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Non-Erotic नहीं हूँ मैं बेवफा!

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Sanju@

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भाग 4
जैसे तैसे अम्मा और बप्पा मान गए थे.............मगर जानकी इस बात से बहुत नाखुश थी!!!! मेरी अपनी सगी बहन..........मेरे स्कूल जाने के नाम से चिढ गई थी!!!!!



जानकी को पढ़ाई का ज़रा भी शौक नहीं था...........उसे तो बस दिन भर सोनी के साथ खेलना पसंद था| जब उसे पता चला की मैं पढ़ने स्कूल जा रही हूँ तो वो मुझसे उखड़ गई.................उस बुद्धू को लग रहा था की मेरे बाद उसे भी स्कूल भेजा जाएगा!!! इस बात को ले कर जानकी ने मुझसे बहुत झगड़ा किया की कैसे मेरे स्कूल जाने से उसे भी जबरदस्ती स्कूल भेजा जाएगा.................इतने अनजान बच्चों के साथ वो कैसे खुद को डालेगी इसकी चिंता कर के उसकी जान सूख रही थी!!!



उधर मैं भी बुद्धू थी जो उसे पढ़ाई का महत्व समझा रही थी............ जबकि असल बात कुछ और ही थी| मेरे अम्बाला जाने से अब सारा काम धाम अम्मा जानकी को कहतीं...........जिससे बेचारी सोनी के साथ खेल नहीं पाती| इसी बात का गुस्सा जानकी मुझ पर निकाल रही थी.............और मैं इस बात से अनजान उसे प्यार से समझा रही थी|



अम्मा को मेरा पढ़ने जाना बिलकुल रास नहीं आ रहा था...........तभी तो उन्होंने भी जानकी की तरह मुझे छोटी छोटी बातों पर झिड़कना शुरू कर दिया| अम्बाला जा कर मुझे खुद को कैसे संभालना है........अपनी मौसी को तंग नहीं करना है..........मामी मामा के घर भी जाना है.........आदि बातें डांट डांट कर सिखाई जा रही थीं| मैं सबकी डांट और झिड़कियां सुन रही थी तो बस इसलिए की कम से कम मुझे पढ़ने को तो मिल रहा है!!!!





आखिर वो दिन आ ही गया.............. जब मुझे अम्बाला जाना था| मैं सबसे पहले अपनी अम्मा के पास पहुंची और उनके पॉंव छू कर आशीर्वाद माँगा.................मगर मेरी अम्मा मुझे आशीर्वाद देने के बजाए मुझे हिदायतें देने लगीं की मुझे मौसी के पास कैसे रहना है| फिर मैं पहुंची चरण काका के पास.............उन्हीं के कारन तो मुझे पढ़ने को मिल रहा था| काका ने मेरे सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया और बोले "खूब मन लगाए के पढयो मुन्नी.............ख़ुशी ख़ुशी जाओ और जब छुट्टी होइ तब गहरे आयो|" माँ के मुक़ाबले चरण काका ने मुझे बड़े प्यार से आशीर्वाद दिया था...............जिस कारन मैं बहुत खुश थी|



फिर मैं पहुंची जानकी और सोनी के पास............जानकी मुझसे बहुत गुस्सा थी इसलिए बजाए मुझे कोई शुभेछा देने के...........वो तो मुझे गुस्से से घूरने लगी!!! "अम्मा बप्पा का ख्याल रखयो...........और तनिक भी मस्ती बाजी ना किहो नाहीं तो लडे जाबो!" एक बड़ी बहन होते हुए मैं तो बस अपनी छोटी बहन को थोड़ी हिम्मत दे रही थी..............मगर मेरी बात सुन जानकी मुँह टेढ़ा करते हुए बोली "हुंह!!!!!!"



