• If you are trying to reset your account password then don't forget to check spam folder in your mailbox. Also Mark it as "not spam" or you won't be able to click on the link.

Adultery शीला की लीला (५५ साल की शीला की जवानी)

arushi_dayal

Active Member
825
3,667
124
पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की कविता की अरज पर शीला उसके शहर जाने बस में निकली.. बीच सफर एक अनजान मुसाफिर के साथ शीला ने बस में ही घमासान चुदाई की.. संतुष्ट होकर शीला कविता के घर पहुंची.. बात करते हुए शीला को पता चला की पीयूष की गैर मौजूदगी में ऑफिस संभालने कविता रोज जाती थी.. शीला को ताज्जुब हुआ क्योंकि रेणुका के मुताबिक, पीयूष की ऑफिस संभालने राजेश हफ्ते में दो से तीन दिन जाता था.. शीला रमिलाबहन से मिलने गई जहां उसकी मुलाकात फाल्गुनी से हुई.. एक फोन आने पर फाल्गुनी हड़बड़ी में निकल गई और शीला ने उसका पीछा किया.. उसे पता चला की राजेश और कविता के बीच कुछ चल रहा है..

अब आगे...
_________________________________________________________________________________________________



काफी देर तक कुछ नहीं हुआ.. फाल्गुनी खड़े खड़े इंतज़ार करती रही.. शीला का सब्र अब जवाब दे रहा था.. तभी फाल्गुनी के करीब एक गाड़ी आकर खड़ी हो गई.. फाल्गुनी ने आगे का दरवाजा खोला और अंदर बैठ गई.. दरवाजा बंद हुआ और गाड़ी तेजी से निकल गई..

शीला स्तब्ध होकर देखती ही रही.. गाड़ी राजेश की थी और उसे पक्का यकीन था की वह राजेश ही था..!! फाल्गुनी ने जब रमिलबहन के घर अपना मोबाइल हाथ में लिया तब भी स्क्रीन पर राजेश का नाम नजर आया था..!! पर तब शीला को केवल शक ही था क्योंकि राजेश नाम का कोई और भी तो हो सकता था.. !! लेकिन अब अपनी आँखों से देखकर शीला को पक्का यकीन हो गया..!!

शीला अब कविता के घर की तरफ जाने लगी.. उसके दिमाग की चक्की गोल गोल घूम रही थी.. अब सारा मामला धीरे धीरे समझ मे आने लगा था.. राजेश ने रेणुका को यह बताया था की वो पीयूष की ऑफिस को संभालने के लिए हफ्ते में दो-तीन दिन इस शहर आता था.. जब की कविता का कहना था की पीयूष की गैर-मौजूदगी में वो रोज ऑफिस जाती थी और राजेश तो कभी वहाँ नहीं आता था..!! राजेश तो यहाँ फाल्गुनी को लेकर अपने ही गुल खिला रहा था.. !! पर शीला को एक बात समझ नहीं आ रही थी.. राजेश और फाल्गुनी का सेटिंग आखिर हुआ कैसे..!! वैसे दोनों एक दूसरे को जानते थे पर वह पहचान तो काफी साधारण थी.. उनके रिश्ते इतने आगे कैसे बढ़ गए वह सोच का विषय था.. !!

मतलब साफ था.. राजेश और फाल्गुनी के बीच जरूर कुछ खिचड़ी पक रही थी.. और दोनों क्या गुल खिला रहे थे यह शीला पता करके ही रहने वाली थी..

चलते चलते शीला कविता के घर पहुंची.. कविता ऑफिस से आ चुकी थी

कविता: "भाभी.. कहाँ घूमकर आई आप?"

शीला: "अकेले बैठे बैठे बोर हो रही थी.. सोचा तुम्हारी मम्मी से मिल आऊँ.. वैसे भी काफी दिन हो गए थे उन्हें मिले हुए..!!"

कविता: "अच्छा किया.. अरे भाभी..!! आपने बात की या नहीं रसिक से??"

शीला: "सब्र कर.. करती हूँ उसे फोन.. वो कहाँ भागा जा रहा है..!!"

कविता: "क्या भाभी..!! मैंने आपसे कहा तो था की आप बात कर लेना.. वो कहीं बाहर होगा तो..??"

शीला: "ठीक है बाबा, करती हूँ फोन"

कविता: "आप बात कीजिए तब तक मैं हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जाती हूँ"

शीला ने गहरी सांस ली और अपना फोन निकाला.. रसिक अब भी उससे नाराज ही चल रहा था.. बल्कि उस दिन के बाद उसने कभी शीला के साथ सीधे मुंह बात तक नहीं की थी.. पिंटू पर हमले के बाद जब शीला ने रसिक पर इल्जाम लगाया था, जो की बाद में झूठा साबित हुआ था.. उसके बाद रसिक को इतना बुरा लग गया की उसने शीला से बात करना ही बंद कर दिया.. सुबह दूध देने आता तो भी आँखें झुकाकर दूध देकर चला जाता.. शीला ने एक दो बार फोन पर बात करने की भी कोशिश की पर रसिक ने फोन उठाया ही नहीं

कविता की जिद पर शीला ने रसिक को फोन लगाया.. पर उसने उठाया नहीं.. कुछ मिनट बाद शीला ने फिर फोन लगाया पर नतीजा वही था..

शीला अब परेशान हो गई.. यहाँ कविता का तवा गरम हुआ पड़ा है और दूसरी तरफ रसिक फोन नहीं उठा रहा था.. अब क्या किया जाए..!!

नेपकीन से अपना मुंह पोंछते हुए कविता बाहर आई और बड़े ही उत्साह से शीला के बगल में बैठ गई

कविता: "हो गई बात?? कब चलना है?"

शीला: "नहीं यार.. वो फोन ही नहीं उठा रहा"

कविता: "कहीं बाहर होगा.. फोन करेगा वापिस"

शीला ने गहरी सांस छोड़कर कहा "नहीं करेगा"

कविता ने चोंककर पूछा "क्यों भाभी?"

शीला ने पूरा वाकया सुनाया.. कैसे पिंटू पर हुए हमले के बाद उसने रसिक पर शक किया था और उसके बाद से रसिक ठीक से बात नहीं करता था

कविता जबरदस्त निराश हो गई, वह बोली "तो अब क्या होगा भाभी??"

शीला ने सोचकर कहा "तू चिंता मत कर.. मैं कुछ करती हूँ"

शीला सोचते हुए बैठी रही और कविता उसके सामने आशा भरी नज़रों से देखती रही

शीला: "एक काम करते है.. तू अपने फोन से बात कर.. रसिक को प्रॉब्लेम मुझसे है.. तेरा तो फोन वो जरूर उठाएगा.. वैसे भी वो तेरे पीछे पागल है"

फोन करने की बात सुनकर कविता थोड़ी सहम गई.. फिर कुछ सोचकर उसने रसिक को फोन लगाया.. आधी रिंग पर ही रसिक ने फोन उठा लिया

रसिक: "कैसी हो भाभी?? आज बड़े दिन बाद याद किया आपने?"

कविता: "बहोत दिन हो गए थे तुमसे बात किए हुए.. सोच बात कर लूँ..!!"

रसिक: "बड़ा अच्छा किया आपने.. बताइए क्या सेवा करूँ?"

कविता: "अब इतने दूर दूध मँगवाने के लिए तो फोन करूंगी नहीं तुम्हें"

रसिक: "समझ गया भाभी.. पिछली बार जब आप शीला भाभी की बेटी के साथ आई थी तब हमारी मुलाकात अधूरी रह गई थी..चलिए आज उसे पूरा कर देते है.. कहिए कब मिलना है?"

कविता: "आज मिल सकते है क्या?"

रसिक: "आप यहीं है या अपने शहर?"

कविता: "मैं तो मेरे घर पर हूँ"

रसिक ने आश्चर्य से कहा "तो आप वहाँ से यहाँ तक मुझसे मिलने के लिए आएंगे?"

कविता ने मुस्कुराकर कहा "अब क्या करें..!! जो चीज तुम्हारे पास है उसके लिए वहाँ तक आना तो पड़ेगा"

रसिक: "ठीक है भाभी.. आ जाइए मेरे खेत पर.. पिछली बार जहां मिले थे वहीं पर..!!"

कविता ने खुश होकर कहा "ठीक है.. मैं तीन बजे तक वहाँ पहुँच जाऊँगी"

फोन रखकर कविता ने शीला से कहा "लीजिए भाभी, हो गया काम.. खाना खाकर निकलते है"

शीला: "कविता, मैं सोच रही थी की तेरे साथ चलूँ या नहीं..!!"

कविता चोंक गई "अरे.. ऐसा क्यों कह रही हो भाभी?"

शीला: "यार रसिक मुझे देखकर ही भड़कता है.. कहीं मेरे चक्कर में तेरा सेटिंग गड़बड़ा न जाएँ"

कविता: "कुछ नहीं होगा ऐसा.. मैं वहाँ अकेले नहीं जाने वाली... आप मेरे साथ चल रही हो और यह फाइनल है"

गहरी सांस लेकर शीला ने कहा "ठीक है"

कविता: "आप तैयार हो जाइए.. हम थोड़ी ही देर में निकलते है"

शीला वैसे तैयार ही थी.. कविता और वह दोनों कुछ ही देर में गाड़ी लेकर निकल गए

गाड़ी शहर से बाहर हाइवे पर सरपट चल रही थी.. लाइट म्यूज़िक बज रहा था.. कविता एक सफेद टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहने हुई थी जब की शीला पिंक रंग की साड़ी में सज्ज थी

शीला: "कविता, मुझे तुम्हारा एक काम था"

गाड़ी के स्टियरिंग पर अपने हाथ जमाते हुए कविता ने कहा "हाँ बताइए ना भाभी.. क्या काम था?"

शीला ने थोड़ा सा रुककर फिर कहा "यार, पिंटू के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद वैशाली काफी डरी हुई है.. जब तक वो हमलावर पकड़ा नहीं जाता तब तक उसका और सब का भी यह डर बना रहेगा.. पिंटू वैसे तो अब ठीक है और उसने ऑफिस जाना भी शुरू कर दिया है.. पर मैं सोच रही थी की पिंटू काफी समय तक एक ही जगह फंसा हुआ है.. वैसे राजेश की ऑफिस की नौकरी अच्छी है पर जब एक जगह बहुत लंबे अरसे तक पड़े रहो तब इंसान की काबिलियत पर जंग लगना शुरू हो जाता है.. अगर आगे बढ़ना है तो जगह बदलनी आवश्यक है.. अब पीयूष का कारोबार इतना लंबा चौड़ा है.. तू उससे बात कर ना.. पिंटू कहीं न कहीं फिट हो ही जाएगा.. वैसे भी दोनों में काफी अच्छी दोस्ती भी है.. दोनों साथ जो नौकरी करते थे.."

इतना कहकर शीला रुक गई और कविता के हावभाव का निरीक्षण करने लग गई.. कविता की नजर सड़क पर थी.. कुछ देर सोचकर उसने कहा

कविता: "भाभी, पीयूष के बिजनेस के मामले में मैंने आज तक कभी हस्तक्षेप नहीं किया.. ना मैं कभी उसे उस बारे में कुछ पूछती हूँ और ना ही वो बताता है.. अब अगर पिंटू के लिए मैं उससे बात करूंगी तो वो कैसे रिएक्ट करेगा मुझे पता नहीं"

शीला: "अरे यार, तुझे कौन सा बड़ा तीर मारना है..!! सिर्फ बात ही तो करनी है.. और किसी अनजान व्यक्ति की बात करनी हो तो समझ सकते है की पीयूष जिसे जानता न हो उसके बारे में शायद निर्णय न ले सकें.. पर यह तो पिंटू की बात हो रही है.. पीयूष भी जानता है और हम सब भी जानते ही की वो कितना होनहार लड़का है.. अगर वो यहाँ आ गया तो पीयूष का काफी बोझ हल्का हो सकता है.. तू ही तो कहती रहती है ना की पीयूष को काम के चक्कर में फुरसत नहीं मिलती..!! तो यही सबसे बढ़िया इलाज है उस मर्ज का.. दूसरी बात यह की वैशाली को भी ऑफिस के काम का बहोत तजुर्बा है.. शादी के बाद उसने नौकरी जरूर छोड़ दी है.. पर जहां तक मुझे पता है वह अपने काम में बहोत पक्की थी.. तू एक बार कोशिश कर के तो देख..!!"

शीला ने बड़ी सोच समझकर अपनी योजना का अमल शुरू किया था.. अगर पिंटू की नौकरी पीयूष की ऑफिस में लग जाती है तो..

  • पिंटू की तरक्की होगी साथ में तनख्वाह भी बढ़ेगी

  • साथ अगर वैशाली की भी नौकरी लग जाती है तो उन दोनों की मासिक आय दोगुनी हो सकती थी

  • इस शहर में पिंटू का खुद का घर था.. रहने में भी आसानी होगी और खर्च भी सीमित होगा.. ऊपर से सास-ससुर की मौजूदगी में वैशाली आराम से नौकरी भी कर पाएगी

  • पीयूष का बोझ हल्का होगा तो वो कविता के लिए अधिक समय निकाल पाएगा

  • आखिरी और सब से महत्वपूर्ण बात.. पिंटू और वैशाली के जाने से शीला फिर से अपनी पुरानी ज़िंदगी जीने के लिए आजाद हो जाएगी..!!!

यह आखिरी कारण ही सब से मुख्य कारण था शीला की योजना का.. फिर भी उसकी योजना ऐसी थी जिसमे सब का फायदा हो रहा था..

कविता: "ठीक है भाभी.. आप कहती हो तो मैं कोशिश जरूर करूंगी.. पर कुछ वादा नहीं कर सकती.. पता नहीं पीयूष की प्रतिक्रिया कब कैसी हो..!! कभी कभी तो बिजनेस की बातों में हल्की सी राय देने पर भी वो भड़क जाता है.. इसलिए मैं तो अक्सर उस बारे में उससे कोई बात करती ही नहीं हूँ.. पर अब आपने कहा है तो बात करनी ही होगी"

शीला: "सिर्फ बात करनी होगी नहीं.. पीयूष को मनाना भी पड़ेगा..!! यार, तेरा इतना बड़ा काम करने के लिए मैं रातोंरात घर छोड़कर यहाँ आ गई और तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती?" शीला ने अब कविता के जज़्बातों से खेलना शुरू कर दिया.. वह किसी भी सूरत में अपनी इस योजना को सफल बनाना चाहती थी

कविता: "कैसी बात कर रही है आप भाभी.. !! आपको किसी बात के लिए क्या कभी माना कर सकती हूँ मैं भला..!! पर जैसा मैंने कहा.. यह पीयूष पर निर्भर करता है.. मैं उससे बात जरूर करूंगी"

शीला: "यार, मर्द को अपनी दोनों टांगों के बीच दबाकर कैसे मनाना यह अब तक तो तुझे आ जाना चाहिए.. बिस्तर में उसे गरम करने के बाद.. लंड मुँह मे लेकर चुप्पे मारते हुए.. मर्द से कुछ भी मांग लो.. वह मान ही जाते है"

कविता: "वो मेरी दोनों टांगों के बीच ही तो नहीं आता.. उसी बात का तो रोना है भाभी"

शीला चुप हो गई.. गाड़ी अपनी गति से चलती रही और कुछ ही समय में उस चौराहे पर आ गई जहां से रसिक के खेत की ओर जाने का रास्ता पड़ता था..

मैन रोड से कच्ची सड़क पर होते हुए कविता गाड़ी को वहाँ तक ले गई जहां तक जा सकती थी.. झाड़ियों के बगल में गाड़ी पार्क करने के बाद दोनों उस पतली सी पगडंडी पर चलने लगी.. आगे कविता और उसके पीछे शीला..!!

कुछ दूर चलने पर रसिक के खेत की वह रूम नजर आते ही कविता का चेहरा खिल उठा

कविता: "लगता है हम पहुँच गए भाभी.. वो देखिए रसिक का खेत.. ईंटों की दीवार वाला कमरा.. और नीले रंग का छपरा.. मुझे बराबर याद है.. यही वो जगह है ना..??"

शीला: "हाँ यही है.. पर वो कही नजर नहीं आ रहा"

कविता ने घड़ी की ओर देखकर कहा "उसने तो इसी समय बुलाया था.. कहीं आसपास ही होगा.."

दोनों खेत के अंदर घुसे और कमरे के दरवाजे के पास पहुंचकर दस्तक देने ही वाले थे की तब रसिक ने अंदर से दरवाजा खोला

कविता को देखते ही रसिक की बल्ले बल्ले हो गई, वह बोला "अरे आप तो बिल्कुल समय पर पहुँच गई.. कोई तकलीफ तो नहीं हुई?" इतना कहते ही रसिक की नजर शीला पर पड़ी.. और उसके चेहरे की रेखाएं तंग हो गई.. एक पल पहले उसके चेहरे पर जो खुशी की चमक थी वह अब क्रोध में तब्दील हो गई

कविता की ओर रुख करते हुए रसिक ने कहा "भाभी, आप इन्हें साथ लेकर क्यों आई है?"

रसिक के कहने का मतलब कविता समझ गई.. उसे यह भी समझ में आ गया की क्यों रसिक शीला का फोन नहीं उठा रहा था

कविता: "अरे रसिक.. छोटी सी बात को इतना लंबा क्यों खींच रहे हो..!! हमारी जान पहचान तो सालों पुरानी है.. शीला भाभी कितना खयाल रखती है तुम्हारा.. और उन्हीं के कारण ही तो तुम्हारे साथ यह सब मुमकिन हो पा रहा है..!! अब वो सामने से चलकर तुम्हारे पास आई है और तूम ऐसा कह रहे हो..!!"

