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Thanks a lot bhaiबहुत ही जबरदस्त अपडेट था!
Interesting turn of events.पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
पीयूष की नजरंदाजी से तंग आकर, कविता ने फाल्गुनी का सहारा लेने का फैसला किया.. कविता के साथ एक संतृप्त संभोग के बाद दोनों बातें कर रहे थे जिस दौरान फाल्गुनी ने कविता को बताया की राजेश ने उसे अपनी ऑफिस में नौकरी दे दी है और अब वो जल्द ही शिफ्ट होने वाली है.. कविता ने अपना पुराना घर, जो की शीला के पड़ोस में था, उसे फाल्गुनी को रहने के लिए दे दिया..
अपनी केबिन की ओर जा रहे पीयूष की नजर झुककर खड़ी वैशाली की ओर गया.. झुकने के कारण, वैशाली का जीन्स थोड़ा नीचे उतर गया था और उसके नितंब उभरकर बाहर नजर आ रहे थे.. जिसे देख पीयूष एक पल के लिए वहीं थम गया.. यह देखते ही पीयूष के मन में सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गई जो उसने वैशाली के संग बिताई थी
अब आगे..
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पीले रंग की सिफॉन साड़ी, हाई-हील सेंडल और कमर पर लटकते हुए पर्स के साथ सड़क पर चल रही कविता का जलवा ही अनोखा था.. गुजर रहे कई राहदारियों की नजर उसकी सुंदरता को निहार रही थी.. पिछले कुछ सालों में, कविता के पहनावे और जीवन स्तर में काफी सारे बदलाव आए थे.. डिजाइनर साड़ियाँ, लेटेस्ट फेशन के सेंडल्स और ब्रांडेड पर्स उसकी धनवान जीवनशैली का प्रमाण दे रहे थे
वैसे तो कविता बिना अपनी गाड़ी के, कहीं जाती नहीं थी.. पर आज उसे जहां जाना था वह जगह उसके घर से चलकर जाने की दूरी पर ही थी..
रात का अंधेरा अपना शिकंजा कसे जा रहा था.. स्ट्रीट लाइट की मद्धम रोशनी में चलते हुए आखिर कविता पहुँच गई.. अपने घर.. मायके वाले घर.. अपने पिता स्व. सुबोधकांत के घर..!!!
कविता ने बिना कोई आवाज किए.. कंपाउंड का दरवाजा खोला.. गार्डन से गुजरते हुए वह धीरे धीरे बंगले की तरफ गई.. घर का मुख्य दरवाजा बंद था और उसे खोलने या खुलवाने का इरादा भी नहीं था कविता का.. घर के बगल में बने कार-गराज के पास से घर के पीछे जाने का पतला सा रास्ता पड़ता था.. वहीं से गुजरकर कविता घर के ठीक पीछे पहुँच गई.. जहां उसके मम्मी-पापा के बेडरूम की खिड़की पड़ती थी और किचन भी..!!
घर के चारों तरफ घूमकर मुआयना करने पर उसे कहीं कोई गतिविधि नजर नहीं आई.. जो शंका पैदा करने वाला था.. कविता ने पहले किचन की खिड़की से झाँकने की कोशिश की पर अंदर अंधेरा था और किसी के होने का कोई अंदेशा भी नहीं था
वह अब धीरे धीरे आगे चलकर बेडरूम की खिड़की की तरफ आई.. कांच से बनी स्लाइडिंग खिड़की बंद थी..और अंदर से पर्दा भी डाला हुआ था.. अंदर रोशनी जल रही थी..!! एयर-टाइट कांच की खिड़की से कोई आवाज बाहर से अंदर नहीं आ सकती थी.. ध्यान से देखने पर कविता को परदे और खिड़की के बीच एक छोटा सा अवकाश नजर आया.. कविता अपने घुटने मोड़कर मुश्किल से नीचे की तरफ झुकी और अंदर देखने की कोशिश करने लगी..!!
अंदर का द्रश्य देखकर उसे चक्कर आने लगे..!!
सरल और धार्मिक प्रकृति वाली उसकी माँ.. रमिला.. बेड पर नंगे बदन घोड़ी बनी हुई थी.. और उनका गोरा चिट्टा नेपाली नौकर, जो इक्कीस साल का एक लड़का था, वह अपनी चड्डी नीचे कर, लंड घुसाकर पीछे से धक्के लगा रहा था....!!!!!!!
कविता की आँखों के सामने अंधेरा सा छा गया..!!!! उसे अपना संतुलन बनाए रखने में भी कठिनाई हो रही थी..!! अपनी माँ के बूढ़े बदन को नंगा देखना ही कविता के लिए एक बड़ा सदमा था.. ऊपर से उन्हें इस अवस्था में देखकर शॉक हो गई कविता..!!!
संतान, चाहे वे कितने भी बड़े और वयस्क क्यों न बन जाएं, अपने माता-पिता को एक बहुत ऊंचे नैतिक स्तर पर रखते हैं.. उन्हें अपने माता-पिता की पवित्रता पर गहरा अटूट विश्वास होता हैं और उन्हें सबसे अधिक नैतिक और आदर्श मानते हैं.. जब उन्हें अपने माता-पिता में से किसी एक के बेवफाई या अवैध संबंधों के बारे में पता चलता है, तो यह उनके लिए एक बहुत बड़ा झटका होता है.. वे इस तथ्य को स्वीकार ही नहीं कर पाते कि उनके माता-पिता में से कोई भी ऐसे अनैतिक संबंधों में शामिल हो सकता है.. यह उनके लिए एक ऐसी कठिन सच्चाई होती है, जिसे समझना और स्वीकार करना उनके लिए बिल्कुल भी आसान नहीं होता..
मौसम की शादी के बाद, कविता ने ही उस नेपाली नौकर को, अपनी माँ की देखभाल करने और खाना बनाने के लिए नियुक्त किया था.. तब उसे जरा सा भी अंदेशा नहीं था की बड़ी पवित्र सी दिखने वाली उसकी सीधी माँ, उस नौकर से ऐसे सेवाएं लेगी..!!!
हालांकि रमिलाबहन उम्र दराज थी.. उनकी बढ़ती उम्र की निशानियाँ केवल उनके चेहरे और हाथ पैर की झुर्रियों में ही नजर आ रही थी.. बाकी के बदन में अब भी कसाव था..!! उनके ढले हुए स्तन, उस नौकर के हर धक्के के साथ, आगे पीछे झूल रहे थे.. कविता कुछ देर तक ध्यान से देखती रही.. यह सुनिश्चित करने के लिए की कहीं उसकी मम्मी से साथ कोई जबरदस्ती तो नहीं हो रही..!!
लेकिन यह साफ प्रतीत हो रहा था की जो कुछ भी उसकी नज़रों के सामने था वह रमिलाबहन की मर्जी से ही हो रहा था.. और यह भी की वह उसे बड़ी आनंदित होकर इस संभोग में शामिल हो रही थी
अब रमिलाबहन के बूढ़े घुटने इस परिश्रम से थोड़े थक से गए थे.. अब वह अपने पीठ के बल बिस्तर पर लेट गई और टांगें फैलाकर उन्हों खुद ही उस नेपाली लड़के की गुलाबी नुन्नी को पकड़कर अपने पुराने भोसड़े में डाल दिया.. लड़का अब हौले हौले धक लगाने लगा और रमिलाबहन आँखें बंद कर अपनी चूचियाँ दबाती रही..!! वह लड़का पेलते हुए झुककर रमिलाबहन की चूचियाँ चूस रहा था.. रमिलाबहन ने अपनी दोनों टांगें उस लड़के की कमर के इर्दगिर्द लपेट रखी थी
उस जवान नौकर की धक्के लगाने की गति में निरंतर बढ़ोतरी हो रही थी.. और साथ ही साथ रमिलाबहन की सिसकियाँ भी बढ़ती जा रही थी.. आगे पीछे हो रही उस लड़के की गांड पर कविता की नजरें टिकी हुई थी.. लयबद्ध ताल से अंदर बाहर करते हुए अचानक उस लड़के के कूल्हें संकुचित होने लगे.. अंतिम तीन चार धक्के लगाकर वह रमिलाबहन की छातियों पर गिर गया.. बड़े ही स्नेह से रमिलाबहन उस लड़के के सिर को सहला रही थी.. उनके चेहरे पर संतुष्टि भरी मुस्कान थी..
शर्म से आँखें झुक गई कविता की..!! उसने कभी सपने में भी नहीं सोचा था की उसकी मम्मी ऐसा कुछ करने के लिए सक्षम होगी..!! उसकी अवधारणा तो यह थी की मम्मी ने काफी समय पहले ही यह सारी क्रियाओं से निवृत्ति ले ली थी.. और इसी कारणवश उसके पापा बाहर मुंह मारते थे..!! यदि उसकी माँ इतनी कामातुर थी तो फिर पापा को खुश क्यों नहीं रख पाती थी?? क्यों सुबोधकांत को अन्य स्त्रियों के साथ संबंध बनाने पड़ते थे??
कई सारे सवालों से कविता का दिमाग चकरा रहा था.. वह और देर तक उस द्रश्य का सामना नहीं कर पाई..!!
वह चलकर घर के आगे की तरफ पहुंची.. और गुस्से से डोरबेल बजाने लगी..!! उसे पता था की कुछ देर तक तो दरवाजा खुलने की कोई संभावना नहीं थी.. अपने पाप की निशानियाँ छुपाने में.. और अपनी निर्लज्जता को वस्त्रों के पीछे ढंकने में.. वक्त तो लगेगा ही मम्मी को..!! क्रोध के कारण थरथर कांप रही थी कविता..!! उसका बस चलता तो वह दरवाजा तोड़कर अंदर घुस जाती..
