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मस्त५५ साल की शीला, रात को १० बजे रसोईघर की जूठन फेंकने के लिए बाहर निकली... थोड़ी देर पहले ही बारिश रुकी थी। चारों तरफ पानी के पोखर भरे हुए थे... भीनी मिट्टी की मदमस्त खुशबू से ठंडा वातावरण बेहद कामुक बना देने वाला था। दूर कोने मे एक कुत्तिया... अपनी पुत्ती खुद ही चाट रही थी... शीला देखती रह गई..!! वह सोचने लगी की काश..!! हम औरतें भी यह काम अगर खुद कर पाती तो कितना अच्छा होता... मेरी तरह लंड के बिना तड़पती, न जाने कितनी औरतों को, इस मदमस्त बारिश के मौसम में, तड़पना न पड़ता...
वह घर पर लौटी... और दरवाजा बंद किया... और बिस्तर पर लेट गई।
उसका पति दो साल के लिए, कंपनी के काम से विदेश गया था... और तब से शीला की हालत खराब हो गई थी। वैसे तो पचपन साल की उम्र मे औरतों को चुदाई की इतनी भूख नही होती... पर एकलौती बेटी की शादी हो जाने के बाद... दोनों पति पत्नी अकेले से पड़ गए थे.. पैसा तो काफी था... और उसका पति मदन, ५८ साल की उम्र मे भी.. काफी शौकीन मिजाज था.. रोज रात को वह शीला को नंगी करके अलग अलग आसनों मे भरपूर चोदता.. शीला की उम्र ५५ साल की थी... मेनोपोज़ भी हो चुका था.. फिर भी साली... कूद कूद कर लंड लेती.. शीला का पति मदन, ऐसे अलग अलग प्रयोग करता की शीला पागल हो जाती... उनके घर पर ब्लू-फिल्म की डीवीडी का ढेर पड़ा था.. शीला ने वह सब देख रखी थी.. उसे अपनी चुत चटवाने की बेहद इच्छा हो रही थी... और मदन की नामौजूदगी ने उसकी हालत और खराब कर दी थी।
ऊपर से उस कुत्तीया को अपनी पुत्ती चाटते देख... उसके पूरे बदन मे आग सी लग गई...
अपने नाइट ड्रेस के गाउन से... उसने अपने ४० इंच के साइज़ के दोनों बड़े बड़े गोरे बबले बाहर निकाले.. और अपनी हथेलियों से निप्पलों को मसलने लगी.. आहहहह..!! अभी मदन यहाँ होता तो... अभी मुझ पर टूट पड़ा होता... और अपने हाथ से मेरी चुत सहला रहा होता.. अभी तो उसे आने मे और चार महीने बाकी है.. पिछले २० महीनों से... शीला के भूखे भोसड़े को किसी पुरुष के स्पर्श की जरूरत थी.. पर हाय ये समाज और इज्जत के जूठे ढकोसले..!! जिनके डर के कारण वह अपनी प्यास बुझाने का कोई और जुगाड़ नही कर पा रही थी।
"ओह मदन... तू जल्दी आजा... अब बर्दाश्त नही होता मुझसे...!!" शीला के दिल से एक दबी हुई टीस निकली... और उसे मदन का मदमस्त लोडा याद आ गया.. आज कुछ करना पड़ेगा इस भोसड़े की आग का...
शीला उठकर खड़ी हुई और किचन मे गई... फ्रिज खोलकर उसने एक मोटा ताज़ा बैंगन निकाला.. और उसे ही मदन का लंड समझकर अपनी चुत पर घिसने लगी... बैंगन मदन के लंड से तो पतला था... पर मस्त लंबा था... शीला ने बैंगन को डंठल से पकड़ा और अपने होंठों पर रगड़ने लगी... आँखें बंद कर उसने मदन के सख्त लंड को याद किया और पूरा बैंगन मुंह मे डालकर चूसने लगी... जैसे अपने पति का लंड चूस रही हो... अपनी लार से पूरा बैंगन गीला कर दिया.. और अपने भोसड़े मे घुसा दिया... आहहहहहहह... तड़पती हुई चुत को थोड़ा अच्छा लगा...
आज शीला.. वासना से पागल हो चली थी... वह पूरी नंगी होकर किचन के पीछे बने छोटे से बगीचे मे आ गई... रात के अंधेरे मे अपने बंगले के बगीचे मे अपनी नंगी चुत मे बैंगन घुसेड़कर, स्तनों को मरोड़ते मसलते हुए घूमने लगी.. छिटपुट बारिश शुरू हुई और शीला खुश हो गई.. खड़े खड़े उसने बैंगन से मूठ मारते हुए भीगने का आनंद लिया... मदन के लंड की गैरमौजूदगी में बैंगन से अपने भोंसड़े को ठंडा करने का प्रयत्न करती शीला की नंगी जवानी पर बारिश का पानी... उसके मदमस्त स्तनों से होते हुए... उसकी चुत पर टपक रहा था। विकराल आग को भी ठंडा करने का माद्दा रखने वाले बारिश के पानी ने, शीला की आग को बुझाने के बजाए और भड़का दिया। वास्तविक आग पानी से बुझ जाती है पर वासना की आग तो ओर प्रज्वलित हो जाती है। शीला बागीचे के गीले घास में लेटी हुई थी। बेकाबू हो चुकी हवस को मामूली बैंगन से बुझाने की निरर्थक कोशिश कर रही थी वह। उसे जरूरत थी.. एक मदमस्त मोटे लंबे लंड की... जो उसके फड़फड़ाते हुए भोसड़े को बेहद अंदर तक... बच्चेदानी के मुख तक धक्के लगाकर, गरम गरम वीर्य से सराबोर कर दे। पक-पक पुच-पुच की आवाज के साथ शीला बैंगन को अपनी चुत के अंदर बाहर कर रही थी। आखिर लंड का काम बैंगन ने कर दिया। शीला की वासना की आग बुझ गई.. तड़पती हुई चुत शांत हो गई... और वह झड़कर वही खुले बगीचे में नंगी सो गई... रात के तीन बजे के करीब उसकी आँख खुली और वह उठकर घर के अंदर आई। अपने भोसड़े से उसने पिचका हुआ बैंगन बाहर निकाला.. गीले कपड़े से चुत को पोंछा और फिर नंगी ही सो गई।
सुबह जब वह नींद से जागी तब डोरबेल बज रही थी "दूध वाला रसिक होगा" शीला ने सोचा, इतनी सुबह, ६ बजे और कौन हो सकता है!! शीला ने उठकर दरवाजा खोला... बाहर तेज बारिश हो रही थी। दूधवाला रसिक पूरा भीगा हुआ था.. शीला उसे देखते ही रह गई... कामदेव के अवतार जैसा, बलिष्ठ शरीर, मजबूत कदकाठी, चौड़े कंधे और पेड़ के तने जैसी मोटी जांघें... बड़ी बड़ी मुछों वाला ३५ साल का रसिक.. शीला को देखकर बोला "कैसी हो भाभीजी?"
गाउन के अंदर बिना ब्रा के बोबलों को देखते हुए रसिक एक पल के लिए जैसे भूल ही गया की वह किस काम के लिए आया था!! उसके भीगे हुए पतले कॉटन के पतलून में से उसका लंड उभरने लगा जो शीला की पारखी नजर से छिप नही सका।
"अरे रसिक, तुम तो पूरे भीग चुके हो... यहीं खड़े रहो, में पोंछने के लिए रुमाल लेकर आती हूँ.. अच्छे से जिस्म पोंछ लो वरना झुकाम हो जाएगा" कहकर अपने कूल्हे मटकाती हुई शीला रुमाल लेने चली गई।
"अरे भाभी, रुमाल नही चाहिए,... बस एक बार अपनी बाहों में जकड़ लो मुझे... पूरा जिस्म गरम हो जाएगा" अपने लंड को ठीक करते हुए रसिक ने मन में सोचा.. बहेनचोद साली इस भाभी के एक बोबले में ५-५ लीटर दूध भरा होगा... इतने बड़े है... मेरी भेस से ज्यादा तो इस शीला भाभी के थन बड़े है... एक बार दुहने को मिल जाए तो मज़ा ही आ जाए...
रसिक घर के अंदर ड्रॉइंगरूम में आ गया और डोरक्लोज़र लगा दरवाजा अपने आप बंद हो गया।
शीला ने आकर रसिक को रुमाल दिया। रसिक अपने कमीज के बटन खोलकर रुमाल से अपनी चौड़ी छाती को पोंछने लगा। शीला अपनी हथेलियाँ मसलते उसे देख रही थी। उसके मदमस्त चुचे गाउन के ऊपर से उभरकर दिख रहे थे। उन्हे देखकर रसिक का लंड पतलून में ही लंबा होता जा रहा था। रसिक के सख्त लंड की साइज़ देखकर... शीला की पुच्ची बेकाबू होने लगी। उसने रसिक को बातों में उलझाना शुरू किया ताकि वह ओर वक्त तक उसके लंड को तांक सके।
"इतनी सुबह जागकर घर घर दूध देने जाता है... थक जाता होगा.. है ना!!" शीला ने कहा
"थक तो जाता हूँ, पर क्या करूँ, काम है करना तो पड़ता ही है... आप जैसे कुछ अच्छे लोग को ही हमारी कदर है.. बाकी सब तो.. खैर जाने दो" रसिक ने कहा। रसिक की नजर शीला के बोबलों पर चिपकी हुई थी.. यह शीला भी जानती थी.. उसकी नजर रसिक के खूँटे जैसे लंड पर थी।
शीला ने पिछले २० महीनों से.. तड़प तड़प कर... मूठ मारकर अपनी इज्जत को संभाले रखा था.. पर आज रसिक के लंड को देखकर वह उत्तेजित हथनी की तरह गुर्राने लगी थी...
"तुझे ठंड लग रही है शायद... रुक में चाय बनाकर लाती हूँ" शीला ने कहा
"अरे रहने दीजिए भाभी, में आपकी चाय पीने रुका तो बाकी सारे घरों की चाय नही बनेगी.. अभी काफी घरों में दूध देने जाना है" रसिक ने कहा
फिर रसिक ने पूछा "भाभी, एक बात पूछूँ? आप दो साल से अकेले रह रही हो.. भैया तो है नही.. आपको डर नही लगता?" यह कहते हुए उस चूतिये ने अपने लंड पर हाथ फेर दिया
रसिक के कहने का मतलब समझ न पाए उतनी भोली तो थी नही शीला!!
"अकेले अकेले डर तो बहोत लगता है रसिक... पर मेरे लिए अपना घर-बार छोड़कर रोज रात को साथ सोने आएगा!!" उदास होकर शीला ने कहा
"चलिए भाभी, में अब चलता हूँ... देर हो गई... आप मेरे मोबाइल में अपना नंबर लिख दीजिए.. कभी अगर दूध देने में देर हो तो आप को फोन कर बता सकूँ"
तिरछी नजर से रसिक के लंड को घूरते हुए शीला ने चुपचाप रसिक के मोबाइल में अपना नंबर स्टोर कर दिया।
"आपके पास तो मेरा नंबर है ही.. कभी बिना काम के भी फोन करते रहना... मुझे अच्छा लगेगा" रसिक ने कहा
शीला को पता चल गया की वह उसे दाने डाल रहा था
"चलता हूँ भाभी" रसिक मुड़कर दरवाजा खोलते हुए बोला
उसके जाते ही दरवाजा बंद हो गया। शीला दरवाजे से लिपट पड़ी, और अपने स्तनों को दरवाजे पर रगड़ने लगी। जिस रुमाल से रसिक ने अपनी छाती पोंछी थी उसमे से आती मर्दाना गंध को सूंघकर उस रुमाल को अपने भोसड़े पर रगड़ते हुए शीला सिसकने लगी।
कवि कालिदास ने अभिज्ञान शाकुंतल और मेघदूत में जैसे वर्णन किया है बिल्कुल उसी प्रकार.. शीला इस बारिश के मौसम में कामातुर हो गई थी। दूध गरम करने के लिए वो किचन में आई और फिर उसने फ्रिज में से एक मोटा गाजर निकाला। दूध को गरम करने गेस पर चढ़ाया.. और फिर अपने तड़पते भोसड़े में गाजर घुसेड़कर अंदर बाहर करने लगी।
रूम के अंदर बहोत गर्मी हो रही थी.. शीला ने एक खिड़की खोल दी.. खिड़की से आती ठंडी हवा उसके बदन को शीतलता प्रदान कर रही थी और गाजर उसकी चुत को ठंडा कर रहा था। खिड़की में से उसने बाहर सड़क की ओर देखा... सामने ही एक कुत्तीया के पीछे १०-१२ कुत्ते, उसे चोदने की फिराक में पागल होकर आगे पीछे दौड़ रहे थे।
शीला मन में ही सोचने लगी "बहनचोद.. पूरी दुनिया चुत के पीछे भागती है... और यहाँ में एक लंड को तरस रही हूँ"
सांड के लंड जैसा मोटा गाजर उसने पूरा अंदर तक घुसा दिया... उसके मम्मे ऐसे दर्द कर रहे थे जैसे उनमे दूध भर गया हो.. भारी भारी से लगते थे। उस वक्त शीला इतनी गरम हो गई की उसका मन कर रहा था की गैस के लाइटर को अपनी पुच्ची में डालकर स्पार्क करें...
