात्र के महीने में विशाल मेला लगता है। आस पास के गावों में जितने भी संपन्न ज़मींदार थे वो सब बड़े बड़े अवसरों पर बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित करते थे। ऐसे ही एक अवसर पर धर्मराज सिंह चौहान ने बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित किया था। बड़े दादा ठाकुर ने वहीं पर मेनका चाची को देखा था। मेनका चाची अपने नाम की तरह ही बेहद सुंदर थीं। बड़े दादा ठाकुर ने देर न करते हुए फ़ौरन ही धर्मराज से उनकी बेटी का हाथ अपने छोटे बेटे जगताप के लिए मांग लिया था। अब क्योंकि ऊपर वाला भी यही चाहता था इस लिए जल्दी ही मेनका चाची हवेली में छोटी बहू बन कर आ गईं।

तो दोस्तो ये था मेरे दोनों ननिहाल वालों का संक्षिप्त परिचय।


अब आगे....


"हालात बेहद ही ख़राब हो गए हैं बड़े भैया।" चिमनी के प्रकाश में नज़र आ रहे मणि शंकर के चेहरे की तरफ देखते हुए हरि शंकर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"दादा ठाकुर ने तो आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान भी करवा दिया है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर हमने खुद को उनके सामने समर्पण नहीं किया तो वो हमारे घर की बहू बेटियों के साथ बहुत बुरा सुलूक करेंगे।"

"हरि चाचा सही कह रहे हैं पिता जी।" चंद्रभान ने गंभीर भाव से कहा____"अगर हम अब भी इसी तरह छुपे बैठे रहे तो यकीनन बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा। हमें दादा ठाकुर के पास जा कर उन्हें ये बताना ही होगा कि उनके छोटे भाई और बड़े बेटे के साथ जो हुआ है उसके ज़िम्मेदार हम नहीं हैं।"

"हां बड़े भैया।" हरि शंकर ने कहा____"हमें अपनी सच्चाई तो बतानी ही चाहिए। ऐसे में तो वो यही समझते रहेंगे कि वो सब हमने किया है। अपनों को खोने का दुख जब बर्दास्त से बाहर हो जाता है तो परिणाम बहुत ही भयानक होता हैं। इस तरह से खुद को छुपा कर हम खुद ही अपने आपको उनकी नज़र में गुनहगार साबित कर रहे हैं। ये जो ऐलान उन्होंने करवाया है उसे हल्के में मत लीजिए। अगर हम सब फ़ौरन ही उनके सामने नहीं गए तो फिर कुछ भी सम्हाले नहीं सम्हलेगा।"

"मुझे तो आपका ये फ़ैसला और आपका ये कहना पहले ही ठीक नहीं लगा था पिता जी कि हम सब कहीं छुप जाएं।" चंद्रभान ने जैसे खीझते हुए कहा____"मुझे अभी भी समझ नहीं आ रहा कि ऐसा करने के लिए आपने क्यों कहा और फिर हम सब आपके कहे अनुसार यहां क्यों आ कर छुप गए? अगर हरि चाचा जी का ये कहना सही है कि हमने कुछ नहीं किया है तो हमें किसी से डर कर यूं एक साथ कहीं छुपने की ज़रूरत ही नहीं थी।"

"हम मानते हैं कि हमारा उस समय ऐसा करने का फ़ैसला कहीं से भी उचित नहीं था।" मणि शंकर ने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन मौजूदा हालात को देख कर हमें यही करना सही लगा था और ऐसा करने का कारण भी था।"

"भला ऐसा क्या कारण हो सकता है पिता जी?" चंद्रभान के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए, बोला____"मैं ये बिल्कुल भी मानने को तैयार नहीं हूं कि बिना किसी वजह के दादा ठाकुर हमारे साथ कुछ भी ग़लत कर देते।"

"यही तो तुम में ख़राबी है बेटे।" मणि शंकर ने सिर उठा कर चंद्रभान की तरफ देखा, फिर कहा____"तुम सिर्फ वर्तमान की बातों को देख कर कोई नतीजा निकाल रहे हो जबकि हम वर्तमान के साथ साथ अतीत की बातों को मद्दे नज़र रख कर भी सोच रहे हैं। हमारा गांव ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांव वाले भी जानते हैं कि हवेली वालों से हमारे संबंध कभी भी बेहतर नहीं रहे थे। अब अगर हमने अपने संबंधों को बेहतर बना लिया है तो ज़रूर इसके पीछे कोई न कोई ऐसी वजह ज़रूर हो सकती है जिसके बारे में बड़ी आसानी से हर कोई अंदाज़ा लगा सकता है। भले ही वो लोग अंदाज़ा ग़लत ही क्यों न लगाएं पर हम दोनों परिवारों की स्थिति के मद्दे नज़र हर किसी का ऐसा सोचना जायज़ भी है। यानि हर कोई यही सोचेगा कि हमने हवेली वालों से अपने संबंध इसी लिए बेहतर बनाए होंगे ताकि कभी मौका देख कर हम पीठ पर छूरा घोंप सकें। अब ज़रा सोचो कि अगर हर कोई हमारे बारे में ऐसी ही सोच रखता है तो ज़ाहिर है कि ऐसी ही सोच दादा ठाकुर और उसके परिवार वाले भी तो रखते ही होंगे। दादा ठाकुर के छोटे भाई और बड़े बेटे के साथ जो हुआ है उसे भले ही हमने नहीं किया है लेकिन हर व्यक्ति के साथ साथ हवेली वाले भी यही सोच बैठेंगे होंगे कि ऐसा हमने ही किया है। इंसान जब किसी चीज़ को सच मान लेता है तो फिर वो कोई दूसरा सच सुनने या जानने का इरादा नहीं रखता बल्कि ऐसे हालात में तो उसे बस बदला लेना ही दिखता है। अब सोचो कि अगर ऐसे में हम सब अपनी सफाई देने के लिए उनके सामने जाते तो क्या वो हमारी सच्चाई सुनने को तैयार होते? हमारा ख़याल है हर्गिज़ नहीं, बल्कि वो तो आव देखते ना ताव सीधा हम सबकी गर्दनें ही उड़ाना शुरू कर देते। यही सब सोच कर हमने ये फैसला लिया था कि ऐसे ख़तरनाक हालात में ऐसे व्यक्ति के सामने जाना बिल्कुल भी ठीक नहीं है जो हमारे द्वारा कुछ भी सुनने को तैयार ही न हो। हम जानते हैं कि इस वक्त वो इस सबकी वजह से बेहद दुखी हैं और बदले की आग में जल भी रहे हैं किंतु हम तभी उनके सामने जा सकते हैं जब उनके अंदर का आक्रोश या गुस्सा थोड़ा ठंडा हो जाए। कम से कम इतना तो हो ही जाए कि वो हमारी बातें सुनने की जहमत उठाएं।"

"तो क्या आपको लगता है कि आपके ऐसा करने से दादा ठाकुर का गुस्सा ठंडा हो जाएगा?" चंद्रभान ने मानों तंज करते हुए कहा____"जबकि मुझे तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता पिता जी। मैं ये मानता हूं कि हर किसी की तरह हवेली वाले भी हमारे संबंधों को सुधार लेने के बारे में ऐसा ही सब कुछ सोचते होंगे लेकिन माजूदा हालात में आपके ऐसा करने से उनकी वो सोच तो यकीन में ही बदल जाएगी। बदले की आग में झुलसता इंसान ऐसे में और भी ज़्यादा भयानक रूप ले लेता है। अगर उसी समय हम सब उनके पास जाते और उनसे अपनी सफाई देते तो ऐसा बिल्कुल नहीं हो जाता कि वो हम में से किसी की कोई बात सुने बिना ही हम सबको मार डालते। देर से ही सही लेकिन वो भी ये सोचते कि अगर हमने ही चाचा भतीजे की हत्या की होती तो अपनी जान को ख़तरे में डाल कर उनके पास नहीं आते।"

"चंद्र बिल्कुल सही कह रहा है बड़े भैया।" हरि शंकर ने सिर हिलाते हुए कहा____"उस समय हमें दादा ठाकुर के पास ही जाना चाहिए था। ऐसे में सिर्फ हवेली वाले ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांव वाले भी हमारे बारे में यही सोचते कि अगर हम ग़लत होते तो मरने के लिए दादा ठाकुर के पास नहीं आते बल्कि अपनी जान बचा कर कहीं भाग जाते। पर अब, अब तो हमने खुद ही ऐसा कर दिया है कि उन्हें हमें ही हत्यारा समझना है और ग़लत क़रार देना है। सच तो ये है बड़े भैया कि पहले से कहीं ज़्यादा बद्तर हालातों में घिर गए हैं हम सब और इससे भी ज़्यादा बुरा तब हो जाएगा जब हम में से कोई भी उनके द्वारा ऐसा ऐलान करवाने पर भी उनके सामने खुद को समर्पण नहीं करेगा।"

"वैसे देखा जाए तो बड़े शर्म की बात हो गई है हरि भैया।" शिव शंकर ने कुछ सोचते हुए कहा____"हम सभी मर्द लोग अपनी अपनी जान बचाने के चक्कर में यहां आ कर छुप के बैठ गए और वहां घर में अपनी बहू बेटियों को हम दादा ठाकुर के क़हर का शिकार बनने के लिए छोड़ आए। वो भी सोचती होंगी कि कैसे कायर और नपुंसक लोग हैं हमारे घर के सभी मर्द। इतना ही नहीं बल्कि ऐसे में तो उन लोगों ने भी यही मान लिया होगा कि हमने ही जगताप और अभिनव की हत्या की है और अब अपनी जान जाने के डर से कहीं छुप गए हैं। जीवन में पहली बार मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं सच में ही कायर और नपुंसक हूं।"

"अगर तुमसे ये सब नहीं सहा जा रहा।" मणि शंकर ने नाराज़गी वाले लहजे में कहा____"तो चले जाओ यहां से और दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण कर दो।"

"अकेला तो कोई भी खुद को समर्पण करने नहीं जाएगा बड़े भैया।" शिव शंकर ने कहा____"बल्कि हम सभी को जाना पड़ेगा। दादा ठाकुर का ऐलान तो हम सबने सुन ही लिया है। अब अगर हमें अपने घर की बहू बेटियों को सही सलामत रखना है तो वही करना पड़ेगा जो वो चाहते हैं।"

"बिल्कुल।" गौरी शंकर ने जैसे सहमति जताते हुए कहा____"हम सबको कल सुबह ही अपने गांव जा कर दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण करना होगा। मेरा ख़याल है दादा ठाकुर के अंदर का आक्रोश अब तक थोड़ा बहुत तो शांत हो ही गया होगा। उनके जान पहचान वालों ने यकीनन उन्हें ऐसे वक्त में धैर्य और संयम से काम लेने की सलाह दी होगी। वैसे, बड़े भैया ने इस तरह का फ़ैसला ले कर भी ग़लत नहीं किया था। उस वक्त यकीनन यही करना बेहतर था और यही बातें हम दादा ठाकुर से भी कह सकते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि अब वो सबके सामने हमारी बातें पूरे धैर्य के साथ सुनेंगे और उन पर विचार भी करेंगे।"

"और तो सब ठीक है।" पास में ही खड़े रूपचंद्र ने झिझकते हुए कहा____"लेकिन उस वैभव का क्या? मान लिया कि दादा ठाकुर आप सबकी बातों को धैर्य से सुनने के बाद आपकी बातों पर यकीन कर लेंगे मगर क्या वैभव भी यकीन कर लेगा? आप सब तो जानते ही हैं कि वो किस तरह का इंसान है। अगर उसने हमारे साथ कुछ उल्टा सीधा किया तब क्या होगा?"

"मुझे लगता है कि तुम बेवजह ही उसके लिए चिंतित हो रहे हो।" हरि शंकर ने कहा____"जबकि हम सबने ये भली भांति देखा है कि पिछले कुछ समय से उसका बर्ताव पहले की अपेक्षा आश्चर्यजनक रूप से बेहतर नज़र आया है। वैसे भी अब वो दादा ठाकुर के किसी भी फ़ैसले के खिलाफ़ जाने की हिमाकत नहीं करेगा।"

"अगर ऐसा ही हो तो इससे बेहतर कुछ है ही नहीं।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उसने जान बूझ कर तथा कुछ सोच कर ही अपने बर्ताव को ऐसा बना रखा हो। अब क्योंकि उसके चाचा और बड़े भाई की हत्या हुई है तो वो पूरी तरह पहले जैसा बन कर हम पर क़हर बन कर टूट पड़े।"

"जो भी हो।" हरि शंकर ने कहा____"पर इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता ना कि ये सब सोच कर हम सब खुद को दादा ठाकुर के सामने समर्पण करने का अपना इरादा ही बदल दें। आने वाले समय में क्या होगा ये बाद की बात है लेकिन इस वक्त सबसे ज़्यादा ज़रूरी यही है कि हम सब दादा ठाकुर के सामने अपनी स्थिति को साफ कर लें अन्यथा इसके बहुत ही बुरे परिणामों से हमें रूबरू होना होगा।"


✮✮✮✮

उस समय रात के क़रीब ग्यारह बजने वाले थे। बैठक में अभी भी सब लोग बैठे हुए थे। खाना पीना खाने से सभी ने इंकार कर दिया था इस लिए बनाया भी नहीं गया था। मैं भाभी के लिए कुछ ज़्यादा ही फिक्रमंद था इस लिए उन्हीं के कमरे में उनके पास ही बैठा हुआ था। कमरे में लालटेन का मध्यम प्रकाश था। हमेशा की तरह बिजली इस वक्त भी नहीं थी। ख़ैर लालटेन की रोशनी में मैं साफ देख सकता था कि भाभी का चेहरा एकदम से बेनूर सा हो गया था। अपने पलंग पर वो मेरे ही ज़ोर देने पर लेटी हुई थीं और मैं उनके सिरहाने पर बैठा उनके माथे को हल्के हल्के दबा रहा था। ऐसा पहली बार ही हो रहा था कि मैं रात के इस वक्त उनके कमरे में उनके इतने क़रीब बैठा हुआ था। इस वक्त मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी ग़लत ख़याल आने का सवाल ही नहीं था। मुझे तो बस ये सोच कर दुख हो रहा था कि उनके जैसी सभ्य सुशील संस्कारी और पूजा आराधना करने वाली औरत के साथ ऊपर वाले ने ऐसा क्यों कर दिया था? इस हवेली के अंदर एक मैं ही ऐसा इंसान था जिसने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे इसके बाद भी मैं सही सलामत ज़िंदा था जबकि मुझ जैसे इंसान के साथ ही बहुत बुरा होना चाहिए था।

"व...वैभव??" अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा तभी गहरे सन्नाटे में भाभी के मुख से धीमी सी आवाज़ निकली तो मैं एकदम से सम्हल गया और जल्दी ही बोला____"जी भाभी, मैं यहीं हूं। आपको कुछ चाहिए क्या?"