दरवाजा अब भी नहीं खुला पर कविता ने डोरबेल बजाना जारी ही रखा..!! करीब पाँच मिनट बाद कविता को दरवाजे के पीछे हड़बड़ाहट और कदमों की आहट सुनाई दी.. उसने डोरबेल बजाना बंद किया..
रमिलाबहन ने दरवाजा खोला और कविता को खड़ा देख चोंक सी गई.. थोड़े रोष के साथ उन्हों ने कहा "पागल हो गई है क्या कविता?? बेल बजाए जा रही थी..!! आजकल के बच्चों में सब्र नाम की कोई चीज ही नहीं है..!!"
कविता ने अपनी माँ को एक और धकेला और घर के अंदर घुस गई.. अचंभित हो गई रमिलाबहन..!!! न कोई बात की कविता ने.. न ही उसकी बात सुनने रुकी.. और ऐसे कौन भला धक्का देता है अपनी बूढ़ी माँ को..!!!
कविता ने ड्रॉइंग रूम मे चारों और देखा.. फिर बेडरूम में घुसी और बाहर निकली.. आखिर जब किचन में गई तब उसे वो मिला जो वह ढूंढ रही थी.. कनपट्टी से खींचकर वह उस नेपाली नौकर को बाहर ले आई.. और उसके गाल पर खींचकर दो करारे थप्पड़ रसीद कर दिए..!!!
वह नौकर बेचारा रो पड़ा.. और हाथ जोड़े खड़ा हो गया..!! उसे इतना तो समझ में आ गया की उसके और रमिलाबहन के संबंधों के बारे में किसी तरह कविता को पता चल चुका था
कविता: "अभी के अभी पुलिस को बुलाती हूँ.. और उन्हें सौंप देती हूँ.. फिर देख तेरा क्या हाल करते है वो लोग"
पुलिस का नाम सुनते ही वह बेचारा लड़का, रोते रोते कविता के पैरों में गिर गया और गिड़गिड़ाने लगा "ऐसा मत कीजिए मैडम.. मैं तो सब कुछ मालकिन के कहने पर ही कर रहा था.. वही मुझे पटाकर यह सब करवा रही है.. मेरी कोई गलती नहीं है मैडम, मुझे माफ कर दीजिए.. आप कहें तो मैं बिना पगार लिए यहाँ से चला जाऊंगा पर पुलिस को मत बुलाइए" वह लड़का कविता के पैर पकड़कर सुबकते हुए रोता ही रहा
कविता अब अपनी मम्मी की तरफ मुड़ी.. क्रोध भरी लाल आँखों से उसने रमिलाबहन की और देखा.. रमिलाबहन ने अपनी नजरें झुका ली.. अपने पैरों को उस नौकर से छुड़ाकर वह शेरनी की तरह अपनी माँ की और आई
गुस्से से दहाड़ते हुए कविता बोली "मम्मी, ये सब क्या है? मैंने आज जो देखा, उस पर मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा! आप...!!!! आप हमारे नौकर के साथ... यह सब कर रही थी..!!! ये कैसे हो सकता है? आप को इतनी सी भी शर्म नहीं आई इस उम्र में यह सब करते हुए??? आप तो हमेशा से इतनी सीधी-सादी रही हैं..!! मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि आप इतनी गिरी हुई हरकत कर सकती हो..!!!"
रमिला बहन पहले तो चुप रही.. कुछ न बोली.. फिर शांत और दृढ़ आवाज़ में उन्हों ने कहा "कविता, बैठो.. मैं समझती हूँ कि तुम्हारे लिए ये सब देखना आसान नहीं है.. लेकिन तुम मेरी बात एक बार सुन लो"
आँखों में आंसुओं के साथ कविता ने उनकी बात आधी ही काटते हुए कहा "मम्मी, आपको ऐसा करने की क्या ज़रूरत थी? आप तो हमेशा से ऐसी चीज़ों से दूर रही हैं.. पापा के साथ तो आपको इन सब चीज़ों में कोई दिलचस्पी नहीं थी, तो अब ये सब क्यों?"
गहरी सांस लेते हुए रमिला बहन ने कहा "कविता, तुम्हें क्या लगता है, मुझे तुम्हारे पापा के गुलछर्रों के बारे में पता नहीं है..!! मुझे सब पता था.. यहाँ तक कि मैंने ही तुम्हारे पिता को छूट दी हुई थी.. तुम्हें क्या लगता है, उससे मुझे कुछ फर्क नहीं पड़ता था? तुम्हारे पिता के साथ कुछ न करने का कारण यह नहीं था मैंने अपने कर्तव्यों से सन्यास ले लिया था..!!! नहीं बेटा, ऐसा नहीं था.. तुम्हारे पिता एक विकृत मानसिकता के व्यक्ति थे.. उनकी यौन इच्छाएं इतनी अजीब और अत्यधिक थीं कि मैं उनके साथ तालमेल नहीं बैठा पाती थी.. वो सब मेरे लिए असहनीय था.. मैं उनके साथ उस तरह से नहीं जुड़ सकती थी, जैसा वो चाहते थे.. मैं उनकी ज़रूरतों को पूरा नहीं कर सकती थी, और इसलिए उन्होंने दूसरी औरतों का सहारा लिया.. लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी जरूरतों को महसूस नहीं करती.. मेरी भी अपनी इच्छाएं हैं..!!!"
हैरान हो गई कविता..!! उसे हल्का सा भी अंदाजा नहीं था की उसके पिता के नाजायज संबंधों के बारे में उसकी माँ को पता होगा.. अरे, उन्हों ने ही पापा को यह छूट दे रखी थी..!!!
कविता: "लेकिन मम्मी, आप तो हमेशा से इतनी धार्मिक और सीधी-साधी रही हैं.. आपने तो हमें हमेशा नैतिकता और सच्चाई का पाठ पढ़ाया है.. फिर आप खुद ही ऐसा पाप कैसे कर सकती हैं?!"
दुख भरी आवाज़ में रमिला बहन ने कहा "कविता, धार्मिक और सीधी-साधी होने का मतलब ये नहीं कि मैं एक औरत होने के नाते अपनी शारीरिक ज़रूरतों को महसूस नहीं करती.. समाज हमें ये सिखाता है कि एक विधवा औरत को अपने आप को सिर्फ़ धर्म और समाज की मर्यादाओं तक सीमित रखना चाहिए.. लेकिन क्या समाज कभी ये सोचता है कि एक विधवा औरत के मन में भी इच्छाएं हो सकती हैं? उसे भी प्यार और साथ की ज़रूरत हो सकती है?"
अपनी माँ के इस दर्द को महसूस कर पा रही थी कविता.. हालांकि वह अब भी बेहद क्रोधित थी, वह उनकी मनोदशा को कुछ कुछ समझ पा रही थी..!! वह खुद भी तो यही कर रही थी.. पहले पिंटू के साथ और अब रसिक के साथ..!! बस इसलिए की वह उम्र में बड़ी थी.. यह कोई वजह तो थी नहीं की उनकी इच्छाएं न होती हो.. और कविता खुद ऐसी स्थिति में नहीं थी की अपनी माँ को नैतिकता का आईना दिखा सकें..!! अतृप्त शारीरिक इच्छाओं का भार वह भी तो ढो रही थी
थोड़ा सा नरम होते हुए कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब आसान नहीं रहा होगा.. लेकिन फिर भी, ये सब करना... ये गलत नहीं है?"
सुबकते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, गलत और सही का फैसला करना आसान नहीं होता.. मैंने अपनी पूरी ज़िंदगी समाज की उम्मीदों पर खरी उतरने में लगा दी.. परिवार की जिम्मेदारियों को निभाते हुए बूढ़ी हो गई.. लेकिन आज मैंने ये फैसला अपनी खुशी के लिए किया.. मैं भी एक इंसान हूँ, कविता.. मेरी भी इच्छाएं हैं, मेरी भी ज़रूरतें हैं.. और अगर समाज मुझे ये सब करने की इजाज़त नहीं देता तो कोई बात नहीं.. मैंने ये फैसला खुद के लिए ले लिया..!!! एक औरत होने के नाते मेरी इच्छाओं को तृप्त करने के लिए यह किया.. मैंने किसी को कोई नुकसान तो नहीं पहुंचाया है.. सिर्फ अपनी जरूरतों को पूरा किया है.. तुम्हारे पापा के साथ मेरा रिश्ता टूट चुका था, लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि मैंने खुद को मरा हुआ समझ लिया था..!!!"
थोड़ी देर सोचकर फिर कविता ने कहा "मम्मी, मैं समझती हूँ कि आपके लिए ये सब कितना मुश्किल रहा होगा.. मैं समझने की कोशिश कर रही हूँ, लेकिन ये सब इतना अचानक... इतना हैरान करने वाला है.. मैं आपसे नाराज़ नहीं हूँ, लेकिन मुझे समय चाहिए इस बात से सहमत होने के लिए..!!"
कविता के गालों पर हाथ फेरते हुए रमिला बहन ने कहा "बेटा, ज़िंदगी में कुछ चीज़ें सही या गलत नहीं होतीं.. वह सिर्फ़ होती हैं.. मैंने अपनी खुशी के लिए ये कदम उठाया है, और मैं इसके लिए शर्मिंदा नहीं हूँ.. मैं बस इतना ही चाहती हूँ कि तुम मुझे समझो..!! मैंने हमेशा तुम्हारी और मौसम की परवरिश में अपनी खुशियों को पीछे छोड़ दिया.. लेकिन अब जब तुम लोग बड़े हो चुके हो, तो मैंने अपनी जिंदगी को थोड़ा अपने हिसाब से जीने की कोशिश ही तो की है..!! कोई जुर्म तो नहीं किया..!!"
