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Thanks a lot SKYESH bhaiVAISHALI![]()
I like it my fav voncept in pornपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की कविता की मदद करने के लिए शीला उसके घर पहुँच चुकी थी.. रमिलाबहन के घर फाल्गुनी से मुलाकात के बाद पीछा करने पर शीला को पता चला की फाल्गुनी और राजेश के बीच कुछ चक्कर चल रहा है..
शीला और कविता रसिक के खेत की ओर जाने के लिये निकले.. रास्ते में शीला ने कविता से पिंटू को पीयूष की कंपनी में लगवाने का काम सौंपा.. शीला की यही योजना थी, पिंटू और वैशाली को अपने रास्ते से हटाकर, अपनी पुरानी आजाद जिंदगी में लौटने का..
खेत पहुँचने पर रसिक, कविता को देखकर खुश हो गया और शीला को देखकर क्रोधित.. गुस्से में उसने शीला को लौट जाने के लिए कहा..
कविता के विनती करने पर शीला गाड़ी में वापिस जा बैठी और फिर खेत के उस कमरे में रसिक और कविता के बीच घमासान चुदाई का दौर शुरू हुआ..
अब आगे...
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करीब डेढ़ घंटा बीत चुका था कविता को गए हुए.. सूरज भी ढलते हुए शाम का आगाज दे रहा था.. शीला जानती थी की रसिक को चुदाई करने मे इतना वक्त तो लगता ही है.. शायद दोनों एक राउंड खतम करके दूसरे की तैयारी कर रहे होंगे..!!!
शीला अब बेहद बोर हो रही थी.. गाड़ी में बैठकर गाने सुनते सुनते वह ऊब चुकी थी.. वह गाड़ी से बाहर निकली और नजदीक के खेतों में सिर करने लगी.. फसल कट चुकी थी इसलिए सारे खेत वीरान थे और दूर दूर तक सब कुछ साफ नजर आ रहा था..
तब शीला का ध्यान थोड़े दूर बने एक छोटे से टीले पर गया.. वहाँ पर खेत-मजदूर जैसे दिखने वाले तीन लोग, बनियान और लूँगी पहने बैठे थे और छोटी सी पारदर्शक बोतल से कुछ पी रहे थे.. जाहीर सी बात थी की तीनों देसी ठर्रा पी रहे थे..
अचानक उनमें से एक की नजर शीला की ओर गई..!! ऐसी सुमसान जगह पर इतनी सुंदर गदराई औरत का होना कोई सामान्य बात तो थी नहीं.. उस आदमी ने अपने साथियों को यह बात बताई और अब तीनों टकटकी लगाकर शीला को देखने लगे
शीला को बड़ा ही अटपटा सा लगने लगा.. उसने अपनी नजर घुमाई और गाड़ी की ओर चलने लगी.. थोड़ी दूर चलते रहने के बाद उसने पीछे की और देखा.. वह तीनों दूर से उसके पीछे चले आ रहे थे.. अपना लंड खुजाते हुए..
इतना देखते ही शीला के तो होश ही उड़ गए..!!! तीनों की मंछा साफ थी, जो शीला को भलीभाँति समझ आ रही थी.. अब शीला का दिमाग तेजी से चलने लगा.. गाड़ी कुछ ही दूरी पर थी.. लेकिन वहाँ पहुँच कर भी शीला सुरक्षित नहीं थी.. क्योंकि गाड़ी के आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था..
शीला ने अब अपनी दिशा बदली और वो रसिक के खेत की तरफ तेजी से चलने लगी.. वह तीनों भी अब शीला का पीछा करने लगे.. शीला की जान हलक तक आ गई.. वो अब लगभग भागने लगी थी.. उसकी सांसें फूलने लगी थी.. पीछे मुड़कर देखा तो वह तीनों भी अब तेजी से शीला की तरफ आ रहे थे और बीच का अंतर धीरे धीरे कम होता जा रहा था
अपना पूरा जोर लगाते हुए शीला ने दौड़ना शुरू कर दिया.. कुछ ही आगे जाते हुए रसिक का कमरा नजर आने लगा.. शीला ने और जोर लगाया और भागते हुए रसिक के कमरे तक पहुँच गई और दरवाजा खटखटाने लगी
काफी देर तक दरवाजा न खुलने पर शीला बावरी हो गई.. वो पागलों की तरह दस्तक देती ही रही..!! उसने देखा की वह तीनों लोग अब रुक चुके थे.. और दूर से शीला को दरवाजा खटखटाते हुए देख रहे थे
थोड़ी देर के बाद दरवाजा खुला और कविता के साथ रसिक बाहर आया
कविता: "क्या हुआ भाभी?? आप इतनी हांफ क्यों रही हो?"
शीला ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा "वो.. वो तो.. कुछ नहीं.. बस गाड़ी में अकेले बैठे बैठे डर लग रहा था.. शाम भी ढल चुकी है और कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा.. हमें अब चलना चाहिए"
रसिक को शीला के पास खड़ा देख, वह तीनों उलटे पैर लौट गए.. यह देखकर शीला की जान में जान आई..!! लेकिन वो कविता को इस बारे में बताकर डराना नहीं चाहती थी
कविता: "मैं बस वापिस ही आ रही थी.. चलिए भाभी"
कविता ने शीला का हाथ पकड़ा और दोनों गाड़ी की तरफ जाने लगी.. रसिक दोनों को दूर तक जाते हुए देखता रहा
गाड़ी में पहुंचकर शीला ने चैन की सांस ली.. कविता ने गाड़ी स्टार्ट की और कुछ ही मिनटों में उनकी गाड़ी हाइवे पर दौड़ रही थी
कविता के चेहरे पर संतोष की झलक साफ नजर आ रही थी.. लंबे अवकाश के बाद जब पलंग-तोड़ चुदाई करने का मौका मिलें तब किसी भी औरत के चेहरे पर चमक आ ही जाती है
करीब आधे घंटे तक दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोला
शीला अब धीरे धीरे सामान्य हो रही थी.. अपने पुराने रंग में आते हुए उसने कविता से पूछा
शीला: "कैसा रहा कविता?"
कविता शरमा गई.. उसने जवाब नहीं दिया
शीला ने उसे कुहनी मारते हुए शरारती अंदाज में पूछा "अरे शरमा क्यों रही है..!!! बोल तो सही कैसा रहा रसिक के साथ?"
कविता ने मुस्कुराकर जवाब दिया "मुझ से ज्यादा आप बेहतर जानती हो रसिक के बारे में.. मज़ा आ गया भाभी.. ऐसा लगा जैसे जनम जनम की भूख संतुष्ट हो गई हो"
शीला ने लंबी सांस लेते हुए कहा "इस भूख का यही तो रोना है.. जब संतुष्ट हो जाते है तब लगता है जैसे हमेशा के लिए भूख शांत हो गई.. पर कुछ ही दिनों में फिर से रंग दिखाने लग जाती है"
कविता: "मैं आगे के बारे में सोचना नहीं चाहती.. बस आज की खुशी में ही जीना चाहती हूँ.. भविष्य का सोचकर अभी का मज़ा क्यों खराब करूँ? वाकई में बहोत मज़ा आया.. मेरा तो अंदर सारा छील गया है.. बाप रे..!!! कितना मोटा है रसिक का.. देखने में तो बड़ा है ही.. पर जब अंदर जाकर खुदाई करता है तब उसकी असली साइज़ का अंदाजा लगता है"
शीला: "हम्म.. तो आखिरकार तूने रसिक का अंदर ले ही लिया.. बड़ी कामिनी चीज है रसिक का लंड.. एक बार स्वाद लग जाए फिर कोई और पसंद ही नहीं आता"
कविता: "सही कहा आपने भाभी.. जहां तक पीयूष का लंड जाता है.. वहाँ तक तो इस कमीने की जीभ ही पहुँच जाती है.. फिर जब उसने अपना गधे जैसा अंदर डाला.. आहाहाहाहा क्या बताऊँ..!! इतना मज़ा आया की बात मत पूछो"
दोनों के बीच ऐसी ही बातों का सिलसिला चलता रहा और करीब दो घंटों के बाद वह कविता के घर पहुँच गए..
दोनों सफर के कारण थके हुए थे.. कविता तो ज्यादा ही थकी हुई थी.. रसिक के प्रहारों के कारण उसके अंग अंग में मीठा सा दर्द हो रहा था..
कविता की नौकरानी ने खाना तैयार कर दिया था.. दोनों ने बैठकर खाना खतम किया
कविता: "भाभी, मेरा तो पूरा शरीर दर्द कर रहा है.. सोच रही हूँ की गरम पानी से शावर ले लूँ.. आप बेडरूम मे रिलेक्स कीजिए तब तक मैं फ्रेश होकर आती हूँ.. फिर आराम से बातें करते करते सो जाएंगे"
शीला नाइटी पहनकर पीयूष-कविता के बेडरूम मे आई.. बिस्तर के सामने ६५ इंच का बड़ा सा टीवी लगा हुआ था.. शीला ने रिमोट हाथ में लिया और चेनल बदलते हुए कविता का इंतज़ार करने लगी
थोड़ी देर में कविता स्काइ-ब्लू कलर की पतली पारदर्शक नाइटी पहनकर बेडरूम मे आइ और शीला के बगल में लेट गई.. कविता के गले पर रसिक के काटने के निशान साफ नजर आ रहे थे.. शीला यह देखकर मुस्कुराई
शीला के बगल में लेटी हुई कविता उससे लिपट गई.. और शीला के गालों को चूमते हुए बोली
कविता: "आपने आज मेरी बहोत मदद की भाभी.. वहाँ अकेले जाने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती थी.. आप थे इसलिए मेरी हिम्मत हुई"
शीला और कविता बेडरूम में बिस्तर पर लेटे हुए फिल्म देख रही थीं.. कविता को नींद आने लगी थी और बातें करते करते उसकी आँखें धीरे धीरे ढलने लगी थी.. सोने से पहले कविता ने लाइट बंद करके नाइट लैम्प ऑन कर दिया.. शीला किसी दूसरे चैनल पर इंग्लिश फिल्म देखने लगी.. फिल्म में काफी खुलापन और चुदाई के सीन थे..
नींद में कविता ने एक घुटना ऊपर उठाया तो अनायास ही उसकी रेश्मी नाइटी फ़िसल कर घुटने के ऊपर तक सरक गई.. टीवी और मंद लाइट की रोशनी में उसकी दूधिया रंग की जाँघ चमक रही थी.. अब शीला का ध्यान फिल्म में ना होकर कविता के जिस्म पर था और रह-रह कर उसकी नज़र कविता के गोरे जिस्म पर टिक जाती थी.. कविता की खूबसूरत जाँघें उसे मादक लग रही थी.. कुछ तो फिल्म के चुदाई सीन का असर था और कुछ कविता की खूबसूरती का.. शीला बेहद चुदासी हो रही थी और आज वो कविता के साथ अपनी आग बुझाने वाली थी और उसे भी खुश करना चाहती थी..कविता उसका इतना बड़ा काम जो करने वाली थी
शीला ने टीवी बंद किया और वहीं कविता के पास सो गई.. थोड़ी देर तक बिना कोई हरकत किये वो लेटी रही.. फिर उसने अपना हाथ कविता के उठे हुए घुटने वाली जाँघ पर रख दिया.. हाथ रख कर वो ऐसे ही लेटी रही, एक दम स्थिर.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने अपने हाथ को कविता की जाँघ पर फिराना शुरू कर दिया.. हाथ भी इतना हल्का कि सिर्फ़ उंगलियाँ ही कविता को छू रही थी, हथेली बिल्कुल भी नहीं.. फिर उसने हल्के हाथों से कविता की नाइटी को पूरा ऊपर कर दिया.. अब कविता की पैंटी भी साफ़ नज़र आ रही थी.. शीला की उंगलियाँ अब कविता के घुटनों से होती हुई उसकी पैंटी तक जाती और फिर वापस ऊपर घुटनों पर आ जाती..
यही सब तकरीबन दो-तीन मिनट तक चलता रहा.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने कविता की पैंटी को छूना शुरू कर दिया लेकिन तरीका वही था.. घुटनों से पैंटी तक उंगलियाँ परेड कर रही थी.. अब शीला धीरे से उठी और उसने अपनी नाइटी और ब्रा उतार दी, और सिर्फ़ पैंटी में कविता के पास बैठ गई.. कविता की नाइटी में आगे कि तरफ़ बटन लगे हुए थे.. शीला ने बिल्कुल हल्के हाथों से बटन खोल दिये.. फिर नाइटी को हटाया तो कविता के गोरे चिट्टे मम्मे नज़र आने लगे.. अब शीला के दोनों हाथ मसरूफ हो गये थे.. उसके एक हाथ की उंगलियाँ कविता की जाँघ और दूसरे हाथ की उंगलियाँ कविता के मम्मों को सहला रही थी.. उसकी उंगलियाँ अब कविता को किसी मोर-पंख की तरह लग रही थीं.. कविता अब जाग चुकी थी और उसे बड़ा अच्छा लग रहा था, इसलिये बिना हरकत लेटी रही.. वो भी इस खेल को रोकना नहीं चाहती थी..
अब शीला ने झुककर कविता की चुची को किस किया.. फिर उठी और कविता की टाँगों के बीच जाकर बैठ गई.. कविता को अपनी जाँघ पर गर्म हवा महसूस हो रही थी.. वो समझ गई कि शीला की साँसें हैं.. शीला कविता की जाँघ को अपने होंठों से छू रही थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे वो अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी.. अब वही साँसें कविता को अपनी पैंटी पर महसूस होने लगीं, लेकिन उसे नीचे दिखायी नहीं दे रहा था.. वैसे भी उसने अभी तक आँखें नहीं खोली थी..
अब शीला ने अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और उसे कविता की पतली सी पैंटी में से झाँक रही गरमागरम चूत की दरार पर टिका दी.. कुछ देर ऐसे ही उसने अपनी जीभ को पैंटी पर ऊपर-नीचे फिराया.. कविता की पैंटी शीला के थूक से और चूत से निकाल रहे पानी से भीगने लगी थी.. अचानक शीला ने कविता की थाँग पैंटी को साइड में किया और कविता की नंगी चूत पर अपने होंठ रख दिये.. कविता से और बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी गाँड उठा दी, और दोनों हाथों से शीला के सिर को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत से चिपका लिया.. शीला की तो दिल की मुराद पूरी हो गई थी! अब कोई डर नहीं था! वो जानती थी कि अब कविता सब कुछ करने को तैयार है - और आज की रात रंगीन होने वाली थी..
शीला ने अपना मुँह उठाया और कविता की पैंटी को दोनों हाथों में पकड़ कर खींचने लगी.. कविता ने भी अपनी गाँड उठा कर उसकी मदद की.. फिर कविता ने अपनी नाइटी भी उतार फेंकी और शीला से लिपट गई.. शीला ने भी अपनी पैंटी उतारी और अब दोनों बिल्कुल नंगी एक दूसरे के होंठ चूस रही थीं.. दोनों के मम्मे एक दूसरे से उलझ रहे थे.. दोनों ने एक दूसरे की टाँगों में अपनी टाँगें कैंची की तरह फंसा रखी थीं और शीला अपनी कमर को झटका देकर कविता की चूत पर अपनी चूत लगा रही थी, जैसे कि उसे चोद रही हो.. कविता भी चुदाई के नशे में चूर हो चुकी थी और उसने शीला की चूत में एक उंगली घुसा दी.. अब शीला ने कविता को नीचे गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई.. शीला ने कविता के मम्मों को चूसना शुरू किया.. उसके हाथ कविता के जिस्म से खेल रहे थे..
कविता अपने मम्मे चुसवाने के बाद शीला के ऊपर आ गई और नीचे उतरती चली गई.. शीला के मम्मों को चूसकर उसकी नाभि से होते हुए उसकी ज़ुबान शीला की चूत में घुस गई.. शीला भी अपनी गाँड उठा-उठा कर कविता का साथ दे रही थी.. काफी देर तक शीला की चूत चूसने के बाद कविता शीला के पास आ कर लेट गई और उसके होंठ चूसने लगी..
अब शीला ने कविता के मम्मों को दबाया और उन्हें अपने मुँह में ले लिया - शीला का एक हाथ कविता के मम्मों पर और दूसरा उसकी चूत पर था.. उसकी उंगलियाँ कविता की चूत के अंदर खलबली मचा रही थी.. कविता एक दम निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी और उसके मुँह से अजीब-अजीब आवाज़ें आने लगी.. तभी शीला नीचे की तरफ़ गई और कविता की चूत को चूसना शुरू कर दिया.. अपने दोनों हाथों से उसने चूत को फैलाया और उसमें दिख रहे दाने को मुँह में ले लिया और उस पर जीभ रगड़-रगड़ कर चूसने लगी..
कविता तो जैसे पागल हो रही थी.. उसकी गाँड ज़ोर-ज़ोर से ऊपर उठती और एक आवाज़ के सथ बेड पर गिर जाती, जैसे कि वो अपनी गाँड को बिस्तर पर पटक रही हो.. फिर उसने अचानक शीला के सिर को पकड़ा और अपनी चूत में और अंदर ढकेल दिया.. उसकी गाँड तो जैसे हवा में तैर रही थी और शीला लगभग बैठी हुई उसकी चूत खा रही थी.. वो समझ गई कि अब कविता झड़ने वाली है और उसने तेज़ी से अपना मुँह हटाया और दो उंगलियाँ कविता की चूत के एक दम अंदर तक घुसेड़ दी..
उंगलियों के दो तीन ज़बरदस्त झटकों के बाद कविता की चूत से जैसे नाला बह निकला.. पूरा बिस्तर उसके पानी से गीला हो गया..
शीला ने एक बार फिर अपनी टाँगें कविता की टाँगों में कैंची की तरह डाल कर अपनी चूत को कविता की चूत पर रख दिया और ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी, जैसे कि वो कविता को चोद रही हो.. दोनों कि चूत एक दूसरे से रगड़ रही थी और शीला कविता के ऊपर चढ़ कर उसकी चुदाई कर रही थी..
कविता का भी बुरा हाल था और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर शीला का साथ दे रही थी.. तभी शीला ने ज़ोर से आवाज़ निकाली और कविता की चूत पर दबाव बढ़ा दिया.. फिर तीन चार ज़ोरदार भारी भरकम धक्के मार कर वो शाँत हो गई.. उसकी चूत का सारा पानी अब कविता की चूत को नहला रहा था.. फिर दोनों उसी हालत में नंगी सो गईं..
बहुत ही कामुक गरमा गरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट हैपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की, रसिक के खेत से, तहस नहस होकर लौटी शीला अपनी थकान उतार रही थी तब उसे मदन का फोन आया की वह और एक दिन रुकने वाला है.. ओर तो ओर पिंटू भी अपने घर आने वाला था.. शीला की आँखें चमक उठी.. अब शीला यह सोच रही थी की वह अपनी इस स्वतंत्रता को गँवाने नहीं देगी.. पर इसे बरकरार रखने में, वैशाली और पिंटू बाधा बन रहे थे और ऐसे घुट-घुटकर जीना, शीला के मन को गँवारा नहीं था.. उसका दिमाग योजना बनाने में जुट गया॥ एक और दिन की स्वतंत्रता मिलते ही उसने रसिक को घर बुला लिया और मन भरकर खुद को तृप्त किया..
अब आगे...
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दूसरी सुबह पीयूष के घर पर..
मदन, राजेश और पीयूष डाइनिंग टेबल पर बैठकर नाश्ता कर रहे थे.. अदरख वाली चाय के साथ आलू के पराठे खाते हुए मदन ने देखा की राजेश अब भी नींद में था..
मदन: "काफी थका हुआ लग रहा है राजेश.. कल कितने बजे लौटा था?"
राजेश: "हाँ यार, कल कुछ ज्यादा ही हो गई थी.. आते आते बहोत देर हो गई थी कल रात"
पीयूष: "हम्म.. तो अब आज का क्या प्लान है आप लोगों का?"
