#32
“कह दो के ये झूठ है ” मैंने उसे अपने से दूर करते हुए कहा
“सब कुछ झूठ ही तो है कबीर . ” उसने कहा
“तुमने इस्तेमाल किया मेरा , धोखा किया मेरे साथ ” मैंने कहा
“धोखा नहीं मेरे लिए मौका था वो कबीर, इतने साल तुम साथ रहे तुम समझ नहीं पाए तो मेरा कोई दोष नहीं ” उसने कहा
मैं- वो लड़की तुम्हारा ही मोहरा थी न, तुमने अपने फायदे के लिए मुझे गाजी से लड़ा दिया
“जंग मे सब जायज होता है कबीर, दिल पर इतना बोझ लेने की जरुरत नहीं .धंधा है धंधे में सब कुछ करना पड़ता है. कबीर जीतने दिन तुम्हारे साथ रही इमानदारी से रही , बल्कि तुम्हे यहाँ पाकर मैं इतनी खुश हु की क्या बताऊ तुम्हे अगर मुझे मालूम होता की तुम आने वाले हो तो मैं ना जाने क्या कर देती ” उसने मेरा हाथ पकड़ा
“इस से पहले की मैं तुम्हारे तमाम अहसान भूल जाऊ , इस से पहले की मेरे दिल से तमाम वो लम्हे मिटा दू जो तेरे साथ जिए चली जा यहाँ से और दुआ करना फिर कभी मुलाकात ना हो , अरे तू हक़ से मांगती , तूने तो सोचा नहीं , क्या करवा दिया मुझसे तूने. पाप हो गया मुझसे . गाजी का खौफ दिखा कर तूने अपने मतलब को पूरा कर लिया ” मैंने गुस्से से कहा.
“बहुत भोला है तू कबीर, तू नहीं समझता पर इस दुनिया में दुसरे को रस्ते से हटा कर ही आगे बढ़ा जाता है . सच यही है की जो मैं आज टारे सामने खड़ी हु वही मेरी वास्तविकता है , जिस शहर को तू पीछे छोड़ आया आज वो मेरे कदमो में है. ” उसने गर्व से कहा
मैं- यहाँ किस से हीरे खरीदती थी तू
“”कुछ राज़ , राज ही रहने चाहिए , वो तो मुझे मालूम हुआ की कोई नया खिलाडी आया है तो मैं खुद आ गयी और देख यहाँ तू मिला, तू हाँ तो कह जमाना तेरे कदमो में होगा. तू हमारे साथ कारोबार करेगा तो मालामाल हो जायेगा मेरा वादा है ” उसने कहा
“चाहू तो तेरे हलक से अभी के अभी उसका नाम खींच लू रत्ना, पर यहाँ तेरी गांड तोड़ी न तो फिर अपनी गली में कुत्ता शेर वाली बात हो जाएगी, जिस शहर की तू मालकिन बनी है न मजा तो तभी आएगा जब वो शहर एक बार फिर कबीर को देखेगा . गाजी के परिवार का नाश करवा दिया तूने , तुझे भी बहुत कुछ खोना होगा रत्ना ” मैंने कहा
रत्ना- मत भूल कबीर, उसी शहर में तेरी महबूबा नौकरी करती है .
मैं- तू हाथ तो क्या ऊँगली करके दिखा उसकी तरफ रत्ना
रत्ना- अपना माना है तुझे कबीर.
मैं- माना होता तो बता देती की वो कौन है जो तुझे हीरे बेचता था
रत्ना- सौदेबाजी कर रहा है तू कबीर.
मैं- सौदेबाज़ी ही समझ ले.
