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Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

Dirty_mind

No nude av allowed. Edited
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लंड को चुत की और चुत को लंड की जरूरत तब से पड़ती आई है जब से मानवजात का इस पृथ्वी पर अवतरण हुआ.. शीला बस यही खयालों में थी की कब रात हो और जीवा का मूसल जैसा लंड देखने को मिले!!

शीला की पुत्ती में फिर से खाज होने लगी..

जैसे तैसे समय बिताते हुए शाम के ७:०० बज गए.. उसने फटाफट शाम का खाना निपटा लिया और बेडरूम में पानी का एक जग रख दिया। आने वाले मेहमान की खातिरदारी करने के लिए वह तैयार होने लगी... बाथरूम में जाकर उसने अपनी चुत के बाल रेज़र से साफ कर दिए और उसपर क्रीम लगाकर मक्खन जैसी कोमल बना दिया.. जीवा ने आज तक उस गंवार रूखी के झांटेदार भोसड़े को देखा है.. आज जब वो शीला की मुलायम रेशम जैसी चुत को देखेगा तो उसके होश उड़ जाएंगे...

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जैसे जैसे समय बीतता गया.. शीला की धड़कनें तेज होने लगी.. शीला बेडरूम में गई और अपनी साड़ी और ब्लाउस को उतार फेंका.. मदन ने सिंगापोर से जो जाली वाली ब्रा भेजी थी... वह पहन ली.. उस ब्रा की छोटी सी कटोरियों में शीला के खरबूजे जैसे स्तन कैसे समाते भला!! जैसे तैसे दबा दबाकर उसने अपने स्तनों को ब्रा के अंदर ठूंस दिया.. जैसे रिक्शा वाले ३ के बदले ५ पेसेन्जर भरते है वैसे...

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उस छोटी सी ब्रा से उसके स्तन उभर कर बाहर झांक रहे थे.. आहाहाहा क्या लग रही थी शीला!! इस मस्त महंगी वाली ब्रा से शीला का सौन्दर्य झलक रहा था.. आईने में खुद के सौन्दर्य को देखकर वह अपनी चुत खुजाने लगी.. और मन ही मन बोलने लगी

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"जीवा, आज तो तू गया काम से.. आज तुझे रूखी को भुला न दिया तो मेरा नाम शीला नही.. आज की रात तुझे मरते दम तक याद रहेगी.. तुझे अगर तेरे खूँटे जैसे लंड पर गुमान है तो में भी तुझसे कम नही हूँ... आ जा रात को फिर देख इस शीला के जलवे..."

शीला ने अपने पति मदन का सफेद शर्ट निकाला.. बहोत टाइट था उसके लिए पर फिर भी पहन लिया... और नीचे मस्त काले रंग का बेलबॉटम पेन्ट पहनकर उलटी घूम गई और अपने आप को आईने में देखने लगी.. बाप रे बाप.. इस पेन्ट में उसके कूल्हे क्या कातिल नजर आ रहे थे!! वाह!! अपने कूल्हों को खुद ही थपकाकर फिर उसने मरून कलर की लिप्स्टिक से अपने होंठ पोत लिए.. "यह सारी लाली तेरे लंड पर चिपक जाने वाली है जीवा... जब में तेरा... अफ़ग़ानिस्तानी केले जैसे लंड को पूरा मुंह में लेकर चुसूँगी.. "

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उसने कटोरी में थोड़ा सा तेल भी निकाल कर रख दिया.. कहीं गांड मरवाने का मौका मिल जाए तो... तैयारी पूरी होनी चाहिए.. जब आग लगे तब कुआं खोदने क्यों जाना!! अलमारी से उसने महंगी शराब की बोतल निकाली जो मदन ने अपने दोस्त के हाथों भिजवाई थी.. अभी जीवा आया नही था इसलिए उसने तुरंत किचन में जाकर थोड़े काजू फ्राई कर लिए.. और ५५५ सिगरेट का पैकेट भी सजाकर टेबल पर रख दिया।

आज के भव्य चुदाई प्रसंग को शीला चार चाँद लगा देना चाहती थी... आज रात को.. न कोई डर होगा.. और ना ही कोई शर्म.. सारी हिचकिचाहट को छोड़कर आज तो मन भरकर चुदवाना था बस्स.. !!!

घड़ी का कांटा ८ बजे का समय दिखा रहा था। जीवा तो १० बजे आने वाला था.. अब दो घंटे बैठे बैठे क्या करूँ?? चलो कोई मस्त बीपी की डीवीडी चला देती हूँ... मस्त मस्त.. नंगी चुदाई वाली इतनी सारी डीवीडी पड़ी हुई है.. वो तो में भूल ही गई..!! जीवा को भी दिखाऊँगी.. की चुत कैसे चाटते है!! साले ये बीपी वाले बड़ा मस्त चुत चाटते है.. काश किसी गोरे से पाला पड जाएँ.. तो मज़ा आ जाएँ चुदवाने का!!

शीला ने ८-१० डीवीडी निकाली.. और एक के बाद एक सब लगाकर देख ली.. उसमे से एक जबरदस्त वाली फिल्म को चुना.. हाँ, ये वाली बड़ी मस्त है.. यही दिखाऊँगी जीवा को.. चूतिया पागल हो जाएगा देखके..

जैसे साज-शृंगार में कमी रह गई हो, शीला वापस बेडरूम में गई और शर्ट के बटन खोलकर अपनी काँखों पर परफ्यूम छिड़क दिया.. और आईने में फिर से अपने आप को देखने लगी.. कुछ बाकी तो नही रह गया ना!!

घड़ी में अब दस बज चुके थे.. घड़ी के पेंडुलम को देखकर वह सोचने लगी की जीवा का लंड भी उसके पतलून में ऐसे ही झूलता होगा!! जीवा.. जीवा.. कब आएगा रे तू!! हमारे देश में किसी को समय की पड़ी ही नही है!! और किसी काम के लिए देर से पहुंचना तो फिर भी समझ में आता है.. पर चुत चोदने के मौके के लिए भी लोग समय पर नही पहुँच पाते!!

शीला की चुत अब व्याकुल हो चली थी। आखिर थककर उसने रूखी को फोन लगाया.. रूखी ने जीवा के बारे में पूछकर वापिस फोन करने के लिए कहा.. वह भी तनाव में आ गई.. क्योंकी सुबह ४ बजे के बाद उसे भी तो जीवा से चुदवाना था.. !!

थोड़ी देर में रूखी का फोन आया और उसने शीला को बताया की वह शीला के घर अकेले आने से डर रहा था.. जीवा ने रूखी से कहा था की आजकल ऐसी कई घटनाएं घटी थी जिसमे चोदने के बहाने बुलाते थे और फिर बलात्कार केस की धमकी देकर पैसे मांगते थे!! इसी कारण वह डर रहा था। उसने रूखी से कहा की अगर शीला को एतराज न हो तो वह अपने दोस्त रघु को लेकर आ सकता है.. वरना वो नही आएगा!!

बहनचोद, आखिरी मौके पर अब यह नई समस्या आ गई.. जीवा तुरंत जवाब मांग रहा था की क्या करें!! अगर शीला मना करे तो सारी तैयारियों की माँ चुद जाएगी.. रूखी ने फोन पर कहा "भाभी जल्दी जवाब दीजिए.. वो आपकी गली के नुक्कड़ पर इंतज़ार कर रहा है.. आप कहो तो वो रघु के साथ आए वरना वापिस लौट जाएगा"

शीला ने सोचा.. बाप रे.. दो दो लोडे.. !!! उसने रूखी को बोल दिया "तू हाँ कह दे जीवा को.. बोल उसे की आ जाएँ.. जो होगा देखा जाएगा"

रूखी ने कहा "आप दरवाजे पर खड़े रहना.. वह बाइक पर आएगा.. हरा शर्ट पहना है उसने.. जैसे ही वो आए.. उसकी बाइक अंदर कंपाउंड में रखवा देना ताकि किसीको शक न हो!!"

"हाँ भाई हाँ.. अब तू फोन रख.. और सुबह जब रसिक घर से निकले तब मुझे फोन करके बता देना.. ताकि में जीवा और रघु को तेरे घर भेज सकु"

फोन रखकर शीला तुरंत दरवाजे पर जाकर खड़ी हो गई.. २ मिनट के बाद एक बाइक आया.. शीला ने दौड़कर कंपाउंड का लोहे का दरवाजा खोल दिया.. बाइक अंदर आ गया.. चारों तरफ अंधेरा था.. और हल्की हल्की बारिश भी हो रही थी... इसलिए आजू बाजू के घरवाले सब घर बंद कर बैठे थे.. वह दोनों तुरंत घर के अंदर घुस गए और शीला ने भी अंदर आकर दरवाजा लॉक कर दिया..

शीला तुरंत किचन से दो ग्लास पानी लेकर आई.. ग्लास देखते वक्त वह इन दोनों को देख रही थी "इन दोनों में से जीवा कौन और रघु कौन? पतलून उतरे तो लंड का नाप देखकर ही पता चलेगा.. "

ग्लास से पानी पीते पीते दोनों शीला के गदराए जिस्म को घूर रहे थे। शीला को ग्लास वापिस देते वक्त जीवा ने उसे कलाई से पकड़ लिया और अपनी ओर खींच लिया.. शीला अपना संतुलन गँवाकर जीवा की गोद में आ गिरी..

शीला का जबरदस्त गदराया जिस्म.. जीवा उसे आग़ोश में भरकर चूमने लगा..

"अरे रघु.. बहनचोद कातिल माल है ये.. जबरदस्त सेक्सी है ये तो!!"

