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Fir bhi koi yad nahi karta un kahaniyo koBilkul Bhai
Waise Bhi Aapki Jyadatar Story Ek Na Ek Ishq ki unique dastan hi hoti hai
Fir bhi koi yad nahi karta un kahaniyo koBilkul Bhai
Waise Bhi Aapki Jyadatar Story Ek Na Ek Ishq ki unique dastan hi hoti hai
ये आप गलत कह रहे हैं भाई हम सबके दिलों में बसी हैं वो कहानियां ऐसे जैसे खुद जिया हो उनकोFir bhi koi yad nahi karta un kahaniyo ko
मंजू तो बचपन से ही जवानी तक साथ रही हैं.... लग रहा हैं बहुत कबड्डी खेलीं है दोनों ने साथ में.........#9
“क्या तुम सचमुच हो कबीर या फिर मेरा भरम है ” उसने कहा
मैं- भरम ही रहे तो ठीक है न
अगले ही पल उसने मुझे सीने से लगा लिया .
“कहाँ चला गया था तू , एक पल भी नहीं सोचा की पीछे क्या छोड़ आया तू ” बोली वो .
मैं- सब कुछ यही रह गया मंजू, ना इधर का मोह छूट सका न जिन्दगी आगे बढ़ सकी. मालूम हुआ की बहन की शादी है तो रोक न सका खुद को .
मंजू- तू आज भी नहीं बदला कबीर, अरे अब तो अपने परायो का फर्क करना सीख ले.
मैं- बहन है छोटी,
मंजू- बहन,कितने बरस बीत गए कबीर, हम जैसो ने भी किसी होली दिवाली तुझे याद किया होगा पर उन लोगो ने नहीं. मेरी बात कडवी बहुत लगेगी तुझे कबीर पर तेरे जाने का फर्क पड़ा नहीं उनको .
मैं- जानता हु मंजू , छोड़ उनकी बाते. अपनी बता . खूबसूरत हो गयी रे तू तो.
मंजू- क्या ख़ाक खूबसूरत हो गयी . कितनी तो मोटी हो गयी हूँ
हम दोनों ही हंस पड़े.
मैं- वैसे इधर किधर भटक रही थी .
मंजू- सरकारी नौकरी लग गयी है , आजकल मास्टरनी हो गयी हूँ पडोसी गाँव के स्कूल में ड्यूटी है तो बस उधर से ही आ रही थी.
मैं-और सुना तेरे पति के क्या हाल चाल है .
मंजू- छोड़ दिया उसे मैंने कबीर,
मैं- ये तो गलत किया
मंजू- क्या करती कबीर , साले ने जीना ही हराम किया हुआ था . जब देखो शक ही शक करता था . घूँघट नहीं किया तो उसको दिक्कत. छत पर खड़ी हो गयी तो शक, एक दिन फिर मैंने फैसला ले लिया. माँ-बाप को दिक्कत हुई कुछ दिन रही उनके साथ तो भाई-भाभी बहनचोदो को परेशानी होने लगी . पर फिर किस्मत ने साथ दिया और नौकरी मिल गयी अभी ठीक है सब
मैंने मंजू के सर को सहलाया.
मंजू- चल घर चलते है बहुत बाते करनी है तुझसे
मैं- तू चल मैं आता हूँ इसी बहाने तेरे माँ-बाप से भी मिल लूँगा.
मंजू- उनसे मिलना है तो उनके घर जाना, मैं अलग रहती हूँ उनसे.
मैं- क्या यार तू भी
मंजू- नयी बस्ती में घर बना लिया है मैंने
मैं- भाई भाभी के घर की तरफ
मंजू- हाँ , उधर ही
मैं- कैसी है भाभी
मंजू- जी रही है . तुझे बहुत याद करती है वो . एक बार मिल ले
मैं- अभी नहीं , थोड़ी देर अपनी जमीन को निहार लेने दे फिर आता हूँ.
मंजू- मैं भी रूकती हूँ तेरे साथ ही ,
मैं मुस्कुरा दिया .
मंजू मेरे बचपन की साथी, साथ ही पले बढे साथ ही पढाई की . बहुत बाते उसकी सुनी बहुत सुनाई.
“याद है तुझे ऐसे ही मेरे काँधे पर सर रख कर बैठा करता था तू ” बोली वो
मैं- क्या दिन थे यार वो. न कोई फिकर ना किसी से लेना देना बस अपनी मस्ती में मस्त.
मंजू- इतने दिन तू लापता रहा तुझे याद नहीं आई किसी की भी .
मैं- तुझे तो मालूम ही है क्या हालात थे उस वक्त. कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है. घर को ना जाने किसकी नजर लगी. माँ-बाप का मरना आसान नहीं होता जवान बेटे के लिए. और फिर परिवार का रंग तो देख ही लिया.
मंजू- पर घर नहीं छोड़ना था कबीर
मैं- कौन जाना चाहता था इस जन्नत को छोड़ कर मंजू, पर जाना पड़ा अगर नहीं जाता तो तू भी लाश ही देखती मेरी.
मंजू ने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- ऐसा मत बोल कबीर.
मैं- तुझे बताऊंगा की मेरे साथ क्या हुआ था सही वक्त आने दे.
चबूतरे पर बैठे मैंने मंजू के हाथ को अपने हाथ में ले लिया. आसमान से हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी थी.
मंजू- अबका सा सावन बहुत सालो बाद आया है
मैं- हम भी तो बहुत सालो बाद मिले है
मंजू- मिलने से याद आया निशा कैसी है . मिली क्या तुझे .
मैं- ठीक ही होगी , मालूम हुआ की बड़ी अफसर हो गयी है पुलिस में
मंजू- पता है मुझे नौकरी लगते ही सबसे पहले वो शिवाले ही आई थी . पर तू ना मिला. फिर शायद वो भी अपनी जिन्दगी में रम गयी अरसा हो गया उसे मिले हुए.
