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Lord haram

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मै आपकी भावनाये समझता हूँ.
लेकिन मै कहानीकार हूँ कहानी लिखता हु, भूमिका लिखता हूँ, औरत का चरित्र लिखता हूँ.
ऐसे अपडेट उस चरित्र को बनाते है.
Sex का क्या है वो तो आ ही जायेगा, सब्र के बाद सम्भोग मिलने का मजा अलग है.
आगे के अपडेट मे आपकी बात का समर्थन किया जायेगा 👍
Sex padne ke liye yaha bahut kahaniya hain, lekin aap ek feeling likhte hain, padne wala us jagah pahuch jata hain.
Mai 100% kah sakta hu ki koi aurat apki kahani padti hogi to wo khud ko apki kahani me mahsus karti hogi.
Aap aurat ki dil ki baat jante hain.
Aurat aise hi sambhog nahi kar leti, use mauka chahiye or wo mauka aap banate hain. 👍
 
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Mr. Unique

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SUPERB UPDATE
kahani ko badaye rakhne ke liye aise normal updates bhi sahi rehte hai
par jab tak sex ka tadka na ho har update me to sab rukha-2 sa lagta hai
ho sake to har update me kuch sex se related likhne ka prayaas kijiye
aakhir yaha sabhi usi ke liye to aate hai
तुम भी यार मजा किरकिरा कराओगे, दो मुलाकात में ही चुदवा दोगे क्या काया को...!!! ये कोई बिना सिर पैर की incest कहानी थोड़ी चल रही है।
 

Tri2010

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रोहित शबाना की कोठी के सामने कार मे बैठा था, उसे इंतज़ार था की चौकीदार आएगा.

चाररररर.... करता हुआ दरवाजा खुल गया, रोहित ने कार अंदर धकेल दी.

"सलाम साब " गेट पे खड़े चौकीदार ने सलाम ठोक दिया.

आज कुछ अलग था, रोहित को कुछ अजीब लगा जैसे वो यहाँ का साब हो.

रोहित ने विचार झटक दिया, वैसे भी पहली बार मे चौकीदार उसकी औकात समझ गया होगा.

रोहित ने कार सीधा कोठी के अंदर जा लगाई

"शबाना जी.... शबाना जी " शबाना को आवाज़ लगाते हुए आगे बड़ा.

तुरंत एक नौकर प्रस्तुत हुआ.

"नमस्ते बड़े साब " मालकिन ऊपर है, आप वही चले जाये.

रोहित को कुछ अजीब सा लगा, लेकिन इतनी बड़ी कोठी थी रहने वाली सिर्फ एक ये तो लाजमी था.

रोहित हॉल से आगे बढ़ता हुआ, सीढ़ी चढ़ गया, सामने बहुत से कमरे थे.

कहां जाये? किस्मे जाये? शबाना जी.....

रोहित ने आवाज़ फिर लगाई.

"इधर.... यहाँ आ जाइये बड़े बाबू " बाजु के कमरे से एक मनमोहक मादक आवाज़ ने रोहित को अपनी ओर खिंच लिया.

ना जाने क्या जादू था उस आवाज़ मे रोहित बीना हिचके उस दिशा मे चल पड़ा.

सामने ही एक कमरा था, रोहित थोड़ा हिचका दरवाजा खुला हुआ था, लेकिन ना जाने क्या सोच के उसके कदम आगे बढ़ गए.

शबाना जी....

रोहित ने आवाज़ दी.

"बैठिये बड़े बाबू अभी आई " कमरे के साइड मे एक जालीदार पर्दा सा लगा था, रोहित की नजर आवाज़ की दिशा मे चली गई.

नजर का जाना था की रोहित का मुँह खुला रह गया, जालीदार पर्दे से एक आकृति झलक रही थी, देखने से मालूम पड़ता था कोई मादक जिस्म की मालकिन उसके पीछे है.
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सामने रोहित उस हसीन क्षण का गवाह बना हुआ था, हालांकि खुद की बीवी किसी अप्सरा से कम ना थी, लेकिन अब खुद की बीवी को कौन देखता है.

रोहित का भी यही हाल था.

उसकी टकटकी लगी हुई थी उस जालीदार परछाई पर.

शबाना ने लहंगा चढ़ा लिया था, दो गोलाकार तरबूज जैसी आकृति छुप गई थी.

गड़ब..... रोहित ने थूक निगल लिया.

"बड़े बाबू... मदद कर देंगे क्या?" शबाना ने चोली को बाहो मे डालते हुए बोला..

"हहह.... हाँ... हाँ... बोलिये " रोहित अपनी जगह मे जाम था.

"इधर आइये ना बड़े बाबू" मदहोश कर देने वाली आवाज़ गूंज उठी.

ना जाने क्या जादू था शबाना की ख़ानकती आवाज़ मे रोहित के कदम उस जालीदार पर्दे के पास पहुंच गए.

"ये डोरी बांध दीजिये ना, लग नहीं रही है "

रोहित के हाथो ने पर्दे को हाथ दिया, एक मदहोश कर देने वाली खुसबू रोहित की नाक मे जा पड़ी, गोरा दमकता जिस्म चमक उठा.

शबाना पीठ की तरफ से पूरी तरह नंगी थी, कमर के नीचे बहुत नीचे घाघरा बंधा हुआ था.
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"बांध दीजिये ना " शबाना के हाथो ने आपने स्तन पर चोली को थामे हुआ था, नजरें रोहित पर ही दी.

नजरों मे एक वासना थी, एक नशा था जो रोहित के जिस्म मे घुल रहा था.

रोहित के हाथ कांप उठे, वो पहली बार अपनी बीवी को छोड़ परायी स्त्री के इतना करीब था.

रोहित के हाथो ने दोनों डोरियो को थाम लिया, उन्हें पास ला खिंच दिया.

"आआहहहहह.... बड़े बाबू आराम से " शबाना का जिस्म तन गया पीठ सिकुड़ गई, स्तन आगे को कस गए.

उत्तेजना मे रोहित ने डोरी को ज्यादा कस दिया था.

रोहित की उंगलियां जैसे किसी मखमल से जा लगी थी,

रोहित कर रोंगटे खड़े हो गए, भला कौन मर्द होगा जो ऐसी औरत की गर्मी को महसूस ना कर सके.

रोहित ने झट से डोरी को ढीला कर वापस से कस दिया.

शबाना की कोमल गोरी पीठ पर सिर्फ एक डोरी थी, पूरी पीठ नंगी.

"धन्यवाद बड़े बाबू, थोड़ी टाइट हो गई है " शबाना आगे को घूम गई, रोहित पीछे को हट गया,

उसके घुटने जवाब दे रहे थे, सामने चोली टाइट होने की वजह से शबाना के स्तन लगभग पुरे भी बाहर थे, एक दम गोरे उन्नत, सुडोल..
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.

"क्या हुआ बड़े बाबू कभी देखे नहीं क्या " शबाना ने मुस्कुराहतबके साथ पास पडे दुप्पट्टे को सीने पर डाल लिया.

पर्दा गिर गया था, शो ख़त्म,

रोहित को भी जैसे होश आया.

"वो.. वो... मै... मै...."

"बोलिये कैसे आना हुआ?"

"वो... मै... मै... लोन के सिलसिले मे आय था " रोहित ने मकसद बता दिया.

"आप भी ना बड़े बाबू बहुत जल्दी मे रहते है, सीधा मुद्दे पर कूद पड़ते है "

"कक्क... काम ही है मेरा "

"कुछ काम आराम से करने चाहिए बाबे बाबू, जितना धीरे उतना फायदा " शबाना ने अनजाने ही एक सबक दिया था रोहित को.