:हाँ जीवा.. ऐसे तो सीधे सीधे चोदने में मज़ा नही आएगा.. लेकर चलते है इस छिनाल को खेत पर कुएं के पास.. वही पर दारू पीकर इसे खुले में चोदेंगे.. इतने छोटे से कमरे में क्या ही मज़ा आएगा!!" रघु ने कहा

इनकी बातें सुनकर शीला घबरा गई.. उसने कहा

"दारू तो यहाँ तैयार है.. और वो भी इंग्लिश.. मैं तुम लोगों के साथ किसी खेत-वेत में नही आने वाली.. जो भी करना है वो यहाँ मेरे घर पर ही होगा.. मैं बाहर नही आने वाली"

इस दौरान जीवा ने शीला के शर्ट के ऊपर से ही उसके बड़े बड़े स्तनों को मसलना शुरू कर दिया था.. रघु भी नजदीक आ गया और वह शीला की जांघों को सहलाने लगा.. उफ्फ़.. एक साथ दो मर्दों का स्पर्श होते ही शीला को जैसे करंट सा लग गया.. सिसकियाँ भरते हुए शीला ने आँखें बंद कर ली

जीवा का लंड शीला के नितंबों तले दबा हुआ था.. रघु शीला की जांघों को सहलाते हुए उसकी चुत तक पहुँच गया.. दूसरी तरफ जीवा ने शीला के शर्ट के ऊपरी दो बटन खोल दिए और अंदर हाथ डालकर उसकी मम्मों को मसल के रख दिया।

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"आहहह.. जरा धीरे से.. तोड़ दोगे क्या!!" शीला अपने दोनों हाथों को पीछे की ओर ले गई और जीवा की गर्दन और बालों को सहलाने लगी।

जीवा ने शीला की जालीदार ब्रा में से उसके दोनों स्तनों को बाहर खींच निकाला.. और उसकी निप्पलों को मरोड़ते हुए शीला के गाल पर हल्के से काट लिया..

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"कमीने.. मुझे खा जाएगा क्या तू!!" कहते हुए शीला खड़ी हो गई.. "रुको एक मिनट" कहते हुए उसने डीवीडी प्लेयर को रिमोट से चालू कर दिया "मस्त ब्लू फिल्म है.. देखोगे तो मन खुश हो जाएगा" कहते हुए वह जीवा के पास आकर लेट गई..

रघु ने पास पड़ी शराब की बोतल का ढक्कन खोला और शीला के जिस्म पर शराब गिराने लगा.. पूरा कमरा शराब की गंध से भर गया.. शीला का शर्ट शराब से भीग गया था जिसे यह दोनों चाटने लगे.. उसके स्तनों को चाटकर शीला की चुत और जांघों पर हाथ फेरते हुए रघु ने शीला का हाथ अपने लंड पर रख दिया.. पेन्ट के ऊपर से ही रघु के गन्ने जैसे लंड को सहलाने लगी शीला.. टीवी के स्क्रीन पर "ओ यस.. ओह येह.. फक मी" जैसी आवाजों के साथ फिरंगी रंडियाँ चुदाई में व्यस्त थी.. उन आवाजों से पूरा कमरा गूंज रहा था..

दो साल से खाली पड़े शीला के घर में आज काम-उत्सव शुरू हो गया था.. एक ही झटके में खींचकर जीवा ने शीला के शर्ट के बाकी के बटनों को तोड़ दिया और उसकी विदेशी ब्रा भी फाड़ दी.. शराब से लथपथ शर्ट और ब्रा को कोने में फेंक कर रघु और जीवा, शीला पर टूट पड़े।

भादों के महीने में गरम कुत्तिया पर जब एक कुत्ता चढ़ा हुआ हो और दो-तीन और कुत्ते ऊपर चढ़ने के बेकार कोशिश कर रहे हो.. वैसा द्रश्य था।

दोनों ने आपस में शीला का एक एक स्तन बाँट लिया.. और उसे चूसने लगे.. उसकी गुलाबी निप्पलों पर दो दो जीभ एक साथ चल जाने पर शीला सिसकने लगी.. उसके एक हाथ से वह अपने बेलबॉटम पेन्ट के ऊपर से अपनी चुत खुजा रही थी और दूसरे हाथ से रघु के लंड को पतलून के ऊपर से सहला रही थी.. खेल खेल में उसने रघु के पेन्ट की चैन खोल दी.. शीला का जिस्म अब हवस की आग से झुलस रहा था।

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अब शीला का पेन्ट भी उतर चुका था.. और पेन्टी तो कहाँ फट कर गिर गई उसका पता ही नही चला.. उसके भोसड़े पर जीवा का हाथ छूते ही शीला की भोस से कामरस टपकने लगा.. रघु ने थोड़ी सी शराब शीला की चुत पर गिराई और बोतल का मुंह शीला की चुत में डाल दिया..

"बहुत महंगी दारू है.. क्यों बर्बाद कर रहे हो? उससे अच्छा तो इसे आराम से पी लो तुम दोनों" शीला ने कहा

"पहले तुझे ठीक से गीली कर लेते है.. फिर पियेंगे" जीवा ने और थोड़ा दबाव बनाकर शीला की चुत में बोतल घुसाई

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"ऊई माँ.. मुझे जल रहा है.. निकालो बाहर इसे.. मर गई मैं.. आहह.. मुझे पेशाब लगी है.. में बाथरूम में होकर आती हूँ "

टीवी की ओर इशारा करते हुए रघु बोला "वो देख.. कैसे चूस रही है.. ले तू भी इसी तरह मेरा लंड चूस"

"तुम पेन्ट से लोडा बाहर निकालोगे तभी तो चुसूँगी ना... " शीला ने अपनी समस्या बताई "और टीवी में जो भी देखोगे.. वो सब कुछ हम थोड़ी ही करेंगे?"

"और क्या!! आज तो जैसा हम कहेंगे वैसा तुम्हें करना पड़ेगा... ले अब.. मेरे लोडे को सिगार समझकर मुंह में ले ले.. " चैन खुलते ही रॉयल एनफील्ड के जम्पर जैसा सख्त लंबा लंड स्प्रिंग की तरह उछलकर बाहर निकला..

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"ईशशश... " रघु का बरकती लंड देखकर शीला पागल सी हो गई.. उसने झुककर रघु के लंड को चूम लिया.. रघु अब पगलाये सांड जैसा हो गया था.. शीला ने उसके टट्टे कसकर पकड़े और बच बच आवाज के साथ चूसना चालू कर दिया..

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जीवा ने भी शीला के भोंसड़े में आधी बोतल घुसा दी.. और फिर अपना पतलून और कच्छा उतार फेंका.. शीला के गूँदाज स्तनों को मसलते हुए अपना मुंह शीला के मुंह के करीब ले गया और फिर बोला "अब मूत बोतल के अंदर मादरचोद.. जितना दारू कम हुआ है.. उतना फिर से भर दे.."

बिस्तर तो पहले से ही शराब गिरने से गीला था.. जीवा ने शीला के होंठों पर अपने होंठ रख दिया और जबरदस्त उत्तेजित होकर चूसने लगा.. शीला भी इस चुंबन का प्रति-उत्तर देते हुए... जीवा के होंठ चूसने लगी.. शीला को चूमते हुए जीवा अब भी उसके भोसड़े में शराब की बोतल अंदर बाहर किए जा रहा था.. शीला भी उत्तेजित होकर अपनी गांड को गोलाकार में घुमाते हुए बोतल से चुदने का मज़ा ले रही थी...

"आहहह.. ऊँहह.. हाय जीवा... अब रहा नही जाता... घुसेड़ दे बोतल पूरी की पूरी अंदर...फाड़ दो इसे" शीला बेकाबू होकर बकवास किए जा रही थी।
शीला रघु और जीवा के साथ
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"दीदीईईईईई................!!!" किसी लड़की की शरारती चीख ने अनुमौसी के घर पर सब को चोंका दिया.. खाना पका रही कविता ने उस परिचित आवाज को पहचान लिया.. वह भागकर बाहर आई

"अरे.. क्या बात है !! मौसम तू यहाँ कैसे?? किसके साथ आई है? आने से पहले फोन तो किया होता, मैं तुझे लेने आ जाती" कविता की खुशी का कोई ठिकाना न रहा.. मौसम कविता की छोटी बहन थी

"अगर फोन करती तो तुम्हें सरप्राइज़ कैसे दे पाती?"

कविता हाथ पकड़कर अपनी छोटी बहन को घर के अंदर ले गई

अनुमौसी: "अरे, बेटा मौसम.. कैसी हो? परीक्षा खतम हो गई तेरी?"

मौसम: "ठीक हूँ आंटी.. ये बोर्ड की परीक्षा ने परेशान कर रखा था.. बाप रे.. पढ़ पढ़कर जान निकल गई मेरी.. और दुनिया भर की पाबंदियाँ.. टीवी मत देखो.. सहेलियों से मिलने मत जाओ.. मूवी देखने मत जो.. बस पूरा दिन पढ़ते ही रहो.. मैंने तय किया था की परीक्षा खतम होते ही मैं आप सब को मिलने आऊँगी"

अनुमौसी: "हाँ भई.. अब तो पढ़ाई लिखाई का ही जमाना है.. हमारे जमाने में तो लड़कियों को लिखना पढ़ना सिखाकर ब्याह देते थे.. तू अब यहाँ आराम से रहना और अपनी थकान उतारना"

मौसम: "हाँ आंटी.. दीदी के हाथ का बना बोर्नवीटा वाला दूध पीऊँगी तो मेरी सारी थकान उतर जाएगी" खिलखिलाकर हँसती हुई मौसम ने मंदिर की घंटी जैसी सुरीली आवाज में कहा

मौसम.. मौसम.. मौसम.. बारिश की पहली बूंद जैसी.. छोटी हिरनी जैसी.. मोती चुनते राजहंस जैसी..चहचहाती चिड़िया जैसी..