"तु...तुम कब तक ऐसे बैठे रहोगे?" भाभी ने उठने की कोशिश की तो मैंने उन्हें लेटे ही रहने को कहा तो वो फिर से लेट गईं और फिर बोलीं____"अपने कमरे में जा कर तुम भी सो जाओ।"

"मुझे नींद नहीं आ रही भाभी।" मैंने कहा____"वैसे भी मैं आपको अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा। आप आराम से सो जाइए। मैं आपके पास यहीं बैठा रहूंगा।"

"क्..क्या तुम्हें इस बात का डर है कि मैं अपने इस दुख के चलते कहीं कुछ कर न बैठू?" भाभी ने लेटे लेटे ही अपनी गर्दन को हल्का सा ऊपर की तरफ कर के मेरी तरफ देखते हुए कहा।

"मैं भैया को खो चुका हूं भाभी।" मेरी आवाज़ एकदम से भारी हो गई____"लेकिन आपको नहीं खोना चाहता। अगर आपने कुछ भी उल्टा सीधा किया तो जान लीजिए आपका ये देवर सारी दुनिया को आग लगा देगा। किसी को भी ज़िंदा नहीं छोडूंगा मैं। इस गांव में लाशें ही लाशें पड़ी दिखेंगी।"

"इस दुनिया से तो सबको एक दिन चले जाना है वैभव।" भाभी ने उसी तरह मुझे देखते हुए अपनी मुर्दा सी आवाज़ में कहा____"तुम्हारे भैया चले गए, किसी दिन मैं भी चली जाऊंगी।"

"ऐसा मत कहिए न भाभी।" मैंने दोनों हथेलियों में उनका चेहरा ले कर अपनी नम आंखों से उन्हें देखते हुए कहा____"आप मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी। अगर आपके दिल में मेरे लिए ज़रा सा भी स्नेह और प्यार है तो उस स्नेह और प्यार के खातिर आप मुझे छोड़ कर कहीं जाने का सोचिएगा भी मत। आपको क़सम है मेरी।"

"ठीक है।" भाभी ने अपना एक हाथ पीछे की तरफ ला कर मेरा दायां गाल सहला कर कहा____"लेकिन मेरी भी एक शर्त है।"

"आप बस बोलिए भाभी।" मैंने एक हाथ से उनके उस हाथ को थाम लिया____"वैभव ठाकुर अपनी जान दे कर भी आपकी शर्त पूरी करेगा।"

"नहीं।" भाभी ने झट से मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर मेरे मुख पर रख दिया, फिर बोलीं___"ख़बरदार,अपनी जान देने वाली बातें कभी मत करना। इस हवेली और हवेली में रहने वालों के लिए तुम्हें हमेशा सही सलामत रहना है वैभव।"

"तो आप भी कभी कहीं जाने की बातें मत कहिएगा मुझसे।" मैंने कहा____"मैं हमेशा अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी भाभी को अपने पास सही सलामत देखना चाहता हूं। आप इस हवेली की आन बान शान हैं भाभी। ये तो मेरे बस में ही नहीं है कि मैं उस ऊपर वाले के फ़ैसलों को बदल दूं वरना मैं तो कभी भी अपनी भाभी के चांद जैसे चेहरे पर दाग़ न लगने दूं।"

"इतनी बड़ी बड़ी बातें मत किया करो वैभव।" भाभी ने फिर से मेरे दाएं गाल को सहलाया, बोलीं____"ख़ैर मेरी शर्त तो सुन लो।"

"ओह! हां, माफ़ कीजिए।" मैंने जल्दी से कहा____"जी बताइए क्या शर्त है आपकी?"

"अगर तुम मुझे सही सलामत देखना चाहते हो।" भाभी ने मेरी आंखों में देखते हुए इस बार थोड़े सख़्त भाव से कहा____"तो उन लोगों की सांसें छीन लो जिन लोगों ने मेरे सुहाग को मुझसे छीना है। जब तक उन हत्यारों को मुर्दा बना कर मिट्टी में नहीं मिला दिया जाएगा तब तक तुम्हारी भाभी के दिल को सुकून नहीं मिलेगा।"

"ऐसा ही होगा भाभी।" मैंने फिर से उनके उस हाथ को थाम लिया, बोला____"मैं आपको वचन देता हूं कि जिन लोगों ने आपके सुहाग की हत्या कर के उन्हें आपसे छीना है उन लोगों को मैं बहुत जल्द भयानक मौत दे कर मिट्टी में मिला दूंगा।"

"एक शर्त और भी है।" भाभी ने कहा____"और वो ये है कि इस सबके चलते तुम खुद को खरोंच भी नहीं आने दोगे।"
"मैं पूरी कोशिश करूंगा भाभी।" मैंने कहा तो भाभी कुछ पलों तक मुझे देखती रहीं और फिर बोलीं____"अब जाओ अपने कमरे में और आराम करो।"

मैं अब आश्वस्त हो चुका था इस लिए उनके सिरहाने से उठा और उन्हें भी सो जाने को बोल कर कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को आपस में भिड़ा कर मैं कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ गया। बाहर से ही मैंने उसे आवाज़ दी तो जल्दी ही कुसुम ने दरवाज़ा खोला। उसकी हालत देख कर मेरा कलेजा कांप गया। वो मेरी लाडली बहन थी और इतना कुछ हो जाने के बाद भी मैं उसे समय नहीं दे पाया था। मैंने उसे पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। मेरा ऐसा करना था कि उसकी सिसकियां छूट पड़ीं। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और फिर भाभी के साथ रहने को बोल कर अपने कमरे की तरफ बढ़ चला।

अभी मैं गलियारे से मुड़ा ही था कि तभी विभोर ने मुझे पीछे से आवाज़ दी तो मैं ठिठक गया और फिर पलट कर उसकी तरफ देखा।

"क्या बात है?" मैंने उसके क़रीब आ कर पूछा____"तू अपने कमरे में सोने नहीं गया?"
"वो भैया मैं नीचे पेशाब करने गया था।" विभोर ने बुझे स्वर में कहा____"वहां मैंने ताऊ जी को बंदूक ले कर बाहर जाते देखा तो मैं यही बताने के लिए आपके कमरे की तरफ आ रहा था।"

"क्या सच कह रहा है तू?" मैं उसकी बात सुन कर चौंक पड़ा था____"और क्या देखा तूने?"
"बस इतना ही देखा भैया।" उसने कहा____"पर मुझे लगता है कि कुछ तो बात ज़रूर है वरना ताऊ जी रात के इस वक्त बंदूक ले कर बाहर क्यों जाएंगे?"

विभोर की बात बिलकुल सही थी। रात के इस वक्त पिता जी का बंदूक ले कर बाहर जाना यकीनन कोई बड़ी बात थी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तू अपने कमरे में जा। मैं देखता हूं क्या माजरा है।"
"मैं भी आपके साथ चलूंगा भैया।" विभोर ने इस बार आवेश युक्त भाव से कहा____"मुझे भी पिता जी और बड़े भैया के हत्यारों से बदला लेना है।"

"मैं तेरी भावनाओं को समझता हूं विभोर।" मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा___"यकीन रख, चाचा और भैया के क़ातिल ज़्यादा देर तक जिन्दा नहीं रह सकेंगे। बहुत जल्द उनकी लाशें भी पड़ी नज़र आएंगी। तुझे और अजीत को हवेली में रह कर यहां सबका ख़याल भी रखना है और सबकी सुरक्षा भी करनी है।"

"पर भ...??" अभी वो कुछ कहने ही वाला था कि मैंने उसे चुप कराया और कमरे में जाने को कहा तो वो बेमन से चला गया। उसके जाते ही मैं तेज़ी से अपने कमरे में आया और अलमारी से पिता जी द्वारा दिया हुआ रिवॉल्वर ले कर उसी तेज़ी के साथ कमरे से निकल कर नीचे की तरफ बढ़ता चला गया।

मुझे नीचे आने में ज़्यादा देर नहीं हुई थी लेकिन बैठक में मुझे ना तो पिता जी नज़र आए और ना ही उनके मित्र अर्जुन सिंह। बैठक में सिर्फ भैया के चाचा ससुर, और मेरी दोनों ननिहाल के नाना लोग ही बैठे दिखे। दोनों जगह के मामा लोग भी नहीं थे वहां। मैं समझ गया कि सब के सब पिता जी के साथ कहीं निकल गए हैं। इससे पहले कि बैठक में बैठे उन लोगों की मुझ पर नज़र पड़ती मैं झट से बाहर निकल गया। बाहर आया तो एक दरबान के पास मैं ठिठक गया। उससे मैंने जब सख़्त भाव से पूछा तो उसने बताया कि कुछ देर पहले दो व्यक्ति आए थे। उन्होंने दादा ठाकुर को पता नहीं ऐसा क्या बताया था कि दादा ठाकुर जल्दी ही अर्जुन सिंह और मामा लोगों के साथ निकल गए।


✮✮✮✮

हवेली के बाहर वाले हिस्से में बने जिस कमरे में जगन को बंद किया गया था उस कमरे के बाहर दो व्यक्ति बैठे पहरा दे रहे थे। आज कल हवेली में जिस तरह के हालात बने हुए थे उसकी जानकारी हवेली के सभी नौकरों को थी इस लिए सुरक्षा और निगरानी के लिए वो सब पूरी तरह से चौकस और सतर्क थे।

"अबे ऊंघ क्यों रहा है?" लकड़ी की एक पुरानी सी स्टूल पर बैठे एक व्यक्ति ने अपने दूसरे साथी को ऊंघते देखा तो उसे हल्के से आवाज़ दी। उसकी आवाज़ सुन कर उसका दूसरा साथी एकदम से हड़बड़ा गया और फिर इधर उधर देखने के बाद उसकी तरफ देखने लगा।

"दिन में सोया नहीं था क्या तू?" पहले वाले ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा_____"जो इस वक्त इस तरह से ऊंघ रहा है।"

"हां यार।" दूसरे ने सिर हिला कर अलसाए हुए भाव से कहा____"असल में तेरी भौजी की तबियत ठीक नहीं थी इस लिए दिन में उसे ले कर वैद्य के पास गया था। उसे कुछ आराम तो मिला लेकिन उसकी देख भाल के चक्कर में दिन में सोया ही नहीं। मां दो दिन पहले अपने मायके चली गई है जिसके चलते मुझे ही सब देखना पड़ रहा है।"

"हम्म्म्म मैं समझता हूं भाई।" पहले वाले ने कहा____"पर इस वक्त तो तुझे जागना ही पड़ेगा न भाई।"

"मुझे कुछ देर सो लेने दे यार।" दूसरे ने जैसे उससे विनती की_____"वैसे भी बंद कमरे से वो ना तो निकल सकता है और ना ही निकल कर कहीं जा सकता है। फिर तू तो है ही यहां पर तो थोड़ी देर सम्हाल ले न यार।"

"साले मरवाएगा मुझे।" पहले वाले ने उसे घूरते हुए कहा____"तुझे तो पता ही है कि आज कल हालात बहुत ख़राब हैं। ऐसे में अगर कुछ भी उल्टा सीधा हो गया तो समझ ले दादा ठाकुर हमारे जिस्मों से खाल उतरवा देंगे।"

"हां मैं जानता हूं भाई।" दूसरे ने सिर हिलाया____"पर भाई तू तो है ही यहां पर। थोड़ी देर सम्हाल ले ना। मुझे सच में ज़ोरों की नींद आ रही है। अगर कुछ हो तो मुझे जगा देना।"

पहले वाला कुछ देर तक उसकी तरफ देखता रहा फिर बोला____"ठीक है कुछ देर सो ले तू।"
"तेरा बहुत बहुत शुक्रिया मेरे यार।" दूसरा खुश होते हुए बोला।

"हां ठीक है।" पहला वाला स्टूल से उठा और फिर अपनी कमर में एक काले धागे में फंसी चाभी को निकाल कर उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला_____"इसे पकड़ ज़रा। मैं मूत के आता हूं और हां सो मत जाना वरना गांड़ मार लूंगा तेरी।"

पहले वाले की बात सुन कर दूसरे ने हंसते हुए उसे गाली दी और हाथ बढ़ा कर उससे चाभी ले ली। उधर चाभी दे कर पहला वाला व्यक्ति मूतने के लिए उधर ही एक तरफ बढ़ता चला गया। उसके जाने के बाद उसने आस पास एक नज़र डाली और फिर एक नज़र बंद कमरे की तरफ डाल कर वो थोड़ा ढंग से स्टूल पर बैठ गया।

रात के इस वक्त काफी अंधेरा था। हवेली के बाहर कई जगहों पर मशालें जल रही थी जिनकी रोशनी से आस पास का थोड़ा बहुत दिख रहा था। जिस जगह पर ये दोनों लोग बैठे हुए थे उससे क़रीब पांच क़दम की दूरी पर एक मशाल जल रही थी।

पहले वाला व्यक्ति अभी मुश्किल से कुछ ही दूर गया रहा होगा कि तभी एक तरफ अंधेरे में से एक साया हल्की रोशनी में प्रगट सा हुआ और दूसरे वाले आदमी की तरफ बढ़ चला। दूसरा वाला हाथ में धागे से बंधी चाभी लिए बैठा हुआ था। उसका सिर हल्का सा झुका हुआ था। ऐसा लगा जैसे वो फिर से ऊंघने लगा था। इधर हल्की रोशनी में आते ही साया थोड़ा स्पष्ट नज़र आया।

जिस्म पर काले रंग की शाल ओढ़ रखी थी उसने किंतु फिर भी शाल के खुले हिस्से से उसके अंदर मौजूद सफ़ेद लिबास नज़र आ रहा था। सिर पर भी उसने शाल को डाल रख था और शाल के सिरे को आगे की तरफ कर के वो अपने चेहरे को छुपाए रखने का प्रयास कर रहा था। जैसे ही वो स्टूल में बैठे दूसरे वाले ब्यक्ति के क़रीब पहुंचा तो रोशनी में इस बार शाल के अंदर छुपा उसका चेहरा दिखा। सफ़ेद कपड़े से उसका चेहरा ढंका हुआ था। आंखों वाले हिस्से से उसकी आंखें चमक रहीं थी और साथ ही नाक और मुंह के पास छोटे छोटे छिद्र रोशनी में नज़र आए। ज़ाहिर है वो छिद्र सांस लेने के लिए थे।

रहस्यमय साए ने पलट कर एक बार आस पास का जायजा लिया और फिर तेज़ी से आगे बढ़ कर उसने दूसरे वाले व्यक्ति की कनपटी पर किसी चीज़ से वार किया। नतीज़ा, दूसरा व्यक्ति हल्की सिसकी के साथ ही स्टूल पर लुढ़कता नज़र आया। साए ने फ़ौरन ही उसे पकड़ कर आहिस्ता से स्टूल पर लेटा दिया। उसके बाद उसने उसके हाथ से चाभी ली और बंद कमरे की तरफ बढ़ चला।

पहले वाला व्यक्ति अच्छी तरह मूत लेने के बाद जब वापस आया तो वो ये देख कर बुरी तरह चौंका कि उसका दूसरा साथी स्टूल पर बड़े आराम से लुढ़का पड़ा सो रहा है और जिस कमरे में जगन को बंद किया गया था उस कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ है। ये देखते ही मानों उसके होश उड़ गए। वो मशाल ले कर भागते हुए कमरे की तरफ गया और जब कमरे के अंदर उसे कोई नज़र ना आया तो जैसे इस बार उसके सिर पर गाज ही गिर गई। पैरों के नीचे की ज़मीन रसातल तक धंसती चली गई। शायद यही वजह थी कि वो अपनी जगह पर खड़ा अचानक से लड़खड़ा गया था किंतु फिर उसने खुद को सम्हाला और तेज़ी से बाहर आ कर वो अपने साथी को ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने लगा। उसका अपना चेहरा डर और ख़ौफ की वजह से फक्क् पड़ा हुआ था।

उसका दूसरा साथी जब उसके ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने पर भी न जागा तो वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसका अपना जिस्म ये सोच कर ठंडा सा पड़ गया कि कहीं उसका साथी मर तो नहीं गया? हकबका कर वो एक तरफ को भागा और जल्दी ही हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास पहुंच गया। मुख्य द्वार पर खड़े दरबान को उसने हांफते हुए सारी बात बताई तो उस दरबान के भी होश उड़ गए। उसने फ़ौरन ही अंदर जा कर बैठक में बैठे भैया के चाचा ससुर को सारी बात बताई तो बैठक में बैठे बाकी सब भी बुरी तरह उछल पड़े।



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बहुत ही शानदार और अद्भुत रमणिय अपडेट है भाई मजा आ गया
अगले रोमांचकारी धमाकेदार अपडेट की प्रतिक्षा रहेगी जल्दी से दिजिएगा
 

Froog

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चूतीया रीडर के चूतिया कमेन्ट के कारण लेखक कहानी ही छोड़ कर चले जाते हैं
अरे भाई चूतियों को ब्लौक कर दो
चूतिया कमेन्ट पर ध्यान ही नहीं देना
 

Umakant007

चरित्रं विचित्रं..
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कहानी का ये अपडेट मैंने लिख लिया था इस लिए पोस्ट कर दिया है मगर अब इस कहानी में कोई अपडेट नहीं आएगा। ये कहानी भी अब ठंडे बस्ते में चली जाएगी और इसका जिम्मेदार लेखक नहीं बल्कि सिर्फ और सिर्फ रीडर्स हैं।:declare:

अलविदा :ciao:
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Sanju@

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अध्याय - 68
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अब तक....

कुंदनपुर नाम के गांव में चाची के पिता धर्मराज सिंह चौहान के पूर्वज भी ज़मींदार हुआ करते थे। आज के समय में जमींदारी तो नहीं है किंतु उनके विशाल भू भाग पर आज भी गांव के लोग मजदूरी कर के अपना जीवन यापन करते हैं। कुंदनपुर में एक प्राचीन देवी मंदिर है जहां पर हर साल नवरात्र के महीने में विशाल मेला लगता है। आस पास के गावों में जितने भी संपन्न ज़मींदार थे वो सब बड़े बड़े अवसरों पर बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित करते थे। ऐसे ही एक अवसर पर धर्मराज सिंह चौहान ने बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित किया था। बड़े दादा ठाकुर ने वहीं पर मेनका चाची को देखा था। मेनका चाची अपने नाम की तरह ही बेहद सुंदर थीं। बड़े दादा ठाकुर ने देर न करते हुए फ़ौरन ही धर्मराज से उनकी बेटी का हाथ अपने छोटे बेटे जगताप के लिए मांग लिया था। अब क्योंकि ऊपर वाला भी यही चाहता था इस लिए जल्दी ही मेनका चाची हवेली में छोटी बहू बन कर आ गईं।

तो दोस्तो ये था मेरे दोनों ननिहाल वालों का संक्षिप्त परिचय।


अब आगे....


"हालात बेहद ही ख़राब हो गए हैं बड़े भैया।" चिमनी के प्रकाश में नज़र आ रहे मणि शंकर के चेहरे की तरफ देखते हुए हरि शंकर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"दादा ठाकुर ने तो आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान भी करवा दिया है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर हमने खुद को उनके सामने समर्पण नहीं किया तो वो हमारे घर की बहू बेटियों के साथ बहुत बुरा सुलूक करेंगे।"
"हरि चाचा सही कह रहे हैं पिता जी।" चंद्रभान ने गंभीर भाव से कहा____"अगर हम अब भी इसी तरह छुपे बैठे रहे तो यकीनन बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा। हमें दादा ठाकुर के पास जा कर उन्हें ये बताना ही होगा कि उनके छोटे भाई और बड़े बेटे के साथ जो हुआ है उसके ज़िम्मेदार हम नहीं हैं।"

"हां बड़े भैया।" हरि शंकर ने कहा____"हमें अपनी सच्चाई तो बतानी ही चाहिए। ऐसे में तो वो यही समझते रहेंगे कि वो सब हमने किया है। अपनों को खोने का दुख जब बर्दास्त से बाहर हो जाता है तो परिणाम बहुत ही भयानक होता हैं। इस तरह से खुद को छुपा कर हम खुद ही अपने आपको उनकी नज़र में गुनहगार साबित कर रहे हैं। ये जो ऐलान उन्होंने करवाया है उसे हल्के में मत लीजिए। अगर हम सब फ़ौरन ही उनके सामने नहीं गए तो फिर कुछ भी सम्हाले नहीं सम्हलेगा।"

"मुझे तो आपका ये फ़ैसला और आपका ये कहना पहले ही ठीक नहीं लगा था पिता जी कि हम सब कहीं छुप जाएं।" चंद्रभान ने जैसे खीझते हुए कहा____"मुझे अभी भी समझ नहीं आ रहा कि ऐसा करने के लिए आपने क्यों कहा और फिर हम सब आपके कहे अनुसार यहां क्यों आ कर छुप गए? अगर हरि चाचा जी का ये कहना सही है कि हमने कुछ नहीं किया है तो हमें किसी से डर कर यूं एक साथ कहीं छुपने की ज़रूरत ही नहीं थी।"

"हम मानते हैं कि हमारा उस समय ऐसा करने का फ़ैसला कहीं से भी उचित नहीं था।" मणि शंकर ने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन मौजूदा हालात को देख कर हमें यही करना सही लगा था और ऐसा करने का कारण भी था।"

"भला ऐसा क्या कारण हो सकता है पिता जी?" चंद्रभान के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए, बोला____"मैं ये बिल्कुल भी मानने को तैयार नहीं हूं कि बिना किसी वजह के दादा ठाकुर हमारे साथ कुछ भी ग़लत कर देते।"

"यही तो तुम में ख़राबी है बेटे।" मणि शंकर ने सिर उठा कर चंद्रभान की तरफ देखा, फिर कहा____"तुम सिर्फ वर्तमान की बातों को देख कर कोई नतीजा निकाल रहे हो जबकि हम वर्तमान के साथ साथ अतीत की बातों को मद्दे नज़र रख कर भी सोच रहे हैं। हमारा गांव ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांव वाले भी जानते हैं कि हवेली वालों से हमारे संबंध कभी भी बेहतर नहीं रहे थे। अब अगर हमने अपने संबंधों को बेहतर बना लिया है तो ज़रूर इसके पीछे कोई न कोई ऐसी वजह ज़रूर हो सकती है जिसके बारे में बड़ी आसानी से हर कोई अंदाज़ा लगा सकता है। भले ही वो लोग अंदाज़ा ग़लत ही क्यों न लगाएं पर हम दोनों परिवारों की स्थिति के मद्दे नज़र हर किसी का ऐसा सोचना जायज़ भी है। यानि हर कोई यही सोचेगा कि हमने हवेली वालों से अपने संबंध इसी लिए बेहतर बनाए होंगे ताकि कभी मौका देख कर हम पीठ पर छूरा घोंप सकें। अब ज़रा सोचो कि अगर हर कोई हमारे बारे में ऐसी ही सोच रखता है तो ज़ाहिर है कि ऐसी ही सोच दादा ठाकुर और उसके परिवार वाले भी तो रखते ही होंगे। दादा ठाकुर के छोटे भाई और बड़े बेटे के साथ जो हुआ है उसे भले ही हमने नहीं किया है लेकिन हर व्यक्ति के साथ साथ हवेली वाले भी यही सोच बैठेंगे होंगे कि ऐसा हमने ही किया है। इंसान जब किसी चीज़ को सच मान लेता है तो फिर वो कोई दूसरा सच सुनने या जानने का इरादा नहीं रखता बल्कि ऐसे हालात में तो उसे बस बदला लेना ही दिखता है। अब सोचो कि अगर ऐसे में हम सब अपनी सफाई देने के लिए उनके सामने जाते तो क्या वो हमारी सच्चाई सुनने को तैयार होते? हमारा ख़याल है हर्गिज़ नहीं, बल्कि वो तो आव देखते ना ताव सीधा हम सबकी गर्दनें ही उड़ाना शुरू कर देते। यही सब सोच कर हमने ये फैसला लिया था कि ऐसे ख़तरनाक हालात में ऐसे व्यक्ति के सामने जाना बिल्कुल भी ठीक नहीं है जो हमारे द्वारा कुछ भी सुनने को तैयार ही न हो। हम जानते हैं कि इस वक्त वो इस सबकी वजह से बेहद दुखी हैं और बदले की आग में जल भी रहे हैं किंतु हम तभी उनके सामने जा सकते हैं जब उनके अंदर का आक्रोश या गुस्सा थोड़ा ठंडा हो जाए। कम से कम इतना तो हो ही जाए कि वो हमारी बातें सुनने की जहमत उठाएं।"

"तो क्या आपको लगता है कि आपके ऐसा करने से दादा ठाकुर का गुस्सा ठंडा हो जाएगा?" चंद्रभान ने मानों तंज करते हुए कहा____"जबकि मुझे तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता पिता जी। मैं ये मानता हूं कि हर किसी की तरह हवेली वाले भी हमारे संबंधों को सुधार लेने के बारे में ऐसा ही सब कुछ सोचते होंगे लेकिन माजूदा हालात में आपके ऐसा करने से उनकी वो सोच तो यकीन में ही बदल जाएगी। बदले की आग में झुलसता इंसान ऐसे में और भी ज़्यादा भयानक रूप ले लेता है। अगर उसी समय हम सब उनके पास जाते और उनसे अपनी सफाई देते तो ऐसा बिल्कुल नहीं हो जाता कि वो हम में से किसी की कोई बात सुने बिना ही हम सबको मार डालते। देर से ही सही लेकिन वो भी ये सोचते कि अगर हमने ही चाचा भतीजे की हत्या की होती तो अपनी जान को ख़तरे में डाल कर उनके पास नहीं आते।"

