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Incest वो कौन थी..? भाग २

Chutphar

Mahesh Kumar
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अभी तक आपने पढा की प्रिया ने खिङकी से मुझसे नेहा की चुदाई करते देख लिया था जिससे वो मुझसे गुस्सा तो थी, मगर साथ ही वो काफी उत्तेजित भी गयी थी। प्रिया की इस उत्तेजना‌ और नेहा से उसकी ईर्ष्या व जलन‌ के कारण मै ये कहुँ की मेरे व प्रिया के बीच फिर से चुदाई हो गयी थी, या फिर ये कहुँ की खुद प्रिया ने ही मुझे जोरो से चोद दिया था..! तो कोई गलत बात नही होगी..!

अपने‌ कपङे पहनने के बाद प्रिया ने मुझे‌ भी अब अपने‌ कपङे पहन लेने को कहा और कमरे से बाहर चली गयी।

अब उसके आगे...


प्रिया के जाने‌ के बाद मै अभी‌ अपने‌ कपङे पहन‌ ही रहा था की तभी

"अरे.., मम्मी आप‌ कब आई..?" बाहर प्रिया की घबराई हुई सी आवाज सुनाई दी।

शायद सुलेखा‌ भाभी आ गयी थी। डर के मारे मै अब जल्दी जल्दी अपने‌ कपङे‌ पहनने‌ लगा... मगर तभी मेरे दिमाग मे आया की...
“‌उस समय दरवाजे पर जो आया था कही वो सुलेखा भाभी तो नही थी..?

" .....नही...नहीं..., सुलेखा भाभी कैसे हो सकती है..?, अगर वो सुलेखा भाभी होती तो अभी तक‌ घर मे हँगामा नही हो जाना था...?” मैने अपने दिल‌ मे ही सोचकर खुद को जैसे तसल्ली सी दी...

मुझे अब डर लगने लगा था इसलिये कपङे पहनने के बाद मै सुलेखा भाभी की व प्रिया की बाते सुनने के लिये दरवाजे के पास जाकर खङा हो गया... मगर बाहर मुझे सब‌ कुछ सामान्य ही लगा। मैने भी अब सोचा की शायद वो मेरा वहम था इसलिये कुछ देर बाहर की बाते सुनने के बाद मै वापस अपने बिस्तर पर आकर लेट गया।


नेहा और प्रिया की चुदाई से मै इतना थक गया था अब बिस्तर पर लेटते ही मुझे इतनी गहरी नीँद लगी की पता ही नही चला कब रात हो गयी.. और रात मे जब मुझे अपने सीने पर भार सा महसूस हुवा तब जाकर मेरी नीँद खुली...

मैने आँखे खोलकर देखा तो नेहा मेरे उपर लेटी हुई थी और गालो‌ को चुम‌ रही थी। मैने अब घङी मे देखा तो उस समय रात के ग्यारह बज रहे थे। मैने रात का खाना भी नही खाया था, मै शाम‌ से सो ही रहा था।


मैने जब नेहा से पुछा की मुझे उठाया क्यो नही तो उसने बताया की "वो प्रिया ने मम्मी को बोल‌ ये दिया था की तुम्हारी तबियत खराब है इसलिये...!" इतना कहकर नेहा अब फिर से मेरे गालो को चुमने लगी। नेहा ने भी खिङकी से मेरी और प्रिया‌ की चुदाई देख ली थी इसलिये शायद वो तब से ही उत्तेजित थी।


मैने भी अब नेहा की एक अच्छी सी चुदाई करके उसका साथ दिया मगर नेहा की चुदाई करते समय बार बार मुझे ऐसा लग रहा था जैसे की खिङकी से कोई हमे देख रहा हो... बाहर अन्धेरा था इसलिये कोई नजर तो नही‌ आया था मगर काफी बार मुझे कीसी‌ के‌ होने‌ की आहट हुई..?


खैर चुदाई के बाद नेहा तो वापस अपने कमरे मे चली गयी मगर उसके कुछ ही देर बाद ही प्रिया मेरे कमरे मे आ गयी। अब प्रिया के साथ भी मेरा एक अच्छा खासा चुदाई का दौर चला मगर प्रिया की चुदाई करते समय भी मुझे ऐसा लगता रहा जैसे की अभी भी कोई हमे खिङकी से देख रहा है..?


नेहा और प्रिया की चुदाई करते करते मुझे रात के तीन बज गये थे और मै काफी थक‌ भी गया था इसलिये बिस्तर पर गीरते ही मुझे अब नीन्द आ गयी। अगले दिन एक तो इतवार की छुट्टी थी और दुसरा नेहा व प्रिया के कारण मै‌ रात भर ठीक से सोया भी नही था इसलिये अगले दिन मै काफी देर तक सोता रहा‌।
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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बारह बजे के करीब जब मेरी नीँद खुली और जब तक मै तैयार होकर अपने कमरे से बाहर आया तो दोपहर के खाने का समय हो गया था। नेहा, प्रिया और सुलेखा भाभी साथ मे ही खाना खा रही थी इसलिये मै भी अब उनके साथ ही खाना खाने के लिये बैठ गया, तभी...

"तबियत कैसी है अब तुम्हारी..?" सुलेखा भाभी ने मुझे घुरकर देखते हुवे कहा।


मैने सोचा की मै देर तक सो रहा था इसलिये सुलेखा भाभी ऐसा पुछ रही है..