गुस्से से तिलमिलाते हुए रसिक ने कहा "भाभी, यह आपके लिए छोटी बात होगी.. पर हम छोटे लोगों के लिए यह बहोत बड़ी बात है.. ले-देकर हम लोगों की पास यही तो पूंजी होती है.. इज्जत की.. उसी को कोई बिना सोचे समझे उछाल दे तब गुस्सा तो आएगा ही..!! मुझ पर शक किया गया.. क्यों?? क्योंकि मैं गरीब और छोटा आदमी हूँ.. एक तरह से शीला भाभी ने मुझे मेरी औकात दिखा दी.. की भले ही वो मेरे कदमों पर झुककर मेरा लोडा चूसती हो.. वह मुझे अच्छा इंसान मानती ही नहीं है"

शीला ने आगे आकर रसिक का गिरहबान पकड़कर अपने दोनों उन्नत स्तनों के साथ उसकी छाती को सटा दिया और बोली "अब गई गुजरी भूल भी जा रसिक.. कब तक इस बात को इलास्टिक की तरह खींचता रहेगा..!! मुझसे गलती हो गई और मैंने तुझसे माफी भी मांग ली.. फिर भी क्यों अपनी जिद पर अड़ा हुआ है..!!"

रसिक ने शीला को खुद से दूर धकेला और कविता की ओर देखकर कहा "कविता भाभी, अगर आपको करवाना हो तो कमरे में अकेले चलिए मेरे साथ.. अगर यह भी साथ आने वाली हो तो मुझे कुछ नहीं करना.. आप महरबानी करके यहाँ से चले जाइए" रसिक ने हाथ जोड़ दिए

बड़ी दुविधा में फंस गई कविता.. एक तरफ चूत की आग.. और दूसरी तरफ रसिक की जिद..!!

निःसहाय नज़रों से उसने शीला की ओर देखा.. और फिर उसका हाथ पकड़कर रसिक से दूर ले गई और कहा

कविता: "भाभी, प्लीज मान जाइए.. आपके तो इसके अलावा भी और जुगाड़ होंगे.. पर मेरे लिए तो और कोई नहीं है.. आपको तो पता है मेरी हालत कैसी है..!! यह प्यास मुझे अंदर ही अंदर कुरेद रही है.. इससे पहले की यह मुझे मानसिक तौर पर खतम कर दें.. मुझे इस बुझा लेने दीजिए भाभी.. अभी वो गुस्से में है, मानेगा नहीं.. फिर उसे आराम से अपने तरीके से मना लीजिएगा"

शीला ने एक लंबी सांस ली और बोली "ठीक है कविता.. अब तेरी खुशी के लिए मुझे इतना तो करना ही पड़ेगा.. जा, जी ले अपनी ज़िंदगी.. बुझा ले अपनी प्यास.. पर याद रखना.. बाद में तुझे मेरा वो काम करना होगा"

कविता खुश होकर बोली "अरे भाभी, आप जो कहेंगे मैं करने के लिए राजी हूँ.. पीयूष नहीं माना तो मैं उसके पैर पकड़ लूँगी.. उससे मानना ही होगा.. आखिर ये मेरे पापा का भी तो बिजनेस है..!!"

शीला ने मुस्कुराकर कहा "ओके.. अब जा और भरपूर मजे करना.. कहीं कोई कसर मत छोड़ना"

कविता ने शीला के हाथ पकड़कर कहा "थेंक यू भाभी.. मैं आपका यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूँगी" कहते हुए वो भागकर रसिक के पास आई.. रसिक ने कविता का हाथ पकड़ा और शीला की ओर एक कटु नजर डालते हुए दरवाजा अंदर से बंद कर दिया..

भारी कदमों से चलते हुए शीला गाड़ी तक आई और खोलकर अंदर बैठ गई.. उसे भी बड़ी तमन्ना थी की रसिक के मूसल से अपनी चूत की सर्विसिंग करवाती.. पर खैर..!! एक बात अच्छी हुई.. कविता अब उसके एहसान के बोझ तले दब चुकी थी.. और उसका काम हो जाना लगभाग तय था..

_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

कविता हल्के कदमों से चलते हुए खटिया पर जाकर बैठ गई.. अपनी टी-शर्ट के ऊपरी दो बटन खोलकर, दोनों स्तनों के बीच की खाई दिखाते हुए वो रसिक की ललचाने लगी.. टी-शर्ट के आवरण के ऊपर से ही अपनी दोनों निप्पलों को दबाकर उसने रसिक के सामने आँख मारी..


kv3

अब कविता को तड़पाने की बारी रसिक की थी... इसलिये उसने अपनी लुंगी इस तरह धीरे से सरकायी कि उसकी जाँघें बिल्कुल नंगी हो गयी और अब वह एक झटके में ही किसी भी पल अपना लंड बाहर निकाल सकता था... कविता तो उसका लंड देखने के मरी जा रही थी... लुंगी के पतले से कपड़े में से उसके लंड की पूरी लंबाई और मोटाई साफ नजर आ रही थी...

करीब नौ इंच लंबे उस गोश्त के डंडे को अपने हाथों में पकड़ने की कविता को बेहद इच्छा हो रही थी... इसलिये रसिक को और उकसाने के लिये वो मासूमियत का नाटक करते हुए अपने मम्मे उसके कंधे पर और ज्यादा दबाने लगी जिससे उसे ये ज़ाहिर हो कि वह कितनी गरम हो चुकी थी... कविता के मस्त स्तनों की गर्मी रसिक को महसूस हो रही थी जिसके असर से लुंगी में उसका तंबू और बुलंद होने लगा और खासा बड़ा होकर खतरनाक नज़र आने लगा था... कविता समझ नहीं पा रही थी कि अब भी रसिक खुद पर काबू कैसे कायम रखे हुए था... अब कविता ने देखा कि उसके लंड का सुपाड़ा लुंगी को उठाते हुए अंदर ही मचलने लगा था...

“हाय रसिक..!!” कविता हैरानी से सिहर गयी... उसके लंड का सुपाड़ा वाकई में बेहद बड़ा था - किसी बड़े पहाड़ी आलू और लाल टमाटर की तरह... कमरे में आ रही मद्धम रोशनी में चमक रहा था... कविता जानती थी कि रसिक का बड़ा मूसल देखने के बाद वो ज्यादा देर तक खुद पर काबू नहीं रख पाएगी... उसे अपने होंठों में लेकर चूमने और चाटने के लिये वो तड़प रही थी...

रसिक कविता को अपने बड़े लंड के जलवे दिखा कर ललचा रहा था... कविता अब और आगे बढ़ने से खुद को रोक नहीं सकी और अपनी टी-शर्ट उतारने लगी... अंदर लाल रंग की ब्रा में उसके गोरे चमकते स्तनों का खुमार कुछ ऐसा था की देखकर ही रसिक, लूँगी के ऊपर से ही अपना तगड़ा लंड मसलने लगा.. कविता ने अपनी ब्रा के सारे हुक खोलकर उसे उतार दिया और उसके दोनों मम्मे बाहर ही कूद पड़े और अब खुली हवा में ऐसे थिरक रहे थे जैसे अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे हों...


kv5

कविता के उन्नत स्तनों को रसिक ने देखा तो शरारत से उसके कान में धीरे से फुसफुसा कर बोला, “अरे भाभी जी, जलवा है आपके मम्मों का.. आह्ह..!! आज तो मजे ले ले कर इन्हें मसलूँगा..!!”

कविता ने कहा, “कितनी गर्मी लग रही है..!! इन बेचारों को भी तो थोड़ी ठंडी हवा मिलनी चाहिये ना… बेचारे दिन भर तो कैद में रहते हैं!” अपने नंगे अमरूदों को रसिक के सामने झुलाते हुए कविता को बहोत मज़ा आ रहा था...

sb

जीन्स में छुपी उसकी चूत की तरफ देखते हुए रसिक बोला, “तो फिर भाभी, नीचे वाली को भी तो थोड़ी हवा लगने दो ना! उसे क्यों बंद कर रखा है!” ये कहते हुए उसने अपने हाथ कविता की जाँघों पर रख दिये और उसकी मुलायम और गोरी सुडौल टाँगों को चौड़ा करते हुए जीन्स के बटन को खोलने लगा.. पर वह उस टाइट जीन्स के बटन को खोल नहीं पाया

कविता ने रसिक का हाथ पकड़कर उसे रोक दिया क्योंकि वह उसे थोड़ा और तड़पाना चाहती थी... वो बोली, “अरे पहले तू ऊपर का काम तो खतम कर लें! नीचे की बाद में सोचेंगे!”

रसिक कविता के नंगे मम्मों को देख रहा था जो खरगोशों की तरह अलग अलग दिशा में अपनी निप्पल की नोक से तांक रहे थे... रसिक से और सब्र नहीं हुआ और वो कविता के बबलों को अपने हाथों में लेकर मसलने लगा... उसके मजबूत और खुरदरे हाथों के दबाव से कविता कंपकंपा गई... वह सोचने लगी कि जब इसके हाथों से मुझे इतनी लज़्ज़त मिल रही है तो लंड से वो मुझे कितना मज़ा देगा...

fb

कविता को खटिया के ऊपर लिटाकर, अपनी विशाल काया का सारा वज़न डालते हुए रसिक उस पर लेट गया.. एक पल के लिए कविता की सांसें ही थम गई इतना भारी जिस्म अपने ऊपर लेकर.. वो और कुछ ज्यादा सोच या समझ पाती उससे पहले रसिक ने उसके स्तनों को आटे की तरह गूँदते हुए उसकी निप्पलों को अंगूठे और उंगलियों के बीच मींजना शुरू कर दिया.. कविता ने अपनी आँखें बंद कर ली और सिहर कर अपनी जांघों के बीच हो रहे लंड के स्पर्श का आनंद लेते हुए खटिया पर ही मचलने लगी..

रसिक कविता की छातियों पर ऐसे टूट पड़ा था जैसे जनम जनम का भूखा हो.. चूचियों को वह ऐसे नोच रहा था की उसके प्रहारों के कारण स्तनों की त्वचा लाल गुलाबी हो गई थी.. जगह जगह काटने के निशान बन गए थे.. चूचियों को चूसते हुए रसिक अपने नीचे के हिस्से को कविता की दोनों जांघों के बीच रगड़ रहा था.. हालांकि दोनों के गुप्तांगों के बीच अभी भी कविता की पेन्टी और जीन्स तथा रसिक की लूँगी के आवरण थे.. जो की अब कुछ ही समय में दूर हो जाने वाले थे

कविता के बबलों को अच्छी तरह रौंद लेने के बाद, रसिक खड़ा हुआ और अपनी लूँगी उतारने लगा.. लूँगी नीचे गिरते ही उसका लंड तन्न से कविता के चेहरे के सामने आ गया.. !! उसके लंड का खुमार देखकर कविता के तो जैसे होश ही उड़ गए..


tnhbc

कविता उस हैवान को हाथों में लेने के लिये इस कदर तड़प रही थी कि बिना एक पल भी इंतज़ार किए उसने झपट कर उसका लौड़ा अपने हाथों में ले लिया...

"ऊऊऊहहह वाऊ रसिक.. " रसिक का लोडा इतना गरम था जैसे अभी तंदूर से निकला हो! कविता को लगा जैसे उसकी हथेलियाँ उसपे चिपक गयी हों... कविता रसिक का लौड़ा हाथों में दबान लगी जैसे कि उसके कड़ेपन का मुआयना कर रही हो... उसकी चूत भी अब लंड को लेने के लिये बिलबिला रही थी... उस पल कविता ने फैसला किया कि जिस्म की सिर्फ नुमाईश और ये छेड़छाड़ और मसलना बहोत हो गया… अब तो इस मूसल से अपनी चूत की आग ठंडी करने का वक्त आ गया था... कविता उसके लंड को इतनी ज़ोर-ज़ोर से मसल रही थी जैसे कि ज़िंदगी में फिर दोबारा दूसरा लंड मिलने ही न वाला हो... अब वह रसिक के लंड को अपने मुँह में लेने के लिये झुक गयी...

रसिक के लंड का सुपाड़ा ज़ीरो-वॉट के लाल बल्ब की तरह चमक रहा था... लेकिन जैसे ही कविता के प्यासे होंठ रसिक के लंड को छुए, उसने कविता का चेहरा दूर हटा दिया और बोला, “भाभीजी… रुकिये तो सही… पहले मुझे अपनी चूत के दर्शन करा दीजिये!”

हर गुज़रते लम्हे के साथ-साथ कविता और ज्यादा बेसब्री हुई जा रही थी... अब तक वो इस कदर गरम और दीवानी हो चुकी थी कि रसिक जो कहता वो करने के लिए तैयार थी.. रसिक भी जान-बूझकर उसे तड़पा रहा था.. वह चाहता था की कविता को ज्यादा से ज्यादा गरम और गीला कर दे तो लंड घुसाने में उतनी ही आसानी होगी

कविता को इस खेल में इतना मज़ा आ रहा था कि वो बस उस बहाव के साथ बह जाना चाहती थी... बिल्कुल बेखुद हो कर वो उससे बोली, “तुम्हें जो करना है कर लो लेकिन अपने इस मुश्टंडे लंड से मुझे जी भर कर प्यार कर लेने दो!”

रसिक: “अरे भाभी.. जितना मर्जी प्यार करने दूंगा.. पर पहले अपना पेन्ट उतारकर मुझे अपनी चूत तो दिखाइए”

रसिक के हुक्म की तामील करते हुए और धीरे-धीरे थोड़ी दिलफरेबी करते हुए कविता अपना पेन्ट उतारने लगी... उसकी गोरी जांघों के बीच प्यारी सी गुलाबी पेन्टी उतनी सुहानी लग रही थी की देखकर ही रसिक अपने हाथों को उसपर रगड़ने लगा.. फिर रसिक ने अपने दोनों हाथों से पेन्टी को खींचकर एक ही पल में कविता की टांगों से जुदा कर दिया

अब कविता की चिकनी सफाचट चूत उसे साफ नज़र आ रही थी जिसपे रो‍ओं तक का नामोनिशान नहीं था... रसिक निःशब्द होकर उस नज़ारे को देखता रहा.. आहाहा.. क्या नजारा था..!! जिस चूत से अब तक एक भी प्रसव नहीं हुआ था.. जाहीर सी बात थी की एकदम टाइट नजर आ रही थी.. प्यारी सी गुलाबी फांक और उसके ऊपर छोटे से दाने जैसी क्लिटोरिस..!!

hpr

स्तब्ध होकर उस चूत को देख रहे रसिक को कविता ने पूछा, “क्या हुआ! बोलती क्यों बंद हो गयी तुम्हारी? क्या सिर्फ देखते ही रहने का इरादा है मेरी चूत को!”

वो जैसे वापिस होश में आते हुए बोला, “भाभीजी, आज तक मैंने अनगिनत चूतें देखी हैं और चोदी भी हैं पर ऐसी चूत उफफफ… क्या कहें इसके लिये… ऐसी देसी कचौड़ी की तरह फुली हुई चूत देखकर मेरे तो होश ही उड़ गए है..!! पिछली बार तो पूरा अंदर घुसाने नहीं दिया था.. पर आज तो तसल्ली से चोदे बगैर छोड़ने वाला नहीं हूँ"

कविता बोली, “चाहती तो मैं भी यही हूँ… पर तुम बस देखते रहोगे और बातें ही करते रहोगे तो कैसे कुछ होगा..!!!”

रसिक बावरा होते हुए बोला "आप कहों तो अभी के अभी चोद दूँ"

कविता ने मुस्कुराते हुए कहा "अभी मुझे चूस तो लेने दो"

ये कहकर कविता उसका लंड मुँह में लेने के लिये नीचे झुक गयी... जब कविता ने उसका लंड अपने मुँह में लिया तो वो मस्त हो गई... इतना स्वादिष्ट लंड, जो उसके मुंह में ठीक से समा भी नहीं रहा था उसे चूसकर उसे मज़ा आ गया..!! वह उसका पूरा लंड नीचे से लेकर सुपाड़े तक बार-बार चाट रही थी...

रसिक ने भी अब सिसकना शुरू कर दिया और सिसकते हुए बोला, “हाँऽऽऽऽ भाभीजी! इसी तरह से मेरे लंड को चाटिये… हायऽऽऽऽ क्या मज़ा आ रहा है… सही में प्यार करना तो कोई आप जैसी शहर की औरतों से सीखे… हाय कितना मज़ा आ रहा है हायऽऽऽ बस इसी तरह से…!” कविता ने उसका लंड चाटने की रफ्तार बढ़ा दी और बीच-बीच में उसके टट्टे या सुपाड़ा मुँह में लेकर अच्छी तरह से चूस लेती थी... उसका नौ इंच लंबा और तीन इंच मोटा लंड कविता के थूक से सरासर भीगा हुआ और ज्यादा चमक रहा था और वो उसे और ज्यादा भिगोती जा रही थी...

lbc

अचानक रसिक धीरे से फुसफुसाया, “हाय भाभी! प्लीज़ ज़रा और जोर से चूसिये और मेरे गोटे भी सहलाइये तो… एक बार मेरा पानी निकल जायेगा… फिर बड़े आराम से चोदूँगा आपको!”

