Sanju@
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बहुत ही सुन्दर लाजवाब और रमणीय अपडेट हैभाग 4
जैसे तैसे अम्मा और बप्पा मान गए थे.............मगर जानकी इस बात से बहुत नाखुश थी!!!! मेरी अपनी सगी बहन..........मेरे स्कूल जाने के नाम से चिढ गई थी!!!!!
जानकी को पढ़ाई का ज़रा भी शौक नहीं था...........उसे तो बस दिन भर सोनी के साथ खेलना पसंद था| जब उसे पता चला की मैं पढ़ने स्कूल जा रही हूँ तो वो मुझसे उखड़ गई.................उस बुद्धू को लग रहा था की मेरे बाद उसे भी स्कूल भेजा जाएगा!!! इस बात को ले कर जानकी ने मुझसे बहुत झगड़ा किया की कैसे मेरे स्कूल जाने से उसे भी जबरदस्ती स्कूल भेजा जाएगा.................इतने अनजान बच्चों के साथ वो कैसे खुद को डालेगी इसकी चिंता कर के उसकी जान सूख रही थी!!!
उधर मैं भी बुद्धू थी जो उसे पढ़ाई का महत्व समझा रही थी............ जबकि असल बात कुछ और ही थी| मेरे अम्बाला जाने से अब सारा काम धाम अम्मा जानकी को कहतीं...........जिससे बेचारी सोनी के साथ खेल नहीं पाती| इसी बात का गुस्सा जानकी मुझ पर निकाल रही थी.............और मैं इस बात से अनजान उसे प्यार से समझा रही थी|
अम्मा को मेरा पढ़ने जाना बिलकुल रास नहीं आ रहा था...........तभी तो उन्होंने भी जानकी की तरह मुझे छोटी छोटी बातों पर झिड़कना शुरू कर दिया| अम्बाला जा कर मुझे खुद को कैसे संभालना है........अपनी मौसी को तंग नहीं करना है..........मामी मामा के घर भी जाना है.........आदि बातें डांट डांट कर सिखाई जा रही थीं| मैं सबकी डांट और झिड़कियां सुन रही थी तो बस इसलिए की कम से कम मुझे पढ़ने को तो मिल रहा है!!!!
आखिर वो दिन आ ही गया.............. जब मुझे अम्बाला जाना था| मैं सबसे पहले अपनी अम्मा के पास पहुंची और उनके पॉंव छू कर आशीर्वाद माँगा.................मगर मेरी अम्मा मुझे आशीर्वाद देने के बजाए मुझे हिदायतें देने लगीं की मुझे मौसी के पास कैसे रहना है| फिर मैं पहुंची चरण काका के पास.............उन्हीं के कारन तो मुझे पढ़ने को मिल रहा था| काका ने मेरे सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया और बोले "खूब मन लगाए के पढयो मुन्नी.............ख़ुशी ख़ुशी जाओ और जब छुट्टी होइ तब गहरे आयो|" माँ के मुक़ाबले चरण काका ने मुझे बड़े प्यार से आशीर्वाद दिया था...............जिस कारन मैं बहुत खुश थी|
फिर मैं पहुंची जानकी और सोनी के पास............जानकी मुझसे बहुत गुस्सा थी इसलिए बजाए मुझे कोई शुभेछा देने के...........वो तो मुझे गुस्से से घूरने लगी!!! "अम्मा बप्पा का ख्याल रखयो...........और तनिक भी मस्ती बाजी ना किहो नाहीं तो लडे जाबो!" एक बड़ी बहन होते हुए मैं तो बस अपनी छोटी बहन को थोड़ी हिम्मत दे रही थी..............मगर मेरी बात सुन जानकी मुँह टेढ़ा करते हुए बोली "हुंह!!!!!!"
मैं जानकी का गुस्सा जानती थी इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा और सोनी को आखरी बार गोदी लेने को हतः आगे बढ़ाये.............पर जानकी बहुत गुस्से में थी इसलिए उसने फट से सोनी को गोदी में उठा लिया और बोली "कउनो जर्रूरत नाहीं आपन प्यार दिखाए की..............अतना ही प्यार आवत रहा तो काहे जात हो??? तोहका आपन पढ़ाई बहुत भावत है...........जाए का आपन पढ़ाई करो!!!!" ये कहते हुए वो सोनी को गोदी में लिए हुए भुनभुनाते हुए अंदर चली गई|
अपनी छोटी बहन के इस तिरस्कार को ही उसका प्यार समझ मैं बप्पा के साथ अम्बाला आ गई| मेरी मौसी का घर और मां का घर आस पास था इसलिए सभी ने मेरा ध्यान रखने की जिम्मेदारी ली| जब बप्पा चलने को हुए तो मैं बहुत उदास हो गई थी..............आज पहलीबार मैं अपने घर से इतना दूर आई थी और मेरे बप्पा मुझे यहाँ छोड़ कर जा रहे थे इसलिए मैं रो पड़ी| मुझे रोता हुआ देख बप्पा ने मेरे सर पर हाथ रखा और अपनी कड़क आवाज़ में बोले "रोवा नाहीं जात है........तू हियाँ आपन पढ़ाई करे खतिर आयो है..........पूर श्रद्धा से पढ़ाई करो!!!! जब तोहार स्कूल का छुट्टी होइ तब हम आबे अउर तोहका लेइ जाब|" बप्पा के कहे ये वो शब्द हैं जो आज उनके न रहने पर भी मुझे याद हैं..........स्वभाव से बप्पा बहुत सख्त थे पर उनका प्यार उनके सख्त शब्दों में ही छुपा होता था|