"जी.., अब बिल्कुल ठीक है" मैने हँशते हुवे बिल्कुल सामान्य सा ही जवाब दिया‌‌।


"अरे... मम्मी ठीक‌ क्यो नही होगा..? दवाई तो ले रहा है.." प्रिया ने अब शरारत से मेरी तरफ देखते हुवे कहा जिससे मुझे भी हँशी आ गयी और मै नेहा की तरफ देखने लगा।

नेहा भी मेरी तरफ देख रही थी उसे ये तो पता चल गया था की प्रिया ने बातो बातो मे हमारे सम्बन्धो पर ताना मारा था मगर उसे "दवाई" के बारे मे कुछ समझ नही आया था इसलिये वो गुस्से से मेरी तरफ देखने लगी...


मगर तभी...

"ठीक है...,ठीक है..., पता है मुझे.." सुलेखा भाभी ने अब गुस्से से प्रिया की तरफ देखते हुवे कहा जिससे प्रिया सहम सी गयी और मेरी तरफ देखने लगी।

मुझे भी अब ये कुछ अजीब सा लगा था इसलिये मै अब सुलेखा भाभी की तरफ देखने लगा वो अब फिर से मेरी तरफ घुर घुर कर देख रही थी।

"दवाई नही इसे अब डाॅक्टर की जरूरत है..!"सुलेखा भाभी ने अब फिर से मेरी तरफ घुर कर देखते हुवे कहा और चुपचाप खाना खाने लगी जिससे मुझे अब थोङा डर सा लगने लगा और मै भी अब चुपचाप खाना खाने लगा।

अब कीसी ने कोई बात नही की सब चुपचाप‌ अपना अपना खाना खाने लगे मगर जब तक हमने खाना खाया तब तक सुलेखा भाभी ऐसे ही मुझे घुर घुर कर देखती रही। सुलेखा भाभी के ऐसे देखने से मुझे अब डर सा लगने लगा था।

खैर खाना खाने के बाद नेहा व प्रिया तो अपने कमरे मे चली गयी और सुलेखा भाभी खाने के बर्तन समेटने लगी। मै भी अब चुपचाप अपने कमरे मे आ गया और सुलेखा भाभी के व्यवहार मे आये इस बदलाव के बारे मे सोचने लगा...

"मुझे शक सा होने लगा था की कही सुलेखा भाभी को हमारे बारे पता तो नही चल गया, क्योंकि कल शाम से ही सुलेखा भाभी का व्यवहार और बातचीत मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था। मै जब भी उनके सामने जाता तो वो मुझे घुर घुर कर और कुछ अजीब सी ही नजरो से देखने‌ लगती थी..!


अगर सुलेखा भाभी को सब पता चल ही गया है तो फिर अभी तक वो मुझसे, या फिर नेहा व प्रिया से कुछ कह क्यो नही रही..? कही वो किशोर भैया के आने का इन्तजार तो नही कर रही, क्योंकि आज सुबह ही किशोर भैया कुशल को लाने के लिये गाँव चले गये थे। शायद सुलेखा भाभी किशोर भैया के ही आने का इन्तजार कर रही है इसलिये ही वो मुझे ज्यादा कुछ कह नही रही..

"वैसे अगर सही मे सुलेखा भाभी को हमारे बारे मे पता चल गया है तो कल किशोर भैया आने के बाद मेरी पिटाई होना अब तय ही है..!" मै ये सब सोच ही रहा था की तभी सुलेखा भाभी मेरे कमरे मे‌ आ गयी और..

"ये जो रोज रोज तुम्हारी तबियत खराब क्यो हो रही है और नेहा व प्रिया तुम्हे कौन सी दवाई दे रही है मुझे सब पता है, कल‌ दोपहर से ही तुम्हारा ये खेल देख रही हुँ मै..." सुलेखा भाभी ने अब सीधा ही अन्दर आकर मेरी तरफ गुस्से से देखते हुवे कहा।


मै समझ तो गया था की‌ मेरा भेद खुल गया है और सुलेखा भाभी क्या कहना चाह रही है मगर फिर भी..

"म्.म्. कुछ समझा नही..!" घबराहट मे मैने हकलाते हुवे कहा।

"सब समझ रहे हो तुम मै क्या कह रही हुँ, पर दवाई की नही तुम्हे अब डाक्टर की जरुरत है..!" सुलेखा भाभी ने वैसे ही मुझे घुर घुरकर देखते हुवे कहा।

डर के कारण मेरा गला अब सुख गया तो, बदन भी थर थर काँपने लगा। मुझे अपनी पिटाई होना तय ही लग रही थी इसलिये मेरे मुँह से कोई भी आवाज नही निकल सकी मगर सुलेखा भाभी अब बोलती रही..

"हमने तो तुम्हारे अच्छे के लिये तुम्हे यहाँ रहने दिया था मगर तुम तो जिस थाली मे खाये हो उसी मे छेद कर रहे हो..!"

"वो बाहर गये हुवे है इससे पहले वो आये और उन्हे कुछ पता चले, तुम चुपचाप अपना सामान लेकर यहाँ निकल जाओ..!" सुलेखा भाभी ने मेरी तरफ‌ देखते हुवे आदेश सा सुनाया और वापस जाने के‌ लिये गुस्से से एक झटके मे पीछे मुङ गयी..

डर के मारे मेरी तो‌जैसे अब हालत ही खराब हो गयी..
"यहाँ से जाकर मै अपने घर पर क्या जवाब दुँगा..? और भैया को कुछ पता चल गया तो वो तो मुझे मार ही डालेँगे.." अब ये सोच कर तो मै अन्दर तक‌ ही हील सा गया..

