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Incest काला इश्क़ दूसरा अध्याय: एक बग़ावत

drx prince

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भाग - 10


अब तक आपने पढ़ा:


"तेरा राज़ मेरे पास सुरक्षित है, मैं किसी को तुम भाई-बहन के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताऊँगी|" मैंने मुस्कुराते हुए अंजलि को आश्वस्त किया| तब जा कर अंजलि की जान में जान आई और वो एकदम से मेरे गले लग गई|


अब आगे:


जब
आप किसी का कोई राज़ जान लेते हो तो अपना राज़ खुलने के डर से वो व्यक्ति आपके आधीन हो जाता है और किसी हद्द तक आपके प्रति ईमानदार हो खुद को आपके प्रति समर्पित कर देता है|



जब मैं अंजलि को उसी के चचेरे भाई के साथ हमबिस्तर होते हुए देख रही थी तब मैंने उसी के फ़ोन के कैमरे से उसी की चुदाई शूट की क्योंकि मैं चाहती थी की भविष्य में मैं इसका फायदा उठाऊँ| लेकिन जब दोनों चचेरे भाई-बहन की कामलीला शुरू हुई तो मेरे जिस्म में जो आग लगी उस आग से निपटने के बाद मुझे एहसास हुआ की मेरा ये सब सोचना कितना गलत है! अंजलि जैसी भी थी, थी तो मेरी दोस्त...वो दोस्त जिसने मुझे सेक्स का सारा ज्ञान दिया|



इस MMS clip का मैं बस एक ही फायदा उठा सकती थी और वो था अंजलि के पहले सेक्स के बारे में जानना क्योंकि किताबों में पढ़ी कहानियाँ मन घड़ंत होती हैं जबकि किसी के साथ बीती कहानी हमेसा सच होती है| यही कारण था की मैंने अंजलि से अकड़ते हुए उसके पहले सेक्स के बारे में पुछा था| ताकि अगलीबार जब मैं मास्टरबेट करूँ तो मैं इस कहानी को याद कर सकूँ! :P



खैर, अंजलि की राज़दार हो कर मैं उसके बहुत नज़दीक पहुँच चुकी थी, इतनी नज़दीक की अंजलि अब ख़ुशी-ख़ुशी मेरी उँगलियों पर नाचती थी|



शाम हो रही थी और माँ-पिताजी के घर आने का समय हो रहा था इसलिए उनके आने से पहले मुझे अंजलि के घर से निकलना था| शुक्र जय की मैं और भैया, माँ-पिताजी के घर लौटने से पहले आ गए वरना खूब सवाल-जवाब होते|





पैसे के तौर पर मेरे घर में हालात थोड़े नाज़ुक हो चले थे जिस कारण अब भैया पर बहुत दबाव पड़ रहा था| पिताजी चाहते थे की भैया की पक्की सरकारी नौकरी लग जाए ताकि परिवार का भविष्य सुरक्षित रहे और इसके लिए वो अनेकों जुगत लगा रहे थे| वहीं आदि भैया चाहते थे की वो प्राइवेट में नौकरी करें क्योंकि वहाँ पैसा अच्छा था जिससे हमारे परिवार का वर्तमान सुधर जाता|

दोनों बाप-बेटों की इस भविष्य और वर्तमान को ले कर घर में बहुत बहस होने लगी थी| पिताजी भैया से सरकारी नौकरी के फॉर्म भरवाने लगे, सरकारी नौकरी वाले सभी पेपर दिलवाने लगे ताकि कहीं तो भैया का सिलेक्शन हो जाए| लेकिन भैया जिसे अनेकों युवा पहले ही सरकारी की नौकरी में लग चुके थे इसलिए हर बार भैया का नंबर चूक ही जाता था|



बार-बार मिली हार से आदि भैया हताश हो चुके थे और उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी थी| आदि भैया ने अपने दोस्तों से बात कर चुप-चाप ओपन से MBA का फॉर्म भर दिया और MBA करने के लिए उन्होंने कर्ज़ा ले लिया जिसे वो थोड़ा-थोड़ा कर अपनी सैलरी से चूका रहे थे| शाम को घर आते ही भैया पढ़ाई में लग जाते थे, पिताजी जब भैया को पढ़ते देखते तो उन्हें लगता की भैया सरकारी नौकरी के किसी पेपर की तैयारी कर रहे हैं|



इधर मुझसे अपने भैया और पिताजी की ये अनबन नहीं देखि जा रही थी इसलिए मैंने भी अपना योगदान देनी की ठान ली| मैंने आस-अपडोस के 2-3 बच्चों को अपने घर गणित की टूशन पढ़ने बुला लिया| हर बच्चे के परिवार जन मुझे 300/- रुपये महीना देते थे|

माँ-पिताजी को पैसे से कोई मतलब नहीं था, उनके लिए तो बच्चों को पढ़ाना बस मेरा शौक था इसीलिए उन्होंने मुझे बच्चों को टूशन पढ़ाने से नहीं रोका| शाम के समय बच्चे मेरे घर आते और मैं उन्हें बरामदे में पढ़ाती| मेरा पढ़ाने का ढंग बहुत अलग था क्योंकि मैं हँसी-मज़ाक कर के पढ़ाया करती थी| मेरे टूशन शुरू करने के एक हफ्ते में ही मेरे पास 2 बच्चों की बजाए 3 बच्चे आने लगे|



मुझे आज भी याद है वो दिन जब पहली बार मेरे हाथ में 900/- रुपये आये! अपनी पहली कमाई को अपने हाथ में देख मैं ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी| मैं आज इतनी खुश थी की मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसूँ भर आये थे| पैसे ले कर मैं सीधा अपने पिताजी के पास पहुँची और ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें सारे पैसे देने लगी मगर मेरे पिताजी ने वो पैसे नहीं लिए| उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरे सर पर हाथ रखा और माँ से बोले; "देख रही हो भाग्यवान, हमारी छोटी सी बिटिया ने टूशन पढ़ा कर इतने सारे पैसे इक्कट्ठा किये हैं?!" ये कहते हुए पिताजी ने मेरा माथा चूम लिया|

पीछे से माँ आईं तो मैंने उन्हें सारे पैसे देने चाहे मगर उन्होंने भी पैसे नहीं लिए; "नहीं बेटा, ये पैसे तेरे हैं| इनसे तू अपने लिए कुछ ले लेना|" ये कहते हुए माँ ने भी मेरे माथे को चूमा और फिर मेरा मुँह मीठा करवाया...वो भी पहला रसगुल्ला खिला कर!



मैंने पहले तो रसगुल्ला खाया और फिर अपने माँ-पिताजी से बोली; "माँ...पिताजी...मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ इसलिए मुझे भी अब घर की थोड़ी जिम्मेदारी उठानी चाहिए न? फिर मुझे जो भी कुछ चाहिए होता है मैं आपसे माँग ही लेती हूँ तो फिर मैं ये पैसे रख कर क्या करुँगी? ये आप ही रखिये, जब मुझे कुछ चाहिए होगा तब मैं माँग लूँगी!" मेरा ये जवाब सुन माँ-पिताजी की आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भर आई क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी से इतनी बड़ी बात की उम्मीद नहीं की थी| माँ ने मुझे अपने गले लगा लिया और मुझे खूब लाड-प्यार किया|

मानु के मम्मी-पापा उन दिनों यहीं थे इसलिए जब उन्हें सब पता चला तो उन्होंने मेरी खूब तारीफ की| मेरी पहली कमाई की ख़ुशी मनाने के लिए अंकल जी ने पिताजी को अपने साथ रसोई में खींचा और दोनों ने मिलकर बड़ी स्वादिष्ट 'चुन्गडी मलाई' और भात बनाये| खाना इतना स्वाद बना था की मेरी माँ और आंटी जी तो पिताजी और अंकल जी की कुकिंग की तारीफ करते नहीं थक रहे थे|



जिन्हें नहीं पता, 'चुन्गडी मलाई' एक तरह की सब्जी होती है जो झींगे और नारियल के दूध के साथ बनाई जाती| ये सब्जी इतनी मलाईदार होती है की मुँह में घुल जाती है| ऊपर से इसमें मसाले भी तेज़ नहीं होते की खाने वाले का मुँह जल जाए, मसालों की भूमिका औसतन होती है और सारा स्वाद होता है झींगों का!