मेरे मौसा मौसी............मामा मामी बड़े अच्छे थे............ऊपर से दोनों घर आस पास थे ..............तो मैं कभी मौसी के घर रहती तो कभी मामा जी के घर| वहां मेरी दो बहने थीं.............एक मौसेरी बहन..........और एक ममेरी बहन| मेरी मौसेरी बहन मुझसे ४ साल बड़ी थी और मेरी ममेरी बहन मुझसे दो साल बड़ी थी| दोनों मेरा बहुत ध्यान रखती थीं और शाम को मुझे अम्बाला घुमाती थीं| मैंने अपनी दोनों बहनों से स्कूल के बारे में पूछना शुरू किया……. उन्होंने मुझे बताया की हमारा स्कूल एक सरकारी स्कूल है जो सुबह ७ बजे से १ बजे तक होता है..........उसके बाद १ से ६ लडकों का स्कूल होता है| स्कूल में मुझे एक ड्रेस पहननी होगी जो की मेरी ममेरी बहन की पुरानी ड्रेस थी.........उस ड्रेस को मामी जी ने सिल कर मेरे नाप का बना दिया था| फिर मुझे मिलीं मेरी ममेरी बहन की पुरानी किताबें............अपनी किताबें देख कर मैं बहुत खुश हुई| एक बच्चे के लिए उसकी पहली स्कूल ड्रेस..........उसकी किताबें कितना मायने रखती हैं ये ख़ुशी आप सभी जानते ही होंगें| आप सब खुश नसीब हैं की आपको नए कपड़े और नई और कोरी किताबें पढ़ने को मिलीं...................मेरे लिए तो मेरी बहन की पुरानी किताबें............उसकी पुरानी ड्रेस ही सब कुछ थी| मैं खुद को बहुत भायग्यशाली समझ रही थी की मुझे ये खुशियां मिलीं| मगर ये सारी खुशियां...........चिंता में जल्द ही बदल गईं............जब मेरा स्कूल का पहला दिन आया!
स्कूल का पहला दिन था इसलिए मैं नहा धो कर...........सर पर अच्छे से तेल चुपड़ कर..........बालों में रिबन बाँध कर............अपनी स्कूल ड्रेस पहन कर तैयार हो गई| तभी मेरी मौसी जी ने मुझे एक प्लास्टिक का बक्सा दिया और बोलीं की आधी छुट्टी में मुझे ये खाना है| अब हमारे गॉंव में स्कूल में आधी छुट्टी नहीं होती थी................बच्चे दोपहर १ बजे तक घर लौटते थे और खाना खाते थे| मुझे भी यही लगा था की मैं घर आ कर खाना खाउंगी..............पर जब मौसी ने मुझे ये प्लास्टिक बक्सा दिया तो मैं सोच में पड़ गई|
"मौसी.........हम गहरे आये के खाये लेब.........ई......." इसके आगे मैं कुछ बोलती उससे पहले ही मौसी बोलीं "नाहीं नाहीं मुन्नी!!! पढाई म मन लगाए खतिर पेट भरा हुए का चाहि! भूखे पेट पढ़ाई नाहीं होत है!" मौसी की बातें सुन कर मैं हैरान थी................ गॉंव में सुबह बच्चे कुल्ला कर चाय पीते थे...........फिर भूख लगी तो बासी खाते थे और फिर स्कूल जाते थे| दोपहर १ बजे सीधा खाना खाया जाता था..........पर यहाँ तो मौसी ने मुझे ताज़ा ताज़ा खाना बना कर डिब्बे में पैक कर के दिया था!!!! क्या शहर के माँ बाप अपने बच्चों को .............गाँव के माँ बाप से ज्यादा ज्यादा प्यार करते हैं?????
मैं मन ही मन इस सवाल का जवाब सोच रही थी की तभी मेरी मौसेरी बहन मुस्कुराते हुए बोली; "संगीता इसे डिब्बा नहीं लंच बॉक्स कहते हैं.........और स्कूल में सभी बच्चे घर से लंच बॉक्स ले कर आते हैं|" 'लंच....बॉक्स...' ये नाम मुझे भा गया था और मेरे चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई थी| अपना लंच बॉक्स ले कर मैं स्कूल के लिए जाने ही वाली थी की मेरी मौसी जी ने मुझे रोका..........मुझे लगा उन्हें कोई काम बताना होगा मगर मौसी ने गर्मागर्म परांठे की थाली उठा कर मुझे दी और बोलीं; " अरे खाली पेट स्कूल जैहो??? चलो पाहिले दोनों बहिन नास्ता खाओ|"
मुझे अम्बाला आये बस एक दिन हुआ था और मुझे मौसी के घर के नियम कानून के बारे में ज़रा भी नहीं पता था| मैंने आज पहलीबार सुबह इतना स्वाद नास्ता किया...............गरमा गर्म आलू के परांठे........साथ में आम का अचार!!!!! स्कूल जाने की इससे स्वादिष्ट शुरआत तो हो ही नहीं सकती थी!!!!
कुछ बचपन की यादें ताजा हो गई स्कूल में जाकर पढ़ने से ज्यादा स्कूल की नई ड्रेस और नई किताबो के मिलने कि खुशी होती थी किताबो को रखने के लिए भी कट्टे के थैले काम में लेते थे उस दौर में कपड़े कम ही मिलते थे जिनकी घर की हालत खराब थी उनको पुराने कपड़े ही मिलते थे
संगीता और जानकी हम उम्र है तो उनमें प्रतिद्वंदिता की भावना स्वभाविक हैं लेकिन बड़े होने पर जलन का होना कोई तो बड़ी बात है