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Adultery तेरे प्यार में .....

Himanshu630

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#9

“क्या तुम सचमुच हो कबीर या फिर मेरा भरम है ” उसने कहा

मैं- भरम ही रहे तो ठीक है न

अगले ही पल उसने मुझे सीने से लगा लिया .

“कहाँ चला गया था तू , एक पल भी नहीं सोचा की पीछे क्या छोड़ आया तू ” बोली वो .

मैं- सब कुछ यही रह गया मंजू, ना इधर का मोह छूट सका न जिन्दगी आगे बढ़ सकी. मालूम हुआ की बहन की शादी है तो रोक न सका खुद को .

मंजू- तू आज भी नहीं बदला कबीर, अरे अब तो अपने परायो का फर्क करना सीख ले.

मैं- बहन है छोटी,

मंजू- बहन,कितने बरस बीत गए कबीर, हम जैसो ने भी किसी होली दिवाली तुझे याद किया होगा पर उन लोगो ने नहीं. मेरी बात कडवी बहुत लगेगी तुझे कबीर पर तेरे जाने का फर्क पड़ा नहीं उनको .

मैं- जानता हु मंजू , छोड़ उनकी बाते. अपनी बता . खूबसूरत हो गयी रे तू तो.

मंजू- क्या ख़ाक खूबसूरत हो गयी . कितनी तो मोटी हो गयी हूँ

हम दोनों ही हंस पड़े.

मैं- वैसे इधर किधर भटक रही थी .

मंजू- सरकारी नौकरी लग गयी है , आजकल मास्टरनी हो गयी हूँ पडोसी गाँव के स्कूल में ड्यूटी है तो बस उधर से ही आ रही थी.

मैं-और सुना तेरे पति के क्या हाल चाल है .

मंजू- छोड़ दिया उसे मैंने कबीर,

मैं- ये तो गलत किया

मंजू- क्या करती कबीर , साले ने जीना ही हराम किया हुआ था . जब देखो शक ही शक करता था . घूँघट नहीं किया तो उसको दिक्कत. छत पर खड़ी हो गयी तो शक, एक दिन फिर मैंने फैसला ले लिया. माँ-बाप को दिक्कत हुई कुछ दिन रही उनके साथ तो भाई-भाभी बहनचोदो को परेशानी होने लगी . पर फिर किस्मत ने साथ दिया और नौकरी मिल गयी अभी ठीक है सब

मैंने मंजू के सर को सहलाया.

मंजू- चल घर चलते है बहुत बाते करनी है तुझसे

मैं- तू चल मैं आता हूँ इसी बहाने तेरे माँ-बाप से भी मिल लूँगा.

मंजू- उनसे मिलना है तो उनके घर जाना, मैं अलग रहती हूँ उनसे.

मैं- क्या यार तू भी

मंजू- नयी बस्ती में घर बना लिया है मैंने

मैं- भाई भाभी के घर की तरफ

मंजू- हाँ , उधर ही

मैं- कैसी है भाभी

मंजू- जी रही है . तुझे बहुत याद करती है वो . एक बार मिल ले

मैं- अभी नहीं , थोड़ी देर अपनी जमीन को निहार लेने दे फिर आता हूँ.

मंजू- मैं भी रूकती हूँ तेरे साथ ही ,

मैं मुस्कुरा दिया .

मंजू मेरे बचपन की साथी, साथ ही पले बढे साथ ही पढाई की . बहुत बाते उसकी सुनी बहुत सुनाई.

“याद है तुझे ऐसे ही मेरे काँधे पर सर रख कर बैठा करता था तू ” बोली वो

मैं- क्या दिन थे यार वो. न कोई फिकर ना किसी से लेना देना बस अपनी मस्ती में मस्त.

मंजू- इतने दिन तू लापता रहा तुझे याद नहीं आई किसी की भी .

मैं- तुझे तो मालूम ही है क्या हालात थे उस वक्त. कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है. घर को ना जाने किसकी नजर लगी. माँ-बाप का मरना आसान नहीं होता जवान बेटे के लिए. और फिर परिवार का रंग तो देख ही लिया.