"चंद्र बिल्कुल सही कह रहा है बड़े भैया।" हरि शंकर ने सिर हिलाते हुए कहा____"उस समय हमें दादा ठाकुर के पास ही जाना चाहिए था। ऐसे में सिर्फ हवेली वाले ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांव वाले भी हमारे बारे में यही सोचते कि अगर हम ग़लत होते तो मरने के लिए दादा ठाकुर के पास नहीं आते बल्कि अपनी जान बचा कर कहीं भाग जाते। पर अब, अब तो हमने खुद ही ऐसा कर दिया है कि उन्हें हमें ही हत्यारा समझना है और ग़लत क़रार देना है। सच तो ये है बड़े भैया कि पहले से कहीं ज़्यादा बद्तर हालातों में घिर गए हैं हम सब और इससे भी ज़्यादा बुरा तब हो जाएगा जब हम में से कोई भी उनके द्वारा ऐसा ऐलान करवाने पर भी उनके सामने खुद को समर्पण नहीं करेगा।"

"वैसे देखा जाए तो बड़े शर्म की बात हो गई है हरि भैया।" शिव शंकर ने कुछ सोचते हुए कहा____"हम सभी मर्द लोग अपनी अपनी जान बचाने के चक्कर में यहां आ कर छुप के बैठ गए और वहां घर में अपनी बहू बेटियों को हम दादा ठाकुर के क़हर का शिकार बनने के लिए छोड़ आए। वो भी सोचती होंगी कि कैसे कायर और नपुंसक लोग हैं हमारे घर के सभी मर्द। इतना ही नहीं बल्कि ऐसे में तो उन लोगों ने भी यही मान लिया होगा कि हमने ही जगताप और अभिनव की हत्या की है और अब अपनी जान जाने के डर से कहीं छुप गए हैं। जीवन में पहली बार मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं सच में ही कायर और नपुंसक हूं।"

"अगर तुमसे ये सब नहीं सहा जा रहा।" मणि शंकर ने नाराज़गी वाले लहजे में कहा____"तो चले जाओ यहां से और दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण कर दो।"

"अकेला तो कोई भी खुद को समर्पण करने नहीं जाएगा बड़े भैया।" शिव शंकर ने कहा____"बल्कि हम सभी को जाना पड़ेगा। दादा ठाकुर का ऐलान तो हम सबने सुन ही लिया है। अब अगर हमें अपने घर की बहू बेटियों को सही सलामत रखना है तो वही करना पड़ेगा जो वो चाहते हैं।"

"बिल्कुल।" गौरी शंकर ने जैसे सहमति जताते हुए कहा____"हम सबको कल सुबह ही अपने गांव जा कर दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण करना होगा। मेरा ख़याल है दादा ठाकुर के अंदर का आक्रोश अब तक थोड़ा बहुत तो शांत हो ही गया होगा। उनके जान पहचान वालों ने यकीनन उन्हें ऐसे वक्त में धैर्य और संयम से काम लेने की सलाह दी होगी। वैसे, बड़े भैया ने इस तरह का फ़ैसला ले कर भी ग़लत नहीं किया था। उस वक्त यकीनन यही करना बेहतर था और यही बातें हम दादा ठाकुर से भी कह सकते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि अब वो सबके सामने हमारी बातें पूरे धैर्य के साथ सुनेंगे और उन पर विचार भी करेंगे।"

"और तो सब ठीक है।" पास में ही खड़े रूपचंद्र ने झिझकते हुए कहा____"लेकिन उस वैभव का क्या? मान लिया कि दादा ठाकुर आप सबकी बातों को धैर्य से सुनने के बाद आपकी बातों पर यकीन कर लेंगे मगर क्या वैभव भी यकीन कर लेगा? आप सब तो जानते ही हैं कि वो किस तरह का इंसान है। अगर उसने हमारे साथ कुछ उल्टा सीधा किया तब क्या होगा?"

"मुझे लगता है कि तुम बेवजह ही उसके लिए चिंतित हो रहे हो।" हरि शंकर ने कहा____"जबकि हम सबने ये भली भांति देखा है कि पिछले कुछ समय से उसका बर्ताव पहले की अपेक्षा आश्चर्यजनक रूप से बेहतर नज़र आया है। वैसे भी अब वो दादा ठाकुर के किसी भी फ़ैसले के खिलाफ़ जाने की हिमाकत नहीं करेगा।"

"अगर ऐसा ही हो तो इससे बेहतर कुछ है ही नहीं।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उसने जान बूझ कर तथा कुछ सोच कर ही अपने बर्ताव को ऐसा बना रखा हो। अब क्योंकि उसके चाचा और बड़े भाई की हत्या हुई है तो वो पूरी तरह पहले जैसा बन कर हम पर क़हर बन कर टूट पड़े।"

"जो भी हो।" हरि शंकर ने कहा____"पर इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता ना कि ये सब सोच कर हम सब खुद को दादा ठाकुर के सामने समर्पण करने का अपना इरादा ही बदल दें। आने वाले समय में क्या होगा ये बाद की बात है लेकिन इस वक्त सबसे ज़्यादा ज़रूरी यही है कि हम सब दादा ठाकुर के सामने अपनी स्थिति को साफ कर लें अन्यथा इसके बहुत ही बुरे परिणामों से हमें रूबरू होना होगा।"


✮✮✮✮

उस समय रात के क़रीब ग्यारह बजने वाले थे। बैठक में अभी भी सब लोग बैठे हुए थे। खाना पीना खाने से सभी ने इंकार कर दिया था इस लिए बनाया भी नहीं गया था। मैं भाभी के लिए कुछ ज़्यादा ही फिक्रमंद था इस लिए उन्हीं के कमरे में उनके पास ही बैठा हुआ था। कमरे में लालटेन का मध्यम प्रकाश था। हमेशा की तरह बिजली इस वक्त भी नहीं थी। ख़ैर लालटेन की रोशनी में मैं साफ देख सकता था कि भाभी का चेहरा एकदम से बेनूर सा हो गया था। अपने पलंग पर वो मेरे ही ज़ोर देने पर लेटी हुई थीं और मैं उनके सिरहाने पर बैठा उनके माथे को हल्के हल्के दबा रहा था। ऐसा पहली बार ही हो रहा था कि मैं रात के इस वक्त उनके कमरे में उनके इतने क़रीब बैठा हुआ था। इस वक्त मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी ग़लत ख़याल आने का सवाल ही नहीं था। मुझे तो बस ये सोच कर दुख हो रहा था कि उनके जैसी सभ्य सुशील संस्कारी और पूजा आराधना करने वाली औरत के साथ ऊपर वाले ने ऐसा क्यों कर दिया था? इस हवेली के अंदर एक मैं ही ऐसा इंसान था जिसने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे इसके बाद भी मैं सही सलामत ज़िंदा था जबकि मुझ जैसे इंसान के साथ ही बहुत बुरा होना चाहिए था।

"व...वैभव??" अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा तभी गहरे सन्नाटे में भाभी के मुख से धीमी सी आवाज़ निकली तो मैं एकदम से सम्हल गया और जल्दी ही बोला____"जी भाभी, मैं यहीं हूं। आपको कुछ चाहिए क्या?"

"तु...तुम कब तक ऐसे बैठे रहोगे?" भाभी ने उठने की कोशिश की तो मैंने उन्हें लेटे ही रहने को कहा तो वो फिर से लेट गईं और फिर बोलीं____"अपने कमरे में जा कर तुम भी सो जाओ।"

"मुझे नींद नहीं आ रही भाभी।" मैंने कहा____"वैसे भी मैं आपको अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा। आप आराम से सो जाइए। मैं आपके पास यहीं बैठा रहूंगा।"

"क्..क्या तुम्हें इस बात का डर है कि मैं अपने इस दुख के चलते कहीं कुछ कर न बैठू?" भाभी ने लेटे लेटे ही अपनी गर्दन को हल्का सा ऊपर की तरफ कर के मेरी तरफ देखते हुए कहा।

"मैं भैया को खो चुका हूं भाभी।" मेरी आवाज़ एकदम से भारी हो गई____"लेकिन आपको नहीं खोना चाहता। अगर आपने कुछ भी उल्टा सीधा किया तो जान लीजिए आपका ये देवर सारी दुनिया को आग लगा देगा। किसी को भी ज़िंदा नहीं छोडूंगा मैं। इस गांव में लाशें ही लाशें पड़ी दिखेंगी।"

"इस दुनिया से तो सबको एक दिन चले जाना है वैभव।" भाभी ने उसी तरह मुझे देखते हुए अपनी मुर्दा सी आवाज़ में कहा____"तुम्हारे भैया चले गए, किसी दिन मैं भी चली जाऊंगी।"

"ऐसा मत कहिए न भाभी।" मैंने दोनों हथेलियों में उनका चेहरा ले कर अपनी नम आंखों से उन्हें देखते हुए कहा____"आप मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी। अगर आपके दिल में मेरे लिए ज़रा सा भी स्नेह और प्यार है तो उस स्नेह और प्यार के खातिर आप मुझे छोड़ कर कहीं जाने का सोचिएगा भी मत। आपको क़सम है मेरी।"

"ठीक है।" भाभी ने अपना एक हाथ पीछे की तरफ ला कर मेरा दायां गाल सहला कर कहा____"लेकिन मेरी भी एक शर्त है।"

"आप बस बोलिए भाभी।" मैंने एक हाथ से उनके उस हाथ को थाम लिया____"वैभव ठाकुर अपनी जान दे कर भी आपकी शर्त पूरी करेगा।"

"नहीं।" भाभी ने झट से मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर मेरे मुख पर रख दिया, फिर बोलीं___"ख़बरदार,अपनी जान देने वाली बातें कभी मत करना। इस हवेली और हवेली में रहने वालों के लिए तुम्हें हमेशा सही सलामत रहना है वैभव।"

"तो आप भी कभी कहीं जाने की बातें मत कहिएगा मुझसे।" मैंने कहा____"मैं हमेशा अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी भाभी को अपने पास सही सलामत देखना चाहता हूं। आप इस हवेली की आन बान शान हैं भाभी। ये तो मेरे बस में ही नहीं है कि मैं उस ऊपर वाले के फ़ैसलों को बदल दूं वरना मैं तो कभी भी अपनी भाभी के चांद जैसे चेहरे पर दाग़ न लगने दूं।"

"इतनी बड़ी बड़ी बातें मत किया करो वैभव।" भाभी ने फिर से मेरे दाएं गाल को सहलाया, बोलीं____"ख़ैर मेरी शर्त तो सुन लो।"

"ओह! हां, माफ़ कीजिए।" मैंने जल्दी से कहा____"जी बताइए क्या शर्त है आपकी?"

"अगर तुम मुझे सही सलामत देखना चाहते हो।" भाभी ने मेरी आंखों में देखते हुए इस बार थोड़े सख़्त भाव से कहा____"तो उन लोगों की सांसें छीन लो जिन लोगों ने मेरे सुहाग को मुझसे छीना है। जब तक उन हत्यारों को मुर्दा बना कर मिट्टी में नहीं मिला दिया जाएगा तब तक तुम्हारी भाभी के दिल को सुकून नहीं मिलेगा।"

"ऐसा ही होगा भाभी।" मैंने फिर से उनके उस हाथ को थाम लिया, बोला____"मैं आपको वचन देता हूं कि जिन लोगों ने आपके सुहाग की हत्या कर के उन्हें आपसे छीना है उन लोगों को मैं बहुत जल्द भयानक मौत दे कर मिट्टी में मिला दूंगा।"

"एक शर्त और भी है।" भाभी ने कहा____"और वो ये है कि इस सबके चलते तुम खुद को खरोंच भी नहीं आने दोगे।"
"मैं पूरी कोशिश करूंगा भाभी।" मैंने कहा तो भाभी कुछ पलों तक मुझे देखती रहीं और फिर बोलीं____"अब जाओ अपने कमरे में और आराम करो।"

मैं अब आश्वस्त हो चुका था इस लिए उनके सिरहाने से उठा और उन्हें भी सो जाने को बोल कर कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को आपस में भिड़ा कर मैं कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ गया। बाहर से ही मैंने उसे आवाज़ दी तो जल्दी ही कुसुम ने दरवाज़ा खोला। उसकी हालत देख कर मेरा कलेजा कांप गया। वो मेरी लाडली बहन थी और इतना कुछ हो जाने के बाद भी मैं उसे समय नहीं दे पाया था। मैंने उसे पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। मेरा ऐसा करना था कि उसकी सिसकियां छूट पड़ीं। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और फिर भाभी के साथ रहने को बोल कर अपने कमरे की तरफ बढ़ चला।

अभी मैं गलियारे से मुड़ा ही था कि तभी विभोर ने मुझे पीछे से आवाज़ दी तो मैं ठिठक गया और फिर पलट कर उसकी तरफ देखा।

"क्या बात है?" मैंने उसके क़रीब आ कर पूछा____"तू अपने कमरे में सोने नहीं गया?"
"वो भैया मैं नीचे पेशाब करने गया था।" विभोर ने बुझे स्वर में कहा____"वहां मैंने ताऊ जी को बंदूक ले कर बाहर जाते देखा तो मैं यही बताने के लिए आपके कमरे की तरफ आ रहा था।"

"क्या सच कह रहा है तू?" मैं उसकी बात सुन कर चौंक पड़ा था____"और क्या देखा तूने?"
"बस इतना ही देखा भैया।" उसने कहा____"पर मुझे लगता है कि कुछ तो बात ज़रूर है वरना ताऊ जी रात के इस वक्त बंदूक ले कर बाहर क्यों जाएंगे?"