"अब क्या करू...? क्या ना करूँ..?" ये सोच सोचकर मेरा दिमाग खराब हो रहा था की तभी मेरे दिमाग आया...

“‌अगर सुलेखा भाभी को सब पता चल ही गया है, और मेरी पिटाई होना तय ही है, तो क्यो ना मै सुलेखा भाभी को ही पटाने की एक आखरी कोशिश कर लिय जाये..!

वैसे भी सुलेखा भाभी के साथ ऐसा कुछ करने के विचार तो मेरे दिल मे तब से ही थे जबसे मै यहाँ आया था‌, क्योंकि मेरे साथ सुलेखा भाभी का व्यवहार की कुछ ऐसा था। उनका मुझसे वो खुलकर बाते करना.., हँशी मजाक करना, और बातो बातो मे मुझे छेङना..! मुझे कुछ अलग ही अहसास करवाता था।

किशोर भैया और सुलेखा भाभी की उम्र मे काफी अन्तर है‌, और जब उनकी उम्र मे ही इतना इतना अन्तर है, तो उनके रिश्तो मे भी कुछ ना कुछ अन्तर तो रहता ही होगा..? क्योंकि मैने काफी बार सुलेखा भाभी की आँखो मे भी अपने लिये एक हसरत सी देखी थी।

मै तो काफी बार सोचता रहता था, क्यो ना सुलेखा भाभी और किशोर भैया की उम्र के इस अन्तर के तार को छेङ कर सुलेखा भाभी के साथ ही अपने प्यार की पीँग बढाने की कोशिश कर ली‌ जाये मगर प्रिया और नेहा मे उलझे रहने के कारण कभी कोशिश करने का समय ही नही मिल पाया था।

अब वैसे भी मेरी पिटाई तो होना तय ही है अगर कुछ गङबङ भी हो जायेगी तो इससे ज्यादा कोई फर्क‌ नही पङने वाला था और अगर... अगर मै कामयाब हो जाता हुँ तो हुँ तो लोगो की तो दो उँगलियाँ घी मे होती है मगर मेरी तो तीन हो जायेँगी...
प्रिया..
नेहा ..

और अब सुलेखा‌ भाभी...?”
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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सुलेखा भाभी अभी दरवाजे पर ही पहुँची‌ थी की अब ये बात मेरे दिमाग मे आते ही मैने बीजली की सी फुर्ती से उठकर तुरन्त सुलेखा भाभी को दरवाजे पर ही पकङ‌ लिया...

अचानक हमले से सुलेखा भाभी अब बुरी तरह घबरा गयी और...
"य.ये.ये.. त्.त.तुम्म्म..क्क्या कर रहे होओ्ओ्..?, छ.छछोङ मुझे...उउऊ.ऊह्ह्ह.." सुलेखा भाभी ने मेरी‌ बाँहो मे कसमसाते हवे कहा...

"कुछ‌ नहीई..., आप ही तो कह रही हो की नेहा और प्रिया की दवाई से मेरा कुछ नही होने वाला, मुझे अब डाॅक्टर की‌ जरूरत है इसलिये अपने डाॅक्टर से दवाई ले रहा हुँ..!" मैने सुलेखा भाभी को अपनी बाहों मे भरकर जोरो से भीँचते हुवे कहा।


"आने दो कल तुम्हारे भैया को, अब वो ही खबर लेँगे तुम्हारी..?" सुलेखा भाभी ने अपने आपको छुङाने की कोशिश करते हुवे फिर से कहा, मगर तब तक मैने उनको दिवार के साथ लगाकर अपने शरीर के भार से दबा लिया और...

"आपको जब कल से पता था तो आपने कल ही भैया को क्यो नही बता दिया, कल तो वो घर पर ही थे..? मगर कल तो आप भी खिङकी से हमे देख देख कर मझा कर रही थी.." मैने सुलेखा भाभी की आँखो मे देखते हुवे कहा...

मेरे ये कहते ही सुलेखा भाभी ने भी एक पल के लिए अब मेरी आँखों में देखा और फिर अपना चेहरा घुमा लिया। उनका पुरा बदन अब जोरो से काँपने लगा था। मुझे नही पता था की कल जो मुझे खिङकी से किसी के देखने का वहम सा हुवा था वो सुलेखा भाभी ही थी। मैने तो ये अन्धेर मे ऐसे ही तीर चलाया था मगर वो निशाने पर सही लगा था, क्योंकि मैंने सुलेखा भाभी की मनोदशा भांप ली थी।

मैंने उनके चेहरे को एक बार फ़िर अपने हाथों में लेकर अपनी तरफ घुमाया और एकटक देखते हुए उनके जवाब का इंतज़ार करने लगा। उनका चेहरा अब टमाटर की तरह लाल हो गया था और होंठ थरथराने से लगे थे। आँखें अब भी नीचे थीं और एक अजीब सा भाव उनके चेहरे पर उभर आया था जैसे की उनकी चोरी पकड़ी गई हो..!

बड़ा ही मनोरम दृश्य था वो, लाल साड़ी में लिपटी लाल लाल गालों से घिरा वो खूबसूरत सा चेहरा… जी कर रहा था की उनके पूरे चेहरे को ही चूमचाट लूँ मगर मेरे दिल मे अभी भी एक डर सा बना हुवा था।

"छोङो..., छोङो मुझे.. नही तो मै शोर मचाकर सबको बुला लुँगी..!" सुलेखा भाभी ने अब कसमसाते हुवे कहा लेकिन मैं उन्हें कस कर अपने शरीर के भार से दबाये रखा, मैंने भी सोच लिया था कि अब जो होगा सो देखा जायेगा..?