रमिलाबहन की बातों से कविता पिघल गई थी.. इसलिए नहीं की वह उसकी माँ थी.. पर इसलिए की वह एक औरत थी..!! और एक स्त्री होने के नाते अगर वह दूसरी स्त्री के मन की विडंबनाओं को नहीं समझेगी तो और कौन समझेगा!!! कुछ देर पहले का उसका क्रोध अब सहानुभूति में बदलने लगा
वह अपनी मम्मी के करीब आई और उन्हें गले लगाते हुए बोली
कविता: "मम्मी, मैं आपको समझती हूँ.. शायद मुझे वक़्त लगेगा, लेकिन मैं आपके फैसले का सम्मान करती हूँ.. आप मेरी माँ हो, और मैं आपसे बहोत प्यार करती हूँ.. बस इतना ही कहूँगी, की आप जो कुछ भी करो बहोत संभलकर करना"
रमिला बहन अपने आँसू पोछते हुए कविता का सिर सहलाती रही और कुछ न बोली
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Very very hot update.पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
अपने मायके के पड़ोसियों द्वारा कुछ असहज कर देने वाली खबरों के चलते कविता अपनी माँ, रमिलाबहन के घर के ओर गई.. उसका दिल तो कह रहा था की जो कुछ उसने सुना था वह सच न हो पर तसल्ली करने के लिए वहाँ जाकर देख लेने से बेहतर ओर कोई विकल्प न था.. घर पर पहुंचकर जब उसने छुपकर देखा तो उसकी जुबान हलक में उतर गई.. अपनी संस्कारी माँ को घोड़ी बनकर उनके नौकर से चुदते हुए देख कविता के पैरों तले से जमीन खिसक गई..
गुस्से में आकर उसने दरवाजा खटखटाया और अंदर घुसकर सब से पहले उस नौकर पर बरस पड़ी.. बेचारे नौकर ने बताया की वो यह सब कविता की माँ के कहने पर ही कह रहा था.. कविता के पास बोलने को शब्द न थे..!! जिस माँ की सादगी और धार्मिक जीवनशैली के चलते उसने उन्हें अपने मन में इतना ऊंचा दर्जा दे रखा था, उनसे ऐसी घिनौनी हरकत की अपेक्षा न थी
जब कविता अपनी माँ पर क्रोध से बरस पड़ी तब आखिर रमिलाबहन ने अपना मुंह खोला.. और अपना दुखड़ा सुनाया.. कैसे वह अपने पति स्व. सुबोधकांत की विकृत हरकतें और असीमित वासना का भोग बनती आई थी.. आखिर थक हार कर उन्हों ने ही सुबोधकांत को अवैद्य संबंध बनाने की छूट दे रखी थी.. भले ही वह सीधीसादी थी पर उनकी जिस्मानी जरूरतें जब सिर चढ़कर बोलने लगी.. तब मजबूरन उन्हें यह कदम उठाना पड़ा..
अपनी माँ की सारी बातें सुनने के बाद कविता थोड़ा पिघली जरूर और उसे अपनी माँ की मजबूरी का एहसास भी हुआ पर वह अब भी इसे पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर पा रही थी
अब आगे..
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गाउन पहने सोफ़े पर बैठी शीला ने अपने पैर त्रिपाई पर रखे हुए थे.. एक तरफ करवट लेकर वह अपने कूल्हों को टेढ़ा कर बिंदास लेटी हुई थी और रिमोट से चेनल पर चेनल बदलते जा रही थी
"एक भी ढंग का सीरियल नहीं चल रहा है कहीं.. देखें तो आखिर क्या देखें..!!"
तभी मदन ने ड्रॉइंग रूम में प्रवेश किया.. वह शर्ट और पैन्ट पहनकर तैयार था.. जाहीर था, वह कहीं बाहर जाने की तैयारी कर रहा था
मदन: "क्या बड़बड़ा रही है शीला..!!"
मदन की तरफ एक नजर देखकर शीला वापिस टीवी के स्क्रीन को देखते हुए बोली "यार, टीवी पर कुछ भी ढंग का नहीं चल रहा है.. टाइम पास करने के लिए कुछ तो चाहिए"
मदन हँसते हुए उसकी बगल में बैठ गया और उसके उभरे हुए नितंब पर थपकी देते हुए कहा "कोई हॉट सी डीवीडी लगा दूँ देखने के लिए?"
शीला ने मुंह बिगाड़ते हुए अपनी चूत की और इशारा करते हुए कहा "और फिर देखकर यहाँ आग लग गई तो?? तू तो कहीं बाहर जा रहा है..!! फिर क्या करूँ? मुली और गाजर का सीजन भी चला गया.. घर पर कोई सब्जी भी नहीं है अंदर डालने लायक"
मदन: "अरे यार, मज़ाक कर रहा था.. अगर बोर हो रही हो तो चल मेरे साथ.. मैं राजेश के घर जा रहा हूँ.. तू भी रेणुका से मिल लेना.."
शीला: "अचानक राजेश के घर?? क्यों कुछ काम है क्या?"
मदन: "पीयूष का फोन आया था.. अब प्रोजेक्ट काफी आगे बढ़ चुका है.. उसने हमें बुलाया है.. शायद कल हम दोनों वहाँ जाएंगे.. दो दिन वहीं रुकेंगे पीयूष के घर"
शीला तुरंत खड़ी हो गई.. उसका दिमाग तेजी से चलने लगा..!!
शीला: "मुझे पता है कौन से प्रोजेक्ट के लिए वहाँ जा रहे हो..!! उस फाल्गुनी की फुद्दी में घुसे रहोगे दो दिन..!! हमने तय किया था की हम सब साथ चलेंगे..!!! याद रखना मदन..!! अगर तुम दोनों वहाँ अकेले गए तो मैं तेरी गांड फाड़ दूँगी"
मदन भड़कते हुए बोला "यार शीला.. ऐसा कुछ भी नहीं है..!! हम सच में काम के सिलसिले में ही जा रहे है.!! यकीन न हो तो पूछ ले राजेश से"
शीला: "और राजेश जैसे दूध का धुला है.. वो तो सच बताने से रहा"
परेशान होते हुए मदन ने कहा "अगर तुझे विश्वास नहीं हो रहा तो हमारे साथ चल..!! सिर पर बैठी रहना मेरे.. तभी तसल्ली होगी तुझे..!!" गुस्से में पैर पटकते हुए मदन चला गया..
शीला को अब भी मदन की बात पर भरोसा नहीं था.. उसने फाल्गुनी को कॉल किया.. बिल्कुल स्वाभाविक तरह से.. जैसे हाल चाल पूछने के लिए फोन किया हो.. बातों बातों में पता चला की फाल्गुनी तो अपने कज़िन की शादी में मुंबई गई हुई थी कुछ दिनों के लिए..!! तब जाकर शीला को यकीन हुआ की मदन सच बोल रहा था..
शीला का मन अब शांत हुआ.. वह टीवी देखते देखते अपने जिस्म को जगह जगह मसल रही थी..
पिछले कुछ दिनों से मदन को बुखार रहता था.. बदले हुए मौसम के कारण वायरल इन्फेक्शन ने मदन को कमजोर भी कर दिया था.. शीला का बिस्तर इस वजह से सूना पड़ा हुआ था.. तीन दिनों से, रसिक भी शहर से बाहर था और दूध देने नहीं आ रहा था.. शीला का जिस्म अब हर दूसरे दिन इस तरह भोग माँगता था जैसे नींद से जागा हुआ कोई असुर भोजन माँगता है..!! अगर मदन आज शाम को जाने वाला हो तो उसके साथ एक मस्त संभोग की आशा लगाएँ लेटी शीला की आँख लग गई..
शीला की नींद मुश्किल से आधे घंटे के लिए लगी थी.. वह तब टूटी जब मदन ने अपनी चाबी से दरवाजा खोला.. और तेजी से बेडरूम के अंदर घुस गया
शीला ने आलस्य भरी आवाज लगाते हुए पूछा "इतनी जल्दी आ गया? क्यों भागा अचानक?"
मदन ने जवाब नहीं दिया.. शीला ने सोचा की शायद बाथरूम में गया होगा.. पर उसे वॉर्डरोब के खुलने बंद होने की आवाज आई..
वह अंगड़ाई लेकर सोफ़े से खड़ी हुई और अपने बेडरूम में गई.. वहाँ जाकर देखा तो मदन अपना बेग पेक कर रहा था.. अभी एक घंटे पहले मदन पर बेवजह गुस्सा करने के कारण हुए हल्के से पछतावे के असर में, शीला ने बड़े ही प्यार से पूछा
शीला: "क्या कर रहे हो मदन? अभी शाम को जाना है ना.. इतनी भी क्या जल्दी है..!! आओ थोड़ी देर बेड पर साथ सोते है"
कहते हुए शीला मदन के करीब आई और उसका हाथ खिंचने लगी.. सोना तो बहाना था.. शीला अपनी भूख मिटाना चाहती थी..!!
मदन ने अपना हाथ छुड़ाया और बेग में कपड़े ठुँसता रहा.. वह बोला "अभी राजेश के साथ था तब पीयूष का फोन आया.. आज हमें किसी भी सूरत में बेंक मेनेजर से मिलना ही पड़ेगा.. क्योंकि वह मेनेजर फिर १० दिन की छुट्टी पर जा रहा है.. बैंक बंद होने से पहले हमें पहुंचना होगा.. राजेश अभी पाँच मिनट में गाड़ी लेकर पहुँच रहा है.. उसके आते ही हम तुरंत निकल जाएंगे.. रास्ते में दो घंटे लग जाएंगे"
हताश हो गई शीला,.. वह बेड पर लेट गई और मदन को पेकिंग करते हुए देखती रही.. तभी बाहर से गाड़ी का हॉर्न तीन बार बजा
मदन: "लगता है राजेश आ गया.. मैं निकलता हूँ शीला..!!"
