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फागुन के दिन चार भाग ३६, पृष्ठ ४१६
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वाह गुड्डी के जलवे. और आनंद बाबू बेचारे अब भी शरमते है. अरे वो तो नोवी क्लास मे थी तब से देने को तैयार थी. क्या शारारत की है गुड्डी ने. रोमांटिक इरोटिक अपडेट.गुड्डी
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और अब बात दूसरी ओर मोड़ गयी और मेरा ध्यान भी,
क्योंकि कमरे में गुड्डी आ गयी थी, चाय ले कर
और गुड्डी की महक लगते ही अब मुझसे पहले जंगबहादुर सनक जाते थे, फड़फड़ाने लगते थे, एक तो उन्हें अब मुंह में खून लग गया था, पहले चंदा भाभी कल रात और आज दिन में संध्या भाभी। दूसरे, गुड्डी तो गुड्डी तो थी, जब मन उसके कब्जे में था तो तन तो होना ही था। लेकिन एक फरक पड़ा, पहले बहुत निहोरा करवाती थी, लेकिन आज खुद ही धप्प से मेरी गोद में बैठ गयी, मेरी ओर मुंह करके और छेड़ते हुए बोली,
" यार तू भी न, अभी रोओगे की मीठी कम है तो चल एक चम्मच चीनी और, " और अपने होंठ उसने लगा दिए और सुड़क कर थोड़ी सी पी भी ली, और जोड़ा, " तेरे लिए नहीं बनी थी, पडोसीनो के लिए बनाई थी और इसलिए की जितनी देर चाय पियेंगी, लेकिन तेरी वो दयालु चंदा भाभी अपने देवर पे दया करके बोलीं, ' जा दे आ उस बेचारे को भी अंदर बैठा होगा ' , तो इसीलिए बेचारे को चारा खिलाने के लिए आ गयी " और अपने हाथ से मुझे कप पकड़ कर पिलाने लगी।
और चारा भी क्या था उस के पास, मेरे हाथ तो दूसरे कप्स की साइज नापने में व्यस्त थे। और वो मुझे हड़काने में। लेकिन फिर पता नहीं कैसे मूड बदला और प्याला हटा के बची चाय खुद सुड़क गयी और कस के एक चुम्मी लेके बोली,
" स्साले, तेरी सारी बहनों की फुद्दी मारुं, गुंडों के आगे तो तेरा हाथ खूब चलता है "
मैं फूल के कुप्पा हो गया, गुड्डी ने खुद देखा था कैसे शुक्ला के चमचो को और खुद उसको, फिर गुंजा ने बताया होगा चुम्मन के बारे में, लेकिन गुड्डी कुछ और बोल रही थी और उसने हाल साफ़ किया वो सैयद चच्चू के मकान से ऊपर से जो फेंका था, क्या मस्त स्साले तूने कैच किया, मजा आ गया, लेकिन ये बोल की किसके पकड़ पकड़ के प्रैक्टिस करता था, अपनी उस बहिनिया, अनारकली ऑफ़ आजमगढ़ के, जिसके लिए बनारस के कितने लौंडे अभी से मुठिया रहे हैं, लेकिन उसके तो बस टिकोरे से रहे होंगे और टिकोरे और आम तो तुझे पसंद नहीं है
गुड्डी को चुप कराने का एक ही तरीका है , मैंने कस के उसे चूम लिया और मेरी जीभ उसके मुंह के अंदर और वो भी मजे से चुभलाने लगी, फिर बोली,
" स्साले, तेरी बहन की, गुंडे वुंडे तो ठीक हैं, आज चंदा भाभी भी तेरी वीरगाथा सुना रही थीं, लेकिन ये स्साले ये कल कल की पैदा हुयी लौंडियों के आगे तेरी फटती है, जुबान नहीं खोलती सब बिना तेल लगाए तेरी ले लेती हैं और तुझे निहुर के देने में मजा भी खूब आता है। ये गुंजा की सहेलियां दोनों, क्या रगड़ रही थीं, तेरी जितना ले रही थीं, उतना ही मुझे मजा आ रहा था। "
