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Erotica फागुन के दिन चार

komaalrani

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फागुन के दिन चार भाग ४१ पृष्ठ ४३५

फेलू दा

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Reactions: Shetan and Rajizexy

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फागुन के दिन चार, भाग ३9 काशी चाट भण्डार
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रीत जासूस और डीबी


५,१५, ९१५
लम्बी गलियां, पतली गलियां, संकरी गलियां। 10 मिनट में हम काशी चाट भण्डार पहुँच गए।



गंगा पेईंग गेस्ट हाउस की ओर एक रिक्शा आया।

उसमें से एक सज्जन उतरे धोती कुरता आँख पे चश्मा, और माथे पे त्रिपुंड। एक बार उन्होंने मुझे देखा। मुझे लगा की शायद कोई पंडित जी होंगे मुझे पहचानते होंगे। मैं नहीं याद कर पा रहा हूँ। मैंने झुक कर प्रणाम किया और उन्होंने आशीर्वाद दिया। आवाज कुछ जानी पहचानी लगी और जब मैंने सिर उठाया तो वो मुश्कुरा रहे थे।
मेरे तो पाँव के नीचे की जमीन खिसक गई।

उधर दुकान से रीत इशारा कर रही थी। ऊपर चलने के लिए।


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आगे आगे वो, पीछे डी॰बी॰ और सबसे पीछे मैं। ऊपर वाले फ्लोर पे भी एक-दो टेबल भरी थी। रीत नेवेटर से कुछ कहा और उसने एक संकरे गलियारे की ओर इशारा किया।



गलियारे के अंत में एक छोटा सा रूम था। फेमली केबिन। एक टेबल चार कुर्सिया। रीत अपनी सहेलियों के साथ अकसर यहाँ जमघट करती थी।

कमरे में घुस के जो वो मुड़ी तो पहली बार उसने धोती कुरते और त्रिपुंड वाले व्यक्ति को देखा। वो चौंक गई।

मैंने परिचय कराया। डी॰बी॰ और।

डी॰बी॰ ने खुद हाथ बढ़ाया रीत ने हाथ मिला लिया।

“मैं जानता हूँ आपको। रीत। है न। चाचा चौधरी की…” डी॰बी॰ बोले।

“ये सब इन्होंने बताया होगा न, इनकी बात पे यकीन मत करियेगा…” खिलखिलाते हुए रीत बोली और साथ में डी॰बी॰ भी।



सुबह से पहली बार मैंने उन्हें हँसते सुना था।



तब तक वेटर आ गया।

बिना रुके रीत ने आर्डर सुना दिया। तीन प्लेट टमाटर की चाट, तीन प्लेट दही की गुझिया और तीन प्लेट गोल गप्पे। एक साथ सब अभी लगा देना बार-बार खिच खिच नहीं। पांच मिनट में ही सब कुछ टेबल पे था। एक ओर मैं और रीत और दूसरी ओर डी॰बी॰।

“अब बताओ…” डी॰बी॰ बोले।
 
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टमाटर चाट
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“वहां से निकलने के बाद आपसे मुलाकात ही नहीं हुई ना बात हुई। इसलिए…” मैंने कहा।

एक बार में आधी टमाटर चाट गप करते हुए डी॰बी॰ बोले-

“तुम लोग निकलकर माल गए थे वो सिगरा वाले। वहां करीब 20 मिनट रुके थे। बीच में एक आसमानी नीली साड़ी में डाक्टर वहां आई और फिर तुम लोग वहां से गुड्डी के घर। और बीच में कुछ गड़बड़ करने की कोशिश भी लोगों ने लेकिन तुम गुंजा को सेफ्ली घर तक ले गए, बहुत जरूरी था। चलो अब सब नार्मल हो गया है। ठीक है ना…”

रीत ने भी एक पूरी चाट साफ कर ली थी- “अच्छी है ना…”

“बढ़िया…” रीत के आँख में आँख डालकर वो बोले। “हाँ घर से तुम लोग यहाँ कैसे आये ये मेरे लोग नहीं बता पाए…”

“कर्टसी रीत। रीत की रीत सिर्फ रीत जानती है। इसकी मोटर साइकिल से…” मैंने समझाया।

“चाट अच्छी लगी…” रीत ने पूछा। वो सिर्फ खाने पे लगी थी।
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“बहुत बढ़िया…” डी॰बी॰ ने बोला और जोड़ा“टमाटर की चाट मैंने एक-दो बार पहीले भी खायी है लेकिन इतनी अच्छी नहीं…”