बिना शीला के उत्तर की प्रतीक्षा किए, मदन बेग लेकर तेजी से बाहर निकल गया.. जाते हुए उसने घर का मुख्य दरवाजा बंद कर दिया और शीला बेडरूम में बिस्तर पर वैसे ही पड़ी रही
काफी लंबे अंतराल के बाद आज शीला अकेलापन महसूस कर रही थी
शीला, जो एक गृहिणी के रूप में अपने जीवन का अधिकांश समय परिवार की जिम्मेदारियों को निभाने में व्यतीत कर चुकी हैं, आज स्वयं को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा पाती हैं जहाँ उसकी सभी जिम्मेदारियाँ समाप्त हो चुकी हैं.. उसकी बेटी की शादी हो चुकी है और आर्थिक रूप से परिवार सुखी है.. परंतु, इस सबके बीच आज शीला स्वयं को अत्यंत एकाकी और अतृप्त महसूस कर रही हैं.. उसका पति मदन, अपने काम में व्यस्त हैं, और जब शीला को उसकी सबसे अधिक आवश्यकता है, तब वह उसके साथ नहीं है.. शीला के शरीर और मन में प्रेम और संभोग की तीव्र इच्छा हो रही है, और आज रसिक भी उपलब्ध नहीं हैं.. यह स्थिति उसे गहरी निराशा और अकेलेपन की ओर धकेल रही थी..
शीला की कहानी केवल एक महिला की नहीं है, बल्कि उन अनेक महिलाओं की है जो मध्यम आयु वर्ग में पहुँचकर स्वयं को शारीरिक और भावनात्मक रूप से अतृप्त पाती हैं.. यह उम्र ऐसी होती है जब महिलाओं के शरीर में हॉर्मोनल परिवर्तन होते हैं, और उनकी शारीरिक इच्छाएँ अधिक प्रबल हो सकती हैं.. परंतु, समाज और परिवार में इस विषय पर चर्चा करने का कोई स्थान नहीं है.. इसलिए, अधिकांश महिलाएँ अपनी इच्छाओं को दबाकर रखती हैं, जो उसके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डालता है.. खैर..!! शीला उनमें से एक तो नहीं है.. पर आज शीला की हालत खस्ता है..!!
शीला जैसी महिलाओं के लिए यह स्थिति और भी जटिल तब हो जाती है जब उसके पति उसकी आवश्यकताओं को समझने में असमर्थ होते हैं.. पुरुषों का ध्यान अक्सर काम और अन्य गतिविधियों में इतना अधिक व्यस्त हो जाता है कि वह अपनी पत्नी की भावनात्मक और शारीरिक जरूरतों को नजरअंदाज कर देते हैं.. इसके परिणामस्वरूप, महिलाएँ स्वयं को उपेक्षित और अकेला महसूस करती हैं.. कुछ महिलाएँ, इस अतृप्त इच्छा को पूरा करने के लिए अवैद्य संबंध बना लेती हैं, लेकिन यह समाधान नहीं है.. यह उनके जीवन में और भी अधिक जटिलताएँ लाता है और उसे आत्म-ग्लानि और चिंता से भर देता है..
शीला का मन अब हवस से फड़फड़ा रहा था.. उसका दिमाग काम नहीं कर रहा था.. तभी उसकी नजर मदन के खुले वॉर्डरोब पर पड़ी.. कपड़ों के पीछे पड़ी शराब की बोतल देखकर शीला की आँखें चमक उठी.. वह खड़ी हुई और जैक डेनियल्स की व्हिस्की की बोतल निकाली.. पीने से पहले उसने सोचा की ठंडे पानी से शावर ले लिया जाएँ..
शीला ने अपने कपड़े उतारे और नहाने चली गई.. बाहर आकर वो आईने में अपने नंगे बदन को हर एंगल से निहार रही थी.. अपनी खूबसूरती की नजर उतारने का मन कर गया उसे.. उसने तय किया की भले ही कहीं बाहर न जाना हो पर वो आज मस्त तैयार होकर शराब पीने बैठेगी
अलमारी से एक ब्लैक साड़ी निकालकर पहन ली.. नीचे सुनहरे रंग के हाई हिल्स वाले सेंडल पहने.. और ऐसे तैयार हुई जैसे पार्टी में जा रही हो.. वह शराब की बोतल लेकर बाहर आई.. टेबल पर बोतल रखने के बाद वह किचन से बर्फ के टुकड़े ले आई.. बिना पानी एक बढ़िया सा पेग बनाकर, वो पैर फैलाकर बैठ गई और हल्के हल्के पीने लगी..!!
दो पेग पीते ही उसके पूरे बदन में सरसराहट होने लगी.. जिस आग को बुझाने के लिए उसने शराब का सहारा लिया था.. वह आग तो और भी भयंकर तरह से भड़कने लगी.. शीला का दिमाग अब तेजी से चलने लगा.. किसे बुलाएँ जो आकर उसकी हवस मिटा सकें..!!! रसिक तो था नहीं.. रूखी को बुला सकती थी पर अभी जो आग लगी थी वो बुझाने के लिए उसे एक असली मर्द की आवश्यकता थी.. रूखी का नाम लेते ही शीला को, उसके यार जीवा की याद आई.. काफी समय पहले, रूखी ने जीवा और रघु को शीला की घनघोर चुदाई करने भेजा था.. जब मदन विदेश था..!!
जीवा..!!!! हाँ जीवा बढ़िया रहेगा.. बिल्कुल रसिक के जैसा तगड़ा..!! और उसका लंड रसिक के मुकाबले एक इंच बड़ा था.. इस जीवा की याद पहले क्यों नहीं आई..!!!
अपने मोबाइल में शीला उसका नंबर ढूँढने लगी.. आखिर नंबर मिल गया और उसने फोन लगाया
जीवा: "कौन?"
शीला: "पहचाना नहीं?? मैं शीला.. कुछ महीनों पहले तुम और रघु आए थे मेरे घर रात को.. रूखी ने भेजा था"
कुछ पल तक जीवा ने जवाब नहीं दिया.. फिर दिमाग पर जोर लगाते ही बत्ती जली
जीवा: "अरे हाँ.. आप..!! बताइए कैसे याद किया"
शीला: "उसी बात के लिए जिस लिए तुम पहले आए थे.. आ सकते हो अभी?"
जीवा: "अभी?? अभी तो मैं नौकरी पर हूँ"
शीला: "तो नहीं आ सकते क्या?"
जीवा: "अगर कल आऊँ तो कैसा रहेगा? मैं छुट्टी लेकर आ जाऊंगा"
शीला: "कल नहीं आज.. हो सके तो अभी"
कुछ सोचकर जीवा ने कहा "ठीक है.. मैं कोशिश करता हूँ"
शीला: "कोशिश नहीं.. पक्का बताओ.. आ रहा है या नहीं?"
जीवा: "ठीक है.. थोड़ा वक्त दीजिए, मैं आपके घर पहुंचता हूँ"
शीला ने फोन काटा और शराब की बोतल अपने मुंह से लगाकर एक घूंट लगा दिया.. गले से लेकर पेट तक जलन होने लगी..!! पर उसे अच्छा लगा.. जिस्म की आग थोड़ी देर के लिए क्षुब्ध हो गई.. कुछ देर बाद शीला ने और दो घूंट ऐसे ही लगा दिए..
शराब अपना रंग दिखाने लगी.. शीला को घर की दीवारें गोल गोल घूमती नजर आ रही थी..
शीला किसी तरह अपने बेडरूम में पहुँची.. नशे और अपनी हवस में उसे दरवाजा बंद करने का भी होश नहीं था.. खड़े-खड़े ही उसने फटाफट अपनी साड़ी उतार फेंकी और आननफ़ानन पेटीकोट भी उतार दिया.. पैंटी के ऊपर से उसने अपनी चूत पर अपना हाथ रखा तो चूत इतनी गर्म महसूस हुई कि शीला को लगा कि उसकी हथेली पर छाले पड़ जायेंगे.. साथ ही पैंटी इतनी तरबतर थी कि शीला की हथेली भी भीग गयी.. उसने अपनी अंगुलियाँ पैंटी के इलास्टिक में डाल कर पैंटी नीचे खिसकायी और निकाल कर एक तरफ उछाल दी.. दीवार पर कपड़े टाँगने के लिए हुक लगा था और शीला की चूत-रस से तरबतर पैंटी उछल कर उसी में अटक गयी.. कुछ पलों में उसकी ब्रा भी ऊपर पंखे पर लटकी हुई थी..
जितनी देर तक शीला नंगी हो रही थी, वो नशे में खड़ी-खड़ी आगे पीछे गिरती हुई डगमगा रही थी.. शीला ने झुक कर अपनी चूत निहारी और उसे ताज्जुब हुआ कि आज उसमें से इतना रस क्यों टपक रहा होगा..!!! उसे ऐसा लगा जैसे ज़िंदगी में पहले उसकी चूत इस कदर नहीं भड़की थी.. उसकी चूत की गुलाबी फाँकें ऐसे खुली हुई थी जैसे कि मोतियों जैसी शबनम की बूँदों से भीगी हुई किसी गुलाब की कली की पँखुड़ियाँ खिल रही हों.. उसकी चूत की दरार ने फैल कर अंडे का आकार धारण कर लिया था और चूत की अंदरूनी परतें योनिरस के झाग से भीगी हुई नज़र आ रही थीं.. उसकी तनी हुई गुलाबी क्लिट भी बाहर को खड़ी थी.. चूत-रस की कईं धारें चू कर शीला की अंदरूनी जाँघों से नीचे बह रही थीं..