कविता मौसम को देखकर बेहद खुश हो गई.. मायके की हर चीज लड़की को प्यारी होती है.. और ये तो उसकी सगी छोटी बहन थी.. देखने में कविता जैसी ही.. पर थोड़ी सी ज्यादा सुंदर.. अठारह की हो चुकी थी मौसम.. बिंदास और शरारती स्वभाव की मौसम को देखते ही जो बात सबसे ज्यादा ध्यान खींचती थी.. वो थी उसकी मुस्कुराहट.. जब वो हँसती थी तब उसके गाल के डिम्पल इतने प्यारे लगते थे की देखने वाले की नजर ही न हटे.. उसके सहपाठी लड़के मॉसम के गालों के गड्ढों को देखने के लिए तरसते रहते.. सुराहीदार गर्दन.. मोम की पुतली जैसा जिस्म.. मीठी आवाज.. मौसम को देखने में ही सब ऐसे खो गए की उसके साथ आई लड़की का स्वागत करना ही भूल गए.. उस लड़की पर अनुमौसी का ध्यान गया

"अरे मौसम का स्वागत करने में हम सब इस लड़की को तो भूल ही गए.. !!" अनुमौसी ने कविता से कहा.. लगभग मौसम की उम्र की लड़की की पीठ सहलाते हुए उन्हों ने पूछा "क्या नाम है तेरा बेटा ?"

"जी नमस्ते आंटी जी, मेरा नाम फाल्गुनी है"

"मम्मी जी, हमारे पड़ोस में रहते सुधीरअंकल की बेटी है फाल्गुनी.. इसके और मौसम के बीच ऐसी गहरी दोस्ती है की दोनों कभी अलग होती ही नहीं है.. मैंने ही कहा था मौसम से.. की जब भी यहाँ आए तब फाल्गुनी को साथ लेते आए.. वो भी बेचारी थोड़ी फ्रेश हो जाएगी.. क्यों सही कहा ना मैंने फाल्गुनी?" हँसते हुए कविता ने कहा

फाल्गुनी: "हाँ दीदी, बड़ी मुश्किल से तो वेकेशन मिलता है.. और तभी ये पगली यहाँ दौड़ आती है.. फिर मैं अकेली वहाँ क्या करू? बोर हो जाती मैं.. इसलिए यहाँ इसके साथ ही आ गई.. अब पूरा एक महिना आपका दिमाग खाऊँगी.. " फाल्गुनी का स्वभाव ही ऐसा था की आते ही सब के साथ घुलमिल गई

फाल्गुनी.... बोलने के समय बोलती थी पर वैसे काफी शांत.. थोड़ी सी गंभीर.. गोरी और कद में ऊंची थी.. उसे देखते ही सब से पहली जो चीज नजर आती थी वो थे उसके घने लंबे बाल.. उसकी चोटी घुटनों तक लंबी थी.. बरसात के बादलों जैसे काले बाल!!

इन दोनों चिड़ियाओं की चहचहाट से अनुमौसी के पूरे घर में जान आ गई.. दोनों हरदम इतनी बातें कर रही थी.. थकती ही नहीं थी.. कविता किचन में खाना बनाने गई.. साथ में ये दोनों भी उसकी मदद करने गए.. अनुमौसी बाहर निकली.. थोड़ा सा चलने के लिए.. रास्ते में ही उन्हे शीला मिल गई.. जो सब्जी लेकर आ रही थी

शीला और मौसी काफी दिन बाद मिले थे.. दोनों बातों में मशरूफ़ हो गई.. बातों ही बातों में शीला ने मौसी को वैशाली के वैवाहिक जीवन की परेशानी के बारे में बताया.. अपने दामाद संजय के बारे में भी कहा.. कैसे वो कुछ काम नहीं करता और उधार लेकर गुलछर्रे उड़ाता रहता है.. अनुभवी अनुमौसी से शीला को मार्गदर्शन की अपेक्षा थी इसीलिए वह अपनी बेटी के निजी जीवन की सारी बातें बता रही थी

एक लंबी सांस लेकर अनुमौसी ने कहा "अब ऐसी स्थिति में क्या कर सकते है ? बेचारी वैशाली के पास बर्दाश्त करने के अलावा ओर कोई चारा नहीं है.. अगर वो अलग होना चाहती है अभी सही वक्त होगा ऐसा करने के लिए.. जैसे जैसे समय बीतता जाएगा, समस्या ओर गंभीर बन जाएगी"

शीला: "आपने कहा अभी सही वक्त है, मतलब? मैं समझी नहीं.."

अनुमौसी: "देख शीला.. पति-पत्नी के झगड़े अक्सर रात को बिस्तर पर जाते ही थम जाते है.. भगवान न करें कहीं वैशाली प्रेग्नन्ट हो गई तो?? बच्चे के आने के बाद तलाक काफी कठिन और मुश्किल हो जाएगा.. ये था मेरे कहने का मतलब!!"

शीला डर गई "मौसी.. कहीं वैशाली पहले से प्रेग्नन्ट तो नहीं होगी ना.. !!"

अनुमौसी: "तू उसकी माँ है.. सीधा पूछ ही ले.. जो होगा वो बता देगी तुझे.. और अगर हुई भी तो बिना किसी शोर-शराबे के बच्चे को गिरा दे.. अगर तेरे दामाद के सुधरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे है तो.. और हाँ.. उस कमीने को भनक नहीं लगनी चाहिए अगर वैशाली प्रेग्नन्ट हुई तो.. वरना वो कमीना उसे ब्लेकमेल कर सकता है" अपने सालों के अनुभव को सांझा किया मौसी ने

ये सुनकर मन ही मन कांप उठी शीला.. पर वो भी हार मानने वालों में से नहीं थी.. संजय को तो सबक सिखाना ही पड़ेगा.. ऐसे कैसे वो किसी लड़की का जीवन तबाह करके ऐशोआराम की जिंदगी बीता सकता है!! वैशाली से बात करने का निश्चय करके शीला घर लौटी

रात का खाना खाकर जब दोनों माँ-बेटी झूले पर बैठे थे तब शीला ने वैशाली से सब कुछ पूछ लिया.. बातों बातों में उसने संजय और वैशाली के बेडरूम के जीवन के बारे में भी पूछ लिया.. जब शीला ने ये जाना की वैशाली भरी जवानी में शारीरिक भूख से तड़प रही थी तब उसका दिल ही बैठ गया.. इस उम्र में मुझसे रहा नहीं जाता तो ये बेचारी कैसे गुजारा करती होगी !!! इस बारे में मैं भी क्या कर सकती हूँ?? वाकई बिना पति के रहना बेहद कठिन है.. वैशाली के वैवाहिक जीवन को कैसे बचाया जाए ये सोचते हुए उसने वैशाली से संजय की कमजोरियों के बारे में पूछ लिया.. आखिर उन दोनों के बीच के झगड़े की जड़ तक जाना जरूरी था.. वो क्या कारण था की जिसके कारण दोनों के बीच अनबन शुरू हुई? इस बारे में सब कुछ जानना जरूरी था पर कुछ बातें ऐसी थी जो वो वैशाली से सीधे पूछ नहीं सकती थी.. इसके लिए शीला ने कविता की मदद लेने का तय किया.. दोनों माँ बेटी साथ में बिस्तर पर बातें करते हुए सो गई

सुबह शीला ने कविता को फोन किया.. अपनी छोटी बहन और उसकी सहेली की मौजूदगी के चलते कविता ने आने में असमर्थता जताई.. पर वादा किया की समय मिलते ही वह तुरंत मिलने आएगी..

शीला ने अब चेतना को फोन किया.. यह जानने की संजय के बारे में जानकारी प्राप्त करने का जो काम उसने चेतना को दिया था उस में कुछ जानने मिला भी या नहीं !!

चेतना: "सच कहूँ शीला.. दो दिन से मैं कुछ न कुछ काम में ऐसी उलझी रही की तेरे दामाद के बारे में पता करने का वक्त ही नहीं मिला.. हाँ सुबह सुबह गेस्टहाउस की बालकनी में वो खड़ा जरूर होता है.. बाकी कुछ नया जानने को मिलेगा तो में तुरंत तुझे बताऊँगी" चेतना ने अपनी जूठी कहानी सुनाई

फोन रखकर शीला सोच में पड़ गई.. आज ये चेतना की आवाज में झिझक क्यों महसूस हो रही थी!! हर बार की तरह बात नहीं कर रही थी वो.. जैसे कुछ छुपा रही हो.. !!

क्या करू? किस से कहू? शीला ने वैशाली की किसी सहेली की मदद लेने का सोचा.. काफी देर तक सोचते रहने के बाद उसे फोरम की याद आई.. वैशाली की कॉलेज की सहेली.. थोड़ी दिन पहले ही मंडी में फोरम की मम्मी शीला को मिल गई थी..फोरम ने प्रेम विवाह किया था और वो इसी शहर में रहती थी.. पर वो कहाँ रहती थी ये पता नहीं था..

शीला सोचती रही.. सोचती रही.. सोचती रही.. फिर उसे याद आया की टेलीफोन डायरी में उसका नंबर लिखा होगा.. वैशाली कहीं बाहर गई थी.. शीला ने डायरी निकाली और फोरम के घर का लेंडलाइन नंबर ढूंढकर फोन लगाया.. किसी पुरुष ने फोन उठाया

शीला ने नम्र आवाज में पूछा "जी आप कौन?"

"जी मैं मणिलाल ठक्कर.. आपको किसका काम है?"

"आप, फोरम के पापा हो ना.. !!"

"जी हाँ.. पर आप कौन बोल रही है?"

"जी नमस्ते, मेरा नाम शीला है.. मेरी बेटी वैशाली और फोरम दोनों सहेलियाँ है"

"ओह नमस्ते शीला बहन.. कैसे है आप? वैशाली को अच्छे से जानता हूँ मैं.. वह अक्सर मेरे घर आती रहती थी.. कहिए क्या काम था?"

