mast episode.... Andy bhai.... Kaya dheere dheere kayyum ki aur khich rhai haiअपडेट -14![]()
काया अपने चरम सूखा का आनंद लिए नींद के आगोश मे समा चुकी थी, शरीर का पानी चुत के रास्ते बह गया था.
रात 3बजे
बाहर खिड़की से आती ठंडी हवा के थपेड़े काया के जिस्म को सूखा चुके थे, ठण्ड से रोये खड़े हुए थे.
एक दम से काया की आंखे खुल गई, जैसे कोई सपना देखा हो.
आस पास देखा रोहित सोया हुआ था, उसके जिस्म के ऊपरी हिस्से पे ब्लाउज विधमान था,
काया ने घड़ी पर नजर डाली 3बजे थे, अभी जो थोड़ी देर पहले हुआ वो उसके जहन मे दौड़ गया, उसकी नजरें अपने पैर के पंजो पर गई, जिसमे कुछ समय पहले कय्यूम का लंड फसा पड़ा था, वो पल याद आते ही काया के जिस्म ने एक झुंझुनी सी ली.
पेट मे गुदगुदी सी होने लगी.
काया के चेहरे पे कोई पछतावा जैसा कुछ नहीं था, एक नजर रोहित की ओर देखा " ये मैंने क्या कर दिया, रोहित जग जाते तो " काया ने जो किया उसकी फ़िक्र नहीं थी, रोहित जग जाता तो ये चिंता थी.
चोर ऐसे ही सोचता है, कहीं पकड़ा जाता तो.
काया का गला सूखता सा महसूस हुआ, जांघो के बीच गीलेपन ने उसे थोड़ा असहज कर दिया था.
काया बिस्तर से उठ हाल मे आ गई, सामने अँधेरे मे कय्यूम सोया पड़ा था.
काया उस विशालकाय आकृति को देख मुस्कुरा दी, अँधेरे मे सिर्फ उसकी महसूस हो रहा था की कोई लेता है,
काया ने किचन मे जा कर फ्रिज खोल दिया.
पानी की बोत्तल निकाल पिने ही वाली थी की गड़ब.... थूक निगल लिया, हाथ से बोत्तल छूटने वाली थी,
सामने कय्यूम सोफे पर बिलकुल नग्न पड़ा था, बालो से भरा कला जिस्म सफ़ेद सोफे पर फ्रिज की हलकी रौशनी मे चमक रहा था.
काया के किये हैरानी उसका शरीर नहीं था वो तो पहले भी देख चुकी थी.
उसकी नजर मे कय्यूम की जांघो के बीच झूलता उसका काला मोटा लंड चुभ रहा था.
कदकपन पानी था, एक तरफ लुड़का पड़ा था लेकिन भयानक दिख रह था.![]()
काया का जिस्म मे एक बार फिर से खलबली सी मचने लगी, मर्दाने अंग को देखने की चाहत पनपने लगी.
उस वक़्त वो हिम्मत नहीं कर पाई थी, कैसे करती पराया मर्द कय्यूम उसे ही देख रहा था, लेकिन यहाँ कौन है, रोहित अंदर सो रहा है, कय्यूम खुद सो रहा है.
काया को वो अंग पास से देखना था, ऐसा मौका फिर नहीं मिलेगा,
काया हाथ मे बोत्तल पकडे कय्यूम की ओर बढ़ चली. पीछे फ्रिज का दरवाजा कहीं अटक गया मालूम होता था रौशनी अभी भी आ रही थी.
काया का दिल धाड धाड़ कर रहा था, कदम कांप रहे थे कभी पीछे हटते तो दो कदम आगे बढ़ जाते.
काया सोफे तक का फैसला तय कर चुकी थी.
सामने सोफे पर विशालकाय शरीर का मालिक कय्यूम बिछा हुआ था.
काया धीरे से कय्यूम के पैरो की तरफ बैठ गई.
जैसे कोई बायोलॉजी का छात्र आज किसी जीव की रचना का बारीकी से मुयाना करने बैठा हो.
काया के सामने कय्यूम का नसो से भरा काला, बड़ा और मोटा लंड लुड़का पड़ा था.
"बबब.... बाप रे.. ये... ये... इतना बड़ा " काया ने दूर से ही हथेली को पूरा खोल लंड के सामंतर रख नापा.![]()
मुरछीत लंड भी उसकी हथेली से बड़ा था.
काया का दिमाग़ सांय सांय करने लगा, ऐसा भी होता है, ऐसा तो बाबू का भी नहीं था.
ये तो रोहित से भी कहीं ज्यादा बड़ा है, आज की रात ही उसने रोहित और कय्यूम दोनों के लंड देखे थे,
तो तुलना तो लाज़मी ही थी, रोहित का तो इसके सामने कुछ भी नहीं.
काया को वो दृश्य याद आ गया जब वो इसी भयानक लंड को अपने पैरो मे कैद कर निचोड़ रही थी.
"ईईस्स्स...... एक सिस्कारी सी काया के मुँह से फुट पड़ी.
काया ने चेहरा नजदीक ले जा के देखा, लंड के आगे गुलाबी सा मोटा आकर का कुछ था जिस के ऊपर एक छोटा सा लम्बाई मे चीरा लगा था.
कितनी अच्छी छात्रा थी काया कितनी बारीकी से समझ रही थी, तभी उसकी नजर लाल लकीर पर पड़ी, को की पुरे लंड पर ऊपर ज़े नीचे की तरफ बनी हुई थी, लगता था जैसे खून सुख के जम गया है.
काया को ध्यान आया उसके पैरो के नाख़ून कय्यूम के लंड पर खरोच मारते हुए गए थे, काया के हाथ आगे बड़े वो टटोल लेना चाहती थी, वजन, मोटाई नापने की इच्छा जाग्रत होने लगी...
की ठप्प...... थप्पक... की आवाज़ के साथ हॉल मे अंधेरा छा गया, काया ने पीछे मूड देखा फ्रिज का दरवाजा बंद हो गया था.
काया का जिस्म इस अँधेरे से उजाले मे आ गया," क्या करने जा रही थी मै.... नहीं.. नहीं... ये गलत है, वो खुद से ऐसा कैसे कर सकती है... नहीं.... " काया पानी की बोत्तल उठा बैडरूम की ओर चल दी.
सुबह 7 बजे, day -6
ट्रिन... ट्रिंग... ट्रिंग....
रोहित के फ़ोन की घंटी बज उठी,
"हहह.... हेलो... हेल्लो " रोहित ने आधी नींद मे जवाब दिया.
काया की नींद भी मोबाइल बजने से खुल गई थी.
"साब... साब मै मकसूद, आज नहीं आ पाउँगा "
"क्यों... क्या हुआ?"
"साब बीबी को मायके छोड़ ने जाना है"
"अरे भाई तो फिर मै बैंक कैसे जाऊंगा?" रोहित की नींद पूरी तरह से फुर्र... हो गई थी.
"पांडे को कार दे दी है वो आ जायेगें आपको लेने "
"ठ... ठीक है कट...."फ़ोन काट दिया.
"आ गया होश बड़े बाबू को " काया ने तुरंत ही गुस्सा करते हुए कहां.
"वो... वो.... सॉरी काया... पता नहीं कल क्या हो गया था ससस... सोरी "
क्या खाक सॉरी पूरी रात ख़राब कर दी अपने, खाना भी नहीं खाया "
"मुझे तो याद नहीं यार कुछ, सॉरी, वैसे मै घर कैसे आया?"
"वो... कय्यूम.... कककक.... कक्क..." काया को जैसे ही कय्यूम का ध्यान आया उसके हलक मे जबान फस गई.
तुरंत बिस्तर से खड़ी हो गई, भागते हुए बाहर हॉल मे आई,
उसे याद आया कय्यूम नंगा सोफे पर सो रहा है.
लेकिन सोफा खाली था " कहां गया.... " काया भागती हुई बाथरूम की तरफ भागी, बाथरूम तो खुला है कोई नहीं है, ककय्यूम के कपडे भी नहीं है, काया फिर से हॉल मे आई, कय्यूम के सफ़ेद जूते नहीं थे.
"उउउफ्फ्फ.... हुउउम.. फ़फ़फ़फ़...." लगता है चले गए,
काया का सीना डर के मारे फटने को था, चेहरे की हवाइया उड़ गई थी, उसे हुए तोते वापस आ चुके थे.
साथ ही रोहित भी.
"क्या हुआ काया? भागी क्यों? " सवाल लाजमी था
"कक्क.... कुछ नहीं मुझे लगा दरवाजे पर कोई है " काया साफ झूठ बोल गई थी.
"बताओ ना मै यहाँ आया कैसे?"
" कय्यूम जी आये थे छोड़ने, छोड़ के चले गए " काया जवाब देती किचन की ओर चल दी.
"भले आदमी है लोग फालतू की बेकार कहते है उसे, तुमने कुछ चाय नाश्ता करवाया या नहीं उन्हें "
जवाब मे काया सिर्फ मुस्कुरा के रह गई.
रोहित बाथरूम की ओर चल पड़ा और काया किचन मे खाना बनाने लगी.