अपनी टमाटर चाट खतम करते वो बोले।

“हाँ बहुत अच्छी है लेकिन एक जगह इससे भी अच्छी मिलती है। संकटमोचन के पास। कभी आपको ले चल के खिलाऊँगी…” रीत बोली।

मैंने रीत के कान में बोला- “अरे यार शहर कप्तान हैं और तुम इनको गली-गली…” मैंने धीमे से बोला था लेकिन डी॰बी॰ ने सुन लिया।

“क्यों मैं टमाटर चाट नहीं खा सकता ये कहाँ लिखा है सिर्फ तुम्हीं गप्प करोगे…”

डी॰बी॰ ने मेरी और घूर कर देखा। अब उन्होंने गोलगप्पे का नंबर लगा दिया था।
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लेकिन अब वो बोले- “बताओ। क्या बात थी…”

मैंने उनको ऊपर क्या-क्या हुआ। नीचे निकलते समय कैसे ताला बंद हो गया और ड्राइवर ने कैसे बताया की सी॰ओ॰ ने खुद उसे हटा दिया था।

“हाँ बड़ा झमेला था।

एक तो पता नहीं फायरिंग किसने आर्डर कर दिया उसके बाद वो एस॰टी॰एफ वाले आ गए और हमारे लोगों से जोर जबरदस्ती, दोनों को ले गए। पहले तो उनके कमांडेंट ने मुझसे बोला की सर्किट हाउस में जवाइंट इन्वेस्टिगेशन करेंगे लेकिन शक तो मुझे पहले ही था। जैसे ही मुझे पता चला की वो स्पेशल प्लेन से आये हैं। मुझे हंच था। लेकिन कमान्डेंट ने मुझसे खुद कहा और वो सर्किट हाउस गए भी।

लेकिन जिस गाड़ी में उन दोनों को बैठाया था वो सीधे बाबतपुर एयरपोर्ट और जब तक हम लोग बात करें, वो उड़ चुके थे। बाद में उन्होंने मेरे सामने अपने आदिमियों को डांटा लेकिन वो सब लगी बुझी थी।

उसके बाद प्रेस मिडिया। लखनऊ दिल्ली। सब। बहुत रायता फैल गया था। समेटने में टाइम लग गया इसलिए जब तुम्हारा बीपर मिला तो ये तो लग गया की तुम कंट्रोल रूम गुड्डी के पास आओगे तो वहीं मैंने एक एल॰आई॰यू॰ (लोकल इंटेलिजेंस यूनिट) वाले को लगा रखा था की तुम लोगों के साथ-साथ रहे…”

डी॰बी॰ ने पूरी बात समझाई।

“एक-एक प्लेट टमाटर चाट और चलेगी…” रीत ने पूछा।

“दौड़ेगी…” डी॰बी॰ ने बोला और रीत ने वहीँ से हाँक लगा के वेटर को बोल दिया, एक एक प्लेट टमाटर की चाट और

“लेकिन ये मेरी परेशानी का आधा हिस्सा भी नहीं है। अगली परेशानी है होली।


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हर जगह से खबर आ रही है की दंगा भड़काने की पूरी तैयारी है यहाँ तक की सी॰एम॰ ने भी मुझसे दो बार बात कर ली। ये तो इस चक्कर में आर॰ए॰एफ॰ आ गई। वरना,.... दंगे में खास बात है कौन सी चीज दंगा ट्रिगर करेगी।.... ये पता नहीं चल रहा है…आज तो किसी तरह टल गया वरना आगे लगाने वाले पूरे तैयार थे पर आगे भी, अभी होली तक,”

डी॰बी॰ ने अपनी परेशानी का कारण बताया।

“बात तो सही है आपकी उसके बिना आप कंट्रोल भले कर लें लेकिन होने से रोकना मुश्किल होगा। एस्पेशली अगर कोई प्लान करके भड़का रहा है…” रीत बोली।

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डी॰बी॰ एकदम इम्प्रेस हो गए और बोले-