मै और सुलेखा भाभी अब एक दूसरे पर अपना अपना जोर आजमा रहे थे। मैंने उन्हें जोर से जकड़ा हुवा था और वो अपने आप को छुङाने का प्रयास कर रही थी.. मगर इस कसमसाहट में उनकी चूचियाँ मेरे सीने से रगड़ कर मेरे अन्दर के शैतान को और भी भड़का रही थीं। सुलेखा‌ भाभी की भी साँसें धीरे धीरे अब गर्म और तेज़ होती जा रही थी।

मैं समझ नहीं पा रहा था कि अब आगे क्या करना चाहिए..? मगर तभी सुलेखा भाभी के अन्दर छिपे चोर व उनके डर ने उनसे हथियार डालवा दिये और...

“उफ्फ… महेश, जाने दे मुझे… नेहा और प्रिया यही पर है वो देखेँगी तो क्या सोचेँगी..? छोङ मुझे..!” सुलेखा भाभी ने अपने चेहरे को घुमाकर बाहर की तरफ देखते हुवे कहा...

मेरे लिये सुलेखा भाभी का बस अब इतना कहना तो काफी था, मुझे मेरा सिग्नल मिल गया था इसलिये अगले ही पल मैने सीधा सुलेखा भाभी के होठो से अपने होठो को जोङ दिया.. अब जब तक वो कुछ समझती तब मैने उनके होठो को अपने मुँह मे भरकर जोरो से चुशना शुरु कर दिया...

"उउऊ.ऊह्ह्ह....
हुहुहुँहुँहुँऊऊऊउउ..." कहकर सुलेखा भाभी अब जोरो से कसमसाने‌ लगी और अपने दोनो हाथो से मेरे सिर को पकङकर अपने होठो से अलग कर दिया।

“उफ्फ्… ये क्या कर रह है..?
ये सब ठीक नही..!
प्लीईज छोङ मुझे...!" ये कहकर सुलेखा भाभी ने अब एक बार फिर मुझसे छुङाने का प्रयास किया मगर अब मै कहा मानने वाला था...

मैने दोनो हाथो से उनके सिर को पकङकर फिर से अपने होठो को जोङ दिया और अबकी बार कस कसकर उनके होठो को चुशने लगा जिससे कुछ ही देर ने सुलेखा की भी साँसे अब फुल आई तो, उनका बदन भी उनका साथ छोङने लगा..

सुलेखा भाभी मेरे पास वैसे तो गुस्से मे मेरी शिकायत लेकर ही आई थी मगर एक तो मुझे नेहा व प्रिया के चुदाई करते देखने की उनकी चोरी पकङ मे आ गयी थी उपर से वो खुद भी ना जाने कब से प्यासी थी। मैने भी ना जा‌ने कितनी ही बार उनकी आँखो मे अपने लिये एक हसरत सी देखी थी इसलिये उनका बदन अब खुद उनका साथ छोङने लगा..

"उफ्फ्फ्..महेश्श्श्... समझा कर.. नेहा और प्रिया यही पर है अगर गलती से कोई बाहर आ गयी तोओ्ओ्..?” सुलेखा भाभी ने अब अपनी अनियंत्रित साँसों को इकठ्ठा करते हुवे कहा।

"आ जाने दो… मैं नहीं डरता उनसे..." मैने सुलेखा भाभी की नशीली आँखो मे देखकर उनके मुलायम गाल को चूमते हुवे कहा।

"हाँआ्..हाँआ्आ्...
तुम्हे डर क्यो लगेगा..पर बदनामी तो मेरी होगी..!
तुम्हे तो डर नही मगर मुझे तो अपनी बदनामी का डर है...!" सुलेखा भाभी ने अब थोङा गुस्सा दिखाते हुवे कहा और मेरे चेहरे को अपने से दुर हटा दिया।

"आपको डर है तो ये लो.." हम दोनो दरवाजे के पास तो खङे ही इसलिये मैने तुरन्त ही दरवाजे को बन्द करके अन्दर से कुण्डी लगा ली और‌ सुलेखा भाभी को खीँचकर बिस्तर की तरफ लाने लगा...


"य.ये.ये.. त्.ततुम्म्म क्.क्या कर रहे हो... छ.छछोङ मझे...उउऊ.ऊह्ह्ह.." सुलेखा भाभी ने मुझसे छुङाने की कोशिश करते हुवे कहा लेकिन मै अब कहाँ छोङने वाला था... सुलेखा भाभी को अपनी बाँहो मे पकङे पकङे ही मै बिस्तर के पास ले आया और...

"बताया ना की डाॅक्टर की दवाई ले रहा हुँ..." मैने सुलेखा भाभी के गालो‌ को‌ चुमते हुवे कहा.. जिससे उनके गाल तो क्या अब तो पूरा का पूरा चेहरा ही शर्म से सिन्दूरी सा हो गया...


"आह्ह्…ये क्या कर रहा है..?
प्लीज जाने दो अभी… फिर कभी…..?
अभी मुझे ढेर सारा काम है घर में ...!” सुलेखा भाभी ने कसमसाते हुवे कहा और मेरे बाहों से निकलने का प्रयास करने लगी मगर मैने उन्हें बाँहो मे लेकर बिस्तर पर गिरा लिया और अपने शरीर के भार से दबाकर फिर से उनके नर्म नर्म गालो पर चुम्बनो की‌ बौछार सी‌ कर दी...


