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andypndy

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Day-4


आज सुबह से ही काया कुछ बैचेन थी, शरीर मे ऐठन सी महसूस हो रही थी, रात कुछ अच्छी नहीं बीती, करवट बदतली काया की आँखों मे एक उदासी सी छाई हुई थी.रोहित बैंक जा चूका था.

काया एक ढीली टीशर्ट और पजामा पहने घर के काम को अंजाम दे रही थी,

स्तन की खूबसूरती उसके निप्पल टीशर्ट मे अपना वजूद बयां कर रहे थे.

पजामा जांघो के बीच इस कदर धस गया था की त्रिभुज की आकृति साफ देखिब्ज़ा सकती थी.

काम करती काया की नजर बार बात दिवार पर टंगी घड़ी पर चली जा रही थी, जैसे किसी का इंतेज़ार हो उसे.

11बजने को आये थे.

काया कुछ परेशान सी मालूम होती दिख रही थी.

"आया क्यों नहीं " काया मन ही मन बुदबूदा बैठी की तभी

टिंग टोंग.... फ्लैट की घंटी बज उठी.

काया के चेहरे से उदासी तुरंत हवा हो गई, आँखों मे एक चमक आ गई, काया लगभग भागती हुई सी गेट खोलने गई, तेज़ चलने से काया के स्तन उछल उछल के गिर जा रहे थे.

काया घर मे ब्रा पहनना पसंद करती ही नहीं थी, उसके स्तनों को वैसे भी किसी सपोर्ट की जरुरत जान नहीं पडती थी.
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पल भर मे ही गेट खुल गया "बबबब.... बाबू तुम?" काया ने जबरजस्त हैरानी का अभिनय किया, लेकिन चेहरे की स्माइल बता रही थी ये इंतज़ार, ये उतावलापन बाबू के लिए ही था.

"ननन... नमस्ते मैडम जी " बाबू काया की मौजूदा हालत देख हकला गया, शायद काया दिखाना भी यही चाहती हो.

उसने अपने बदन की उभरी खूबसूरती को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया.

"नमस्ते आओ अंदर " काया ने दरवाजा लगा दिया.

"बोलो कोई काम है?"

"मममम.... मैडम... वो... वो... आपकी कच्छी " बाबू ने हथेली आगे कर दी, वो सीधा मुद्दे पर आ खड़ा हुआ.

उसके हाथ मे काया की ब्लैक महँगी पैंटी कैद थी.

"उफ्फ्फ्फ़.... ये पैंटी बार बार तुम्हारे पास कैसे पहुंच जाती है," काया जैसे बहुत हैरान थी.

"ये वाली कल से भी ज्यादा अच्छी थी मैडम जी "

काया ने झट से बाबू से अपनी पैंटी ले ली " हट पागल.... पैंटी तो पैंटी होती है इसमें क्या अंतर "

"वो नहीं.... मैडम जी इस पैंटी मे ज्यादा खुसबू थी " बाबू मासूमियत से बोल गया

काया हैरान थी बाबू कैसे इतनी आसानी से बोल देता है सबकुछ " तुमने फिर मेरी पैंटी सुंघी? " काया ने दिखावटी गुस्सा जताया.

"वो.... वो.... सॉरी मैडम जी लेकिन रहा नहीं गया "

"अच्छा ऐसा क्या है इसमें?" काया ने आज पैंटी वही टेबल पर रख दी और खुद सोफे पर जा बैठी, बाबू सामने ही खड़ा था

"मुझे क्या पता, बस एक खुसबू आती है तो सूंघने का मन करता है " बाबू की नजरें शर्म से नीचे हो गई लेकिन नीचे का नजारा और भी कातिलाना था, काया के भारी स्तन टीशर्ट मे उजागर थे, एक महीन गोरी लकीर खिंच गई थी.

"अच्छा तुम्हारी इस हरकत के बारे मे किसी को बता दू तो " काया ने आंख बड़ी करते हुए कहाँ.

"ससससस... सॉरी मैडम वो मै... वो मै.." बाबू डर के मारे कांप गया,

"हाहाहाहाहा..... बुद्धू " काया जोरदार हस पड़ी, काया को बाबू की हालत देख मजा आ रहा था.

इंसान अपने से कमजोर छोटे इंसान के मजे ले ही लेता है, काया ने भी वही किया,

"अच्छा तुम्हे कैसा लगता है?" काया के मन मे सवाल थे जिसे वो जानना चाहती थी,

"मममम... मतलब "

"तुम मेरी पैंटी क्यों सूंघते हो?, देखो बाबू सच बोलोगे तो किसी को नहीं कहूँगी "

"वो... वो.... मैडम आपकी पैंटी से एक अजीब सी गंध आती है जो मुझे बहुत पसंद है" बाबू ने सच्चे मन से जवाब दिया.

"बस सूंघते हो?" काया के जहन मे कल रात का दृश्य दौड़ गया, जब बाबू ने पैंटी को अपने लंड पे कस के बांध लिया था.

"जज्ज..... जी... जी. मैडम जी "

"झूठ....?"

"सच्ची.... मैडम जी " बाबू बात पे अड़ा रहा.

"कैसा लगता है ऐसा कर के?" काया ने गजब की हिम्मत दिखाते हुए बाबू से ये सवाल पूछा, इस एक सवाल ने ही काया के गले को सूखा दिया.

वो क्या कर रही थी? ऐसी तो नहीं थी काया? शायद उसके जिस्म की गर्मी उस से ऐसा करवा रही थी.

"ममममम...... मैडम... जी " बाबू हैरानी से काया को देखने लगा.

"बोलो "

जवाब मे बाबू ने तुरंत टेबल पर रखी पैंटी उठा ली और कस के सूंघ लिया ससससनणणनईईफ्फ्फ्फफ्फ्फ़........
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बाबू मे भी हिम्मत की कोई कमी नहीं थी.

"आअह्ह्ह....." बाबू ने पैंटी सुंघी थी, लेकिन काया को ऐसा लगा जैसे बाबू ने उसकी जांघो के बीच सर दे दिया हो.

"ये ये... क.. क.... क्या कर रहे हो बाबू?" काया के हलक से शब्द नहीं निकल रहे थे.

बाबू की हरकत ने उसके जिस्म मे कर्रेंट फैला दिया था.

ससससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़...... आअह्ह्ह.... मैडम जी.

काया ने आज तक ये नजारा दूर से, अँधेरे मे देखा था, उसका मज़ाक ये असर करेगा उसे पता नहीं था.

"नीचे रखो उसे बाबू " काया अपनी पैंटी लेने के लिए सोफे से उठने ही वाली थी की बाबू की जांघो की ओर नजर चली गई, जहाँ एक लम्बा सा उभार पनप आया था.

काया वापस से सोफे पे जा धसी.

आज ये उभार काया नजदीक से साफ देख रही थी, बाबू की जीन्स टाइट थी, वो बेलनाकार आकृति उसमे फसी हुई सी थी.
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"बबबब..... बाबू" काया सिर्फ इतना ही बोल सकी, मुँह खुला रह गया था उसका.

बाबू की हरकत ही ऐसी थी, " बाबू ने जबान निकाल पैंटी को चाट लिया, एक हाथ अपनी जांघो पर बने उभार पर जा लगा.

