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Incest पहले मम्मी को, फिर बहन को अपनी पत्नी बनाया

Ek number

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अब हम तीन लोग रह गए थे वहाँ पर। मैंने अपनी बहन को प्यार से बुलाया और कहा, “अब तो तुझे कोई शिकायत नहीं है ना?” रति ने भी उससे पूछा, “कोई परेशानी तो नहीं है ना तुझे? राज हम दोनों को प्यार से रखेगा।” रिया थोड़ी देर सोचती रही। फिर वो रति से कहने लगी, “मम्मा, मैं अब राज भैया को क्या बुलाऊँगी?” तो माँ ने कहा, “अब तेरे राज भैया तेरे पापा हैं, उन्हें पापा ही कहना।” मैंने कहा, “तुझें जो अच्छा लगे, वही कहकर मुझे बुला लेना।” तो वो बोली कि वो मुझे डैड ही कहेगी। उसे अपने डैड की बहुत याद आती थी, इसलिए उसने मुझे भैया की जगह पापा कहना ही उचित समझा। उसका एक भाई तो अब भी था, पर पापा नहीं थे। कॉलेज पहुँचकर राहुल ने रिया को फोन करके बता दिया कि वो कॉलेज पहुँच गया है।

आज वो दिन था जब रति के कपड़े सिलकर आने वाले थे। मैं ही कपड़े लाने गया था। साथ में रिया को भी ले गया था। उसे भी तो नए कपड़े चाहिए थे। मैंने उसके लिए एक बेहद खूबसूरत जींस-टॉप दिलवाया, साथ में महंगे सैंडल भी। वो बहुत खुश हो गई। जब हम वापस आए, तो रति हमारा इंतज़ार कर रही थी। हमें देखकर बोली, “कितना लेट कर दिया तुम लोगों ने!” रात को हमने डिसाइड किया कि हम शादी वैष्णो देवी में ही करेंगे। सो, हमने रात को ही एक टैक्सी बुक की और वैष्णो देवी के लिए निकल गए। अगले दिन दोपहर में हम वैष्णो देवी पहुँच गए। शाम को शादी थी। मैंने एक पुजारी का पता किया जो शादियाँ करवाता था। उसने सारे काम के लिए 5000 रुपये लिए।

शाम को हम मंदिर पहुँच गए, जहाँ शादी होनी थी। शादी में मैं दूल्हा, रति दुल्हन, और बाराती-साराती के नाम पर बस एक रिया थी। मंदिर के प्रांगण में ही एक वस्त्र बदलने के लिए कुटिया थी। रिया रति को लेकर वहाँ उसे सजाने के लिए चली गई। मैं और रिया धर्मशाला में ही कपड़े बदल चुके थे। जब रिया रति को लेकर मंडप में आई, तो मुझे तो चक्कर आने लगा। वो इसलिए क्योंकि वो इस कायनात की सबसे अप्रतिम युक्ति लग रही थी। क्या नयन-नक्श थे उसके! कानों में सोने के झुमके क्या लग रहे थे! गले में सोने का हार, माँग में माँगटिका, और सबसे खास तो उसकी नथ लग रही थी, जो मेरे दिल पर बस छुरियाँ चला रही थी। वो साड़ी का आँचल सिर पर रखकर आई थी, और उसे सहारा रिया दे रही थी। उस साड़ी में क्या लग रही थी वो! मैं तो ये सोचने लगा कि शायद मुझे सचमुच स्वर्ग वाली रति, कामदेव की पत्नी रति ही मिल गई हो। वो ओरिजिनल रति से रत्ती भर भी कम नहीं लग रही थी। लग रहा था कि रति ही उसमें समा गई हो।