काया पानी लेने के लिए मुड़ चली, रोहित उस मादक जिस्म की मालकिन को देखता रह गया.
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वही इस कोठी से दूर सडक पर एक स्कूटी दौड़े चली जा रही थी.

"गाड़ी तो अच्छी चला लेते हो बाबू " काया बाबू के कंधे पर हाथ रखे बैठे थी.

जाँघे बाबू की कमर से लगी हुई थी, लेकिन ऊपरी जिस्म पर कुछ दूरिया थी.

"वो यहाँ आ के ही सीखी, ठेकेदार छोटे मोटे काम के लिए मुझे एक्टिवा दे दिया करता था तो सीख गया "

"बड़ी जल्दी सीखते हो "

"सिखने की ही तो उम्र है मेरी, वैसे लेना क्या है आपको बाजार से "

"क्यों तुम्हे क्यों जानना है?"

"सामान का मालूम रहेगा तो, वैसे बाजार जा सकेंगे ना " बाबू की बात मे दम था.

"वो... वो...." ना जाने काया क्यों थोड़ा सा झिझकि

"बताइये ना मालूम तो हो किस तरफ जाना है?"

"वो.. कुछ कपडे लेने है " काया की नजरें नीची थी, चेहरे पे मुस्कान थी ना लेकिन बाबू इस झेप को देख ना सका.

"कैसे कपडे?"

"कैसे क्या जैसे होते है वैसे लेने है "

" मतलब साब के लिए या आपके लिए? "

"मममम... मेरे लिए "

"अंदर के या बाहर के " बाबू ने जैसे कोई तीर खिंच मारा हो.

"ममममम.... मतलब " काया बाबू के सवाल से सकपका सी गई.

"मतलब साड़ी वगैरह तो मिल जाएगी लललल.... ललेकिन " बाबू थोड़ा झिझक सा गया

"लेकिन क्या?"

"वो अंदर जो आप पहनती है डिजाइन वाली वो यहाँ मिलने से रही "

बाबू ने साफ बोल दिया था.

"अअअ... अब " काया को सूट सलवार के साथ पैंटीज़ भी लेनी थी.

" मतलब आपको कच्छी भी लेनी है " बाबू ने दिल की बात पकड़ ली

"हहहह... हाँ..." काया थोड़ा झिझकि लेकिन बाबू से वो शर्म नहीं थी, बाबू मे कुछ अपनापन सा था.

"बड़े बाजार से आगे चल के एक क़स्बा पड़ता है जो शहर के नजदीक है, वहाँ मिल सकती है "

बाबू काया बड़ा बाजार पहुंच चुके थे.

पूरा बाजार भरा हुआ था.

दोनों एक दुकान मे घुस गए, जहाँ काया ने सूट सलवार लेगी ले ली साड़ी मे कोई दम नहीं था, सलवार लेगी भी काम चलाऊ ही थे.

"क्या हुआ मैडम मजा नहीं आया " बाबू ने काया के उदास चेहरे को देखते हुए कहां..

"हाँ बाबू यहाँ तो कुछ भी अच्छा नहीं है, सब घटिया क्वालिटी के है"

बाबू और काया अंडर गारमेंट्स की शॉप से ही निकल रहे थे.

"मैडम एक बार देख लो यहाँ शायद अच्छी मिल जाये " बाबू ने बाहर लटकी पैंटीज को देखते हुए कहां.

"काया ने सामने देखा सब ओल्ड मॉडल है, तुम तो जानते ही हो मै कैसी पहनती हूँ... ओह्ह्ह.. धत..." काया ने जबान दाँत तले दबा ली.. उसे लास्ट के शब्द नहीं बोलने थे.

काया झेप गई, मुँह नीचे किये आगे बढ़ गई.

गरज.... गड़ड़ड़ड़ड़ड़ड़....... तभी बादल गरज उठे, आज सुबह से ही बादल लगे हुए थे.

"मैडम जी... मैडम जी... जल्दी घर चलते है बारिश हो जायेगी " बाबू भागता हुआ काया के बराबर मे आया.

"तुम डरते हो क्या बारिश से " काया ने चुटकी ली क्युकी बाबू के चेहरे पे वाकई 12 बजे थे.

"वो... वो.... थोड़ा थोड़ा "

"हाहाहाहाहा..... क्या बाबू तुम भी, वैसे भी गरजने वाले बादल बरसते नहीं है, चलो आगे जहाँ तुम बोल रहे थे, कौन बार बार आएगा "

बाबू काया वापस से एक्टिवा पे सवार थे.

बड़ा बाजार पार हो चूका था... बादल घिर आये थे, ठंडी हवा के झोंके काया और बाबू को ठंडक दे रहे थे.

"मैडम आप वो वाली क्यों नहीं पहनती "

"क्या?"

"कच्छी " बाबू ने सीधा सवाल कर दिया.

"कककक.... क्यों?" बाबू के सवाल काया को गुदगुदा देते थे.

"सब ही तो पहनते है, अब जहाँ रहो वैसा कर लेना चाहिए " बाबू ने लॉजिक की बात की.

"वो... वो.... चुभती है " काया झेपते हुई बोली

"लो कर लो बात... मुझे तो लगता है जैसी आप पहनती है वो ज्यादा चुभती होगी " काया बाबू के बीच पैंटी को ले कर खुली चर्चा हो रही थी जिसमे काया को भी मजे आ रहे था.

ऊपर से ये रूहानी मौसम मस्ती करने के लिए प्रेरित कर रहा था.

"क्यों.. मेरी वाली मे क्या खराबी है?" काया ने जानना चाहा

"वो.. वो... जो बाकि औरते पहनती है उसमे तो गांड पूरी ढक जाती है " बाबू ऐसे शब्दों के प्रयोग से हिचकिचाता नहीं था.

"कककक... क्या?" काया का दिमाग़ हिला जो उसने अभी सुना.

"गांड पूरी ढँक जाती है " बाबू ने बेहिचक दोहरा दिया.

"छी.... कैसी गंदे शब्द बोलते हो?"

"लो अब इसमें क्या गन्दा हमारे यहाँ तो गांड ही कहते है "

काया क्या बोलती... कोई जवाब नहीं था, बस ये देसी शब्द उसके कानो मे घुलते हुए स्तन के आस पास गुदगुदी से कर रहे थे.



"हाँ तो उससे क्या?" काया ने बात आगे बढ़ाई

"आपकी वाली कच्छी मे तो पीछे सिर्फ एक धागा रहता है, वो गांड मे नहीं फस जाता होगा " बाबू का सवाल बहुत मासूम था, वो क्या जाने पैंटी कैसी कैसी होती है.

पीछे काया का जिस्म घन घना सा गया," गांड मे घुस जाता होगा" बाबू के कहे शब्द उसके रोंगटे खड़े रहने के लिए काफ़ी थे.

"गांड के बीच रस्सी सी फसी नहीं लगती आपको?"

"ननणणन..... नहीं.... नहीं " काया ने ना जाने क्यों जवाब दिया, चेहरा शून्य था लेकिन जिस्म पे पसीने की बुँदे पनप आई थी,

"वो... वो... मुझे पसीना बहुत आता है, इसलिए ऐसी पहनती हूँ, " काया ने इस बार सीधा और साफ जवाब दिया.

"कहां पसीना आता है?"

"वो... वो... गग.. गगग...." काया के शब्द गले मे फस रहे थे.

"कहां आता है मैडम जी पसीना?" बाबू काया को उकसाए जा रहा था.

"गगगग... गांड मे " उउउफ्फ्फ्फ़.... काया का पूरा वजूद हिल गया ना जाने वो ऐसे शब्द कैसे और क्यों बोल गई.

