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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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Vyom kyo shalaka ko chahega

Shalaka ko toh suyash chahta hain
Aur Iska MATLAB ab ye bhi huwa Ki
Aakriti suyash aur shalaka ke bich kabab Ki haddi hai.
Sorry dost galti se mistake ho gaya typing me?:esc:
Yess kabaab hi haddi hi nahi balki kabaab ka patthar bolo, na nigla jaaye na ugla jaaye:roll:
 

Raj_sharma

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Happy rakhna ending .
Kyoki sad rakhoge toh kabhi double read nahi kar payenge dil tutne ke dar se .
Chalo kosis jaroor karenge, per tab tak us dev-asur sangraam me kon bachega, kon marega ye nahi bata sakta, jo niyti me likha hai wahi hoga:declare:
 

Raj_sharma

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Raj_sharma

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Raj_sharma

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dhalchandarun

[Death is the most beautiful thing.]
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#127.

ध्वनि शक्ति:
(14 वर्ष पहले.......04 जनवरी 1988, सोमवार, 10:30, मानसरोवर झील, हिमालय)

त्रिशाल मानसरोवर झील के पास खड़े होकर उसे निहार रहा था।

झील का स्वच्छ नीला जल, सूर्य के प्रकाश में एक अद्भुत छटा बिखेर रहा था।

कुछ देर तक उस पवित्र नीले रंग के पानी को देखते रहने के बाद, त्रिशाल ने अपना सिर घुमाकर चारो ओर नजर डाली। इस समय दूर-दूर तक उसे कोई दिखाई नहीं दे रहा था।

यह देख त्रिशाल ने अपने बैग से एक छोटी सी गोली और एक डिबिया निकाल ली।

त्रिशाल ने गोली को खा लिया और डिबिया खोलकर उसमें रखे नीले रंग के द्रव को अपनी आँखों पर मल लिया।

यह दोनों वस्तुएं उसे ऋषि विश्वाकु ने दीं थीं।

गोली के प्रभाव से अब वह पानी में भी साँस ले सकता था और नीले द्रव के प्रभाव से अब वह किसी भी अदृश्य चीज को देख सकता था।

अब त्रिशाल मानसरोवर की ओर ध्यान से देखने लगा। नीले द्रव के प्रभाव से त्रिशाल को मानसरोवर के अंदर सीढ़ियां बनीं दिखाईं दीं।

त्रिशाल उन सीढ़ियों के पास पहुंच गया और इधर-उधर नजर घुमाने के बाद त्रिशाल ने सीढ़ियां उतरना शुरु कर दिया।

7-8 सीढ़ियां उतरते ही त्रिशाल पूरा का पूरा पानी में समा गया फिर भी वह इस स्वच्छ जल में लगातार सीढ़ियां उतर रहा था।

लगभग 100 सीढ़ियां उतरने के बाद त्रिशाल झील की तली तक पहुंच गया।

जिस जगह पर सीढियां समाप्त हो रहीं थीं, त्रिशाल को पानी में आर्क की आकृति में एक सोने का दरवाजा बना दिखाई दिया, जिस पर संस्कृत भाषा में शक्ति लोक लिखा था।

त्रिशाल उस द्वार से अंदर की ओर प्रवेश कर गया। अंदर किसी भी जगह पानी नहीं दिखाई दे रहा था।

झील का पूरा पानी द्वार पर ही रुका हुआ था। चारो ओर निस्तब्ध सन्नाटा छाया हुआ था।

तभी कुछ दूरी पर त्रिशाल को हवा में लहराता हुआ, एक बोर्ड दिखाई दिया, जिस पर कुछ आकृतियां बनीं थीं।

त्रिशाल उस बोर्ड वाली जगह पर पहुंच गया और बोर्ड पर बनी उन आकृतियों को ध्यान से देखने लगा।

बोर्ड पर सबसे ऊपर संस्कृत भाषा में एक श्लोक लिखा था- “ऊँ नमो भगवते……य नमः” और उस श्लोक के नीचे वि.. के अलग-अलग अस्त्रों को दर्शाया गया था।

“इस गोले में दर्शाये गये भगवान अस्त्रों का क्या मतलब है?” त्रिशाल बोर्ड को देखकर लगातार सोच रहा था- “कहीं ध्वनि शक्ति इन अस्त्रों से बने मायाजाल के अंदर तो नहीं है। लगता है आगे बढ़ना होगा। उसके बाद स्वयमेव सब कुछ पता चल जायेगा।”

यह सोच त्रिशाल आगे की ओर बढ़ गया।

लगभग 1 घंटे चलने के बाद त्रिशाल को एक ऊंचा सा पर्वत दिखाई दिया, त्रिशाल उस दिशा की ओर चल पड़ा।

पास जाने पर पता चला कि वह एक पर्वत नहीं है, बल्कि पर्वतों की एक पूरी श्रृंखला है।

त्रिशाल को 2 पर्वतों के बीच से होकर गुजरता हुआ, एक पक्का रास्ता दिखाई दिया। त्रिशाल उस रास्ते से पर्वत के दूसरी ओर चल दिया।

कुछ आगे चलने पर त्रिशाल को रास्ते में रखी एक 50 फुट लंबी गदा दिखाई दी।

“यह प्रभू की कौमोदकी गदा है, पर इसे इस प्रकार बीच रास्तें में क्यों रखा है?”

त्रिशाल ने गदा को उठाने की बहुत कोशिश की, पर गदा उठना तो दूर हिली तक नहीं।

थक-हार कर त्रिशाल आगे की ओर बढ़ गया।

पर कुछ आगे चलते ही त्रिशाल को रास्ता रोके एक विशाल चट्टान दिखाई दी, शायद वह किसी पहाड़ी से लुढ़ककर बीच रास्तें में आ गिरी थी।

वह चट्टान इस प्रकार रास्ते में गिरी थी कि अब एक भी व्यक्ति का बिना चट्टान हटाए, दूसरी ओर जा पाना सम्भव नहीं था।

पर इतनी बड़ी चट्टान को हटा पाना किसी मनुष्य के बस की बात नहीं थी।

त्रिशाल बहुत देर तक पर्वत के उस पार जाने की सोचता रहा, पर उसे कोई रास्ता समझ नहीं आया।

“यह पर्वत भी काफी सपाट और चिकना है, इस वजह से इस पर भी चढ़ा नहीं जा सकता....फिर उस पार कैसे जाऊं? मुझे नहीं लगता कि बिना दूसरी ओर गये, मुझे ध्वनि शक्ति मिलेगी?...कहीं यह चट्टान इस कौमोदकी गदा से तो नहीं टूटेगी? पर कैसे?...मैं तो इस गदा को हिला भी नहीं पा रहा।”

कुछ सोचकर त्रिशाल फिर एक बार गदा के पास आ गया और उसे ध्यान से देखने लगा, पर उस गदा में त्रिशाल को कुछ भी अनोखा नहीं दिखा।

तभी अचानक त्रिशाल को बोर्ड पर लिखा, वह मंत्र याद आ गया। अब त्रिशाल ने कौमोदकी गदा को हाथ लगाकर वह मंत्र पढ़ा- “ऊँ नमो भग..वते वा….य नमः”

मंत्र के पूरा होते ही गदा अपने आप हवा में उठी और तेजी से जा कर उस चट्टान से जा टकराई।

एक भयानक धमाका हुआ, और गदा के भीषण प्रहार से चट्टान पूरी तरह से चूर-चूर हो गयी।

अपना कार्य पूरा करते ही कौमोदकी गदा स्वतः ही हवा में विलीन हो गई। त्रिशाल अब आगे बढ़ गया।

उस पर्वत के आगे एक मैदान था, उस मैदान के एक किनारे एक बड़ा सा धनुष रखा दिखाई दे रहा था।

त्रिशाल चलते-चलते उस धनुष के पास पहुंच गया। धनुष का आकार भी 50 फिट के आसपास था, पर आसपास कहीं कोई तीर दिखाई नहीं दे रहा था।

“यह उन्हीं का दूसरा अस्त्र ‘शारंग धनुष’ है, अब इस का क्या काम हो सकता है यहां?....और यहां पर तो कोई तीर भी नहीं है, फिर इससे कौन से लक्ष्य का संधान करना है?” त्रिशाल ने धनुष से थोड़ा और आगे बढ़कर देखा।

आगे एक 400 फुट गहरी खांई थी और उस खांई में ज्वालामुखी का लावा बहता हुआ दिखाई दे रहा था।

उस खांई पर कोई भी पुल नहीं बना था। यह देख त्रिशाल थोड़ा घबरा गया।

“हे ईश्वर अब तुम ही मुझे इस खांई को पार करने में मदद करो।”

त्रिशाल काफी देर तक सोचता रहा और फिर थककर वहीं जमीन पर बैठ गया।

तभी उसे कौमोदकी गदा वाला दृश्य याद आ गया कि किस प्रकार मंत्र पढ़ने से उसके सामने की चट्टान गदा ने तोड़ दी थी।

यह सोच वह जमीन से उठा और अपने कपड़ों को झाड़कर फिर से धनुष के पास आ गया।
धनुष को छूकर त्रिशाल ने फिर वही मंत्र दोहराया, मंत्र के बोलते ही पता नहीं कहां से धनुष पर एक तीर नजर आने लगा।

तीर के धनुष पर चढ़ते ही, धनुष की प्रत्यंचा अपने आप खिंच गई और धनुष ने उस भारी-भरकम तीर को खांई के दूसरी ओर वाली जमीन पर फेंक दिया।

अब धनुष पर दूसरातीर नजर आने लगा था। यह देख त्रिशाल के दिमाग में एक विचार आया। वह धीरे-धीरे सहारा लेकर धनुष के ऊपर चढ़ गया।

तभी धनुष ने वो दूसरा तीर भी खांई के दूसरी ओर फेंक दिया और धनुष पर एक बार फिर नया तीर नजर आने लगा।

इस बार नये तीर के नजर आते ही त्रिशाल उस तीर की नोक को पकड़कर हवा में लटक गया।

कुछ ही क्षणों में धनुष ने इस तीर को भी खांई की ओर उछाल दिया, पर इस बार यह तीर अकेला नहीं था, उसके साथ था, उस तीर को पकड़कर लटका हुआ 'त्रिशाल' भी।

जैसे ही वह तीर खांई के दूसरी ओर पहुंचा, त्रिशाल छलांग लगा कर दूसरी ओर की जमीन पर कूद गया।

त्रिशाल के दूसरी ओर पहुंचते ही धनुष और तीर दोनों ही हवा में विलीन हो गये।

त्रिशाल फिर आगे बढ़ना शुरु हो गया। कुछ आगे चलने पर त्रिशाल को एक बहुत बड़ी सी किताब जमीन पर खड़ी हुई दिखाई दी।

उस किताब की जिल्द का कवर नारंगी रंग का था, जिस पर नीचे की ओर एक तलवार की खोखली आकृति बनी थी।

उस आकृति को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे इस किताब पर कोई तलवार जड़ी हुई थी जिसे उससे निकाल लिया गया हो।

किताब के ऊपर संस्कृत भाषा के बड़े अक्षरों में ‘ध्वनिका’ लिखा हुआ था।

किताब से कुछ दूरी पर एक 6 फुट का सोने का खंभा जमीन में गड़ा हुआ दिखाई दिया।

खंभे के ऊपरी सिरे पर एक त्रिशूल जैसी आकृति बनी थी।

त्रिशाल ने उस किताब को खोलने की बहुत कोशिश की, परंतु वह अपने इस प्रयास में सफल नहीं हो पाया।

“ये क्या ? यहां पर तो और कोई चीज है ही नहीं, फिर भला इस किताब को कैसे खोला जा सकता है।? और मुझे नहीं लगता कि बिना इस किताब को खोले मैं इस जगह से आगे बढ़ पाऊंगा।

त्रिशाल ने हर दिशा में देखते हुए सोचा। अगर मैं उस बोर्ड के हिसाब से चलूं तो मुझे इस भाग में भगवान की ‘नंदक तलवार’ दिखनी चाहिये थी। इस किताब पर भी तलवार की आकृति के समान ही, खाली जगह है। इसका मतलब तलवार मिलने के बाद ही यह किताब खुलनी चाहिये। पर तलवार यहां पर कहां.......?”

अभी त्रिशाल इतना ही सोच पाया था कि उसकी निगाह सोने के खंभे पर पड़ी- “कहीं यह खंभा तलवार की मूठ तो नहीं और तलवार जमीन में घुसी हुई हो? पर अगर यह तलवार की मूठ हुई तो तलवार का
आकार काफी बड़ा होगा और इतनी बड़ी तलवार इस किताब में नहीं लगेगी।”

त्रिशाल चलता हुआ उस खंभे के पास आ गया और उसे छूकर ध्यान से देखने लगा।

तभी त्रिशाल को जाने क्या सूझा कि उसने तलवार को पकड़ कर फिर से ...ष्णु के उस मंत्र का उच्चारण किया- ऊँ….नमः”

मंत्र का जाप करते ही वह सोने का खंभा जोर-जोर से हिलकर ऊपर की ओर उठने लगा।

त्रिशाल का सोचना बिल्कुल सही था। वह नंदक तलवार ही थी।

जब वह तलवार पूरी तरह से जमीन के बाहर आ गयी, तो उसका आकार किताब के खोखले स्थान के जैसा हो गया और वह तलवार स्वतः ही जाकर ध्वनिका के जिल्द पर फिट हो गयी।

तलवार के वहां लगते ही ध्वनिका का प्रथम पृष्ठ अपने आप खुल गया।
प्रथम पृष्ठ के खुलते ही ध्वनिका से एक जोर की ‘ऊँ’ की ध्वनि निकली, जो कि वहां के पूरे वातावरण में गूंज गयी।

तभी ध्वनिका का सफेद पृष्ठ एक चलचित्र के रुप में चलने लगा।

इस चलचित्र में एक बलशाली योद्धा कुछ राक्षसों से लड़ रहा था। वह योद्धा अपनी शक्ति से बड़ी-बड़ी चट्टानों को किसी खिलौने की तरह हाथ में उठाकर राक्षसों पर फेंक रहा था।

युद्ध अपने चरम पर था, परंतु उस योद्धा का पराक्रम देख त्रिशाल की पलकें भी नहीं झपक रहीं थीं।

तभी उस योद्धा के हाथ में एक सोने के समान चमकता हुआ पंचशूल दिखाई दिया, जिसमें से तेज बिजली निकल रही थी। :chandu:

योद्धा ने ‘ऊँ’ का जाप किया और वह पंचशूल लेकर हवा में उड़ गया। इतना दिखाकर वह चलचित्र बंद हो गया और इसी के साथ बंद हो गया ध्वनिका का वह पृष्ठ भी।

“वाह! कितना बलशाली योद्धा था, काश मेरी पुत्री का विवाह इस योद्धा से हो पाता।” त्रिशाल ने जैसे ही यह सोचा, ध्वनिका से तेज प्रकाश निकलकर, एक दिशा की ओर चल दिया।

उस प्रकाश की गति बहुत तेज थी। कुछ ही देर में वह प्रकाश सामरा राज्य में स्थित अटलांटिस वृक्ष में
समा गया।

त्रिशाल को कुछ समझ नहीं आया कि यह किताब क्या है? वह योद्धा कौन था? और ध्वनिका ने जो दृश्य त्रिशाल को दिखाया, उसका औचित्य क्या था?

अभी त्रिशाल आगे के बारे में सोच ही रहा था कि तभी नंदक तलवार अपने आप कहीं गायब हो गई, जो इस बात का द्योतक थी कि यह भाग पूर्ण हो चुका है। त्रिशाल यह देखकर आगे की ओर बढ़ गया।

आगे जाने पर त्रिशाल को एक बहुत बड़ी सी दीवार में एक दरवाजा दिखाई दिया। त्रिशाल उस दरवाजे में प्रवेश कर गया।

त्रिशाल के उस दरवाजें में प्रवेश करते ही वह दरवाजा कही गायब हो गया।

अब त्रिशाल ने स्वयं को एक बड़े से कमरे में पाया, परंतु उस कमरे से निकलने का कोई भी मार्ग नहीं था।

कमरे के बीचो बीच भगवान का सुदर्शन चक्र रखा हुआ था, जिसका आकार एक रथ के पहिये के बराबर था।

चक्र पूर्णतया रुका हुआ था। कमरे में और कुछ भी नहीं था। त्रिशाल को इस बार ज्यादा नहीं सोचना पड़ा।

