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Incest चाची - भतीजे के गुलछर्रे

Premkumar65

Don't Miss the Opportunity
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चाचाजी के बार बार आग्रह भरे खत आने से आखिर मैंने यह गर्मी की छुट्टी अपने गाँव वाले घर में बिताने का फ़ैसला किया. मैं जब गाँव पहुंचा तो चाचाजी बहुत खुश हुए. चाची को पुकारते हुए बोले. "लो, अनुराग आ गया तुम्हारा साथ देने को. अनुराग बेटे, अब मैं निश्चिंत मन से दौरे पर जा सकता हूँ नहीं तो महीना भर अकेले रह कर तुम्हारी चाची बोर हो जाती."

माया चाची मुस्कराती हुई मेरी ओर देखकर बोली. "हाँ लल्ला, बहुत अच्छा किया जो आ गये. वैसे मैंने अपनी भांजी को भी चिठ्ठी लिखी है, शायद वो भी आ जाये अगले हफ़्ते. तेरे आने का पक्का नहीं था ना इसलिये"

चाचाजी सामान अपनी बैग में भरते हुए बोले. "चलो, दो से तीन भले. मैं तो चला. भाग्यवान संभाल कर रहना. वैसे अब अनुराग है तो मुझे कोई चिंता नहीं. अनुराग बेटे चाची का पूरा खयाल रखना, उसकी हर जरूरत पूरी करना, अब महीने भर घर को और चाची को तेरे सहारे ही छोड. कर जा रहा हूँ" चाचाजी ने बैग उठायी और दौरे पर निकल गये.

मेरे राजेशचाचा बड़े हेंडसम आदमी थे. गठीला स्वस्थ बदन और गेंहुआ रंग. मेरे पिताजी के छोटे भाई थे और गाँव के बड़े पुश्तैनी घर में रहते थे. वहीं रहकर एक अच्छी कंपनी के लिये आस पास के शहरों में मार्केटिंग की नौकरी करते थे इसलिये अक्सर बाहर रहते थे. गाँव के घर में चाची के सिवाय और कोई नहीं था. पाँच साल पहले बत्तीस की आयु में शादी की थी, वह भी घर वालों की जिद पर, नहीं तो शादी करने का उनका कभी इरादा नहीं था.

माया चाची उनसे सात आठ साल छोटी थी. वे शादी में सिर्फ़ पच्चीस छब्बीस साल की होंगी. उन्हें अब तक कोई संतान नहीं हुई थी. घर वालों को इसमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ था क्योंकी चाचाजी को पहले से ही शादी मे दिलचस्पी नहीं थी. मुझे तो लगता है कि उन्हों ने कभी माया चाची का चुंबन भी नहीं लिया होगा, संभोग तो दूर की बात रही.

मैं चाचाजी की शादी में छोटा था. तब शादी के जोड़े में लिपटी वह कमसिन सुंदर चाची मुझे बहुत भा गयी थी. उसके बाद इन पाँच सालों में मैं उन्हें बस एक बार दो दिन के लिये मिला था. गाँव आने का मौका भी नहीं मिला. आज उन्हें फ़िर देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा. सच बात तो यह है कि बहुत संयम बरतने पर भी न मान कर मेरा लंड खड़ा होने लगा.

मुझे बड़ा अटपटा लगा क्योंकी चाचाजी की मैं इज्जत करता था. उनकी जवान पत्नी की ओर मेरे ऐसे विचार मन में आने से मुझे शर्म सी लगी. पर एक तो मेरा अठारह साल का जोश, दूसरे माया चाची का भरपूर जोबन. वे अब तीस इकतीस साल की भरी पूरी परिपक्व जवान महिला थी और घूँघट लिये हुए सादी साड़ी में भी उनका रूप छुपाये नहीं छुप रहा था.

वे बड़ा सा सिंदूर लगायी हुई थी और बिना लिपस्टिक के भी उनके कोमल उभरे होंठ लाल लाल गुलाब की पंखुड़ियों से लग रहे थे. साड़ी उनके बदन में लिपटी हुई थी, फ़िर भी उसमें से भी उनके वक्ष का उभार नहीं छुपता था. हरी चूड़ियाँ पहने उनकी गोरी बाँहें देख कर सहसा मेरे मन में विचार आ गया कि चाची का बदन नग्न कैसा दिखेगा? अपने इस कामुक मन पर मैंने फ़िर अपने आप को कोस डाला.

मेरी नजर शायद उन्हों ने पहचान ली थी क्योंकी मेरी ओर देखकर चाची बड़ी शरारती नजर से देख कर बोली. "कितने जवान हो गये हो लल्ला, इतना सा देखा था तुझे. शादी कर डालो अब, गाँव के हिसाब से तो अब तक तुम्हारी बहू आ जाना चाहिये."

उनके बोलने के और मेरी ओर देखने के अंदाज से मैं एक बात तुरंत समझ गया. माया चाची बड़ी "चालू" चीज़ थी. कम से कम मेरे साथ तो बहुत इतरा रही थी. मैं थोड़ा शरमा कर इधर उधर देखने लगा.

हम अब अकेले थे इसलिये वे घूँघट छोड. कर अपने कपड़े ठीक करते हुए मुझसे गप्पे लगाने लगी. उनके बाल भी बड़े लंबे खूबसूरत थे जिसका उन्हों ने जुड़ा बांध रखा था. "चाय बना कर लाती हूँ लल्ला." कहकर वे चली गई. अब साड़ी उनकी कमर से हट गयी थी और उस गोरी चिकनी कमर को देखकर और उनके नितंब डुलाकर चलने के अंदाज से ही मेरा लंड और कस कर खड़ा हो गया.

वे शायद इस बात को जानती थी क्योंकी जान बूझ कर अंदर से पुकार कर बोली. "यहीं रसोई में आ जाओ लल्ला. हाथ मुंह भी धो लो" मेरा ऐसा कस कर खड़ा था कि मैं उठ कर खड़ा होने का भी साहस नहीं कर सकता था, चल कर उनके सामने जाने की तो दूर रही. "बाद में धो लूँगा चाची, नहा ही लूँगा, चाय आप यहीं ले आइये ना प्लीज़."

वे चाय ले कर आई. मेरी ओर देखने का अंदाज उनका ऐसा था कि जैसे सब जानती थी कि मेरी क्या हालत है. बातें करते हुए बड़ी सहज रीति से उन्हों ने अपना ढला हुआ आँचल ठीक किया. यह दस सेकंड का काम करने में उन्हें पूरे दो मिनिट लगे और उन दो मिनटों में पाँच छह बार नीचे झुककर उन्हों ने अपनी साड़ी की चुन्नटें ठीक की.

इस सारे कार्य का उद्देश्य सिर्फ़ एक था, अपने स्तनों का उभार दिखा कर मेरा काम तमां करना जिसमें माया चाची शत प्रतिशत सफ़ल रही. उस लाल लो-कट की चोली में उनके उरोज समा नहीं पा रहे थे. जब वे झुकी तो उन गोरे मांसल गोलों के बीच की खाई मुझे ऐसी उत्तेजित कर गई कि अपने हाथों को मैंने बड़ी मुश्किल से अपने लंड पर जाने से रोका नहीं तो हस्तमैथुन के लिये मैं मरा जा रहा था.

मेरा हाल देख कर चाची ने मुझ पर तरस खाया और अपना छिछोरापन रोक कर मेरा कमरा ठीक करने को ऊपर चली गई. मुझे अपना लंड बिठाने का समय देकर कुछ देर बाद बातें करती हुई मुझे कमरे में ले गयी. "शाम हो गयी है अनुराग, तुम नहा लो और नीचे आ जाओ. मैं खाने की तैयारी करती हूँ."

"इतनी जल्दी खाना चाची?" मैंने पूछा. वे मेरी पीठ पर हाथ रख कर बोली. "जल्द खाना और जल्द सोना, गाँव में तो यही होता है लल्ला. तुम भी आदत डाल लो." और बड़े अर्थपूर्ण तरीके से मेरी ओर देखकर वे मुस्कुराने लगी.

मैं हड़बड़ा गया. किसी तरह अपने आप को संभाल कर नहाने जाने लगा तो पीछे से चाची बोली. "जल्दी नहाना अच्छे बच्चों जैसे, कोई शरारत नहीं करना अकेले में" और खिलखिलाती हुई वे सीढ़ियाँ उतर कर रसोई में चली गई. मैं थोड़ा शरमा गया क्योंकी मुझे लगा कि उनका इशारा इस तरफ़ था कि नहाते हुए मैं हस्तमैथुन न करूँ.

चाची के इस खेल से मेरे मन में एक बड़ी हसीन आशा जाग उठी. और वह आशा विश्वास में बदल गयी जब मैं नहा कर रसोई में पहुंचा. अब मैं पूरी तैयारी से आया था. मन मार कर किसी तरह मैंने अपने आप को हस्तमैथुन करने से रोका था. बाद में लंड को खड़ा पेट से सटाकर और जाँघिया पहनकर ऊपर से उसी पर मैंने पाजामे की नाड़ी बांध ली थी और ऊपर से कुर्ता पहन लिया था. अब मैं चाहे जितना मजा ले सकता था, लंड खड़ा भी होता तो किसी को दिखता नहीं.

चाची रसोई की तैयारी कर रही थी. मैं वहीं कुर्सी पर बैठ कर उनसे बातें करने लगा. चाची ने कुछ बैंगन उठाये और हंसिया लेकर उन्हें काटने मेरे सामने जमीन पर बैठ गई. अपनी साड़ी घुटनों के ऊपर कर के एक टांग उन्हों ने नीचे रखी और दूसरी मोड कर हँसिये के पाट पर अपना पाँव रखा. फ़िर वे बैंगन काटने लगी.

उनकी गोरी चिकनी पिंडलियों और खूबसूरत पैरों को मैं देखता हुआ मजा लेने लगा. वे बड़े सहज भाव से सब्जी काट रही थी. अचानक मुझे जैसे शॉक लगा और मेरा लंड ऐसे उछला जैसे झड़ जायेगा. हुआ यह कि चाची ने आराम से बैठने को थोड़ा हिल डुलकर अपनी टाँगे और फैलाई. इस से उनकी गोरी नग्न जांघें तो मुझे दिखी ही, उनके बीच काले घने बालों से आच्छादित उनके गुप्तांग का भी दर्शन हुआ. माया चाची ने साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहना था.

मैं शरमा गया और बहुत उत्तेजना भी हुई. पहले मैने यह समझा कि उन्हें पता नहीं है कि उनका सब खजाना मुझे दिख रहा है इसलिये झेंप कर नजर फ़िरा कर दूसरी ओर देखकर मैं उनसे बातें करने लगा. पर वे कहाँ मुझे छोड़ने वाली थी. दो ही मिनिट में शरारत भरे अंदाज में वे बोली. "चाची क्या इतनी बुरी है लल्ला कि बात करते समय उसकी ओर देखना भी नहीं चाहते?"

मैंने मुड कर उनकी ओर देखा और कहा. "नहीं चाची, आप तो बहुत सुंदर हैं, अप्सरा जैसी, मुझे तो लगता है आप को लगातार देखता रहूँ पर आप बुरा न मान जाएँ इसलिये घूरना नहीं चाहता था."

"तो देखो ना लल्ला. ठीक से देखो. मुझे भी अच्छा लगता है कि तेरे जैसा कोई प्यारा जवान लड़का प्यार से मुझे देखे. और फ़िर तो तू मेरा भतीजा है, घर का ही लड़का है, तेरे तकने को मैं बुरा नहीं मानती" कहकर उस मतवाली नारी ने अपनी टाँगे बड़ी सहजता से और फ़ैला दी और बैंगन काटती रही.

अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. चाची मुझे रिझा रही थी. मैं भी शरम छोड. कर नजर जड़ा कर उनके उस मादक रूप का आनंद लेने लगा. गोरी फ़ूली बुर पर खूब रेशमी काले बाल थे और मोटी बुर के बीच की गहरी लकीर थोड़ी खुल कर उसमें से लाल लाल योनिमुख की भी हल्की झलक दिख रही थी.

पाँच मिनिट के उस काम में चाची ने पंद्रह मिनिट लगाये और मुझसे जान बूझ कर उकसाने वाली बातें की. मेरी गर्लफ़्रेन्ड्स हैं या नहीं, क्यों नहीं हैं, आज के लड़के लड़कियां तो बड़े चालू होते हैं, मेरे जैसा सुंदर जवान लड़का अब तक इतना दबा हुआ क्यों है इत्यादि इत्यादि. मैं समझ गया कि चाची जरूर मुझ पर मेहरबान होंगी, शायद उसी रात मैं खुश भी हुआ और चाचाजी का सोच कर थोड़ी अपराधीपन की भावना भी मन में हुई.

आखिर चाची उठीं और खाना बनाने लगी. मैं बाहर के कमरे में जाकर किताब पढ़ने लगा. अपनी उबलती वासना शांत करने का मुठ्ठ मारने के सिवाय कोई चारा नहीं था इसलिये मन लगाकर जो सामने दिखा, पढ़ता रहा. कुछ समय बाद चाची ने खाने पर बुलाया और हम दोनों ने मिल कर बिलकुल यारों जैसी गप्पें मारते हुए खाना खाया.

खाना समाप्त करके मैं अपने कमरे में जाकर सामान अनपैक करने लगा. सोच रहा था कि चाची कहाँ सोती हैं और आज रात कैसे कटेगी. तभी वे ऊपर आई और मुझे छत पर बुलाया. "अनुराग, यहाँ आ और बिस्तर लगाने में मेरे मदद कर."

मैं छत पर गया. मेरा दिल डूबा जा रहा था. गरमी के दिन थे. साफ़ था कि सब लोग बाहर खुले में सोते थे. ऐसी हालत में क्या बात बननी थी चाची के साथ. छत पर दो खाटें थी. हमने उनपर गद्दियाँ बिछाई. "गरमी में बाहर सोने का मजा ही और है लल्ला" कह कर मुझे चिढ़ाती हुई वे मच्छरदानियाँ लेने चली गई.

वापस आई तो दोनों मच्छरदानियाँ फ़टी निकलीं. माया चाची मेरी नजरों में नजर डाल कर बोली. "मच्छर तो बहुत हैं अनुराग, सोने नहीं देंगे. गरमी इतनी है कि नीचे सोया नहीं जायेगा. ऐसा कर, तू खाटें सरकाकर मिला ले, मैं डबल वाली मच्छादानी ले आती हूँ. तू शरमायेगा तो नहीं मेरे साथ सोने में? वैसे मैं तेरी चाची हूँ, मां जैसी ही समझ ले."