"जी मुझे फोरम का काम था.. "

"वो तो अपने ससुराल है.. कुछ अर्जेंट काम हो तो आप उसके मोबाइल पर कॉल कर सकती है.. मैं नंबर देता हूँ"

"हाँ हाँ.. नंबर दीजिए प्लीज.. काम तो वैसे कुछ खास नहीं है.. वैशाली मायके आई हुई है.. वो फोरम को याद कर रही थी.. तो सोचा उसे फोन कर दु"

शीला ने चालाकी से फोरम का नंबर जान लिया.. और फोरम को फोन किया.. फोरम को संक्षिप्त में सारी बात समझकर उसे इस बारे में जानकारी प्राप्त करके मदद करने के लिए कहा

फोरम: "आंटी, आप चिंता मत कीजिए.. मैं सब कुछ जान लूँगी"

शीला: "मैंने तुझे फोन किया है इस बारे में वैशाली को पता नहीं चलना चाहिए"

फोरम: "मैं उसे कुछ नहीं बताऊँगी.. आप इत्मीनान रखिए.. मैं ऐसे आ टपकूँगी और उससे सारी बातें पूछ लूँगी"

शीला: "ठीक है बेटा.. मुझे बहोत चिंता हो रही है.. तू सब कुछ जान ले फिर आगे क्या करना वो पता चले मुझे"

शाम को शीला और वैशाली खाना खा रहे थे तभी डोरबेल बजी.. वैशाली ने उठकर दरवाजा खोला और अचंभित हो गई

"अरे.. फोरम तू.. !!!! तुझे कैसे पता चला की मैं यहाँ हूँ" वैशाली ने फोरम को गले से लगा लिया..

फोरम: "कुछ दिन पहले मेरी मम्मी आंटी से बाजार में मिली थी.. तभी उन्होंने बताया था की तू आई है.. तो आ गई मैं तुझे सप्राइज़ देने.. तू बता यार.. कैसा चल रहा है सब कुछ? तो तो यार मस्त गोरी हो गई कलकता जा कर.. "

शीला: "आओ बेटा फोरम.. वैशाली खाना ठंडा हो रहा है.. पहले खाना खतम कर.. फिर दोनों आराम से बातें करना.. फोरम, तू भी आजा.. थोड़ा सा खा ले.. "

फोरम: "नहीं आंटी, मैं खाना खाकर ही आई हूँ.. " कहते हुए वो डाइनिंग टेबल पर वैशाली के साथ बैठ गई..

शीला ने खाना जल्दी खतम किया और खड़ी हो गई "आप दोनों आराम से बात करो.. मुझे थोड़ा काम है" दोनों को अकेले बात करने का मौका देने के लिए शीला चली गई

फोरम ने बातों बातों में वैशाली से जान लिया की संजय और उसके बीच क्या तकलीफ थी.. उन दोनों के संबंध काफी खराब हो चुके थे.. दोनों बहोत ही खास सहेलियाँ थी इसलिए वैशाली सब कुछ बेझिझक फोरम को बताया.. सब कुछ.. यहाँ तक की बेडरूम लाइफ के बारे में भी

वैशाली और फोरम को प्राइवसी देने के लिए शीला अनुमौसी के घर चली आई.. कविता और पीयूष दोनों शीला को देखकर खुश हो गए.. शीला जब मौसी से बात कर रही थी तब चिमनलाल सोफ़े पर हिप्पो की तरह लेटे हुए आई.पी.एल के मेच देख रहा था.. तीरछी नज़रों से वो शीला के स्तनों को देख रहा था इस बात का पता था शीला को.. किसी भी एंगल से लाइन मारने योग्य नहीं था चिमनलाल.. इसलिए उसकी नजर शीला को चुभ रही थी.. ऊपर से पीयूष जिस तरह से मौसम के कंधे पर हाथ रखकर हंस हँसकर बात कर रहा था ये देखकर शीला थोड़ी ओर अस्वस्थ हो गई.. इस हरामी पीयूष को जवान साली क्या मिल गई.. मेरे सामने तो देख भी नहीं रहा!! उस रात मूवी देखते वक्त तो मेरे बबलों पर टूट पड़ा था कमीना..

मौसम की छाती पर नजर फेरते ही शीला को पता चल गया की माल एकदम कोरा था.. अभी तक किसी का हाथ नहीं पड़ा था उसके सख्त और विकसित हो रहे स्तनों पर..

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उसके स्तन जवान थे तो शीला के स्तनों में बड़े आकार का जादू था.. पीयूष का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी एक तरफ की ब्लाउस की कटोरी खुली होते ही पीयूष एल.बी.डब्ल्यू हो गया.. अब वो बार बार शीला के उरोज को देख रहा था ये बात कविता के ध्यान में भी थी


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मौसम और फाल्गुनी इन नज़रों के खेल से अनजान थी क्योंकि वो दोनों शीला के बगल में बैठी थी.. कविता पीयूष के पास बैठी थी.. शीला के मदमस्त उरोजों को देखकर वो भी मन ही मन आहें भर रही थी.. सोच रही थी.. एक लड़की होकर भी मेरी नजर शीला के स्तनों पर चिपक जाती है.. तो बेचारे पीयूष का क्या दोष? अनुमौसी भी इन सब से अनजान तो नहीं थे पर रीटायर हो चुके खिलाड़ी की तरह वह सबकुछ देखते हुए शीला से बातें कर रही थी

मौसम: "जीजू, आप कल हमें घुमाने लेकर चलेंगे ना !! "

पीयूष: "कल तो मुश्किल होगा मौसम.. ऑफिस में बहोत काम है.. तू कविता को ही बोल.. वो तुझे ले जाएगी घुमाने"

शीला: "जहां भी जाओ.. वैशाली को साथ लेकर ही जाना.. वो बेचारी अकेले अकेले बोर हो जाती है"

वैशाली का जिक्र होते ही पीयूष की आँखें चमक उठी.. ये बात शीला की नज़रों से छिपी नहीं थी.. वो सोच में पड़ गई.. कहीं वैशाली और पीयूष के बीच भी कुछ.. ??? ये मादरभगत माँ और बेटी दोनों को घुमा रहा है शायद..

शीला: "मैं चलती हु अब.. साढ़े दस बज गए.. "

कविता: "बैठिए ना भाभी.. वैसे वैशाली कहाँ है? दिखी ही नहीं.. उस दिन संजयकुमार को भी देखा था मैंने.. कहीं बाहर तो नहीं गए वो दोनों?"

संजय का नाम सुनते ही पीयूष का दिमाग खराब हो गया.. उसने कुछ सोचकर कहा "मैं देखता हूँ.. अगर राजेश सर मुझे छुट्टी देते है तो मैं परसों गुरुवार और शुक्रवार दो दिन की छुट्टी ले लूँगा.. शनिवार और रविवार को वैसे भी छुट्टी है.. चार दिन कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते है.. शीला भाभी और वैशाली को भी साथ ले लेंगे.. मज़ा आएगा"

ये सुनते ही मौसम उछल पड़ी और पीयूष को गले लगाकर बोली "थेंकयू जिजू.." मौसम के इस बर्ताव से किसी को ताज्जुब नहीं हुआ पर शीला की नजर मौसम के कच्चे अमरूद जैसी चूचियों पर गई जो पीयूष के शरीर से दबकर चपटी हो गई थी..

"आप चलोगे ना भाभी?" पीयूष ने आँख मारते हुए शीला से पूछा

"देखते है.. अगर वैशाली राजी हो गई तो चलूँगी.. उसे अकेला छोड़कर कैसे आ सकती हूँ? और अगर संजयकुमार अचानक घर पर आ गए तो? मुझे सब देखना पड़ता है " शीला ने पोलिटिकल जवाब दीया

"अरे वैशाली को तो मैं मना लूँगा.. वो भी बेचारी.. कितने सालों के बाद मायके आई है.. वो भी थोड़ा सा इन्जॉय कर ले" पीयूष ने कहा

कविता ने अपनी कुहनी पीयूष की कमर पर मारते हुए कहा "क्या बात है.. वैशाली की बड़ी फिक्र हो रही है तुझे.. !! कहीं उसके साथ तेरा.. !!" कविता ने बात अधूरी छोड़ दी

पीयूष सकपका गया.. जैसे रंगेहाथों पकड़ा गया हो.. वो कुछ नहीं बोला और नजरें झुकाकर बैठा ही रहा

"मैं देखती हूँ.. जो भी होगा कल बताऊँगी" कहते हुए शीला उठकर अपने घर चल दी

शीला जब घर पहुंची तब वैशाली किसी के साथ मोबाइल पर बात कर रही थी.. फोरम जा चुकी थी.. शीला ने देखा की उसके आते ही वैशाली ने फोन कट कर दिया.. होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. वो भी अब शादीशुदा है और बड़ी हो गई है.. हर बात पर पूछना या टोकना ठीक नहीं होगा.. हो सकता है की संजय से ही बात कर रही हो !! लेकिन संजय का फोन होता तो इस तरह काट नहीं देती.. हिम्मत से बात कर रही होगी?? क्या पता !!

अपनी एकलौती बेटी का संसार उझड़ता हुआ देखकर शीला को बहोत दुख हो रहा था.. पर उससे भी ज्यादा दुख इस बात का था की उसका पति मदन अभी मौजूद नहीं था.. अगर वो होता तो संजय को ठीक कर देता.. अभी और १८ दिन बाकी थे मदन के लौटने में..

अपने पति को याद करते हुए शीला सो गई और उसके बगल में वैशाली भी.. सुबह ४ बजे के करीब वैशाली को पेट में बहोत दर्द होने लगा.. पर वो बिस्तर में पड़ी रही.. बेकार में मम्मी की नींद खराब होगी ये सोचकर.. थोड़ी देर यूंही पड़े रहने के बाद वह बाथरूम जाने के लिए उठने ही वाली थी तब डोरबेल बजी.. शीला तुरंत उठ गई.. मम्मी शायद दूध लेकर बाथरूम जाएगी तो उनके लौटने के बाद मैं जाऊँगी ये सोचकर वैशाली बिस्तर में पड़ी रही..