मैंने पंडित से कहा कि वो जल्द से जल्द विवाह संपन्न करवा दे। उसने वैसा ही किया। अब अंत की कुछ रस्में बाकी थीं, जैसे सिंदूर भराई और मंगलसूत्र पहनाना। जब मैंने रति की माँग में सिंदूर डाला, तो उसने आँखें बंद कर लीं, जैसे उसके लिए यही पल सबसे कीमती हो और वो इस तरह से फिर से सुहागन बन गई। अब फिर से उसकी सारी कामनाएँ और सारी मुरादें पूरी होने वाली थीं। रोने की बजाय वो अंतरमन से खुश थी। फिर मैंने उसे मंगलसूत्र पहनाया और सात फेरे लिए उसके साथ। विवाह संपन्न हुआ—एक माँ का बेटे से, रति का काम से, और अतृप्ति का तृप्ति से।

हम रात में 9:30 बजे वापस धर्मशाला में आ गए, जहाँ हमें आज की रात रुकना था। पहुँचते ही रिया ने हमें कहा, “हैप्पी मैरिड लाइफ टु यू, माय मॉम एंड डैड!” और हमने उसे गोद में उठा लिया और दोनों ने मिलकर उसके गालों को चूमा। रात में हमने कुछ नहीं किया। अगले दिन ये डिसाइड हुआ कि रिया को अब स्कूल चले जाना चाहिए और हमें घर। अपने शहर में मुझे कुछ काम जल्द ही खत्म करने थे। हम वैष्णो देवी से सीधे चंडीगढ़ आए, फिर रिया को मसूरी में उसके स्कूल में छोड़ा। अब वो वहाँ चार महीने तक बिना ब्रेक के रहने वाली थी, और हम दोनों मियाँ-बीवी बिना किसी व्यवधान के काम साधना की पूर्ति के लिए।

अब अगस्त का महीना चल रहा था। हम अगले दिन अपने शहर बरेली वापस आ गए। मैंने जल्द ही अपने स्टोर के लिए एक खरीददार खोजा और उसे स्टोर 25 लाख में बेच दिया। हमारे पास पहले से ही अच्छी-खासी रकम थी। स्टोर के पैसे भी मैंने अकाउंट में जमा कर दिए। फिर घर पर हमने अपनी कुछ यादगार वस्तुओं को पैक किया, जिनसे मेरी रति और रिया की यादें जुड़ी थीं। पापा और राहुल की किसी चीज़ को मैंने छुआ तक नहीं। सामान पैक करके हमने रख दिया। अब मैं और रति बरेली छोड़ने ही वाले थे, क्योंकि वहाँ पर हम मियाँ-बीवी बनकर कभी भी नहीं रह सकते थे। मैं चाहता था कि किसी शांत शहर में जाकर रति के साथ बस जाऊँ, ताकि रति सुख आसानी से पा सके। रति ने ही हमारे लिए एक नए शहर को चुना, जो ऊटी था। वो इतना दूर था कि हमें कोई पहचान भी नहीं सकता था वहाँ पर।
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sunoanuj

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Bahut hee jabardast or information se bhara hua update tha… khani Bhaut teji se aagey badh gayi hai in updates me …
 

abmg

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हमने एक रियल एस्टेट वाले से ऊटी में कॉन्टैक्ट किया और उसे बताया कि हमें एक छोटा सा मकान किसी सुनसान इलाके में चाहिए। उसने अगले दिन ही हमें बताया कि एक मकान है। मैंने कीमत और उस मकान की फोटोज़ देखीं। रति और मुझे वो मकान बहुत पसंद आया। उस एजेंट ने डील फाइनल करवा दी, और हमने मकान खरीद लिया। अपना सामान हमने पैकर-मूवर वालों को दे दिया ऊटी ले जाने के लिए। और हम चल पड़े एक नई दुनिया बसाने के लिए ऊटी में।