अगले महीने से मेरे पास और बच्चे पढ़ने आने लगे तो मेरी कमाई धीरे-धीरे बढ़ने लगी| कुछ महीने बीते थे और पैसे भी काफी इकठ्ठा हो गए थे इसलिए मैंने अपना मोबाइल फ़ोन लेने के लिए पिताजी से इज्जाजत माँगी| अब चूँकि ये मेरी अपनी कमाई के पैसे थे इसलिए पिताजी मना नहीं किया और आदि भैया को मुझे मोबाइल दिलाने का काम सौंप दिया|

मुझे किसी भी कीमत पर चाहिए था multimedia वाला मोबाइल ताकि मैं उससे अपनी फोटो खींच सकूँ और अंजलि से ब्लू फिल्म ले कर देख सकूँ| जब मैंने आदि भैया को बताया की मुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए तो वो मुस्कुराने लगे और बोले; "मैं और पिताजी तो अभी तक बटन वाला मोबाइल चला रहे हैं और तुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए?!" ये कहते हुए भैया ने मेरे सर पर प्यार से मारा और अपने दोस्त की मोटरसाइकिल पर बिठा कर मोबाइल खरीदने चल दिए|

अब मल्टीमीडिया चलाने वाला मोबाइल सस्ता तो होता नहीं था इसलिए पैसे कम पड़ने लगे थे, परन्तु मेरी ख़ुशी के लिए बाकी के पैसे आदि भैया ने अपनी जेब से डाले और हम मेरा नया मोबाइल ले कर घर आ गए| कैमरे वाला फ़ोन देख कर ही पिताजी समझ गए थे की फ़ोन महँगा है पर मुझे बचाने के लिए आदि भैया ने झूठ बोल दिया की उन्होंने फ़ोन जुगाड़ लगा कर खरीदा है| चलो इस बार तो मैं पिताजी से डाँट खाने से बच गई!



अब चूँकि मेरे पास कैमरे वाला मोबाइल था तो मैंने उससे छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी और फोटोग्राफी करना सीख लिया| अपने इस छोटे से 1.5 मेगापिक्सेल वाले फ़ोन से मैं प्रोफेशनल लेवल वाली फोटोग्राफी कर लेती थी! कौन सा पोज़ बनाना है, बैकग्राउंड कैसी होनी चाहिए, कैंडिड फोटो कैसे लेनी होती है आदि सब सीख गई थी|





बहराहल, मेरी ज़िन्दगी बस ब्लू फिल्म देखने, मास्टरबेट करने या कैमरे से फोटो खींचने तक ही सीमित नहीं थी|



अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए मेरी बारहवीं की परीक्षा नज़दीक आ चुकी थी| मैंने सब कुछ छोड़कर अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया| आँखों में तेल डाल-डालकर मैं रात-रात भर जाग कर पढ़ती थी| इसका स्वर्णिम परिणाम मुझे बॉर्ड की परीक्षा के रिजल्ट आने पर मिला| मैं पूरे 85% के साथ पास हुई थी और मेरे नंबर देख कर मेरे पिताजी को मुझ पर बहुत गर्व हो रहा था| वहीं आदि भैया इतने खुश थे की क्या कहूँ, उन्होंने मुझे अपने गले लगा कर खूब प्यार दिया और मेरे मस्तक को चूम कर मेरे हाथों में हज़ार रुपये रख दिए! मैं कुछ समझ पाती उससे पहले ही भैया ने माँ को रसोई से बाहर बुलाया और एप्रन पहन कर खाना बनाने घुस गए|

दरअसल हमारे घर में सभी खाने-पीने के कुछ अधिक ही शौक़ीन हैं| ख़ुशी का कोई भी मौका हो, घर के पुरुष सदस्य रसोई में घुस जाते हैं| अब भैया रसोई में घुसें तो पिताजी कैसे पीछे रहते, वो भी अपना तहमद लपेट घुस गए और दोनों बाप-बेटों ने मेरे मनपसंद की साड़ी चीजें बनाकर परोस दी| मेरे आगे इतना खाना पड़ा था मानो शादी के बाद दामाद घर आया हो!



चलो भाई, खाना पीना हो गया तो अब बारी थी मेरे जीवन में आगे क्या करना है उसका फैसला लेने की| मेरी क्लास में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे दिल्ली में स्थिति DU में पढ़ने जाने के लिए अपना बोरिया-बिस्तर लपेट चुके थे| यहाँ तक की वो बच्चे भी जिनके 60-70% वाले बच्चे भी, क्योंकि उनके पास था कोटा! वहीं मैं जानती थी की पिताजी मुझे दिल्ली जाने देंगे नहीं इसलिए मैं अपना मन मारकर बैठी हुई थी!

आदि भैया से मेरा ये उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जा रहा था पर वो ये भी जानते थे की पिताजी मुझे दिल्ली पढ़ने जाने नहीं देंगे| जब पिताजी ने भैया को इंजीनियरिंग करने के लिए कोटा (राजस्थान) जाने नहीं दिया तो वो मुझ लड़की को कहाँ अकेले दिल्ली जाने देते?!



भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!



जारी रहेगा अगले भाग में!
Very nice update keerti ka family supportive nature baht accha dikhaya hai keerti ne 85%mark score kiye hai ab dekhte hai kaun sa nya dhamaka hone vala hai
 
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कुछ लड़के या लड़कियां ऐसे होते हैं जो पढ़ाई के साथ-साथ खेलकूद , मूवीज देखना , शरारतें करना और यहां तक की फ्लर्ट करने मे भी अनन्त होशियार होते हैं।
कीर्ति इसी कैटिगरी मे आने वाली एक होनहार लड़की है। कम उम्र मे लड़कों को घर परिवार के जिम्मेदारी का ख्याल नही आता । वो सिर्फ अपने पढ़ाई या बाकी के पर्सनल काम से सरोकार रखते है। लेकिन कीर्ति अपने खाली वक्त मे यदि छोटे बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर कुछ उजरत हासिल कर ले रही है तो यह स्पष्ट जाहिर होता है कि वो दिल और दिमाग दोनो से ही परिपक्व है।
ऐसे बच्चे अपने लक्ष्य मे कभी असफल नही होते। ऐसे बच्चे , अगर जंगल मे भी वास करना पड़े , तो वहां भी कुछ न कुछ करके अपना भरण-पोषण कर ही लेंगे।

कीर्ति के फैमिली मे हर छोटी- बड़ी खुशी पर विभिन्न प्रकार के व्यंजन बनाना बहुत अच्छा लक्षण लगा मुझे। ऐसा बिल्कुल होना चाहिए । खुशी का लम्हा जब आए अवश्य सेलिब्रेशन होना चाहिए और स्वादिष्ट भोजन से बेहतर क्या सेलिब्रेशन हो सकता है !

और जहां तक आदित्य की बात है , प्रायः मां-बाप की इच्छा होती है कि उनका बेटा कोई सरकारी नोकरी करे लेकिन मेरा विचार है कि इस के लिए उन पर किसी तरह का दबाव नही बनाना चाहिए । उन्हे अपना फील्ड चुनने की आजादी होनी चाहिए।
यह समय बच्चों के लिए बहुत कठीन समय होता है। यह वो समय होता है जब ये गैर जिम्मेदारी के जीवन से जिम्मेदारी के जीवन मे अग्रसर होते है और गार्डियन का फर्ज होता है कि वो इन्हे सही तरीके से गाइड करें।

बिनोबा भावे जी ने कहा था कि गैर जिम्मेदार से जिम्मेदार के जीवन मे प्रवेश करना कभी-कभार हनुमान कुद बन जाता है।

अपडेट हमेशा की तरह बहुत ही खूबसूरत था।
आउटस्टैंडिंग एंड अमेजिंग अपडेट मानु भाई।
 
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Mohdsirajali

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भाग - 10


अब तक आपने पढ़ा:


"तेरा राज़ मेरे पास सुरक्षित है, मैं किसी को तुम भाई-बहन के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताऊँगी|" मैंने मुस्कुराते हुए अंजलि को आश्वस्त किया| तब जा कर अंजलि की जान में जान आई और वो एकदम से मेरे गले लग गई|


अब आगे:


जब
आप किसी का कोई राज़ जान लेते हो तो अपना राज़ खुलने के डर से वो व्यक्ति आपके आधीन हो जाता है और किसी हद्द तक आपके प्रति ईमानदार हो खुद को आपके प्रति समर्पित कर देता है|