शीला ने दरवाजा खोला.. सामने रसिक था.. रसिक को देखते ही वह उससे लिपट पड़ी.. अपनी छाती को रसिक के जिस्म से रगड़ते हुए वह बोली

शीला: "ओह्ह रसिक.. बहोत मन कर रहा है यार.. पर क्या करू.. वैशाली के आने के बाद कोई सेटिंग हो ही नहीं पा रहा.. तेरा "ये" मुझे बहोत याद आता है.. कहीं ले चल मुझे यार.. अंदर ऐसी आग लगी है की तुझे क्या बताऊँ!!" कहते हुए शीला ने रसिक के पाजामे के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ लिया

बेडरूम के दरवाजे के पीछे छुपकर देख रही वैशाली को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था.. ये क्या हो रहा है? मम्मी एक दूधवाले के साथ?? छी छी.. एक पल के लिए तो वो अपने पेट का दर्द भी भूल गई.. अपनी माँ का ये नया ही रूप देखा था उसने..

रसिक अपने मजबूत हाथों से शीला की पीठ और कूल्हों को गाउन के ऊपर से ही मसलते हुए शीला के होंठ चूस रहा था.. चूसते चूसते आहें भी भर रहा था

"आवाज मत कर पागल.. वो जाग गई तो आफत आ जाएगी" शीला ने कहा

रसिक का सख्त मूसल जैसा लंड मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे करते हुए शीला का भोसड़ा चुदवाने के लिए तड़पने लगा.. उससे रहा नहीं जा रहा था लेकिन वैशाली की मौजूदगी में ऐसा कुछ भी कर पाना असंभव था.. हररोज केवल वो रसिक का लंड चूसकर ठंडा करती पर उसकी चूत की प्यास अधूरी ही रह जाती, ये बात बड़ी खल रही थी शीला को..

"ओह्ह भाभी.. रोज की तरह आज भी मेरा चूसकर सारा जहर बाहर निकाल दो.. तो मैं जाऊँ.. ये नरम नहीं होगा तबतक मैं किसी के घर जा नहीं पाऊँगा.. देखो तो सही.. कितना बड़ा उभार हो गया है पजामे में??" शीला के गाउन में हाथ डालकर जोर से मसल दिए उसके स्तन रसिक ने.. निप्पलों पर रसिक की खुरदरी उँगलियाँ रगड़ते ही शीला की वासना उफान पर चढ़ने लगी.. वो रसिक के लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगी.. अचंभित होकर वैशाली अपनी माँ की सारी करतूतें देखती ही रही.. शीला और रसिक की सारी बातें ठीक से सुनाई तो नहीं दे रही थी पर उनकी हरकतें देखने के बाद, बातें सुनने की जरूरत भी नहीं थी..

यह सारी कामलीला देखकर वैशाली की चूचियाँ भी सख्त और लाल हो गई.. वैशाली को एक पल के लिए नफरत हो गई अपनी माँ से.. फिर उसने सोचा.. दो साल से पापा विदेश थे.. मर्द की जरूरत हर औरत को पड़ती है.. तो उसमें गलत क्या है !! पर मम्मी को थोड़ा लेवल का भी ध्यान रखना चाहिए ना!! वैशाली ने देखा की थोड़ी सी आनाकानी के बाद उसकी माँ घुटनों पर बैठ गई.. कम रोशनी के कारण उसे रसिक का लंड नजर नहीं आ रहा था.. थोड़ी देर के बाद रसिक चला गया.. और शीला अपने मुंह में भरे वीर्य को थूकने के लिए वॉशबेसिन पर आई.. ये देख वैशाली को घिन आने लगी.. माय गॉड.. मम्मी के मुंह में उसने पिचकारी मार दी.. !!!!!!!

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शीला को बेडरूम की ओर आता देख वैशाली तुरंत बिस्तर पर लेट गई और करवट लेकर गहरी नींद में होने का नाटक करने लगी.. शीला ने वैशाली की ओर देखा.. उसे गहरी नींद में देख शीला का मन शांत हुआ.. अच्छा है ये सो रही है.. ये साला रसिक भी.. उसका लंड पकड़ते ही मेरी चूत में झटके लगने लगते है.. रहा ही नहीं जाता.. कितना टाइट है उसका.. हाय.. अंदर लेने का मन करने लगता है.. क्या करू यार.. बिना चुदे रहा नहीं जाता मुझसे अब.. कुछ सेटिंग तो करना ही पड़ेगा.. पर कहाँ करू? रसिक को चेतना के घर बुला लूँ?? आइडिया तो अच्छा है पर उस रंडी चेतना का कोई भरोसा नहीं.. एक बार उसने अगर रसिक का देख लिया तो बिना चुदवाए नहीं रहेगी.. और एक बार उससे चुद गई तो उसे अपना बना ही लेगी वो कमीनी.. नहीं नहीं.. ऐसा जोखिम नहीं उठाना..

शीला घर के काम में मशरूफ़ हो गई और उसका मन चुदवाने के बंदोबस्त के बारे में सोचने लगा.. करीब साढ़े आठ के करीब वैशाली जाग गई.. वह नहा-धोकर तैयार हो गई और कविता के साथ बाजार चली गई.. रास्ते में कविता ने वैशाली को चार दिन बाहर जाने के प्रोग्राम के बारे में बताया.. अपनी बहन मौसम और उसकी सहेली फाल्गुनी के बारे में भी कहा..

कविता: "तू आएगी ना साथ.. पीयूष कह रहा था की तुझे तो वो जरूर लेके चलेगा.. तेरे लिए कुछ ज्यादा ही जज्बाती है पीयूष.. और क्यों न हो.. तुम दोनों के बीच वो वाला खास रिश्ता जो है!!" शरारत करते हुए कविता ने कहा

वैशाली: "कुछ भी मत बोल.. उस समय जो होना था वो हो चुका.. बीत गई सो बात गई.. एक भूल हुई थी जो ईमानदारी से मैंने तेरे सामने कुबूल भी कर ली.. तू तो ऐसे बोल रही है जैसे मैं रोज पीयूष से करवाती हूँ"

कविता: "अरे यार मज़ाक कर रही हूँ.. क्या तू भी !! तू साथ चलेगी तो बहोत मज़ा आएगा.. यार वैशाली.. भूख लग रही है.. चल पानी पूरी खाते है.. तू ही बता.. यहाँ कौन सब से अच्छे गोलगप्पे खिलाता है?"

वैशाली: "चल तुझे ऐसी जगह नाश्ता करवाती हूँ की याद रखेगी.. थोड़ा दूर है पर मज़ा आएगा"

हाथ दिखाकर वैशाली ने रिक्शा को रोका और दोनों अंदर बैठ गए.. वैशाली ने पता बताया और ऑटो वाला उस ओर चलाने लगा..

रास्ते में कविता ने रसिक के साथ उस दिन हुई द्विअर्थी बातों के बारे में बताया.. रसिक का नाम सुनते ही वैशाली के कान खड़े हो गए.. वह कविता से और जानकारी प्राप्त करने के मकसद से घूम फिराकर पूछने लगी.. कविता को भी आश्चर्य हुआ की रसिक के बारे में इतना सब क्यों पूछ रही थी वैशाली !! दोनों ने उस जगह पहुंचकर नाश्ता किया और घर वापिस आए

घर आते ही शीला ने वैशाली को बताया "कविता और पीयूष, घर आए मेहमानों को लेकर ४ दिन कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बना रहे है.. मुझे पूछ रहे थे अगर हम दोनों भी साथ चलना चाहे तो.. "

वैशाली: "मुझे मूड नहीं है जाने का मम्मी.. तुम्हें जाना है तो जाओ"

शीला: "अगर तू नहीं चलेगी तो मैं भी जाकर क्या करूंगी !!"

वैशाली: "मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा मम्मी.. संजय को लेकर मैं बहोत परेशान हूँ.. इसलिए नहीं जाना चाहती.. पर तू तो चली जा.. दो सालों से तुम कहीं नहीं गई.. थोड़ा माहोल बदलेगा तो तुझे भी अच्छा लगेगा.. "


शीला ने जवाब नहीं दिया.. वैसे वैशाली की बात तो सही थी.. २ साल हो गए थे मदन को गए.. दो सालों से वो कहीं नहीं गई थी.. बस एक बार अनुमौसी और महिला मण्डल पर एक दिन की यात्रा पर गई थी उसके अलावा कहीं भी नहीं.. वैशाली काफी उदास रहती थी.. और उसके कारण पूरा घर एकदम शांत और गंभीर लगता था.. बेटी की उदासी देखकर माँ को चिंता होना स्वाभाविक था

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"दीदीईईईईई................!!!" किसी लड़की की शरारती चीख ने अनुमौसी के घर पर सब को चोंका दिया.. खाना पका रही कविता ने उस परिचित आवाज को पहचान लिया.. वह भागकर बाहर आई

"अरे.. क्या बात है !! मौसम तू यहाँ कैसे?? किसके साथ आई है? आने से पहले फोन तो किया होता, मैं तुझे लेने आ जाती" कविता की खुशी का कोई ठिकाना न रहा.. मौसम कविता की छोटी बहन थी

"अगर फोन करती तो तुम्हें सरप्राइज़ कैसे दे पाती?"

कविता हाथ पकड़कर अपनी छोटी बहन को घर के अंदर ले गई

अनुमौसी: "अरे, बेटा मौसम.. कैसी हो? परीक्षा खतम हो गई तेरी?"

