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Fantasy कालदूत(पूर्ण)

Adirshi

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भाग १३


अगली सुबह रमण जल्दी पुलिस स्टेशन के लिए निकल गया वो विक्रांत से मिल कर जल्द से जल्द उसके मुह से कालसेना के ठिकाने का पता लगाना चाहता था, साथ ही उसके दिमाग मैं संतोष की बताई बाते भी थी, कल संतोष ने उन्हें बताया था के उसके और रोहित के हाथो से एक आदमी का खून हुआ था, रमण ने संतोष से इस घटना की पूरी जानकारी ली और एक सर्च टीम भी उस लाश की तलाश मैं लगायी थी और पुलिस को उस 7 फूट के इंसान की लाश भी मिल गयी थी

विक्रांत को इस वक़्त एक अँधेरे लॉकअप मैं बंद किया हुआ था, उस कमरे मैं केवल एक बल्ब की मधिम रोशनी थी और वो मद्धिम रौशनी उस पुरे कमरे के लिए काफी नहीं थी, रमण और विक्रांत एक दुसरे के सामने लकड़ी की खुर्ची पर बैठे हुए थे, विक्रांत के चेहरे पर पिछली लादे के कारन कई चोटों के निशान थे और उसके हाथो मैं हथकड़ी लगी हुयी थी, उस लॉकअप मैं मौत जैसा सन्नाटा था जिसे रमण की आवाज ने भंग किया

रमण- मैंने हर एक पुलिस वाले तुम्हरू सेल से दूर रहने को कहा है ताकि मैं तुमसे अकेले मैं कुछ पूछताछ कर सकू

विक्रांत- क्या जानना चाहते हो इंस्पेक्टर जो तुम्हे बताना था मैं बता चूका हु इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बताऊंगा, काफी हिम्मत मैं तुममे तुम भी मेरी तरह कालदूत की भक्ति करो ताकतवर भक्तो की वे कदर करते है

रमण-अपनी बकवास बंद करो और मुझे अपने मुखिया के अड्डे का पता बता दो

विक्रांत(कुटिल मुस्कराहट के साथ)- तुम उसे कभी ढूंढ नहीं पाओगे, एक आखरी कुर्बानी और कालदूत को स्वतंत्र करा देंगे हम लोग

रमण-तुम अंधविश्वासी लोगो से तंग आ गया हु मैं, तुम लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त हो

विक्रांत-यानि की तुम्हे लगता है कालदूत सिर्फ एक मिथ्या रचना है? काश मेरे हाथ इस वक़्त खुले होते तो मैं तुम्हे बताता, telekinesis करके तुम्हारी खोपड़ी खोल देता

रमण-मुझे यकीन है की ये जो telekinesis तुम लोग करते हो इसके पीछे भी अवश्य कोई वैज्ञानिक कारण होगा,

विक्रांत-गलत इंस्पेक्टर, हमारे देवता ने हमें ये शक्तिया दी है

रमण-यानि कालदूत ने? वो इतना ही शक्तिशाली है तो अपनी कैद से खुद आजाद क्यों नहीं हो जाता? उसे तुम लोगो की जरुरत क्यों है?

विक्रांत-चाहे कोई भी आराध्य देव हो, उसे अपने भक्तो की शक्ति की जरुरत होती है जैसे तुम्हारे इश्वर को तुम्हारी भक्ति की अवशकता है वैसे ही हमारे इश्वर को हमारी भक्ति की अवशकता है, कालदूत तुम्हारे देवताओ के शाराप के कारन युगों युगांतर से समुद्रतल की गहराइयों मैं कैद है, उनको आत्माओ की शक्त चाहिए जिससे वो अपने बन्धनों से आजाद हो सके, बस एक इंसानी रूह और हमारा देवता समुद्रतल से धरातल पर आ जायेगा, हमारी १००० वर्षो की तपस्या रंग लाएगी

रमण- बस बहुत हुआ मैं तुम्हारी बकवास और नहीं सुनूंगा, तुम्हारा तथाकथित भगवान आजाद होगा या नहीं मैं नहीं जनता पर इतना जरूर जनता हु की तुम अब इस चारदीवारी से कभी बहार की दुनिया नहीं देख पाओगे,