थोड़ी देर बाद डाइनिंग टेबल पर.
"अच्छा सुनो ना रोहित मुझे कुछ सामान लेने है "
"हाँ तो जाओ, घूमो फिरो थोड़ा मन लगेगा "
"तो आप कार भेज देंगे आज?"
"ओह... सॉरी आज मकसूद नहीं है"
"फिर?"
"फिर क्या देख लेना कोई ऑटो वगैरह "
"यहाँ मिलेंगे ऑटो?"
"क्यों नहीं... काफ़ी चलते है, पांडे को बोल के भिजवा दूंगा "
"हाँ भई बड़े बाबू है आप तो" काया ने चुटकी लेते हुए कहां.
"तुम्हारे तो पति हूँ मेरी जान "
रोहित बैंक के लिए निकल गया,.
काया के सामने बहुत काम थे.
*********
आज सुबह से ही बादल लगे हुए थे,
"आज मौसम अजीब हुआ है पांडे " कार मे बैठे रोहित मे पांडे को कहां
"हाँ साब लगता है कहीं बारिश हो रही है, इसलिए यहाँ भी मौसम बिगड़ रहा है"
रोहित बैंक पहुंच चूका था
"सुमित क्या प्रोग्रेस है, कुछ लोन रिकवर हुआ "
"बिलकुल सर, कुछ कुछ तो आया है, लेकिन जो मोटा माल है वहाँ से नहीं आया है "
"मतलब?'"
" मतलब शबाना जी का, कय्यूम का? "
"कय्यूम तो दे देगा, उसने कहां है... इस शबाना का कुछ करना पड़ेगा "
"पांडे.... पांडे..." रोहित ने पांडे को आवाज़ लगाई
"जी सर...?" पांडे तुरंत हाजिर हुआ
"कार की चाबी तो मै काम से हो के आता हूँ "
"आप चला लेंगे? मै चलता हूँ ना?"
"कार चालानी आती है मुझे, अब रास्ते भी पता है मै चला जाऊंगा, वैसे ही बैंक मे स्टाफ की कमी है "
रोहित कार ले चल पड़ा शबाना की कोठी की तरफ.
इधर काया घर के कामों मे व्यस्त थी.
टिंग टोंग.....
"अभी कौन आया?" काया ने दरवाजा खोल दिया
"नमस्ते मैडम जी "
"बाबू तुम...." काया के चेहरे पे मुस्कान आ गई.
बाबू उसे अच्छा लगता था.
"कल से मिली नहीं ना?" बाबू के लहजे मे शरारत थी
"क्या नहीं मिली " काया पलट कर सोफे पर जा बैठी.
साथ ही बाबू भी
" आप मैडम.... "
"अच्छा तो मुझसे मिलने आये हो?"
"हाँ... मैंने सोचा कोई काम हो, इस बिल्डिंग मे आप ही प्यार से बात करती है मुझसे "
" काम तो कोई नहीं है"
" अच्छा " बाबू का मुँह उतर गया, जैसे यहाँ आने का मकसद ही ख़त्म हो गया हो, बाबू पलटने को हुआ ही की.
"अच्छा बाबू तुम किसी ऑटो वाले को जानते हो?"
"हाँ... क्यों... कहां जाना है?"
"मार्किट कुछ सामान लेने है "
"आप इतनी बड़ी मेमसाब ऑटो से जाएगी, "
"इसमें क्या है?" काया जमीन से जुडी महिला थी, कोई घमंड नहीं था उसमे.
हहहहहहम.... बाबू सोचने लगा
"ऑटो तो क्या.... स्कूटी से चले "
"स्कूटी से चले का क्या मतलब?"
"मतलब स्कूटी का इंतेज़ाम है मेरे पास, ऑटो वाला धक्के खिलता ले जायेगा, मै भी दिन भर यहाँ मक्खी ही मरता हूँ, आपके काम आ जाऊंगा, आपकी सेवा कर लूंगा "
बाबू ने बड़ी ही मासूमियत से बात रखी..
"हाहाहाहा.... बाबू तुम भी ना, अच्छा ठीक है सेवा का मौका देती हूँ
"आप तैयार हो जाइये एक घंटे मे नीचे मिलता हूँ "
बाबू तुरंत निकल लिया कहीं काया का मूड ना बदल जाये
काया मुस्कुराती बाथरूम की ओर चल दी.
करीब एक घंटे बाद
रोहित शबाना की कोठी के बाहर खड़ा था, " आज हिसाब कर के रहूँगा "
दूसरी और काया लेगी कुर्ते मे बिल्डिंग के बाहर खड़ी थी, पिंक लेगी मे काया की जाँघे कहर ढा रही थी, फ्लावर प्रिंट कुरता काया के जिस्म पर कसा हुआ था, स्तन अपने आकर को बयां कर रहे थे.
पिंक दुप्पटा गले मे अटका पड़ा था,![]()
आसमान मे बादल छाये हुए थे, धुप बिलकुल भी नहीं थी, जो की काया के लिए सुखद था.
सामने से बाबू एक्टिवा लिए, दाँत निपोर चला आ रहा था.
"चले मैडम?" आँखों पर काला चश्मा चढ़ाये बाबू काया के सामने आ चूका था.
"अरे वाह बड़े हैंडसम लग रहे हो" काया स्कूटी पर जा बैठी.
काया की जाँघे बाबू की कमर से जा लगी.
"आप भी कम हैंडसम नहींअगर रही मैडम "
"हाहाहाहा.... बुद्धू लड़कियों को ब्यूटीफुल बोलते है,"
"वो... वो... सॉरी मैडम आप सुंदर लग रही है"
काया और बाबू का हसीं मज़ाक भरा सफर शुरु हो गया था.
पति पत्नी दोनों ही इस मौसम मे कुछ नया सीखेंगे?
रोहित लोन रिकवर कर पायेगा? इतिहास रहा है जहाँ हुश्न हो वहाँ मर्द पैसे लुटा के ही आता है ले कर नहीं.
बने रहिये कथा जारी है....
uuff kya baat hai maza aa gaya .... kya coincidence bethaya hai... dono husband wife aas paas hi hain.. aur dono ki zindagi change hone wali hai....अपडेट -16
दिन के 2 बजने को आये थे.
"ये लीजिये बड़े बाबू पानी " शबाना पानी का गिलास लिए सामने झुकी हुई थी.
शबाना की पूरी छाती बाहर को आ गई थी, रोहित इतनी पास से इस पहाड़ी को देख रहा था की हरी धमनिया तक दिख जा रही थी..![]()
जब से वो यहाँ आया था उसके दिल को बार बार झटके लग रहे थे, जांघो कर बीच गुदगुदी सी चल रही थी.
"क्या हुआ बड़े बाबू? पीजिये ना" शबाना ने अपनी बात पर जोर दिया.
"वो... वो... हाँ हाँ..." रोहित ने झट से गिलास हाथ मे पकड़ इधर उधर देखने लगा, जयश्री चोरी पकड़ी गई हो.
"आप भी बड़े बाबू " शबाना सामने ही बैठ गई.
गोरा जिस्म चमक रहा था, दुप्पटा तो नाममात्र का था बदन पर, छोटी सी चोली ने कसे मादक स्तन, उसके नीचे सपाट पेट, ऐसा हुस्न देख के तो रोहित दौड़ पड़ता था.![]()
लेकिन आज जैसे सांप सूंघ गया था उसे.
हलक सुख गया था, गुलप गुलप.... गट.. गट.... गटक... कर रोहित ने पूरा पानी एक बार मे ही हलक मे उडेल लिया, गले मे तो क्या गया पूरा पानी शर्ट को भिगोता पैंट के ऊपरी हिस्से पर जा गिरा.
"उफ्फ्फ.... वो... वो.. माफ़ करना " रोहित अभी कुछ करता की
"ये.. ये क्या किया बड़े बाबू " शबाना के कोमल हाथ रोहित की जांघो के बीच पानी को हटाने लगे.
ये सब अकस्मात हुआ, रोहित को समझ नहीं आ रहा था क्या करे.
"आ... आप आप रहने दीजिये " रोहित ने खुद को छुड़ाना चाहा.
लेकिन अब तक बहुत देर हो गई थू, शबाना के हाथ रोहित के नाजुक अंग को महसूस करने लगे थे.
रोहित आखिर मर्द ही था कब तक खुद को रोकता, उसके लंड मे तनाव आने लगा, उसका कामुक अंग आजादी माँग रहा था.
शबाना खूब खेली खाई औरत थी, उसके हाथ पानी को कबका साफ कर चुके थे, अब जो कर रहे थे उस हरकत से कोई भी मर्द सोचने समझने की स्थिति मे नहीं रहता..
शबाना लगातार रोहित के लंड को पैंट के ऊपर से टटोल राही थी, एक कदकपान सा महसूस कर रही थी.
"बड़े बाबू.... ये ये.. क्या?"
"वो.. वो... आअह्ह्ह......" रोहित क्या जवाब देता उसकी तो घिघी बंध गई थी.
शबाना के हाथ लगातार रोहित के लंड पर चल रहे थे.