मौसम: "ठीक हूँ आंटी.. ये बोर्ड की परीक्षा ने परेशान कर रखा था.. बाप रे.. पढ़ पढ़कर जान निकल गई मेरी.. और दुनिया भर की पाबंदियाँ.. टीवी मत देखो.. सहेलियों से मिलने मत जाओ.. मूवी देखने मत जो.. बस पूरा दिन पढ़ते ही रहो.. मैंने तय किया था की परीक्षा खतम होते ही मैं आप सब को मिलने आऊँगी"

अनुमौसी: "हाँ भई.. अब तो पढ़ाई लिखाई का ही जमाना है.. हमारे जमाने में तो लड़कियों को लिखना पढ़ना सिखाकर ब्याह देते थे.. तू अब यहाँ आराम से रहना और अपनी थकान उतारना"

मौसम: "हाँ आंटी.. दीदी के हाथ का बना बोर्नवीटा वाला दूध पीऊँगी तो मेरी सारी थकान उतर जाएगी" खिलखिलाकर हँसती हुई मौसम ने मंदिर की घंटी जैसी सुरीली आवाज में कहा

मौसम.. मौसम.. मौसम.. बारिश की पहली बूंद जैसी.. छोटी हिरनी जैसी.. मोती चुनते राजहंस जैसी..चहचहाती चिड़िया जैसी..

कविता मौसम को देखकर बेहद खुश हो गई.. मायके की हर चीज लड़की को प्यारी होती है.. और ये तो उसकी सगी छोटी बहन थी.. देखने में कविता जैसी ही.. पर थोड़ी सी ज्यादा सुंदर.. अठारह की हो चुकी थी मौसम.. बिंदास और शरारती स्वभाव की मौसम को देखते ही जो बात सबसे ज्यादा ध्यान खींचती थी.. वो थी उसकी मुस्कुराहट.. जब वो हँसती थी तब उसके गाल के डिम्पल इतने प्यारे लगते थे की देखने वाले की नजर ही न हटे.. उसके सहपाठी लड़के मॉसम के गालों के गड्ढों को देखने के लिए तरसते रहते.. सुराहीदार गर्दन.. मोम की पुतली जैसा जिस्म.. मीठी आवाज.. मौसम को देखने में ही सब ऐसे खो गए की उसके साथ आई लड़की का स्वागत करना ही भूल गए.. उस लड़की पर अनुमौसी का ध्यान गया

"अरे मौसम का स्वागत करने में हम सब इस लड़की को तो भूल ही गए.. !!" अनुमौसी ने कविता से कहा.. लगभग मौसम की उम्र की लड़की की पीठ सहलाते हुए उन्हों ने पूछा "क्या नाम है तेरा बेटा ?"

"जी नमस्ते आंटी जी, मेरा नाम फाल्गुनी है"

"मम्मी जी, हमारे पड़ोस में रहते सुधीरअंकल की बेटी है फाल्गुनी.. इसके और मौसम के बीच ऐसी गहरी दोस्ती है की दोनों कभी अलग होती ही नहीं है.. मैंने ही कहा था मौसम से.. की जब भी यहाँ आए तब फाल्गुनी को साथ लेते आए.. वो भी बेचारी थोड़ी फ्रेश हो जाएगी.. क्यों सही कहा ना मैंने फाल्गुनी?" हँसते हुए कविता ने कहा

फाल्गुनी: "हाँ दीदी, बड़ी मुश्किल से तो वेकेशन मिलता है.. और तभी ये पगली यहाँ दौड़ आती है.. फिर मैं अकेली वहाँ क्या करू? बोर हो जाती मैं.. इसलिए यहाँ इसके साथ ही आ गई.. अब पूरा एक महिना आपका दिमाग खाऊँगी.. " फाल्गुनी का स्वभाव ही ऐसा था की आते ही सब के साथ घुलमिल गई

फाल्गुनी.... बोलने के समय बोलती थी पर वैसे काफी शांत.. थोड़ी सी गंभीर.. गोरी और कद में ऊंची थी.. उसे देखते ही सब से पहली जो चीज नजर आती थी वो थे उसके घने लंबे बाल.. उसकी चोटी घुटनों तक लंबी थी.. बरसात के बादलों जैसे काले बाल!!

इन दोनों चिड़ियाओं की चहचहाट से अनुमौसी के पूरे घर में जान आ गई.. दोनों हरदम इतनी बातें कर रही थी.. थकती ही नहीं थी.. कविता किचन में खाना बनाने गई.. साथ में ये दोनों भी उसकी मदद करने गए.. अनुमौसी बाहर निकली.. थोड़ा सा चलने के लिए.. रास्ते में ही उन्हे शीला मिल गई.. जो सब्जी लेकर आ रही थी

शीला और मौसी काफी दिन बाद मिले थे.. दोनों बातों में मशरूफ़ हो गई.. बातों ही बातों में शीला ने मौसी को वैशाली के वैवाहिक जीवन की परेशानी के बारे में बताया.. अपने दामाद संजय के बारे में भी कहा.. कैसे वो कुछ काम नहीं करता और उधार लेकर गुलछर्रे उड़ाता रहता है.. अनुभवी अनुमौसी से शीला को मार्गदर्शन की अपेक्षा थी इसीलिए वह अपनी बेटी के निजी जीवन की सारी बातें बता रही थी

एक लंबी सांस लेकर अनुमौसी ने कहा "अब ऐसी स्थिति में क्या कर सकते है ? बेचारी वैशाली के पास बर्दाश्त करने के अलावा ओर कोई चारा नहीं है.. अगर वो अलग होना चाहती है अभी सही वक्त होगा ऐसा करने के लिए.. जैसे जैसे समय बीतता जाएगा, समस्या ओर गंभीर बन जाएगी"

शीला: "आपने कहा अभी सही वक्त है, मतलब? मैं समझी नहीं.."

अनुमौसी: "देख शीला.. पति-पत्नी के झगड़े अक्सर रात को बिस्तर पर जाते ही थम जाते है.. भगवान न करें कहीं वैशाली प्रेग्नन्ट हो गई तो?? बच्चे के आने के बाद तलाक काफी कठिन और मुश्किल हो जाएगा.. ये था मेरे कहने का मतलब!!"

शीला डर गई "मौसी.. कहीं वैशाली पहले से प्रेग्नन्ट तो नहीं होगी ना.. !!"

अनुमौसी: "तू उसकी माँ है.. सीधा पूछ ही ले.. जो होगा वो बता देगी तुझे.. और अगर हुई भी तो बिना किसी शोर-शराबे के बच्चे को गिरा दे.. अगर तेरे दामाद के सुधरने के कोई आसार नजर नहीं आ रहे है तो.. और हाँ.. उस कमीने को भनक नहीं लगनी चाहिए अगर वैशाली प्रेग्नन्ट हुई तो.. वरना वो कमीना उसे ब्लेकमेल कर सकता है" अपने सालों के अनुभव को सांझा किया मौसी ने

ये सुनकर मन ही मन कांप उठी शीला.. पर वो भी हार मानने वालों में से नहीं थी.. संजय को तो सबक सिखाना ही पड़ेगा.. ऐसे कैसे वो किसी लड़की का जीवन तबाह करके ऐशोआराम की जिंदगी बीता सकता है!! वैशाली से बात करने का निश्चय करके शीला घर लौटी

रात का खाना खाकर जब दोनों माँ-बेटी झूले पर बैठे थे तब शीला ने वैशाली से सब कुछ पूछ लिया.. बातों बातों में उसने संजय और वैशाली के बेडरूम के जीवन के बारे में भी पूछ लिया.. जब शीला ने ये जाना की वैशाली भरी जवानी में शारीरिक भूख से तड़प रही थी तब उसका दिल ही बैठ गया.. इस उम्र में मुझसे रहा नहीं जाता तो ये बेचारी कैसे गुजारा करती होगी !!! इस बारे में मैं भी क्या कर सकती हूँ?? वाकई बिना पति के रहना बेहद कठिन है.. वैशाली के वैवाहिक जीवन को कैसे बचाया जाए ये सोचते हुए उसने वैशाली से संजय की कमजोरियों के बारे में पूछ लिया.. आखिर उन दोनों के बीच के झगड़े की जड़ तक जाना जरूरी था.. वो क्या कारण था की जिसके कारण दोनों के बीच अनबन शुरू हुई? इस बारे में सब कुछ जानना जरूरी था पर कुछ बातें ऐसी थी जो वो वैशाली से सीधे पूछ नहीं सकती थी.. इसके लिए शीला ने कविता की मदद लेने का तय किया.. दोनों माँ बेटी साथ में बिस्तर पर बातें करते हुए सो गई

सुबह शीला ने कविता को फोन किया.. अपनी छोटी बहन और उसकी सहेली की मौजूदगी के चलते कविता ने आने में असमर्थता जताई.. पर वादा किया की समय मिलते ही वह तुरंत मिलने आएगी..

शीला ने अब चेतना को फोन किया.. यह जानने की संजय के बारे में जानकारी प्राप्त करने का जो काम उसने चेतना को दिया था उस में कुछ जानने मिला भी या नहीं !!

चेतना: "सच कहूँ शीला.. दो दिन से मैं कुछ न कुछ काम में ऐसी उलझी रही की तेरे दामाद के बारे में पता करने का वक्त ही नहीं मिला.. हाँ सुबह सुबह गेस्टहाउस की बालकनी में वो खड़ा जरूर होता है.. बाकी कुछ नया जानने को मिलेगा तो में तुरंत तुझे बताऊँगी" चेतना ने अपनी जूठी कहानी सुनाई

फोन रखकर शीला सोच में पड़ गई.. आज ये चेतना की आवाज में झिझक क्यों महसूस हो रही थी!! हर बार की तरह बात नहीं कर रही थी वो.. जैसे कुछ छुपा रही हो.. !!

क्या करू? किस से कहू? शीला ने वैशाली की किसी सहेली की मदद लेने का सोचा.. काफी देर तक सोचते रहने के बाद उसे फोरम की याद आई.. वैशाली की कॉलेज की सहेली.. थोड़ी दिन पहले ही मंडी में फोरम की मम्मी शीला को मिल गई थी..फोरम ने प्रेम विवाह किया था और वो इसी शहर में रहती थी.. पर वो कहाँ रहती थी ये पता नहीं था..