मैं जानकी का गुस्सा जानती थी इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा और सोनी को आखरी बार गोदी लेने को हतः आगे बढ़ाये.............पर जानकी बहुत गुस्से में थी इसलिए उसने फट से सोनी को गोदी में उठा लिया और बोली "कउनो जर्रूरत नाहीं आपन प्यार दिखाए की..............अतना ही प्यार आवत रहा तो काहे जात हो??? तोहका आपन पढ़ाई बहुत भावत है...........जाए का आपन पढ़ाई करो!!!!" ये कहते हुए वो सोनी को गोदी में लिए हुए भुनभुनाते हुए अंदर चली गई|



अपनी छोटी बहन के इस तिरस्कार को ही उसका प्यार समझ मैं बप्पा के साथ अम्बाला आ गई| मेरी मौसी का घर और मां का घर आस पास था इसलिए सभी ने मेरा ध्यान रखने की जिम्मेदारी ली| जब बप्पा चलने को हुए तो मैं बहुत उदास हो गई थी..............आज पहलीबार मैं अपने घर से इतना दूर आई थी और मेरे बप्पा मुझे यहाँ छोड़ कर जा रहे थे इसलिए मैं रो पड़ी| मुझे रोता हुआ देख बप्पा ने मेरे सर पर हाथ रखा और अपनी कड़क आवाज़ में बोले "रोवा नाहीं जात है........तू हियाँ आपन पढ़ाई करे खतिर आयो है..........पूर श्रद्धा से पढ़ाई करो!!!! जब तोहार स्कूल का छुट्टी होइ तब हम आबे अउर तोहका लेइ जाब|" बप्पा के कहे ये वो शब्द हैं जो आज उनके न रहने पर भी मुझे याद हैं..........स्वभाव से बप्पा बहुत सख्त थे पर उनका प्यार उनके सख्त शब्दों में ही छुपा होता था|





मेरे मौसा मौसी............मामा मामी बड़े अच्छे थे............ऊपर से दोनों घर आस पास थे ..............तो मैं कभी मौसी के घर रहती तो कभी मामा जी के घर| वहां मेरी दो बहने थीं.............एक मौसेरी बहन..........और एक ममेरी बहन| मेरी मौसेरी बहन मुझसे ४ साल बड़ी थी और मेरी ममेरी बहन मुझसे दो साल बड़ी थी| दोनों मेरा बहुत ध्यान रखती थीं और शाम को मुझे अम्बाला घुमाती थीं| मैंने अपनी दोनों बहनों से स्कूल के बारे में पूछना शुरू किया……. उन्होंने मुझे बताया की हमारा स्कूल एक सरकारी स्कूल है जो सुबह ७ बजे से १ बजे तक होता है..........उसके बाद १ से ६ लडकों का स्कूल होता है| स्कूल में मुझे एक ड्रेस पहननी होगी जो की मेरी ममेरी बहन की पुरानी ड्रेस थी.........उस ड्रेस को मामी जी ने सिल कर मेरे नाप का बना दिया था| फिर मुझे मिलीं मेरी ममेरी बहन की पुरानी किताबें............अपनी किताबें देख कर मैं बहुत खुश हुई| एक बच्चे के लिए उसकी पहली स्कूल ड्रेस..........उसकी किताबें कितना मायने रखती हैं ये ख़ुशी आप सभी जानते ही होंगें| आप सब खुश नसीब हैं की आपको नए कपड़े और नई और कोरी किताबें पढ़ने को मिलीं...................मेरे लिए तो मेरी बहन की पुरानी किताबें............उसकी पुरानी ड्रेस ही सब कुछ थी| मैं खुद को बहुत भायग्यशाली समझ रही थी की मुझे ये खुशियां मिलीं| मगर ये सारी खुशियां...........चिंता में जल्द ही बदल गईं............जब मेरा स्कूल का पहला दिन आया!





स्कूल का पहला दिन था इसलिए मैं नहा धो कर...........सर पर अच्छे से तेल चुपड़ कर..........बालों में रिबन बाँध कर............अपनी स्कूल ड्रेस पहन कर तैयार हो गई| तभी मेरी मौसी जी ने मुझे एक प्लास्टिक का बक्सा दिया और बोलीं की आधी छुट्टी में मुझे ये खाना है| अब हमारे गॉंव में स्कूल में आधी छुट्टी नहीं होती थी................बच्चे दोपहर १ बजे तक घर लौटते थे और खाना खाते थे| मुझे भी यही लगा था की मैं घर आ कर खाना खाउंगी..............पर जब मौसी ने मुझे ये प्लास्टिक बक्सा दिया तो मैं सोच में पड़ गई|