मदन: "मुझे तो आज वैशाली के घर जाना है.. उसके ससुर ने मुझे खाने पर बुलाया है.. पिंटू भी आज आ गया होगा"
राजेश: "अरे यार.. !! तो फिर हम घर जाने के लिए कब लौटेंगे?"
मदन: "खाना खाकर तुरंत निकल जाएंगे.. तू भी चल मेरे साथ"
जब राजेश और वैशाली के बीच वो घटना घटी थी.. तब शीला या किसी ने भी मदन को इस बारे में खुलकर नहीं बताया था.. मदन केवल इतना ही जानता था की पिंटू और वैशाली के बीच किसी बात को लेकर कोई बड़ी अनबन हो गई थी.. और आखिर सब सुलझ भी गया और वैशाली की शादी भी हो गई इसलिए उसने उस कारण के बारे में ज्यादा पूछताछ भी नहीं की थी..
वैशाली के घर जाने की बात सुनकर ही राजेश बोल पड़ा "नहीं यार.. तू ही चला जा.. मुझे तो ऑफिस पहुंचना पड़ेगा.. ढेर सारा काम बाकी पड़ा है"
मदन: "यार तो फिर मैं घर वापिस कैसे जाऊंगा?"
राजेश: "एक काम कर, तू मेरी गाड़ी ले जा.. मैं केब बुला लूँगा"
मदन: "अरे नहीं.. ऐसा करने की कोई जरूरत नहीं है.. तू अपने हिसाब से निकल.. मैं तो बस में आ जाऊंगा"
राजेश: "ओके, जैसा तुझे ठीक लगे"
तभी कविता आकर सब की प्लेट मे गरम आलू पराठे परोस गई
पीयूष: "फिर क्या सोचा आप दोनों ने? आप मुझे जल्दी बताइए ताकि मुजे टिकट बुक करने मे आसानी हो"
राजेश: "मेरे हिसाब से, तुम्हें और मदन को जाना चाहिए"
पीयूष: "अरे राजेश सर, ऐसा नहीं चलेगा.. आपकी भी जरूरत वहाँ पड़ेगी"
राजेश: "पीयूष, मदन के रहते तुझे कोई दिक्कत नहीं होगी.. उसे इस फील्ड का बहोत अनुभव है.. दूसरा, रेणुका को इस अवस्था में छोड़कर मैं नहीं आ सकता, यह तुम समझ सकते हो.. और हाँ, कहीं भी मेरी जरूरत पड़ी तो स्काइप या टीम्स पर मीटिंग कर लेंगे..!!"
हकीकत में, राजेश की नहीं जाने की असली वजह फाल्गुनी थी..!! पिछली रात, फार्महाउस पर फाल्गुनी के साथ उसे जो मज़ा आया था.. उसका दिल कर रहा था की वो वहीं पड़ा रहे और उस कमसिन कली के नाजुक जिस्म को भोगता रहे.. !!
पीयूष: "आपकी बात समझ सकता हूँ.. रेणुका मैडम को इस हाल में अकेले छोड़ना भी नहीं चाहिए.. तो फिर यह तय रहा.. मैं और मदन भैया जाएंगे.. मैं आगे का शिड्यूल आपको बता दूंगा मदन भैया"
मदन: "ठीक है पीयूष.. पर थोड़ा जल्दी बताना.. मुझे भी यहाँ के कुछ काम निपटाने है"
पीयूष: "जैसे ही मेरा ट्रावेल एजेंट कनफर्म करेगा, मैं आपको बता दूंगा"
मदन: "ओके.. डन..!!"
नाश्ता खतम करने के बाद, राजेश और मदन, वैशाली के ससुराल की ओर निकल गए.. मदन को वहाँ ड्रॉप करने के बाद राजेश निकल गया.. मदन ने उसे बहोत कहा.. एक बार ऊपर आकर मिलने आने को.. पर पिछले कांड के बाद, वो वैशाली और पिंटू से अंतर बनाए रखता था.. काम का बहाना बनाकर वो निकल गया
थोड़े दूर जाकर, राजेश ने फाल्गुनी को कॉल लगाया.. पर फाल्गुनी ने उठाया नहीं.. कुछ देर इंतज़ार करने के बाद, राजेश अपने शहर की ओर निकल गया..
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उस दिन मदन बस से घर पहुंचा.. पहुंचते हुए रात हो गई थी.. शीला उसका इंतेज़ार कर रही थी.. उसे वैशाली के बारे में जानना था और यह भी पूछना था की पीयूष वाली डील में आखिर मदन क्या किरदार निभाने वाला था.. दस बज गए थे इसलिए शीला अपनी नाइटी पहने बैठी थी
मदन आकर सोफ़े पर बैठा और शीला उसके लिए पानी का गिलास भर लिया.. मदन ने पानी पिया और शीला उसके बगल में बैठ गई..
शीला: "तो कैसा रहा तेरा सफर?"
मदन: "यार, सच बताऊँ तो अब ये बस का सफर राज नहीं आता.. !!"
शीला ने हँसकर कहा "बूढ़ा हो गया है तू.. असली मज़ा तो बस और ट्रेन के सफर मे ही आता है"
मदन ने शीला की खरबूजे जैसी चुची की आगे उपसी हुई निप्पल को दबाते कहा "वो तो अभी तुझे अंदर ले जाकर बेड पर पटक कर चोदूँगा, तब पता चलेगा की मैं कितना बूढ़ा हूँ"
अपनी निप्पल छुड़ाते हुए शीला ने शैतानी भरी मुस्कान के साथ कहा "आज तो बड़ा जोश चढ़ रहा है तुझे.. चल, अभी अंदर जाकर देखते है की कौन कितने पानी में है.. वो सब छोड़.. यह बता की वैशाली के घर पर सब कैसे है?"
मदन: "सब ठीक है.. वैशाली बेहद घुल-मिल गई है अपने ससुराल वालों से.. उसका नाम लेते लेते उसकी सास की तो जुबान ही नहीं थकती.. पिंटू के पापा भी काफी खुश लग रहे थे.. और पिंटू भी.. !! सच में.. बहोत अच्छा खानदान मिल गया हमारी बेटी के लिए.. बड़े अच्छे लोग है.. वैशाली भी एकदम अच्छी तरह वहाँ सेट हो गई है.. बस ऊपरवाले से यही प्रार्थना है की उनका संसार यूं ही खुशी खुशी चलता रहे"
शीला: "वो तो चलेगा ही.. अच्छा ये बता.. पीयूष के साथ क्या बातचीत हुई?"
मदन: "मामला धीरे धीरे आगे बढ़ रहा है.. तैयारियां भी शुरू कर दी ही पीयूष ने.. एक बार बेंक वालों से बात करनी होगी.. लेटर ऑफ क्रेडिट को लेकर कुछ उलझनें जरूर है.. पर वो तो मैं संभाल लूँगा.. लेकिन एक बार अमरीका जाना होगा.. पीयूष और मैं वहाँ साथ जाने की सोच रहे है.. टिकट बुक होते ही पीयूष बताएगा मुझे.. काफी बड़ा ऑर्डर है और पीयूष ने मुझे उस ऑर्डर के ५% देने का वादा किया है"
शीला खुशी से उछल पड़ी "क्या सच में..!! तब तो बड़ी अच्छी कमाई हो जाएगी"
मदन: "हाँ शीला.. रिटायरमेंट के बाकी वर्षों में हमे कभी पैसों की दिक्कत नहीं आएगी उतनी रकम तो मिल ही जाएगी.. वहाँ के मेरे सारे कॉन्टेक्टस काम आ जाएंगे.. पीयूष का काम हो जाएगा और हमारा भी"
शीला ने मदन को गाल पर चूमते हुए कहा "यार मदन.. मुझे नाज़ है तुम पर.. मुझे तो पता ही नहीं था की मेरा पति, इतने काम की चीज है"
मदन: "ऐसा ही होता है, घर की मुर्गी दाल बराबर ही लगती है"
शीला ने अपनी आँखें नचाते हुए नाइटी के ऊपरी हिस्से से दोनों स्तनों को बाहर निकालते हुए कहा "तेरा इन मुर्गियों के बारे मे क्या खयाल है?"
मदन ने लोलुप नज़रों से दोनों स्तनों को देखा और अपने चेहरे के स्तनों की बीच की गहरी खाई में रगड़ते हुए कहा "बड़ा ही नेक खयाल है.. आज तो इन मुर्गियों की अच्छे से खातिरदारी करता हूँ" कहते हुए उसने शीला की निप्पल को मुंह मे डालकर चूस लिया"
शीला ने सोफ़े से उठते हुए मदन को खींचकर खड़ा किया और कहा "सिर्फ मुर्गियों की ही नहीं.. नीचे वाली गुफा की भी मरम्मत करनी होगी"
मदन उठ खड़ा हुआ और शीला के चूतड़ों को अपनी हथेलियों से दबाते हुए बोला "अरे मेरी जान.. आज तो मैं इतना मूड मे हूँ की तेरी आगे पीछे की दोनों गुफाओं की मरम्मत कर दूंगा.. !!"
दोनों ने बेडरूम मे प्रवेश किया और बिस्तर पर बैठ गए..
मदन: "शीला, दरवाजा तो ठीक से बंद कर दिया है ना तूने.. !!"
शीला: "हाँ मदन.. चिंता मत कर.. सब बंद कर दिया है.. अब जो खोलने वाली हूँ उस पर ध्यान दे.. कहते हुए शीला ने अपनी नाइटी उतार फेंकी और बेड पर लेट गई
शीला बेड पर लेटी ही थी की बिजली चली गई और बल्ब बुझ गया.. पूरे कमरे में अंधेरा छा गया.. शीला तो बेतहाशा गरम और गीली हो चुकी थी.. साँसें तेज़ी से चल रही थी, दिमाग और जिस्म में सनसनाहट दौड़ रही थी.. रक्त प्रवाह सौ गुना बढ़ चुका था, चेहरा लाल हो गया था और शीला गहरी-गहरी साँस ले रही थी.. मदन ने शीला को धीरे से धक्का दिया और शीला बेड पर सीधे लेट गई.. मदन शीला की साईड में था और उसका हाथ अभी भी शीला की चूत पे था.. शीला बस ऐसे ही चित्त लेटी रही और उसने अपनी टांगें फेला ली थी.. अब मदन शीला की चूत का अच्छी तरह से मसाज करने लगा.. शीला को बहुत ही मज़ा आ रहा था.. अब उसने शीला का हाथ पकड़ कर अपने अकड़े हुए लंड पे रख दिया और दबाने लगा.. सेक्स के लिए तड़प रहे मदन का लंड मोटा और सख्त हो चला था.. उसने शॉर्ट्स को अपने घुटनों तक खिसका दिया था और शीला के हाथ में अपना लंड थमा दिया था.. शीला ने हमेशा की तरह बिना पैंटी और ब्रा के नाइटी पहनी थी
मदन का हाथ शीला के सर के नीचे था.. उसने दूसरे हाथ से शीला को अपनी तरफ़ करवट दिला दी.. अब दोनों एक दूसरे की तरफ़ मुँह करके करवट से लेटे थे.. उसने शीला को किस करना शुरू किया तो शीला का मुँह अपने आप खुल गया और जल्द ही उसकी ज़ुबान शीला के मुँह के अंदर घुस चुकी थी और शीला उसकी जीभ को चूस रही थी.. शीला के जिस्म में तो जैसे हल्के-हल्के इलेक्ट्रिक शॉक्स लग रहे थे..
शीला मदन के दाहिनी ओर पे थी और वो शीला के उस तरफ.. अब उसने अपने पैरों को चलाते हुए अपनी शॉर्ट्स भी निकाल दी और अपना टी-शर्ट भी.. वो पूरा का पूरा नंगा हो गया था.. उसके सीने के बाल शीला की नाइटी के ऊपर से ही शीला के मदमस्त चूचियों पर लग रहे थे और शीला के निप्पल खड़े हो गये थे.. मदन ने शीला की एक टांग को उठा कर अपनी जाँघ पर रख लिया.. ऐसा करने से शीला की नाइटी थोड़ी सी ऊपर उठ गई तो उसने शीला की जाँघों पे हाथ फेरते-फेरते नाइटी को ऊपर उठाना शुरू किया और शीला की मदद से पूरी नाइटी निकाल दी.. शीला एक दम से अपने होश-ओ-हवास खो चुकी थी और वो जैसे कर रहा था, करने दे रही थी और पूरा मज़ा ले रही थी..
वह दोनों एक दूसरे की तरफ़ करवट लिये लेटे थे और शीला की एक टाँग उसकी जाँघ पे थी और अब उसने शीला के बबलों को मसलना शुरू कर दिया और फिर उन्हें मुँह मे लेकर चूसने लगा.. बूब्स को मुँह में लेते ही शीला के जिस्म में इलेक्ट्रिक करंट दौड़ गया तो शीलाने उसका लंड छोड़ कर उसका सर पकड़ के अपने सीने में घुसा दिया.. वो ज़ोर-ज़ोर से शीला की चूचियों को चूस रहा था और उसका लंड जोश में हिल रहा था.. लंड का सुपाड़ा शीला की भोसड़े के होंठों को छू रहा था.. लंड के सुराख में से प्री-कम भी निकल रहा था..
मदन ने शीला का हाथ अपने सर से हटाया और फिर से अपने लंड पर रख दिया और शीला खुद-ब-खुद ही उसको दबाने लगी और वो शीला की चूत का ऊपर से नीचे मसाज करने लगा.. कभी चूत के सुराख में धीरे से उंगली डाल देता और कभी चूत के होंठों के अंदर ही ऊपर से नीचे और जब कभी शीला की क्लीटोरिस को मसल देता तो शीला जोश में पागल हो जाती.. शीला की एक टाँग उसकी जाँघों पे रखे रहने की वजह से शीला की चूत थोड़ी सी खुल गई थी और लंड का सुपाड़ा चूत से छू रहा था तो शीला ने उसके लंड को पकड़े-पकड़े अपनी चूत के अंदर रगड़ना शुरू कर दिया.. शीला मस्ती से पागल हुई जा रही थी.. शीला को लग रहा था जैसे उसके अंदर कोई लावा उबल रहा है जो बाहर आने को बेचैन है.. इसी तरह से शीला उसके लंड को अपनी चूत में रगड़ती रही और लंड में से निकलता हुआ प्री-कम और शीला की चूत का बहता हुआ रस मिल कर चूत को और ज़्यादा चिपचिपा बना रहे थे.. शीला का मस्ती के मारे बुरा हाल हो चुका था.. अब शीला चाह रही थी के ये लंड उसकी चूत के अंदर घुस जाये और घनघोर चुदाई हो..
मदन ने शीला को फिर से चित्त लिटा दिया और शीला की टाँगों को खोल के बीच में आ गया.. उसने शीला की बे-इंतहा गीली चूत को किस किया तो शीला ने अपने चूतड़ उठा के उसके मुँह में अपनी चूत को घुसेड़ना शुरू कर दिया.. शीला की आँखें बंद हो गई थी और मज़े का आलम तो बस ना पूछो.. इतना मज़ा आ रहा था जिस को बयान न किया जा सके.. उसका मुँह शीला की चूत पे लगते ही शीला की टाँगें खुद-ब-खुद ऊपर उठ गई और मदन की गर्दन पर कैंची की तरह लिपट गई और शीला उसके सर को अपनी टाँगों से अपनी चूत के अंदर घुसेड़ रही थी और उसे ऐसे लग रहा था जैसे अंदर उबलता हुआ लावा अब बाहर निकलने को बेचैन हो.. मदन की जीभ, शीला की क्लीटोरिस को लगते ही शीला के जिस्म में सनसनी सी फैल गई और शीला के मुँह से एक ज़ोर की सिसकरी निकली, “आआआआहहहह सससस”, और शीला की चूत में से गरम-गरम लावा निकलने लगा और पता नहीं कितनी देर तक निकलता रहा.. जब उसका दिमाग ठिकाने पर आया तब देखा कि मदन अभी भी शीला की चूत में अपनी ज़ुबान घुसेड़ के चाट रहा है और पूरी चूत को अपने मुँह में लेकर दाँतों से काट रहा है.. शीला की चूत में अब नए सिरे से चुनचुनी होने लगी..
शीला: "आह्ह.. बहोत हुआ मदन, अब डाल भी दे अंदर.. उफ्फ़!!"
मदन: "ओह शीला, आज मुझे आराम से करने दे..!!:
मदन के हाथ शीला की गाँड के नीचे थे और वो शीला के चूतड़ों को उठा के चूत को चूस रहा था.. शीला अपने चूतड़ों को उछाल-उछाल कर अपना भोसड़ा मदन के मुँह से रगड़ रही थी.. चूत में फिर से गुदगुदी शुरू हो गई थी.. शीला मदन का सर पकड़े हुए अपनी चूत में घुसेड़ रही थी.. अब शायद मदन से भी बर्दाश्त नहीं हो रहा था तो वो अपनी जगह से उठा और शीला की टाँगों के बीच में बैठ गया और अपने लौड़े को हाथ से पकड़ कर उसके सुपाड़े को शीला की गीली और गरम जलती हुई चूत के अंदर, ऊपर से नीचे कर रहा था.. शीला की टाँगें मुड़ी हुई थी.. शीला भी अब चूत-छेदन का इंतज़ार और बर्दाश्त नहीं कर पा रही थी.. उसने अपना हाथ बढ़ा कर मदन के सख्त लंड को अपने हाथों से पकड़ लिया और अपनी चूत के छेद में घिसना शुरू कर दिया..
मदन अब शीला की ऊपर मुड़ गया और शीला के मुँह में अपनी ज़ुबान को घुसेड़ कर किस कर रहा था और शीला उसके लंड को अपनी चूत में घिसे जा रही थी.. शीला की टाँगें मदन की कमर के इर्दगिर्द लपेटी हुई थी और मदन का लंड, शीला की चूत के होंठों के बीच, सैंडविच बना हुआ था.. उसने अपने लंड को चूत के होंठों के बीच में से ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया.. चूत बहुत ही स्निग्ध हो गई थी और ऐसे ही ऊपर नीचे करते-करते उसके लंड का मोटा सुपाड़ा शीला के गरम सुराख में अटक गया और शीला मस्ती से सिहर उठी.. मदन ने अपने लंड को थोड़ा सा और धकेला तो उसका पूरा लंड, चूत के अंदर घुस गया.. अब शीला ने अपने दाँत ज़ोर से बंद कर लिये..
मदन ने सुपाड़े को धीरे-धीरे अंदर-बाहर करना शुरू किया तो शीलाने अपने दोनों हाथ बढ़ा कर मदन को अपनी बांहों में ज़ोर से जकड़ लिया.. अब मदन शीला की चूचियों को चूसने लगा तो शीला के जिस्म में फिर से सनसनी सी फैलनी शुरू हो गई और शीला उसकी कमर पर अपने हाथ फिराने लगी..
मदन अपने लंड के सुपाड़े को शीला की बुर के अंदर बाहर करने लगा.. शीला की चूत से निकल रहे रस की वजह से उसके लंड का टोपा अब अंदर-बाहर आसानी से सरक रहा था..
धनाधन चुदाई हुई और शीला के भोसड़े मे जैसे जश्न शुरू हो गया..
धक्के लगाते लगाते मदन बीच में ही रुक गया.. और शीला के बबलों को चूसने लगा.. मदन का यह तरीका था.. रुक रुक कर चोदना.. इससे शीला की उत्तेजना और बढ़ जाती थी और फिर दोनों को चोदने में दोगुना मज़ा भी आता था..
अब मदन ने अपने हाथ शीला की बगल से निकाल कर शीला के कंधों को पकड़ लिया और शीला को चूमने लगा.. पोज़िशन ऐसी थी कि दोनों के जिस्म के बीच में शीला के बबले पिचक गये थे.. मदन शीला पर झुका हुआ था और उसका लंड शीला की चूत के अंदर घुसा हुआ था.. मदन ने धीरे-धीरे लंड को फिर से अंदर-बाहर कर, शीला की चुदाई शुरू की और शीला मज़े से पागल होने लगी.. शीला की चूत में उसका मोटा लंड फँसा हुआ था और अंदर-बाहर हो रहा था..