जिस्म पसीने से भर गया, दिल धाड धाड़ कर बजने लगा, मात्र एक शब्द बोलने मे जो उत्तेजना थी, वो अहसास था जो उसने कभी महसूस ही नहीं किया था..
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एक सुकून की लहर नाभि से जा टकराई, हवा साय साय कर उसके जिस्म को हिला रही थी.

"तभी ऐसी खुसबू आती है आपकी कच्छी से " बाबू रुकने के मूड मे नहीं था.

"पप्प... प.. प... पता नहीं, तुम ही जानो " काया सिर्फ मुस्कुरा दी.

सामने क़स्बा था, जहाँ दो चार बड़ी दुकाने थी, जिसमे से एक लेडीज़ की दुकान भी थी.

बाबू ने गाड़ी वही रोक दी.

"लो मैडम जी शायद आपकी वाली कच्छी यहाँ मिल जाये " बाबू ने मुस्कुरा कर कह दिया.

काया कुछ ना बोली बस आगे बढ़ चली, पीछे बाबू.

"अरे... अरे.. तुम कहां आ रहे हो, मै ले लुंगी " पीछे आते बाबू को काया ने टोका

"मैडम जी देख लूंगा, कुछ शहरी चीज़ो के बारे मे मालूम तो पड़े मुझे भी " बाबू ने बड़ी ही मासूमियत से आग्रह किया.

"बुद्धू.... यही सब सीखो तुम, अच्छा आओ " काया और बाबू दुकान मे घुस गए.

"आइये आइये मैडम जी क्या दिखा दू, यहाँ सब आपकी पसंद का ही है "

दुकान का मालिक खीखीयाते हुए बोला

"वो... वो पैंटीज " काया ने थोड़ा झिझकते हुए कहां हालांकि शहर मे उसके लिए ये सब खरीदना आम बात थी लेकिन यहाँ का माहौल यहाँ कर लोग उसे झिझकने पर मजबूर कर रहे थे.

भारतीय स्त्रियों की कहानी ही यही है, वो अपनी प्रणाम पैंटी को भी मर्दो की नजर से दूर रखना चाहती है.

"अभी लीजिये मैडम जी, वैसे आपको पहली बार देखा यहाँ " दुकान दार ने कई साड़ी पैकेट ला कर रख दिए.

"बड़े बाबू आये है शहर से उन्ही की मोहतरमा है " जवाब बाबू ने सीना चौड़ा कर के दिया.

ना जाने क्या गर्व था इस बात मे.

"तो फिर आपके लिए ये ठीक रहेगी " दुकान वाले ने 2,3 पीस पैंटी के सामने निकाल के रख दिए.

काया उन्हें देख ख़ुश हुई वही बाबू को जैसे सांस नहीं आ रही थी, उस अज्ञानी को तो पता ही नहीं था ऐसी भी कच्छीया होती है.

जालीदार, सिर्फ एक पट्टी वाली.

"इसे पहनते कैसे है" बाबू के मन मे सवाल गूंजने लगे जिसके जवाब सिर्फ काया के पास थे, बाबू जवानी की सीढ़ी चढ़ने लगा था.



काया ने दो थोग पसंद कर ली " इन्हे पैक कर दीजिये "

"सिर्फ यही, बार बार कहां आएंगी मैडम जी आप, ये G-string भी ले जाइये " दुकानवाले ने एक पैंटी ऐसे लहरा दी जैसे कोई विजय पताका हो.

काया थोड़ी सी झेप गई, दुकानवाले का स्वभाव थोड़ा अजीब था.

"ऐसे माल आपको सिर्फ यही मिलेंगे, आप पे बहुत अच्छी लगेगी ये " दुकानदार से काउंटर से आगे झुकते हुए काया की गांड को घूरते हुए कहां जैसे टटोल रहा हो "आ तो जाएगी ना "

"फिटिंग की है मैडम " ले जाइये

गजब का हुनरबाज था दुकानवाला देख के ही अंदाजा लगा बैठा.

बाबू तो बस यहाँ वहाँ देखे जा रहा था चारो तरफ ब्रा पैंटी, तरह तरह की एक से बढकर एक, कई सारी तस्वीरें.

"चले बाबू... काया ने बाबू के कंधे पर हाथ रखा "

"हहह... हाँ... हाँ.... मैडम " बाबू जैसे होश मे आया हो कब खरीदारी हो गई पता ही नहीं चला.

"फिर आइयेगा मैडम जी, आपकी जरुरत का सामान यहाँ मिलेगा " दुकानदार ने पान से गंदे हुए लाल दाँत निपोर दिए.

4बज चुके थे

एक्टिवा सडक लार दौड़े जा रही थी, रह रह के बादल गरज रहे थे, ठंडी हवा के थपेड़े दोनों को हिला दे रहे थे.

लेकिन बाबू तो जैसे शून्य मे खोया हुआ था, मर गया या जिन्दा है लता नहीं, बस एक्टिवा पर हाथ कसे हुए थे.

"बाबू.... बाबू...." काया ने बाबू के कंधे पर जोर दिया.

बाबू का कोई जवाब नहीं.

"क्या हुआ बाबू " काया ने बाबू के कंधे को जोर से दबा दिया.

"ककककक.... क्या... क्या मैडम जी?"

"क्या हुआ कहां खो गए हो, तबियत ठीक है?"

"वो.. वो... हाँ हाँ..."

"तो फिर ऐसे गुमसुम क्यों हो?"

"वो... मैडम जी.. मै कुछ जानता ही नहीं था, दुनिया मे इतना कुछ होता है?"

"हाहाहाहाहा..... बाबू तुम भी ना, सब सीख जाओगे, लड़कियों को जितना जानो सब कम है "

गगगगगगगटतट...... गगगरररर...

धाड... धाड........ गरज..... तभी जोरदार बादल गरज उठे.

"मैडम पक्का बारिश होने वाली है "

काया ने घड़ी की ओर देखा 4बज चुके थे,, अभी घर दूर था, अब काया के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें आ गई थी.

"मैडम जी एक शॉर्टकट है यहाँ से, बड़ा बाजार से नहीं जाना पड़ेगा सीधा अपने इलाके के रास्ते आ जायेंगे " बाबू ने सुझाव दिया.

"हहहब..... चलो.... रोहित भी आने वाले होंगे, कब इतना समय निकल गया काया को पता ही नहीं चला,

बाबू ने आगे जा कर एक्टिवा सडक से नीचे कच्चे रास्ते पर उतार दी.

रास्ता उबड़ खाबाड़ था,

"ये कैसा रास्ता है बाबू "

"पुराना रास्ता है मैडम जी, थोड़ा ख़राब है लेकिन जल्दी पहुंच जाते है " काया को बाबू के साथ होने मे कोई समस्या नहीं थी,

थोड़ी ही दूर एक हवेली सी नजर आने लगी.

"ये... इस सुनसान मे किसकी हवेली है बाबू " बाबू और काया एक कोठी के सामने से गुजर रहे थे

"कोई नचनिया है मैडम जी उसी की कोठी है "

"नचनिया मतलब ".

"मतलब नाच गाना करने वाली "

"एक नाच गाना करने वाली के पास ऐसी कोठी, ऐसा बंगाला?" काया हक्की बक्की थी गांव जैसे जगह पे ऐसी शानो शौकत देख कर

"मैडम जी गांव को अभी आपने जाना कहां है, कहते है किसी जमींदार ने उसके नाच से ख़ुश हो कर कोठी इनाम मे दे दी "

"गजब दिलदार लोग होते है "

बाबू और काया कोठी को पार कर गए थे.