“एकदम सही बात। दंगा हमेशा किसी और मकसद से होता है, कभी वोट्स को पोलराईज करने के लिए, कभी गरीबों की झोपड़ियों को जलाकर बिल्डर्स के लिए रास्ता साफ करने के लिए, कभी किसी की नेतागिरी चमकाने के लिए। लेकिन ऐसा कुछ समझ में नहीं आ रहा है और इससे जुड़ी एक तीसरी बात और है जो बहुत कम लोगों को मालूम है। लेकिन उसके इम्प्लीकेशंस बहुत लांग टर्म हैं…”


“तीसरी बात क्या है…” रीत ने पूछा।

“सरायमीर जानते हो न तुम्हारे घर से 20-30 किलोमीटर पड़ता होगा। उसी के पास है संजरपुर यहाँ से करीब 70 किलोमीटर होगा। वहीं इस महीने के आखीरकार, में आलिमी इज्तेमा है और ये पहले किसी भी हुए इज्तेमा से ज्यादा बड़ा होगा करीब 4-5 लाख लोगों के आने की उम्मीद है। तकरीबन 15 देशों से…” डी॰बी॰ बोले।

“हाँ रास्ते में पड़ता है जानता हूँ मैं अच्छी तरह से…” मैं बोला।

“ये इज्तेमा क्या होता है…” रीत ने अपनी ना जानकारी जाहिर की।
और मुझको अपनी जानकारी दिखाने का एक बेहतर मौका मिल गया।

“ये एक वर्ड कान्ग्रिगेशन, विश्व सम्मलेन जैसा है, तबलीगी जमात का। तबलीगी लोग बहुत धार्मिक होते हैं लेकिन सीधे, और धर्म और राजनीति को अलग-अलग रखते हैं। ये 6 मूल सिद्धांत मानते हैं और एक पैसिफिक, शांतिवादी विचार धारा के लोग हैं…” मैं बोल ही रहा था की।

रीत ने मेरी बात काटकर डी॰बी॰ से कहा- “लेकिन इसका दंगे से क्या सम्बन्ध है…”

टमाटर चाट की दूसरी प्लेट आ गई थी और वो उसे खतम करने में जुटे थे।
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खाते-खाते रुक के बोले-

“है। बहुत गहरा सम्बन्ध है बल्की तीन तरफा रिश्ता है। पहला तो ये की ये लोग कभी किसी पोलिटिसियन तो छोडिये बाहर वाले को शरीक होने के लिए नहीं परमिट करते। लेकिन अबकी आखिरी दिन लगभग 90% तय है की सी॰एम॰ इसमें भाग लेंगे और इसका बहुत गहरा राजनितिक असर पड़ेगा। अभी जो एक रामपुर के नेता हैं, वो समझते हैं की सारे वोट उनके कारण आते हैं, स्टेट होम मिनिस्टर भी उन्हीं के खास हैं। तो अब इससे सी॰एम॰ की एक इंडीपेंडेंट छवि बनेगी, सीधी पैठ होगी और चुनाव …”



“तो इसका मतलब वोट बैंक…” मैंने फिर अपना ज्ञान झाड़ा और डांट खायी।



“तुम चुप रहो यार जब दो पढ़े लिखे लोग बात कर रहे हों। तो सुना करो…”

डी॰बी॰ बोले और मेरी भी टमाटर चाट की प्लेट अपनी ओर सरका ली और बोलना शुरू कर दिया-

“मैं उस ग्रुप में था जब ये बात हुई थी, रिजर्वेशन से हटकर वेस्टर्न एजुकेशन और इंडस्ट्री की बात है, जाब्स की बात है, एम्प्लायेबल बनाने की बात है। सी॰एम॰ ने मुझे खुद समझाया था। मामला मैंनेजमेंट आफ चेंज का है, या तो हम एक दिन में सब बदलना चाहते हैं या वहीं खड़ा रहना चाहते हैं। जिसको आप आगे ले जाना चाहते हैं उसके अन्दर पहले जज्बा पैदा करिए फिर उस जज्बे के साथ चलिए और सेंटर भी इसलिए इस पहल को सपोर्ट कर रहा है। 48% फंडिंग केंद्र करेगा। और इसके ग्लोबल इम्प्लिकेशन भी हैं।