शीला को अब लगने लगा जैसे उसका स्खलन अंदर उबल रहा हो और बाहर निकलने को बेचैन है.. तभी ही मदन ने अपने लंड को शीला की चूत से पूरा बाहर निकाल लिया.. शीला को अपनी चूत खाली-खाली लगने लगी और फिर देखते ही देखते उसने इतनी ज़ोर का झटका मारा और शीला के मुँह से चींख निकल पड़ी, “ऊऊऊऊईईईईईई मां...आआआआआहह जबरदस्त यार.. मज़ा आ रहा है मदन”,
शीला मदन से लिपट गई उसको ज़ोर से पकड़ लिया और उसका शरीर अकड़ने लगा.. थरथराते हुए उसका भोसड़ा एकदम से सिकुड़ गया और अंदरूनी दीवारों ने मदन के लंड को निचोड़ दिया.. एक पल के लिए शीला की आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया.. शीला के भोसड़े ने डकार मार ली थी..
पता नहीं शीला कितनी देर मदन को ज़ोर से चिपकी रही.. जब उसे होश आया तो देखा कि मदन अपने लंड से शीला की फटी चूत को चोद रहा था.. उसका लंड अंदर-बाहर हो रहा है और शीला फिर से “ऊऊऊऊईईईईई आआआआहहहह औंऔंऔंऔं आआआईईईई” जैसी आवाज़ें निकालने लगी.. मदन अब रुकने का नाम नहीं ले रहा था.. लग रहा था जैसे पागल हो गया हो.. ज़ोर-ज़ोर से शॉट लगा रहा था..
मदन शीला को चोदे ही जा रहा था.. शीला उसके जिस्म से चिपकी हुई थी और मदन के हर धक्के के साथ उसके बबले आगे पीछे हो रहे थे.. थोड़ी ही देर में जब शीला फिर से गरम हो गई तो उसे अब और मज़ा आने लगा.. मदन के हाथ अभी भी शीला के कंधों को पकड़े हुए थे और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर लंड को पूरा सिरे तक बाहर निकालता और जोर के झटके से चूत के अंदर घुसेड़ देता.. उसके चोदने की स्पीड बढ़ गई थी.. शीला को अपनी बुर के अंदर ही उसका लंड फूलता हुआ महसूस हुआ..
शीला ने फिर से मदन को ज़ोर से अपनी बांहों में जकड़ लिया.. उसके साथ ही उसके लंड से गरम-गरम मलाईदार वीर्य निकलने लगा और शीला की चूत को भरने लगा.. शीला की चूत का लावा भी ऐसे बाहर निकलने लगा जैसे बाँध तोड़ कर नदी का पानी बाहर निकल जाता है.. शीला के जिस्म में झटके लग रहे थे और दिमाग में सनसनाहट हो रही थी.. बहुत ही मज़ा आ रहा था.. मदन अभी भी धीरे-धीरे चुदाई कर रहा था.. जितनी देर तक उसकी मलाई निकलती रही, उसके धक्के चलते रहे और फिर वो अचानक शीला के बबलों पर धम्म से गिर गया.. दोनों गहरी गहरी साँसें ले रहे थे.. शीला उसके बालों में हाथ फेर रही थी.. टाँगें खुली पड़ी थी और शीला चित्त लेटी रही.. मदन का लंड अभी भी शीला की चूत के अंदर ही था पर अब वो धीरे-धीरे नरम होने लगा था और फिर पुच की आवाज़ के साथ उसका लंड शीला की चूत के सुराख से बाहर निकल गया.. चूत के रस और वीर्य की मिश्र मलाई जो चूत के अंदर जमा हो चुकी थी, वो बाहर निकल रही थी जो शीला की गांड की दरार पर से होती हुई बेड की चादर पर गिर रही थी..
मदन थोड़ी देर तक शीला के ऊपर ऐसे ही पड़ा रहा..
शीला ने मुसकुराते हुए कहा "आज तो मजे करवा दिए तूने.. कोई गोली-वोली खा ली थी क्या?"
मदन ने हँसते हुए कहा "अरे मेरी जान.. एक बार तुझे नंगे बदन देख लेने के बाद किसी गोली की जरूरत ही कहाँ पड़ती है..!!"
शीला रूठने की एक्टिंग करते हुए बोली "फिर भी, दुधारू औरतों जैसी आकर्षक तो नहीं लगती हूँ ना.. वो फ़िरंगन मेरी और देसी रूखी जैसी"
मदन: "हाय शीला... !!! क्या याद दिला दिया यार.. !!! बहोत मन हो रहा है.. चूचियों से दूध चूसने का बड़ा मन हो रहा है " अपने सुस्त लंड को सहलाते हुए मदन ने कहा
शीला: "जानती हूँ मदन.. दूध टपकाते बबलों के लिए तेरी जो चाह है.. इसीलिए तो मैंने सामने से रूखी को सेट किया है तेरे लिए.. !!"
मदन: "पर क्या फायदा यार.. !! वैशाली और पिंटू यहाँ पड़ोस मे हो तब उसे घर बुलाने की सोच भी नहीं सकते.. रूखी के घर उसके सास और ससुर के रहते मुमकिन नहीं होता.. और अब इस उम्र में उसे ओयो-रूम मे ले जाना अच्छा नहीं लगेगा.. वैसे भी.. एक बार के उस होटल के कांड से बाल बाल बचे है.. दोबारा हिम्मत नहीं होती"
शीला: "सच कहा तूने यार.. पहले तो राजेश भी हफ्ता भर यहाँ पड़ा रहता था.. रेणुका भी आती थी और हम सब साथ में कितने मजे करते थे.. !! वैशाली की शादी के बाद सब बंद हो गया"
मदन: "बड़ी मस्त लाइफ थी यार.. बीच बीच में रूखी का जुगाड़ भी हो जाता था और रसिक साथ आता तो तेरा भी काम हो जाता था.. पता नहीं यार, वो दिन फिर वापिस लौटकर आएंगे भी या नहीं"
शीला ने एक गहरी सांस लेकर कहा "आएंगे मदन.. जरूर लौटकर आएंगे.. मैं लाऊँगी वो सारी दिन वापस.. तू फिलहाल अपने काम पर ध्यान दे.. एक बार ये ऑर्डर खत्म हो जाए फिर मैं तुझे और कोई नया काम नहीं करने दूँगी.. बस आराम से साथ मजे करेंगे"
मदन: "पर कैसा होगा शीला? पिंटू और वैशाली के यहाँ रहते हुए कैसे होगा?"
शीला: "होगा मदन.. सब कुछ होगा.. वो सब तू मुझ पर छोड़ दे.. मैंने कुछ सोचा है इसके बारे में.. और जल्द ही हमारा काम हो जाएगा.. एक बार मैं कुछ करने की ठान लूँ फिर मैं वो करके ही रहती हूँ, तुझे तो पता है"
शीला का आत्मविश्वास देखकर मदन एक पल के लिए घबरा गया "यार कुछ उल्टा-सीधा करने की तो नहीं सोच रही तू..!!"
शीला: "पागल है क्या.. !! वैशाली और पिंटू को आंच भी नहीं आने दूँगी.. ऐसा रास्ता निकालूँगी की वह दोनों भी खुश हो जाएंगे और हमारे रास्ते के कांटा भी दूर हो जाएगा"
मदन: "तूने क्या सोचा है, यह तो तू बताएगी नहीं.. हमेशा की तरह"
शीला: "सही कहा.. नहीं बताऊँगी..बस करके दिखाऊँगी.. तू बस आम खाने से मतलब रख... गुठलियाँ गिनने की जरूरत नहीं है"
मदन ने हार मान ली "ठीक है बाबा,.. जैसा तुझे ठीक लगे.. पर जो भी करना सोच समझ कर करना"
शीला को आगोश में लेकर मदन उसे सहलाने लगा और दोनों की आँख लग गई
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बहुत ही शानदार और लाज़वाब अपडेट है पिंटू पर किसी ने हमला कर दिया है लेकिन अभी तक ये नहीं पता चला कि किसने किया है मदन को शीला पर शक था इसलिए उसने शीला से पूछ लिया लेकिन शीला के गुस्से होने ये तो पक्का हों गया कि यह हमला किसी और ने करवाया है लगता है या तो वैशाली के पहले पति ने करवाया है?????पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की.. पीयूष, राजेश और मदन विदेश के ऑर्डर के बारे में विमर्श करते है.. आखिर तय होता है की पीयूष और मदन अमरीका जाएंगे.. दोनों के आग्रह करने के बावजूद, राजेश ने यह कहते हुए जाने से इनकार कर दिया की रेणुका को सगर्भावस्था में अकेली नहीं छोड़ सकता.. हालांकि उसकी न जाने की असली वजह तो फाल्गुनी ही थी..
मदन घर लौटता है.. प्यासी शीला और मदन के बीच एक दमदार संभोग होता है.. दोनों ही अपनी पुरानी स्वतंत्रता-सभर ज़िंदगी को मिस कर रहे है.. शीला बताती है की उसने उस ज़िंदगी में वापिस लौटने की योजना बनाई है.. मदन के पूछने पर भी उसने अपनी योजना के बारे में बताया नहीं..
अब आगे..
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दूसरे दिन सुबह जब शीला दूध लेने के लिए उठी तब सब से पहले उसकी नजर रसिक के बजाए, पड़ोस मे वैशाली के घर की तरफ गया.. ताला नहीं लगा हुआ था, उसका मतलब साफ था की पिंटू लौट चुका था.. शीला ने इशारे से ही रसिक को दूर रहने के लिए कहा.. रसिक समझ गया और दूध देकर निकल लिया
०८:३० बजे जब पिंटू शीला के घर नाश्ते के लिए आया तब मदन डाइनिंग टेबल पर बैठकर नाश्ता कर रहा था
मदन ने पिंटू को देखकर खुश होते हुए कहा "अरे आओ बेटा.. कब आए.. !! पता ही नहीं चला"
पिंटू डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर बैठते हुए बोला "कल रात को आते आते काफी देर हो गई थी.. बस ही नहीं मिल रही थी"
मदन: "सही कहा, कल मुझे भी बस मिलने मे बड़ी दिक्कत हुई थी.. वैसे कैसी चल रही है नौकरी तुम्हारी?"
तब तक शीला चुपचाप आकर पिंटू के लिए नाश्ते की प्लेट परोसकर वापिस किचन में चली गई
खाते खाते पिंटू ने कहा "ठीक ही चल रही है पापा जी.. वैसे मैं इससे बेहतर नौकरी तलाश रहा हूँ"
मदन: "मेरे भी इंडस्ट्री में काफी कॉन्टेक्टस है, मैं भी एक-दो जगह बात करता हूँ.. तुम अपनी सारी डिटेल्स ईमेल कर देना मुझे"
पिंटू: "उसकी जरूरत नहीं है पापा जी, मैं खुद ढूंढ लूँगा.. कोशिश कर रहा हूँ, जल्द ही कुछ हो जाएगा"
मदन: "जैसी तुम्हारी मर्जी"
फिर दोनों मे से कोई कुछ नहीं बोला और पिंटू नाश्ता खतम कर ऑफिस के लिए रवाना हो गया
डाइनिंग टेबल से प्लेट समेत रही शीला को मदन ने पूछा
मदन: "राजेश की ऑफिस में इतनी अच्छी नौकरी तो है पिंटू की.. फिर वो क्यों बेकार में दूसरी नौकरी ढूंढ रहा होगा?"
शीला समझ रही थी की पिंटू किस वजह से दूसरी नौकरी ढूंढ रहा था.. वैशाली और राजेश के बीच जो कुछ भी हुआ था उसके बाद पिंटू राजेश से सीधे मुंह बात भी नहीं करता था.. दोनों के बीच सिर्फ काम के सिलसिले में प्रोफेशनल बातें ही होती थी.. जाहीर सी बात थी की पिंटू को राजेश बिल्कुल पसंद नहीं था और इसलिए वो दूसरी नौकरी ढूंढ रहा था..
लेकिन शीला ने इस बारे में कुछ भी नहीं कहा मदन से
शीला: "तरक्की करना तो हर कोई चाहता है.. उसमे क्या गलत है..!!"
मदन: "ये बात भी सही है" टेबल से उठते हुए मदन ने उस बात पर पूर्णविराम लगा दिया
मदन बाथरूम में नहाने के लीये चला गया और शीला अपनी योजना के बारे में सोचने लगी.. कुछ देर सोचने के बाद उसने अपना मोबाइल उठाया और फोन लगाया
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नहाकर तैयार होने के बाद, मदन बाहर निकला और शीला किचन के कामों मे व्यस्त हो गई.. पिछले दो दिनों मे पर्याप्त चुदाई मिलने से शीला आज बड़ी खुश थी.. खाना बनाते हुए वह सोच रही थी की अगर सब कुछ योजना के मुताबिक चला तो जल्द ही वह पुराने सुनहरे दिन वापिस लौट आएंगे.. और वह दोबारा मुक्त और स्वतंत्र ज़िंदगी अपनी मर्जी से जी पाएगी
खाना बनाना खत्म कर, वो बाहर बरामदे में, झूले पर बैठे बैठे धूप सेंकने लगी.. सर्दियाँ अब खतम होने पर थी पर फिर भी, ठंड का हल्का सा असर, वातावरण में अब भी मौजूद था.. झूले पर झूलते हुए, ठंडी हवा के झोंकों से, शीला की आँख लग गई..
वह कब तक सोती रही उसे पता ही नहीं चला.. अचानाक किसी ने उसके शरीर को पकड़कर हड़बड़ाया.. उसने अपनी आँख खोली तो सामने मदन खड़ा था.. गभराया हुआ.. वो कांप रहा था.. मदन को इस हाल में देखकर, शीला भी एक पल के लिए डर गई
शीला: "क्या हुआ मदन?"
मदन: "गजब हो गया शीला... अभी राजेश का फोन आया था.. !! उसने कहा की दो गुंडों ने ऑफिस में घुसकर पिंटू को बाहर खींच निकाला और उस पर जानलेवा हमला कर दिया.. !!!!"
शीला की आँखों के आगे अंधेरा सा छा गया.. !!! पैरों तले से जमीन खिसक गई
शीला: "बाप रे.. !!! कौन थे वो गुंडे?? कुछ हुआ तो नहीं पिंटू को?"
मदन: "मुझे कुछ पता नहीं है यार.. राजेश और ऑफिस के लोग मिलकर उसे अस्पताल ले गए है.. तैयार हो जा.. हमें जल्दी वहाँ पहुंचना पड़ेगा"
शीला फटाफट साड़ी बदलकर तैयार हो गई और दोनों ऑटो से सिटी हॉस्पिटल पहुँच गए
इनफार्मेशन काउंटर पर पूछताछ करने पर पता चला की पिंटू को ट्रॉमा सेंटर में दाखिल किया गया था.. बावरे होकर दोनों वहाँ पहुंचे तब उन्हें राजेश और उसकी ऑफिस के कर्मचारी वहाँ पर खड़े हुए मिले
मदन: "राजेश, कैसा हाल है पिंटू का? ज्यादा चोट आई है क्या?"
राजेश ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा "यार, जिस हिसाब से उन गुंडों ने हमला किया था, लगता है वो पिंटू को जान से मारने के इरादे से ही आए थे"
मदन बेहद घबरा गया और बोला "यार कितनी चोट आई है उसे?? कहीं वो... !!!" आगे के शब्द उसके मुंह से निकल ही नहीं पाए
राजेश: "दोनों ने चाकू से हमला किया.. पर ऑफिस के कर्मचारी तुरंत बाहर पहुँच गए.. और उन गुंडों का सामना कर उन्हें भगा दिया.. फिर भी, एक ने चाकू पिंटू की कमर में घुसा दिया.. अपना बचाव करते हुए पिंटू की हथेलियों पर भी चोट आई है.. जब हम उसे लेकर आए तब वो बेहोश था.. देखते है डॉक्टर क्या कहते है"
शीला: "पर वो लोग कौन थे?"
राजेश: "पता नहीं.. मास्क पहन रखे थे दोनों ने.. बाइक पर आए थे.. जब हम सब ने मिलकर उनका सामना किया तब वो भाग गए.. हॉस्पिटल वालों ने पुलिस को इन्फॉर्म करने के लिए कहा है.. वो सब तो मैं संभाल लूँगा.. बस पिंटू को ज्यादा चोट न आई हो"
सब बाहर बैठकर डॉक्टर के बाहर आने का इंतज़ार करने लगे..
तभी वहाँ पुलिस उन्हें ढूंढते हुए पहुंची.. मदन और राजेश उठकर उस इंस्पेक्टर की ओर गए
इंस्पेक्टर: "आप दोनों कौन?"
मदन: "सर, मैं पिंटू का ससुर हूँ.. और यह राजेश है.. पिंटू इनकी कंपनी में ही काम करता है"
इंस्पेक्टर: "हम्म.. जिन पर हमला हुआ, मतलब आपके दामाद की किसी से कोई दुश्मनी या कोई झगड़ा चल रहा था क्या?"
मदन: "ऐसा तो कुछ भी नहीं था.. बड़ा ही सीधा लड़का है वो.. !!"
इंस्पेक्टर ने राजेश की तरफ मुड़कर देखा और पूछा "शायद आप कुछ बता सकें?? ऑफिस में किसी से मन-मुटाव या किसी तरह की अनबन.. ऐसा कुछ हो तो बताइए"
राजेश: "जैसा इन्हों ने बताया.. पिंटू बेहद सीधा लड़का है.. अपने काम से मतलब रखता है.. ऑफिस के अन्य कर्मचारियों से भी उसके संबंध काफी अच्छे है"
मदन: "सर, उन हमलावरों के बारे में कुछ पता चला?"
इंस्पेक्टर: "फिलहाल तो कुछ कह नहीं सकते.. हमने जांच शुरू कर दी है.. जैसा की मुझे ऑफिस के चपरासी ने बताया.. वह हमलावर चेहरे पर मास्क लगाकर आए थे.. बाइक का नंबर भी किसी ने नोट नहीं किया है.. सिर्फ इतना पता चला ही की बाइक लाल रंग की थी.. अब उस रंग की बाइक तो इस शहर में हजारों की तादाद में होगी.. कोई पुख्ता जानकारी के बगैर इस केस मे आगे तहकीकात करना मुश्किल होगा.. वैसे जिन पर हमला हुआ है, क्या वो होश में है?"
राजेश: "जब हम यहाँ लेकर आए तब तो वो बेहोश था.. ट्रीट्मेंट चल रहा है लेकिन अब तक डॉक्टर ने हमे कुछ बताया नहीं है"
इंस्पेक्टर: "ठीक है.. यह मेरा नंबर नोट कर लीजिए.. जैसे ही उनको होश आता है, हमें कॉल कीजिएगा.. ऐसे मामलों मे अक्सर विकटीम का स्टेटमेंट सब से महत्वपूर्ण होता है.. वहीं से आगे की कड़ी मिलने की उम्मीद है.. चलता हूँ मैं.. !!"
कुछ कागजों पर मदन की साइन लेकर पुलिस वाले चले गए..
शीला: "क्या कह रही थी पुलिस? कुछ पता चला की किसने हमला किया था?"
मदन ने परेशान होकर कहा "अरे यार, एक घंटे में कहाँ से पुलिस वाले कुछ पता करेंगे..!! न उनका हुलिया पता है और ना ही उनके बाइक के नंबर के बारे में जानकारी है.. वो कह रहे थे की होश में आने पर वो लोग पिंटू का स्टेटमेंट लेने आएंगे.. वहीं से कुछ सुराख मिलने की उम्मीद है"
शीला: "अरे मदन.. तुम्हारा वो दोस्त है ना पुलिस में.. !! क्या नाम था..!! हाँ, वो तपन देसाई.. !! याद है तुझे?"
मदन: "अरे हाँ यार.. तपन तो मुझे याद ही नहीं आया.. वो काम आ सकता है हमारे"
राजेश: "हाँ, ऐसे मामलों मे जान पहचान बहुत काम आती है.. एक बार बात कर तेरे उस दोस्त से"
मदन ने तपन को फोन लगाया और पूरी घटना के बारे में बताया.. इन्स्पेक्टर तपन ने अपनी ओर से पूरी कोशिश करने का आश्वासन दिया
मदन, शीला और राजेश वैटिंग रूम मे बेसब्री से डॉक्टर के आने का इंतज़ार कर रहे थे..