विभोर की बात बिलकुल सही थी। रात के इस वक्त पिता जी का बंदूक ले कर बाहर जाना यकीनन कोई बड़ी बात थी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तू अपने कमरे में जा। मैं देखता हूं क्या माजरा है।"
"मैं भी आपके साथ चलूंगा भैया।" विभोर ने इस बार आवेश युक्त भाव से कहा____"मुझे भी पिता जी और बड़े भैया के हत्यारों से बदला लेना है।"

"मैं तेरी भावनाओं को समझता हूं विभोर।" मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा___"यकीन रख, चाचा और भैया के क़ातिल ज़्यादा देर तक जिन्दा नहीं रह सकेंगे। बहुत जल्द उनकी लाशें भी पड़ी नज़र आएंगी। तुझे और अजीत को हवेली में रह कर यहां सबका ख़याल भी रखना है और सबकी सुरक्षा भी करनी है।"

"पर भ...??" अभी वो कुछ कहने ही वाला था कि मैंने उसे चुप कराया और कमरे में जाने को कहा तो वो बेमन से चला गया। उसके जाते ही मैं तेज़ी से अपने कमरे में आया और अलमारी से पिता जी द्वारा दिया हुआ रिवॉल्वर ले कर उसी तेज़ी के साथ कमरे से निकल कर नीचे की तरफ बढ़ता चला गया।

मुझे नीचे आने में ज़्यादा देर नहीं हुई थी लेकिन बैठक में मुझे ना तो पिता जी नज़र आए और ना ही उनके मित्र अर्जुन सिंह। बैठक में सिर्फ भैया के चाचा ससुर, और मेरी दोनों ननिहाल के नाना लोग ही बैठे दिखे। दोनों जगह के मामा लोग भी नहीं थे वहां। मैं समझ गया कि सब के सब पिता जी के साथ कहीं निकल गए हैं। इससे पहले कि बैठक में बैठे उन लोगों की मुझ पर नज़र पड़ती मैं झट से बाहर निकल गया। बाहर आया तो एक दरबान के पास मैं ठिठक गया। उससे मैंने जब सख़्त भाव से पूछा तो उसने बताया कि कुछ देर पहले दो व्यक्ति आए थे। उन्होंने दादा ठाकुर को पता नहीं ऐसा क्या बताया था कि दादा ठाकुर जल्दी ही अर्जुन सिंह और मामा लोगों के साथ निकल गए।


✮✮✮✮

हवेली के बाहर वाले हिस्से में बने जिस कमरे में जगन को बंद किया गया था उस कमरे के बाहर दो व्यक्ति बैठे पहरा दे रहे थे। आज कल हवेली में जिस तरह के हालात बने हुए थे उसकी जानकारी हवेली के सभी नौकरों को थी इस लिए सुरक्षा और निगरानी के लिए वो सब पूरी तरह से चौकस और सतर्क थे।

"अबे ऊंघ क्यों रहा है?" लकड़ी की एक पुरानी सी स्टूल पर बैठे एक व्यक्ति ने अपने दूसरे साथी को ऊंघते देखा तो उसे हल्के से आवाज़ दी। उसकी आवाज़ सुन कर उसका दूसरा साथी एकदम से हड़बड़ा गया और फिर इधर उधर देखने के बाद उसकी तरफ देखने लगा।

"दिन में सोया नहीं था क्या तू?" पहले वाले ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा_____"जो इस वक्त इस तरह से ऊंघ रहा है।"

"हां यार।" दूसरे ने सिर हिला कर अलसाए हुए भाव से कहा____"असल में तेरी भौजी की तबियत ठीक नहीं थी इस लिए दिन में उसे ले कर वैद्य के पास गया था। उसे कुछ आराम तो मिला लेकिन उसकी देख भाल के चक्कर में दिन में सोया ही नहीं। मां दो दिन पहले अपने मायके चली गई है जिसके चलते मुझे ही सब देखना पड़ रहा है।"

"हम्म्म्म मैं समझता हूं भाई।" पहले वाले ने कहा____"पर इस वक्त तो तुझे जागना ही पड़ेगा न भाई।"

"मुझे कुछ देर सो लेने दे यार।" दूसरे ने जैसे उससे विनती की_____"वैसे भी बंद कमरे से वो ना तो निकल सकता है और ना ही निकल कर कहीं जा सकता है। फिर तू तो है ही यहां पर तो थोड़ी देर सम्हाल ले न यार।"

"साले मरवाएगा मुझे।" पहले वाले ने उसे घूरते हुए कहा____"तुझे तो पता ही है कि आज कल हालात बहुत ख़राब हैं। ऐसे में अगर कुछ भी उल्टा सीधा हो गया तो समझ ले दादा ठाकुर हमारे जिस्मों से खाल उतरवा देंगे।"

"हां मैं जानता हूं भाई।" दूसरे ने सिर हिलाया____"पर भाई तू तो है ही यहां पर। थोड़ी देर सम्हाल ले ना। मुझे सच में ज़ोरों की नींद आ रही है। अगर कुछ हो तो मुझे जगा देना।"

पहले वाला कुछ देर तक उसकी तरफ देखता रहा फिर बोला____"ठीक है कुछ देर सो ले तू।"
"तेरा बहुत बहुत शुक्रिया मेरे यार।" दूसरा खुश होते हुए बोला।

"हां ठीक है।" पहला वाला स्टूल से उठा और फिर अपनी कमर में एक काले धागे में फंसी चाभी को निकाल कर उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला_____"इसे पकड़ ज़रा। मैं मूत के आता हूं और हां सो मत जाना वरना गांड़ मार लूंगा तेरी।"

पहले वाले की बात सुन कर दूसरे ने हंसते हुए उसे गाली दी और हाथ बढ़ा कर उससे चाभी ले ली। उधर चाभी दे कर पहला वाला व्यक्ति मूतने के लिए उधर ही एक तरफ बढ़ता चला गया। उसके जाने के बाद उसने आस पास एक नज़र डाली और फिर एक नज़र बंद कमरे की तरफ डाल कर वो थोड़ा ढंग से स्टूल पर बैठ गया।

रात के इस वक्त काफी अंधेरा था। हवेली के बाहर कई जगहों पर मशालें जल रही थी जिनकी रोशनी से आस पास का थोड़ा बहुत दिख रहा था। जिस जगह पर ये दोनों लोग बैठे हुए थे उससे क़रीब पांच क़दम की दूरी पर एक मशाल जल रही थी।

पहले वाला व्यक्ति अभी मुश्किल से कुछ ही दूर गया रहा होगा कि तभी एक तरफ अंधेरे में से एक साया हल्की रोशनी में प्रगट सा हुआ और दूसरे वाले आदमी की तरफ बढ़ चला। दूसरा वाला हाथ में धागे से बंधी चाभी लिए बैठा हुआ था। उसका सिर हल्का सा झुका हुआ था। ऐसा लगा जैसे वो फिर से ऊंघने लगा था। इधर हल्की रोशनी में आते ही साया थोड़ा स्पष्ट नज़र आया।

जिस्म पर काले रंग की शाल ओढ़ रखी थी उसने किंतु फिर भी शाल के खुले हिस्से से उसके अंदर मौजूद सफ़ेद लिबास नज़र आ रहा था। सिर पर भी उसने शाल को डाल रख था और शाल के सिरे को आगे की तरफ कर के वो अपने चेहरे को छुपाए रखने का प्रयास कर रहा था। जैसे ही वो स्टूल में बैठे दूसरे वाले ब्यक्ति के क़रीब पहुंचा तो रोशनी में इस बार शाल के अंदर छुपा उसका चेहरा दिखा। सफ़ेद कपड़े से उसका चेहरा ढंका हुआ था। आंखों वाले हिस्से से उसकी आंखें चमक रहीं थी और साथ ही नाक और मुंह के पास छोटे छोटे छिद्र रोशनी में नज़र आए। ज़ाहिर है वो छिद्र सांस लेने के लिए थे।

रहस्यमय साए ने पलट कर एक बार आस पास का जायजा लिया और फिर तेज़ी से आगे बढ़ कर उसने दूसरे वाले व्यक्ति की कनपटी पर किसी चीज़ से वार किया। नतीज़ा, दूसरा व्यक्ति हल्की सिसकी के साथ ही स्टूल पर लुढ़कता नज़र आया। साए ने फ़ौरन ही उसे पकड़ कर आहिस्ता से स्टूल पर लेटा दिया। उसके बाद उसने उसके हाथ से चाभी ली और बंद कमरे की तरफ बढ़ चला।

पहले वाला व्यक्ति अच्छी तरह मूत लेने के बाद जब वापस आया तो वो ये देख कर बुरी तरह चौंका कि उसका दूसरा साथी स्टूल पर बड़े आराम से लुढ़का पड़ा सो रहा है और जिस कमरे में जगन को बंद किया गया था उस कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ है। ये देखते ही मानों उसके होश उड़ गए। वो मशाल ले कर भागते हुए कमरे की तरफ गया और जब कमरे के अंदर उसे कोई नज़र ना आया तो जैसे इस बार उसके सिर पर गाज ही गिर गई। पैरों के नीचे की ज़मीन रसातल तक धंसती चली गई। शायद यही वजह थी कि वो अपनी जगह पर खड़ा अचानक से लड़खड़ा गया था किंतु फिर उसने खुद को सम्हाला और तेज़ी से बाहर आ कर वो अपने साथी को ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने लगा। उसका अपना चेहरा डर और ख़ौफ की वजह से फक्क् पड़ा हुआ था।

उसका दूसरा साथी जब उसके ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने पर भी न जागा तो वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसका अपना जिस्म ये सोच कर ठंडा सा पड़ गया कि कहीं उसका साथी मर तो नहीं गया? हकबका कर वो एक तरफ को भागा और जल्दी ही हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास पहुंच गया। मुख्य द्वार पर खड़े दरबान को उसने हांफते हुए सारी बात बताई तो उस दरबान के भी होश उड़ गए। उसने फ़ौरन ही अंदर जा कर बैठक में बैठे भैया के चाचा ससुर को सारी बात बताई तो बैठक में बैठे बाकी सब भी बुरी तरह उछल पड़े।



━━━━✮━━━━━━━━━━━✮━━━━
गलत किया मणिशंकर ने और भुगतना पूरे साहूकारो को पड़ेगा अगर मणि शंकर इस षडयंत्र में शामिल नहीं होता तो वह छुपता नही वह सही होता तो अपने प्राणों की परवाह किए बिना दादा ठाकुर के पास अपनी बेगुनाई साबित करने चला जाता लेकिन वह छुप गया मतलब वह भी शामिल हैं इस षडयंत्र में
वैभव ने भाभी को वादा कर दिया है कि उसके सुहाग को मारने वाले को वह मारेगा वह भी अपने को कोई नुकसान पहुंचाए बिना देखते हैं वैभव क्या करता है
जैसा हमने कहा था कि सफेद नकाबपोश दादा ठाकुर से दो कदम आगे है उसने अपनी चाल चल दी है दादा ठाकुर को हवेली से बाहर निकाल कर जगन को हवेली से निकाल लिया है लगता है जगन का भी वही हाल होगा जिनका अब तक सफेद नकाबपोश ने अपना काम निकाल कर किया है
 

Sanju@

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इतने दिन धैर्य रखकर इतने व्यू और कमेंट करनेवाले पाठकों के लिए भी कुछ सोचेंगे शुभम भाई?

जितना अपने पास होता है अगर कोई उतने की कदर नहीं करता तो उसकी चाहत पूरी होने की संभावना भी नहीं होती

कुछ समय धैर्य रखकर इस कहानी को भी पूरा करें...... सिर्फ आपके लिखने तक ही नहीं....... कब तक, कहाँ तक और कौन-कौन पढ़ेगा.... आप या हम सोच भी नहीं सकते

आपकी ही एक नया संसार लिखे जाने के समय से ज्यादा आज लोग पढ़ रहे हैं और पढ्ना चाहते हैं ......................................
फौजी भाई की दिल अपना प्रीत पराई जितनी Xossip पर लिखे जाने के समय नहीं पढ़ी गयी उससे ज्यादा यहाँ मेरे द्वारा रेपोस्टेड पढ़ी गयी है
हवेली ....... वैम्पायर भाई को लिखते समय जितने व्यू नहीं मिले उतने तो पाठक मिल गए कहानी पूरी होने के बाद



बाकी आपकी मर्जी.......... इंतज़ार तो आपसे कई गुना ज्यादा पाठक प्रीतम दादा का भी कर रहे हैं............
ये सेक्स आधारित फोरम है..... यहाँ इन साफ सुथरी अक्ल और दिल लगाने वाली कहानियों को इतने भी पाठक मिल जाते हैं ये भी कम नहीं.........