जब मैं अंजलि को उसी के चचेरे भाई के साथ हमबिस्तर होते हुए देख रही थी तब मैंने उसी के फ़ोन के कैमरे से उसी की चुदाई शूट की क्योंकि मैं चाहती थी की भविष्य में मैं इसका फायदा उठाऊँ| लेकिन जब दोनों चचेरे भाई-बहन की कामलीला शुरू हुई तो मेरे जिस्म में जो आग लगी उस आग से निपटने के बाद मुझे एहसास हुआ की मेरा ये सब सोचना कितना गलत है! अंजलि जैसी भी थी, थी तो मेरी दोस्त...वो दोस्त जिसने मुझे सेक्स का सारा ज्ञान दिया|



इस MMS clip का मैं बस एक ही फायदा उठा सकती थी और वो था अंजलि के पहले सेक्स के बारे में जानना क्योंकि किताबों में पढ़ी कहानियाँ मन घड़ंत होती हैं जबकि किसी के साथ बीती कहानी हमेसा सच होती है| यही कारण था की मैंने अंजलि से अकड़ते हुए उसके पहले सेक्स के बारे में पुछा था| ताकि अगलीबार जब मैं मास्टरबेट करूँ तो मैं इस कहानी को याद कर सकूँ! :P



खैर, अंजलि की राज़दार हो कर मैं उसके बहुत नज़दीक पहुँच चुकी थी, इतनी नज़दीक की अंजलि अब ख़ुशी-ख़ुशी मेरी उँगलियों पर नाचती थी|



शाम हो रही थी और माँ-पिताजी के घर आने का समय हो रहा था इसलिए उनके आने से पहले मुझे अंजलि के घर से निकलना था| शुक्र जय की मैं और भैया, माँ-पिताजी के घर लौटने से पहले आ गए वरना खूब सवाल-जवाब होते|





पैसे के तौर पर मेरे घर में हालात थोड़े नाज़ुक हो चले थे जिस कारण अब भैया पर बहुत दबाव पड़ रहा था| पिताजी चाहते थे की भैया की पक्की सरकारी नौकरी लग जाए ताकि परिवार का भविष्य सुरक्षित रहे और इसके लिए वो अनेकों जुगत लगा रहे थे| वहीं आदि भैया चाहते थे की वो प्राइवेट में नौकरी करें क्योंकि वहाँ पैसा अच्छा था जिससे हमारे परिवार का वर्तमान सुधर जाता|

दोनों बाप-बेटों की इस भविष्य और वर्तमान को ले कर घर में बहुत बहस होने लगी थी| पिताजी भैया से सरकारी नौकरी के फॉर्म भरवाने लगे, सरकारी नौकरी वाले सभी पेपर दिलवाने लगे ताकि कहीं तो भैया का सिलेक्शन हो जाए| लेकिन भैया जिसे अनेकों युवा पहले ही सरकारी की नौकरी में लग चुके थे इसलिए हर बार भैया का नंबर चूक ही जाता था|



बार-बार मिली हार से आदि भैया हताश हो चुके थे और उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी थी| आदि भैया ने अपने दोस्तों से बात कर चुप-चाप ओपन से MBA का फॉर्म भर दिया और MBA करने के लिए उन्होंने कर्ज़ा ले लिया जिसे वो थोड़ा-थोड़ा कर अपनी सैलरी से चूका रहे थे| शाम को घर आते ही भैया पढ़ाई में लग जाते थे, पिताजी जब भैया को पढ़ते देखते तो उन्हें लगता की भैया सरकारी नौकरी के किसी पेपर की तैयारी कर रहे हैं|



इधर मुझसे अपने भैया और पिताजी की ये अनबन नहीं देखि जा रही थी इसलिए मैंने भी अपना योगदान देनी की ठान ली| मैंने आस-अपडोस के 2-3 बच्चों को अपने घर गणित की टूशन पढ़ने बुला लिया| हर बच्चे के परिवार जन मुझे 300/- रुपये महीना देते थे|

माँ-पिताजी को पैसे से कोई मतलब नहीं था, उनके लिए तो बच्चों को पढ़ाना बस मेरा शौक था इसीलिए उन्होंने मुझे बच्चों को टूशन पढ़ाने से नहीं रोका| शाम के समय बच्चे मेरे घर आते और मैं उन्हें बरामदे में पढ़ाती| मेरा पढ़ाने का ढंग बहुत अलग था क्योंकि मैं हँसी-मज़ाक कर के पढ़ाया करती थी| मेरे टूशन शुरू करने के एक हफ्ते में ही मेरे पास 2 बच्चों की बजाए 3 बच्चे आने लगे|



मुझे आज भी याद है वो दिन जब पहली बार मेरे हाथ में 900/- रुपये आये! अपनी पहली कमाई को अपने हाथ में देख मैं ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी| मैं आज इतनी खुश थी की मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसूँ भर आये थे| पैसे ले कर मैं सीधा अपने पिताजी के पास पहुँची और ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें सारे पैसे देने लगी मगर मेरे पिताजी ने वो पैसे नहीं लिए| उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरे सर पर हाथ रखा और माँ से बोले; "देख रही हो भाग्यवान, हमारी छोटी सी बिटिया ने टूशन पढ़ा कर इतने सारे पैसे इक्कट्ठा किये हैं?!" ये कहते हुए पिताजी ने मेरा माथा चूम लिया|

पीछे से माँ आईं तो मैंने उन्हें सारे पैसे देने चाहे मगर उन्होंने भी पैसे नहीं लिए; "नहीं बेटा, ये पैसे तेरे हैं| इनसे तू अपने लिए कुछ ले लेना|" ये कहते हुए माँ ने भी मेरे माथे को चूमा और फिर मेरा मुँह मीठा करवाया...वो भी पहला रसगुल्ला खिला कर!



मैंने पहले तो रसगुल्ला खाया और फिर अपने माँ-पिताजी से बोली; "माँ...पिताजी...मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ इसलिए मुझे भी अब घर की थोड़ी जिम्मेदारी उठानी चाहिए न? फिर मुझे जो भी कुछ चाहिए होता है मैं आपसे माँग ही लेती हूँ तो फिर मैं ये पैसे रख कर क्या करुँगी? ये आप ही रखिये, जब मुझे कुछ चाहिए होगा तब मैं माँग लूँगी!" मेरा ये जवाब सुन माँ-पिताजी की आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भर आई क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी से इतनी बड़ी बात की उम्मीद नहीं की थी| माँ ने मुझे अपने गले लगा लिया और मुझे खूब लाड-प्यार किया|

मानु के मम्मी-पापा उन दिनों यहीं थे इसलिए जब उन्हें सब पता चला तो उन्होंने मेरी खूब तारीफ की| मेरी पहली कमाई की ख़ुशी मनाने के लिए अंकल जी ने पिताजी को अपने साथ रसोई में खींचा और दोनों ने मिलकर बड़ी स्वादिष्ट 'चुन्गडी मलाई' और भात बनाये| खाना इतना स्वाद बना था की मेरी माँ और आंटी जी तो पिताजी और अंकल जी की कुकिंग की तारीफ करते नहीं थक रहे थे|



जिन्हें नहीं पता, 'चुन्गडी मलाई' एक तरह की सब्जी होती है जो झींगे और नारियल के दूध के साथ बनाई जाती| ये सब्जी इतनी मलाईदार होती है की मुँह में घुल जाती है| ऊपर से इसमें मसाले भी तेज़ नहीं होते की खाने वाले का मुँह जल जाए, मसालों की भूमिका औसतन होती है और सारा स्वाद होता है झींगों का!



अगले महीने से मेरे पास और बच्चे पढ़ने आने लगे तो मेरी कमाई धीरे-धीरे बढ़ने लगी| कुछ महीने बीते थे और पैसे भी काफी इकठ्ठा हो गए थे इसलिए मैंने अपना मोबाइल फ़ोन लेने के लिए पिताजी से इज्जाजत माँगी| अब चूँकि ये मेरी अपनी कमाई के पैसे थे इसलिए पिताजी मना नहीं किया और आदि भैया को मुझे मोबाइल दिलाने का काम सौंप दिया|

मुझे किसी भी कीमत पर चाहिए था multimedia वाला मोबाइल ताकि मैं उससे अपनी फोटो खींच सकूँ और अंजलि से ब्लू फिल्म ले कर देख सकूँ| जब मैंने आदि भैया को बताया की मुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए तो वो मुस्कुराने लगे और बोले; "मैं और पिताजी तो अभी तक बटन वाला मोबाइल चला रहे हैं और तुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए?!" ये कहते हुए भैया ने मेरे सर पर प्यार से मारा और अपने दोस्त की मोटरसाइकिल पर बिठा कर मोबाइल खरीदने चल दिए|

अब मल्टीमीडिया चलाने वाला मोबाइल सस्ता तो होता नहीं था इसलिए पैसे कम पड़ने लगे थे, परन्तु मेरी ख़ुशी के लिए बाकी के पैसे आदि भैया ने अपनी जेब से डाले और हम मेरा नया मोबाइल ले कर घर आ गए| कैमरे वाला फ़ोन देख कर ही पिताजी समझ गए थे की फ़ोन महँगा है पर मुझे बचाने के लिए आदि भैया ने झूठ बोल दिया की उन्होंने फ़ोन जुगाड़ लगा कर खरीदा है| चलो इस बार तो मैं पिताजी से डाँट खाने से बच गई!