त्रिशाल ने चक्र का हाथों से छूकर फिर से भगवान विष्णु के उसी मंत्र का उच्चारण किया- “ऊँ नमो……नमः”

मंत्र का उच्चारण करते ही सुदर्शन चक्र बहुत तेजी से नाचने लगा।

चक्र को नाचता देख त्रिशाल उससे थोड़ा दूर हट गया और चक्र से होने वाले किसी चमत्कार का इंतजार करने लगा।

चक्र धीरे-धीरे नाचता हुआ अपना आकार बढ़ाता जा रहा था। यह देख त्रिशाल कमरे के एक किनारे पर आ गया, पर चक्र के नाचने और बढ़ने की गति देखकर त्रिशाल समझ गया कि वह चक्र कुछ ही देर मे त्रिशाल के पास पहुंच जायेगा।

यह देख त्रिशाल घबरा गया और तेजी से उस चक्र से बचने का उपाय सोचने लगा।

पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था, क्यों कि ना तो उसके पास उस चक्र को रोकने का कोई उपाय था और ना ही उस कमरे में रहकर चक्र से बचा जा सकता था।

चक्र धीरे-धीरे अपना आकार बढ़ाते हुए, उसकी ओर बढ़ता जा रहा था।

त्रिशाल, चक्र का आकार बढ़ता देख यह तो समझ गया कि कुछ ही देर में चक्र उस कमरे की दीवारों को काट देगा, पर उससे पहले ही वह स्वयं चक्र का शिकार हो जायेगा।

त्रिशाल ने उस मंत्र का भी जाप किया, पर वह चक्र नहीं रुका। चक्र अब त्रिशाल से मात्र एक फुट की दूरी पर ही बचा था।

यह देख त्रिशाल ईश्वर से प्रार्थना करने लगा- “हे ईश्वर मुझे बचा लीजिये, मैं अपने कुल का आखिरी दीपक हूं, अगर मैं मर गया तो मेरे कुल का दीपक बुझ जायेगा।”

तभी दीपक शब्द को याद कर एकाएक त्रिशाल के दिमाग की बत्ती जल गयी- “दीपक...दीपक के नीचे तो अंधेरा रहता है। यानि जो दीपक सबको उजाला देता है, वह स्वयं के नीचे उजाला नहीं कर सकता।

यह सोच त्रिशाल की आँखें, उस नाच रहे सुदर्शन चक्र के नीचे की ओर गयी। चक्र के नीचे लगभग 1 फुट की जगह थी।

यह सोच त्रिशाल तेजी से जमीन पर लेट गया और चक्र के केन्द्र की ओर जाने लगा।

बाल-बाल बचा था त्रिशाल। अगर उसे यह विचार आने में एक पल की भी और देरी हो जाती, तो उसकी मृत्यु निश्चित थी।

चक्र ने अब कमरे की दीवारों को काटना शुरु कर दिया। दीवारों का मलबा तेजी से कमरे के अंदर गिरने लगा, पर त्रिशाल को ये पता था, इसलिये वह पहले ही लेटे-लेटे चक्र के केंद्र के पास पहुंच गया था।

दीवारों के कटने से कमरे में जोरदार आवाज उत्पन्न होने लगी। कुछ ही देर में चक्र ने कमरे की सारी दीवारों को काट दिया।

कमरे की दीवारों के कटते ही चक्र अपनी जगह से गायब हो गया।

त्रिशाल ने यह देख अब राहत की साँस ली और उठकर खड़ा हो गया ओर अपने वस्त्रों पर लगी धूल को साफ कर दीवारों के मलबे पर चढ़कर बाहर आ गया।

बाहर एक 200 फुट से भी ऊंचा सोने का कलश रखा था, जिस पर चढ़ने के लिये सीढ़ियां भी बनीं थीं। उस कलश के अलावा वहां कुछ भी नहीं था।

वह कलश इतना विशाल था कि उसमें पानी भरकर एक राज्य की प्यास बुझाई जा सकती थी।
त्रिशाल धीरे-धीरे उस कलश की सीढ़ियां चढ़ने लगा।

आखिरी सीढ़ी पर एक छोटा सा प्लेटफार्म बना था। प्लेटफार्म पर खड़े हो कर त्रिशाल ने कलश के अंदर ओर झांका, अंदर उसे पानी की झलक मिली, मगर अंदर धुप्प अंधेरा था।

त्रिशाल बिना भयभीत हुए उस सोने के कलश में कूद गया।

‘छपाक’ की आवाज के साथ उसका शरीर पानी से टकराया।

तभी त्रिशाल को पानी की तली में एक रोशनी सी दिखी। त्रिशाल एक डुबकी लगा कर उस रोशनी के पीछे चल पड़ा।

कुछ ही देर में त्रिशाल उस रोशनी के पास था। कलश की तली में ‘पाञचजन्य शंख’ रखा था।

वह रोशनी उसी से प्रस्फुटित हो रही थी। वह शंख भी आकार में विशाल था।

त्रिशाल उस शंख के पास पहुंचकर उसे ध्यान से देखने लगा।

जिस ओर से शंख को बजाया जाता है, त्रिशाल को उस ओर एक मनुष्य के घुसने बराबर एक छेद दिखाई दिया। त्रिशाल उस छेद में प्रवेश कर गया।

अंदर से शंख की दीवारें बहुत चिकनी दिख रहीं थीं, इसलिये त्रिशाल अपने पैरों को जमा-जमा कर शंख में चलने की कोशिश कर रहा था।

तभी त्रिशाल को ‘ऊँ’ की एक धीमी आवाज शंख में गूंजती हुई सुनाई दी।

“शंख में यह आवाज कहां से आ रही है? कहीं यही तो ध्वनि शक्ति नहीं?” यह सोच त्रिशाल उस ध्वनि की दिशा में चल पड़ा।