गंभीरता से सोचना
अपडेट 67 और 68 :

जगन ने जो कुछ भी किया हो, और उसका जो भी मंतव्य रहा हो, वो इस पूरे षड्यंत्र का केवल एक मोहरा है।

ध्यान देने वाली बात ये है कि वैभव को ही दादा ठाकुर की नज़र से गिराने की क्या आवश्यकता आन पड़ी षड्यंत्रकारियों को? ऐसी कौन सी क्षमता है उसके अंदर जो परिवार के अन्य सदस्यों में नहीं? ऐसा तो उसके चरित्र में हमने कुछ भी नहीं देखा - बेहद ढीले चरित्र का, गरम-दिमाग का व्यक्ति है, जो केवल जोश में सारे काम करता है, होश में नहीं! कहानी का हीरो न हो, तो जूते खाने वाला व्यक्ति है।

तो ऐसा क्या है उसमें, जो दादा ठाकुर को सबसे बड़ी चोट उसके कारण लग सकती है? ख़ास कर यह तथ्य कि उसके बड़े भाई, और चाचा दोनों की हत्या हो गई।

साहूकारों का कोई न कोई योगदान तो है - चाहे जाने या अनजाने में! उनका किसी तरह से सहयोग तो मिला है सफ़ेदपोश को! और बार बार मुझको यही लगता है कि वो घर का ही कोई है। क्यों? घन? रसूख़? स्त्री? रूपा और उसकी भाभी ने पहले भी दादा ठाकुर को आगाह किया था, लिहाज़ा, उन पर कोई आँच तो नहीं आने वाली। लेकिन उस डर से साहूकार लोग आत्मसमर्पण कर देंगे। क्या पता, सफ़ेदपोश का यही प्लान हो?

एक अजीब सा समीकरण बन गया है : अनुराधा, जिससे वैभव को प्रेम है (?), रूपा, जिसको वैभव से प्रेम है, और तीसरी है भाभी, जिसके लिए वैभव के मन में आदर है, लेकिन इस बदले हुए घटनाक्रम से बहुत कुछ संभव है। देखते हैं आगे क्या होता है!


आगे क्या होता है की बात करें, तो शुभम भाई, मैं कामदेव भाई की बात से सहमत हूँ

दो साल के ऊपर हो गए इस कहानी को शुरू हुए, और आपने अभी तक केवल 68 अपडेट लिखे हैं! मतलब करीब पाँच अपडेट प्रति दो महीनों में! इतने पर भी, और सभी शिक़वे शिकायतों के बीच भी, इस कहानी में अधिकतर पाठकों का अच्छा ख़ासा इंटरेस्ट रहा है, और अच्छी खासी चर्चा हुई है! आपसे अगर मैं खुद को कम्पेयर करूँ, तो 'मोहब्बत का सफ़र' में मैंने 20 महीने में 197 अपडेट लिखा है... कोई बारह लाख़ शब्द!

अब, दोनों कहानियों पर इंगेजमेंट देख लीजिए। फ़िर भी आपको न जाने किस बात की शिकायत है! सच में! आपने कह दिया कि इंगेजमेंट नहीं आ रही है, इसलिए आप अब और नहीं लिखेंगे। अच्छी बात है! मत लिखें।

लेकिन, हम जैसे पाठकों का क्या? हम जैसे पाठक, जो पूरे धैर्य से आपका इंतज़ार करते हैं, शिकायत नहीं करते, आपको ढाढ़स बँधाते हैं, समय ले कर रिव्यु भी लिखते हैं (nice update से कहीं इतर), इत्यादि! मेरी कहानी पर ऐसे गिन कर दस से भी कम पाठक हैं! वो साथ खड़े रहते हैं मेरे हमेशा! मैं तो उन्ही के लिए लिखता हूँ! उन्ही के फीडबैक सुनता हूँ!

क्या आपके लिए वो लोग अधिक मूल्यवान हैं जो आपसे कोई डायलॉग नहीं करते... आपसे केवल लेते रहते हैं, या फिर वो जो आपके साथ चट्टान की भाँति खड़े रहते हैं? असल जीवन में भी ऐसा ही रवैया रखते हैं क्या आप? सड़क पर चलने वाला अनजान आपके लिए आपके परिवार से अधिक वैल्यू रखता है क्या (माना की इस आभासी दुनिया में आपका कौन सा सगा है यहाँ, लेकिन हमने तो आपका साथ नहीं छोड़ा कभी)?

अगर नहीं, तो ये बाल-हठ छोड़िए। ये नहीं हो सकता कि महीनों महीनों आप कुछ न लिखें, और अचानक ही कुछ लिखते ही लोग उसको हाथों- हाथ ले लें। ये उम्मीद रखना मूर्खता है। इंगेजमेंट आने में समय तो लगता ही है। अगर उतना धैर्य नहीं है, तो मत लिखिए!

मत लिखिए, लेकिन न लिखने के सही कारण रखिए

बाकी, अपना ख़याल रखिए। अगर इस पोस्ट के बाद मैं आपकी 'ignore list' में जाने से बचा रहा, तो आगे भी बात होती रहेगी!
शुभम भाई मैं कामदेव भाई और avsji भाई की बातो से सहमत हूं
हमने भी तो इतने दिन wait किया है आपकी इस स्टोरी का इस स्टोरी को चालू करने के लिए messege भी किए क्या वो इसलिए किए थे कि आप स्टोरी चालू करो और हम कोई रिव्यू नही देगे जैसे आपको प्रोब्लम होती है वैसे ही रीडर को भी होती हैं जैसे ही उसको टाइम मिलता है वह आपकी अपडेट पड़कर रिव्यू दे देता है थोड़ा इंतजार तो करना पड़ेगा बाकी आपकी मर्जी स्टोरी आपकी है लिखना या नही लिखना आपके हाथ में है इंतजार तो हम प्रीतम दा की स्टोरी का भी कर रहे हैं आपकी का भी कर लेंगे कि शायद कभी अपडेट आ जाए
 
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Ajju Landwalia

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अध्याय - 68
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अब तक....

कुंदनपुर नाम के गांव में चाची के पिता धर्मराज सिंह चौहान के पूर्वज भी ज़मींदार हुआ करते थे। आज के समय में जमींदारी तो नहीं है किंतु उनके विशाल भू भाग पर आज भी गांव के लोग मजदूरी कर के अपना जीवन यापन करते हैं। कुंदनपुर में एक प्राचीन देवी मंदिर है जहां पर हर साल नवरात्र के महीने में विशाल मेला लगता है। आस पास के गावों में जितने भी संपन्न ज़मींदार थे वो सब बड़े बड़े अवसरों पर बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित करते थे। ऐसे ही एक अवसर पर धर्मराज सिंह चौहान ने बड़े दादा ठाकुर को आमंत्रित किया था। बड़े दादा ठाकुर ने वहीं पर मेनका चाची को देखा था। मेनका चाची अपने नाम की तरह ही बेहद सुंदर थीं। बड़े दादा ठाकुर ने देर न करते हुए फ़ौरन ही धर्मराज से उनकी बेटी का हाथ अपने छोटे बेटे जगताप के लिए मांग लिया था। अब क्योंकि ऊपर वाला भी यही चाहता था इस लिए जल्दी ही मेनका चाची हवेली में छोटी बहू बन कर आ गईं।

तो दोस्तो ये था मेरे दोनों ननिहाल वालों का संक्षिप्त परिचय।


अब आगे....


"हालात बेहद ही ख़राब हो गए हैं बड़े भैया।" चिमनी के प्रकाश में नज़र आ रहे मणि शंकर के चेहरे की तरफ देखते हुए हरि शंकर ने गहरी सांस लेते हुए कहा____"दादा ठाकुर ने तो आस पास के सभी गांवों में ये ऐलान भी करवा दिया है कि अगर चौबीस घंटे के अंदर हमने खुद को उनके सामने समर्पण नहीं किया तो वो हमारे घर की बहू बेटियों के साथ बहुत बुरा सुलूक करेंगे।"

"हरि चाचा सही कह रहे हैं पिता जी।" चंद्रभान ने गंभीर भाव से कहा____"अगर हम अब भी इसी तरह छुपे बैठे रहे तो यकीनन बहुत बड़ा अनर्थ हो जाएगा। हमें दादा ठाकुर के पास जा कर उन्हें ये बताना ही होगा कि उनके छोटे भाई और बड़े बेटे के साथ जो हुआ है उसके ज़िम्मेदार हम नहीं हैं।"

"हां बड़े भैया।" हरि शंकर ने कहा____"हमें अपनी सच्चाई तो बतानी ही चाहिए। ऐसे में तो वो यही समझते रहेंगे कि वो सब हमने किया है। अपनों को खोने का दुख जब बर्दास्त से बाहर हो जाता है तो परिणाम बहुत ही भयानक होता हैं। इस तरह से खुद को छुपा कर हम खुद ही अपने आपको उनकी नज़र में गुनहगार साबित कर रहे हैं। ये जो ऐलान उन्होंने करवाया है उसे हल्के में मत लीजिए। अगर हम सब फ़ौरन ही उनके सामने नहीं गए तो फिर कुछ भी सम्हाले नहीं सम्हलेगा।"

"मुझे तो आपका ये फ़ैसला और आपका ये कहना पहले ही ठीक नहीं लगा था पिता जी कि हम सब कहीं छुप जाएं।" चंद्रभान ने जैसे खीझते हुए कहा____"मुझे अभी भी समझ नहीं आ रहा कि ऐसा करने के लिए आपने क्यों कहा और फिर हम सब आपके कहे अनुसार यहां क्यों आ कर छुप गए? अगर हरि चाचा जी का ये कहना सही है कि हमने कुछ नहीं किया है तो हमें किसी से डर कर यूं एक साथ कहीं छुपने की ज़रूरत ही नहीं थी।"

"हम मानते हैं कि हमारा उस समय ऐसा करने का फ़ैसला कहीं से भी उचित नहीं था।" मणि शंकर ने गहरी सांस ले कर कहा____"लेकिन मौजूदा हालात को देख कर हमें यही करना सही लगा था और ऐसा करने का कारण भी था।"

"भला ऐसा क्या कारण हो सकता है पिता जी?" चंद्रभान के चेहरे पर हैरत के भाव उभर आए, बोला____"मैं ये बिल्कुल भी मानने को तैयार नहीं हूं कि बिना किसी वजह के दादा ठाकुर हमारे साथ कुछ भी ग़लत कर देते।"

"यही तो तुम में ख़राबी है बेटे।" मणि शंकर ने सिर उठा कर चंद्रभान की तरफ देखा, फिर कहा____"तुम सिर्फ वर्तमान की बातों को देख कर कोई नतीजा निकाल रहे हो जबकि हम वर्तमान के साथ साथ अतीत की बातों को मद्दे नज़र रख कर भी सोच रहे हैं। हमारा गांव ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांव वाले भी जानते हैं कि हवेली वालों से हमारे संबंध कभी भी बेहतर नहीं रहे थे। अब अगर हमने अपने संबंधों को बेहतर बना लिया है तो ज़रूर इसके पीछे कोई न कोई ऐसी वजह ज़रूर हो सकती है जिसके बारे में बड़ी आसानी से हर कोई अंदाज़ा लगा सकता है। भले ही वो लोग अंदाज़ा ग़लत ही क्यों न लगाएं पर हम दोनों परिवारों की स्थिति के मद्दे नज़र हर किसी का ऐसा सोचना जायज़ भी है। यानि हर कोई यही सोचेगा कि हमने हवेली वालों से अपने संबंध इसी लिए बेहतर बनाए होंगे ताकि कभी मौका देख कर हम पीठ पर छूरा घोंप सकें। अब ज़रा सोचो कि अगर हर कोई हमारे बारे में ऐसी ही सोच रखता है तो ज़ाहिर है कि ऐसी ही सोच दादा ठाकुर और उसके परिवार वाले भी तो रखते ही होंगे। दादा ठाकुर के छोटे भाई और बड़े बेटे के साथ जो हुआ है उसे भले ही हमने नहीं किया है लेकिन हर व्यक्ति के साथ साथ हवेली वाले भी यही सोच बैठेंगे होंगे कि ऐसा हमने ही किया है। इंसान जब किसी चीज़ को सच मान लेता है तो फिर वो कोई दूसरा सच सुनने या जानने का इरादा नहीं रखता बल्कि ऐसे हालात में तो उसे बस बदला लेना ही दिखता है। अब सोचो कि अगर ऐसे में हम सब अपनी सफाई देने के लिए उनके सामने जाते तो क्या वो हमारी सच्चाई सुनने को तैयार होते? हमारा ख़याल है हर्गिज़ नहीं, बल्कि वो तो आव देखते ना ताव सीधा हम सबकी गर्दनें ही उड़ाना शुरू कर देते। यही सब सोच कर हमने ये फैसला लिया था कि ऐसे ख़तरनाक हालात में ऐसे व्यक्ति के सामने जाना बिल्कुल भी ठीक नहीं है जो हमारे द्वारा कुछ भी सुनने को तैयार ही न हो। हम जानते हैं कि इस वक्त वो इस सबकी वजह से बेहद दुखी हैं और बदले की आग में जल भी रहे हैं किंतु हम तभी उनके सामने जा सकते हैं जब उनके अंदर का आक्रोश या गुस्सा थोड़ा ठंडा हो जाए। कम से कम इतना तो हो ही जाए कि वो हमारी बातें सुनने की जहमत उठाएं।"

"तो क्या आपको लगता है कि आपके ऐसा करने से दादा ठाकुर का गुस्सा ठंडा हो जाएगा?" चंद्रभान ने मानों तंज करते हुए कहा____"जबकि मुझे तो ऐसा बिल्कुल भी नहीं लगता पिता जी। मैं ये मानता हूं कि हर किसी की तरह हवेली वाले भी हमारे संबंधों को सुधार लेने के बारे में ऐसा ही सब कुछ सोचते होंगे लेकिन माजूदा हालात में आपके ऐसा करने से उनकी वो सोच तो यकीन में ही बदल जाएगी। बदले की आग में झुलसता इंसान ऐसे में और भी ज़्यादा भयानक रूप ले लेता है। अगर उसी समय हम सब उनके पास जाते और उनसे अपनी सफाई देते तो ऐसा बिल्कुल नहीं हो जाता कि वो हम में से किसी की कोई बात सुने बिना ही हम सबको मार डालते। देर से ही सही लेकिन वो भी ये सोचते कि अगर हमने ही चाचा भतीजे की हत्या की होती तो अपनी जान को ख़तरे में डाल कर उनके पास नहीं आते।"

"चंद्र बिल्कुल सही कह रहा है बड़े भैया।" हरि शंकर ने सिर हिलाते हुए कहा____"उस समय हमें दादा ठाकुर के पास ही जाना चाहिए था। ऐसे में सिर्फ हवेली वाले ही नहीं बल्कि आस पास के सभी गांव वाले भी हमारे बारे में यही सोचते कि अगर हम ग़लत होते तो मरने के लिए दादा ठाकुर के पास नहीं आते बल्कि अपनी जान बचा कर कहीं भाग जाते। पर अब, अब तो हमने खुद ही ऐसा कर दिया है कि उन्हें हमें ही हत्यारा समझना है और ग़लत क़रार देना है। सच तो ये है बड़े भैया कि पहले से कहीं ज़्यादा बद्तर हालातों में घिर गए हैं हम सब और इससे भी ज़्यादा बुरा तब हो जाएगा जब हम में से कोई भी उनके द्वारा ऐसा ऐलान करवाने पर भी उनके सामने खुद को समर्पण नहीं करेगा।"

"वैसे देखा जाए तो बड़े शर्म की बात हो गई है हरि भैया।" शिव शंकर ने कुछ सोचते हुए कहा____"हम सभी मर्द लोग अपनी अपनी जान बचाने के चक्कर में यहां आ कर छुप के बैठ गए और वहां घर में अपनी बहू बेटियों को हम दादा ठाकुर के क़हर का शिकार बनने के लिए छोड़ आए। वो भी सोचती होंगी कि कैसे कायर और नपुंसक लोग हैं हमारे घर के सभी मर्द। इतना ही नहीं बल्कि ऐसे में तो उन लोगों ने भी यही मान लिया होगा कि हमने ही जगताप और अभिनव की हत्या की है और अब अपनी जान जाने के डर से कहीं छुप गए हैं। जीवन में पहली बार मुझे ऐसा महसूस हो रहा है जैसे मैं सच में ही कायर और नपुंसक हूं।"

"अगर तुमसे ये सब नहीं सहा जा रहा।" मणि शंकर ने नाराज़गी वाले लहजे में कहा____"तो चले जाओ यहां से और दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण कर दो।"

"अकेला तो कोई भी खुद को समर्पण करने नहीं जाएगा बड़े भैया।" शिव शंकर ने कहा____"बल्कि हम सभी को जाना पड़ेगा। दादा ठाकुर का ऐलान तो हम सबने सुन ही लिया है। अब अगर हमें अपने घर की बहू बेटियों को सही सलामत रखना है तो वही करना पड़ेगा जो वो चाहते हैं।"

"बिल्कुल।" गौरी शंकर ने जैसे सहमति जताते हुए कहा____"हम सबको कल सुबह ही अपने गांव जा कर दादा ठाकुर के सामने खुद को समर्पण करना होगा। मेरा ख़याल है दादा ठाकुर के अंदर का आक्रोश अब तक थोड़ा बहुत तो शांत हो ही गया होगा। उनके जान पहचान वालों ने यकीनन उन्हें ऐसे वक्त में धैर्य और संयम से काम लेने की सलाह दी होगी। वैसे, बड़े भैया ने इस तरह का फ़ैसला ले कर भी ग़लत नहीं किया था। उस वक्त यकीनन यही करना बेहतर था और यही बातें हम दादा ठाकुर से भी कह सकते हैं। मुझे पूरा यकीन है कि अब वो सबके सामने हमारी बातें पूरे धैर्य के साथ सुनेंगे और उन पर विचार भी करेंगे।"

"और तो सब ठीक है।" पास में ही खड़े रूपचंद्र ने झिझकते हुए कहा____"लेकिन उस वैभव का क्या? मान लिया कि दादा ठाकुर आप सबकी बातों को धैर्य से सुनने के बाद आपकी बातों पर यकीन कर लेंगे मगर क्या वैभव भी यकीन कर लेगा? आप सब तो जानते ही हैं कि वो किस तरह का इंसान है। अगर उसने हमारे साथ कुछ उल्टा सीधा किया तब क्या होगा?"

"मुझे लगता है कि तुम बेवजह ही उसके लिए चिंतित हो रहे हो।" हरि शंकर ने कहा____"जबकि हम सबने ये भली भांति देखा है कि पिछले कुछ समय से उसका बर्ताव पहले की अपेक्षा आश्चर्यजनक रूप से बेहतर नज़र आया है। वैसे भी अब वो दादा ठाकुर के किसी भी फ़ैसले के खिलाफ़ जाने की हिमाकत नहीं करेगा।"

"अगर ऐसा ही हो तो इससे बेहतर कुछ है ही नहीं।" रूपचंद्र ने कहा____"लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि उसने जान बूझ कर तथा कुछ सोच कर ही अपने बर्ताव को ऐसा बना रखा हो। अब क्योंकि उसके चाचा और बड़े भाई की हत्या हुई है तो वो पूरी तरह पहले जैसा बन कर हम पर क़हर बन कर टूट पड़े।"

"जो भी हो।" हरि शंकर ने कहा____"पर इसका मतलब ये तो नहीं हो सकता ना कि ये सब सोच कर हम सब खुद को दादा ठाकुर के सामने समर्पण करने का अपना इरादा ही बदल दें। आने वाले समय में क्या होगा ये बाद की बात है लेकिन इस वक्त सबसे ज़्यादा ज़रूरी यही है कि हम सब दादा ठाकुर के सामने अपनी स्थिति को साफ कर लें अन्यथा इसके बहुत ही बुरे परिणामों से हमें रूबरू होना होगा।"


✮✮✮✮

उस समय रात के क़रीब ग्यारह बजने वाले थे। बैठक में अभी भी सब लोग बैठे हुए थे। खाना पीना खाने से सभी ने इंकार कर दिया था इस लिए बनाया भी नहीं गया था। मैं भाभी के लिए कुछ ज़्यादा ही फिक्रमंद था इस लिए उन्हीं के कमरे में उनके पास ही बैठा हुआ था। कमरे में लालटेन का मध्यम प्रकाश था। हमेशा की तरह बिजली इस वक्त भी नहीं थी। ख़ैर लालटेन की रोशनी में मैं साफ देख सकता था कि भाभी का चेहरा एकदम से बेनूर सा हो गया था। अपने पलंग पर वो मेरे ही ज़ोर देने पर लेटी हुई थीं और मैं उनके सिरहाने पर बैठा उनके माथे को हल्के हल्के दबा रहा था। ऐसा पहली बार ही हो रहा था कि मैं रात के इस वक्त उनके कमरे में उनके इतने क़रीब बैठा हुआ था। इस वक्त मेरे ज़हन में उनके प्रति कोई भी ग़लत ख़याल आने का सवाल ही नहीं था। मुझे तो बस ये सोच कर दुख हो रहा था कि उनके जैसी सभ्य सुशील संस्कारी और पूजा आराधना करने वाली औरत के साथ ऊपर वाले ने ऐसा क्यों कर दिया था? इस हवेली के अंदर एक मैं ही ऐसा इंसान था जिसने जाने कैसे कैसे कुकर्म किए थे इसके बाद भी मैं सही सलामत ज़िंदा था जबकि मुझ जैसे इंसान के साथ ही बहुत बुरा होना चाहिए था।

"व...वैभव??" अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि सहसा तभी गहरे सन्नाटे में भाभी के मुख से धीमी सी आवाज़ निकली तो मैं एकदम से सम्हल गया और जल्दी ही बोला____"जी भाभी, मैं यहीं हूं। आपको कुछ चाहिए क्या?"

"तु...तुम कब तक ऐसे बैठे रहोगे?" भाभी ने उठने की कोशिश की तो मैंने उन्हें लेटे ही रहने को कहा तो वो फिर से लेट गईं और फिर बोलीं____"अपने कमरे में जा कर तुम भी सो जाओ।"

"मुझे नींद नहीं आ रही भाभी।" मैंने कहा____"वैसे भी मैं आपको अकेला छोड़ कर कहीं नहीं जाऊंगा। आप आराम से सो जाइए। मैं आपके पास यहीं बैठा रहूंगा।"

"क्..क्या तुम्हें इस बात का डर है कि मैं अपने इस दुख के चलते कहीं कुछ कर न बैठू?" भाभी ने लेटे लेटे ही अपनी गर्दन को हल्का सा ऊपर की तरफ कर के मेरी तरफ देखते हुए कहा।

"मैं भैया को खो चुका हूं भाभी।" मेरी आवाज़ एकदम से भारी हो गई____"लेकिन आपको नहीं खोना चाहता। अगर आपने कुछ भी उल्टा सीधा किया तो जान लीजिए आपका ये देवर सारी दुनिया को आग लगा देगा। किसी को भी ज़िंदा नहीं छोडूंगा मैं। इस गांव में लाशें ही लाशें पड़ी दिखेंगी।"

"इस दुनिया से तो सबको एक दिन चले जाना है वैभव।" भाभी ने उसी तरह मुझे देखते हुए अपनी मुर्दा सी आवाज़ में कहा____"तुम्हारे भैया चले गए, किसी दिन मैं भी चली जाऊंगी।"

"ऐसा मत कहिए न भाभी।" मैंने दोनों हथेलियों में उनका चेहरा ले कर अपनी नम आंखों से उन्हें देखते हुए कहा____"आप मुझे छोड़ कर कहीं नहीं जाएंगी। अगर आपके दिल में मेरे लिए ज़रा सा भी स्नेह और प्यार है तो उस स्नेह और प्यार के खातिर आप मुझे छोड़ कर कहीं जाने का सोचिएगा भी मत। आपको क़सम है मेरी।"

"ठीक है।" भाभी ने अपना एक हाथ पीछे की तरफ ला कर मेरा दायां गाल सहला कर कहा____"लेकिन मेरी भी एक शर्त है।"

"आप बस बोलिए भाभी।" मैंने एक हाथ से उनके उस हाथ को थाम लिया____"वैभव ठाकुर अपनी जान दे कर भी आपकी शर्त पूरी करेगा।"

"नहीं।" भाभी ने झट से मेरे हाथ से अपना हाथ छुड़ा कर मेरे मुख पर रख दिया, फिर बोलीं___"ख़बरदार,अपनी जान देने वाली बातें कभी मत करना। इस हवेली और हवेली में रहने वालों के लिए तुम्हें हमेशा सही सलामत रहना है वैभव।"

"तो आप भी कभी कहीं जाने की बातें मत कहिएगा मुझसे।" मैंने कहा____"मैं हमेशा अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी भाभी को अपने पास सही सलामत देखना चाहता हूं। आप इस हवेली की आन बान शान हैं भाभी। ये तो मेरे बस में ही नहीं है कि मैं उस ऊपर वाले के फ़ैसलों को बदल दूं वरना मैं तो कभी भी अपनी भाभी के चांद जैसे चेहरे पर दाग़ न लगने दूं।"

"इतनी बड़ी बड़ी बातें मत किया करो वैभव।" भाभी ने फिर से मेरे दाएं गाल को सहलाया, बोलीं____"ख़ैर मेरी शर्त तो सुन लो।"

"ओह! हां, माफ़ कीजिए।" मैंने जल्दी से कहा____"जी बताइए क्या शर्त है आपकी?"

"अगर तुम मुझे सही सलामत देखना चाहते हो।" भाभी ने मेरी आंखों में देखते हुए इस बार थोड़े सख़्त भाव से कहा____"तो उन लोगों की सांसें छीन लो जिन लोगों ने मेरे सुहाग को मुझसे छीना है। जब तक उन हत्यारों को मुर्दा बना कर मिट्टी में नहीं मिला दिया जाएगा तब तक तुम्हारी भाभी के दिल को सुकून नहीं मिलेगा।"

"ऐसा ही होगा भाभी।" मैंने फिर से उनके उस हाथ को थाम लिया, बोला____"मैं आपको वचन देता हूं कि जिन लोगों ने आपके सुहाग की हत्या कर के उन्हें आपसे छीना है उन लोगों को मैं बहुत जल्द भयानक मौत दे कर मिट्टी में मिला दूंगा।"

"एक शर्त और भी है।" भाभी ने कहा____"और वो ये है कि इस सबके चलते तुम खुद को खरोंच भी नहीं आने दोगे।"
"मैं पूरी कोशिश करूंगा भाभी।" मैंने कहा तो भाभी कुछ पलों तक मुझे देखती रहीं और फिर बोलीं____"अब जाओ अपने कमरे में और आराम करो।"

मैं अब आश्वस्त हो चुका था इस लिए उनके सिरहाने से उठा और उन्हें भी सो जाने को बोल कर कमरे से बाहर आ गया। दरवाज़े को आपस में भिड़ा कर मैं कुसुम के कमरे की तरफ बढ़ गया। बाहर से ही मैंने उसे आवाज़ दी तो जल्दी ही कुसुम ने दरवाज़ा खोला। उसकी हालत देख कर मेरा कलेजा कांप गया। वो मेरी लाडली बहन थी और इतना कुछ हो जाने के बाद भी मैं उसे समय नहीं दे पाया था। मैंने उसे पकड़ कर अपने सीने से छुपका लिया। मेरा ऐसा करना था कि उसकी सिसकियां छूट पड़ीं। मैंने किसी तरह उसे शांत किया और फिर भाभी के साथ रहने को बोल कर अपने कमरे की तरफ बढ़ चला।

अभी मैं गलियारे से मुड़ा ही था कि तभी विभोर ने मुझे पीछे से आवाज़ दी तो मैं ठिठक गया और फिर पलट कर उसकी तरफ देखा।

"क्या बात है?" मैंने उसके क़रीब आ कर पूछा____"तू अपने कमरे में सोने नहीं गया?"
"वो भैया मैं नीचे पेशाब करने गया था।" विभोर ने बुझे स्वर में कहा____"वहां मैंने ताऊ जी को बंदूक ले कर बाहर जाते देखा तो मैं यही बताने के लिए आपके कमरे की तरफ आ रहा था।"

"क्या सच कह रहा है तू?" मैं उसकी बात सुन कर चौंक पड़ा था____"और क्या देखा तूने?"
"बस इतना ही देखा भैया।" उसने कहा____"पर मुझे लगता है कि कुछ तो बात ज़रूर है वरना ताऊ जी रात के इस वक्त बंदूक ले कर बाहर क्यों जाएंगे?"

विभोर की बात बिलकुल सही थी। रात के इस वक्त पिता जी का बंदूक ले कर बाहर जाना यकीनन कोई बड़ी बात थी।

"ठीक है।" मैंने कहा____"तू अपने कमरे में जा। मैं देखता हूं क्या माजरा है।"
"मैं भी आपके साथ चलूंगा भैया।" विभोर ने इस बार आवेश युक्त भाव से कहा____"मुझे भी पिता जी और बड़े भैया के हत्यारों से बदला लेना है।"

"मैं तेरी भावनाओं को समझता हूं विभोर।" मैंने उसके चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा___"यकीन रख, चाचा और भैया के क़ातिल ज़्यादा देर तक जिन्दा नहीं रह सकेंगे। बहुत जल्द उनकी लाशें भी पड़ी नज़र आएंगी। तुझे और अजीत को हवेली में रह कर यहां सबका ख़याल भी रखना है और सबकी सुरक्षा भी करनी है।"

"पर भ...??" अभी वो कुछ कहने ही वाला था कि मैंने उसे चुप कराया और कमरे में जाने को कहा तो वो बेमन से चला गया। उसके जाते ही मैं तेज़ी से अपने कमरे में आया और अलमारी से पिता जी द्वारा दिया हुआ रिवॉल्वर ले कर उसी तेज़ी के साथ कमरे से निकल कर नीचे की तरफ बढ़ता चला गया।

मुझे नीचे आने में ज़्यादा देर नहीं हुई थी लेकिन बैठक में मुझे ना तो पिता जी नज़र आए और ना ही उनके मित्र अर्जुन सिंह। बैठक में सिर्फ भैया के चाचा ससुर, और मेरी दोनों ननिहाल के नाना लोग ही बैठे दिखे। दोनों जगह के मामा लोग भी नहीं थे वहां। मैं समझ गया कि सब के सब पिता जी के साथ कहीं निकल गए हैं। इससे पहले कि बैठक में बैठे उन लोगों की मुझ पर नज़र पड़ती मैं झट से बाहर निकल गया। बाहर आया तो एक दरबान के पास मैं ठिठक गया। उससे मैंने जब सख़्त भाव से पूछा तो उसने बताया कि कुछ देर पहले दो व्यक्ति आए थे। उन्होंने दादा ठाकुर को पता नहीं ऐसा क्या बताया था कि दादा ठाकुर जल्दी ही अर्जुन सिंह और मामा लोगों के साथ निकल गए।


✮✮✮✮

हवेली के बाहर वाले हिस्से में बने जिस कमरे में जगन को बंद किया गया था उस कमरे के बाहर दो व्यक्ति बैठे पहरा दे रहे थे। आज कल हवेली में जिस तरह के हालात बने हुए थे उसकी जानकारी हवेली के सभी नौकरों को थी इस लिए सुरक्षा और निगरानी के लिए वो सब पूरी तरह से चौकस और सतर्क थे।

"अबे ऊंघ क्यों रहा है?" लकड़ी की एक पुरानी सी स्टूल पर बैठे एक व्यक्ति ने अपने दूसरे साथी को ऊंघते देखा तो उसे हल्के से आवाज़ दी। उसकी आवाज़ सुन कर उसका दूसरा साथी एकदम से हड़बड़ा गया और फिर इधर उधर देखने के बाद उसकी तरफ देखने लगा।

"दिन में सोया नहीं था क्या तू?" पहले वाले ने उसकी तरफ देखते हुए पूछा_____"जो इस वक्त इस तरह से ऊंघ रहा है।"

"हां यार।" दूसरे ने सिर हिला कर अलसाए हुए भाव से कहा____"असल में तेरी भौजी की तबियत ठीक नहीं थी इस लिए दिन में उसे ले कर वैद्य के पास गया था। उसे कुछ आराम तो मिला लेकिन उसकी देख भाल के चक्कर में दिन में सोया ही नहीं। मां दो दिन पहले अपने मायके चली गई है जिसके चलते मुझे ही सब देखना पड़ रहा है।"

"हम्म्म्म मैं समझता हूं भाई।" पहले वाले ने कहा____"पर इस वक्त तो तुझे जागना ही पड़ेगा न भाई।"

"मुझे कुछ देर सो लेने दे यार।" दूसरे ने जैसे उससे विनती की_____"वैसे भी बंद कमरे से वो ना तो निकल सकता है और ना ही निकल कर कहीं जा सकता है। फिर तू तो है ही यहां पर तो थोड़ी देर सम्हाल ले न यार।"

"साले मरवाएगा मुझे।" पहले वाले ने उसे घूरते हुए कहा____"तुझे तो पता ही है कि आज कल हालात बहुत ख़राब हैं। ऐसे में अगर कुछ भी उल्टा सीधा हो गया तो समझ ले दादा ठाकुर हमारे जिस्मों से खाल उतरवा देंगे।"

"हां मैं जानता हूं भाई।" दूसरे ने सिर हिलाया____"पर भाई तू तो है ही यहां पर। थोड़ी देर सम्हाल ले ना। मुझे सच में ज़ोरों की नींद आ रही है। अगर कुछ हो तो मुझे जगा देना।"

पहले वाला कुछ देर तक उसकी तरफ देखता रहा फिर बोला____"ठीक है कुछ देर सो ले तू।"
"तेरा बहुत बहुत शुक्रिया मेरे यार।" दूसरा खुश होते हुए बोला।

"हां ठीक है।" पहला वाला स्टूल से उठा और फिर अपनी कमर में एक काले धागे में फंसी चाभी को निकाल कर उसकी तरफ बढ़ते हुए बोला_____"इसे पकड़ ज़रा। मैं मूत के आता हूं और हां सो मत जाना वरना गांड़ मार लूंगा तेरी।"

पहले वाले की बात सुन कर दूसरे ने हंसते हुए उसे गाली दी और हाथ बढ़ा कर उससे चाभी ले ली। उधर चाभी दे कर पहला वाला व्यक्ति मूतने के लिए उधर ही एक तरफ बढ़ता चला गया। उसके जाने के बाद उसने आस पास एक नज़र डाली और फिर एक नज़र बंद कमरे की तरफ डाल कर वो थोड़ा ढंग से स्टूल पर बैठ गया।

रात के इस वक्त काफी अंधेरा था। हवेली के बाहर कई जगहों पर मशालें जल रही थी जिनकी रोशनी से आस पास का थोड़ा बहुत दिख रहा था। जिस जगह पर ये दोनों लोग बैठे हुए थे उससे क़रीब पांच क़दम की दूरी पर एक मशाल जल रही थी।

पहले वाला व्यक्ति अभी मुश्किल से कुछ ही दूर गया रहा होगा कि तभी एक तरफ अंधेरे में से एक साया हल्की रोशनी में प्रगट सा हुआ और दूसरे वाले आदमी की तरफ बढ़ चला। दूसरा वाला हाथ में धागे से बंधी चाभी लिए बैठा हुआ था। उसका सिर हल्का सा झुका हुआ था। ऐसा लगा जैसे वो फिर से ऊंघने लगा था। इधर हल्की रोशनी में आते ही साया थोड़ा स्पष्ट नज़र आया।

जिस्म पर काले रंग की शाल ओढ़ रखी थी उसने किंतु फिर भी शाल के खुले हिस्से से उसके अंदर मौजूद सफ़ेद लिबास नज़र आ रहा था। सिर पर भी उसने शाल को डाल रख था और शाल के सिरे को आगे की तरफ कर के वो अपने चेहरे को छुपाए रखने का प्रयास कर रहा था। जैसे ही वो स्टूल में बैठे दूसरे वाले ब्यक्ति के क़रीब पहुंचा तो रोशनी में इस बार शाल के अंदर छुपा उसका चेहरा दिखा। सफ़ेद कपड़े से उसका चेहरा ढंका हुआ था। आंखों वाले हिस्से से उसकी आंखें चमक रहीं थी और साथ ही नाक और मुंह के पास छोटे छोटे छिद्र रोशनी में नज़र आए। ज़ाहिर है वो छिद्र सांस लेने के लिए थे।

रहस्यमय साए ने पलट कर एक बार आस पास का जायजा लिया और फिर तेज़ी से आगे बढ़ कर उसने दूसरे वाले व्यक्ति की कनपटी पर किसी चीज़ से वार किया। नतीज़ा, दूसरा व्यक्ति हल्की सिसकी के साथ ही स्टूल पर लुढ़कता नज़र आया। साए ने फ़ौरन ही उसे पकड़ कर आहिस्ता से स्टूल पर लेटा दिया। उसके बाद उसने उसके हाथ से चाभी ली और बंद कमरे की तरफ बढ़ चला।

पहले वाला व्यक्ति अच्छी तरह मूत लेने के बाद जब वापस आया तो वो ये देख कर बुरी तरह चौंका कि उसका दूसरा साथी स्टूल पर बड़े आराम से लुढ़का पड़ा सो रहा है और जिस कमरे में जगन को बंद किया गया था उस कमरे का दरवाज़ा खुला हुआ है। ये देखते ही मानों उसके होश उड़ गए। वो मशाल ले कर भागते हुए कमरे की तरफ गया और जब कमरे के अंदर उसे कोई नज़र ना आया तो जैसे इस बार उसके सिर पर गाज ही गिर गई। पैरों के नीचे की ज़मीन रसातल तक धंसती चली गई। शायद यही वजह थी कि वो अपनी जगह पर खड़ा अचानक से लड़खड़ा गया था किंतु फिर उसने खुद को सम्हाला और तेज़ी से बाहर आ कर वो अपने साथी को ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने लगा। उसका अपना चेहरा डर और ख़ौफ की वजह से फक्क् पड़ा हुआ था।

उसका दूसरा साथी जब उसके ज़ोर ज़ोर से हिला कर जगाने पर भी न जागा तो वो और भी ज़्यादा घबरा गया। उसका अपना जिस्म ये सोच कर ठंडा सा पड़ गया कि कहीं उसका साथी मर तो नहीं गया? हकबका कर वो एक तरफ को भागा और जल्दी ही हवेली के मुख्य दरवाज़े के पास पहुंच गया। मुख्य द्वार पर खड़े दरबान को उसने हांफते हुए सारी बात बताई तो उस दरबान के भी होश उड़ गए। उसने फ़ौरन ही अंदर जा कर बैठक में बैठे भैया के चाचा ससुर को सारी बात बताई तो बैठक में बैठे बाकी सब भी बुरी तरह उछल पड़े।



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Behad shandar update he TheBlackBlood Shubham Bhai,

Dada Thakur ko jarur kisi ne saahukaro ke thikane ki khabar di hogi..............ho sakta he ye khabar bhi safed naqabposh ke hi kisi aadmi ne gumraah karne ke maksad se di ho...........

Lekin itni jyaada security hone ke bavjood ho haveli ke andar aa gaya aur jagan ko utha kar le bhi gaya.................badi hi vichitra baat he...........

Keep posting Bhai
 

TheBlackBlood

शरीफ़ आदमी, मासूमियत की मूर्ति
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लेकिन, हम जैसे पाठकों का क्या? हम जैसे पाठक, जो पूरे धैर्य से आपका इंतज़ार करते हैं, शिकायत नहीं करते, आपको ढाढ़स बँधाते हैं, समय ले कर रिव्यु भी लिखते हैं (nice update से कहीं इतर), इत्यादि! मेरी कहानी पर ऐसे गिन कर दस से भी कम पाठक हैं! वो साथ खड़े रहते हैं मेरे हमेशा! मैं तो उन्ही के लिए लिखता हूँ! उन्ही के फीडबैक सुनता हूँ!

क्या आपके लिए वो लोग अधिक मूल्यवान हैं जो आपसे कोई डायलॉग नहीं करते... आपसे केवल लेते रहते हैं, या फिर वो जो आपके साथ चट्टान की भाँति खड़े रहते हैं? असल जीवन में भी ऐसा ही रवैया रखते हैं क्या आप? सड़क पर चलने वाला अनजान आपके लिए आपके परिवार से अधिक वैल्यू रखता है क्या (माना की इस आभासी दुनिया में आपका कौन सा सगा है यहाँ, लेकिन हमने तो आपका साथ नहीं छोड़ा कभी)?
Jab story puri ho jayegi to har din aap sabko ek ek update inbox me send karta rahuga...lekin ab unke liye thread me koi update post nahi karuga jo padh ke chup chaap nikal lete hain.... :declare:
बाकी, अपना ख़याल रखिए। अगर इस पोस्ट के बाद मैं आपकी 'ignore list' में जाने से बचा रहा, तो आगे भी बात होती रहेगी!
:nope: Aisa to nahi ho sakta apan se :innocent:
 
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