मैं- ठीक ही तो हैं न , उसे भी उसके हिस्से की ख़ुशी मिलनी ही चाहिए. ये बता मुझे मालूम हुआ की चाचा बहुत बड़ा बन गया है.
मंजू- ऐसा ही है .
बारिश रफ़्तार बढाने लगी थी. आस्मां काले बादलो से ढक सा गया था .
मंजू- जोर का में बरसेगा, चलना चाहिए.
मैं-तुझे ठीक लगे तो हवेली चल मेरे साथ
मंजू- ये भी कोई कहने की बात है पर अभी नहीं, फिलहाल तू मेरे घर चलेगा. बहुत दिन बीते साथ खाना खाए हुए. फिर तू जहाँ कहेगा चलूंगी.
मैं- आलू के परांठे बनाएगी न .
मंजू- तू चल तो सही यार.
फूलो के डिजाइन वाली साडी में मंजू बड़ी ही गंडास लग रही थी वजन बढ़ा लिया था उसने. ऊपर से ये में. भीगते हुए हम लोग उसके घर तक आये. भीगी जुल्फों को झटकते हुए मंजू ताला खोलने को झुकी तो उसकी गांड पर दिल ठहर सा गया.
“अन्दर आजा ” बोली वो.
मैं- तू चल मैं आया.
मैंने गली में देखते हुए कहा
मंजू- थोडा दूर है उनका घर ऐसे नहीं दिखेगा.
मैं अन्दर चल दिया. दो कमरों का घर था मंजू का एक रसोई.
मैं- अच्छा सजाया है
मंजू- जो है यही है. . तौलिया ले और बदन पोंछ ले वर्ना बीमार हो जायेगा.
मैंने उसकी बात मानी, उसने भी अपने कपडे बदले और खाना बनाने लगी. .
“ऐसे क्या देख रहा है ” बोली वो
मैं- बस तुझे ही देख रहा हूँ
मंजू- सब कुछ तो देख लिया तूने अब क्या कसर बाकी रही .
मैं- तू जाने या ये मन जाने
“देख तो सही मसाला ठीक है या नहीं ” मंजू ने आलू से सनी ऊँगली मेरे होंठो पर लगाई मैंने मुह खोला और उसकी ऊँगली को चूसने लगा. मसाले का स्वाद था या बचपन के किये कांडो की यादे. हमारी नजरे आपस में मिली और मंजू ने अपने तपते होंठो को मेरे होंठो से जोड़ लिया.
Aisi Bat nahi Hai,Fir bhi koi yad nahi karta un kahaniyo ko
Behtreen update#9
“क्या तुम सचमुच हो कबीर या फिर मेरा भरम है ” उसने कहा
मैं- भरम ही रहे तो ठीक है न
अगले ही पल उसने मुझे सीने से लगा लिया .
“कहाँ चला गया था तू , एक पल भी नहीं सोचा की पीछे क्या छोड़ आया तू ” बोली वो .
मैं- सब कुछ यही रह गया मंजू, ना इधर का मोह छूट सका न जिन्दगी आगे बढ़ सकी. मालूम हुआ की बहन की शादी है तो रोक न सका खुद को .
मंजू- तू आज भी नहीं बदला कबीर, अरे अब तो अपने परायो का फर्क करना सीख ले.
मैं- बहन है छोटी,
मंजू- बहन,कितने बरस बीत गए कबीर, हम जैसो ने भी किसी होली दिवाली तुझे याद किया होगा पर उन लोगो ने नहीं. मेरी बात कडवी बहुत लगेगी तुझे कबीर पर तेरे जाने का फर्क पड़ा नहीं उनको .
मैं- जानता हु मंजू , छोड़ उनकी बाते. अपनी बता . खूबसूरत हो गयी रे तू तो.
मंजू- क्या ख़ाक खूबसूरत हो गयी . कितनी तो मोटी हो गयी हूँ
हम दोनों ही हंस पड़े.
मैं- वैसे इधर किधर भटक रही थी .
मंजू- सरकारी नौकरी लग गयी है , आजकल मास्टरनी हो गयी हूँ पडोसी गाँव के स्कूल में ड्यूटी है तो बस उधर से ही आ रही थी.
मैं-और सुना तेरे पति के क्या हाल चाल है .
मंजू- छोड़ दिया उसे मैंने कबीर,
मैं- ये तो गलत किया
मंजू- क्या करती कबीर , साले ने जीना ही हराम किया हुआ था . जब देखो शक ही शक करता था . घूँघट नहीं किया तो उसको दिक्कत. छत पर खड़ी हो गयी तो शक, एक दिन फिर मैंने फैसला ले लिया. माँ-बाप को दिक्कत हुई कुछ दिन रही उनके साथ तो भाई-भाभी बहनचोदो को परेशानी होने लगी . पर फिर किस्मत ने साथ दिया और नौकरी मिल गयी अभी ठीक है सब
मैंने मंजू के सर को सहलाया.
मंजू- चल घर चलते है बहुत बाते करनी है तुझसे
मैं- तू चल मैं आता हूँ इसी बहाने तेरे माँ-बाप से भी मिल लूँगा.
मंजू- उनसे मिलना है तो उनके घर जाना, मैं अलग रहती हूँ उनसे.
मैं- क्या यार तू भी
मंजू- नयी बस्ती में घर बना लिया है मैंने
मैं- भाई भाभी के घर की तरफ
मंजू- हाँ , उधर ही
मैं- कैसी है भाभी
मंजू- जी रही है . तुझे बहुत याद करती है वो . एक बार मिल ले
मैं- अभी नहीं , थोड़ी देर अपनी जमीन को निहार लेने दे फिर आता हूँ.