कुछ आगे जाने पर एक बहुत गहरी और चिकनी ढलान दिखाई दी। इस ढलान का अंत कहीं नहीं दिख रहा था।

यह देख त्रिशाल थोड़ा भयभीत हो गया।

तभी त्रिशाल का पैर चिकनी सतह पर फिसल गया और वह ढलान पर बहुत तेजी से फिसलने लगा।
त्रिशाल के मुंह से चीख की आवाज निकल गई।

त्रिशाल लगातार फिसलता जा रहा था। ऐसा लग रहा था कि जैसे उस फिसलन का कहीं अंत ही नहीं है।
लगभग 10 मिनट तक इसी तरह फिसलने के बाद त्रिशाल एक कोमल सी वस्तु पर गिरा, पर उस जगह इतना अंधेरा था कि त्रिशाल को कुछ दिखाई ही नहीं दे रहा था कि वह कहां पर आकर गिरा है?

तभी त्रिशाल को कहीं पानी में एक बूंद के गिरने की आवाज सुनाई दी। इस बूंद की आवाज के साथ चारो ओर प्रकाश फैल गया।

प्रकाश के फैलते ही त्रिशाल को नजर आया कि वह एक विशाल कमल के फूल पर गिरा पड़ा है। तभी ‘ऊँ’ की आवाज पुनः आने लगी।

इस बार वह आवाज कमल के फूल के अंदर से आती हुई प्रतीत हुई।

तभी कमल के फूल की पंखंड़ियों ने स्वतः बंद हो कर त्रिशाल को अपने अंदर समा लिया।

अब तेज रोशनी और ‘ऊँ’ की आवाज त्रिशाल को अपने शरीर में समाहित होती हुई सी प्रतीत हुई।

त्रिशाल ने अपनी आँखें जोर से बंद कर लीं।

कुछ देर बाद जब हर ओर से आवाज आनी बंद हो गयी, तो त्रिशाल ने अपनी आँखें खोलीं। उसने अपने आप को मानसरोवर झील के किनारे पड़ा हुआ पाया।

तभी उसे अपने शरीर के अंदर किसी विचित्र शक्ति का अहसास हुआ। यह विचित्र अनुभव ये समझने के लिये पर्याप्त था कि त्रिशाल को ध्वनि शक्ति प्राप्त हो गई है।

यह महसूस कर त्रिशाल के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी और वह योग गुफा की ओर चल दिया।


Jaari Rahega……
Update pura adventure se bhara hua tha, kahin ye Trishal... Trikali ka pita toh nahi hai, yadi ha toh phir uski wish jaldi hi puri hone wali hai, kyunki Vyom Samra rajya mein hi hai. Ye naam bhi aapne ajeeb ajeeb sa rakha hua hai ek baar mein jyadatar yaad hi nahi aata hai???

Khair wo sound power ko kisliye pane ke liye gaya tha??
 

Raj_sharma

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Update pura adventure se bhara hua tha, kahin ye Trishal... Trikali ka pita toh nahi hai, yadi ha toh phir uski wish jaldi hi puri hone wali hai, kyunki Vyom Samra rajya mein hi hai. Ye naam bhi aapne ajeeb ajeeb sa rakha hua hai ek baar mein jyadatar yaad hi nahi aata hai???

Khair wo sound power ko kisliye pane ke liye gaya tha??
Bhai English wale naam to samajh gaya, lekin, trisaal, trikaali ye sab to hindi naam hai🤣 khair tumhara andaja jaayaj hai, aur sahi bhi, ye baat aane wale updates me saamne aayegi, agala update bhi de chuka hu, and us se agla aaj saam ya raat ko dunga :approve:
Thank you so much for your wonderful review and support bhai :hug:
 

Raj_sharma

यतो धर्मस्ततो जयः ||❣️
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#129.

शलाका ने त्रिशूल को अपने मस्तक से लगा कर कुछ देर के लिये आँखें बंद कर लीं।

कुछ देर बाद शलाका ने अपनी आँखें खोलीं और कहा- “क्षमा करना क्रिस्टी, पर ऐलेक्स को मैं ढूंढ पाने में असमर्थ हूं, शायद वह पृथ्वी के किसी भी भाग में उपस्थित नहीं है।”

“क्या वो......मर चुका है?” क्रिस्टी ने डरते-डरते पूछा।

“नहीं...वो मरा नहीं है, पर शायद वह किसी ऐसे लोक में है, जो पृथ्वी की सतह से परे है। चिंता ना करो क्रिस्टी, ईश्वर ने चाहा तो वह जल्द ही तुमसे आकर मिलेगा।” शलाका ने क्रिस्टी को सांत्वना देते हुए कहा-
“तुम्हारी दूसरी इच्छा मैं पूरी किये देती हूं।”

कहकर शलाका ने पुनः अपना हाथ हवा में हिलाया। जिससे शैफाली को छोड़ वहां खड़े सभी लोगों के शरीर पर पहनी ड्रेस बदल गयी।

सभी की नयी ड्रेसेज, उनकी पसंद की थीं।

“तुम्हें कुछ नहीं चाहिये क्या आर्यन?” शलाका ने सुयश की आँखों में झांकते हुए प्यार से पूछा।

“मुझे तो सिर्फ सवालों के जवाब चाहिये बस।” सुयश ने कहा।

“पूछो...क्या पूछना चाहते हो?” शलाका ने कहा- “जहां तक सम्भव होगा, मैं तुम्हारे सवालों का जवाब दूंगी।”

“क्या मैं पिछले जन्म में आर्यन था?” सुयश ने पहला प्रश्न किया।

“हां, तुम्हारे पिछले जन्म का नाम आर्यन था।” शलाका ने जवाब दिया।

“तुमने कहा कि तुम 5000 वर्ष से मुझसे दूर थी। तो अगर मैं 5000 वर्ष पहले मर गया था तो इतने वर्षों के बाद मेरा जन्म क्यों हुआ?