अब मैं क्या बोलूं की मैंने सीख लिया था की बनारस वालियों के आगे जुबान नहीं खोलनी चाहिए और अगर कहीं से भी साली लगने का चांस हो तो एकदम नहीं।
लेकिन मैं और कुछ बोलना चाहता था वो मैंने बोल दिया, " यार कब तक निकलेंगे, आजमगढ़ पहुँचते देर हो जायेगी"
मेरी नाक पकड़ के घुमाते, मेरी गोद में बैठे बैठे वो बोली, " मिठाई खाने को ललचा रहे हो बाबू " फिर उस का मूड घूमा , मुस्करा के एक चुम्मा फिर से लिया, और मीठा मीठा बोली
यार मन तो मेरा भी कर रहा है , जल्दी पहुँचने का लेकिन, तूने सुना तो ये औरते क्या कह रही हैं, सड़क पर एकदम सन्नाटा है, कभी कुछ भी, और हम लोगो पर भी तो रास्ते में दो दो बार, वो तो तुम थे, और अभी मैंने महक के ड्राइवर को फोन भी किया था, वो बोला, ' लहरबैर तक आ गया था, लेकिन कुछ लौंडे सड़क पर टायर जला रहे हैं, और लाठी डंडा ले के, कोई भी गाडी आती है तो उसी का पेट्रोल निकाल के, वो कबीर चौरा की ओर मुड़ गया। बोला है की जैसे रास्ता खुलेगा, तो बोलो कैसे निकलेंगे, लेकिन घबड़ा मत कुछ होगा जल्दी, मिलेगा, मिलेगा बेसबरे। "
फिर वो सारंगनयनी जिस तरह से देख रही थी, मेरी हालत खराब हो गयी, मैं ही शर्मा गया और वो जोर से खिस्स से हंस दी। और हलके से मेरे गाल पे चपत मार के बोली, " बुद्धू, चुबद्धु, मैं तो दो साल पहले नौवें में थी तब से देने के लिए तैयार थी, तेरे पाजामे का नाड़ा खोल के अंदर हाथ मैंने ही डाला था, उसे पकड़ा भी था, बाहर भी निकाला था "
और साथ में जैसे अपने आप उसके छोटे छोटे नितम्ब मेरे खड़े खूंटे पे हलके हलके चक्की की तरह चलाने लगी।
बात गुड्डी की बिलकुल सही थी, हम लोग खाट की पाटी से पाटी मिला के सोते थे, और रात में देर तक बात करते थे। गर्मी की रातें, चौड़े से बरामदे में, बस पंखा चलता रहता, और हम दोनों, और नीचे की मंजिल पे सिर्फ हमी दोनों, भैया भाभी ऊपर के मजिल के पाने कमरे में , भैया तो नौ बजे के पहले ही ऊपर, खाना भी वहीँ और भाभी भी साढ़े नौ बजते बजते, फिर सुबह साढ़े छह के बाद ही उनका दरवाजा खुलता था। और मैं बड़ी हिम्मत कर के जब लगता वो सो गयी है तो उसके फ्राक के ऊपर से, बल्कि एक दो इंच पहले ही उँगलियाँ शं कर रुक जातीं, कहीं जग गयी तो, और वो रुई के फाहे ऐसे गोल गोल, और एक दिन गुड्डी ने मेरी चोरी पकड़ ली, मेरा हाथ पकड़ कर अपने हाथ से फ्राक के ऊपर से, पहले तो हलके हलके दबाया, फिर हाथ खिंच कर फ्राक के अंदर, सीधे बस आते हुए उरोजों पे
अगले दिन गुड्डी ने नाड़ा भी खोल दिया,
खिलखिला के मेरी गोद में बैठे अपने दोनों हाथ मेरी गर्दन में दाल के बोली, " ये बुद्धू मेरे ही पल्ले पड़ना था , डरते थे न की कही तेरी भाभी न "
उसकी बात काटते हुए मैंने कबूला " हाँ, बहुत डर लगता था , की कहीं भाभी ऊपर से आ गयीं इसलिए "
" डरपोक, " खिलखिला के वो बोली, फिर जोड़ा " कैसे आ जातीं, उन लोगो की चक्की सारी रात चलती है, कम से कम तीन राउंड, कहीं चार पांच बजे तो सोती हैं तभी तो दिन भर जम्हाई लेती रहती है। और फिर उन की चप्पल,चटर पटर, कमरे से उनके निकलते ही पता चल जाता है, फिर सीढ़ी से नीचे उतरते पांच मिनट लगता है कम से कम "