मैं शरमा कर कुछ बुदबुदाया. चाची मंद मंद मुस्कराकर डबल मच्छरदानी लेने चले गई. वापस आई तो हम दोनों उसे बांधने लगे. मैंने साहस करके पूछा. "चाची, आजू बाजू वाले देखेंगे तो नहीं." वे हंस पड़ीं. "इसका मतलब है तूने छत ठीक से नहीं देखी." मैंने गौर किया तो समझ गया. आस पास के घरों से हमारा मकान बहुत ऊंचा था. दीवाल भी अच्छी ऊंची थी. बाहर का कोई भी छत पर नहीं देख सकता था.

तभी चाची ने मीठा ताना मारा. "और लोग देखें भी तो क्या हुआ बेटे. तू तो इतना सयाना बच्चा है, तुरंत सो जायेगा सिमट कर." मैंने मन ही मन कहा कि चाची मौका दो तो दिखाता हूँ कि यह बच्चा तुम्हारे मतवाले शरीर का कैसे रस निकालता है.

आखिर चाची नीचे जाकर ताला लगाकर बत्ती बुझाकर ऊपर आई. मैं तब तक मच्छरदानी खोंस कर अपनी खाट पर लेट गया था. चाची भी दूसरी ओर से अंदर आकर दूसरी खाट पर लेट गई.

पास से चाची के बदन की मादक खुशबू ने फ़िर अपना जादू दिखाया और मेरा मस्त खड़ा हो गया. चाची भी गप्पें मारने के मूड में थी और फ़िर वही गर्लफ़्रेन्ड वाली बातें मुझसे करने लगी. मेरा लंड अब तक अपनी लगाम से छूटकर पाजामे में तंबू बना कर खड़ा हो गया था.
mast kahani hai Chachi Bhatije ki.
 

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173
चाचाजी के बार बार आग्रह भरे खत आने से आखिर मैंने यह गर्मी की छुट्टी अपने गाँव वाले घर में बिताने का फ़ैसला किया. मैं जब गाँव पहुंचा तो चाचाजी बहुत खुश हुए. चाची को पुकारते हुए बोले. "लो, अनुराग आ गया तुम्हारा साथ देने को. अनुराग बेटे, अब मैं निश्चिंत मन से दौरे पर जा सकता हूँ नहीं तो महीना भर अकेले रह कर तुम्हारी चाची बोर हो जाती."

माया चाची मुस्कराती हुई मेरी ओर देखकर बोली. "हाँ लल्ला, बहुत अच्छा किया जो आ गये. वैसे मैंने अपनी भांजी को भी चिठ्ठी लिखी है, शायद वो भी आ जाये अगले हफ़्ते. तेरे आने का पक्का नहीं था ना इसलिये"

चाचाजी सामान अपनी बैग में भरते हुए बोले. "चलो, दो से तीन भले. मैं तो चला. भाग्यवान संभाल कर रहना. वैसे अब अनुराग है तो मुझे कोई चिंता नहीं. अनुराग बेटे चाची का पूरा खयाल रखना, उसकी हर जरूरत पूरी करना, अब महीने भर घर को और चाची को तेरे सहारे ही छोड. कर जा रहा हूँ" चाचाजी ने बैग उठायी और दौरे पर निकल गये.

मेरे राजेशचाचा बड़े हेंडसम आदमी थे. गठीला स्वस्थ बदन और गेंहुआ रंग. मेरे पिताजी के छोटे भाई थे और गाँव के बड़े पुश्तैनी घर में रहते थे. वहीं रहकर एक अच्छी कंपनी के लिये आस पास के शहरों में मार्केटिंग की नौकरी करते थे इसलिये अक्सर बाहर रहते थे. गाँव के घर में चाची के सिवाय और कोई नहीं था. पाँच साल पहले बत्तीस की आयु में शादी की थी, वह भी घर वालों की जिद पर, नहीं तो शादी करने का उनका कभी इरादा नहीं था.

माया चाची उनसे सात आठ साल छोटी थी. वे शादी में सिर्फ़ पच्चीस छब्बीस साल की होंगी. उन्हें अब तक कोई संतान नहीं हुई थी. घर वालों को इसमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ था क्योंकी चाचाजी को पहले से ही शादी मे दिलचस्पी नहीं थी. मुझे तो लगता है कि उन्हों ने कभी माया चाची का चुंबन भी नहीं लिया होगा, संभोग तो दूर की बात रही.

मैं चाचाजी की शादी में छोटा था. तब शादी के जोड़े में लिपटी वह कमसिन सुंदर चाची मुझे बहुत भा गयी थी. उसके बाद इन पाँच सालों में मैं उन्हें बस एक बार दो दिन के लिये मिला था. गाँव आने का मौका भी नहीं मिला. आज उन्हें फ़िर देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा. सच बात तो यह है कि बहुत संयम बरतने पर भी न मान कर मेरा लंड खड़ा होने लगा.

मुझे बड़ा अटपटा लगा क्योंकी चाचाजी की मैं इज्जत करता था. उनकी जवान पत्नी की ओर मेरे ऐसे विचार मन में आने से मुझे शर्म सी लगी. पर एक तो मेरा अठारह साल का जोश, दूसरे माया चाची का भरपूर जोबन. वे अब तीस इकतीस साल की भरी पूरी परिपक्व जवान महिला थी और घूँघट लिये हुए सादी साड़ी में भी उनका रूप छुपाये नहीं छुप रहा था.

वे बड़ा सा सिंदूर लगायी हुई थी और बिना लिपस्टिक के भी उनके कोमल उभरे होंठ लाल लाल गुलाब की पंखुड़ियों से लग रहे थे. साड़ी उनके बदन में लिपटी हुई थी, फ़िर भी उसमें से भी उनके वक्ष का उभार नहीं छुपता था. हरी चूड़ियाँ पहने उनकी गोरी बाँहें देख कर सहसा मेरे मन में विचार आ गया कि चाची का बदन नग्न कैसा दिखेगा? अपने इस कामुक मन पर मैंने फ़िर अपने आप को कोस डाला.

मेरी नजर शायद उन्हों ने पहचान ली थी क्योंकी मेरी ओर देखकर चाची बड़ी शरारती नजर से देख कर बोली. "कितने जवान हो गये हो लल्ला, इतना सा देखा था तुझे. शादी कर डालो अब, गाँव के हिसाब से तो अब तक तुम्हारी बहू आ जाना चाहिये."

उनके बोलने के और मेरी ओर देखने के अंदाज से मैं एक बात तुरंत समझ गया. माया चाची बड़ी "चालू" चीज़ थी. कम से कम मेरे साथ तो बहुत इतरा रही थी. मैं थोड़ा शरमा कर इधर उधर देखने लगा.

हम अब अकेले थे इसलिये वे घूँघट छोड. कर अपने कपड़े ठीक करते हुए मुझसे गप्पे लगाने लगी. उनके बाल भी बड़े लंबे खूबसूरत थे जिसका उन्हों ने जुड़ा बांध रखा था. "चाय बना कर लाती हूँ लल्ला." कहकर वे चली गई. अब साड़ी उनकी कमर से हट गयी थी और उस गोरी चिकनी कमर को देखकर और उनके नितंब डुलाकर चलने के अंदाज से ही मेरा लंड और कस कर खड़ा हो गया.

वे शायद इस बात को जानती थी क्योंकी जान बूझ कर अंदर से पुकार कर बोली. "यहीं रसोई में आ जाओ लल्ला. हाथ मुंह भी धो लो" मेरा ऐसा कस कर खड़ा था कि मैं उठ कर खड़ा होने का भी साहस नहीं कर सकता था, चल कर उनके सामने जाने की तो दूर रही. "बाद में धो लूँगा चाची, नहा ही लूँगा, चाय आप यहीं ले आइये ना प्लीज़."

वे चाय ले कर आई. मेरी ओर देखने का अंदाज उनका ऐसा था कि जैसे सब जानती थी कि मेरी क्या हालत है. बातें करते हुए बड़ी सहज रीति से उन्हों ने अपना ढला हुआ आँचल ठीक किया. यह दस सेकंड का काम करने में उन्हें पूरे दो मिनिट लगे और उन दो मिनटों में पाँच छह बार नीचे झुककर उन्हों ने अपनी साड़ी की चुन्नटें ठीक की.

इस सारे कार्य का उद्देश्य सिर्फ़ एक था, अपने स्तनों का उभार दिखा कर मेरा काम तमां करना जिसमें माया चाची शत प्रतिशत सफ़ल रही. उस लाल लो-कट की चोली में उनके उरोज समा नहीं पा रहे थे. जब वे झुकी तो उन गोरे मांसल गोलों के बीच की खाई मुझे ऐसी उत्तेजित कर गई कि अपने हाथों को मैंने बड़ी मुश्किल से अपने लंड पर जाने से रोका नहीं तो हस्तमैथुन के लिये मैं मरा जा रहा था.

मेरा हाल देख कर चाची ने मुझ पर तरस खाया और अपना छिछोरापन रोक कर मेरा कमरा ठीक करने को ऊपर चली गई. मुझे अपना लंड बिठाने का समय देकर कुछ देर बाद बातें करती हुई मुझे कमरे में ले गयी. "शाम हो गयी है अनुराग, तुम नहा लो और नीचे आ जाओ. मैं खाने की तैयारी करती हूँ."

"इतनी जल्दी खाना चाची?" मैंने पूछा. वे मेरी पीठ पर हाथ रख कर बोली. "जल्द खाना और जल्द सोना, गाँव में तो यही होता है लल्ला. तुम भी आदत डाल लो." और बड़े अर्थपूर्ण तरीके से मेरी ओर देखकर वे मुस्कुराने लगी.

मैं हड़बड़ा गया. किसी तरह अपने आप को संभाल कर नहाने जाने लगा तो पीछे से चाची बोली. "जल्दी नहाना अच्छे बच्चों जैसे, कोई शरारत नहीं करना अकेले में" और खिलखिलाती हुई वे सीढ़ियाँ उतर कर रसोई में चली गई. मैं थोड़ा शरमा गया क्योंकी मुझे लगा कि उनका इशारा इस तरफ़ था कि नहाते हुए मैं हस्तमैथुन न करूँ.

चाची के इस खेल से मेरे मन में एक बड़ी हसीन आशा जाग उठी. और वह आशा विश्वास में बदल गयी जब मैं नहा कर रसोई में पहुंचा. अब मैं पूरी तैयारी से आया था. मन मार कर किसी तरह मैंने अपने आप को हस्तमैथुन करने से रोका था. बाद में लंड को खड़ा पेट से सटाकर और जाँघिया पहनकर ऊपर से उसी पर मैंने पाजामे की नाड़ी बांध ली थी और ऊपर से कुर्ता पहन लिया था. अब मैं चाहे जितना मजा ले सकता था, लंड खड़ा भी होता तो किसी को दिखता नहीं.

चाची रसोई की तैयारी कर रही थी. मैं वहीं कुर्सी पर बैठ कर उनसे बातें करने लगा. चाची ने कुछ बैंगन उठाये और हंसिया लेकर उन्हें काटने मेरे सामने जमीन पर बैठ गई. अपनी साड़ी घुटनों के ऊपर कर के एक टांग उन्हों ने नीचे रखी और दूसरी मोड कर हँसिये के पाट पर अपना पाँव रखा. फ़िर वे बैंगन काटने लगी.

उनकी गोरी चिकनी पिंडलियों और खूबसूरत पैरों को मैं देखता हुआ मजा लेने लगा. वे बड़े सहज भाव से सब्जी काट रही थी. अचानक मुझे जैसे शॉक लगा और मेरा लंड ऐसे उछला जैसे झड़ जायेगा. हुआ यह कि चाची ने आराम से बैठने को थोड़ा हिल डुलकर अपनी टाँगे और फैलाई. इस से उनकी गोरी नग्न जांघें तो मुझे दिखी ही, उनके बीच काले घने बालों से आच्छादित उनके गुप्तांग का भी दर्शन हुआ. माया चाची ने साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहना था.

मैं शरमा गया और बहुत उत्तेजना भी हुई. पहले मैने यह समझा कि उन्हें पता नहीं है कि उनका सब खजाना मुझे दिख रहा है इसलिये झेंप कर नजर फ़िरा कर दूसरी ओर देखकर मैं उनसे बातें करने लगा. पर वे कहाँ मुझे छोड़ने वाली थी. दो ही मिनिट में शरारत भरे अंदाज में वे बोली. "चाची क्या इतनी बुरी है लल्ला कि बात करते समय उसकी ओर देखना भी नहीं चाहते?"

मैंने मुड कर उनकी ओर देखा और कहा. "नहीं चाची, आप तो बहुत सुंदर हैं, अप्सरा जैसी, मुझे तो लगता है आप को लगातार देखता रहूँ पर आप बुरा न मान जाएँ इसलिये घूरना नहीं चाहता था."

"तो देखो ना लल्ला. ठीक से देखो. मुझे भी अच्छा लगता है कि तेरे जैसा कोई प्यारा जवान लड़का प्यार से मुझे देखे. और फ़िर तो तू मेरा भतीजा है, घर का ही लड़का है, तेरे तकने को मैं बुरा नहीं मानती" कहकर उस मतवाली नारी ने अपनी टाँगे बड़ी सहजता से और फ़ैला दी और बैंगन काटती रही.

अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. चाची मुझे रिझा रही थी. मैं भी शरम छोड. कर नजर जड़ा कर उनके उस मादक रूप का आनंद लेने लगा. गोरी फ़ूली बुर पर खूब रेशमी काले बाल थे और मोटी बुर के बीच की गहरी लकीर थोड़ी खुल कर उसमें से लाल लाल योनिमुख की भी हल्की झलक दिख रही थी.

पाँच मिनिट के उस काम में चाची ने पंद्रह मिनिट लगाये और मुझसे जान बूझ कर उकसाने वाली बातें की. मेरी गर्लफ़्रेन्ड्स हैं या नहीं, क्यों नहीं हैं, आज के लड़के लड़कियां तो बड़े चालू होते हैं, मेरे जैसा सुंदर जवान लड़का अब तक इतना दबा हुआ क्यों है इत्यादि इत्यादि. मैं समझ गया कि चाची जरूर मुझ पर मेहरबान होंगी, शायद उसी रात मैं खुश भी हुआ और चाचाजी का सोच कर थोड़ी अपराधीपन की भावना भी मन में हुई.

आखिर चाची उठीं और खाना बनाने लगी. मैं बाहर के कमरे में जाकर किताब पढ़ने लगा. अपनी उबलती वासना शांत करने का मुठ्ठ मारने के सिवाय कोई चारा नहीं था इसलिये मन लगाकर जो सामने दिखा, पढ़ता रहा. कुछ समय बाद चाची ने खाने पर बुलाया और हम दोनों ने मिल कर बिलकुल यारों जैसी गप्पें मारते हुए खाना खाया.