गगगग ड़ड़ड़ड़ड़ड़...... गरज..... गारर्रज्ज्ज्ज्बज...... छान.... छन.... छापक.... टप टप टापाक.. कर कुछ बूंदर गिरने लगी.

"मैडम जी बारिश आ गई " बाबू जैसे घबरा गया हो.

बारिश शुरु हो गई थी, साथ ही बिजली कड़कने लगी थी, काया के चेहरे पे चिंता साफ देखी जा सकती थी.

"मैडम वो सामने.... सामने खंडर सा है वहाँ रुकते है "

कोठी से आगे चल कर ही एक खंडर सा ढांचा बना हुआ था.

काया और बाबू तुरंत भागते हुए उस खंडर के अहाते मे समा गए, आसमान बदलो से घिर गया था, ठंडी पानी भरी हवाएं काया और बाबू के जिस्म को झकझोड रही थी.



वही अंदर कोठी मे.

"बड़े बाबू... अब मौसम जाने लायक नहीं रहा, रुक जाइये ना "

शबाना रोहित के साथ उसके आगोश मे बिस्तर पर पड़ी हुई थी.



इसका मतलब रोहित अभी तक शबाना की कोठी पर ही था, लेकिन शबाना उसके आगोश मे क्या कर रही है ?

कोठी से कुछ ही दूर काया भी बाबू के साथ फसी पड़ी थी.

कैसे होंगी ये तूफानी रात? क्या गुल खिलायेगा ये मौसम?

दोनों पति पत्नी के जीवन मे एक नया अध्याय लिखने जा रहा है ये तूफान.
दोनों ही पास है लेकिन बहुत दूर.
बने रहिये तूफान जारी है....
Beautiful and interesting update
 
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रोहित शबाना की कोठी के सामने कार मे बैठा था, उसे इंतज़ार था की चौकीदार आएगा.

चाररररर.... करता हुआ दरवाजा खुल गया, रोहित ने कार अंदर धकेल दी.

"सलाम साब " गेट पे खड़े चौकीदार ने सलाम ठोक दिया.

आज कुछ अलग था, रोहित को कुछ अजीब लगा जैसे वो यहाँ का साब हो.

रोहित ने विचार झटक दिया, वैसे भी पहली बार मे चौकीदार उसकी औकात समझ गया होगा.

रोहित ने कार सीधा कोठी के अंदर जा लगाई

"शबाना जी.... शबाना जी " शबाना को आवाज़ लगाते हुए आगे बड़ा.

तुरंत एक नौकर प्रस्तुत हुआ.

"नमस्ते बड़े साब " मालकिन ऊपर है, आप वही चले जाये.

रोहित को कुछ अजीब सा लगा, लेकिन इतनी बड़ी कोठी थी रहने वाली सिर्फ एक ये तो लाजमी था.

रोहित हॉल से आगे बढ़ता हुआ, सीढ़ी चढ़ गया, सामने बहुत से कमरे थे.

कहां जाये? किस्मे जाये? शबाना जी.....

रोहित ने आवाज़ फिर लगाई.

"इधर.... यहाँ आ जाइये बड़े बाबू " बाजु के कमरे से एक मनमोहक मादक आवाज़ ने रोहित को अपनी ओर खिंच लिया.

ना जाने क्या जादू था उस आवाज़ मे रोहित बीना हिचके उस दिशा मे चल पड़ा.

सामने ही एक कमरा था, रोहित थोड़ा हिचका दरवाजा खुला हुआ था, लेकिन ना जाने क्या सोच के उसके कदम आगे बढ़ गए.

शबाना जी....

रोहित ने आवाज़ दी.

"बैठिये बड़े बाबू अभी आई " कमरे के साइड मे एक जालीदार पर्दा सा लगा था, रोहित की नजर आवाज़ की दिशा मे चली गई.

नजर का जाना था की रोहित का मुँह खुला रह गया, जालीदार पर्दे से एक आकृति झलक रही थी, देखने से मालूम पड़ता था कोई मादक जिस्म की मालकिन उसके पीछे है.
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सामने रोहित उस हसीन क्षण का गवाह बना हुआ था, हालांकि खुद की बीवी किसी अप्सरा से कम ना थी, लेकिन अब खुद की बीवी को कौन देखता है.

रोहित का भी यही हाल था.

उसकी टकटकी लगी हुई थी उस जालीदार परछाई पर.

शबाना ने लहंगा चढ़ा लिया था, दो गोलाकार तरबूज जैसी आकृति छुप गई थी.

गड़ब..... रोहित ने थूक निगल लिया.

"बड़े बाबू... मदद कर देंगे क्या?" शबाना ने चोली को बाहो मे डालते हुए बोला..

"हहह.... हाँ... हाँ... बोलिये " रोहित अपनी जगह मे जाम था.

"इधर आइये ना बड़े बाबू" मदहोश कर देने वाली आवाज़ गूंज उठी.

ना जाने क्या जादू था शबाना की ख़ानकती आवाज़ मे रोहित के कदम उस जालीदार पर्दे के पास पहुंच गए.

"ये डोरी बांध दीजिये ना, लग नहीं रही है "

रोहित के हाथो ने पर्दे को हाथ दिया, एक मदहोश कर देने वाली खुसबू रोहित की नाक मे जा पड़ी, गोरा दमकता जिस्म चमक उठा.

शबाना पीठ की तरफ से पूरी तरह नंगी थी, कमर के नीचे बहुत नीचे घाघरा बंधा हुआ था.
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"बांध दीजिये ना " शबाना के हाथो ने आपने स्तन पर चोली को थामे हुआ था, नजरें रोहित पर ही दी.

नजरों मे एक वासना थी, एक नशा था जो रोहित के जिस्म मे घुल रहा था.

रोहित के हाथ कांप उठे, वो पहली बार अपनी बीवी को छोड़ परायी स्त्री के इतना करीब था.

रोहित के हाथो ने दोनों डोरियो को थाम लिया, उन्हें पास ला खिंच दिया.

"आआहहहहह.... बड़े बाबू आराम से " शबाना का जिस्म तन गया पीठ सिकुड़ गई, स्तन आगे को कस गए.

उत्तेजना मे रोहित ने डोरी को ज्यादा कस दिया था.

रोहित की उंगलियां जैसे किसी मखमल से जा लगी थी,

रोहित कर रोंगटे खड़े हो गए, भला कौन मर्द होगा जो ऐसी औरत की गर्मी को महसूस ना कर सके.

रोहित ने झट से डोरी को ढीला कर वापस से कस दिया.

शबाना की कोमल गोरी पीठ पर सिर्फ एक डोरी थी, पूरी पीठ नंगी.

"धन्यवाद बड़े बाबू, थोड़ी टाइट हो गई है " शबाना आगे को घूम गई, रोहित पीछे को हट गया,

उसके घुटने जवाब दे रहे थे, सामने चोली टाइट होने की वजह से शबाना के स्तन लगभग पुरे भी बाहर थे, एक दम गोरे उन्नत, सुडोल..
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"क्या हुआ बड़े बाबू कभी देखे नहीं क्या " शबाना ने मुस्कुराहतबके साथ पास पडे दुप्पट्टे को सीने पर डाल लिया.

पर्दा गिर गया था, शो ख़त्म,

रोहित को भी जैसे होश आया.

"वो.. वो... मै... मै...."

"बोलिये कैसे आना हुआ?"

"वो... मै... मै... लोन के सिलसिले मे आय था " रोहित ने मकसद बता दिया.

"आप भी ना बड़े बाबू बहुत जल्दी मे रहते है, सीधा मुद्दे पर कूद पड़ते है "

"कक्क... काम ही है मेरा "

"कुछ काम आराम से करने चाहिए बाबे बाबू, जितना धीरे उतना फायदा " शबाना ने अनजाने ही एक सबक दिया था रोहित को.