"आअह्ह्ह.... मैडम जी "

"छी... बाबू, कहाँ से सीखा ये गन्दा है छोडो " काया ने खुद को सँभालते हुए बाबू के हाथ से अपनी पैंटी छीन ली.

"ये क्या बदतमीज़ी है बाबू? ये क्या कर रहे थे तुम?" काया इस बार सही मे गुस्सा थी, हालंकि ये खेल उसी ने शुरू किया था उसका भड़कना साबित करता था वो इस खेल मे हार रही है.

"अपने ही तो पूछा था और क्या किया मेरी पैंटी के साथ, तो बता दिया "

बाबू के जवाब मे इतनी मासूमियत थी की काया का गुस्सा फुर्र हो गया, चेहरे पे मुस्कान ने जगह ले ली.

"हमारे गांव मे सब ऐसा ही करते है मैडम जी, मैंने भी किया अच्छा लगा तो चाट के देखा "

"छी... लेकिन गन्दा होता है ये सब "काया ने कभी किया नहीं था तो उसके लिए तो गन्दा ही था.

"जो हमें अच्छा लगता है वो कभी गन्दा नहीं होता मैडम जी " बाबू छोटा सा था लेकिन काया जैसे मादक शादीशुदा स्त्री को ज्ञान दे रहा था.

"हम्म्म्म.... काया सोच मे पड़ गई, बाबू सही ही तो कह रहा रहा.

"सबकी अपनी अपनी पसंद होती है मैडम जी, आपकी भी होंगी?"

"कककक.... क्या... ननन... नहीं... नहीं..." बाबू के सवाल से काया सकपका सी गई उसके पास कोई जवाब ही नहीं था होता भी कैसे इतनी बड़ी हो गई लेकिन कामकला का कोई ज्ञान ही नहीं है.

ये कल का लड़का बाबू गुरु बना बैठा था.

"कभी try कीजियेगा, हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखना चाहिए.

"ह्म्म्मम्म.... काया अभी बहुत ना जाने कहाँ खोई हुई थी.

"मैडम वो... टॉयलेट " काया ने उंगली से इशारा कर दिया.

बाबू उस ओर चल दिया, काया आज पाताल मे समा गई थी, उसे अहसास हो रहा था सम्भोग के मामले मे उसने आजतक किया क्या है? कुछ नहीं.

वो जानती क्या है? कुछ नहीं

रोहित की जो इच्छा वो उसकी इच्छा, क्या उसका कोई वजूद नहीं? क्या उसकी कोई पसंद नहीं?

भड़ड़ड़ड़आकककक..... धाड की आवाज़ से काया जैसे धरातल पे लौट आई हो.

उसे ध्यान आया बाबू बाथरूम गया है,.

ना जाने क्यों, किस मनोदशा मे काया बाथरूम की ओर चल दी देखा दरवाजा ठीक से लगा नहीं था, बाबू ने बस अंदर घुस दरवाजा पीछे धकेल दिया.

काया को वहा से चले जाना चाहिए था लेकिन नहीं आज उसे उसका जिस्म ऐसा करने से रोक रहा था,

उसके कदम पास आ गए, आंखे उस दरार मे घुस गई, नजरें कुछ तलाशने लगी.

अंदर जो नजारा था उसने काया की सांस को थाम लिया, बस दिल धड़क रहा था, बाकि वो किसी मूर्ति की तरह जाम थी, गला सुख चूका था.

अंदर बाबू ने तुरंत ही जीन्स नीचे कर दी, एक गोरा चिकना सा बड़ा लंड हवा मे झूल गया,
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बाबू आंख बंद किये मुँह ऊपर उठाये मूतने लगा..... ससससस.....पप्पीस्स्स.... एक तेज़ सफ़ेद पिली धार कामोड से टकराने लगी, पेशाब के छींटे उड़ने लगे.

काया हैरान थी एक 18साल के बच्चे का लंड ऐसा भी हो सकता है.

जैसे जैसे पेशाब निकलता जा रहा था वैसे वैसे बाबू का लंड छोटा होता जा रहा था.
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"उउउउफ्फ्फ्फ़...... अब कुछ आराम मिला "

बाहर काया पहली बार इतना साफ और पास से किसी गैर मर्द का लंड देख रही थी, अजी गैर छोड़िये उसने तो कभी रोहित के लंड को भी ठीक से नहीं देखा था, एरेक्ट अवस्था मे तो कभी नहीं.

क्युकी रोहित तुरंत काया पे चढ़ पड़ता था, ऐसा मौका कभी मिला ही नहीं, ना काया ने कभी सोचा.

जल्दी ही बाबू की पेशाब की धार मे बूंदो का रूप ले लिया, टप... टप... टप.... कर लास्ट बून्द टपक पड़ी.

इधर बाबू जीन्स उठाने को झुका, उधर काया के जिस्म ने एक झटका लिया, पैर पुरे जिस्म का भार उठाये किचन की ओर भाग खड़े हुए, हाथो ने फ्रिज खोल पानी की बोत्तल निकाल ली.

गट... गट.... गट... गट..... करती काया ने पूरी बोत्तल खाली कर दी.

हंफ.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... उफ्फ्फ.... काया का जिस्म पसीने से नहा गया था, पानी ने थोड़ी राहत जरूर पहुंचाई थी, लेकिन दिमाग़ मे अभी भी बाबू का लंड घूम रहा था.

"ममम... मैडम जी पानी..."

कोई जवाब नहीं..

"मैडम जी पानी..."

"आआ.... आय.... हाँ.. हाँ... हाँ... ये लो तुम कब आये " काया हैरान थी.

बाबू उसके सामने ही खड़ा था.

"खाली है "

"क्या?"

"बोतल मैडम बोतल खाली है "

काया ने हाथ मे थमी बोत्तल को देखा, खाली थी, काया का जिस्म और दिमाग़ आपस मे समझौता नहीं कर पा रहे थे.

"मैडम आप ठीक तो है ना?" बाबू ने पसीने से तरबतर काया को पूछ लिया

"अ अ.... हाँ... हाँ... ठीक हूँ " काया ने खुद को संभाल लिया

फ्रिज से दूसरी बोत्तल निकाल बाबू को थमा दी.

"गटक... गटक.... बहुत गर्मी है मैडम जी " बाबू ने बोत्तल वही रख दी.

काया अब तक पूरी तरह संभल गई थी.

"अच्छा चलता हूँ मैडम जी, कचरा हो तो दे दो फेंक दूंगा "

"ननन.... नहीं... आज नहीं है "

"ठीक है चलता हूँ, और अपनी कच्छी संभाल के रखिये मैडम बार बार मेरे पास अ जाती है " बाबू ने फिर से काया को छेड़ दिया

दोनों मे अच्छी पटने लगी थी.

"धत.... बदमाश"

बाबू चला गया, काया सोफे पर धस गई, विचार शून्य.



उधर दूसरी तरफ रोहित आज लोन डिफाल्टरस के चक्कर लगा रहा था.

"सर ये लिस्ट मे तीसरा नाम है, शबाना बेग़म 10लाख है इसके ऊपर " रोहित और सुमित कार मे पीछे बैठे आपस मे बात कर रहे थे.

"कककक.. क्या शबाना बेग़म " कार चलता मकसूद अचानक चौक बैठा.