कविता भी सोच रही थी की अगर एक बार रसिक की पिचकारी छूट जाए तो दूसरे राऊँड में वह जमकर चोदेगा... इसलिये कविता ने उसके लंड पर ज्यादा प्रेशर लगाया और उसके गोटे सहलाते हुए उसने एक और दबंग हरकत की... धीरे से आगे खिसक कर उसने बंदूक की गोली जैसे अपने निप्पल उसके लंड के सुपाड़े पर लगा दिये और धीरे से उससे बोली, “देखो कैसे मेरे निप्पल तुम्हारे लौड़े को चूम रहे हैं… उफफफफ!” कविता को पता था कि रसिक अब झड़ने के करीब ही था, इसलिये उसे और जोश दिलाने के लिये वह अपनी निप्पल उसके लंड पर रगड़ने लगी...

rbn

रसिक अपनी चरमसीमा के बेहद करीब था और कराहने लगा, “आआआहहहऽऽऽऽऽ मैं तो गया आअहहहऽऽऽऽ!” और इसके साथ ही उसके लंड से पिचकारियाँ छूट कर कविता के स्तनों और चेहरे पर गिरने लगी... उसके लंड से आखिरी बूँद तक निचोड़ लेने के लिये कविता ने उसे सहलाना ज़ारी रखा... उसकी मलाई का ज़ायका इतना मजेदार था कि कविता अपने चेहरे और बबलों पे लगी मलाई बस चाटती ही रह गयी... उसे हवस भरी नज़रों से देखते हुए कविता अपनी उंगलियाँ भी चाटने लगी... कविता की निप्पलों से भी वीर्य की बूंदें टपक रही थी..

cmlc

हांफते हुए रसिक कविता के बगल में खटिया पर बैठ गया.. कविता उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके नॉर्मल होने का इंतज़ार करने लगी.. रसिक कविता को अपने बगल में लिटाते हुए खुद भी खटिया पर लेट गया..

दोनों के चेहरे अब एक दूसरे के सामने थे.. कविता बड़े ही प्यार से रसिक के खुरदरे चेहरे को सहला रही थी.. अपनी एक जांघ को रसिक की टांगों के ऊपर ले जाकर वह अपनी गीली चूत को रसिक के लंड के जीतने ज्यादा करीब ले जा सकती थी उतना ले जा रही थी.. अभी वीर्यपात करने के बाद थरथरा रहा.. आधा तना हुआ रसिक का लंड.. शिकार को अपने नजदीक पाकर.. उसे सूंघने के लिए फिर से ऊपर उठने लगा था..

कविता के नरम गोश्त जैसे स्तनों को हथेलियों से मसलते हुए रसिक उसके होंठों को चूसने लगा.. अपना हाथ नीचे ले जाते हुए कविता ने रसिक का लंड पकड़ा.. जो अभी भी अपने छेद से चिपचिपा प्रवाही थूक रहा था.. हाथ में पकड़कर ऐसा लग रहा था जैसे गरम सरिया पकड़ रखा हो.. कविता धीरे धीरे उस लंड की त्वचा ऊपर नीचे करते हुए उसे चोदने के लिए तैयार करने लगी.. धीरे धीरे चूत चोदने की उम्मीद में रसिक का लंड फिर से अकड़ने लगा था... कविता अब बेहद गरम और चुदासी हो चुकी थी

hbc

लंड धीरे धीरे तनकर खड़ा हो गया.. अपनी हथेली में उसके कद का प्रमाण मिलते ही कविता सरककर रसिक की दोनों टांगों के बीच पहुँच गई और झुककर उसे मुँह में लेकर चूसने लगी... लंड चूसते हुए वह रंडी की तरह रसिक से बोली, “ओह्ह… कितना शानदार है तुम्हारा लौड़ा… दिल कर रहा है कि इसे चूसती ही रहूँ - हाय - प्लीज़.. अब बहुत हुआ.. जल्दी से मुझे चोदो अपने इस हलब्बी लंड से - मैं तो कब से तरस रही हूँ!” उसके पूरे लंड और खासकर उसके सुपाड़े पर वह अपनी जीभ फिराते हुए बोली...

अपने लंड से कविता को दूर ढकेलते हुए रसिक बोला, “भाभी, पहले आपकी मुनिया का स्वाद तो ले लूँ.. फिर मजे से घुसा भी दूंगा”

शरमाकर कविता वापिस खटिया पर लेट गई.. रसिक उठकर कविता की जांघों के बीच सटकर बैठ गया.. जैसे ही कविता ने अपनी टांगें फैलाई.. उसकी प्यारी सी चूत अपने होंठ खोलकर रसिक को चाटने के लिए उकसाने लगी.. रसिक को तो अपनी किस्मत पर भरोसा ही नहीं हो रहा था.. !! कविता की चूत के लिए वो कितने सालों से तड़प रहा था..!! पिछली बार जब वो वैशाली के साथ आई थी तब भी आधा लंड लेने के बाद मैदान छोड़ भागी थी.. लेकिन आज उसे बिना चोदे जाने नहीं देने वाला था रसिक.. !! अब वो चाहे जितना चीखें या चिलाएं..!!

रसिक अपना चेहरा कविता की गुनगुनी बुर के करीब ले आया.. पिछले आधे घंटे के हरकतों की वजह से गरम हो चुकी मुनिया.. अंदर से हवस भरी भांप छोड़ रही थी.. जिसकी खुशबू रसिक के नथुनों तक पहुंचते हुए वह गुर्राते हुए करीब आया.. और अपनी लपलपाती जीभ से कविता की पूरी फांक को.. गांड से लेकर क्लिटोरिस तक फेरने लगा..

bmep

आँखें बंद कर कविता पागलों की तरह सिहरने लगी.. सातवे आसमान पर पहुँच गई वो..!! रसिक की खुरदरी जीभ का घर्षण अपने गुप्त भागों पर महसूस करते हुए उसकी मुनिया अपने होंठों को खोल और सिकुड़ रही थी.. !!! रसिक ने अपनी उंगलियों से उस बुर की फाँकों को चौड़ा किया और अंदर के गरम गुलाबी हिस्से को ताज्जुब से देखने लगा.. !! इतनी सुंदर चूत को इतने करीब से देखकर वह भोंचक्का सा रह गया.. कविता ने दोनों हाथों से रसिक के बालों को पकड़ा और उसके चेहरे को अपनी चूत के ऊपर दबा दिया.. रसिक ऐसे चाटने लगा जैसे भालू छत्ते से शहद चाट रहा हो.. !!!

चाटते हुए रसिक ने अपनी एक उंगली से कविता के गांड के छिद्र को भी छेड़ना शुरू कर दिया था.. उसकी चूत का रस अब रिसकर उसकी गांड के छेद तक जाकर खटिया पर टपक रहा था.. खटिया में मचल रही कविता दोनों हाथों से अपने स्तनों को मसल मसलकर लाल कर रही थी.. जब रसिक ने अपने दोनों होंठों के बीच उसकी प्यारी सी क्लिटोरिस को दबाकर जीभ अंदर घुसाई तब कविता कांपने लगी.. उसका शरीर सख्त हो गया.. और वह थरथराते हुए रसिक के मुंह के अंदर ही झड़ गई..!!!

pc-1-1

गरम गरम चूत-जल का अधिक बहाव मुंह के अंदर महसूस होते ही रसिक जान गया की कविता झड़ गई थी.. बेतहाशा चाटने के कारण.. और एक बार झड़ने की वजह से कविता की चूत एकदम गीली चिपचिपी हो चुकी थी और छेद कुछ फैलकर खुल भी चुका था..

चूत को पर्याप्त मात्रा में चाट लेने के बाद रसिक उठा और कविता के जिस्म के ऊपर आ गया.. उसका पूरा गीला मुंह ऐसा लग रहा था जैसे शिकार को खाने के बाद शेर का खून से सना चेहरा नजर आता है..!!

रसिक ने मुठ्ठी में अपने लंड को पकड़ा और बोला, “भाभी.. लंड को अपने मुँह में ले कर थोड़ा सा चूस दो… तो ये ठीक से खड़ा हो जाए…”

कविता ने बिना देर किए उसका लंड अपने लबों के बीच ले लिया.. अब वह जल्द से जल्द योनि-प्रवेश चाहती थी.. उसने लपक कर उसे पकड़ लिया और बड़े चाव से उसे अपने मुँह में लेकर चूसने लगी... उसका लंड चूसते हुए कविता उसके चूतड़ों को दबाते हुए अपने लंबे नाखूनों से खुरच रही थी... उसका लंड फिर से सख्त होने लगा था... करीब दो-तीन मिनट तक उसका मोटा लंड चूस चूसकर कविता के होंठ और जबड़ा दुखने लगे...

bbl

रसिक अब ज़ोर-ज़ोर से कराहते हुए बोल रहा था, “आह्ह… और जोर से चूसो मेरा लंड… आपको शहर में ऐसा लौड़ा कहीं नहीं मिलेगा… ऊऊऊहहऽऽऽऽ येऽऽऽ मेरी गाँड भी सहला दो… आंआंऽऽऽऽ हाय क्या लौड़ा चूसती हो आप… आपने तो शीला भाभी को भी पीछे छोड़ दिया लंड चूसने में… बस इसी तरह सेऽऽऽऽ!”

थोड़ी देर और अपना लंड चुसवाने के बाद उसने कविता को चूसने से रोक दिया, “बस बहुत हो गया अब… अब छोड़ दो इसे नहीं तो इसका पानी फिर से निकल जायेगा… और आपकी चूत प्यासी ही रह जायेगी!”

कविता ने उसका लंड मुँह में से निकाला और उसके अंदाज़ में बोली, “आह रसिक.. अगर अब मेरी चूत प्यासी रह गयी तो मैं तुम्हारे इस लंड को काट के अपने साथ ही ले जाऊँगी... लो - अब जल्दी से मेरी चूत चोद दो..!!!” ये कहते हुए कविता अपनी चूत उसे दिखाते हुए बोली, “अब प्लीज़ जल्दी करो… देख कब से गीली हुई पड़ी है… जल्दी से आओ और अपने लंड से इसकी प्यास बुझाओ..!!!!”

कविता अब बिल्कुल नंगी वहाँ लेटी हुई थी.. दो टके की रंडी की तरह उसके लंड की भीख माँग रही थी... रसिक उसके करीब आया.. कुछ पलों के लिये उसकी फुदक रही दिलकश चूत को निहारता रहा और फिर बोला, “हाय क्या मक्खन के जैसी चूत है आपकी भाभी… और ये माँसल जाँघें… ये गोरी लंबी टाँगें .. ये प्यारे पैर… इन्हें देखकर तो नामर्दों का भी लंड खड़े होकर सलामी देने लग जायेंगे… हायऽऽऽ मैं मर जाऊँ”

उसकी महज़ बातों से कविता झल्ला गयी और बोली, “यार रसिक… अब चोदोगे भी या ऐसे ही खड़े खड़े निहारते रहोगे..!!! नीचे आग लगी हुई है!” हवस से तप रही कविता को अब रसिक के लोड़े की साइज़ का डर भी लगना शुरू हो गया था.. पिछली बार तो उसने सुपाड़ा डाला तभी उसकी फट गई थी.. पर आज वह मन से तैयार थी.. किसी भी सूरत में वह आज रसिक से चुदना चाहती थी

रसिक ने झुककर अपना लंड कविता की बुर पर रगड़ते हुए कहा, “अभी इसकी आग को ठंडा कर देता हूँ.. ” जैसे ही उसने अपने लंड का सुपाड़ा चूत पे लगाया तो उसका सुपाड़े की गर्मी ने चूत को झकझोर कर रख दिया... फिर उसने अपना लंड चूत में हल्के से ढकेला तो मूश्किल से अभी वो अंदर घुसा ही था कि कविता को लगा जैसे उसकी चूत फट जाएगी... वह धीरे से चींखी, “अरे ज़रा धीरे से घुसाओ… ”

ep

“अभी तो सुपाड़ा ही अंदर गया है भाभी… अभी से ही चिल्लाने लग गई… ” कहते हुए रसिक ने अपना सुपाड़ा बाहर निकाला.. मुंह से ढेर सारा थूक निकालकर उसपर मल दिया.. और उंगलियों से बुर को फैलाते हुए सुपाड़े को अंदर रखकर अपना आधा लंड अंदर घुसा दिया..!!! जितना लंड अंदर गया था.. छेद आराम से उतना ले पाए.. आदत हो जाए.. इसलिए रसिक अपना आधा लंड ही अंदर बाहर करने लगा.. कविता का दर्द अब आनंद में तब्दील होता जा रहा था.. वो कराहते हुए रसिक के चेहरे को चूमने लग गई..

जब रसिक को लगा की कविता ने आधे लंड को बर्दाश्त कर लिया था तब उसने एक झटके में ही पूरा लंड कविता की चूत में घुसा दिया..!!! एक पल के लिये तो कविता को ऐसा लगा कि दर्द के मारे उसकी जान ही निकल जायेगी... वो चिल्लाने लगी, “ओहहह.. हाय.. ऊई माँ.. मर गयी… प्लीज़ ज़रा धीरे-धीरे डालो!” लेकिन फिर कुछ देर में आखिरकार दर्द कम हो गया और कविता को उसके लंड के धक्कों का मज़ा आने लगा... रसिक अब तेज रफ्तार से अपने लंड से उसकी चूत चोद रहा था... कविता स्थिर पड़े हुए रसिक के धक्कों का आनंद ले रही थी.. उसके शरीर में प्रतिक्रिया देने जितनी ताकत ही नहीं बची थी..

ent

रसिक: “अरे भाभी.. ऐसे क्यों लेटी हुई हो… आप भी अपनी गांड नीचे से हिला कर सामने धक्के लगाइए… फिर देखिए कितना मज़ा आता है!”

कविता ने उसके लंड के धक्कों के साथ-साथ लय में अपने चूतड़ ऊपर-नीचे हिलाने शुरू कर दिये और ऐसे ही कुछ देर चुदाई ज़ारी रही... उसे लग रहा था कि जैसे वो ज़न्नत में हो... आज आखिरकार रसिक का लंड पूरा अंदर लेकर चुदवाने की हसरत पूरी हो ही गई..!! रसिक उसे लगातार रफ्तार से चोद रहा था... ताव मे आकर जोर से चिल्लाते हुए कविता बोली, “ऊऊऊऊहहहऽऽऽऽ बस इसी तरह शॉट लगाते रहो रसिक… बहोत मज़ा आ रहा है!”

fh

कविता को लग रहा था जैसे लंड की बजाय किसी ने लोहे का रॉड उसकी चूत में घुसेड़ रखा था... दर्दनाक तो था लेकिन फिर भी उसके साथ-साथ बेहद मज़ेदार एहसास था... ऐसा एहसास ज़िंदगी में पहले कभी नहीं हुआ था... ऐसा नहीं था की पीयूष के लंड से वह संतुष्ट नहीं थी लेकिन इस रसिक के मोटे लंड के आगे किसी का मुकाबला नहीं था... अचानक रसिक ने चूत में से अपना लंड बाहर खींच लिया... कविता से अपनी चूत का खालीपन बर्दाश्त नहीं हो रहा था...

अब रसिक ने उसे घूम कर घुटनों और हाथों के सहारे कुत्तिया वाले अंदाज़ में झुकने को कहा... चुदाई के अलग-अलग अंदाज़ों के बारे में रसिक की मालूमात देख कर कविता भी हैरान हो गई..

कविता को थोड़ी घबराहट हो रही थी क्योंकि वैसे ही उसका लंड काफी तकलीफ के साथ उसकी चूत में जा रहा था और अब इस कुत्तिया वाले अंदाज़ में तो यकीनन वो उसकी चूत फाड़ डालेगा क्योंकि वो अब ज्यादा अंदर तक चूत में घुसने के काबिल होगा... लेकिन अब रसिक रुकने वाला नहीं था और कविता भी उसे रोकना नहीं चाहती थी..

वह घूम कर कुत्तिया की तरह झुक गयी और रसिक ने पीछे आकर उसके गोरे कूल्हों को सहलाना शुरू कर दिया... कविता की गांड का बादामी छेद देखकर रसिक का मन ललचा जरूर गया पर जहां चूत में लेने पर ही कविता की फट पड़ी थी.. अगर वो अपना लंड उसकी गांड के करीब भी ले जाता तो कविता की जान निकल जाती.. फिलहाल उसने चूत पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखा

दोनों कूल्हों पर अपने हाथ रखकर.. रसिक ने अपने सुपाड़े को कविता की बुर में घोंप दिया..

bep

इस दफा भी खुब दर्द हुआ लेकिन पिछली बार की तरह नहीं क्योंकि उसकी चूत अब काफी रस टपका रही थी... ये देख कर वो बोला, “अरे लगता है आपका तो पानी छूट रहा है!” और उसने ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिये... मस्त चूतड़ों को भी वो सहलाते हुए ज़ोर-ज़ोर से भींच रहा था और उसने अपनी एक उंगली से कविता की गाँड को कुरेदना शुरू कर दिया...

कविता मस्ती में ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी, “ओहहहह थोड़ा और ज़ोर से धक्के मारो रसिक… हाय बहुत मज़ा आ रहा है… और प्लीज़ मेरे पीछे से अपनी उंगली निकाल लो… ओहहह मममऽऽ आआआआहहहहऽऽ!!!!”