काया पानी लेने के लिए मुड़ चली, रोहित उस मादक जिस्म की मालकिन को देखता रह गया.
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वही इस कोठी से दूर सडक पर एक स्कूटी दौड़े चली जा रही थी.

"गाड़ी तो अच्छी चला लेते हो बाबू " काया बाबू के कंधे पर हाथ रखे बैठे थी.

जाँघे बाबू की कमर से लगी हुई थी, लेकिन ऊपरी जिस्म पर कुछ दूरिया थी.

"वो यहाँ आ के ही सीखी, ठेकेदार छोटे मोटे काम के लिए मुझे एक्टिवा दे दिया करता था तो सीख गया "

"बड़ी जल्दी सीखते हो "

"सिखने की ही तो उम्र है मेरी, वैसे लेना क्या है आपको बाजार से "

"क्यों तुम्हे क्यों जानना है?"

"सामान का मालूम रहेगा तो, वैसे बाजार जा सकेंगे ना " बाबू की बात मे दम था.

"वो... वो...." ना जाने काया क्यों थोड़ा सा झिझकि

"बताइये ना मालूम तो हो किस तरफ जाना है?"

"वो.. कुछ कपडे लेने है " काया की नजरें नीची थी, चेहरे पे मुस्कान थी ना लेकिन बाबू इस झेप को देख ना सका.

"कैसे कपडे?"

"कैसे क्या जैसे होते है वैसे लेने है "

" मतलब साब के लिए या आपके लिए? "

"मममम... मेरे लिए "

"अंदर के या बाहर के " बाबू ने जैसे कोई तीर खिंच मारा हो.

"ममममम.... मतलब " काया बाबू के सवाल से सकपका सी गई.

"मतलब साड़ी वगैरह तो मिल जाएगी लललल.... ललेकिन " बाबू थोड़ा झिझक सा गया

"लेकिन क्या?"

"वो अंदर जो आप पहनती है डिजाइन वाली वो यहाँ मिलने से रही "

बाबू ने साफ बोल दिया था.

"अअअ... अब " काया को सूट सलवार के साथ पैंटीज़ भी लेनी थी.

" मतलब आपको कच्छी भी लेनी है " बाबू ने दिल की बात पकड़ ली

"हहहह... हाँ..." काया थोड़ा झिझकि लेकिन बाबू से वो शर्म नहीं थी, बाबू मे कुछ अपनापन सा था.

"बड़े बाजार से आगे चल के एक क़स्बा पड़ता है जो शहर के नजदीक है, वहाँ मिल सकती है "

बाबू काया बड़ा बाजार पहुंच चुके थे.

पूरा बाजार भरा हुआ था.

दोनों एक दुकान मे घुस गए, जहाँ काया ने सूट सलवार लेगी ले ली साड़ी मे कोई दम नहीं था, सलवार लेगी भी काम चलाऊ ही थे.

"क्या हुआ मैडम मजा नहीं आया " बाबू ने काया के उदास चेहरे को देखते हुए कहां..

"हाँ बाबू यहाँ तो कुछ भी अच्छा नहीं है, सब घटिया क्वालिटी के है"

बाबू और काया अंडर गारमेंट्स की शॉप से ही निकल रहे थे.

"मैडम एक बार देख लो यहाँ शायद अच्छी मिल जाये " बाबू ने बाहर लटकी पैंटीज को देखते हुए कहां.

"काया ने सामने देखा सब ओल्ड मॉडल है, तुम तो जानते ही हो मै कैसी पहनती हूँ... ओह्ह्ह.. धत..." काया ने जबान दाँत तले दबा ली.. उसे लास्ट के शब्द नहीं बोलने थे.

काया झेप गई, मुँह नीचे किये आगे बढ़ गई.

गरज.... गड़ड़ड़ड़ड़ड़ड़....... तभी बादल गरज उठे, आज सुबह से ही बादल लगे हुए थे.

"मैडम जी... मैडम जी... जल्दी घर चलते है बारिश हो जायेगी " बाबू भागता हुआ काया के बराबर मे आया.

"तुम डरते हो क्या बारिश से " काया ने चुटकी ली क्युकी बाबू के चेहरे पे वाकई 12 बजे थे.

"वो... वो.... थोड़ा थोड़ा "

"हाहाहाहाहा..... क्या बाबू तुम भी, वैसे भी गरजने वाले बादल बरसते नहीं है, चलो आगे जहाँ तुम बोल रहे थे, कौन बार बार आएगा "

बाबू काया वापस से एक्टिवा पे सवार थे.

बड़ा बाजार पार हो चूका था... बादल घिर आये थे, ठंडी हवा के झोंके काया और बाबू को ठंडक दे रहे थे.

"मैडम आप वो वाली क्यों नहीं पहनती "

"क्या?"

"कच्छी " बाबू ने सीधा सवाल कर दिया.

"कककक.... क्यों?" बाबू के सवाल काया को गुदगुदा देते थे.

"सब ही तो पहनते है, अब जहाँ रहो वैसा कर लेना चाहिए " बाबू ने लॉजिक की बात की.

"वो... वो.... चुभती है " काया झेपते हुई बोली

"लो कर लो बात... मुझे तो लगता है जैसी आप पहनती है वो ज्यादा चुभती होगी " काया बाबू के बीच पैंटी को ले कर खुली चर्चा हो रही थी जिसमे काया को भी मजे आ रहे था.

ऊपर से ये रूहानी मौसम मस्ती करने के लिए प्रेरित कर रहा था.

"क्यों.. मेरी वाली मे क्या खराबी है?" काया ने जानना चाहा

"वो.. वो... जो बाकि औरते पहनती है उसमे तो गांड पूरी ढक जाती है " बाबू ऐसे शब्दों के प्रयोग से हिचकिचाता नहीं था.

"कककक... क्या?" काया का दिमाग़ हिला जो उसने अभी सुना.

"गांड पूरी ढँक जाती है " बाबू ने बेहिचक दोहरा दिया.

"छी.... कैसी गंदे शब्द बोलते हो?"

"लो अब इसमें क्या गन्दा हमारे यहाँ तो गांड ही कहते है "

काया क्या बोलती... कोई जवाब नहीं था, बस ये देसी शब्द उसके कानो मे घुलते हुए स्तन के आस पास गुदगुदी से कर रहे थे.



"हाँ तो उससे क्या?" काया ने बात आगे बढ़ाई

"आपकी वाली कच्छी मे तो पीछे सिर्फ एक धागा रहता है, वो गांड मे नहीं फस जाता होगा " बाबू का सवाल बहुत मासूम था, वो क्या जाने पैंटी कैसी कैसी होती है.

पीछे काया का जिस्म घन घना सा गया," गांड मे घुस जाता होगा" बाबू के कहे शब्द उसके रोंगटे खड़े रहने के लिए काफ़ी थे.

"गांड के बीच रस्सी सी फसी नहीं लगती आपको?"

"ननणणन..... नहीं.... नहीं " काया ने ना जाने क्यों जवाब दिया, चेहरा शून्य था लेकिन जिस्म पे पसीने की बुँदे पनप आई थी,

"वो... वो... मुझे पसीना बहुत आता है, इसलिए ऐसी पहनती हूँ, " काया ने इस बार सीधा और साफ जवाब दिया.

"कहां पसीना आता है?"

"वो... वो... गग.. गगग...." काया के शब्द गले मे फस रहे थे.

"कहां आता है मैडम जी पसीना?" बाबू काया को उकसाए जा रहा था.

"गगगग... गांड मे " उउउफ्फ्फ्फ़.... काया का पूरा वजूद हिल गया ना जाने वो ऐसे शब्द कैसे और क्यों बोल गई.