शीला ने अपने सख्त गोभी जैसे मम्मे गाउन के बाहर निकाले... और किचन के प्लेटफ़ॉर्म पर उन्हे रगड़ने लगी.. रसिक की बालों वाली छाती उसकी नजर से हट ही नही रही थी। आखिर दूध की पतीली और शीला के भोसड़े में एक साथ उबाल आया। फरक सिर्फ इतना था की दूध गरम हो गया था और शीला की चुत ठंडी हो गई थी।
रोजमर्रा के कामों से निपटकर, शीला गुलाबी साड़ी में सजधज कर सब्जी लेने के लिए बाजार की ओर निकली। टाइट ब्लाउस में उसके बड़े बड़े स्तन, हर कदम के साथ उछलते थे। आते जाते लोग उन मादक चूचियों को देखकर अपना लंड ठीक करने लग जाते.. उसके मदमस्त कूल्हे, राजपुरी आम जैसे बबले.. और थिरकती चाल...
एक जवान सब्जी वाले के सामने उकड़ूँ बैठकर वह सब्जी देखने लगी। शीला के पैरों की गोरी गोरी पिंडियाँ देखकर सब्जीवाला स्तब्ध रह गया। घुटनों के दबाव के कारण शीला की बड़ी चूचियाँ ब्लाउस से उभरकर बाहर झाँकने लगी थी..
शीला का यह बेनमून हुस्न देखकर सब्जीवाला कुछ पलों के लिए, अपने आप को और अपने धंधे तक को भूल गया।
शीला के दो बबलों को बीच बनी खाई को देखकर सब्जीवाले का छिपकली जैसा लंड एक पल में शक्करकंद जैसा बन गया और एक मिनट बाद मोटी ककड़ी जैसा!!!
"मुली का क्या भाव है?" शीला ने पूछा
"एक किलो के ४० रूपीए"
"ठीक है.. मोटी मोटी मुली निकालकर दे मुझे... एक किलो" शीला ने कहा
"मोटी मुली क्यों? पतली वाली ज्यादा स्वादिष्ट होती है" सब्जीवाले ने ज्ञान दिया
"तुझे जितना कहा गया उतना कर... मुझे मोटी और लंबी मुली ही चाहिए" शीला ने कहा
"क्यों? खाना भी है या किसी ओर काम के लिए चाहिए?"
शीला ने जवाब नही दिया तो सब्जीवाले को ओर जोश चढ़ा
"मुली से तो जलन होगी... आप गाजर ले लो"
"नही चाहिए मुझे गाजर... ये ले पैसे" शीला ने थोड़े गुस्से के साथ उसे १०० का नोट दिया
बाकी खुले पैसे वापिस लौटाते वक्त उस सब्जीवाले ने शीला की कोमल हथेलियों पर हाथ फेर लिया और बोला "और क्या सेवा कर सकता हूँ भाभीजी?"
उसकी ओर गुस्से से घूरते हुए शीला वहाँ से चल दी। उसकी बात वह भलीभाँति समझ सकती थी। पर क्यों बेकार में ऐसे लोगों से उलझे... ऐसा सोचकर वह किराने की दुकान के ओर गई।
बाकी सामान खरीदकर वह रिक्शा में घर आने को निकली। रिक्शा वाला हरामी भी मिरर को शीला के स्तनों पर सेट कर देखते देखते... और मन ही मन में चूसते चूसते... ऑटो चला रहा था।
एक तरफ घर पर पति की गैरहाजरी, दूसरी तरफ बाहर के लोगों की हलकट नजरें.. तीसरी तरफ भोसड़े में हो रही खुजली तो चौथी तरफ समाज का डर... परेशान हो गई थी शीला!!
घर आकर वह लाश की तरह बिस्तर पर गिरी.. उसकी छाती से साड़ी का पल्लू सरक गया... यौवन के दो शिखरों जैसे उत्तुंग स्तन.. शीला की हर सांस के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे। लेटे लेटे वह सोच रही थी "बहनचोद, इन माँस के गोलों में भला कुदरत ने ऐसा क्या जादू किया है की जो भी देखता है बस देखता ही रह जाता है!!" फिर वह सोचने लगी की वैसे तो मर्द के लंड में भी ऐसा कौनसा चाँद लगा होता है, जो औरतें देखते ही पानी पानी हो जाती है!!
शीला को अपने पति मदन के लंड की याद आ गई... ८ इंच का... मोटे गाजर जैसा... ओहहह... ईशशश... शीला ने इतनी गहरी सांस ली की उसकी चूचियों के दबाव से ब्लाउस का हुक ही टूट गया।
कुदरत ने मर्दों को लंड देकर, महिलाओं को उनका ग़ुलाम बना दिया... पूरा जीवन... उस लंड के धक्के खा खाकर अपने पति और परिवार को संभालती है.. पूरा दिन घर का काम कर थक के चूर हो चुकी स्त्री को जब उसका पति, मजबूत लंड से धमाधम चोदता है तो स्त्री के जनम जनम की थकान उतर जाती है... और दूसरे दिन की महेनत के लिए तैयार हो जाती है।
शीला ने ब्लाउस के बाकी के हुक भी खोल दिए... अपने मम्मों के बीच की कातिल चिकनी खाई को देखकर उसे याद आ गया की कैसे मदन उसके दो बबलों के बीच में लंड घुसाकर स्तन-चुदाई करता था। शीला से अब रहा नही गया... घाघरा ऊपर कर उसने अपनी भोस पर हाथ फेरा... रस से भीग चुकी थी उसकी चुत... अभी अगर कोई मिल जाए तो... एक ही झटके में पूरा लंड अंदर उतर जाए... इतना गीला था उसका भोसड़ा.. चुत के दोनों होंठ फूलकर कचौड़ी जैसे बन चुके थे।
शीला ने चुत के होंठों पर छोटी सी चिमटी काटी... दर्द तो हुआ पर मज़ा भी आया... इसी दर्द में तो स्वर्गिक आनंद छुपा था.. वह उन पंखुड़ियों को और मसलने लगी.. जितना मसलती उतनी ही उसकी आग और भड़कने लगी... "ऊईईई माँ... " शीला के मुंह से कराह निकल गई... हाय.. कहीं से अगर एक लंड का बंदोबस्त हो जाए तो कितना अच्छा होगा... एक सख्त लंड की चाह में वह तड़पने लगी.. थैली से उसने एक मस्त मोटी मुली निकाली और उस मुली से अपनी चुत को थपथपाया... एक हाथ से भगोष्ठ के संग खेलते हुए दूसरे हाथ में पकड़ी हुई मुली को वह अपने छेद पर रगड़ रही थी। भोसड़े की गर्मी और बर्दाश्त न होने पर, उसने अपनी गांड की नीचे तकिया सटाया और उस गधे के लंड जैसी मुली को अपनी चुत के अंदर घुसा दिया।
लगभग १० इंच लंबी मुली चुत के अंदर जा चुकी थी। अब वह पूरे जोश के साथ मुली को अपने योनिमार्ग में रगड़ने लगी.. ५ मिनट के भीषण मुली-मैथुन के बाद शीला का भोसड़ा ठंडा हुआ... शीला की छाती तेजी से ऊपर नीचे हो रही थी। सांसें नॉर्मल होने के बाद उसने मुली बहार निकाली। उसके चुत रस से पूरी मुली सन चुकी थी.. उस प्यारी सी मुली को शीला ने अपनी छाती से लगा लिया... बड़ा मज़ा दिया था उस मुली ने! मुली की मोटाई ने आज तृप्त कर दिया शीला को!!
मुली पर लगे चिपचिपे चुत-रस को वह चाटने लगी.. थोड़ा सा रस लेकर अपनी निप्पल पर भी लगाया... और मुली को चाट चाट कर साफ कर दिया।
अब धीरे धीरे उसकी चुत में जलन होने शुरू हो गई.. शीला ने चूतड़ों के नीचे सटे तकिये को निकाल लिया और दोनों जांघें रगड़ती हुई तड़पने लगी... "मर गई!!! बाप रे!! बहुत जल रहा है अंदर..." जलन बढ़ती ही गई... उस मुली का तीखापन पूरी चुत में फैल चुका था.. वह तुरंत उठी और भागकर किचन में गई.. फ्रिज में से दूध की मलाई निकालकर अपनी चुत में अंदर तक मल दी शीला ने.. !! ठंडी ठंडी दूध की मलाई से उसकी चुत को थोड़ा सा आराम मिला.. और जलन धीरे धीरे कम होने लगी.. शीला अब दोबारा कभी मुली को अपनी चुत के इर्द गिर्द भी भटकने नही देगी... जान ही निकल गई आज तो!!
शाम तक चुत में हल्की हल्की जलन होती ही रही... बहनचोद... लंड नही मिल रहा तभी इन गाजर मूलियों का सहारा लेना पड़ रहा है..!! मादरचोद मदन... हरामी.. अपना लंड यहाँ छोड़कर गया होता तो अच्छा होता... शीला परेशान हो गई थी.. अब इस उम्र में कीसे पटाए??
Behtreen updateइस तरफ.. शीला अभी भी सोच में डूबी हुई थी.. भरी दोपहर में.. घर पर आई हुई छोटी बहन और उसकी सहेली को छोड़कर.. कविता कहाँ गई? शीला की ये आदत थी.. एक बार उसे किसी बात पर शक हो जाए फिर वह बात की जड़ तक पहुंचे बीना उसे छोड़ती नहीं थी.. वह अनुमौसी के घर पहुँच गई.. वहाँ उसे जो जानने मिला वो बिल्कुल झूठ था ये समझ गई शीला.. अनुमौसी ने कहा की कविता दर्जी की दुकान पर अपने ड्रेस का नाप देने गई थी..
शीला वापिस अपने घर लौट आई.. सोफ़े पर बैठे बैठे वह अपना दिमाग दौड़ा रही थी.. "ड्रेस का नाप देने इतनी दोपहर में कौन जाता है भला? और वो भी बिना मौसम या फाल्गुनी को साथ लिए हुए ? कविता जरूर कुछ खिचड़ी पका रही थी.. !! पर उसने मुझे भी नहीं बताया.. वैसे तो वह अपनी हर बात मुझे बताती है.. कहीं उसे मेरे और पिंटू के बारे में तो पता नहीं चल गया !! पर वैसे उसके पति पीयूष ने भी उसकी हाज़री में मेरे स्तन दबाए थे.. तब तो उसे कोई तकलीफ नहीं हुई थी.. तो भला ओर क्या बात हो सकती है !!"
शीला से ये सारी असमंजस बर्दाश्त नहीं हुई.. उसने सीधा कविता को फोन लगाया.. पर कविता ने फोन नहीं उठाया.. उसे शीला भाभी पर बहोत गुस्सा आ रहा था.. भाभी ने पिंटू और मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मेरा प्रेमी के साथ फोन पर गुटरगु करने का क्या मतलब हुआ? अगर कहीं मैं उनके पति मदन के साथ ऐसे फोन पर बातें करूंगी तो क्या वो बर्दाश्त करेगी? एक तरफ वैशाली पीयूष के पीछे पड़ी है.. दूसरी तरफ शीला भाभी मेरे पिंटू के पीछे.. मैं क्या करू? कविता का गुस्सा सातवे आसमान पर था.. उसके दिल को जबरदस्त ठेस पहुंची थी..
रेणुका के घर पहुंचकर कविता चुपचाप बैठी रही.. पानी का गिलास भी उसने बिना पिए छोड़ दिया..
रेणुका: "क्या बात है कविता? बिना झिझक बता मुझे.. अब तो हमारे बीच रिश्ता भी बन गया है.. आप दोनों हमारी कंपनी के परिवार का हिस्सा हो.. और हम तो सहेलियों जैसी है.. बिना किसी संकोच के सारी बात बता.. मैं किसी से इस बारे में बात नहीं करूंगी.. तू चिंता मत कर"
रेणुका की बात सुनकर कविता को बहोत अच्छा महसूस हुआ.. उसने सारी बात उसे बताई.. पीयूष और वैशाली के बारे में.. शीला भाभी और पिंटू के बारे में भी.. रेणुका को पिंटू और कविता के संबंधों के बारे में जानकार ताज्जुब हुआ.. काफी सालों से पिंटू राजेश का सेक्रेटरी था.. पर आज तक उसने पिंटू से कभी बात नहीं की थी..