“इसका उत्तर इसी लाल किताब ‘वेदान्त रहस्यम्’ में है, पर किसी कारण से मैं यह तुम्हें अभी नहीं बता सकती।“

“इस लाल किताब में!” सुयश के शब्दों में आश्चर्य भर गया- “इस लाल किताब से मेरा क्या रिश्ता है?”

“वेदान्त रहस्यम् मरने से पूर्व तुमने ही लिखी थी, मैं स्वयं इस किताब को इतने वर्षों से ढूंढ रही थी, मुझे भी इस किताब से कई सवालों के जवाब चाहिये।”

“वह दूसरी शलाका कौन थी?”

“अभी मुझे पक्का नहीं पता, पर वो शलाका शायद आकृति थी।” कहते-कहते शलाका के चेहरे पर गुस्से के निशान आ गये।

“वह यह वेदान्त रहस्यम् क्यों छीनना चाहती थी? और तौफीक इस लाल किताब से उसके पास कैसे पहुंच गया था?”

“वेदान्त रहस्यम् में वेदालय की शिक्षा समाप्त होने के बाद के कुछ रहस्य हैं। यह वेदान्त रहस्यम् पूरे ब्रह्मांड का द्वार है, इसके हर पृष्ठ पर व्यक्तियों और स्थानों के अनेकों चित्र अंकित हैं, किसी भी चित्र को छूकर उस व्यक्ति या स्थान के पास जाया जा सकता है। शायद आकृति भी इस किताब के माध्यम से किसी ऐसी जगह पर जाना चाहती है, जिसके बारे में उसे पता नहीं है।”

“तुम देवी हो, मैं, यानि आर्यन मर चुका है, फिर आकृति इतने वर्षों से जिंदा कैसे है?”

“शायद उसने अमृतपान कर रखा है, इसलिये वह अमर हो गयी है।”

“आकृति का चेहरा तुमसे कैसे मिल रहा है? क्या वह रुप बदलने की कला भी जानती है?”

“नहीं...मेरी जानकारी के हिसाब से आकृति रुप बदलने की कला नहीं जानती, पर जब मैं इतने वर्षों से शीतनिद्रा में थी, तो अवश्य ही आकृति ने कुछ और भी शक्तियां प्राप्त की होंगी, पर उसके बारे में अभी मुझे कुछ नहीं पता।”

“तुमने आज से पहले मुझसे सम्पर्क करने की कोशिश क्यों नहीं की?”

“जब देवालय से अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद तुम गायब हो गये और कई वर्षों तक नहीं मिले, तो मैंने गुरु नीलाभ से तुम्हारे बारे में पूछा। उन्होंने बताया कि तुम्हारा वो जन्म पूरा हो चुका है, अब तुम 5000 वर्षों के बाद ही दूसरा जन्म लेकर मुझसे मिलोगे। इसलिये मैंने भी स्वयं को 5000 वर्षों के लिये शीतनिद्रा में डाल दिया था। मैं भी अभी कुछ दिन पहले ही शीतनिद्रा से जागी हूं।

“शीतनिद्रा से जागते ही मैंने अपनी शक्तियों से तुम्हें ढूंढा। तुम उस समय मेरे मंदिर में मेरी मूर्ति छूने जा रहे थे। देवताओं के आशीर्वाद से मेरी उस मूर्ति को छूने वाला हर इंसान मारा जाता है, जैसे ही तुम मेरी मूर्ति छूने चले मैंने अपनी कुछ शक्तियां तुम्हारे शरीर पर बने टैटू में डाल दीं, जिससे तुम मेरी मूर्ति छूने के बाद भी बच गये।

उन्हीं शक्तियों ने बाद में तुम्हें आदमखोर पेड़ और बर्फ के ड्रैगन से बचाया और जब आज मैंने तुम्हें इस किताब और दूसरी शलाका के साथ देखा तो मैं अपने आप को रोक नहीं पायी।

इस द्वीप के हर एक भाग पर इसके रचयिता का अधिकार है, जो सदैव देवताओं के सम्पर्क में रहता है। अगर उसने मुझे तुम्हें यह सब बताते देख लिया तो मैं भी मुसीबत में पड़ सकती हूं।”

“इस द्वीप का रचयिता कौन है?”

“यह बात मुझे नहीं पता क्यों कि यह बात मेरे जन्म से लगभग 14000 वर्ष पहले की है। अगर मैं शीतनिद्रा में नहीं होती तो शायद इस बात को अब तक जान चुकी होती।”

“मेरे इस टैटू के निशान को तो मैंने इस जन्म में बनवाया था, फिर इसकी आकृति तुम्हारे महल में कैसे दिख रही थी?”

“आर्यन ने एक बार वेदालय में एक प्रतियोगिता के बीच में सूर्यलेखा नाम की एक कन्या की जान बचाई थी और उसे अपनी बहन के रुप में स्वीकार किया था, उस समय तक आर्यन को नहीं पता था कि सूर्यलेखा भगवान सूर्य की पुत्री हैं।

"बाद में भगवान सूर्य ने तुम्हें यह आशीर्वाद दिया था कि तुम हर जन्म में सूर्यवंश में ही जन्म लोगे और हर जन्म में यह सूर्य की आकृति किसी ना किसी प्रकार से तुम्हें प्राप्त हो जायेगी। बाद में इसी सूर्य की आकृति से भगवान सूर्य तुम्हारी किसी ना किसी प्रकार से रक्षा करते रहेंगे।”

“ऐमू को अमरत्व कैसे प्राप्त हुआ?”