"मौसी.........हम गहरे आये के खाये लेब.........ई......." इसके आगे मैं कुछ बोलती उससे पहले ही मौसी बोलीं "नाहीं नाहीं मुन्नी!!! पढाई म मन लगाए खतिर पेट भरा हुए का चाहि! भूखे पेट पढ़ाई नाहीं होत है!" मौसी की बातें सुन कर मैं हैरान थी................ गॉंव में सुबह बच्चे कुल्ला कर चाय पीते थे...........फिर भूख लगी तो बासी खाते थे और फिर स्कूल जाते थे| दोपहर १ बजे सीधा खाना खाया जाता था..........पर यहाँ तो मौसी ने मुझे ताज़ा ताज़ा खाना बना कर डिब्बे में पैक कर के दिया था!!!! क्या शहर के माँ बाप अपने बच्चों को .............गाँव के माँ बाप से ज्यादा ज्यादा प्यार करते हैं?????



मैं मन ही मन इस सवाल का जवाब सोच रही थी की तभी मेरी मौसेरी बहन मुस्कुराते हुए बोली; "संगीता इसे डिब्बा नहीं लंच बॉक्स कहते हैं.........और स्कूल में सभी बच्चे घर से लंच बॉक्स ले कर आते हैं|" 'लंच....बॉक्स...' ये नाम मुझे भा गया था और मेरे चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई थी| अपना लंच बॉक्स ले कर मैं स्कूल के लिए जाने ही वाली थी की मेरी मौसी जी ने मुझे रोका..........मुझे लगा उन्हें कोई काम बताना होगा मगर मौसी ने गर्मागर्म परांठे की थाली उठा कर मुझे दी और बोलीं; " अरे खाली पेट स्कूल जैहो??? चलो पाहिले दोनों बहिन नास्ता खाओ|"



मुझे अम्बाला आये बस एक दिन हुआ था और मुझे मौसी के घर के नियम कानून के बारे में ज़रा भी नहीं पता था| मैंने आज पहलीबार सुबह इतना स्वाद नास्ता किया...............गरमा गर्म आलू के परांठे........साथ में आम का अचार!!!!! स्कूल जाने की इससे स्वादिष्ट शुरआत तो हो ही नहीं सकती थी!!!!
बहुत ही सुन्दर लाजवाब और रमणीय अपडेट है
कुछ बचपन की यादें ताजा हो गई स्कूल में जाकर पढ़ने से ज्यादा स्कूल की नई ड्रेस और नई किताबो के मिलने कि खुशी होती थी किताबो को रखने के लिए भी कट्टे के थैले काम में लेते थे उस दौर में कपड़े कम ही मिलते थे जिनकी घर की हालत खराब थी उनको पुराने कपड़े ही मिलते थे
संगीता और जानकी हम उम्र है तो उनमें प्रतिद्वंदिता की भावना स्वभाविक हैं लेकिन बड़े होने पर जलन का होना कोई तो बड़ी बात है
 
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दिल छू लेने वाली सच्चाई बचपन की...
आसमान छूने को हवाई जहाज ना सही
पैर के पंजों पर खड़े होकर भी कुछ हासिल होने की खुशी जरूर होती है

लेकिन एक सच्चाई बड़ों के साथ बच्चों पर भी लागू होती है...
अभाव हमें हर खुशी को जीना सिखाते हैं, creative बनाते हैं
और उपलब्धता demanding and choosy
बचपन होता ही है इतना प्यारा की सब कुछ अपना लगता है.............सब पर हमारा मालिकाना हक़ होता है.........जब बड़े होते हैं तो वास्तविकता हमें सब सीखा देती है!!!!
 
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बहुत ही सुन्दर लाजवाब और रमणीय अपडेट है
कुछ बचपन की यादें ताजा हो गई स्कूल में जाकर पढ़ने से ज्यादा स्कूल की नई ड्रेस और नई किताबो के मिलने कि खुशी होती थी किताबो को रखने के लिए भी कट्टे के थैले काम में लेते थे उस दौर में कपड़े कम ही मिलते थे जिनकी घर की हालत खराब थी उनको पुराने कपड़े ही मिलते थे
संगीता और जानकी हम उम्र है तो उनमें प्रतिद्वंदिता की भावना स्वभाविक हैं लेकिन बड़े होने पर जलन का होना कोई तो बड़ी बात है
सबसे पहले तो आपके रिव्यु के लिए शुक्रिया............अच्छा याद दिलाया आपने................मैं आपको अपने स्कूल के बैग में बताउंगी.............अगली अपडेट में.................ख़ुशी हुई ये जान कर की आपको स्कूल में नए कपड़े और नई किताबें मिलती थीं............ kamdev99008 king cobra SANJU ( V. R. ) और मुझे तो पुरानी कताबें और ड्रेस मिले थे!!!!
 