खाना समाप्त करके मैं अपने कमरे में जाकर सामान अनपैक करने लगा. सोच रहा था कि चाची कहाँ सोती हैं और आज रात कैसे कटेगी. तभी वे ऊपर आई और मुझे छत पर बुलाया. "अनुराग, यहाँ आ और बिस्तर लगाने में मेरे मदद कर."

मैं छत पर गया. मेरा दिल डूबा जा रहा था. गरमी के दिन थे. साफ़ था कि सब लोग बाहर खुले में सोते थे. ऐसी हालत में क्या बात बननी थी चाची के साथ. छत पर दो खाटें थी. हमने उनपर गद्दियाँ बिछाई. "गरमी में बाहर सोने का मजा ही और है लल्ला" कह कर मुझे चिढ़ाती हुई वे मच्छरदानियाँ लेने चली गई.

वापस आई तो दोनों मच्छरदानियाँ फ़टी निकलीं. माया चाची मेरी नजरों में नजर डाल कर बोली. "मच्छर तो बहुत हैं अनुराग, सोने नहीं देंगे. गरमी इतनी है कि नीचे सोया नहीं जायेगा. ऐसा कर, तू खाटें सरकाकर मिला ले, मैं डबल वाली मच्छादानी ले आती हूँ. तू शरमायेगा तो नहीं मेरे साथ सोने में? वैसे मैं तेरी चाची हूँ, मां जैसी ही समझ ले."

मैं शरमा कर कुछ बुदबुदाया. चाची मंद मंद मुस्कराकर डबल मच्छरदानी लेने चले गई. वापस आई तो हम दोनों उसे बांधने लगे. मैंने साहस करके पूछा. "चाची, आजू बाजू वाले देखेंगे तो नहीं." वे हंस पड़ीं. "इसका मतलब है तूने छत ठीक से नहीं देखी." मैंने गौर किया तो समझ गया. आस पास के घरों से हमारा मकान बहुत ऊंचा था. दीवाल भी अच्छी ऊंची थी. बाहर का कोई भी छत पर नहीं देख सकता था.

तभी चाची ने मीठा ताना मारा. "और लोग देखें भी तो क्या हुआ बेटे. तू तो इतना सयाना बच्चा है, तुरंत सो जायेगा सिमट कर." मैंने मन ही मन कहा कि चाची मौका दो तो दिखाता हूँ कि यह बच्चा तुम्हारे मतवाले शरीर का कैसे रस निकालता है.

आखिर चाची नीचे जाकर ताला लगाकर बत्ती बुझाकर ऊपर आई. मैं तब तक मच्छरदानी खोंस कर अपनी खाट पर लेट गया था. चाची भी दूसरी ओर से अंदर आकर दूसरी खाट पर लेट गई.

पास से चाची के बदन की मादक खुशबू ने फ़िर अपना जादू दिखाया और मेरा मस्त खड़ा हो गया. चाची भी गप्पें मारने के मूड में थी और फ़िर वही गर्लफ़्रेन्ड वाली बातें मुझसे करने लगी. मेरा लंड अब तक अपनी लगाम से छूटकर पाजामे में तंबू बना कर खड़ा हो गया था.
mast kahani hai Chachi Bhatije ki.
हल्की चाँदनी थी इसलिये काफ़ी साफ़ सब दिख रहा था. लंड के तंबू को छुपाने के लिये मैं करवट बदल कर पीठ चाची की ओर करके लेट गया तो हंस कर उन्हों ने मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे फ़िर अपनी ओर मोड़ा. "शरमाओ मत लल्ला, क्या बात है, ऐसे क्यों बिचक रहे हो?"

मुझे अपनी ओर खींचते हुए उनका हाथ मेरे लंड को लगा और वे हंसने लगी. "यह बात है, सचमुच बड़ा हो गया है मेरा प्यारा भतीजा. पर यह क्यों हुआ रे, किसी गर्लफ्रेंड की याद आ रही है?" कह कर उन्हों ने सीधा पाजामे के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड लिया और सहलाने लगी.

अब तो मेरा और रुकना मुश्किल था. मैं सरक कर उनकी ओर खिसका और उनके शरीर पर अपनी बांह डालकर चिपट गया जैसे बच्चा मां से चिपटता है. उनके सीने में मुंह छुपाकर मैं बोला. "चाची क्यों तरसाती हैं मुझे? आप को मालूम है कि आपके रूप को देखकर शाम से मेरा क्या हाल है."

चाची ने मेरा मुंह ऊपर किया और जोर से मुझे चूम लिया. "तो मेरा भी हाल कुछ अच्छा नहीं है लल्ला. तेरे इस प्यारे जवान शरीर को देखकर मेरा क्या हाल है, मैं ही जानती हूँ."

कुछ भी बातें करने का अब कोई मतलब नहीं था. हम दोनों ही बुरी तरह से कामातुर थे. एक दूसरे को लिपट कर जोर जोर से एक दूसरे के होंठ चूमने लगे. चाची के उन रसीले होंठों के चुंबन ने कुछ ही देर में मुझे चरम सुख की कगार पर लाकर रख दिया. उनका आँचल अब ढल गया था और चोली में से उबल कर बाहर निकल रहे वे उरोज मेरी छाती से भिड़ें हुए थे. मेरा उत्तेजित शिश्न कपड़ों के ऊपर से ही उनकी जांघों को धक्के मार रहा था.

मेरे मुंह से एक सिसकारी निकली और चाची ने चुंबन तोड. कर मेरे लंड को टटोला और फ़िर मुझे चित लिटा दिया. "लल्ला अब तुम्हारी खैर नहीं, मुझे ही कुछ उपाय करना होगा." कहकर वे मेरे बाजू में बैठ गई और पाजामे के बटन खोल कर मेरे जांघिये की स्लिट में से उन्हों ने मेरा उछलता लंड बाहर निकाल लिया.

चाँदनी में मेरा तन्नाया लंड और उसका सूजा लाल सुपाड़ा देख कर उनके मुंह से भी एक सिसकारी निकल गयी. उसे हाथ में लेकर पुचकारते हुए वे बोली. "हाय कितना प्यारा है, मैं तो निहाल हो गयी मेरे राजा."

और झुक कर उन्हों ने मेरा सुपाड़ा मुंह में ले लिया और चूसने लगी. उनकी जीभ के स्पर्श से मैं ऐसा तड़पा जैसे बिजली छू गयी हो. झुकी हुई चाची की चोली में से उनके मम्मे लटक कर रसीले फलों जैसे मुझे लुभा रहे थे. इतने में चाची ने आवेश में आकर अपना मुंह और खोला और मेरा पूरा लंड जड तक निगल लिया जैसे गन्ना हो.

"चाची, यह क्या कर रही हैं? मैं झड़ जाऊंगा आप के मुंह में" कहकर मैंने उनका मुंह हटाने की कोशिश की तो उन्हों ने हल्के से अपने दांतों से मेरे लंड को काट कर मुझे सावधान किया और आँख मार दी. उनकी नजर में गजब की वासना थी. फ़िर मुंह से मेरे लंड को जकड़कर उसपर जीभ फ़िराती हुई वे जोर जोर से मेरा लोडा चूसने लगी.

दो ही मिनिट में मैंने मचल कर उनके सिर को पकड लिया और कसमसा कर झड़ गया. मुझे लग रहा था कि वे अब मुंह में से लंड निकाल लेंगी पर वे तो ऐसे चूसने लगी जैसे गन्ने का रस निकाल रही हों. पूरा वीर्य निगल कर ही उन्हों ने मुझे छोड़ा.

मैं चित पड़ा हांफता हुआ इस स्वर्गिक स्खलन का मजा ले रहा था. मुंह पोंछती हुई चाची फ़िर मुझ से लिपट गयी और मेरे गालों और होंठों को बेतहाशा चूमने लगी. "लल्ला, तुम तो एकदम कामदेव हो मेरे लिये, मैं तो धन्य हो गयी तेरा प्रसाद पाकर" "आप को गंदा नहीं लगा चाची?" "अरे बेटे तू नहीं समझेगा, यह तो एकदम गाढ़ी मलाई है मेरे लिये. अब तू देखता जा, इन दो महीनों में तेरी कितनी मलाई निकालती हूँ देख."

मुझे बेतहाशा चूमते हुए वे फ़िर बोली. "तुम बड़े पोंगा पंडित निकले लल्ला. शाम से तुझे रिझा रही हूँ पर तू तो शरमा ही रहा था छोकरियों की तरह." मैंने उनके गाल को चूम कर कहा. "नहीं चाची, मैं तो कब का आपका गुलाम हो गया था. बस डर लगता था कि चाचाजी को पता चल गया क्या सोचेंगे."

वे मुझे प्यार से चपत मार कर बोली. "तो इसलिये तू दबा दबा था इतनी देर. मूरख कही का, उन्हें सब मालूम है." मेरे आश्चर्य पर वे हंसने लगी.

"ठीक कह रही हूँ अनुराग. मैं कब से भूखी हूँ. तेरे चाचाजी भले आदमी हैं पर अलग किस्म के हैं. उन्हें जरा भी मेरे शरीर में दिलचस्पी नहीं है. इतने दिन मैंने सब्र किया, ऐसे भले आदमी को मैं धोखा नहीं देना चाहती थी. परपुरुष की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा. पर पिछले महीने मैं इनसे खूब झगड़ी. आखिर जिंदगी ऐसे कैसे कटेगी. वे भी जानते और समझते हैं. बोले, अच्छा जवान लड़का घर में ही है, उसे बुला लिया कर जब मन चाहे. तू उसके साथ कुछ भी कर, मुझे बुरा नहीं लगेगा. इसलिये तो तीन माह से वे तुझे चिठ्ठी लिखकर आने का आग्रह कर रहे हैं. और तू है कि इतने दिनों में आया है."

मेरे मन का बोझ उतर गया. मेरा रास्ता साफ़ था. मैंने चाची से पूछा कि आखिर क्यों राजेशचाचा को उन जैसी सुंदर स्त्री से भी लगाव नहीं हैं. वे हंस कर टाल गई. मुझे चूमते हुए बोली कि बाद में समय आने पर बताएंगी.

और देर न करके मैंने कस कर चाची को बाँहों में भर लिया. उनकी वासना अब तक चौगुनी हो गयी थी. झट से अपने ब्लाउज़ के सामने वाले बटन उन्हों ने खोल दिये और उनके मोटे मोटे स्तन उछल कर बाहर आ गये. स्तनों की निप्पल एकदम तन कर अंगूर जैसी खड़ी थी. उन्हों ने झुक कर एक स्तन मेरे मुंह में दे दिया और मुझ पर चढ कर मेरे ऊपर लेट गई. मुझे बाँहों में भींच कर अपनी टांगों में मेरी कमर जकड़कर वे ऊपर से धक्के लगाने लगी मानों काम क्रीडा कर रही हों.

उनका तना मूंगफली जैसा निप्पल मुंह में पाकर मुझे ऐसी खुशी हुई जैसी एक बच्चे को मां का निप्पल चूसते हुए होती है. मैंने भी अपनी बाँहें उनके इर्द गिर्द भींच लीं और निप्पल चूसता हुआ उनकी चिकनी पीठ और कमर पर हाथ फ़ेरने लगा. फ़िर उनके नितंब साड़ी के ऊपर से ही दबाने लगा. वे ऐसी बिचकी कि जैसे बिच्छू ने डंक मारा हो. मेरे चेहरे को उन्हों ने छाती पर और कसकर भींच लिया और आधा स्तन मेरे मुंह में ठूंस दिया.

उसे चूसता हुआ मैं अब सोचने लगा कि चाची को चोदने मिले तो क्या आनंद आये. दस ही मिनिट में मेरा जवान लंड फ़िर ऐसा खड़ा हो गया था जैसे कभी बैठा ही न हो. किसी तरह निप्पल मुंह में से निकाल कर चाची से बोला. "माया चाची, कपड़े निकाल दीजिये ना, आपका यह बदन देखने को मैं मरा जा रहा हूँ." वे बोली. "नहीं लल्ला, कुछ भी हो, हम छत पर हैं, पूरा नंगा होने में कम से कम आज की रात सावधानी करना ठीक है. कल से देखेंगे और दोपहर को तो घर में हम अकेले हैं ही"
Sexy chachi loves o seduce young boy.
 

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चाचाजी के बार बार आग्रह भरे खत आने से आखिर मैंने यह गर्मी की छुट्टी अपने गाँव वाले घर में बिताने का फ़ैसला किया. मैं जब गाँव पहुंचा तो चाचाजी बहुत खुश हुए. चाची को पुकारते हुए बोले. "लो, अनुराग आ गया तुम्हारा साथ देने को. अनुराग बेटे, अब मैं निश्चिंत मन से दौरे पर जा सकता हूँ नहीं तो महीना भर अकेले रह कर तुम्हारी चाची बोर हो जाती."

माया चाची मुस्कराती हुई मेरी ओर देखकर बोली. "हाँ लल्ला, बहुत अच्छा किया जो आ गये. वैसे मैंने अपनी भांजी को भी चिठ्ठी लिखी है, शायद वो भी आ जाये अगले हफ़्ते. तेरे आने का पक्का नहीं था ना इसलिये"

चाचाजी सामान अपनी बैग में भरते हुए बोले. "चलो, दो से तीन भले. मैं तो चला. भाग्यवान संभाल कर रहना. वैसे अब अनुराग है तो मुझे कोई चिंता नहीं. अनुराग बेटे चाची का पूरा खयाल रखना, उसकी हर जरूरत पूरी करना, अब महीने भर घर को और चाची को तेरे सहारे ही छोड. कर जा रहा हूँ" चाचाजी ने बैग उठायी और दौरे पर निकल गये.

मेरे राजेशचाचा बड़े हेंडसम आदमी थे. गठीला स्वस्थ बदन और गेंहुआ रंग. मेरे पिताजी के छोटे भाई थे और गाँव के बड़े पुश्तैनी घर में रहते थे. वहीं रहकर एक अच्छी कंपनी के लिये आस पास के शहरों में मार्केटिंग की नौकरी करते थे इसलिये अक्सर बाहर रहते थे. गाँव के घर में चाची के सिवाय और कोई नहीं था. पाँच साल पहले बत्तीस की आयु में शादी की थी, वह भी घर वालों की जिद पर, नहीं तो शादी करने का उनका कभी इरादा नहीं था.

माया चाची उनसे सात आठ साल छोटी थी. वे शादी में सिर्फ़ पच्चीस छब्बीस साल की होंगी. उन्हें अब तक कोई संतान नहीं हुई थी. घर वालों को इसमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ था क्योंकी चाचाजी को पहले से ही शादी मे दिलचस्पी नहीं थी. मुझे तो लगता है कि उन्हों ने कभी माया चाची का चुंबन भी नहीं लिया होगा, संभोग तो दूर की बात रही.

मैं चाचाजी की शादी में छोटा था. तब शादी के जोड़े में लिपटी वह कमसिन सुंदर चाची मुझे बहुत भा गयी थी. उसके बाद इन पाँच सालों में मैं उन्हें बस एक बार दो दिन के लिये मिला था. गाँव आने का मौका भी नहीं मिला. आज उन्हें फ़िर देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा. सच बात तो यह है कि बहुत संयम बरतने पर भी न मान कर मेरा लंड खड़ा होने लगा.

मुझे बड़ा अटपटा लगा क्योंकी चाचाजी की मैं इज्जत करता था. उनकी जवान पत्नी की ओर मेरे ऐसे विचार मन में आने से मुझे शर्म सी लगी. पर एक तो मेरा अठारह साल का जोश, दूसरे माया चाची का भरपूर जोबन. वे अब तीस इकतीस साल की भरी पूरी परिपक्व जवान महिला थी और घूँघट लिये हुए सादी साड़ी में भी उनका रूप छुपाये नहीं छुप रहा था.

वे बड़ा सा सिंदूर लगायी हुई थी और बिना लिपस्टिक के भी उनके कोमल उभरे होंठ लाल लाल गुलाब की पंखुड़ियों से लग रहे थे. साड़ी उनके बदन में लिपटी हुई थी, फ़िर भी उसमें से भी उनके वक्ष का उभार नहीं छुपता था. हरी चूड़ियाँ पहने उनकी गोरी बाँहें देख कर सहसा मेरे मन में विचार आ गया कि चाची का बदन नग्न कैसा दिखेगा? अपने इस कामुक मन पर मैंने फ़िर अपने आप को कोस डाला.

मेरी नजर शायद उन्हों ने पहचान ली थी क्योंकी मेरी ओर देखकर चाची बड़ी शरारती नजर से देख कर बोली. "कितने जवान हो गये हो लल्ला, इतना सा देखा था तुझे. शादी कर डालो अब, गाँव के हिसाब से तो अब तक तुम्हारी बहू आ जाना चाहिये."

उनके बोलने के और मेरी ओर देखने के अंदाज से मैं एक बात तुरंत समझ गया. माया चाची बड़ी "चालू" चीज़ थी. कम से कम मेरे साथ तो बहुत इतरा रही थी. मैं थोड़ा शरमा कर इधर उधर देखने लगा.

हम अब अकेले थे इसलिये वे घूँघट छोड. कर अपने कपड़े ठीक करते हुए मुझसे गप्पे लगाने लगी. उनके बाल भी बड़े लंबे खूबसूरत थे जिसका उन्हों ने जुड़ा बांध रखा था. "चाय बना कर लाती हूँ लल्ला." कहकर वे चली गई. अब साड़ी उनकी कमर से हट गयी थी और उस गोरी चिकनी कमर को देखकर और उनके नितंब डुलाकर चलने के अंदाज से ही मेरा लंड और कस कर खड़ा हो गया.

वे शायद इस बात को जानती थी क्योंकी जान बूझ कर अंदर से पुकार कर बोली. "यहीं रसोई में आ जाओ लल्ला. हाथ मुंह भी धो लो" मेरा ऐसा कस कर खड़ा था कि मैं उठ कर खड़ा होने का भी साहस नहीं कर सकता था, चल कर उनके सामने जाने की तो दूर रही. "बाद में धो लूँगा चाची, नहा ही लूँगा, चाय आप यहीं ले आइये ना प्लीज़."

वे चाय ले कर आई. मेरी ओर देखने का अंदाज उनका ऐसा था कि जैसे सब जानती थी कि मेरी क्या हालत है. बातें करते हुए बड़ी सहज रीति से उन्हों ने अपना ढला हुआ आँचल ठीक किया. यह दस सेकंड का काम करने में उन्हें पूरे दो मिनिट लगे और उन दो मिनटों में पाँच छह बार नीचे झुककर उन्हों ने अपनी साड़ी की चुन्नटें ठीक की.

इस सारे कार्य का उद्देश्य सिर्फ़ एक था, अपने स्तनों का उभार दिखा कर मेरा काम तमां करना जिसमें माया चाची शत प्रतिशत सफ़ल रही. उस लाल लो-कट की चोली में उनके उरोज समा नहीं पा रहे थे. जब वे झुकी तो उन गोरे मांसल गोलों के बीच की खाई मुझे ऐसी उत्तेजित कर गई कि अपने हाथों को मैंने बड़ी मुश्किल से अपने लंड पर जाने से रोका नहीं तो हस्तमैथुन के लिये मैं मरा जा रहा था.

मेरा हाल देख कर चाची ने मुझ पर तरस खाया और अपना छिछोरापन रोक कर मेरा कमरा ठीक करने को ऊपर चली गई. मुझे अपना लंड बिठाने का समय देकर कुछ देर बाद बातें करती हुई मुझे कमरे में ले गयी. "शाम हो गयी है अनुराग, तुम नहा लो और नीचे आ जाओ. मैं खाने की तैयारी करती हूँ."

"इतनी जल्दी खाना चाची?" मैंने पूछा. वे मेरी पीठ पर हाथ रख कर बोली. "जल्द खाना और जल्द सोना, गाँव में तो यही होता है लल्ला. तुम भी आदत डाल लो." और बड़े अर्थपूर्ण तरीके से मेरी ओर देखकर वे मुस्कुराने लगी.

मैं हड़बड़ा गया. किसी तरह अपने आप को संभाल कर नहाने जाने लगा तो पीछे से चाची बोली. "जल्दी नहाना अच्छे बच्चों जैसे, कोई शरारत नहीं करना अकेले में" और खिलखिलाती हुई वे सीढ़ियाँ उतर कर रसोई में चली गई. मैं थोड़ा शरमा गया क्योंकी मुझे लगा कि उनका इशारा इस तरफ़ था कि नहाते हुए मैं हस्तमैथुन न करूँ.

चाची के इस खेल से मेरे मन में एक बड़ी हसीन आशा जाग उठी. और वह आशा विश्वास में बदल गयी जब मैं नहा कर रसोई में पहुंचा. अब मैं पूरी तैयारी से आया था. मन मार कर किसी तरह मैंने अपने आप को हस्तमैथुन करने से रोका था. बाद में लंड को खड़ा पेट से सटाकर और जाँघिया पहनकर ऊपर से उसी पर मैंने पाजामे की नाड़ी बांध ली थी और ऊपर से कुर्ता पहन लिया था. अब मैं चाहे जितना मजा ले सकता था, लंड खड़ा भी होता तो किसी को दिखता नहीं.

चाची रसोई की तैयारी कर रही थी. मैं वहीं कुर्सी पर बैठ कर उनसे बातें करने लगा. चाची ने कुछ बैंगन उठाये और हंसिया लेकर उन्हें काटने मेरे सामने जमीन पर बैठ गई. अपनी साड़ी घुटनों के ऊपर कर के एक टांग उन्हों ने नीचे रखी और दूसरी मोड कर हँसिये के पाट पर अपना पाँव रखा. फ़िर वे बैंगन काटने लगी.

उनकी गोरी चिकनी पिंडलियों और खूबसूरत पैरों को मैं देखता हुआ मजा लेने लगा. वे बड़े सहज भाव से सब्जी काट रही थी. अचानक मुझे जैसे शॉक लगा और मेरा लंड ऐसे उछला जैसे झड़ जायेगा. हुआ यह कि चाची ने आराम से बैठने को थोड़ा हिल डुलकर अपनी टाँगे और फैलाई. इस से उनकी गोरी नग्न जांघें तो मुझे दिखी ही, उनके बीच काले घने बालों से आच्छादित उनके गुप्तांग का भी दर्शन हुआ. माया चाची ने साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहना था.

मैं शरमा गया और बहुत उत्तेजना भी हुई. पहले मैने यह समझा कि उन्हें पता नहीं है कि उनका सब खजाना मुझे दिख रहा है इसलिये झेंप कर नजर फ़िरा कर दूसरी ओर देखकर मैं उनसे बातें करने लगा. पर वे कहाँ मुझे छोड़ने वाली थी. दो ही मिनिट में शरारत भरे अंदाज में वे बोली. "चाची क्या इतनी बुरी है लल्ला कि बात करते समय उसकी ओर देखना भी नहीं चाहते?"

मैंने मुड कर उनकी ओर देखा और कहा. "नहीं चाची, आप तो बहुत सुंदर हैं, अप्सरा जैसी, मुझे तो लगता है आप को लगातार देखता रहूँ पर आप बुरा न मान जाएँ इसलिये घूरना नहीं चाहता था."

"तो देखो ना लल्ला. ठीक से देखो. मुझे भी अच्छा लगता है कि तेरे जैसा कोई प्यारा जवान लड़का प्यार से मुझे देखे. और फ़िर तो तू मेरा भतीजा है, घर का ही लड़का है, तेरे तकने को मैं बुरा नहीं मानती" कहकर उस मतवाली नारी ने अपनी टाँगे बड़ी सहजता से और फ़ैला दी और बैंगन काटती रही.

अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. चाची मुझे रिझा रही थी. मैं भी शरम छोड. कर नजर जड़ा कर उनके उस मादक रूप का आनंद लेने लगा. गोरी फ़ूली बुर पर खूब रेशमी काले बाल थे और मोटी बुर के बीच की गहरी लकीर थोड़ी खुल कर उसमें से लाल लाल योनिमुख की भी हल्की झलक दिख रही थी.

पाँच मिनिट के उस काम में चाची ने पंद्रह मिनिट लगाये और मुझसे जान बूझ कर उकसाने वाली बातें की. मेरी गर्लफ़्रेन्ड्स हैं या नहीं, क्यों नहीं हैं, आज के लड़के लड़कियां तो बड़े चालू होते हैं, मेरे जैसा सुंदर जवान लड़का अब तक इतना दबा हुआ क्यों है इत्यादि इत्यादि. मैं समझ गया कि चाची जरूर मुझ पर मेहरबान होंगी, शायद उसी रात मैं खुश भी हुआ और चाचाजी का सोच कर थोड़ी अपराधीपन की भावना भी मन में हुई.

आखिर चाची उठीं और खाना बनाने लगी. मैं बाहर के कमरे में जाकर किताब पढ़ने लगा. अपनी उबलती वासना शांत करने का मुठ्ठ मारने के सिवाय कोई चारा नहीं था इसलिये मन लगाकर जो सामने दिखा, पढ़ता रहा. कुछ समय बाद चाची ने खाने पर बुलाया और हम दोनों ने मिल कर बिलकुल यारों जैसी गप्पें मारते हुए खाना खाया.

खाना समाप्त करके मैं अपने कमरे में जाकर सामान अनपैक करने लगा. सोच रहा था कि चाची कहाँ सोती हैं और आज रात कैसे कटेगी. तभी वे ऊपर आई और मुझे छत पर बुलाया. "अनुराग, यहाँ आ और बिस्तर लगाने में मेरे मदद कर."

मैं छत पर गया. मेरा दिल डूबा जा रहा था. गरमी के दिन थे. साफ़ था कि सब लोग बाहर खुले में सोते थे. ऐसी हालत में क्या बात बननी थी चाची के साथ. छत पर दो खाटें थी. हमने उनपर गद्दियाँ बिछाई. "गरमी में बाहर सोने का मजा ही और है लल्ला" कह कर मुझे चिढ़ाती हुई वे मच्छरदानियाँ लेने चली गई.

वापस आई तो दोनों मच्छरदानियाँ फ़टी निकलीं. माया चाची मेरी नजरों में नजर डाल कर बोली. "मच्छर तो बहुत हैं अनुराग, सोने नहीं देंगे. गरमी इतनी है कि नीचे सोया नहीं जायेगा. ऐसा कर, तू खाटें सरकाकर मिला ले, मैं डबल वाली मच्छादानी ले आती हूँ. तू शरमायेगा तो नहीं मेरे साथ सोने में? वैसे मैं तेरी चाची हूँ, मां जैसी ही समझ ले."

मैं शरमा कर कुछ बुदबुदाया. चाची मंद मंद मुस्कराकर डबल मच्छरदानी लेने चले गई. वापस आई तो हम दोनों उसे बांधने लगे. मैंने साहस करके पूछा. "चाची, आजू बाजू वाले देखेंगे तो नहीं." वे हंस पड़ीं. "इसका मतलब है तूने छत ठीक से नहीं देखी." मैंने गौर किया तो समझ गया. आस पास के घरों से हमारा मकान बहुत ऊंचा था. दीवाल भी अच्छी ऊंची थी. बाहर का कोई भी छत पर नहीं देख सकता था.

तभी चाची ने मीठा ताना मारा. "और लोग देखें भी तो क्या हुआ बेटे. तू तो इतना सयाना बच्चा है, तुरंत सो जायेगा सिमट कर." मैंने मन ही मन कहा कि चाची मौका दो तो दिखाता हूँ कि यह बच्चा तुम्हारे मतवाले शरीर का कैसे रस निकालता है.

आखिर चाची नीचे जाकर ताला लगाकर बत्ती बुझाकर ऊपर आई. मैं तब तक मच्छरदानी खोंस कर अपनी खाट पर लेट गया था. चाची भी दूसरी ओर से अंदर आकर दूसरी खाट पर लेट गई.

पास से चाची के बदन की मादक खुशबू ने फ़िर अपना जादू दिखाया और मेरा मस्त खड़ा हो गया. चाची भी गप्पें मारने के मूड में थी और फ़िर वही गर्लफ़्रेन्ड वाली बातें मुझसे करने लगी. मेरा लंड अब तक अपनी लगाम से छूटकर पाजामे में तंबू बना कर खड़ा हो गया था.
mast kahani hai Chachi Bhatije ki.
हल्की चाँदनी थी इसलिये काफ़ी साफ़ सब दिख रहा था. लंड के तंबू को छुपाने के लिये मैं करवट बदल कर पीठ चाची की ओर करके लेट गया तो हंस कर उन्हों ने मेरी कमर में हाथ डालकर मुझे फ़िर अपनी ओर मोड़ा. "शरमाओ मत लल्ला, क्या बात है, ऐसे क्यों बिचक रहे हो?"

मुझे अपनी ओर खींचते हुए उनका हाथ मेरे लंड को लगा और वे हंसने लगी. "यह बात है, सचमुच बड़ा हो गया है मेरा प्यारा भतीजा. पर यह क्यों हुआ रे, किसी गर्लफ्रेंड की याद आ रही है?" कह कर उन्हों ने सीधा पाजामे के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड लिया और सहलाने लगी.