पीछे से धक्के लगाते हुए रसिक कविता की कमर पर आगे की तरफ झुका और उसके लटकते हुए स्तनों को अपने हाथ में ले लिया और निप्पल को मसलने लगा...

dg

मस्ती में कविता भी खुद पर और काबू नहीं रख सकी और अपने जिस्म की तमाम आग और गर्मी अपनी चूत में दागने लगी... “हाय मर गई.. ऊऊऊहहह अब जल्दी करो..!!!!” जब रसिक को एहसास हुआ कि वो फिर से झड़ रही थी तो उसने भी अपनी चोदने की रफ्तार तेज़ कर दी और चिल्लाते हुए बोला, “लो.. अब तो आपका दिल भर गया ना… अब मेरा भी निकलने वाला है… हाऽऽऽऽ ओहहऽऽऽऽऽ हायऽऽऽ मेरी रानी… आहहहऽऽऽ मज़ा आ गयाऽऽऽऽ!” रसिक ने कविता की चूत में अपना गाढ़ा माल छोड़ दिया... कविता को ऐसा लगा जैसे कि अचानक उसकी चूत गरम पिघलते हुए लावा से भर गयी हो.. !!! ज़िंदगी में पहली बार चुदाई में इतना मज़ा आया था उसे..


cip-1

स्खलन के पश्चात रसिक ने कविता के चूतड़ छोड़ दिए और खटिया पर ढेर हो गया.. कविता भी धीरे से पलटी और उसके बगल में लेट गई.. उसके घुटने छील चुके थे.. कुछ वक्त के लिये वह ऐसे ही पड़ी रही... अपनी भीगी और टपकती चूत को साफ करने के लिये उठने की भी ताकत नहीं थी उसमें... वो तो बस चुदाई के बाद के सुरूर के एहसास का मज़ा ले रही थी...
चूत की खुजली कविता भाभी को ऐसी लगी जलाने

जा पहुंची वो रसिक के खेतो में फुद्दी अपनी मरवाने

कब से संजो रखी थी मन में जिसकी लेने की आस

आज वो खुद चलकर आई थी ठुकने को उसके पास

कमरे में ले जा कविता को खटिया पर उसे बिठाया

लगी बहकने जब हटा कर लुंगी अपना लंड दिखाया

टीशर्ट के दो बटन खोलके अपनी चुची लगी दिखाने

तने हुए निपल को निचोड़के रसिक को लगी तड़पाने

देख चुचिया नरम मुलायम तन गया रसिक का लौड़ा

पहला चूसा मूंह में लेकर फिर हाथो से उसे निचोड़ा

कविता का भी देख जालिम लौड़ा बुरा हो गया हाल

झट से पकड़ के वो भी लगी चूसने कर के पीछे खाल

सिस्क पड़ा रसिक बेचारा कविता के मूंह की गर्मी से

गोट्टे भी कविता अब लगी चुस्ने अपनी पूरी बेशर्मी से

पिछले मिलन में भाभी तेरी रह गई थी चुदाई अधूरी

आज चोद के अच्छे से तुम को मैं वो कमी करुंगा पूरी

बोला भाभी पहले चाट चाट के निकल दे इसका पानी

फिर तेरी तांगे कांधे पे रख के मैं चोदूंगा तुझको रानी

हाथ जोड़ती तेरे आगे रसिक अब डाल दे अपना डंडा

जो आग लगी है मेरी चूत के अंदर कर दे इसको ठंडा

रख के चूत पे अपना लौड़ा रसिक धीरे से लगा घुसाने

फटगई मेरी चूत निकलो बाहर कविता लगी चिल्लाने

पहले उसे चोदा आधे लौड़े से फिर अंदर पूरा घुसाया

बाद में बिस्तर पे बना के कुतियाअच्छे से खूब बजाया

चुदक्कड़ घोड़ी दमदार पति ना मिलने पर भी किसी तरह से अपनी प्यास बुझाने के लिए दमदार मर्द ढूंढ कर टांगे फैला ही देगी और उसे कोई रोक नहीं सकता ये करने से...वैसे ये गलत भी नहीं है एक ही जीवन मिला है उसमे प्यासा क्यों रहे…जब औरत प्यासी हो ,मूसल की भूखी हो तो उसको फर्क नहीं पड़ता कि मूसल कितन तगडा दमदार , कड़क और मोटा- लंबा है, वो बस उसको केवल अपने चूत में ले के अपनी प्यास बुझाने की सोचती है, और फ़िर दर्द और मूसल की झटके प्यार में बदल जाते है
 

vakharia

Supreme
5,922
20,460
174
चूत की खुजली कविता भाभी को ऐसी लगी जलाने

जा पहुंची वो रसिक के खेतो में फुद्दी अपनी मरवाने

कब से संजो रखी थी मन में जिसकी लेने की आस

आज वो खुद चलकर आई थी ठुकने को उसके पास

कमरे में ले जा कविता को खटिया पर उसे बिठाया

लगी बहकने जब हटा कर लुंगी अपना लंड दिखाया

टीशर्ट के दो बटन खोलके अपनी चुची लगी दिखाने

तने हुए निपल को निचोड़के रसिक को लगी तड़पाने

देख चुचिया नरम मुलायम तन गया रसिक का लौड़ा

पहला चूसा मूंह में लेकर फिर हाथो से उसे निचोड़ा

कविता का भी देख जालिम लौड़ा बुरा हो गया हाल

झट से पकड़ के वो भी लगी चूसने कर के पीछे खाल

सिस्क पड़ा रसिक बेचारा कविता के मूंह की गर्मी से

गोट्टे भी कविता अब लगी चुस्ने अपनी पूरी बेशर्मी से

पिछले मिलन में भाभी तेरी रह गई थी चुदाई अधूरी

आज चोद के अच्छे से तुम को मैं वो कमी करुंगा पूरी

बोला भाभी पहले चाट चाट के निकल दे इसका पानी

फिर तेरी तांगे कांधे पे रख के मैं चोदूंगा तुझको रानी

हाथ जोड़ती तेरे आगे रसिक अब डाल दे अपना डंडा

जो आग लगी है मेरी चूत के अंदर कर दे इसको ठंडा

रख के चूत पे अपना लौड़ा रसिक धीरे से लगा घुसाने

फटगई मेरी चूत निकलो बाहर कविता लगी चिल्लाने

पहले उसे चोदा आधे लौड़े से फिर अंदर पूरा घुसाया

बाद में बिस्तर पे बना के कुतियाअच्छे से खूब बजाया

चुदक्कड़ घोड़ी दमदार पति ना मिलने पर भी किसी तरह से अपनी प्यास बुझाने के लिए दमदार मर्द ढूंढ कर टांगे फैला ही देगी और उसे कोई रोक नहीं सकता ये करने से...वैसे ये गलत भी नहीं है एक ही जीवन मिला है उसमे प्यासा क्यों रहे…जब औरत प्यासी हो ,मूसल की भूखी हो तो उसको फर्क नहीं पड़ता कि मूसल कितन तगडा दमदार , कड़क और मोटा- लंबा है, वो बस उसको केवल अपने चूत में ले के अपनी प्यास बुझाने की सोचती है, और फ़िर दर्द और मूसल की झटके प्यार में बदल जाते है
आपकी फ़िलॉसफी सुनकर "हंगर गेम्स" का असली मतलब समझ आ गया! 😂

एक और "गर्मागर्म" सचाई – "जब चूत में चिंगारी, तो मर्द की ज़िम्मेदारी!" 🔥

वैसे भी, "प्यास" कोई ऐसी चीज़ नहीं जो लॉजिक सुनती हो... "जब नदी सूखे, तो कुआँ खोदो... और अगर कुआँ भी सूखा हो, तो पड़ोसी के खेत से ही सही, मगर पानी तो चाहिए!" 🌊😉

औरत की भूख को समझने के लिए किसी मेन्यू कार्ड की आवश्यकता नहीं होती... जो मिला, वही थाली में परोस दो... बस, स्वाद अच्छा होना चाहिए! 🍗😂

तो हाँ, जीवन छोटा है और इच्छाएँ बड़ी... बस ट्रैफिक रूल्स का ख्याल रखना है, क्योंकि यहाँ अगर एक्सीडेंट हुआ तो इंश्योरेंस की कोई गुंजाइश नहीं रहती🚦💥

जय हो उस प्रकृति की... जिसने भूख दी, तो खाने का इंतज़ाम भी कर ही देती है!🙏😂
arushi_dayal
 

arushi_dayal

Active Member
825
3,667
124
आपकी फ़िलॉसफी सुनकर "हंगर गेम्स" का असली मतलब समझ आ गया! 😂

एक और "गर्मागर्म" सचाई – "जब चूत में चिंगारी, तो मर्द की ज़िम्मेदारी!" 🔥

वैसे भी, "प्यास" कोई ऐसी चीज़ नहीं जो लॉजिक सुनती हो... "जब नदी सूखे, तो कुआँ खोदो... और अगर कुआँ भी सूखा हो, तो पड़ोसी के खेत से ही सही, मगर पानी तो चाहिए!" 🌊😉

औरत की भूख को समझने के लिए किसी मेन्यू कार्ड की आवश्यकता नहीं होती... जो मिला, वही थाली में परोस दो... बस, स्वाद अच्छा होना चाहिए! 🍗😂

तो हाँ, जीवन छोटा है और इच्छाएँ बड़ी... बस ट्रैफिक रूल्स का ख्याल रखना है, क्योंकि यहाँ अगर एक्सीडेंट हुआ तो इंश्योरेंस की कोई गुंजाइश नहीं रहती🚦💥


जय हो उस प्रकृति की... जिसने भूख दी, तो खाने का इंतज़ाम भी कर ही देती है!🙏😂
arushi_dayal
😊😊
 

Premkumar65

Don't Miss the Opportunity
7,226
7,786
173
चूत की खुजली कविता भाभी को ऐसी लगी जलाने

जा पहुंची वो रसिक के खेतो में फुद्दी अपनी मरवाने

कब से संजो रखी थी मन में जिसकी लेने की आस

आज वो खुद चलकर आई थी ठुकने को उसके पास

कमरे में ले जा कविता को खटिया पर उसे बिठाया

लगी बहकने जब हटा कर लुंगी अपना लंड दिखाया

टीशर्ट के दो बटन खोलके अपनी चुची लगी दिखाने

तने हुए निपल को निचोड़के रसिक को लगी तड़पाने

देख चुचिया नरम मुलायम तन गया रसिक का लौड़ा

पहला चूसा मूंह में लेकर फिर हाथो से उसे निचोड़ा

कविता का भी देख जालिम लौड़ा बुरा हो गया हाल

झट से पकड़ के वो भी लगी चूसने कर के पीछे खाल

सिस्क पड़ा रसिक बेचारा कविता के मूंह की गर्मी से

गोट्टे भी कविता अब लगी चुस्ने अपनी पूरी बेशर्मी से

पिछले मिलन में भाभी तेरी रह गई थी चुदाई अधूरी

आज चोद के अच्छे से तुम को मैं वो कमी करुंगा पूरी

बोला भाभी पहले चाट चाट के निकल दे इसका पानी

फिर तेरी तांगे कांधे पे रख के मैं चोदूंगा तुझको रानी

हाथ जोड़ती तेरे आगे रसिक अब डाल दे अपना डंडा

जो आग लगी है मेरी चूत के अंदर कर दे इसको ठंडा

रख के चूत पे अपना लौड़ा रसिक धीरे से लगा घुसाने

फटगई मेरी चूत निकलो बाहर कविता लगी चिल्लाने

पहले उसे चोदा आधे लौड़े से फिर अंदर पूरा घुसाया

बाद में बिस्तर पे बना के कुतियाअच्छे से खूब बजाया

चुदक्कड़ घोड़ी दमदार पति ना मिलने पर भी किसी तरह से अपनी प्यास बुझाने के लिए दमदार मर्द ढूंढ कर टांगे फैला ही देगी और उसे कोई रोक नहीं सकता ये करने से...वैसे ये गलत भी नहीं है एक ही जीवन मिला है उसमे प्यासा क्यों रहे…जब औरत प्यासी हो ,मूसल की भूखी हो तो उसको फर्क नहीं पड़ता कि मूसल कितन तगडा दमदार , कड़क और मोटा- लंबा है, वो बस उसको केवल अपने चूत में ले के अपनी प्यास बुझाने की सोचती है, और फ़िर दर्द और मूसल की झटके प्यार में बदल जाते है
Great poem Arushi ji.
 

Ajju Landwalia

Well-Known Member
4,041
15,565
159
पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की कविता की अरज पर शीला उसके शहर जाने बस में निकली.. बीच सफर एक अनजान मुसाफिर के साथ शीला ने बस में ही घमासान चुदाई की.. संतुष्ट होकर शीला कविता के घर पहुंची.. बात करते हुए शीला को पता चला की पीयूष की गैर मौजूदगी में ऑफिस संभालने कविता रोज जाती थी.. शीला को ताज्जुब हुआ क्योंकि रेणुका के मुताबिक, पीयूष की ऑफिस संभालने राजेश हफ्ते में दो से तीन दिन जाता था.. शीला रमिलाबहन से मिलने गई जहां उसकी मुलाकात फाल्गुनी से हुई.. एक फोन आने पर फाल्गुनी हड़बड़ी में निकल गई और शीला ने उसका पीछा किया.. उसे पता चला की राजेश और कविता के बीच कुछ चल रहा है..

अब आगे...
_________________________________________________________________________________________________



काफी देर तक कुछ नहीं हुआ.. फाल्गुनी खड़े खड़े इंतज़ार करती रही.. शीला का सब्र अब जवाब दे रहा था.. तभी फाल्गुनी के करीब एक गाड़ी आकर खड़ी हो गई.. फाल्गुनी ने आगे का दरवाजा खोला और अंदर बैठ गई.. दरवाजा बंद हुआ और गाड़ी तेजी से निकल गई..

शीला स्तब्ध होकर देखती ही रही.. गाड़ी राजेश की थी और उसे पक्का यकीन था की वह राजेश ही था..!! फाल्गुनी ने जब रमिलबहन के घर अपना मोबाइल हाथ में लिया तब भी स्क्रीन पर राजेश का नाम नजर आया था..!! पर तब शीला को केवल शक ही था क्योंकि राजेश नाम का कोई और भी तो हो सकता था.. !! लेकिन अब अपनी आँखों से देखकर शीला को पक्का यकीन हो गया..!!

शीला अब कविता के घर की तरफ जाने लगी.. उसके दिमाग की चक्की गोल गोल घूम रही थी.. अब सारा मामला धीरे धीरे समझ मे आने लगा था.. राजेश ने रेणुका को यह बताया था की वो पीयूष की ऑफिस को संभालने के लिए हफ्ते में दो-तीन दिन इस शहर आता था.. जब की कविता का कहना था की पीयूष की गैर-मौजूदगी में वो रोज ऑफिस जाती थी और राजेश तो कभी वहाँ नहीं आता था..!! राजेश तो यहाँ फाल्गुनी को लेकर अपने ही गुल खिला रहा था.. !! पर शीला को एक बात समझ नहीं आ रही थी.. राजेश और फाल्गुनी का सेटिंग आखिर हुआ कैसे..!! वैसे दोनों एक दूसरे को जानते थे पर वह पहचान तो काफी साधारण थी.. उनके रिश्ते इतने आगे कैसे बढ़ गए वह सोच का विषय था.. !!

मतलब साफ था.. राजेश और फाल्गुनी के बीच जरूर कुछ खिचड़ी पक रही थी.. और दोनों क्या गुल खिला रहे थे यह शीला पता करके ही रहने वाली थी..

चलते चलते शीला कविता के घर पहुंची.. कविता ऑफिस से आ चुकी थी

कविता: "भाभी.. कहाँ घूमकर आई आप?"

शीला: "अकेले बैठे बैठे बोर हो रही थी.. सोचा तुम्हारी मम्मी से मिल आऊँ.. वैसे भी काफी दिन हो गए थे उन्हें मिले हुए..!!"

कविता: "अच्छा किया.. अरे भाभी..!! आपने बात की या नहीं रसिक से??"

शीला: "सब्र कर.. करती हूँ उसे फोन.. वो कहाँ भागा जा रहा है..!!"

कविता: "क्या भाभी..!! मैंने आपसे कहा तो था की आप बात कर लेना.. वो कहीं बाहर होगा तो..??"

शीला: "ठीक है बाबा, करती हूँ फोन"

कविता: "आप बात कीजिए तब तक मैं हाथ मुंह धोकर फ्रेश हो जाती हूँ"

शीला ने गहरी सांस ली और अपना फोन निकाला.. रसिक अब भी उससे नाराज ही चल रहा था.. बल्कि उस दिन के बाद उसने कभी शीला के साथ सीधे मुंह बात तक नहीं की थी.. पिंटू पर हमले के बाद जब शीला ने रसिक पर इल्जाम लगाया था, जो की बाद में झूठा साबित हुआ था.. उसके बाद रसिक को इतना बुरा लग गया की उसने शीला से बात करना ही बंद कर दिया.. सुबह दूध देने आता तो भी आँखें झुकाकर दूध देकर चला जाता.. शीला ने एक दो बार फोन पर बात करने की भी कोशिश की पर रसिक ने फोन उठाया ही नहीं

कविता की जिद पर शीला ने रसिक को फोन लगाया.. पर उसने उठाया नहीं.. कुछ मिनट बाद शीला ने फिर फोन लगाया पर नतीजा वही था..

शीला अब परेशान हो गई.. यहाँ कविता का तवा गरम हुआ पड़ा है और दूसरी तरफ रसिक फोन नहीं उठा रहा था.. अब क्या किया जाए..!!

नेपकीन से अपना मुंह पोंछते हुए कविता बाहर आई और बड़े ही उत्साह से शीला के बगल में बैठ गई

कविता: "हो गई बात?? कब चलना है?"

शीला: "नहीं यार.. वो फोन ही नहीं उठा रहा"

कविता: "कहीं बाहर होगा.. फोन करेगा वापिस"

शीला ने गहरी सांस छोड़कर कहा "नहीं करेगा"

कविता ने चोंककर पूछा "क्यों भाभी?"