ऊटी पहुँचकर हम एक-दो दिन रिलैक्स हुए। और अपनी आग को भड़काते रहे। इस दौरान रति को मैंने छुआ तक नहीं, ना ही उसे नोटिस ही किया। वो परेशान हो गई थी कि मैं कुछ कर क्यों नहीं रहा हूँ। तब तक हमारा सामान भी आ गया। घर पहले से ही सजा हुआ था, बस आए हुए सामान को ठिकाने लगाना था। वो मैंने और रति ने मिलकर एक दिन में ही कर दिया। उसके अगले दिन 5 सितंबर की तारीख थी। सबकुछ हो गया था। अब हमारे पास बस हमारे लिए समय ही समय था। मैंने रति से कहा, “रति, तुम वो शादी वाला जोड़ा आज रात को पहन लेना।” तो वो खुश हो गई। उसे लगा उसके भाग्य आज खुलने वाले हैं। आज ही हमारी वास्तविक और पहली सुहागरात होने वाली थी। उसने कहा, “हाँ राज, अब तक तो हम सब कुछ सेटल करने में ही बिजी थे। शादी तो हो गई, पर अब तक अपने प्यार को जी भर देखा भी नहीं। आज सारी दिल की इच्छाएँ पूरी करूँगी मैं, आपके राज।” मैंने कहा, “जो अरमान तुमने कभी पाले होंगे, चाहे वो तुम्हारी शादी से पहले के हों या पापा से शादी के बाद के, आज वो सारे अरमान मैं तुम्हारे जरूर पूरे कर दूँगा। आज मैं तुम्हारे लिए कुछ भी करूँगा, मेरी जान!”

शाम को मैं मार्केट चला गया कुछ सामान लाने। रति के लिए थोड़ी सी मुलेठी और इलायची युक्त एक स्वीट डिश ले आया। मैंने सुना था कि ये दोनों चीज़ें औरत में वासना का तूफान मचा देती हैं। बहुत ही प्यारे और स्वादिष्ट पकवान बनाए थे उसने। हमने थोड़ा सा ही खाया, ताकि पेट भारी न हो जाए और कहीं नींद न आने लगे। फिर मैंने रति को वो मुलेठी और इलायची वाली डिश दे दी खाने के लिए। मैंने भी अलग से कुछ इलायची खा ली। वो कुछ देर के बाद नहाने चली गई। फिर नहाकर वो सीधे बेडरूम में चली गई। फिर मैं भी नहाने चला गया। बाथरूम में पहुँचा, तो देखा कि रति के पहने हुए अंडरगारमेंट्स फर्श पर पड़े थे। मैंने उसकी पैंटी को उठाया, तो देखा कि उसमें एक-दो बड़े-बड़े बाल थे। मैंने वो बाल अपनी उंगली में लपेट लिए और उसकी पैंटी को अपने नाक से लगा लिया। क्या गज़ब की गंध थी! मेरे तो होश ही गुम हो रहे थे। फिर उसकी ब्रा को, जो नीले रंग की थी, उसे चूमा और बाहर आ गया। बाहर आया, तो देखा कि वही टेबल पर मेरे आज के पहनने के लिए कपड़े रखे हुए थे। मैंने कपड़े पहन लिए और अपने आप को आईने में देखने लगा। मैं उन कपड़ों में कोई अच्छा सा दूल्हा ही लग रहा था।

फिर मैं बेडरूम के पास गया, तो देखा कि दरवाजा बंद है। मैंने दरवाजा खटखटाया, तो उसने कहा, “ज़रा रुको बाबा।” 5 मिनट बाद उसने दरवाजा खोल दिया। मैं अंदर गया, तो वहाँ अंधेरा था। मैंने दरवाजा बंद किया और बत्ती जला दी। सामने जो नज़ारा था, उसे देखकर मैं हैरान रह गया। बेड पूरी तरह पर्पल ऑर्किड के फूलों से सजा हुआ था और सेज पर गुलाब की बस पंखुड़ियाँ पसरी हुई थीं। उसी के बीच में घूँघट ताने मेरी दुल्हन लजाई सी, सकुचाई सी बैठी हुई थी।