"तुम जानते हो इसे?" रोहित ने पूछा.

"साब इसे कौन नहीं जनता, आस पास के 10 गांव मे भी इसका नाम पूछ लोगे तो घर तक पंहुचा आएगा.

"क्यों ऐसा क्या है? कौन है "

"नचनिया है हुजूर, नाच गाना करती है, खास लोगो की ही मेहमान होती है, बड़े बड़े जमींदार अपनी जमीन जायदाद इसपे गवा बैठे है" मकसूद ने बड़े चटकारे लेते हुए सूरत ऐ हाल बयान किया.

"लगया है मकसूद मियां भी लुटे हुए है हाहाहाहा...."सुमित ने चुटकी ली.

"कहा छोटे बाबू हम जैसे गरीबो की किस्मत मे कहाँ ऐसी जन्नत की हूर " मकसूद ने बड़े ही हताशा से बोला जैसे उसका सपना हो और वो कभी पूरा ना हो सका.

"हमें क्या भाई, हमें तो पैसे से मतलब है "

मकसूद ने कार दौड़ा दी.

गांव से बाहर होती हुई एक पतली सडक नीचे उतरती हुई जंगल के रास्ते चल पड़ी.

"ये कहाँ जा रहे है हम?" रोहित ने पूछा

"साब शबाना की कोठी इधर ही है"

"क्या कोठी?

"हाँ साब सुनते है की पास के गांव रामगढ के बूढ़े जमींदार ने शबाना से खुश हो कर कोठी दे दी थी, वो खुद तो निकल लिए, उनके बच्चे झोपडी मे अ गए और शबाना कोठी मे"

"हाहाहाहाहा.... ये औरते भी ना क्या ना करवा दे " रोहित हस पड़ा.

तभी चाहारररर..... करती कार कोठी के गेट पर जा रुकी,

तुरंत एक चौकीदार प्रकट हुआ

"किस से मिलना है "

"शबाना जी से" जवाब रोहित ने दिया

"बोलना बड़े साब आये है बैंक से " मकसूद ने लाइन जोड़ दी

चौकीदार तुरंत अंदर गया.

"मकसूद तुम तो कहते थे नचनिया है, ऐसी शानो शौकत?" रोहित सुमित दोनों ही हैरान थे, सरकारी नौकर होते हुए भी उन्हें सपने मे ऐसी शानदार कोठी नसीब नहीं हो सकती थी.

"साब बड़ी नचनिया है, महँगी नचनिया है, बड़े जमींदार दीवाने है इनके, मुँह माँगा पैसा मिलता है "

रोहित के मन मे जिज्ञासा सी जगती जा रही थी, बड़े अजीब लोग है यहाँ के, इतने अमीर लेकिन साले बैंक का पैसा नहीं देते.

"आपको अंदर बुलाया है" चौकीदार तुरंत ही वापस आया.

थोड़ी ही देर मे रोहित और सुमित एक बड़े से बरामदे मे बैठे थे, नौकर चाय पानी की ट्रे आगे रख गया था.

"सलाम हजुर " एक मीठी शहद घुली आवाज़ गूंज गई.

रोहित सुमित ने सर उठाया, देख सामने से सीढ़ी उतरती बलखाती, सुनहरे बालो की रंगत लिए एक स्त्री चली आ रही है.
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नाचीज़ को शबाना कहते है हुजूर,

रोहित, सुमित दोनों के मुँह खुले थे

जैसा सुना उस से कहीं ज्यादा पाया, सामने एक लड़की खड़ी थी दिखने से मालूम पड़ता था कोई 35 की उम्र के आस पास होंगी..

सुनहरे बाल, लाल लहंगा चोली, लाल दुप्पटा, चोली से झाँकते बड़े बड़े आकर के स्तन, उसके नीचे बिलकुल सपाट पेट.

हाथो मे लाल चूड़ी.बालो मे गजरा, चांदी की कमबंद गहरी नाभि की शोभा बड़ा रही थी.

रंगत ऐसी जैसे गुलाब ने अपना गुलाबी रंग शबाना को ही दे दिया है, मोतियों से दाँत.

रोहित समझ चूका था लोग क्यों दिल दौलत इस पर हार बैठते है.

शबाना सामने कुर्सी पर आ बैठी.
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रोहित का दिल भी धाड़ धाड़ कर बज उठा.

क्या शबाना रोहित की लाइफ बदलने वाली है?

काया और रोहित दोनों की दुनिया बदलने वाली है, नियति ऐसे ही कुछ ना कुछ सीखाती है.

बने रहिये.... कथा जारी है...
 

andypndy

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Beta ab yahi shahara hai,
Haan kahani to meri hain kuch kuch, maine hi request ki thi.
Real life me to possible nahi to yahi sahi. 👍
हाहाहाहा... अंकल
अभी भी जवान हो आप तो.
 

malikarman

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आज सुबह से ही काया कुछ बैचेन थी, शरीर मे ऐठन सी महसूस हो रही थी, रात कुछ अच्छी नहीं बीती, करवट बदतली काया की आँखों मे एक उदासी सी छाई हुई थी.रोहित बैंक जा चूका था.

काया एक ढीली टीशर्ट और पजामा पहने घर के काम को अंजाम दे रही थी,

स्तन की खूबसूरती उसके निप्पल टीशर्ट मे अपना वजूद बयां कर रहे थे.

पजामा जांघो के बीच इस कदर धस गया था की त्रिभुज की आकृति साफ देखिब्ज़ा सकती थी.

काम करती काया की नजर बार बात दिवार पर टंगी घड़ी पर चली जा रही थी, जैसे किसी का इंतेज़ार हो उसे.

11बजने को आये थे.

काया कुछ परेशान सी मालूम होती दिख रही थी.

"आया क्यों नहीं " काया मन ही मन बुदबूदा बैठी की तभी

टिंग टोंग.... फ्लैट की घंटी बज उठी.

काया के चेहरे से उदासी तुरंत हवा हो गई, आँखों मे एक चमक आ गई, काया लगभग भागती हुई सी गेट खोलने गई, तेज़ चलने से काया के स्तन उछल उछल के गिर जा रहे थे.

काया घर मे ब्रा पहनना पसंद करती ही नहीं थी, उसके स्तनों को वैसे भी किसी सपोर्ट की जरुरत जान नहीं पडती थी.
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पल भर मे ही गेट खुल गया "बबबब.... बाबू तुम?" काया ने जबरजस्त हैरानी का अभिनय किया, लेकिन चेहरे की स्माइल बता रही थी ये इंतज़ार, ये उतावलापन बाबू के लिए ही था.

"ननन... नमस्ते मैडम जी " बाबू काया की मौजूदा हालत देख हकला गया, शायद काया दिखाना भी यही चाहती हो.

उसने अपने बदन की उभरी खूबसूरती को छिपाने का कोई प्रयास नहीं किया.

"नमस्ते आओ अंदर " काया ने दरवाजा लगा दिया.

"बोलो कोई काम है?"

"मममम.... मैडम... वो... वो... आपकी कच्छी " बाबू ने हथेली आगे कर दी, वो सीधा मुद्दे पर आ खड़ा हुआ.

उसके हाथ मे काया की ब्लैक महँगी पैंटी कैद थी.