होली के 10 दिन बाद लखनऊ में एक मीटिंग है, फिरंगी महली, इजिप्ट से मुस्लिम ब्रदरहुड के लोग इंग्लैण्ड से अब्बे मिल्स मस्जिद के इमाम, बहुत से लोग बाहर से शिरकत कर रहे हैं। इस मीटिंग में ही खाका तय होगा, और उसी के मुताबिक एनाउन्समेंट होगा। इसलिए उसके पहले कुछ भी गड़बड़ होना बहुत परेशानी की बात होगी। सब किया धरा गड़बड़ हो जाएगा। सारा माहौल, सारी इमेज खराब हो जायेगी…”
 
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हैकर की दुनिया
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डी॰बी॰ की इस लम्बी बात-चीत के दौरान मैं अपने मोबाइल से जूझ रहा था। लन्दन से स्मिथ, वही ग्रे हैट जिसे मैंने सारे नंबर भेजे थे, का मेसेज आया था लेकिन उसको पढ़ने के लिए एक सर्वर पे जाना होता था एक रैंडम पासवर्ड के जरिये। लम्बा और सीरियस मेसेज था साथ में एक मैप अटैच था।

“अब मुझे सब क्लियर हो गया। जितना बड़ा स्टेक उतना बड़ा रिस्क…” रीत आखिरी गोलगप्पा गप करती बोली।

“लेकिन मुझे कुछ नहीं क्लियर हुआ…” डी॰बी॰ बोले।

“अरे आप दंगे के लिए क्या ट्रिगर होगा ये सोच रहे थे ना। तो वो बाम्ब क्या चुम्मन ने बनाया होगा। और फिर क्या वो सिर्फ एक बाम्ब होगा…?” रीत ने फिर बोला।

मैं समझाता हूँ। लन्दन के मेसेज के बाद चीजें और बदल गई थी। मैंने बोलना शुरू किया-

“देखिये इसलिए मैंने आपको यहाँ बुलाया था। सुबह हम लोगों को पहले लगा की ये एक टेरर अटैक है लेकिन बाद में दो बदमाशों का हमला साबित हुआ। लेकिन अब जो लगा रहा है की ये कहीं ना कहीं से एक बहुत बड़ी साजिश का हिंट दे रहा है…”

“मतलब…” डी॰बी॰ का अब सारा ध्यान मेरी ओर ही था। प्लेटें उन्होंने बाजू में सरका दी थी। उनकी दोनों कुहनी मेज पे थी और सिर झुका हुआ था।
“देखिये, अब आपने जब सारा बैक ग्राउंड बता दिया है तो मुझे लग रहा है की मामला कितना सीरियस हो सकता है…” मैंने बोलना शुरू किया।

“देखिये तीन बातें हैं, जिससे मुझे बहुत गड़बड़ लग रहा है और इसलिए मैं रीत को भी यहाँ ले आया हूँ। पहली बात तो जो स्कूल में हुई। जैसा मैंने आपको मेसेज किया था। जब हम सीढ़ी से निकलने वाले थे तो निचले दरवाजे का ताला बाहर से बंद था। वो किसने बंद किया। क्या उसका इंटरेस्ट रहा होगा। ड्राइवर ने बाद में हम लोगों को बताया की सी॰ओ॰ साहेब ने उसे हटा दिया था और वहां आर्म्ड गार्ड पोस्ट करने के लिए बोल दिया था, तो ऐसा उन्होंने क्यों किया। और इसका मतलब है उन्हें ताले के बारे में मालूम होगा।

दूसरी बात। फायरिंग आपने साफ मना की थी लेकिन उसके बावजूद फायर हुआ और वो भी 20-30 राउंड, और उसी जगह को निशाना बनाकर जहाँ के बारे में हमें मालूम था की वहां चुम्मन है। ऐसा क्यों? और तीसरी बात बाम्ब कैसे एक्सप्लोड हुआ…”

डी॰बी॰ ने मुझे रोक के बोला- “आर यू श्योर की ए॰एम॰ (अरिमर्दन, सी॰ओ॰ का नाम) ने ही ड्राइवर को हटाकर वहाँ… फिर तो ताला उसने या उसके इंस्ट्रक्शन पे…”



“एकदम। मुझे भी यही लगता था लेकिन उससे सनसनी खेज बात एक और है…” मैंने बोला।

लेकिन रीत बीच में टपक पड़ी- “मैं बताऊँ मेरे हिसाब से बाम्ब कैसे एक्सप्लोड हुआ…”
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काल डिटेल्स