शीला सोचती रही.. सोचती रही.. सोचती रही.. फिर उसे याद आया की टेलीफोन डायरी में उसका नंबर लिखा होगा.. वैशाली कहीं बाहर गई थी.. शीला ने डायरी निकाली और फोरम के घर का लेंडलाइन नंबर ढूंढकर फोन लगाया.. किसी पुरुष ने फोन उठाया

शीला ने नम्र आवाज में पूछा "जी आप कौन?"

"जी मैं मणिलाल ठक्कर.. आपको किसका काम है?"

"आप, फोरम के पापा हो ना.. !!"

"जी हाँ.. पर आप कौन बोल रही है?"

"जी नमस्ते, मेरा नाम शीला है.. मेरी बेटी वैशाली और फोरम दोनों सहेलियाँ है"

"ओह नमस्ते शीला बहन.. कैसे है आप? वैशाली को अच्छे से जानता हूँ मैं.. वह अक्सर मेरे घर आती रहती थी.. कहिए क्या काम था?"

"जी मुझे फोरम का काम था.. "

"वो तो अपने ससुराल है.. कुछ अर्जेंट काम हो तो आप उसके मोबाइल पर कॉल कर सकती है.. मैं नंबर देता हूँ"

"हाँ हाँ.. नंबर दीजिए प्लीज.. काम तो वैसे कुछ खास नहीं है.. वैशाली मायके आई हुई है.. वो फोरम को याद कर रही थी.. तो सोचा उसे फोन कर दु"

शीला ने चालाकी से फोरम का नंबर जान लिया.. और फोरम को फोन किया.. फोरम को संक्षिप्त में सारी बात समझकर उसे इस बारे में जानकारी प्राप्त करके मदद करने के लिए कहा

फोरम: "आंटी, आप चिंता मत कीजिए.. मैं सब कुछ जान लूँगी"

शीला: "मैंने तुझे फोन किया है इस बारे में वैशाली को पता नहीं चलना चाहिए"

फोरम: "मैं उसे कुछ नहीं बताऊँगी.. आप इत्मीनान रखिए.. मैं ऐसे आ टपकूँगी और उससे सारी बातें पूछ लूँगी"

शीला: "ठीक है बेटा.. मुझे बहोत चिंता हो रही है.. तू सब कुछ जान ले फिर आगे क्या करना वो पता चले मुझे"

शाम को शीला और वैशाली खाना खा रहे थे तभी डोरबेल बजी.. वैशाली ने उठकर दरवाजा खोला और अचंभित हो गई

"अरे.. फोरम तू.. !!!! तुझे कैसे पता चला की मैं यहाँ हूँ" वैशाली ने फोरम को गले से लगा लिया..

फोरम: "कुछ दिन पहले मेरी मम्मी आंटी से बाजार में मिली थी.. तभी उन्होंने बताया था की तू आई है.. तो आ गई मैं तुझे सप्राइज़ देने.. तू बता यार.. कैसा चल रहा है सब कुछ? तो तो यार मस्त गोरी हो गई कलकता जा कर.. "

शीला: "आओ बेटा फोरम.. वैशाली खाना ठंडा हो रहा है.. पहले खाना खतम कर.. फिर दोनों आराम से बातें करना.. फोरम, तू भी आजा.. थोड़ा सा खा ले.. "

फोरम: "नहीं आंटी, मैं खाना खाकर ही आई हूँ.. " कहते हुए वो डाइनिंग टेबल पर वैशाली के साथ बैठ गई..

शीला ने खाना जल्दी खतम किया और खड़ी हो गई "आप दोनों आराम से बात करो.. मुझे थोड़ा काम है" दोनों को अकेले बात करने का मौका देने के लिए शीला चली गई

फोरम ने बातों बातों में वैशाली से जान लिया की संजय और उसके बीच क्या तकलीफ थी.. उन दोनों के संबंध काफी खराब हो चुके थे.. दोनों बहोत ही खास सहेलियाँ थी इसलिए वैशाली सब कुछ बेझिझक फोरम को बताया.. सब कुछ.. यहाँ तक की बेडरूम लाइफ के बारे में भी

वैशाली और फोरम को प्राइवसी देने के लिए शीला अनुमौसी के घर चली आई.. कविता और पीयूष दोनों शीला को देखकर खुश हो गए.. शीला जब मौसी से बात कर रही थी तब चिमनलाल सोफ़े पर हिप्पो की तरह लेटे हुए आई.पी.एल के मेच देख रहा था.. तीरछी नज़रों से वो शीला के स्तनों को देख रहा था इस बात का पता था शीला को.. किसी भी एंगल से लाइन मारने योग्य नहीं था चिमनलाल.. इसलिए उसकी नजर शीला को चुभ रही थी.. ऊपर से पीयूष जिस तरह से मौसम के कंधे पर हाथ रखकर हंस हँसकर बात कर रहा था ये देखकर शीला थोड़ी ओर अस्वस्थ हो गई.. इस हरामी पीयूष को जवान साली क्या मिल गई.. मेरे सामने तो देख भी नहीं रहा!! उस रात मूवी देखते वक्त तो मेरे बबलों पर टूट पड़ा था कमीना..

मौसम की छाती पर नजर फेरते ही शीला को पता चल गया की माल एकदम कोरा था.. अभी तक किसी का हाथ नहीं पड़ा था उसके सख्त और विकसित हो रहे स्तनों पर..

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उसके स्तन जवान थे तो शीला के स्तनों में बड़े आकार का जादू था.. पीयूष का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए शीला ने अपना पल्लू गिरा दिया.. उसकी एक तरफ की ब्लाउस की कटोरी खुली होते ही पीयूष एल.बी.डब्ल्यू हो गया.. अब वो बार बार शीला के उरोज को देख रहा था ये बात कविता के ध्यान में भी थी


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मौसम और फोरम इन नज़रों के खेल से अनजान थी क्योंकि वो दोनों शीला के बगल में बैठी थी.. कविता पीयूष के पास बैठी थी.. शीला के मदमस्त उरोजों को देखकर वो भी मन ही मन आहें भर रही थी.. सोच रही थी.. एक लड़की होकर भी मेरी नजर शीला के स्तनों पर चिपक जाती है.. तो बेचारे पीयूष का क्या दोष? अनुमौसी भी इन सब से अनजान तो नहीं थे पर रीटायर हो चुके खिलाड़ी की तरह वह सबकुछ देखते हुए शीला से बातें कर रही थी

मौसम: "जीजू, आप कल हमें घुमाने लेकर चलेंगे ना !! "

पीयूष: "कल तो मुश्किल होगा मौसम.. ऑफिस में बहोत काम है.. तू कविता को ही बोल.. वो तुझे ले जाएगी घुमाने"

शीला: "जहां भी जाओ.. वैशाली को साथ लेकर ही जाना.. वो बेचारी अकेले अकेले बोर हो जाती है"

वैशाली का जिक्र होते ही पीयूष की आँखें चमक उठी.. ये बात शीला की नज़रों से छिपी नहीं थी.. वो सोच में पड़ गई.. कहीं वैशाली और पीयूष के बीच भी कुछ.. ??? ये मादरभगत माँ और बेटी दोनों को घुमा रहा है शायद..

शीला: "मैं चलती हु अब.. साढ़े दस बज गए.. "

कविता: "बैठिए ना भाभी.. वैसे वैशाली कहाँ है? दिखी ही नहीं.. उस दिन संजयकुमार को भी देखा था मैंने.. कहीं बाहर तो नहीं गए वो दोनों?"

संजय का नाम सुनते ही पीयूष का दिमाग खराब हो गया.. उसने कुछ सोचकर कहा "मैं देखता हूँ.. अगर राजेश सर मुझे छुट्टी देते है तो मैं परसों गुरुवार और शुक्रवार दो दिन की छुट्टी ले लूँगा.. शनिवार और रविवार को वैसे भी छुट्टी है.. चार दिन कहीं जाने का प्रोग्राम बनाते है.. शीला भाभी और वैशाली को भी साथ ले लेंगे.. मज़ा आएगा"

ये सुनते ही मौसम उछल पड़ी और पीयूष को गले लगाकर बोली "थेंकयू जिजू.." मौसम के इस बर्ताव से किसी को ताज्जुब नहीं हुआ पर शीला की नजर मौसम के कच्चे अमरूद जैसी चूचियों पर गई जो पीयूष के शरीर से दबकर चपटी हो गई थी..

"आप चलोगे ना भाभी?" पीयूष ने आँख मारते हुए शीला से पूछा

"देखते है.. अगर वैशाली राजी हो गई तो चलूँगी.. उसे अकेला छोड़कर कैसे आ सकती हूँ? और अगर संजयकुमार अचानक घर पर आ गए तो? मुझे सब देखना पड़ता है " शीला ने पोलिटिकल जवाब दीया

"अरे वैशाली को तो मैं मना लूँगा.. वो भी बेचारी.. कितने सालों के बाद मायके आई है.. वो भी थोड़ा सा इन्जॉय कर ले" पीयूष ने कहा

कविता ने अपनी कुहनी पीयूष की कमर पर मारते हुए कहा "क्या बात है.. वैशाली की बड़ी फिक्र हो रही है तुझे.. !! कहीं उसके साथ तेरा.. !!" कविता ने बात अधूरी छोड़ दी

पीयूष सकपका गया.. जैसे रंगेहाथों पकड़ा गया हो.. वो कुछ नहीं बोला और नजरें झुकाकर बैठा ही रहा

"मैं देखती हूँ.. जो भी होगा कल बताऊँगी" कहते हुए शीला उठकर अपने घर चल दी

शीला जब घर पहुंची तब वैशाली किसी के साथ मोबाइल पर बात कर रही थी.. फोरम जा चुकी थी.. शीला ने देखा की उसके आते ही वैशाली ने फोन कट कर दिया.. होगी कोई उसकी पर्सनल बात.. वो भी अब शादीशुदा है और बड़ी हो गई है.. हर बात पर पूछना या टोकना ठीक नहीं होगा.. हो सकता है की संजय से ही बात कर रही हो !! लेकिन संजय का फोन होता तो इस तरह काट नहीं देती.. हिम्मत से बात कर रही होगी?? क्या पता !!