शीला ने अपनी अँगुलियों को अपनी चूत पे फिराया तो उसे अपनी अंगूर जैसी बड़ी क्लिट थिरकती हुई महसूस हुई.. उसने धीरे से सहलाते हुए अपनी अँगुलियाँ चूत के अंदर खिसका दीं.. उसकी चूत में लहरें उठने लगीं और उसके हाथ में और ज़्यादा चूत-रस बह निकला.. वो दोनों हाथों से अपनी चूत रगड़ने लगी.. वो वहीं फॉयर-प्लेस के पास खड़ी-खड़ी ही अपनी चूत की गर्मी कम कर लेना चाहती थी.. लेकिन उसकी टाँगें बुरी तरह काँप रही थीं और नशे में उन हाई हील सैंडलों में वो टिक कर खड़ी नहीं हो पा रही थी.. शीला को लगा कि कहीं वो गिर ना पड़े..
शीला लड़खड़ाती हुई पास ही रखी चमड़े की कुर्सी पर जा का इस तरह बैठ गयी कि उसकी ठोस गाँड सीट के किनारे पर टिकी थी और उसकी लंबी टाँगें फैली हुई थीं.. उसी पल उसकी चूत में से रस बह कर यास्मीन की गाँड के नीचे लैदर की सीट पर फैल गया.. एक पल के लिए अपनी चूत को बगैर छुए शीला ने सारस की तरह अपनी सुराहीदार गर्दन आगे को निकाल कर अपना सिर झुकाया.. शीला झड़ने के लिए तड़प रही थी लेकिन फिर भी वो उसे टाल रही थी.. उसे एहसास था कि आज उसका झड़ना निहायत ही तूफानी और ज़बरदस्त होगा और वो चूदासी औरत इसी उम्मीद में हवस में मदमस्त हो रही थी..
थोड़ा और नीचे झुक कर शीला ने अपनी टाँगों के बीच में फूँक मारी.. उसकी क्लिट धधकने लगी और चूत जलती हुई मालूम हुई जैसे कि उसने सुलगती हुई लकड़ी में अपनी साँस फूँक कर उसमें आग भड़का दी हो.. अपनी चूत की शदीद गर्मी का झोंका उसे अपने चेहरे पर महसूस हो रहा था.. अपनी ही चूत की तेज़ खशबू से उसकी नाक फड़क उठी..
शीला अपनी गोद में आगे झुकी.. उसकी ज़ुबान उसके निचले होंठ पर आगे-पीछे फिसलने लगी.. उसके मुँह में उसके झागदार थूक के बुलबुले उठने लगे.. शीला सोच रही थी कि काश वो इतनी लचकदार होती कि खुद अपनी चूत चाट सकती.. उसे अपनी चूत इतनी ज़ायकेदार और आकर्षक लग रही थी कि उसे अपनी ज़ुबान भी अपनी क्लिट जितनी ही गरम महसूस होने लगी.. कितना मज़ेदार होता अगर वो अपनी खुद की चूत चाट सकती और अपनी फड़फड़ाती ज़ुबान पर झड़ सकती.. कितना जबरदस्त मज़ा आता अगर वो अपनी खुद की ही चूत का गरमागरम रस अपने ही मुँह में बहा सकती.. झड़ते हुए अपनी ही चूत से लेसदार चिपचिपा रस पीने की दोहरी लज़्ज़त कितनी बेमिसाल होती..!! ये ख़याल उसे और उत्तेजित कर रहे थे और साथ ही तड़पा भी रहे थे क्योंकि वो जानती थी कि ये उसके बस की बात नहीं है.. उसने पहले भी कई बार कोशिश कर रखी थी..
हांफते हुए फिर से पीछे हो कर शीला अपनी गर्म और गीली अंदरूनी जाँघों पर अपने हाथ फिराने लगी.. उसकी गाँड नीचे की सीट पर मथ रही थी और उसका पेट ऊपर-नीचे हो रहा था.. उसने अपना एक हाथ चूत की मेंड़ पर रखा और उसकी अँगुलियाँ फिसल कर क्लिट को आहिस्ता से सहलाने लगी..
शीला ने अपने दूसरे हाथ की चार अंगुलियाँ आपस में जोड़कर लंड की शक्ल में इकट्ठी करीं और धीरे से चूत में अंदर घुसा दीं.. उसकी क्लिट हिलकोरे मारने लगी और चूत से बहुत सारा झाग निकलने लगा..
शीला थरथराते हुए सिसकने लगी.. वो एक हाथ की अंगुलियों से अपनी चूत को चोद रही थी और दूसरे हाथ से अपनी क्लिट सहला रही थी.. उसकी जाँघें हिलोरे मारते हुए झटक रही थीं.. वो जानती थी कि आज पूर्ण तसल्ली के लिए उसे एक से ज़्यादा बार झड़ना पड़ेगा..
उसकी पलकें बंद हो गयी और उसके हाथ मेहनत करते हुए एक मलाईदार स्खलन पर पहुँचने के लिए मेहनत करने लगे.. उसकी चूत जितनी गर्मी ही उसके दिमाग में भी चढ़ी हुई थी.. कई तसवीरें उसके दिमाग में पुरजोश नाच रही थीं.. बारबार उसके ख्यालों में रसिक के गधे जैसे लंड की तसवीर ही आ रही थी..
ज़ोर से हिलकोरे मारती हुई एक लहर उसके पेट और चूत में दौड़ गयी.. हांफते हुए शीला ने अपनी चारों अंगुलियाँ पूरी की पूरी अपने भोसड़े में घुसा दीं.. दूसरे हाथ से अपनी क्लिट को जोर से रगड़ते हुए शीला अपनी तरबतर चूत के अंदर चारों अंगुलियाँ घुमाने लगी..
अचानक ही वो बदहवास होकर झड़ने लगी.. एक पल वो आनंद के उच्च शिखर की बुलंदी पर मंडरा रही थी और दूसरे ही पल उसका भोसड़ा ज्वालमुखी की तरह फट पड़ा..
एक के बाद एक लहर उसके शरीर में हिलोरे मारती हुई दौड़ने लगी और एक के बाद एक ऐंठन उसकी चूत और जाँघों को झंझोड़ने लगी.. शीला को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका पूरा जिस्म पिघल रहा है और रगों में चुदासी मस्ती की करोड़ों चिंगारियाँ फूट रही हैं और जैसे उसका दिमाग फट जायेगा और उसकी चूत का रस फव्वारे की तरह बाहर उड़ेगा..
शीला आगे झुकी और फिर कमर पीछे मोड़कर अपनी चूत को अंगुलियों से लगातार चोदते हुए बदमस्त अपनी चूत का रस निकालने लगी और ऑर्गैज़्म की लहरें सिलसिला-वार फूटने लगी.. उसकी चूत का रस उसके पेट के नीचे झाग बनाने लगा और उसकी धारायें टाँगों से नीचे बहने लगी.. उसकी क्लिट में भी बार-बार धमाका होने लगा और हर धमाके के साथ उसकी चूत की गहराइयों से चूत-रस की धार फूट पड़ती..
चूत मे जुनूनी लज़्ज़त की एक जोरदार आखिरी लहर ने उसे झंझोड़ कर रख दिया और शीला हाँफती हुई कुर्सी पर पीछे फिसल कर मुस्कुराने लगी.. उसकी अंगुलियाँ अभी भी उसकी चूत में आंदोलन कर रही थी कि कहीं कोई सनसनी ख़ेज़ लहर अंदर ना रह जाये.. उसकी हवस कुछ कम हुई पर जैसे-जैसे उसने अपनी चूत को सहलाना जारी रखा, उसकी क्लिट फिर से तनने लगी.. इतनी बार झड़ने के कुछ ही पलों के बाद वो चुदक्कड़ औरत फिर से हवस से भर गयी थी..
शीला की हवस इतनी बढ़ गयी थी कि उसकी चूत में ऐसा महसूस हो रहा था मानो आग की लपटें धधक रही हो..!!
तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. बेड पर निर्वस्त्र अवस्था में पड़ी शीला उठ खड़ी हुई.. अपने नंगे बदन पर उसने गाउन डाल लिया.. और लड़खड़ाते कदम से चलते हुए बाहर गई.. दरवाजा खोलते ही जीवा नजर आया.. शीला ने इशारे से उसे अंदर आ जाने के लिए कहा और उसके अंदर घुसते ही शीला ने.. अगल बगल नजर डालकर, दरवाजा बंद कर दिया..
Thanks for the comments bhabhijiVery true sis,u r a genius
Garama garam updateपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की..
बिना चुदाई के तड़प रही शीला मदन के साथ एक भरपूर संभोग चाहती थी.. पिछले कुछ दिनों से मदन की तबीयत नासाज होने के कारण वह सेक्स से अलिप्त थी.. पर मदन तो राजेश के साथ पीयूष से मिलने चला गया..
तड़फड़ा रही शीला ने शराब पीकर अपनी चूत को मसलते हुए उसे ठंडा करना चाहा.. लेकिन उससे तो आग और बढ़ गई.. मदन चला गया था.. रसिक भी शहर से बाहर था.. ऐसे में शीला को जीवा की याद आया..
शीला ने जीवा को फोन कर बुला लिया और उसका इंतज़ार कर रही थी
अब आगे..
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नंगी लेटी हुई शीला अपनी चूत को उंगलियों से कुरेद रही थी
तभी दरवाजे पर दस्तक पड़ी.. निर्वस्त्र अवस्था में पड़ी शीला उठ खड़ी हुई.. अपने नंगे बदन पर उसने गाउन डाल लिया.. और लड़खड़ाते कदम से चलते हुए बाहर गई.. दरवाजा खोलते ही जीवा नजर आया.. शीला ने इशारे से उसे अंदर आ जाने के लिए कहा और उसके अंदर घुसते ही शीला ने.. अगल बगल नजर डालकर, दरवाजा बंद कर दिया..