रेणुका: "देख कविता.. मेरा यह मानना है की किसी के संबंधों में दरार आई हो तो आमने सामने बैठ कर बात को खतम करना चाहिए.. वरना बात का बतंगड़ बनने में देर नहीं लगती.. शीला को मैं अच्छे से जानती हूँ.. वो ऐसा कुछ नहीं कर सकती.. भरोसा रख.. और देख.. तू भी पढ़ी लिखी है.. तुझे इतना संकुचित मन नहीं रखना चाहिए.. विचारों को थोड़ा सा खुला रख.. पिंटू ने एक दो बार बात कर ली.. इसमे कौनसा पहाड़ टूट पड़ा!! और अगर वो तुझे सच में चाहता है तो तेरे पास ही आएगा.. अपने प्रेमी को संभालने अपने ही हाथ में होता है, समझी !! मर्द की अपनी जरूरते होती है.. पूरा दिन घर के काम से थककर कभी कभी हम सीधे सो जाते है.. और यह भूल जाते है की हमारे पति की भी जरूरतें होती है.. इस बारे में हम सोचते ही नहीं.. "
कविता: "ऐसा नहीं है रेणुका जी, मैं पीयूष को सब कुछ देती हूँ जो वो चाहता है.. तो फिर उसे क्या जरूरत पड़ी वैशाली की ओर देखने की?" अपने दिल का दर्द सुनाया उसने
रेणुका: "ऐसा भी तो हो सकता है की जो तू दे रही है वो पीयूष के लिए काफी न हो.. और देख.. मर्दों की तो आदत होती है यहाँ वहाँ मुंह मारने की.. मेरे ही पति की बात ले ले.. बिजनेस टूर पर वह विदेश जाते है.. तब वो भी तो मुंह मारते होंगे.. मैं खुद ही पेकिंग करते वक्त उसकी बेग में कोंडोम का पैकेट रख देती हूँ.. जब मर्द दस पंद्रह दिन के लिए बाहर जाए तब वो अपनी रात की जरूरतों के लिए कुछ कर ले तो उसमें बुरा मानने वाली कौन सी बात है !! ऐसी बातों को मैं अनदेखा कर ही देती हूँ.. तभी संसार आराम से चलता है.. और विश्वास ही सभी संबंधों का स्तम्भ होता है.. जब विश्वास ही डगमगा जाए तब पूरी इमारत ही ढह जाती है.. इसलिए तू ज्यादा मत सोच और पिंटू को मिलकर सारी बातें खुलकर बता.. जो भी बातों पर तुझे शक हो.. या फिर नापसंद हो उसके बारे में बात कर.. तेरे पति को भी तू ओरल-सेक्स का पूरा मज़ा दे.. नहीं तो वो कहीं बाहर ढूंढ लेगा तो गलती तेरी ही होगी.. मेरी बात पर गौर कर और सोचकर कदम उठाना.. बाकी तो तू काफी समझदार है.. अपने पति से ईमानदारी की उम्मीद रख रही है पर तू भी कहाँ दूध की धुली है? क्या तूने पिंटू के साथ अपने संबंधों के बारे में कभी पीयूष को बताया?? नहीं ना !! जीवन में कभी न कभी सभी लोग थोड़ी बहोत बेवफाई तो कर ही लेते है.. और जो बातें प्रतिबंधित होती है उन्ही में सबसे ज्यादा मज़ा भी आता है.. बाकी तो.. ये जीवन एक ही बार मिलता है.. ये याद रखकर.. जहां और जब भी मजे करने का मौका मिले तब चूकना नहीं चाहिए.. "
थोड़ी देर पहले ही पीयूष ने ओरल-सेक्स के बारे में असंतुष्टता जाहीर की थी.. बातों बातों में उसके बारे में भी उसने कविता को बोल ही दिया
कविता ने बड़े ध्यान से रेणुका की बात सुनी.. और अपनी गलती का एहसास होने लगा.. पीयूष जब भी उससे मुंह में लेने के लिए कहता तब वह बड़े ही घिन से वो काम करती.. और वो भी पीयूष की काफी मिन्नतों के बाद.. हो सकता है पीयूष वैशाली की ओर इसलिए भी आकर्षित हुआ हो.. अगर यही बात थी तो फिर आज से वो पीयूष को ये सुख भी पूरे मन से देगी.. पीयूष को और पिंटू दोनों को.. अब पिंटू से भी मीटिंग करनी होगी.. पर कहाँ करू? शीला भाभी के घर एक बार प्रोग्राम बनाया उसमें भाभी ने पिंटू को ही हड़प लिया.. रेणुका जी से ही इस बारे में पूछ कर देखूँ?? पर फिर कहीं ऐसा ना हो की रेणुका ही पिंटू को पटाने की फिराक में लग जाए.. और पिंटू तो उनकी कंपनी में नौकरी भी करता है.. कविता की चिंता ओर बढ़ गई
कविता सोच में डूबी हुई थी तब तक रेणुका ज्यूस को दो ग्लास लेकर आई.. एक ग्लास कविता के हाथ में देकर वह उसके बगल में बैठ गई..
रेणुका: "मेरे हिसाब से तो तुम्हें जल्दी से जल्दी पिंटू से मिलकर सारी बातें क्लीयर कर लेनी चाहिए.. अब तेरे घर मिलना तो मुमकिन नहीं होगा.. अगर तुझे प्रॉब्लेम न हो तो आप दोनों मेरे घर पर मिल सकते है.. वैसे भी राजेश एक बार ऑफिस के लिए निकल जाए फिर रात से पहले वापिस नहीं आता..
पिंटू को फिरसे मिलने के कल्पना मात्र से कविता का चेहरा खिल उठा..
कविता: "रेणुकाजी, वैसे तो हम एकाध बार शीला भाभी के घर पर मिल चुके है.. पर वैशाली के आने के बाद वहाँ मिल पाना भी मुमकिन नहीं है अब.. आप अगर आपके घर हमे मिलने देने के लिए राजी हो तो बड़ी ही मेहरबानी होगी.. हमारा मिलना अब बहुत जरूरी है"
रेणुका: "तो उसे कल ही बुला ले.. मुझे कोई प्रॉब्लेम नहीं है.. मैं तो सामने से कह रही हूँ तुझे"
कविता: "शुक्रिया आपका.. पर मैं आपसे एक और बात करना चाहती हूँ.. असल में, मैं यहीं बात करने यहाँ आई थी"
रेणुका: "हाँ बता ना.. क्या बात है ?"
कविता: "जी बात दरअसल ऐसी है की मेरी छोटी बहन मौसम और उसकी फ्रेंड वेकेशन में मेरे घर आई हुई है.. उन दोनों को लेकर, मैं और पीयूष कहीं बाहर जाने का प्रोग्राम बना रहे है.. अब वैशाली भी साथ आने वाली है.. मैं वैशाली को ले जाने के लिए मना करती हूँ तो पीयूष नाराज हो जाएगा क्योंकि उसे वैशाली पसंद है.. वो जिद करके भी वैशाली को साथ लेगा ही लेगा.. मैं अगर खुलकर मना करूंगी तो शीला भाभी बुरा मान जाएगी.. अब शीला भाभी हमारे साथ आने से मना कर रही है.. मुझे डर है, कहीं मेरी गैर-मौजूदगी में वो पिंटू के घर बुला लेगी.. यहाँ पिंटू शीला भाभी के साथ और वहाँ वैशाली पीयूष के साथ .. मेरी हालत आप समझ सकती हो!!"
रेणुका: "हम्म.. समस्या तो गंभीर है.. पर इसमे मैं क्या कर सकती हूँ?"
कविता: "मेरा दिमाग काम नहीं कर रहा है.. इसलिए आपकी मदद मांगने आई हूँ.. रेणुकाजी, आप मुझे कुछ ऐसा तरीका या तरकीब बताइए जिससे मैं पीयूष और पिंटू दोनों को उन माँ-बेटी से बच सकूँ"
कविता के घबराहट के मारे ऊपर नीचे होते हुए कच्चे अमरूद जैसे स्तनों को रेणुका देखती ही रही.. और अपनी जीभ न चाहते हुए भी होंठों पर फेर दी.. मन में आए उस विचार को रेणुका ने दिमाग से निकाल दिया.. फिलहाल ऐसे विचारों के लिए योग्य वक्त नहीं था
रेणुका: "सोचना पड़ेगा.. रास्ता ढूँढने में और सोचने में थोड़ा वक्त तो लगेगा"
कविता: "वक्त ही तो नहीं है मेरे पास.. आज सोमवार है.. गुरुवार और शुक्रवार को छुट्टी लेकर चार दिन घूमने जाने का प्लान है.. कोई तरीका सोचे भी तो उसके अमल के लिए समय तो चाहिए ना"
रेणुका: "तू एक काम कर.. बीमारी का बहाना बनाकर पूरी ट्रिप ही केन्सल कर दे"
कविता: "नहीं नहीं रेणुकाजी, मेरी बहन और उसकी सहेली का बड़ा मन है घूमने जाने का.. उनका दिल टूट जाएगा"
रेणुका: "देख कविता.. तू पिंटू और पीयूष के बारे में डरना छोड़ दे.. अगर वह दोनों सच में तेरे है तो कहीं नहीं जाएंगे.. और जाएंगे भी तो वापिस लौट आएंगे.. अगर नहीं आते तो समझ लेना की वो कभी तेरे थे ही नहीं.. प्यार एक बंधन है.. मन से स्वीकार किया हुआ बंधन.. कोई कैद नहीं.. दूसरी बात.. तू पिंटू के साथ जो कुछ भी करती है.. उस वक्त तुझे पीयूष की याद नहीं आती या कोई अपराधभाव महसूस नहीं होता?? तू पीयूष से ईमानदारी की अपेक्षा तो रखती है पर खुद उस पर अमल तो कर नहीं रही !!!"
यह सुनकर कविता का मुंह इतना सा हो गया..
कविता: "सच कहूँ रेणुकाजी.. पीयूष का खयाल तो मन में बहोत आता है.. पर जब भी मैं पिंटू के साथ होती हूँ तब मेरा दिमाग काम करना बंद कर देता है.. विवश हो जाती हूँ मैं.. अच्छे-बुरे का फरक भी समझ नहीं आता.. और उसके एक बार बुलाने पर दौडी चली जाती हूँ.. पर पिंटू को मिलने के बाद जब घर लौटकर पीयूष का सामना करती हूँ तब जरूर गिल्टी फ़ील होता है.. बुरा लगता है.. और सोचती हूँ की फिर कभी पिंटू से मिलने नहीं जाऊँगी.. पीयूष को धोखा नहीं दूँगी.. पर जैसे ही हफ्ता-दस दिन का समय बीतता है.. दिल फिर से फुदकने लगता है.. ऐसा लगने लगता है की मेरे पास सिर्फ मेरा शरीर है.. आत्मा तो पिंटू के कब्जे में है.. उसके बिना मुझे मेरा जीवन ही अधूरा सा लगता है.. आपको पता नहीं है.. ये प्यार मुझे कितना रुलाता है.. क्या आपने कभी किसी से ऐसा प्यार किया है?"
बड़ा पर्सनल सवाल पूछ लिया कविता ने और फिर उसके मन में आया की उसे ये सवाल पूछना नहीं चाहिए था..
रेणुका: "नहीं.. मैंने कभी किसी से इस तरह प्रेम नहीं किया.. कभी जरूरत ही नहीं पड़ी.. ये तो पिछले एक साल से अकेलेपन से जुज़ रही थी.. सिर्फ जिस्म की जरूरत नहीं है.. राजेश और मैं काफी बातों पर सहमत नहीं है.. काफी बहस होती रहती है हम दोनों के बीच.. मुझे संगीत, ग़ज़ल और डांस का शोख है तो राजेश पूरा औरंगजेब है.. मुझे अपने साथी के साथ आराम से बैठकर प्यार भरी जज्बाती बातें करना बहोत पसंद है.. लेकिन राजेश खाना खाकर अपना लेपटॉप लेकर बैठ जाता है.. उसकी ऐसी अवहेलना को झेलकर मैं बेडरूम में जाकर सो जाती हूँ.. तो वो साढ़े दस बजे मुझे जगाने आ जाता है.. और कहता है की 'तुम औरतों को सोने के अलावा ओर कोई काम ही नहीं है.. मेरे साथ सेक्स करने का तुझे मन ही नहीं करता '
रेणुका लगातार बोलकर अपने दिल की भड़ास निकाल रही थी
रेणुका: "ये मर्द लोग भी हमारा दर्द न जाने कब समझेंगे? हमें क्या चाहिए या फिर क्या पसंद है.. किस बात को लेकर तड़प रहे है.. उन्हे तो बस बिस्तर पर पड़ते ही कपड़े उतारने में दिलचस्पी होती है.. पिछले कुछ वक्त से राजेश लगभग सेक्स-मेनीयाक बन गया है.. मेरे साथ जबरदस्ती भी करने लगा है"
कविता: "जबरदस्ती??? क्या कोई पति अपनी पत्नी के साथ जबरदस्ती कर सकता है? जरूरत ही क्या है? सेक्स करने के लिए तो पति पत्नी को समाज ने ही तो अनुमति दी हुई है.. दोनों जो चाहे वो कर सकते है इसमे जबरदस्ती की बात कहाँ से आई?"
रेणुका: "मेरी बात को अच्छे से समझ.. हमारा मुड़ रोज एक जैसा तो होता नहीं है.. कभी कभी हम शरीर से.. कभी मन से.. कभी सामाजिक जिम्मेदारियों से थके हुए होते है.. कभी किसी बात से डिस्टर्ब भी हो सकते है.. तब सेक्स का मन नहीं करता.. पर अगर मैं मना करू तो राजेश मेरे ऊपर टूट पड़ता है.. मेरे जिस्म पर काटता है.. अरे कभी कभी तो पिरियड्स के दिनों में भी जिद करता है.. और में मना करू तो कहता है की मुंह में लेकर डिस्चार्ज करवा दे.. ये बिजनेस टूर पर विदेशों में घूम घूम कर ज्यादा जिद्दी हो गया है.. वहाँ की फिरंगी वेश्याओं को तो पैसे मिलते है ये सब करने के.. पर राजेश वहाँ से ये सब उल्टा सीधा सीखकर आते है और मुझपर जबरदस्ती करते है.. " रेणुका जज्बाती हो गई
उसका दर्द समझ सकती थी कविता.. रेणुका के दिल में एक अजीब सी खलिश थी.. जो प्यार और दुलार चाहती थी
रेणुका ने बात आगे चलाई "अब मैंने भी बहस करना छोड़ ही दिया है.. वो जैसे चाहते है वैसा मैं करती हूँ.. पर ऐसी ज़िंदगी से मैं ऊब चुकी हूँ.. इसलिए मुझे किसी ऐसे साथी की तलाश है जो मुझे समझ सके.. तू किस्मत वाली है.. दिल का दुखड़ा सुनाने के लिए तेरे पास पिंटू जो है.. जो है तेरे पास उससे खुश रहना सीख और उसे संभाल कर रख.. मैं तेरी और पिंटू की मीटिंग का बंदोबस्त करती हूँ.. अब खुश !!"