मेरे चुम्बनो से बचने‌ के लिये सुलेखा भाभी अब बिस्तर पर पङे पङे ही घुम‌ कर उलटी हो गयी... पर मेरे लिये तो ये और भी अच्छा हो गया। शायद सुलेखा भाभी को मालुम‌ नही था की ऐसा करने से मै उनकी प्यास को और भी भङका दुँगा... क्योंकि सुलेखा भाभी का ब्लाउज पीछे से काफी खुला हुवा था जिससे गर्दन के नीचे से उनकी आधी से ज्यादा नँगी पीठ अब मेरे सामने थी।

मैने भी अब उनकी नँगी पीठ पर से चुमना शुरु‌ किया और धीरे धीरे गर्दन की तरफ बढने लगा... जिससे सुलेखा भाभी और भी‌ जोरो से सिसक उठी.... अब जब तक मेरे होठ सुलेखा भाभी की नँगी पीठ को चुमते हुवे उनकी गर्दन तक पहुँचे तब तक तो वो सहती रही, मगर जब गर्दन को चुमते हुवे मै उपर उनकी कानो की लौ के पास पहुँचा तो सुलेखा भाभी की बर्दाश्त के बाहर हो गया...वो अब जोरो से सिसक उठी और तुरन्त ही फिर से घुमकर सीधी हो गयी।

मै भी अब थोङा सा उठकर सुलेखा भाभी के आधा ऊपर आ गया और उनकी चूँचियों को अपने सीने से दबाकर उनके लाल लाल गालो को चुमते हुवे उनके रशीले होठो की तरफ बढने लगा... सुलेखा भाभी की भी साँसे अब जोरो से फुल आई थी इसलिये उनका विरोध भी अब कम होता जा रहा था, और वो भी शायद बस वो दिखावे के लिये ही कर रही थी क्योंकि उनका बदन तो अब कुछ और ही‌ कह रहा था...

सुलेखा भाभी के गालो‌ को चुमते हुवे मै‌ भी उनके रशीलो होठो पर आ गया था जो की अब जोरो से थरथराने से रहे थे, मगर अब जैसे ही मैने अपने होठो से उनके होठो को छुवा, उनके होठ एक बार तो अब जोरो से थरथये, फिर अगले ही पल‌ उन्होने खुद ही अपने मुँह को खोलकर मेरे होठो को अपने मुँह मे भर लिया और मुझे अपनी बाँहो मे‌ भर उन्हे जोर जोर से चुशना शुरु कर दिया..

अब तो कुछ कहने को रह ही नहीं गया था इसलिये मैने भी सुलेखा भाभी को अब जोरो से भीँच लिया और उनके रशीले होठ को चुशते चुशते ही धीरे से अपनी जीभ को उनके मुँह मे घुसा दिया... सुलेखा भाभी ने भी अब अपना मुँह खोलकर मेरी जीभ का स्वागत किया और उसे धीरे धीरे चुशते हुवे मुझे अपनी बाँहो मे लेकर पलट गयी।
 

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सुलेखा भाभी अब मेरे ऊपर आ गयी थीं और मै उनके नीचे, जिससे उनकी ठोस भरी हुई चूचियाँ अब मेरे सीने पर अपना दबाव बनाने लगी। मेरे हाथ भी अब खुद बा खुद सुलेखा भाभी की पीठ पर आ गये जो‌ की उनके ब्लाउज के बीच के खाली जगह को अपनी उँगलियों से गुदगुदाने लगे। अब जैसे जैसे मेरी उँगलियाँ उनकी नँगी पीठ पर घूम रही थी, वैसे–वैसे ही सुलेखा भाभी का बदन भी अब थीरकने सा लगा..


मै और सुलेखा भाभी बङी ही तन्मयता से एक दुसरे को चुम‌ रहे थे, ना तो सुलेखा भाभी को कोई जल्दी थी और नाही मुझे..! सुलेखा भाभी की नँगी‌ पीठ को गुदगुदाते हुवे धीरे धीरे मेरे हाथ साड़ी के ऊपर से ही अब सुलेखा भाभी के विशाल नितम्बों पर पहुँच गये।
मैने बस एक दो बार अपनी हथेलियो से उनके नर्म गुदाज और गोलाकर विशाल नितम्बो को सहलाया, फिर नीचे उनके पैरो की तरफ बढ गया...


हमारी इस गुथमगुथा की लङाई मे सुलेखा भाभी की साङी और पेटीकोट उनकी पिँडलियो तक उपर हो गये थे। इसलिये अब जैसे ही मेरे हाथ उनकी माँसल जाँघो पर से होते हुवे थोङा सा नीचे की तरफ बढे मेरे हाथ मे उनकी साङी का छोर आ गया और मेरे हाथ उनकी नँगी चिकनी पिँडलियो पर घूमने लगे जो कि अपनी चिकनाहट के कारण मेरी हथेलियों को‌ गुदगुदी का सा एहसास करवाने लगी।

मैं भी अब अपनी हथेलियों से धीरे धीरे सुलेखा भाभी के नँगी चिकनी पिण्डलियो को सहलाते हुवे धीरे धीरे उनकी साड़ी को ऊपर की तरफ खीसकाने लगा... मगर उनकी जाँघो पर पहुँच कर मेरे हाथ रुक गये...क्योंकि सुलेखा भाभी की साङी व पेटीकोट उनके नीचे दबे होने के कारण अब और उपर नही हो रहे थे। मैने भी अब अपने हाथो को उनकी साङी व पेटीकोट के अन्दर घुसा दिया और अन्दर से ही उनकी चिकनी जाँघो को सहलाता हुवा फिर से उपर की तरफ बढने लगा..