"कहाँ मर गया था तू..??? कितनी देर लगा दी?" शीला ने थोड़े गुस्से से कहा.. इस वक्त शीला की जबान नहीं पर उसकी हवस बोल रही थी.. कामवासना से वह अत्याधिक व्याकुल हो चली थी
"भाभी जी, क्या बताऊँ.. आपने एन वक्त पर फोन किया.. अब नौकरी से दो घंटे पहले निकल पाना मुश्किल था.. मेरा शेठ बड़ा ही कमीना है.. छोड़ ही नहीं रहा था.. फिर आखिर तबीयत खराब होने का नाटक करके निकला.. तीन बस बदलकर पहुंचा यहाँ.. टाइम तो लगेगा ही ना" जीवा ने सफाई देते हुए कहा.. वैसे शीला को यह सब सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं थी.. वह तो बस अपने जिस्म की आग बुझाना चाहती थी
उसने जीवा का गिरहबान पकड़कर अपने करीब खींचते हुए कहा "वो सब छोड़.. आज मुझे रगड़ रगड़कर चोद.. ऐसे चोद जैसे मुझसे जबरदस्ती कर रहा हो.. गालियां देते हुए.. समझ गया" शराब और वासना के कारण लाल हुई आँखों से घूरते हुए शीला ने कहा.. उसके मुंह से शराब की गंध जीवा ने परख ली थी..!! शीला कितनी गरम औरत थी, यह तो उसे पहले से मालूम था.. काफी समय पहले वह अपने दोस्त रघु के साथ आया था रात बिताने, तब दोनों ने जमकर चोदा था शीला को
जीवा ने सहमति में अपना सिर हिलाया
शीला को जीवा की पैंट में उसके लंड का उभार साफ नज़र आ रहा था.. उसकी पैंट मे उसके हलब्बी लंड का उभार इतना बड़ा था कि उसका कठोर लंड जैसे पैंट के कपड़े को चीर कर बाहर निकलने की धमकी दे रहा था..
शीला मुस्कुराती हुई उसकी तरफ बढ़ी.. उसकी चाल नशे के कारण डगमगा रही थी.. जीवा ने देखा कि शीला ऊँची हील की सैंडल में थोड़ी लड़खड़ा रही थी और आँखें भी मदहोश लग रही थी.. एक बार जीवा को लगा कि कहीं शीला उन सैंडलों में नशे के कारण अपना संतुलन न खो दे लेकिन वो अपनी जगह ही खड़ा रहा क्योंकि वो किसी प्रकार की पहल कर के शीला को गुस्सा नहीं दिलाना चाहता था.. इस वक़्त शीला के रंग-ढंग देख कर उसकी उम्मीद विश्वास में बदलने लगी थी..
"क्यों साले! ये अपनी पैंट कब उतारेगा?" शीला कुटिल मुस्कान के साथ उसके उभार को घुरती हुई उसी बेशर्मी से बोली जैसे की वो हमेशा चुदाई के वक्त होती थी..
फिर शीला ने उसके सामने आ कर उसके गले में एक बाँह डाली और दूसरे हाथ से उसके पैंट की ज़िप नीचे करने लगी लेकिन लंड के उभार के ऊपर से ज़िप खींचने में उसे थोड़ी दिक्कत हुई.. ज़िप नीचे होते ही जीवा की पैंट का आगे से चौड़ा मुँह खुल गया और उसका लंड ऐसे लपक कर बाहर निकला जैसे किसी राक्षस ने गुस्से में भाला फेंका हो.. शीला की आँखें चौड़ी हो गयीं.. इस लंड से उसने कितनी ही बार चुदाई की थी लेकिन शीला ने कभी भी इसे इतना फूला हुआ और इतना सख्त नहीं देखा था.. शायद शराब के नशे का असर हो.. उसे देख कर शीला की चूत थरथराने लगी..
शीला ने अंदर हाथ डाल कर जीवा के टट्टे भी बाहर खींच लिए और अपनी चमकती आँखों के सामने उसके हलब्बी चुदाई-हथियार को पूरा नंगा कर दिया.. यकीनन जबरदस्त नज़ारा था.. जीवा के लंड का बड़ा सुपाड़ा फूल कर जामुनी रंग के मशरूम के आकार का लग रहा था.. उसके लंड की धड़कती हुई काली नसें उभरी हुई थीं.. उस मोटी-ताज़ी मांसल मिनार की जड़ में गुब्बारों की तरह फूले हुए उसके टट्टे थे..
"ऊऊऊऊहहहह" शीला ने रोमाँच में गहरी साँस ली..
शीला बेइंतेहा चुदक्कड़ थी.. उसकी चूत चाहे कितनी भी बार चुद ले, चुदास हमेशा बरकरार रहती ही रहती थी.. हालांकि वो अभी हस्तमैथुन करते हुए जम कर झड़ी थी, लेकिन अब वो फिर जीवा के मांसल लंड से अपनी चूत भरने को बेक़रार हो रही थी..
उसने अपने गाऊन में हाथ डाल कर एक बार फिर अपनी चूत ओर जाँघों पर फिराया.. फिर उसने अपना गाऊन ज़मीन पर गिरा दिया और अपना एक हाथ अपने पेट पर फिराती हुई दूसरे हाथ से अपनी अंदरूनी जाँघों को सहलाने लगी.. उसकी चूत का रस उसके जिस्म पर चमक रहा था जो उसके उंगली डालकर झड़ने के कारण निकला था.. उस चूत रस में छिपी हुई थी शीला बिस्तर पर अपनी कुहनियों के सहारे पीछे को झुक कर अपनी टाँगें फैला कर बैठ गयी..
जीवा भी शीला के पास आ गया और अपनी मुट्ठी अपने लंड की जड़ में कस दी जिससे उसके लंड का सुपाड़ा दमकने लगा.. शीला के लिए यह मुँह में पानी ला देने वाला नज़ारा था.. वो आगे झुकी तो उसके लंबे बाल जीवा के पेट और जाँघों पर गिर गये.. शीला ने अपनी ज़ुबान लंड के सुपाड़े पर फिरायी..
"उम्म्म... वाह", शीला मजे से घुरगुरायी..
"हाँ... चूसो भाभी... उम्म... मेरा मतलब.. चूस बहेनचोद कुत्तिया", जीवा सिसका.. शीला उसका पूरा सुपाड़ा मुँह में ले कर चूसने लगी.. शीला की चुस्त और फुर्तीली ज़ुबान जीवा के फूले हुए सुपाड़े पर फिसलने और सुड़कने लगी.. उसकी ज़ुबान बीच में कभी सुपाड़े की नोक पर फिरती और कभी उसके मूतने वाले छेद को टटोलती.. अपने मुँह में वीर्य की बूंदों का ज़ायका महसूस होते ही शीला की भूख और बढ़ गयी.. जब वो उसके सुपाड़े के इर्द-गिर्द बहुत सारी लार निकालने लगी तो उसका थूक लंड की छड़ पे नीचे को बहने लगा.. शीला का सिर किसी लट्टू की तरह जीवा के लंड पर घूम रहा था..
जीवा की गाँड अकड़ गयी और धक्के लगाती हुई लंड को शीला के मुँह में भोंकने लगी.. शीला जब चूसती तो उसके गाल अंदर को पिचक जाते और जब वो उसके लंड पर फूँकती तो गाल फूल जाते.. शीला लंड के सुपाड़े पर पर बहुत ज़्यादा माता में लार निकाल रही थी और जीवा के लोड़े से बहुत सारा थूक नीचे बह रहा था..
जीवा के लंड को चूसते हुए शीला के काले बालों का पर्दा जीवा के लंड और टट्टों पर पड़ा हुआ था.. लंड के ज़ायके का मज़ा लेते वक्त शीला के मुँह से सिसकियाँ निकल रही थी.. जीवा के दाँत आपस में रगड़ रहे थे और उसका चेहरा उत्तेजना से ऐंठा हुआ था.. शीला का सिर तेजी से लंड पर ऊपर-नीचे डोलने लगा और वो और ज़्यादा लंड के हिस्से को अपने मुँह में लेने लगी.. उस मोटे और रसीले लंड पर ऊपर नीचे होती हुई शीला लंड पर अपने होंठ जकड़ कर चूस रही थी.. जब वो अपना सिर ऊपर लेती तो उस लंड पर अपना मुँह लपेट कर अपने होंठ कस कर पेंचकस की तरह मरोड़ती..
जीवा जंगली सुअर की तरह घुरघुराता हुआ और अपना लंड ऊपर को ठेलता हुआ शीला के मुँह को ऐसे चोदने लगा जैसे कि कोई चूत हो..
"ऊम्मफ्फ", जब लंड का फूला हुआ सुपाड़ा शीला के गले में अटका तो वो गोंगियाने लगी.. शीला ने जीवा का लंबा लंड तक़रीबन पूरा अपने मुँह में भर लिया था.. जीवा के टट्टे शीला की ठुड्डी पर रगड़ रहे थे और शीला की नाक जीवा की झाँटों में घुसी हुई थी.. शीला की साँस घुट रही थी लेकिन फिर भी उसने कुछ लम्हों के लिए लंड के सुपाड़े को अपने गले में अटकाये रखा और फिर उसने लंड को चुसते हुए बाहर को निकाला..
"ऊँम्म्म", शीला कराही और फिर से उस लंड पे अपने होंठ लपेट कर चूसने लगी..
जीवा ने अपना लंड शीला के मुँह में लगातार चोदते हुए अपना वजन एक टाँग से दूसरी टाँग पर लिया.. जीवा ने अपना एक हाथ शीला की गर्दन के पीछे रखा और उसका मुँह अपने लंड पर थाम कर अंदर-बाहर चोदने लगा.. उसके टट्टे ऊपर उछल-उछल कर शीला की ठुड्डी के नीचे थपेड़े मार रहे थे..
जीवा के मूत वाले छेद से और भी ज़ायकेदार प्री-कम चूने लगी और शीला की ज़ुबान पर बह कर शीला की प्यास और भड़काने लगी.. शीला और भी जोर से लंड चूसने लगी और अपने मुँह में जीवा को अपने टट्टे खाली करने को आमादा करने लगी.. वो उसके गरम वीर्य को पीने के लिए बेक़रार हो रही थी..