अबकी मैंने चुम्मा लिया, कुछ झेंप के कुछ बात टालने के लिए लेकिन गुड्डी बोली " यार तेरे ऊपर दया आ गयी थी, मैं रोज देखती थी ये बेचारा देख देख के ललचा रहा है, न मांगने की हिम्मत है न छूने की तो मैंने सोचा चलो मैं ही इसका भला कर दूँ "
गुड्डी की शारारत. सामत आ जाएगी आनंद बाबू. वो बनारस वाली है.बाहर की हालत
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लेकिन आगे की बात वहीँ कट गयी, बाहर से दूबे भाभी की आवाज सुनाई पड़ी " अरे गुड्डी क्या कर रही है , थोड़ा चाय बना ला " और गुड्डी प्याला ले कर तीर की तरह बाहर, हाँ दो चार काम पकड़ा दिए मुझे।
मैं समझ गया की कुछ नयी पडोसने आयी है कुछ शायद नई बातें पता चलें और पता चली भीं
वो जो कह रही थीं की अबकी ' उन सबो की माँ बहिन सब चोदी जाएंगी " एक बार फिर से गर्जना कर रही थीं " अरे अबकी सब तैयारी पूरी है, वोटर लिस्ट ले के एक एक घर का नाम है केकरे यहाँ १८ साल से ऊपर वाली कितनी हैं, दो दिन से तो पेट्रोल इकठ्ठा हो रहा है, अरे हम तो कहे की उमर वूमर का देखना, सांप का सँपोलियाँ भी तो सांप ही जनेंगी, जिनकी झांट भी न आयी हो, उन सब को भोंसड़ी वाली बना के छोड़ना, लेकिन राशन वाशन हफ्ते भर का इकठ्ठा कर ल्यो, अभी गली वाली दो चार दूकान खुली हैं एक बार कर्फ्यू लग गया न तो हफ्ते भर से पहले उठेगा नहीं और असली रगड़ाई तो कर्फ्यू में ही होगी "
एक तो पहले आयी औरतों में से आधी चली गयी थीं, और कई चुप रहने में अपनी भलाई समझती थीं और कुछ सोचती थीं की इनसे काम पड़ता रहता है , पति उनके कार्पोरेशन के पार्षद और पार्टी में कुछ थे।
लेकिन अभी आयी औरतों में से कोई उनके टक्कर की थी, गुड्डी से चाय की प्याली लेने के बाद वो भी आग उगलने लगी, " अरे कहाँ पुराना रिकार्ड बजा रही हैं , कोई कर्फ्यू वर्फ्यू नहीं लग रहा है, बाहर निकल कर देखिये सब दुकाने खुल रही हैं "
लेकिन पहले वाली ऐसे कैसे मान लेती तो दूसरी वाली ने सबूत भी पेश कर दिया,
मैं कान पारे सुन रहा था और वो बोल रही थीं " अभी ये लहुराबीर से आ रहे हैं मैंने इनसे बोला था की राजपूत की दूकान से अरे वही प्रकाश टाकीज के सामने वाली से , आधा किलो रसगुल्ला ले आइयेगा। "
गुड्डी की मम्मी को भी बहुत पसंद था , एक दो बार मैं ले भी आया था, लेकिन मैं आगे की बात ध्यान से सुन रहा था और वॉल बोली
" हम को तो उम्मीद नहीं थीं, की यही बेचारे आ पाएंगे,, लेकिन ये तो पूरा एक किलो रसगुल्ला ले आये, बोले दूकान उस की खुल गयी और होली के उपलक्ष में १० % की छूट और आज तो पंद्रह परसेंट, ये बड़े बड़े रसगुल्ले , बोले अभी दस मिनट से रिक्शा, औटो सब चल रहा है , कम है लेकिन है "
दूसरी बोली, " अरे हम भी परेशान थे, कर्फ्यू का ऐसा बात चल रहा था, और हम तो मना रहे थे, इनका तो रोज का काम है , चार पंच्च दिन बंद हो गया तो मुश्किल हो जाती है। "