रत्ना- वो एक साया है बस कभी सामने नहीं आया , माल पहुंचा गया हमने पैसे पहुंचा दिए , जब मुझे मालूम हुआ की वो खुद आ रहा है तो मैं रोक न सकी खुद को और किस्मत देखिये तुम मिले, मिले भी तो यूँ
मेरी आँखों के सामने ऐसा छल था जिसे गले से निचे उतारना मुश्किल बहुत था, इस औरत ने ऐसा गेम खेला था मेरे साथ , ऐसी परिस्तिथिया बनाई की मैं बिना सोचे समझे वो सब कर बैठा जो नहीं होना चाहिए था. यूँ तो धोखे बहुत खाए थे पर सोचा नहीं था की ऐसा कुछ भी हो सकता है. गाजी के खानदान में अँधेरा हो गया मेरी वजह से,ग्लानी से मन भर गया मेरा. मैंने गाजी से मिलने जाने का सोचा. मैंने निर्णय कर लिया था की शहर के किस्से को यूँ ही नहीं छोडूंगा. उस लड़की की आबरू अगर नहीं बचाता तो दुनिया में इंसानियत, भरोसे, मदद की कोई वैल्यू बचती ही नहीं, वो लड़का बार बार कहता रहा की खुद से आई है ये पर मैंने अपने उन्माद में अनर्थ कर दिया. उस लड़के को उम्र भर विकलांग बना दिया मैंने. कहने को कुछ नहीं बचा था पर करने को बहुत कुछ था
रत्ना गाड़ी में बैठी और जाने लगी, मैं भी जोहरी की दूकान से बाहर आया और पैदल ही आगे बढ़ गया. सर में बहुत तेज दर्द हो रहा था पर हाय रे किस्मत रत्ना की गाड़ी थोड़ी ही दूर गयी होगी की सामने से एक ट्रक ने गाडी को दे मारा. पलक झपकते ही सब कुछ हो गया , इतना तेज धमाका हुआ की कान बहरे ही तो हो गए . ट्रक ने गाडी को कुचल दिया था . हाँफते हुए मैं गाड़ी की तरफ भागा गाड़ी का दरवाजा जाम हो गया था . टूटे शीशे से मैंने अन्दर देखा , रत्ना के बदन में गाड़ी का लोहा घुसा हुआ था , उसकी आँखे खुली थी सांस बाकी थी
“रत्ना , होश कर . आँखे बंद मत कर ” जैसे तैसे उसे गाडी से बाहर निकाला गया , उसे हॉस्पिटल पहुचाया गया पर छोटे शहरो की भी अपनी किस्मत होती है डॉक्टर्स के नाम पर यहाँ बस चुतियापा ही मिलता है . डॉक्टर ने बस इतना कहा की बचा नहीं पाए इसे. बचा नहीं पाये, क्या इतना काफी था, एक जिन्दा औरत लाश बन गयी और डॉक्टर ने सिर्फ इतना कहा की बचा नहीं पाए. कोई जिम्मेदारी नहीं, इन्सान की जान साली इतनी सस्ती की किसी को परवाह ही नहीं की मर रहा है कोई .
“कबीर, तू जानता था इसे ” दरोगा ने मुझसे सवाल किया
मैं- ट्रक ड्राईवर कहाँ है
दरोगा- हॉस्पिटल में है फ़िलहाल तो
मैं- उसे मैं मारूंगा .
दरोगा- कानून अपने हिसाब से काम करेगा .तुम मेरी मदद करो , इसके परिवार को सूचना देनी पड़ेगी.
मैं- ट्रक किसका था .
दरोगा- शांत रहोगे तो सब बता दूंगा, फ़िलहाल ड्राईवर को होश नहीं आया है होश आने पर पूछताछ होगी. ट्रक के मालिक का पता थोड़ी ही देर में मेरे पास आ जायेगा . वैसे कौन थी ये औरत
मैं- जिन्दा थी तो कुछ नहीं थी पर अब बहुत अजीज समझो इसे.
महज इत्तेफाक तो नहीं था ये सब , कोई तो था जो मुझ पर , मेरी हर एक बात पर नजर रखे हुए था कोई तो था जिसने सोचा होगा की रत्ना कही मुझे उसका नाम न बता दे उस से पहले ही उसने रत्ना को रस्ते से हटा दिया. मैं वही हॉस्पिटल बेंच पर बैठ गया . जिन्दगी न जाने क्या क्या मुझे दिखा रही थी. सोचते सोचते मेरी आँख सी लग गयी.
“उठ कबीर , ट्रक के मालिक का नाम पता चल गया है ” दरोगा ने मुझे उठाते हुए कहा
मैं- कौन है वो
दरोगा ने जो नाम मुझे बताया , एक बार तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ.