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Fantasy 'सुप्रीम' एक रहस्यमई सफर

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Sushil@10

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#130.

सुनहरी हिरनी:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 07:30, लैडन नदी के किनारे, पेलो पोनेसस प्रायद्वीप, ग्रीस)

लैडन नदी का शांत जल सूर्य की झिलमिलाती रोशनी में चमचमा रहा था।

जंगल में पक्षियों का कलरव कानों में मधुर रस घोल रहा था। हवाओं में काफी नमी थी।

आकृति उस नदी के किनारे एक पेड़ पर छिप कर बैठी थी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे किसी का इंतजार हो।

पेड़ की उस झुकी डाल से पानी में आकृति को अपना चेहरा नजर आ रहा था, जो कि इस समय भी शलाका से मिल रहा था।

“जाने कब छूटेगा इस चेहरे से पीछा मेरा? अब तो अपना चेहरा याद भी नहीं है मुझे....वो भी क्या दिन थे... जब आर्यन को सिर्फ मुझसे प्यार था, पर इस मनहूस शलाका ने उसे मुझसे छीन लिया।....पर अब बस अब नहीं चाहिये मुझे यह चेहरा ... अब मुझे कुछ भी करके आज उस सुनहरी हिरनी को पकड़ना ही होगा, अब वहीं मेरी आखिरी उम्मीद है। सुर्वया ने कहा था कि आज वह सुनहरी हिरनी मुझे यहां जरुर मिलेगी।”

यह सोच आकृति ने फिर से अपनी नजरें पेड़ से कुछ दूर बने रास्ते पर लगा दी।

धीरे-धीरे आकृति को पेड़ पर छिप कर बैठे 3 घंटे बीत गये।

इन 3 घंटों में नदी किनारे असंख्य जानवर आये और पानी पीकर चले गये, पर वह सुनहरी हिरनी नहीं आयी, जिसका कि आकृति को इंतजार था।

तभी आकृति को एक बड़ा सा शेर उधर आता दिखाई दिया।

उस भयानक शेर को देख आकृति ने तुरंत अपने हाथ में पहनी एक नीले रंग की अंगूठी का नग अंदर की ओर दबा दिया।

नग के दबाते ही आकृति अदृश्य हो गई, अब वह नजर नहीं आ रही थी।

शेर के चलने का तरीका बड़ा ही रहस्यमयी था, वह चारो ओर देखता धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा था।

शेर चलते हुए लैडन नदी के किनारे पहुंचा और फिर अपना मुंह पानी में डालकर पानी पीने लगा।

पेट भरकर पानी पीने के बाद उस शेर ने अपना मुंह उठा कर एक जोर की दहाड़ मारी।

वह दहाड़ इतनी तेज थी कि एक बार तो आकृति पेड़ से गिरते-गिरते बची।

तभी बहुत जोर की धम-धम की आवाज सुनाई देने लगी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बहुत बड़ा जानवर चलता हुआ उस दिशा में आ रहा था।

शेर चुपचाप खड़ा उस दिशा की ओर देखने लगा, जिधर से वह आवाज आ रही थी।

कुछ ही देर में आकृति को उस दिशा से एक सुनहरी हिरनी आती हुई दिखाई दी, जिसका आकार उस शेर से भी बड़ा था।

हिरनी की 12 सींघें सोने की बनी दिख रहीं थीं। हिरनी के पैर भी पीतल के बने नजर आ रहे थे और उसके पूरे शरीर से विचित्र सी सुनहरी रोशनी प्रस्फुटित हो रही थी।

“अरे बाप रे! यह हिरनी है या कोई विशाल सांड? क्या इसे ही पकड़ना है मुझे? पर इसे पकड़ना तो आसान नहीं होगा। यह इतनी खतरनाक है, शायद तभी ‘हरक्यूलिस’ को दिये 12 कार्यों में से एक कार्य इसे पकड़ना था।”

आकृति के दिमाग में उस सुनहरी हिरनी को देख अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे।

वह सुनहरी हिरनी अपनी मदमस्त चाल से लैडन नदी के किनारे पहुंच गई।

उसे देख शेर ने नदी का रास्ता उसके लिये छोड़ दिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमाकर, इस तरह से चारो ओर देखने लगा, मानो उस सुनहरी हिरनी की वह रखवाली कर रहा हो।

सुनहरी हिरनी ने नदी में अपना पैर रखा और धीरे-धीरे पूरी की पूरी नदी में समा गई।

आकृति के हाथ में अब मकोटा का दिया नीलदंड नजर आने लगा था। वह पुनः अपनी अंगूठी के नग को दबा कर सदृश्य हो गयी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में लहराया।