जिस्म पसीने से भर गया, दिल धाड धाड़ कर बजने लगा, मात्र एक शब्द बोलने मे जो उत्तेजना थी, वो अहसास था जो उसने कभी महसूस ही नहीं किया था..
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एक सुकून की लहर नाभि से जा टकराई, हवा साय साय कर उसके जिस्म को हिला रही थी.

"तभी ऐसी खुसबू आती है आपकी कच्छी से " बाबू रुकने के मूड मे नहीं था.

"पप्प... प.. प... पता नहीं, तुम ही जानो " काया सिर्फ मुस्कुरा दी.

सामने क़स्बा था, जहाँ दो चार बड़ी दुकाने थी, जिसमे से एक लेडीज़ की दुकान भी थी.

बाबू ने गाड़ी वही रोक दी.

"लो मैडम जी शायद आपकी वाली कच्छी यहाँ मिल जाये " बाबू ने मुस्कुरा कर कह दिया.

काया कुछ ना बोली बस आगे बढ़ चली, पीछे बाबू.

"अरे... अरे.. तुम कहां आ रहे हो, मै ले लुंगी " पीछे आते बाबू को काया ने टोका

"मैडम जी देख लूंगा, कुछ शहरी चीज़ो के बारे मे मालूम तो पड़े मुझे भी " बाबू ने बड़ी ही मासूमियत से आग्रह किया.

"बुद्धू.... यही सब सीखो तुम, अच्छा आओ " काया और बाबू दुकान मे घुस गए.

"आइये आइये मैडम जी क्या दिखा दू, यहाँ सब आपकी पसंद का ही है "

दुकान का मालिक खीखीयाते हुए बोला

"वो... वो पैंटीज " काया ने थोड़ा झिझकते हुए कहां हालांकि शहर मे उसके लिए ये सब खरीदना आम बात थी लेकिन यहाँ का माहौल यहाँ कर लोग उसे झिझकने पर मजबूर कर रहे थे.

भारतीय स्त्रियों की कहानी ही यही है, वो अपनी प्रणाम पैंटी को भी मर्दो की नजर से दूर रखना चाहती है.

"अभी लीजिये मैडम जी, वैसे आपको पहली बार देखा यहाँ " दुकान दार ने कई साड़ी पैकेट ला कर रख दिए.

"बड़े बाबू आये है शहर से उन्ही की मोहतरमा है " जवाब बाबू ने सीना चौड़ा कर के दिया.

ना जाने क्या गर्व था इस बात मे.

"तो फिर आपके लिए ये ठीक रहेगी " दुकान वाले ने 2,3 पीस पैंटी के सामने निकाल के रख दिए.

काया उन्हें देख ख़ुश हुई वही बाबू को जैसे सांस नहीं आ रही थी, उस अज्ञानी को तो पता ही नहीं था ऐसी भी कच्छीया होती है.

जालीदार, सिर्फ एक पट्टी वाली.

"इसे पहनते कैसे है" बाबू के मन मे सवाल गूंजने लगे जिसके जवाब सिर्फ काया के पास थे, बाबू जवानी की सीढ़ी चढ़ने लगा था.



काया ने दो थोग पसंद कर ली " इन्हे पैक कर दीजिये "

"सिर्फ यही, बार बार कहां आएंगी मैडम जी आप, ये G-string भी ले जाइये " दुकानवाले ने एक पैंटी ऐसे लहरा दी जैसे कोई विजय पताका हो.

काया थोड़ी सी झेप गई, दुकानवाले का स्वभाव थोड़ा अजीब था.

"ऐसे माल आपको सिर्फ यही मिलेंगे, आप पे बहुत अच्छी लगेगी ये " दुकानदार से काउंटर से आगे झुकते हुए काया की गांड को घूरते हुए कहां जैसे टटोल रहा हो "आ तो जाएगी ना "

"फिटिंग की है मैडम " ले जाइये

गजब का हुनरबाज था दुकानवाला देख के ही अंदाजा लगा बैठा.

बाबू तो बस यहाँ वहाँ देखे जा रहा था चारो तरफ ब्रा पैंटी, तरह तरह की एक से बढकर एक, कई सारी तस्वीरें.

"चले बाबू... काया ने बाबू के कंधे पर हाथ रखा "

"हहह... हाँ... हाँ.... मैडम " बाबू जैसे होश मे आया हो कब खरीदारी हो गई पता ही नहीं चला.

"फिर आइयेगा मैडम जी, आपकी जरुरत का सामान यहाँ मिलेगा " दुकानदार ने पान से गंदे हुए लाल दाँत निपोर दिए.

4बज चुके थे

एक्टिवा सडक लार दौड़े जा रही थी, रह रह के बादल गरज रहे थे, ठंडी हवा के थपेड़े दोनों को हिला दे रहे थे.

लेकिन बाबू तो जैसे शून्य मे खोया हुआ था, मर गया या जिन्दा है लता नहीं, बस एक्टिवा पर हाथ कसे हुए थे.

"बाबू.... बाबू...." काया ने बाबू के कंधे पर जोर दिया.

बाबू का कोई जवाब नहीं.

"क्या हुआ बाबू " काया ने बाबू के कंधे को जोर से दबा दिया.

"ककककक.... क्या... क्या मैडम जी?"

"क्या हुआ कहां खो गए हो, तबियत ठीक है?"

"वो.. वो... हाँ हाँ..."

"तो फिर ऐसे गुमसुम क्यों हो?"

"वो... मैडम जी.. मै कुछ जानता ही नहीं था, दुनिया मे इतना कुछ होता है?"

"हाहाहाहाहा..... बाबू तुम भी ना, सब सीख जाओगे, लड़कियों को जितना जानो सब कम है "

गगगगगगगटतट...... गगगरररर...

धाड... धाड........ गरज..... तभी जोरदार बादल गरज उठे.

"मैडम पक्का बारिश होने वाली है "

काया ने घड़ी की ओर देखा 4बज चुके थे,, अभी घर दूर था, अब काया के चेहरे पर भी चिंता की लकीरें आ गई थी.

"मैडम जी एक शॉर्टकट है यहाँ से, बड़ा बाजार से नहीं जाना पड़ेगा सीधा अपने इलाके के रास्ते आ जायेंगे " बाबू ने सुझाव दिया.

"हहहब..... चलो.... रोहित भी आने वाले होंगे, कब इतना समय निकल गया काया को पता ही नहीं चला,

बाबू ने आगे जा कर एक्टिवा सडक से नीचे कच्चे रास्ते पर उतार दी.

रास्ता उबड़ खाबाड़ था,

"ये कैसा रास्ता है बाबू "

"पुराना रास्ता है मैडम जी, थोड़ा ख़राब है लेकिन जल्दी पहुंच जाते है " काया को बाबू के साथ होने मे कोई समस्या नहीं थी,

थोड़ी ही दूर एक हवेली सी नजर आने लगी.

"ये... इस सुनसान मे किसकी हवेली है बाबू " बाबू और काया एक कोठी के सामने से गुजर रहे थे

"कोई नचनिया है मैडम जी उसी की कोठी है "

"नचनिया मतलब ".

"मतलब नाच गाना करने वाली "

"एक नाच गाना करने वाली के पास ऐसी कोठी, ऐसा बंगाला?" काया हक्की बक्की थी गांव जैसे जगह पे ऐसी शानो शौकत देख कर

"मैडम जी गांव को अभी आपने जाना कहां है, कहते है किसी जमींदार ने उसके नाच से ख़ुश हो कर कोठी इनाम मे दे दी "

"गजब दिलदार लोग होते है "

बाबू और काया कोठी को पार कर गए थे.