मंजू- पर घर नहीं छोड़ना था कबीर

मैं- कौन जाना चाहता था इस जन्नत को छोड़ कर मंजू, पर जाना पड़ा अगर नहीं जाता तो तू भी लाश ही देखती मेरी.

मंजू ने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- ऐसा मत बोल कबीर.

मैं- तुझे बताऊंगा की मेरे साथ क्या हुआ था सही वक्त आने दे.

चबूतरे पर बैठे मैंने मंजू के हाथ को अपने हाथ में ले लिया. आसमान से हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी थी.

मंजू- अबका सा सावन बहुत सालो बाद आया है

मैं- हम भी तो बहुत सालो बाद मिले है

मंजू- मिलने से याद आया निशा कैसी है . मिली क्या तुझे .

मैं- ठीक ही होगी , मालूम हुआ की बड़ी अफसर हो गयी है पुलिस में

मंजू- पता है मुझे नौकरी लगते ही सबसे पहले वो शिवाले ही आई थी . पर तू ना मिला. फिर शायद वो भी अपनी जिन्दगी में रम गयी अरसा हो गया उसे मिले हुए.

मैं- ठीक ही तो हैं न , उसे भी उसके हिस्से की ख़ुशी मिलनी ही चाहिए. ये बता मुझे मालूम हुआ की चाचा बहुत बड़ा बन गया है.

मंजू- ऐसा ही है .

बारिश रफ़्तार बढाने लगी थी. आस्मां काले बादलो से ढक सा गया था .

मंजू- जोर का में बरसेगा, चलना चाहिए.

मैं-तुझे ठीक लगे तो हवेली चल मेरे साथ

मंजू- ये भी कोई कहने की बात है पर अभी नहीं, फिलहाल तू मेरे घर चलेगा. बहुत दिन बीते साथ खाना खाए हुए. फिर तू जहाँ कहेगा चलूंगी.

मैं- आलू के परांठे बनाएगी न .

मंजू- तू चल तो सही यार.

फूलो के डिजाइन वाली साडी में मंजू बड़ी ही गंडास लग रही थी वजन बढ़ा लिया था उसने. ऊपर से ये में. भीगते हुए हम लोग उसके घर तक आये. भीगी जुल्फों को झटकते हुए मंजू ताला खोलने को झुकी तो उसकी गांड पर दिल ठहर सा गया.

“अन्दर आजा ” बोली वो.

मैं- तू चल मैं आया.

मैंने गली में देखते हुए कहा

मंजू- थोडा दूर है उनका घर ऐसे नहीं दिखेगा.

मैं अन्दर चल दिया. दो कमरों का घर था मंजू का एक रसोई.

मैं- अच्छा सजाया है

मंजू- जो है यही है. . तौलिया ले और बदन पोंछ ले वर्ना बीमार हो जायेगा.

मैंने उसकी बात मानी, उसने भी अपने कपडे बदले और खाना बनाने लगी. .

“ऐसे क्या देख रहा है ” बोली वो

मैं- बस तुझे ही देख रहा हूँ

मंजू- सब कुछ तो देख लिया तूने अब क्या कसर बाकी रही .

मैं- तू जाने या ये मन जाने


“देख तो सही मसाला ठीक है या नहीं ” मंजू ने आलू से सनी ऊँगली मेरे होंठो पर लगाई मैंने मुह खोला और उसकी ऊँगली को चूसने लगा. मसाले का स्वाद था या बचपन के किये कांडो की यादे. हमारी नजरे आपस में मिली और मंजू ने अपने तपते होंठो को मेरे होंठो से जोड़ लिया.
Nice अपडेट भाई
 

vihan27

Be Loyal To Your Future, Not Your Past..
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“क्या तुम सचमुच हो कबीर या फिर मेरा भरम है ” उसने कहा

मैं- भरम ही रहे तो ठीक है न

अगले ही पल उसने मुझे सीने से लगा लिया .

“कहाँ चला गया था तू , एक पल भी नहीं सोचा की पीछे क्या छोड़ आया तू ” बोली वो .

मैं- सब कुछ यही रह गया मंजू, ना इधर का मोह छूट सका न जिन्दगी आगे बढ़ सकी. मालूम हुआ की बहन की शादी है तो रोक न सका खुद को .