"इस्स्स. स.... शबाना जी नहीं... रहने दीजिये "
शबाना मर्दो की कमजोरी अच्छे से जानती थी, उसके हाथ नहीं रुके.
बाहर खिड़की से आती ठंडी रूहानी हवा, शबाना जैसी कामुक महिला और क्या चाहिए एक मर्द को
"आअह्ह्..... इससससस...." बड़े बाबू आप बहुत सुन्दर है.
शबाना के दिल के अल्फाज़ उसके मुँह मे आ गए थे.
शबाना के लिए भी ये पहला मौका था जब उसके सामने कोई कामदेव सरिखा मर्द खड़ा था, गोरा सुन्दर, सुतवा नैन नक्श, जिस्म से उठती भीनी भीनी खुसबू, मांस की कहीं भी अधिकता नहीं.
कौन कहता है पुरुषो मे सुंदरता नहीं होती
आज शबाना से पूछिए, जिसके नसीब मे गांव के बूढ़े खूसट जमींदार ही थे, खुर्दारे मेले हाथ उसके जिस्म को नोंचते थे, खसोटते थे,
सभी का एकमात्र लक्ष्य शबाना को रोंद देना था.
लेकिन रोहित अलग था, उसकी ऐसी कोई चाहत नहीं थी, वो शबाना को इज़्ज़त दे रहा था, महिला होने का हक़ दे रह था.
बस यही वो चीज थी जो शबाना को रोहित की ओर खिंच ले गई.
"आअह्ह्हम्म्म.... शबाना जी बस रहने दे " रोहित के हाथ खुद ही शबाना के सर को सहला रहे थे.
मुँह मे ना थी लेकिन हाथ तो हाँ मे थे.
"चरररररर..... जिप्प्पपप्प..... की आवाज़ उस कमरे मे गूंज गई.
रोहित ने नीचे देखा, शबाना की उंगलियां उसकी पैंट की जीप को खिंच नीचे ले आई थी.
बस अब ये खेल रोहित के हक़ से बाहर चला गया था, मर्द petrol की आग की तरह होता है, चिंगारी देखी नहीं की तुरंत आग पकड़ लेता है.
रोहित के जिस्म ने भी वो आग पकड़ ली थी, अब सब मंजूर था.. सही गलत बनाया किसने, गधा है वो जो इस हसीन पलो को सही गलत मे तोलता है.
"बड़े बाबू.... इस्स्स...." शबाना की आंखे ऊपर रोहित की आँखों मे देख रही थी जैसे इज़ाज़त मांग रही हो.
"उउउफ्फ्फ...." रोहित कुछ ना बोला बस आंखे बंद कर ली.
काम कला मे निपुड़ शबाना इस भाषा को खूब समझती थी.
शबाना के हाथ पैंट की खुली जीप मे घुस गए, इधर उधर कुछ टाटोला जैसे सांप के बिल मे सांप पकड़ रही हो.
मेहनत तुरंत रंग लाइ.... 2पल मे ही रोहित का गिरा चिट्टा लंड शबाना के हाथो मे झटके खा रह था.
"उउउउफ्फ्फ..... आअह्ह्ह..." शबाना जी
"ईईस्स्स..... बड़े बाबू कितना गर्म है "
शबाना ने एक मुस्कुराहट से रोहित की ओर देखा, उस मुस्कान मे कुछ भेद था, उपहास तो बिल्कुल भी ना था.
कारण था रोहित का लंड पूरी तरह से शबाना की मुट्ठी मे छुपा हुआ था.
"बड़े बाबू का छोटा बाबू " शबाना बढ़बढ़ाती मुस्कुरा दी.
रोहित इन सब से अनजान सिर्फ नीचे देख रहा था, शबाना के करतब का मुरीद हुए जा रहा था.
शबाना के हाथ एक दो बार आगे पीछे हुए, रोहित के लंड की चमड़ी खुलती चली गई,
एक साफ सुथरी सुगंध से भारी गुलाबी सी आकृति बाहर आ गई.
शबाना ने ना जाने कितने मर्दो के अंग को सहलाया था, सब गंदे काले घटिया, पसीने से भरे.
लेकिन यहाँ एक सुख था, एक महक थी... शबाना उस महक कॉनर पाना चाहती थी,
उसका जिस्म आगे को सरक गया.
"ससससस.... ये... ये... ये क्या कर रही है आप " रोहित चित्कार उठा.
शबाना जैसे बाहरी हो गई थी, उसकी नाक रोहित के गुलाबी अंग के पास जा टिकी "ससससन्नणीयफ़्फ़्फ़..... आएगीह्ह्ह्हह्हब.... सससन्ननीफ्फ..... शबाना ने एक जोरदार सांस खिंच ली.
एक मदहोशी ने शबाना को आज घेर लिया था, इस खेल की पुरानी खिलाडी थी लेकिन आज कच्चे खिलाडी से हारने को तैयार बैठी थी.
शबाना ने पल भर मे अपना जीवन खंघाल लिया, लेकिन ऐसा सुख ऐसी खुसबू उसे याद ना आई.
शबाना के लाल होंठ खुलते चले गए, रोहित का गुलाबी हिस्सा एक बार मे उस काम पीपासु औरत के मुँह मे समा गया.![]()
"आअह्ह्ह....... नहीं... शबाना जी.. आअह्ह्ह....." रोहित की गर्दन पीछे को जा लटकी, हाथ शबाना के बालो पर कसते चले गए .
रोहित को ये सुख काया से कभी नहीं मिला था, या फिर ये इस सुख से अनजान था.
"गुलप..... पच... पच...." शबाना की जीभ मुँह ने आये मेहमान के स्वागत मे लग गई, रोहित के लंड के छेड़ को कुरेदने लगी, सहलाने लगी.
"आअह्ह्ह.... उउउफ्फ्फ....." रोहित नशे मे था काम नशे मे आंखे पलट गई थी.
शबाना के होंठ रोहित के लंड पर आगे को सरकने लगे, एक गोरा मर्दाना अंग लाल होंठो मे धसता जा रहा था.
अंदर और अंदर.... शबाना के होंठ रोहित के टट्टो से जा लगे, रोहित का पूरा लंड शबाना के मुँह मे था.
"ईईस्स्स..... आअह्ह्ह...." रोहित को ऐसा महसूस हो रहा था जैसे किसी ज्वालामुखी मे उसका लंड घुस गया है.
शबाना के होंठ वापस पीछे की ओर जाने लगे, मुँह के अंदर जीभ मेहमान को सहला रही थी.
"आआहहहह..... शबाना जी पच पच... पचाक......" रोहित के शहरी खूबसूरत लंड ने जवाब दे दिया.
वीर्य की 5,6 बून्द शबाना के मुँह मे धाय धाय मर गिर गई, रोहित किसी कटे पेड़ की तरह पीछे पलग पर जा गिरा,.
खेल ख़त्म.... शबाना के मुँह का मेहमान भाग गया था जैसे.
वो हैरान थी ये क्या हुआ, कब हुआ? आखिर हुआ क्यों?. अभी तो सुख मिला था, अभी तो राहत आई थी.
शबाना का जलता जिस्म ठंडा पड़ गया.
"हमफ.... हमफ़्फ़्फ़... हंफ.... रोहित सामने बिस्तर पर चित लेता हांफ रहा था.
शायद उसकी जिंदगी मे वो ऐसे नहीं झाड़ा था कभी.
"बड़े.... बाबू.... बाबू... बड़े बाबू.... आप ठीक है ना " शबाना ने कच्चे खिलाडी को आउट कर दिया था
"हाँ... हाँ.... हंफ....".
" रुकिए मै कुछ लाती हूँ आपके लिए " शबाना आपने होंठो को पोछते हुए बाहर को चल दी.
एक सन्नाटा सा पसर गया था की तभी.... चाडक्य..... गगगगगगररररर...... रिमझिम..... बाहर बिजली कड़क उठी, सोंधी सी खुसबू रोहित के नाथूनो को भिगोने लगी.
ये सबूत था बाहर बारिश होबे लगी है, इस सोंधी खुसबू ने रोहित के जिस्म मे प्राण फूँक दिए.
आखिर बारिश जिसे पसंद नहीं होती, कमरे की खिड़की से पानी की बुँदे अंदर छींटे मार रही थी,
रोहित के कदम उस खिड़की को बंद करने चल पड़े.
खिड़की के पास पहुंच उसे बंद करना चाहा लेकिन अनायास ही उसकी नजर कोठी के सामने मैन सडक पर जा पड़ी, बरसात जोरो ओर थी.
एक लड़का लड़की गाड़ी पर बैठे कोठी के सामने से चले जा रहे थे.
रोहित के चेहरे पे मुस्कान आ गई, "ये बारिश का मौसम भी ना " रोहित ने खिड़की बंद कर दी.
ठीक उसी समय
काया और बाबू कोठी के सामने से गुजर रहे थे
" बाबू ये हवेली किसकी है"
"है कोई नचनिया, कहते है किसी जमींदार ने ख़ुश हो कर इसे दे दी "
कककककअअअअडडडररर....... धड़ाम..... रिमझिम.....
एकाएक तेज़ बिजली कड़की, बारिश होने लगी.
काया उस गर्जाना के डर से बाबू से जा चिपकी....
"जल्दी कहीं रोको बारिश आ गई " काया सहम गई थी.
वो कोठी के मैन गेट के सामने से गुजर रहे थे, काया की नजर कोठी पर ही थी.
बारिश तेज़ थी, कुछ दिखाई नहीं पड़ रहा था,
काया की सरसराती नजर कोठी के ऊपर कमरे पे जा टिकी, किसी ने खुली खिड़की को बंद कर दिया था.
"ये बारिश भी ना " काया के मुँह से स्वतः ही निकल गया.
बाबू और काया कोठी को पार कर गए थे.
बारिश शुरु हो गई थी, साथ ही बिजली कड़कने लगी थी, काया के चेहरे पे चिंता साफ देखी जा सकती थी.
"मैडम वो सामने.... सामने खंडर सा है वहाँ रुकते है "
कोठी से आगे चल कर ही एक खंडर सा ढांचा बना हुआ था.
काया और बाबू तुरंत भागते हुए उस खंडर के अहाते मे समा गए, आसमान बदलो से घिर गया था, ठंडी पानी भरी हवाएं काया और बाबू के जिस्म को झकझोड रही थी.
दोनों के जिस्म पानी से सरोबर थे.
waaaahhh kayyum ne mast scene dikha diya kaya ko... aur uski chut mein bhi aag laga di....काया की माया, अपडेट -21
कय्यूम मे घर पार्टी अपने शबाब पर थी. रोहित सुमित हलक तक दारू पी चुके थे, मस्ती मे झूम रहे थे.
इस दौरान एक बार फिर से कय्यूम भी जीता.
"लो कय्यूम भाई हिचहम... अब आपकी बारी, रोहित ने गिलास भर दिया.
कय्यूम ने बिना हिचके गिलास उठा लिया, और पास बैठी काया की तरफ बड़ा दिया.
"न्नन्न... ना.... बाबा मै नहीं पीती " काया ने साफ मना कर दिया.
"क्यों नहीं मेरी हार जीत मे आप भी आधे की हिस्सेदार है, ये तो पीना पड़ेगा " कय्यूम ने काया का हाथ पकड़ गिलास पर रख दिया.. एक मजबूत खुर्दरे हाथ से काया का जिस्म कांप गया.
"क्या काया जी...
. कभी कभी चलता है " आरती ने फाॅर्स किया.
अब माहौल ही ऐसा बन गया था.
काया ने एक नजर रोहित की तरफ देखा, रोहित भी उसे हि देख रहा था, शायद वो उसकी दुविधा समझ गया था..
"हिचहहम्म्म..... पी लो यार एक से क्या होता है," पेग रोहित ने ही बनाया था
काया भी क्या करती "गट... गटक.... गटाक... करती एक बार मे उसने पूरी शराब से भरी ग्लास को हलक मे उडेल लिया.
याकककक..... खो... खो.... वेक...." काया को उबकाई आ गई, गाले से एक गर्म लावा निकल पेट को गर्म करने लगा.
"ये... ये... पानी " कय्यूम ने तुरंत पानी की बोत्तल काया को थमा दी.
"क्या काया जी आराम से पिने वाली चीज है, एक दम से अंदर लोगी तो तकलीफ होंगी ही ना "
"काया को सुनाई नहीं दे रहा था, उसे दिखाई दे रहा था, सिर्फ पानी से भरी बोत्तल....
गुलप.... गुलप.... करती काया ने आधी बोत्तल डकार ली और आधी गले के रास्ते बहती ब्लाउज मे समा गई.
"उउउफ्फ्फ..... कक्क.. कैसे पी लेते है आप लोग " काया को राहत महसूस हुई अंदर से भी और बाहर से भी.
वहाँ मौजूद सभी लोगो के चेहरे पे मुस्कान आ गई, काया की हड़बड़ी देख कर.
बस कय्यूम सकते मे बैठा था क्युकी उसकी नजर काया के भीगे ब्लाउज पर टिकी थी, जो की गीली हो के स्तन से चिपक गया था.. सामने से काया ढकी हुई थी लेकिन काया कय्यूम के साइड बैठी थी.
गिले स्तन कय्यूम साफ महसूस कर सकता था.
"अब नहीं पियूँगी " काया ने कय्यूम की तरफ देख शिकायती लहजे मे कहां.
लेकिन उसकी नजर तुरंत ही उसे चुभती सी महसूस हुई, इस चुभन मे एक गर्मी थी जो काया ने भी महसूस की.
आज पहली बार काया ने हिम्मत दिखाते हुए पल्लू को खींच एक साइड कर दिया, जिस से उसका एक स्तन साफ नजर आने लगा.
ना जाने क्यों आज उसे अपने जिस्म की नुमाइश मे मजा आ रहा था.
एक दो गेम और चले.
फिर... चलो खाना खाते है यार...
सुमित ने बीच मे बोला, हालांकि भूख तो सभी को लग आई थी.
"हम लोग लगा देते है" काया और आरती उठ खड़े हुए.
"हमारा यही ले आना " रोहित ने उठने की कोशिश की लेकिन बेकार गई
"आप लोग तो नॉनवेज खायेंगे ना हिचहह्म्म... सुमित ने भी समर्थन किया.
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कुछ ही मिनटों मे सुमित और रोहित पीछे सोफे पर ढेर पड़े थे, खाना आधा अधूरा ही पड़ा था.
रसोई के साइड डाइनिंग टेबल पर कय्यूम, काया और आरती जमे हुए थे.
"ये थोड़े कच्चे ही है " काया ने रोहित की तरफ इशारा करते हुए आरती को कहाँ.
"हो जाता है, ऐसे मौके पर"
लो जी... आ गया लाजवाब गोश्त.
कय्यूम बर्तन उठाये चला आ रहा रहा,
काया और आरती के नाथूने शानदार खुसबू से नबर गए.
"वाह... कय्यूम जी लजीज बनाया लगता है, " आरती के मुँह मे पानी आ गया.
काया का भी यही हाल था वो तो वैसे भी बरसो बाद नॉनवेज खाने वाली थी.
"लो ये जनाब तो लुढ़क लिए " कय्यूम की नजर सामने सुमित रोहित पर जा पड़ी.
सभी ने उन्हें इग्नोर किया, ध्यान खाने पर था.
कय्यूम मैन सीट पर जा बैठा, दाएं तरफ आरती और बाएँ तरफ काया बैठी थी.
अब इंतज़ार करना मुश्किल था, कय्यूम ने ढक्क्न खोल दिए.
उउफ्फ्फ... क्या खुसबू थी, कय्यूम ने तुरंत ही लेग पीस और कुछ गोश्त दोनों को परोस दिए.
"वाह कय्यूम जी पता नहीं था आप इतना अच्छा बनाते है " काया ने पहला निवाला खाते हुए कहाँ.
"कहाँ था ना ऊँगली चाटती रह जाओगी " कय्यूम ने ना जाने किस विचार से अपने हाथ की बीच वाली ऊँगली को मुँह मे चूसते हुए कहाँ.
काया सन्न सी रह गई, मोटी शोरबे मे डूबी ऊँगली, चटकारे ले के चाटी थी कय्यूम ने.
आरती ने भी तारीफ की, जवाब मे कय्यूम ने टेबल के नीचे से आरती की जांघो को सहला दिया.
"इस्स्स.... कय्यूम जी " आरती के मुँह से हलकी सिस्कारी सी निकली, आरती आज बरसो बाद जीवन मे नायपन महसूस कर रही थी, जिस्म मे कुलबुलाहत से महसूस कर रही थी.
एक इंसान को और क्या चाहिए प्यार और स्वादिष्ट भोजन.
आज सब कुछ यहाँ था.
कय्यूम के स्पर्श मे एक प्यार था, अजीब सी गर्मी थी.
आरती ने कय्यूम के हाथ को हटाने की जरा भी कोशिश नहीं की.
काया खाने मे बिजी थी, इधर कय्यूम और आरती की नजरें आपस मे मिल गई थी, आरती को कय्यूम का मर्दाना स्पर्श पसंद आ रहा था.
आरती की अमौखिक स्वस्कृति ने कय्यूम के हौसले बढ़ा दिए थे, कय्यूम का हाथ आरती की जांघो पर रेंगने लगा.
आरती के माथे पर पसीने की लेकिर साफ देखी जा सकती थी.
"लेग पीस को ऐसे खाया खाया जाता है काया जी " कय्यूम ने प्लेट से लेग पीस ले कर पूरा मुँह मे डाल सुडप कर चूस लिया सससससस.... ड़ड़ड़ड़ऊऊप्पप्प..... और फिर मुँह से निकाल काट खाया, जैसे कोई जानवर हो.
काया और आरती दोनों ये तरीका देख सन्न रह गए.
"मममम... ममममममई.... मुझसे तो नहीं होगा " काया जैसे तैसे बोल गई.
हालांकि कय्यूम की इस हरकत ने आरती का जिस्म वासना से भर दिया था, बोला काया को था लेकिन नजरें आरती पर थी.
कय्यूम ने बातो ही बातो मे आरती की साड़ी जांघो तक चढ़ा दी थी.
काया सामने ही थी फिर भी ना जाने क्यों आरती ने कोई विरोध नहीं किया, या फिर वो इस अवस्था मे थी ही नहीं.
"आप कुछ खा नहीं रही आरती जी " काया की आवाज़ से जैसे आरती सकपका गई.
"हहह... हाँ... हाँ.... खाती हूँ " आरती ने झट से लेग पीस उठा चूस किया.
"ऐसे नहीं थोड़ा और अच्छे से चूस के काटो आरती जी " कय्यूम ने आरती की जांघो को मसल दिया.
"आअह्ह्ह..... " अचानक हमले से आरती चिहूक सी गई.
काया ने सामने देख, आरती कय्यूम को चोर नजरों से देख रही थी.
काया को कुछ गड़बड़ जरूर लगी, लेकिन सब ठीक ही पाया
टेबल के नीचे आरती की हालात बुरी थी, कय्यूम के दबाव से आरती ने जाँघे फैला ली थी.
पैंटी किनारे लग गई थी, कय्यूम की उंगलियां आरती की चुत रुपी खजाने को टटोल रही थी, जैसे कय्यूम गर्माहट चेकनकर रहा हो..
आरती की चुत के भीतर ज्वालामुखी फटने की हालात मे था.
उउउफ्फ्फ.... आरती सर इधर उधर कर रही थी, हाथ से निवाला फिसल वापस प्लेट मे गिर गया था.
"कक्क.... क्या हुआ आरती " काया से आरती की हालात देखी नहीं जा रही थी.
आरती की तरफ से कोई जवाब नहीं था,
"आपको पता है काया जी, चिकन लेग पीस कैसे खाया जाता है " कय्यूम का सवाल अजीब था, तरीका अजीब था.
"कक्क... कैसे खाते है " काया की जबान लड़खड़ा गई थी, समझ आ गया था कुछ तो गड़बड़ है.
कय्यूम की उंगलियां लगातार आरती की जांघो के बीच चल रही थी, पैंटी के ऊपर से ही चुत को टटोल रही थी.
कय्यूम बहुत आगे बढ़ गया था, आरती की पूरी सहमति थी.
10 साल बाद वो मर्दाने अहसास को महसूस कर रही थी, सांसे चढ़ जा रही थू, माथे से पसीना चु रहा था,
स्तन भारी हो गए थे. कैसे और क्यों माना करती वो कय्यूम को, आरती को कोई फर्क नहीं था सामने काया बैठी है क्या सोचेगी.
बस ये जांघो के बीच जलती आग बुझनी चाहिए थी.
सामने काया हक्की बक्की उसे ही देखे जा रही रही.
कय्यूम ने प्लेट से लेग पीस उठा मुँह मे ठूस चूस लिया ससससद्धिप्प्पम... ससस......
काया सिर्फ कय्यूम को देखे जा रही थी, खाना तो कबका बंद हो गया था, दिल किसी अनहोनी की आशंका से कांप रहा था.
कय्यूम ने टेबल को धक्का दे आगे को सरका दिया.
काया और आरती के बीच से टेबल खिसकती चली गई.
काया सामने का नजारा देख हैरान रह गई, मुँह खुला का खुला रह गया, उसे इसकी उम्मीदवार कतई नहीं थी.
सामने आरती की साड़ी कमर टक चढ़ी हुई थी, मोटी मोटी चिकनी जाँघे सफ़ेद रौशनी मे चमक उठी,
जांघो के बीच गीली कच्छी बिल्कुल चुत से चिपकी पड़ी रही, जिसे कय्यूम की उंगलियां टटोल रही थी.
काया के होश फकता हो गए,
अभी काया और कुछ सोचती की, कय्यूम ने आरती की जांघो के किनारे ऊँगली डाल कच्छी को साइड कर दिया.
और दूसरे हाथ मे थामे चिकेन को... भछह्ह्ह्हहम्म्म..... फच.... च... च.... से आरती की खुली हुई जांघो के बीच दे मारा.
आआआहबह....... उउउउफ्फ्फ..... आउच....
काया और आरती दोनों एक साथ चीख पड़ी, आरती की चुत इस कद्र गीली थी की चिकन लेग पीस पूकककक....fachhhhhh.... करता आरती की चुत मे जा धसा.
आरती उत्तेजना अचानक हवस से चीख पड़ी, तो काया कय्यूम की हैवानियत देख चीख उठी.
"ऐसे भी चिकेन खाया जाता है काया जी " कय्यूम ने काया की ओर देख के कहाँ.
"उउउफ्फ्फ... कय्यूम जी आअह्ह्ह.... आउच..." कय्यूम ने लेग पीस का पिछला हिस्सा पकड़ लेग पीस को बाहर खिंचा, फिर वापस अंदर धकेल दिया.
काया के सामने सब कुछ हो रहा था, वो कभी आरती को देखती तो कभी कय्यूम को, तो कभी दर से पीछे सकते रोहित को..
काया का गला सुख गया था, किसी सपने की तरह सब कुछ अचानक से बदल गया था.
आरती तो आनंद के सातवे आसमान पे रही, उसे काया से कोई लेना देना नहीं था, आज रुकना नहीं था,
उसने जितना हो सकता था उतनी जाँघे खोल दी., गर्दन कुर्सी पर पीछे की ओर गिर गई.
धच... धच... पच.. पच.... करता कय्यूम लेग पीस चुत मे घुसेड़े जा रहा था, चुत के पानी के साथ साथ चिकेन पर लगा मसला बाहर को चु रहा था.
"देखा काया जी कैसे आरती जी चुत से लेग पीस खा रही है " कय्यूम बार बार काया को इस खेल मे शामिल कर ले रहा रहा.
काया भी कैसे इस दृश्य को इग्नोर करती, ऐसा कभी हो ही नहीं सकता था.. ये सब कुछ अनोखा था ना आज तक कभी देखा ना सुना.
काया का जिस्म भी उबलने लगा, कय्यूम का जानवर वाला रूप उसकी नाभि के नीचे गुदगुदी मचा रहा था.
"आरती जी कैसा लग रहा है ".
"इस्स्स.... कय्यूम जी अंदर.... जोर से..आअह्ह्ह... " आरती तड़प रही थी, मचल रही थी.
सारी शर्म लज्जा त्याग दी थी.
तभी कय्यूम कुर्सी से उतर घुटनो के बल जा बैठा, उसका मुँह आरती की जांघो के बीच जा धसा.
लप... लप... लापक... लपड़.... करता चुत से निकले मसाले को चाटने लगा,.
कय्यूम चुत का चाटोरा था, कभी पूरी चुत की लकीर को जीभ से सहलाता तो कभी चुत के ऊपरी हिस्से मे उभरे हुए तने को छेड़ने लगता, आरती की हालात बहुत बुरी थी,
सर इधर उधर पटक रही थी, कय्यूम के सर को अपनी चुत पर दबा रही थी, उत्तेजना की अधिकता ने आरती की सोचने समझने की शक्ति छीन ली थी.
सामने काया तो ये सब देख के पिघली जा रही थी.
कय्यूम आरती की चुत चाट रहा था लेकिन उसे लगा जैसे उसकी जांघो के बीच मुँह धसा दिया हो.
काया ने अपनी जांघो को भींच लिया, उसे वहाँ से हट जाना चाहिए था, लेकिन नहीं उसके पैरो मे जान नहीं थी वो कुर्सी पर ही जमीं रही.
जिस्म मे चीटिया रेंगने लगी.
"आअह्ह्ह... कय्यूम्म्म्म... उउउफ्फ्फ्फ़.... जोर. से " आरती के हाथ कय्यूम के सर पर जा टिके, कमर ऊपर उठ कय्यूम के मुँह मे घुसने लगी.
लगता था आज आरती पूरा उसे चुत मे डाल लेगी.
कय्यूम लपा लप आरती की चुत चाटे जा रहा था, चिकन लेग पीस चुत मे दनादन चल रहा था.
फच... फच... फच... पुछक... पिच... पुच... की आवाज़ गूंजने लगी थी.
आरती कराह रही थी, सामने काया का जिस्म गर्मी से पसीने छोड़ रहा था.
चुत कुलबुलाने लगी थी.
दिल मे जलन सी हो रही थी आरती से, कय्यूम की छुवन उसका लंड काया के सामने तेरने लगा.
ना जाने क्यों कय्यूम का काला मोटा लंड देखने की उसकी इच्छा होने लगी, लेकिन कय्यूम आरती की चुत चाटने मे बिजी था.
काया को याद आया बाबू ने बताया था लड़के चुत चाटते है.
लेकिन आज वो खुद लाइव देख रही थी.
आअह्ह्ह.... इस्स्स.... क्क्युयुम....... इस्स्स... आउच.. उउफ्फ्फ...
मेरा आने वाला है उउउफड़...
आरती गांड उठा उठा के कुर्सी पर पटकने लगी, कय्यूम के सर को चुत मे घुसेड़ने लगी, चुत का छल्ला लेग पीस पर जकड़ने लगा.
आआहहहह.... कय्यूम... जी फाचक.... फच... पिच... फचाकककक..... से आरती की चुत ने पानी की बौछार छोड़ दी.