रमण बहार आकर अपने केबिन मैं बैठा हुआ था, विक्रांत की बातो ने उसके दिमाग को विचलित किया हुआ था,

वही घर पर राघव इस समय ध्यान लगाये बैठा था और कल से उसने जितनी भी बाते उसने कालसेना और कालदूत के बारे मैं देखि और सुनी थी उन सबका आकलन अपने दिमाग मैं कर रहा था

राघव के दादाजी की उस सिद्ध माला का असर इतना जबरदस्त था की जिसे पहनते ही राघव की सुनने की क्षमता बढ़ गयी थी वो अगर पूर्ण एकाग्र होकर किसी आवाज पर धयान लगाये तो करीब १ किलोमीटर तक की आवाज सुन सकता था और अपनी इस काबिलियत का पता उसे कल शाम ही चला था जब उन्होंने विक्रांत को पकड़ा था तब राघव को कुछ लोगो की अस्पष्ट आवाजे आये थी जो जंगल मैं किसी ठिकाने की बात कर रहे थे, राघव ने जब आजू बाजु मैं नजर दौडाई तो उसे वहा कोई नहीं दिखा और फिर विक्रांत की बातो ने उसका ध्यान अपनी और खीचा था, इस वक़्त राघव अपना मस्तिष्क एकाग्र करके उन्ही आवाजो को स्पष्ट करने की कोशिश कर रहा था पर उसका कोई खास फायदा नहीं हो रहा था आखिर मैं उसे उन आवाजो से जो इन्फो मिली थी उसी के सहारे उसने आगे जाने का सोचा, राघव ने अपना ध्यान समाप्त किया और बगैर किसी को बताये घर से निकल गया, कहा जाना है वो नहीं जनता था बस उन अनजान आवाजो से उसे एक ठिकाने का पता चला था और राघव उसी की खोज मैं निकला....

राघव ने अपनी खोज की शुरुवात कल की घटना वाली जगह से करने की सोच और वो जंगल मैं उस पुराने कब्रिस्तान मैं पहुच गया पर कल ही तरह उसे आज भी वहा कुछ नहीं मिला तभी उसे कुछ दुरी पर कदमो की हलकी हलकी आवाजे सुने दी और राघव ने उनका पीछा किया, वो कदमो की आवाजे उसे जंगल के दूसरी तरफ वाले बहरी इलाके की और ले आयी,

जंगल के बहार वीरान इकले मैं एक दो मंजिला इमारत बनी हुयी थी और इस दो मंजिला ईमारत मैं कुछ हलचल हो रही थी, उस इमारत की सुरक्षा के लिए कुछ १०-१२ लोग हाथ मैं बन्दूक लिए बहार तैनात खड़े थे राघव कुछ समझ नहीं पा रहा था, उसने कभी सपने मैं भी नहीं सोचा था की उसके शहर के बहार उसे ऐसा कुछ देखने मिलेगा, राघव ने अब अपनी दूर का सुनने की काबिलियत का इस्तमाल करने का सोचा और वही छिप कर उस इमारत से आती आवाजो पर ध्यान केन्द्रित किया,

उस इमारत के उपरी हिस्से मैं एक बहुत ही आलिशान शयनकक्ष बना हुआ था वहा बिस्तर पर एक व्यक्ति चिंता की मुद्रा मैं बैठा हुआ था, लगभग ३५ की उम्र और बलिष्ट शारीर वाला वो व्यक्ति जिसकी दाढ़ी उसकी छाती तक आ रही थी, चेहरा दाढ़ी से ढका हुआ लेकिन बहुत प्रभावशाली था, जीन्स और ढीली ढली बनियान पहने वो व्यक्ति ठोड़ी पर हाथ रखकर किसी गहन चिंतन मैं डूबा हुआ था, घडी की टिक टिक उस शांत कमरे की शांति को भंग कर रही थी तभी उस कमरे मैं एक खबसूरत महिला आई और व्यक्ति की तन्द्रा को उसके कंधे पर हाथ रखकर भंग कर दिया.....