चुदक्कड़ शीला की ज़ुबान भी उसकी क्लिट की तरह ही गर्म थी.. सिसकती हुई वो अपना मुँह जीवा के लंबे-मोटे लंड पर ऊपर-नीचे डोलने लगी..
लेकिन तभी जीवा ने अपना लंड शीला के होंठों से बाहर खींच लिया.. उसका सुपाड़ा बाहर निकला.. शीला के होंठ चपत कर बंद हो गये पर वो फिर से अपने होंठ खोल कर अपनी ज़ुबान बाहर निकाले, पीछे हटते लंड पर फिराने लगी..
जीवा को शीला से लंड चुसवाना अच्छा लग रहा था पर अब वो शीला का भोसड़ा चोदने के मूड में था.. शीला ने नज़रें उठा कर अपनी नशे में डूबी आँखों से जीवा के चेहरे को देखा.. वह हैरान थी कि उसने अपना स्वादिष्ट तगड़ा लंड उसके मुँह से खींच लिया था.. ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी आदमी ने शीला के मुँह में झड़ने से पहले लंड बाहर निकाला हो.. उसने अपने होंठ अण्डे की तरह गोल खोल कर उन्हें चूत की शक़ल में फैला दिया और अपनी ज़ुबान कामुक्ता से फड़फड़ाती हुई उसे फिर उसके लंड को फिर अपने मुंह में डालने के लिए आमंत्रित करने लगी..
नशे में चूर शीला को जीवा ने उसके कंधे से पकड़ कर धीरे से बिस्तर पर पीछे ढकेल दिया.. अगर वो उसके मुँह की जगह उसकी चूत चोदना चाहता था तो शीला को कोई ऐतराज़ नहीं था क्योंकि उसे तो दोनों ही जगह से चुदवाने में बराबर मज़ा आता था.. जब तक उसे भरपूर चुदाई मिल रही थी उसे इसकी कोई परवाह नहीं थी कि किस छेद से मिल रही थी..
अपने घुटने मोड़ कर और अपनी जाँघें फैला कर शीला पसर गयी.. उसने अपनी कमर उचका कर अपनी रसीली चूत चुदाई के एंगल में मोड़ दी.. जीवा उसकी टाँगों के बीच में झुक गया.. वो शीला के कामुक जिस्म से परिचित था.. अपने हाथों और घुटनों पर वजन डाल कर जीवा ने अपने चूत्तड़ अंदर ढकेले और उसके लंड का फूला हुआ सुपाड़ा शीला की चूत के अंदर फिसल गया..
शीला मस्ती से कलकलाने लगी.. अपने लंड का सिर्फ सुपाड़ा शीला की चूत में रोक कर जीवा लंड कि मांस-पेशियों को धड़काने लगा.. उसका सूजा हुआ सुपाड़ा चूत में धड़कता हुआ हिलकोरे मार रहा था..
पहले शीला का मुँह, चूत की तरह था और अब उसकी चूत, मुँह की तरह थी.. उसकी चूत के होंठ लंड के सुपाड़े को चूसने लगे और उसकी कड़क क्लिट उसकी जुबान की तरह लंड पर रगड़ने लगी.. जीवा घुरघुराते हुए स्थिर हो गया.. शीला की चूत उसके लंड को सक्शन पंप की तरह अपनी गहराइयों में खींच रही थी.. जीवा ठेल नहीं रहा था लेकिन शीला की चूत खुद से उसके लंड को अंदर घसीट रही थी..
जीवा उत्तेजना से गुर्राया.. उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे उसका लंड उसके शरीर से खींच कर उखाड़ा जा रहा था और शीला की चूत के शिकंजे में अंदर खिंचा जा रहा है.. अपनी चूत में आखिर तक उस विकराल लौड़े की ठोकर महसूस करती हुई शीला सिसकने लगी.. उसकी चूत फड़कते लंड से कोर तक भरी हुई थी.. जीवा का लंड शीला की चूत को उन गहराइयों तक भरे हुए था जहाँ शीला के अन्य किसी भी पुरुष साथी का लंड नहीं पहुँच सकता था..
जीवा का लंड शीला की चूत में धड़कने लगा तो उसकी चूत की दीवारें भी उसके लंड की रॉड पर हिलोरे मारने लगी.. शीला की चूत के होंठ लंड की जड़ पे चिपके हुए थे और लंड को ऐसे खींच रहे थे जैसे कि उस कड़क लंड को जीवा के जिस्म से उखाड़ कर सोंखते हुए चूत की गहराइयों में और अंदर समा लेने की कोशिश कर रहे हों..
जीवा के लंड का गर्म सुपाड़ा शीला को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कि उसकी चूत में गरमागरम लोहे का ढेला ठूँसा हो.. उसके फड़कते लंड की रॉड ऐसे महसूस हो रही थी जैसे लोहे की गरम छड़ चूत की दीवारों को खोद रही हो.. उसका लंड इतना ज़्यादा गरम था कि शीला को लगा कि वो जरूर उसकी चूत को अंदर से जला रहा होगा पर उसकी खुद की चूत भी कम गरम नहीं थी.. शीला की चूत भी भट्टी की तरह उस लंड पर जल रही थी जैसे कि जीवा का लंड तंदूर में सिक रहा हो..
शीला ने पहले हिलना शुरू किया.. जीवा तो स्थिर था और शीला ने अपनी चूत उसके लंड पर दो-तीन इंच पीछे खींची और फिर वापिस लंड की जड़ तक ठाँस दी.. "चोद मुझे... चोद मुझे!" शीला मतवाली हो कर कराहने लगी..
जीवा ने अपने घुटनों पर जोर दे कर अपना लंड इतना बाहर खींचा कि सिर्फ उसका सुपाड़ा चूत के अंदर था.. शीला की क्लिट उसके लंड पर धड़कने लगी.. जीवा ऐसे ही कुछ पल रुका तो शीला की चूत के होंठ फिर से उसके लंड को अंदर खींचने के लिए जकड़ने लगे.. शीला के भरे-भरे चूत्तड़ पिस्टन की तरह हिल रहे थे उसकी ठोस गाँड बिस्तर पे मथ रही थी..
"पेल इसे मेरे अंदर... जीवा!" शीला चिल्लायी.. वो अपनी चूत को लंड से भरने को बेक़रार हो रही थी.. उसे अपनी चूत अचानक खोखली लग रही थी.. "ठेल दे अपना पूरा मूसल अंदर तक!"
जीवा ने हुँकार कर अपनी गाँड खिसकायी और शीला को एक धीरे पर लंबा सा झटका खिलाया.. उसका लंड चीरता हुआ उसकी धधकती चूत में अंदर तक धंस गया.. चूत के अंदर धंसी उसके लंड की रॉड ने शीला की गाँड को बिस्तर से ऊपर उठा दिया.. जीवा ने एक बार फिर बाहर खींच कर इस तरह अपना लंड अंदर पेल दिया कि शीला की गाँड और ऊपर उठ गयी और उसका लंड इस तरह नीचे की तरफ चूत पेल रहा था कि अंदर-बाहर होते हुए गरम लंड का हर हिस्सा शीला की चूत पर रगड़ खा रहा था..
शीला भी उतने ही जोश और ताकत से अपनी आगबबुला चूत ऊपर-नीचे चलाती हुई जीवा के जंगली झटकों का जवाब दे रही थी.. उसकी चूत इतनी शिद्दत से लंड पर चिपक रही थी कि जीवा को लंड बाहर खींचने के लिए हकीकत में जोर लगाना पड़ रहा था..
जीवा का लंड शीला के चूत-रस से भीगा और चिपचिपाता और दहकता हुआ बाहर निकलता और फिर चूत में अंदर चोट मारता हुआ घुस जाता जिससे शीला के चूत-रस का फुव्वारा बाहर छूट जाता.. जीवा के टट्टे भी चूत-रस से तरबतर थे.. शीला का पेट भी चूत के झाग से भर गया था और गरम चूत-रस उसकी जाँघों के नीचे और उसकी गाँड की दरार में बह रहा था.. जब भी उसकी चूत से रस का फव्वारा फूटता तो मोतियों जैसी बड़ी-बड़ी बूँदें उसकी चूत और दोनों टाँगों के बीच के तिकोण पर छपाक से गिरतीं..
चुदाई की लज़्ज़त और शराब के नशे से शीला मतवाली हुई जा रही थी.. उसने जीवा से चिपकते हुए अपनी जाँघें जीवा के चूत्तड़ों पर कस दीं.. शीला के ऐड़ियाँ जीवा की गाँड पर ढोल सा बजाने लगीं..
जीवा लगातार चोद रहा था और जब भी उसका लंड चूत में ठँसता तो उसके टट्टे झूलते हुए शीला की झटकती गाँड पे टकराते.. साथ ही शीला की चूत से और रस बाहर चू जाता.. "आआआईईईऽऽऽ आँआँहहह मैं... मेरा छूटने वाला है!" शीला हाँफी, "ओह... चूतिये... मैं झड़ने वाली हूँ... तू भी झड़ जाऽऽऽ मादरचोदऽऽऽ भर दे मेरी चूत अपने गरम, चोदू-रस सेऽऽऽ!"
फिर जीवा ने एक हैरत अंगेज़ काम किया.. उसने अपना लंड चूत से बाहर निकाल लिया!
शीला बेहद तड़पते हुए ज़ोर से चिल्लायी और यह सोच कर कि शायद गलती से निकल गया होगा, उसने अपना हाथ बढ़ा कर लंड पकड़ लिया और फिर से अपनी चूत में डालने की कोशिश करने लगी.. वो गरम चुदक्कड़ औरत झड़ने के कगार पर थी और उसे डर था कि लंड के वापस चूत में घुसने के पहले ही वो कहीं झड़ ना जाये..