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लेकिन रीत बीच में टपक पड़ी- “मैं बताऊँ मेरे हिसाब से बाम्ब कैसे एक्सप्लोड हुआ…”

“बाद में…” मैं बोला और चुम्मन का मोबाइल और काल डिटेल्स निकालकर टेबल पे रख दिया।

“ये क्या है। किसका है तुम्हें कहाँ से मिला…” डी॰बी॰ की आँखों में एक चमक थी।



“चुम्मन का मोबाइल है और…”

मैंने बोलना शुरू ही किया था डी॰बी॰ बस खुशी से उछल पड़े।

तपाक से उन्होंने मुझसे हाथ मिलाया। और बोले- “यार तुमने गजब का काम किया हमारे हास्टल का नाम रोशन कर दिया। साले एस॰टी॰एफ॰ वालों की फट जायेगी। जब उन्हें पता चलेगा की मोबाइल हमारे पास है…”

फिर अचानक उनकी निगाह रीत पे पड़ी तो वो झिझक गए- “सारी यार। आई आम सो सारी आपके सामने। आगे से ख्याल रखूँगा…”


रीत क्यों मौका छोड़ती- “आपने तो कुछ नहीं बोला। जब हमारी बनारसी जुबान सुनेंगे ना। और मैं आपसे बहुत छोटी हूँ। तो मुझे आप क्यों बोलते हैं और फिर अब तो मैं आपके दोस्त की दोस्त हूँ, तो फिर तो दोस्त हूँ ना। तो…” रीत से कौन जीत सकता है।

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तो डी॰बी॰ ने भी हाथ खड़े कर दिए। और अपनी बात आगे बढ़ाई-

“यार (अबकी वो रीत की ओर देखकर बात कर रह हे थे) वो एस॰टी॰एफ॰ वाले चुम्मन और रज्जऊ को तो ले गए। लेकिन एक तो फोरेंसिक रिपोर्ट, लोकल इंटेलिजेंस मैंने बोल दिया तभी शेयर होगी जब जोइंट इंटेरोगेशन होगी। मुझे तो उसकी कुंडली मेरे खबरी ने ही बता दी थी।

और सबसे ज्यादा, वो मोबाइल के लिए परेशान थे। तो मैंने बोल दिया की मेरी टीम को तो मिला नहीं। जो सही भी था और वो उन लड़कियों से भी सवाल जवाब करना चाहते थे तो मैंने बता दिया की। जब वो बाम्ब एक्सप्लोड हुआ तो उसी समय वो बचकर भाग निकली और हमें किसी का नाम नहीं मालूम। मुझे मालूम था की महक का नाम चुम्मन को मालूम होगा, तो मैंने उसके अंकल को यहाँ आने के पहले बोल दिया था की वो उसे कहीं बाहर भेज दें। तो अभी लेट इवनिंग की एक फ्लाईट से वो उस लेकर मुंबई जा रहे हैं और होली के बाद लौटेंगे…”

फिर मेरी और मुँह करके बोले- “तुमने इसकी सिम की कापी तो कर ही ली होगी…”

“देखीये ये आपको भी मालूम है की इस सवाल का जवाब क्या है और मैं इसका जवाब आपको दूंगा भी नहीं। मैं पहली बात तो ये बताना चाहता हूँ की जिस नम्बर से उसने काल किया था और जो सिम ये पता चला था की बक्सर का है…”
मेरी बात काटकर डी॰बी॰ बोले…” हाँ मुझे पता चल गया है की उसने होस्टेज बनायीं एक लड़की के फोन से फोन किया था और उसका सिम बक्सर का था, उसके कजिन का। मैंने तुम्हें पहले ही बोला था की सिर्फ सिम से कुछ पता नहीं चलता…”

“जी…” उनकी बात वहीं छोड़कर मैंने अपनी बात आगे बढ़ाई।

इस फोन में दो इनकमिंग काल हैं। उस पीरियड में जब उसने लड़कियों को होस्टेज बनाकर रखा था। एक से तो 15-20 सेकंड बात हुई है जो फर्स्ट काल है ये नंबर है। और दूसरा नंबर ये, जिससे 5-7 मिनट बात हुई है। ये नंबर याद आ रहा है। किसका है।