और मैंने भी चैन की सांस ली, गुड्डी ने बोला था की लहुराबीर में कुछ टेंशन था जिससे महक का ड्राइवर जो हमारा सामने लाने गया था , फंस गया था , लेकिन अगर वो रास्ता खुल गया तो दस बीस मिनट में ड्राइवर यहाँ और आधे घंटे नहीं हुआ तो घंटे भर में निकल लेंगे , दो ढाई घण्टे का रास्ता, रात होते होते पहुँच जाएंगे।
मतलब की माहोल को ऐसा बनाया जा रहा है की जैसे बनारस के हकात ठीक नहीं है. पर सरकार ने भी दाव खेला है. मीडिया उनके हाथ मे है. लाजवाब. अब तो ले चलो गुड्डी को आनंद बाबू.. फिर से टीवी चैनल
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तभी मुझे याद आया की सिद्द्की से बात कर लूँ , की हम लोग पहुँच गए हैं और उनसे रस्ते का हाल भी मालूम हो जाएगा
सिद्दीकी को मैंने फोन लगाया, एकदम रिलेक्स और नेपथ्य की आवाजें भी एकदम रिलेक्स, डीबी की समोसे का आर्डर देने की आवाज सुनायी पड़ी। कुछ सिद्द्की की बातों से और कुछ पीछे की आवाजों से मैंने थोड़ा बहुत अंदाजा लगा लिया ुर मेरी चिंता बहुत कम हो गयी ।
अब जल्दी ही हम घर जा सकते हैं, लेकिन मैंने कुछ पुष्टि के लिए कुछ मजे के लिए मैंने टीवी न्यूज लगा ली , और सबसे पहले वही जो दंगाई का ऑफिसियल चैनल लग रहा था , वही बनारस लोकल नेटवर्क, वही जो थोड़ी देर पहले आग उगल रहा था,
अब ऐंकर ड्रैगन से टक्कर तो नहीं ले रही थी , पर उस की आवाज और आँखों में अंगारे निकल रहे थे। और जो वो बोल रही थी,
स्थिति तनावपूर्ण लेकिन पुलिस के अनुसार नियंत्रण में
बार बार बंद दुकाने दिखाई जा रही थीं, सूनी सड़के और कहीं कही जलते टायर और उन के सामने खड़े एंकर बुझ रही ाहग को सुलगना चाहते थे।
लेकिन दो मिनट ध्यान से देखने पर ही पता चल गया, ये सब थोड़ी पहले की रिकार्ड की हुयी या फ़ाइल फोटुएं थीं। फिर अचनाक एक न्यूज के बीच से ही ब्रेक आ गया, कोई लोकल विज्ञापन था और मैंने दूसरे चैनल लगाए।
बनारस की कोई खबर ही नहीं थी ।
एक दो जो एकदम पुलिस के पीछे पड़े थे थोड़ी देर पहले तक उन चैनेल्स पर भी, खुली हुयी दुकाने, ट्रैफिक दिख रहा था। हाँ बनारस को देखते हुए ट्रैफिक थोड़ा हल्का था लेकिन बढ़ रहा था। दुकानों पर भीड़ कम थी, कहीं एक्का दुक्का तो कही चार पांच लोग , और हाँ जो पद्रह % मिठाई के डिस्काउंट की बात थी, वो सिर्फ राजपूत पर नहीं थी और भी कई दुकानों पर , जलजोग , क्षीरसागर सब जगह उस की नोटिस दिखीं।
मैंने फिर उस आग जलाऊ चैनल को टकटोरा, लेकिन वहां अभी भी विज्ञापन चल रहा था, और जब विज्ञापन बंद हुआ तो मैं अचरज से भर गया ,
एंकर वही आवाज नयी, अब लाइव टेलीकास्ट था, खुली दुकाने, ट्रैफिक बाजार और बार बार ' स्थिति एकदम समान्य है :
मैं समझ गया उस ब्रेक में कोई न्यूज एडिटर के कान उमेठ रहा था, ऐंकर तो सिर्फ एक्टिंग करती है, टेलिप्रॉम्पटर से देख र न्यूज पढ़ती है और आग उगलती है, और वो आग वाला टैप बंद हो गया था, टेलीप्रॉम्प्टर पर अब कुछ और लिखा नजर आ रहा था।
अब मुझे विशवास हो गया की बस अब थोड़ी देर में हम लोग, मैं और गुड्डी आजमग़ढ के लिए चल देंगे।