जीवा कुटिलता से मुस्कुराया.. उसने शीला के चूत्तड़ पकड़ कर उसे धीरे से पलट दिया.. जब वो शीला को बिस्तर पर पेट के बल पलट रहा था तो वो उसके हाथों में मछली की तरह फड़फड़ा रही थी.. फिर उसने शीला को जाँघों से पकड़ कर पीछे की ओर ऊपर खींचा जिससे शीला अपने घुटनों पे उठ कर झुक गयी और उसकी गाँड जीवा के लंड की ऊँचाई तक आ गयी.. जीवा भी ठीक शीला के पीछे झुका हुआ था.. जीवा का लंड शीला की गाँड के घुमाव के ऊपर मिनार की तरह उठा हुआ था.. उसका लंड शीला के पिघले हुए घी जैसे चूत-रस से भीगकर चिपचिपा रहा था और उसके लंड का सुपाड़ा ऐसे दमक रहा था जैसे कि २०० वॉट का बल्ब हो और नीचे अपने टट्टों में छिपी पथरीली गोलियों से खबरदार कर रहा हो..
शीला का सिर नीचे था और गाँड ऊपर हवा में थी.. उसका एक गाल बिस्तर पे सटा हुआ था और उसके लंबे काले बाल बिस्तर पर फैले हुए थे.. शीला की ठोस, झटकती गाँड उसकी इस पोज़िशन की अधिकतम ऊँचाई तक उठी हुई थी.. यह पोज़िशन शीला के लिए नई नहीं थी.. उसकी भारी चूचियाँ बिस्तर पर सपाट दबी हुई थीं और जब वो अपनी गाँड हिलाने लगी तो उसकी तराशी हुई जाँघें कसने और ढीली पड़ने लगीं और उसकी प्यारी गाँड कामुक्ता से ऊपर-नीचे होने लगी..
एक क्षण के लिए तो शीला को लगा कि जीवा उसकी गाँड मारने वाला है और शीला को इसमें कोई ऐतराज़ भी नहीं था.. वह पहले भी जीवा से अपनी गांड मरवा चुकी थी.. पर जीवा का एक हाथ उसकी चूत पर फिसल कर चूत की फाँकों को फैलाते हुए उसकी फड़कती क्लिट को रगड़ने लगा..
"हाँआँआँ... हाँआँआँ... ऐसे ही कुत्तिया बना कर चोद मुझे!" अपनी चूत में जीवा का खूंखार लौड़ा पिलवाने की तड़प में शीला गिड़गिड़ाने लगी.. जीवा के चोदू-झटके की उम्मीद में शीला पीछे को झटकी..
"तुझे कुत्तिया बन कर चुदवाने में बहुत मज़ा आता है ना, राँड?" जीवा उसके कुल्हों को हाथों में पकड़ते हुए फुसफुसाया.. उसका लहज़ा व्यंगात्मक लग रहा था..
"हाँआँआँ! मुझे कुत्तिया बना कर चोद!" शीला कराही..
जीवा ने मुस्कुरा कर अपने लंड की नोक से उसकी दहकती चूत को छुआ और उसे शीला की क्लिट पर रगड़ने लगा.. शीला दोगुनी मस्ती से कराहने लगी और उसने अपने चूत्तड़ जीवा के लंड पर पीछे धकेल दिये..
जीवा ने अपना भीमकाय, फड़कता हुआ लंड पूरी ताकत से एक ही झटके में शीला की गाँड के नीचे उसकी पिघलती हुई चूत में ठाँस दिया.. उसका लंड अंदर फिसल गया और उसका सपाट पेट शीला के चूत्तड़ों से टकराया.. अपनी झुकी हुई जाँघों के बीच में से अपना हाथ पीछे ले जाकर शीला उसके टट्टे सहलाने लगी.. जीवा अपना लंड शीला की चूत में अंदर तक पेल कर उसे घुमाता हुआ उसकी चूत को पीस रहा था..
फिर जीवा ने पूरे जोश में अपना लंड शीला की चूत में आगे-पीछे पेलना शुरू कर दिया.. शीला कसमसाती हुई अपने चूत्तड़ पीछे ठेल रही थी और उसकी चूचियाँ भी जोर-जोर से झूल रही थी.. जीवा कुत्ते की तरह वहशियाना जोश से शीला की चूत चोद रहा था और कुत्ते की तरह ही हाँफ रहा था.. शीला भी मस्ती और बेखुदी में ज़ोर-ज़ोर से सिसक रही थी, "आँहह... ओहह मर गई.. आँआँहहह...!"
जीवा ने थोड़ा झुक कर जोर से अपना लंड ऊपर की तरफ चूत में पेला जिससे शीला की गाँड हवा में ऊँची उठ गयी और उसके घुटने भी बिस्तर उठ गये.. फिर अगला झटका जीवा ने ऊपर से नीचे की तरफ दिया और फिर से शीला के घुटने और गाँड पहले वाली पोज़िशन में वापिस आ गये.. शीला का जिस्म स्प्रिंग की तरह जीवा के नीचे कूद रहा था..
"ऊँऊँम्म्म आह्ह.. उहह!" शीला चिल्लाई..
जीवा भी पीछे नहीं था.. उसका लंड फूल कर इतना बड़ा हो गया था कि शीला को लगा जैसे कुल्हों की हड्डियाँ अपने सॉकेट में से निकल जायेंगी.. शीला ने अपनी झूलती चूचियों के कटाव में से पीछे जीवा के बड़े लंड को अपनी चूत में अंदर-बाहर होते हुए देखने की कोशिश की..
जीवा जोर-जोर से चोदते हुए शीला की चूत को अपने लंड से भर रहा था और शीला को शहूत और लज़्ज़त से.. शीला की चूत जीवा के लंड पे पिघलती हुई इतना ज़्यादा रस बहा रही थी कि वो फुला हुआ लंड जब चूत की गहराइयों में धंसता तो छपाक-छपाक की आवाज़ आती थी..
"ले... साली कुत्तिया... मेरा भी अब छूट रहा है!" जीवा हाँफते हुए बोला..
"हाँऽऽऽ हाँऽऽऽ डुबा दे मुझे अपने लंड की मलाई में!" शीला कराही..
जब जीवा ने अपना लंड जड़ तक ठाँस दिया तो उसकी कमर आगे मुड़ गयी और उसका सिर और कंधे पीछे झुक गये.. शीला को जब उबलता हुआ वीर्य अपनी चूत मे छूटता महसूस हुआ तो वो और भी जोर से कराहने लगी.. जीवा का गाढ़ा वीर्य तेज सैलाब की तरह शीला की चूत में बह रहा था..
जीवा के टट्टों को फिर से हाथ में पकड़ कर शीला निचोड़ने लगी जैसे कि उसके निचोड़ने से ज्यादा वीर्य निकलने की उम्मीद हो.. जैसे ही जीवा अपना लंड उसकी चूत में अंदर पेलता तो शीला उसके टट्टे नीचे खींच देती और जब वो अपना लंड बाहर को खींचता तो शीला उसके टट्टे सहलाने लगती.. जीवा की वीर्य किसी ज्वार-भाटे की तरह हिलोरे मारती हुई शीला की चूत में बह रहा था..
हर बार जब भी शीला को अपने अंदर, और वीर्य छूटता महसूस होता तो उसकी चुदक्कड़ चूत भी फिर से अपना रस छोड़ देती..
हाँफते हुए, जीवा की रफ़्तार कम होने लगी..
शीला ने उसके लंड पे अपनी चूत आगे-पीछे चोदनी जारी रखी और उसके लंड को दुहती हुई वो अपने ओर्गैज़म के बाकी बचे लम्हों की लज़्ज़त लेने लगी.. शीला को लग रहा था जैसे कि उसकी चूत लंड पर पिघल रही हो.. खाली होने के बाद जीवा ने कुछ पल अपना लंड चूत में ही रखा.. उसके गाढ़े मलाईदार वीर्य और शीला के घी जैसे चूत-रस का गाढ़ा और झागदार दूधिया सफ़ेद मिश्रण जीवा के धंसे हुए लंड की जड़ के आसपास बाहर चूने लगा.. शीला की चूत के बाहर का हिस्सा और उसकी जाँघें चुदाई के लिसलिसे दलदल से सनी हुई थी..
जब आखिर में जीवा ने अपना लंड शीला की चूत में से बाहर निकाला तो उसके लंड की छड़ इस तरह बाहर निकली जैसे तोप में गोला दागा हो.. शीला की चूत के होंठ फैल गये और उसकी चूत बाहर सरकते लंड पर सिकुड़ने लगी.. जब उसके लंड का सुपाड़ा चूत में से बाहर निकला तो शीला कि चूत में से वीर्य और चूत-रस का मिश्रण झागदर बाढ़ की तरह बह निकला..
पूर्णतः संतुष्ट शीला मुस्कुराती हुई पेट के बल नीचे बिस्तर पर फिसल गयी.. वह थककर चूर हो चुकी थी पर फिर भी उसने अपनी जाँघें फैला रखी थीं कि शायद जीवा एक बार फिर चोदना चाहे.. परन्तु जीवा बिस्तर से पीछे हट गया.. शीला ने पीछे मुड़ कर देखा कि जीवा ने अपना मुर्झाया हुआ चोदू लंड अपनी पैंट में भर लिया था और उसे लंड के उभार के ऊपर ज़िप चढ़ाने में मुश्किल हो रही थी.. शीला अपना हाथ नीचे ले जाकर अपनी तरबतर चूत को सहलाने लगी.. पूरी चूत स्खलन के झागदार प्रवाही से भरी हुई थी..
"मज़ा आया चोदने में?" शीला ने अपनी मदहोश आँखें नचाते हुए पूछा..
जीवा ने दाँत निकाल कर मुस्कुराते हुए रज़ामंदी में अपनी गर्दन हिलायी..