कविता के चेहरे पर मुस्कुराहट आ गई.. और पूरा कमरा उस मुस्कान से झगमगा उठा और एक ही पल में वह फिर से उदास हो गई
कविता: "मतलब मैं घूमने जाऊ और वैशाली पीयूष को लाइन मारे यह बर्दाश्त करती रहू.. ?? "
रेणुका: "नहीं.. उसके लिए मैं एक मास्टर प्लान बना रही हूँ.. तू चिंता मत कर.. जिन चार दिन की तू बात कर रही है.. उन चार दिनों में, मैं खुद ही अपनी कंपनी की टूर का आयोजन करूंगी.. हम सब साथ ही जाएंगे.. पिंटू, पीयूष और मैं.. हम सब साथ में ही होंगे.. अगर पीयूष और वैशाली कुछ उल्टा सीधा करे तो तू भी पिंटू के साथ शुरू हो जाना.. कम से कम दोनों तेरी नजर के सामने तो रहेंगे.. !! और शीला के बारे में डरना छोड़ दे.. तू मान रही है उतनी बुरी शीला नहीं है.. मैं उसे अच्छी तरह जानती हूँ.. तुझे पता है.. शीला का तो पहले से ही कहीं और चक्कर चल रहा है?"
कविता के मन के समाधान के लिए रेणुका ने एक ही पल में शीला का राज खोल दिया "वो तुम्हारे यहाँ दूध देने आता है उसका क्या नाम है?"
"रसिक.. " कविता ने जवाब दिया
"हाँ रसिक.. उसके साथ ही शीला का चक्कर चल रहा है.. अब एक औरत कितने चक्कर चलाएगी? इसलिए तू अपने पति और पिंटू की चिंता छोड़ दे.. अगर शीला उनसे बात करती है.. थोड़ा बहोत फ्लर्ट करती है.. तो उसमें हर्ज ही क्या है? इतना तो चलता है यार.. मॉडर्न ज़माना है.. थोड़ा अपनी सोच को खोलना सीख.. और शीला तेरे प्रेमी को छीन लेगी ये मैं नहीं मानती.. और मान ले अगर ऐसा कर भी लिया तो कितने दिन कर पाएगी? कुछ ही दिनों में उसका पति लौटने वाला है.. एक बार मदन के लौटने के बाद शीला को थोड़े ही ऐसे मौके मिलेंगे?"
रेणुका की बातों से कविता की हिम्मत बढ़ गई.. उसे विश्वास हो गया की पिंटू सुरक्षित था। शीला भाभी के पति कुछ ही दिनों में वापिस आने वाले थे उसके बाद तो भाभी कुछ कर ही नहीं पाएगी.. और वैसे भी भाभी ने मेरे लिए बहुत कुछ किया है.. अपने घर पर मेरे और पिंटू के मिलने का सेटिंग किया था.. उस दिन मूवी थीयेटर में भी पिंटू के साथ मजे करने का जुगाड़ सेट किया था.. मुझे उनका उपकार भूलकर उनपर शक नहीं करना चाहिए..
शीला के प्रति जो कड़वाहट कविता के मन में थी वो अब भांप बनकर गायब हो चुकी थी
कविता: "ठीक है रेणुकाजी, मैं अब चलती हूँ.. आपने ये कंपनी ट्रिप की बात करके मेरा मन हल्का कर दिया.. अब हम सब साथ में मजे करेंगे"
रेणुका: "साथ में कहाँ.. तू तो पिंटू के साथ मजे करेगी.. " कविता को चिढ़ाते हुए रेणुका ने कहा
दोनों हंस पड़े..
अब कविता वहाँ से निकल गई और फटाफट ऑटो पकड़कर घर पहुंची.. शीला ने उसे रिक्शा से उतरते हुए देखा पर कुछ पूछा नहीं.. पर उसकी पारखी नजर ने तुरंत भाप लिया.. कविता जरूर कुछ गुल खिलाने गई थी.. ज्यादा से ज्यादा पिंटू के साथ कहीं चुदवाने गई होगी.. और क्या !!! घर पर उसकी बहन है.. और मेरे घर पर वैशाली आई हुई है.. बेचारी और कर भी क्या सकती है.. !! शीला घर के काम में मशरूफ़ हो गई.. काम करते करते उसकी नजर केलेंडर पर पड़ी.. अभी और ८ दिन बचे थे मदन को लौटने में.. मदन की जुदाई में एक एक दिन भारी पड़ रहा था शीला को.. एक ही प्रकार के इस जीवन से अब ऊब चुकी थी शीला.. वैशाली कहीं बाहर गई हुई थी.. अपनी सहेली फोरम के साथ.. आज बड़े दिनों बाद शीला घर पर अकेली थी.. अकेलेपन में सेक्स के विचार दिमाग पर हावी हो जाते थे..
Dearest Napster bhai..बहुत ही सुंदर लाजवाब और अद्भुत मनमोहक अपडेट हैं भाई मजा आ गया
हिंमत से चुद जाने के बाद वैशाली पर चुदाई का नशा छा रहा हैं ये बात शीला के भी नजर में आ गया
होटल में वैशाली और पियुष के बीच खिचडी पकते पकते रह गयी
खैर देखते हैं आगे क्या होता है
मौसमी
"दीदीईईईईई................!!!" किसी लड़की की शरारती चीख ने अनुमौसी के घर पर सब को चोंका दिया.. खाना पका रही कविता ने उस परिचित आवाज को पहचान लिया.. वह भागकर बाहर आई
"अरे.. क्या बात है !! मौसम तू यहाँ कैसे?? किसके साथ आई है? आने से पहले फोन तो किया होता, मैं तुझे लेने आ जाती" कविता की खुशी का कोई ठिकाना न रहा.. मौसम कविता की छोटी बहन थी
"अगर फोन करती तो तुम्हें सरप्राइज़ कैसे दे पाती?"
कविता हाथ पकड़कर अपनी छोटी बहन को घर के अंदर ले गई
अनुमौसी: "अरे, बेटा मौसम.. कैसी हो? परीक्षा खतम हो गई तेरी?"
मौसम: "ठीक हूँ आंटी.. ये बोर्ड की परीक्षा ने परेशान कर रखा था.. बाप रे.. पढ़ पढ़कर जान निकल गई मेरी.. और दुनिया भर की पाबंदियाँ.. टीवी मत देखो.. सहेलियों से मिलने मत जाओ.. मूवी देखने मत जो.. बस पूरा दिन पढ़ते ही रहो.. मैंने तय किया था की परीक्षा खतम होते ही मैं आप सब को मिलने आऊँगी"
अनुमौसी: "हाँ भई.. अब तो पढ़ाई लिखाई का ही जमाना है.. हमारे जमाने में तो लड़कियों को लिखना पढ़ना सिखाकर ब्याह देते थे.. तू अब यहाँ आराम से रहना और अपनी थकान उतारना"
मौसम: "हाँ आंटी.. दीदी के हाथ का बना बोर्नवीटा वाला दूध पीऊँगी तो मेरी सारी थकान उतर जाएगी" खिलखिलाकर हँसती हुई मौसम ने मंदिर की घंटी जैसी सुरीली आवाज में कहा
मौसम.. मौसम.. मौसम.. बारिश की पहली बूंद जैसी.. छोटी हिरनी जैसी.. मोती चुनते राजहंस जैसी..चहचहाती चिड़िया जैसी..
कविता मौसम को देखकर बेहद खुश हो गई.. मायके की हर चीज लड़की को प्यारी होती है.. और ये तो उसकी सगी छोटी बहन थी.. देखने में कविता जैसी ही.. पर थोड़ी सी ज्यादा सुंदर.. अठारह की हो चुकी थी मौसम.. बिंदास और शरारती स्वभाव की मौसम को देखते ही जो बात सबसे ज्यादा ध्यान खींचती थी.. वो थी उसकी मुस्कुराहट.. जब वो हँसती थी तब उसके गाल के डिम्पल इतने प्यारे लगते थे की देखने वाले की नजर ही न हटे.. उसके सहपाठी लड़के मॉसम के गालों के गड्ढों को देखने के लिए तरसते रहते.. सुराहीदार गर्दन.. मोम की पुतली जैसा जिस्म.. मीठी आवाज.. मौसम को देखने में ही सब ऐसे खो गए की उसके साथ आई लड़की का स्वागत करना ही भूल गए.. उस लड़की पर अनुमौसी का ध्यान गया
"अरे मौसम का स्वागत करने में हम सब इस लड़की को तो भूल ही गए.. !!" अनुमौसी ने कविता से कहा.. लगभग मौसम की उम्र की लड़की की पीठ सहलाते हुए उन्हों ने पूछा "क्या नाम है तेरा बेटा ?"
"जी नमस्ते आंटी जी, मेरा नाम फाल्गुनी है"
"मम्मी जी, हमारे पड़ोस में रहते सुधीरअंकल की बेटी है फाल्गुनी.. इसके और मौसम के बीच ऐसी गहरी दोस्ती है की दोनों कभी अलग होती ही नहीं है.. मैंने ही कहा था मौसम से.. की जब भी यहाँ आए तब फाल्गुनी को साथ लेते आए.. वो भी बेचारी थोड़ी फ्रेश हो जाएगी.. क्यों सही कहा ना मैंने फाल्गुनी?" हँसते हुए कविता ने कहा
फाल्गुनी: "हाँ दीदी, बड़ी मुश्किल से तो वेकेशन मिलता है.. और तभी ये पगली यहाँ दौड़ आती है.. फिर मैं अकेली वहाँ क्या करू? बोर हो जाती मैं.. इसलिए यहाँ इसके साथ ही आ गई.. अब पूरा एक महिना आपका दिमाग खाऊँगी.. " फाल्गुनी का स्वभाव ही ऐसा था की आते ही सब के साथ घुलमिल गई
फाल्गुनी.... बोलने के समय बोलती थी पर वैसे काफी शांत.. थोड़ी सी गंभीर.. गोरी और कद में ऊंची थी.. उसे देखते ही सब से पहली जो चीज नजर आती थी वो थे उसके घने लंबे बाल.. उसकी चोटी घुटनों तक लंबी थी.. बरसात के बादलों जैसे काले बाल!!
इन दोनों चिड़ियाओं की चहचहाट से अनुमौसी के पूरे घर में जान आ गई.. दोनों हरदम इतनी बातें कर रही थी.. थकती ही नहीं थी.. कविता किचन में खाना बनाने गई.. साथ में ये दोनों भी उसकी मदद करने गए.. अनुमौसी बाहर निकली.. थोड़ा सा चलने के लिए.. रास्ते में ही उन्हे शीला मिल गई.. जो सब्जी लेकर आ रही थी
शीला और मौसी काफी दिन बाद मिले थे.. दोनों बातों में मशरूफ़ हो गई.. बातों ही बातों में शीला ने मौसी को वैशाली के वैवाहिक जीवन की परेशानी के बारे में बताया.. अपने दामाद संजय के बारे में भी कहा.. कैसे वो कुछ काम नहीं करता और उधार लेकर गुलछर्रे उड़ाता रहता है.. अनुभवी अनुमौसी से शीला को मार्गदर्शन की अपेक्षा थी इसीलिए वह अपनी बेटी के निजी जीवन की सारी बातें बता रही थी
एक लंबी सांस लेकर अनुमौसी ने कहा "अब ऐसी स्थिति में क्या कर सकते है ? बेचारी वैशाली के पास बर्दाश्त करने के अलावा ओर कोई चारा नहीं है.. अगर वो अलग होना चाहती है अभी सही वक्त होगा ऐसा करने के लिए.. जैसे जैसे समय बीतता जाएगा, समस्या ओर गंभीर बन जाएगी"
शीला: "आपने कहा अभी सही वक्त है, मतलब? मैं समझी नहीं.."
अनुमौसी: "देख शीला.. पति-पत्नी के झगड़े अक्सर रात को बिस्तर पर जाते ही थम जाते है.. भगवान न करें कहीं वैशाली प्रेग्नन्ट हो गई तो?? बच्चे के आने के बाद तलाक काफी कठिन और मुश्किल हो जाएगा.. ये था मेरे कहने का मतलब!!"
शीला डर गई "मौसी.. कहीं वैशाली पहले से प्रेग्नन्ट तो नहीं होगी ना.. !!"