king cobra

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सबसे पहले तो आपके रिव्यु के लिए शुक्रिया............अच्छा याद दिलाया आपने................मैं आपको अपने स्कूल के बैग में बताउंगी.............अगली अपडेट में.................ख़ुशी हुई ये जान कर की आपको स्कूल में नए कपड़े और नई किताबें मिलती थीं............ kamdev99008 king cobra SANJU ( V. R. ) और मुझे तो पुरानी कताबें और ड्रेस मिले थे!!!!
yahan meko aap lucky samjho nayi kitaben suru se mili lekin jo bhi ho sabka bachpan khas hota koi tulna nai aapne jo paya condition ke hisaab se sab heera moti se kam na tha
 

Sanju@

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सबसे पहले तो आपके रिव्यु के लिए शुक्रिया............अच्छा याद दिलाया आपने................मैं आपको अपने स्कूल के बैग में बताउंगी.............अगली अपडेट में.................ख़ुशी हुई ये जान कर की आपको स्कूल में नए कपड़े और नई किताबें मिलती थीं............ kamdev99008 king cobra SANJU ( V. R. ) और मुझे तो पुरानी कताबें और ड्रेस मिले थे!!!!
Lekin Jo bhi Mila wah apne hisab se best se bhi best tha bachpan me jo Khushi mili uske liye Naya purana mayne nahi rakhta hai rakhta hai jo hame chahiye wo mil raha hai ya nahi
 

king cobra

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Lekin Jo bhi Mila wah apne hisab se best se bhi best tha bachpan me jo Khushi mili uske liye Naya purana mayne nahi rakhta hai rakhta hai jo hame chahiye wo mil raha hai ya nahi
wo umar hi aisi hoti hai bhai jara si khusi bahut hoti hai tab ek rupya milne par inna khusi hoti thi jisko aaj ke time 10 rupya samjh lo kyuki samosa tab aur ab me bas yahi hai ki tab 1 rupya ka tha abhi 10 rupya ka hai to tab usme bhi khus ho jate the ab sasur lakh lime tab bhi dil uddas rahta hai kyunki ab man bada ho gaya jarurten badh gayi ab hum apne sath apne family ka bhi sonchte hai aur bachpan me agar koi chota bhai bahen hai kuch dena hai to 10 rupya bahut jada ho gaya usme tamaam tafi goli mil jayegi khatti mithi wali sabko bant kar khus hoi jao :vhappy:
 

king cobra

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किसे पुछूँ ? है ऐसा क्यों ?
बेजुबान सा ये जहां है

