मैंने उसका घूँघट बड़े ही आराम से उठाया और देखा, तो उसमें एक परी थी, मेरे सपनों की ड्रीम गर्ल, एक हूर परी जैसे जन्नत की सबसे हसीन नूर थी। मैं देखते ही कहने लगा, “क्या बनाया है तुझे डॉ. स्मिथ ने!” उसने कहा, “जो आप चाहते थे, वही तो हुआ है।” मैंने कहा, “हाँ रांड, मैं जो चाहता था, वही हुआ है, और उससे कहीं ज्यादा ही बनाया है तुझे उस डॉक्टर ने। आज मैं तुझे चोदकर दुनिया का सबसे बड़ा और अजूबा मादरचोद बन जाऊँगा। मुझे यही बनना था।” रति सब सुनती रही, कुछ नहीं कहा उसने। मैं उसे अब स्मूच करने लगा। वो भी करने लगी। फिर आधे घंटे बाद मैं उसके कपड़े उतारने लगा। मैंने उसकी ब्रा और पैंटी रहने दी और बाकी सब कुछ तार दिया। उसने कहा, “अब अपने भी तो उतारो। मैं भी देखना चाहती हूँ कि मेरे पति कैसे हैं।” मैंने कहा, “ये क्यों नहीं बोलती कि तुझें मेरे लंड का दर्शन करना है!” मैंने उसे कहा, “मुझे जो देखना था, वो मैंने खुद मेहनत करके देख लिया। अब अगर तुझें देखना है, तो तू खुद ही मेरे कपड़े उतार।” पहले तो उसने मना कर दिया, पर मनाने पर वो मेरे कपड़े उतारने लगी। उसने भी मेरे शरीर पर बस अंडरवियर ही छोड़ा। अब उसकी साँसें तेज़ चलने लगी थीं।
मैंने उसे बेड पर चित लिटा दिया और उसे लगातार चूमने लगा। आज मैं उसका दूध पीना चाहता था। बचपन में भी पिया था, पर उस वक्त मुझे कुछ ज्ञान नहीं होगा ना। असली मज़ा तो जवानी में अपनी माँ का दूध पीने में है। मैंने उसकी ब्रा को नोंच फेंका और उसकी बड़ी-बड़ी चूचियाँ बिल्कुल अल्फांसो आम की तरह उछलकर मेरे सामने आ गईं। क्या चूचियाँ थीं रति की, असली मायनों में वही रति थी। उसके अनार अब इलाज के बाद 750 ग्राम के हो गए थे, जो बिल्कुल पूरी तरह से दूध के अलसी भंडार थे। पहले तो बारी-बारी से मैंने उन्हें खूब दबाया और मसला। फिर उसके निप्पल को, जो एकदम खड़े हो चुके थे, को उंगलियों से मिंजने लगा। वो “आह… ऊऊह… स्स्स्स… मर गई माँ…” करने लगी। मैं हल्के-हल्के उसके निप्पल्स को मिंज रहा था, ताकि उसे लहर न हो, न जलन। धीरे-धीरे उसकी सिसकारी तेज़ हो गई। और उसके निप्पल लाल। मैंने ऐसा मादक संगीत आज तक नहीं सुना था।
फिर जब मुझसे न रहा गया, तो मैंने उसके बूब्स को मुँह में ले लिया और उसका रस निचोड़ने लगा। उसका एक बूब आधा ही मेरे मुँह में आ सका। चूसने के बाद मैं उसके निप्पल को जीभ से छेड़ने लगा। वो तो व्याकुलता से मरे जा रही थी। कहने लगी, “ये क्या किया रे तूने, कौन सी आग लगा दी है ये!” मैंने कहा, “क्या नहीं पता तुझें ये कौन सा खेल है, ये कैसी अगन है? क्या रांड, तूने ऐसे ही क्या हम तीनों भाई-बहनों को जना है? क्या मेरे बाप ने तुझें नहीं चोदा, साली?” मैं उसके बूब्स को बारी-बारी से चूसते रहा। जब उससे न रहा गया, तो वो रति-आनंद में बह गई। उसका रजोत्पात होने लगा और वो आहें भरने लगी। जब उसकी चूत रो रही थी, तो उसने कसकर दोनों हाथों से चादर पकड़ ली और मिसने लगी, साथ-साथ अपने होठों को दाँतों से काटने लगी। उसकी चूत से टप-टप करके रस चादर पर गिर रहा था। वो शांत हो चुकी थी। कई साल हो गए थे उसे चुदवाए हुए, इसलिए उसकी ऐसी हालत हुई थी। उसकी काले रंग की पैंटी पूरी तरह से भीग गई थी।
अब तक मेरा भी लंड खड़ा हो चुका था। फिर भी मैंने खुद पर कंट्रोल किया, क्योंकि मैं पूरा मज़ा लेना चाहता था। अब मैं उसकी चूची के नीचे चूम रहा था, उसके बदन को। चूमते-चूमते मैं उसकी नाभि तक पहुँचा। पहले तो मैंने उसकी नाभि के आसपास सिर्फ हाथ ही लगाया, जिसके कारण उसका पेट काँपने लगा। फिर मैं उसकी नाभि में जीभ से गड्ढा करने लगा। मैंने उसके पूरे पेट को अपनी लार से नहा दिया, फिर साफ कर दिया। रति कहने लगी, “बस करो राज, अब सहन नहीं होता। अब जल्दी से मुझे संतुष्ट कर दो।” मैंने कहा, “वो कैसे करूँ?” तो वो कहने लगी, “अपना वो डाल के जल्दी से मुझे शांत करो, वरना मैं पागल हो जाऊँगी।” मैंने कहा, “ये वो क्या है?” तो उसने कहा, “वही, जिससे तुम पिशाब करते हो।” मैंने कहा, “उसे क्या कहते हैं?” वो कुछ न बोली। मैंने कहा, “अगर नहीं बोलोगी, तो मैं कुछ भी नहीं करूँगा।” तो उसने अपनी शर्म पर काबू करके कह ही दिया, “अपने लंड को मेरी चूत में जल्दी से डाल के मुझे चोद दो।” ये सुनकर मुझे बड़ा मज़ा आया कि ये सब एक माँ अपने बेटे से कह रही है। मैंने कहा, “थोड़ा सा सब्र करो, मेरी रांड। मैं वही करूँगा जो तू चाहती है, लेकिन कुछ और अभी बाकी है।”