To be continue......
 

mashish

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भाग १३


अगली सुबह रमण जल्दी पुलिस स्टेशन के लिए निकल गया वो विक्रांत से मिल कर जल्द से जल्द उसके मुह से कालसेना के ठिकाने का पता लगाना चाहता था, साथ ही उसके दिमाग मैं संतोष की बताई बाते भी थी, कल संतोष ने उन्हें बताया था के उसके और रोहित के हाथो से एक आदमी का खून हुआ था, रमण ने संतोष से इस घटना की पूरी जानकारी ली और एक सर्च टीम भी उस लाश की तलाश मैं लगायी थी और पुलिस को उस 7 फूट के इंसान की लाश भी मिल गयी थी

विक्रांत को इस वक़्त एक अँधेरे लॉकअप मैं बंद किया हुआ था, उस कमरे मैं केवल एक बल्ब की मधिम रोशनी थी और वो मद्धिम रौशनी उस पुरे कमरे के लिए काफी नहीं थी, रमण और विक्रांत एक दुसरे के सामने लकड़ी की खुर्ची पर बैठे हुए थे, विक्रांत के चेहरे पर पिछली लादे के कारन कई चोटों के निशान थे और उसके हाथो मैं हथकड़ी लगी हुयी थी, उस लॉकअप मैं मौत जैसा सन्नाटा था जिसे रमण की आवाज ने भंग किया

रमण- मैंने हर एक पुलिस वाले तुम्हरू सेल से दूर रहने को कहा है ताकि मैं तुमसे अकेले मैं कुछ पूछताछ कर सकू

विक्रांत- क्या जानना चाहते हो इंस्पेक्टर जो तुम्हे बताना था मैं बता चूका हु इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बताऊंगा, काफी हिम्मत मैं तुममे तुम भी मेरी तरह कालदूत की भक्ति करो ताकतवर भक्तो की वे कदर करते है

रमण-अपनी बकवास बंद करो और मुझे अपने मुखिया के अड्डे का पता बता दो

विक्रांत(कुटिल मुस्कराहट के साथ)- तुम उसे कभी ढूंढ नहीं पाओगे, एक आखरी कुर्बानी और कालदूत को स्वतंत्र करा देंगे हम लोग

रमण-तुम अंधविश्वासी लोगो से तंग आ गया हु मैं, तुम लोग मानसिक रूप से विक्षिप्त हो

विक्रांत-यानि की तुम्हे लगता है कालदूत सिर्फ एक मिथ्या रचना है? काश मेरे हाथ इस वक़्त खुले होते तो मैं तुम्हे बताता, telekinesis करके तुम्हारी खोपड़ी खोल देता

रमण-मुझे यकीन है की ये जो telekinesis तुम लोग करते हो इसके पीछे भी अवश्य कोई वैज्ञानिक कारण होगा,

विक्रांत-गलत इंस्पेक्टर, हमारे देवता ने हमें ये शक्तिया दी है

रमण-यानि कालदूत ने? वो इतना ही शक्तिशाली है तो अपनी कैद से खुद आजाद क्यों नहीं हो जाता? उसे तुम लोगो की जरुरत क्यों है?

विक्रांत-चाहे कोई भी आराध्य देव हो, उसे अपने भक्तो की शक्ति की जरुरत होती है जैसे तुम्हारे इश्वर को तुम्हारी भक्ति की अवशकता है वैसे ही हमारे इश्वर को हमारी भक्ति की अवशकता है, कालदूत तुम्हारे देवताओ के शाराप के कारन युगों युगांतर से समुद्रतल की गहराइयों मैं कैद है, उनको आत्माओ की शक्त चाहिए जिससे वो अपने बन्धनों से आजाद हो सके, बस एक इंसानी रूह और हमारा देवता समुद्रतल से धरातल पर आ जायेगा, हमारी १००० वर्षो की तपस्या रंग लाएगी

रमण- बस बहुत हुआ मैं तुम्हारी बकवास और नहीं सुनूंगा, तुम्हारा तथाकथित भगवान आजाद होगा या नहीं मैं नहीं जनता पर इतना जरूर जनता हु की तुम अब इस चारदीवारी से कभी बहार की दुनिया नहीं देख पाओगे,