अपनी एकलौती बेटी का संसार उझड़ता हुआ देखकर शीला को बहोत दुख हो रहा था.. पर उससे भी ज्यादा दुख इस बात का था की उसका पति मदन अभी मौजूद नहीं था.. अगर वो होता तो संजय को ठीक कर देता.. अभी और १८ दिन बाकी थे मदन के लौटने में..

अपने पति को याद करते हुए शीला सो गई और उसके बगल में वैशाली भी.. सुबह ४ बजे के करीब वैशाली को पेट में बहोत दर्द होने लगा.. पर वो बिस्तर में पड़ी रही.. बेकार में मम्मी की नींद खराब होगी ये सोचकर.. थोड़ी देर यूंही पड़े रहने के बाद वह बाथरूम जाने के लिए उठने ही वाली थी तब डोरबेल बजी.. शीला तुरंत उठ गई.. मम्मी शायद दूध लेकर बाथरूम जाएगी तो उनके लौटने के बाद मैं जाऊँगी ये सोचकर वैशाली बिस्तर में पड़ी रही..

शीला ने दरवाजा खोला.. सामने रसिक था.. रसिक को देखते ही वह उससे लिपट पड़ी.. अपनी छाती को रसिक के जिस्म से रगड़ते हुए वह बोली

शीला: "ओह्ह रसिक.. बहोत मन कर रहा है यार.. पर क्या करू.. वैशाली के आने के बाद कोई सेटिंग हो ही नहीं पा रहा.. तेरा "ये" मुझे बहोत याद आता है.. कहीं ले चल मुझे यार.. अंदर ऐसी आग लगी है की तुझे क्या बताऊँ!!" कहते हुए शीला ने रसिक के पाजामे के ऊपर से ही उसका लंड पकड़ लिया

बेडरूम के दरवाजे के पीछे छुपकर देख रही वैशाली को अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था.. ये क्या हो रहा है? मम्मी एक दूधवाले के साथ?? छी छी.. एक पल के लिए तो वो अपने पेट का दर्द भी भूल गई.. अपनी माँ का ये नया ही रूप देखा था उसने..

रसिक अपने मजबूत हाथों से शीला की पीठ और कूल्हों को गाउन के ऊपर से ही मसलते हुए शीला के होंठ चूस रहा था.. चूसते चूसते आहें भी भर रहा था

"आवाज मत कर पागल.. वो जाग गई तो आफत आ जाएगी" शीला ने कहा

रसिक का सख्त मूसल जैसा लंड मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे करते हुए शीला का भोसड़ा चुदवाने के लिए तड़पने लगा.. उससे रहा नहीं जा रहा था लेकिन वैशाली की मौजूदगी में ऐसा कुछ भी कर पाना असंभव था.. हररोज केवल वो रसिक का लंड चूसकर ठंडा करती पर उसकी चूत की प्यास अधूरी ही रह जाती, ये बात बड़ी खल रही थी शीला को..

"ओह्ह भाभी.. रोज की तरह आज भी मेरा चूसकर सारा जहर बाहर निकाल दो.. तो मैं जाऊँ.. ये नरम नहीं होगा तबतक मैं किसी के घर जा नहीं पाऊँगा.. देखो तो सही.. कितना बड़ा उभार हो गया है पजामे में??" शीला के गाउन में हाथ डालकर जोर से मसल दिए उसके स्तन रसिक ने.. निप्पलों पर रसिक की खुरदरी उँगलियाँ रगड़ते ही शीला की वासना उफान पर चढ़ने लगी.. वो रसिक के लंड को तेजी से आगे पीछे करने लगी.. अचंभित होकर वैशाली अपनी माँ की सारी करतूतें देखती ही रही.. शीला और रसिक की सारी बातें ठीक से सुनाई तो नहीं दे रही थी पर उनकी हरकतें देखने के बाद, बातें सुनने की जरूरत भी नहीं थी..

यह सारी कामलीला देखकर वैशाली की चूचियाँ भी सख्त और लाल हो गई.. वैशाली को एक पल के लिए नफरत हो गई अपनी माँ से.. फिर उसने सोचा.. दो साल से पापा विदेश थे.. मर्द की जरूरत हर औरत को पड़ती है.. तो उसमें गलत क्या है !! पर मम्मी को थोड़ा लेवल का भी ध्यान रखना चाहिए ना!! वैशाली ने देखा की थोड़ी सी आनाकानी के बाद उसकी माँ घुटनों पर बैठ गई.. कम रोशनी के कारण उसे रसिक का लंड नजर नहीं आ रहा था.. थोड़ी देर के बाद रसिक चला गया.. और शीला अपने मुंह में भरे वीर्य को थूकने के लिए वॉशबेसिन पर आई.. ये देख वैशाली को घिन आने लगी.. माय गॉड.. मम्मी के मुंह में उसने पिचकारी मार दी.. !!!!!!!

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शीला को बेडरूम की ओर आता देख वैशाली तुरंत बिस्तर पर लेट गई और करवट लेकर गहरी नींद में होने का नाटक करने लगी.. शीला ने वैशाली की ओर देखा.. उसे गहरी नींद में देख शीला का मन शांत हुआ.. अच्छा है ये सो रही है.. ये साला रसिक भी.. उसका लंड पकड़ते ही मेरी चूत में झटके लगने लगते है.. रहा ही नहीं जाता.. कितना टाइट है उसका.. हाय.. अंदर लेने का मन करने लगता है.. क्या करू यार.. बिना चुदे रहा नहीं जाता मुझसे अब.. कुछ सेटिंग तो करना ही पड़ेगा.. पर कहाँ करू? रसिक को चेतना के घर बुला लूँ?? आइडिया तो अच्छा है पर उस रंडी चेतना का कोई भरोसा नहीं.. एक बार उसने अगर रसिक का देख लिया तो बिना चुदवाए नहीं रहेगी.. और एक बार उससे चुद गई तो उसे अपना बना ही लेगी वो कमीनी.. नहीं नहीं.. ऐसा जोखिम नहीं उठाना..

शीला घर के काम में मशरूफ़ हो गई और उसका मन चुदवाने के बंदोबस्त के बारे में सोचने लगा.. करीब साढ़े आठ के करीब वैशाली जाग गई.. वह नहा-धोकर तैयार हो गई और कविता के साथ बाजार चली गई.. रास्ते में कविता ने वैशाली को चार दिन बाहर जाने के प्रोग्राम के बारे में बताया.. अपनी बहन मौसम और उसकी सहेली फाल्गुनी के बारे में भी कहा..

कविता: "तू आएगी ना साथ.. पीयूष कह रहा था की तुझे तो वो जरूर लेके चलेगा.. तेरे लिए कुछ ज्यादा ही जज्बाती है पीयूष.. और क्यों न हो.. तुम दोनों के बीच वो वाला खास रिश्ता जो है!!" शरारत करते हुए कविता ने कहा

वैशाली: "कुछ भी मत बोल.. उस समय जो होना था वो हो चुका.. बीत गई सो बात गई.. एक भूल हुई थी जो ईमानदारी से मैंने तेरे सामने कुबूल भी कर ली.. तू तो ऐसे बोल रही है जैसे मैं रोज पीयूष से करवाती हूँ"

कविता: "अरे यार मज़ाक कर रही हूँ.. क्या तू भी !! तू साथ चलेगी तो बहोत मज़ा आएगा.. यार वैशाली.. भूख लग रही है.. चल पानी पूरी खाते है.. तू ही बता.. यहाँ कौन सब से अच्छे गोलगप्पे खिलाता है?"

वैशाली: "चल तुझे ऐसी जगह नाश्ता करवाती हूँ की याद रखेगी.. थोड़ा दूर है पर मज़ा आएगा"

हाथ दिखाकर वैशाली ने रिक्शा को रोका और दोनों अंदर बैठ गए.. वैशाली ने पता बताया और ऑटो वाला उस ओर चलाने लगा..

रास्ते में कविता ने रसिक के साथ उस दिन हुई द्विअर्थी बातों के बारे में बताया.. रसिक का नाम सुनते ही वैशाली के कान खड़े हो गए.. वह कविता से और जानकारी प्राप्त करने के मकसद से घूम फिराकर पूछने लगी.. कविता को भी आश्चर्य हुआ की रसिक के बारे में इतना सब क्यों पूछ रही थी वैशाली !! दोनों ने उस जगह पहुंचकर नाश्ता किया और घर वापिस आए

घर आते ही शीला ने वैशाली को बताया "कविता और पीयूष, घर आए मेहमानों को लेकर ४ दिन कहीं घूमने जाने का प्रोग्राम बना रहे है.. मुझे पूछ रहे थे अगर हम दोनों भी साथ चलना चाहे तो.. "

वैशाली: "मुझे मूड नहीं है जाने का मम्मी.. तुम्हें जाना है तो जाओ"

शीला: "अगर तू नहीं चलेगी तो मैं भी जाकर क्या करूंगी !!"

वैशाली: "मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा मम्मी.. संजय को लेकर मैं बहोत परेशान हूँ.. इसलिए नहीं जाना चाहती.. पर तू तो चली जा.. दो सालों से तुम कहीं नहीं गई.. थोड़ा माहोल बदलेगा तो तुझे भी अच्छा लगेगा.. "


शीला ने जवाब नहीं दिया.. वैसे वैशाली की बात तो सही थी.. २ साल हो गए थे मदन को गए.. दो सालों से वो कहीं नहीं गई थी.. बस एक बार अनुमौसी और महिला मण्डल पर एक दिन की यात्रा पर गई थी उसके अलावा कहीं भी नहीं.. वैशाली काफी उदास रहती थी.. और उसके कारण पूरा घर एकदम शांत और गंभीर लगता था.. बेटी की उदासी देखकर माँ को चिंता होना स्वाभाविक था
Auraton ki erotic batein aur Shila ka Rashik ke sath maukhik sex. Very romantic update
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