अब तो मेरा और रुकना मुश्किल था. मैं सरक कर उनकी ओर खिसका और उनके शरीर पर अपनी बांह डालकर चिपट गया जैसे बच्चा मां से चिपटता है. उनके सीने में मुंह छुपाकर मैं बोला. "चाची क्यों तरसाती हैं मुझे? आप को मालूम है कि आपके रूप को देखकर शाम से मेरा क्या हाल है."

चाची ने मेरा मुंह ऊपर किया और जोर से मुझे चूम लिया. "तो मेरा भी हाल कुछ अच्छा नहीं है लल्ला. तेरे इस प्यारे जवान शरीर को देखकर मेरा क्या हाल है, मैं ही जानती हूँ."

कुछ भी बातें करने का अब कोई मतलब नहीं था. हम दोनों ही बुरी तरह से कामातुर थे. एक दूसरे को लिपट कर जोर जोर से एक दूसरे के होंठ चूमने लगे. चाची के उन रसीले होंठों के चुंबन ने कुछ ही देर में मुझे चरम सुख की कगार पर लाकर रख दिया. उनका आँचल अब ढल गया था और चोली में से उबल कर बाहर निकल रहे वे उरोज मेरी छाती से भिड़ें हुए थे. मेरा उत्तेजित शिश्न कपड़ों के ऊपर से ही उनकी जांघों को धक्के मार रहा था.

मेरे मुंह से एक सिसकारी निकली और चाची ने चुंबन तोड. कर मेरे लंड को टटोला और फ़िर मुझे चित लिटा दिया. "लल्ला अब तुम्हारी खैर नहीं, मुझे ही कुछ उपाय करना होगा." कहकर वे मेरे बाजू में बैठ गई और पाजामे के बटन खोल कर मेरे जांघिये की स्लिट में से उन्हों ने मेरा उछलता लंड बाहर निकाल लिया.

चाँदनी में मेरा तन्नाया लंड और उसका सूजा लाल सुपाड़ा देख कर उनके मुंह से भी एक सिसकारी निकल गयी. उसे हाथ में लेकर पुचकारते हुए वे बोली. "हाय कितना प्यारा है, मैं तो निहाल हो गयी मेरे राजा."

और झुक कर उन्हों ने मेरा सुपाड़ा मुंह में ले लिया और चूसने लगी. उनकी जीभ के स्पर्श से मैं ऐसा तड़पा जैसे बिजली छू गयी हो. झुकी हुई चाची की चोली में से उनके मम्मे लटक कर रसीले फलों जैसे मुझे लुभा रहे थे. इतने में चाची ने आवेश में आकर अपना मुंह और खोला और मेरा पूरा लंड जड तक निगल लिया जैसे गन्ना हो.

"चाची, यह क्या कर रही हैं? मैं झड़ जाऊंगा आप के मुंह में" कहकर मैंने उनका मुंह हटाने की कोशिश की तो उन्हों ने हल्के से अपने दांतों से मेरे लंड को काट कर मुझे सावधान किया और आँख मार दी. उनकी नजर में गजब की वासना थी. फ़िर मुंह से मेरे लंड को जकड़कर उसपर जीभ फ़िराती हुई वे जोर जोर से मेरा लोडा चूसने लगी.

दो ही मिनिट में मैंने मचल कर उनके सिर को पकड लिया और कसमसा कर झड़ गया. मुझे लग रहा था कि वे अब मुंह में से लंड निकाल लेंगी पर वे तो ऐसे चूसने लगी जैसे गन्ने का रस निकाल रही हों. पूरा वीर्य निगल कर ही उन्हों ने मुझे छोड़ा.

मैं चित पड़ा हांफता हुआ इस स्वर्गिक स्खलन का मजा ले रहा था. मुंह पोंछती हुई चाची फ़िर मुझ से लिपट गयी और मेरे गालों और होंठों को बेतहाशा चूमने लगी. "लल्ला, तुम तो एकदम कामदेव हो मेरे लिये, मैं तो धन्य हो गयी तेरा प्रसाद पाकर" "आप को गंदा नहीं लगा चाची?" "अरे बेटे तू नहीं समझेगा, यह तो एकदम गाढ़ी मलाई है मेरे लिये. अब तू देखता जा, इन दो महीनों में तेरी कितनी मलाई निकालती हूँ देख."

मुझे बेतहाशा चूमते हुए वे फ़िर बोली. "तुम बड़े पोंगा पंडित निकले लल्ला. शाम से तुझे रिझा रही हूँ पर तू तो शरमा ही रहा था छोकरियों की तरह." मैंने उनके गाल को चूम कर कहा. "नहीं चाची, मैं तो कब का आपका गुलाम हो गया था. बस डर लगता था कि चाचाजी को पता चल गया क्या सोचेंगे."

वे मुझे प्यार से चपत मार कर बोली. "तो इसलिये तू दबा दबा था इतनी देर. मूरख कही का, उन्हें सब मालूम है." मेरे आश्चर्य पर वे हंसने लगी.

"ठीक कह रही हूँ अनुराग. मैं कब से भूखी हूँ. तेरे चाचाजी भले आदमी हैं पर अलग किस्म के हैं. उन्हें जरा भी मेरे शरीर में दिलचस्पी नहीं है. इतने दिन मैंने सब्र किया, ऐसे भले आदमी को मैं धोखा नहीं देना चाहती थी. परपुरुष की ओर आँख उठा कर भी नहीं देखा. पर पिछले महीने मैं इनसे खूब झगड़ी. आखिर जिंदगी ऐसे कैसे कटेगी. वे भी जानते और समझते हैं. बोले, अच्छा जवान लड़का घर में ही है, उसे बुला लिया कर जब मन चाहे. तू उसके साथ कुछ भी कर, मुझे बुरा नहीं लगेगा. इसलिये तो तीन माह से वे तुझे चिठ्ठी लिखकर आने का आग्रह कर रहे हैं. और तू है कि इतने दिनों में आया है."

मेरे मन का बोझ उतर गया. मेरा रास्ता साफ़ था. मैंने चाची से पूछा कि आखिर क्यों राजेशचाचा को उन जैसी सुंदर स्त्री से भी लगाव नहीं हैं. वे हंस कर टाल गई. मुझे चूमते हुए बोली कि बाद में समय आने पर बताएंगी.

और देर न करके मैंने कस कर चाची को बाँहों में भर लिया. उनकी वासना अब तक चौगुनी हो गयी थी. झट से अपने ब्लाउज़ के सामने वाले बटन उन्हों ने खोल दिये और उनके मोटे मोटे स्तन उछल कर बाहर आ गये. स्तनों की निप्पल एकदम तन कर अंगूर जैसी खड़ी थी. उन्हों ने झुक कर एक स्तन मेरे मुंह में दे दिया और मुझ पर चढ कर मेरे ऊपर लेट गई. मुझे बाँहों में भींच कर अपनी टांगों में मेरी कमर जकड़कर वे ऊपर से धक्के लगाने लगी मानों काम क्रीडा कर रही हों.

उनका तना मूंगफली जैसा निप्पल मुंह में पाकर मुझे ऐसी खुशी हुई जैसी एक बच्चे को मां का निप्पल चूसते हुए होती है. मैंने भी अपनी बाँहें उनके इर्द गिर्द भींच लीं और निप्पल चूसता हुआ उनकी चिकनी पीठ और कमर पर हाथ फ़ेरने लगा. फ़िर उनके नितंब साड़ी के ऊपर से ही दबाने लगा. वे ऐसी बिचकी कि जैसे बिच्छू ने डंक मारा हो. मेरे चेहरे को उन्हों ने छाती पर और कसकर भींच लिया और आधा स्तन मेरे मुंह में ठूंस दिया.

उसे चूसता हुआ मैं अब सोचने लगा कि चाची को चोदने मिले तो क्या आनंद आये. दस ही मिनिट में मेरा जवान लंड फ़िर ऐसा खड़ा हो गया था जैसे कभी बैठा ही न हो. किसी तरह निप्पल मुंह में से निकाल कर चाची से बोला. "माया चाची, कपड़े निकाल दीजिये ना, आपका यह बदन देखने को मैं मरा जा रहा हूँ." वे बोली. "नहीं लल्ला, कुछ भी हो, हम छत पर हैं, पूरा नंगा होने में कम से कम आज की रात सावधानी करना ठीक है. कल से देखेंगे और दोपहर को तो घर में हम अकेले हैं ही"
Sexy chachi loves o seduce young boy.
"तो चाची, प्लीज़ चोदने दीजिये ना, मैं पागल हो जाऊंगा नहीं तो." वे इतरा कर अपने उरोज मेरे गालों पर रगड़ती हुई बोली. "इतनी जल्दी क्या है राजा, और मजा नहीं करोगे? बहुत उतावले हो लल्ला तुम, सब्र करना सीखो. तभी स्वर्ग का आनंद पाओगे" कहते हुए उन्हों ने अपना दूसरा स्तन मेरे मुंह में दे दिया. मैं उनका निप्पल चूसने में जुट गया. हमारी सूखी चुदाई फ़िर शुरू हो गयी. मैं नीचे से और वे ऊपर से ऐसे धक्के लगा रहे थी जैसे रति कर रही हों पर बीच में अभी भी कपड़े थे. दस बीस मिनिट मस्ती में गुजर गये. उन्हें भोगने को अब मैं बेताब था.

आखिर मेरी उत्तेजना देखकर उन्हों ने मेरे कान में फ़ुसफ़ुसा कर कहा. "अनुराग बेटे, मेरे साथ उनसठ का खेल खेलोगे?" मैं पहले समझा नहीं फ़िर एकदम दिमाग में बात आ गयी कि चाची सिक्सटी नाइन की बात कर रही हैं. मेरा रोम रोम सिहर उठा. मानों उन्हों ने मेरे मन की बात कह दी थी. किताबों में पढ़ा और चित्र देखे थे पर अब यह मतवाली रसीली चाची खुद ही यह करने को मुझे कह रही थी.

असल में कल से जब से मुझे उनकी गोरी गोरी बुर के दर्शन हुए थे, उस मुलायम बुर को चोदने को तो मैं आतुर था ही, पर उसके भी पहले मेरे मन में यही बात आयी थी कि अगर इस रसीली चूत में मुंह मारने मिले तो क्या बात है. चाची के मुंह से मेरे मन की बात सुन कर मैं चहक उठा. मेरे लंड में आये अचानक उछाल से वे समझ गई कि उनका भतीजा भी उनके रस का प्यासा है.

मेरे मुंह से अपना निप्पल खींच कर वे उलटी तरफ़ से मेरे सामने लेट गई. "तो सिक्सटी नाइन करेगा मेरे साथ मेरा राजा. मैं तो समझती थी कि तुझे शायद अच्छा न लगे." मैंने उत्सुक स्वर में कहा "क्या बात करती हो चाचीजी. मैं तो मरा जा रहा हूँ इस अमृत के लिये. शाम से मुंह में पानी भरा है."

अपनी साड़ी ऊपर कर के खिलखिलाते हुए उन्हों ने अपनी एक टांग उठायी और मेरे सिर को अपनी जांघों में खींचते हुए बोली. "तो आ जाओ लल्ला, इतना रस पिलाऊँगी कि तृप्त हो जाओगे" उनकी साड़ी अब कमर के ऊपर थी और मोटी मांसल जांघें एकदम नंगी थी. उनकी निचली जांघ को मैं तकिया बनाकर लेट गया और उंगलियों से उनकी रेशमी झांटें बाजू में कर के उस खजाने को देखने लगा.

धुंधली चाँदनी में बहुत साफ़ तो नहीं दिख रहा था पर फ़िर भी उस लाल चूत की झलक से मैं ऐसा मस्त हुआ कि सीधा उस निचले मुंह का चुंबन ले लिया. पास से उसकी मादक खुशबू ने मुझे पागल सा कर दिया. जीभ निकालकर मैं चाची की बुर चाटने लगा. वह बिलकुल गीली थी. गाढ़ा चिपचिपा शहद जैसा रस उसमें से टपक रहा था. उस कसैले खटमिठ्ठे स्वाद से विभोर होकर मै बेतहाशा चाची की चूत चाटने और चूसने लगा.

चाची सांस रोककर देख रही थी कि मैं क्या करता हूँ. मेरे इस अधीरता से चूत चाटना शुरू करने पर वे मस्ती से कराह उठीं. "हाय लल्ला, तू तो जादूगर है, जरा भी सिखाना नहीं पड़ा. बस ऐसा कर कि बीच बीच में जीभ भी डाल दिया कर अंदर." और फ़िर उन्हों ने मेरे लंड पर ताव मारना शुरू कर दिया. पहले उसे खूब चूमा, चाटा और फ़िर मुंह में लेकर चूसने लगी.

आधे घंटे तक हम एक दूसरे के गुप्तांग को चूसने का मजा लेते रहे. चाची तो पाँच मिनिट में ही झड़ गयी थी. उनकी झड़ती चूत ने मुझे खूब पानी चखाया. बाद में वे दो बार और स्खलित हुई. बीच में मैंने उनके कहने पर उनकी मखमली चूत में जीभ भी डाल दी और अंदर बाहर कर के उसे जीभ से ही चोदा. चाची ने मुझे खूब देर टँगाया आखिर असहनीय कामना से जब मैं धक्के लगाकर उनके मुंह को चोदने लगा तभी उन्हों ने जोर से चूसकर मुझे स्खलित किया.

हम दोनों बिलकुल तृप्त हो गये थे पर फ़िर भी नींद से कोसों दूर थे. पेशाब लगी थी इसलिये हमने उठ कर वहीं छत पर बाजू में बनी नाली में मूता. चाची ने भी बेझिझक मेरे सामने ही बैठकर पेशाब की. उनकी बुर से निकलती मूत्र की तेज रुपहली धार देखकर मेरे मन में एक अजीब रोमांच हो उठा.

वापस बिस्तर पर आकर हम एक दूसरे से चिपट गये और चूमा चाटी करते रहे. चाची मुझसे अब गंदी गंदी बातें करने लगी. मुझे उत्तेजित करने का यह तरीका था. मैंने भी उनसे पूछा कि उनके जैसी गरमागरम नारी ने अपने ऊपर इतने साल कैसे संयम रखा. वे हंसने लगी. "कौन कहता है मैंने संयम रखा? खूब मजा लिया मैंने."

मैंने कहा. "चाची आप तो कह रही थी कि किसी से आपने संबंध नहीं रखे" मेरे लंड को मुठ्ठी में लेकर दबाती हुई वे बोली. "अरे संबंध नहीं रखे तो और भी रास्ते हैं. तू खुद को ही देख . आज तक तूने किसी स्त्री से संबंध नहीं किया ना? पर मजा लेता है कि नहीं?" मैं समझ गया कि हस्तमैथुन की बात हो रही है. मेरी उत्तेजना महसूस करके चाची हंसने लगी. "चल, तुझे भी कभी दिखाऊँगी औरतें क्या करती हैं खुद के साथ. हमेशा याद रखेगा. अरे गाँव की लड़कियां तो माहिर होती हैं इस कला में."