ख़ुशी के पल, कहाँ ढूढूं ?
बेनिशाँ सा वक़्त भी यहां है

जाने कितने लबों पे गीले हैं
ज़िन्दगी से कई फासले हैं

पसीजते हैं सपने क्यों आँखों में
लकीरें जब छूते इन हाथों से यूँ बेवजह

जो भेजी थी दुआ
वो जाके आसमां से यूँ टकरा गयी
की आ गयी है लौट के सदा

जो भेजी थी दुआ
वो जाके आसमां से यूँ टकरा गयी
की आ गयी है लौट के सदा
 

Rekha rani

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बहुत प्यारा रिव्यु रेखा रानी जी...........आपने सही कहा है की नारी के जीवन में एक न एक बार परीक्षा होती ही है.............जब उसे अपने पति और संतान के बीच चुनना पड़ता है| पर मैं आपकी एक बात से सहमत नहीं..............क्या हमेशा एक नारी को अपने पति को चुनना चाहिए?????? भले ही वो गलत हो और उसका बेटा सही???? मेरी दूसरी माँ.............यानी हमारे लेखक जी की माता जी ने अपने पति के बजाए अपने बेटे का साथ दिया..........क्योंकि वो जानती थीं की उनका बेटा सही है और पति गलत| क्या यह चुनाव गलत था??? क्या माँ को अपने पति को चुनना चाहिए था???? और अपने बेटे को अकेला छोड़ देना चाहिए था??? आपके जवाब की प्रतीक्षा में!!!!!!!!!!
Sangeeta ji, aapki dono ma ke vicharo me rat aur din ka antar hai, aur unke beto me bhi, aapki dusri ma samaj se khilaf phle bhi ja chuki thi jab unhone shadi ki thi, aur aapki phli ma ek dehat ki greeb privar se sambandhit hai, jinke liye pati parmeshwar hota hai kisi bhi halat me,
Dusre aapke bade bhai sahab ne apne pita pr hath uthaya tha, jabki manu sir ne bina galati ke bhi apne pita se bahut kuchh suna aur saha hai, to ek ma ne apne bete ki sachayi achhai aur bholapan ko dekh kr use akela chhodna sahi nhi samjha aur uska sath diya, dusra dono situation me bahut antar hai aapke bhaisahab aur aapke pita me jhagda hua tha, wahi dusri aur manu ji ke pita ne apne bade bhai sahab ke aham ke liye apne bete ko chhoda tha,
In sb bato ko bhul bhi jaye to kitni mahilayen apne pati ke khilaf ja pati thi us samay , halat jo bhi ho unko pati ke sath hi rhna padta tha,
Bura mat maniyega ,Sabse bada udaharan to aap khud hai, aapne kha apne pati ko chhoda hai, samaj ke dar se aaj bhi chandar ki ptni bni huyi hai, manu sir ke payar se bhula kr,
 

Rekha rani

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भाग 4
जैसे तैसे अम्मा और बप्पा मान गए थे.............मगर जानकी इस बात से बहुत नाखुश थी!!!! मेरी अपनी सगी बहन..........मेरे स्कूल जाने के नाम से चिढ गई थी!!!!!



जानकी को पढ़ाई का ज़रा भी शौक नहीं था...........उसे तो बस दिन भर सोनी के साथ खेलना पसंद था| जब उसे पता चला की मैं पढ़ने स्कूल जा रही हूँ तो वो मुझसे उखड़ गई.................उस बुद्धू को लग रहा था की मेरे बाद उसे भी स्कूल भेजा जाएगा!!! इस बात को ले कर जानकी ने मुझसे बहुत झगड़ा किया की कैसे मेरे स्कूल जाने से उसे भी जबरदस्ती स्कूल भेजा जाएगा.................इतने अनजान बच्चों के साथ वो कैसे खुद को डालेगी इसकी चिंता कर के उसकी जान सूख रही थी!!!



उधर मैं भी बुद्धू थी जो उसे पढ़ाई का महत्व समझा रही थी............ जबकि असल बात कुछ और ही थी| मेरे अम्बाला जाने से अब सारा काम धाम अम्मा जानकी को कहतीं...........जिससे बेचारी सोनी के साथ खेल नहीं पाती| इसी बात का गुस्सा जानकी मुझ पर निकाल रही थी.............और मैं इस बात से अनजान उसे प्यार से समझा रही थी|



अम्मा को मेरा पढ़ने जाना बिलकुल रास नहीं आ रहा था...........तभी तो उन्होंने भी जानकी की तरह मुझे छोटी छोटी बातों पर झिड़कना शुरू कर दिया| अम्बाला जा कर मुझे खुद को कैसे संभालना है........अपनी मौसी को तंग नहीं करना है..........मामी मामा के घर भी जाना है.........आदि बातें डांट डांट कर सिखाई जा रही थीं| मैं सबकी डांट और झिड़कियां सुन रही थी तो बस इसलिए की कम से कम मुझे पढ़ने को तो मिल रहा है!!!!





आखिर वो दिन आ ही गया.............. जब मुझे अम्बाला जाना था| मैं सबसे पहले अपनी अम्मा के पास पहुंची और उनके पॉंव छू कर आशीर्वाद माँगा.................मगर मेरी अम्मा मुझे आशीर्वाद देने के बजाए मुझे हिदायतें देने लगीं की मुझे मौसी के पास कैसे रहना है| फिर मैं पहुंची चरण काका के पास.............उन्हीं के कारन तो मुझे पढ़ने को मिल रहा था| काका ने मेरे सर पर हाथ रख आशीर्वाद दिया और बोले "खूब मन लगाए के पढयो मुन्नी.............ख़ुशी ख़ुशी जाओ और जब छुट्टी होइ तब गहरे आयो|" माँ के मुक़ाबले चरण काका ने मुझे बड़े प्यार से आशीर्वाद दिया था...............जिस कारन मैं बहुत खुश थी|



फिर मैं पहुंची जानकी और सोनी के पास............जानकी मुझसे बहुत गुस्सा थी इसलिए बजाए मुझे कोई शुभेछा देने के...........वो तो मुझे गुस्से से घूरने लगी!!! "अम्मा बप्पा का ख्याल रखयो...........और तनिक भी मस्ती बाजी ना किहो नाहीं तो लडे जाबो!" एक बड़ी बहन होते हुए मैं तो बस अपनी छोटी बहन को थोड़ी हिम्मत दे रही थी..............मगर मेरी बात सुन जानकी मुँह टेढ़ा करते हुए बोली "हुंह!!!!!!"