आधे घंटे बाद जब डॉक्टर बाहर आए, तब मदन, शीला और राजेश के साथ ऑफिस के बाकी कर्मचारियों ने भी उन्हें घेर लिया और पूछने लगे
मदन: "डॉक्टर साहब, कैसी तबीयत है अब पिंटू की?"
डॉक्टर: "देखिए, पहले तो यह बता दूँ की उनकी जान खतरे से बाहर है.. कमर पर लगा चाकू महत्वपूर्ण अंगों को नुकसान नहीं कर पाया.. शायद हड़बड़ी में चलाया होगा चाकू.. अमूमन ऐसे मामलों मे हुए घाव जानलेवा होते है.. खून काफी बह गया था इसलिए हमें चढ़ाना पड़ा है.. हाथ में स्टीचेस लेने पड़े है.. और कमर पर भी.. उनकी हालत अभी स्थिर है"
राजेश: "वो होश में आ गया? क्या हम उससे मिल सकते है?"
डॉक्टर: "फिलहाल तो वह बेहोश है.. पर दवाई का असर कम होते ही, होश आ जाएगा.. मेरे हिसाब से आप लोगों को घबराने की कोई जरूरत नहीं है.. कुछ ही दिनों में वो ठीक हो जाएंगे.. हाँ, घर जाकर एकाद हफ्ते तक आराम करना होगा"
डॉक्टर का हाथ पकड़कर आभारवश होकर मदन ने कहा "बहोत बहोत शुक्रिया आपका सर, आपने उसकी जान बचा ली"
सब की जान में जान आई.. राजेश ने ऑफिस के अन्य कर्मचारियों को वापिस भेज दिया
मदन ने राजेश से कहा "तुम भी ऑफिस के लिए निकलो राजेश.. अब मैं और शीला यहाँ है.. और वैशाली अपने सास और ससुर के साथ आती ही होगी.. !!"
राजेश: "ठीक है.. कुछ भी काम हो तो बताना मुझे.. !!"
राजेश चला गया.. अब वैटिंग रूम मे मदन और शीला अकेले थे.. शीला बैठे बैठे किसी मैगजीन के पन्ने घुमा रही थी.. और मदन बड़े ही ध्यान से उसकी मुखमुद्रा को देख रहा था.. अजीब से विचारों का तुमुलयुद्ध चल रहा था उसके मन में..!!
पन्ने पलटते पलटते शीला का ध्यान अचानक मदन की ओर गया.. उसे महसूस हुआ, जैसे काफी देर से मदन, उसे बड़े ही अजीब तरीके से देख रहा था..
मैगजीन को टेबल पर रखकर, शीला ने मदन की आँखों मे देखा
शीला: "क्या बात है मदन.. ??? ऐसे क्यों तांक रहे थे मुझे?"
मदन ने नजरें झुका ली और कुछ बोला नहीं
शीला: "बता तो सही... क्या चल रहा है तेरे मन में?? अब तो डॉक्टर ने भी कह दिया की पिंटू खतरे से बाहर है.. फिर क्यों ऐसा मुंह बनाकर बैठा है?"
मदन ने कुछ देर सोचकर शीला के सामने देखा
मदन: "एक बात पूछूँ शीला?? सच सच बताना जो भी मैं पूछूँ"
शीला ने आश्चर्य से पूछा "अरे यार.. इतने अजीब तरीके से क्यों पेश आ रहा है.. !!! बता, क्या चल रहा है तेरे दिमाग में.. !!"
मदन ने थोड़ी सी हिचक के साथ कहा "आज जो हुआ.. मतलब पिंटू के साथ जो हुआ.. उसके पीछे कहीं.. !!"
शीला को समझ नहीं आ रहा था की मदन क्या पूछना चाह रहा था
शीला: "पहेलियाँ मत बुझा.. जो भी बोलना हो साफ साफ बोल"
मदन ने आखिर हिम्मत जुटाकर पूछ ही लिया " कल तू किसी योजना के बारे में बता रही थी.. जिससे पिंटू हमारे रास्ते का रोड़ा न बने और हम अपनी ज़िंदगी पहली की तरह गुजार सकें.. तो कहीं तूने तो.. !!" मदन फिर रुक गया
अब शीला के दिमाग की बत्ती जाली.. मदन के पूछने का असली अर्थ समझ आने पर उसके दिमाग का पारा चढ़ने लगा.. क्रोध के मारे वह थरथर कांपने लगी
शीला ने मदन का हाथ जोर से खींचते हुए कहा "इतनी गिरी हुई समझा है क्या मुझे?? तुझे पता भी है की तू क्या बोल रहा है..!!! एक माँ होकर अपनी बेटी के पति के साथ मैं ऐसा करूंगी?? तूने ऐसा सोच भी कैसे लिया?? इतने सालों में, क्या इतना ही समझ पाया तू मुझे??"
शीला का चेहरा गुस्से से तमतमाते हुए लाल हो गया.. उसकी आँखों से आँसू बहने लगे
मदन ने शीला का हाथ पकड़ लिया और कहा "यार.. तू गुस्सा मत कर.. कल तूने ही तो कहा था की तेरे दिमाग में कोई योजना चल रही थी.. मन मे शक को रखकर घुटते रहने से अच्छा मैंने पूछ ही लिया"
आग बबूला ही शीला ने मदन का हाथ झटकाकर छुड़ा लिया और पैर पटकते हुए वैटिंग रूम के बाहर चली गई.. बाहर लॉबी में जाकर उसने कूलर से ठंडा पानी पिया.. तब जाकर उसका गुस्सा थोड़ा सा शांत हुआ.. वो चलते चलते पार्किंग एरिया में आई और वहाँ छाँव मे पार्क किए हुए स्कूटर पर बैठ गई..
मदन की बात से अब तक उसका दिमाग भन्ना रहा था.. आखिर मदन ऐसी बात सोच भी कैसे सकता है.. !!
बैठे बैठे शीला सोच में पड़ गई.. आखिर किसी ने कौन से मकसद से पिंटू पर हमला किया होगा?? वैसे तो बेहद ही सीधा लड़का है.. घर से ऑफिस और ऑफिस से घर के बीच जीने वाला.. अपनी पत्नी को प्यार करने वाला.. माँ-बाप को बेहद इज्जत देने वाला.. कभी ऊंची आवाज में बात नहीं करने वाला.. !! ऐसे व्यक्ति से भला, किसी की क्या दुश्मनी हो सकती है.. !! वैसे सीधे और ईमानदार लोग, ऐसे लोगों को खटकते है जो कुछ उल्टा-सीधा करना चाहते हो और वह लोग रास्ते का रोड़ा बने हुए हो.. !! देखने जाएँ तो पिंटू शीला के लिए भी एक समस्या ही था.. पर उससे निजाद पाने के लिए इस तरह का कदम लेने के बारे मे वो कभी सोच भी नहीं सकती थी.. फिर आखिर ऐसा कौन हो सकता है जीसे पिंटू को मारने मे फायदा हो रहा हो.. !!
सोचते सोचते एक नाम शीला के दिमाग में बिजली की तरह कौंध गया.. हो सकता है की वो रसिक हो..!!! शीला की चूत के पीछे पागल रसिक के सारे गुलछर्रे, तब से बंद हो गए थे जब से पिंटू और वैशाली उनके पड़ोस में रहने आए थे.. न सुबह कुछ हो पाता था और ना ही दिन में.. !! पर क्या रसिक ऐसा कर सकता है? शीला ने अपने आप से सवाल पूछा और खुद ही जवाब दिया... बिल्कुल कर सकता है.. वासना और हवस इंसान से क्या क्या करवा सकती है वो शीला से बेहतर भला कौन जानता था.. !!
तभी पार्किंग में एक गाड़ी आकर रुकी.. और अंदर से वैशाली और उसके सास-ससुर नीचे उतरें.. वैशाली बेतहाशा रो रही थी.. शीला तुरंत उनके करीब गई.. शीला को देखकर वैशाली भागते हुए उसके पास आई और बिलख बिलखकर रोते हुए उससे लिपट गई.. उसके सास ससुर भी नजदीक खड़े थे.. दोनों के चेहरे विषाद और चिंता से लिप्त थे..
शीला ने वैशाली को ढाढ़स बांधते हुए कहा "रो मत बेटा.. पिंटू अब बिल्कुल ठीक है.. हमारी अभी डॉक्टर से बात हुई.. उसकी जान को कोई खतरा नहीं है.. कुछ ही दिनों में वो ठीक भी हो जाएगा"
वैशाई ने रोते हुए कहा "हमने क्या बिगाड़ा है किसी का जो ऊपर वाला हमें यह दिन दिखा रहा है.. !! मुझे उसे छोड़कर जाना ही नहीं चाहिए था.. सब मेरी गलती है"
वैशाली की सास ने उसकी पीठ को सहलाते हुए उसे शांत करने की कोशिश की और कहा "बेटा.. उसमे तेरी क्या गलती? खुद को दोष मत दे.. और तेरी मम्मी ने अभी कहा ना.. की वो बिल्कुल ठीक है.. फिर क्यों रो रही है.. !!! चल चुप हो जा.. और अपना मुंह धो ले.. ऐसी रोनी शक्ल बनाकर पिंटू के सामने मत जाना.. ऊपर वाले का लाख लाख शुकर है की पिंटू को कुछ हुआ नहीं.. !!"
शीला और वैशाली की सास ने मिलकर उसे शांत किया.. उसके ससुर गाड़ी से पानी की बोतल लेकर आए और वैशाली को पिलाया.. पानी पीने के बाद वह कुछ शांत हुई
वैशाली: "आप अकेले ही है मम्मी? कोई नहीं है क्या आप के साथ?"
शीला: "अभी कुछ दिन पहले तक सब यही पर थे.. पिंटू की ऑफिस वालों ने बड़ी ही बहादुरी से उन गुंडों का सामना किया..!!"
वैशाली: "पापा कहाँ है?"
शीला: "वो अंदर बैठे है.. पिंटू को मिलने की अभी इजाजत नहीं है पर डॉक्टर ने कहा है की उसके होश में आते ही हम उसे मिल पाएंगे और डरने की कोई बात नहीं है"
वैशाली ने अपना मुंह रुमाल से पोंछ लिया और तीनों चलकर वैटिंग रूम तक पहुंचे जहां मदन अपने सर पर हाथ रखकर बैठा हुआ था.. वह अपने आप को कोस रहा था की उसने कैसे शीला पर इतना बड़ा इल्जाम लगा दिया.. !!
उन तीनों को देखते ही मदन खड़ा हो गया और उसने आगे आकर वैशाली को गले लगा लिया
मदन: "पिंटू एकदम ठीक है बेटा.. शीला के बाहर जाने के बाद डॉक्टर वापिस आए थे.. उन्होंने कहा की थोड़ी ही देर में पिंटू को होश आ जाएगा.. फिर हम मिल सकते है"
पिंटू के पापा ने पूछा "मदन जी, आपने पुलिस में शिकायत दर्ज करवा दी?"
मदन: "जी, और पुलिस यहाँ आकर भी गई.. पिंटू के होश में आने के बाद उसका स्टेटमेंट लेंगे.. यहाँ का इंस्पेक्टर मेरा दोस्त है.. मैंने उससे भी बात कर ली है.. उसने कहा है की वो सब संभाल लेगा और जल्द से जल्द दोषी को पकड़ने मे मदद करेगा"
वैशाली: "कौन होगा जिसने पिंटू के साथ ऐसा किया... !!"
मदन शीला की ओर देखने लगा.. शीला ने आँखें झुका ली.. जैसा शीला को शक था.. की कहीं न कहीं इसके पीछे रसिक का हाथ होगा.. वो खुद को भी इसके लिए जिम्मेदार मानने लगी
शीला: "जो भी होगा पकड़ा जाएगा बेटा.. तपन अंकल से बात कर ली है पापा ने.. तू तो जानती है उनको"
वैशाली: "हाँ उन्हों ने हमारी बहोत मदद की थी"
तभी एक नर्स बाहर आई और कहा की पिंटू को होश आ गया था.. सब आई.सी.यू की ओर जाने लगे तो नर्स ने उन्हें रोक दिया और कहा की एक बार मे एक ही व्यक्ति अंदर जा सकता था
सब से पहले वैशाली अंदर मिलने गई
पिंटू को पट्टियाँ लगी हुई अवस्था में देखकर वह फिर से रोने लगी और जाकर पिंटू से लिपट गई
पिंटू ने सुस्त आवाज में कहा "मत रो यार.. देख, मैं एकदम ठीक हूँ.. एक दो दिन में घर आ जाऊंगा"
वैशाली ने रोते हुए कहा "सब मेरी गलती है पिंटू.. मैं क्यों तुझे छोड़कर गई?"
पिंटू ने हँसते हुए कहा "अरे पगली.. इसमें तेरी क्या गलती है? और तू यहाँ होती तो घर पर होती.. मुझ पर हमला तो ऑफिस मे हुआ..!!"
वैशाली: "फिर भी.. अब मैं तुझे छोड़कर कहीं नहीं जाऊँगी"
नर्स ने तुरंत आकर कहा की खून बहने की वजह से काफी कमजोरी आ गई है इसलिए पैशन्ट से ज्यादा बातें न करें.. पीयूष का कपाल चूमकर वैशाली बाहर आ गई..
यह तय हुआ की उस रात मदन हॉस्पिटल में रुकेगा.. बाकी चारों को उसने घर भेज दिया
शीला-वैशाली और वैशाली के सास-ससुर, शीला के घर पहुंचे.. रात का खाना खाकर सब सो गए.. पर शीला की आँखों में नींद का नामोनिशान नहीं था.. वह बेसब्री से सुबह होने का इंतज़ार कर रही थी.. रसिक के आने का इंतज़ार कर रही थी
सुबह के पाँच बजने से पहले ही शीला जाग गई.. और बरामदे मे खड़ी हो गई.. काफी देर हो गई पर रसिक के आने के कोई चिन्ह नजर नहीं आ रहे थे..
कुछ देर इंतज़ार करने के बाद उसने रसिक की साइकिल की घंटी सुनी.. और वह सचेत हो गई.. !! जैसे ही रसिक उसके घर का गेट खोलने लगा, शीला ने उसे इशारा करके बगल में वैशाली के घर की तरफ जाने के लिए कहा.. और खुद भी उस दिशा में चलने लगी..
रसिक तो खुश हो गया.. उसने सोचा की आज भाभी ने बगल वाले घर पर सेटिंग कर दिया है.. साइकिल को साइड मे लगाकर वो उस घर के अंदर जाने लगा तब तक शीला ने ताला खोल दिया था और अंदर चली गई थी.. रसिक भी उसके पीछे पीछे अंदर गया..
जैसे ही वो अंदर गया.. शीला ने अंदर से दरवाजा बंद कर दिया.. रसिक आकर शीला से लिपट गया और शीला के बबलों को मसलने लगा.. तभी जबरदस्त ताकत के साथ शीला ने उसे धक्का दिया और रसिक अपना संतुलन खोकर नीचे फर्श पर गिर गया..!!! उसके आश्चर्य के बीच, शीला भागकर किचन में गई और एक छुरी हाथ में लिए.. दौड़कर आई और रसिक की छाती पर सवार हो गई
रसिक के दिमाग ने तो काम करना ही बंद कर दिया.. !!! उसे समझ ही नहीं आ रहा था की आज अचानक शीला भाभी ऐसे क्यों पेश आ रही थी.. !!! वो कुछ सोच या समझ पाता इससे पहले शीला ने उसका गिरहबान पकड़कर उसकी आँखों के सामने चाकू की नोक रखकर रणचंडी की तरह गुर्राई
शीला: "साले मादरचोद.. मैंने तुझे इतना कुछ दिया उसका यह सिला दिया तूने? आज तो तुझे मार डालूँगी मैं.. "
अपने मजबूत हाथों से शीला की कलाई को पकड़े रखा था रसिक ने.. वो चाहता तो एक ही पल में शीला को उठाकर दूर फेंक सकता था.. पर अब तक वह इस सदमे से उभर नहीं पाया था
रसिक: "आप क्या बात कर रही हो भाभी?? क्या किया मैंने?"
शीला: "हरामखोर भड़वे.. अपने लंड की आग बुझाने के लिए तूने मेरे दामाद पर हमला कर दिया?? आज तो तुझे जान से मार दूँगी"
रसिक एक पल के लिए हक्का-बक्का रह गया.. ये क्या कह रही थी भाभी..!! उसे तो इस बारे में कुछ पता ही नहीं था
शीला का हाथ मजबूती से पकड़कर रखते हुए उसने कहा "आप क्या कह रही हो..!! इस बारे में मुझे तो कुछ पता ही नहीं है भाभी..!!"
शीला अब भी गुस्से से थरथरा रही थी, वह बोली "मुझे नादान समझने की गलती मत करना रसिक.. सब जानती हूँ मैं.. जब से मेरा दामाद और वैशाली यहाँ रहने आए है तब से तेरा सब कुछ बंद हो गया मेरे साथ.. अपना रास्ता साफ करने के लिए तूने मेरे दामाद को मारने की कोशिश की"
रसिक अब और ना सह सका.. उसने एक झटके मे शीला के हाथ से चाकू छुड़ाकर दूर फेंक दिया.. और अपना पूरा जोर लगाकर उसने शीला को झटककर नीचे फर्श पर गिरा दिया और अपने विराट जिस्म का पूरा वज़न डालते हुए शीला पर सवार हो गया
इस श्रम और क्रोध के कारण, शीला हांफ रही थी.. हर सांस के साथ उसके वक्ष ऊपर नीचे हो रहे थे
रसिक ने शीला की दोनों कलाइयों को जमीन पर दबा दिया और गुस्से से बोला "बहोत बड़ी गलती कर दी भाभी आपने.. आज तक आपने मुझे ठीक से पहचाना नहीं.. गरीब हूँ इसका यह मतलब नहीं की मेरा ईमान नहीं है.. आपको पसंद करता हूँ इसलिए आपके पीछे मंडराता रहता हूँ.. पर मैं इतना गिरा हुआ भी नहीं हूँ की चोदने के चक्कर में किसी का खून कर दूँ..!! जो भी करता हूँ आपकी मर्जी से करता हूँ.. कभी जबरदस्ती नहीं करता.. न आप के साथ.. न किसी और के साथ.. !! छोटा आदमी समझकर कुछ भी इल्जाम लगा दोगी क्या..!!"
शीला अब भी गुस्से से कांप रही थी.. अपने आप को रसिक की पकड़ से छुड़ाने की भरपूर कोशिश की उसने.. पर रसिक के जोर के आगे उसकी एक न चली
रसिक: "भाभी, मैं चुदाई का भूखा जरूर हूँ.. पर मेरे भी कुछ उसूल है.. मैं किसी चूत के पीछे इतना भी पागल नहीं हो जाता की उसकी मर्जी के बगैर कुछ करूँ या फिर उसे पाने के लिए इतना नीचा गिर जाऊँ.. चोदने के लिए मुझे भी बहोत सुराख मिल सकते है.. और मिलते भी है.. !! आप यह गलतफहमी मत पालना की आपको पाने के चक्कर में मै किसी को इस तरह नुकसान पहुंचाऊँगा"
शीला अब भी गुर्रा रही थी, उसने गुस्से से कहा "यह बता की कल तू सुबह दूध देने आया उसके बाद तू कहाँ था? और झूठ मत बोलना क्योंकी पकड़ा जाएगा.. यहाँ का इंस्पेक्टर, मदन का बचपन का दोस्त है.. एक सेकंड नहीं लगेगा मुझे, तुझे अंदर करवाने में"
रसिक ने भी गुस्से से कहा "एक बार मैंने कह दिया ना की मैंने ऐसा कुछ नहीं किया.. !!! और हाँ.. कल सुबह दूध देने के बाद मैं रूखी के मायके गया था.. उसके भाई की शादी में.. यकीन न आए तो रूखी को फोन लगाकर पूछ लीजिएगा.. और फिर भी शक हो तो मेरे मोबाइल में ढेरों तस्वीरें है जो हमने शादी की दौरान खींची थी.. और पुलिस की धमकी मुझे मत दीजिए.. जब मैंने कुछ किया ही नहीं फीर पुलिस क्या, किसी के बाप से नहीं डरता मैं.. !!"