मंजू- मैं भी रूकती हूँ तेरे साथ ही ,
मैं मुस्कुरा दिया .
मंजू मेरे बचपन की साथी, साथ ही पले बढे साथ ही पढाई की . बहुत बाते उसकी सुनी बहुत सुनाई.
“याद है तुझे ऐसे ही मेरे काँधे पर सर रख कर बैठा करता था तू ” बोली वो
मैं- क्या दिन थे यार वो. न कोई फिकर ना किसी से लेना देना बस अपनी मस्ती में मस्त.
मंजू- इतने दिन तू लापता रहा तुझे याद नहीं आई किसी की भी .
मैं- तुझे तो मालूम ही है क्या हालात थे उस वक्त. कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है. घर को ना जाने किसकी नजर लगी. माँ-बाप का मरना आसान नहीं होता जवान बेटे के लिए. और फिर परिवार का रंग तो देख ही लिया.
मंजू- पर घर नहीं छोड़ना था कबीर
मैं- कौन जाना चाहता था इस जन्नत को छोड़ कर मंजू, पर जाना पड़ा अगर नहीं जाता तो तू भी लाश ही देखती मेरी.
मंजू ने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- ऐसा मत बोल कबीर.
मैं- तुझे बताऊंगा की मेरे साथ क्या हुआ था सही वक्त आने दे.
चबूतरे पर बैठे मैंने मंजू के हाथ को अपने हाथ में ले लिया. आसमान से हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी थी.
मंजू- अबका सा सावन बहुत सालो बाद आया है
मैं- हम भी तो बहुत सालो बाद मिले है
मंजू- मिलने से याद आया निशा कैसी है . मिली क्या तुझे .
मैं- ठीक ही होगी , मालूम हुआ की बड़ी अफसर हो गयी है पुलिस में
मंजू- पता है मुझे नौकरी लगते ही सबसे पहले वो शिवाले ही आई थी . पर तू ना मिला. फिर शायद वो भी अपनी जिन्दगी में रम गयी अरसा हो गया उसे मिले हुए.
मैं- ठीक ही तो हैं न , उसे भी उसके हिस्से की ख़ुशी मिलनी ही चाहिए. ये बता मुझे मालूम हुआ की चाचा बहुत बड़ा बन गया है.
मंजू- ऐसा ही है .
बारिश रफ़्तार बढाने लगी थी. आस्मां काले बादलो से ढक सा गया था .
मंजू- जोर का में बरसेगा, चलना चाहिए.
मैं-तुझे ठीक लगे तो हवेली चल मेरे साथ
मंजू- ये भी कोई कहने की बात है पर अभी नहीं, फिलहाल तू मेरे घर चलेगा. बहुत दिन बीते साथ खाना खाए हुए. फिर तू जहाँ कहेगा चलूंगी.
मैं- आलू के परांठे बनाएगी न .
मंजू- तू चल तो सही यार.
फूलो के डिजाइन वाली साडी में मंजू बड़ी ही गंडास लग रही थी वजन बढ़ा लिया था उसने. ऊपर से ये में. भीगते हुए हम लोग उसके घर तक आये. भीगी जुल्फों को झटकते हुए मंजू ताला खोलने को झुकी तो उसकी गांड पर दिल ठहर सा गया.
“अन्दर आजा ” बोली वो.
मैं- तू चल मैं आया.
मैंने गली में देखते हुए कहा
मंजू- थोडा दूर है उनका घर ऐसे नहीं दिखेगा.
मैं अन्दर चल दिया. दो कमरों का घर था मंजू का एक रसोई.
मैं- अच्छा सजाया है
मंजू- जो है यही है. . तौलिया ले और बदन पोंछ ले वर्ना बीमार हो जायेगा.
मैंने उसकी बात मानी, उसने भी अपने कपडे बदले और खाना बनाने लगी. .
“ऐसे क्या देख रहा है ” बोली वो
मैं- बस तुझे ही देख रहा हूँ
मंजू- सब कुछ तो देख लिया तूने अब क्या कसर बाकी रही .
मैं- तू जाने या ये मन जाने
“देख तो सही मसाला ठीक है या नहीं ” मंजू ने आलू से सनी ऊँगली मेरे होंठो पर लगाई मैंने मुह खोला और उसकी ऊँगली को चूसने लगा. मसाले का स्वाद था या बचपन के किये कांडो की यादे. हमारी नजरे आपस में मिली और मंजू ने अपने तपते होंठो को मेरे होंठो से जोड़ लिया.
Mind-blowing update#१०
धीरे से मंजू ने अपना मुह खोला और मेरी जीभ उसकी जीभ से उलझने लगी. उसके होंठो का रस आज भी ऐसा ही था जैसा पहले चुम्बन पर महसूस किया था. जल्दी ही वो मेरी गोदी में बैठी चुम्बन में खोई हुई थी . उसके होंठो , उसके गालो को बार बार चूमा मैंने. धीरे से हाथ उसकी चुचियो पर सरकाया और भींचा उन्हें.
“कबीर, खाना बना लेने दे मुझे ” बोली वो
मैं- मैं कहाँ तुझे रोक रहा हु
मंजू- मानेगा नहीं न तू
मैंने मंजू के पैरो को फैलाया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. हाथ ने जैसे ही उसकी गर्म चूत को छुआ मंजू के बदन में सरसराहट बढ़ने लगी.
“तेरी चूत बहुत गर्म है मंजू ” मैंने उसके कान को दांतों से काटते हुए कहा .
मंजू- पसंदीदा मर्द के लिए हर औरत की चूत गर्म ही रहती है. तू पहले चोद ले खाना उसके बाद ही बनाउंगी चल बेड पर चल.