अब चूँकि मेरे पास कैमरे वाला मोबाइल था तो मैंने उससे छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी और फोटोग्राफी करना सीख लिया| अपने इस छोटे से 1.5 मेगापिक्सेल वाले फ़ोन से मैं प्रोफेशनल लेवल वाली फोटोग्राफी कर लेती थी! कौन सा पोज़ बनाना है, बैकग्राउंड कैसी होनी चाहिए, कैंडिड फोटो कैसे लेनी होती है आदि सब सीख गई थी|





बहराहल, मेरी ज़िन्दगी बस ब्लू फिल्म देखने, मास्टरबेट करने या कैमरे से फोटो खींचने तक ही सीमित नहीं थी|



अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए मेरी बारहवीं की परीक्षा नज़दीक आ चुकी थी| मैंने सब कुछ छोड़कर अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया| आँखों में तेल डाल-डालकर मैं रात-रात भर जाग कर पढ़ती थी| इसका स्वर्णिम परिणाम मुझे बॉर्ड की परीक्षा के रिजल्ट आने पर मिला| मैं पूरे 85% के साथ पास हुई थी और मेरे नंबर देख कर मेरे पिताजी को मुझ पर बहुत गर्व हो रहा था| वहीं आदि भैया इतने खुश थे की क्या कहूँ, उन्होंने मुझे अपने गले लगा कर खूब प्यार दिया और मेरे मस्तक को चूम कर मेरे हाथों में हज़ार रुपये रख दिए! मैं कुछ समझ पाती उससे पहले ही भैया ने माँ को रसोई से बाहर बुलाया और एप्रन पहन कर खाना बनाने घुस गए|

दरअसल हमारे घर में सभी खाने-पीने के कुछ अधिक ही शौक़ीन हैं| ख़ुशी का कोई भी मौका हो, घर के पुरुष सदस्य रसोई में घुस जाते हैं| अब भैया रसोई में घुसें तो पिताजी कैसे पीछे रहते, वो भी अपना तहमद लपेट घुस गए और दोनों बाप-बेटों ने मेरे मनपसंद की साड़ी चीजें बनाकर परोस दी| मेरे आगे इतना खाना पड़ा था मानो शादी के बाद दामाद घर आया हो!



चलो भाई, खाना पीना हो गया तो अब बारी थी मेरे जीवन में आगे क्या करना है उसका फैसला लेने की| मेरी क्लास में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे दिल्ली में स्थिति DU में पढ़ने जाने के लिए अपना बोरिया-बिस्तर लपेट चुके थे| यहाँ तक की वो बच्चे भी जिनके 60-70% वाले बच्चे भी, क्योंकि उनके पास था कोटा! वहीं मैं जानती थी की पिताजी मुझे दिल्ली जाने देंगे नहीं इसलिए मैं अपना मन मारकर बैठी हुई थी!

आदि भैया से मेरा ये उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जा रहा था पर वो ये भी जानते थे की पिताजी मुझे दिल्ली पढ़ने जाने नहीं देंगे| जब पिताजी ने भैया को इंजीनियरिंग करने के लिए कोटा (राजस्थान) जाने नहीं दिया तो वो मुझ लड़की को कहाँ अकेले दिल्ली जाने देते?!



भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!



जारी रहेगा अगले भाग में!
Rockstar bhai...kya gazab ki update post ki hai...is update ne ek baat to sabit kar di.ki keerti khaali sex ki bhukhi nahi hai..wo samajhdaar bhi hai..apno ko pyar bhi bahot karti hai..magar jab wasna sawar hoti hai..to acchi acchi ladkiyan behak jaati hain..mere hisaab se keerti ke sath bhi wahi huwa hai..ab keerti dehli jaayegi..wahan kya hoga ye lekhak mahoday hi jaan sakte hain..hum to tucch reader hain..hum to anumaan bhi nahi laga sakte...
 
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Abhi32

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"तेरा राज़ मेरे पास सुरक्षित है, मैं किसी को तुम भाई-बहन के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताऊँगी|" मैंने मुस्कुराते हुए अंजलि को आश्वस्त किया| तब जा कर अंजलि की जान में जान आई और वो एकदम से मेरे गले लग गई|


अब आगे:


जब
आप किसी का कोई राज़ जान लेते हो तो अपना राज़ खुलने के डर से वो व्यक्ति आपके आधीन हो जाता है और किसी हद्द तक आपके प्रति ईमानदार हो खुद को आपके प्रति समर्पित कर देता है|



जब मैं अंजलि को उसी के चचेरे भाई के साथ हमबिस्तर होते हुए देख रही थी तब मैंने उसी के फ़ोन के कैमरे से उसी की चुदाई शूट की क्योंकि मैं चाहती थी की भविष्य में मैं इसका फायदा उठाऊँ| लेकिन जब दोनों चचेरे भाई-बहन की कामलीला शुरू हुई तो मेरे जिस्म में जो आग लगी उस आग से निपटने के बाद मुझे एहसास हुआ की मेरा ये सब सोचना कितना गलत है! अंजलि जैसी भी थी, थी तो मेरी दोस्त...वो दोस्त जिसने मुझे सेक्स का सारा ज्ञान दिया|



इस MMS clip का मैं बस एक ही फायदा उठा सकती थी और वो था अंजलि के पहले सेक्स के बारे में जानना क्योंकि किताबों में पढ़ी कहानियाँ मन घड़ंत होती हैं जबकि किसी के साथ बीती कहानी हमेसा सच होती है| यही कारण था की मैंने अंजलि से अकड़ते हुए उसके पहले सेक्स के बारे में पुछा था| ताकि अगलीबार जब मैं मास्टरबेट करूँ तो मैं इस कहानी को याद कर सकूँ! :P



खैर, अंजलि की राज़दार हो कर मैं उसके बहुत नज़दीक पहुँच चुकी थी, इतनी नज़दीक की अंजलि अब ख़ुशी-ख़ुशी मेरी उँगलियों पर नाचती थी|



शाम हो रही थी और माँ-पिताजी के घर आने का समय हो रहा था इसलिए उनके आने से पहले मुझे अंजलि के घर से निकलना था| शुक्र जय की मैं और भैया, माँ-पिताजी के घर लौटने से पहले आ गए वरना खूब सवाल-जवाब होते|





पैसे के तौर पर मेरे घर में हालात थोड़े नाज़ुक हो चले थे जिस कारण अब भैया पर बहुत दबाव पड़ रहा था| पिताजी चाहते थे की भैया की पक्की सरकारी नौकरी लग जाए ताकि परिवार का भविष्य सुरक्षित रहे और इसके लिए वो अनेकों जुगत लगा रहे थे| वहीं आदि भैया चाहते थे की वो प्राइवेट में नौकरी करें क्योंकि वहाँ पैसा अच्छा था जिससे हमारे परिवार का वर्तमान सुधर जाता|

दोनों बाप-बेटों की इस भविष्य और वर्तमान को ले कर घर में बहुत बहस होने लगी थी| पिताजी भैया से सरकारी नौकरी के फॉर्म भरवाने लगे, सरकारी नौकरी वाले सभी पेपर दिलवाने लगे ताकि कहीं तो भैया का सिलेक्शन हो जाए| लेकिन भैया जिसे अनेकों युवा पहले ही सरकारी की नौकरी में लग चुके थे इसलिए हर बार भैया का नंबर चूक ही जाता था|



बार-बार मिली हार से आदि भैया हताश हो चुके थे और उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी थी| आदि भैया ने अपने दोस्तों से बात कर चुप-चाप ओपन से MBA का फॉर्म भर दिया और MBA करने के लिए उन्होंने कर्ज़ा ले लिया जिसे वो थोड़ा-थोड़ा कर अपनी सैलरी से चूका रहे थे| शाम को घर आते ही भैया पढ़ाई में लग जाते थे, पिताजी जब भैया को पढ़ते देखते तो उन्हें लगता की भैया सरकारी नौकरी के किसी पेपर की तैयारी कर रहे हैं|