जब मैं उसके पास गया, तो उसने कहा, “बत्ती बुझा दीजिए प्लीज़, राज।” मैंने कहा, “अब तुम मेरी माँ नहीं, सिर्फ मेरी बीवी हो। मैं कोई तुम्हारा बेटा नहीं हूँ, तुम्हारा पति हूँ। जो मैं चाहूँगा, वही होगा, रति। बत्ती नहीं बुझेगी।” तो वो कहने लगी, “मुझे शर्म आती है, बेटा।” मैंने उसे टोका और कहा, “अब कभी मुझे बेटा मत कहना, मेरी रांड। मैं तो अब तेरा चोदू पति हूँ। अगर बत्ती बंद कर दी, तो जिसके लिए मैंने तुझे जवान करवाया है और जिस चीज़ को मैं देखने के लिए तरसता था, तड़पता था, वो मैं अंधेरे में कैसे देख पाऊँगा, मेरी चुदासी रखैल!” तो उसने कुछ नहीं कहा। मैं सेज पर उसके पास गया, तो कहा, “क्या अब ये घूँघट उठा दूँ, मेरी जान?” तो उसने कहा, “मुझसे क्या पूछते हैं आप!” तो मैं घूँघट उठाने लगा। उस वक्त बस यही गाना मुझे याद आ रहा था कि “सुहागरात है और घूँघट उठा रहा हूँ मैं, कभी-कभी मेरे दिल में खयाल आता है।”
 

abmg

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मैंने उसका घूँघट बड़े ही आराम से उठाया और देखा, तो उसमें एक परी थी, मेरे सपनों की ड्रीम गर्ल, एक हूर परी जैसे जन्नत की सबसे हसीन नूर थी। मैं देखते ही कहने लगा, “क्या बनाया है तुझे डॉ. स्मिथ ने!” उसने कहा, “जो आप चाहते थे, वही तो हुआ है।” मैंने कहा, “हाँ रांड, मैं जो चाहता था, वही हुआ है, और उससे कहीं ज्यादा ही बनाया है तुझे उस डॉक्टर ने। आज मैं तुझे चोदकर दुनिया का सबसे बड़ा और अजूबा मादरचोद बन जाऊँगा। मुझे यही बनना था।” रति सब सुनती रही, कुछ नहीं कहा उसने। मैं उसे अब स्मूच करने लगा। वो भी करने लगी। फिर आधे घंटे बाद मैं उसके कपड़े उतारने लगा। मैंने उसकी ब्रा और पैंटी रहने दी और बाकी सब कुछ तार दिया। उसने कहा, “अब अपने भी तो उतारो। मैं भी देखना चाहती हूँ कि मेरे पति कैसे हैं।” मैंने कहा, “ये क्यों नहीं बोलती कि तुझें मेरे लंड का दर्शन करना है!” मैंने उसे कहा, “मुझे जो देखना था, वो मैंने खुद मेहनत करके देख लिया। अब अगर तुझें देखना है, तो तू खुद ही मेरे कपड़े उतार।” पहले तो उसने मना कर दिया, पर मनाने पर वो मेरे कपड़े उतारने लगी। उसने भी मेरे शरीर पर बस अंडरवियर ही छोड़ा। अब उसकी साँसें तेज़ चलने लगी थीं।

मैंने उसे बेड पर चित लिटा दिया और उसे लगातार चूमने लगा। आज मैं उसका दूध पीना चाहता था। बचपन में भी पिया था, पर उस वक्त मुझे कुछ ज्ञान नहीं होगा ना। असली मज़ा तो जवानी में अपनी माँ का दूध पीने में है। मैंने उसकी ब्रा को नोंच फेंका और उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ बिल्कुल अल्फांसो आम की तरह उछलकर मेरे सामने आ गईं। क्या चूचियाँ थीं रति की, असली मायनों में वही रति थी। उसके अनार अब इलाज के बाद 750 ग्राम के हो गए थे, जो बिल्कुल पूरी तरह से दूध के अलसी भंडार थे। पहले तो बारी-बारी से मैंने उन्हें खूब दबाया और मसला। फिर उसके निप्पल को, जो एकदम खड़े हो चुके थे, को उंगलियों से मिंजने लगा। वो “आह… ऊऊह… स्स्स्स… मर गई माँ…” करने लगी। मैं हल्के-हल्के उसके निप्पल्स को मिंज रहा था, ताकि उसे लहर न हो, न जलन। धीरे-धीरे उसकी सिसकारी तेज़ हो गई। और उसके निप्पल लाल। मैंने ऐसा मादक संगीत आज तक नहीं सुना था।