मंजू गोदी से उठी और तुरंत ही नंगी हो गयी. उसने निर्वस्त्र देखने का भी अपना ही सुख था. बेड पर आते ही मंजू ने पैरो को चौड़ा कर लिया. काले झांटो से भरी उसकी चूत एक बार फिर से मुझे निमंत्र्ण दे रही थी की आ और समां जा मुझमे.
“बनियान तो उतार ले ” बोली वो
मैं-रहने दे .
मैंने अपने सर को चूत पर झुकाया और चूत के दाने को अपने मुह में भर लिया.
“कमीने , उफ्फ्फ तेरी ये अदा ” मंजू ने अपनी गांड को ऊपर उठाया और सर पर अपने दोनों हाथ टिका लिए. चूत के नमकीन रस को पीते हुए मैं मंजू के बदन की उत्तेजना को चरम पर ले जा रहा था . कभी कभी मैं अपने दांत उसकी जांघो पर गडा देता तो वो सिसक उठती. चूत से आती कामुम सुंगंध मेरे लंड की ऐंठन बढ़ा रही थी तो मैंने भी देर करना मुनासिब नहीं समझा और लंड को चूत पर रगड़ने लगा.
“तडपाने की आदत गयी नहीं तेरी अभी तक. ” मंजू ने मस्ती से भरे स्वर में कहा ठीक तभी मैंने लंड अन्दर को ठेल दिया और जल्दी ही उसकी जांघो पर मेरी जांघे चढ़ चुकी थी. अपनी गांड को ऊपर निचे करते हुए मंजू मेरे बालो में हाथ फेर रही थी मेरे कंधो को चूम रही थी.
“होंठ तो चूस ले जालिम ” शोखी से बोली वो
मुस्कुराते हुए मैंने उसका कहा माना और हमारी चुदाई शुरू हो गयी. कुछ देर बाद वो मेरे ऊपर आ गयी और उछलने लगी. उसकी झांटो के बाल मेरे बदन पर चुभ रहे थे पर उस चुभन का भी अपना ही मजा था . उत्तेजनापूर्ण हरकते करते हुए मंजू ने अपने दोनों हाथ मेरी बनियान में घुसा दिए.मेरी छाती पर हाथ फेर रही थी वो की अचानक उसने मेरी बनियान को फाड़ दिया और उसकी आँखे फैलती चली गयी.
“ये क्या है कबीर ” ज़ख्मो के निशान को देखती हुई बोली वो.
“ये घाव , कैसे है ये घाव. एक मिनट, तो , तो ये है वो वजह जिसकी वजह से तू दूर हुआ. किसने किया ये कबीर ” मंजू मेरे लंड से उतर कर बाजु में बैठ गयी. उसकी सवालिया नजरे मेरे मन में उतर रही थी ..
“बोलता क्यों नहीं ” थोडा गुस्से से बोली वो.
मैं- बस इसी सवाल का जवाब नहीं मालूम मुझे, अगर ये पता चल जाये तो बहुत सी मुश्किल आसान हो जाये.
मंजू- कुछ तो हुआ होगा न
मैं- कुछ हुआ ही तो नहीं था अगर कुछ होता तो बात ही क्या होती.थानेदार भर्ती की दौड़ पास करके वापिस लौट रहा ही था की अचानक से एक शोर सुनाई दिया, और फिर दर्द मेरी हड्डियों में समाता चला गया . होश आया तो मैं हॉस्पिटल में पड़ा था . बहुत समय लग गया पैरो पर खड़ा होने में
मंजू- खबर क्यों नहीं की तूने किसी को
मैं- खबर की थी मैंने , ख़त लिखा था पर उसके जवाब से फिर मन ही नहीं हुआ लौटने का . गाँव में तीन जश्न मनाये गए थे
मंजू- एक मिनट इसका मतलब तुझ पर हमला करने वाले परिवार में से ही कोई है
मैं- जो बह गया वो परिवार का खून था
मंजू- कौन कर सकता है तुझसे इतनी नफरत
मैं- मूझसे नफरत तो सब करते है मंजू, मेरा भाई, चाचा ताऊ कोई एक हो तो बताये
मंजू- तेरा चाचा तो है ही साला गांडू आदमी . आधे गाँव की गांड में बम्बू किया हुआ है उसने.
मैं- कुछ भी नहीं बचा यहाँ पर, लौटने का जरा भी मन नहीं था बहन की शादी की खबर हुई तो रोक नहीं सका खुद को और फिर तू मिल गयी. बस यही है कहानी.
मंजू- वैसे तेरा चाचा क्यों खुन्नस रखता है तुझसे.
मैं- जिसकी लुगाई मुझसे चुद रही वो खुन्नस ही तो रखेगा न
मंजू के चेहरे पर शरारती हंसी आ गयी.
“वैसे सही ही तोड़ी तेरी गांड किसीने, बहनचोद किस किस पर चढ़ गया तू. ” चूत को खुजाते हुए बोली वो.
मैं- चूत के लिए कोई किसी को नहीं मारता पर फिलहाल तेरी चूत जरुर मरेगी . ले मुह में ले ले इसे.
मैंने मंजू का सर लंड पर झुका दिया. उसने मुह खोला और सुपाडे को मुह में भर लिया.
“तेरे होंठ जब जब लंड पर लगते है कसम से वक्त रुक सा जाता है ” मैंने उसके बालो को सहलाते हुए कहा.
मंजू- बचपन में सेक्सी फिल्म देख कर इसे चुसना ही सीखा है जिन्दगी में
उसने कहा और दुबारा से चूसने लगी. कुछ देर बाद मैंने उसे बेड की साइड में झुकाया और चोदने लगा. एक सुखद चुदाई के बाद अब किसे भूख थी मंजू को बाँहों में लिए मैंने आँखे मूँद ली, मंजू की बातो ने एक बार मेरे मन में ये विचार ला दिया था की हमला आखिर किया किसने था. सुबह एक बार फिर से मैं हवेली में मोजूद था पिताजी के कमरे में .
“सबसे बड़ा धन तुम्हारा मन है बेटे मन का संगम तुम्हे वहां ले जायेगा जहाँ तुम उसे पाओगे जो होकर भी नहीं है पाया तो सब पाया छोड़ा तो जग छोड़ा ” पिताजी के अंतिम शब्द मेरे कानो में गूँज रहे थे.
#१०
धीरे से मंजू ने अपना मुह खोला और मेरी जीभ उसकी जीभ से उलझने लगी. उसके होंठो का रस आज भी ऐसा ही था जैसा पहले चुम्बन पर महसूस किया था. जल्दी ही वो मेरी गोदी में बैठी चुम्बन में खोई हुई थी . उसके होंठो , उसके गालो को बार बार चूमा मैंने. धीरे से हाथ उसकी चुचियो पर सरकाया और भींचा उन्हें.
“कबीर, खाना बना लेने दे मुझे ” बोली वो
मैं- मैं कहाँ तुझे रोक रहा हु
मंजू- मानेगा नहीं न तू
मैंने मंजू के पैरो को फैलाया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. हाथ ने जैसे ही उसकी गर्म चूत को छुआ मंजू के बदन में सरसराहट बढ़ने लगी.
“तेरी चूत बहुत गर्म है मंजू ” मैंने उसके कान को दांतों से काटते हुए कहा .
मंजू- पसंदीदा मर्द के लिए हर औरत की चूत गर्म ही रहती है. तू पहले चोद ले खाना उसके बाद ही बनाउंगी चल बेड पर चल.
मंजू गोदी से उठी और तुरंत ही नंगी हो गयी. उसने निर्वस्त्र देखने का भी अपना ही सुख था. बेड पर आते ही मंजू ने पैरो को चौड़ा कर लिया. काले झांटो से भरी उसकी चूत एक बार फिर से मुझे निमंत्र्ण दे रही थी की आ और समां जा मुझमे.
“बनियान तो उतार ले ” बोली वो
मैं-रहने दे .
मैंने अपने सर को चूत पर झुकाया और चूत के दाने को अपने मुह में भर लिया.
“कमीने , उफ्फ्फ तेरी ये अदा ” मंजू ने अपनी गांड को ऊपर उठाया और सर पर अपने दोनों हाथ टिका लिए. चूत के नमकीन रस को पीते हुए मैं मंजू के बदन की उत्तेजना को चरम पर ले जा रहा था . कभी कभी मैं अपने दांत उसकी जांघो पर गडा देता तो वो सिसक उठती. चूत से आती कामुम सुंगंध मेरे लंड की ऐंठन बढ़ा रही थी तो मैंने भी देर करना मुनासिब नहीं समझा और लंड को चूत पर रगड़ने लगा.
“तडपाने की आदत गयी नहीं तेरी अभी तक. ” मंजू ने मस्ती से भरे स्वर में कहा ठीक तभी मैंने लंड अन्दर को ठेल दिया और जल्दी ही उसकी जांघो पर मेरी जांघे चढ़ चुकी थी. अपनी गांड को ऊपर निचे करते हुए मंजू मेरे बालो में हाथ फेर रही थी मेरे कंधो को चूम रही थी.
“होंठ तो चूस ले जालिम ” शोखी से बोली वो
मुस्कुराते हुए मैंने उसका कहा माना और हमारी चुदाई शुरू हो गयी. कुछ देर बाद वो मेरे ऊपर आ गयी और उछलने लगी. उसकी झांटो के बाल मेरे बदन पर चुभ रहे थे पर उस चुभन का भी अपना ही मजा था . उत्तेजनापूर्ण हरकते करते हुए मंजू ने अपने दोनों हाथ मेरी बनियान में घुसा दिए.मेरी छाती पर हाथ फेर रही थी वो की अचानक उसने मेरी बनियान को फाड़ दिया और उसकी आँखे फैलती चली गयी.
“ये क्या है कबीर ” ज़ख्मो के निशान को देखती हुई बोली वो.
“ये घाव , कैसे है ये घाव. एक मिनट, तो , तो ये है वो वजह जिसकी वजह से तू दूर हुआ. किसने किया ये कबीर ” मंजू मेरे लंड से उतर कर बाजु में बैठ गयी. उसकी सवालिया नजरे मेरे मन में उतर रही थी ..
“बोलता क्यों नहीं ” थोडा गुस्से से बोली वो.
मैं- बस इसी सवाल का जवाब नहीं मालूम मुझे, अगर ये पता चल जाये तो बहुत सी मुश्किल आसान हो जाये.
मंजू- कुछ तो हुआ होगा न
मैं- कुछ हुआ ही तो नहीं था अगर कुछ होता तो बात ही क्या होती.थानेदार भर्ती की दौड़ पास करके वापिस लौट रहा ही था की अचानक से एक शोर सुनाई दिया, और फिर दर्द मेरी हड्डियों में समाता चला गया . होश आया तो मैं हॉस्पिटल में पड़ा था . बहुत समय लग गया पैरो पर खड़ा होने में
मंजू- खबर क्यों नहीं की तूने किसी को
मैं- खबर की थी मैंने , ख़त लिखा था पर उसके जवाब से फिर मन ही नहीं हुआ लौटने का . गाँव में तीन जश्न मनाये गए थे
मंजू- एक मिनट इसका मतलब तुझ पर हमला करने वाले परिवार में से ही कोई है
मैं- जो बह गया वो परिवार का खून था
मंजू- कौन कर सकता है तुझसे इतनी नफरत
मैं- मूझसे नफरत तो सब करते है मंजू, मेरा भाई, चाचा ताऊ कोई एक हो तो बताये
मंजू- तेरा चाचा तो है ही साला गांडू आदमी . आधे गाँव की गांड में बम्बू किया हुआ है उसने.
मैं- कुछ भी नहीं बचा यहाँ पर, लौटने का जरा भी मन नहीं था बहन की शादी की खबर हुई तो रोक नहीं सका खुद को और फिर तू मिल गयी. बस यही है कहानी.
मंजू- वैसे तेरा चाचा क्यों खुन्नस रखता है तुझसे.
मैं- जिसकी लुगाई मुझसे चुद रही वो खुन्नस ही तो रखेगा न
मंजू के चेहरे पर शरारती हंसी आ गयी.
“वैसे सही ही तोड़ी तेरी गांड किसीने, बहनचोद किस किस पर चढ़ गया तू. ” चूत को खुजाते हुए बोली वो.
मैं- चूत के लिए कोई किसी को नहीं मारता पर फिलहाल तेरी चूत जरुर मरेगी . ले मुह में ले ले इसे.
मैंने मंजू का सर लंड पर झुका दिया. उसने मुह खोला और सुपाडे को मुह में भर लिया.
“तेरे होंठ जब जब लंड पर लगते है कसम से वक्त रुक सा जाता है ” मैंने उसके बालो को सहलाते हुए कहा.
मंजू- बचपन में सेक्सी फिल्म देख कर इसे चुसना ही सीखा है जिन्दगी में
उसने कहा और दुबारा से चूसने लगी. कुछ देर बाद मैंने उसे बेड की साइड में झुकाया और चोदने लगा. एक सुखद चुदाई के बाद अब किसे भूख थी मंजू को बाँहों में लिए मैंने आँखे मूँद ली, मंजू की बातो ने एक बार मेरे मन में ये विचार ला दिया था की हमला आखिर किया किसने था. सुबह एक बार फिर से मैं हवेली में मोजूद था पिताजी के कमरे में .
“सबसे बड़ा धन तुम्हारा मन है बेटे मन का संगम तुम्हे वहां ले जायेगा जहाँ तुम उसे पाओगे जो होकर भी नहीं है पाया तो सब पाया छोड़ा तो जग छोड़ा ” पिताजी के अंतिम शब्द मेरे कानो में गूँज रहे थे.
तो कबीर पर हमला हुआ था और किसने करवाया ये पता नही शक जरूर है कि कोई परिवार का है#१०
धीरे से मंजू ने अपना मुह खोला और मेरी जीभ उसकी जीभ से उलझने लगी. उसके होंठो का रस आज भी ऐसा ही था जैसा पहले चुम्बन पर महसूस किया था. जल्दी ही वो मेरी गोदी में बैठी चुम्बन में खोई हुई थी . उसके होंठो , उसके गालो को बार बार चूमा मैंने. धीरे से हाथ उसकी चुचियो पर सरकाया और भींचा उन्हें.
“कबीर, खाना बना लेने दे मुझे ” बोली वो
मैं- मैं कहाँ तुझे रोक रहा हु
मंजू- मानेगा नहीं न तू
मैंने मंजू के पैरो को फैलाया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. हाथ ने जैसे ही उसकी गर्म चूत को छुआ मंजू के बदन में सरसराहट बढ़ने लगी.
“तेरी चूत बहुत गर्म है मंजू ” मैंने उसके कान को दांतों से काटते हुए कहा .
मंजू- पसंदीदा मर्द के लिए हर औरत की चूत गर्म ही रहती है. तू पहले चोद ले खाना उसके बाद ही बनाउंगी चल बेड पर चल.
मंजू गोदी से उठी और तुरंत ही नंगी हो गयी. उसने निर्वस्त्र देखने का भी अपना ही सुख था. बेड पर आते ही मंजू ने पैरो को चौड़ा कर लिया. काले झांटो से भरी उसकी चूत एक बार फिर से मुझे निमंत्र्ण दे रही थी की आ और समां जा मुझमे.
“बनियान तो उतार ले ” बोली वो
मैं-रहने दे .
मैंने अपने सर को चूत पर झुकाया और चूत के दाने को अपने मुह में भर लिया.
“कमीने , उफ्फ्फ तेरी ये अदा ” मंजू ने अपनी गांड को ऊपर उठाया और सर पर अपने दोनों हाथ टिका लिए. चूत के नमकीन रस को पीते हुए मैं मंजू के बदन की उत्तेजना को चरम पर ले जा रहा था . कभी कभी मैं अपने दांत उसकी जांघो पर गडा देता तो वो सिसक उठती. चूत से आती कामुम सुंगंध मेरे लंड की ऐंठन बढ़ा रही थी तो मैंने भी देर करना मुनासिब नहीं समझा और लंड को चूत पर रगड़ने लगा.
“तडपाने की आदत गयी नहीं तेरी अभी तक. ” मंजू ने मस्ती से भरे स्वर में कहा ठीक तभी मैंने लंड अन्दर को ठेल दिया और जल्दी ही उसकी जांघो पर मेरी जांघे चढ़ चुकी थी. अपनी गांड को ऊपर निचे करते हुए मंजू मेरे बालो में हाथ फेर रही थी मेरे कंधो को चूम रही थी.
“होंठ तो चूस ले जालिम ” शोखी से बोली वो
मुस्कुराते हुए मैंने उसका कहा माना और हमारी चुदाई शुरू हो गयी. कुछ देर बाद वो मेरे ऊपर आ गयी और उछलने लगी. उसकी झांटो के बाल मेरे बदन पर चुभ रहे थे पर उस चुभन का भी अपना ही मजा था . उत्तेजनापूर्ण हरकते करते हुए मंजू ने अपने दोनों हाथ मेरी बनियान में घुसा दिए.मेरी छाती पर हाथ फेर रही थी वो की अचानक उसने मेरी बनियान को फाड़ दिया और उसकी आँखे फैलती चली गयी.