मंजू- तू आज भी नहीं बदला कबीर, अरे अब तो अपने परायो का फर्क करना सीख ले.

मैं- बहन है छोटी,

मंजू- बहन,कितने बरस बीत गए कबीर, हम जैसो ने भी किसी होली दिवाली तुझे याद किया होगा पर उन लोगो ने नहीं. मेरी बात कडवी बहुत लगेगी तुझे कबीर पर तेरे जाने का फर्क पड़ा नहीं उनको .

मैं- जानता हु मंजू , छोड़ उनकी बाते. अपनी बता . खूबसूरत हो गयी रे तू तो.

मंजू- क्या ख़ाक खूबसूरत हो गयी . कितनी तो मोटी हो गयी हूँ

हम दोनों ही हंस पड़े.

मैं- वैसे इधर किधर भटक रही थी .

मंजू- सरकारी नौकरी लग गयी है , आजकल मास्टरनी हो गयी हूँ पडोसी गाँव के स्कूल में ड्यूटी है तो बस उधर से ही आ रही थी.

मैं-और सुना तेरे पति के क्या हाल चाल है .

मंजू- छोड़ दिया उसे मैंने कबीर,

मैं- ये तो गलत किया

मंजू- क्या करती कबीर , साले ने जीना ही हराम किया हुआ था . जब देखो शक ही शक करता था . घूँघट नहीं किया तो उसको दिक्कत. छत पर खड़ी हो गयी तो शक, एक दिन फिर मैंने फैसला ले लिया. माँ-बाप को दिक्कत हुई कुछ दिन रही उनके साथ तो भाई-भाभी बहनचोदो को परेशानी होने लगी . पर फिर किस्मत ने साथ दिया और नौकरी मिल गयी अभी ठीक है सब

मैंने मंजू के सर को सहलाया.

मंजू- चल घर चलते है बहुत बाते करनी है तुझसे

मैं- तू चल मैं आता हूँ इसी बहाने तेरे माँ-बाप से भी मिल लूँगा.

मंजू- उनसे मिलना है तो उनके घर जाना, मैं अलग रहती हूँ उनसे.

मैं- क्या यार तू भी

मंजू- नयी बस्ती में घर बना लिया है मैंने

मैं- भाई भाभी के घर की तरफ

मंजू- हाँ , उधर ही

मैं- कैसी है भाभी

मंजू- जी रही है . तुझे बहुत याद करती है वो . एक बार मिल ले

मैं- अभी नहीं , थोड़ी देर अपनी जमीन को निहार लेने दे फिर आता हूँ.

मंजू- मैं भी रूकती हूँ तेरे साथ ही ,

मैं मुस्कुरा दिया .

मंजू मेरे बचपन की साथी, साथ ही पले बढे साथ ही पढाई की . बहुत बाते उसकी सुनी बहुत सुनाई.

“याद है तुझे ऐसे ही मेरे काँधे पर सर रख कर बैठा करता था तू ” बोली वो

मैं- क्या दिन थे यार वो. न कोई फिकर ना किसी से लेना देना बस अपनी मस्ती में मस्त.

मंजू- इतने दिन तू लापता रहा तुझे याद नहीं आई किसी की भी .

मैं- तुझे तो मालूम ही है क्या हालात थे उस वक्त. कुछ समझ नहीं आ रहा था की क्या हो रहा है. घर को ना जाने किसकी नजर लगी. माँ-बाप का मरना आसान नहीं होता जवान बेटे के लिए. और फिर परिवार का रंग तो देख ही लिया.

मंजू- पर घर नहीं छोड़ना था कबीर

मैं- कौन जाना चाहता था इस जन्नत को छोड़ कर मंजू, पर जाना पड़ा अगर नहीं जाता तो तू भी लाश ही देखती मेरी.

मंजू ने अपना हाथ मेरे मुह पर रखा और बोली- ऐसा मत बोल कबीर.

मैं- तुझे बताऊंगा की मेरे साथ क्या हुआ था सही वक्त आने दे.