इधर मुझसे अपने भैया और पिताजी की ये अनबन नहीं देखि जा रही थी इसलिए मैंने भी अपना योगदान देनी की ठान ली| मैंने आस-अपडोस के 2-3 बच्चों को अपने घर गणित की टूशन पढ़ने बुला लिया| हर बच्चे के परिवार जन मुझे 300/- रुपये महीना देते थे|

माँ-पिताजी को पैसे से कोई मतलब नहीं था, उनके लिए तो बच्चों को पढ़ाना बस मेरा शौक था इसीलिए उन्होंने मुझे बच्चों को टूशन पढ़ाने से नहीं रोका| शाम के समय बच्चे मेरे घर आते और मैं उन्हें बरामदे में पढ़ाती| मेरा पढ़ाने का ढंग बहुत अलग था क्योंकि मैं हँसी-मज़ाक कर के पढ़ाया करती थी| मेरे टूशन शुरू करने के एक हफ्ते में ही मेरे पास 2 बच्चों की बजाए 3 बच्चे आने लगे|



मुझे आज भी याद है वो दिन जब पहली बार मेरे हाथ में 900/- रुपये आये! अपनी पहली कमाई को अपने हाथ में देख मैं ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी| मैं आज इतनी खुश थी की मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसूँ भर आये थे| पैसे ले कर मैं सीधा अपने पिताजी के पास पहुँची और ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें सारे पैसे देने लगी मगर मेरे पिताजी ने वो पैसे नहीं लिए| उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरे सर पर हाथ रखा और माँ से बोले; "देख रही हो भाग्यवान, हमारी छोटी सी बिटिया ने टूशन पढ़ा कर इतने सारे पैसे इक्कट्ठा किये हैं?!" ये कहते हुए पिताजी ने मेरा माथा चूम लिया|

पीछे से माँ आईं तो मैंने उन्हें सारे पैसे देने चाहे मगर उन्होंने भी पैसे नहीं लिए; "नहीं बेटा, ये पैसे तेरे हैं| इनसे तू अपने लिए कुछ ले लेना|" ये कहते हुए माँ ने भी मेरे माथे को चूमा और फिर मेरा मुँह मीठा करवाया...वो भी पहला रसगुल्ला खिला कर!



मैंने पहले तो रसगुल्ला खाया और फिर अपने माँ-पिताजी से बोली; "माँ...पिताजी...मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ इसलिए मुझे भी अब घर की थोड़ी जिम्मेदारी उठानी चाहिए न? फिर मुझे जो भी कुछ चाहिए होता है मैं आपसे माँग ही लेती हूँ तो फिर मैं ये पैसे रख कर क्या करुँगी? ये आप ही रखिये, जब मुझे कुछ चाहिए होगा तब मैं माँग लूँगी!" मेरा ये जवाब सुन माँ-पिताजी की आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भर आई क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी से इतनी बड़ी बात की उम्मीद नहीं की थी| माँ ने मुझे अपने गले लगा लिया और मुझे खूब लाड-प्यार किया|

मानु के मम्मी-पापा उन दिनों यहीं थे इसलिए जब उन्हें सब पता चला तो उन्होंने मेरी खूब तारीफ की| मेरी पहली कमाई की ख़ुशी मनाने के लिए अंकल जी ने पिताजी को अपने साथ रसोई में खींचा और दोनों ने मिलकर बड़ी स्वादिष्ट 'चुन्गडी मलाई' और भात बनाये| खाना इतना स्वाद बना था की मेरी माँ और आंटी जी तो पिताजी और अंकल जी की कुकिंग की तारीफ करते नहीं थक रहे थे|



जिन्हें नहीं पता, 'चुन्गडी मलाई' एक तरह की सब्जी होती है जो झींगे और नारियल के दूध के साथ बनाई जाती| ये सब्जी इतनी मलाईदार होती है की मुँह में घुल जाती है| ऊपर से इसमें मसाले भी तेज़ नहीं होते की खाने वाले का मुँह जल जाए, मसालों की भूमिका औसतन होती है और सारा स्वाद होता है झींगों का!



अगले महीने से मेरे पास और बच्चे पढ़ने आने लगे तो मेरी कमाई धीरे-धीरे बढ़ने लगी| कुछ महीने बीते थे और पैसे भी काफी इकठ्ठा हो गए थे इसलिए मैंने अपना मोबाइल फ़ोन लेने के लिए पिताजी से इज्जाजत माँगी| अब चूँकि ये मेरी अपनी कमाई के पैसे थे इसलिए पिताजी मना नहीं किया और आदि भैया को मुझे मोबाइल दिलाने का काम सौंप दिया|

मुझे किसी भी कीमत पर चाहिए था multimedia वाला मोबाइल ताकि मैं उससे अपनी फोटो खींच सकूँ और अंजलि से ब्लू फिल्म ले कर देख सकूँ| जब मैंने आदि भैया को बताया की मुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए तो वो मुस्कुराने लगे और बोले; "मैं और पिताजी तो अभी तक बटन वाला मोबाइल चला रहे हैं और तुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए?!" ये कहते हुए भैया ने मेरे सर पर प्यार से मारा और अपने दोस्त की मोटरसाइकिल पर बिठा कर मोबाइल खरीदने चल दिए|

अब मल्टीमीडिया चलाने वाला मोबाइल सस्ता तो होता नहीं था इसलिए पैसे कम पड़ने लगे थे, परन्तु मेरी ख़ुशी के लिए बाकी के पैसे आदि भैया ने अपनी जेब से डाले और हम मेरा नया मोबाइल ले कर घर आ गए| कैमरे वाला फ़ोन देख कर ही पिताजी समझ गए थे की फ़ोन महँगा है पर मुझे बचाने के लिए आदि भैया ने झूठ बोल दिया की उन्होंने फ़ोन जुगाड़ लगा कर खरीदा है| चलो इस बार तो मैं पिताजी से डाँट खाने से बच गई!



अब चूँकि मेरे पास कैमरे वाला मोबाइल था तो मैंने उससे छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी और फोटोग्राफी करना सीख लिया| अपने इस छोटे से 1.5 मेगापिक्सेल वाले फ़ोन से मैं प्रोफेशनल लेवल वाली फोटोग्राफी कर लेती थी! कौन सा पोज़ बनाना है, बैकग्राउंड कैसी होनी चाहिए, कैंडिड फोटो कैसे लेनी होती है आदि सब सीख गई थी|





बहराहल, मेरी ज़िन्दगी बस ब्लू फिल्म देखने, मास्टरबेट करने या कैमरे से फोटो खींचने तक ही सीमित नहीं थी|



अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए मेरी बारहवीं की परीक्षा नज़दीक आ चुकी थी| मैंने सब कुछ छोड़कर अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया| आँखों में तेल डाल-डालकर मैं रात-रात भर जाग कर पढ़ती थी| इसका स्वर्णिम परिणाम मुझे बॉर्ड की परीक्षा के रिजल्ट आने पर मिला| मैं पूरे 85% के साथ पास हुई थी और मेरे नंबर देख कर मेरे पिताजी को मुझ पर बहुत गर्व हो रहा था| वहीं आदि भैया इतने खुश थे की क्या कहूँ, उन्होंने मुझे अपने गले लगा कर खूब प्यार दिया और मेरे मस्तक को चूम कर मेरे हाथों में हज़ार रुपये रख दिए! मैं कुछ समझ पाती उससे पहले ही भैया ने माँ को रसोई से बाहर बुलाया और एप्रन पहन कर खाना बनाने घुस गए|

दरअसल हमारे घर में सभी खाने-पीने के कुछ अधिक ही शौक़ीन हैं| ख़ुशी का कोई भी मौका हो, घर के पुरुष सदस्य रसोई में घुस जाते हैं| अब भैया रसोई में घुसें तो पिताजी कैसे पीछे रहते, वो भी अपना तहमद लपेट घुस गए और दोनों बाप-बेटों ने मेरे मनपसंद की साड़ी चीजें बनाकर परोस दी| मेरे आगे इतना खाना पड़ा था मानो शादी के बाद दामाद घर आया हो!



चलो भाई, खाना पीना हो गया तो अब बारी थी मेरे जीवन में आगे क्या करना है उसका फैसला लेने की| मेरी क्लास में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे दिल्ली में स्थिति DU में पढ़ने जाने के लिए अपना बोरिया-बिस्तर लपेट चुके थे| यहाँ तक की वो बच्चे भी जिनके 60-70% वाले बच्चे भी, क्योंकि उनके पास था कोटा! वहीं मैं जानती थी की पिताजी मुझे दिल्ली जाने देंगे नहीं इसलिए मैं अपना मन मारकर बैठी हुई थी!