मैं जानकी का गुस्सा जानती थी इसलिए मैंने कुछ नहीं कहा और सोनी को आखरी बार गोदी लेने को हतः आगे बढ़ाये.............पर जानकी बहुत गुस्से में थी इसलिए उसने फट से सोनी को गोदी में उठा लिया और बोली "कउनो जर्रूरत नाहीं आपन प्यार दिखाए की..............अतना ही प्यार आवत रहा तो काहे जात हो??? तोहका आपन पढ़ाई बहुत भावत है...........जाए का आपन पढ़ाई करो!!!!" ये कहते हुए वो सोनी को गोदी में लिए हुए भुनभुनाते हुए अंदर चली गई|



अपनी छोटी बहन के इस तिरस्कार को ही उसका प्यार समझ मैं बप्पा के साथ अम्बाला आ गई| मेरी मौसी का घर और मां का घर आस पास था इसलिए सभी ने मेरा ध्यान रखने की जिम्मेदारी ली| जब बप्पा चलने को हुए तो मैं बहुत उदास हो गई थी..............आज पहलीबार मैं अपने घर से इतना दूर आई थी और मेरे बप्पा मुझे यहाँ छोड़ कर जा रहे थे इसलिए मैं रो पड़ी| मुझे रोता हुआ देख बप्पा ने मेरे सर पर हाथ रखा और अपनी कड़क आवाज़ में बोले "रोवा नाहीं जात है........तू हियाँ आपन पढ़ाई करे खतिर आयो है..........पूर श्रद्धा से पढ़ाई करो!!!! जब तोहार स्कूल का छुट्टी होइ तब हम आबे अउर तोहका लेइ जाब|" बप्पा के कहे ये वो शब्द हैं जो आज उनके न रहने पर भी मुझे याद हैं..........स्वभाव से बप्पा बहुत सख्त थे पर उनका प्यार उनके सख्त शब्दों में ही छुपा होता था|





मेरे मौसा मौसी............मामा मामी बड़े अच्छे थे............ऊपर से दोनों घर आस पास थे ..............तो मैं कभी मौसी के घर रहती तो कभी मामा जी के घर| वहां मेरी दो बहने थीं.............एक मौसेरी बहन..........और एक ममेरी बहन| मेरी मौसेरी बहन मुझसे ४ साल बड़ी थी और मेरी ममेरी बहन मुझसे दो साल बड़ी थी| दोनों मेरा बहुत ध्यान रखती थीं और शाम को मुझे अम्बाला घुमाती थीं| मैंने अपनी दोनों बहनों से स्कूल के बारे में पूछना शुरू किया……. उन्होंने मुझे बताया की हमारा स्कूल एक सरकारी स्कूल है जो सुबह ७ बजे से १ बजे तक होता है..........उसके बाद १ से ६ लडकों का स्कूल होता है| स्कूल में मुझे एक ड्रेस पहननी होगी जो की मेरी ममेरी बहन की पुरानी ड्रेस थी.........उस ड्रेस को मामी जी ने सिल कर मेरे नाप का बना दिया था| फिर मुझे मिलीं मेरी ममेरी बहन की पुरानी किताबें............अपनी किताबें देख कर मैं बहुत खुश हुई| एक बच्चे के लिए उसकी पहली स्कूल ड्रेस..........उसकी किताबें कितना मायने रखती हैं ये ख़ुशी आप सभी जानते ही होंगें| आप सब खुश नसीब हैं की आपको नए कपड़े और नई और कोरी किताबें पढ़ने को मिलीं...................मेरे लिए तो मेरी बहन की पुरानी किताबें............उसकी पुरानी ड्रेस ही सब कुछ थी| मैं खुद को बहुत भायग्यशाली समझ रही थी की मुझे ये खुशियां मिलीं| मगर ये सारी खुशियां...........चिंता में जल्द ही बदल गईं............जब मेरा स्कूल का पहला दिन आया!





