इस दौरान मेरा लंड काफी तन चुका था और वो जांघिए के बाहर आना चाहता था, उसे फाड़कर। रति भी कुछ ऐसे बैठी थी कि उसकी भग (वेजाइना, जो पैंटी में कैद थी) और चूतड़ों के बीच की जगह के ठीक नीचे मेरा 7.6 इंच लंबा लंड अपनी जगह बनाने में कामयाब हो गया। थोड़ी देर बाद मेरे लंड पर कुछ गीला-गीला सा महसूस हुआ। मैंने अपना हाथ ले जाकर देखा, तो पता चला कि रति की पैंटी भीग चुकी थी, और वहाँ से इतना रस निकल रहा था कि वो मेरे जांघिए को भी भिगो रहा था। मैंने रति को चूमना फिर भी बंद नहीं किया। रति भी मुझे बेतहाशा चाटे जा रही थी। वो अपने बड़े-बड़े नाखूनों से मेरे सीने पर खुरच रही थी और मेरे निप्पल्स के साथ खेल रही थी। यही करते-करते रात के 12 बज चुके थे। मेरे निप्पल्स एकदम उसके निप्पल्स की तरह खड़े हो गए। तब वो झुकी और मेरे एक निप्पल को अपने मुँह में भर लिया। ये इतना भयंकर अनुभव था कि मैं खुद को स्कलित होने से रोक नहीं पाया। मेरा ढेर सारा वीर्य रति की जांघों से चिपक गया, क्योंकि वो मेरी जांघों पर ही थी। जब उसे पता चला, तो उसने अपनी एक उंगली लगाकर थोड़ा सा वीर्य उठा लिया और उसे अपने अंगूठे से मिसलकर देखने लगी, वो लस्सलस था। फिर वो उसे सूँघने लगी, शायद उसे उसकी महक अच्छी लगी। उसने झट से अपनी उंगली में फिर से थोड़ा सा वीर्य लिया और उसे अपने मुँह में लेकर चाट गई और चटकारे लेने लगी। मुझे ये अजीब लगा, पर पता नहीं क्यों मुझे अच्छा लगा। वो बोली, “ये बड़ा स्वीट और सॉल्टी टेस्ट कर रहा है।” उसने कहा कि उसे ये और चाहिए, तो मैंने कहा, “बाद में चख लीजिएगा, अभी नहीं।” फिर वो मेरे दूसरे निप्पल को चूसने लगी। थोड़ी देर बाद हम सारा खेल खेलकर सो गए (अभी हमारा हनीमून बाकी था)। ठंड बढ़ गई थी, सो मैंने हमारे ऊपर रजाई डाल दी और एक-दूसरे से चिपककर सो गए। मैं बिल्कुल उसकी गांड से अपना लंड सटाकर और आगे हाथ ले जाकर उसकी चूचियों को कसकर अपने हाथों में भींचकर सो गया।
अगले दिन जब मैं उठा, तो देखा कि रति बिस्तर से गायब थी। रात की बात याद करके मैं कुछ सोचने लगा। मैंने सोचा कि कहीं रति को मेरे ऊपर शक न हो जाए कि जो कल रात हुआ, वो मेरी ही साजिश थी। इसलिए मैं थोड़ा रुआँसा हो गया। मैं थोड़ा डर सा भी गया कि कहीं रति मुझसे गुस्सा न हो जाए कि मैंने अपनी माँ के साथ, उसके साथ ये क्या अनर्थ कर दिया। बिस्तर से उठकर मैंने अपने कपड़े पहने और बाहर जाने लगा, तो देखा कि बिस्तर पर बहुत बड़ा दाग लगा हुआ था। उसे छूकर देखा, तो वो बहुत कड़क लग रहा था। मैं मुस्कुराने लगा। मन ही मन सोचने लगा कि मेरे और रति के अमृत में क्या कठोरता, क्या कड़कपन है! इसका मतलब तो यही है कि हम दोनों एक-दूसरे के लिए ही बने हैं, टोटली मेड फॉर इच अदर। फिर