आदि भैया से मेरा ये उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जा रहा था पर वो ये भी जानते थे की पिताजी मुझे दिल्ली पढ़ने जाने नहीं देंगे| जब पिताजी ने भैया को इंजीनियरिंग करने के लिए कोटा (राजस्थान) जाने नहीं दिया तो वो मुझ लड़की को कहाँ अकेले दिल्ली जाने देते?!



भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!



जारी रहेगा अगले भाग में!
Har bahdte hue parts ke sath khani aur bhi majedar hoti ja rahi hai.
Pheli kamai ka maja hi kuch aur hota hai achha laga ki keerti itna kuch sochti hai .
Yeh bat ekdum sach hai government job ka pressure alag hi rehta hai .overall aj ka update bahu bahut bahut achha tha .
 

Riky007

उड़ते पंछी का ठिकाना, मेरा न कोई जहां...
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बढ़िया अपडेट मानू भाई, कीर्ति तो सर्वगुण संपन्न स्त्री लग रही है और एडजस्ट करने वाली भी जो हर सिचुएशन में फौरन ही ढल जा रही है।

ऐसे बच्चों का भविष्य अगर जो सही तरीके से संवारा जाय तो ये लोग कमाल कर जाते हैं जिंदगी में।

और कहीं कुछ चूक हुई तो कितनों की जिंदगी बरबाद भी कर देते हैं।
 

kamdev99008

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ज़िंदगी जिम्मेदारियों के साथ आसान नहीं......... लेकिन मध्यम वर्ग बड़े ख्वाब नहीं देखता छोटी से छोटी खुशियाँ भी दिल खोलकर मनाता है..............
अब कीर्ति भी बचपने से बाहर जिम्मेदार बन रही है............. लेकिन कॉलेज लाइफ उस पर क्या असर डालती है?

देखते हैं आगे
 

Sanju@

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भाग - 10


अब तक आपने पढ़ा:


"तेरा राज़ मेरे पास सुरक्षित है, मैं किसी को तुम भाई-बहन के रिश्ते के बारे में कुछ नहीं बताऊँगी|" मैंने मुस्कुराते हुए अंजलि को आश्वस्त किया| तब जा कर अंजलि की जान में जान आई और वो एकदम से मेरे गले लग गई|


अब आगे:


जब
आप किसी का कोई राज़ जान लेते हो तो अपना राज़ खुलने के डर से वो व्यक्ति आपके आधीन हो जाता है और किसी हद्द तक आपके प्रति ईमानदार हो खुद को आपके प्रति समर्पित कर देता है|



जब मैं अंजलि को उसी के चचेरे भाई के साथ हमबिस्तर होते हुए देख रही थी तब मैंने उसी के फ़ोन के कैमरे से उसी की चुदाई शूट की क्योंकि मैं चाहती थी की भविष्य में मैं इसका फायदा उठाऊँ| लेकिन जब दोनों चचेरे भाई-बहन की कामलीला शुरू हुई तो मेरे जिस्म में जो आग लगी उस आग से निपटने के बाद मुझे एहसास हुआ की मेरा ये सब सोचना कितना गलत है! अंजलि जैसी भी थी, थी तो मेरी दोस्त...वो दोस्त जिसने मुझे सेक्स का सारा ज्ञान दिया|



इस MMS clip का मैं बस एक ही फायदा उठा सकती थी और वो था अंजलि के पहले सेक्स के बारे में जानना क्योंकि किताबों में पढ़ी कहानियाँ मन घड़ंत होती हैं जबकि किसी के साथ बीती कहानी हमेसा सच होती है| यही कारण था की मैंने अंजलि से अकड़ते हुए उसके पहले सेक्स के बारे में पुछा था| ताकि अगलीबार जब मैं मास्टरबेट करूँ तो मैं इस कहानी को याद कर सकूँ! :P



खैर, अंजलि की राज़दार हो कर मैं उसके बहुत नज़दीक पहुँच चुकी थी, इतनी नज़दीक की अंजलि अब ख़ुशी-ख़ुशी मेरी उँगलियों पर नाचती थी|



शाम हो रही थी और माँ-पिताजी के घर आने का समय हो रहा था इसलिए उनके आने से पहले मुझे अंजलि के घर से निकलना था| शुक्र जय की मैं और भैया, माँ-पिताजी के घर लौटने से पहले आ गए वरना खूब सवाल-जवाब होते|





पैसे के तौर पर मेरे घर में हालात थोड़े नाज़ुक हो चले थे जिस कारण अब भैया पर बहुत दबाव पड़ रहा था| पिताजी चाहते थे की भैया की पक्की सरकारी नौकरी लग जाए ताकि परिवार का भविष्य सुरक्षित रहे और इसके लिए वो अनेकों जुगत लगा रहे थे| वहीं आदि भैया चाहते थे की वो प्राइवेट में नौकरी करें क्योंकि वहाँ पैसा अच्छा था जिससे हमारे परिवार का वर्तमान सुधर जाता|

दोनों बाप-बेटों की इस भविष्य और वर्तमान को ले कर घर में बहुत बहस होने लगी थी| पिताजी भैया से सरकारी नौकरी के फॉर्म भरवाने लगे, सरकारी नौकरी वाले सभी पेपर दिलवाने लगे ताकि कहीं तो भैया का सिलेक्शन हो जाए| लेकिन भैया जिसे अनेकों युवा पहले ही सरकारी की नौकरी में लग चुके थे इसलिए हर बार भैया का नंबर चूक ही जाता था|



बार-बार मिली हार से आदि भैया हताश हो चुके थे और उन्होंने कुछ अलग करने की ठानी थी| आदि भैया ने अपने दोस्तों से बात कर चुप-चाप ओपन से MBA का फॉर्म भर दिया और MBA करने के लिए उन्होंने कर्ज़ा ले लिया जिसे वो थोड़ा-थोड़ा कर अपनी सैलरी से चूका रहे थे| शाम को घर आते ही भैया पढ़ाई में लग जाते थे, पिताजी जब भैया को पढ़ते देखते तो उन्हें लगता की भैया सरकारी नौकरी के किसी पेपर की तैयारी कर रहे हैं|



इधर मुझसे अपने भैया और पिताजी की ये अनबन नहीं देखि जा रही थी इसलिए मैंने भी अपना योगदान देनी की ठान ली| मैंने आस-अपडोस के 2-3 बच्चों को अपने घर गणित की टूशन पढ़ने बुला लिया| हर बच्चे के परिवार जन मुझे 300/- रुपये महीना देते थे|

माँ-पिताजी को पैसे से कोई मतलब नहीं था, उनके लिए तो बच्चों को पढ़ाना बस मेरा शौक था इसीलिए उन्होंने मुझे बच्चों को टूशन पढ़ाने से नहीं रोका| शाम के समय बच्चे मेरे घर आते और मैं उन्हें बरामदे में पढ़ाती| मेरा पढ़ाने का ढंग बहुत अलग था क्योंकि मैं हँसी-मज़ाक कर के पढ़ाया करती थी| मेरे टूशन शुरू करने के एक हफ्ते में ही मेरे पास 2 बच्चों की बजाए 3 बच्चे आने लगे|



मुझे आज भी याद है वो दिन जब पहली बार मेरे हाथ में 900/- रुपये आये! अपनी पहली कमाई को अपने हाथ में देख मैं ख़ुशी से फूली नहीं समा रही थी| मैं आज इतनी खुश थी की मेरी आँखों में ख़ुशी के आँसूँ भर आये थे| पैसे ले कर मैं सीधा अपने पिताजी के पास पहुँची और ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें सारे पैसे देने लगी मगर मेरे पिताजी ने वो पैसे नहीं लिए| उन्होंने मुस्कुराते हुए मेरे सर पर हाथ रखा और माँ से बोले; "देख रही हो भाग्यवान, हमारी छोटी सी बिटिया ने टूशन पढ़ा कर इतने सारे पैसे इक्कट्ठा किये हैं?!" ये कहते हुए पिताजी ने मेरा माथा चूम लिया|

पीछे से माँ आईं तो मैंने उन्हें सारे पैसे देने चाहे मगर उन्होंने भी पैसे नहीं लिए; "नहीं बेटा, ये पैसे तेरे हैं| इनसे तू अपने लिए कुछ ले लेना|" ये कहते हुए माँ ने भी मेरे माथे को चूमा और फिर मेरा मुँह मीठा करवाया...वो भी पहला रसगुल्ला खिला कर!