"उफ्फ्फ्फ़.... ये पैंटी बार बार तुम्हारे पास कैसे पहुंच जाती है," काया जैसे बहुत हैरान थी.

"ये वाली कल से भी ज्यादा अच्छी थी मैडम जी "

काया ने झट से बाबू से अपनी पैंटी ले ली " हट पागल.... पैंटी तो पैंटी होती है इसमें क्या अंतर "

"वो नहीं.... मैडम जी इस पैंटी मे ज्यादा खुसबू थी " बाबू मासूमियत से बोल गया

काया हैरान थी बाबू कैसे इतनी आसानी से बोल देता है सबकुछ " तुमने फिर मेरी पैंटी सुंघी? " काया ने दिखावटी गुस्सा जताया.

"वो.... वो.... सॉरी मैडम जी लेकिन रहा नहीं गया "

"अच्छा ऐसा क्या है इसमें?" काया ने आज पैंटी वही टेबल पर रख दी और खुद सोफे पर जा बैठी, बाबू सामने ही खड़ा था

"मुझे क्या पता, बस एक खुसबू आती है तो सूंघने का मन करता है " बाबू की नजरें शर्म से नीचे हो गई लेकिन नीचे का नजारा और भी कातिलाना था, काया के भारी स्तन टीशर्ट मे उजागर थे, एक महीन गोरी लकीर खिंच गई थी.

"अच्छा तुम्हारी इस हरकत के बारे मे किसी को बता दू तो " काया ने आंख बड़ी करते हुए कहाँ.

"ससससस... सॉरी मैडम वो मै... वो मै.." बाबू डर के मारे कांप गया,

"हाहाहाहाहा..... बुद्धू " काया जोरदार हस पड़ी, काया को बाबू की हालत देख मजा आ रहा था.

इंसान अपने से कमजोर छोटे इंसान के मजे ले ही लेता है, काया ने भी वही किया,

"अच्छा तुम्हे कैसा लगता है?" काया के मन मे सवाल थे जिसे वो जानना चाहती थी,

"मममम... मतलब "

"तुम मेरी पैंटी क्यों सूंघते हो?, देखो बाबू सच बोलोगे तो किसी को नहीं कहूँगी "

"वो... वो.... मैडम आपकी पैंटी से एक अजीब सी गंध आती है जो मुझे बहुत पसंद है" बाबू ने सच्चे मन से जवाब दिया.

"बस सूंघते हो?" काया के जहन मे कल रात का दृश्य दौड़ गया, जब बाबू ने पैंटी को अपने लंड पे कस के बांध लिया था.

"जज्ज..... जी... जी. मैडम जी "

"झूठ....?"

"सच्ची.... मैडम जी " बाबू बात पे अड़ा रहा.

"कैसा लगता है ऐसा कर के?" काया ने गजब की हिम्मत दिखाते हुए बाबू से ये सवाल पूछा, इस एक सवाल ने ही काया के गले को सूखा दिया.

वो क्या कर रही थी? ऐसी तो नहीं थी काया? शायद उसके जिस्म की गर्मी उस से ऐसा करवा रही थी.

"ममममम...... मैडम... जी " बाबू हैरानी से काया को देखने लगा.

"बोलो "

जवाब मे बाबू ने तुरंत टेबल पर रखी पैंटी उठा ली और कस के सूंघ लिया ससससनणणनईईफ्फ्फ्फफ्फ्फ़........
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बाबू मे भी हिम्मत की कोई कमी नहीं थी.

"आअह्ह्ह....." बाबू ने पैंटी सुंघी थी, लेकिन काया को ऐसा लगा जैसे बाबू ने उसकी जांघो के बीच सर दे दिया हो.

"ये ये... क.. क.... क्या कर रहे हो बाबू?" काया के हलक से शब्द नहीं निकल रहे थे.

बाबू की हरकत ने उसके जिस्म मे कर्रेंट फैला दिया था.

ससससन्नन्नफ्फफ्फ्फ़...... आअह्ह्ह.... मैडम जी.

काया ने आज तक ये नजारा दूर से, अँधेरे मे देखा था, उसका मज़ाक ये असर करेगा उसे पता नहीं था.

"नीचे रखो उसे बाबू " काया अपनी पैंटी लेने के लिए सोफे से उठने ही वाली थी की बाबू की जांघो की ओर नजर चली गई, जहाँ एक लम्बा सा उभार पनप आया था.

काया वापस से सोफे पे जा धसी.

आज ये उभार काया नजदीक से साफ देख रही थी, बाबू की जीन्स टाइट थी, वो बेलनाकार आकृति उसमे फसी हुई सी थी.
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"बबबब..... बाबू" काया सिर्फ इतना ही बोल सकी, मुँह खुला रह गया था उसका.

बाबू की हरकत ही ऐसी थी, " बाबू ने जबान निकाल पैंटी को चाट लिया, एक हाथ अपनी जांघो पर बने उभार पर जा लगा.

"आअह्ह्ह.... मैडम जी "

"छी... बाबू, कहाँ से सीखा ये गन्दा है छोडो " काया ने खुद को सँभालते हुए बाबू के हाथ से अपनी पैंटी छीन ली.

"ये क्या बदतमीज़ी है बाबू? ये क्या कर रहे थे तुम?" काया इस बार सही मे गुस्सा थी, हालंकि ये खेल उसी ने शुरू किया था उसका भड़कना साबित करता था वो इस खेल मे हार रही है.

"अपने ही तो पूछा था और क्या किया मेरी पैंटी के साथ, तो बता दिया "

बाबू के जवाब मे इतनी मासूमियत थी की काया का गुस्सा फुर्र हो गया, चेहरे पे मुस्कान ने जगह ले ली.

"हमारे गांव मे सब ऐसा ही करते है मैडम जी, मैंने भी किया अच्छा लगा तो चाट के देखा "

"छी... लेकिन गन्दा होता है ये सब "काया ने कभी किया नहीं था तो उसके लिए तो गन्दा ही था.

"जो हमें अच्छा लगता है वो कभी गन्दा नहीं होता मैडम जी " बाबू छोटा सा था लेकिन काया जैसे मादक शादीशुदा स्त्री को ज्ञान दे रहा था.

"हम्म्म्म.... काया सोच मे पड़ गई, बाबू सही ही तो कह रहा रहा.

"सबकी अपनी अपनी पसंद होती है मैडम जी, आपकी भी होंगी?"

"कककक.... क्या... ननन... नहीं... नहीं..." बाबू के सवाल से काया सकपका सी गई उसके पास कोई जवाब ही नहीं था होता भी कैसे इतनी बड़ी हो गई लेकिन कामकला का कोई ज्ञान ही नहीं है.

ये कल का लड़का बाबू गुरु बना बैठा था.

"कभी try कीजियेगा, हमेशा कुछ ना कुछ नया सीखना चाहिए.

"ह्म्म्मम्म.... काया अभी बहुत ना जाने कहाँ खोई हुई थी.

"मैडम वो... टॉयलेट " काया ने उंगली से इशारा कर दिया.

बाबू उस ओर चल दिया, काया आज पाताल मे समा गई थी, उसे अहसास हो रहा था सम्भोग के मामले मे उसने आजतक किया क्या है? कुछ नहीं.

वो जानती क्या है? कुछ नहीं

रोहित की जो इच्छा वो उसकी इच्छा, क्या उसका कोई वजूद नहीं? क्या उसकी कोई पसंद नहीं?