“ऐमू को जो हम लोग समझते हैं, वह वो नहीं है। उसमें कुछ राज छिपा है जो मैं तुम्हें समय आने पर बताऊंगी।”

“जब भी मैं तुम्हारी मूर्ति को छूता था, मुझे उसका स्पर्श तुम्हारे शरीर के समान लगता था। ऐसा कैसे होता था? और एक बार तो तुम्हारी मूर्ति छूने पर मुझे आर्यन की आवाज भी सुनाई दी थी। वह सब कैसे हो रहा था?”

“ये चीजें भी सबके सामने पूछोगे क्या?” शलाका ने अर्थपूर्ण ढंग से मुस्कुराते हुए कहा- “अरे मैं तुम्हें हमेशा से देख रही थी, अब ये मौका भी अपने हाथ से जाने देती क्या?”

“हम लोगों ने कुछ नहीं सुना, हम लोग तो पिज्जा खा रहे हैं। आप लोग अपनी बातों को जारी रखें।” शैफाली ने ही-ही करके हंसते हुए कहा और फिर से पिज्जा खाने में जुट गयी।

“तुम्हारे महल में मौजूद वह सिंहासन कैसा था? जिसकी वजह से मैं समय-यात्रा पर चला गया था।”

“वह सिंहासन हमारी शादी पर हमें यतिराज हनुका ने दिया था।”

“एक मिनट...तुमने कहा कि हमारी शादी पर...!” सुयश ने आश्चर्य से कहा- “क्या हमारी शादी हो चुकी थी?”

“जल्दी-जल्दी पिज्जा खाओ सब लोग, उधर एक पार्टी की तैयारी और हो गई है।” शैफाली ने सबको सुयश और शलाका की ओर इशारा करते हुए कहा।

वैसे तो सभी को दोनों के सभी शब्द सुनाई दे रहे थे, फिर भी शैफाली के इस तरह से कहने से सभी जोर से हंस दिये।

“वो...वो....मैं अभी बताना तो नहीं चाहती थी...पर गलती से मुंह से निकल गया। पर सच यही है कि हमारी शादी हो चुकी थी।” शलाका ने सिर झुका कर धीरे से शर्माते हुए कहा।

“हाय..हाय भाभी क्या शर्माती हैं।” क्रिस्टी ने भी चटकारा लेते हुए कहा- “भैया की तो निकल पड़ी। एक मेरा वाला है, पता नहीं कौन से पाताल में चला गया?”

सुयश ने घूरकर क्रिस्टी को देखा और फिर धीरे से हंस दिया।

“हां तो मैं बता रही थी कि वह सिंहासन हनुका ने दिया था और उस से समय यात्रा संभव है। हनुका ने वह सिंहासन इसी लिये दिया था कि हमें जब भी वेदालय की याद आये तो हम उस सिंहासन से वेदालय के समय में जाकर अपनी यादों को ताजा कर सकें।” शलाका ने कहा।

“वेदालय का निर्माण क्यों किया गया?”

“महागुरु नीलाभ ने इस ब्रह्मांड की रक्षा के लिये 6 जोड़ों का चुनाव किया। 10 वर्ष तक उन सभी जोड़ों को वेदों के द्वारा शिक्षा देकर महायोद्धा का रुप दिया गया। उन सभी महायोद्धाओं को अमृतपान करा के एक लोक दिया जाना था, जहां से उन्हें अनंतकाल तक पृथ्वी की रक्षा करनी थी। बाकी के 5 जोड़ों ने अमृतपान करके एक-एक लोक संभाल लिया, पर हमने ऐसा नहीं किया।”

“हमने क्यों ऐसा नहीं किया?”

“क्यों कि हमें आपस में शादी करनी थी और कोई भी महायोद्धा आपस में शादी नहीं कर सकता था इस लिये हमने सारी शक्तियों का त्याग कर दिया और शादी कर ली।”

“जब वेदालय में बाकी के 5 जोड़े थे, तो मैं, तुम और आकृति 3 लोग क्यों थे?”

“वेदालय में तुम और आकृति जोड़े में ही आये थे। मैं अकेली आयी थी।”

“तो महागुरु नीलाभ ने तुम्हें हमारे साथ क्यों रखा?”

“इसके बारे में मुझे भी पता नहीं है। यही तो वह एक परेशानी थी, जिसने हमें 5000 वर्ष तक मिलने का इंतजार कराया।” यह बात बताते समय शलाका की आवाज में दुख ही दुख भर गया।

“फिर शादी के बाद मेरी मृत्यु कैसे हुई?”

“तुम्हें कोई नहीं मार सकता था, तुमने स्वयं अपनी मृत्यु का वरण किया था।”

“मैं भला स्वयं को क्यों मारने लगा और वह भी तब जबकि तुमसे मेरी शादी भी हो चुकी थी।”

“इसी बात का राज तो मुझे भी जानना है और मुझे पूरी उम्मीद है कि इस रहस्य को तुमने ‘वेदान्त रहस्यम्’ में अवश्य लिखा होगा। इसीलिये मैं इस किताब का हजारों वर्षों से मिलने का इंतजार कर रही थी।”

“ऐसा क्या है इस किताब में....मैं भी इसे पढ़ना चाहता हूं।”

“अभी यह किताब मैं लेकर जाऊंगी ....क्यों कि जब तक तुम्हें, तुम्हारी पूरी स्मरण शक्ति ना मिल जाये, तब तक मैं तुम्हें यह किताब पढ़ने नहीं दे सकती।”

“क्यों? तुम आखिर ऐसा क्यों कर रही हो?”