कोमल मैम. फिर से टीवी चैनल
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तभी मुझे याद आया की सिद्द्की से बात कर लूँ , की हम लोग पहुँच गए हैं और उनसे रस्ते का हाल भी मालूम हो जाएगा
सिद्दीकी को मैंने फोन लगाया, एकदम रिलेक्स और नेपथ्य की आवाजें भी एकदम रिलेक्स, डीबी की समोसे का आर्डर देने की आवाज सुनायी पड़ी। कुछ सिद्द्की की बातों से और कुछ पीछे की आवाजों से मैंने थोड़ा बहुत अंदाजा लगा लिया ुर मेरी चिंता बहुत कम हो गयी ।
अब जल्दी ही हम घर जा सकते हैं, लेकिन मैंने कुछ पुष्टि के लिए कुछ मजे के लिए मैंने टीवी न्यूज लगा ली , और सबसे पहले वही जो दंगाई का ऑफिसियल चैनल लग रहा था , वही बनारस लोकल नेटवर्क, वही जो थोड़ी देर पहले आग उगल रहा था,
अब ऐंकर ड्रैगन से टक्कर तो नहीं ले रही थी , पर उस की आवाज और आँखों में अंगारे निकल रहे थे। और जो वो बोल रही थी,
स्थिति तनावपूर्ण लेकिन पुलिस के अनुसार नियंत्रण में
बार बार बंद दुकाने दिखाई जा रही थीं, सूनी सड़के और कहीं कही जलते टायर और उन के सामने खड़े एंकर बुझ रही ाहग को सुलगना चाहते थे।
लेकिन दो मिनट ध्यान से देखने पर ही पता चल गया, ये सब थोड़ी पहले की रिकार्ड की हुयी या फ़ाइल फोटुएं थीं। फिर अचनाक एक न्यूज के बीच से ही ब्रेक आ गया, कोई लोकल विज्ञापन था और मैंने दूसरे चैनल लगाए।
बनारस की कोई खबर ही नहीं थी ।
एक दो जो एकदम पुलिस के पीछे पड़े थे थोड़ी देर पहले तक उन चैनेल्स पर भी, खुली हुयी दुकाने, ट्रैफिक दिख रहा था। हाँ बनारस को देखते हुए ट्रैफिक थोड़ा हल्का था लेकिन बढ़ रहा था। दुकानों पर भीड़ कम थी, कहीं एक्का दुक्का तो कही चार पांच लोग , और हाँ जो पद्रह % मिठाई के डिस्काउंट की बात थी, वो सिर्फ राजपूत पर नहीं थी और भी कई दुकानों पर , जलजोग , क्षीरसागर सब जगह उस की नोटिस दिखीं।
मैंने फिर उस आग जलाऊ चैनल को टकटोरा, लेकिन वहां अभी भी विज्ञापन चल रहा था, और जब विज्ञापन बंद हुआ तो मैं अचरज से भर गया ,
एंकर वही आवाज नयी, अब लाइव टेलीकास्ट था, खुली दुकाने, ट्रैफिक बाजार और बार बार ' स्थिति एकदम समान्य है :
मैं समझ गया उस ब्रेक में कोई न्यूज एडिटर के कान उमेठ रहा था, ऐंकर तो सिर्फ एक्टिंग करती है, टेलिप्रॉम्पटर से देख र न्यूज पढ़ती है और आग उगलती है, और वो आग वाला टैप बंद हो गया था, टेलीप्रॉम्प्टर पर अब कुछ और लिखा नजर आ रहा था।
अब मुझे विशवास हो गया की बस अब थोड़ी देर में हम लोग, मैं और गुड्डी आजमग़ढ के लिए चल देंगे।
जै बात कोमल मैमभाग १०१ - मेरा मरद, पृष्ठ १०६७
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Adultery - छुटकी - होली दीदी की ससुराल में
भाग १०१ - मेरा मरद, पृष्ठ १०६७ अपडेट पोस्टेड, छुटकी, होली दीदी की ससुराल में का अल्पविराम समाप्त और आप सब के अनुरोध पर एक बार फिर से, कृपया पढ़ें, लाइक करें और कमेंट जरूर करें।xforum.live
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