उस नीलदंड से नीले रंग की रोशनी निकली और नदी किनारे खड़े शेर के मुंह पर पड़ी।

अब हवा में लहराती हुई आकृति शेर के सामने जा खड़ी हुई।

शेर ने आकृति को देखकर दहाड़ने की कोशिश की, पर उसके मुंह से आवाज ना निकली।

एक दो बार और कोशिश करने के बाद शायद शेर समझ गया कि वह दहाड़ नहीं पायेगा, इसलिये उसने अब आकृति को घूरकर देखा और हिंसक भाव से उसकी ओर बढ़ने लगा।

आकृति की एक नजर नदी पर भी थी, फिर भी उसने शेर को अनदेखा नहीं किया।

शेर लगातार आकृति की ओर बढ़ रहा था, पर अब आकृति के चेहरे पर मुस्कुराहट दिख रही थी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में गायब कर दिया और खाली हाथ ही मुस्कुराते हुए शेर का इंतजार करने लगी।

शेर ने पास पहुंचकर, आकृति की ओर एक लंबी छलांग लगाई।

आकृति पहले से ही सतर्क थी, उसने अपने शरीर को एक ओर झुकाते हुए, एक ही छलांग में शेर की पीठ पर सवार हो गई और अपनी पूरी ताकत से शेर का गला दबाने लगी।

पता नहीं आकृति के हाथों में कितनी शक्ति थी, कि शेर छटपटा कर अपना गला छुड़ाने की कोशिश करने लगा।

तभी आकृति ने एक झटके से शेर के सिर को पीछे की ओर मोड़ दिया।

असीम शक्ति थी आकृति के हाथों में, शेर की गर्दन टूटकर लटक गयी।

एक मिनट से भी कम समय में निहत्थी आकृति ने खूंखार शेर को निपटा दिया था।

अब उसने एक नजर लैडन नदी पर मारी। आकृति ने एक बार फिर से स्वयं को अदृश्य कर लिया और नदी की ओर चल दी।

वह सुनहरी हिरनी नदी में कहीं नजर नहीं आ रही थी। अतः आकृति भी पानी के अंदर प्रवेश कर गई।

तभी बाहर पड़ा मरा हुआ शेर अचानक से उठा और एक दिशा की ओर भाग गया।

आकृति ने पानी में डुबकी मारी और उस सुनहरी हिरनी को ढूंढती नदी की तली की ओर चल दी ।

ऊपर से पता नहीं चल रहा था, पर अंदर से नदी काफी गहरी थी।

कुछ ही देर में आकृति को नदी की तली में सुनहरी रोशनी सी दिखाई दी। बिना आवाज तैरती हुई आकृति उस सुनहरी रोशनी की ओर चल दी।
पर नदी की तली में जो नजारा दिखाई दिया, वह देख आकृति सिहर उठी।

नदी की तली में एक विशाल ड्रैगन सो रहा था और वह सुनहरी हिरनी, उस ड्रैगन के मुंह के पास कुछ कर रही थी।

जी हां यह वही ड्रैगन था जिसे शैफाली ने अपने सपने में मैग्ना की सवारी बनते देखा था।

पता नहीं ड्रैंगो बेहोश था या सो रहा था, आकृति को यह समझ नहीं आया।

तभी उस सुनहरी हिरनी को अपने पीछे किसी के होने का अहसास हुआ।

उसने पलटकर देखा, पर उसे कोई नजर नहीं आया। तभी उसे पानी की लहरों में थोड़ी सी हलचल होती दिखाई दी।

सुनहरी हिरनी को शक हो गया कि उस दिशा में कोई है? उसने अपनी सोने की सींघों को तेजी से पानी में गोल-गोल लहराया।

सींघों के लहराते ही पानी में एक गोल तरंग सी बन गई, जो उस दिशा की ओर झपटी, जिधर आकृति अदृश्य अवस्था में खड़ी थी।

आकृति को उस सुनहरी हिरनी से ऐसी कोई आशा नहीं थी, इसलिये वह इस वार से बच नहीं पाई।

आकृति उन जल तरंगों से टकरा गई और सदृश्य हो कर सुनहरी हिरनी को दिखाई देने लगी।

सुनहरी हिरनी की नजर जैसे ही आकृति पर पड़ी, वह अपनी सींघों को हिलाकर बिजली की तेजी से आकृति पर झपट पड़ी।

आकृति ने किसी तरह से अपना बचाव कर लिया।

पानी में लड़ने का आकृति को कोई अभ्यास नहीं था, इसलिये वह चाहती थी कि यह सुनहरी हिरनी जितनी जल्दी पानी से बाहर निकले।

अब आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा।

उसने नीलदंड को गोल घुमा कर सुनहरी हिरनी पर ऊर्जा का हमला किया, पर हिरनी की स्पीड पानी में भी बहुत तेज थी। वह आसानी से उस ऊर्जा के वार से बच गई।

पर नीलदंड को देख सुनहरी हिरनी समझ गयी कि आकृति के अंदर चमत्कारी शक्तियां हैं, इसलिये उसने बचकर निकलना ही उचित समझा और नदी की सतह की ओर चल दी।

आकृति यही तो चाहती थी, उसने अपने नीलदंड से, बचकर भागती हिरनी पर एक जाल फेंका।

चूंकि सुनहरी हिरनी की नजर आकृति की ओर नहीं थी, इसलिये वह जाल से बच नहीं सकी और जाल में फंस कर छटपटाने लगी।

आकृति ने जाल को कसा और पानी से निकलकर बाहर आ गयी।

पर बाहर आते ही उसकी नजर नदी के बाहर खड़े शेर और देवी आर्टेमिस पर पड़ी।

आकृति ने आर्टेमिस को देखते ही पहचान लिया। वह एक ग्रीक देवी थी।

ओलंपस पर्वत के 12 देवी-देवताओं में से एक.....शिकार की देवी... जिससे बचना बहुत ही मुश्किल माना जाता था।

आकृति वहां आने से पहले ही आर्टेमिस के बारे में सब कुछ पढ़ चुकी थी।

उसे पता था कि सुनहरी हिरनी आर्टेमिस की बहुत प्रिय है, इसलिये वह आर्टेमिस की बिना जानकारी के सुनहरी हिरनी को यहां से ले जाना चाहती थी।

आर्टेमिस की तीखी निगाहें कभी आकृति पर तो कभी उसके जाल में फंसी सुनहरी हिरनी की ओर जा रही थी।

आकृति आर्टेमिस से युद्ध नहीं करना चाहती थी।

क्यों कि आर्टेमिस से युद्ध करने का मतलब सभी ग्रीक देवताओं को अपने विरुद्ध करना हो जाता। अतः आकृति ने भागने में ही अपनी भलाई समझी।

इससे पहले कि आर्टेमिस कुछ समझ पाती, आकृति के हाथ में नीलदंड चमका और रोशनी के एक झमाके के साथ आकृति सुनहरी हिरनी के साथ गायब हो गयी।

आर्टेमिस को आकृति से इस प्रकार की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिये वह सुनहरी हिरनी को नहीं बचा पायी।

पर आर्टेमिस की आँखों से अब अंगारे बरस रहे थे। वह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई मनुष्य इस प्रकार उसकी सबसे प्रिय सुनहरी हिरनी को ले उड़ेगा।

अब वह गुस्से से अपने पैर पटकती, ओलंपस पर्वत की ओर चल दी।


जारी रहेगा_______✍️
Nice update and
Nice update and beautiful story
 
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सुनहरी हिरनी:
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लैडन नदी का शांत जल सूर्य की झिलमिलाती रोशनी में चमचमा रहा था।

जंगल में पक्षियों का कलरव कानों में मधुर रस घोल रहा था। हवाओं में काफी नमी थी।

आकृति उस नदी के किनारे एक पेड़ पर छिप कर बैठी थी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे किसी का इंतजार हो।

पेड़ की उस झुकी डाल से पानी में आकृति को अपना चेहरा नजर आ रहा था, जो कि इस समय भी शलाका से मिल रहा था।

“जाने कब छूटेगा इस चेहरे से पीछा मेरा? अब तो अपना चेहरा याद भी नहीं है मुझे....वो भी क्या दिन थे... जब आर्यन को सिर्फ मुझसे प्यार था, पर इस मनहूस शलाका ने उसे मुझसे छीन लिया।....पर अब बस अब नहीं चाहिये मुझे यह चेहरा ... अब मुझे कुछ भी करके आज उस सुनहरी हिरनी को पकड़ना ही होगा, अब वहीं मेरी आखिरी उम्मीद है। सुर्वया ने कहा था कि आज वह सुनहरी हिरनी मुझे यहां जरुर मिलेगी।”

यह सोच आकृति ने फिर से अपनी नजरें पेड़ से कुछ दूर बने रास्ते पर लगा दी।

धीरे-धीरे आकृति को पेड़ पर छिप कर बैठे 3 घंटे बीत गये।

इन 3 घंटों में नदी किनारे असंख्य जानवर आये और पानी पीकर चले गये, पर वह सुनहरी हिरनी नहीं आयी, जिसका कि आकृति को इंतजार था।

तभी आकृति को एक बड़ा सा शेर उधर आता दिखाई दिया।

उस भयानक शेर को देख आकृति ने तुरंत अपने हाथ में पहनी एक नीले रंग की अंगूठी का नग अंदर की ओर दबा दिया।

नग के दबाते ही आकृति अदृश्य हो गई, अब वह नजर नहीं आ रही थी।

शेर के चलने का तरीका बड़ा ही रहस्यमयी था, वह चारो ओर देखता धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा था।

शेर चलते हुए लैडन नदी के किनारे पहुंचा और फिर अपना मुंह पानी में डालकर पानी पीने लगा।

पेट भरकर पानी पीने के बाद उस शेर ने अपना मुंह उठा कर एक जोर की दहाड़ मारी।

वह दहाड़ इतनी तेज थी कि एक बार तो आकृति पेड़ से गिरते-गिरते बची।

तभी बहुत जोर की धम-धम की आवाज सुनाई देने लगी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बहुत बड़ा जानवर चलता हुआ उस दिशा में आ रहा था।

शेर चुपचाप खड़ा उस दिशा की ओर देखने लगा, जिधर से वह आवाज आ रही थी।

कुछ ही देर में आकृति को उस दिशा से एक सुनहरी हिरनी आती हुई दिखाई दी, जिसका आकार उस शेर से भी बड़ा था।

हिरनी की 12 सींघें सोने की बनी दिख रहीं थीं। हिरनी के पैर भी पीतल के बने नजर आ रहे थे और उसके पूरे शरीर से विचित्र सी सुनहरी रोशनी प्रस्फुटित हो रही थी।

“अरे बाप रे! यह हिरनी है या कोई विशाल सांड? क्या इसे ही पकड़ना है मुझे? पर इसे पकड़ना तो आसान नहीं होगा। यह इतनी खतरनाक है, शायद तभी ‘हरक्यूलिस’ को दिये 12 कार्यों में से एक कार्य इसे पकड़ना था।”

आकृति के दिमाग में उस सुनहरी हिरनी को देख अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे।

वह सुनहरी हिरनी अपनी मदमस्त चाल से लैडन नदी के किनारे पहुंच गई।

उसे देख शेर ने नदी का रास्ता उसके लिये छोड़ दिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमाकर, इस तरह से चारो ओर देखने लगा, मानो उस सुनहरी हिरनी की वह रखवाली कर रहा हो।

सुनहरी हिरनी ने नदी में अपना पैर रखा और धीरे-धीरे पूरी की पूरी नदी में समा गई।

आकृति के हाथ में अब मकोटा का दिया नीलदंड नजर आने लगा था। वह पुनः अपनी अंगूठी के नग को दबा कर सदृश्य हो गयी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में लहराया।

उस नीलदंड से नीले रंग की रोशनी निकली और नदी किनारे खड़े शेर के मुंह पर पड़ी।

अब हवा में लहराती हुई आकृति शेर के सामने जा खड़ी हुई।

शेर ने आकृति को देखकर दहाड़ने की कोशिश की, पर उसके मुंह से आवाज ना निकली।

एक दो बार और कोशिश करने के बाद शायद शेर समझ गया कि वह दहाड़ नहीं पायेगा, इसलिये उसने अब आकृति को घूरकर देखा और हिंसक भाव से उसकी ओर बढ़ने लगा।

आकृति की एक नजर नदी पर भी थी, फिर भी उसने शेर को अनदेखा नहीं किया।

शेर लगातार आकृति की ओर बढ़ रहा था, पर अब आकृति के चेहरे पर मुस्कुराहट दिख रही थी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में गायब कर दिया और खाली हाथ ही मुस्कुराते हुए शेर का इंतजार करने लगी।

शेर ने पास पहुंचकर, आकृति की ओर एक लंबी छलांग लगाई।

आकृति पहले से ही सतर्क थी, उसने अपने शरीर को एक ओर झुकाते हुए, एक ही छलांग में शेर की पीठ पर सवार हो गई और अपनी पूरी ताकत से शेर का गला दबाने लगी।

पता नहीं आकृति के हाथों में कितनी शक्ति थी, कि शेर छटपटा कर अपना गला छुड़ाने की कोशिश करने लगा।

तभी आकृति ने एक झटके से शेर के सिर को पीछे की ओर मोड़ दिया।

असीम शक्ति थी आकृति के हाथों में, शेर की गर्दन टूटकर लटक गयी।

एक मिनट से भी कम समय में निहत्थी आकृति ने खूंखार शेर को निपटा दिया था।

अब उसने एक नजर लैडन नदी पर मारी। आकृति ने एक बार फिर से स्वयं को अदृश्य कर लिया और नदी की ओर चल दी।