“क्यों कि मैं तुम्हें दोबारा नहीं खोना चाहती और इस किताब में कुछ ना कुछ तो अवश्य ऐसा है, जो अभी तुम्हारे लिये सही नहीं है और वैसे भी इस मायावन में प्रवेश करने के बाद बिना तिलिस्म तोड़े कोई भी बाहर नहीं निकल सकता।”

“अब यह तिलिस्म क्या बला है? क्या आगे और भी मुसीबतें आने वाली हैं?”

“यह द्वीप अटलांटिस का अवशेष है, यह एक कृत्रिम द्वीप है, जिसकी रचना देवताओं ने करवाई थी। इस द्वीप को 4 भागों में विभक्त किया गया है। 2 भाग में सामरा और सीनोर राज्य बनाया गया, जहां इस
द्वीप के पुराने निवासी रहते हैं। तीसरे भाग में मायावन है, जिसमें आप लोग अभी हैं। द्वीप के चौथे भाग को एक खतरनाक तिलिस्म में परिवर्तित किया गया है, जिसे तिलिस्मा कहते हैं। उस तिलिस्मा में 28 द्वार हैं, हर द्वार में एक खतरा छिपा हुआ है। जो भी व्यक्ति इस मायावन में प्रवेश करेगा, वह बिना तिलिस्म तोड़े इस द्वीप से जा नहीं सकता।”

“हे भगवान....यानि की अभी असली मुसीबतें तो शुरु भी नहीं हुईं हैं।” जेनिथ ने अपना सिर पकड़ते हुए कहा- “और जब यह वन ही इतना खतरनाक है, तो वह तिलिस्मा कितना खतरनाक होगा?”

तौफीक और क्रिस्टी भी यह सुन पिज्जा खाना छोड़ शलाका का मुंह देखने लगे।

“आप तो इस द्वीप की देवी हैं। आप तो हमें यहां से निकाल सकती हैं।” क्रिस्टी ने कहा।

“नहीं निकाल सकती....इस द्वीप का पूरा नियंत्रण देवता पोसाइडन ने किसी व्यक्ति को दे रखा है। वह कहां रहता है? और कैसे तिलिस्म का निर्माण करता है? यह मुझे भी नहीं पता। यहां इस मायावन में तो मैं या फिर कोई दूसरी चमत्कारी शक्ति तुम्हारी मदद कर भी देगी, पर तिलिस्मा के अंदर तो कोई चमत्कारी शक्ति भी काम नहीं करती, वहां मैं तो क्या कोई भी तुम्हारी मदद नहीं कर पायेगा?”

“हे भगवान यानि की मरना निश्चित है।” क्रिस्टी ने दुखी स्वर में कहा।

“ऐसा नहीं है, मुझे पता है कि तुम लोग उस तिलिस्मा को अवश्य पार कर लोगे। तुम सभी में विलक्षण प्रतिभाएं हैं और आर्यन तुम्हारे साथ है। आर्यन ने तो देवताओं की धरती पर लगभग सारी प्रतियोगिताएं जीती हैं और तुम लोगों ने देखा कि पहले तुम लोग छोटी से छोटी चीज पर घबरा जाते थे, पर पिछले कुछ दिनों में तुमने स्पाइनोसोरस, टेरोसोर, रेत मानव और ड्रैगन जैसे विशाल जानवरों और मुसीबतों का हराया है, यह काम कोई साधारण इंसान नहीं कर सकता। इसलिये मुझे पूरी उम्मीद है कि तुम लोग तिलिस्मा को तोड़कर ही इस द्वीप से बाहर निकलोगे।”

शलाका के शब्दों ने सभी में उत्साह भर दिया।

“अच्छा अब मुझे जाने की आज्ञा दो।” शलाका ने सुयश को देख मुस्कुराते हुए कहा।

सुयश के पास अब कोई प्रश्न नहीं बचा था, इसलिये उसने धीरे से अपना सिर हिलाकर शलाका को आज्ञा दे दी।

“आप लोगों को कुछ करना हो तो हम लोग अपना चेहरा दूसरी ओर घुमा लें।” क्रिस्टी ने शलाका को छेड़ते हुए कहा।

क्रिस्टी की बात सुन शलाका के चेहरे पर एक भीनी सी मुस्कान बिखर गयी, उसने सुयश की आँखों में झांका और पास आकर सुयश के गले लग गयी-

“इस बार जिंदा वापस आना, मैं 5000 वर्ष के लिये और नहीं सो सकती।” यह कहकर शलाका ने धीरे से सुयश के गालों को चूमा और लाल किताब ले, अपने त्रिशूल को हवा में लहरा कर गायब हो गयी।

सुयश ना जाने कितनी देर तक वैसे ही खड़ा रहा, फिर धीरे-धीरे चलता हुआ बाकी सबके पास आकर पिज्जा खाने लगा, पर उसकी आँखों में एक अधूरी चाहत साफ नजर आ रही थी।

अब वह जीना चाहता था, अपने नहीं किसी और के लिये, जिसने उसके लिये अपना अमरत्व त्याग दिया था।

जिसने उसका 5000 वर्षों तक इंतजार किया था, जो हर पल उस पर नजर रख रही थी, उसकी सुरक्षा के लिये....उसकी नयी जिंदगी की कामना के लिये।”


जारी रहेगा_______✍️
 
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