मुझे चाची के स्तन दबाने का बहुत मन हो रहा था. जब उनसे कहा तो वे मेरी ओर पीठ करके लेट गई. पीछे से उनसे चिपट कर मैंने उनके मम्मे दबाने शुरू कर दिये. बड़ा मजा आया. खास कर उनके कड़े निप्पल मेरे हथेलियों में चुभते तो बड़ा अच्छा लगता. स्तन मर्दन करते हुए मैं पीछे से उनके नितंबों के बीच के गहरी लकीर में लंड जमा कर रगड़ने लगा. उन मांसल चूतड़ों के घर्षण से जल्द ही मेरा फ़िर से तन्ना कर खड़ा हो गया.

"अब तो चोदने दो चाची" मैं मचल उठा. वे इतरा कर बोली. "ठीक है लल्ला, आ जाओ मैदान में, पर देख, मैं कहे देती हूँ, इतने दिनों बाद चुदवाने का मौका मिला है. मन भर कर चुदवाऊँगी. घंटे भर तक मेहनत करना पड़ेगी बिना झड़ें. नहीं तो कट्टी. बोलो है मंजूर?" मैंने मान लिया, जबकि मन में लग रहा था कि ऐसी मादक नारी को बिना झड़ें चोदना तो असंभव है.

चाची साड़ी ऊपर करके चित लेट गई. मेरा तकिया उन्हों ने अपने चूतड़ों के नीचे रख कर अपनी कमर ऊंची कर ली और टाँगे फ़ैला कर तैयार हो गई. उस खुली रिसती बुर को देखकर मुझे नहीं रहा गया और फ़िर मैं झुक कर उसे चूसने लगा. चाची ने मना नहीं किया बल्कि प्यार से चुसवाती रही. "मेरे प्यारे लल्ला, लगता है अपनी चाची की चूत बहुत भा गयी है तुझे. चूस बेटे चूस, मन भर कर चूस, तेरे ही लिये है मेरा सब रस."

एक बार उन्हें झड़ा कर मैने फ़िर रस चाटा और आखिर वासना सहन न होने से उठ बैठा. उनकी टांगों के बीच बैठकर अपना सुपाड़ा उनके योनिद्वार पर रखा और जोर से पेल दिया. चाची की बुर काफ़ी टाइट थी फ़िर भी इतनी गीली थी कि एक ही बार में पूरा लंड जड तक चाची की चूत में उतर गया. चाची सुख से सिसक उठीं. "शाबाश मेरे शेर, अब आया मजा. चोद अब मन लगा कर, चढ जा मुझपर, ढीली कर दे मेरी कमर धक्के मार मार कर, तुझे मेरी कसम लल्ला."

मैं सपासप चाची को चोदने लगा. इतना सुख कभी नहीं मिला था. अपनी पहली चुदाई और वह भी ऐसी मस्त औरत के साथ, मैं तो निहाल हो गया.

उस रात मैंने सच में एक घंटा नहीं तो फ़िर भी चालीस-एक मिनिट माया चाची को चोदा. एक तो दो बार झड़ने से अब मेरे लंड का संयम बढ गया था, दूसरे माया चाची ने भी बार बार दुहाई देकर और धमका कर मुझे झड़ने नहीं दिया. जब भी उन्हें लगता कि मैं स्खलित होने वाला हूँ, वे कस कर अपनी टांगों में मेरी कमर पकड कर और मुझे बाँहों में भर कर स्थिर कर देती. लंड का मचलना कम होने पर ही छोड़तीं.

चोदते हुए मैंने उन्हें खूब चूमा. कई बार जोर से धक्के लगाता हुआ मैं उनके रसीले होंठों को अपने दांतों में दबाकर चूसता रहता, यहाँ तक कि उनकी सांस रुक सी जाती. बीच बीच में झुक कर उनके निप्पल मुंह में लेकर चूसता हुआ उन्हें हचक हचक कर चोदता, यह सब कलाएं मैंने ब्लू फ़िल्मो में देखी थी इसलिये काम आई. चाची ने बीच में झड़ कर तृप्ति से हांफते हुए कहा भी कि लगता नहीं कि यह मेरी पहली चुदाई है पर मैंने उनकी कसम देकर उनको विश्वास दिलाया.

आखिर जब मैं थक कर चूर हो गया तो चाची से गिड़गिड़ा कर स्खलित होने की इजाजत मांगी. तीन चार बार झड़ कर भी उनकी चुदासी पूरी मिटी नहीं थी पर मेरी दशा देखकर तरस खा कर बोली. "ठीक है लल्ला, आज छोड. देती हूँ, पर कल देख तेरा क्या हाल करती हूँ."

वह आखिरी पाँच मिनिट की चुदाई बहुत जोरदार थी. चाची ने भी मुझे खूब उकसाया. "चोद राजा चोद अपनी चाची को, तोड. दे मेरी कमर, फ़ाड दे मेरी चूत, और चोद लल्ला, मार धक्का, हचक के मार." मेरे शक्तिशाली धक्कों से खाट भी चरमराने लगी. लगता था कि टूट न जाये, आस पास वाले सुन न लें पर अब तो मुझ पर भूत सवार था. उधर चाची भी मेरा साथ देते हुए नीचे से चूतड उछाल उछाल कर चुदवा रही थी. उनकी चूड़ियाँ हमारे धक्कों से हिल डुलकर बड़े मीठे अंदाज में खनक रही थी. उस आवाज से मैं पूरा मदहोश हो गया था. इसलिये मैं ऐसा झड़ा कि मेरे मुंह से चीख निकल जाती अगर चाची ने मेरा मुंह अपने होंठों में पहले ही दबा कर न रखा होता.
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उस अपूर्व कामतृप्ति के बाद मैं ऐसा सोया कि सुबह सूरज सिर पर आ जाने पर ही नींद खुली. चाची पहले ही उठ कर नीचे चली गयी थी. जब मुझे जगाने चाय लेकर आई तो नहा भी चुकी थी. शायद मंदिर भी हो आई थी क्यों की सिंदूर में थोड़ा गुलाल लगा था.

सादी नीली साड़ी में लिपटी उस रूपवती नारी को देखकर मैं फ़िर उनसे लिपटकर चुंबन मांगने ही वाला था कि उन्हों ने उंगली मुंह पर लगाकर मना कर दिया. मैं समझ गया कि अब दिन निकल आया है और छत पर ऐसा करना ठीक नहीं. मैं चाय पी रहा था तब चाची ने सामने बैठ कर मुस्कराते हुए पूछा. "तो कैसे कटी रात मेरे प्यारे लल्ला की?"

मैं दबे स्वरों में उनकी आँखों में देखता हुआ कृतज्ञता से बोला. "माया चाची, आपने तो मुझे स्वर्ग पहुंचा दिया. मैं तो आपका गुलाम हो गया, अब आप जो कहेंगी, वही करूंगा." वे प्यार से हंसने लगी. "ठीक है लल्ला, गुलाम ही बना कर रखूंगी तुझे. देख तुझे क्या क्या नजारे दिखाती हूँ. अब नीचे चलो और नहा लो."

मैं नहाकर तैयार हुआ. दोपहर तक बस टाइम पास किया क्यों की घर में काम करने वाली नौकरानी आ गयी थी और वह खाना बनने तक और हमारा खाना होकर बर्तन माँजने तक रुकी थी. आखिर एक बजे वह गयी और चाची ने दरवाजा अंदर से लगा लिया. मैं तो तैयार था ही, बल्कि सुबह से उनके उस मतवाले शरीर के लिये प्यासा था. तुरंत उनसे चिपक गया.

हम वहीं सोफ़े पर बैठ कर एक दूसरे के चुंबन लेने लगे. "लल्ला, ऐसे नहीं, चुंबन का असली मजा लेने को जीभ का प्रयोग जरूरी है." कहते हुए चाची ने अपनी जीभ से मेरे होंठों को खोला और उसे मेरे मुंह के अंदर डाल दिया. मैं उस रसीली जीभ को चूसने लगा और उस मीठे मुखरस का खूब मजा उठाया. जीभ से जीभ भी लड़ाई गयी और मैंने भी अपनी जीभ चाची के मुंह में डाल कर उनके दाँत, मसूड़े, तालू इत्यादि को खूब चाटा.

चूमाचाटी के बाद चाची मुझे ऊपर अपने कमरे में ले गई. अब तक मेरा लोडा तन्ना कर उठ खड़ा हुआ था. चाची ने दरवाजा बंद करके मेरे पास आकर मेरा हाथ पकडकर कहा. "लल्ला, कल तुम मुझे नंगी देखना चाहते थे ना, चलो आज तुम्हें दिखाती हूँ जन्नत का नजारा. पर पहले तुम अपने सब कपड़े उतारो.

मैं तुरंत नग्न हो गया. थोड़ी शरम अब भी लग रही थी पर जब मैंने चाची की नजर की चमक देखी तो शरम पूरी तरह जाती रही. मेरे भरे पूरे नग्न किशोर जवान शरीर को देखकर वे बोली. "बड़ा प्यारा है मेरा गुलाम, ऐसा सबको थोड़े ही मिलता है. भरपूर गुलामी करवाऊँगी तुझसे लल्ला." मेरे तन कर खड़े लंड को देख कर वे चहक पड़ीं. "बहुत मस्त है लल्ला तेरा सोंटा. चल इसे नापते हैं, कितना लम्बा है."

मुझे पलंग पर बिठा कर वे एक स्केल ले आई और मेरा लंड नापा. छह इंच का निकला. "बड़ा मजबूत है राजा, कितना गोरा भी है, और ये सुपाड़ा तो देख, लगता है जैसे लाल टमाटर हो, और ये नसें, हाय लल्ला, मैं वारी जाऊँ तुझ पर. साल भर में अपनी चाची को चोद चोद कर आठ इंच का न हो जाये तो कहना" कहकर वे उससे खेलने लगी.
nice fuck.
 

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"चाची, अब आप भी नंगी हो जाओ ना प्लीज़." वे मुस्कराकर खड़ी हो गई और साड़ी उतारने लगी. "एक शर्त पर लल्ला. चुपचाप बैठना और मैं कहूँ वैसा करना. और अपने लंड को बिलकुल हाथ नहीं लगाना. नहीं तो मुठ्ठ मारने लगोगे मेरा माल देखकर."

साड़ी और पेटीकोट निकलते ही मेरा और तन्नाने लगा. क्यों की अब उनकी गोरी कदलीस्तंभ जैसी मोटी जांघें नंगी थी. बस एक काली पेन्टी उनके गुप्तांग को छिपाये थी. चोली निकालकर जब उन्हों ने फेंकी तो मैंने बड़ी मुश्किल से अपना हाथ लंड पर जाने से रोका. सिर्फ़ ब्रेसियर और पेन्टी में लिपटी अर्धनग्न चाची तो गजब ढा रही थी. उनका शरीर बड़ा मांसल था, थोड़ा और माँस होता तो मोटापा कहलाता पर अभी तो वह जवानी का माल था.

थोड़ी देर माया चाची ने मुझे तंग किया. इधर उधर घूमी, कमरे में चली, सामान बटोरा और टाइम पास किया; सिर्फ़ मुझे अपने अर्धनंगे रूप से और उत्तेजित करने को. आखिर मैं उठकर उनके सामने घुटने टेक कर बैठ गया और उनकी पेन्टी में मुंह छुपा दिया. उस मादक खुशबू को लेते हुए मैंने उनसे मुझे और तंग न करने की मिन्नत की. मेरी हालत देखकर हंसते हुए उन्हों ने इजाजत दे दी. "ठीक है लल्ला, लो तुम ही उतारो बाकी के कपड़े."

मैंने खड़े होकर काँपते हाथों से चाची की ब्रा के हुक खोले और उसे उतारकर नीचे डाल दिया. ब्रेसियर से छूटते ही उनके भारी मांसल स्तन स्तन थोड़े लटक कर डोलने लगे. मैंने उन्हें हाथों में लेकर झुक कर बारी बारी से चूमना शुरू कर दिया. "थोड़े लटक गये हैं राजा, दस साल पहले देखते तो कडक सेब थे." "मेरे लिये तो ये स्वर्ग के रसीले फ़ल हैं चाची. काश इनमें दूध होता तो मैं पी डालता."

"दूध भी आ जायेगा बेटे, बस तू ऐसा ही मेरी सेवा करता रह." सुनकर उनकी बात के पीछे का मतलब समझ कर मुझे रोमांच हुआ पर मैं चुप रहा. गोरे उरोजों के बीच लटका काला मंगल सूत्र बड़ा प्यारा लग रहा था. किसी शादीशुदा औरत की वह निशानी हमारे उस कामसंबंध को और नाजायज और मसालेदार बना रही थी. मेरी नजर देख कर चाची ने पूछा. "उतार दूँ बेटे मंगल सूत्र?" मैंने कहा. "नहीं चाची, बहुत प्यारा लगता है तुम्हारे स्तनों के बीच."

फ़िर मैंने जल्दी से चाची की चड्डी उतारी. उनकी फ़ूली बुर और गोल मटोल गोरे नितंब मेरे सामने थे. मैं झट से नीचे बैठ गया और पीछे से अपना चेहरा चाची के नितंबों में छुपा दिया. फ़िर उन्हें चूमने लगा. हाथ चाची के कूल्हों के इर्द गिर्द लपेट कर उनकी बुर सहलायी और बुर की लकीर में उंगली चलाई. बुर चू रही थी.

मेरे नितंब चूमने की क्रिया पर चाची ने मीठा ताना मारा. "लगता है चूतड़ों का पुजारी है तू लल्ला, संभल कर रहना पड़ेगा मुझे." मैं कुछ न बोला पर उन गोरे गुदाज चूतड़ों ने मुझे पागल कर दिया था. बस यही आशा थी कि अगले कुछ दिनों में शायद चाची मेहरबान हो जाएँ और मुझे अपने नितंबों का भोग लेने दें तो क्या बात है.

फ़िलहाल उन्हों ने मेरे बाल पकडकर मेरा सिर उठाया और घूम कर मेरे सामने खड़ी हो गई. मेरे सिर को फ़िर अपने पेट पर दबाते हुई बोली. "प्यार करना हो तो आगे से करो लल्ला, रस मिलेगा. पीछे क्या रखा है?" मैंने उनकी रेशमी झांटों में मुंह छुपाया और रगड़ने लगा. उन्हों ने सिसकी ली और जांघें फ़ैलाकर टाँगे पसारकर वे खड़ी हो गई.