मैं रुआँसा और पाप बोध से ग्रस्त भूमिका अपने चेहरे पर लाकर रति को खोजने बाहर निकल गया (सिर्फ दिखावे के लिए)। वो मुझे गार्डन में मिल गई। उसने एक आकर्षक सी साड़ी पहनी थी। एकदम मेरी नई बीवी की तरह लग रही थी वो। जब मैं उसके पास पहुँचा, तो देखा कि वो कुछ परेशान है। मुझे देखकर वो मेरे गले से चिपककर रोने लगी। जब तक मैं पूछता कि क्या बात है, वो खुद ही कहने लगी, “आई एम सॉरी बेटा, मुझे कल रात वो सब नहीं होने देना चाहिए था। मेरा खुद पर कंट्रोल नहीं रहा कल रात।”
मैंने कहा, “आप कौन सी बात कर रही हो माँ? कल क्या कुछ बुरा हुआ?” उसने कहा, “हाँ बेटा, बहुत बुरा हुआ। जो तुम्हारे और तुम्हारी बीवी के साथ या फिर तेरे पापा और मेरे साथ होना चाहिए, वो हो गया, जो एक माँ-बेटे के साथ कभी नहीं होना चाहिए। आई एम सॉरी बेटा, मुझे माफ कर दे, मैंने अपनी बहू का हक छीनने की कोशिश की।” मैंने कहा, “ऐसी कोई बात नहीं है माँ। मैंने भी तो कंट्रोल नहीं किया, मैं भी तो उन सब के लिए जिम्मेदार हूँ। आप प्लीज दुखी मत हो, प्लीज डोन्ट क्राय माँ। मुझे आपका रोना देखा नहीं जाता।” वो अब भी मेरी बाहों में ही थी, और मैं उसकी पीठ और उसके बम्स को सहला रहा था। फिर मैं उसे पास पड़े बेंच पर बिठाकर उससे कहने लगा, “माँ, मुझे आपसे एक बात कहनी थी, बहुत जरूरी बात।” उसने कहा, “कौन सी बात बेटा?” मैंने कहा, “यहाँ नहीं माँ, आप मेरे साथ हमारे कमरे में चलिए।” उसने कहा, “ठीक है, चलो।”
हम कमरे में आ गए, और मैं उसे वही दाग दिखाने लगा, तो वो शरमा गई। उसने कहा, “ये क्या है?” मैंने कहा, “ये हमारे बंधन की निशानी है।” वो तब तक उसे छूकर देखने लगी। फिर मैंने कहा, “जो रात को हमारे बीच हुआ, उसी का ये गवाह है।” माँ ने कहा, “ये क्या कह रहा है बेटा तू?” मैंने कहा, “जो सच है, वही कह रहा हूँ माँ।” मैंने कहा, “क्या आप मिलना चाहेंगी अपनी बहू से?” तो वो कहने लगी, “क्या वो यहीं रहती है?” मैंने कहा, “हाँ, वो यहीं पर है।” तो वो कहने लगी, “जल्दी से मिला मुझे उससे, देखूँ तो वो कैसी है।” मैंने कहा, “पहले आप एक प्रॉमिस करो।” उसने कहा, “कौन सा प्रॉमिस?” मैंने कहा, “मैं आपको जिससे भी मिलवाऊँगा अपनी बीवी बनाने के लिए, आप उसे सहर्ष स्वीकार करेंगी अपनी बहू के रूप में।” उसने कहा, “बेटा, तेरी खुशी में मेरी खुशी है। तू जिसे भी पसंद करेगा, मैं उसे अपनी बहू मान लूँगी, पर अब उसके पास ले के तो चल।”
