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फागुन के दिन चार भाग ४१ पृष्ठ ४३५
फेलू दा
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रीत
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लेकिन उसके पहले डी॰बी॰ रीत से बोले- “हैकिंग की दुनियां में ब्लैक हैट वो हैकर होते हैं, जो सिर्फ अपने फायदे या मजे के लिए हैकिंग करते हैं, ग्रे कुछ अपने मजे के लिए कुछ सबके फायदेकर लिए और व्हाईट हैट, साइबर सिक्योरिटी के लिए या किसी कंपनी के लिए…”
गनीमत था की रीत ने पलट के ये नहीं बोला की वो आलरेडी विकी पे चेक कर चुकी है।
मैंने पोजीशन वाला इन्क्लोजर दिखाया। ये लोकेशन हैं जहाँ से फोन होते हैं और उनकी टाइमिंग हैं।
रीत ने थोड़ा जूम किया झुकी और ध्यान से देखा फिर वापस सिर उठाकर बोली- “ये हो नहीं सकता।
“क्यों? मैं और डी॰बी॰ साथ-साथ बोले।
रीत फिर झुकी और मैप में दिखाते बोली-
“काशी करवट से लेकर अस्सी तक ये देख रहे हो। पहली काल यहाँ से हुई 8:12 पे दूसरी हुई अब इस जगह से 8:17 पे और तीसरी हुई इस जगह से 8:22 पे। अब सड़क से अगर आप चलोगे, तो इस समय बनारस में इतना जाम होता है की आप किसी तरह पहुँच नहीं सकते।
दूसरी बात मान लो ये बनारस की गलियों से वाकिफ है, मुझसे ज्यादा तो नहीं जानता होगा। गली से भी कोई डायरेक्ट कनेक्शन नहीं है और मोटर साइकिल से भी आओगे तो कम से कम 10-12 मिनट लगेगा…”
हम लोग क्या बोलते। डी॰बी॰ तो बनारस नए-नए आये थे और मुझे भी बनारस की गलियों के बारे में रीत इतना कतई नहीं मालूम था।
रीत फिर कुर्सी से पीठ सटाकर बैठ गई। दोनों हाथ पीछे करके, कोई दूसरा वक्त होता तो मेरी निगाह सीधे उसके कुरता फाड़ उभारों पे जाती पर,
एक तो मामला सीरियस था दूसरे सामने डी॰बी॰ बैठे थे। लेकिन फिर भी मेरी निगाहें वहीं पहुँच गई आदत से मजबूर। रीत ने मुझे देखते हुए देखा, आँखों से डांटा और एक बार फिर झुक के एक मिनट के लिए प्लान को देखा।
और फिर सीधे बैठकर मुश्कुराने लगी और बोली- “मैं बेवकूफ हूँ…”
“एकदम। चलो माना तो सही तुमने। तुम दुनियां की पहली लड़की होगी जिसने ये सत्य स्वीकार किया होगा…” मैंने मुश्कुराते हुए कहा।
“पिटोगे तुम और वो भी कसकर…” रीत कोई हथियार खोजते हुए बोली।
“एकदम मेरी ओर से भी…” डी॰बी॰ ने उसी का साथ दिया।
रीत ने मेरी पिटाई का काम टेम्पोरेरी तौर पे स्थगित करते हुए ये रहस्योद्घाटन किया की वो क्यों बेवकूफ है।
“ये देखिये गंगाजी…” वो बोली।
नक़्शे में नदी हम लोगों को भी दिख रही थी।
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