“किसका हो सकता है। पहला तो पता नहीं। उईईई ये तो हम लोगों का सी॰ओ॰ जी नंबर है। लेट मी सी अगेन। ये नबंर तो सी॰ओ॰ कोतवाली का है…” वो चौंक के बोले।



“जी…” मैं आराम से बोला, " और जो काल हमने कोतवाली से सुनी थी। वो इनकमिंग नहीं आूट गोइंग काल थी। पहली काल तो उसने होस्टेज के,.... शाजिया के फोन से की थी। जो उसकी आउट गोइंग काल थी कोतवाली को। यहाँ ये सवाल खड़ा हो सकता है। सी॰ओ॰ को चुम्मन के फोन का नंबर कैसे पता चल गया। अगर वो इनकमिंग फोन के बेसिस पे करते तो वो काल शाजिया के फोन पे जाती लेकिन उनकी काल चुम्मन के नंबर पे कैसे गई।

दूसरी बात। अगर उन्हें चुम्मन का नंबर पता था तो उन्होंने आपको क्यों नहीं बताया और सब लोग बेकार में बकसर में सिम तलाश करते फिर रहे थे…”

“बात तो तुम सही कह रहे हो। लेकिन किसका विश्वास करें किसका ना करें। और अगर तुम जो ये ताले वाली बात बोल रहे हो, फायरिंग तो मुझे रोकने के लिए बोलना पड़ा। तो ए॰एम॰ पे तो भरोसा एकदम नहीं कर सकते…” डी॰बी॰ ठंडी सांस लेकर बोले।


“किसी का मत करिए सिवाय अपने…”

रीत ने ज्ञान की बात बोली और हम सब मुश्कुरा दिए। और फिर मैंने डी॰बी॰ का ध्यान काल डिटेल्स पे दिलवाया, और ये भी बोला की ये भी रीत की करतूत है।

“लेकिन दूसरा प्वाइंट और इम्पार्टेंट है और इसकी पूरी क्रेडिट रीत को जाती है। ये हैं काल डिटेल्स…”

मैंने बोला और डी॰बी॰ के सामने चुम्मन के फोन की इनकमिंग और आउट गोइंग फोन्स की काल डिटेल्स रख दी।

डी॰बी॰ उसे ध्यान से देख रहे थे। मैंने पूछा क्यों कोई खास पैंटर्न नहीं पकड़ में आ रहा है ना।

“नहीं…” वो बोले।

सारी काल्स लोकल है और किसी नंबर से ज्यादा काल न तो आई है न उसने की है- “हाँ लेकिन अब देखिये जो बात रीत ने पकड़ी। ये काल ड्यूरेशन वाइज…”

मैंने जैसे ही वो लिस्ट उन्होंने दिया। वो तुरंत चौंक गए- “ये दो नंबर इनसे काल का टाइम बहुत कम है…” वो बोले।

“एकदम। जो शरलक होम्स की कहानी में था। ना की कुत्ता क्यों नहीं भौंका। वो वाली बात है। और एक सर्टेन टाइम पे ये काल आती हैं। सबसे बड़ी बात, चुम्मन ने इन नंबरों पे कोई फोन नहीं किया…” मैंने जोड़ा।

“हूँ…”

वो जोर से बोले और एक बार फिर उन नंबरों को देखने लगे और रीत और मुझे समझाया।

इट लुक्स खतरनाक नाउ। इसका मतलब साफ है, इसने चुम्मन को किसी काम के लिए इंगेज किया है और वो एक फिक्स्ड टाइम पे चुम्मन को इंस्ट्रक्शन देता है और उससे फीड बैक लेता है…”
 
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बाम्ब


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जी और वो बाम्ब जो मैंने देखा था। उसका रफ स्केच इस तरह का था। मैं

ने जेब में से एक तुड़ा मुड़ा कागज निकाला और बोला– “ये वो जो बाम्ब्स सूरत में लगाए गए थे और एक्सप्लोड नहीं हुए। सर्किट की गड़बड़ी की वजह से आलमोस्ट वैसा। सिर्फ सर्किट इसकी थोड़ी इम्प्रूव्ड है और करीब 90% कम्प्लीट है। टाइमर या रिमोट डिटोनेटर इसमें नहीं लगा है। तो इस तरह का बाम्ब तो चुम्मन के पास में कहाँ से आएगा अनलेस…”

