बहुत ही सुंदर लाजवाब और खुबसुरत अपडेट है भाई मजा आ गया#३१
“बाबा, इस से कहो की ये चली जाये यहाँ से ” मैंने कहा
भाभी- बाबा, मैं कबीर से अकेले में बात करना चाहती हु
बाबा मौके की नजाकत को समझते हुए उठ कर चले गए.
“कुछ कहना था तुमसे ” भाभी मेरे पास बैठते हुए बोली
मैं- कहने सुनने को कुछ नहीं बचा अब , तमाम रिश्ते राख हो चुके है मेरे लिए. मैं लिहाज भूल चूका हु इस से पहले की मेरे मुह से कुछ उल्टा सीधा निकल जाये चली जाओ यहाँ से
भाभी- किस बात का गुरुर है तुझे कबीर इतना
मैं- ये तुम कहती हो भाभी , गुरुर की बात तुम करती हो . गुरुर तो तब था जब हवेली को तोड़ रही थी तुम
भाभी- सौ हवेलिया तुझ पर वार दू पर काश तू समझ पाए
मैं- उफ्फ्फ,ये अदाए कातिल ही गुनाह को सही ठहराए
भाभी- मेरी सिर्फ इतनी चाहत है की तुम सुख से रहो. तुम अपने साथ साथ मंजू की जिन्दगी भी ख़राब कर रहे हो
मैं- तुम्हे उसकी फ़िक्र करने की जरुरत नहीं मुद्दे की बात करो
भाभी- तुम चले जाओ यहाँ से
मैं- रहना भी नहीं चाहता यहाँ पर
भाभी- शायद यही अच्छा रहे सब के लिए
मैं- वैसे भी बचा ही क्या है इस से ज्यादा क्या ही खराबी होगी
भाभी- हमाम में हम सब नंगे ही है
मैं- तुम थोड़ी ज्यादा नंगी हो
भाभी- ऐसे क्यों हो तुम
मैं- ऐसा तुमने बनाया भाभी
भाभी- मैंने, कितना आसान है न अपनी कमीज को दुसरो से ज्यादा उजली समझना
मैं- ये समय गिले शिकवो का तो हरगिज नहीं है वैसे भी ऐसा कोई रास्ता नहीं बचा जिसकी मंजिल तुम हो
भाभी- इस्तेमाल करने के बाद अकसर ऐसा ही होता है, दोष तुम्हारा नहीं ज़माने का दस्तूर ही यही है
मैं- दुनिया, तेरे और मेरे बीच दुनिया तो कभी आई ही नहीं भाभी . दुनिया तो तुम ही थी ना
भाभी- वो दुनिया उजड़ गयी कबीर.
मैं- तो फिर क्यों उसकी राख में ऐसी चिंगारी तलाश रही हो जो अगर भड़की तो फिर रहा सहा भी सुलग जायेगा
भाभी- कैसे समझाऊ तुझे मैं
मैं- फिलहाल मुझे कही जाना है और यदि हम दुबारा न मिले तो बेहतर होगा तुम्हारे लिए भी और मेरे लिए भी . एक बार फिर से मैं नहीं चाहता की मेरी वजह से तेरे घर में मुसीबत आये.
भाभी ने फिर कुछ नहीं कहा जाते जाते बस एक नजर भर कर मुझे देखा और चली गयी. खैर, थोड़ी देर बाद मैं मंजू को लेकर खेतो पर आ गया.
मंजू- इस जगह का मोह कब छोड़ेगा तू
मैं- प्रेम है पगली मोह होता तो कब का छूट जाता.
मंजू- तेरी इन बातो में जो एक बार आया फिर छुट न पाया.
मैं- चूत देगी क्या
मंजू- जानती थी इसीलिए लाया है खेतो पर
मैं- मन में आ गयी यार.
मंजू- चलने से पहले ले लिए
मैं- तुझे क्या लगता है फसल लायक कब तक हो जाएगी ये जमीन
मंजू- जब तक सावन रहेगा सफाई का कोई फायदा नहीं. जितनी बारिश पड़ेगी उतनी मुश्किल बढ़ेगी.
मैं- तुझे क्या लगता है घर वालो ने इतनी उपजाऊ धरा को बंजर क्यों होने दिया.
मंजू- मेहनत कोई करना ही नहीं चाहता था कबीर, बड़े ताउजी फ़ौज से रिटायर होने के बाद या तो ताश खेलते थे या फिर दारू में धुत्त रहते थे, चाचा का अपना धंधा पानी था, भैया-भाभी ने सबसे नाता तोड़ लिया तो जमीन भी रूठ गयी.
मैं- मैं सोचता हूँ इधर ही घर बना लू , तू बता कैसा रहेगा
मंजू- इधर , इस बियाबान में क्या ही करेगा रह कर. आदमी को जीने के लिए बस्ती तो चाहिए ही न
मैं- बस्ती में कोई रहने नहीं देता इधर तू मना कर रही है जाऊ तो कहाँ जाऊ
मंजू- तू जहाँ रहेगा वो जगह घर अपने आप बन जाएगी.