रमण बहार आकर अपने केबिन मैं बैठा हुआ था, विक्रांत की बातो ने उसके दिमाग को विचलित किया हुआ था,

वही घर पर राघव इस समय ध्यान लगाये बैठा था और कल से उसने जितनी भी बाते उसने कालसेना और कालदूत के बारे मैं देखि और सुनी थी उन सबका आकलन अपने दिमाग मैं कर रहा था

राघव के दादाजी की उस सिद्ध माला का असर इतना जबरदस्त था की जिसे पहनते ही राघव की सुनने की क्षमता बढ़ गयी थी वो अगर पूर्ण एकाग्र होकर किसी आवाज पर धयान लगाये तो करीब १ किलोमीटर तक की आवाज सुन सकता था और अपनी इस काबिलियत का पता उसे कल शाम ही चला था जब उन्होंने विक्रांत को पकड़ा था तब राघव को कुछ लोगो की अस्पष्ट आवाजे आये थी जो जंगल मैं किसी ठिकाने की बात कर रहे थे, राघव ने जब आजू बाजु मैं नजर दौडाई तो उसे वहा कोई नहीं दिखा और फिर विक्रांत की बातो ने उसका ध्यान अपनी और खीचा था, इस वक़्त राघव अपना मस्तिष्क एकाग्र करके उन्ही आवाजो को स्पष्ट करने की कोशिश कर रहा था पर उसका कोई खास फायदा नहीं हो रहा था आखिर मैं उसे उन आवाजो से जो इन्फो मिली थी उसी के सहारे उसने आगे जाने का सोचा, राघव ने अपना ध्यान समाप्त किया और बगैर किसी को बताये घर से निकल गया, कहा जाना है वो नहीं जनता था बस उन अनजान आवाजो से उसे एक ठिकाने का पता चला था और राघव उसी की खोज मैं निकला....

राघव ने अपनी खोज की शुरुवात कल की घटना वाली जगह से करने की सोच और वो जंगल मैं उस पुराने कब्रिस्तान मैं पहुच गया पर कल ही तरह उसे आज भी वहा कुछ नहीं मिला तभी उसे कुछ दुरी पर कदमो की हलकी हलकी आवाजे सुने दी और राघव ने उनका पीछा किया, वो कदमो की आवाजे उसे जंगल के दूसरी तरफ वाले बहरी इलाके की और ले आयी,

जंगल के बहार वीरान इकले मैं एक दो मंजिला इमारत बनी हुयी थी और इस दो मंजिला ईमारत मैं कुछ हलचल हो रही थी, उस इमारत की सुरक्षा के लिए कुछ १०-१२ लोग हाथ मैं बन्दूक लिए बहार तैनात खड़े थे राघव कुछ समझ नहीं पा रहा था, उसने कभी सपने मैं भी नहीं सोचा था की उसके शहर के बहार उसे ऐसा कुछ देखने मिलेगा, राघव ने अब अपनी दूर का सुनने की काबिलियत का इस्तमाल करने का सोचा और वही छिप कर उस इमारत से आती आवाजो पर ध्यान केन्द्रित किया,

उस इमारत के उपरी हिस्से मैं एक बहुत ही आलिशान शयनकक्ष बना हुआ था वहा बिस्तर पर एक व्यक्ति चिंता की मुद्रा मैं बैठा हुआ था, लगभग ३५ की उम्र और बलिष्ट शारीर वाला वो व्यक्ति जिसकी दाढ़ी उसकी छाती तक आ रही थी, चेहरा दाढ़ी से ढका हुआ लेकिन बहुत प्रभावशाली था, जीन्स और ढीली ढली बनियान पहने वो व्यक्ति ठोड़ी पर हाथ रखकर किसी गहन चिंतन मैं डूबा हुआ था, घडी की टिक टिक उस शांत कमरे की शांति को भंग कर रही थी तभी उस कमरे मैं एक खबसूरत महिला आई और व्यक्ति की तन्द्रा को उसके कंधे पर हाथ रखकर भंग कर दिया.....


To be continue......
awesome super update
 
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