उधर उपर हमारे होंठ अभी भी एक दुसरे मे गुथमगुथा हो रहे थे, ना तो सुलेखा भाभी मेरे होंठों को छोङ रही थी और ना ही मै... जब मेरी जीभ सुलेखा भाभी के हाथ लगती तो वो उसे जोरो से चुशने लगती और जब मुझे सुलेखा भाभी की जीभ हाथ लगती तो मै उसे चुशने लगता... हम दोनों को ही अब होश नहीं रह गया था और सुलेखा भाभी की तड़प तो इस चुम्बन से ही प्रतीत हो रही थी। ऐसा लग रहा था की वो बहुत दिनो से..! दिन नही, शायद सालो से ही प्यासी थी।


मेरे हाथ भी अब साड़ी के अन्दर सुलेखा भाभी की नर्म मुलायम जांघों पर से होते हुवे पेँटी मे कसे हुवे उनके विशाल नितम्बों तक पहुँच गये थे। सुलेखा भाभी ने पेँटी पहन रखी थी मगर वो पेँटी उनके भरे हुवे नितम्बो को सम्भालने मे नाकामयाब सी लग रही थी क्योंकि पेँटी उनके बङे बङे गोलाकार नितम्बो पर बिल्कुल चिपकी हुई थी। ऐसा लग रहा था की अभी ही सुलेखा भाभी के नितम्ब उस पेँटी के झीने से कपङे को फाङकर बाहर आ जायेँगे।


सुलेखा भाभी के पेँटी मे कैद उनके विशाल नितम्बो को सहलाते हुवे मै अब वापस अपने हाथो को पीछे से ही उनकी जाँघो के जोङ की तरफ बढाने लगा... मगर जैसे ही सुलेखा भाभी के विशाल नितम्बो की गोलाई खत्म होने के बाद मेरी उँगलियाँ उनकी जाँघो के जोङ पर लगी... वो हल्की सी नम हो गयी...

शायद काम क्रीङा का खेल‌ खेलते खेलते सुलेखा भाभी की चुत ने कामरश उगल दिया था जिससे उनकी पेँटी भीग गयी थी। उत्सुकता के वश मैने भी अब अपने हाथ को थोङा सा और नीचे उनकी चुत की तरफ बढा दिया.. मगर जैसे ही मेरी उँगलियों ने उनकी गीली चुत को छुवा..सुलेखा भाभी ने अपने दांतो को मेरे होठो मे गडा दिया, जिससे मुझे दर्द तो हुवा था लेकिन मैने अपने हाथ को वहाँ से हटाया नही बल्की वही पर रखे रहा...

चुत के पास से सुलेखा भाभी की पेँटी बिल्कुल गीली हो रखी थी और उसमे से गर्माहट सी निकल रही थी। ऐसा लग रहा था मानो पेँटी पर लगा चुत रश चुत की गर्मी से भाप बनकर उङ रहा था। मुझसे अब रहा नही गया इसलिये मैने पीछे से ही एक बार जोरो से उनकी चुत को मसल दिया जिससे सुलेखा भाभी मेरे होठो को अपने मुँह से आजाद करके थोङा सा उपर की तरफ उकस कर सिसक उठी...

सुलेखा भाभी का पल्लु पहले से ही नीचे गीरा हुवा था अब जैसे ही सुलेखा भाभी उकस कर उपर की तरफ हुई एक बार फिर से सुलेखा भाभी के लाल ब्लाऊज मे कसी हुई बड़ी बड़ी सुडौल और भरी हुई चूचियाँ मेरे सामने आ गयी, मैंने भी देर ना करते हुए अपने दोनो हाथो से उन्हें थाम लिया और सीधा ही अपने प्यासे होठो को उनकी चुँचियो की नँगी घाटी के बीच मे लगा दिया...

"उह्ह… इई.श्श्शशश..." कहकर सुलेखा भाभी अब एक बार फिर से सिसक उठी और अपने दोनो हाथो से मेरे सिर को अपनी चुँचियो पर जोरो से दबा लिया..
मैंने भी धीरे धीरे उनकी चूँचियों की घाटी को अपनी जीभ निकालकर चाटना शुरू कर दिया जिससे सुलेखा भाभी अपनी आँखें बंद करके जोरो से सिसकारियाँ सी भरने लगी मगर मुझे इतने से सब्र नही हो रहा था।


मै तो भाभी की चुँचियो को पुरा ही नँगा करके उनके रश को पीना चाह रहा था इसलिये मै अब उनके ब्लाउज के हुक खोलने लगा मगर जैसे ही मैने उनके एक दो हुको को खोला सुलेखा भाभी मे जैसे कोई चेतना सी आई और उन्होंने झटके से अपनी आँखें खोल ली..

“येऐ..क्याआ..कर.. रहे.. होओ्ओ्...?” सुलेखा भाभी ने भर्राई सी आवाज़ में कहा और तुरन्त उठकर बैठ गयी। मै भी उठकर अब सुलेखा भाभी की बगल मे ही बैठ गया और दोनो हाथो से उनके ब्लाउज के हुक खोलते हुवे....
“बताया तो था डाक्टर की दवाई...?” मैने सुलेखा भाभी की आँखो मे देखते हुवे कहा और शरारत से हँशने लगा, जिससे सुलेखा भाभी अब बिल्कुल शाँत सी‌ हो गयी.. शायद वो‌ कुछ सोचने‌ लगी थी मगर तब तक मैने उनके ब्लाउज के सारे हुको‌ को खोल लिया और दोनो हाथो से ब्रा को पकङकर एक ही झटके मे उपर तक खीँच कर चुँचियो को बाहर निकाल लिया...

अब जैसे ही मैने सुलेखा भाभी की चुँचियो‌ को ब्रा की की कैद से आजाद किया उनकी बङी बङी और सुडौल भरी‌ हुई चुँचिया ऐसे फङफङा कर बाहर आ गयी जैसे की वर्षो की कैद के बाद कोई पँछी आजाद हुवे हो... किसी बङे से आम के जितनी बङी और रश से भरी चुँचियाँ ऐसे लग रही थी मानो दो बङे बङे अमर्त कलश ही मेरे सामने आ गये थे।

उनकी चुँचियो को नँगा करने के बाद मैने एक‌ नजर अब सुलेखा भाभी‌ की ओर भी डाली, वो भी अब कुछ देर तो वैसे ही शाँत रही थी मगर अगले ही पल वो मुझे अजीब ही नजरो से घुर घुर कर देखने लगी..., उनकी आँखो मे तैरते वाशना के गुलाबी डोरे अलग ही नजर आने लगे.. वो मुझे घुर घुरके अब ऐसे देखने लगी जैसे की कच्चा ही खा ही‌ जायेगी मगर कुछ कहा नही..

एक‌ नजर सुलेखा भाभी‌ को देखने के बाद मैने अब उनकी चुँचियो को हाथ से सहलाकर उनपर मुँह सा मारा जिससे एक बार तो सुलेखा भाभी सिसक सी गयी‌ मगर‌ फिर..

"दवाई चाहिये ना..? लेऐ..., पीईई..., पीईई दवाई..." ये कहते हुवे उन्होने अब खुद ही अपनी चुँचियो को मेरे मुँह पर लगा दिया.. मै तो जैसे जन्मो से उनके लिये ही प्यासा बैठा था इसलिये मैने भी तुरंत ही उनकी चुँचियो के भुरे भुरे निप्पलो मे से एक को अपने मुँह मे भर लिया और दुसरी चुँची को अपनी हथेली मे भर‌कर जोरो से मसल दिया...

"इईई.श्श्शशश..आआह्ह्हहह..." की आवाज मे सुलेखा भाभी के मुँह से अब एक जोरो से सित्कार निकल गयी...


ये सब इतनी जल्दी जल्दी हुवा कि मुझे कुछ सोचने और समझने का मौका ही नहीं मिल पाया। पता नहीं यह सुलेखा भाभी की तड़प की वजह से था या फीर मेरी ही उत्तेजना कुछ ज्यादा जोर मार रही थी, पर जो भी हो मै आज अपनी किस्मत पर फुला नही समा रहा था इसलिये मैं भी पूरे जोश में भर कर उनकी चूँचियों को अपने मुँह में लेकर जोरो से चूशने लगा।


सुलेखा भाभी की चुँचियो‌‌ को देखने से तो दुर उनको मसलने पर भी ऐसा बिल्कुल भी प्रतीत नही हो रहा था की वो एक ग्यारह बारह साल‌ के बच्चे की माँ भी हो सकती है, उनकी चुँचिया अभी भी बिल्कुल कीसी कुँवारी लङकी की तरह ही कसी हुई थी...बाहर से तो मखमल सी मुलायम‌ और अन्दर से एकदम ठोस भरी हुई व बिल्कुल गुदाज...

मै भी अब मस्त होकर उनकी चुँचियो को मसल मसल‌कर चुशते चुशते ही उन्हे बाँहो मे भरकर फिर से बिस्तर पर लुढक गया.. जिससे सुलेखा भाभी अब पीठ के बल‌ लेट गयी तो मै आधा तो उनके उपर और आधा बिस्तर पर टिक गया..

"उफफ्फ…ले चुश..., चुश्श्श्...चूश ले… चुश लेऐ.ऐ.... आज इनकी सारी दवाई..." सुलेखा भाभी ने एक बार फिर से अब एक कामुक सिसकारी भरते हुवे कहा और जोरो से मेरे सिर को अपनी चुँचियो पर दबाने‌ लगी...


सुलेखा भाभी की तङप को देखकर अब मुझे भी समझ आ गया था की सुलेखा भाभी पता नही कब से प्यासी थी इसलिये मै भी उनकी‌ चुँचियो को रगङ रगङ कर, मसल मसल कर और जोरो से निचौङ निचौङ कर उनके रश को पीने लगा... और सुलेखा भाभी भी मस्ती से हल्की-हल्की सिसकारियाँ भरते हुवे मेरे सिर को अपनी चूँचियों पर दबा दबा कर मुझे अपनी चुँचियो के रश को पिलाने लगी...


सुलेखा भाभी की एक चुँची का रश पीने के बाद मैने उनकी दुसरी चुँची को पकङ लिया और उसका रश पीते पीते अपना एक हाथ उनके चिकने पेट पर से सहलाते हुवे नीचे उनकी चुत की तरफ भी बढा दिया... उनकी साङी व पेटीकोट को मै‌ने पहले ही घुटनो के उपर कर दिया था और अब मेरे व सुलेखा भाभी के उपर नीचे होने के कारण वो बिल्कुल उपर तक हो गये थे इसलिये अब जैसे ही मेरा हाथ पेट पर से होते हुवे नीचे की तरफ बढा मेरे हाथ मे‌ उनकी पेँटी मे‌ कसी गद्धेदार बालो से भरी और फुली हुई चुत आ गया।


इस बात का अहसास सुलेखा भाभी को भी हो गया था की मेरा एक हाथ अब उनकी चुत पर पहुँच गया है इसलिए उन्हो‌ने अब खुद ही अपने‌ हाथो‌ व पैरो की सहायता से अपनी‌ पेँटी को‌ उतारकर अलग कर दिया‌ और‌ जल्दी से मेरी बगल‌ मे‌ हाथ डालकर मुझे‌ पुरा अपने‌ उपर खीँच लिया...


सुलेखा भाभी के साथ मुझे जब इतना कुछ करने का मौका मिल रहा था तो मै उनकी उस फुली हुई चुत को‌ देखे बिना कैसे रह सकता था। मै फिर से‌ सुलेखा‌ भाभी के बदन‌ से‌ उतरकर उनकी‌ जाँघो‌ के‌ पास‌ आ गया और उनकी गहरे काले घने बालो से भरी हुई चुत को बङे ही ध्यान से देखने लगा...


शायद काफी दिनो से सुलेखा भाभी ने अपनी चुत के बालो‌ को साफ‌ नही किया था इसलिये चुत गहरे काले घने और घुँघराले बालो से भरी हुई थी.. जो की उनकी चुत को छुपाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे। चुत की फाँको के पास वाले बाल कामरश से भीग कर उनकी चुत से ही चिपक गए थे.. इसलिए चुत की गुलाबी फाँकें और दोनों फांकों के बीच का हल्का सिन्दूरी रंग इतने गहरे बालों के बीच भी अलग ही नजर आ रहा था।

मैं अब अपने आप को रोक नहीं पाया और अपने दोनो हाथो से उनकी जाँघो को फैलाकर सीधा ही अपने प्यासे होंठों को उनकी चूत रख दिया जिससे

“उम्म्.. इईई.श्श्शशश..आह्ह…" की एक‌ मीठी सित्कार सी भरते हुवे सुलेखा भाभी ने जोरो से मेरे सिर को अपनी चुत पर दबा लिया और मेरे नथुनो उनकी चुत की वो मादक सी महक समाती चली गयी...

बेहद ही तीखी और मादक महक थी उनकी चूत की… वैसे तो हर कीसी की चुत से ही महक आती है लेकिन यह खुशबू अलग ही थी, एकदम पकी पकी सी। शायद कुँवारी और शादीशुदा चूतों की महक अलग अलग होती होगी...? जैसे कीसी कच्चे फल की तुलना मे एक पके हुवे फल की अलग ही खुशबू होती है वैसे ही शायद कच्ची चुत और पकी हुई चुत की महक मे भी अन्तर होता होगा...?
 

Chutphar

Mahesh Kumar
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सुलेखा भाभी की चुत की महक मुझे अब कीसी की याद दिलाने लगी थी इस तरह की महक मै पहले भी ले चुका था... मैने अपने दिमाग पर जोर दिया तो मेरे जहन मे रेखा भाभी का ख्याल आ गया.. आपने मेरी पहले की कहानी "रेखा भाभी.." मे मेरे और रेखा भाभी के बारे मे पढा ही होगा।


रेखा भाभी की चुत की महक भी बिल्कुल ऐसी ही थी और हो भी क्यो ना दोनो सगी बहने ही तो थी। सुलेखा भाभी रेखा भाभी की छोटी बहन थी इसलिये
भैया की‌ पहली के देहान्त के बाद रेखा भाभी ने ही सुलेखा भाभी से उनका दोबारा से रिशता करवाया था। रेखा भाभी से सम्बन्ध बनाये मुझे काफी दिन हो गये थे मगर फिर भी उनकी चुत उस महक और स्वाद को मै अभी तक भुला नही पाया था।

रेखा भाभी के जैसे ही सुलेखा भाभी की चुत की उस मादक महक ने मुझे दिवाना सा बना दिया था इसलिये मैंने पहले तो अपने होंठों से उनकी चूत के हर एक हिस्से को चूमा, फिर अपने दोनो हाथो की उँगलियों से चुत की फाँको‌ को फैलाकर उसे अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया... एकदम नमकी और कसैला, बिल्कुल रेखा भाभी की चुत के जैसा ही स्वाद था उनकी चुत का..


मगर जैसे ही मैने चुत की फाँको के बीच चाटा.. “उफ्फ… इईईई..श्श्श्शशश... य.ऐ..ये..क्.क्या.आ कर.अ रहे.ऐ हो.ओओह...” सुलेखा भाभी ने एक ज़ोरदार आह्ह्.. भरते हुवे कहा और अपनी‌ जाँघो‌ को फैलाकर दोनो हाथों से मेरे सिर को अपनी चुत पर जोरो से दबा लिया, मानो मुझे ही अपनी चुत के अंदर ही घुसा लेंगी।


सुलेखा भाभी ने मुझे इतनी जोरो से अपनी चुत पर दबा लिया था की मेरा दम सा घुटने लगा था। मैने अब‌ अपनी‌ गर्दन हिलाकर उनको इस बात का अहसास करवाया जिससे सुलेखा भाभी ने एक बार तो मेरे सिर को‌ तो छोङ दिया मगर अगले ही पल उन्होने मेरे सिर के बालो‌ को‌ पकङकर मुझे फिर से अपने उपर खीँच लिया...


मै भी ढीठ हो गया था इसलिये मै अब फिर से फिसलता हुवा उनकी चुत के पास आ गया‌, और आँऊ भी क्यो ना..? उनकी चुत की उस मादक महक और स्वाद ने मुझे दिवाना जो बना दिया था। अभी तो मैने सुलेखा भाभी की चुत का रश बस चखा ही था अभी‌ तो‌ उसे चाट चाट कर पीना बाकी था...
 
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