अब शीला थोड़ी शांत हुई.. उसे भी लगा की शायद गुस्से और जल्दबाजी में उसने कुछ ज्यादती कर दी रसिक के साथ.. शीला ने अपना शरीर ढीला छोड़ दिया.. शीला का जोर कम हुआ देख रसिक ने भी अपनी पकड़ छोड़ दी और शीला के जिस्म के ऊपर से उठ गया..
अपनी साड़ी को ठीक करते हुए शीला खड़ी हुई.. तब तक रसिक ने अपने फोन की गॅलरी खोली और उसे वह तस्वीरें दिखाने लगा जो पिछले दिन शादी में खींची थी.. काफी सारे फ़ोटो थे.. रसिक और रूखी के.. उनके नन्हे बेटे के साथ.. शादी के मंडप में.. खाना खाते हुए.. बारात में नाचते हुए.. फ़ोटोज़ पर टाइम-स्टेम्प भी लगा हुआ था जो पिछले दिन की तारीख दिखा रहा था.. देखकर शीला को तसल्ली हो गई..
शर्म के मारे झेंप गई शीला.. उसकी आँखें झुक गई.. रसिक गुस्से से उसकी ओर देख रहा था
उसने रसिक के कंधे पर हाथ रखकर कहा "मुझे माफ कर दे रसिक.. अचानक यह सब हो गया तो मेरा दिमाग चलना बंद हो गया"
रसिक ने तपते हुए कहा "मतलब आप कुछ भी इल्जाम लगा दोगे मुझ पर??"
रसिक को मनाने के लिए शीला ने उसे अपनी और खींचा और बाहों में भरते हुए कहा "ठीक है बाबा.. गुस्सा थूक दे.. गलती हो गई मेरी"
लेकिन रसिक ने शीला के विशाल बबलों को अनदेखा किया.. खुद को शीला की गिरफ्त से छुड़ाया.. घर का दरवाजा खोला और गुस्से से दरवाजे को पटककर बंद किया.. शीला उसे मनाने के लिए पीछे भागी पर तक तो वो साइकिल लेकर चला भी गया.. !!
शीला अपना सिर पकड़कर सोफ़े पर बैठ गई.. बहोत बड़ी गलती हो गई.. बेचारे रसिक पर गलत शक किया और उसे नाराज कर दिया..
उसने वैशाली के घर को ताला लगाया और अपने घर चली आई..
घर आकर उसने देखा तो वैशाली जाग गई थी
शीला: "इतनी जल्दी जाग गई?"
वैशाली: "हाँ मम्मी.. जल्दी तैयार होकर हॉस्पिटल जाना है.. पापा बेचारे पूरी रात वहाँ थे.. उन्हे घर भी तो भेजना है.. पर तुम कहाँ गई थी??"
अब शीला के पास कोई जवाब नहीं था.. पर उसका शातिर दिमाग कोई न कोई रास्ता ढूंढ ही लेता था
शीला: "अरे वो रसिक आज दिखा नहीं.. इसलिए बाहर गली में जाकर उसका इंतज़ार कर रही थी... पर पता नहीं आज वो आया ही नहीं.. वो कह तो रहा था की किसी शादी में जाने वाला था.. इसलिए शायद नहीं आया होगा.. कोई बात नहीं.. मैं नुक्कड़ की दुकान से दूध लेकर आती हूँ.. तू फ्रेश हो जा, तब तक मैं दूध लेकर आती हूँ और तेरे लिए चाय बना देती हूँ..!!"
वैशाली: "ठीक है मम्मी" कहते हुए वो टोवेल लेकर बाथरूम मे घुस गई और शीला अपना पर्स लेकर दूध लेने निकली
अगला रोमांचक अपडेट पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की कविता की मदद करने के लिए शीला उसके घर पहुँच चुकी थी.. रमिलाबहन के घर फाल्गुनी से मुलाकात के बाद पीछा करने पर शीला को पता चला की फाल्गुनी और राजेश के बीच कुछ चक्कर चल रहा है..
शीला और कविता रसिक के खेत की ओर जाने के लिये निकले.. रास्ते में शीला ने कविता से पिंटू को पीयूष की कंपनी में लगवाने का काम सौंपा.. शीला की यही योजना थी, पिंटू और वैशाली को अपने रास्ते से हटाकर, अपनी पुरानी आजाद जिंदगी में लौटने का..
खेत पहुँचने पर रसिक, कविता को देखकर खुश हो गया और शीला को देखकर क्रोधित.. गुस्से में उसने शीला को लौट जाने के लिए कहा..
कविता के विनती करने पर शीला गाड़ी में वापिस जा बैठी और फिर खेत के उस कमरे में रसिक और कविता के बीच घमासान चुदाई का दौर शुरू हुआ..
अब आगे...
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करीब डेढ़ घंटा बीत चुका था कविता को गए हुए.. सूरज भी ढलते हुए शाम का आगाज दे रहा था.. शीला जानती थी की रसिक को चुदाई करने मे इतना वक्त तो लगता ही है.. शायद दोनों एक राउंड खतम करके दूसरे की तैयारी कर रहे होंगे..!!!
शीला अब बेहद बोर हो रही थी.. गाड़ी में बैठकर गाने सुनते सुनते वह ऊब चुकी थी.. वह गाड़ी से बाहर निकली और नजदीक के खेतों में सिर करने लगी.. फसल कट चुकी थी इसलिए सारे खेत वीरान थे और दूर दूर तक सब कुछ साफ नजर आ रहा था..
तब शीला का ध्यान थोड़े दूर बने एक छोटे से टीले पर गया.. वहाँ पर खेत-मजदूर जैसे दिखने वाले तीन लोग, बनियान और लूँगी पहने बैठे थे और छोटी सी पारदर्शक बोतल से कुछ पी रहे थे.. जाहीर सी बात थी की तीनों देसी ठर्रा पी रहे थे..
अचानक उनमें से एक की नजर शीला की ओर गई..!! ऐसी सुमसान जगह पर इतनी सुंदर गदराई औरत का होना कोई सामान्य बात तो थी नहीं.. उस आदमी ने अपने साथियों को यह बात बताई और अब तीनों टकटकी लगाकर शीला को देखने लगे
शीला को बड़ा ही अटपटा सा लगने लगा.. उसने अपनी नजर घुमाई और गाड़ी की ओर चलने लगी.. थोड़ी दूर चलते रहने के बाद उसने पीछे की और देखा.. वह तीनों दूर से उसके पीछे चले आ रहे थे.. अपना लंड खुजाते हुए..
इतना देखते ही शीला के तो होश ही उड़ गए..!!! तीनों की मंछा साफ थी, जो शीला को भलीभाँति समझ आ रही थी.. अब शीला का दिमाग तेजी से चलने लगा.. गाड़ी कुछ ही दूरी पर थी.. लेकिन वहाँ पहुँच कर भी शीला सुरक्षित नहीं थी.. क्योंकि गाड़ी के आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था..
शीला ने अब अपनी दिशा बदली और वो रसिक के खेत की तरफ तेजी से चलने लगी.. वह तीनों भी अब शीला का पीछा करने लगे.. शीला की जान हलक तक आ गई.. वो अब लगभग भागने लगी थी.. उसकी सांसें फूलने लगी थी.. पीछे मुड़कर देखा तो वह तीनों भी अब तेजी से शीला की तरफ आ रहे थे और बीच का अंतर धीरे धीरे कम होता जा रहा था
अपना पूरा जोर लगाते हुए शीला ने दौड़ना शुरू कर दिया.. कुछ ही आगे जाते हुए रसिक का कमरा नजर आने लगा.. शीला ने और जोर लगाया और भागते हुए रसिक के कमरे तक पहुँच गई और दरवाजा खटखटाने लगी
काफी देर तक दरवाजा न खुलने पर शीला बावरी हो गई.. वो पागलों की तरह दस्तक देती ही रही..!! उसने देखा की वह तीनों लोग अब रुक चुके थे.. और दूर से शीला को दरवाजा खटखटाते हुए देख रहे थे
थोड़ी देर के बाद दरवाजा खुला और कविता के साथ रसिक बाहर आया
कविता: "क्या हुआ भाभी?? आप इतनी हांफ क्यों रही हो?"
शीला ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा "वो.. वो तो.. कुछ नहीं.. बस गाड़ी में अकेले बैठे बैठे डर लग रहा था.. शाम भी ढल चुकी है और कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा.. हमें अब चलना चाहिए"
रसिक को शीला के पास खड़ा देख, वह तीनों उलटे पैर लौट गए.. यह देखकर शीला की जान में जान आई..!! लेकिन वो कविता को इस बारे में बताकर डराना नहीं चाहती थी
कविता: "मैं बस वापिस ही आ रही थी.. चलिए भाभी"
कविता ने शीला का हाथ पकड़ा और दोनों गाड़ी की तरफ जाने लगी.. रसिक दोनों को दूर तक जाते हुए देखता रहा
गाड़ी में पहुंचकर शीला ने चैन की सांस ली.. कविता ने गाड़ी स्टार्ट की और कुछ ही मिनटों में उनकी गाड़ी हाइवे पर दौड़ रही थी
कविता के चेहरे पर संतोष की झलक साफ नजर आ रही थी.. लंबे अवकाश के बाद जब पलंग-तोड़ चुदाई करने का मौका मिलें तब किसी भी औरत के चेहरे पर चमक आ ही जाती है
करीब आधे घंटे तक दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोला
शीला अब धीरे धीरे सामान्य हो रही थी.. अपने पुराने रंग में आते हुए उसने कविता से पूछा
शीला: "कैसा रहा कविता?"
कविता शरमा गई.. उसने जवाब नहीं दिया
शीला ने उसे कुहनी मारते हुए शरारती अंदाज में पूछा "अरे शरमा क्यों रही है..!!! बोल तो सही कैसा रहा रसिक के साथ?"
कविता ने मुस्कुराकर जवाब दिया "मुझ से ज्यादा आप बेहतर जानती हो रसिक के बारे में.. मज़ा आ गया भाभी.. ऐसा लगा जैसे जनम जनम की भूख संतुष्ट हो गई हो"
शीला ने लंबी सांस लेते हुए कहा "इस भूख का यही तो रोना है.. जब संतुष्ट हो जाते है तब लगता है जैसे हमेशा के लिए भूख शांत हो गई.. पर कुछ ही दिनों में फिर से रंग दिखाने लग जाती है"
कविता: "मैं आगे के बारे में सोचना नहीं चाहती.. बस आज की खुशी में ही जीना चाहती हूँ.. भविष्य का सोचकर अभी का मज़ा क्यों खराब करूँ? वाकई में बहोत मज़ा आया.. मेरा तो अंदर सारा छील गया है.. बाप रे..!!! कितना मोटा है रसिक का.. देखने में तो बड़ा है ही.. पर जब अंदर जाकर खुदाई करता है तब उसकी असली साइज़ का अंदाजा लगता है"
शीला: "हम्म.. तो आखिरकार तूने रसिक का अंदर ले ही लिया.. बड़ी कामिनी चीज है रसिक का लंड.. एक बार स्वाद लग जाए फिर कोई और पसंद ही नहीं आता"
कविता: "सही कहा आपने भाभी.. जहां तक पीयूष का लंड जाता है.. वहाँ तक तो इस कमीने की जीभ ही पहुँच जाती है.. फिर जब उसने अपना गधे जैसा अंदर डाला.. आहाहाहाहा क्या बताऊँ..!! इतना मज़ा आया की बात मत पूछो"
दोनों के बीच ऐसी ही बातों का सिलसिला चलता रहा और करीब दो घंटों के बाद वह कविता के घर पहुँच गए..
दोनों सफर के कारण थके हुए थे.. कविता तो ज्यादा ही थकी हुई थी.. रसिक के प्रहारों के कारण उसके अंग अंग में मीठा सा दर्द हो रहा था..
कविता की नौकरानी ने खाना तैयार कर दिया था.. दोनों ने बैठकर खाना खतम किया
कविता: "भाभी, मेरा तो पूरा शरीर दर्द कर रहा है.. सोच रही हूँ की गरम पानी से शावर ले लूँ.. आप बेडरूम मे रिलेक्स कीजिए तब तक मैं फ्रेश होकर आती हूँ.. फिर आराम से बातें करते करते सो जाएंगे"
शीला नाइटी पहनकर पीयूष-कविता के बेडरूम मे आई.. बिस्तर के सामने ६५ इंच का बड़ा सा टीवी लगा हुआ था.. शीला ने रिमोट हाथ में लिया और चेनल बदलते हुए कविता का इंतज़ार करने लगी
थोड़ी देर में कविता स्काइ-ब्लू कलर की पतली पारदर्शक नाइटी पहनकर बेडरूम मे आइ और शीला के बगल में लेट गई.. कविता के गले पर रसिक के काटने के निशान साफ नजर आ रहे थे.. शीला यह देखकर मुस्कुराई
शीला के बगल में लेटी हुई कविता उससे लिपट गई.. और शीला के गालों को चूमते हुए बोली
कविता: "आपने आज मेरी बहोत मदद की भाभी.. वहाँ अकेले जाने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती थी.. आप थे इसलिए मेरी हिम्मत हुई"
शीला और कविता बेडरूम में बिस्तर पर लेटे हुए फिल्म देख रही थीं.. कविता को नींद आने लगी थी और बातें करते करते उसकी आँखें धीरे धीरे ढलने लगी थी.. सोने से पहले कविता ने लाइट बंद करके नाइट लैम्प ऑन कर दिया.. शीला किसी दूसरे चैनल पर इंग्लिश फिल्म देखने लगी.. फिल्म में काफी खुलापन और चुदाई के सीन थे..
नींद में कविता ने एक घुटना ऊपर उठाया तो अनायास ही उसकी रेश्मी नाइटी फ़िसल कर घुटने के ऊपर तक सरक गई.. टीवी और मंद लाइट की रोशनी में उसकी दूधिया रंग की जाँघ चमक रही थी.. अब शीला का ध्यान फिल्म में ना होकर कविता के जिस्म पर था और रह-रह कर उसकी नज़र कविता के गोरे जिस्म पर टिक जाती थी.. कविता की खूबसूरत जाँघें उसे मादक लग रही थी.. कुछ तो फिल्म के चुदाई सीन का असर था और कुछ कविता की खूबसूरती का.. शीला बेहद चुदासी हो रही थी और आज वो कविता के साथ अपनी आग बुझाने वाली थी और उसे भी खुश करना चाहती थी..कविता उसका इतना बड़ा काम जो करने वाली थी
शीला ने टीवी बंद किया और वहीं कविता के पास सो गई.. थोड़ी देर तक बिना कोई हरकत किये वो लेटी रही.. फिर उसने अपना हाथ कविता के उठे हुए घुटने वाली जाँघ पर रख दिया.. हाथ रख कर वो ऐसे ही लेटी रही, एक दम स्थिर.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने अपने हाथ को कविता की जाँघ पर फिराना शुरू कर दिया.. हाथ भी इतना हल्का कि सिर्फ़ उंगलियाँ ही कविता को छू रही थी, हथेली बिल्कुल भी नहीं.. फिर उसने हल्के हाथों से कविता की नाइटी को पूरा ऊपर कर दिया.. अब कविता की पैंटी भी साफ़ नज़र आ रही थी.. शीला की उंगलियाँ अब कविता के घुटनों से होती हुई उसकी पैंटी तक जाती और फिर वापस ऊपर घुटनों पर आ जाती..
यही सब तकरीबन दो-तीन मिनट तक चलता रहा.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने कविता की पैंटी को छूना शुरू कर दिया लेकिन तरीका वही था.. घुटनों से पैंटी तक उंगलियाँ परेड कर रही थी.. अब शीला धीरे से उठी और उसने अपनी नाइटी और ब्रा उतार दी, और सिर्फ़ पैंटी में कविता के पास बैठ गई.. कविता की नाइटी में आगे कि तरफ़ बटन लगे हुए थे.. शीला ने बिल्कुल हल्के हाथों से बटन खोल दिये.. फिर नाइटी को हटाया तो कविता के गोरे चिट्टे मम्मे नज़र आने लगे.. अब शीला के दोनों हाथ मसरूफ हो गये थे.. उसके एक हाथ की उंगलियाँ कविता की जाँघ और दूसरे हाथ की उंगलियाँ कविता के मम्मों को सहला रही थी.. उसकी उंगलियाँ अब कविता को किसी मोर-पंख की तरह लग रही थीं.. कविता अब जाग चुकी थी और उसे बड़ा अच्छा लग रहा था, इसलिये बिना हरकत लेटी रही.. वो भी इस खेल को रोकना नहीं चाहती थी..
अब शीला ने झुककर कविता की चुची को किस किया.. फिर उठी और कविता की टाँगों के बीच जाकर बैठ गई.. कविता को अपनी जाँघ पर गर्म हवा महसूस हो रही थी.. वो समझ गई कि शीला की साँसें हैं.. शीला कविता की जाँघ को अपने होंठों से छू रही थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे वो अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी.. अब वही साँसें कविता को अपनी पैंटी पर महसूस होने लगीं, लेकिन उसे नीचे दिखायी नहीं दे रहा था.. वैसे भी उसने अभी तक आँखें नहीं खोली थी..
अब शीला ने अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और उसे कविता की पतली सी पैंटी में से झाँक रही गरमागरम चूत की दरार पर टिका दी.. कुछ देर ऐसे ही उसने अपनी जीभ को पैंटी पर ऊपर-नीचे फिराया.. कविता की पैंटी शीला के थूक से और चूत से निकाल रहे पानी से भीगने लगी थी.. अचानक शीला ने कविता की थाँग पैंटी को साइड में किया और कविता की नंगी चूत पर अपने होंठ रख दिये.. कविता से और बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी गाँड उठा दी, और दोनों हाथों से शीला के सिर को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत से चिपका लिया.. शीला की तो दिल की मुराद पूरी हो गई थी! अब कोई डर नहीं था! वो जानती थी कि अब कविता सब कुछ करने को तैयार है - और आज की रात रंगीन होने वाली थी..
शीला ने अपना मुँह उठाया और कविता की पैंटी को दोनों हाथों में पकड़ कर खींचने लगी.. कविता ने भी अपनी गाँड उठा कर उसकी मदद की.. फिर कविता ने अपनी नाइटी भी उतार फेंकी और शीला से लिपट गई.. शीला ने भी अपनी पैंटी उतारी और अब दोनों बिल्कुल नंगी एक दूसरे के होंठ चूस रही थीं.. दोनों के मम्मे एक दूसरे से उलझ रहे थे.. दोनों ने एक दूसरे की टाँगों में अपनी टाँगें कैंची की तरह फंसा रखी थीं और शीला अपनी कमर को झटका देकर कविता की चूत पर अपनी चूत लगा रही थी, जैसे कि उसे चोद रही हो.. कविता भी चुदाई के नशे में चूर हो चुकी थी और उसने शीला की चूत में एक उंगली घुसा दी.. अब शीला ने कविता को नीचे गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई.. शीला ने कविता के मम्मों को चूसना शुरू किया.. उसके हाथ कविता के जिस्म से खेल रहे थे..
कविता अपने मम्मे चुसवाने के बाद शीला के ऊपर आ गई और नीचे उतरती चली गई.. शीला के मम्मों को चूसकर उसकी नाभि से होते हुए उसकी ज़ुबान शीला की चूत में घुस गई.. शीला भी अपनी गाँड उठा-उठा कर कविता का साथ दे रही थी.. काफी देर तक शीला की चूत चूसने के बाद कविता शीला के पास आ कर लेट गई और उसके होंठ चूसने लगी..