भड़ड़ड़ड़आकककक..... धाड की आवाज़ से काया जैसे धरातल पे लौट आई हो.

उसे ध्यान आया बाबू बाथरूम गया है,.

ना जाने क्यों, किस मनोदशा मे काया बाथरूम की ओर चल दी देखा दरवाजा ठीक से लगा नहीं था, बाबू ने बस अंदर घुस दरवाजा पीछे धकेल दिया.

काया को वहा से चले जाना चाहिए था लेकिन नहीं आज उसे उसका जिस्म ऐसा करने से रोक रहा था,

उसके कदम पास आ गए, आंखे उस दरार मे घुस गई, नजरें कुछ तलाशने लगी.

अंदर जो नजारा था उसने काया की सांस को थाम लिया, बस दिल धड़क रहा था, बाकि वो किसी मूर्ति की तरह जाम थी, गला सुख चूका था.

अंदर बाबू ने तुरंत ही जीन्स नीचे कर दी, एक गोरा चिकना सा बड़ा लंड हवा मे झूल गया,
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बाबू आंख बंद किये मुँह ऊपर उठाये मूतने लगा..... ससससस.....पप्पीस्स्स.... एक तेज़ सफ़ेद पिली धार कामोड से टकराने लगी, पेशाब के छींटे उड़ने लगे.

काया हैरान थी एक 18साल के बच्चे का लंड ऐसा भी हो सकता है.

जैसे जैसे पेशाब निकलता जा रहा था वैसे वैसे बाबू का लंड छोटा होता जा रहा था.
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"उउउउफ्फ्फ्फ़...... अब कुछ आराम मिला "

बाहर काया पहली बार इतना साफ और पास से किसी गैर मर्द का लंड देख रही थी, अजी गैर छोड़िये उसने तो कभी रोहित के लंड को भी ठीक से नहीं देखा था, एरेक्ट अवस्था मे तो कभी नहीं.

क्युकी रोहित तुरंत काया पे चढ़ पड़ता था, ऐसा मौका कभी मिला ही नहीं, ना काया ने कभी सोचा.

जल्दी ही बाबू की पेशाब की धार मे बूंदो का रूप ले लिया, टप... टप... टप.... कर लास्ट बून्द टपक पड़ी.

इधर बाबू जीन्स उठाने को झुका, उधर काया के जिस्म ने एक झटका लिया, पैर पुरे जिस्म का भार उठाये किचन की ओर भाग खड़े हुए, हाथो ने फ्रिज खोल पानी की बोत्तल निकाल ली.

गट... गट.... गट... गट..... करती काया ने पूरी बोत्तल खाली कर दी.

हंफ.... हमफ्फ्फ्फफ्फ्फ़.... उफ्फ्फ.... काया का जिस्म पसीने से नहा गया था, पानी ने थोड़ी राहत जरूर पहुंचाई थी, लेकिन दिमाग़ मे अभी भी बाबू का लंड घूम रहा था.

"ममम... मैडम जी पानी..."

कोई जवाब नहीं..

"मैडम जी पानी..."

"आआ.... आय.... हाँ.. हाँ... हाँ... ये लो तुम कब आये " काया हैरान थी.

बाबू उसके सामने ही खड़ा था.

"खाली है "

"क्या?"

"बोतल मैडम बोतल खाली है "

काया ने हाथ मे थमी बोत्तल को देखा, खाली थी, काया का जिस्म और दिमाग़ आपस मे समझौता नहीं कर पा रहे थे.

"मैडम आप ठीक तो है ना?" बाबू ने पसीने से तरबतर काया को पूछ लिया

"अ अ.... हाँ... हाँ... ठीक हूँ " काया ने खुद को संभाल लिया

फ्रिज से दूसरी बोत्तल निकाल बाबू को थमा दी.

"गटक... गटक.... बहुत गर्मी है मैडम जी " बाबू ने बोत्तल वही रख दी.

काया अब तक पूरी तरह संभल गई थी.

"अच्छा चलता हूँ मैडम जी, कचरा हो तो दे दो फेंक दूंगा "

"ननन.... नहीं... आज नहीं है "

"ठीक है चलता हूँ, और अपनी कच्छी संभाल के रखिये मैडम बार बार मेरे पास अ जाती है " बाबू ने फिर से काया को छेड़ दिया

दोनों मे अच्छी पटने लगी थी.

"धत.... बदमाश"

बाबू चला गया, काया सोफे पर धस गई, विचार शून्य.



उधर दूसरी तरफ रोहित आज लोन डिफाल्टरस के चक्कर लगा रहा था.

"सर ये लिस्ट मे तीसरा नाम है, शबाना बेग़म 10लाख है इसके ऊपर " रोहित और सुमित कार मे पीछे बैठे आपस मे बात कर रहे थे.

"कककक.. क्या शबाना बेग़म " कार चलता मकसूद अचानक चौक बैठा.

"तुम जानते हो इसे?" रोहित ने पूछा.

"साब इसे कौन नहीं जनता, आस पास के 10 गांव मे भी इसका नाम पूछ लोगे तो घर तक पंहुचा आएगा.

"क्यों ऐसा क्या है? कौन है "

"नचनिया है हुजूर, नाच गाना करती है, खास लोगो की ही मेहमान होती है, बड़े बड़े जमींदार अपनी जमीन जायदाद इसपे गवा बैठे है" मकसूद ने बड़े चटकारे लेते हुए सूरत ऐ हाल बयान किया.

"लगया है मकसूद मियां भी लुटे हुए है हाहाहाहा...."सुमित ने चुटकी ली.

"कहा छोटे बाबू हम जैसे गरीबो की किस्मत मे कहाँ ऐसी जन्नत की हूर " मकसूद ने बड़े ही हताशा से बोला जैसे उसका सपना हो और वो कभी पूरा ना हो सका.

"हमें क्या भाई, हमें तो पैसे से मतलब है "

मकसूद ने कार दौड़ा दी.

गांव से बाहर होती हुई एक पतली सडक नीचे उतरती हुई जंगल के रास्ते चल पड़ी.

"ये कहाँ जा रहे है हम?" रोहित ने पूछा

"साब शबाना की कोठी इधर ही है"

"क्या कोठी?

"हाँ साब सुनते है की पास के गांव रामगढ के बूढ़े जमींदार ने शबाना से खुश हो कर कोठी दे दी थी, वो खुद तो निकल लिए, उनके बच्चे झोपडी मे अ गए और शबाना कोठी मे"

"हाहाहाहाहा.... ये औरते भी ना क्या ना करवा दे " रोहित हस पड़ा.

तभी चाहारररर..... करती कार कोठी के गेट पर जा रुकी,

तुरंत एक चौकीदार प्रकट हुआ

"किस से मिलना है "

"शबाना जी से" जवाब रोहित ने दिया

"बोलना बड़े साब आये है बैंक से " मकसूद ने लाइन जोड़ दी

चौकीदार तुरंत अंदर गया.

"मकसूद तुम तो कहते थे नचनिया है, ऐसी शानो शौकत?" रोहित सुमित दोनों ही हैरान थे, सरकारी नौकर होते हुए भी उन्हें सपने मे ऐसी शानदार कोठी नसीब नहीं हो सकती थी.