“तुम्हारा शक सही है लेकिन। ये अगर हुआ…” डी॰बी॰ सोच में पड़ गए।



“और आप ही तो कह रहे थे की स्टेक्स बहुत हाई हैं। और बनारस में इतने मंदिर इतने घाट, कहीं कुछ और कहीं 6-7 जगह पे एक साथ हो गया तो…” रीत ने पिक्चर पूरी की।



“तो ये हो सकता है ट्रिगर…” उन्होंने उन दोनों नंबरों पे हाथ रखते हुए कहा। इनके बारे में बस पता लगाना होगा और लोकेशन…” डी॰बी॰ बोले और उन्होंने अपना मोबाइल फोन निकला लेकिन मैंने उन्हें रोक दिया।

“जस्ट आई गाट अ मेसेज फ्राम अ ग्रे हैट फ्रेंड फ्राम लन्दन…” मैंने मेसेज उन्हें दिखाया।
 
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रीत
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लेकिन उसके पहले डी॰बी॰ रीत से बोले- “हैकिंग की दुनियां में ब्लैक हैट वो हैकर होते हैं, जो सिर्फ अपने फायदे या मजे के लिए हैकिंग करते हैं, ग्रे कुछ अपने मजे के लिए कुछ सबके फायदेकर लिए और व्हाईट हैट, साइबर सिक्योरिटी के लिए या किसी कंपनी के लिए…”

गनीमत था की रीत ने पलट के ये नहीं बोला की वो आलरेडी विकी पे चेक कर चुकी है।

मैंने पोजीशन वाला इन्क्लोजर दिखाया। ये लोकेशन हैं जहाँ से फोन होते हैं और उनकी टाइमिंग हैं।

रीत ने थोड़ा जूम किया झुकी और ध्यान से देखा फिर वापस सिर उठाकर बोली- “ये हो नहीं सकता।

“क्यों? मैं और डी॰बी॰ साथ-साथ बोले।



रीत फिर झुकी और मैप में दिखाते बोली-

“काशी करवट से लेकर अस्सी तक ये देख रहे हो। पहली काल यहाँ से हुई 8:12 पे दूसरी हुई अब इस जगह से 8:17 पे और तीसरी हुई इस जगह से 8:22 पे। अब सड़क से अगर आप चलोगे, तो इस समय बनारस में इतना जाम होता है की आप किसी तरह पहुँच नहीं सकते।

दूसरी बात मान लो ये बनारस की गलियों से वाकिफ है, मुझसे ज्यादा तो नहीं जानता होगा। गली से भी कोई डायरेक्ट कनेक्शन नहीं है और मोटर साइकिल से भी आओगे तो कम से कम 10-12 मिनट लगेगा…”

हम लोग क्या बोलते। डी॰बी॰ तो बनारस नए-नए आये थे और मुझे भी बनारस की गलियों के बारे में रीत इतना कतई नहीं मालूम था।

रीत फिर कुर्सी से पीठ सटाकर बैठ गई। दोनों हाथ पीछे करके, कोई दूसरा वक्त होता तो मेरी निगाह सीधे उसके कुरता फाड़ उभारों पे जाती पर,

एक तो मामला सीरियस था दूसरे सामने डी॰बी॰ बैठे थे। लेकिन फिर भी मेरी निगाहें वहीं पहुँच गई आदत से मजबूर। रीत ने मुझे देखते हुए देखा, आँखों से डांटा और एक बार फिर झुक के एक मिनट के लिए प्लान को देखा।

और फिर सीधे बैठकर मुश्कुराने लगी और बोली- “मैं बेवकूफ हूँ…”

“एकदम। चलो माना तो सही तुमने। तुम दुनियां की पहली लड़की होगी जिसने ये सत्य स्वीकार किया होगा…” मैंने मुश्कुराते हुए कहा।

“पिटोगे तुम और वो भी कसकर…” रीत कोई हथियार खोजते हुए बोली।

“एकदम मेरी ओर से भी…” डी॰बी॰ ने उसी का साथ दिया।

रीत ने मेरी पिटाई का काम टेम्पोरेरी तौर पे स्थगित करते हुए ये रहस्योद्घाटन किया की वो क्यों बेवकूफ है।