अब शीला ने कविता के मम्मों को दबाया और उन्हें अपने मुँह में ले लिया - शीला का एक हाथ कविता के मम्मों पर और दूसरा उसकी चूत पर था.. उसकी उंगलियाँ कविता की चूत के अंदर खलबली मचा रही थी.. कविता एक दम निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी और उसके मुँह से अजीब-अजीब आवाज़ें आने लगी.. तभी शीला नीचे की तरफ़ गई और कविता की चूत को चूसना शुरू कर दिया.. अपने दोनों हाथों से उसने चूत को फैलाया और उसमें दिख रहे दाने को मुँह में ले लिया और उस पर जीभ रगड़-रगड़ कर चूसने लगी..
कविता तो जैसे पागल हो रही थी.. उसकी गाँड ज़ोर-ज़ोर से ऊपर उठती और एक आवाज़ के सथ बेड पर गिर जाती, जैसे कि वो अपनी गाँड को बिस्तर पर पटक रही हो.. फिर उसने अचानक शीला के सिर को पकड़ा और अपनी चूत में और अंदर ढकेल दिया.. उसकी गाँड तो जैसे हवा में तैर रही थी और शीला लगभग बैठी हुई उसकी चूत खा रही थी.. वो समझ गई कि अब कविता झड़ने वाली है और उसने तेज़ी से अपना मुँह हटाया और दो उंगलियाँ कविता की चूत के एक दम अंदर तक घुसेड़ दी..
उंगलियों के दो तीन ज़बरदस्त झटकों के बाद कविता की चूत से जैसे नाला बह निकला.. पूरा बिस्तर उसके पानी से गीला हो गया..
शीला ने एक बार फिर अपनी टाँगें कविता की टाँगों में कैंची की तरह डाल कर अपनी चूत को कविता की चूत पर रख दिया और ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी, जैसे कि वो कविता को चोद रही हो.. दोनों कि चूत एक दूसरे से रगड़ रही थी और शीला कविता के ऊपर चढ़ कर उसकी चुदाई कर रही थी..
कविता का भी बुरा हाल था और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर शीला का साथ दे रही थी.. तभी शीला ने ज़ोर से आवाज़ निकाली और कविता की चूत पर दबाव बढ़ा दिया.. फिर तीन चार ज़ोरदार भारी भरकम धक्के मार कर वो शाँत हो गई.. उसकी चूत का सारा पानी अब कविता की चूत को नहला रहा था.. फिर दोनों उसी हालत में नंगी सो गईं..
Very erotic sexyपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की कविता की मदद करने के लिए शीला उसके घर पहुँच चुकी थी.. रमिलाबहन के घर फाल्गुनी से मुलाकात के बाद पीछा करने पर शीला को पता चला की फाल्गुनी और राजेश के बीच कुछ चक्कर चल रहा है..
शीला और कविता रसिक के खेत की ओर जाने के लिये निकले.. रास्ते में शीला ने कविता से पिंटू को पीयूष की कंपनी में लगवाने का काम सौंपा.. शीला की यही योजना थी, पिंटू और वैशाली को अपने रास्ते से हटाकर, अपनी पुरानी आजाद जिंदगी में लौटने का..
खेत पहुँचने पर रसिक, कविता को देखकर खुश हो गया और शीला को देखकर क्रोधित.. गुस्से में उसने शीला को लौट जाने के लिए कहा..
कविता के विनती करने पर शीला गाड़ी में वापिस जा बैठी और फिर खेत के उस कमरे में रसिक और कविता के बीच घमासान चुदाई का दौर शुरू हुआ..
अब आगे...
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करीब डेढ़ घंटा बीत चुका था कविता को गए हुए.. सूरज भी ढलते हुए शाम का आगाज दे रहा था.. शीला जानती थी की रसिक को चुदाई करने मे इतना वक्त तो लगता ही है.. शायद दोनों एक राउंड खतम करके दूसरे की तैयारी कर रहे होंगे..!!!
शीला अब बेहद बोर हो रही थी.. गाड़ी में बैठकर गाने सुनते सुनते वह ऊब चुकी थी.. वह गाड़ी से बाहर निकली और नजदीक के खेतों में सिर करने लगी.. फसल कट चुकी थी इसलिए सारे खेत वीरान थे और दूर दूर तक सब कुछ साफ नजर आ रहा था..
तब शीला का ध्यान थोड़े दूर बने एक छोटे से टीले पर गया.. वहाँ पर खेत-मजदूर जैसे दिखने वाले तीन लोग, बनियान और लूँगी पहने बैठे थे और छोटी सी पारदर्शक बोतल से कुछ पी रहे थे.. जाहीर सी बात थी की तीनों देसी ठर्रा पी रहे थे..
अचानक उनमें से एक की नजर शीला की ओर गई..!! ऐसी सुमसान जगह पर इतनी सुंदर गदराई औरत का होना कोई सामान्य बात तो थी नहीं.. उस आदमी ने अपने साथियों को यह बात बताई और अब तीनों टकटकी लगाकर शीला को देखने लगे
शीला को बड़ा ही अटपटा सा लगने लगा.. उसने अपनी नजर घुमाई और गाड़ी की ओर चलने लगी.. थोड़ी दूर चलते रहने के बाद उसने पीछे की और देखा.. वह तीनों दूर से उसके पीछे चले आ रहे थे.. अपना लंड खुजाते हुए..
इतना देखते ही शीला के तो होश ही उड़ गए..!!! तीनों की मंछा साफ थी, जो शीला को भलीभाँति समझ आ रही थी.. अब शीला का दिमाग तेजी से चलने लगा.. गाड़ी कुछ ही दूरी पर थी.. लेकिन वहाँ पहुँच कर भी शीला सुरक्षित नहीं थी.. क्योंकि गाड़ी के आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था..
शीला ने अब अपनी दिशा बदली और वो रसिक के खेत की तरफ तेजी से चलने लगी.. वह तीनों भी अब शीला का पीछा करने लगे.. शीला की जान हलक तक आ गई.. वो अब लगभग भागने लगी थी.. उसकी सांसें फूलने लगी थी.. पीछे मुड़कर देखा तो वह तीनों भी अब तेजी से शीला की तरफ आ रहे थे और बीच का अंतर धीरे धीरे कम होता जा रहा था
अपना पूरा जोर लगाते हुए शीला ने दौड़ना शुरू कर दिया.. कुछ ही आगे जाते हुए रसिक का कमरा नजर आने लगा.. शीला ने और जोर लगाया और भागते हुए रसिक के कमरे तक पहुँच गई और दरवाजा खटखटाने लगी
काफी देर तक दरवाजा न खुलने पर शीला बावरी हो गई.. वो पागलों की तरह दस्तक देती ही रही..!! उसने देखा की वह तीनों लोग अब रुक चुके थे.. और दूर से शीला को दरवाजा खटखटाते हुए देख रहे थे
थोड़ी देर के बाद दरवाजा खुला और कविता के साथ रसिक बाहर आया
कविता: "क्या हुआ भाभी?? आप इतनी हांफ क्यों रही हो?"
शीला ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा "वो.. वो तो.. कुछ नहीं.. बस गाड़ी में अकेले बैठे बैठे डर लग रहा था.. शाम भी ढल चुकी है और कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा.. हमें अब चलना चाहिए"
रसिक को शीला के पास खड़ा देख, वह तीनों उलटे पैर लौट गए.. यह देखकर शीला की जान में जान आई..!! लेकिन वो कविता को इस बारे में बताकर डराना नहीं चाहती थी
कविता: "मैं बस वापिस ही आ रही थी.. चलिए भाभी"
कविता ने शीला का हाथ पकड़ा और दोनों गाड़ी की तरफ जाने लगी.. रसिक दोनों को दूर तक जाते हुए देखता रहा
गाड़ी में पहुंचकर शीला ने चैन की सांस ली.. कविता ने गाड़ी स्टार्ट की और कुछ ही मिनटों में उनकी गाड़ी हाइवे पर दौड़ रही थी
कविता के चेहरे पर संतोष की झलक साफ नजर आ रही थी.. लंबे अवकाश के बाद जब पलंग-तोड़ चुदाई करने का मौका मिलें तब किसी भी औरत के चेहरे पर चमक आ ही जाती है
करीब आधे घंटे तक दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोला
शीला अब धीरे धीरे सामान्य हो रही थी.. अपने पुराने रंग में आते हुए उसने कविता से पूछा
शीला: "कैसा रहा कविता?"
कविता शरमा गई.. उसने जवाब नहीं दिया
शीला ने उसे कुहनी मारते हुए शरारती अंदाज में पूछा "अरे शरमा क्यों रही है..!!! बोल तो सही कैसा रहा रसिक के साथ?"
कविता ने मुस्कुराकर जवाब दिया "मुझ से ज्यादा आप बेहतर जानती हो रसिक के बारे में.. मज़ा आ गया भाभी.. ऐसा लगा जैसे जनम जनम की भूख संतुष्ट हो गई हो"
शीला ने लंबी सांस लेते हुए कहा "इस भूख का यही तो रोना है.. जब संतुष्ट हो जाते है तब लगता है जैसे हमेशा के लिए भूख शांत हो गई.. पर कुछ ही दिनों में फिर से रंग दिखाने लग जाती है"
कविता: "मैं आगे के बारे में सोचना नहीं चाहती.. बस आज की खुशी में ही जीना चाहती हूँ.. भविष्य का सोचकर अभी का मज़ा क्यों खराब करूँ? वाकई में बहोत मज़ा आया.. मेरा तो अंदर सारा छील गया है.. बाप रे..!!! कितना मोटा है रसिक का.. देखने में तो बड़ा है ही.. पर जब अंदर जाकर खुदाई करता है तब उसकी असली साइज़ का अंदाजा लगता है"
शीला: "हम्म.. तो आखिरकार तूने रसिक का अंदर ले ही लिया.. बड़ी कामिनी चीज है रसिक का लंड.. एक बार स्वाद लग जाए फिर कोई और पसंद ही नहीं आता"
कविता: "सही कहा आपने भाभी.. जहां तक पीयूष का लंड जाता है.. वहाँ तक तो इस कमीने की जीभ ही पहुँच जाती है.. फिर जब उसने अपना गधे जैसा अंदर डाला.. आहाहाहाहा क्या बताऊँ..!! इतना मज़ा आया की बात मत पूछो"
दोनों के बीच ऐसी ही बातों का सिलसिला चलता रहा और करीब दो घंटों के बाद वह कविता के घर पहुँच गए..
दोनों सफर के कारण थके हुए थे.. कविता तो ज्यादा ही थकी हुई थी.. रसिक के प्रहारों के कारण उसके अंग अंग में मीठा सा दर्द हो रहा था..
कविता की नौकरानी ने खाना तैयार कर दिया था.. दोनों ने बैठकर खाना खतम किया
कविता: "भाभी, मेरा तो पूरा शरीर दर्द कर रहा है.. सोच रही हूँ की गरम पानी से शावर ले लूँ.. आप बेडरूम मे रिलेक्स कीजिए तब तक मैं फ्रेश होकर आती हूँ.. फिर आराम से बातें करते करते सो जाएंगे"
शीला नाइटी पहनकर पीयूष-कविता के बेडरूम मे आई.. बिस्तर के सामने ६५ इंच का बड़ा सा टीवी लगा हुआ था.. शीला ने रिमोट हाथ में लिया और चेनल बदलते हुए कविता का इंतज़ार करने लगी
थोड़ी देर में कविता स्काइ-ब्लू कलर की पतली पारदर्शक नाइटी पहनकर बेडरूम मे आइ और शीला के बगल में लेट गई.. कविता के गले पर रसिक के काटने के निशान साफ नजर आ रहे थे.. शीला यह देखकर मुस्कुराई
शीला के बगल में लेटी हुई कविता उससे लिपट गई.. और शीला के गालों को चूमते हुए बोली
कविता: "आपने आज मेरी बहोत मदद की भाभी.. वहाँ अकेले जाने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती थी.. आप थे इसलिए मेरी हिम्मत हुई"
शीला और कविता बेडरूम में बिस्तर पर लेटे हुए फिल्म देख रही थीं.. कविता को नींद आने लगी थी और बातें करते करते उसकी आँखें धीरे धीरे ढलने लगी थी.. सोने से पहले कविता ने लाइट बंद करके नाइट लैम्प ऑन कर दिया.. शीला किसी दूसरे चैनल पर इंग्लिश फिल्म देखने लगी.. फिल्म में काफी खुलापन और चुदाई के सीन थे..
नींद में कविता ने एक घुटना ऊपर उठाया तो अनायास ही उसकी रेश्मी नाइटी फ़िसल कर घुटने के ऊपर तक सरक गई.. टीवी और मंद लाइट की रोशनी में उसकी दूधिया रंग की जाँघ चमक रही थी.. अब शीला का ध्यान फिल्म में ना होकर कविता के जिस्म पर था और रह-रह कर उसकी नज़र कविता के गोरे जिस्म पर टिक जाती थी.. कविता की खूबसूरत जाँघें उसे मादक लग रही थी.. कुछ तो फिल्म के चुदाई सीन का असर था और कुछ कविता की खूबसूरती का.. शीला बेहद चुदासी हो रही थी और आज वो कविता के साथ अपनी आग बुझाने वाली थी और उसे भी खुश करना चाहती थी..कविता उसका इतना बड़ा काम जो करने वाली थी
शीला ने टीवी बंद किया और वहीं कविता के पास सो गई.. थोड़ी देर तक बिना कोई हरकत किये वो लेटी रही.. फिर उसने अपना हाथ कविता के उठे हुए घुटने वाली जाँघ पर रख दिया.. हाथ रख कर वो ऐसे ही लेटी रही, एक दम स्थिर.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने अपने हाथ को कविता की जाँघ पर फिराना शुरू कर दिया.. हाथ भी इतना हल्का कि सिर्फ़ उंगलियाँ ही कविता को छू रही थी, हथेली बिल्कुल भी नहीं.. फिर उसने हल्के हाथों से कविता की नाइटी को पूरा ऊपर कर दिया.. अब कविता की पैंटी भी साफ़ नज़र आ रही थी.. शीला की उंगलियाँ अब कविता के घुटनों से होती हुई उसकी पैंटी तक जाती और फिर वापस ऊपर घुटनों पर आ जाती..
यही सब तकरीबन दो-तीन मिनट तक चलता रहा.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने कविता की पैंटी को छूना शुरू कर दिया लेकिन तरीका वही था.. घुटनों से पैंटी तक उंगलियाँ परेड कर रही थी.. अब शीला धीरे से उठी और उसने अपनी नाइटी और ब्रा उतार दी, और सिर्फ़ पैंटी में कविता के पास बैठ गई.. कविता की नाइटी में आगे कि तरफ़ बटन लगे हुए थे.. शीला ने बिल्कुल हल्के हाथों से बटन खोल दिये.. फिर नाइटी को हटाया तो कविता के गोरे चिट्टे मम्मे नज़र आने लगे.. अब शीला के दोनों हाथ मसरूफ हो गये थे.. उसके एक हाथ की उंगलियाँ कविता की जाँघ और दूसरे हाथ की उंगलियाँ कविता के मम्मों को सहला रही थी.. उसकी उंगलियाँ अब कविता को किसी मोर-पंख की तरह लग रही थीं.. कविता अब जाग चुकी थी और उसे बड़ा अच्छा लग रहा था, इसलिये बिना हरकत लेटी रही.. वो भी इस खेल को रोकना नहीं चाहती थी..
अब शीला ने झुककर कविता की चुची को किस किया.. फिर उठी और कविता की टाँगों के बीच जाकर बैठ गई.. कविता को अपनी जाँघ पर गर्म हवा महसूस हो रही थी.. वो समझ गई कि शीला की साँसें हैं.. शीला कविता की जाँघ को अपने होंठों से छू रही थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे वो अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी.. अब वही साँसें कविता को अपनी पैंटी पर महसूस होने लगीं, लेकिन उसे नीचे दिखायी नहीं दे रहा था.. वैसे भी उसने अभी तक आँखें नहीं खोली थी..
अब शीला ने अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और उसे कविता की पतली सी पैंटी में से झाँक रही गरमागरम चूत की दरार पर टिका दी.. कुछ देर ऐसे ही उसने अपनी जीभ को पैंटी पर ऊपर-नीचे फिराया.. कविता की पैंटी शीला के थूक से और चूत से निकाल रहे पानी से भीगने लगी थी.. अचानक शीला ने कविता की थाँग पैंटी को साइड में किया और कविता की नंगी चूत पर अपने होंठ रख दिये.. कविता से और बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी गाँड उठा दी, और दोनों हाथों से शीला के सिर को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत से चिपका लिया.. शीला की तो दिल की मुराद पूरी हो गई थी! अब कोई डर नहीं था! वो जानती थी कि अब कविता सब कुछ करने को तैयार है - और आज की रात रंगीन होने वाली थी..
शीला ने अपना मुँह उठाया और कविता की पैंटी को दोनों हाथों में पकड़ कर खींचने लगी.. कविता ने भी अपनी गाँड उठा कर उसकी मदद की.. फिर कविता ने अपनी नाइटी भी उतार फेंकी और शीला से लिपट गई.. शीला ने भी अपनी पैंटी उतारी और अब दोनों बिल्कुल नंगी एक दूसरे के होंठ चूस रही थीं.. दोनों के मम्मे एक दूसरे से उलझ रहे थे.. दोनों ने एक दूसरे की टाँगों में अपनी टाँगें कैंची की तरह फंसा रखी थीं और शीला अपनी कमर को झटका देकर कविता की चूत पर अपनी चूत लगा रही थी, जैसे कि उसे चोद रही हो.. कविता भी चुदाई के नशे में चूर हो चुकी थी और उसने शीला की चूत में एक उंगली घुसा दी.. अब शीला ने कविता को नीचे गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई.. शीला ने कविता के मम्मों को चूसना शुरू किया.. उसके हाथ कविता के जिस्म से खेल रहे थे..
कविता अपने मम्मे चुसवाने के बाद शीला के ऊपर आ गई और नीचे उतरती चली गई.. शीला के मम्मों को चूसकर उसकी नाभि से होते हुए उसकी ज़ुबान शीला की चूत में घुस गई.. शीला भी अपनी गाँड उठा-उठा कर कविता का साथ दे रही थी.. काफी देर तक शीला की चूत चूसने के बाद कविता शीला के पास आ कर लेट गई और उसके होंठ चूसने लगी..
अब शीला ने कविता के मम्मों को दबाया और उन्हें अपने मुँह में ले लिया - शीला का एक हाथ कविता के मम्मों पर और दूसरा उसकी चूत पर था.. उसकी उंगलियाँ कविता की चूत के अंदर खलबली मचा रही थी.. कविता एक दम निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी और उसके मुँह से अजीब-अजीब आवाज़ें आने लगी.. तभी शीला नीचे की तरफ़ गई और कविता की चूत को चूसना शुरू कर दिया.. अपने दोनों हाथों से उसने चूत को फैलाया और उसमें दिख रहे दाने को मुँह में ले लिया और उस पर जीभ रगड़-रगड़ कर चूसने लगी..
कविता तो जैसे पागल हो रही थी.. उसकी गाँड ज़ोर-ज़ोर से ऊपर उठती और एक आवाज़ के सथ बेड पर गिर जाती, जैसे कि वो अपनी गाँड को बिस्तर पर पटक रही हो.. फिर उसने अचानक शीला के सिर को पकड़ा और अपनी चूत में और अंदर ढकेल दिया.. उसकी गाँड तो जैसे हवा में तैर रही थी और शीला लगभग बैठी हुई उसकी चूत खा रही थी.. वो समझ गई कि अब कविता झड़ने वाली है और उसने तेज़ी से अपना मुँह हटाया और दो उंगलियाँ कविता की चूत के एक दम अंदर तक घुसेड़ दी..
उंगलियों के दो तीन ज़बरदस्त झटकों के बाद कविता की चूत से जैसे नाला बह निकला.. पूरा बिस्तर उसके पानी से गीला हो गया..