अनुमौसी: "तू उसकी माँ है.. सीधा पूछ ही ले.. जो होगा वो बता देगी तुझे.. और अगर हुई भी तो बिना किसी शोर-शराबे के बच्चे को गिरा दे.. अगर तेरे दामाद के सुधरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे है तो.. और हाँ.. उस कमीने को भनक नहीं लगनी चाहिए अगर वैशाली प्रेग्नन्ट हुई तो.. वरना वो कमीना उसे ब्लेकमेल कर सकता है" अपने सालों के अनुभव को सांझा किया मौसी ने
ये सुनकर मन ही मन कांप उठी शीला.. पर वो भी हार मानने वालों में से नहीं थी.. संजय को तो सबक सिखाना ही पड़ेगा.. ऐसे कैसे वो किसी लड़की का जीवन तबाह करके ऐशोआराम की जिंदगी बीता सकता है!! वैशाली से बात करने का निश्चय करके शीला घर लौटी
रात का खाना खाकर जब दोनों माँ-बेटी झूले पर बैठे थे तब शीला ने वैशाली से सब कुछ पूछ लिया.. बातों बातों में उसने संजय और वैशाली के बेडरूम के जीवन के बारे में भी पूछ लिया.. जब शीला ने ये जाना की वैशाली भरी जवानी में शारीरिक भूख से तड़प रही थी तब उसका दिल ही बैठ गया.. इस उम्र में मुझसे रहा नहीं जाता तो ये बेचारी कैसे गुजारा करती होगी !!! इस बारे में मैं भी क्या कर सकती हूँ?? वाकई बिना पति के रहना बेहद कठिन है.. वैशाली के वैवाहिक जीवन को कैसे बचाया जाए ये सोचते हुए उसने वैशाली से संजय की कमजोरियों के बारे में पूछ लिया.. आखिर उन दोनों के बीच के झगड़े की जड़ तक जाना जरूरी था.. वो क्या कारण था की जिसके कारण दोनों के बीच अनबन शुरू हुई? इस बारे में सब कुछ जानना जरूरी था पर कुछ बातें ऐसी थी जो वो वैशाली से सीधे पूछ नहीं सकती थी.. इसके लिए शीला ने कविता की मदद लेने का तय किया.. दोनों माँ बेटी साथ में बिस्तर पर बातें करते हुए सो गई
सुबह शीला ने कविता को फोन किया.. अपनी छोटी बहन और उसकी सहेली की मौजूदगी के चलते कविता ने आने में असमर्थता जताई.. पर वादा किया की समय मिलते ही वह तुरंत मिलने आएगी..
शीला ने अब चेतना को फोन किया.. यह जानने की संजय के बारे में जानकारी प्राप्त करने का जो काम उसने चेतना को दिया था उस में कुछ जानने मिला भी या नहीं !!
चेतना: "सच कहूँ शीला.. दो दिन से मैं कुछ न कुछ काम में ऐसी उलझी रही की तेरे दामाद के बारे में पता करने का वक्त ही नहीं मिला.. हाँ सुबह सुबह गेस्टहाउस की बालकनी में वो खड़ा जरूर होता है.. बाकी कुछ नया जानने को मिलेगा तो में तुरंत तुझे बताऊँगी" चेतना ने अपनी जूठी कहानी सुनाई
फोन रखकर शीला सोच में पड़ गई.. आज ये चेतना की आवाज में झिझक क्यों महसूस हो रही थी!! हर बार की तरह बात नहीं कर रही थी वो.. जैसे कुछ छुपा रही हो.. !!
क्या करू? किस से कहू? शीला ने वैशाली की किसी सहेली की मदद लेने का सोचा.. काफी देर तक सोचते रहने के बाद उसे फोरम की याद आई.. वैशाली की कॉलेज की सहेली.. थोड़ी दिन पहले ही मंडी में फोरम की मम्मी शीला को मिल गई थी..फोरम ने प्रेम विवाह किया था और वो इसी शहर में रहती थी.. पर वो कहाँ रहती थी ये पता नहीं था..
शीला सोचती रही.. सोचती रही.. सोचती रही.. फिर उसे याद आया की टेलीफोन डायरी में उसका नंबर लिखा होगा.. वैशाली कहीं बाहर गई थी.. शीला ने डायरी निकाली और फोरम के घर का लेंडलाइन नंबर ढूंढकर फोन लगाया.. किसी पुरुष ने फोन उठाया
शीला ने नम्र आवाज में पूछा "जी आप कौन?"
"जी मैं मणिलाल ठक्कर.. आपको किसका काम है?"
"आप, फोरम के पापा हो ना.. !!"
"जी हाँ.. पर आप कौन बोल रही है?"
"जी नमस्ते, मेरा नाम शीला है.. मेरी बेटी वैशाली और फोरम दोनों सहेलियाँ है"
"ओह नमस्ते शीला बहन.. कैसे है आप? वैशाली को अच्छे से जानता हूँ मैं.. वह अक्सर मेरे घर आती रहती थी.. कहिए क्या काम था?"
"जी मुझे फोरम का काम था.. "
"वो तो अपने ससुराल है.. कुछ अर्जेंट काम हो तो आप उसके मोबाइल पर कॉल कर सकती है.. मैं नंबर देता हूँ"
"हाँ हाँ.. नंबर दीजिए प्लीज.. काम तो वैसे कुछ खास नहीं है.. वैशाली मायके आई हुई है.. वो फोरम को याद कर रही थी.. तो सोचा उसे फोन कर दु"
शीला ने चालाकी से फोरम का नंबर जान लिया.. और फोरम को फोन किया.. फोरम को संक्षिप्त में सारी बात समझकर उसे इस बारे में जानकारी प्राप्त करके मदद करने के लिए कहा
फोरम: "आंटी, आप चिंता मत कीजिए.. मैं सब कुछ जान लूँगी"
शीला: "मैंने तुझे फोन किया है इस बारे में वैशाली को पता नहीं चलना चाहिए"
फोरम: "मैं उसे कुछ नहीं बताऊँगी.. आप इत्मीनान रखिए.. मैं ऐसे आ टपकूँगी और उससे सारी बातें पूछ लूँगी"
शीला: "ठीक है बेटा.. मुझे बहोत चिंता हो रही है.. तू सब कुछ जान ले फिर आगे क्या करना वो पता चले मुझे"
शाम को शीला और वैशाली खाना खा रहे थे तभी डोरबेल बजी.. वैशाली ने उठकर दरवाजा खोला और अचंभित हो गई
"अरे.. फोरम तू.. !!!! तुझे कैसे पता चला की मैं यहाँ हूँ" वैशाली ने फोरम को गले से लगा लिया..
फोरम: "कुछ दिन पहले मेरी मम्मी आंटी से बाजार में मिली थी.. तभी उन्होंने बताया था की तू आई है.. तो आ गई मैं तुझे सप्राइज़ देने.. तू बता यार.. कैसा चल रहा है सब कुछ? तो तो यार मस्त गोरी हो गई कलकता जा कर.. "
शीला: "आओ बेटा फोरम.. वैशाली खाना ठंडा हो रहा है.. पहले खाना खतम कर.. फिर दोनों आराम से बातें करना.. फोरम, तू भी आजा.. थोड़ा सा खा ले.. "
फोरम: "नहीं आंटी, मैं खाना खाकर ही आई हूँ.. " कहते हुए वो डाइनिंग टेबल पर वैशाली के साथ बैठ गई..
शीला ने खाना जल्दी खतम किया और खड़ी हो गई "आप दोनों आराम से बात करो.. मुझे थोड़ा काम है" दोनों को अकेले बात करने का मौका देने के लिए शीला चली गई
फोरम ने बातों बातों में वैशाली से जान लिया की संजय और उसके बीच क्या तकलीफ थी.. उन दोनों के संबंध काफी खराब हो चुके थे.. दोनों बहोत ही खास सहेलियाँ थी इसलिए वैशाली सब कुछ बेझिझक फोरम को बताया.. सब कुछ.. यहाँ तक की बेडरूम लाइफ के बारे में भी
वैशाली और फोरम को प्राइवसी देने के लिए शीला अनुमौसी के घर चली आई.. कविता और पीयूष दोनों शीला को देखकर खुश हो गए.. शीला जब मौसी से बात कर रही थी तब चिमनलाल सोफ़े पर हिप्पो की तरह लेटे हुए आई.पी.एल के मेच देख रहा था.. तीरछी नज़रों से वो शीला के स्तनों को देख रहा था इस बात का पता था शीला को.. किसी भी एंगल से लाइन मारने योग्य नहीं था चिमनलाल.. इसलिए उसकी नजर शीला को चुभ रही थी.. ऊपर से पीयूष जिस तरह से मौसम के कंधे पर हाथ रखकर हंस हँसकर बात कर रहा था ये देखकर शीला थोड़ी ओर अस्वस्थ हो गई.. इस हरामी पीयूष को जवान साली क्या मिल गई.. मेरे सामने तो देख भी नहीं रहा!! उस रात मूवी देखते वक्त तो मेरे बबलों पर टूट पड़ा था कमीना..
मौसम की छाती पर नजर फेरते ही शीला को पता चल गया की माल एकदम कोरा था.. अभी तक किसी का हाथ नहीं पड़ा था उसके सख्त और विकसित हो रहे स्तनों पर..
उसके स्तन जवान थे तो शीला के स्तनों में बड़े आकार का जादू था.. पीयूष का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी एक तरफ की ब्लाउस की कटोरी खुली होते ही पीयूष एल.बी.डब्ल्यू हो गया.. अब वो बार बार शीला के उरोज को देख रहा था ये बात कविता के ध्यान में भी थी
मौसम और फाल्गुनी इन नज़रों के खेल से अनजान थी क्योंकि वो दोनों शीला के बगल में बैठी थी.. कविता पीयूष के पास बैठी थी.. शीला के मदमस्त उरोजों को देखकर वो भी मन ही मन आहें भर रही थी.. सोच रही थी.. एक लड़की होकर भी मेरी नजर शीला के स्तनों पर चिपक जाती है.. तो बेचारे पीयूष का क्या दोष? अनुमौसी भी इन सब से अनजान तो नहीं थे पर रीटायर हो चुके खिलाड़ी की तरह वह सबकुछ देखते हुए शीला से बातें कर रही थी
मौसम: "जीजू, आप कल हमें घुमाने लेकर चलेंगे ना !! "
पीयूष: "कल तो मुश्किल होगा मौसम.. ऑफिस में बहोत काम है.. तू कविता को ही बोल.. वो तुझे ले जाएगी घुमाने"
शीला: "जहां भी जाओ.. वैशाली को साथ लेकर ही जाना.. वो बेचारी अकेले अकेले बोर हो जाती है"
वैशाली का जिक्र होते ही पीयूष की आँखें चमक उठी.. ये बात शीला की नज़रों से छिपी नहीं थी.. वो सोच में पड़ गई.. कहीं वैशाली और पीयूष के बीच भी कुछ.. ??? ये मादरभगत माँ और बेटी दोनों को घुमा रहा है शायद..
शीला: "मैं चलती हु अब.. साढ़े दस बज गए.. "
कविता: "बैठिए ना भाभी.. वैसे वैशाली कहाँ है? दिखी ही नहीं.. उस दिन संजयकुमार को भी देखा था मैंने.. कहीं बाहर तो नहीं गए वो दोनों?"
संजय का नाम सुनते ही पीयूष का दिमाग खराब हो गया.. उसने कुछ सोचकर कहा "मैं देखता हूँ.. अगर राजेश सर मुझे छुट्टी देते है तो मैं परसों गुरुवार और शुक्रवार दो दिन की छुट्टी ले लूँगा.. शनिवार और रविवार को वैसे भी छुट्टी है.. चार दिन कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते है.. शीला भाभी और वैशाली को भी साथ ले लेंगे.. मज़ा आएगा"
ये सुनते ही मौसम उछल पड़ी और पीयूष को गले लगाकर बोली "थेंकयू जिजू.." मौसम के इस बर्ताव से किसी को ताज्जुब नहीं हुआ पर शीला की नजर मौसम के कच्चे अमरूद जैसी चूचियों पर गई जो पीयूष के शरीर से दबकर चपटी हो गई थी..
"आप चलोगे ना भाभी?" पीयूष ने आँख मारते हुए शीला से पूछा
"देखते है.. अगर वैशाली राजी हो गई तो चलूँगी.. उसे अकेला छोड़कर कैसे आ सकती हूँ? और अगर संजयकुमार अचानक घर पर आ गए तो? मुझे सब देखना पड़ता है " शीला ने पोलिटिकल जवाब दीया
"अरे वैशाली को तो मैं मना लूँगा.. वो भी बेचारी.. कितने सालों के बाद मायके आई है.. वो भी थोड़ा सा इन्जॉय कर ले" पीयूष ने कहा
कविता ने अपनी कुहनी पीयूष की कमर पर मारते हुए कहा "क्या बात है.. वैशाली की बड़ी फिक्र हो रही है तुझे.. !! कहीं उसके साथ तेरा.. !!" कविता ने बात अधूरी छोड़ दी
पीयूष सकपका गया.. जैसे रंगेहाथों पकड़ा गया हो.. वो कुछ नहीं बोला और नजरें झुकाकर बैठा ही रहा
"मैं देखती हूँ.. जो भी होगा कल बताऊँगी" कहते हुए शीला उठकर अपने घर चल दी
शीला जब घर पहुंची तब वैशाली किसी के साथ मोबाइल पर बात कर रही थी.. फोरम जा चुकी थी.. शीला ने देखा की उसके आते ही वैशाली ने फोन कट कर दिया.. होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. वो भी अब शादीशुदा है और बड़ी हो गई है.. हर बात पर पूछना या टोकना ठीक नहीं होगा.. हो सकता है की संजय से ही बात कर रही हो !! लेकिन संजय का फोन होता तो इस तरह काट नहीं देती.. हिम्मत से बात कर रही होगी?? क्या पता !!