वह सुनहरी हिरनी नदी में कहीं नजर नहीं आ रही थी। अतः आकृति भी पानी के अंदर प्रवेश कर गई।

तभी बाहर पड़ा मरा हुआ शेर अचानक से उठा और एक दिशा की ओर भाग गया।

आकृति ने पानी में डुबकी मारी और उस सुनहरी हिरनी को ढूंढती नदी की तली की ओर चल दी ।

ऊपर से पता नहीं चल रहा था, पर अंदर से नदी काफी गहरी थी।

कुछ ही देर में आकृति को नदी की तली में सुनहरी रोशनी सी दिखाई दी। बिना आवाज तैरती हुई आकृति उस सुनहरी रोशनी की ओर चल दी।
पर नदी की तली में जो नजारा दिखाई दिया, वह देख आकृति सिहर उठी।

नदी की तली में एक विशाल ड्रैगन सो रहा था और वह सुनहरी हिरनी, उस ड्रैगन के मुंह के पास कुछ कर रही थी।

जी हां यह वही ड्रैगन था जिसे शैफाली ने अपने सपने में मैग्ना की सवारी बनते देखा था।

पता नहीं ड्रैंगो बेहोश था या सो रहा था, आकृति को यह समझ नहीं आया।

तभी उस सुनहरी हिरनी को अपने पीछे किसी के होने का अहसास हुआ।

उसने पलटकर देखा, पर उसे कोई नजर नहीं आया। तभी उसे पानी की लहरों में थोड़ी सी हलचल होती दिखाई दी।

सुनहरी हिरनी को शक हो गया कि उस दिशा में कोई है? उसने अपनी सोने की सींघों को तेजी से पानी में गोल-गोल लहराया।

सींघों के लहराते ही पानी में एक गोल तरंग सी बन गई, जो उस दिशा की ओर झपटी, जिधर आकृति अदृश्य अवस्था में खड़ी थी।

आकृति को उस सुनहरी हिरनी से ऐसी कोई आशा नहीं थी, इसलिये वह इस वार से बच नहीं पाई।

आकृति उन जल तरंगों से टकरा गई और सदृश्य हो कर सुनहरी हिरनी को दिखाई देने लगी।

सुनहरी हिरनी की नजर जैसे ही आकृति पर पड़ी, वह अपनी सींघों को हिलाकर बिजली की तेजी से आकृति पर झपट पड़ी।

आकृति ने किसी तरह से अपना बचाव कर लिया।

पानी में लड़ने का आकृति को कोई अभ्यास नहीं था, इसलिये वह चाहती थी कि यह सुनहरी हिरनी जितनी जल्दी पानी से बाहर निकले।

अब आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा।

उसने नीलदंड को गोल घुमा कर सुनहरी हिरनी पर ऊर्जा का हमला किया, पर हिरनी की स्पीड पानी में भी बहुत तेज थी। वह आसानी से उस ऊर्जा के वार से बच गई।

पर नीलदंड को देख सुनहरी हिरनी समझ गयी कि आकृति के अंदर चमत्कारी शक्तियां हैं, इसलिये उसने बचकर निकलना ही उचित समझा और नदी की सतह की ओर चल दी।

आकृति यही तो चाहती थी, उसने अपने नीलदंड से, बचकर भागती हिरनी पर एक जाल फेंका।

चूंकि सुनहरी हिरनी की नजर आकृति की ओर नहीं थी, इसलिये वह जाल से बच नहीं सकी और जाल में फंस कर छटपटाने लगी।

आकृति ने जाल को कसा और पानी से निकलकर बाहर आ गयी।

पर बाहर आते ही उसकी नजर नदी के बाहर खड़े शेर और देवी आर्टेमिस पर पड़ी।

आकृति ने आर्टेमिस को देखते ही पहचान लिया। वह एक ग्रीक देवी थी।

ओलंपस पर्वत के 12 देवी-देवताओं में से एक.....शिकार की देवी... जिससे बचना बहुत ही मुश्किल माना जाता था।

आकृति वहां आने से पहले ही आर्टेमिस के बारे में सब कुछ पढ़ चुकी थी।

उसे पता था कि सुनहरी हिरनी आर्टेमिस की बहुत प्रिय है, इसलिये वह आर्टेमिस की बिना जानकारी के सुनहरी हिरनी को यहां से ले जाना चाहती थी।

आर्टेमिस की तीखी निगाहें कभी आकृति पर तो कभी उसके जाल में फंसी सुनहरी हिरनी की ओर जा रही थी।