"साब बड़ी नचनिया है, महँगी नचनिया है, बड़े जमींदार दीवाने है इनके, मुँह माँगा पैसा मिलता है "

रोहित के मन मे जिज्ञासा सी जगती जा रही थी, बड़े अजीब लोग है यहाँ के, इतने अमीर लेकिन साले बैंक का पैसा नहीं देते.

"आपको अंदर बुलाया है" चौकीदार तुरंत ही वापस आया.

थोड़ी ही देर मे रोहित और सुमित एक बड़े से बरामदे मे बैठे थे, नौकर चाय पानी की ट्रे आगे रख गया था.

"सलाम हजुर " एक मीठी शहद घुली आवाज़ गूंज गई.

रोहित सुमित ने सर उठाया, देख सामने से सीढ़ी उतरती बलखाती, सुनहरे बालो की रंगत लिए एक स्त्री चली आ रही है.
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नाचीज़ को शबाना कहते है हुजूर,

रोहित, सुमित दोनों के मुँह खुले थे

जैसा सुना उस से कहीं ज्यादा पाया, सामने एक लड़की खड़ी थी दिखने से मालूम पड़ता था कोई 35 की उम्र के आस पास होंगी..

सुनहरे बाल, लाल लहंगा चोली, लाल दुप्पटा, चोली से झाँकते बड़े बड़े आकर के स्तन, उसके नीचे बिलकुल सपाट पेट.

हाथो मे लाल चूड़ी.बालो मे गजरा, चांदी की कमबंद गहरी नाभि की शोभा बड़ा रही थी.

रंगत ऐसी जैसे गुलाब ने अपना गुलाबी रंग शबाना को ही दे दिया है, मोतियों से दाँत.

रोहित समझ चूका था लोग क्यों दिल दौलत इस पर हार बैठते है.

शबाना सामने कुर्सी पर आ बैठी.
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रोहित का दिल भी धाड़ धाड़ कर बज उठा.

क्या शबाना रोहित की लाइफ बदलने वाली है?

काया और रोहित दोनों की दुनिया बदलने वाली है, नियति ऐसे ही कुछ ना कुछ सीखाती है.

बने रहिये.... कथा जारी है...
Waah...shandar update
Agle update ka intezar hai
 
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andypndy

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सुमित और रोहित मुँह बाये बैठे थे, क्या अदा थी, ज्या हुश्न था, क्या नजाकत थी.

रोहित के पास खुद एक सुन्दर कामुक अप्सरा सी बीवी थी लेकिन शबाना को देख जैसे लार टपक आई हो.

हर एक मर्द की यही कहानी है, घर की मुर्गी डाल बराबर.

"नमस्ते बड़े बाबू, नमस्ते छोटे बाबू " शबाना ने झुक के अभिवादन किया

रोहित और सुमित दोनों ही मुँह बाये बैठे थे, जैसे की कुछ सुनाई ही ना दिया हो.

झुकने से शबाना के दोनों बड़े स्तन और बाहर को निकल आये, स्तन इतने गोरे थे की हरी हरी नस तक दिख जा रही थी.

"कहाँ खो गए बड़े बाबू?" शबाना सामने कुर्सी पर जा बैठी.

शो ख़त्म.... दोनों होश मे आये.

"वो... वो.... हम क्यों आये थे " रोहित सकपका गया.

"वो हाँ हम बैंक से आये है"

"तो बताइये क्या काम है " शबाना की बोली मे, चाल मे एक मादकता थी, एक कामुक अहसास था.

जो देखने सुनने वाले के जिस्म मे उतर जाता था.

"आ... आ.. अपने बैंक से लोन लिया था " रोहित ने जैसे तैसे खुद को संभाला.

"बड़े बाबू.... लोन मैंने नही लिया था, आपसे पहले जो बड़े बाबू थे उन्होंने जबरजस्ती दिया था "

"कक्क.... क्या मतलब "

" वो भी मेरे हुस्न के दीवाने थे "

"वो भी से क्या मतलब आपका?'" रोहित थोड़ा कड़क हुआ उसे अपनी ड्यूटी याद आ गई.

उसे लगा कहीं उसका इशारा उसकी तरफ तो नहीं.

"मतलब की आस पास के गांव भर के लोग मेरे ही दीवाने है, मेरे नाच के शौकीन है, वो बड़े बाबू आया करते थे अक्सर इस कोठी पर, बूढ़े हो चले थे, दिया बुझ गया था लेकिन लौ कभी कभी जल जाती थी, तो ऐसे ही एक दिल 10 लाख रूपए दे गए हमसे ख़ुश हो कर, और एक पेपर पर सिग्नेचर करा ले गए "

शबाना ने पूरी कहानी सुना दी.

शबाना के सुर्ख लाल होंठो से निकली बात पे अविश्वास संभव नहीं था.

"तो सिग्नेचर करने से पहले पढ़ा नहीं?" रोहित थोड़ा उग्र हो चला.

"साब गुस्सा क्यों होते है, हमारे नसीब मे आपकी तरह ये किताबें, ये अफसर गिरी कहां, मै अभागी पहली जमात भी ना पढ़ सकी " शबाना ने जैसे दुख व्यक्त किया.

"लो सुमित बात तो वही आ गई वापस " रोहित थोड़ा नर्म हो चला.

"ये पिछला मैनेजर फसा गया हमें सर " सुमित ने फुसफुसाया.

"तुम कहती हो पढ़ी लिखी नहीं हो, फिर सिग्नेचर कैसे किया?"

ट्रिंग ट्रिंग ट्रिंग.... सुमित का फ़ोन बज उठा.

"सर दिल्ली से कॉल है बात कर आता हूँ " सुमित बाहर को चल दिया.

कमरे मे सन्नाटा छा गया, रोहित और उसके सामने एक हुस्न परी शबाना बैठी थी, लगभग अर्धनग्न, पूरा गला खुला हुआ, चोली से झाकते उसके आधे से ज्यादा स्तन, उसके नीचे सपाट गोरा पेट, मासल जांघो पर लिपटी लाल घाघरा.

रोहित मन ही मन उसके हुस्न की तरीफ कर उठा.
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"लेकिन शबाना जी लोन आपके नाम है, आपको चुकाना होगा, मै कुछ नहीं कर सकता?" रोहित ने अपनी समस्या बता दी

उसे हमदर्दी का अहसास तो हुआ लेकिन जॉब इस जॉब

"बड़े बाबू कहां से लाऊंगी मै इतना पैसा?"

"क्यों इतनी शानो शौकत से तो रहती तो, तुम्हारे लिए कोई बड़ी बात है?"

"आप शहरी बाबू है, पढ़े लिखें आपकेिये आसान हो सकता है, मुझे अपना मान सम्मान, इज़्ज़त, ये जिस्म सब कुछ गवाना पड़ा है इस ऐसो आराम के लिए" शबाना ना जाने रोहित के सामने ऐसा क्यों बोल पड़ी

सामने रोहित हैरानी से एक स्त्री की व्यथा को देखे जा रहा था.

"मेरी सुंदरता ही मेरा श्राप बन गई बड़े बाबू, जवानी के मुहने पे खड़ी हुई तो आस पास के जमींदारों की नजर मेरे जिस्म पर जा टिकी, गरीब माँ बाप की औलाद हूँ बाबे बाबू क्या करती अपना जिस्म नुचवाती रही, कभी रात रात भर नाच किया, तो कभी किसी बूढ़े जमींदार के बिस्तर की शोभा बानी, क्या नहीं किया मैंने, लेकिन जब दलदल मे ही उतर गई तो इन मगरमच्छओ से कीमत ले लेने मे क्या हर्ज़ था, और आज आप शहर से आ कर कहते है लौटा तो सब, कैसे लौटा दू.

अपने जिस्म की खरोच लौटा दू?, रात भर नाचने ज़े हुए पैरो के जख्म लौटा दू? बताइये क्या लौटा दू बड़े बाबू "

शबाना बहक गई थी, उसके मन मे बरसो की आग थी जिसे उसने उगल दिया.

सामने बैठा रोहित दंग था, वो क्या सोच रहा था शबाना के बारे मे और वो क्या निकली.

ऐसी औरत जिसके जिस्म पर सिर्फ घाव है, धोखा है.

रोहित ने आज से पहले कभी इस परिस्थिति का सामना नहीं किया था, रोहित शून्य मे डूबा सोफे से खड़ा हो गया.

उसके कदम बाहर जाने को थे.

"रुकिए बड़े बाबू "

शबाना की बेबस भारी मधुर आवाजी ने जैसे रोहित के पैर जकड लिए.

ये लीजिये " शबाना ने अपने गले से हार नोच के सामने टेबल पर रख दिया " अभी ये ले जाइये, बाकि का इंतेज़ाम करती हूँ मै ". रोहित पलट कर शबाना को देखने लगा

शबाना की आँखों मे आँसू थे, एक सच्चाई थी, एक बेबसी थी जो आँखों से रिसती, गुलाबी गालो को भिगोती जा रही थी.

रोहित का दिल भी जार जार कर उठा "हे भगवान ये सब क्या है? "

इतिहास गवाह है औरत के आंसू मर्द का लक्ष्य बदल देते है.

आज भी इतिहास कायम था. रोहित अपना लक्ष्य कबका भूल गया था उसे भी नहीं पता.

"इसकी कोई जरुरत नहीं शबाना, मै देखता हूँ कुछ "

रोहित ने दिलाशा दिया.. और पलट के चल पड़ा,

"रुकिए बड़े बाबू " रोहित के हाथ शबाना के कोमल हाथो ने थाम लिए.

रोहित जहाँ था वही जमा रह गया..

शबाना बिलकुल करीब थी इतनी की जोर से सांस भी लेती तो उसके बड़े भारी स्तन रोहित की छाती से जा लगते.

मर्द आखिर मर्द ही होता है, रोहित उत्तेजना महसूस करने लगा, ऐसी जो आज तक कभी काया के आगोश मे भी नहीं आई थी.

"आप पहले ऐसे मर्द है जो शबाना के दर से खाली हाथ जा रहे है " शबाना के होंठ रोहित के चेहरे के निकट आ गए सांसे रोहित के चेहरे से टकराने लगी.
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शबाना की साँसो मे जैसे जादू था, रोहित किसी मोहपाश मे बंधा शबाना को एकटक देखे जा रहा था.

"वो... वो.... मेरा काम है शबाना जी " रोहित बस मुस्कुरा दिया.

"मैंने आजतक आप जैसा बांका नौजवान नहीं देखा, मेरी किस्मत हमेशा बूढ़ो, पैसे का घमड़ लिए जमींदारों की गुलाम रही " शबाना वाकई रोहित पर मोहित हो गई थी.

रोहित बांका जवान छेल छबिला युवक था, गोरा चिट्टा, तीखी नाक, चमकती आंखे, माथे पर उभरी नस, घने बाल.

रोहित मे वो सब कुछ था जो एक औरत को पसंद होता है.

शबाना जो आज तक इस गांव से बाहर भी ना जा सकी थी उसके दर पे कामदेव सरिखा मर्द खड़ा था.

रोहित के पास शबाना की बातो का कोई जवाब नहीं था, वो बस मन्त्रमुग्ध था.

शबाना की सांसे उसकी साँसो से मिलती जा रही थी.

होंठ शबाना के लाल सुर्ख होंठ को छू लेना चाहते थे.

ठाक... ठाक... ठाक..... कदमो की आवाज़ ने दोनों को जयश्री किसी हसीन सपने से बाहर खिंच किया हो.

"सर चले क्या ऑफिस जा कर जरुरी फ़ाइल मेल मॉनिंग है मल्होत्रा साब को " सुमित कमरे मे दाखिल हो गया था.

शबाना वापस कुर्सी पे बैठी थी, रोहित वैसर ही शून्य को तलाशता खड़ा था, आंखे लाल हो गई थी.

माथे पे पसीने की लकीर नाम तक आ गई थी.

"आए...आ.... हाँ... हनन.... हाँ... चलो" रोहित ने टेबल पर पड़े कागज़ समेट लिए.

सुमित आगे रोहित पीछे चल पड़ा, ना जाने क्यों एक बार पलट के देखा, शबाना उसे ही देख रही थी दोनों की आँखों मे सुनापन था, पहली मुलाक़ात ने एक अधूरी छाप छोड़ दी थी.

कुछ ही पलो ने कार सडक पर दौड़े जा रही थी, रोहित वैसे ही गुमसुम बैठा था..

सुमित कुछ बोलता तो जवाब सिर्फ हाँ हुन्नन.... मै ही होता.

जिस्म कार मे था दिल दिमाग़ शबाना की कोठी पर ही छोड़ आया था, ना जाने क्या काला जादू था शबाना मे.

जो भी था साफ था वो जादू रोहित को गिरफ्तार कर चूका है.



वही दूसरी ओर

काया सोफे पर ही विचार शून्य धसी हुई थी, अभी अभी जो भी उसने देखा उसके जीवन मे ये पहली बार था, बदन पसीने से नहाया हुआ था, रह रह के कांप जा रही थी, लगता था जैसे नाभि के नीचे कुछ जलता हुआ सा जांघोबके बीच तक जा रहा है.

कैसी फीलिंग थी पता नहीं.

दिमाग़ से बाबू का वो बड़ा हिलता लंड जा ही नहीं रहा था, बालकनी से देखने पर ऐसा नहीं महसूस होता था.

काया की जांघो के बीच गिलापन सा आ गया,

काया उठ खड़ी हुई, दिमाग़ को कहीं ओर लगाना था

काया ने फ्रिज खोला ही की पास मे पड़े कूड़ेदान पर नजर पड़ गई, सुबह की सब्जी के छिलके और रात का कंडोम चमक रहा था,

कंडोम पर नजर पड़ते ही काया का मन हताशा से भर उठा, कल रात के नाकाम सम्भोग के बाद से काया का जिस्म एयर भी ज्यादा तनाव महसूस कर रहा था.

"जल्दबाज़ी मे बाबू को मना कर दिया था, अब कहां फेंकू "

काया बालकनी मे गई नीचे झांका कोई नहीं था, 1 बज चुके थे मजदूरों का भी लंच टाइम चल रहा था.

"खुद ही फेंक आती हूँ, मन भी चेंज होगा " काया ने कूड़े की थैली उठाई और चल पड़ी.

लिफ्ट की ओर बड़ी की "चलती तो है नहीं yaar ये " लिफ्ट का दरवाजा बंद था.