मैं उनके सामने ऐसा घुटने टेक कर बैठा था जैसे देवी मां के आगे पुजारी. प्रसाद पाने का मौका अच्छा था इसलिये मैं आगे सरककर मुंह उनकी जांघों के बीच डालकर चूत चूसने लगा. ऐसा रस बह रहा था जैसे नल टपक रहा हो. मैंने ऊपर से नीचे तक बुर चाट चाट कर और योनिद्वार चूस कर चाची की ऐसी सेवा की कि वे निहाल होकर कुछ ही देर में स्खलित हो गई. दो चार चम्मच और चिपचिपा पानी मेरे मुंह में उनकी चूत ने फेंका.

"चलो अब पलंग पर चलो लल्ला, वहाँ ठीक से चूसो. तेरी जीभ तो जादू कर देती है मुझ पर" कहकर चाची मुझे उठाकर खींचती हुई पलंग पर पहुंची और टाँगे फ़ैलाकर लेट गई. इस बार चाची ने मुझे सिखाया कि चुत को ज्यादा से ज्यादा सुख कैसे दिया जाता है.

"लल्ला, मेरी बुर को ठीक से देखो, क्या दिखता है." उन्हों ने मेरे बालों में उँगलियाँ फ़ेरते हुए कहा. मैंने जवाब दिया. "चाची, दो मोटे मुलायम होंठ जैसे हैं, और उनके बीच में गीला लाल छेद है. खुल बंद हो रहा है और रस टपक रहा है." "हाँ बेटे, वे होंठ यानि भगोष्ठ हैं, मेरे निचले मुंह के होंठ, और बोल क्या दिखता है." मैंने आगे कहा. "ऊपर भगोष्ठ जहाँ जुड़े हैं वहाँ एक बड़ा लाल अनार का दाना जैसा है और उसके नीचे एक जरा सा छेद."

"अब आया असली बात पर तू लल्ला. वह छेद मेरा मूतने का है. और वह दाना मेरा क्लिटोरिस है, मदन मणि, वही तो सारे फ़साद की जड है. इतना मीठा कसकता है, चुदासी वहीं से पैदा होती है. उसे चाटो लल्ला, चूमो, प्यार करो, मैं निहाल हो जाऊँगी."

मैंने अपनी जीभ को उस दाने पर फ़ेरा तो वह थिरकने लगा. जरा और रगड़ा तो चाची ने चिहुक कर मेरा सिर कस कर अपनी चूत पर दबा दिया और धक्के मारने लगी. मैंने खेल खेल में उसके मूतने के छेद पर जीभ लगायी तो वह मानों पागल सी हो गई. क्लिट को मैने थोड़ा और रगड़ा और चाची सिसक कर झड़ गई. अगले आधे घंटे तक मैंने उनकी खूब चूत चूसी और मदन मणि को चाट चाट कर के चाची को दो बार और झड़ाया.

थोड़ा शांत होने पर उनका ध्यान मेरे उफ़नते लंड पर गया. उसे हाथ में लेकर वे बेलन जैसे बेलने लगी तो मेरे मुंह से उफ़ निकल गयी. ऐसा लगता था कि झड़ जाऊंगा. "अरे राजा, जरा सब्र करना सीखो. ऐसे झड़ोगे तो दिन भर रास लीला कैसे होगी? चलो, अभी चूस देती हूँ, पर फ़िर दो तीन घंटे सब्र करना. मैं नहीं चाहती कि तू दिन में तीन चार बार से ज्यादा झड़ें"

"चाची, चोदने दो ना! चूस शाम को लेना" मैंने व्याकुल होकर कहा. "नहीं राजा, तू ही सोच, अगर अभी चोद लिया तो फ़िर बाद में मेरी चूत चूस पायेगा? अब तो तू चूत चूसने में माहिर हो गया है. मुझे भी घंटों तुझसे अपनी बुर रानी की सेवा करानी है." उन्हों ने मेरी आँखों में आँखें डालकर पूछा. मैं निरुत्तर हो गया क्योंकी बात सच थी. चाची की बुर में झड़ने के बाद उसे चूसने में क्या मजा आता? सारा स्वाद बदल जाता.

चाची ने आगे कहा. "इसलिये दिन भर मुझे चोदना नहीं. रात को सोते समय चोदा कर. जब थोड़ा संभल जायेगा तो दिन में बिना झड़ें चोद लिया कर. जब न रहा जाये तो मैं चूस दिया करूंगी." कहते हुए चाची ने मुझे पलंग पर बिठाया. खुद नीचे उतर कर मेरे सामने जमीन पर पलथी मारकर बैठ गयी और मेरी गोद में सिर झुकाकर मेरा लंड चूसने लगी. बहुत देर बड़े प्यार से सता सता कर, मीठी छुरी से हलाल कर उन्हों ने मेरा चूसा और आखिर मुझे झड़ाकर अपना इनाम मेरे वीर्य के रूप में वसूल कर लिया.

अगली कामक्रीडा के पहले हम सुस्ता रहे थे तब माया चाची फ़िर खेल खेल में मेरा मुरझाया लंड स्केल से नापने लगी. "बस ढाई इंच है अभी, कितना प्यारा लगता है ऐसे में भी, बच्चे जैसा." मैंने चाची से कहा. "माया चाची, मेरा लंड तो नाप रही हैं, अपनी चूत भी तो नाप कर दिखाइये."

मेरी चुनौती को स्वीकर करके चाची उठकर दराज से एक मोमबत्ती निकाल लाई. करीब एक इंच मोटी और फ़ुट भर लम्बी उस मोमबत्ती को हाथ में लेकर वे पलंग पर टाँगे ऊपर करके बैठ गई और मेरी ओर देखते हुए मुस्कराकर मोमबत्ती अपनी चूत में घुसेड दी. आधी से ज्यादा मोमबत्ती अंदर समा गयी. जब मोमबत्ती का अंदर जाना रुक गया तो उंगली से उसे वहाँ पकडकर उन्हों ने बाहर खींच लिया और बोली. "ले नाप लल्ला"

मैंने नापा तो नौ इंच थी. "देखा लल्ला, कितनी गहरी है, अरे मैं तो तुझे अंदर ले लूँ, तेरे लंड की क्या बात है." शैतानी से वे बोली. मैंने कहा. "चाचीजी, लगता है रोज नापती हो तभी तो पलंग के पास दराज में रखी है." वे हंस कर बोली. "हाँ नापती भी हूँ और मुठ्ठ भी मारती हूँ. है जरा पतली है पर मस्त कड़ी और चिकनी है. बहुत मजा आता है. देखेगा?"

और मेरे जवाब की प्रतीक्षा न करके उन्हों ने फ़िर मोमबत्ती अंदर घुसेड ली और उसका सिरा पकडकर अंदर बाहर करने लगी. "लल्ला देख ठीक से मेरे अंगूठे को." वे बोली. मैंने देखा कि मोमबत्ती अंदर बाहर करते हुए वे अंगूठा अपने क्लिटोरिस पर जमा कर उसे दबा और रगड रही हैं. लगता था बहुत प्रैक्टिस थी क्योंकी पाँच ही मिनिट में उनका शरीर तन सा गया और आँखें चमकने लगी. उनका शरीर थोड़ा सिहरा और वे झड़ गई. हांफते हुए कुछ देर मजा लेने के बाद उन्हों ने सावधानी से खींच कर मोमबत्ती बाहर निकाली. बोली. "तुझे दिखा रही थी इसलिये जल्दी की, नहीं तो आधा आधा घंटा आराम से मजा लेती हूँ."

मोमबत्ती पर चिपचिपा पानी लगा था. मुझसे न रहा गया और उनके हाथ से लेकर मैंने उसे चाट लिया. प्यार से चाची हंसने लगी. मोमबत्ती वापस दराज में रखकर बोली. "चूत रस के बड़े शौकीन हो लल्ला. मैं तो यही मानती हूँ कि सचमुच के मतवाले मर्द की यह पहचान है. आ जाओ मेरे पास, तुझे और रस पिलाऊँ."

अपनी जांघों में मेरा मुंह लेकर वे लेट गई और प्यार से अपनी चूत चुसवायी. मैंने मन लगाकर प्यार से बहुत देर उनकी बुर के पानी का स्वाद लिया. इस बार मैंने उनके क्लिट पर खूब ध्यान दिया और उसे बार बार जीभ से रगड़ा. कई बार मुंह में लेकर अंगूर के दाने जैसा दांतों से हल्के काटा और चूसा. उनकी उत्तेजना का यह हाल था कि बार बार हल्के स्वर में चीख देती थी. आखिर दो चार बार झड़कर वे भी तृप्त हो गई.

मेरा लंड उनकी बुर चूस कर फ़िर खड़ा हो गया था. उसकी ओर देखकर बोली. "अगर न झड़ने का वादा करते हो लल्ला तो चोद लो दस मिनिट." मैं तैयार हो गया और उन पर चढ कर उन्हें चोदने लगा.

दस मिनिट बाद जब उन्हों ने देखा कि मैं बराबर अपने स्खलन पर काबू किये हुए हूँ तो वे बोली. "शाबाश बेटे, चल तुझे दूसरा आसान दिखाती हूँ. इसमें तुझे कुछ नहीं करना पड़ेगा." मुझे उन्हों ने नीचे लिटाया और फ़िर मेरे ऊपर चढ कर बैठ गई. मेरा लंड अपनी बुर में घुसेड लिया और मेरी कमर के दोनों ओर घुटने टेक कर मेरे पेट पर बैठकर उचकते हुए मुझे चोदने लगी.

उनके उछलते हुए स्तनों और उनके बीच डोलते मंगलसूत्र ने ऐसा जादू किया कि मेरा बुरी तरह तन्ना कर खड़ा हो गया. उनकी मखमली चूत ने भी मुझे कस कर पकड रखा था इसलिये चाची को भी मजा आ रहा था. मस्ती में वे खुद ही अपने मम्मे दबाने लगी. मैंने इस नजारे का खूब मजा लिया और बाद में उन्हें आराम देने के लिये खुद ही उनके स्तन पकडकर दबाने लगा.

चाची ने दो तीन बार झड़ने तक मुझे खूब चोदा. आखिर में जब मैं छटपटाने लगा तो वे समझ गई. तुरंत उतर कर मेरे ऊपर सिक्सटी नाइन के पोज़ में लेट गई. यहाँ मैं उनकी रिसती गीली बुर को चूसने लगा और वहाँ उन्हों ने पहले मेरे पूरे लंड को चाट चाट कर उसपर लगा अपनी बुर का पानी साफ़ किया और फ़िर लंड मुंह में लेकर चूस डाला. वीर्य निकालकर उसे पी कर ही वे रुकी.

मैंने उन्हें बाँहों में लेकर कहा. "चाची, मुझे तो आपका रस अमृत जैसा लगता है. आप को खुद की चूत का पानी चाटना अटपटा नहीं लगता." वे बोली. "नहीं रे, बहुत अच्छा लगता है, मैं तो अक्सर उंगलियों से मुठ्ठ मारती हूँ और बीच बीच में उन्हें चाट भी लेती हूँ. सच में कभी कभी ऐसा लगता है कि मेरे जैसे ही कोई गरम जवान औरत मिल जाये तो एक दूसरे की चूत चूसने में बड़ा मजा आयेगा."

चाची के इस मादक चुदैल स्वभाव की मैंने मन ही मन दाद दी. यह भी मनाया कि उनकी यह इच्छा जल्दी पूरी हो. दोपहर हो गयी थी और हम दोनों अब सो गये. सीधा शाम को पाँच बजे उठे.

हमारा अब यही क्रम बन गया. दोपहर और रात को मन भर कर मैथुन करते थे. चाची मुझे सिर्फ़ रात को सोने के पहले आखिरी चुदाई में अपनी चूत में झड़ने देती थी. दिन में दो या तीन बार चूस लेती थी. मैंने भी लंड पर कंट्रोल करके बिना झड़ें घंटों चोदना सीख लिया. बड़ा मजा आता था. चुदाई के इतने आसन हमने आजमाये कि कोई गिनती नहीं. खड़े खड़े, गोद में बिठाकर, पीछे से इत्यादि.

उनमें चार आसन हमें बहुत पसंद आते थे. एक तो सीधा सादा मर्द ऊपर औरत नीचे वाली चुदाई का आसन. दूसरा जिसमें मैं नीचे लेटता था और चाची चढ कर मुझे चोदती थी. तीसरा यह कि मैं कुर्सी में बैठ जाता था और चाची मेरी ओर मुंह करके मेरी गोद में अपनी चूत में मेरा लंड लेकर टाँगे फ़ैला कर बैठ जाती थी और फ़िर ऊपर से मुझे हौले हौले मजा लेकर चोदती थी. इस आसन की खास बात यह थी कि चाची की छातियाँ ठीक मेरे सामने रहती थी और उन्हें मैं मन भर कर चूस सकता था. जब भी निप्पल चूसने का मन हो, हम यही आसन करते थे.


600-450
Very erotic update.
 

sunoanuj

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vakharia aaj update aayega kya mitr ?

Kahani itni jabardast hai ki updates ka intezar bahut taklifadeh lagta hai…
 

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चाचाजी के बार बार आग्रह भरे खत आने से आखिर मैंने यह गर्मी की छुट्टी अपने गाँव वाले घर में बिताने का फ़ैसला किया. मैं जब गाँव पहुंचा तो चाचाजी बहुत खुश हुए. चाची को पुकारते हुए बोले. "लो, अनुराग आ गया तुम्हारा साथ देने को. अनुराग बेटे, अब मैं निश्चिंत मन से दौरे पर जा सकता हूँ नहीं तो महीना भर अकेले रह कर तुम्हारी चाची बोर हो जाती."

माया चाची मुस्कराती हुई मेरी ओर देखकर बोली. "हाँ लल्ला, बहुत अच्छा किया जो आ गये. वैसे मैंने अपनी भांजी को भी चिठ्ठी लिखी है, शायद वो भी आ जाये अगले हफ़्ते. तेरे आने का पक्का नहीं था ना इसलिये"

चाचाजी सामान अपनी बैग में भरते हुए बोले. "चलो, दो से तीन भले. मैं तो चला. भाग्यवान संभाल कर रहना. वैसे अब अनुराग है तो मुझे कोई चिंता नहीं. अनुराग बेटे चाची का पूरा खयाल रखना, उसकी हर जरूरत पूरी करना, अब महीने भर घर को और चाची को तेरे सहारे ही छोड. कर जा रहा हूँ" चाचाजी ने बैग उठायी और दौरे पर निकल गये.