आकृति आर्टेमिस से युद्ध नहीं करना चाहती थी।

क्यों कि आर्टेमिस से युद्ध करने का मतलब सभी ग्रीक देवताओं को अपने विरुद्ध करना हो जाता। अतः आकृति ने भागने में ही अपनी भलाई समझी।

इससे पहले कि आर्टेमिस कुछ समझ पाती, आकृति के हाथ में नीलदंड चमका और रोशनी के एक झमाके के साथ आकृति सुनहरी हिरनी के साथ गायब हो गयी।

आर्टेमिस को आकृति से इस प्रकार की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिये वह सुनहरी हिरनी को नहीं बचा पायी।

पर आर्टेमिस की आँखों से अब अंगारे बरस रहे थे। वह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई मनुष्य इस प्रकार उसकी सबसे प्रिय सुनहरी हिरनी को ले उड़ेगा।

अब वह गुस्से से अपने पैर पटकती, ओलंपस पर्वत की ओर चल दी।


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Bhut hi jabardast update bhai
Aakriti ne sunhari hiran ko jaal me pakadkr aartemis ki aankho ke samne se gayab ho gayi
Dhekte hai aartemis apni sunhari hiran ko vapas la pati hai ya nahi
 
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Bhut hi jabardast update bhai
Aakriti ne sunhari hiran ko jaal me pakadkr aartemis ki aankho ke samne se gayab ho gayi
Dhekte hai aartemis apni sunhari hiran ko vapas la pati hai ya nahi
Muskil hai, Aartimis to nahi per sayad koi aur bacha le :roll:
Thank you so much for your valuable review and support bhai, sath bane rahiye. :thanx:
 
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सुनहरी हिरनी:
(14 जनवरी 2002, सोमवार, 07:30, लैडन नदी के किनारे, पेलो पोनेसस प्रायद्वीप, ग्रीस)

लैडन नदी का शांत जल सूर्य की झिलमिलाती रोशनी में चमचमा रहा था।

जंगल में पक्षियों का कलरव कानों में मधुर रस घोल रहा था। हवाओं में काफी नमी थी।

आकृति उस नदी के किनारे एक पेड़ पर छिप कर बैठी थी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे किसी का इंतजार हो।

पेड़ की उस झुकी डाल से पानी में आकृति को अपना चेहरा नजर आ रहा था, जो कि इस समय भी शलाका से मिल रहा था।

“जाने कब छूटेगा इस चेहरे से पीछा मेरा? अब तो अपना चेहरा याद भी नहीं है मुझे....वो भी क्या दिन थे... जब आर्यन को सिर्फ मुझसे प्यार था, पर इस मनहूस शलाका ने उसे मुझसे छीन लिया।....पर अब बस अब नहीं चाहिये मुझे यह चेहरा ... अब मुझे कुछ भी करके आज उस सुनहरी हिरनी को पकड़ना ही होगा, अब वहीं मेरी आखिरी उम्मीद है। सुर्वया ने कहा था कि आज वह सुनहरी हिरनी मुझे यहां जरुर मिलेगी।”

यह सोच आकृति ने फिर से अपनी नजरें पेड़ से कुछ दूर बने रास्ते पर लगा दी।

धीरे-धीरे आकृति को पेड़ पर छिप कर बैठे 3 घंटे बीत गये।

इन 3 घंटों में नदी किनारे असंख्य जानवर आये और पानी पीकर चले गये, पर वह सुनहरी हिरनी नहीं आयी, जिसका कि आकृति को इंतजार था।

तभी आकृति को एक बड़ा सा शेर उधर आता दिखाई दिया।

उस भयानक शेर को देख आकृति ने तुरंत अपने हाथ में पहनी एक नीले रंग की अंगूठी का नग अंदर की ओर दबा दिया।

नग के दबाते ही आकृति अदृश्य हो गई, अब वह नजर नहीं आ रही थी।

शेर के चलने का तरीका बड़ा ही रहस्यमयी था, वह चारो ओर देखता धीरे-धीरे अपने कदम बढ़ा रहा था।

शेर चलते हुए लैडन नदी के किनारे पहुंचा और फिर अपना मुंह पानी में डालकर पानी पीने लगा।

पेट भरकर पानी पीने के बाद उस शेर ने अपना मुंह उठा कर एक जोर की दहाड़ मारी।

वह दहाड़ इतनी तेज थी कि एक बार तो आकृति पेड़ से गिरते-गिरते बची।

तभी बहुत जोर की धम-धम की आवाज सुनाई देने लगी।

ऐसा लग रहा था कि जैसे कोई बहुत बड़ा जानवर चलता हुआ उस दिशा में आ रहा था।

शेर चुपचाप खड़ा उस दिशा की ओर देखने लगा, जिधर से वह आवाज आ रही थी।

कुछ ही देर में आकृति को उस दिशा से एक सुनहरी हिरनी आती हुई दिखाई दी, जिसका आकार उस शेर से भी बड़ा था।

हिरनी की 12 सींघें सोने की बनी दिख रहीं थीं। हिरनी के पैर भी पीतल के बने नजर आ रहे थे और उसके पूरे शरीर से विचित्र सी सुनहरी रोशनी प्रस्फुटित हो रही थी।

“अरे बाप रे! यह हिरनी है या कोई विशाल सांड? क्या इसे ही पकड़ना है मुझे? पर इसे पकड़ना तो आसान नहीं होगा। यह इतनी खतरनाक है, शायद तभी ‘हरक्यूलिस’ को दिये 12 कार्यों में से एक कार्य इसे पकड़ना था।”

आकृति के दिमाग में उस सुनहरी हिरनी को देख अजीब-अजीब से ख्याल आने लगे।

वह सुनहरी हिरनी अपनी मदमस्त चाल से लैडन नदी के किनारे पहुंच गई।

उसे देख शेर ने नदी का रास्ता उसके लिये छोड़ दिया और अपना मुंह दूसरी ओर घुमाकर, इस तरह से चारो ओर देखने लगा, मानो उस सुनहरी हिरनी की वह रखवाली कर रहा हो।

सुनहरी हिरनी ने नदी में अपना पैर रखा और धीरे-धीरे पूरी की पूरी नदी में समा गई।

आकृति के हाथ में अब मकोटा का दिया नीलदंड नजर आने लगा था। वह पुनः अपनी अंगूठी के नग को दबा कर सदृश्य हो गयी।

आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में लहराया।

उस नीलदंड से नीले रंग की रोशनी निकली और नदी किनारे खड़े शेर के मुंह पर पड़ी।

अब हवा में लहराती हुई आकृति शेर के सामने जा खड़ी हुई।

शेर ने आकृति को देखकर दहाड़ने की कोशिश की, पर उसके मुंह से आवाज ना निकली।

एक दो बार और कोशिश करने के बाद शायद शेर समझ गया कि वह दहाड़ नहीं पायेगा, इसलिये उसने अब आकृति को घूरकर देखा और हिंसक भाव से उसकी ओर बढ़ने लगा।

आकृति की एक नजर नदी पर भी थी, फिर भी उसने शेर को अनदेखा नहीं किया।

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आकृति ने अपने नीलदंड को हवा में गायब कर दिया और खाली हाथ ही मुस्कुराते हुए शेर का इंतजार करने लगी।

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आकृति पहले से ही सतर्क थी, उसने अपने शरीर को एक ओर झुकाते हुए, एक ही छलांग में शेर की पीठ पर सवार हो गई और अपनी पूरी ताकत से शेर का गला दबाने लगी।

पता नहीं आकृति के हाथों में कितनी शक्ति थी, कि शेर छटपटा कर अपना गला छुड़ाने की कोशिश करने लगा।

तभी आकृति ने एक झटके से शेर के सिर को पीछे की ओर मोड़ दिया।

असीम शक्ति थी आकृति के हाथों में, शेर की गर्दन टूटकर लटक गयी।

एक मिनट से भी कम समय में निहत्थी आकृति ने खूंखार शेर को निपटा दिया था।

अब उसने एक नजर लैडन नदी पर मारी। आकृति ने एक बार फिर से स्वयं को अदृश्य कर लिया और नदी की ओर चल दी।

वह सुनहरी हिरनी नदी में कहीं नजर नहीं आ रही थी। अतः आकृति भी पानी के अंदर प्रवेश कर गई।

तभी बाहर पड़ा मरा हुआ शेर अचानक से उठा और एक दिशा की ओर भाग गया।

आकृति ने पानी में डुबकी मारी और उस सुनहरी हिरनी को ढूंढती नदी की तली की ओर चल दी ।

ऊपर से पता नहीं चल रहा था, पर अंदर से नदी काफी गहरी थी।

कुछ ही देर में आकृति को नदी की तली में सुनहरी रोशनी सी दिखाई दी। बिना आवाज तैरती हुई आकृति उस सुनहरी रोशनी की ओर चल दी।
पर नदी की तली में जो नजारा दिखाई दिया, वह देख आकृति सिहर उठी।

नदी की तली में एक विशाल ड्रैगन सो रहा था और वह सुनहरी हिरनी, उस ड्रैगन के मुंह के पास कुछ कर रही थी।

जी हां यह वही ड्रैगन था जिसे शैफाली ने अपने सपने में मैग्ना की सवारी बनते देखा था।