स्कूल का पहला दिन था इसलिए मैं नहा धो कर...........सर पर अच्छे से तेल चुपड़ कर..........बालों में रिबन बाँध कर............अपनी स्कूल ड्रेस पहन कर तैयार हो गई| तभी मेरी मौसी जी ने मुझे एक प्लास्टिक का बक्सा दिया और बोलीं की आधी छुट्टी में मुझे ये खाना है| अब हमारे गॉंव में स्कूल में आधी छुट्टी नहीं होती थी................बच्चे दोपहर १ बजे तक घर लौटते थे और खाना खाते थे| मुझे भी यही लगा था की मैं घर आ कर खाना खाउंगी..............पर जब मौसी ने मुझे ये प्लास्टिक बक्सा दिया तो मैं सोच में पड़ गई|



"मौसी.........हम गहरे आये के खाये लेब.........ई......." इसके आगे मैं कुछ बोलती उससे पहले ही मौसी बोलीं "नाहीं नाहीं मुन्नी!!! पढाई म मन लगाए खतिर पेट भरा हुए का चाहि! भूखे पेट पढ़ाई नाहीं होत है!" मौसी की बातें सुन कर मैं हैरान थी................ गॉंव में सुबह बच्चे कुल्ला कर चाय पीते थे...........फिर भूख लगी तो बासी खाते थे और फिर स्कूल जाते थे| दोपहर १ बजे सीधा खाना खाया जाता था..........पर यहाँ तो मौसी ने मुझे ताज़ा ताज़ा खाना बना कर डिब्बे में पैक कर के दिया था!!!! क्या शहर के माँ बाप अपने बच्चों को .............गाँव के माँ बाप से ज्यादा ज्यादा प्यार करते हैं?????



मैं मन ही मन इस सवाल का जवाब सोच रही थी की तभी मेरी मौसेरी बहन मुस्कुराते हुए बोली; "संगीता इसे डिब्बा नहीं लंच बॉक्स कहते हैं.........और स्कूल में सभी बच्चे घर से लंच बॉक्स ले कर आते हैं|" 'लंच....बॉक्स...' ये नाम मुझे भा गया था और मेरे चेहरे पर बड़ी सी मुस्कान आ गई थी| अपना लंच बॉक्स ले कर मैं स्कूल के लिए जाने ही वाली थी की मेरी मौसी जी ने मुझे रोका..........मुझे लगा उन्हें कोई काम बताना होगा मगर मौसी ने गर्मागर्म परांठे की थाली उठा कर मुझे दी और बोलीं; " अरे खाली पेट स्कूल जैहो??? चलो पाहिले दोनों बहिन नास्ता खाओ|"



मुझे अम्बाला आये बस एक दिन हुआ था और मुझे मौसी के घर के नियम कानून के बारे में ज़रा भी नहीं पता था| मैंने आज पहलीबार सुबह इतना स्वाद नास्ता किया...............गरमा गर्म आलू के परांठे........साथ में आम का अचार!!!!! स्कूल जाने की इससे स्वादिष्ट शुरआत तो हो ही नहीं सकती थी!!!!
अति सुंदर अपडेट,
बहुत सुंदर तरीके से आपने पूरे परिवार के मनोभाव को दर्शाया है और खुद के भाव भी,
आपकी मा पहली बार आपको अपने से दूर भेज रही थी उनकी हिदायतें उस समय आपको बाल पन में सख्त लगी होगी लेकिन आज खुद मा बनने पर समझ आयी होगी।
जो आपने moshi के घर पुरानी ड्रेस और किताबो का जिक्र किया है ये आम चलन था गरीब परिवारों में बड़ो की ड्रेस और किताबे छोटो के काम ही आती थी, बड़ो को सख्त चेतावनी दी जाती थी कि किताबे फाडे न , अगले साल छोटो के काम आएगी।
अगर घर मे बड़े नही होते तो आसपड़ोस से कम मूल्य पर पुरानी किताबे ली जाती थी।
मैंने खुद अपनी बहन और पड़ोस की दीदी की पुरानी किताबो से पढ़ाई की है, कपड़े दीदी के पहने है,
 
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