बौछार इतनी तेज़ थी की, लेग पीस झटके से बाहर फिकता हुआ चला गया, कय्यूम के चेहरा पूरा चुत रस से सन गया.
10 सालो बाद वो इस कद्र झाड़ी थी,
फच... पिच... पिच... करती चुत बहे जा रही थी.
सामने काया को काटो तो खून नहीं, उसकी चुत से भी पानी छूटने को तैयार था, काया ने जा जांघो के बीच हाथ डाल अपनी चुत को जबरजस्त तरीके से भींच लिया.
उउउफ्फ्फ.... उईस्स्स...... काया के मुँह से सिस्कारी फुट पड़ी.
उसने जैसे तैसे खुद की चुत को बहने से रोक लिया था.
समाने आरती हांफ रही थी, जिस्म ढीला पढ़ गया था, जाँघे पूरी तरह से फैली हुई थी,
गीली चिकनी चुत साफ चमक रही थी.
हमफ़्फ़्फ़... हमफ़्फ़्फ़....
"देखा काया जी ऐसे खाते है लेग पीस "
काया कुछ ना बोली उसकी आँखों मे सुलगते अँगारे थे, उसकी नजर कय्यूम की लुंगी मे बने उभार पर थी
उसकी कमजोरी मर्दाना अंग देखना फिर से उजागर होने लगी थी.
तो क्या कय्यूम यही रुकेगा?
काया भी शामिल होंगी इस खेल मे?
देखते है बने रहिये...
andypndy bhai maza aa gaya... bhai paseene chhut gaye.... haath dukh gaya..... bohot mast update likhi.... Kaya aur Aarti ke saath apni bhi haalat kharab ho gyi....अपडेट -22
आरती हांफ रही थी, काया अपनी जांघो के बीच हाथ दबाये खुद के स्खलन को रोकने की कोशिश मे थी.
काया ने अभी अभी जो दृश्य देखा था उसपर यकीन करना मुश्किल था, कहाँ उसे शंका थी की कय्यूम के साथ बहक ना जाये लेकिन यहाँ तो नजारा ही कुछ और था.
जिंदगी मे दो तन्हा लोगो ने साथ ढूंढ़ लिया था, मुक़ाम पा लिया था.
काया को उसके सभी सवालों का जवाब मिल गया था "अकेलापन कैसा होता है? जब अकेलेपन को साथ मिलता है तो वो ज्वालामुखी जैसे फट पड़ता है,
जैसे आरती फटी थी, वासना का ज्वार उसकी चुत से बह रहा था, आँखों मे लाल वासना के डोरे तैर रहे थे.
काया ने जैसे तैसे खुद पर काबू पाया, सांसे लम्बी चल रही थी.
कय्यूम वापस कुर्सी पर जम गया था, आरती और काया की नजरें कय्यूम पर ही थी.
शायद कय्यूम भी ये बात जानता था, कय्यूम के हाथो ने जबरजस्त हरकत की, उसकी कमर मे बँधी लुंगी की गाठ खोल दी.
गाठ का खुलाना था की लुंगी अपने अपने हिस्से से नीचे लुढ़क पड़ी.
ऊऊह्ह्ह्ह... उउउफ्फ्फ्फ़.... काया और आरती के मुँह खुले रह गए,
हालांकि काया पहले भी कय्यूम के लंड को देख चुकी थी, परन्तु आरती के लिए ये अजूबा था, आठवा अजूबा.
आरती के सुलगते जिस्म ने तुरंत आग पकड़ ली, दिल धधक उठा.
मुँह खुला रह गया, लार चुने लगी.
काया भी इस भाव से अछूती नहीं थी, उसकी कामना पूरी हुई,. सामने ही कय्यूम का मोटा काला लंड उजाले मे साफ दिख रह था, लंड पा नसो का जाल फैला हुआ था,
काया पहली बार साफ उजाले मे कय्यूम के लंड को देख रही थी.
आरती की दबी छुपी कामवासना जाग उठी, आरती ने एम नजर काय को देखा, काया का चेहरा लाल पड़ गया था, आरती ने वापस नजरें लंड पर जमा ली, उसके जिस्म ने हरकत की और हाथ बढ़ा कर कय्यूम के लंड को कब्जे मे ले लिया.
"आअह्ह्ह... आरती जी " कय्यूम सिसक उठा.
काया तो बस नजरें फाडे देखे जा रही थी, जो वो ना कर सकी वो आरती ने कर दिखाया, आरती कहीं ज्यादा आगे निकल चुकी थी निकलती भी क्यों ना उसका जिस्म ने 10 साल बाद कामवासना को महसूस किया था.
"अब मेरी बारी है " आरती धीरे धीरे लंड को सहलाने लगी, ऊपर उठा कर हैरानी से देखने लगी, उसे महसूस करने लगी,
लंड इतना बड़ा था की आरती के हाथ मे भी नहीं समा रह था, स्त्री का कोमल अहसास पा कर कय्यूम का लंड फुदक रहा था.
काया मन मामोस के रह गई, दिल कर रहा था वो भी जा कर पकड़ ले, लेकिन नहीं एक नजर उसने रोहित को देखा, दिल धाड़ धाड़ कर रहा था..
काया कुर्सी पर पीछे को जम गई, उसकी हथेली अभी भी अपनी जांघो के बीच थी.
"ऐसे क्या देख रही हो आरती जी, कभी देखा नहीं क्या?" कय्यूम ने बदहवास आरती को देख पूछा.
"10 साल हो गए मुझे विधवा हुए, मर्दाना अंग कैसा होता है भूल ही गई थी "
आरती के शब्दों मे लाचारी थी, बेबसी थी.
जिसे काया ने भी महसूस किया, ऐसा मौका आरती नहीं छोड़ सकती थी.
"काया जी आपने तो देखा होगा ना?" कय्यूम ने काया को छेड़ते हुए कहाँ.
वहाँ शर्म हया का कोई नामोनिशान नहीं था. हवस का खेल चल रहा था, जिसमे काया ने जैसे तैसे खुद को शामिल होने से बचाये रखा था .
"कककक... क्या... ननन.. नहीं... हैं... हाँ... देखा है " काया हड़बड़ा गई क्या कहाँ कुछ पता नहीं.
वो तो बस आरती की हरकत देखी जा रही थी.
कय्यूम बस मुस्कुरा कर रहा गया, नजरें काया पर ही थी, कय्यूम ने हाथ आरती के सर पर रख आगे को धकेल दिया.
आरती समझदार थी तुरंत अपने गुलाबी होंठो को खोल दिया.
गुलप..... पच.... करता कय्यूम का लंड आरती के मुँह ने आधा समा गया..
लंड गिला होने से एक कैसेली गंध वातावरण मे फ़ैल गई,.
सससन्नणीयफ्फ्फ्फफ्फ्फ़...... इस्स्स.... जिसे काया ने भरपूर नाक मे खिंच लिया,
जिस्म घन घना गया, पसीने की बुँदे लकीर बनाती नीचे की ओर चलने लगी.
काया जिस्म मे गर्मी सी महसूस करने लगी, नतीजा पल्लू कब सरक गया उसे होश ही नहीं.
पसीने से भीगे स्तन कय्यूम के सामने उजागर थे, ऊपर से कय्यूम के लंड पर रगड़ते आरती के कोमल मुलायम होंठ उसे जन्नत का आनन्द दे रहे थे.
आअह्ह्ह..... इस्स्स.... आरती जी.
चाप... चाप.... गुलुप... गुलुप... पच... पच.... करती आरती लंड चूसे जा रही थी, चाटे जा रही थी.
आरती पागल हो गई थी, होश मे नहीं थी,
कय्यूम का लंड पूरी तरह से थूक और लार से सन गया था, जिसे सुपड कर आरती चूस लेती फिर वापस कय्यूम के लंड पर थूक देती.
10 साल पहले आरती ने जो सीखा था आज उसका प्रदर्शन कर रही थी.
काया का दिल बल्लियाँ उछाल रहा था, जलन हो रही थी आरती से, मन करता की आरती को हटा खुद आ जाये, लेकिन पैर जाम थे.
काया की हथेली खुद से हरकत कर रही थी, जांघो के बीच, जाँघे थोड़ी खुल गई थी.
खरबूजे को देख खरबूजा रंग बदल रहा था.
"आअह्ह्ह..... आरती जी क्या चूसती हो आप, कहाँ से सीखा "
आरति की तरफ से कोई जवाब नहीं, या फिर उसने सुना ही नहीं उसने सिर्फ नजर उठा कय्यूम को देख लिया.
आरती तारीफ सुन और भी उत्तेजित हो गई, और मुँह से लंड को बाहर निकाल कय्यूम के भारी टट्टो पर जमा दिए,
कय्यूम के पसीने से भरे गंदे टट्टे आरती चाट रही थी, चूस रही थी.
काला मेल थूक मे घुल नीचे गिर रहा था.
थोड़ी ही देर मे कय्यूम का लंड चमक रहा रहा, लंड के चारो तरफ थूक लगा हुआ था.
आरती की सारी कमर तक चढ़ी हुई थी, जिसके बीच हाथ डाले आरती अपनी चुत को मसल रही थी.
