Part 2
उस दिन से ही फिर चालू हो गया मेरा दीपक के घर ज़ाना
कोई ना कोई बहाना करके मैं वहां पंहुंच जाता था रोज़ाना
माई फ्रेंड्स हॉट मॉम मूवी लैपटॉप पर रात को रोज़ चलता
रेखा आंटी को सोच अपने ख्यालो में लंड को रोज़ हिलाता

ना देखु रेखा आंटी तो बढे बेचैनी और देखु तो आये सुकुन
अपने ही दोस्त के माँ के लिए मेरा ऐसा बढ़ता गया जुनून
आंखें मेरी ढूंढे रेखा आंटी को जब भी दीपक के घर जाता
चूत तो लेकर रहूँगा आंटी की जल्दी दिल को मैं समझाता

आंटी जब ऑफिस से वापस आती तो चुपके से मुझे निहारे
दीपक से नज़र बचा के अक्सर टकरा जाते थे नयन हमारे
बेफिक्री में मैंने देखा था आंटी को साड़ी का पल्लू सरकाते
उन उन्नत सुडोल चुचिओ का जी भर मुझको दीदार कराते

कई बार जब शाम वो किचन में जाती बनाने रात का खाना
मैं भी जाकर उनके पास खड़ा हो जाता कर के कोई बहाना
चुचो की घाटी में जो घुस जाता माथे से बहता हुआ पसीना
अपने होठों से चाट लू उस को मन करता था मेरा कमीना

कपडे सुखने जब वो जाती छत पर रहती थी उन पर आँख
लो कट चोली से झलकते मम्मे और बिन बालो की कांख
रहस्मयी नज़रों से देखने लगी थी आंटी मैंने किया था गौर
शायद रेखा आंटी ने मानो भाप लिया था मेरे मन का चोर

एक बार रेखा आंटी को कंप्यूटर पर कुछ मैं लगा सिखाने
लिखतेलिखते अपनी कोहनी से मैं उनकी चुची लगा दबाने
समझ गई मेरी शरारत उस दिन आंटी और मंद मंद मुस्काई
गिरा के अपनी साड़ी का पल्लू चूचो की घाटी मुझे दिखाई
ज़्यादा वक़्त लगे ना शायद अब उस को लाइन पे लाइन पे
उनको भीअब शायद मजा लगा था आने ऐसे मुझे सताने में
एक दिन पूछ लिया आंटी ने क्यों आगे पीछे फिरते हो मेरे
सचसच मुझे बता दो विक्रम जो भी चल रहा दिमाग में तेरे
उस दिन मुझको ऐसा लगा मेरे सपनों का महल लगा ढहने
फिर करके मज़बूत इरादा दिल मैं लगाआंटी को सब कहने
काली झुलफ़े नयन शराबी और आपकी कंचन सी काया
सुध बुध अपनी खो दी है मिल केआपसे अपना चैन गवाया

ये तुम क्या सब बोल रहे हो कितनी घटिया है सोच तुम्हारी
मेरा जिस्म पाने को ही क्या तुमने मेरे बेटे से की थी यारी
आप से मिलने से पहले भी आंटी मैं और दीपक थे यार
लेकिन जब से देखा मैंने आपको आपसे कर बैठा हूं प्यार

सच कहूँ रह कर दुर अब आपसे आंटी अब मेरा नहीं गुजारा
बस एक बार जोआप ना कह दो मैं आऊंगा ना यहां दोबारा
ये सब कुछ मुमकिन नहीं है विक्रम मैं हूं तेरे दोस्त की माता
हम दोनों के बीच में कोई ऐसा रिश्तामुझे समझ नहीं आता
मेरी आँखों में देख कर बोलो रेखा आंटी थाम के मेरा हाथ
अपनेजीवन में क्या नहीं चाहिए आपकोकिसी मर्द का साथ
दूध का जला इंसान छास भी पीने लगता है मार के फूँक
डर लगताहै फिर किसी को चुनने में मुझसे हो ना जाए चुक
गलती नहीं थी आपकी कोई अब सोचो ना इससे ज्यादा
खुशिया भर दूंगा जीवन मैं आपकी बस इतना है मेरा वादा
पकड़ आंटी को कंधे से मैंने अपने चेहरे की और को मोड़ा
और उनके लाल सुर्ख गुलाबी होठों सेअपने होठों को जोड़ा

पहले तो वो चुप खामोश खड़ी रही फिर लगी वो देने साथ
मौका देख मैंने भी उसके दोनों चूचो पे रख दिये अपने हाथ
कहीं सही ग़लत के चक्कर में पढ़ वो बदले ना अपनी सोच
हाथ घुसा कर पैंटी में आंटी की मैंने फुद्दी को लिया दाबोच

मुझे पता था आंटी का डर और शर्म मिट गई जो एक बार
फ़िर अपने हाथों से पकड़ कर डालेगी चूत में मेरा औज़ार
तेरे साथ पाकरमेरे जीवन का कोरा कागज रंगीन हो रहा है
तुझे नहीं लगता ये इश्क का अपराध बहुत संगीन हो रहा है
रेखा बेश्क इश्क हो रहा है आपसे अब क्या ही किया जाए
तुम्ही बताओ रेखा रोक ले अब खुद को या होने दिया जाए
मेरे चेहरे को थाम के रेखा आंटी ने तब मेरी आँखों में देखा
पहले तो थी मैं तेरी रेखा आंटी थी अब आंटी से सीधी रेखा