शीला ने एक बार फिर अपनी टाँगें कविता की टाँगों में कैंची की तरह डाल कर अपनी चूत को कविता की चूत पर रख दिया और ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी, जैसे कि वो कविता को चोद रही हो.. दोनों कि चूत एक दूसरे से रगड़ रही थी और शीला कविता के ऊपर चढ़ कर उसकी चुदाई कर रही थी..
कविता का भी बुरा हाल था और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर शीला का साथ दे रही थी.. तभी शीला ने ज़ोर से आवाज़ निकाली और कविता की चूत पर दबाव बढ़ा दिया.. फिर तीन चार ज़ोरदार भारी भरकम धक्के मार कर वो शाँत हो गई.. उसकी चूत का सारा पानी अब कविता की चूत को नहला रहा था.. फिर दोनों उसी हालत में नंगी सो गईं..
बहुत ही कामुक गरमा गरम और उत्तेजना से भरपूर अपडेट है फाल्गुनी राजेश के साथ फुल मजे कर रही है फाल्गुनी को सुबोधकांत के साथ जो मजा मिल रहा था वहीं मजा राजेश के साथ मिल रहा हैपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की ऑफिस में पिंटू पर दो अनजान शख्सों ने उस पर जानलेवा हमला कर दिया.. ऑफिस के सहकर्मियों ने डट कर मुकाबला किया और दोनों हमलावर फरार हो गए.. लेकिन पिंटू को काफी चोटें आई.. उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया.. पिंटू पर यह हमला किसने किया होगा यह बात से शीला और मदन बेहद परेशान थे.. एक बार को मदन को यह भी शक हुआ की कहीं यह हमला शीला ने तो नहीं करवाया..!! पर शीला को रसिक पर शक था.. उसने रसिक की अपने तरीके से पूछताछ की लेकिन वह निर्दोष निकला और नाराज होकर चला गया.. फिर पिंटू पर हमला आखिर किया किसने..!!-----------------------------------------------------------------------------------------------------
अब आगे...!!!
कुछ दिनों बाद..
शाम का वक्त था.. शहर से दूर, नीरव शांति के बीच, हरियाले खेतों के सानिध्य में बने एक प्यारे से फार्महाउस की ऊंची दीवारों के भीतर बने बंद कमरे मे, राजेश और फाल्गुनी बिस्तर पर लेटे हुए एक दूसरे के जिस्म के साथ खेल रहे थे,, अब हफ्ते में कम से कम एक दिन राजेश किसी न किसी बहाने यहाँ आ जाता था और फाल्गुनी, कविता के घर या किसी अन्य सहेली का नाम लेकर निकल जाती थी..
२३ साल की फाल्गुनी को बार बार शादी के लिए कहने के बावजूद वह मना कर रही थी.. अपने माता-पिता के कहने पर तीन चार लड़के भी देखे थे उसने.. लेकिन कोई दिल में बस ही नहीं रहा था.. सुबोधकांत से संबंधों के बाद ऐसा परिवर्तन आ गया था फाल्गुनी में की उसे जवान या हमउम्र के लड़के पसंद ही नहीं आते थे.. उसे तो पसंद थे, धीर-गंभीर और अनुभवी पुरुष..!! मनोविज्ञान भी कहता है की इंसान का प्रथम संभोग, उसके दिमाग पर गहरी छाप छोड़ता है.. फिर वह अच्छी भी हो सकती है और बुरी भी.. आधुनिक विचारों वाले उसके माता-पिता यह सोच रहे थे की उसे शायद और वक्त चाहिए था.. इसलिए स्वतंत्रता से उसे घूमने फिरने देते थे..
टाइट स्लीवलेस टॉप और ब्ल्यू जीन्स पहने फाल्गुनी राजेश के बगल में लेटे हुए उसके छाती के बालों से खेल रही थी.. राजेश ने उसे आलिंगन में ले लिया और उस के होंठों पर अपने होंठों की छाप छोड़ दी.. फाल्गुनी की बाँहें भी राजेश की कमर पर कस गई..
दोनों कुछ देर तक ऐसे ही एक-दूसरे के शरीर की गर्माहट का मजा लेता रहे.. फिर राजेश के होंठ फाल्गुनी की गरदन पर चुम्बन लेता हुए, उस की छातियों के मध्य आ गया और वहाँ पर अपनी गरम साँस छोड़ने लगे.. फाल्गुनी से अब रुका नहीं रहा जा रहा था.. उस ने राजेश के माथे पर प्यारी सी पप्पी दे दी..
दोनों के होंठ एक-दूसरे के होंठों का रस चुसने लगे.. इस के कारण दोनों के शरीर में वासना का आग पुरी तरह से भड़क गई.. दोनों एक-दूसरे के शरीर को सहलाने लगे.. राजेश ने फाल्गुनी के टॉप को उतार दिया, अंदर उसने ब्रा नहीं पहन रखी थी..
उसके मस्त कडक उरोज आजाद हो गया, उसे देख कर राजेश से रहा नहीं गया और उसने उसे होंठों में ले कर चुसना शुरु कर दिया.. इस के कारण फाल्गुनी का शरीर अकड़ने सा लगा.. उस के नाखुन राजेश की पीठ में गड गए.. राजेश ने उस के उरोजों का रस पीने के बाद अपना टी-शर्ट उतार दिया और फाल्गुनी का जीन्स निकाल दिया..
फाल्गुनी का जवान कडक बदन राजेश की आँखों के सामने था उसे देख कर राजेश का रक्त उसकी जाँघों के बीच इक्ठ्ठा होने लग गया था.. राजेश से अब रुका नहीं जा रहा था.. उस ने फाल्गुनी की लाल रंग की पेन्टी को भी उतार दिया.. अब फाल्गुनी और राजेश दोनों संपूर्णतः नग्न थे .. फाल्गुनी की उभरी हुयी सफाचट गुलाबी मुनिया राजेश को चाटने के लिये ललचा रही थी..
राजेश ने अपना सर उसकी चूत की तरफ किया और मुँह ले जाकर उस पर रख दिया.. भीनी भीनी सी सुगंध ने राजेश की नाक भर दी.. इस से वह और भी उत्तेजित हो गया.. राजेश के होंठ फाल्गुनी की चूत का रसपान करने लगे..
पहले उस ने बाहर से उसे चाटा फिर चूत के फलकों को अलग करके अपनी जीभ उस के अंदर डाल दी.. फाल्गुनी भी भरपुर उत्तेजित थी, उस की गुलाबों भी पानी से भरी हुई थी.. कुछ देर तक राजेश फाल्गुनी की चूत का स्वाद लेता रहा.. फाल्गुनी के मुँह से आह निकल रही थी.. वह उत्तेजना के कारण कसमसा रही थी..
राजेश ने उस की केले के तने के समान भरी जाँघों को चुमा और नीचे पिंडिलियों को चुमते हुये पंजों तक पहुँच गया.. फाल्गुनी ने भी उसके लंड को सहलाना शुरु कर दिया था..
फाल्गुनी की मुठ्ठी में तना हुआ लंड उभरा हुआ था.. इस कारण राजेश की हालत खराब होने लग गई..
उस ने अपने आप को सीधा किया, फाल्गुनी को चुमा और उस के अमरूद जैसे स्तनों को अपने हाथ से सहलाते हुए, निप्पलों को होंठों के बीच लेकर दांतों से काटा.. दर्द के कारण फाल्गुनी ने उसकी पीठ पर चिमटी काट ली..
अब राजेश अपने लंड को मसलते हुए फाल्गुनी के ऊपर आ गया और उस की टाँगों को फैला कर उनके बीच बैठ गया..
उसका लंड तन कर सीधा खड़ा था.. उसने फाल्गुनी की चूत के मुख पर उसे रख कर दबाव डाला तो लंड चूत में घुस गया.. अंदर नमी की वजह से घर्षण नहीं था.. दूसरे धक्कें में ही पुरा लंड चूत में समा गया.. फाल्गुनी ने अपनी बाँहें राजेश की पीठ पर कस ली.. वह कराह रही थी..
आहहह उहहहहह उईईई...
धीरे-धीरे राजेश लंड को अंदर बाहर करने लगा.. फिर नीचे से फाल्गुनी भी अपने टाइट कुल्हों को हिला कर उसका साथ देने लगी.. कमरे में फच-फच की आवाज भर गई.. फाल्गुनी की चूत की कसावट के कारण राजेश को बड़ा मज़ा आ रहा था.. कुछ देर तक धक्कें लगाने के बाद राजेश फाल्गुनी के ऊपर से उतर कर उस की बगल में लेट गया..
उसे अपनी ताकत को बचा कर रखना था.. अब वह बिस्तर पर तकिये के सहारे लेट गया और फाल्गुनी को अपने ऊपर लिटा लिया.. फाल्गुनी ने उसका लंड अपने हाथ की सहायता से चूत में डाल लिया और फिर वह कुल्हें उठा कर उसे अंदर बाहर करने लगी.. उस की गति बहुत तेज थी..
उसके कुल्हों के धक्कों की ताकत राजेश के जाँघों के जोड़ को पता चल रही थी.. राजेश ने फाल्गुनी के होंठों को अपने होंठो में भर लिया और दोनों एक-दूसरे को चुमने लगे.. नीचे से दोनों के शरीर एक-दूसरे को समाने के लिये मरे जा रहे थे..
राजेश स्खलित होने ही वाला था.. उसने फाल्गुनी को नीचे लेटाया और उसके ऊपर आ कर धक्कें लगाने लगा.. उसके शरीर में आग सी लग गई थी और अब वह उस से छुटकारा पाना चाहता था..
वही हुआ.. और राजेश की आँखें बंद सी हो गई और वह स्खलित हो कर फाल्गुनी के ऊपर लेट गया.. दोनों ही पसीने से नहा गया थे.. कुछ देर बाद वह फाल्गुनी की बगल में लेट गया.. दोनों की साँसें उखड़ी हुई थी.. कुछ देर लगी दोनों को उसे काबु में लाने में..
राजेश ने पलट कर फाल्गुनी से पुछा
राजेश: "कैसा लग रहा है?"
फाल्गुनी: "हर बार की तरह, मज़ा या गया अंकल.. आप की जवानी तो अभी तक कायम है, मेरी कमर का तो बाजा बज गया है पर फिर भी मन अभी भरा नही है"
राजेश: "चिंता मत कर स्वीटहार्ट, पूरी रात अपनी ही है.. !!"
राजेश के बालों को सहलाते हुए फाल्गुनी ने कहा "सुबोध अंकल के जाने के बाद मुझे नहीं लगता था की कोई भी उनकी जगह ले पाएगा.. पर आपसे मिलने के बाद वो गलतफहमी दूर हो गई.. सेक्स के प्रति मेरे विचार और खुल गए है.. और अब मैं ज्यादा से ज्यादा इन्जॉय करना चाहती हूँ.. और मुझे यकीन है की आप के साथ रहूँगी तो इन्जॉय करती ही रहूँगी"
राजेश ने जवाब नहीं दिया और केवल मुस्कुराया..
थोड़ी देर तक फाल्गुनी की गुलाबी निप्पलों से खेलते हुए राजेश ने कहा "यार, हफ्ते में सिर्फ एक दिन से मेरा तो मन नहीं भरता..!!"
फाल्गुनी हंसी और बोली "तो या जाइए.. मैंने कब मना किया.. !! यह फार्महाउस तो अपना ही है.. और कुछ दिनों बाद, मैं पी.जी. में शिफ्ट हो रही हूँ.. होम-डिजाइन का कोर्स जॉइन किया है.. कोर्स तो सिर्फ नाम का ही है.. पर उस बहाने मैं घर से दूर रहना चाहती हूँ.. मैंने पापा को इस बात के लिए पटा लिया है.. एक बार वहाँ चली गई फिर तो आप जब कहो, मैं यहाँ आ सकती हूँ"
राजेश: "हर बार घर से निकलने का बहाना बनाना मुश्किल है.. वैसे मेरी पत्नी काफी मुक्त विचारों वाली है पर फिलहाल वह जिस अवस्था में है, उसे छोड़कर आने के लिए मुझे कोई ठोस बहाना चाहिए.. पर वो मैंने कुछ सोच रखा है..!! जल्दी ही हम ज्यादा से ज्यादा मिल पाएंगे"
राजेश ने मुस्कुरा कर कहा "वैसे तो बड़ा लंबा सोचा है, पर अभी के लिए इतना जान लो की मैं हफ्ते में एक से ज्यादा बार तुम्हें मिल पाऊँगा"
बातें करते हुए दोनों थक कर लेट गया.. इस समय तो दूसरा दौर हो नहीं सकता था, ना राजेश ऐसा करना चाहता था लेकिन दूसरी बार करने का मन तो था ही.. रात को दोनों नें एक बार और संभोग किया जो शाम से भी जोरदार था और काफी लंबा भी चला.. दोनों के मन संतुष्ट हो गया थे..
सुबह उठकर राजेश को घर के लिए निकलना था.. वॉश-बेज़ीन के पास केवल टी-शर्ट पहने ब्रश कर रही फाल्गुनी, कमर से नीचे बिल्कुल नग्न थी.. हालांकि टी-शर्ट काफी लंबा होने के कारण वह अपनी लंबाई से फाल्गुनी के यौन अंगों को ढँक रहा था.. ब्रश खत्म कर जब फाल्गुनी झुककर वॉश-बेसिन के नलके से मुंह में पानी भरकर कुल्ले करने के लिए झुकी, तब उसकी टीशर्ट ऊपर उठ गई और उसके दोनों चूतड़ खुल गए.. उसका हल्का बादामी रंग वाला गांड का छेद नजर आने लगा..
तैयार होकर शुज की लेस बांध रहे राजेश की नजर जब इस द्रश्य पर पड़ी तो उससे रहा न गया.. वह तुरंत खड़ा हुआ, फाल्गुनी के पीछे आकर अपनी चैन खोलने लगा.. अपना सुलगता हुआ सुपाड़ा जब उसने फाल्गुनी की गांड के छेद पर रखा तब अनजान फाल्गुनी एकदम से सहम गई
फाल्गुनी: "ओह्ह अंकल.. क्या आप भी.. !!! फिर से शुरू हो गए.. !! ऑफिस जाना नहीं है.. ??"
राजेश: "बड़ी कमीनी चीज है तू.. एक तो झुककर अपनी गांड दिखाकर मुझे ललचा रही है और ऊपर से पूछ रही है की ऑफिस जाना है या नहीं" कहते हुए राजेश ने अपनी कमर को हल्का सा ठेलकर सुपाड़े को गांड के सँकरे छेद में डालने की कोशिश की
फाल्गुनी: "आह्ह राजेश अंकल.. लेकिन कुछ तेल या लयूबरीकेंट तो लगाइए.. !!"
पर राजेश के पास न समय था और ना ही धीरज.. !! उसकी नजर वहीं वॉश-बेसिन पर पड़े लिक्विड डिटर्जन्ट की बोतल पर पड़ी, जो अक्सर हाथ धोने के लिए रखा जाता है.. उसका पंपनुमा हेंडल दबाकर अपनी हथेली पर थोड़ा सा लिक्विड लिया और अपने लोड़े को उससे लसलसित कर दिया.. साबुन की चिकनाई अक्सर गाढ़ी होती है..
अब सुपाड़े को गांड के छेद पर रखकर जैसे ही उसने धकेल, उसका आधा लंड अंदर घुस गया.. फाल्गुनी ने सामने लगे मिरर पर अपने दोनों हाथ टेक रखे थे ताकि अपने आप को संतुलित रख सकें.. राजेश के हर धक्के के साथ वो आगे पीछे हो रही थी
यह स्थिति राजेश को ज्यादा अनुकूल नहीं लग रही थी.. उसने फाल्गुनी को कमर से उठाया और बेड की तरफ ले जाने लगा.. ऐसा करने पर उसका लंड पुचुक की आवाज करते हुए फाल्गुनी की गांड से बाहर निकल गया.. अब उसने फाल्गुनी को पेट के बल लिटा कर उस के कुल्हों को ऊपर किया और उसकी गुदा के मुख पर लंड को रख कर हाथ की सहायता से दबाया इस बार लंड का मुँह फाल्गुनी की गांड में पूरा घुस गया..
फाल्गुनी कराही "आहहहहहहहह उईईईईईईईई उहहहहहहहहह..."
राजेश ने हाथ से सहारा दे कर अपने लंड को थोड़ा और अंदर घुसेड़ दिया.. अब फाल्गुनी शांत हो गई थी.. तीसरी बार में आधें से ज्यादा लंड फाल्गुनी की गांड में समा गया.. अंदर से गांड की तंग मांसपेशियाँ लंड को कस रही थी..
राजेश ने अपना हाथ फाल्गुनी की चूत पर ला कर उसे सहलाना शुरु किया.. इस के बाद अपने कुल्हों को उठा कर लंड को पुरी ताकत से गांड में धकेल दिया.. उसका पुरा लंड फाल्गुनी की गांड में अब अंदर बाहर हो रहा था..
फाल्गुनी: "आह्ह.. जरा धीरे करो अंकल, दर्द हो रहा है"
राजेश ने फाल्गुनी का मुँह अपनी तरफ कर के चुमा और उसका चुम्बन लेने लगा.. इस से फाल्गुनी का दर्द कम हो गया.. या फिर यूं कहिए की दर्द से ध्यान विचलित हो गया.. अब वह भी अपने कुल्हें हिला कर राजेश के लंड को अंदर बाहर करने लगी.. कुछ देर तक राजेश फाल्गुनी की गांड भोगता रहे फिर झड़ कर उसकी बगल में लेट गया.. दोनों के शरीर पानी छोड़ रहे थे.. जो इस बात का सबूत था कि दोनों नें संभोग का भरपुर आनंद उठाया था और चरमोत्कर्ष को प्राप्त भी किया था
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पिंटू अब अपनी चोटों से उभर रहा था.. गनीमत थी की उसे ज्यादा चोटें नहीं आई थी क्योंकि हमलावर ज्यादा घातक वार करते उससे पहले ही ऑफिस के कर्मचारी उसकी मदद के लिए आ पहुंचे थे.. वैशाली, शीला और मदन, दिल-ओ-जान से उसकी देखभाल कर रहे थे.. दो तीन दिन रुकने के बाद, पिंटू के माता-पिता भी घर वापिस लौट गए थे..
कुछ दिनों बाद मदन ने फोन पर अपने इंस्पेक्टर तपन देसाई का संपर्क किया
मदन: "यार फिर कुछ पता चला की कौन था??"
इन्स. तपन: "मदन, ऑफिस के बाहर जो सीसीटीवी थे उसका कोई फायदा नहीं हुआ.. उन हमलावरों ने चेहरे पर मास्क लगा रखे थे.. और फुटेज से पता चला की उनकी बाइक पर नंबरप्लेट ही नहीं थी"
मदन: "मतलब?? अब कुछ नहीं हो सकता??"
इन्स. तपन: "यार कोशिश जारी है.. वह लोग जिस रास्ते से भागे थे उसके ट्राफिक कैमरा की फुटेज मँगवाई है.. पर तू तो जानता ही है.. आधे से ज्यादा कैमरा बंद होते है.."
मदन: "तपन, कुछ भी कर.. उनका पकड़ा जाना बहोत जरूरी है.. वरना मेरी बेटी और दामाद तो हमेशा उनके डर के तले जीते रहेंगे"
इन्स. तपन: "तू चिंता मत कर मदन.. मैं कुछ न कुछ जुगाड़ जरूर कर उन्हें पकड़ रहूँगा"
मदन: "यार जितनी जल्दी हो सके तू ट्राय करना.. कुछ ही दिनों में मुझे काम के सिलसिले में अमरीका जाना है.. वो लोग पकड़े जाएंगे तो मैं इत्मीनान से जा पाऊँगा वरना मेरी जान यहीं अटकी रहेगी"
इन्स. तपन: "देख भाई, तू मुझे मेरे हिसाब से काम करने दे.. कुछ ही समय में कुछ मिल जाने की उम्मीद है.. मैंने मेरी टीम को उस रास्ते पर जितनी भी दुकान, शॉपिंग मॉल या ऑफिस है, उन सब से सीसीटीवी चेक करने के लिए भेजा हुआ है.. कोई न कोई सुराग तो जरूर निकल आएगा"
मदन: "ठीक है दोस्त.. मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है.. जैसे ही कुछ पता चलें, मुझे जरूर बताना"
इन्स. तपन: "ओके.."