ये गर्मी अब सब्र लायक नहीं बची थी.
"काया जी आप भी बड़े बाबू के साथ ऐसे ही करती होंगी "कय्यूम काया की हरकतो को देख रहा था लेकिन एक बार भी उसने काया को निमंत्रण नहीं दिया ना कोई जबरजस्ती की.
"ककम.... क्या...?"
"आप भी लंड चूसती है?"
काया का दिल बैठ गया, परसो ही तो उसने पहली बार बाबू का लंड चूसा था, लेकिन रोहित के साथ ऐसा कभी कुछ नहीं किया
"ननन... नहीं इस्स्स..... " आखिर काया के मुँह से सच निकला.
उसका जिस्म जड़ हो गया था, बस सुन रही थी देख रही थी.
"आरती जी ऐसे ही और अंदर... लंड चूसावाने का मजा ही अलग है, क्यों आरती जी "
आरती ने बस गर्दन हिला दी, उसके लास वक़्त नहीं था, वो कय्यूम के लंड को निगलने मे बिजी थी.
कय्यूम ने हाथ आगे बड़ा आरती के ब्लाउज खोलने लगा टक.. टक... टक... एक एक करते बटन खुलने लगे.
हर बटन के साथ आरती के बड़े सुडोल स्तन बाहर को कूदने लगे.
काया सांस थामे देख रही थी, उसके हाथ तेज़ तेज़ चुत को मसल रहे थे.
कुछ ही पालो मे आरती का ब्लाउज उसके जिस्म से अलग हो चूका था, कय्यूम के हाथो मे आरती के सुडोल स्तन मचल रहे थे, जिन्हे अच्छे से रगड़ रहा था.
ईईस्स्स...... आअह्ह्ह... गु... गु... गयम... आरती हवस के शिखर पे थी, कभी भी झड़ सकती थी.
"काया जी अच्छे से कर लीजिये ना "
कय्यूम की आवाज़ से काया शर्मिंड़ा हो गई, उसे अहसास हुआ वो क्या कर रही है..
"कक्क... क्या?"
"अच्छे से मसल लीजिए, खुद को रोकना नहीं चाहिए "
कय्यूम की नजरें काया पर ही थी, लेकिन आरती के स्तन को मसल मसल के लाल कर दिया.
काया सकपका कर रह गई, लेकिन जांघो के बीच से हाथ नहीं हटाया, ये संभव भी नहीं था, काया खुद कामवासना से घिरी हुई थी, बस आरती उस से एक कदम आगे निकल गई थी.
काया ने भी अपनी जाँघे खोल ली, उउउडफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... इस्स्स.... साड़ी के ऊपर से ही क्या की ऊँगली चुत की लकीर को टटोलने लगी, जिसे देख कय्यूम मुस्कुरा दिया.
"बस आरती जी मुझे भी सेवा का अवसर दीजिये" कय्यूम ने आरती को पकड़ खड़ा कर दिया, आरती का ऊपरी भाग बिल्कुल नंगा था, स्तन थूक और पसीने से चमक रहे थे,.
आरती के चेहरे पे हैरानी थी "आखिर उसे रोका क्यों "
काया भी सांस रोके चुत दबाये देखे जा रही थी.
कय्यूम ने साड़ी का कोना पकड़ खिंच किया, आरती की साड़ी सरसरती खुलती चली गई, जबाब मे कय्यूम ने अपनी पसीने से भीगी बनियान उतार फ़ेंकी.
गठिला, भारी जिस्म दोनों काम पिपशु औरतों के सामने जगमगा गया.
क्या तबियत का मालिक था कय्यूम, एक दम मर्दाना जिस्म, पसीने की कड़क महक किसी का भी दिमाग़ ख़राब कर दे, पसीने से भीगी छाती, आरती काया उस मर्द को निहारती रह गई.
कय्यूम के हाथ आगे बड़े, हाथ मे आरती के पेटीकोट क नाड़ा था.
सससससरररर...... से पेटीकोट जमीन पर धारासाई हो गया,
चुस्त गद्दाराया जिस्म मात्र एक कच्छी मे खड़ा था, कच्छी भी अपनी जगह नहीं थी, जाँघ के किसी कोने. मे सिमटी पड़ी थी.
आरती को बस इसी पल की इच्छा थी, जिस चीज के लिए उसका जिस्म 10सालो से तड़प रहा था.
कय्यूम ने देर ना करते हुए, आरति को पीछे की तरफ धक्का दे दिया, पीछे लगी डाइनिंग टेबल पर आरती की मोटी गांड जा टिकी,
कय्यूम के खुर्दारे कठोर हाथो ने आरती के स्तनो को थाम लिया. और पीछे को धकेलने लगे.
आरती भी इशारा समझ गई थी, उसकी पीठ डाइनिंग टेबल से चिपकती चली गई, और सामने काया की सांस चढ़ती गई.
टेबल पर लेटते ही आरती की टांगे हवा मे झूल गई, जिसे कय्यूम के मजबूत हाथो ने तुरंत थाम लिया, और फैला दिया.
ईईस्स्स..... काया के मुँह से आह फुट पड़ी, उसकी ऊँगली साड़ी के ऊपर से ही चुत मे घुसने का प्रयास करने लगी.
ये सिस्कारी कय्यूम के कानो तक भी बकायादा पहुंची, कय्यूम ने एक नजर काया को देखा, उसकी जाँघे फ़ैल गई थी.
कय्यूम ने काया को देखते हुए अपनी कमर को आएगी धकेल दिया, कय्यूम का भारीभरकम लंड आरती की चुत को छेड़ता ऊपर की तरफ निकल गया.
आआहहहह.... कय्यूम जी... उउउफ्फ्फ... आरती सिसका उठी.
कय्यूम के टट्टे आरती की चुत से टकरा गए, लंड ठीक नाभि के ऊपर जा कर टिका था.
सफ़ेद रौशनी मे ये नजारा भयानक था.
आरती ने सर उठा के देखा उठती गिरती साँसो के साथ नाभि पर रखा लंड भी ऊपर नीचे हो रहा था.
"धीरे.... से... इस्स्स... आरती बस इतना ही बोल सकी, उसका सर पीछे को हो गया, आंखे बंद हो गई बस अब 10 साल के सूखे का अंत होने ही वाला था, बारिश होने वाली थी.
काया भी कहाँ खुद को इस सुखद नज़ारे से दूर कर पाई, गर्दन ऊपर कर उसे भी वही दिखा,
"उउउफ्फ्फ.... कैसे जायेगा ये अंदर " काया खुद के लिए ये कल्पना कर रही थी.
आरती की जगह वो खुद को महसूस कर रही थी, पल्लू तो कबका नीचे गिर गया था,
साड़ी भी घुटने के ऊपर जा चढ़ी थी.
सामने कय्यूम ने वापस से लंड को आरती की चुत के मुहने पर टिका दिया.
इस्स्स्स.... आरती और काया दोनों ही इंतज़ार मे थे.
लेकिन कय्यूम ने दोनों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया, वो अपने मोटे लंड को आरती की चुत पर घिसने लगा, जैसे बकरी हलाल करने से पहले औजार मे धार लगा रह हो.
आरती उत्तेजना के मारे मरी जा रही थी, गांड को ऊपर नीचे कर कय्यूम के लंड को लेने की कोशिश करती लेकिन प्रयास विफल हो रहे थे.
"काया जी कैसा लग रहा है " कय्यूम ने सवाल काया से पूछा.
उउउफ्फ्फ..... अंदर कय्यूम जी " जवान आरती मे दिया.
काया क्या बोलती, उसे कुछ सुनाई ही नहीं दे रहा था, बस दिख रहा था कय्यूम का काला मोटा मर्दाना लंड.
कय्यूम ने इस बार आरती को जाँघे अच्छे से फैला दी, चुत पूरी तरह से खुल गई थी.
कय्यूम ने हाथ से अपने लंड को पकड़ दबाव डालना शुरू किया.
पछह्ह्ह्हह्हब........ आआआहहहह..... उउउफ्फ्फ्फ़..... पच करता कय्यूम का मोटा लंड आरती की गीली चुत को चिरता घुसता चला गया..
आरती के जबडे भींचते चले गए, मुँह खल गया, आअह्ह्ह.... गूंज गई लेकिन सुनने वाला कौन था,
रोहित सुमित पीछे सोये पड़े थे.
बाजु मे कुर्सी पर काया जैसे वहाँ थी ही नहीं, काया का हाथ साड़ी के अंदर था वो अपनी चुत को कुरेद रही थी, मसल रही थी.
महसूस कर रही थी कय्यूम के लंड को.
कय्यूम ने काया की और देखते हुए, लंड पीछे खिंचा, फिर आगे धकेल दिया पुच.... फ़क..... आअह्ह्ह... आउच.... इस बार और अंदर गया.
काया की ऊँगली भी इस बार अंदर तक गई.
आआहहब..... कय्यूम.... आखिर काया के मुँह से कय्यूम का नाम निकला ही, दोनों की नजरें मिल गई.
कय्यूम ने लंड बाहर खींचा, काया ने भी ऊँगली बाहर खींची...