गगगग ड़ड़ड़ड़ड़ड़...... गरज..... गारर्रज्ज्ज्ज्बज...... छान.... छन.... छापक.... टप टप टापाक.. कर कुछ बूंदर गिरने लगी.

"मैडम जी बारिश आ गई " बाबू जैसे घबरा गया हो.

बारिश शुरु हो गई थी, साथ ही बिजली कड़कने लगी थी, काया के चेहरे पे चिंता साफ देखी जा सकती थी.

"मैडम वो सामने.... सामने खंडर सा है वहाँ रुकते है "

कोठी से आगे चल कर ही एक खंडर सा ढांचा बना हुआ था.

काया और बाबू तुरंत भागते हुए उस खंडर के अहाते मे समा गए, आसमान बदलो से घिर गया था, ठंडी पानी भरी हवाएं काया और बाबू के जिस्म को झकझोड रही थी.



वही अंदर कोठी मे.

"बड़े बाबू... अब मौसम जाने लायक नहीं रहा, रुक जाइये ना "

शबाना रोहित के साथ उसके आगोश मे बिस्तर पर पड़ी हुई थी.



इसका मतलब रोहित अभी तक शबाना की कोठी पर ही था, लेकिन शबाना उसके आगोश मे क्या कर रही है ?

कोठी से कुछ ही दूर काया भी बाबू के साथ फसी पड़ी थी.

कैसे होंगी ये तूफानी रात? क्या गुल खिलायेगा ये मौसम?

दोनों पति पत्नी के जीवन मे एक नया अध्याय लिखने जा रहा है ये तूफान.
दोनों ही पास है लेकिन बहुत दूर.
बने रहिये तूफान जारी है....
Dono miyan bibi apna apna sukun dundh rahe hain.
 
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दिन के 2 बजने को आये थे.
"ये लीजिये बड़े बाबू पानी " शबाना पानी का गिलास लिए सामने झुकी हुई थी.
शबाना की पूरी छाती बाहर को आ गई थी, रोहित इतनी पास से इस पहाड़ी को देख रहा था की हरी धमनिया तक दिख जा रही थी..
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जब से वो यहाँ आया था उसके दिल को बार बार झटके लग रहे थे, जांघो कर बीच गुदगुदी सी चल रही थी.
"क्या हुआ बड़े बाबू? पीजिये ना" शबाना ने अपनी बात पर जोर दिया.
"वो... वो... हाँ हाँ..." रोहित ने झट से गिलास हाथ मे पकड़ इधर उधर देखने लगा, जयश्री चोरी पकड़ी गई हो.
"आप भी बड़े बाबू " शबाना सामने ही बैठ गई.
गोरा जिस्म चमक रहा था, दुप्पटा तो नाममात्र का था बदन पर, छोटी सी चोली ने कसे मादक स्तन, उसके नीचे सपाट पेट, ऐसा हुस्न देख के तो रोहित दौड़ पड़ता था.
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लेकिन आज जैसे सांप सूंघ गया था उसे.
हलक सुख गया था, गुलप गुलप.... गट.. गट.... गटक... कर रोहित ने पूरा पानी एक बार मे ही हलक मे उडेल लिया, गले मे तो क्या गया पूरा पानी शर्ट को भिगोता पैंट के ऊपरी हिस्से पर जा गिरा.
"उफ्फ्फ.... वो... वो.. माफ़ करना " रोहित अभी कुछ करता की
"ये.. ये क्या किया बड़े बाबू " शबाना के कोमल हाथ रोहित की जांघो के बीच पानी को हटाने लगे.
ये सब अकस्मात हुआ, रोहित को समझ नहीं आ रहा था क्या करे.
"आ... आप आप रहने दीजिये " रोहित ने खुद को छुड़ाना चाहा.
लेकिन अब तक बहुत देर हो गई थू, शबाना के हाथ रोहित के नाजुक अंग को महसूस करने लगे थे.
रोहित आखिर मर्द ही था कब तक खुद को रोकता, उसके लंड मे तनाव आने लगा, उसका कामुक अंग आजादी माँग रहा था.
शबाना खूब खेली खाई औरत थी, उसके हाथ पानी को कबका साफ कर चुके थे, अब जो कर रहे थे उस हरकत से कोई भी मर्द सोचने समझने की स्थिति मे नहीं रहता..
शबाना लगातार रोहित के लंड को पैंट के ऊपर से टटोल राही थी, एक कदकपान सा महसूस कर रही थी.
"बड़े बाबू.... ये ये.. क्या?"
"वो.. वो... आअह्ह्ह......" रोहित क्या जवाब देता उसकी तो घिघी बंध गई थी.
शबाना के हाथ लगातार रोहित के लंड पर चल रहे थे.
"इस्स्स. स.... शबाना जी नहीं... रहने दीजिये "
शबाना मर्दो की कमजोरी अच्छे से जानती थी, उसके हाथ नहीं रुके.
बाहर खिड़की से आती ठंडी रूहानी हवा, शबाना जैसी कामुक महिला और क्या चाहिए एक मर्द को
"आअह्ह्..... इससससस...." बड़े बाबू आप बहुत सुन्दर है.
शबाना के दिल के अल्फाज़ उसके मुँह मे आ गए थे.
शबाना के लिए भी ये पहला मौका था जब उसके सामने कोई कामदेव सरिखा मर्द खड़ा था, गोरा सुन्दर, सुतवा नैन नक्श, जिस्म से उठती भीनी भीनी खुसबू, मांस की कहीं भी अधिकता नहीं.
कौन कहता है पुरुषो मे सुंदरता नहीं होती
आज शबाना से पूछिए, जिसके नसीब मे गांव के बूढ़े खूसट जमींदार ही थे, खुर्दारे मेले हाथ उसके जिस्म को नोंचते थे, खसोटते थे,
सभी का एकमात्र लक्ष्य शबाना को रोंद देना था.
लेकिन रोहित अलग था, उसकी ऐसी कोई चाहत नहीं थी, वो शबाना को इज़्ज़त दे रहा था, महिला होने का हक़ दे रह था.
बस यही वो चीज थी जो शबाना को रोहित की ओर खिंच ले गई.
"आअह्ह्हम्म्म.... शबाना जी बस रहने दे " रोहित के हाथ खुद ही शबाना के सर को सहला रहे थे.
मुँह मे ना थी लेकिन हाथ तो हाँ मे थे.
"चरररररर..... जिप्प्पपप्प..... की आवाज़ उस कमरे मे गूंज गई.
रोहित ने नीचे देखा, शबाना की उंगलियां उसकी पैंट की जीप को खिंच नीचे ले आई थी.
बस अब ये खेल रोहित के हक़ से बाहर चला गया था, मर्द petrol की आग की तरह होता है, चिंगारी देखी नहीं की तुरंत आग पकड़ लेता है.
रोहित के जिस्म ने भी वो आग पकड़ ली थी, अब सब मंजूर था.. सही गलत बनाया किसने, गधा है वो जो इस हसीन पलो को सही गलत मे तोलता है.
"बड़े बाबू.... इस्स्स...." शबाना की आंखे ऊपर रोहित की आँखों मे देख रही थी जैसे इज़ाज़त मांग रही हो.
"उउउफ्फ्फ...." रोहित कुछ ना बोला बस आंखे बंद कर ली.
काम कला मे निपुड़ शबाना इस भाषा को खूब समझती थी.
शबाना के हाथ पैंट की खुली जीप मे घुस गए, इधर उधर कुछ टाटोला जैसे सांप के बिल मे सांप पकड़ रही हो.
मेहनत तुरंत रंग लाइ.... 2पल मे ही रोहित का गिरा चिट्टा लंड शबाना के हाथो मे झटके खा रह था.
"उउउउफ्फ्फ..... आअह्ह्ह..." शबाना जी
"ईईस्स्स..... बड़े बाबू कितना गर्म है "
शबाना ने एक मुस्कुराहट से रोहित की ओर देखा, उस मुस्कान मे कुछ भेद था, उपहास तो बिल्कुल भी ना था.
कारण था रोहित का लंड पूरी तरह से शबाना की मुट्ठी मे छुपा हुआ था.
"बड़े बाबू का छोटा बाबू " शबाना बढ़बढ़ाती मुस्कुरा दी.
रोहित इन सब से अनजान सिर्फ नीचे देख रहा था, शबाना के करतब का मुरीद हुए जा रहा था.
शबाना के हाथ एक दो बार आगे पीछे हुए, रोहित के लंड की चमड़ी खुलती चली गई,
एक साफ सुथरी सुगंध से भारी गुलाबी सी आकृति बाहर आ गई.
शबाना ने ना जाने कितने मर्दो के अंग को सहलाया था, सब गंदे काले घटिया, पसीने से भरे.
लेकिन यहाँ एक सुख था, एक महक थी... शबाना उस महक कॉनर पाना चाहती थी,
उसका जिस्म आगे को सरक गया.
"ससससस.... ये... ये... ये क्या कर रही है आप " रोहित चित्कार उठा.
शबाना जैसे बाहरी हो गई थी, उसकी नाक रोहित के गुलाबी अंग के पास जा टिकी "ससससन्नणीयफ़्फ़्फ़..... आएगीह्ह्ह्हह्हब.... सससन्ननीफ्फ..... शबाना ने एक जोरदार सांस खिंच ली.
एक मदहोशी ने शबाना को आज घेर लिया था, इस खेल की पुरानी खिलाडी थी लेकिन आज कच्चे खिलाडी से हारने को तैयार बैठी थी.
शबाना ने पल भर मे अपना जीवन खंघाल लिया, लेकिन ऐसा सुख ऐसी खुसबू उसे याद ना आई.
शबाना के लाल होंठ खुलते चले गए, रोहित का गुलाबी हिस्सा एक बार मे उस काम पीपासु औरत के मुँह मे समा गया.
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"आअह्ह्ह....... नहीं... शबाना जी.. आअह्ह्ह....." रोहित की गर्दन पीछे को जा लटकी, हाथ शबाना के बालो पर कसते चले गए .
रोहित को ये सुख काया से कभी नहीं मिला था, या फिर ये इस सुख से अनजान था.
"गुलप..... पच... पच...." शबाना की जीभ मुँह ने आये मेहमान के स्वागत मे लग गई, रोहित के लंड के छेड़ को कुरेदने लगी, सहलाने लगी.
"आअह्ह्ह.... उउउफ्फ्फ....." रोहित नशे मे था काम नशे मे आंखे पलट गई थी.
शबाना के होंठ रोहित के लंड पर आगे को सरकने लगे, एक गोरा मर्दाना अंग लाल होंठो मे धसता जा रहा था.
अंदर और अंदर.... शबाना के होंठ रोहित के टट्टो से जा लगे, रोहित का पूरा लंड शबाना के मुँह मे था.
"ईईस्स्स..... आअह्ह्ह...." रोहित को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ज्वालामुखी मे उसका लंड घुस गया है.
शबाना के होंठ वापस पीछे की ओर जाने लगे, मुँह के अंदर जीभ मेहमान को सहला रही थी.
"आआहहहह..... शबाना जी पच पच... पचाक......" रोहित के शहरी खूबसूरत लंड ने जवाब दे दिया.
वीर्य की 5,6 बून्द शबाना के मुँह मे धाय धाय मर गिर गई, रोहित किसी कटे पेड़ की तरह पीछे पलग पर जा गिरा,.
खेल ख़त्म.... शबाना के मुँह का मेहमान भाग गया था जैसे.
वो हैरान थी ये क्या हुआ, कब हुआ? आखिर हुआ क्यों?. अभी तो सुख मिला था, अभी तो राहत आई थी.
शबाना का जलता जिस्म ठंडा पड़ गया.