एक गहरी सांस लेकर मदन सोच मे पड़ गया.. उसके बगल में बैठी शीला को इस संवाद से उतना तो पता चल ही गया की अब तक उन गुंडों की पहचान नहीं हो पाई थी.. !!
शीला: "चिंता मत करो मदन.. जल्द ही पता चल जाएगा"
मदन: "यार, मुझे चिंता इस बात को लेकर है की मुझे अमरीका जाना है.. और अगर यहाँ मेरी गैर-मौजूदगी में कुछ उल्टा-सीधा हो गया तो मैं अपने आप को कभी माफ नहीं कर पाऊँगा"
शीला: "देख मदन.. !! होनी को कोई टाल नहीं सकता.. पर ऐसी नकारात्मक सोच के साथ कैसे जिया जा सकते है..!! कुछ नहीं होगा.. और यहाँ हम इतने लोग तो है.. तू चिंता मत कर.. और जाने की तैयारियां शुरू कर"
निराश होकर मदन अपने कमरे में चला गया.. सोफ़े पर बैठी शीला सोच रही थी.. कुछ ही दिनों के बाद, मदन दो हफ्तों के लिए जा रहा था.. यह एक ऐसा अवकाश था जब वह अपनी मनमानी कर सकती थी... बस एक ही रोड़ा था उसकी राह में.. पिंटू और वैशाली की मौजूदगी.. अब वक्त आ गया था की इसके बारे में कुछ किया जाए..
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Shandaar updateपिछले अपडेट में आपने पढ़ा की कविता की मदद करने के लिए शीला उसके घर पहुँच चुकी थी.. रमिलाबहन के घर फाल्गुनी से मुलाकात के बाद पीछा करने पर शीला को पता चला की फाल्गुनी और राजेश के बीच कुछ चक्कर चल रहा है..
शीला और कविता रसिक के खेत की ओर जाने के लिये निकले.. रास्ते में शीला ने कविता से पिंटू को पीयूष की कंपनी में लगवाने का काम सौंपा.. शीला की यही योजना थी, पिंटू और वैशाली को अपने रास्ते से हटाकर, अपनी पुरानी आजाद जिंदगी में लौटने का..
खेत पहुँचने पर रसिक, कविता को देखकर खुश हो गया और शीला को देखकर क्रोधित.. गुस्से में उसने शीला को लौट जाने के लिए कहा..
कविता के विनती करने पर शीला गाड़ी में वापिस जा बैठी और फिर खेत के उस कमरे में रसिक और कविता के बीच घमासान चुदाई का दौर शुरू हुआ..
अब आगे...
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करीब डेढ़ घंटा बीत चुका था कविता को गए हुए.. सूरज भी ढलते हुए शाम का आगाज दे रहा था.. शीला जानती थी की रसिक को चुदाई करने मे इतना वक्त तो लगता ही है.. शायद दोनों एक राउंड खतम करके दूसरे की तैयारी कर रहे होंगे..!!!
शीला अब बेहद बोर हो रही थी.. गाड़ी में बैठकर गाने सुनते सुनते वह ऊब चुकी थी.. वह गाड़ी से बाहर निकली और नजदीक के खेतों में सिर करने लगी.. फसल कट चुकी थी इसलिए सारे खेत वीरान थे और दूर दूर तक सब कुछ साफ नजर आ रहा था..
तब शीला का ध्यान थोड़े दूर बने एक छोटे से टीले पर गया.. वहाँ पर खेत-मजदूर जैसे दिखने वाले तीन लोग, बनियान और लूँगी पहने बैठे थे और छोटी सी पारदर्शक बोतल से कुछ पी रहे थे.. जाहीर सी बात थी की तीनों देसी ठर्रा पी रहे थे..
अचानक उनमें से एक की नजर शीला की ओर गई..!! ऐसी सुमसान जगह पर इतनी सुंदर गदराई औरत का होना कोई सामान्य बात तो थी नहीं.. उस आदमी ने अपने साथियों को यह बात बताई और अब तीनों टकटकी लगाकर शीला को देखने लगे
शीला को बड़ा ही अटपटा सा लगने लगा.. उसने अपनी नजर घुमाई और गाड़ी की ओर चलने लगी.. थोड़ी दूर चलते रहने के बाद उसने पीछे की और देखा.. वह तीनों दूर से उसके पीछे चले आ रहे थे.. अपना लंड खुजाते हुए..
इतना देखते ही शीला के तो होश ही उड़ गए..!!! तीनों की मंछा साफ थी, जो शीला को भलीभाँति समझ आ रही थी.. अब शीला का दिमाग तेजी से चलने लगा.. गाड़ी कुछ ही दूरी पर थी.. लेकिन वहाँ पहुँच कर भी शीला सुरक्षित नहीं थी.. क्योंकि गाड़ी के आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था..
शीला ने अब अपनी दिशा बदली और वो रसिक के खेत की तरफ तेजी से चलने लगी.. वह तीनों भी अब शीला का पीछा करने लगे.. शीला की जान हलक तक आ गई.. वो अब लगभग भागने लगी थी.. उसकी सांसें फूलने लगी थी.. पीछे मुड़कर देखा तो वह तीनों भी अब तेजी से शीला की तरफ आ रहे थे और बीच का अंतर धीरे धीरे कम होता जा रहा था
अपना पूरा जोर लगाते हुए शीला ने दौड़ना शुरू कर दिया.. कुछ ही आगे जाते हुए रसिक का कमरा नजर आने लगा.. शीला ने और जोर लगाया और भागते हुए रसिक के कमरे तक पहुँच गई और दरवाजा खटखटाने लगी
काफी देर तक दरवाजा न खुलने पर शीला बावरी हो गई.. वो पागलों की तरह दस्तक देती ही रही..!! उसने देखा की वह तीनों लोग अब रुक चुके थे.. और दूर से शीला को दरवाजा खटखटाते हुए देख रहे थे
थोड़ी देर के बाद दरवाजा खुला और कविता के साथ रसिक बाहर आया
कविता: "क्या हुआ भाभी?? आप इतनी हांफ क्यों रही हो?"
शीला ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा "वो.. वो तो.. कुछ नहीं.. बस गाड़ी में अकेले बैठे बैठे डर लग रहा था.. शाम भी ढल चुकी है और कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा.. हमें अब चलना चाहिए"
रसिक को शीला के पास खड़ा देख, वह तीनों उलटे पैर लौट गए.. यह देखकर शीला की जान में जान आई..!! लेकिन वो कविता को इस बारे में बताकर डराना नहीं चाहती थी
कविता: "मैं बस वापिस ही आ रही थी.. चलिए भाभी"
कविता ने शीला का हाथ पकड़ा और दोनों गाड़ी की तरफ जाने लगी.. रसिक दोनों को दूर तक जाते हुए देखता रहा
गाड़ी में पहुंचकर शीला ने चैन की सांस ली.. कविता ने गाड़ी स्टार्ट की और कुछ ही मिनटों में उनकी गाड़ी हाइवे पर दौड़ रही थी
कविता के चेहरे पर संतोष की झलक साफ नजर आ रही थी.. लंबे अवकाश के बाद जब पलंग-तोड़ चुदाई करने का मौका मिलें तब किसी भी औरत के चेहरे पर चमक आ ही जाती है
करीब आधे घंटे तक दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोला
शीला अब धीरे धीरे सामान्य हो रही थी.. अपने पुराने रंग में आते हुए उसने कविता से पूछा
शीला: "कैसा रहा कविता?"
कविता शरमा गई.. उसने जवाब नहीं दिया
शीला ने उसे कुहनी मारते हुए शरारती अंदाज में पूछा "अरे शरमा क्यों रही है..!!! बोल तो सही कैसा रहा रसिक के साथ?"
कविता ने मुस्कुराकर जवाब दिया "मुझ से ज्यादा आप बेहतर जानती हो रसिक के बारे में.. मज़ा आ गया भाभी.. ऐसा लगा जैसे जनम जनम की भूख संतुष्ट हो गई हो"
शीला ने लंबी सांस लेते हुए कहा "इस भूख का यही तो रोना है.. जब संतुष्ट हो जाते है तब लगता है जैसे हमेशा के लिए भूख शांत हो गई.. पर कुछ ही दिनों में फिर से रंग दिखाने लग जाती है"
कविता: "मैं आगे के बारे में सोचना नहीं चाहती.. बस आज की खुशी में ही जीना चाहती हूँ.. भविष्य का सोचकर अभी का मज़ा क्यों खराब करूँ? वाकई में बहोत मज़ा आया.. मेरा तो अंदर सारा छील गया है.. बाप रे..!!! कितना मोटा है रसिक का.. देखने में तो बड़ा है ही.. पर जब अंदर जाकर खुदाई करता है तब उसकी असली साइज़ का अंदाजा लगता है"
शीला: "हम्म.. तो आखिरकार तूने रसिक का अंदर ले ही लिया.. बड़ी कामिनी चीज है रसिक का लंड.. एक बार स्वाद लग जाए फिर कोई और पसंद ही नहीं आता"
कविता: "सही कहा आपने भाभी.. जहां तक पीयूष का लंड जाता है.. वहाँ तक तो इस कमीने की जीभ ही पहुँच जाती है.. फिर जब उसने अपना गधे जैसा अंदर डाला.. आहाहाहाहा क्या बताऊँ..!! इतना मज़ा आया की बात मत पूछो"
दोनों के बीच ऐसी ही बातों का सिलसिला चलता रहा और करीब दो घंटों के बाद वह कविता के घर पहुँच गए..
दोनों सफर के कारण थके हुए थे.. कविता तो ज्यादा ही थकी हुई थी.. रसिक के प्रहारों के कारण उसके अंग अंग में मीठा सा दर्द हो रहा था..
कविता की नौकरानी ने खाना तैयार कर दिया था.. दोनों ने बैठकर खाना खतम किया
कविता: "भाभी, मेरा तो पूरा शरीर दर्द कर रहा है.. सोच रही हूँ की गरम पानी से शावर ले लूँ.. आप बेडरूम मे रिलेक्स कीजिए तब तक मैं फ्रेश होकर आती हूँ.. फिर आराम से बातें करते करते सो जाएंगे"
शीला नाइटी पहनकर पीयूष-कविता के बेडरूम मे आई.. बिस्तर के सामने ६५ इंच का बड़ा सा टीवी लगा हुआ था.. शीला ने रिमोट हाथ में लिया और चेनल बदलते हुए कविता का इंतज़ार करने लगी
थोड़ी देर में कविता स्काइ-ब्लू कलर की पतली पारदर्शक नाइटी पहनकर बेडरूम मे आइ और शीला के बगल में लेट गई.. कविता के गले पर रसिक के काटने के निशान साफ नजर आ रहे थे.. शीला यह देखकर मुस्कुराई
शीला के बगल में लेटी हुई कविता उससे लिपट गई.. और शीला के गालों को चूमते हुए बोली
कविता: "आपने आज मेरी बहोत मदद की भाभी.. वहाँ अकेले जाने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती थी.. आप थे इसलिए मेरी हिम्मत हुई"
शीला और कविता बेडरूम में बिस्तर पर लेटे हुए फिल्म देख रही थीं.. कविता को नींद आने लगी थी और बातें करते करते उसकी आँखें धीरे धीरे ढलने लगी थी.. सोने से पहले कविता ने लाइट बंद करके नाइट लैम्प ऑन कर दिया.. शीला किसी दूसरे चैनल पर इंग्लिश फिल्म देखने लगी.. फिल्म में काफी खुलापन और चुदाई के सीन थे..
नींद में कविता ने एक घुटना ऊपर उठाया तो अनायास ही उसकी रेश्मी नाइटी फ़िसल कर घुटने के ऊपर तक सरक गई.. टीवी और मंद लाइट की रोशनी में उसकी दूधिया रंग की जाँघ चमक रही थी.. अब शीला का ध्यान फिल्म में ना होकर कविता के जिस्म पर था और रह-रह कर उसकी नज़र कविता के गोरे जिस्म पर टिक जाती थी.. कविता की खूबसूरत जाँघें उसे मादक लग रही थी.. कुछ तो फिल्म के चुदाई सीन का असर था और कुछ कविता की खूबसूरती का.. शीला बेहद चुदासी हो रही थी और आज वो कविता के साथ अपनी आग बुझाने वाली थी और उसे भी खुश करना चाहती थी..कविता उसका इतना बड़ा काम जो करने वाली थी
शीला ने टीवी बंद किया और वहीं कविता के पास सो गई.. थोड़ी देर तक बिना कोई हरकत किये वो लेटी रही.. फिर उसने अपना हाथ कविता के उठे हुए घुटने वाली जाँघ पर रख दिया.. हाथ रख कर वो ऐसे ही लेटी रही, एक दम स्थिर.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने अपने हाथ को कविता की जाँघ पर फिराना शुरू कर दिया.. हाथ भी इतना हल्का कि सिर्फ़ उंगलियाँ ही कविता को छू रही थी, हथेली बिल्कुल भी नहीं.. फिर उसने हल्के हाथों से कविता की नाइटी को पूरा ऊपर कर दिया.. अब कविता की पैंटी भी साफ़ नज़र आ रही थी.. शीला की उंगलियाँ अब कविता के घुटनों से होती हुई उसकी पैंटी तक जाती और फिर वापस ऊपर घुटनों पर आ जाती..
यही सब तकरीबन दो-तीन मिनट तक चलता रहा.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने कविता की पैंटी को छूना शुरू कर दिया लेकिन तरीका वही था.. घुटनों से पैंटी तक उंगलियाँ परेड कर रही थी.. अब शीला धीरे से उठी और उसने अपनी नाइटी और ब्रा उतार दी, और सिर्फ़ पैंटी में कविता के पास बैठ गई.. कविता की नाइटी में आगे कि तरफ़ बटन लगे हुए थे.. शीला ने बिल्कुल हल्के हाथों से बटन खोल दिये.. फिर नाइटी को हटाया तो कविता के गोरे चिट्टे मम्मे नज़र आने लगे.. अब शीला के दोनों हाथ मसरूफ हो गये थे.. उसके एक हाथ की उंगलियाँ कविता की जाँघ और दूसरे हाथ की उंगलियाँ कविता के मम्मों को सहला रही थी.. उसकी उंगलियाँ अब कविता को किसी मोर-पंख की तरह लग रही थीं.. कविता अब जाग चुकी थी और उसे बड़ा अच्छा लग रहा था, इसलिये बिना हरकत लेटी रही.. वो भी इस खेल को रोकना नहीं चाहती थी..
अब शीला ने झुककर कविता की चुची को किस किया.. फिर उठी और कविता की टाँगों के बीच जाकर बैठ गई.. कविता को अपनी जाँघ पर गर्म हवा महसूस हो रही थी.. वो समझ गई कि शीला की साँसें हैं.. शीला कविता की जाँघ को अपने होंठों से छू रही थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे वो अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी.. अब वही साँसें कविता को अपनी पैंटी पर महसूस होने लगीं, लेकिन उसे नीचे दिखायी नहीं दे रहा था.. वैसे भी उसने अभी तक आँखें नहीं खोली थी..
अब शीला ने अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और उसे कविता की पतली सी पैंटी में से झाँक रही गरमागरम चूत की दरार पर टिका दी.. कुछ देर ऐसे ही उसने अपनी जीभ को पैंटी पर ऊपर-नीचे फिराया.. कविता की पैंटी शीला के थूक से और चूत से निकाल रहे पानी से भीगने लगी थी.. अचानक शीला ने कविता की थाँग पैंटी को साइड में किया और कविता की नंगी चूत पर अपने होंठ रख दिये.. कविता से और बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी गाँड उठा दी, और दोनों हाथों से शीला के सिर को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत से चिपका लिया.. शीला की तो दिल की मुराद पूरी हो गई थी! अब कोई डर नहीं था! वो जानती थी कि अब कविता सब कुछ करने को तैयार है - और आज की रात रंगीन होने वाली थी..
शीला ने अपना मुँह उठाया और कविता की पैंटी को दोनों हाथों में पकड़ कर खींचने लगी.. कविता ने भी अपनी गाँड उठा कर उसकी मदद की.. फिर कविता ने अपनी नाइटी भी उतार फेंकी और शीला से लिपट गई.. शीला ने भी अपनी पैंटी उतारी और अब दोनों बिल्कुल नंगी एक दूसरे के होंठ चूस रही थीं.. दोनों के मम्मे एक दूसरे से उलझ रहे थे.. दोनों ने एक दूसरे की टाँगों में अपनी टाँगें कैंची की तरह फंसा रखी थीं और शीला अपनी कमर को झटका देकर कविता की चूत पर अपनी चूत लगा रही थी, जैसे कि उसे चोद रही हो.. कविता भी चुदाई के नशे में चूर हो चुकी थी और उसने शीला की चूत में एक उंगली घुसा दी.. अब शीला ने कविता को नीचे गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई.. शीला ने कविता के मम्मों को चूसना शुरू किया.. उसके हाथ कविता के जिस्म से खेल रहे थे..
कविता अपने मम्मे चुसवाने के बाद शीला के ऊपर आ गई और नीचे उतरती चली गई.. शीला के मम्मों को चूसकर उसकी नाभि से होते हुए उसकी ज़ुबान शीला की चूत में घुस गई.. शीला भी अपनी गाँड उठा-उठा कर कविता का साथ दे रही थी.. काफी देर तक शीला की चूत चूसने के बाद कविता शीला के पास आ कर लेट गई और उसके होंठ चूसने लगी..
अब शीला ने कविता के मम्मों को दबाया और उन्हें अपने मुँह में ले लिया - शीला का एक हाथ कविता के मम्मों पर और दूसरा उसकी चूत पर था.. उसकी उंगलियाँ कविता की चूत के अंदर खलबली मचा रही थी.. कविता एक दम निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी और उसके मुँह से अजीब-अजीब आवाज़ें आने लगी.. तभी शीला नीचे की तरफ़ गई और कविता की चूत को चूसना शुरू कर दिया.. अपने दोनों हाथों से उसने चूत को फैलाया और उसमें दिख रहे दाने को मुँह में ले लिया और उस पर जीभ रगड़-रगड़ कर चूसने लगी..
कविता तो जैसे पागल हो रही थी.. उसकी गाँड ज़ोर-ज़ोर से ऊपर उठती और एक आवाज़ के सथ बेड पर गिर जाती, जैसे कि वो अपनी गाँड को बिस्तर पर पटक रही हो.. फिर उसने अचानक शीला के सिर को पकड़ा और अपनी चूत में और अंदर ढकेल दिया.. उसकी गाँड तो जैसे हवा में तैर रही थी और शीला लगभग बैठी हुई उसकी चूत खा रही थी.. वो समझ गई कि अब कविता झड़ने वाली है और उसने तेज़ी से अपना मुँह हटाया और दो उंगलियाँ कविता की चूत के एक दम अंदर तक घुसेड़ दी..
उंगलियों के दो तीन ज़बरदस्त झटकों के बाद कविता की चूत से जैसे नाला बह निकला.. पूरा बिस्तर उसके पानी से गीला हो गया..
शीला ने एक बार फिर अपनी टाँगें कविता की टाँगों में कैंची की तरह डाल कर अपनी चूत को कविता की चूत पर रख दिया और ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी, जैसे कि वो कविता को चोद रही हो.. दोनों कि चूत एक दूसरे से रगड़ रही थी और शीला कविता के ऊपर चढ़ कर उसकी चुदाई कर रही थी..
कविता का भी बुरा हाल था और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर शीला का साथ दे रही थी.. तभी शीला ने ज़ोर से आवाज़ निकाली और कविता की चूत पर दबाव बढ़ा दिया.. फिर तीन चार ज़ोरदार भारी भरकम धक्के मार कर वो शाँत हो गई.. उसकी चूत का सारा पानी अब कविता की चूत को नहला रहा था.. फिर दोनों उसी हालत में नंगी सो गईं..