“ये क्या है कबीर ” ज़ख्मो के निशान को देखती हुई बोली वो.
“ये घाव , कैसे है ये घाव. एक मिनट, तो , तो ये है वो वजह जिसकी वजह से तू दूर हुआ. किसने किया ये कबीर ” मंजू मेरे लंड से उतर कर बाजु में बैठ गयी. उसकी सवालिया नजरे मेरे मन में उतर रही थी ..
“बोलता क्यों नहीं ” थोडा गुस्से से बोली वो.
मैं- बस इसी सवाल का जवाब नहीं मालूम मुझे, अगर ये पता चल जाये तो बहुत सी मुश्किल आसान हो जाये.
मंजू- कुछ तो हुआ होगा न
मैं- कुछ हुआ ही तो नहीं था अगर कुछ होता तो बात ही क्या होती.थानेदार भर्ती की दौड़ पास करके वापिस लौट रहा ही था की अचानक से एक शोर सुनाई दिया, और फिर दर्द मेरी हड्डियों में समाता चला गया . होश आया तो मैं हॉस्पिटल में पड़ा था . बहुत समय लग गया पैरो पर खड़ा होने में
मंजू- खबर क्यों नहीं की तूने किसी को
मैं- खबर की थी मैंने , ख़त लिखा था पर उसके जवाब से फिर मन ही नहीं हुआ लौटने का . गाँव में तीन जश्न मनाये गए थे
मंजू- एक मिनट इसका मतलब तुझ पर हमला करने वाले परिवार में से ही कोई है
मैं- जो बह गया वो परिवार का खून था
मंजू- कौन कर सकता है तुझसे इतनी नफरत
मैं- मूझसे नफरत तो सब करते है मंजू, मेरा भाई, चाचा ताऊ कोई एक हो तो बताये
मंजू- तेरा चाचा तो है ही साला गांडू आदमी . आधे गाँव की गांड में बम्बू किया हुआ है उसने.
मैं- कुछ भी नहीं बचा यहाँ पर, लौटने का जरा भी मन नहीं था बहन की शादी की खबर हुई तो रोक नहीं सका खुद को और फिर तू मिल गयी. बस यही है कहानी.
मंजू- वैसे तेरा चाचा क्यों खुन्नस रखता है तुझसे.
मैं- जिसकी लुगाई मुझसे चुद रही वो खुन्नस ही तो रखेगा न
मंजू के चेहरे पर शरारती हंसी आ गयी.
“वैसे सही ही तोड़ी तेरी गांड किसीने, बहनचोद किस किस पर चढ़ गया तू. ” चूत को खुजाते हुए बोली वो.
मैं- चूत के लिए कोई किसी को नहीं मारता पर फिलहाल तेरी चूत जरुर मरेगी . ले मुह में ले ले इसे.
मैंने मंजू का सर लंड पर झुका दिया. उसने मुह खोला और सुपाडे को मुह में भर लिया.
“तेरे होंठ जब जब लंड पर लगते है कसम से वक्त रुक सा जाता है ” मैंने उसके बालो को सहलाते हुए कहा.
मंजू- बचपन में सेक्सी फिल्म देख कर इसे चुसना ही सीखा है जिन्दगी में
उसने कहा और दुबारा से चूसने लगी. कुछ देर बाद मैंने उसे बेड की साइड में झुकाया और चोदने लगा. एक सुखद चुदाई के बाद अब किसे भूख थी मंजू को बाँहों में लिए मैंने आँखे मूँद ली, मंजू की बातो ने एक बार मेरे मन में ये विचार ला दिया था की हमला आखिर किया किसने था. सुबह एक बार फिर से मैं हवेली में मोजूद था पिताजी के कमरे में .
“सबसे बड़ा धन तुम्हारा मन है बेटे मन का संगम तुम्हे वहां ले जायेगा जहाँ तुम उसे पाओगे जो होकर भी नहीं है पाया तो सब पाया छोड़ा तो जग छोड़ा ” पिताजी के अंतिम शब्द मेरे कानो में गूँज रहे थे.
Superb update and nice story#१०
धीरे से मंजू ने अपना मुह खोला और मेरी जीभ उसकी जीभ से उलझने लगी. उसके होंठो का रस आज भी ऐसा ही था जैसा पहले चुम्बन पर महसूस किया था. जल्दी ही वो मेरी गोदी में बैठी चुम्बन में खोई हुई थी . उसके होंठो , उसके गालो को बार बार चूमा मैंने. धीरे से हाथ उसकी चुचियो पर सरकाया और भींचा उन्हें.
“कबीर, खाना बना लेने दे मुझे ” बोली वो
मैं- मैं कहाँ तुझे रोक रहा हु
मंजू- मानेगा नहीं न तू
मैंने मंजू के पैरो को फैलाया और उसकी सलवार का नाडा खोल दिया. हाथ ने जैसे ही उसकी गर्म चूत को छुआ मंजू के बदन में सरसराहट बढ़ने लगी.
“तेरी चूत बहुत गर्म है मंजू ” मैंने उसके कान को दांतों से काटते हुए कहा .
मंजू- पसंदीदा मर्द के लिए हर औरत की चूत गर्म ही रहती है. तू पहले चोद ले खाना उसके बाद ही बनाउंगी चल बेड पर चल.
मंजू गोदी से उठी और तुरंत ही नंगी हो गयी. उसने निर्वस्त्र देखने का भी अपना ही सुख था. बेड पर आते ही मंजू ने पैरो को चौड़ा कर लिया. काले झांटो से भरी उसकी चूत एक बार फिर से मुझे निमंत्र्ण दे रही थी की आ और समां जा मुझमे.
“बनियान तो उतार ले ” बोली वो
मैं-रहने दे .
मैंने अपने सर को चूत पर झुकाया और चूत के दाने को अपने मुह में भर लिया.