पता नहीं ड्रैंगो बेहोश था या सो रहा था, आकृति को यह समझ नहीं आया।

तभी उस सुनहरी हिरनी को अपने पीछे किसी के होने का अहसास हुआ।

उसने पलटकर देखा, पर उसे कोई नजर नहीं आया। तभी उसे पानी की लहरों में थोड़ी सी हलचल होती दिखाई दी।

सुनहरी हिरनी को शक हो गया कि उस दिशा में कोई है? उसने अपनी सोने की सींघों को तेजी से पानी में गोल-गोल लहराया।

सींघों के लहराते ही पानी में एक गोल तरंग सी बन गई, जो उस दिशा की ओर झपटी, जिधर आकृति अदृश्य अवस्था में खड़ी थी।

आकृति को उस सुनहरी हिरनी से ऐसी कोई आशा नहीं थी, इसलिये वह इस वार से बच नहीं पाई।

आकृति उन जल तरंगों से टकरा गई और सदृश्य हो कर सुनहरी हिरनी को दिखाई देने लगी।

सुनहरी हिरनी की नजर जैसे ही आकृति पर पड़ी, वह अपनी सींघों को हिलाकर बिजली की तेजी से आकृति पर झपट पड़ी।

आकृति ने किसी तरह से अपना बचाव कर लिया।

पानी में लड़ने का आकृति को कोई अभ्यास नहीं था, इसलिये वह चाहती थी कि यह सुनहरी हिरनी जितनी जल्दी पानी से बाहर निकले।

अब आकृति के हाथ में नीलदंड नजर आने लगा।

उसने नीलदंड को गोल घुमा कर सुनहरी हिरनी पर ऊर्जा का हमला किया, पर हिरनी की स्पीड पानी में भी बहुत तेज थी। वह आसानी से उस ऊर्जा के वार से बच गई।

पर नीलदंड को देख सुनहरी हिरनी समझ गयी कि आकृति के अंदर चमत्कारी शक्तियां हैं, इसलिये उसने बचकर निकलना ही उचित समझा और नदी की सतह की ओर चल दी।

आकृति यही तो चाहती थी, उसने अपने नीलदंड से, बचकर भागती हिरनी पर एक जाल फेंका।

चूंकि सुनहरी हिरनी की नजर आकृति की ओर नहीं थी, इसलिये वह जाल से बच नहीं सकी और जाल में फंस कर छटपटाने लगी।

आकृति ने जाल को कसा और पानी से निकलकर बाहर आ गयी।

पर बाहर आते ही उसकी नजर नदी के बाहर खड़े शेर और देवी आर्टेमिस पर पड़ी।

आकृति ने आर्टेमिस को देखते ही पहचान लिया। वह एक ग्रीक देवी थी।

ओलंपस पर्वत के 12 देवी-देवताओं में से एक.....शिकार की देवी... जिससे बचना बहुत ही मुश्किल माना जाता था।

आकृति वहां आने से पहले ही आर्टेमिस के बारे में सब कुछ पढ़ चुकी थी।

उसे पता था कि सुनहरी हिरनी आर्टेमिस की बहुत प्रिय है, इसलिये वह आर्टेमिस की बिना जानकारी के सुनहरी हिरनी को यहां से ले जाना चाहती थी।

आर्टेमिस की तीखी निगाहें कभी आकृति पर तो कभी उसके जाल में फंसी सुनहरी हिरनी की ओर जा रही थी।

आकृति आर्टेमिस से युद्ध नहीं करना चाहती थी।

क्यों कि आर्टेमिस से युद्ध करने का मतलब सभी ग्रीक देवताओं को अपने विरुद्ध करना हो जाता। अतः आकृति ने भागने में ही अपनी भलाई समझी।

इससे पहले कि आर्टेमिस कुछ समझ पाती, आकृति के हाथ में नीलदंड चमका और रोशनी के एक झमाके के साथ आकृति सुनहरी हिरनी के साथ गायब हो गयी।

आर्टेमिस को आकृति से इस प्रकार की कोई उम्मीद नहीं थी, इसलिये वह सुनहरी हिरनी को नहीं बचा पायी।

पर आर्टेमिस की आँखों से अब अंगारे बरस रहे थे। वह सोच भी नहीं सकती थी कि कोई मनुष्य इस प्रकार उसकी सबसे प्रिय सुनहरी हिरनी को ले उड़ेगा।

अब वह गुस्से से अपने पैर पटकती, ओलंपस पर्वत की ओर चल दी।


जारी रहेगा_______✍️
Superb update👌🔥
 
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Raj_sharma

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