चबूतरे पर बैठे मैंने मंजू के हाथ को अपने हाथ में ले लिया. आसमान से हलकी हलकी बूंदे गिरने लगी थी.

मंजू- अबका सा सावन बहुत सालो बाद आया है

मैं- हम भी तो बहुत सालो बाद मिले है

मंजू- मिलने से याद आया निशा कैसी है . मिली क्या तुझे .

मैं- ठीक ही होगी , मालूम हुआ की बड़ी अफसर हो गयी है पुलिस में

मंजू- पता है मुझे नौकरी लगते ही सबसे पहले वो शिवाले ही आई थी . पर तू ना मिला. फिर शायद वो भी अपनी जिन्दगी में रम गयी अरसा हो गया उसे मिले हुए.

मैं- ठीक ही तो हैं न , उसे भी उसके हिस्से की ख़ुशी मिलनी ही चाहिए. ये बता मुझे मालूम हुआ की चाचा बहुत बड़ा बन गया है.

मंजू- ऐसा ही है .

बारिश रफ़्तार बढाने लगी थी. आस्मां काले बादलो से ढक सा गया था .

मंजू- जोर का में बरसेगा, चलना चाहिए.

मैं-तुझे ठीक लगे तो हवेली चल मेरे साथ

मंजू- ये भी कोई कहने की बात है पर अभी नहीं, फिलहाल तू मेरे घर चलेगा. बहुत दिन बीते साथ खाना खाए हुए. फिर तू जहाँ कहेगा चलूंगी.

मैं- आलू के परांठे बनाएगी न .

मंजू- तू चल तो सही यार.

फूलो के डिजाइन वाली साडी में मंजू बड़ी ही गंडास लग रही थी वजन बढ़ा लिया था उसने. ऊपर से ये में. भीगते हुए हम लोग उसके घर तक आये. भीगी जुल्फों को झटकते हुए मंजू ताला खोलने को झुकी तो उसकी गांड पर दिल ठहर सा गया.

“अन्दर आजा ” बोली वो.

मैं- तू चल मैं आया.

मैंने गली में देखते हुए कहा

मंजू- थोडा दूर है उनका घर ऐसे नहीं दिखेगा.

मैं अन्दर चल दिया. दो कमरों का घर था मंजू का एक रसोई.

मैं- अच्छा सजाया है

मंजू- जो है यही है. . तौलिया ले और बदन पोंछ ले वर्ना बीमार हो जायेगा.

मैंने उसकी बात मानी, उसने भी अपने कपडे बदले और खाना बनाने लगी. .

“ऐसे क्या देख रहा है ” बोली वो

मैं- बस तुझे ही देख रहा हूँ

मंजू- सब कुछ तो देख लिया तूने अब क्या कसर बाकी रही .

मैं- तू जाने या ये मन जाने


“देख तो सही मसाला ठीक है या नहीं ” मंजू ने आलू से सनी ऊँगली मेरे होंठो पर लगाई मैंने मुह खोला और उसकी ऊँगली को चूसने लगा. मसाले का स्वाद था या बचपन के किये कांडो की यादे. हमारी नजरे आपस में मिली और मंजू ने अपने तपते होंठो को मेरे होंठो से जोड़ लिया.
Bhai sahab bahut badhiya kahani hai yr, ab ye janna hai ke aakhir apne Hero ke sath kya hua tha, lagta hai flashback jaldi aane wala hai
 

R_Raj

Engineering the Dream Life
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Aye Haye Fir Se Gaw Aur Firse Koi Nisha-Kabir
Mind-Blowing Updated Bhai !


Bahot sare Kand kiya Hai kabir ne gaw me pehle
Manju Ko Bhi lapeta hai kahi na kahi 😀


sawal man me bahot sare uth rahe hai
dhere dhere sabke uttar milenge !
Sare Kand aur Raj se parda uthega !
 

HalfbludPrince

मैं बादल हूं आवारा
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90,169
259
Sari
हम्म लगता है जर , जोरू, ज़मीन के राज गाव मैं दफ़न है

पुरानी दोस्त मिल गई पुराना प्यार और परिवार बाक़ी है
सारी लड़ाई इन्हीं तीन चीजों की ही तो है
 
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