मैं उसका हाथ खींचकर उसे आईने के सामने ले आया और ठीक उसके पीछे उससे सटकर खड़ा हो गया। मैंने उसके पेट को सहलाना शुरू किया, साथ ही उसकी गर्दन पर चूमने लगा। वो चिहुँक उठी और सिसकारी मारने लगी। साथ ही कहने लगी, “बेटाaaaaa, कहाँaaaaa है मेरीiiii बहूuuuu?” मैंने उसके कान में दाँत गड़ाते हुए कहा, “आप सामने आईने में देख लो, वो आपको दिख जाएगी।” उसने देखा, तो लजा गई। और गुस्से से कहने लगी, “इसमें कहाँ है वो? अपनी माँ से मजाक करता है, शैतान।” मैंने कहा, “गौर से देखो, उसमें एक सुंदर सी स्त्री, साड़ी में दिखेगी, मेरी होने वाली बीवी, मेरी रति, उसी में है।” रति नाम सुनते ही वो फिर शरमाई और कहने लगी, “बेटा, मैं कैसे तेरी बीवी बन सकती हूँ, मैं तो तेरी माँ हूँ।” मैंने कहा, “जो बूढ़ी रति थी, वो मेरी माँ थी। और जो अब है, एक जवान रति, एकदम एक पटाखा, वही मेरी बीवी है।” वो अचरज से मुझे देखने लगी और मुस्कुराने भी लगी। मैंने कहा, “आपको आपकी होने वाली बहू मंजूर है या नहीं?” तो वो कुछ न बोली और शरमाकर वहाँ से भाग गई गार्डन में। मैं फिर उसके पीछे नहीं गया। मैं चाहता था कि वो खुद मुझसे कहे, “बेटा, मैं तेरी बनना चाहती हूँ, मुझे अपने आगोश में भर ले।” इसके लिए सब्र बहुत जरूरी था। वही मैं कर रहा था।
लगभग एक घंटे बाद हमारा खाना आया। मैंने वेटर से कहा, “जा कर मैडम से कह दो कि खाना आ गया है, वो आकर खा लें।” मैंने उसे बता दिया कि वो गार्डन में ही होंगी। फिर वेटर चला गया। उसके जाने के 10 मिनट बाद रति कमरे में आई। मैंने दरवाजा खुला ही छोड़ा था। मैंने कुछ नहीं कहा, तो वो खाने की टेबल तैयार करने लगी। फिर मुझसे कहा, “सुनिए, आकर खाना खा लीजिए जी!” मुझे कुछ अजीब सा लगा। मैं सोचने लगा कि वो तो ऐसे मेरे पिताजी को बुलाती थी। लगता है उसने मेरी बात मान ली। मैं टेबल पर गया और खाना खाने लगा, तो उसने कहा, “आज मैं आपको खिलाऊँगी, आप खुद से एक निवाला भी नहीं खाएँगे।” मैंने कहा, “माँ, मुझे आप-आप कहके बात क्यों कर रही हो?” तो वो कहने लगी, “अभी तूने ही तो कहा था कि मैं तेरी होने वाली बीवी हूँ, इसलिए।”
मैंने बाहर जाकर बहुत सोचा कि क्या ये सब ठीक रहेगा। तो मुझे लगा कि क्यों नहीं ठीक होगा ये सब। मेरा बेटा जो मुझे इतना प्यार करता है, उसे उसका वाजिब हक देने में हरज ही क्या है। और उनके (मेरे पिताजी) गुजरने के बाद वही तो मालिक है हम सब का (पूरी फैमिली का)। उसे अपना स्वामी मानने में क्या बुराई है। पर राज, एक बात बता, हम दुनिया की नजरों में कैसे रहेंगे? यहाँ तो हमें कोई नहीं जानता, तो ठीक है, चाहे जैसे भी रहें, लेकिन घर जाकर क्या होगा? और तेरे भाई-बहन क्या इस रिश्ते को स्वीकार करेंगे?” मैंने कहा, “आप चिंता मत करो, वो सब मैं देख लूँगा।” तो वह कहने लगी, “क्या देख लेगा? क्या हम माँ-बेटा बनके ही रहेंगे और रात में मियाँ-बीवी, या फिर तू मुझसे शादी करके मुझे तेरी बीवी बनाएगा? बोल, क्या सोचा है तूने? पहले मैं सारी बात जानना चाहती हूँ, फिर कोई फैसला लूँगी हमारे बारे में।”