पच से कय्यूम ने वापस लंड अंदर धकेल दिया, काया ने भी ऊँगली को उसी रफ़्तार से अपनी चुत के अंदर दे मारा.
जैसे कय्यूम का लंड और काया की ऊँगली जुड़ गए थे.
धच... धच.... फच.... फच.... फाचक.... करता कय्यूम दनादन आरती की चुत मे लंड पेलने लगा, काया भी अपनी ऊँगली से खुद की चुत को चोदने लगी.
क्या हो गया था काया को, ऐसी तो ना थी वो, ऐसा उसने पहली बार किया था.
आअह्ह्ह.... आराम से.... कय्यूम जी " आरती सिसक रही थी, कराह रही थी.
इधर कय्यूम लगा हुआ था पच... पच... पच... धच... धच....
आअह्ह्ह.... ऊफ्फफ्फ्फ़... ओह्ह्ह.... आउच....
आरती और काया दोनों की चुत पानी से भर गई थी आवाज़ कर रही थी,
काया का पति इन सब से अनजान, खर्राटे भर रहा था, काया ने तो उस ओर देखा तक नहीं.
रोहित जग भी जाता तो काया रूकती नहीं, पागलो की तरह ऊँगली से चुत को कुरेद रही थी.
और ले.... कितनी टाइट चुत है तेरी " कय्यूम चोद आरती को रहा था लेकिन देख काया को रहा था
आरती आंखे बंद किये जीवन का सुख भोग रही थी.
कय्यूम धक्के दिए जा रहा था, पूरा लंड ना जाने कहाँ जा कर समा जा रह था आरती की चुत मे,, जब भी अंदर जाता आरती गांड उठा कर और अंदर लील लेती,.
पच... पच.. पच.... काया जी, कय्यूम ने दो ऊँगली का इशारा किया.
काया शायद समझ गई थी, काया ने अपनी दो ऊँगली को एक साथ जोड़ा, और पच... चच्चाक्स.... करती दोनों ऊँगली चुत मे जा धसी.
आआआह्हःब..... इसससस... काया की आंखे चढ़ गई, दो ऊँगली से चुत पूरी भर गई, एक ऊँगली से दो ऊँगली मे ज्यादा मजा है,
काया को महसूस हुआ की लंड का मोटा होना क्यों जरुरी है.
धच... धच... पच... पच.... काया कय्यूम के लंड के साथ ताल से ताल मिलाने लगी...
आआहहब.... कय्यूम जी जोर से आअह्ह्हम्म... और अंदर.... उउउफ्फ्फ... फाड़ दो मेरी चुत... आअह्ह्ह.. उउउफ्फ्फ्फ़... 10 सालो से लंड नहीं लिया मैंने.
आअह्ह्ह... मारो और अंदर मारो...
कय्यूम समझ गया था आरती झड़ने वाली है.
कय्यूम ने लंड बाहर निकाल लिया, फटता जवालमुखी रुक गया, काया की उंगलियां भी रुक गई.
आरती ने सर उठा देखा जैसे कय्यूम ने गुनाह कर दिया हो.
"नीचे आइये, आरती जी अंदर तक जायेगा, "कय्यूम ने आरती को टेबल से उठा जमीन पर घुटनो के बल बैठा आगे को झुका दिया, आरती तुरंत समझ गई कय्यूम क्या चाहता है.
आरती घोड़ी बन गई, उसकी गांड काया के ठीक सामने थी,
काया ने देखा आरती की चुत पूरी खुल गई है, गांड और चुत की दरार चिपचिपी और पूरी गीली पड़ी है.
कय्यूम काया के सामने ही खड़ा था उसका लंड काया के मुँह के नजदीक था लंड से उठती काम गंध की भीनी भीनी महक काया को महसूस हो रही थी.
काया का मन था की पकड़ ले इस लंड को, गुलप कर ले मुँह मे फसा ले,
शायद पकड़ ही लेती, लेकिन कय्यूम मुड़ गया आरती की गांड पर झुकता चला गया,
कय्यूम का लंड आरती की गांड की दरार मे सरकता चुत तक जा पहुंच... और... गुलप... पच... से पूरा का पूरा आरती की चुत मे जा धसा.
आआआहहब्ब.... आउच.... उउउफ्फ्फ.... पच... ओच... पच... फच... फच.... चुदाई फिर शुरू हो गई थी.
काया ये अभूतपूर्व नजारा पीछे से देख रही थी, पच... पच... थाड... थाड... करता कय्यूम का लंड पूरा चुत मे समा जाता, टट्टे चुत के दाने से जा टकराते, जाँघ से जाँघ एक दूसरे से भीड़ जाती.
आरती हर धक्के के साथ मादक अवस्था मे चीख रही थी,.
पीछे काया ने साड़ी कमर तक चढ़ा ली थी, पैंटी घुटनो पर आ गई थी, जाँघे पूरी तरह से फ़ैल गई थी.
पच... दग़ाच... धच... करती दो उंगलियां चुत को चोदे जा रही थी.
आअह्ह्ह.... इस्स्स.... इससे.... उउउफ्फ्फ... जबड़ा भींचे काया खुद की चुत मार रही थी, ये अनोखा था पहली बार था, सुखी जीवन की पहली सीढ़ी थी.
सामने कय्यूम किसी राक्षस की तरह आरती की गांड पर चढ़ा लंड अंदर तज पेले जा रह था.
आअहब्ब.... मै... गई... उउउफ.... आउच... आअह्ह्ह....
फच... फच... फच... फाचक... फूररररर.... करती आरती झड़ने लगी, चुत से पेशाब छूटने लगा,
पच... पच...पच... लेकिन कय्यूम रुका नहीं, आरती की गर्दन पकड़ फर्श पर टिका दी.
और जोर जोर से पेलने लगा हंफ... हंफ... हंफ....
आअ....ह्ह्उउउफ्फ्फ.म... आउच.... आअह्ह्ह..आअह्ह्हह्ह्ह्ह... रुक जाइये रुक जाइये... हंफ... हंफ....
आरती चिल्ला रही थी.
"बहुत चुदने का शौक है ना ले चुद " फच... फच... फच... उउउफ्फ्फ.... आउच... आअह्ह्ह....
कय्यूम दनादन चुत मारे जा रहा था.
पीछे काया कय्यूम का जानवरपना देख उत्तेजित हुई जा रही थी, खुद की चुत फाड़ देने पे उतारू थी.
आअह्ह्ह.... और जोर से... अंदर कय्यूम और अंदर आह्ह.... उउउफ्फ्फ... काया कय्यूम को आरती की चुत मारने मे लिए उकसा रही थी, जैसे आरती नहीं वो खुद घोड़ी बनी चुद रही हो.
काया ने उत्तेजना मे अपनी तीसरी ऊँगली को भी घुसाने का प्रयास किया, ऊँगली आधी धसी ही थी की फ़फ़फ़फ़रररर..... फाचक... पच... पच... करती काया की चुत झड़ने लगी.
आअह्ह्ह... हंफ.... हमफ.... कय्यूम जी.
आअह्ह्ह.... काया का सर पीछे कुर्सी पर टिक गया, जिस्म झटके खाने लगा,
सामने कय्यूम भी चरम सीमा पर था आअह्ह्... धच... पच... पच.... फाचक.... फच... करता कय्यूम ने अपना सारा वीर्य आरती की चुत मे ही छोड़ दिया.
गरम गरम वीर्य को आरती संभाल ना सकी, एक बार फिर भलभला के झड़ने लगी, इस बार उसके जिस्म मे ताकत नहीं बची थी, धड़ाम से फर्श पर फ़ैल गई.
हमफ़्फ़्फ़.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़..... आरती की आंखे बंद होने लगी.
कय्यूम ने खुद को गिरने से बचा लिया था, पुककककक.... से लंड चुत से घिसटता बाहर आ गया था.
पीछे मुड़ के देखा काया बेसुध कुर्सी पर पड़ी हुई थी, चुत मे तीन उंगलियां धसी हुई थी, पूरा जिस्म पसीने से नहाया हुआ था.
कय्यूम ने पास पड़ी लुंगी उठाई, और कस ली, चेहरे पे एक शातिर मुस्कान थी.
सोफे पर रोहित और सुमित के सामने जा बैठा.
दारू की बोत्तल आधी बची हुई थी. गट.. गट... गट..... कय्यूम ने बोत्तल मुँह से लगा ली.
चारो तरफ सन्नाटा था, रात जवानी को पार कर गई थी,
ये रात हवस की गवाह बन गई थी.
पार्टी की रात समाप्त हो गई थी, बाहर सूरज की लालिमा क्षितिज पर छाने लगी थी
इस हादसे के बाद काया के जीवन मे क्या बदलाव आएगा?
बने रहिये कहानी जारी है.
Wow superUuufff..... Wow andy bhai kya gajab likha hai,
Blog par kahani thodi si alag hai, yaha alag koi pics bhi nahi, aisa julm kyu sarkar?
Ek baat manni padegi is pure forum par apse achi wife story koi likh hi nahin sakta.
Aurat ki man ki baat likh dete ho aap
Agla update jald hi dena, ab ruka nahi ja raha.