मैंने पहले तो रसगुल्ला खाया और फिर अपने माँ-पिताजी से बोली; "माँ...पिताजी...मैं अब बड़ी हो चुकी हूँ इसलिए मुझे भी अब घर की थोड़ी जिम्मेदारी उठानी चाहिए न? फिर मुझे जो भी कुछ चाहिए होता है मैं आपसे माँग ही लेती हूँ तो फिर मैं ये पैसे रख कर क्या करुँगी? ये आप ही रखिये, जब मुझे कुछ चाहिए होगा तब मैं माँग लूँगी!" मेरा ये जवाब सुन माँ-पिताजी की आँखें ख़ुशी के आँसुओं से भर आई क्योंकि उन्होंने अपनी बेटी से इतनी बड़ी बात की उम्मीद नहीं की थी| माँ ने मुझे अपने गले लगा लिया और मुझे खूब लाड-प्यार किया|

मानु के मम्मी-पापा उन दिनों यहीं थे इसलिए जब उन्हें सब पता चला तो उन्होंने मेरी खूब तारीफ की| मेरी पहली कमाई की ख़ुशी मनाने के लिए अंकल जी ने पिताजी को अपने साथ रसोई में खींचा और दोनों ने मिलकर बड़ी स्वादिष्ट 'चुन्गडी मलाई' और भात बनाये| खाना इतना स्वाद बना था की मेरी माँ और आंटी जी तो पिताजी और अंकल जी की कुकिंग की तारीफ करते नहीं थक रहे थे|



जिन्हें नहीं पता, 'चुन्गडी मलाई' एक तरह की सब्जी होती है जो झींगे और नारियल के दूध के साथ बनाई जाती| ये सब्जी इतनी मलाईदार होती है की मुँह में घुल जाती है| ऊपर से इसमें मसाले भी तेज़ नहीं होते की खाने वाले का मुँह जल जाए, मसालों की भूमिका औसतन होती है और सारा स्वाद होता है झींगों का!



अगले महीने से मेरे पास और बच्चे पढ़ने आने लगे तो मेरी कमाई धीरे-धीरे बढ़ने लगी| कुछ महीने बीते थे और पैसे भी काफी इकठ्ठा हो गए थे इसलिए मैंने अपना मोबाइल फ़ोन लेने के लिए पिताजी से इज्जाजत माँगी| अब चूँकि ये मेरी अपनी कमाई के पैसे थे इसलिए पिताजी मना नहीं किया और आदि भैया को मुझे मोबाइल दिलाने का काम सौंप दिया|

मुझे किसी भी कीमत पर चाहिए था multimedia वाला मोबाइल ताकि मैं उससे अपनी फोटो खींच सकूँ और अंजलि से ब्लू फिल्म ले कर देख सकूँ| जब मैंने आदि भैया को बताया की मुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए तो वो मुस्कुराने लगे और बोले; "मैं और पिताजी तो अभी तक बटन वाला मोबाइल चला रहे हैं और तुझे मल्टीमीडिया वाला फ़ोन चाहिए?!" ये कहते हुए भैया ने मेरे सर पर प्यार से मारा और अपने दोस्त की मोटरसाइकिल पर बिठा कर मोबाइल खरीदने चल दिए|

अब मल्टीमीडिया चलाने वाला मोबाइल सस्ता तो होता नहीं था इसलिए पैसे कम पड़ने लगे थे, परन्तु मेरी ख़ुशी के लिए बाकी के पैसे आदि भैया ने अपनी जेब से डाले और हम मेरा नया मोबाइल ले कर घर आ गए| कैमरे वाला फ़ोन देख कर ही पिताजी समझ गए थे की फ़ोन महँगा है पर मुझे बचाने के लिए आदि भैया ने झूठ बोल दिया की उन्होंने फ़ोन जुगाड़ लगा कर खरीदा है| चलो इस बार तो मैं पिताजी से डाँट खाने से बच गई!



अब चूँकि मेरे पास कैमरे वाला मोबाइल था तो मैंने उससे छेड़छाड़ करनी शुरू कर दी और फोटोग्राफी करना सीख लिया| अपने इस छोटे से 1.5 मेगापिक्सेल वाले फ़ोन से मैं प्रोफेशनल लेवल वाली फोटोग्राफी कर लेती थी! कौन सा पोज़ बनाना है, बैकग्राउंड कैसी होनी चाहिए, कैंडिड फोटो कैसे लेनी होती है आदि सब सीख गई थी|





बहराहल, मेरी ज़िन्दगी बस ब्लू फिल्म देखने, मास्टरबेट करने या कैमरे से फोटो खींचने तक ही सीमित नहीं थी|



अपने जीवन में आगे बढ़ते हुए मेरी बारहवीं की परीक्षा नज़दीक आ चुकी थी| मैंने सब कुछ छोड़कर अपना सारा ध्यान पढ़ाई में लगा दिया| आँखों में तेल डाल-डालकर मैं रात-रात भर जाग कर पढ़ती थी| इसका स्वर्णिम परिणाम मुझे बॉर्ड की परीक्षा के रिजल्ट आने पर मिला| मैं पूरे 85% के साथ पास हुई थी और मेरे नंबर देख कर मेरे पिताजी को मुझ पर बहुत गर्व हो रहा था| वहीं आदि भैया इतने खुश थे की क्या कहूँ, उन्होंने मुझे अपने गले लगा कर खूब प्यार दिया और मेरे मस्तक को चूम कर मेरे हाथों में हज़ार रुपये रख दिए! मैं कुछ समझ पाती उससे पहले ही भैया ने माँ को रसोई से बाहर बुलाया और एप्रन पहन कर खाना बनाने घुस गए|

दरअसल हमारे घर में सभी खाने-पीने के कुछ अधिक ही शौक़ीन हैं| ख़ुशी का कोई भी मौका हो, घर के पुरुष सदस्य रसोई में घुस जाते हैं| अब भैया रसोई में घुसें तो पिताजी कैसे पीछे रहते, वो भी अपना तहमद लपेट घुस गए और दोनों बाप-बेटों ने मेरे मनपसंद की साड़ी चीजें बनाकर परोस दी| मेरे आगे इतना खाना पड़ा था मानो शादी के बाद दामाद घर आया हो!



चलो भाई, खाना पीना हो गया तो अब बारी थी मेरे जीवन में आगे क्या करना है उसका फैसला लेने की| मेरी क्लास में पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे दिल्ली में स्थिति DU में पढ़ने जाने के लिए अपना बोरिया-बिस्तर लपेट चुके थे| यहाँ तक की वो बच्चे भी जिनके 60-70% वाले बच्चे भी, क्योंकि उनके पास था कोटा! वहीं मैं जानती थी की पिताजी मुझे दिल्ली जाने देंगे नहीं इसलिए मैं अपना मन मारकर बैठी हुई थी!

आदि भैया से मेरा ये उतरा हुआ चेहरा नहीं देखा जा रहा था पर वो ये भी जानते थे की पिताजी मुझे दिल्ली पढ़ने जाने नहीं देंगे| जब पिताजी ने भैया को इंजीनियरिंग करने के लिए कोटा (राजस्थान) जाने नहीं दिया तो वो मुझ लड़की को कहाँ अकेले दिल्ली जाने देते?!



भैया मेरे लिए ओपन का फॉर्म ले आये और मेरे साथ बैठ कर मेरा फॉर्म भरवाया| फॉर्म भर कर हम दोनों पिताजी के पास आये तो पिताजी ने फॉर्म पढ़ा और भैया को चेक देते हुए बोले की वो कल के कल ही मेरा ओपन कॉलेज के नाम से ड्राफ्ट बनवा कर मेरा फॉर्म जमा करवा दें|

मेरा कॉलेज में एडमिशन हो रहा है इस बात से मैं बहुत खुश थी मगर अभी तो घर में कोहराम मचना बाकी था!



जारी रहेगा अगले भाग में!
Awesome update
कीर्ति एक समझदार और होनहार लड़की है इस उम्र में उसने अपनी पढ़ाई के साथ बच्चों को ट्यूशन पढ़ा कर अपने घर की जिम्मेदारी उठाई है इस उम्र में बच्चे केवल पढ़ाई और अपने काम से मतलब रखते हैं उन्हें अपने परिवार की किसी भी जिम्मेदारी का ख्याल नही रहता है कीर्ति जैसे बच्चे जिंदगी में कभी असफल नहीं होते है
कीर्ति के परिवार में हर खुशी में व्यंजन बनाकर खाना ये बहुत ही अच्छा लगा
आदित्य पर मां बाप को दवाब नही डालना चाहिए उसे अपनी मर्जी के हिसाब से अपना फील्ड चुनने में साथ देना चाहिए वह जो भी कर रहा है वह अपने परिवार के भविष्य के लिए कर रहा है
 
Last edited:

manu@84

Well-Known Member
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दोस्त मै इस बार अपना review सबसे पहले देना चाहता था, लेकिन पिछले दो update से आपने मेरी कहानी पर कोई शब्द नहीं लिख कर मुझे निराश किया..... भाई हम तो आज के जमाने के बेवफा माशूक है, लेन देन बराबर से होता रहे तो मोहब्बत में खुल कर मजा देते है...... आपकी मेरी कहानी से बेरुखी के लिए अर्ज किया है.....