“ये देखिये गंगाजी…” वो बोली।



नक़्शे में नदी हम लोगों को भी दिख रही थी।
 
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komaalrani

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फागुन के दिन चार, भाग ३९ काशी चाट भण्डार, रीत जासूस पृष्ठ ४२८

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Sutradhar

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लेकिन उसके पहले डी॰बी॰ रीत से बोले- “हैकिंग की दुनियां में ब्लैक हैट वो हैकर होते हैं, जो सिर्फ अपने फायदे या मजे के लिए हैकिंग करते हैं, ग्रे कुछ अपने मजे के लिए कुछ सबके फायदेकर लिए और व्हाईट हैट, साइबर सिक्योरिटी के लिए या किसी कंपनी के लिए…”

गनीमत था की रीत ने पलट के ये नहीं बोला की वो आलरेडी विकी पे चेक कर चुकी है।

मैंने पोजीशन वाला इन्क्लोजर दिखाया। ये लोकेशन हैं जहाँ से फोन होते हैं और उनकी टाइमिंग हैं।

रीत ने थोड़ा जूम किया झुकी और ध्यान से देखा फिर वापस सिर उठाकर बोली- “ये हो नहीं सकता।

“क्यों? मैं और डी॰बी॰ साथ-साथ बोले।



रीत फिर झुकी और मैप में दिखाते बोली-

“काशी करवट से लेकर अस्सी तक ये देख रहे हो। पहली काल यहाँ से हुई 8:12 पे दूसरी हुई अब इस जगह से 8:17 पे और तीसरी हुई इस जगह से 8:22 पे। अब सड़क से अगर आप चलोगे, तो इस समय बनारस में इतना जाम होता है की आप किसी तरह पहुँच नहीं सकते।

दूसरी बात मान लो ये बनारस की गलियों से वाकिफ है, मुझसे ज्यादा तो नहीं जानता होगा। गली से भी कोई डायरेक्ट कनेक्शन नहीं है और मोटर साइकिल से भी आओगे तो कम से कम 10-12 मिनट लगेगा…”

हम लोग क्या बोलते। डी॰बी॰ तो बनारस नए-नए आये थे और मुझे भी बनारस की गलियों के बारे में रीत इतना कतई नहीं मालूम था।

रीत फिर कुर्सी से पीठ सटाकर बैठ गई। दोनों हाथ पीछे करके, कोई दूसरा वक्त होता तो मेरी निगाह सीधे उसके कुरता फाड़ उभारों पे जाती पर,

एक तो मामला सीरियस था दूसरे सामने डी॰बी॰ बैठे थे। लेकिन फिर भी मेरी निगाहें वहीं पहुँच गई आदत से मजबूर। रीत ने मुझे देखते हुए देखा, आँखों से डांटा और एक बार फिर झुक के एक मिनट के लिए प्लान को देखा।

और फिर सीधे बैठकर मुश्कुराने लगी और बोली- “मैं बेवकूफ हूँ…”

“एकदम। चलो माना तो सही तुमने। तुम दुनियां की पहली लड़की होगी जिसने ये सत्य स्वीकार किया होगा…” मैंने मुश्कुराते हुए कहा।

“पिटोगे तुम और वो भी कसकर…” रीत कोई हथियार खोजते हुए बोली।

“एकदम मेरी ओर से भी…” डी॰बी॰ ने उसी का साथ दिया।

रीत ने मेरी पिटाई का काम टेम्पोरेरी तौर पे स्थगित करते हुए ये रहस्योद्घाटन किया की वो क्यों बेवकूफ है।

“ये देखिये गंगाजी…” वो बोली।



नक़्शे में नदी हम लोगों को भी दिख रही थी।

उफ़ कोमल मैम

लगता है कि ये तीनों किसी पहेली को सुलझाने में उलझ गए हैं लेकिन ऐसा लगता है कि पहेली का कोई सिरा रीत की पकड़ में आ गया है।

पिछली कहानी से इस कहानी में डिटेलिंग ज्यादा है इसलिए सस्पेंस का रोमांच भी ज्यादा है।

लेकिन मेरा इंतजार तो इस कहानी के आगे आने वाले एक खास अपडेट पर है और वो आप भी जानती हैं।


सादर
 

komaalrani

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