“कमीने , उफ्फ्फ तेरी ये अदा ” मंजू ने अपनी गांड को ऊपर उठाया और सर पर अपने दोनों हाथ टिका लिए. चूत के नमकीन रस को पीते हुए मैं मंजू के बदन की उत्तेजना को चरम पर ले जा रहा था . कभी कभी मैं अपने दांत उसकी जांघो पर गडा देता तो वो सिसक उठती. चूत से आती कामुम सुंगंध मेरे लंड की ऐंठन बढ़ा रही थी तो मैंने भी देर करना मुनासिब नहीं समझा और लंड को चूत पर रगड़ने लगा.
“तडपाने की आदत गयी नहीं तेरी अभी तक. ” मंजू ने मस्ती से भरे स्वर में कहा ठीक तभी मैंने लंड अन्दर को ठेल दिया और जल्दी ही उसकी जांघो पर मेरी जांघे चढ़ चुकी थी. अपनी गांड को ऊपर निचे करते हुए मंजू मेरे बालो में हाथ फेर रही थी मेरे कंधो को चूम रही थी.
“होंठ तो चूस ले जालिम ” शोखी से बोली वो
मुस्कुराते हुए मैंने उसका कहा माना और हमारी चुदाई शुरू हो गयी. कुछ देर बाद वो मेरे ऊपर आ गयी और उछलने लगी. उसकी झांटो के बाल मेरे बदन पर चुभ रहे थे पर उस चुभन का भी अपना ही मजा था . उत्तेजनापूर्ण हरकते करते हुए मंजू ने अपने दोनों हाथ मेरी बनियान में घुसा दिए.मेरी छाती पर हाथ फेर रही थी वो की अचानक उसने मेरी बनियान को फाड़ दिया और उसकी आँखे फैलती चली गयी.
“ये क्या है कबीर ” ज़ख्मो के निशान को देखती हुई बोली वो.
“ये घाव , कैसे है ये घाव. एक मिनट, तो , तो ये है वो वजह जिसकी वजह से तू दूर हुआ. किसने किया ये कबीर ” मंजू मेरे लंड से उतर कर बाजु में बैठ गयी. उसकी सवालिया नजरे मेरे मन में उतर रही थी ..
“बोलता क्यों नहीं ” थोडा गुस्से से बोली वो.
मैं- बस इसी सवाल का जवाब नहीं मालूम मुझे, अगर ये पता चल जाये तो बहुत सी मुश्किल आसान हो जाये.
मंजू- कुछ तो हुआ होगा न
मैं- कुछ हुआ ही तो नहीं था अगर कुछ होता तो बात ही क्या होती.थानेदार भर्ती की दौड़ पास करके वापिस लौट रहा ही था की अचानक से एक शोर सुनाई दिया, और फिर दर्द मेरी हड्डियों में समाता चला गया . होश आया तो मैं हॉस्पिटल में पड़ा था . बहुत समय लग गया पैरो पर खड़ा होने में
मंजू- खबर क्यों नहीं की तूने किसी को
मैं- खबर की थी मैंने , ख़त लिखा था पर उसके जवाब से फिर मन ही नहीं हुआ लौटने का . गाँव में तीन जश्न मनाये गए थे
मंजू- एक मिनट इसका मतलब तुझ पर हमला करने वाले परिवार में से ही कोई है
मैं- जो बह गया वो परिवार का खून था
मंजू- कौन कर सकता है तुझसे इतनी नफरत
मैं- मूझसे नफरत तो सब करते है मंजू, मेरा भाई, चाचा ताऊ कोई एक हो तो बताये
मंजू- तेरा चाचा तो है ही साला गांडू आदमी . आधे गाँव की गांड में बम्बू किया हुआ है उसने.
मैं- कुछ भी नहीं बचा यहाँ पर, लौटने का जरा भी मन नहीं था बहन की शादी की खबर हुई तो रोक नहीं सका खुद को और फिर तू मिल गयी. बस यही है कहानी.
मंजू- वैसे तेरा चाचा क्यों खुन्नस रखता है तुझसे.
मैं- जिसकी लुगाई मुझसे चुद रही वो खुन्नस ही तो रखेगा न
मंजू के चेहरे पर शरारती हंसी आ गयी.
“वैसे सही ही तोड़ी तेरी गांड किसीने, बहनचोद किस किस पर चढ़ गया तू. ” चूत को खुजाते हुए बोली वो.
मैं- चूत के लिए कोई किसी को नहीं मारता पर फिलहाल तेरी चूत जरुर मरेगी . ले मुह में ले ले इसे.
मैंने मंजू का सर लंड पर झुका दिया. उसने मुह खोला और सुपाडे को मुह में भर लिया.
“तेरे होंठ जब जब लंड पर लगते है कसम से वक्त रुक सा जाता है ” मैंने उसके बालो को सहलाते हुए कहा.
मंजू- बचपन में सेक्सी फिल्म देख कर इसे चुसना ही सीखा है जिन्दगी में
उसने कहा और दुबारा से चूसने लगी. कुछ देर बाद मैंने उसे बेड की साइड में झुकाया और चोदने लगा. एक सुखद चुदाई के बाद अब किसे भूख थी मंजू को बाँहों में लिए मैंने आँखे मूँद ली, मंजू की बातो ने एक बार मेरे मन में ये विचार ला दिया था की हमला आखिर किया किसने था. सुबह एक बार फिर से मैं हवेली में मोजूद था पिताजी के कमरे में .
“सबसे बड़ा धन तुम्हारा मन है बेटे मन का संगम तुम्हे वहां ले जायेगा जहाँ तुम उसे पाओगे जो होकर भी नहीं है पाया तो सब पाया छोड़ा तो जग छोड़ा ” पिताजी के अंतिम शब्द मेरे कानो में गूँज रहे थे.