शीला ने पूरा वाकया सुनाया.. कैसे पिंटू पर हुए हमले के बाद उसने रसिक पर शक किया था और उसके बाद से रसिक ठीक से बात नहीं करता था

कविता जबरदस्त निराश हो गई, वह बोली "तो अब क्या होगा भाभी??"

शीला ने सोचकर कहा "तू चिंता मत कर.. मैं कुछ करती हूँ"

शीला सोचते हुए बैठी रही और कविता उसके सामने आशा भरी नज़रों से देखती रही

शीला: "एक काम करते है.. तू अपने फोन से बात कर.. रसिक को प्रॉब्लेम मुझसे है.. तेरा तो फोन वो जरूर उठाएगा.. वैसे भी वो तेरे पीछे पागल है"

फोन करने की बात सुनकर कविता थोड़ी सहम गई.. फिर कुछ सोचकर उसने रसिक को फोन लगाया.. आधी रिंग पर ही रसिक ने फोन उठा लिया

रसिक: "कैसी हो भाभी?? आज बड़े दिन बाद याद किया आपने?"

कविता: "बहोत दिन हो गए थे तुमसे बात किए हुए.. सोच बात कर लूँ..!!"

रसिक: "बड़ा अच्छा किया आपने.. बताइए क्या सेवा करूँ?"

कविता: "अब इतने दूर दूध मँगवाने के लिए तो फोन करूंगी नहीं तुम्हें"

रसिक: "समझ गया भाभी.. पिछली बार जब आप शीला भाभी की बेटी के साथ आई थी तब हमारी मुलाकात अधूरी रह गई थी..चलिए आज उसे पूरा कर देते है.. कहिए कब मिलना है?"

कविता: "आज मिल सकते है क्या?"

रसिक: "आप यहीं है या अपने शहर?"

कविता: "मैं तो मेरे घर पर हूँ"

रसिक ने आश्चर्य से कहा "तो आप वहाँ से यहाँ तक मुझसे मिलने के लिए आएंगे?"

कविता ने मुस्कुराकर कहा "अब क्या करें..!! जो चीज तुम्हारे पास है उसके लिए वहाँ तक आना तो पड़ेगा"

रसिक: "ठीक है भाभी.. आ जाइए मेरे खेत पर.. पिछली बार जहां मिले थे वहीं पर..!!"

कविता ने खुश होकर कहा "ठीक है.. मैं तीन बजे तक वहाँ पहुँच जाऊँगी"

फोन रखकर कविता ने शीला से कहा "लीजिए भाभी, हो गया काम.. खाना खाकर निकलते है"

शीला: "कविता, मैं सोच रही थी की तेरे साथ चलूँ या नहीं..!!"

कविता चोंक गई "अरे.. ऐसा क्यों कह रही हो भाभी?"

शीला: "यार रसिक मुझे देखकर ही भड़कता है.. कहीं मेरे चक्कर में तेरा सेटिंग गड़बड़ा न जाएँ"

कविता: "कुछ नहीं होगा ऐसा.. मैं वहाँ अकेले नहीं जाने वाली... आप मेरे साथ चल रही हो और यह फाइनल है"

गहरी सांस लेकर शीला ने कहा "ठीक है"

कविता: "आप तैयार हो जाइए.. हम थोड़ी ही देर में निकलते है"

शीला वैसे तैयार ही थी.. कविता और वह दोनों कुछ ही देर में गाड़ी लेकर निकल गए

गाड़ी शहर से बाहर हाइवे पर सरपट चल रही थी.. लाइट म्यूज़िक बज रहा था.. कविता एक सफेद टी-शर्ट और ब्लू जीन्स पहने हुई थी जब की शीला पिंक रंग की साड़ी में सज्ज थी

शीला: "कविता, मुझे तुम्हारा एक काम था"

गाड़ी के स्टियरिंग पर अपने हाथ जमाते हुए कविता ने कहा "हाँ बताइए ना भाभी.. क्या काम था?"

शीला ने थोड़ा सा रुककर फिर कहा "यार, पिंटू के साथ जो कुछ भी हुआ उसके बाद वैशाली काफी डरी हुई है.. जब तक वो हमलावर पकड़ा नहीं जाता तब तक उसका और सब का भी यह डर बना रहेगा.. पिंटू वैसे तो अब ठीक है और उसने ऑफिस जाना भी शुरू कर दिया है.. पर मैं सोच रही थी की पिंटू काफी समय तक एक ही जगह फंसा हुआ है.. वैसे राजेश की ऑफिस की नौकरी अच्छी है पर जब एक जगह बहुत लंबे अरसे तक पड़े रहो तब इंसान की काबिलियत पर जंग लगना शुरू हो जाता है.. अगर आगे बढ़ना है तो जगह बदलनी आवश्यक है.. अब पीयूष का कारोबार इतना लंबा चौड़ा है.. तू उससे बात कर ना.. पिंटू कहीं न कहीं फिट हो ही जाएगा.. वैसे भी दोनों में काफी अच्छी दोस्ती भी है.. दोनों साथ जो नौकरी करते थे.."

इतना कहकर शीला रुक गई और कविता के हावभाव का निरीक्षण करने लग गई.. कविता की नजर सड़क पर थी.. कुछ देर सोचकर उसने कहा

कविता: "भाभी, पीयूष के बिजनेस के मामले में मैंने आज तक कभी हस्तक्षेप नहीं किया.. ना मैं कभी उसे उस बारे में कुछ पूछती हूँ और ना ही वो बताता है.. अब अगर पिंटू के लिए मैं उससे बात करूंगी तो वो कैसे रिएक्ट करेगा मुझे पता नहीं"

शीला: "अरे यार, तुझे कौन सा बड़ा तीर मारना है..!! सिर्फ बात ही तो करनी है.. और किसी अनजान व्यक्ति की बात करनी हो तो समझ सकते है की पीयूष जिसे जानता न हो उसके बारे में शायद निर्णय न ले सकें.. पर यह तो पिंटू की बात हो रही है.. पीयूष भी जानता है और हम सब भी जानते ही की वो कितना होनहार लड़का है.. अगर वो यहाँ आ गया तो पीयूष का काफी बोझ हल्का हो सकता है.. तू ही तो कहती रहती है ना की पीयूष को काम के चक्कर में फुरसत नहीं मिलती..!! तो यही सबसे बढ़िया इलाज है उस मर्ज का.. दूसरी बात यह की वैशाली को भी ऑफिस के काम का बहोत तजुर्बा है.. शादी के बाद उसने नौकरी जरूर छोड़ दी है.. पर जहां तक मुझे पता है वह अपने काम में बहोत पक्की थी.. तू एक बार कोशिश कर के तो देख..!!"

शीला ने बड़ी सोच समझकर अपनी योजना का अमल शुरू किया था.. अगर पिंटू की नौकरी पीयूष की ऑफिस में लग जाती है तो..

  • पिंटू की तरक्की होगी साथ में तनख्वाह भी बढ़ेगी

  • साथ अगर वैशाली की भी नौकरी लग जाती है तो उन दोनों की मासिक आय दोगुनी हो सकती थी

  • इस शहर में पिंटू का खुद का घर था.. रहने में भी आसानी होगी और खर्च भी सीमित होगा.. ऊपर से सास-ससुर की मौजूदगी में वैशाली आराम से नौकरी भी कर पाएगी

  • पीयूष का बोझ हल्का होगा तो वो कविता के लिए अधिक समय निकाल पाएगा

  • आखिरी और सब से महत्वपूर्ण बात.. पिंटू और वैशाली के जाने से शीला फिर से अपनी पुरानी ज़िंदगी जीने के लिए आजाद हो जाएगी..!!!

यह आखिरी कारण ही सब से मुख्य कारण था शीला की योजना का.. फिर भी उसकी योजना ऐसी थी जिसमे सब का फायदा हो रहा था..

कविता: "ठीक है भाभी.. आप कहती हो तो मैं कोशिश जरूर करूंगी.. पर कुछ वादा नहीं कर सकती.. पता नहीं पीयूष की प्रतिक्रिया कब कैसी हो..!! कभी कभी तो बिजनेस की बातों में हल्की सी राय देने पर भी वो भड़क जाता है.. इसलिए मैं तो अक्सर उस बारे में उससे कोई बात करती ही नहीं हूँ.. पर अब आपने कहा है तो बात करनी ही होगी"

शीला: "सिर्फ बात करनी होगी नहीं.. पीयूष को मनाना भी पड़ेगा..!! यार, तेरा इतना बड़ा काम करने के लिए मैं रातोंरात घर छोड़कर यहाँ आ गई और तू मेरे लिए इतना भी नहीं कर सकती?" शीला ने अब कविता के जज़्बातों से खेलना शुरू कर दिया.. वह किसी भी सूरत में अपनी इस योजना को सफल बनाना चाहती थी

कविता: "कैसी बात कर रही है आप भाभी.. !! आपको किसी बात के लिए क्या कभी माना कर सकती हूँ मैं भला..!! पर जैसा मैंने कहा.. यह पीयूष पर निर्भर करता है.. मैं उससे बात जरूर करूंगी"

शीला: "यार, मर्द को अपनी दोनों टांगों के बीच दबाकर कैसे मनाना यह अब तक तो तुझे आ जाना चाहिए.. बिस्तर में उसे गरम करने के बाद.. लंड मुँह मे लेकर चुप्पे मारते हुए.. मर्द से कुछ भी मांग लो.. वह मान ही जाते है"

कविता: "वो मेरी दोनों टांगों के बीच ही तो नहीं आता.. उसी बात का तो रोना है भाभी"

शीला चुप हो गई.. गाड़ी अपनी गति से चलती रही और कुछ ही समय में उस चौराहे पर आ गई जहां से रसिक के खेत की ओर जाने का रास्ता पड़ता था..

मैन रोड से कच्ची सड़क पर होते हुए कविता गाड़ी को वहाँ तक ले गई जहां तक जा सकती थी.. झाड़ियों के बगल में गाड़ी पार्क करने के बाद दोनों उस पतली सी पगडंडी पर चलने लगी.. आगे कविता और उसके पीछे शीला..!!

कुछ दूर चलने पर रसिक के खेत की वह रूम नजर आते ही कविता का चेहरा खिल उठा

कविता: "लगता है हम पहुँच गए भाभी.. वो देखिए रसिक का खेत.. ईंटों की दीवार वाला कमरा.. और नीले रंग का छपरा.. मुझे बराबर याद है.. यही वो जगह है ना..??"

शीला: "हाँ यही है.. पर वो कही नजर नहीं आ रहा"

कविता ने घड़ी की ओर देखकर कहा "उसने तो इसी समय बुलाया था.. कहीं आसपास ही होगा.."

दोनों खेत के अंदर घुसे और कमरे के दरवाजे के पास पहुंचकर दस्तक देने ही वाले थे की तब रसिक ने अंदर से दरवाजा खोला

कविता को देखते ही रसिक की बल्ले बल्ले हो गई, वह बोला "अरे आप तो बिल्कुल समय पर पहुँच गई.. कोई तकलीफ तो नहीं हुई?" इतना कहते ही रसिक की नजर शीला पर पड़ी.. और उसके चेहरे की रेखाएं तंग हो गई.. एक पल पहले उसके चेहरे पर जो खुशी की चमक थी वह अब क्रोध में तब्दील हो गई

कविता की ओर रुख करते हुए रसिक ने कहा "भाभी, आप इन्हें साथ लेकर क्यों आई है?"

रसिक के कहने का मतलब कविता समझ गई.. उसे यह भी समझ में आ गया की क्यों रसिक शीला का फोन नहीं उठा रहा था

कविता: "अरे रसिक.. छोटी सी बात को इतना लंबा क्यों खींच रहे हो..!! हमारी जान पहचान तो सालों पुरानी है.. शीला भाभी कितना खयाल रखती है तुम्हारा.. और उन्हीं के कारण ही तो तुम्हारे साथ यह सब मुमकिन हो पा रहा है..!! अब वो सामने से चलकर तुम्हारे पास आई है और तूम ऐसा कह रहे हो..!!"

गुस्से से तिलमिलाते हुए रसिक ने कहा "भाभी, यह आपके लिए छोटी बात होगी.. पर हम छोटे लोगों के लिए यह बहोत बड़ी बात है.. ले-देकर हम लोगों की पास यही तो पूंजी होती है.. इज्जत की.. उसी को कोई बिना सोचे समझे उछाल दे तब गुस्सा तो आएगा ही..!! मुझ पर शक किया गया.. क्यों?? क्योंकि मैं गरीब और छोटा आदमी हूँ.. एक तरह से शीला भाभी ने मुझे मेरी औकात दिखा दी.. की भले ही वो मेरे कदमों पर झुककर मेरा लोडा चूसती हो.. वह मुझे अच्छा इंसान मानती ही नहीं है"

शीला ने आगे आकर रसिक का गिरहबान पकड़कर अपने दोनों उन्नत स्तनों के साथ उसकी छाती को सटा दिया और बोली "अब गई गुजरी भूल भी जा रसिक.. कब तक इस बात को इलास्टिक की तरह खींचता रहेगा..!! मुझसे गलती हो गई और मैंने तुझसे माफी भी मांग ली.. फिर भी क्यों अपनी जिद पर अड़ा हुआ है..!!"

रसिक ने शीला को खुद से दूर धकेला और कविता की ओर देखकर कहा "कविता भाभी, अगर आपको करवाना हो तो कमरे में अकेले चलिए मेरे साथ.. अगर यह भी साथ आने वाली हो तो मुझे कुछ नहीं करना.. आप महरबानी करके यहाँ से चले जाइए" रसिक ने हाथ जोड़ दिए

बड़ी दुविधा में फंस गई कविता.. एक तरफ चूत की आग.. और दूसरी तरफ रसिक की जिद..!!

निःसहाय नज़रों से उसने शीला की ओर देखा.. और फिर उसका हाथ पकड़कर रसिक से दूर ले गई और कहा

कविता: "भाभी, प्लीज मान जाइए.. आपके तो इसके अलावा भी और जुगाड़ होंगे.. पर मेरे लिए तो और कोई नहीं है.. आपको तो पता है मेरी हालत कैसी है..!! यह प्यास मुझे अंदर ही अंदर कुरेद रही है.. इससे पहले की यह मुझे मानसिक तौर पर खतम कर दें.. मुझे इस बुझा लेने दीजिए भाभी.. अभी वो गुस्से में है, मानेगा नहीं.. फिर उसे आराम से अपने तरीके से मना लीजिएगा"

शीला ने एक लंबी सांस ली और बोली "ठीक है कविता.. अब तेरी खुशी के लिए मुझे इतना तो करना ही पड़ेगा.. जा, जी ले अपनी ज़िंदगी.. बुझा ले अपनी प्यास.. पर याद रखना.. बाद में तुझे मेरा वो काम करना होगा"

कविता खुश होकर बोली "अरे भाभी, आप जो कहेंगे मैं करने के लिए राजी हूँ.. पीयूष नहीं माना तो मैं उसके पैर पकड़ लूँगी.. उससे मानना ही होगा.. आखिर ये मेरे पापा का भी तो बिजनेस है..!!"

शीला ने मुस्कुराकर कहा "ओके.. अब जा और भरपूर मजे करना.. कहीं कोई कसर मत छोड़ना"

कविता ने शीला के हाथ पकड़कर कहा "थेंक यू भाभी.. मैं आपका यह एहसान मैं कभी नहीं भूलूँगी" कहते हुए वो भागकर रसिक के पास आई.. रसिक ने कविता का हाथ पकड़ा और शीला की ओर एक कटु नजर डालते हुए दरवाजा अंदर से बंद कर दिया..

भारी कदमों से चलते हुए शीला गाड़ी तक आई और खोलकर अंदर बैठ गई.. उसे भी बड़ी तमन्ना थी की रसिक के मूसल से अपनी चूत की सर्विसिंग करवाती.. पर खैर..!! एक बात अच्छी हुई.. कविता अब उसके एहसान के बोझ तले दब चुकी थी.. और उसका काम हो जाना लगभाग तय था..

_____________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________________

कविता हल्के कदमों से चलते हुए खटिया पर जाकर बैठ गई.. अपनी टी-शर्ट के ऊपरी दो बटन खोलकर, दोनों स्तनों के बीच की खाई दिखाते हुए वो रसिक की ललचाने लगी.. टी-शर्ट के आवरण के ऊपर से ही अपनी दोनों निप्पलों को दबाकर उसने रसिक के सामने आँख मारी..


kv3

अब कविता को तड़पाने की बारी रसिक की थी... इसलिये उसने अपनी लुंगी इस तरह धीरे से सरकायी कि उसकी जाँघें बिल्कुल नंगी हो गयी और अब वह एक झटके में ही किसी भी पल अपना लंड बाहर निकाल सकता था... कविता तो उसका लंड देखने के मरी जा रही थी... लुंगी के पतले से कपड़े में से उसके लंड की पूरी लंबाई और मोटाई साफ नजर आ रही थी...

करीब नौ इंच लंबे उस गोश्त के डंडे को अपने हाथों में पकड़ने की कविता को बेहद इच्छा हो रही थी... इसलिये रसिक को और उकसाने के लिये वो मासूमियत का नाटक करते हुए अपने मम्मे उसके कंधे पर और ज्यादा दबाने लगी जिससे उसे ये ज़ाहिर हो कि वह कितनी गरम हो चुकी थी... कविता के मस्त स्तनों की गर्मी रसिक को महसूस हो रही थी जिसके असर से लुंगी में उसका तंबू और बुलंद होने लगा और खासा बड़ा होकर खतरनाक नज़र आने लगा था... कविता समझ नहीं पा रही थी कि अब भी रसिक खुद पर काबू कैसे कायम रखे हुए था... अब कविता ने देखा कि उसके लंड का सुपाड़ा लुंगी को उठाते हुए अंदर ही मचलने लगा था...