गर्मी मे सीढ़ी कौन उतरेगा,देखते है.

काया ने लिफ्ट के पास जा कर बटन दबा दिया, ससससससरररर...... करती लिफ्ट ऊपर आने लगी.

"वाह आज तो कमाल हो गया, लिफ्ट चालू है " काया ने राहत की सांस ली.

चर्चारता.... लिफ्ट का दरवाजा खुल गया.

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"नमस्ते मैडम जी...." लिफ्ट के अंदर काका दाँत निपोरे खड़ा था. काका के सामने जैसे कोई परी आ खड़ी हुई थी, टाइट टीशर्ट और पाजामे मे माया हुस्न की देवी मालूम पडती थी,जिस्म का एक एक हिस्सा काटव अपनी मौजूदकी बयां कर रहा था..

"नमस्ते...." काया को इसकी बिलकुल भी उम्मीद नहीं थी, काया पाजामे टीशर्ट मे ही थी,

क्या करती, हो गई दाखिल लिफ्ट मे, हाथो को आगे की तरफ बांध लिया, ताकि स्तनों को ढक सके, कोई भी

भी स्त्री ऐसा ही करती है.

ऐसी kamuk स्त्री कितना ही पर्दे मे आ जाये अपने जिस्म को नहीं बचा सकती

"कहां चले मैडम?"

"नीचे " काया लिफ्ट मे पीछे की तरफ हो गई, पीछे दिवार से जा चिपकी.

"अभी चलते है..... " काका ने बटन दबाने के साथ ही जेब मे हाथ डाल जर्दा निकाल लिया.

काया मन मामोस के खड़ी थी, "कैसे लोग है "

"थाड.... थाड.... थाड.... " काका ने हाथ मे जर्दा मसल तीन ताली दे मारी

"आआककककक.... छू..... आक्क्क...छू...." नतीजा बंद लिफ्ट मे जर्दा सरक गया.

छिंक इतनी जोर से थी की काया के स्तन हिलते हुए टीशर्ट से बाहर आ वापस अंदर समा गए.
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काका के होश उड़ा देने के लिए बहुत था.

बिरजू काका up के किसी छोटे गांव का रहने वाला है, बीवी को मरे 20 साल बीत गए खुद 60 के पड़ाव पर बैठा है.

परिवार के नाम पर एक बेटा और बहु है जो की वही गांव मे रहते है.

काका का मन नहीं लगता था वहा तो चला आया कुछ कमाने और यु ही घूमने फिरने.

काम मे कोई खास ध्यान नहीं रहता था, काम लार आती औरतों को देख आहे भर मियां करता था.



"क्या काका ये खाना जरुरी है " काया की मधुर आवाज़ ने काका के कान मे रस घोल दिया.

"ससस... सोरी मैडम जी लेकिन वो क्या है ना अभी खाना खा के लौटे है तो तलब लग आई थी "

काया ने कुछ नहीं कहां.

तभी गड़..... गगगगगरररर..... ससससससस..... करती लिफ्ट तीसरे फ्लोर पर जा रुकी, लिफ्ट की सफ़ेद मैन लाइट बंद हो गई, उसकी जगह माध्यम पिली रौशनी जल उठी....

"यययय..... ये.... क्या हुआ काका " काया हैरान थी, परेशान थी.

"ममम.... मैडम जी लगता है लाइट चली गई है.

"ककम्म.... क्या...." काया लगभग चिल्ला उठी.

"आब्ब... अब क्या होगा "?

बिरजू काका बिलकुल परेशान नहीं हुआ " रुकिए बाबू को बोलते है जनरेटर चालू करने को, आप घबराइए नहीं"

बिरजू ने फ़ोन निकाल कॉल लगाया..... नहीं लगा.... फिर लगाया नहीं लगा..... अब बिरजू काका के चेहरे पर भी कुछ चिंता की लकीरें उभार आई.

"क्या हुआ काका..." काया परेशान थी उसका जिस्म किसी अंजानी शंका से कांप रहा था.

"ये बाबू का फ़ोन नहीं लग रहा है " काका ने भी चिंता व्यक्त की.

"लाइए मे देखती हूँ " काया ने काका के हाथ से मोबाइल लगभग छीन लिया.

"ऑफफ.... काका इसमें तो नेटवर्क ही नहीं है, मै भी जल्दी मे फ़ोन नहीं लाइ " काया हाथस हो गई.

अब इस लिफ्ट मे फसे रहने के अलावा कोई चारा नहीं था.

"कब तक लाइट आएगी?"

"पता नहीं मैडम जी, कभी कभी 5, 10 मिनिट मे आ जाती है और नहीं आई तो 2,4 घंटे भी नहीं आती "

काका ने जैसे काया पर बम फोड़ दिया हो.

"कक्क... कक्क.... क्या? 3,4 घंटे "

काया वैसे ही गर्मी से परेशान थी, उसके माथे, गले पे पसीने ही बून्द पनपने लगी थी, जो की रखा साथ मिल कर नदी का निर्माण कर काया की टीशर्ट मे समाती जा रही थी.

काया ने आगे बढ़ लिफ्ट के दरवाजे को पीटना स्टार्ट कर दिया "कोई है.... कोई बाहर है?"

लेकिन कोई जवान नहीं..

परन्तु इस उपक्रम मे काया मे हाथ से कचरे की थैली छूट के फर्श पर गिर गई थी, सारा कचरा बाहर फ़ैल गया.

"मैडम कोई नहीं सुनेगा, काम नीचे के फ्लोर पर चल रहा है, हम तीसरे मंजिल पर है "

काका ने कूड़े को समेटना चाहा..

काया भी रूआसी सी लिफ्ट के गेट पर पीठ टिकाये फैले कचरे को देख रही थी,

काका नीचे झुक कचरा उठाने लगा की उसकी नजर थैली से बाहर निकले कंडोम पर जा पड़ी.... साथ ही काया की भी.

पहले से परेशान काया के छक्के छूट गए, कंडोम को देख के "हे भगवान क्या मुसीबत है "

काया झट से नीचे बैठती हुई कंडोम को लापकने के लिए बैठी ही थी वो कंडोम काका की मुट्ठी मे जा चूका था.

काया के नीचे झुकने से उसकी टीशर्ट स्तन से अलग हो बाहर को लटक गई साथ ही बड़े भारी सुडोल स्तन साफ काका के सामने उजागर हो गए..
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दोनों एक साथ सन्न रह गए, काका बरसो बाद स्त्री की खूबसूरती देख रहा था, ऊपर से ऐसे शहरी मादक स्त्री जिसे उसने सपने मे भी कभी ना सोचा हो और काया खुद शर्म से मरी जा रही थी.

दोनों जैसे जड़ हो गए थे, काका काया के स्तन को घूरे जा रहा तो काया काका के हाथ मे थमे कंडोम को, दोनों का जिस्म गर्म हो पसीने छोड़ रहा था.



तो क्या काया यहाँ काम कला का पहला सबक सीखेगी?

या लाइट आ जाएगी जल्द है?

आप क्या चाहते है?

लाइट आ जाये और काया चली जाये?

दोनों पति पत्नी जीवन मे कुछ नया सिखने जा रहे है.

लिफ्ट कांड आरम्भ
 
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