""इस बरस सावन में हमारे साथ एक शरारत हुयी.... हमारे घर के आंगन को छोड़, सारे शहर में बरसात हुयी। ""


फिल्म का नाम खुद याद करो😜😜


पिछले कुछ दिनों से ये साइट भी मेरी माशूका की तरह ही बेवफा निकल गयी.... जब उसका मन करता है तब झलक दिखा देती है...... बार बार पेज लोडिंग problm हो रहा है। लिखता हूँ मिट जाता है। Xforam के स्टाफ मेंबर से विनती है ये परेशानी जल्द से जल्द खतम करे। 🙏


खैर कीर्ति अंजलि की हमराज बनकर एक अच्छी दोस्त होने का सबूत दे रही है, और अंजलि के सेक्स वीडियो को देख कर अपना हाथ जगग्नाथ कर आत्मसुख लेती रहती😂😜 लेकिन इस राज को ज्यादा दिन सीने में छिपा कर रखना आसान नही होगा।"" इस युग के समस्त आश्लील फोरम के सीनियर सिटीजन पृथ्वी के समस्त ग्रंथो/ पुराणो के ज्ञाता (आप समझ तो गये होंगे 😜) ऐसा कहते है कि कोई भी लड़की/स्त्री कोई भी राज अपने सीने में हमेशा के लिए छिपा कर नही रख सकती है। वैसे भी लंबी लंबी फेंकना भी एक कला है, आप और हम जैसे कम प्रतिभाशाली लोग इसमें शून्य होते है 😜


मगर यहाँ तो अंजलि का राज कीर्ति के मोबाइल फोन में है, और आज के आधुनिक युग में अंजलि का भाई के साथ सेक्स वीडियो वाइरल होना तय है। ये भी पक्का है कि कीर्ति आगे चल कर अंजलि का भरोसा तोड़ देगी कि अंजलि को भरोसा शब्द ही भोसड़ा लगने लगेगा 😂😜😆


कीर्ति के भाई ने लोन लेकर mba कर privaate नौकरी करने की राह पर है, जबकि उसके पिताजी सरकारी नौकर बनाना चाहते है, उनके अनुभव के हिसाब से वो सही कह रहे है।


"जबकि मेरा ऐसा अनुभव है कि नौकरी से अच्छा बिजनिस् होता है। क्योकि ऐसे मोड़ पर ले आती है नौकरी...... कि अपने ही घर जाने के लिए दूसरो की इजाजत लेनी पड़ती है।"


कीर्ति जिसने खुद काम शास्त्र पढ़कर हस्थ मैथुन की महारथ हासिल की है, और काम की " रति देवी " है, उसकी पढाई हुयी छात्रा रम्भा, उर्वशी, मेनका बनना भी तय है।😂😜 कीर्ति ने बच्चो को टूशन से जो 300 रुपए कमा कर घर में ही जो खाने पीने की छोटी सी पार्टी रखी वो कहानी के हिसाब से ठीक है, यहाँ पर भी मेरा अनुभव ये है कि गरीबों को यह केहकर भी bewkoof बनाया जाता है कि बाहर का जंक फूड या होटेलो और रेस्ट्रो में खाने में घर जैसा स्वाद का, मजा नही आता है, बाहर का खाने वाले अक्सर लोग ज्यादा बीमार होते है 😜😂 अबे बुद्ध जीवियो घर के खाने में अगर स्वाद होता तो ये ढाबे और रेस्टो की बाढ़ क्या झक मारने के लिए आ रही है। 🤔


अंत में आपने कीर्ति की कहानी में पढाई, लिखाई, शिक्षा पर जो लिखा है वो विचारणीय है.... ?? ?

आजकल युवा पढ़ाई के लिए दूसरे शहरों में जाते हैं. कई बार हालात और जवानी का जोश उनको किसी दूसरी राह पर धकेल देती हैं. जिस तरह से शिक्षा के प्रति लोगों की दिलचस्पी बढ़ी है उसे देखते हुए देश में एजुकेशन का रेश्यो भी काफी हद तक बढ़ गया है. आज के जमाने में हर इन्सान और हर माता पिता अपने बच्चों को अच्छी से अच्छी शिक्षा देने की सोचता है.

इसके लिए सब कोशिश में लगे हुए हैं. मैं इस प्रयास में कोई कमी निकाल कर लोगों के मन में कोई गलत धारणा पैदा करना नहीं चाहता हूं किंतु मुझे लगता है कि हर सिक्के के दो पहलू हैं.

इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि शिक्षा के उच्च स्तर से लोगों का जीवन स्तर बेहतर होता है लेकिन इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता कि किसी चीज का कोई फायदा होता है तो उसका नुकसान भी होता है. आजकल के जमाने में ये जो लव आजकल चल रहा है इसके बारे में कुछ भी निश्चित नहीं है. इसलिए युवाओं को काफी सोच समझ कर आगे कदम बढ़ाना चाहिए.
इसी को सोच कर मैंने ये आत्म अनुभव लिखा है ताकि दोनों पहलुओं को आपके सामने रख सकूं.

आजकल बहुत से स्लोगन सोशल मीडिया पर आ रहे हैं, "खुद की बेटी पढ़ाओ ससुर की बेटी नही।" "बेटी पढ़ाओ.. बीबी नही" भला खुद की बेटी भी किसी की बहू , बीबी बनेगी......???? इसलिए जिसको भी पढ़ाओ लेकिन उसके साथ साथ खुद भी पढ़ो। 😜🙏

कोरोना काल के दोरान मेरे पड़ोस में बाहर रहकर पढाई करने वाली एक लड़की वापस आई और उसके घर में दो महीने के लोक डाउन में उस लड़की के अर्धनग्न कपड़ो में रहन सहन को देखकर उनके माता पिता भी शर्मा गये..... मुझ जैसे ठरकी पड़ोसी को तो उनका सच तब पता चला जब उनके घर की बात छत पर आ गयी और वो लड़की छत पर अपने मोबाइल से अपने आशिक से पूर्ण नग्न अवस्ता में वीडियो काल में बात करते हुए पकड़ी गयी। मजे की बात तो ये थी हंगामा ज्यादा होने पर मुझे पता चला कि वो लड़की तीन महीने पेट से थी। उसकी माँ चिल्ला रही थी कि बिटिया मैंने तुझे तीन साल की डिग्री लेने भेजा था और तू तीन महीने का डिप्लोमा लेकर आई हैं😂😂

आखिर में एक सवाल......
जब कोई 12 में फैल हो जाता है तो कुछ लोग जानबूजकर बदनाम करते है........ वो चूतिये लोग 12 फैल होने की जगह 11 पास भी तो बोल सकते है 😜😂 पूछता है भारत.....????

Short and sweet update 😍
इसी तरह तरह लिखते✍️✍️ रहो।

धन्यवाद।
 

Ishaan

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Bhai boht Ashi story hai pishli story se ek dum different
Manu gol gol baatein karke khud chala gaya bechari kirti ko confuse kar gaya or toh or wahan Jake kirti ko shayad bhul bi Gaya
Jabki kirti ab bi usko yaad karti hai
Chalo kitri ka college mein admission ho gaya. Ab dekhte hai aage kya hota hai kya manu or kirti dobara milege ke nhi
Waiting for next update
 

Rockstar_Rocky

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Rockstar_Rocky Bhai,

Dono hi updates ek se badhkar ek he................jaha ek taraf dono bhai bahan ke beech sex ki shuruaat ko dikhaya gaya he..............aur dusri update me ke middle class family ke financial sturggle kp dikhaya gaya........aur sath hi sath government job karne ka pressure.........

Keep posting Bhai

तारीफ के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद भाई! :thank_you: :dost: :hug: :love3:

आपके कमेंट को miss कर रहा था|

कोशिश है की नई अपडेट थोड़ी देर में दूँ...नहीं तो कल तो पक्का आ ही जाएगी|
 
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