अभी तक मेरी कहानी “अपशगुनी” पढ़ने और उस पर अपने विचार रखने और उसकी समालोचना करने के लिए प्रिय पाठकों और पाठिकाओं
Riky007 ;
Aakash. ;
Shetan ;
vakharia ;
Mrxr ;
THE ETERNITY ;
Raj_sharma ;
DesiPriyaRai का बहुत बहुत धन्यवाद!
सभी की पाती का मैं अभी तक उत्तर नहीं दे सका हूँ क्योंकि सपरिवार घूमने में व्यस्त हूँ (जी, तीन बच्चों के साथ यह मौजमस्ती, घूमना-फिरना भी एक काम ही हो जाता है)! लेकिन शीघ्र ही वापस आ कर बड़ी फुर्सत से लम्बे वार्तालाप करूँगा।
कुछ मित्रों ने एक बात कही है कि अम्मा के व्यवहार में “
तीव्र परिवर्तन” (उनका एक आधुनिक और उदार विचारधारा वाली स्त्री से दकियानूसी सोच और अंधविश्वासों की ओर झुकाव) अविश्वसनीय लगता है।
संभव है कि ऐसा हो, लेकिन अभी तक, अपने चार दशकों+ लम्बे जीवन में मैंने जो देखा, उसके आधार पर मैं केवल यह की कहूँगा कि ऐसे बदलाव अक्सर तीव्र ही होते हैं।
यह परिवर्तन कई कारणों से हो सकता है, जैसे,
सामाजिक प्रभाव (कोई शहरी व्यक्ति जो उदार विचारों वाला हो, लेकिन किसी पिछड़े इलाके में जाकर वहाँ की परंपराओं और विश्वासों को अपनाने लगे),
निजी संकट और / या भावनात्मक उथल-पुथल (जब जीवन में कोई बड़ा संकट, जैसे नौकरी छूटना, पारिवारिक समस्या, या स्वास्थ्य संकट, आता है तो बहुत से व्यक्ति को अंधविश्वास की ओर चलने लगते हैं), और
धार्मिक या सांस्कृतिक पुनर्जागरण (अक्सर रिटायर्ड लोगों में देखा है कि काम से फुर्सत पा कर लोग अपने परंपरागत विश्वासों को अपना लेते हैं, जो कभी-कभी अंधविश्वास को बढ़ावा देता है)।
1970-80 के दशकों में पश्चिमी देशों से कितने ही लोग भारत / नेपाल / लंका / थाईलैंड इत्यादि देशों में आ कर हिप्पी बन रहे थे, और क्रिस्टल हीलिंग, ज्योतिष, और अन्य अंधविश्वास मानने लगे थे। जबकि इन दशकों में पश्चिम में वैज्ञानिक विचारधारा बहुत ऊँची थी। मानव अभी अभी चन्द्रमा पर उतरा था। कम्प्यूटर जैसी उच्च तकनीक लोगों को मुहैया हो रही थी।
कहानी में अम्मा के साथ भावनात्मक उथल-पुथल वाला किस्सा फिट बैठता है। बड़ी बहू के साथ अनबन है; मँझली बहू और बेटा अलग हो गए; छोटी बहू मन-मुताबिक गर्भ नहीं धारण कर पा रही है; उनको स्वयं स्वास्थ्य समस्या है! ऐसे में एक बुढ़िया ने आ कर अमरूद के पेड़ पर सारा दोष मंढ़ दिया... आए दिन (सामाजिक प्रभाव)! लोग अक्सर समस्याओं और अनिश्चितताओं में आसान जवाब तलाशते हैं। अम्मा को वो आसान जवाब अमरूद के पेड़ में मिला। यह भी संभव है कि अम्मा स्वभाव से controlling हो? ऐसे में जब उनका परिवार फल फूल और फैल रहा है, तो उनको लग रहा है कि उनका परिवार टूट रहा है। शायद उनको डर हो कि अगर घर में कोई न बचे, तो उनकी और उनके पति की देखभाल कौन करेगा (तीन बहुएँ, लेकिन एक भी उपलब्ध नहीं)! सोचिए थोड़ा इस बात को।
मैं मानता हूँ कि कहानी में कई किरदार develop नहीं हुए। सभी किरदारों को develop करना आवश्यक नहीं है, क्योंकि वो कहानी के सपोर्ट में होते हैं। इस कहानी में
बाल्यावस्था (गिल्लू; गोलू),
युवावस्था (युवा अम्मा; कथा-वाचक; गिल्लू), और
वृद्धावस्था (वृद्ध होती अम्मा) मुख्य किरदार हैं... और विचारधाराओं का टकराव कहानी की पृष्ठभूमि। अमरूद का पेड़ एक साक्ष्य है - इन अवस्थाओं का और उस पृष्ठभूमि का -- ठीक वैसे ही जैसे पृथ्वी के ध्रुवों पर जमी हुई बर्फ़ पृथ्वी पर होने वाली हर गतिविधि का साक्ष्य (या रिकॉर्ड) है।
कुछ पाठकों ने गलती से कथा-वाचक (मैं) को कहानी का नायक समझ लिया। जो कहानी सुनाए या जिसके नज़रिए से कहानी लिखी गई हो, वो ही नायक हो, यह ज़रूरी नहीं है।
आशा है कि कहानी पर की गई मुख्य टिप्पणियों पर सभी को संतोषजनक उत्तर मिले हों।
यह एक experimental story थी (
USC जैसी प्रतियोगिता के लिए कुछ विशेष ही करना चाहिए)! कभी किसी अचल वस्तु / जीव को आधार बना कर मैंने कोई कहानी नहीं गढ़ी! यह पहला अवसर था। कुछ पाठकों को अच्छी भी लगी।
मिलते हैं शीघ्र ही