फिर जब मुझसे न रहा गया, तो मैंने उसके बूब्स को मुँह में ले लिया और उसका रस निचोड़ने लगा। उसका एक बूब आधा ही मेरे मुँह में आ सका। चूसने के बाद मैं उसके निप्पल को जीभ से छेड़ने लगा। वो तो व्याकुलता से मरे जा रही थी। कहने लगी, “ये क्या किया रे तूने, कौन सी आग लगा दी है ये!” मैंने कहा, “क्या नहीं पता तुझें ये कौन सा खेल है, ये कैसी अगन है? क्या रांड, तूने ऐसे ही क्या हम तीनों भाई-बहनों को जना है? क्या मेरे बाप ने तुझें नहीं चोदा, साली?” मैं उसके बूब्स को बारी-बारी से चूसते रहा। जब उससे न रहा गया, तो वो रति-आनंद में बह गई। उसका रजोत्पात होने लगा और वो आहें भरने लगी। जब उसकी चूत रो रही थी, तो उसने कसकर दोनों हाथों से चादर पकड़ ली और मिसने लगी, साथ-साथ अपने होठों को दाँतों से काटने लगी। उसकी चूत से टप-टप करके रस चादर पर गिर रहा था। वो शांत हो चुकी थी। कई साल हो गए थे उसे चुदवाए हुए, इसलिए उसकी ऐसी हालत हुई थी। उसकी काले रंग की पैंटी पूरी तरह से भीग गई थी।

अब तक मेरा भी लंड खड़ा हो चुका था। फिर भी मैंने खुद पर कंट्रोल किया, क्योंकि मैं पूरा मज़ा लेना चाहता था। अब मैं उसकी चूची के नीचे चूम रहा था, उसके बदन को। चूमते-चूमते मैं उसकी नाभि तक पहुँचा। पहले तो मैंने उसकी नाभि के आसपास सिर्फ हाथ ही लगाया, जिसके कारण उसका पेट काँपने लगा। फिर मैं उसकी नाभि में जीभ से गड्ढा करने लगा। मैंने उसके पूरे पेट को अपनी लार से नहा दिया, फिर साफ कर दिया। रति कहने लगी, “बस करो राज, अब सहन नहीं होता। अब जल्दी से मुझे संतुष्ट कर दो।” मैंने कहा, “वो कैसे करूँ?” तो वो कहने लगी, “अपना वो डाल के जल्दी से मुझे शांत करो, वरना मैं पागल हो जाऊँगी।” मैंने कहा, “ये वो क्या है?” तो उसने कहा, “वही, जिससे तुम पिशाब करते हो।” मैंने कहा, “उसे क्या कहते हैं?” वो कुछ न बोली। मैंने कहा, “अगर नहीं बोलोगी, तो मैं कुछ भी नहीं करूँगा।” तो उसने अपनी शर्म पर काबू करके कह ही दिया, “अपने लंड को मेरी चूत में जल्दी से डाल के मुझे चोद दो।” ये सुनकर मुझे बड़ा मज़ा आया कि ये सब एक माँ अपने बेटे से कह रही है। मैंने कहा, “थोड़ा सा सब्र करो, मेरी रांड। मैं वही करूँगा जो तू चाहती है, लेकिन कुछ और अभी बाकी है।”
 
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