मैं- आ जंगल में चलते है घुमने
मंजू- क्या है तेरे मन में
मैं-बस इतना की तू पनाह दे तेरे आगोश में थोड़ी देर के लिए. आ तुझे कुछ दिखाता हु
जल्दी ही बाड के छेद से होते हुए हम दोनों जंगल में पहुँच गए थे , तालाब के पास से होते हुए हम दोनों उसी जली झोपडी के पास पहुंचे , हालाँकि झोपडी का नमो निशान मिट चूका था .
“क्या ” मंजू ने कहा
मैं- मान ले तू इतनी दूर इस जगह चुदने के लिए क्यों आएगी.
मंजू- मेरा दिमाग ख़राब है क्या , जब मैं कही भी चुद सकती हु तो इधर क्यों
मैं- विचार कर. जंगल में इतनी गहराई में कोई चुदने के लिए आएगा तो दो ही बात हो सकती है
मंजू- पहचान तो नहीं छुपाना चाहती होगी जो भी होगी . क्योंकि जंगल में इतना गहराई में गाँव की औरते आती ही नहीं .
मैं- पहचान का मुद्दा नहीं है मंजू कोई औरत इतनी गहराई में दो ही कारण से आ सकती है पहला की वो जंगल को अच्छे से समझती है दूसरा ये की जरुर वो किसी नाजुक रिश्ते में चुद रही हो.
मंजू- दोनों ही कारण बेतुके है कबीर, सिर्फ चुदाई के लिए तो कोई नहीं आएगा, क्योंकि गाँव में मौके बहुँत मिल जाते है इस कम के लिए . मैं ये मानती हु की चुदाई के अलावा कोई दूसरी वजह होगी
मैं- और क्या वजह हो सकती है
मंजू- कबीर, तुझे याद है बचपन में हम लोग ताउजी को खाना देने के लिए जंगल में बनी चोकी पर जाते थे.
मैं- हां
मंजू- तब ताउजी हमें क्या बताया करते थे
मैं- याद है मुझे
मंजू- जंगल हमारा दूसरा घर है , ये तमाम वो चीजे देता है जिसकी हमें जरुरत है पानी, लकडिया फल आदि. तो कबीर ये जंगल किसी और का भी तो घर हो सकता है न . अब गाँव बस्ती में इतने लोग है हो सकता है कोई न कोई भटकता फिर रहा हो इसमें सामान्य कुछ भी नहीं
मैं- यहाँ एक झोपडी होती थी और मुझे पूर्ण विश्वास है की कोई न कोई उसमे चुदती थी जरुर
मंजू- मैं इंकार नहीं करती तेरी बात से पर वो कोई भी हो सकता है न
मैं- चल छोड़ इस बात को और नाडा खोल ले अब
मंजू- खेत पर ही कर लियो चारपाई भी है उधर .
मैं- पेड़ के पास झुक जा
मंजू- मजा नहीं आयेगा उसमे
हम दोनों हंस दिए, खेत पर वापिस आने के बाद हमने चुदाई का आनंद लिया और हम ताई जी के घर आ गए. मैं ये सारी बाते निशा के साथ करना चाहता था , मैंने सोचा की जब हीरो के बड़े खरीदार से मिलने जाऊंगा तभी उसके लिए सन्देश भेजूंगा.
“ताईजी मैं खेतो पर दुबारा खेती करने को लेकर बहुत ही गंभीर हु ” मैंने कहा
ताई- कबीर, यदि तुम्हारी इच्छा है तो कर लो पर मेरा ये मानना है की जमीन की हालत खस्ता है बहुत मेहनत लगेगी
मैं- कर लेंगे उसमे क्या है
ताई- ठीक है फिर .
मैं- बहन भाई नहीं आये परिवार में मौत की खबर नहीं क्या उनको
ताई- जान कर ही मैंने उनको खबर नहीं की
मैं- परिवार के दुःख में शामिल होना चाहिए उनको
ताई- बेशक, पर आजकल की औलाद अपनी मर्जी करती है गाँव से इस घर से उनको कोई मोह नहीं रहा शहर ही उनकी जिन्दगी है . मैंने भी इस सच को स्वीकार कर लिया
मैंने फिर कुछ नहीं कहा. अगले दिन मैं शहर पहुँच गया , जोहरी की दुकान पर , उसने मुझे देखा और अन्दर आने को कहा और जब मैं उसके अन्दर वाले ऑफिस में पहुंचा तो खरीदार को देख कर मेरी आँखों ने पहचानने से मना कर दिया.
“तुम, तो तुम हो उन हीरो की खरीदार . तुम, तुमने छुपाया मुझसे. इसका मतलब वो सब झूठ था . ” मैंने अविश्वास से कहा
“हां मैं कबीर, सब कुछ मैं ही तो हु ” उसने मुस्कुराते हुए मुझे सीने से लगा लिया
ये अध्याय से तो पक्का हो गया की भाभी और कबीर के बीच काफी नाजूक अंतरंग संबंध रहें होगे
मंजु और कबीर के बीच का रीस्ता हर संबंधों के परे हैं
शहर में में ये हिरा खरीदने आया कौन हैं
खैर देखते हैं आगे