अपनी एकलौती बेटी का संसार उझड़ता हुआ देखकर शीला को बहोत दुख हो रहा था.. पर उससे भी ज्यादा दुख इस बात का था की उसका पति मदन अभी मौजूद नहीं था.. अगर वो होता तो संजय को ठीक कर देता.. अभी और १८ दिन बाकी थे मदन के लौटने में..
अपने पति को याद करते हुए शीला सो गई और उसके बगल में वैशाली भी.. सुबह ४ बजे के करीब वैशाली को पेट में बहोत दर्द होने लगा.. पर वो बिस्तर में पड़ी रही.. बेकार में मम्मी की नींद खराब होगी ये सोचकर.. थोड़ी देर यूंही पड़े रहने के बाद वह बाथरूम जाने के लिए उठने ही वाली थी तब डोरबेल बजी.. शीला तुरंत उठ गई.. मम्मी शायद दूध लेकर बाथरूम जाएगी तो उनके लौटने के बाद मैं जाऊँगी ये सोचकर वैशाली बिस्तर में पड़ी रही..
शीला ने दरवाजा खोला.. सामने रसिक था.. रसिक को देखते ही वह उससे लिपट पड़ी.. अपनी छाती को रसिक के जिस्म से रगड़ते हुए वह बोली
शीला: "ओह्ह रसिक.. बहोत मन कर रहा है यार.. पर क्या करू.. वैशाली के आने के बाद कोई सेटिंग हो ही नहीं पा रहा.. तेरा "ये" मुझे बहोत याद आता है.. कहीं ले चल मुझे यार.. अंदर ऐसी आग लगी है की तुझे क्या बताऊँ!!" कहते हुए शीला ने रसिक के पाजामे के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ लिया
बेडरूम के दरवाजे के पीछे छुपकर देख रही वैशाली को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था.. ये क्या हो रहा है? मम्मी एक दूधवाले के साथ?? छी छी.. एक पल के लिए तो वो अपने पेट का दर्द भी भूल गई.. अपनी माँ का ये नया ही रूप देखा था उसने..
रसिक अपने मजबूत हाथों से शीला की पीठ और कूल्हों को गाउन के ऊपर से ही मसलते हुए शीला के होंठ चूस रहा था.. चूसते चूसते आहें भी भर रहा था
"आवाज मत कर पागल.. वो जाग गई तो आफत आ जाएगी" शीला ने कहा
रसिक का सख्त मूसल जैसा लंड मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे करते हुए शीला का भोसड़ा चुदवाने के लिए तड़पने लगा.. उससे रहा नहीं जा रहा था लेकिन वैशाली की मौजूदगी में ऐसा कुछ भी कर पाना असंभव था.. हररोज केवल वो रसिक का लंड चूसकर ठंडा करती पर उसकी चूत की प्यास अधूरी ही रह जाती, ये बात बड़ी खल रही थी शीला को..
"ओह्ह भाभी.. रोज की तरह आज भी मेरा चूसकर सारा जहर बाहर निकाल दो.. तो मैं जाऊँ.. ये नरम नहीं होगा तबतक मैं किसी के घर जा नहीं पाऊँगा.. देखो तो सही.. कितना बड़ा उभार हो गया है पजामे में??" शीला के गाउन में हाथ डालकर जोर से मसल दिए उसके स्तन रसिक ने.. निप्पलों पर रसिक की खुरदरी उँगलियाँ रगड़ते ही शीला की वासना उफान पर चढ़ने लगी.. वो रसिक के लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगी.. अचंभित होकर वैशाली अपनी माँ की सारी करतूतें देखती ही रही.. शीला और रसिक की सारी बातें ठीक से सुनाई तो नहीं दे रही थी पर उनकी हरकतें देखने के बाद, बातें सुनने की जरूरत भी नहीं थी..
यह सारी कामलीला देखकर वैशाली की चूचियाँ भी सख्त और लाल हो गई.. वैशाली को एक पल के लिए नफरत हो गई अपनी माँ से.. फिर उसने सोचा.. दो साल से पापा विदेश थे.. मर्द की जरूरत हर औरत को पड़ती है.. तो उसमें गलत क्या है !! पर मम्मी को थोड़ा लेवल का भी ध्यान रखना चाहिए ना!! वैशाली ने देखा की थोड़ी सी आनाकानी के बाद उसकी माँ घुटनों पर बैठ गई.. कम रोशनी के कारण उसे रसिक का लंड नजर नहीं आ रहा था.. थोड़ी देर के बाद रसिक चला गया.. और शीला अपने मुंह में भरे वीर्य को थूकने के लिए वॉशबेसिन पर आई.. ये देख वैशाली को घिन आने लगी.. माय गॉड.. मम्मी के मुंह में उसने पिचकारी मार दी.. !!!!!!!
शीला को बेडरूम की ओर आता देख वैशाली तुरंत बिस्तर पर लेट गई और करवट लेकर गहरी नींद में होने का नाटक करने लगी.. शीला ने वैशाली की ओर देखा.. उसे गहरी नींद में देख शीला का मन शांत हुआ.. अच्छा है ये सो रही है.. ये साला रसिक भी.. उसका लंड पकड़ते ही मेरी चूत में झटके लगने लगते है.. रहा ही नहीं जाता.. कितना टाइट है उसका.. हाय.. अंदर लेने का मन करने लगता है.. क्या करू यार.. बिना चुदे रहा नहीं जाता मुझसे अब.. कुछ सेटिंग तो करना ही पड़ेगा.. पर कहाँ करू? रसिक को चेतना के घर बुला लूँ?? आइडिया तो अच्छा है पर उस रंडी चेतना का कोई भरोसा नहीं.. एक बार उसने अगर रसिक का देख लिया तो बिना चुदवाए नहीं रहेगी.. और एक बार उससे चुद गई तो उसे अपना बना ही लेगी वो कमीनी.. नहीं नहीं.. ऐसा जोखिम नहीं उठाना..
शीला घर के काम में मशरूफ़ हो गई और उसका मन चुदवाने के बंदोबस्त के बारे में सोचने लगा.. करीब साढ़े आठ के करीब वैशाली जाग गई.. वह नहा-धोकर तैयार हो गई और कविता के साथ बाजार चली गई.. रास्ते में कविता ने वैशाली को चार दिन बाहर जाने के प्रोग्राम के बारे में बताया.. अपनी बहन मौसम और उसकी सहेली फाल्गुनी के बारे में भी कहा..
कविता: "तू आएगी ना साथ.. पीयूष कह रहा था की तुझे तो वो जरूर लेके चलेगा.. तेरे लिए कुछ ज्यादा ही जज्बाती है पीयूष.. और क्यों न हो.. तुम दोनों के बीच वो वाला खास रिश्ता जो है!!" शरारत करते हुए कविता ने कहा
वैशाली: "कुछ भी मत बोल.. उस समय जो होना था वो हो चुका.. बीत गई सो बात गई.. एक भूल हुई थी जो ईमानदारी से मैंने तेरे सामने कुबूल भी कर ली.. तू तो ऐसे बोल रही है जैसे मैं रोज पीयूष से करवाती हूँ"
कविता: "अरे यार मज़ाक कर रही हूँ.. क्या तू भी !! तू साथ चलेगी तो बहोत मज़ा आएगा.. यार वैशाली.. भूख लग रही है.. चल पानी पूरी खाते है.. तू ही बता.. यहाँ कौन सब से अच्छे गोलगप्पे खिलाता है?"
वैशाली: "चल तुझे ऐसी जगह नाश्ता करवाती हूँ की याद रखेगी.. थोड़ा दूर है पर मज़ा आएगा"
हाथ दिखाकर वैशाली ने रिक्शा को रोका और दोनों अंदर बैठ गए.. वैशाली ने पता बताया और ऑटो वाला उस ओर चलाने लगा..
रास्ते में कविता ने रसिक के साथ उस दिन हुई द्विअर्थी बातों के बारे में बताया.. रसिक का नाम सुनते ही वैशाली के कान खड़े हो गए.. वह कविता से और जानकारी प्राप्त करने के मकसद से घूम फिराकर पूछने लगी.. कविता को भी आश्चर्य हुआ की रसिक के बारे में इतना सब क्यों पूछ रही थी वैशाली !! दोनों ने उस जगह पहुंचकर नाश्ता किया और घर वापिस आए
घर आते ही शीला ने वैशाली को बताया "कविता और पीयूष, घर आए मेहमानों को लेकर ४ दिन कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बना रहे है.. मुझे पूछ रहे थे अगर हम दोनों भी साथ चलना चाहे तो.. "
वैशाली: "मुझे मूड नहीं है जाने का मम्मी.. तुम्हें जाना है तो जाओ"
शीला: "अगर तू नहीं चलेगी तो मैं भी जाकर क्या करूंगी !!"
वैशाली: "मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा मम्मी.. संजय को लेकर मैं बहोत परेशान हूँ.. इसलिए नहीं जाना चाहती.. पर तू तो चली जा.. दो सालों से तुम कहीं नहीं गई.. थोड़ा माहोल बदलेगा तो तुझे भी अच्छा लगेगा.. "
शीला ने जवाब नहीं दिया.. वैसे वैशाली की बात तो सही थी.. २ साल हो गए थे मदन को गए.. दो सालों से वो कहीं नहीं गई थी.. बस एक बार अनुमौसी और महिला मण्डल पर एक दिन की यात्रा पर गई थी उसके अलावा कहीं भी नहीं.. वैशाली काफी उदास रहती थी.. और उसके कारण पूरा घर एकदम शांत और गंभीर लगता था.. बेटी की उदासी देखकर माँ को चिंता होना स्वाभाविक था
Thank you so muchबहुत ही गरमागरम कामुक और उत्तेजना से भरपूर कामोत्तेजक अपडेट है भाई मजा आ गया
रसिक ने शीला के भोसडे को अपने भीमकाय लंड से चोद कर उसे संतुष्टी प्रदान कर दी
बडा ही खतरनाक अपडेट है
Awesome gazab tarike se ujaagar ki hai Shila ki pyas jiske chalte vo apna jism bargad ke ped se ragadne lagiशीला के दिमाग में अलग अलग द्रश्य चलचित्र की तरह चलने लगे.. रूखी के दूध से भरे हुए बड़े बड़े स्तन.. जीवा के दमदार धक्के.. रघु के मजबूत हाथ.. उस रात दारू पीकर उन दोनों ने जिस प्रकार उसकी चुदाई की थी.. आहाहाहा.. मज़ा आ गया था.. पिछले एक महीने में कितना कुछ हो गया था.. चेतना और पिंटू के साथ वो रसभरी चुदाई..!! रेणुका और अनुमौसी के साथ हुआ ग्रुप सेक्स.. और सुबह सुबह रसिक के साथ लिए हुए मजे..!! वाह..!!
अनजाने में ही शीला के हाथ उसके स्तनों को मसलने लगे.. उसने अपनी जांघें जोड़ ली.. उसका दिमाग रसिक के मूसल लंड को याद करने लगा.. एक बार मौका मिले तो मदन के आने से पहले रसिक और जीवा के साथ एक यादगार प्रोग्राम करने की तीव्र इच्छा हो रही थी.. पर वैशाली की मौजूदगी में यह मुमकिन न था.. शीला को रसिक से भी ज्यादा जीवा के साथ मज़ा आया था.. रूखी का जोबन रसिक की वजह से नहीं.. पर जीवा के धक्के खा खाकर ही खिल उठा था.. रूखी के घर पर भी कुछ हो नहीं सकता था.. क्या करें!!!
अपने मुंह में उंगली डालकर गीली करते हुए शीला ने घाघरे के अंदर हाथ डाला और अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस को रगड़ने लगी.. दूसरे हाथ से उसने अपनी निप्पल को पकड़कर खींचा.. और सिसकने लगी.. गरम होकर उसने मुठ्ठी में अपनी चुत पकड़कर मसल दी.. कामुक होकर वह अपने चूतड़ ऊपर नीचे करते हुए कराह रही थी.. पर ऐसा करने से तो उसकी भूख और भड़क गई..
वह उठ खड़ी हुई.. और घर में बेबस होकर घूमने लगी.. उसके भोसड़े में जबरदस्त खुजली होने लगी थी.. जो एक दमदार लंड से ही शांत हो सकती थी.. बाहर काफी अंधेरा हो चुका था.. वैशाली का अब तक कोई पता न था.. शीला अपने बरामदे में बने बागीचे में आई और वहाँ रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पर उसे कहीं भी चैन नहीं मिल रहा था.. वह खड़ी हो गई.. और बावरी होकर बागीचे में यहाँ वहाँ घूमने लगी.. जांघों के बीच चुत में आग लगी हुई थी.. और उस आग ने शीला को बेकाबू बना दिया था.. कोने में बरगद का पेड़ था.. उसके खुरदरे मोटे तने के साथ शीला अपना जिस्म रगड़ने लगी.. वो उस पेड़ के तने से लिपट गई.. अपने भरे हुए स्तनों को उसने ब्लाउस के दो हुक खोलकर बाहर निकाल दिए.. और फिर से पेड़ को लिपट गई..
शीला की हवस अब उफान पर चढ़ी थी.. पेड़ से अपने स्तनों को घिसते हुए शीला को ठंडक और जलन का एहसास हो रहा था.. तने को और जोर से लिपट कर शीला ने एक लंबी सांस छोड़ी.. "ओह मदन.. तू जल्दी आजा.. अब नहीं रहा जाता मुझसे"
शीला ने अपना घाघरा उठा लिया.. और घाघरे का कोना कमर में फंसा दिया.. घर पर वो अक्सर पेन्टी नहीं पहनती थी.. उसका नंगा भोसड़ा कामरस से गीला हो चुका था.. अपनी चुत को उसने पेड़ के तने पर घिसना शुरू कर दिया.. सिसकते हुए शीला ने अपने एक पैर को पेड़ के तने के ऊपर चढ़ा दिया जैसे पेड़ की सवारी कर रही हो.. जिससे चुत को पेड़ से ज्यादा नजदीकी मिले.. घिसते हुए एक अजीब सा एहसास हो रहा था उसे.. नीचे हाथ डालकर उसने अपनी चुत के दोनों होंठों को चौड़ा किया.. और पेड़ से चिपका दी अपनी चुत..
अचानक शीला को किसी ने पीछे से पकड़ लिया.. !!! शीला कुछ समझ या बोल पाती उससे पहले उस शख्स ने शीला को पेड़ से दबाकर उसके चूतड़ चौड़े कीये और उसकी गांड में एक उंगली डाल दी.. दर्द के मारे शीला के गले से एक धीमी चीख समग्र वातावरण में फैल कर शांत हो गई.. उस व्यक्ति ने अपना हाथ आगे डालकर शीला की चूत पकड़ ली.. और उसी के साथ शीला का विरोध खतम हो गया..
"कौन हो तुम ????" शीला ने धीमे से पूछा.. जो काम करते वो खुद पकड़ी गई थी ऐसी सूरत में चिल्ला कर कोई फायदा नहीं था.. बदनामी उसी की होती.. उस व्यक्ति ने जवाब देने के बदले शीला को घूमकर अपनी ओर किया और उसके होंठ पर अपने होंठ दबा दिए.. शीला के खुले स्तन उसकी मर्दाना छाती से दबकर चपटे हो गए..
जरा भी वक्त गँवाए बिना उस शख्स ने शीला को उत्तेजित करना जारी रखा.. शीला डर गई थी.. उसके गले से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी.. उस आदमी ने शीला को पूरी ताकत से अपनी बाहों में जकड़ रखा था.. घबराई हुई शीला अभी भी उसकी बाहों से छूटने की भरसक कोशिश कर रही थी..
वह आदमी शीला को मस्ती से चूमते हुए उसके स्तनों को मसल रहा था.. शीला के मांसल चूचकों को अपनी उंगली और अंगूठे के बीच दबा रहा था.. स्त्री कितनी भी सीधी क्यों न हो.. उसके स्तन पर मर्द के हाथ फिरते ही वह निःसहाय बन जाती है.. पके हुए पपीतों जैसे शीला के उरोजों को काफी देर तक मसलते रहने के बाद शीला अब विरोध कर पाने की स्थिति में नहीं थी..
चारों तरफ घनघोर अंधेरा था.. आज स्ट्रीट लाइट भी बंद थी.. इतना अंधेरा था की खुद की हथेली को भी देख पाना संभव नहीं था.. ऐसी सूरत में.. उस आदमी को शीला चाहकर भी देख नहीं पा रही थी.. जैसे ही शीला का विरोध शांत हुआ उस आदमी ने अगला कदम लिया.. अपने पेंट की चैन फटाफट खोलकर अंदर से निकला गरमागरम कडक लोडा शीला के हाथों में थमा दिया..
अब शीला कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं थी.. उसकी पसंदीदा चीज उसके हाथों में आ चुकी थी.. जिसके लिए वह पिछले एक घंटे से तड़प रही थी.. पर उसके मन को एक ही प्रश्न अब भी सता रहा था.. कौन है यह व्यक्ति? रसिक.. ?? पिंटू.. ?? पीयूष.. ?? रघु.. या फिर जीवा.. ?? नहीं नहीं.. इन सब में से कोई नहीं था.. क्योंकि इन सभी के स्पर्श से वह भलीभाँति वाकिफ थी.. यह बिल्कुल नया ही स्पर्श था.. अंधेरे में वह उस शख्स के चेहरे को देखने की कोशिश करती ही रही
उस आदमी के मुंह से शराब की गंध आ रही थी.. दिमाग पर पूरा जोर लगाने के बावजूद वह कौन था ये पहचान न पी शीला.. उस आदमी ने शीला को फिर से मोड़कर उल्टा कर दिया और पेड़ के तने पर झुकाकर पीछे से शीला के भोसड़े में अपना लंड एक धक्के में पेल दिया.. शीला के बालों को पकड़कर वह ऐसे धक्के लगाने लगा जैसे लगाम पकड़कर घोड़ी की सवारी कर रहा हो..
शीला इस योनिप्रवेश से इतनी उत्तेजित हो गई की उसने विरोध करना ही छोड़ दिया.. और उस दमदार ठुकाई का आनंद लेने लगी.. जिस तरह से वह शक्ष बाल खींच रहा था उससे शीला को दर्द हो रहा था पर भोसड़े में खिली बहार के आगे इस दर्द का कोई मुकाबला नहीं था.. शीला को अब एक ही बात जाननी थी.. की ये कौन चूतिया है? लेकिन वो शख्स शीला को घूमने ही नहीं दे रहा था.. साले ने दस मिनट तक लगातार धनाधन धक्के लगाकर शीला के भोसड़े की माँ चोद डाली..
शीला की चूत से ऑर्गैज़म के रूप में जल-वर्षा होने लगी.. उसकी चिपचिपी चुत में लंड अंदर बाहर होने की वजह से पुच-पुच की आवाज़ें आ रही थी.. शीला की चुत ने कब का पानी छोड़ दिया था पर वह आदमी और १०-१२ धक्के लगाकर अंदर चोट लगाए जा रहा था.. फिर अचानक एक जोर का धक्का लगाकर वह स्थिर हो गया.. शीला के भोसड़े की सिंचाई होने लगी.. लंड के वीर्य की धार बच्चेदानी के द्वार पर गरम लावारस की तरह छूटने लगा..
उस आदमी का आवेश शांत होने पर उसने एक आखिरी जोर का झटका लगाया.. शीला अपना संतुलन खो बैठी और पेड़ के तने से फिसलकर जमीन पर गिर गई.. एक पल के लिए उसे चक्कर सा आ गया.. अपने आप को संभालकर वह खड़ी हुई तब तक तो वो आदमी भाग गया था.. शीला हतप्रभ सी उसी अवस्था में कुछ देर बैठी रही.. फिर उसे अपनी स्थिति का अंदाजा हुआ.. उसका ब्लाउस पेट तक चला गया था.. दोनों बबले बाहर झूल रहे थे.. घाघरा कमर तक चढ़ा हुआ था.. और बगीचे की घास, उसकी वीर्य टपकाती चुत पर गुदगुदी कर रहा था..
शीला तुरंत खड़ी हुई और भागकर घर के अंदर आई.. वैशाली के आने से पहले उसे अपना हुलिया ठीक करना था.. उसने फटाफट एक शावर लिया और कपड़े ठीकठाक कर लिए.. बरामदे की लाइट चालू करके वो मुआयना करने लगी.. कहीं कोई निशानी मिल जाए की कौन था वो मादरचोद जो मेरे ही घर में, मेरा ही बलात्कार करके चला गया?? अब इस घटना की शिकायत भी किससे करें? कौन यकीन करेगा? एक पल के लिए तो शीला को हंसी भी आ गई..
वैसे इस घटना में उसका कोई नुकसान तो हुआ नहीं था.. भूखे को रोटी मिल गई थी.. भले ही जबरदस्ती मिली थी पर फिलहाल पेट तो भर गया.. !!! शीला ने अपनी चुत के अंदर तक उंगली डालकर उस आदमी का वीर्य निकालकर सूंघा.. जीभ की नोक पर लगाकर उसका स्वाद भी चख लिया.. बस अपने मन की विकृति को शांत करने के लिए.. वैसे उसे भी पता था की ऐसे चाटकर या सूंघकर कोई डी.एन.ए टेस्ट तो होने नहीं वाला था की जिससे पता चल जाता की वोह शख्स कौन था.. !!! पर मज़ा आ गया शीला को.. इस अनोखी चुदाई में.. लंड के लिए तरस रही थी और लंड मिल ही गया.. भले ही जबरदस्ती मिला हो.. ये चुत शांत रहेगी तो दिमाग काम करेगा..
वैसे भी मदन के आने से पहले उसे एक रात जीवा, रघु या रसिक के साथ बिताने की तीव्र इच्छा थी.. पर वैशाली के रहते ये मुमकिन नहीं था.. इसी लिए तो उसने कविता के सामने वैशाली को घूमने ले जाने का प्रस्ताव रखा था.. ताकि वो उन चार दिनों में रंगरेलियाँ मना सके.. शीला अभी भी बागीचे में घूमते हुए सोच रही थी.. आखिर कौन था वोह? कहीं वो संजय तो नहीं था?? अरे बाप रे.. ऐसा कैसे हो सकता है? हम्म.. हो क्यों नहीं सकता? शीला के दो कानों के बीच बैठा जेठमलानी उसके दिमाग में ही बहस करने लगा..
संजय हो सकता है.. उसकी गंदी नजर से शीला वाकिफ थी.. एक नंबर का चुदक्कड़ है साला.. जब भी मिलता था तब बेशर्मों की तरह मेरी चूचियों को ही देखता रहता था.. बात तो सही है.. पर आखिर वो मेरा दामाद है.. वो ऐसा नहीं कर सकता.. और वैसे स्तन तो वैशाली के भी मस्त बड़े बड़े है.. तो फिर वो कमीना मेरी छातियों के पीछे ही क्यों पड़ा रहता है.. !! बेशर्म हरामजादा.. शायद वही था.. और हाँ.. जब उसने होंठ चूमे तब सिगरेट और दारू की बदबू आ रही थी.. हो न हो.. वहीं मादरचोद ठोक गया तुझे शीला.. !!! शीला कितनी भी हवसखोर क्यों न हो.. आखिर थी वो भारतीय नारी.. शीला शर्म से पानी पानी हो गई.. बाप रे.. मेरे सगे दामाद ने मुझे चोद दिया.. !!!
"अरे मम्मी.. वहाँ अंधेरे में क्या कर रही हो? मैं कब से पूरे घर में ढूंढ रही थी तुम्हें.. " वैशाली ने बागीचे में आकर शीला से पूछा तब शीला की विचारधारा टूटी..
"घर में गर्मी लग रही थी.. तो सोचा बाहर खुले में थोड़ा सा टहल लिया जाए.. घर के काम भी सारे निपट गए इसलिए खाली बैठी थी.. वैसे संजय कुमार के क्या समाचार है? "
वैशाली: "मैं वही बताने वाली थी.. मैं और फोरम बाहर थे तब संजय का फोन आया था.. उसने रात का खाना बनाने के लिए कहा है.. अब वो एक हफ्ता यहीं रुकेगा.. कंपनी का जो काम था वो खतम हो गया ऐसा बोल रहा था वोह.. मम्मी, फ्रिज में काफी सब्जियां पड़ी हुई है.. भिंडी की सब्जी बना दु?"
शीला: "हाँ बना दे.. मुझे तो सब चलेगा.. तेरे राजकुमार को जो भी पसंद हो वो बना दे"
वैशाली: "उसे तो दहीं-भिंडी बहोत पसंद है.. वही बना देती हूँ"
वैशाली घर के अंदर चली गई.. शीला अकेले अकेले सोच रही थी.. पूरी तसल्ली करने के लिए क्या करू.. जानना तो पड़ेगा.. अभी संजय आएगा तो उसके चेहरे के हावभाव देखकर सब पता चल जाएगा..
शीला के दिमाग में अलग अलग द्रश्य चलचित्र की तरह चलने लगे.. रूखी के दूध से भरे हुए बड़े बड़े स्तन.. जीवा के दमदार धक्के.. रघु के मजबूत हाथ.. उस रात दारू पीकर उन दोनों ने जिस प्रकार उसकी चुदाई की थी.. आहाहाहा.. मज़ा आ गया था.. पिछले एक महीने में कितना कुछ हो गया था.. चेतना और पिंटू के साथ वो रसभरी चुदाई..!! रेणुका और अनुमौसी के साथ हुआ ग्रुप सेक्स.. और सुबह सुबह रसिक के साथ लिए हुए मजे..!! वाह..!!
अनजाने में ही शीला के हाथ उसके स्तनों को मसलने लगे.. उसने अपनी जांघें जोड़ ली.. उसका दिमाग रसिक के मूसल लंड को याद करने लगा.. एक बार मौका मिले तो मदन के आने से पहले रसिक और जीवा के साथ एक यादगार प्रोग्राम करने की तीव्र इच्छा हो रही थी.. पर वैशाली की मौजूदगी में यह मुमकिन न था.. शीला को रसिक से भी ज्यादा जीवा के साथ मज़ा आया था.. रूखी का जोबन रसिक की वजह से नहीं.. पर जीवा के धक्के खा खाकर ही खिल उठा था.. रूखी के घर पर भी कुछ हो नहीं सकता था.. क्या करें!!!
अपने मुंह में उंगली डालकर गीली करते हुए शीला ने घाघरे के अंदर हाथ डाला और अपनी जामुन जैसी क्लिटोरिस को रगड़ने लगी.. दूसरे हाथ से उसने अपनी निप्पल को पकड़कर खींचा.. और सिसकने लगी.. गरम होकर उसने मुठ्ठी में अपनी चुत पकड़कर मसल दी.. कामुक होकर वह अपने चूतड़ ऊपर नीचे करते हुए कराह रही थी.. पर ऐसा करने से तो उसकी भूख और भड़क गई..
वह उठ खड़ी हुई.. और घर में बेबस होकर घूमने लगी.. उसके भोसड़े में जबरदस्त खुजली होने लगी थी.. जो एक दमदार लंड से ही शांत हो सकती थी.. बाहर काफी अंधेरा हो चुका था.. वैशाली का अब तक कोई पता न था.. शीला अपने बरामदे में बने बागीचे में आई और वहाँ रखी कुर्सी पर बैठ गई.. पर उसे कहीं भी चैन नहीं मिल रहा था.. वह खड़ी हो गई.. और बावरी होकर बागीचे में यहाँ वहाँ घूमने लगी.. जांघों के बीच चुत में आग लगी हुई थी.. और उस आग ने शीला को बेकाबू बना दिया था.. कोने में बरगद का पेड़ था.. उसके खुरदरे मोटे तने के साथ शीला अपना जिस्म रगड़ने लगी.. वो उस पेड़ के तने से लिपट गई.. अपने भरे हुए स्तनों को उसने ब्लाउस के दो हुक खोलकर बाहर निकाल दिए.. और फिर से पेड़ को लिपट गई..
शीला की हवस अब उफान पर चढ़ी थी.. पेड़ से अपने स्तनों को घिसते हुए शीला को ठंडक और जलन का एहसास हो रहा था.. तने को और जोर से लिपट कर शीला ने एक लंबी सांस छोड़ी.. "ओह मदन.. तू जल्दी आजा.. अब नहीं रहा जाता मुझसे"
शीला ने अपना घाघरा उठा लिया.. और घाघरे का कोना कमर में फंसा दिया.. घर पर वो अक्सर पेन्टी नहीं पहनती थी.. उसका नंगा भोसड़ा कामरस से गीला हो चुका था.. अपनी चुत को उसने पेड़ के तने पर घिसना शुरू कर दिया.. सिसकते हुए शीला ने अपने एक पैर को पेड़ के तने के ऊपर चढ़ा दिया जैसे पेड़ की सवारी कर रही हो.. जिससे चुत को पेड़ से ज्यादा नजदीकी मिले.. घिसते हुए एक अजीब सा एहसास हो रहा था उसे.. नीचे हाथ डालकर उसने अपनी चुत के दोनों होंठों को चौड़ा किया.. और पेड़ से चिपका दी अपनी चुत..
अचानक शीला को किसी ने पीछे से पकड़ लिया.. !!! शीला कुछ समझ या बोल पाती उससे पहले उस शख्स ने शीला को पेड़ से दबाकर उसके चूतड़ चौड़े कीये और उसकी गांड में एक उंगली डाल दी.. दर्द के मारे शीला के गले से एक धीमी चीख समग्र वातावरण में फैल कर शांत हो गई.. उस व्यक्ति ने अपना हाथ आगे डालकर शीला की चूत पकड़ ली.. और उसी के साथ शीला का विरोध खतम हो गया..
"कौन हो तुम ????" शीला ने धीमे से पूछा.. जो काम करते वो खुद पकड़ी गई थी ऐसी सूरत में चिल्ला कर कोई फायदा नहीं था.. बदनामी उसी की होती.. उस व्यक्ति ने जवाब देने के बदले शीला को घूमकर अपनी ओर किया और उसके होंठ पर अपने होंठ दबा दिए.. शीला के खुले स्तन उसकी मर्दाना छाती से दबकर चपटे हो गए..
जरा भी वक्त गँवाए बिना उस शख्स ने शीला को उत्तेजित करना जारी रखा.. शीला डर गई थी.. उसके गले से आवाज ही नहीं निकल पा रही थी.. उस आदमी ने शीला को पूरी ताकत से अपनी बाहों में जकड़ रखा था.. घबराई हुई शीला अभी भी उसकी बाहों से छूटने की भरसक कोशिश कर रही थी..
वह आदमी शीला को मस्ती से चूमते हुए उसके स्तनों को मसल रहा था.. शीला के मांसल चूचकों को अपनी उंगली और अंगूठे के बीच दबा रहा था.. स्त्री कितनी भी सीधी क्यों न हो.. उसके स्तन पर मर्द के हाथ फिरते ही वह निःसहाय बन जाती है.. पके हुए पपीतों जैसे शीला के उरोजों को काफी देर तक मसलते रहने के बाद शीला अब विरोध कर पाने की स्थिति में नहीं थी..
चारों तरफ घनघोर अंधेरा था.. आज स्ट्रीट लाइट भी बंद थी.. इतना अंधेरा था की खुद की हथेली को भी देख पाना संभव नहीं था.. ऐसी सूरत में.. उस आदमी को शीला चाहकर भी देख नहीं पा रही थी.. जैसे ही शीला का विरोध शांत हुआ उस आदमी ने अगला कदम लिया.. अपने पेंट की चैन फटाफट खोलकर अंदर से निकला गरमागरम कडक लोडा शीला के हाथों में थमा दिया..
अब शीला कुछ कर पाने की स्थिति में नहीं थी.. उसकी पसंदीदा चीज उसके हाथों में आ चुकी थी.. जिसके लिए वह पिछले एक घंटे से तड़प रही थी.. पर उसके मन को एक ही प्रश्न अब भी सता रहा था.. कौन है यह व्यक्ति? रसिक.. ?? पिंटू.. ?? पीयूष.. ?? रघु.. या फिर जीवा.. ?? नहीं नहीं.. इन सब में से कोई नहीं था.. क्योंकि इन सभी के स्पर्श से वह भलीभाँति वाकिफ थी.. यह बिल्कुल नया ही स्पर्श था.. अंधेरे में वह उस शख्स के चेहरे को देखने की कोशिश करती ही रही
उस आदमी के मुंह से शराब की गंध आ रही थी.. दिमाग पर पूरा जोर लगाने के बावजूद वह कौन था ये पहचान न पी शीला.. उस आदमी ने शीला को फिर से मोड़कर उल्टा कर दिया और पेड़ के तने पर झुकाकर पीछे से शीला के भोसड़े में अपना लंड एक धक्के में पेल दिया.. शीला के बालों को पकड़कर वह ऐसे धक्के लगाने लगा जैसे लगाम पकड़कर घोड़ी की सवारी कर रहा हो..
शीला इस योनिप्रवेश से इतनी उत्तेजित हो गई की उसने विरोध करना ही छोड़ दिया.. और उस दमदार ठुकाई का आनंद लेने लगी.. जिस तरह से वह शक्ष बाल खींच रहा था उससे शीला को दर्द हो रहा था पर भोसड़े में खिली बहार के आगे इस दर्द का कोई मुकाबला नहीं था.. शीला को अब एक ही बात जाननी थी.. की ये कौन चूतिया है? लेकिन वो शख्स शीला को घूमने ही नहीं दे रहा था.. साले ने दस मिनट तक लगातार धनाधन धक्के लगाकर शीला के भोसड़े की माँ चोद डाली..
शीला की चूत से ऑर्गैज़म के रूप में जल-वर्षा होने लगी.. उसकी चिपचिपी चुत में लंड अंदर बाहर होने की वजह से पुच-पुच की आवाज़ें आ रही थी.. शीला की चुत ने कब का पानी छोड़ दिया था पर वह आदमी और १०-१२ धक्के लगाकर अंदर चोट लगाए जा रहा था.. फिर अचानक एक जोर का धक्का लगाकर वह स्थिर हो गया.. शीला के भोसड़े की सिंचाई होने लगी.. लंड के वीर्य की धार बच्चेदानी के द्वार पर गरम लावारस की तरह छूटने लगा..
उस आदमी का आवेश शांत होने पर उसने एक आखिरी जोर का झटका लगाया.. शीला अपना संतुलन खो बैठी और पेड़ के तने से फिसलकर जमीन पर गिर गई.. एक पल के लिए उसे चक्कर सा आ गया.. अपने आप को संभालकर वह खड़ी हुई तब तक तो वो आदमी भाग गया था.. शीला हतप्रभ सी उसी अवस्था में कुछ देर बैठी रही.. फिर उसे अपनी स्थिति का अंदाजा हुआ.. उसका ब्लाउस पेट तक चला गया था.. दोनों बबले बाहर झूल रहे थे.. घाघरा कमर तक चढ़ा हुआ था.. और बगीचे की घास, उसकी वीर्य टपकाती चुत पर गुदगुदी कर रहा था..
शीला तुरंत खड़ी हुई और भागकर घर के अंदर आई.. वैशाली के आने से पहले उसे अपना हुलिया ठीक करना था.. उसने फटाफट एक शावर लिया और कपड़े ठीकठाक कर लिए.. बरामदे की लाइट चालू करके वो मुआयना करने लगी.. कहीं कोई निशानी मिल जाए की कौन था वो मादरचोद जो मेरे ही घर में, मेरा ही बलात्कार करके चला गया?? अब इस घटना की शिकायत भी किससे करें? कौन यकीन करेगा? एक पल के लिए तो शीला को हंसी भी आ गई..
वैसे इस घटना में उसका कोई नुकसान तो हुआ नहीं था.. भूखे को रोटी मिल गई थी.. भले ही जबरदस्ती मिली थी पर फिलहाल पेट तो भर गया.. !!! शीला ने अपनी चुत के अंदर तक उंगली डालकर उस आदमी का वीर्य निकालकर सूंघा.. जीभ की नोक पर लगाकर उसका स्वाद भी चख लिया.. बस अपने मन की विकृति को शांत करने के लिए.. वैसे उसे भी पता था की ऐसे चाटकर या सूंघकर कोई डी.एन.ए टेस्ट तो होने नहीं वाला था की जिससे पता चल जाता की वोह शख्स कौन था.. !!! पर मज़ा आ गया शीला को.. इस अनोखी चुदाई में.. लंड के लिए तरस रही थी और लंड मिल ही गया.. भले ही जबरदस्ती मिला हो.. ये चुत शांत रहेगी तो दिमाग काम करेगा..
वैसे भी मदन के आने से पहले उसे एक रात जीवा, रघु या रसिक के साथ बिताने की तीव्र इच्छा थी.. पर वैशाली के रहते ये मुमकिन नहीं था.. इसी लिए तो उसने कविता के सामने वैशाली को घूमने ले जाने का प्रस्ताव रखा था.. ताकि वो उन चार दिनों में रंगरेलियाँ मना सके.. शीला अभी भी बागीचे में घूमते हुए सोच रही थी.. आखिर कौन था वोह? कहीं वो संजय तो नहीं था?? अरे बाप रे.. ऐसा कैसे हो सकता है? हम्म.. हो क्यों नहीं सकता? शीला के दो कानों के बीच बैठा जेठमलानी उसके दिमाग में ही बहस करने लगा..
संजय हो सकता है.. उसकी गंदी नजर से शीला वाकिफ थी.. एक नंबर का चुदक्कड़ है साला.. जब भी मिलता था तब बेशर्मों की तरह मेरी चूचियों को ही देखता रहता था.. बात तो सही है.. पर आखिर वो मेरा दामाद है.. वो ऐसा नहीं कर सकता.. और वैसे स्तन तो वैशाली के भी मस्त बड़े बड़े है.. तो फिर वो कमीना मेरी छातियों के पीछे ही क्यों पड़ा रहता है.. !! बेशर्म हरामजादा.. शायद वही था.. और हाँ.. जब उसने होंठ चूमे तब सिगरेट और दारू की बदबू आ रही थी.. हो न हो.. वहीं मादरचोद ठोक गया तुझे शीला.. !!! शीला कितनी भी हवसखोर क्यों न हो.. आखिर थी वो भारतीय नारी.. शीला शर्म से पानी पानी हो गई.. बाप रे.. मेरे सगे दामाद ने मुझे चोद दिया.. !!!
"अरे मम्मी.. वहाँ अंधेरे में क्या कर रही हो? मैं कब से पूरे घर में ढूंढ रही थी तुम्हें.. " वैशाली ने बागीचे में आकर शीला से पूछा तब शीला की विचारधारा टूटी..
"घर में गर्मी लग रही थी.. तो सोचा बाहर खुले में थोड़ा सा टहल लिया जाए.. घर के काम भी सारे निपट गए इसलिए खाली बैठी थी.. वैसे संजय कुमार के क्या समाचार है? "
वैशाली: "मैं वही बताने वाली थी.. मैं और फोरम बाहर थे तब संजय का फोन आया था.. उसने रात का खाना बनाने के लिए कहा है.. अब वो एक हफ्ता यहीं रुकेगा.. कंपनी का जो काम था वो खतम हो गया ऐसा बोल रहा था वोह.. मम्मी, फ्रिज में काफी सब्जियां पड़ी हुई है.. भिंडी की सब्जी बना दु?"
शीला: "हाँ बना दे.. मुझे तो सब चलेगा.. तेरे राजकुमार को जो भी पसंद हो वो बना दे"
वैशाली: "उसे तो दहीं-भिंडी बहोत पसंद है.. वही बना देती हूँ"
वैशाली घर के अंदर चली गई.. शीला अकेले अकेले सोच रही थी.. पूरी तसल्ली करने के लिए क्या करू.. जानना तो पड़ेगा.. अभी संजय आएगा तो उसके चेहरे के हावभाव देखकर सब पता चल जाएगा..