मेरे राजेशचाचा बड़े हेंडसम आदमी थे. गठीला स्वस्थ बदन और गेंहुआ रंग. मेरे पिताजी के छोटे भाई थे और गाँव के बड़े पुश्तैनी घर में रहते थे. वहीं रहकर एक अच्छी कंपनी के लिये आस पास के शहरों में मार्केटिंग की नौकरी करते थे इसलिये अक्सर बाहर रहते थे. गाँव के घर में चाची के सिवाय और कोई नहीं था. पाँच साल पहले बत्तीस की आयु में शादी की थी, वह भी घर वालों की जिद पर, नहीं तो शादी करने का उनका कभी इरादा नहीं था.

माया चाची उनसे सात आठ साल छोटी थी. वे शादी में सिर्फ़ पच्चीस छब्बीस साल की होंगी. उन्हें अब तक कोई संतान नहीं हुई थी. घर वालों को इसमें कोई आश्चर्य नहीं हुआ था क्योंकी चाचाजी को पहले से ही शादी मे दिलचस्पी नहीं थी. मुझे तो लगता है कि उन्हों ने कभी माया चाची का चुंबन भी नहीं लिया होगा, संभोग तो दूर की बात रही.

मैं चाचाजी की शादी में छोटा था. तब शादी के जोड़े में लिपटी वह कमसिन सुंदर चाची मुझे बहुत भा गयी थी. उसके बाद इन पाँच सालों में मैं उन्हें बस एक बार दो दिन के लिये मिला था. गाँव आने का मौका भी नहीं मिला. आज उन्हें फ़िर देख कर मुझे बड़ा अच्छा लगा. सच बात तो यह है कि बहुत संयम बरतने पर भी न मान कर मेरा लंड खड़ा होने लगा.

मुझे बड़ा अटपटा लगा क्योंकी चाचाजी की मैं इज्जत करता था. उनकी जवान पत्नी की ओर मेरे ऐसे विचार मन में आने से मुझे शर्म सी लगी. पर एक तो मेरा अठारह साल का जोश, दूसरे माया चाची का भरपूर जोबन. वे अब तीस इकतीस साल की भरी पूरी परिपक्व जवान महिला थी और घूँघट लिये हुए सादी साड़ी में भी उनका रूप छुपाये नहीं छुप रहा था.

वे बड़ा सा सिंदूर लगायी हुई थी और बिना लिपस्टिक के भी उनके कोमल उभरे होंठ लाल लाल गुलाब की पंखुड़ियों से लग रहे थे. साड़ी उनके बदन में लिपटी हुई थी, फ़िर भी उसमें से भी उनके वक्ष का उभार नहीं छुपता था. हरी चूड़ियाँ पहने उनकी गोरी बाँहें देख कर सहसा मेरे मन में विचार आ गया कि चाची का बदन नग्न कैसा दिखेगा? अपने इस कामुक मन पर मैंने फ़िर अपने आप को कोस डाला.

मेरी नजर शायद उन्हों ने पहचान ली थी क्योंकी मेरी ओर देखकर चाची बड़ी शरारती नजर से देख कर बोली. "कितने जवान हो गये हो लल्ला, इतना सा देखा था तुझे. शादी कर डालो अब, गाँव के हिसाब से तो अब तक तुम्हारी बहू आ जाना चाहिये."

उनके बोलने के और मेरी ओर देखने के अंदाज से मैं एक बात तुरंत समझ गया. माया चाची बड़ी "चालू" चीज़ थी. कम से कम मेरे साथ तो बहुत इतरा रही थी. मैं थोड़ा शरमा कर इधर उधर देखने लगा.

हम अब अकेले थे इसलिये वे घूँघट छोड. कर अपने कपड़े ठीक करते हुए मुझसे गप्पे लगाने लगी. उनके बाल भी बड़े लंबे खूबसूरत थे जिसका उन्हों ने जुड़ा बांध रखा था. "चाय बना कर लाती हूँ लल्ला." कहकर वे चली गई. अब साड़ी उनकी कमर से हट गयी थी और उस गोरी चिकनी कमर को देखकर और उनके नितंब डुलाकर चलने के अंदाज से ही मेरा लंड और कस कर खड़ा हो गया.

वे शायद इस बात को जानती थी क्योंकी जान बूझ कर अंदर से पुकार कर बोली. "यहीं रसोई में आ जाओ लल्ला. हाथ मुंह भी धो लो" मेरा ऐसा कस कर खड़ा था कि मैं उठ कर खड़ा होने का भी साहस नहीं कर सकता था, चल कर उनके सामने जाने की तो दूर रही. "बाद में धो लूँगा चाची, नहा ही लूँगा, चाय आप यहीं ले आइये ना प्लीज़."

वे चाय ले कर आई. मेरी ओर देखने का अंदाज उनका ऐसा था कि जैसे सब जानती थी कि मेरी क्या हालत है. बातें करते हुए बड़ी सहज रीति से उन्हों ने अपना ढला हुआ आँचल ठीक किया. यह दस सेकंड का काम करने में उन्हें पूरे दो मिनिट लगे और उन दो मिनटों में पाँच छह बार नीचे झुककर उन्हों ने अपनी साड़ी की चुन्नटें ठीक की.

इस सारे कार्य का उद्देश्य सिर्फ़ एक था, अपने स्तनों का उभार दिखा कर मेरा काम तमां करना जिसमें माया चाची शत प्रतिशत सफ़ल रही. उस लाल लो-कट की चोली में उनके उरोज समा नहीं पा रहे थे. जब वे झुकी तो उन गोरे मांसल गोलों के बीच की खाई मुझे ऐसी उत्तेजित कर गई कि अपने हाथों को मैंने बड़ी मुश्किल से अपने लंड पर जाने से रोका नहीं तो हस्तमैथुन के लिये मैं मरा जा रहा था.

मेरा हाल देख कर चाची ने मुझ पर तरस खाया और अपना छिछोरापन रोक कर मेरा कमरा ठीक करने को ऊपर चली गई. मुझे अपना लंड बिठाने का समय देकर कुछ देर बाद बातें करती हुई मुझे कमरे में ले गयी. "शाम हो गयी है अनुराग, तुम नहा लो और नीचे आ जाओ. मैं खाने की तैयारी करती हूँ."

"इतनी जल्दी खाना चाची?" मैंने पूछा. वे मेरी पीठ पर हाथ रख कर बोली. "जल्द खाना और जल्द सोना, गाँव में तो यही होता है लल्ला. तुम भी आदत डाल लो." और बड़े अर्थपूर्ण तरीके से मेरी ओर देखकर वे मुस्कुराने लगी.

मैं हड़बड़ा गया. किसी तरह अपने आप को संभाल कर नहाने जाने लगा तो पीछे से चाची बोली. "जल्दी नहाना अच्छे बच्चों जैसे, कोई शरारत नहीं करना अकेले में" और खिलखिलाती हुई वे सीढ़ियाँ उतर कर रसोई में चली गई. मैं थोड़ा शरमा गया क्योंकी मुझे लगा कि उनका इशारा इस तरफ़ था कि नहाते हुए मैं हस्तमैथुन न करूँ.

चाची के इस खेल से मेरे मन में एक बड़ी हसीन आशा जाग उठी. और वह आशा विश्वास में बदल गयी जब मैं नहा कर रसोई में पहुंचा. अब मैं पूरी तैयारी से आया था. मन मार कर किसी तरह मैंने अपने आप को हस्तमैथुन करने से रोका था. बाद में लंड को खड़ा पेट से सटाकर और जाँघिया पहनकर ऊपर से उसी पर मैंने पाजामे की नाड़ी बांध ली थी और ऊपर से कुर्ता पहन लिया था. अब मैं चाहे जितना मजा ले सकता था, लंड खड़ा भी होता तो किसी को दिखता नहीं.

चाची रसोई की तैयारी कर रही थी. मैं वहीं कुर्सी पर बैठ कर उनसे बातें करने लगा. चाची ने कुछ बैंगन उठाये और हंसिया लेकर उन्हें काटने मेरे सामने जमीन पर बैठ गई. अपनी साड़ी घुटनों के ऊपर कर के एक टांग उन्हों ने नीचे रखी और दूसरी मोड कर हँसिये के पाट पर अपना पाँव रखा. फ़िर वे बैंगन काटने लगी.

उनकी गोरी चिकनी पिंडलियों और खूबसूरत पैरों को मैं देखता हुआ मजा लेने लगा. वे बड़े सहज भाव से सब्जी काट रही थी. अचानक मुझे जैसे शॉक लगा और मेरा लंड ऐसे उछला जैसे झड़ जायेगा. हुआ यह कि चाची ने आराम से बैठने को थोड़ा हिल डुलकर अपनी टाँगे और फैलाई. इस से उनकी गोरी नग्न जांघें तो मुझे दिखी ही, उनके बीच काले घने बालों से आच्छादित उनके गुप्तांग का भी दर्शन हुआ. माया चाची ने साड़ी के नीचे कुछ नहीं पहना था.

मैं शरमा गया और बहुत उत्तेजना भी हुई. पहले मैने यह समझा कि उन्हें पता नहीं है कि उनका सब खजाना मुझे दिख रहा है इसलिये झेंप कर नजर फ़िरा कर दूसरी ओर देखकर मैं उनसे बातें करने लगा. पर वे कहाँ मुझे छोड़ने वाली थी. दो ही मिनिट में शरारत भरे अंदाज में वे बोली. "चाची क्या इतनी बुरी है लल्ला कि बात करते समय उसकी ओर देखना भी नहीं चाहते?"

मैंने मुड कर उनकी ओर देखा और कहा. "नहीं चाची, आप तो बहुत सुंदर हैं, अप्सरा जैसी, मुझे तो लगता है आप को लगातार देखता रहूँ पर आप बुरा न मान जाएँ इसलिये घूरना नहीं चाहता था."

"तो देखो ना लल्ला. ठीक से देखो. मुझे भी अच्छा लगता है कि तेरे जैसा कोई प्यारा जवान लड़का प्यार से मुझे देखे. और फ़िर तो तू मेरा भतीजा है, घर का ही लड़का है, तेरे तकने को मैं बुरा नहीं मानती" कहकर उस मतवाली नारी ने अपनी टाँगे बड़ी सहजता से और फ़ैला दी और बैंगन काटती रही.

अब तो शक की कोई गुंजाइश ही नहीं थी. चाची मुझे रिझा रही थी. मैं भी शरम छोड. कर नजर जड़ा कर उनके उस मादक रूप का आनंद लेने लगा. गोरी फ़ूली बुर पर खूब रेशमी काले बाल थे और मोटी बुर के बीच की गहरी लकीर थोड़ी खुल कर उसमें से लाल लाल योनिमुख की भी हल्की झलक दिख रही थी.

पाँच मिनिट के उस काम में चाची ने पंद्रह मिनिट लगाये और मुझसे जान बूझ कर उकसाने वाली बातें की. मेरी गर्लफ़्रेन्ड्स हैं या नहीं, क्यों नहीं हैं, आज के लड़के लड़कियां तो बड़े चालू होते हैं, मेरे जैसा सुंदर जवान लड़का अब तक इतना दबा हुआ क्यों है इत्यादि इत्यादि. मैं समझ गया कि चाची जरूर मुझ पर मेहरबान होंगी, शायद उसी रात मैं खुश भी हुआ और चाचाजी का सोच कर थोड़ी अपराधीपन की भावना भी मन में हुई.

आखिर चाची उठीं और खाना बनाने लगी. मैं बाहर के कमरे में जाकर किताब पढ़ने लगा. अपनी उबलती वासना शांत करने का मुठ्ठ मारने के सिवाय कोई चारा नहीं था इसलिये मन लगाकर जो सामने दिखा, पढ़ता रहा. कुछ समय बाद चाची ने खाने पर बुलाया और हम दोनों ने मिल कर बिलकुल यारों जैसी गप्पें मारते हुए खाना खाया.

खाना समाप्त करके मैं अपने कमरे में जाकर सामान अनपैक करने लगा. सोच रहा था कि चाची कहाँ सोती हैं और आज रात कैसे कटेगी. तभी वे ऊपर आई और मुझे छत पर बुलाया. "अनुराग, यहाँ आ और बिस्तर लगाने में मेरे मदद कर."

मैं छत पर गया. मेरा दिल डूबा जा रहा था. गरमी के दिन थे. साफ़ था कि सब लोग बाहर खुले में सोते थे. ऐसी हालत में क्या बात बननी थी चाची के साथ. छत पर दो खाटें थी. हमने उनपर गद्दियाँ बिछाई. "गरमी में बाहर सोने का मजा ही और है लल्ला" कह कर मुझे चिढ़ाती हुई वे मच्छरदानियाँ लेने चली गई.

वापस आई तो दोनों मच्छरदानियाँ फ़टी निकलीं. माया चाची मेरी नजरों में नजर डाल कर बोली. "मच्छर तो बहुत हैं अनुराग, सोने नहीं देंगे. गरमी इतनी है कि नीचे सोया नहीं जायेगा. ऐसा कर, तू खाटें सरकाकर मिला ले, मैं डबल वाली मच्छादानी ले आती हूँ. तू शरमायेगा तो नहीं मेरे साथ सोने में? वैसे मैं तेरी चाची हूँ, मां जैसी ही समझ ले."

मैं शरमा कर कुछ बुदबुदाया. चाची मंद मंद मुस्कराकर डबल मच्छरदानी लेने चले गई. वापस आई तो हम दोनों उसे बांधने लगे. मैंने साहस करके पूछा. "चाची, आजू बाजू वाले देखेंगे तो नहीं." वे हंस पड़ीं. "इसका मतलब है तूने छत ठीक से नहीं देखी." मैंने गौर किया तो समझ गया. आस पास के घरों से हमारा मकान बहुत ऊंचा था. दीवाल भी अच्छी ऊंची थी. बाहर का कोई भी छत पर नहीं देख सकता था.

तभी चाची ने मीठा ताना मारा. "और लोग देखें भी तो क्या हुआ बेटे. तू तो इतना सयाना बच्चा है, तुरंत सो जायेगा सिमट कर." मैंने मन ही मन कहा कि चाची मौका दो तो दिखाता हूँ कि यह बच्चा तुम्हारे मतवाले शरीर का कैसे रस निकालता है.

आखिर चाची नीचे जाकर ताला लगाकर बत्ती बुझाकर ऊपर आई. मैं तब तक मच्छरदानी खोंस कर अपनी खाट पर लेट गया था. चाची भी दूसरी ओर से अंदर आकर दूसरी खाट पर लेट गई.

पास से चाची के बदन की मादक खुशबू ने फ़िर अपना जादू दिखाया और मेरा मस्त खड़ा हो गया. चाची भी गप्पें मारने के मूड में थी और फ़िर वही गर्लफ़्रेन्ड वाली बातें मुझसे करने लगी. मेरा लंड अब तक अपनी लगाम से छूटकर पाजामे में तंबू बना कर खड़ा हो गया था.
Bhout hi badhiya update diya hai. Aaj hi chachi ka kaam hoga yah wait kare.
 
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