“हाय रसिक..!!” कविता हैरानी से सिहर गयी... उसके लंड का सुपाड़ा वाकई में बेहद बड़ा था - किसी बड़े पहाड़ी आलू और लाल टमाटर की तरह... कमरे में आ रही मद्धम रोशनी में चमक रहा था... कविता जानती थी कि रसिक का बड़ा मूसल देखने के बाद वो ज्यादा देर तक खुद पर काबू नहीं रख पाएगी... उसे अपने होंठों में लेकर चूमने और चाटने के लिये वो तड़प रही थी...

रसिक कविता को अपने बड़े लंड के जलवे दिखा कर ललचा रहा था... कविता अब और आगे बढ़ने से खुद को रोक नहीं सकी और अपनी टी-शर्ट उतारने लगी... अंदर लाल रंग की ब्रा में उसके गोरे चमकते स्तनों का खुमार कुछ ऐसा था की देखकर ही रसिक, लूँगी के ऊपर से ही अपना तगड़ा लंड मसलने लगा.. कविता ने अपनी ब्रा के सारे हुक खोलकर उसे उतार दिया और उसके दोनों मम्मे बाहर ही कूद पड़े और अब खुली हवा में ऐसे थिरक रहे थे जैसे अपनी आज़ादी का जश्न मना रहे हों...


kv5

कविता के उन्नत स्तनों को रसिक ने देखा तो शरारत से उसके कान में धीरे से फुसफुसा कर बोला, “अरे भाभी जी, जलवा है आपके मम्मों का.. आह्ह..!! आज तो मजे ले ले कर इन्हें मसलूँगा..!!”

कविता ने कहा, “कितनी गर्मी लग रही है..!! इन बेचारों को भी तो थोड़ी ठंडी हवा मिलनी चाहिये ना… बेचारे दिन भर तो कैद में रहते हैं!” अपने नंगे अमरूदों को रसिक के सामने झुलाते हुए कविता को बहोत मज़ा आ रहा था...

sb

जीन्स में छुपी उसकी चूत की तरफ देखते हुए रसिक बोला, “तो फिर भाभी, नीचे वाली को भी तो थोड़ी हवा लगने दो ना! उसे क्यों बंद कर रखा है!” ये कहते हुए उसने अपने हाथ कविता की जाँघों पर रख दिये और उसकी मुलायम और गोरी सुडौल टाँगों को चौड़ा करते हुए जीन्स के बटन को खोलने लगा.. पर वह उस टाइट जीन्स के बटन को खोल नहीं पाया

कविता ने रसिक का हाथ पकड़कर उसे रोक दिया क्योंकि वह उसे थोड़ा और तड़पाना चाहती थी... वो बोली, “अरे पहले तू ऊपर का काम तो खतम कर लें! नीचे की बाद में सोचेंगे!”

रसिक कविता के नंगे मम्मों को देख रहा था जो खरगोशों की तरह अलग अलग दिशा में अपनी निप्पल की नोक से तांक रहे थे... रसिक से और सब्र नहीं हुआ और वो कविता के बबलों को अपने हाथों में लेकर मसलने लगा... उसके मजबूत और खुरदरे हाथों के दबाव से कविता कंपकंपा गई... वह सोचने लगी कि जब इसके हाथों से मुझे इतनी लज़्ज़त मिल रही है तो लंड से वो मुझे कितना मज़ा देगा...

fb

कविता को खटिया के ऊपर लिटाकर, अपनी विशाल काया का सारा वज़न डालते हुए रसिक उस पर लेट गया.. एक पल के लिए कविता की सांसें ही थम गई इतना भारी जिस्म अपने ऊपर लेकर.. वो और कुछ ज्यादा सोच या समझ पाती उससे पहले रसिक ने उसके स्तनों को आटे की तरह गूँदते हुए उसकी निप्पलों को अंगूठे और उंगलियों के बीच मींजना शुरू कर दिया.. कविता ने अपनी आँखें बंद कर ली और सिहर कर अपनी जांघों के बीच हो रहे लंड के स्पर्श का आनंद लेते हुए खटिया पर ही मचलने लगी..

रसिक कविता की छातियों पर ऐसे टूट पड़ा था जैसे जनम जनम का भूखा हो.. चूचियों को वह ऐसे नोच रहा था की उसके प्रहारों के कारण स्तनों की त्वचा लाल गुलाबी हो गई थी.. जगह जगह काटने के निशान बन गए थे.. चूचियों को चूसते हुए रसिक अपने नीचे के हिस्से को कविता की दोनों जांघों के बीच रगड़ रहा था.. हालांकि दोनों के गुप्तांगों के बीच अभी भी कविता की पेन्टी और जीन्स तथा रसिक की लूँगी के आवरण थे.. जो की अब कुछ ही समय में दूर हो जाने वाले थे

कविता के बबलों को अच्छी तरह रौंद लेने के बाद, रसिक खड़ा हुआ और अपनी लूँगी उतारने लगा.. लूँगी नीचे गिरते ही उसका लंड तन्न से कविता के चेहरे के सामने आ गया.. !! उसके लंड का खुमार देखकर कविता के तो जैसे होश ही उड़ गए..


tnhbc

कविता उस हैवान को हाथों में लेने के लिये इस कदर तड़प रही थी कि बिना एक पल भी इंतज़ार किए उसने झपट कर उसका लौड़ा अपने हाथों में ले लिया...

"ऊऊऊहहह वाऊ रसिक.. " रसिक का लोडा इतना गरम था जैसे अभी तंदूर से निकला हो! कविता को लगा जैसे उसकी हथेलियाँ उसपे चिपक गयी हों... कविता रसिक का लौड़ा हाथों में दबान लगी जैसे कि उसके कड़ेपन का मुआयना कर रही हो... उसकी चूत भी अब लंड को लेने के लिये बिलबिला रही थी... उस पल कविता ने फैसला किया कि जिस्म की सिर्फ नुमाईश और ये छेड़छाड़ और मसलना बहोत हो गया… अब तो इस मूसल से अपनी चूत की आग ठंडी करने का वक्त आ गया था... कविता उसके लंड को इतनी ज़ोर-ज़ोर से मसल रही थी जैसे कि ज़िंदगी में फिर दोबारा दूसरा लंड मिलने ही न वाला हो... अब वह रसिक के लंड को अपने मुँह में लेने के लिये झुक गयी...

रसिक के लंड का सुपाड़ा ज़ीरो-वॉट के लाल बल्ब की तरह चमक रहा था... लेकिन जैसे ही कविता के प्यासे होंठ रसिक के लंड को छुए, उसने कविता का चेहरा दूर हटा दिया और बोला, “भाभीजी… रुकिये तो सही… पहले मुझे अपनी चूत के दर्शन करा दीजिये!”

हर गुज़रते लम्हे के साथ-साथ कविता और ज्यादा बेसब्री हुई जा रही थी... अब तक वो इस कदर गरम और दीवानी हो चुकी थी कि रसिक जो कहता वो करने के लिए तैयार थी.. रसिक भी जान-बूझकर उसे तड़पा रहा था.. वह चाहता था की कविता को ज्यादा से ज्यादा गरम और गीला कर दे तो लंड घुसाने में उतनी ही आसानी होगी

कविता को इस खेल में इतना मज़ा आ रहा था कि वो बस उस बहाव के साथ बह जाना चाहती थी... बिल्कुल बेखुद हो कर वो उससे बोली, “तुम्हें जो करना है कर लो लेकिन अपने इस मुश्टंडे लंड से मुझे जी भर कर प्यार कर लेने दो!”

रसिक: “अरे भाभी.. जितना मर्जी प्यार करने दूंगा.. पर पहले अपना पेन्ट उतारकर मुझे अपनी चूत तो दिखाइए”

रसिक के हुक्म की तामील करते हुए और धीरे-धीरे थोड़ी दिलफरेबी करते हुए कविता अपना पेन्ट उतारने लगी... उसकी गोरी जांघों के बीच प्यारी सी गुलाबी पेन्टी उतनी सुहानी लग रही थी की देखकर ही रसिक अपने हाथों को उसपर रगड़ने लगा.. फिर रसिक ने अपने दोनों हाथों से पेन्टी को खींचकर एक ही पल में कविता की टांगों से जुदा कर दिया

अब कविता की चिकनी सफाचट चूत उसे साफ नज़र आ रही थी जिसपे रो‍ओं तक का नामोनिशान नहीं था... रसिक निःशब्द होकर उस नज़ारे को देखता रहा.. आहाहा.. क्या नजारा था..!! जिस चूत से अब तक एक भी प्रसव नहीं हुआ था.. जाहीर सी बात थी की एकदम टाइट नजर आ रही थी.. प्यारी सी गुलाबी फांक और उसके ऊपर छोटे से दाने जैसी क्लिटोरिस..!!

hpr

स्तब्ध होकर उस चूत को देख रहे रसिक को कविता ने पूछा, “क्या हुआ! बोलती क्यों बंद हो गयी तुम्हारी? क्या सिर्फ देखते ही रहने का इरादा है मेरी चूत को!”

वो जैसे वापिस होश में आते हुए बोला, “भाभीजी, आज तक मैंने अनगिनत चूतें देखी हैं और चोदी भी हैं पर ऐसी चूत उफफफ… क्या कहें इसके लिये… ऐसी देसी कचौड़ी की तरह फुली हुई चूत देखकर मेरे तो होश ही उड़ गए है..!! पिछली बार तो पूरा अंदर घुसाने नहीं दिया था.. पर आज तो तसल्ली से चोदे बगैर छोड़ने वाला नहीं हूँ"

कविता बोली, “चाहती तो मैं भी यही हूँ… पर तुम बस देखते रहोगे और बातें ही करते रहोगे तो कैसे कुछ होगा..!!!”

रसिक बावरा होते हुए बोला "आप कहों तो अभी के अभी चोद दूँ"

कविता ने मुस्कुराते हुए कहा "अभी मुझे चूस तो लेने दो"

ये कहकर कविता उसका लंड मुँह में लेने के लिये नीचे झुक गयी... जब कविता ने उसका लंड अपने मुँह में लिया तो वो मस्त हो गई... इतना स्वादिष्ट लंड, जो उसके मुंह में ठीक से समा भी नहीं रहा था उसे चूसकर उसे मज़ा आ गया..!! वह उसका पूरा लंड नीचे से लेकर सुपाड़े तक बार-बार चाट रही थी...

रसिक ने भी अब सिसकना शुरू कर दिया और सिसकते हुए बोला, “हाँऽऽऽऽ भाभीजी! इसी तरह से मेरे लंड को चाटिये… हायऽऽऽऽ क्या मज़ा आ रहा है… सही में प्यार करना तो कोई आप जैसी शहर की औरतों से सीखे… हाय कितना मज़ा आ रहा है हायऽऽऽ बस इसी तरह से…!” कविता ने उसका लंड चाटने की रफ्तार बढ़ा दी और बीच-बीच में उसके टट्टे या सुपाड़ा मुँह में लेकर अच्छी तरह से चूस लेती थी... उसका नौ इंच लंबा और तीन इंच मोटा लंड कविता के थूक से सरासर भीगा हुआ और ज्यादा चमक रहा था और वो उसे और ज्यादा भिगोती जा रही थी...

lbc

अचानक रसिक धीरे से फुसफुसाया, “हाय भाभी! प्लीज़ ज़रा और जोर से चूसिये और मेरे गोटे भी सहलाइये तो… एक बार मेरा पानी निकल जायेगा… फिर बड़े आराम से चोदूँगा आपको!”

कविता भी सोच रही थी की अगर एक बार रसिक की पिचकारी छूट जाए तो दूसरे राऊँड में वह जमकर चोदेगा... इसलिये कविता ने उसके लंड पर ज्यादा प्रेशर लगाया और उसके गोटे सहलाते हुए उसने एक और दबंग हरकत की... धीरे से आगे खिसक कर उसने बंदूक की गोली जैसे अपने निप्पल उसके लंड के सुपाड़े पर लगा दिये और धीरे से उससे बोली, “देखो कैसे मेरे निप्पल तुम्हारे लौड़े को चूम रहे हैं… उफफफफ!” कविता को पता था कि रसिक अब झड़ने के करीब ही था, इसलिये उसे और जोश दिलाने के लिये वह अपनी निप्पल उसके लंड पर रगड़ने लगी...

rbn

रसिक अपनी चरमसीमा के बेहद करीब था और कराहने लगा, “आआआहहहऽऽऽऽऽ मैं तो गया आअहहहऽऽऽऽ!” और इसके साथ ही उसके लंड से पिचकारियाँ छूट कर कविता के स्तनों और चेहरे पर गिरने लगी... उसके लंड से आखिरी बूँद तक निचोड़ लेने के लिये कविता ने उसे सहलाना ज़ारी रखा... उसकी मलाई का ज़ायका इतना मजेदार था कि कविता अपने चेहरे और बबलों पे लगी मलाई बस चाटती ही रह गयी... उसे हवस भरी नज़रों से देखते हुए कविता अपनी उंगलियाँ भी चाटने लगी... कविता की निप्पलों से भी वीर्य की बूंदें टपक रही थी..

cmlc

हांफते हुए रसिक कविता के बगल में खटिया पर बैठ गया.. कविता उसकी पीठ को सहलाते हुए उसके नॉर्मल होने का इंतज़ार करने लगी.. रसिक कविता को अपने बगल में लिटाते हुए खुद भी खटिया पर लेट गया..

दोनों के चेहरे अब एक दूसरे के सामने थे.. कविता बड़े ही प्यार से रसिक के खुरदरे चेहरे को सहला रही थी.. अपनी एक जांघ को रसिक की टांगों के ऊपर ले जाकर वह अपनी गीली चूत को रसिक के लंड के जीतने ज्यादा करीब ले जा सकती थी उतना ले जा रही थी.. अभी वीर्यपात करने के बाद थरथरा रहा.. आधा तना हुआ रसिक का लंड.. शिकार को अपने नजदीक पाकर.. उसे सूंघने के लिए फिर से ऊपर उठने लगा था..

कविता के नरम गोश्त जैसे स्तनों को हथेलियों से मसलते हुए रसिक उसके होंठों को चूसने लगा.. अपना हाथ नीचे ले जाते हुए कविता ने रसिक का लंड पकड़ा.. जो अभी भी अपने छेद से चिपचिपा प्रवाही थूक रहा था.. हाथ में पकड़कर ऐसा लग रहा था जैसे गरम सरिया पकड़ रखा हो.. कविता धीरे धीरे उस लंड की त्वचा ऊपर नीचे करते हुए उसे चोदने के लिए तैयार करने लगी.. धीरे धीरे चूत चोदने की उम्मीद में रसिक का लंड फिर से अकड़ने लगा था... कविता अब बेहद गरम और चुदासी हो चुकी थी

hbc

लंड धीरे धीरे तनकर खड़ा हो गया.. अपनी हथेली में उसके कद का प्रमाण मिलते ही कविता सरककर रसिक की दोनों टांगों के बीच पहुँच गई और झुककर उसे मुँह में लेकर चूसने लगी... लंड चूसते हुए वह रंडी की तरह रसिक से बोली, “ओह्ह… कितना शानदार है तुम्हारा लौड़ा… दिल कर रहा है कि इसे चूसती ही रहूँ - हाय - प्लीज़.. अब बहुत हुआ.. जल्दी से मुझे चोदो अपने इस हलब्बी लंड से - मैं तो कब से तरस रही हूँ!” उसके पूरे लंड और खासकर उसके सुपाड़े पर वह अपनी जीभ फिराते हुए बोली...

अपने लंड से कविता को दूर ढकेलते हुए रसिक बोला, “भाभी, पहले आपकी मुनिया का स्वाद तो ले लूँ.. फिर मजे से घुसा भी दूंगा”

शरमाकर कविता वापिस खटिया पर लेट गई.. रसिक उठकर कविता की जांघों के बीच सटकर बैठ गया.. जैसे ही कविता ने अपनी टांगें फैलाई.. उसकी प्यारी सी चूत अपने होंठ खोलकर रसिक को चाटने के लिए उकसाने लगी.. रसिक को तो अपनी किस्मत पर भरोसा ही नहीं हो रहा था.. !! कविता की चूत के लिए वो कितने सालों से तड़प रहा था..!! पिछली बार जब वो वैशाली के साथ आई थी तब भी आधा लंड लेने के बाद मैदान छोड़ भागी थी.. लेकिन आज उसे बिना चोदे जाने नहीं देने वाला था रसिक.. !! अब वो चाहे जितना चीखें या चिलाएं..!!

रसिक अपना चेहरा कविता की गुनगुनी बुर के करीब ले आया.. पिछले आधे घंटे के हरकतों की वजह से गरम हो चुकी मुनिया.. अंदर से हवस भरी भांप छोड़ रही थी.. जिसकी खुशबू रसिक के नथुनों तक पहुंचते हुए वह गुर्राते हुए करीब आया.. और अपनी लपलपाती जीभ से कविता की पूरी फांक को.. गांड से लेकर क्लिटोरिस तक फेरने लगा..

bmep

आँखें बंद कर कविता पागलों की तरह सिहरने लगी.. सातवे आसमान पर पहुँच गई वो..!! रसिक की खुरदरी जीभ का घर्षण अपने गुप्त भागों पर महसूस करते हुए उसकी मुनिया अपने होंठों को खोल और सिकुड़ रही थी.. !!! रसिक ने अपनी उंगलियों से उस बुर की फाँकों को चौड़ा किया और अंदर के गरम गुलाबी हिस्से को ताज्जुब से देखने लगा.. !! इतनी सुंदर चूत को इतने करीब से देखकर वह भोंचक्का सा रह गया.. कविता ने दोनों हाथों से रसिक के बालों को पकड़ा और उसके चेहरे को अपनी चूत के ऊपर दबा दिया.. रसिक ऐसे चाटने लगा जैसे भालू छत्ते से शहद चाट रहा हो.. !!!

चाटते हुए रसिक ने अपनी एक उंगली से कविता के गांड के छिद्र को भी छेड़ना शुरू कर दिया था.. उसकी चूत का रस अब रिसकर उसकी गांड के छेद तक जाकर खटिया पर टपक रहा था.. खटिया में मचल रही कविता दोनों हाथों से अपने स्तनों को मसल मसलकर लाल कर रही थी.. जब रसिक ने अपने दोनों होंठों के बीच उसकी प्यारी सी क्लिटोरिस को दबाकर जीभ अंदर घुसाई तब कविता कांपने लगी.. उसका शरीर सख्त हो गया.. और वह थरथराते हुए रसिक के मुंह के अंदर ही झड़ गई..!!!

pc-1-1

गरम गरम चूत-जल का अधिक बहाव मुंह के अंदर महसूस होते ही रसिक जान गया की कविता झड़ गई थी.. बेतहाशा चाटने के कारण.. और एक बार झड़ने की वजह से कविता की चूत एकदम गीली चिपचिपी हो चुकी थी और छेद कुछ फैलकर खुल भी चुका था..

चूत को पर्याप्त मात्रा में चाट लेने के बाद रसिक उठा और कविता के जिस्म के ऊपर आ गया.. उसका पूरा गीला मुंह ऐसा लग रहा था जैसे शिकार को खाने के बाद शेर का खून से सना चेहरा नजर आता है..!!

रसिक ने मुठ्ठी में अपने लंड को पकड़ा और बोला, “भाभी.. लंड को अपने मुँह में ले कर थोड़ा सा चूस दो… तो ये ठीक से खड़ा हो जाए…”

कविता ने बिना देर किए उसका लंड अपने लबों के बीच ले लिया.. अब वह जल्द से जल्द योनि-प्रवेश चाहती थी.. उसने लपक कर उसे पकड़ लिया और बड़े चाव से उसे अपने मुँह में लेकर चूसने लगी... उसका लंड चूसते हुए कविता उसके चूतड़ों को दबाते हुए अपने लंबे नाखूनों से खुरच रही थी... उसका लंड फिर से सख्त होने लगा था... करीब दो-तीन मिनट तक उसका मोटा लंड चूस चूसकर कविता के होंठ और जबड़ा दुखने लगे...

bbl

रसिक अब ज़ोर-ज़ोर से कराहते हुए बोल रहा था, “आह्ह… और जोर से चूसो मेरा लंड… आपको शहर में ऐसा लौड़ा कहीं नहीं मिलेगा… ऊऊऊहहऽऽऽऽ येऽऽऽ मेरी गाँड भी सहला दो… आंआंऽऽऽऽ हाय क्या लौड़ा चूसती हो आप… आपने तो शीला भाभी को भी पीछे छोड़ दिया लंड चूसने में… बस इसी तरह सेऽऽऽऽ!”

थोड़ी देर और अपना लंड चुसवाने के बाद उसने कविता को चूसने से रोक दिया, “बस बहुत हो गया अब… अब छोड़ दो इसे नहीं तो इसका पानी फिर से निकल जायेगा… और आपकी चूत प्यासी ही रह जायेगी!”

कविता ने उसका लंड मुँह में से निकाला और उसके अंदाज़ में बोली, “आह रसिक.. अगर अब मेरी चूत प्यासी रह गयी तो मैं तुम्हारे इस लंड को काट के अपने साथ ही ले जाऊँगी... लो - अब जल्दी से मेरी चूत चोद दो..!!!” ये कहते हुए कविता अपनी चूत उसे दिखाते हुए बोली, “अब प्लीज़ जल्दी करो… देख कब से गीली हुई पड़ी है… जल्दी से आओ और अपने लंड से इसकी प्यास बुझाओ..!!!!”

कविता अब बिल्कुल नंगी वहाँ लेटी हुई थी.. दो टके की रंडी की तरह उसके लंड की भीख माँग रही थी... रसिक उसके करीब आया.. कुछ पलों के लिये उसकी फुदक रही दिलकश चूत को निहारता रहा और फिर बोला, “हाय क्या मक्खन के जैसी चूत है आपकी भाभी… और ये माँसल जाँघें… ये गोरी लंबी टाँगें .. ये प्यारे पैर… इन्हें देखकर तो नामर्दों का भी लंड खड़े होकर सलामी देने लग जायेंगे… हायऽऽऽ मैं मर जाऊँ”

उसकी महज़ बातों से कविता झल्ला गयी और बोली, “यार रसिक… अब चोदोगे भी या ऐसे ही खड़े खड़े निहारते रहोगे..!!! नीचे आग लगी हुई है!” हवस से तप रही कविता को अब रसिक के लोड़े की साइज़ का डर भी लगना शुरू हो गया था.. पिछली बार तो उसने सुपाड़ा डाला तभी उसकी फट गई थी.. पर आज वह मन से तैयार थी.. किसी भी सूरत में वह आज रसिक से चुदना चाहती थी

रसिक ने झुककर अपना लंड कविता की बुर पर रगड़ते हुए कहा, “अभी इसकी आग को ठंडा कर देता हूँ.. ” जैसे ही उसने अपने लंड का सुपाड़ा चूत पे लगाया तो उसका सुपाड़े की गर्मी ने चूत को झकझोर कर रख दिया... फिर उसने अपना लंड चूत में हल्के से ढकेला तो मूश्किल से अभी वो अंदर घुसा ही था कि कविता को लगा जैसे उसकी चूत फट जाएगी... वह धीरे से चींखी, “अरे ज़रा धीरे से घुसाओ… ”

ep

“अभी तो सुपाड़ा ही अंदर गया है भाभी… अभी से ही चिल्लाने लग गई… ” कहते हुए रसिक ने अपना सुपाड़ा बाहर निकाला.. मुंह से ढेर सारा थूक निकालकर उसपर मल दिया.. और उंगलियों से बुर को फैलाते हुए सुपाड़े को अंदर रखकर अपना आधा लंड अंदर घुसा दिया..!!! जितना लंड अंदर गया था.. छेद आराम से उतना ले पाए.. आदत हो जाए.. इसलिए रसिक अपना आधा लंड ही अंदर बाहर करने लगा.. कविता का दर्द अब आनंद में तब्दील होता जा रहा था.. वो कराहते हुए रसिक के चेहरे को चूमने लग गई..

जब रसिक को लगा की कविता ने आधे लंड को बर्दाश्त कर लिया था तब उसने एक झटके में ही पूरा लंड कविता की चूत में घुसा दिया..!!! एक पल के लिये तो कविता को ऐसा लगा कि दर्द के मारे उसकी जान ही निकल जायेगी... वो चिल्लाने लगी, “ओहहह.. हाय.. ऊई माँ.. मर गयी… प्लीज़ ज़रा धीरे-धीरे डालो!” लेकिन फिर कुछ देर में आखिरकार दर्द कम हो गया और कविता को उसके लंड के धक्कों का मज़ा आने लगा... रसिक अब तेज रफ्तार से अपने लंड से उसकी चूत चोद रहा था... कविता स्थिर पड़े हुए रसिक के धक्कों का आनंद ले रही थी.. उसके शरीर में प्रतिक्रिया देने जितनी ताकत ही नहीं बची थी..

ent

रसिक: “अरे भाभी.. ऐसे क्यों लेटी हुई हो… आप भी अपनी गांड नीचे से हिला कर सामने धक्के लगाइए… फिर देखिए कितना मज़ा आता है!”

कविता ने उसके लंड के धक्कों के साथ-साथ लय में अपने चूतड़ ऊपर-नीचे हिलाने शुरू कर दिये और ऐसे ही कुछ देर चुदाई ज़ारी रही... उसे लग रहा था कि जैसे वो ज़न्नत में हो... आज आखिरकार रसिक का लंड पूरा अंदर लेकर चुदवाने की हसरत पूरी हो ही गई..!! रसिक उसे लगातार रफ्तार से चोद रहा था... ताव मे आकर जोर से चिल्लाते हुए कविता बोली, “ऊऊऊऊहहहऽऽऽऽ बस इसी तरह शॉट लगाते रहो रसिक… बहोत मज़ा आ रहा है!”

fh

कविता को लग रहा था जैसे लंड की बजाय किसी ने लोहे का रॉड उसकी चूत में घुसेड़ रखा था... दर्दनाक तो था लेकिन फिर भी उसके साथ-साथ बेहद मज़ेदार एहसास था... ऐसा एहसास ज़िंदगी में पहले कभी नहीं हुआ था... ऐसा नहीं था की पीयूष के लंड से वह संतुष्ट नहीं थी लेकिन इस रसिक के मोटे लंड के आगे किसी का मुकाबला नहीं था... अचानक रसिक ने चूत में से अपना लंड बाहर खींच लिया... कविता से अपनी चूत का खालीपन बर्दाश्त नहीं हो रहा था...

अब रसिक ने उसे घूम कर घुटनों और हाथों के सहारे कुत्तिया वाले अंदाज़ में झुकने को कहा... चुदाई के अलग-अलग अंदाज़ों के बारे में रसिक की मालूमात देख कर कविता भी हैरान हो गई..

कविता को थोड़ी घबराहट हो रही थी क्योंकि वैसे ही उसका लंड काफी तकलीफ के साथ उसकी चूत में जा रहा था और अब इस कुत्तिया वाले अंदाज़ में तो यकीनन वो उसकी चूत फाड़ डालेगा क्योंकि वो अब ज्यादा अंदर तक चूत में घुसने के काबिल होगा... लेकिन अब रसिक रुकने वाला नहीं था और कविता भी उसे रोकना नहीं चाहती थी..

वह घूम कर कुत्तिया की तरह झुक गयी और रसिक ने पीछे आकर उसके गोरे कूल्हों को सहलाना शुरू कर दिया... कविता की गांड का बादामी छेद देखकर रसिक का मन ललचा जरूर गया पर जहां चूत में लेने पर ही कविता की फट पड़ी थी.. अगर वो अपना लंड उसकी गांड के करीब भी ले जाता तो कविता की जान निकल जाती.. फिलहाल उसने चूत पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखा

दोनों कूल्हों पर अपने हाथ रखकर.. रसिक ने अपने सुपाड़े को कविता की बुर में घोंप दिया..

bep

इस दफा भी खुब दर्द हुआ लेकिन पिछली बार की तरह नहीं क्योंकि उसकी चूत अब काफी रस टपका रही थी... ये देख कर वो बोला, “अरे लगता है आपका तो पानी छूट रहा है!” और उसने ज़ोर-ज़ोर से धक्के लगाने शुरू कर दिये... मस्त चूतड़ों को भी वो सहलाते हुए ज़ोर-ज़ोर से भींच रहा था और उसने अपनी एक उंगली से कविता की गाँड को कुरेदना शुरू कर दिया...

कविता मस्ती में ज़ोर-ज़ोर से कराह रही थी, “ओहहहह थोड़ा और ज़ोर से धक्के मारो रसिक… हाय बहुत मज़ा आ रहा है… और प्लीज़ मेरे पीछे से अपनी उंगली निकाल लो… ओहहह मममऽऽ आआआआहहहहऽऽ!!!!”

पीछे से धक्के लगाते हुए रसिक कविता की कमर पर आगे की तरफ झुका और उसके लटकते हुए स्तनों को अपने हाथ में ले लिया और निप्पल को मसलने लगा...

dg

मस्ती में कविता भी खुद पर और काबू नहीं रख सकी और अपने जिस्म की तमाम आग और गर्मी अपनी चूत में दागने लगी... “हाय मर गई.. ऊऊऊहहह अब जल्दी करो..!!!!” जब रसिक को एहसास हुआ कि वो फिर से झड़ रही थी तो उसने भी अपनी चोदने की रफ्तार तेज़ कर दी और चिल्लाते हुए बोला, “लो.. अब तो आपका दिल भर गया ना… अब मेरा भी निकलने वाला है… हाऽऽऽऽ ओहहऽऽऽऽऽ हायऽऽऽ मेरी रानी… आहहहऽऽऽ मज़ा आ गयाऽऽऽऽ!” रसिक ने कविता की चूत में अपना गाढ़ा माल छोड़ दिया... कविता को ऐसा लगा जैसे कि अचानक उसकी चूत गरम पिघलते हुए लावा से भर गयी हो.. !!! ज़िंदगी में पहली बार चुदाई में इतना मज़ा आया था उसे..


cip-1

स्खलन के पश्चात रसिक ने कविता के चूतड़ छोड़ दिए और खटिया पर ढेर हो गया.. कविता भी धीरे से पलटी और उसके बगल में लेट गई.. उसके घुटने छील चुके थे.. कुछ वक्त के लिये वह ऐसे ही पड़ी रही... अपनी भीगी और टपकती चूत को साफ करने के लिये उठने की भी ताकत नहीं थी उसमें... वो तो बस चुदाई के बाद के सुरूर के एहसास का मज़ा ले रही थी...

Gazab ki update he vakharia Bhai,

Sheela ko rasik ne aise kamre se nikal diya, jaise dudh se makhkhi.........

Kavita ki barso purani ichcha puri ho gyai...........

Rasik ka mano jivan dhany ho gaya........

Kamukta ke charam par thi ye update......

Keep rocking Bro
 

vakharia

Supreme
5,922
20,460
174
पिछले अपडेट में आपने पढ़ा की कविता की मदद करने के लिए शीला उसके घर पहुँच चुकी थी.. रमिलाबहन के घर फाल्गुनी से मुलाकात के बाद पीछा करने पर शीला को पता चला की फाल्गुनी और राजेश के बीच कुछ चक्कर चल रहा है..

शीला और कविता रसिक के खेत की ओर जाने के लिये निकले.. रास्ते में शीला ने कविता से पिंटू को पीयूष की कंपनी में लगवाने का काम सौंपा.. शीला की यही योजना थी, पिंटू और वैशाली को अपने रास्ते से हटाकर, अपनी पुरानी आजाद जिंदगी में लौटने का..

खेत पहुँचने पर रसिक, कविता को देखकर खुश हो गया और शीला को देखकर क्रोधित.. गुस्से में उसने शीला को लौट जाने के लिए कहा..

कविता के विनती करने पर शीला गाड़ी में वापिस जा बैठी और फिर खेत के उस कमरे में रसिक और कविता के बीच घमासान चुदाई का दौर शुरू हुआ..


अब आगे...
__________________________________________________________________________________________________



करीब डेढ़ घंटा बीत चुका था कविता को गए हुए.. सूरज भी ढलते हुए शाम का आगाज दे रहा था.. शीला जानती थी की रसिक को चुदाई करने मे इतना वक्त तो लगता ही है.. शायद दोनों एक राउंड खतम करके दूसरे की तैयारी कर रहे होंगे..!!!

शीला अब बेहद बोर हो रही थी.. गाड़ी में बैठकर गाने सुनते सुनते वह ऊब चुकी थी.. वह गाड़ी से बाहर निकली और नजदीक के खेतों में सिर करने लगी.. फसल कट चुकी थी इसलिए सारे खेत वीरान थे और दूर दूर तक सब कुछ साफ नजर आ रहा था..

तब शीला का ध्यान थोड़े दूर बने एक छोटे से टीले पर गया.. वहाँ पर खेत-मजदूर जैसे दिखने वाले तीन लोग, बनियान और लूँगी पहने बैठे थे और छोटी सी पारदर्शक बोतल से कुछ पी रहे थे.. जाहीर सी बात थी की तीनों देसी ठर्रा पी रहे थे..

अचानक उनमें से एक की नजर शीला की ओर गई..!! ऐसी सुमसान जगह पर इतनी सुंदर गदराई औरत का होना कोई सामान्य बात तो थी नहीं.. उस आदमी ने अपने साथियों को यह बात बताई और अब तीनों टकटकी लगाकर शीला को देखने लगे

शीला को बड़ा ही अटपटा सा लगने लगा.. उसने अपनी नजर घुमाई और गाड़ी की ओर चलने लगी.. थोड़ी दूर चलते रहने के बाद उसने पीछे की और देखा.. वह तीनों दूर से उसके पीछे चले आ रहे थे.. अपना लंड खुजाते हुए..

इतना देखते ही शीला के तो होश ही उड़ गए..!!! तीनों की मंछा साफ थी, जो शीला को भलीभाँति समझ आ रही थी.. अब शीला का दिमाग तेजी से चलने लगा.. गाड़ी कुछ ही दूरी पर थी.. लेकिन वहाँ पहुँच कर भी शीला सुरक्षित नहीं थी.. क्योंकि गाड़ी के आसपास दूर दूर तक कोई नहीं था..

शीला ने अब अपनी दिशा बदली और वो रसिक के खेत की तरफ तेजी से चलने लगी.. वह तीनों भी अब शीला का पीछा करने लगे.. शीला की जान हलक तक आ गई.. वो अब लगभग भागने लगी थी.. उसकी सांसें फूलने लगी थी.. पीछे मुड़कर देखा तो वह तीनों भी अब तेजी से शीला की तरफ आ रहे थे और बीच का अंतर धीरे धीरे कम होता जा रहा था

अपना पूरा जोर लगाते हुए शीला ने दौड़ना शुरू कर दिया.. कुछ ही आगे जाते हुए रसिक का कमरा नजर आने लगा.. शीला ने और जोर लगाया और भागते हुए रसिक के कमरे तक पहुँच गई और दरवाजा खटखटाने लगी

काफी देर तक दरवाजा न खुलने पर शीला बावरी हो गई.. वो पागलों की तरह दस्तक देती ही रही..!! उसने देखा की वह तीनों लोग अब रुक चुके थे.. और दूर से शीला को दरवाजा खटखटाते हुए देख रहे थे

थोड़ी देर के बाद दरवाजा खुला और कविता के साथ रसिक बाहर आया

कविता: "क्या हुआ भाभी?? आप इतनी हांफ क्यों रही हो?"

शीला ने अपना पसीना पोंछते हुए कहा "वो.. वो तो.. कुछ नहीं.. बस गाड़ी में अकेले बैठे बैठे डर लग रहा था.. शाम भी ढल चुकी है और कुछ ही देर में अंधेरा हो जाएगा.. हमें अब चलना चाहिए"

रसिक को शीला के पास खड़ा देख, वह तीनों उलटे पैर लौट गए.. यह देखकर शीला की जान में जान आई..!! लेकिन वो कविता को इस बारे में बताकर डराना नहीं चाहती थी

कविता: "मैं बस वापिस ही आ रही थी.. चलिए भाभी"

कविता ने शीला का हाथ पकड़ा और दोनों गाड़ी की तरफ जाने लगी.. रसिक दोनों को दूर तक जाते हुए देखता रहा

गाड़ी में पहुंचकर शीला ने चैन की सांस ली.. कविता ने गाड़ी स्टार्ट की और कुछ ही मिनटों में उनकी गाड़ी हाइवे पर दौड़ रही थी

कविता के चेहरे पर संतोष की झलक साफ नजर आ रही थी.. लंबे अवकाश के बाद जब पलंग-तोड़ चुदाई करने का मौका मिलें तब किसी भी औरत के चेहरे पर चमक आ ही जाती है

करीब आधे घंटे तक दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोला

शीला अब धीरे धीरे सामान्य हो रही थी.. अपने पुराने रंग में आते हुए उसने कविता से पूछा

शीला: "कैसा रहा कविता?"

कविता शरमा गई.. उसने जवाब नहीं दिया

शीला ने उसे कुहनी मारते हुए शरारती अंदाज में पूछा "अरे शरमा क्यों रही है..!!! बोल तो सही कैसा रहा रसिक के साथ?"

कविता ने मुस्कुराकर जवाब दिया "मुझ से ज्यादा आप बेहतर जानती हो रसिक के बारे में.. मज़ा आ गया भाभी.. ऐसा लगा जैसे जनम जनम की भूख संतुष्ट हो गई हो"

शीला ने लंबी सांस लेते हुए कहा "इस भूख का यही तो रोना है.. जब संतुष्ट हो जाते है तब लगता है जैसे हमेशा के लिए भूख शांत हो गई.. पर कुछ ही दिनों में फिर से रंग दिखाने लग जाती है"

कविता: "मैं आगे के बारे में सोचना नहीं चाहती.. बस आज की खुशी में ही जीना चाहती हूँ.. भविष्य का सोचकर अभी का मज़ा क्यों खराब करूँ? वाकई में बहोत मज़ा आया.. मेरा तो अंदर सारा छील गया है.. बाप रे..!!! कितना मोटा है रसिक का.. देखने में तो बड़ा है ही.. पर जब अंदर जाकर खुदाई करता है तब उसकी असली साइज़ का अंदाजा लगता है"

शीला: "हम्म.. तो आखिरकार तूने रसिक का अंदर ले ही लिया.. बड़ी कामिनी चीज है रसिक का लंड.. एक बार स्वाद लग जाए फिर कोई और पसंद ही नहीं आता"

कविता: "सही कहा आपने भाभी.. जहां तक पीयूष का लंड जाता है.. वहाँ तक तो इस कमीने की जीभ ही पहुँच जाती है.. फिर जब उसने अपना गधे जैसा अंदर डाला.. आहाहाहाहा क्या बताऊँ..!! इतना मज़ा आया की बात मत पूछो"

दोनों के बीच ऐसी ही बातों का सिलसिला चलता रहा और करीब दो घंटों के बाद वह कविता के घर पहुँच गए..

दोनों सफर के कारण थके हुए थे.. कविता तो ज्यादा ही थकी हुई थी.. रसिक के प्रहारों के कारण उसके अंग अंग में मीठा सा दर्द हो रहा था..

कविता की नौकरानी ने खाना तैयार कर दिया था.. दोनों ने बैठकर खाना खतम किया

कविता: "भाभी, मेरा तो पूरा शरीर दर्द कर रहा है.. सोच रही हूँ की गरम पानी से शावर ले लूँ.. आप बेडरूम मे रिलेक्स कीजिए तब तक मैं फ्रेश होकर आती हूँ.. फिर आराम से बातें करते करते सो जाएंगे"

शीला नाइटी पहनकर पीयूष-कविता के बेडरूम मे आई.. बिस्तर के सामने ६५ इंच का बड़ा सा टीवी लगा हुआ था.. शीला ने रिमोट हाथ में लिया और चेनल बदलते हुए कविता का इंतज़ार करने लगी

थोड़ी देर में कविता स्काइ-ब्लू कलर की पतली पारदर्शक नाइटी पहनकर बेडरूम मे आइ और शीला के बगल में लेट गई.. कविता के गले पर रसिक के काटने के निशान साफ नजर आ रहे थे.. शीला यह देखकर मुस्कुराई

शीला के बगल में लेटी हुई कविता उससे लिपट गई.. और शीला के गालों को चूमते हुए बोली

कविता: "आपने आज मेरी बहोत मदद की भाभी.. वहाँ अकेले जाने के बारे में तो मैं सोच भी नहीं सकती थी.. आप थे इसलिए मेरी हिम्मत हुई"

शीला और कविता बेडरूम में बिस्तर पर लेटे हुए फिल्म देख रही थीं.. कविता को नींद आने लगी थी और बातें करते करते उसकी आँखें धीरे धीरे ढलने लगी थी.. सोने से पहले कविता ने लाइट बंद करके नाइट लैम्प ऑन कर दिया.. शीला किसी दूसरे चैनल पर इंग्लिश फिल्म देखने लगी.. फिल्म में काफी खुलापन और चुदाई के सीन थे..

नींद में कविता ने एक घुटना ऊपर उठाया तो अनायास ही उसकी रेश्मी नाइटी फ़िसल कर घुटने के ऊपर तक सरक गई.. टीवी और मंद लाइट की रोशनी में उसकी दूधिया रंग की जाँघ चमक रही थी.. अब शीला का ध्यान फिल्म में ना होकर कविता के जिस्म पर था और रह-रह कर उसकी नज़र कविता के गोरे जिस्म पर टिक जाती थी.. कविता की खूबसूरत जाँघें उसे मादक लग रही थी.. कुछ तो फिल्म के चुदाई सीन का असर था और कुछ कविता की खूबसूरती का.. शीला बेहद चुदासी हो रही थी और आज वो कविता के साथ अपनी आग बुझाने वाली थी और उसे भी खुश करना चाहती थी..कविता उसका इतना बड़ा काम जो करने वाली थी

शीला ने टीवी बंद किया और वहीं कविता के पास सो गई.. थोड़ी देर तक बिना कोई हरकत किये वो लेटी रही.. फिर उसने अपना हाथ कविता के उठे हुए घुटने वाली जाँघ पर रख दिया.. हाथ रख कर वो ऐसे ही लेटी रही, एक दम स्थिर.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने अपने हाथ को कविता की जाँघ पर फिराना शुरू कर दिया.. हाथ भी इतना हल्का कि सिर्फ़ उंगलियाँ ही कविता को छू रही थी, हथेली बिल्कुल भी नहीं.. फिर उसने हल्के हाथों से कविता की नाइटी को पूरा ऊपर कर दिया.. अब कविता की पैंटी भी साफ़ नज़र आ रही थी.. शीला की उंगलियाँ अब कविता के घुटनों से होती हुई उसकी पैंटी तक जाती और फिर वापस ऊपर घुटनों पर आ जाती..

यही सब तकरीबन दो-तीन मिनट तक चलता रहा.. जब कविता ने कोई हरकत नहीं की, तो शीला ने कविता की पैंटी को छूना शुरू कर दिया लेकिन तरीका वही था.. घुटनों से पैंटी तक उंगलियाँ परेड कर रही थी.. अब शीला धीरे से उठी और उसने अपनी नाइटी और ब्रा उतार दी, और सिर्फ़ पैंटी में कविता के पास बैठ गई.. कविता की नाइटी में आगे कि तरफ़ बटन लगे हुए थे.. शीला ने बिल्कुल हल्के हाथों से बटन खोल दिये.. फिर नाइटी को हटाया तो कविता के गोरे चिट्टे मम्मे नज़र आने लगे.. अब शीला के दोनों हाथ मसरूफ हो गये थे.. उसके एक हाथ की उंगलियाँ कविता की जाँघ और दूसरे हाथ की उंगलियाँ कविता के मम्मों को सहला रही थी.. उसकी उंगलियाँ अब कविता को किसी मोर-पंख की तरह लग रही थीं.. कविता अब जाग चुकी थी और उसे बड़ा अच्छा लग रहा था, इसलिये बिना हरकत लेटी रही.. वो भी इस खेल को रोकना नहीं चाहती थी..

अब शीला ने झुककर कविता की चुची को किस किया.. फिर उठी और कविता की टाँगों के बीच जाकर बैठ गई.. कविता को अपनी जाँघ पर गर्म हवा महसूस हो रही थी.. वो समझ गई कि शीला की साँसें हैं.. शीला कविता की जाँघ को अपने होंठों से छू रही थी, बिल्कुल उसी तरह जैसे वो अपनी उंगलियाँ फिरा रही थी.. अब वही साँसें कविता को अपनी पैंटी पर महसूस होने लगीं, लेकिन उसे नीचे दिखायी नहीं दे रहा था.. वैसे भी उसने अभी तक आँखें नहीं खोली थी..

lkc

अब शीला ने अपनी ज़ुबान बाहर निकाली और उसे कविता की पतली सी पैंटी में से झाँक रही गरमागरम चूत की दरार पर टिका दी.. कुछ देर ऐसे ही उसने अपनी जीभ को पैंटी पर ऊपर-नीचे फिराया.. कविता की पैंटी शीला के थूक से और चूत से निकाल रहे पानी से भीगने लगी थी.. अचानक शीला ने कविता की थाँग पैंटी को साइड में किया और कविता की नंगी चूत पर अपने होंठ रख दिये.. कविता से और बर्दाश्त नहीं हुआ और उसने अपनी गाँड उठा दी, और दोनों हाथों से शीला के सिर को पकड़ कर उसका मुँह अपनी चूत से चिपका लिया.. शीला की तो दिल की मुराद पूरी हो गई थी! अब कोई डर नहीं था! वो जानती थी कि अब कविता सब कुछ करने को तैयार है - और आज की रात रंगीन होने वाली थी..

lp

शीला ने अपना मुँह उठाया और कविता की पैंटी को दोनों हाथों में पकड़ कर खींचने लगी.. कविता ने भी अपनी गाँड उठा कर उसकी मदद की.. फिर कविता ने अपनी नाइटी भी उतार फेंकी और शीला से लिपट गई.. शीला ने भी अपनी पैंटी उतारी और अब दोनों बिल्कुल नंगी एक दूसरे के होंठ चूस रही थीं.. दोनों के मम्मे एक दूसरे से उलझ रहे थे.. दोनों ने एक दूसरे की टाँगों में अपनी टाँगें कैंची की तरह फंसा रखी थीं और शीला अपनी कमर को झटका देकर कविता की चूत पर अपनी चूत लगा रही थी, जैसे कि उसे चोद रही हो.. कविता भी चुदाई के नशे में चूर हो चुकी थी और उसने शीला की चूत में एक उंगली घुसा दी.. अब शीला ने कविता को नीचे गिरा दिया और उसके ऊपर चढ़ गई.. शीला ने कविता के मम्मों को चूसना शुरू किया.. उसके हाथ कविता के जिस्म से खेल रहे थे..

ss

कविता अपने मम्मे चुसवाने के बाद शीला के ऊपर आ गई और नीचे उतरती चली गई.. शीला के मम्मों को चूसकर उसकी नाभि से होते हुए उसकी ज़ुबान शीला की चूत में घुस गई.. शीला भी अपनी गाँड उठा-उठा कर कविता का साथ दे रही थी.. काफी देर तक शीला की चूत चूसने के बाद कविता शीला के पास आ कर लेट गई और उसके होंठ चूसने लगी..

अब शीला ने कविता के मम्मों को दबाया और उन्हें अपने मुँह में ले लिया - शीला का एक हाथ कविता के मम्मों पर और दूसरा उसकी चूत पर था.. उसकी उंगलियाँ कविता की चूत के अंदर खलबली मचा रही थी.. कविता एक दम निढाल होकर बिस्तर पर गिर पड़ी और उसके मुँह से अजीब-अजीब आवाज़ें आने लगी.. तभी शीला नीचे की तरफ़ गई और कविता की चूत को चूसना शुरू कर दिया.. अपने दोनों हाथों से उसने चूत को फैलाया और उसमें दिख रहे दाने को मुँह में ले लिया और उस पर जीभ रगड़-रगड़ कर चूसने लगी..

rgc

कविता तो जैसे पागल हो रही थी.. उसकी गाँड ज़ोर-ज़ोर से ऊपर उठती और एक आवाज़ के सथ बेड पर गिर जाती, जैसे कि वो अपनी गाँड को बिस्तर पर पटक रही हो.. फिर उसने अचानक शीला के सिर को पकड़ा और अपनी चूत में और अंदर ढकेल दिया.. उसकी गाँड तो जैसे हवा में तैर रही थी और शीला लगभग बैठी हुई उसकी चूत खा रही थी.. वो समझ गई कि अब कविता झड़ने वाली है और उसने तेज़ी से अपना मुँह हटाया और दो उंगलियाँ कविता की चूत के एक दम अंदर तक घुसेड़ दी..

उंगलियों के दो तीन ज़बरदस्त झटकों के बाद कविता की चूत से जैसे नाला बह निकला.. पूरा बिस्तर उसके पानी से गीला हो गया..

ff

शीला ने एक बार फिर अपनी टाँगें कविता की टाँगों में कैंची की तरह डाल कर अपनी चूत को कविता की चूत पर रख दिया और ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी, जैसे कि वो कविता को चोद रही हो.. दोनों कि चूत एक दूसरे से रगड़ रही थी और शीला कविता के ऊपर चढ़ कर उसकी चुदाई कर रही थी..

ls

कविता का भी बुरा हाल था और वो अपनी गाँड उठा-उठा कर शीला का साथ दे रही थी.. तभी शीला ने ज़ोर से आवाज़ निकाली और कविता की चूत पर दबाव बढ़ा दिया.. फिर तीन चार ज़ोरदार भारी भरकम धक्के मार कर वो शाँत हो गई.. उसकी चूत का सारा पानी अब कविता की चूत को नहला रहा था.. फिर दोनों उसी हालत में नंगी सो गईं..

lc

अगला रोमांचक अध्याय पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें
 
Last edited:

vakharia

Supreme
5,922
20,460
174
Story updated

Napster Ajju Landwalia Rajizexy Smith_15 krish1152 Rocky9i crucer97 Gauravv liverpool244 urc4me SKYESH sunoanuj Sanjay dham normal_boy Raja1239 CuriousOne sab ka pyra Raj dulara 8cool9 Dharmendra Kumar Patel surekha1986 CHAVDAKARUNA Delta101 rahul 23 SONU69@INDORE randibaaz chora Rahul Chauhan DEVIL MAXIMUM Pras3232 Baadshahkhan1111 pussylover1 Ek number Pk8566 Premkumar65 Baribrar Raja thakur Iron Man DINNA Rajpoot MS Hardwrick22 Raj3465 Rohitjony Dirty_mind Nikunjbaba brij1728 Rajesh Sarhadi ROB177A Tri2010 rhyme_boy Sanju@ Sauravb Bittoo raghw249 Coolraj839 Jassybabra rtnalkumar avi345 kamdev99008 SANJU ( V. R. ) Neha tyagi Rishiii Aeron Boy Bhatakta Rahi 1234 kasi_babu Sutradhar dangerlund Arjun125 Radha Shama nb836868 Monster Dick Rajgoa anitarani Jlodhi35 Mukesh singh Pradeep paswan अंजुम Loveforyou Neelamptjoshi sandy1684 Royal boy034 mastmast123 Rajsingh Kahal Mr. Unique Vikas@170 DB Singh trick1w Vincenzo rahulg123 Lord haram SKY is black Ayhina Pooja Vaishnav moms_bachha@Kamini sucksena Jay1990 rkv66 Hot&sexyboy Ben Tennyson Jay1990 sunitasbs 111ramjain Rocky9i krish1152 U.and.me archana sexy vishali robby1611 Amisha2 Tiger 786 Sing is king 42 Tri2010 ellysperry macssm Ragini Ragini Karim Saheb rrpr Ayesha952 sameer26.shah26 rahuliscool smash001 rajeev13 kingkhankar arushi_dayal rangeeladesi Mastmalang 695 Rumana001 sushilk satya18 Rowdy Pandu1990 small babe CHETANSONI sonukm Bulbul_Rani shameless26 Lover ❤️ NehaRani9 Random2022 officer Rashmi Hector_789 komaalrani ra123hul
 
Top