"हमफ.... हमफ़्फ़्फ़... हंफ.... रोहित सामने बिस्तर पर चित लेता हांफ रहा था.
शायद उसकी जिंदगी मे वो ऐसे नहीं झाड़ा था कभी.
"बड़े.... बाबू.... बाबू... बड़े बाबू.... आप ठीक है ना " शबाना ने कच्चे खिलाडी को आउट कर दिया था
"हाँ... हाँ.... हंफ....".
" रुकिए मै कुछ लाती हूँ आपके लिए " शबाना आपने होंठो को पोछते हुए बाहर को चल दी.
एक सन्नाटा सा पसर गया था की तभी.... चाडक्य..... गगगगगगररररर...... रिमझिम..... बाहर बिजली कड़क उठी, सोंधी सी खुसबू रोहित के नाथूनो को भिगोने लगी.
ये सबूत था बाहर बारिश होबे लगी है, इस सोंधी खुसबू ने रोहित के जिस्म मे प्राण फूँक दिए.
आखिर बारिश जिसे पसंद नहीं होती, कमरे की खिड़की से पानी की बुँदे अंदर छींटे मार रही थी,
रोहित के कदम उस खिड़की को बंद करने चल पड़े.
खिड़की के पास पहुंच उसे बंद करना चाहा लेकिन अनायास ही उसकी नजर कोठी के सामने मैन सडक पर जा पड़ी, बरसात जोरो ओर थी.
एक लड़का लड़की गाड़ी पर बैठे कोठी के सामने से चले जा रहे थे.
रोहित के चेहरे पे मुस्कान आ गई, "ये बारिश का मौसम भी ना " रोहित ने खिड़की बंद कर दी.

ठीक उसी समय
काया और बाबू कोठी के सामने से गुजर रहे थे
" बाबू ये हवेली किसकी है"
"है कोई नचनिया, कहते है किसी जमींदार ने ख़ुश हो कर इसे दे दी "
कककककअअअअडडडररर....... धड़ाम..... रिमझिम.....
एकाएक तेज़ बिजली कड़की, बारिश होने लगी.
काया उस गर्जाना के डर से बाबू से जा चिपकी....
"जल्दी कहीं रोको बारिश आ गई " काया सहम गई थी.
वो कोठी के मैन गेट के सामने से गुजर रहे थे, काया की नजर कोठी पर ही थी.
बारिश तेज़ थी, कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था,
काया की सरसराती नजर कोठी के ऊपर कमरे पे जा टिकी, किसी ने खुली खिड़की को बंद कर दिया था.
"ये बारिश भी ना " काया के मुँह से स्वतः ही निकल गया.
बाबू और काया कोठी को पार कर गए थे.
बारिश शुरु हो गई थी, साथ ही बिजली कड़कने लगी थी, काया के चेहरे पे चिंता साफ देखी जा सकती थी.
"मैडम वो सामने.... सामने खंडर सा है वहाँ रुकते है "
कोठी से आगे चल कर ही एक खंडर सा ढांचा बना हुआ था.
काया और बाबू तुरंत भागते हुए उस खंडर के अहाते मे समा गए, आसमान बदलो से घिर गया था, ठंडी पानी भरी हवाएं काया और बाबू के जिस्म को झकझोड रही थी.
दोनों के जिस्म पानी से सरोबर थे.
 
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andypndy

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समय की कमी की वजह से बहुत छोटा अपडेट दे रहा हूँ.
माफ़ कीजियेगा.. 🫣
लेकिन वादा है नेक्स्ट अपडेट जोरदार होगा 👍
 
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